मध्यप्रदेश विधान सभा
की
कार्यवाही
(अधिकृत विवरण)
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चतुर्दश विधान सभा एकादश सत्र
जुलाई, 2016 सत्र
गुरूवार, दिनांक 28 जुलाई, 2016
( 6 श्रावण, शक संवत् 1938 )
[खण्ड- 11 ] [अंक- 8 ]
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मध्यप्रदेश विधान सभा
गुरूवार, दिनांक 28 जुलाई , 2016
( 6 श्रावण, शक संवत् 1938 )
विधान सभा पूर्वाह्न 11. 04 बजे समवेत हुई.
{ अध्यक्ष महोदय (डॉ. सीतासरन शर्मा ) पीठासीन हुए.}
अध्यक्ष महोदय :- प्रश्न क्रमांक -1
( श्री सुन्दरलाल तिवारी,सदस्य के खड़े होकर बोलने पर )
अध्यक्ष महोदय :- तिवारी जी आप बैठ जाईये. आप लोगों को जो कुछ बोलना है प्रश्नकाल के खत्म होने के बाद बोलिये. तिवारी जी यह बात ठीक नहीं है. आप बैठ जाईये.
(व्यवधान)
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया :- अध्यक्ष महोदय, यह बात ठीक नहीं है. तिवारी जी ने दो मिनट खराब कर दिये हैं. (व्यवधान)
डॉ गोविन्द सिंह :- माननीय अध्यक्ष महोदय, श्रीमती शशि कर्णावत जी ने इच्छा मृत्यु मांगी है. (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय :- आप लोग बैठ जाईये. क्या आप लोग एक घण्टा चुप नहीं बैठ सकते हैं . आप लोग प्रश्नकाल का महत्व समझते हैं या नहीं ? इस तरह से विधानसभा का का समय बर्बाद कर रहे हैं,. आप लोग रोज प्रश्नकाल में खड़े हो जाते हैं. दूसरे सदस्यों के भी प्रश्न हैं उनका क्या होगा. आप लोग बैठ जाईये. नेता जी बोल रहे हैं. (व्यवधान) तिवारी जी और सुरेन्द्र सिंह जी आप लोग बैठ जाईये. श्री शैलेन्द्र पटेल आप अपना प्रश्न करिये.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ नरोत्तम मिश्र):- अध्यक्ष महोदय, मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं कि कल आपने आसंदी से व्यवस्था दी थी कि प्रश्नकाल को बाधित करने के लिये आप एक बैठक बुलाने वाले हैं. यह विषय जो सम्मानित सदस्य उठा रहे हैं, क्या यह शून्यकाल में नहीं उठ सकता है ?
अध्यक्ष महोदय :- व्यवस्थाएं समझदार लोग समझते हैं.
डॉ नरोत्तम मिश्र:- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह बात सही है कि समझदार लोग समझते हैं, लेकिन अध्यक्ष महोदय कुछ लोग ऐसे हैं, उनको समझाया जाना चाहिये. (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय :- अब मैं क्या करूं, उनको समझ में नहीं आता है तो मैं उसका क्या करूं. मैं कह-कह कर परेशान हूं कि प्रश्नकाल होने दीजिये. आप लोग शून्यकाल में मामले को उठाईये. (व्यवधान) आप लोग बैठ जाईये.(व्यवधान) आप डिस्टर्ब मत करिये. श्री शैलेन्द्र पटेल आप अपना प्रश्न करिये. आप बैठ जाईये बिल्कुल नहीं सुनेंगे. आपको जो बोलना है, प्रश्नकाल के बाद बोलिये.
तारांकित प्रश्नों के मौखिक उत्तर
सीहोर जिले में संचालित विश्वविद्यालय
1. ( क्र. 3363 ) श्री शैलेन्द्र पटेल : क्या उच्च शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या सीहोर जिले में कोई सत्यसाईं विश्वविद्यालय संचालित किया जा रहा है? यदि हाँ, तो विश्वविद्यालय संचालन समिति व संचालक आदि का ब्यौरा दें। उक्त विश्वविद्यालय की स्थापना कब व किन नियमों के तहत की गई है? (ख) प्रश्नांश (क) अनुसार सत्यसाईं विश्वविद्यालय द्वारा प्रदेश भर में कितने कॉलेज संचालित किए जा रहे हैं? क्या उक्त विश्वविद्यालय को मेडिकल कॉलेज या विद्यालय संचालन की पात्रता है, यदि हाँ, तो किन नियमों के तहत? (ग) प्रश्नांश (क) अनुसार उक्त विश्वविद्यालय में पढ़ाए जा रहे कोर्स की फीस किन मापदण्डों पर नियत की गई है? क्या विश्वविद्यालय द्वारा विद्यार्थियों से प्रतिवर्ष जनभागीदारी अशासकीय शुल्क एवं विश्वविद्यालय शुल्क वसूला जा रहा है? यदि हाँ, तो कक्षावार ब्यौरा दें। (घ) क्या उक्त विश्वविद्यालय द्वारा सीहोर स्थित कैंपस में एक से अधिक कॉलेज यथा बी.एड., नर्सिंग, इंजीनियरिंग आदि संचालित किए जा रहे हैं? यदि हाँ, तो क्या यह नियमानुसार सही है? यदि नहीं, तो शासन ने अब तक क्या कार्यवाही की है।
उच्च शिक्षा मंत्री ( श्री जयभान सिंह पवैया ) : (क) जी हाँ। विश्वविद्यालय संचालन समिति व संचालक की जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र-एक अनुसार है। विश्वविद्यालय की स्थापना दिनांक 19.09.2013 को म.प्र. निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) अधिनियम, 2007 के प्रावधान के तहत की गई है। (ख) विश्वविद्यालय द्वारा विश्वविद्यालय के परिसर में स्थापित संगठक इकाइयों के अतिरिक्त परिसर के बाहर अन्यत्र कोई भी कॉलेज संचालित नहीं है। जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र-दो अनुसार है। वर्तमान में विश्वविद्यालय को मेडिकल कॉलेज संचालन की पात्रता नहीं है। (ग) विश्वविद्यालय में पढ़ाये जा रहे कोर्स की फीस शिक्षा के मानक स्तरों के आधार पर शिक्षा की लागत के आंकलन की समीक्षा कर म.