जैविक ऊर्जा का अधिकतम उपयोग कर कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र के सतत एवं संतुलित विकास के लिए मोदी सरकार प्रतिबद्धः श्री तोमर

विश्व पर्यावरण दिवस पर सीएनआरआई के विशेष कार्यक्रम में शामिल हुए विधानसभा अध्यक्ष

भूमि के पुनर्जीवन के लिए महत्वपूर्ण जैव ऊर्जा: श्री तोमर

 

                                                                                                     नई दिल्ली, 5 जून, 2024

 

विश्व पर्यावरण दिवस पर आज यहां एक कार्यक्रम में बोलते हुए मध्य प्रदेश के माननीय विधानसभा अध्यक्ष श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि भूमि के पुनर्जीवन, मरुस्थलीकरण को रोकने और सूखे से लड़ने की क्षमता विकसित करने में जैव ऊर्जा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी, क्योंकि ये संधारणीय (सस्टेनेबल) ऊर्जा समाधान प्रदान करती है। श्री तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार जैविक ऊर्जा का अधिकतम उपयोग कर कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र के सतत एवं संतुलित विकास के लिए मोदी सरकार प्रतिबद्ध है। 

 

'ग्रामीण स्वयंसेवी संस्थाओं के परिसंघ' (सीएनआरआई) द्वारा आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में अपने मुख्य भाषण में श्री तोमर ने कहा, "दुनियाभर में पर्यावरण तंत्र पर संकट की तलवार लटक रही है। जंगलों और सूखी भूमि से लेकर खेतों और झीलों तक जो मनुष्य जीवन के लिए अतिआवश्यक है, वो संकट में है। दुनियाभर में 2 बिलियन हेक्टेयर से ज्यादा भूमि खराब हो चुकी है, जोकि भारत और रूस के बराबर है। हर साल 12 मिलियन हेक्टेयर अनुमानित भूमि का स्तर खराब हो जाता है, जिसका सीधा असर वैश्विक खाद्यान्न और जल आपूर्ति पर पड़ता है। भूमि खराब होने 3.2 बिलियन लोग यानि दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी प्रभावित होती है, जिसका सबसे ज्यादा असर ग्रामीण समुदायों, लघु किसानों और गरीबों पर पड़ता है। इस पर शीघ्रातिशीघ्र कार्य करने की आवश्यकता है।"       

 

"भूमि पुनर्जीवन में एक महत्वपूर्ण चुनौती जैव ईंधन का असरदार उपयोग है, जो क्षेत्र की जैव विविधता को काफी ज्यादा प्रभावित करता है। भारत जहां विश्व की 17% आबादी रहती है, वहां ऊर्जा की खपत विश्व की 5% ही है। हमारी प्रति व्यक्ति ऊर्जा एवं विद्युत खपत वैश्विक औसत की एक तिहाई ही है। इसमें जैव ऊर्जा वर्ष के भूमि पुनर्जीवन, मरूस्थलीकरण को रोकने और सूखे के विरुद्ध प्रतिरोध विकसित करने के लिए ऐसे संधारित (सस्टेनेबल) ऊर्जा समाधान उपलब्ध कराती है, जो पर्यावरण की नुकसान होने से बचाते और भूमि पुनर्जीवन प्रयासों को बल प्रदान करते हैं," उन्होंने आगे कहा।     

 

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने जैव ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं, जो जैव ईंधन, जैविक गैस और अपशिष्ट ऊर्जा के प्रोजेक्टों पर केंद्रित हैं।   

 

उन्होंने राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम जैसी योजनाओं की प्रशंसा की, जिसमें अपशिष्ट ऊर्जा कार्यक्रम, जैव ईंधन कार्यक्रम, और जैविक गैस कार्यक्रम जैसी उपयोजनाएं शामिल हैं; किफायती यातायात के लिए संधारणीय विकल्प (सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन - एसएटीएटी); नवीन जैविकगैस एवं जैविक खाद कार्यक्रम (एनएनबीओएमपी) और गोबर धन (गाल्वनाइजिंग आर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्स प्लान) जैसी योजनायें शामिल हैं और सभी हितधारकों से इन योजनाओं के नेक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए प्रभावी कदम उठाने का आव्हान किया।         