प्र. निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग द्वारा शुल्क नियत किया जाता है। जी नहीं। विश्वविद्यालय द्वारा विद्यार्थियों से जनभागीदारी अशासकीय शुल्क या विश्वविद्यालय शुल्क वसूल नहीं किया जा रहा है। (घ) जी हाँ। विश्वविद्यालय परिसर सीहोर में म.प्र. निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग द्वारा घोषित संगठक इकाई जिसमें बी.एड., बी.पी.एड., इंजीनियरिंग, फार्मेसी, मैनेजमेंट, पैरामेडिकल कॉलेज संचालित है। सभी संगठक इकाइयों में चलाये जा रहे पाठ्यक्रमों का संबंधित नियामक निकायों से अनुमोदन प्राप्त है, जो नियमानुसार है। प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
श्री शैलेन्द्र पटेल--माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न एक गंभीर समस्या की ओर था. मेरे जिले में संचालित एक यूनिवर्सिटी के बारे में प्रश्न किया था उसका उत्तर माननीय उच्च शिक्षा मंत्री जी ने दिया है और जो प्रश्न उद्भूत होता है उसको सीधा मंत्री जी से पूछता हूं कि प्रश्न (ग) के परिप्रेक्ष्य में जो उत्तर दिया गया है वह यह है कि विश्वविद्यालय में पढ़ाये जा रहे कोर्स की फीस शिक्षा के मानक स्तरों के आधार पर, शिक्षा की लागत के आंकलन की समीक्षा कर मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग द्वारा फीस निर्धारित की जाती है. मेरा प्रश्न यह है कि यह नियामक आयोग है क्या हम लोगों को इसकी जानकारी नहीं है, इसके लोग कौन हैं और यह करते क्या हैं ? मैं समझता हूं कि सदन में बैठे विधायकगण को इसकी जानकारी होगी. कृपा करके बताइये कि विनियामक आयोग करता क्या है, वह कैसे फीस निर्धारित करता है. क्योंकि देखा यह गया है कि प्रायवेट यूनिवर्सिटीज में सरकार की यूनिवर्सिटीज के मुकाबले बहुत ज्यादा फीस वसूली जाती है.
श्री जयभान सिंह पवैया--माननीय अध्यक्ष महोदय, विनियामक आयोग वैधानिक तरीके से गठित एक बॉडी है इसको आप भी जानते हैं तथा अन्य सदस्य भी जानते हैं. निजी विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण रखना और उसमें फीस की समीक्षा करने का विषय भी शामिल है. आप जिस विश्वविद्यालय का उल्लेख कर रहे हैं उस विश्वविद्यालय में जो फीस प्रस्तावित की थी मैं आपको उदाहरण के स्वरूप दो फीस के बारे में बता देता हूं. इन्होंने बी.ई.की 97 हजार रूपये फीस निर्धारित की. विनियामक आयोग ने समीक्षा के बाद उसको 60 हजार रूपये कर दिया. एमटेक में 1 लाख 30 हजार फीस प्रस्तावित की. विनियामक आयोग ने उसको 60 हजार कर दिया. समय समय पर विश्वविद्यालय के द्वारा जैसे ही शुल्क प्रस्तावित होता है वैसे विनियामक आयोग द्वारा युक्तिसंगत फीस के बारे में निर्देश दिये जाते हैं और इसी विश्वविद्यालय के बारे में आपको बता दूं मैं इतिहास में जाना नहीं चाह रहा हूं. लेकिन इसको जो छूट दी थी उसमें 25 लाख रूपये की पेनाल्टी लगाई, उस समय की सरकार ने उसको 5 लाख रूपये कर दिया. हमारी सरकार आने के बाद उसको नियंत्रण में लिया ई.ओ.डब्ल्यू में सारा मामला चल रहा है और 2015 में 1 प्रतिशत शुल्क जमा न करने की स्थिति में 51 हजार रूपये की पेनाल्टी इसी सरकार ने की है इसलिये आप कोई स्पेसिफिक मामला फीस के मामले में मुझे अगर बता दें तो सरकार तत्काल विनियामक आयोग को निर्देश देगी और निर्देश ही नहीं देगी मैं इसकी जांच कराने के लिये भी तैयार हूं.
श्री शैलेन्द्र पटेल--माननीय अध्यक्ष महोदय, एक प्रश्न और है इसका जिस तरीके से शासकीय यूनिवर्सिटीज में हमारी विधान सभा के सदस्य नामांकित होते हैं, प्रायवेट यूनिवर्सिटीज में तो होते ही नहीं हैं. क्या यह सदन आपके माध्यम से इस ओर विचार करेगा कि 28 यूनिवर्सिटीज हो गई हैं इसमें कहीं न कहीं विधान परिषद के लोग भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. क्या ऐसे कोई इस दिशा में कानून अथवा कोई प्रयास होगा कि मध्यप्रदेश विधान सभा के सदस्य भी इन प्रायवेट यूनिवर्सिटीज में नामांकित होकर बाकी कार्यवाही को समझ सकेंगे और आम जनता को उसका फायदा दिला पायेंगे ?
श्री जयभान सिंह पवैया- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने जो प्रश्न किया है, मुझे ऐसा लगता है कि जो संदर्भित प्रश्न है उससे यह प्रश्न उद्भभूत नहीं होता है । इसके बारे में मैं यहां पर निर्णय नहीं ले सकता हूं ।
श्री शैलेन्द्र पटेल- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं कह रहा हूं कि क्या मंत्री जी विचार करेंगे क्योंकि मैंने पढ़ा है, किस तरह से नियम बने हैं उसमें कहीं भी उल्लेख नहीं है जब सरकारी विश्वविद्यालय में यह उल्लेख है, वहां पर सदस्य नामित होते हैं तो अशासकीय विश्वविद्यालय में क्यों नहीं होगे ?
श्री जयभान सिंह पवैया- अध्यक्ष महोदय, जब माननीय सदस्य कोई ऐसा सुझाव रखते हैं तो मुझे यह कहने में कोई आपत्ति नहीं है कि जो सुझाव है उसपर परीक्षण करेंगे, विचार करेंगे लेकिन निर्णय नहीं लिया जा सकता ।
श्री शैलेन्द्र पटेल- माननीय अध्यक्ष महोदय, इसमें आप व्यवस्था दे दें ।
अध्यक्ष महोदय- मंत्री जी ने विचार करने के लिए बोल दिया है, इसलिए व्यवस्था की कोई आवश्यकता नहीं है । ( श्री बाला बच्चन की ओर इशार करते हुए)
क्या आप कुछ पूछेंगे ?
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष(श्री बाला बच्चन) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं जो पूछना चाहता वह उन्होंने पूछ लिया इसलिए अब आवश्यकता नहीं है ।
उमरियापान में महाविद्यालय की स्थापना
2. ( *क्र. 2955 ) श्री मोती कश्यप : क्या उच्च शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) जिला कटनी की तहसील ढीमरखेड़ा का क्षेत्रफल कितने कि.मी. का है और उसके किन-किन ग्रामों में बालक व कन्या उ.मा.वि. हैं और उनमें कक्षा 12 वीं की छात्र संख्या कितनी है और तहसील क्षेत्र में कितनी हैं? (ख) क्या प्रश्नकर्ता ने अपने पत्र दिनांक 09.02.2009, 07.02.2011, 27.03.2011, 07.05.2015, 24.12.2015 द्वारा मा. मुख्यमंत्री जी एवं मा. विभागीय मंत्री को उमरियापान में महाविद्यालय की स्थापना हेतु लेख किया है? (ग) प्रश्नांश (क) से (ख) के परिप्रेक्ष्य में उमरियापान में कब तक महाविद्यालय खोल दिया जावेगा?
उच्च शिक्षा मंत्री ( श्री जयभान सिंह पवैया ) : (क) जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार। (ख) जी हाँ। (ग) प्रस्ताव तैयार कर स्थाई परियोजना परीक्षण समिति के विचारार्थ प्रस्तुति हेतु प्रक्रियाधीन है। समय-सीमा बताया जाना संभव नहीं है।
परिशिष्ट - ''दो''
श्री मोती कश्यप- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने जो प्रश्न किया था कि ढीमरखेड़ा तहसील में कितने विद्यालय हैं, बारहवीं के कितने छात्र हैं ? उत्तर में आया है कि 11 बालक विद्यालय हैं, 2 कन्या विद्यालय हैं, 13 विद्यालय हैं । बारहवीं के छात्रों की कुल संख्या 1364 है । माननीय अध्यक्ष महोदय, 765.75 वर्ग किलोमीटर का विकासण्ड क्षेत्र है और इसमें उमरियापान के साथ पचपेड़ी के 5 विद्यालय हैं, जिसमें 349 छात्र हैं । ढीमरखेड़ा मुरवाड़ी, पहरूआ पास पास के विद्यालय हैं, उसमें 626 छात्र हैं, सिलोड़ी दसरमन के 3 विद्यालय हैं उसमें 389 छात्र हैं. 13 हायर सकेण्ड्री होने के बावजूद भी वहां पर एक भी महाविद्यालय नहीं है, 1364 विद्यार्थी हैं । मैं प्रश्न पर आता हूं, लेकिन इसके साथ दो शब्द यह कहना चाहूंगा कि महाविद्यालय न होने के कारण जो संपन्न वर्ग के लोग हैं, वह तो जबलपुर, कटनी में शिक्षा अर्जित कर लेते हैं, लेकिन जो गरीब हैं, अनुसूचित जाति, जनजाति के बच्चे हैं, यह विधानसभा क्षेत्र आरक्षित विधानसभा है, उनके बच्चों की शिक्षा आगे नहीं बढ़ पाती है, उनकी शिक्षा बंद हो जाती है, उनका भविष्य उज्जवल हो इस दिशा में मैं प्रश्न करना चाहता हूं कि जैसा कि प्रश्नांश ग का उत्तर है कि उमरियापान का प्रस्ताव स्थाई परियोजना परीक्षण समिति के विचारार्थ प्रस्तुत करने की प्रक्रियाधीन है तो क्या अतिशीघ्र निर्णय कर चालू वर्ष में उमरियापान में महाविद्यालय चालू कर लिया जाएगा ?
श्री जयभान सिंह पवैया- मान्यवर अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय सदस्य की भावनाओं से सहमत हूं । वहां महाविद्यालय की आवश्यकता है । आपने शासन को पत्र भी दिए हैं और माननीय मुख्यमंत्री जी की भी मंशा रही है कि इतने बड़े केचमेंट एरिया में इतने विद्यार्थी हैं तो वहां पर महाविद्यालय खोलना चाहिए । इसके लिए जो परीक्षण समिति होती है, उसकी बैठक हमने 30 जुलाई को ही बुलाने का निर्णय लिया है और माननीय मुख्यमंत्री जी की इच्छा के मुताबिक और आपकी मांग के अनुसार हम यह प्रयास करेंगे कि इसी सत्र में महाविद्यालय का शुरू कर दिया जाए ।
श्री मोती कश्यप- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने चर्चा में बतलाया था कि ढीमरखेड़ा, मुरवारी, पहरूआ जो पास पास के गांव हैं और उसमें 626 छात्र हैं, ऐसे ही सिलोड़ी में दसरमन सहित 3 विद्यालय हैं और कछारगांव एक विद्यालय और खुला है इसमें 389 छात्र हैं । मेरी हार्दिक इच्छा है कि ढीमरखेड़ा सिलोड़ी जिनकी छात्र संख्या 626 और 389 हैं, उनको भी परीक्षण समिति में सम्मिलित कर वहां पर भी महाविद्यालय की स्थापना करवा देंगे ?