 

"इन पहलों से एक तरफ सरकार द्वारा जैविक ऊर्जा को टिकाऊ और पर्यावरण योग्य ऊर्जा स्रोत के तौर पर उपयोग करने, वहीं दूसरी ओर अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियों से निपटने और ग्रामीण एवं कृषि विकास को प्रोत्साहित करने की प्रतिबद्धता रेखांकित होती है," श्री तोमर ने कहा।   

 

कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों के विचारक उपस्थित रहे। 

 

कार्यक्रम में भाग लेते हुए इफ्को के चेयरमैन, विश्व सहकारिता आर्थिक मंच (वर्ल्ड कोऑपरेशन इकोनॉमिक फोरम) के संस्थापक और भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (नेशनल कोआपरेटिव यूनियन ऑफ इंडिया - एनसीयूआई) के अध्यक्ष श्री दिलीप संघाणी ने कहा," नई वैश्विक व्यवस्था में जलवायु परिवर्तन की बड़ी वैश्विक चुनौती से निपटने के लिए सहकारी आर्थिक ढांचे को बदलना पड़ेगा। जैव-अर्थव्यवस्था की बड़ी भूमिका रहेगी, जो आजीविका समाधान प्रदान करेगी। दुनिया को एसडीजी चुनौतियों से निपटने के क्षेत्र में भारत के कार्यों से सीखने की आवश्यकता है।"        

 

'ग्रामीण स्वयंसेवी संस्थाओं के परिसंघ' के महासचिव श्री बिनोद आनंद ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किये।

 

"भूमि निम्नीकरण का परिणाम सूखा वार्षिक आधार पर 55 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है, जो इसे पशुधन और फसलों के लिए दुनियाभर में सबसे बड़ा खतरा बनाता है। विश्व की 40 प्रतिशत आबादी यानि 3.2 बिलियन लोग भूमि निम्नीकरण से सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव संसाधन विहीन ग्रामीण समुदायों, लघु एवं सीमान्त किसानों और गरीबों पर पड़ता है। भूमि के निम्नीकरण से वैश्विक खाद्यान्न उत्पादन में 12% की कमी आती है, जिससे 2040 तक खाद्य पदार्थों की कीमतों में 30-40 प्रतिशत की उछाल का अनुमान है। इससे न केवल खाद्य सुरक्षा पर संकट है, बल्कि दुनियाभर में अर्थव्यवस्थाओं को अस्थिर कर सकता है," श्री आनंद ने कहा। 

 

"भारत भूमि निम्नीकरण से निपटने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा मार्गदर्शित 'दि लाइफ' (The LiFE) आंदोलन जिम्मेदाराना जीवन जीते हुए प्रकृति के साथ सामजंस्य बिठाने पर जोर देता है। दुनिया के साथ अपने अनुभव और सर्वश्रेष्ठ कार्यों को साझाकर हम दूसरे देशों को संधारणीयता (सस्टेनेबिलिटी) और पारम्परिक ज्ञान पर आधारित भारत के भूमि पुनर्जीवन समाधानों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं," श्री आनंद ने आगे कहा।    

 

डॉ एस एन त्रिपाठी (आईएएस रि.), डॉ राजवीर शर्मा, डॉ पी एस बिरथल, सुश्री नील कमल दरबारी (आईएएस रि.), प्रो (डॉ) विनोद के शर्मा, श्री विशाल सिंह, सुश्री गोपा पांडेय (आईएफएस रि.), डॉ एच पी सिंह, डॉ आर जी अग्रवाल, श्री सीताराम गुप्ता, डॉ सुशील सिंघला (आईएफएस), श्री विश्वास त्रिपाठी, डॉ अमिताभ कुंडू, श्री मनीष संघाणी, श्री नितिन चितकारा, प्रो रवि प्रकाश ओझा, श्री जे टी चारी, डॉ राकेश अर्रावातिया, श्री निरंजन कराड़े, प्रो मनीषा पालीवाल, श्री राजेश लाम्बा और श्री विपिन सैनी समेत कई गणमान्य व्यक्ति और विचारक इस अवसर पर उपास्थित रहे और इस महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार व्यक्त किये।