श्री जयभान सिंह पवैया- माननीय अध्यक्ष महोदय, अभी हमने आपकी मांग का सम्मान करते हुए बहुत प्रयास पूर्वक जल्दी महाविद्यालय खोलने की घोषणा की है । आपने अगला विचार रखा है वह प्रक्रिया में लिया जाएगा, विचारणीय होगा बस इतना ही अभी कहने की स्थिति में हूं ।
अतिथि विद्वानों का नियमितीकरण
3. (*क्र. 3199 ) श्री अनिल फिरोजिया : क्या उच्च शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) उच्च शिक्षा विभाग के महाविद्यालयों में कार्यरत अतिथि विद्वानों को कितने वेतन/मानदेय पर नियुक्त किया गया है? (ख) म.प्र. शासन द्वारा कुशल/अकुशल श्रमिकों को किस दर पर वेतन भुगतान किया जाता है? (ग) क्या विभाग द्वारा नियुक्त अतिथि विद्वान योग्यता में कुशल श्रमिक से निम्न श्रेणी के हैं? यदि नहीं, तो इतने अल्प मानदेय पर नियुक्ति का क्या कारण है? (घ) क्या विभाग उच्च शिक्षा का स्तर सुधारने हेतु अतिथि विद्वानों को योग्यतानुसार मानदेय दे रहा है? (ड.) वर्षों से अतिथि विद्वान का कार्य संपादित कर रहे सहायक प्राध्यापकों को कब तक संविदा नियुक्ति/नियमित किया जावेगा?
उच्च शिक्षा मंत्री ( श्री जयभान सिंह पवैया ) : (क) उच्च शिक्षा विभाग के आदेश क्रमांक एफ 1-13/2016/38-1 दिनांक 21.04.16 द्वारा नेट या 2009 यू.जी.सी. रेग्यूलेशन के अनुसार पी.एच.डी. योग्यता धारित अतिथि विद्वानों को मानदेय रूपये 275/- प्रति कालखण्ड, अधिकतम रूपये 825/- प्रति कार्यदिवस तथा उल्लेखित योग्यता नहीं रखने वाले शेष अतिथि विद्वानों को रू. 200/- प्रतिकालखण्ड व अधिकतम रू. 600/- प्रति कार्यदिवस की दर से भुगतान किया जा रहा है। (ख) श्रमायुक्त कार्यालय, म.प्र.शासन, इन्दौर के आदेश क्रमांक 6/11/अन्वेषण/पाँच/2015/12301-500 इन्दौर दिनांक 01.04.16 में स्पष्टीकरण के बिंदु-3 में लेख है कि राज्य शासन द्वारा दिनांक 15.05.15 को जारी एवं म.प्र. राजपत्र दिनांक 22.05.15 में प्रकाशित अकुशल श्रमिकों हेतु मजदूरी की पुनरीक्षित न्यनतम दरें 01.06.15 से प्रभावशील की गई हैं। उक्त परिपत्र की अनुसूची-क में श्रमायुक्त इन्दौर के अनुसार कुशल श्रमिकों को अधिकतम रूपये 9,085/- प्रतिमाह एवं अकुशल श्रमिकों को समान रूप से रूपये 6,850/- प्रतिमाह वेतन भुगतान किया जाता है। (ग) जी नहीं। उत्तरांश (क) के संदर्भ में प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (घ) जी हाँ। (ड.) अतिथि विद्वान सहायक प्राध्यापक नहीं है तथा उन्हें लोक सेवक नहीं माना गया है। अतः शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
श्री अनिल फिरोजिया – माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से प्रश्न किया था कि अतिथि विद्वान का मानदेय क्या है तो उसमें उत्तर आया है कि अतिथि विद्वान का मानदेय 275 रू. प्रति पीरियड (कालखण्ड) है और 825 रू. प्रति दिवस है, लेकिन जो उत्तर आया है उससे मैं संतुष्ट नहीं हूँ. अध्यक्ष महोदय, एक महीने में 4 संडे होते हैं, 4 दिन छुट्टी होती है और तीज-त्यौहार आने के कारण अतिथि विद्वान को मात्र 20 से 22 दिन काम करना पड़ता है और उनको 3 पीरियड (कालखण्ड) नहीं मिलते हैं, उनको 1 या 2 पीरियड मिलते हैं. मैंने यह पूछा था कि कुशल श्रमिक का वेतन कितना है और अतिथि विद्वान का वेतन कितना है ? तो मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से यह मांग करना चाहता हूँ कि आपने जो उत्तर दिया है कि अतिथि विद्वानों को 825 रू. प्रति दिवस मिलते हैं, लेकिन ये 20 या 22 दिन ही पढ़ा पाते हैं और इनका वेतन 6,000/- रू. या 7,000/- रू. के लगभग बनता है. माननीय मंत्री जी, क्या आप इनका मानदेय बढ़ायेंगे ? क्योंकि 5,000/- रू. या 7,000/- रू. में कोई भी अतिथि विद्वान नहीं पढ़ा सकता है और अपना परिवार नहीं पाल सकता है.
श्री जयभान सिंह पवैया – माननीय अध्यक्ष महोदय, एक तो मैं यह निवेदन कर दूँ कि अतिथि विद्वानों के आमंत्रण की जो शुरूआत हुई थी. उसके पीछे का कन्सेप्ट यह था कि सरकार ऐसे योग्य शिक्षकों को महाविद्यालयों में आमंत्रित करे, जो बेरोजगार तो हैं, लेकिन उनके पढ़ाने का एवं शिक्षण का अनुभव भी विद्यार्थियों को प्राप्त हो और इसलिए उनके आवागमन इत्यादि के खर्चे को ध्यान में रखकर मानदेय की व्यवस्था की थी, यह वेतन नहीं है. जैसा कि हम उल्लेख कर रहे हैं और इसमें समय-समय पर मानदेय की दरों का पुनरीक्षण किया जाता रहा है. जैसे दिनांक 22 फरवरी, 2012 तक तो 155 रूपया प्रति पीरियड था और उसमें 4 कालखण्डों का उल्लेख होता था, दिनांक 5 अगस्त, 2014 में इसको बढ़ाकर 200 रू. प्रति कालखण्ड किया गया और दिनांक 10 मई, 2016 में यू.जी.सी. द्वारा परिवर्तित अर्हता के नियमों के अनुसार अब 275 रू. प्रति पीरियड कर दिया गया है और इसके मान से 875 रू. प्रति कार्यदिवस अधिकतम निर्धारण है. यह आपने ठीक कहा है कि जो औसत कार्य दिवस बनते हैं, वे 22 कार्य दिवस बनते हैं और 22 औसत कार्य दिवस के अनुसार 18,150 रू. महीने एक अतिथि विद्वान को मिलता है, 6,000 रू. या 7,000 रू. नहीं मिलता है. आपने श्रमिकों का उल्लेख किया है तो कुशल श्रमिक को 9,085 रू. एवं अकुशल श्रमिक को 6,850 रू. की राशि बनती है, लेकिन यह तुलना करना उचित नहीं होगा. हम अतिथि विद्वान एवं श्रमिक की तुलना नहीं कर रहे हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, दूसरा बिन्दु यह है कि हमें इसके लिए यू.जी.सी. से कोई राशि उपलब्ध नहीं होती है. यह सरकार के संसाधनों से ही होता है, लेकिन जहां तक यू.जी.सी. ने अतिथि विद्वानों के लिए मार्गदर्शी सिद्धान्त तय किये हैं तो उसमें कहा गया है कि फुल टाईमर कान्ट्रेक्चुअल टीचर जो अतिथि विद्वान हैं- उनकी चयन प्रक्रिया नियमित प्राध्यापकों के अनुसार उसी अर्हता से हो, यानि नेट हो, पी.एच.डी. 2009 के बाद जो प्रावधान था और इनका चयन लोक सेवा आयोग की तरह ही पूरी प्रक्रिया से हो तब उन्होंने 25,000 रू. देने की एक गाइडलाईन दी है, लेकिन जो अतिथि विद्वान बुलाये जाते हैं. एप्लीकेशन के आधार पर मेरिट का मानदण्ड मानते हुए इनको काउंसलिंग के द्वारा आमंत्रित किया जाता है लेकिन मैं आपकी भावनाओं से सहमत हूं कि वह परिश्रम करते हैं, पढ़े लिखे हैं और इसलिए इनको पी.एस.सी. में वेटेज और क्या दिया जा सकता है इसके बारे में सरकार गम्भीर है अभी तक चार अंक का वेटेज देने का उल्लेख है. हम यह विचार कर रहे हैं कि उसको चार परसेंट में बदल दिया जाए मुझे लगता है बड़ी संख्या में पी.एस.सी. में ऐसे लोगों को मौका मिलेगा. इसी तरह आयु सीमा 45 साल निश्चित है उसके बारे में भी हम विचार कर रहे हैं कि उनके अनुभव को उन सालों के साथ जोड़ दिया जाए जो दस साल से पढ़ा रहा है उसको दस साल और पढ़ाने की अनुमति दें. इस पर विचार हो रहा है जब निर्णय होगा तो मैं सदन को जरूर सूचित करूंगा.
श्री अनिल फिरोजिया—मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी का धन्यवाद करता हूं और निवेदन करता हूं कि यू.जी.सी. हमको कोई ग्रांट नहीं देता है मध्यप्रदेश शासन मानदेय देने की व्यवस्था करती है. मुख्यमंत्री जी के भाषणों में मैंने सुना है एक बार वह एक उदाहरण दे रहे थे कि वे एक स्कूल में गए थे वहां उन्होंने मास्टर से पूछा कि गंगा कहां से निकली है........
अध्यक्ष महोदय— आप भाषण कर रहे हैं.
श्री अनिल फिरोजिया— मानदेय बढ़ाने की तो कृपा करें.
अध्यक्ष महोदय— मंत्री जी ने बोल दिया है कि वे उस पर विचार करेंगे.
हिरन नदी के पुल के एप्रोच मार्ग का निर्माण
4. ( *क्र. 2016 ) श्रीमती प्रतिभा सिंह : क्या लोक निर्माण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि बरगी विधान सभा क्षेत्र के अंतर्गत हिरन नदी पर बने पुल के दोनों ओर एप्रोच मार्ग निर्माण हेतु प्रश्नकर्ता द्वारा विभाग को कब-कब लिखा गया? उपरोक्त भैरोघाट पुल के दोनों ओर एप्रोच मार्ग का निर्माण कब तक कराया जावेगा?
लोक निर्माण मंत्री ( श्री रामपाल सिंह ) : प्रश्नकर्ता का पत्र दिनांक 19.07.2015 एवं 30.05.2016 को प्राप्त हुआ। रूपये 66.72 लाख कार्य का प्राक्कलन तैयार किया गया है जो परीक्षणाधीन है। उपलब्ध वित्तीय संसाधन अनुसार स्वीकृति हेतु विचार किया जा सकेगा वर्तमान में समय-सीमा बताया जाना संभव नहीं है।
श्रीमती प्रतिभा सिंह – अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी के जवाब से संतुष्ट नहीं हूं. मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से तीन प्रश्न करना चाहती हूं. मेरी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत हिरण नदी पर भैरवगढ़ घाट लगभग चार साल से बन चुका है किन्तु एप्रोच रोड न होने के कारण से पुल कट जाता है जिससे शासन को क्षति हो रही है एवं पुल का लाभ क्षेत्र के लोगों को नहीं मिल पा रहा है. दूसरा प्रश्न एप्रोच रोड बनाने हेतु विभाग द्वारा 66.72 लाख का प्राक्कलन बनाया गया है जो कि स्वीकृति हेतु दीर्घ समय से लंबित है. तीसरा प्रश्न एप्रोच रोड बनाने की स्वीकृति से संबंधित है. माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से चाहती हूं कि इस सदन में ही स्वीकृति प्रदान करें एवं एप्रोच रोड कब तक बना दिया जाएगा इसकी समय सीमा भी बता दी जाए.
श्री रामपाल सिंह—अध्यक्ष महोदय, अभी जो एप्रोच पुल है वहां सड़क तो अभी ठीक है. आवागमन चल रहा है लेकिन माननीय सदस्या की जो चिन्ता है कि वहां अच्छा काम हो वहां का प्राक्कलन आ गया है. माननीय सदस्या जी के आग्रह को देखते हुए जल्द ही इसको स्वीकृति देंगे.
श्रीमती प्रतिभा सिंह – अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी जो कह रहे हैं कि आवागमन चल रहा है ऐसा नहीं है.
अध्यक्ष महोदय—मंत्री जी ने स्वीकृति देने का कह दिया है उन्होंने विचार करने का नहीं बोला है. विचार का बोलते तो यह बहस का विषय होता.
श्रीमती प्रतिभा सिंह – अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी को इसके लिए आपके माध्यम से धन्यवाद देती हूं.
विधान सभा क्षेत्र गोटेगाँव अंतर्गत स्वीकृत राशि
5. ( *क्र. 1357 ) डॉ. कैलाश जाटव : क्या वन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) विधान सभा क्षेत्र गोटेगाँव अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2013-14, 2014-15, 2015-16 एवं 2016-17 में वन विभाग द्वारा कितनी-कितनी राशि किस-किस योजना में स्वीकृत की गई? (ख) प्रश्नांश (क) अनुसार स्वीकृत राशि किस क्षेत्र में कितनी उपयोग में लाई गई? (ग) प्रश्नांश (ख) अनुसार स्वीकृत कार्यों में कितने कार्य पूर्ण हो चुके एवं कितने अपूर्ण हैं? (घ) प्रश्नांश (ग) अनुसार अपूर्ण कार्य होने का स्पष्ट कारण एवं कार्य पूर्ण न हो पाने के कारण संबंधित अधिकारियों पर क्या कार्यवाही की गई? यदि नहीं, तो क्यों?
वन मंत्री ( डॉ. गौरीशंकर शेजवार ) : (क) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-1 अनुसार है। (ख) एवं (ग) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-2 अनुसार है। (घ) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-2 अनुसार है। इस वित्तीय वर्ष 2016-17 के कार्य प्रचलित। अत: किसी अधिकारी के विरूद्ध कार्यवाही का प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
श्री कैलाश जाटव—अध्यक्ष महोदय, मेरे प्रश्न के जवाब में जो माननीय मंत्री महोदय ने लिखा है, मैं आपके माध्यम से पूछना चाहूंगा उन्होने प्रश्न ‘’ग’’ में लिखा है कि अधिकारी के विरूद्ध कार्यवाही का प्रश्न उपस्थित नहीं होता मैं इसलिए माननीय मंत्री महोदय से आपके माध्यम से यह पूछना चाहूंगा कि वर्ष 2013-14, 2014-15, 2015-16 और 2016-17 में मेरी विधानसभा में 7 करोड 98 लाख 79 हजार 668 रुपए के जो कार्य हुए हैं क्या माननीय मंत्री महोदय उसकी जांच करा लेंगे?
डॉ. गौरीशंकर शेजवार—जो अनियमितताएं हुई हैं वह लिस्ट दे दें और आपने जहां दौरा किया है और आपकी जानकारी में आई है. और उतने नाम बता दें, उसकी जांच करवा लेंगे, क्योंकि पूरे कामों की और पुराने वर्षों की जांच लम्बी चलेगी और परिणाम देर से आयेगा. तो केवल जहां कमियां विधायक जी को लग रही हैं या उनके पास शिकायत आई है, वह लिस्ट मुझे दे दें और मैं उसकी जांच आप जिस स्तर से कहेंगे, उससे करवा लूंगा.
डॉ. कैलाश जाटव -- अध्यक्ष महोदय, मेरी विधान सभा में वर्ष 2016-17 में योग केम्पा के नाम से 2.10 लाख रुपये खर्च किये गये. वहीं पर वृक्षारोपण में 3 करोड़ 72 लाख 9 हजार 426 रुपये खर्च किये गये. मेरी अभी विगत् वर्ष जो चौपाल यात्रा हुई थी, उसमें जो स्थान यहां पर मंत्री जी की तरफ से जवाब में आये हैं, उन स्थानों पर वृक्षारोपण नहीं पाया गया है. जहां पर यह मकान, मरम्मत निर्माण की बात कर रहे हैं, वहां पर भी कार्यों में गुणवत्ता नहीं रखी गई है. उन निर्माण कार्यों से स्टाफ पूरा परेशान है. मैं मंत्री जी से निवेदन करुंगा कि आप पूरे वर्ष की न कराकर सिर्फ 2015-16 और 2016-17 की जांच अगर करायेंगे, तो पूरा स्पष्ट परिदृष्य आपके सामने आ जायेगा कि आपके विभाग में आपके अधिकारियों ने किस तरीके से घपला किया है.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार -- अध्यक्ष महोदय, जांच करवा लेंगे.
डॉ. कैलाश जाटव -- मंत्री जी, धन्यवाद.
पंधाना विधानसभा क्षेत्रांतर्गत स्टेडियमों का निर्माण
6. ( *क्र. 3434 ) श्रीमती योगिता नवलसिंग बोरकर : क्या खेल और युवा कल्याण मंत्री महोदया यह बताने की कृपा करेंगी कि (क) प्रश्नकर्ता के विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत कितने इन्डोर व आउटडोर स्टेडियम स्वीकृत हुए हैं? यह कब बनेंगे? (ख) पंधाना नगर पंचायत में बनने वाले इंडोर स्टेडियम की क्या स्थिति है, वह क्यों नहीं बन रहा है?
खेल और युवा कल्याण मंत्री ( श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया ) : (क) पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की परफार्मेंस ग्रान्ट से प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 01 आउटडोर ग्रामीण खेल परिसर के निर्माण की योजनान्तर्गत पंधाना विधानसभा क्षेत्र के छैःगाव माखन में ग्रामीण यांत्रिकी सेवा विभाग द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई है। निर्माण कार्य प्रगतिरत् है। (ख) इण्डोर स्टेडियम का निर्माण राजीव गांधी खेल अभियान योजनान्तर्गत किये जाने की पूर्व में योजना थी, परन्तु भारत सरकार ने उक्त योजना को भारत सरकार के पत्र क्र. 1-1/MYAS/SD/2016/1258 दिनांक 29/04/2016 द्वारा स्थगित कर दिया गया हैं। अतः शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है।
श्रीमती योगिता नवलसिंग बोरकर -- अध्यक्ष महोदय, पहले तो मैं मंत्री जी को बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहूंगी कि उन्होंने विधायक कप जैसी प्रतियोगिता प्रारंभ की (मेजों की थपथपाहट) जिससे स्थानीय विधायक का मान बढ़ा है. मैं मंत्री जी से यह चाहूंगी कि ऐसे ही प्रतियोगिता का स्वरुप और बड़ा किया जाये और राशि भी बढ़ाई जाये. मेरा मंत्री जी से एक और निवेदन है कि मेरे दो प्रश्न थे. मैंने प्रश्नांश (क) में यह पूछा था कि मेरी विधान सभा में कितने इन्डोर व आउटडोर स्टेडियम स्वीकृत हुए हैं. मेरे विधान सभा में दो विकास खण्ड हैं, जिसमें दो आउटडोर स्टेडियम स्वीकृत हुए थे. एक छैःगांव माखन में कार्य प्रगति पर है, लेकिन राजस्व विभाग द्वारा पंधाना विकास खण्ड में जमीन आवंटित न करने की वजह से वह स्टेडियम नहीं बन पाया. तो मेरा मंत्री जी से यह निवेदन है कि सिंगोट स्थान तय किया गया है और वह बहुत बड़ा क्षेत्र है. तो मंत्री जी यदि वह स्टेडियम भी बनवाते हैं, तो बहुत कृपा होगी और ग्रामीण क्षेत्र के खिलाड़ियों को प्रतिभा उभारने में ज्यादा सहयोग प्रदान होगा. ऐसा मेरा मंत्री जी से निवेदन है.
श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया -- अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय सदस्या को बताना चाह रही हूं कि एक तो बड़े गर्व की बात है कि भारत सरकार और मध्यप्रदेश सरकार ने मिलकर एक ऐतिहासिक डिसीजन लिया और आज हमारे ग्रामीण विकास मंत्री जी यहां हैं, मैं उनको धन्यवाद देना चाहती हूं कि इनके विभाग के माध्यम से जो पर्याप्त आउटडोर स्टेडियम विधायकों को मिल रहे हैं, वह एक बहुत ही अनूठी पहल है और इसी सदन में मैं उनको धन्यवाद देना चाहती हूं. अध्यक्ष महोदय, दूसरी बात यह है कि इनकी योजना है, इस योजना में न हमारी कोई पहल, न हमारा कोई हस्तक्षेप है और यह योजना सिर्फ पहले ब्लाकों के आधार पर होने वाली थी, पर अब विधानसभा वार होने वाली है और हर विधायक को अपने विधान सभा क्षेत्र में एक आउटडोर स्टेडियम मिलने वाला है या मिल गया है. अब आपके ऊपर है कि कितनी जल्दी आपने चिह्नित की जमीन, कितनी जल्दी आपने सीमांकन करवाया और कितनी जल्दी आपने ग्रामीण विकास के माध्यम से इस स्टेडियम को बनाया और उसकी गुणवत्ता देखी. क्योंकि मुझे लगता है कि जिस तरह से और जिस बड़े पैमाने पर आप लोगों ने मेरे विधायक कप पर रुचि ली, जिसके लिये मुझे आप लोगों का मान और सम्मान बढ़ाना था, उस बड़े पैमाने पर यही आउटडोर स्टेडियम मेरे लिये काम में आयेंगे, जब हम फिर से विधायक कप करेंगे. तो इन्हीं आउटडोर स्टेडियम के माध्यम से यह हम करना चाहते हैं. बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्रीमती योगिता नवलसिंग बोरकर -- मंत्री जी, बहुत बहुत धन्यवाद और अध्यक्ष महोदय को भी धन्यवाद.
भोपाल-ब्यावरा रोड का निर्माण
7. ( *क्र. 2252 ) श्री जयवर्द्धन सिंह : क्या लोक निर्माण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) भोपाल-ब्यावरा रोड का ठेका किस कंपनी को कब दिया गया था, कितनी लागत थी एवं काम कब पूर्ण किया जावेगा? (ख) कंपनी द्वारा समय पर काम पूरा किया गया या नहीं? यदि नहीं, तो कंपनी के विरूद्ध विभाग द्वारा कब-कब, क्या-क्या कार्यवाही की गई? (ग) कंपनी को किस बैंक द्वारा कितना फाइनेन्स किया गया एवं विभाग द्वारा ठेकेदार को कितना भुगतान किया गया? कुल कितना भुगतान (विभाग+बैंक) द्वारा ठेकेदार को दिया जा चुका है एवं कितना कार्य मौके पर किया जा चुका है?
लोक निर्माण मंत्री ( श्री रामपाल सिंह ) : (क) जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र 'अ' अनुसार है। (ख) जी नहीं। दिनांक 10.05.2016 को अनुबंध निरस्त किया जाकर बैंक गारंटी राजसात कर ली गई। (ग) कन्सेशनायर को वित्तीय प्रबंधन हेतु संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र 'ब' अनुसार धनराशि देने हेतु वित्तीय संस्थानों द्वारा सहमति दी गई है। कन्सेशनायर को एम.पी.आर.डी.सी. द्वारा कोई भुगतान नहीं किया गया है, क्योंकि परियोजना में कन्सेशनायर द्वारा प्रीमियम देय है। ठेका निरस्त होने से पहले कन्सेशनायर द्वारा लगभग 20 प्रतिशत कार्य किया गया है।
परिशिष्ट - ''तीन''
श्री जयवर्द्धन सिंह – माननीय अध्यक्ष महोदय, भोपाल-व्यावरा रोड एनएच-12 का अनुबंध वर्ष 2013 में ट्रांसफर कंपनी को मिला था, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि तीन साल में जो काम पूरा होना था, वह पूरा नहीं हो पाया और इस टेण्डर को कैंसिल होने में एक साल लगे और 2016 तक ही कैंसिल हो पाया, जिसके कारण जो उस रोड की मरम्मत होनी थी वह नहीं हो पायी है. उसमें दो हिस्से हैं जो हिस्सा भोपाल जिले में आता है उसके मरम्मत हो चुकी है, लेकिन जो शेष 70 किलोमीटर का हिस्सा है कुरावर से नरसिंहगढ़ से व्यावरा तक उसमें गड्ढे हो गए हैं स्वीमिंग पुल बन चुके हैं, जहां पर बच्चे तैर सकते हैं, पूरा पानी भरा हुआ है और जहां भोपाल से व्यावरा एक दिन में सौ बसे जाती थीं, अब सिर्फ दो या तीन बसें जाती हैं. मेरा माननीय मंत्री जी से निवेदन है कि एक तो जो ये ट्रांसफर कंपनी है पहले से वह काम बंद कर दिया था और पूरा पैसा उन्होंने कहीं और डायवर्ट कर दिए थे, तो क्या इन पर एक क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन होगा और दूसरा बिन्दु यह है कि जो शेष काम मरम्मत का रह गया है और पेंचवर्क को भरने का कुरावद, नरसिंगढ़ और व्यावरा तक वह काम कब तक पूर्ण होगा एमपीआरडीसी के माध्यम से.
श्री रामपाल सिंह – माननीय अध्यक्ष महोदय, वास्तव में जो विधायक जी ने प्रश्न उठाया है, वास्तव में विलंब हुआ है, इसमें कहने में संकोच नहीं है. लेकिन हमने अभी जो कार्यवाही की है, बैंक गारंटी राजसात कर ली गई है 35 करोड़, कंपनी मेसर्स ट्रांसटाइल, हैदराबाद ने काम समय पर नहीं किया.इस सड़क को अभी राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के आदेशानुसार स्थानांतरित कर दिया. बीस प्रतिशत जैसा माननीय विधायक जी बता रहे हैं, काम किया है, उस तरफ काम नहीं किया है, इसके लिए हम लोग इसमें जल्दी काम शुरू हो, भारत सरकार से हम आग्रह करेंगे.
श्री जयवर्द्धन सिंह – क्या माननीय मंत्री जी इतना हमें आश्वस्त करा देंगे कि जो कुरावद, नरसिंहगढ़ और व्यावरा का पेचवर्क बाकी है, वह कब तक पूरा हो जाएगा,
श्री रामपाल सिंह – माननीय अध्यक्ष महोदय, 16 करोड़ रूपए हमने स्वीकृत किए थे, पेचवर्क के लिए लेकिन यह राशि भी हमने वहां ट्रांसफर कर दी हैं, वहां आग्रह करके जल्दी ही हम प्रयास करेंगे और जल्दी इसका काम लगे ऐसी पूरी कोशिश करेंगे.
अध्यक्ष महोदय – श्री गिरीश भण्डारी जी भी उसी क्षेत्र के हैं.
श्री गिरीश भण्डारी – माननीय अध्यक्ष महोदय, इस पूरे रोड में व्यावरा से भोपाल का 50 किलोमीटर का हिस्सा मेरे विधानसभा क्षेत्र का आता है एक साल पहले उसका अनुबंध खत्म हो चुका था.
अध्यक्ष महोदय – यह बात तो आ गई है, कोई नई बात हो तो बताएं.
श्री गिरीश भण्डारी – मेरा यह कहना है कि उसमें आज की स्थिति में आवागमन खत्म हो चुका है, पूरी बसें बंद हो चुकी है, क्या मध्यप्रदेश शासन अपने स्तर पर तत्काल उसको 8-15 दिन के अंदर उसका पेचवर्क कराने का प्रयास करेगा.
अध्यक्ष महोदय –आपने उत्तर दे दिया है पहले.
श्री गिरीश भण्डारी – उन्होंने कहा है कि भारत सरकार को पैसा भेज दिया है वह करेंगे. मेरा यह कहना है कि क्या मध्यप्रदेश सरकार आवागमन की सुविधा को देखते हुए क्या वहां पर उस रोड पर.पेचवर्क की सुविधा करेगी.
श्री रामपाल सिंह – माननीय अध्यक्ष जी जैसा कि बताया 16 करोड़ हमने स्वीकृत किए थे, वहां जो राशि है, उसको आग्रह करके उसका कार्य प्रारंभ करेंगे.
श्री गिरीश भण्डारी – रास्ता पूरा बंद है, मरम्मत लगातार बंद है, किसी एक गड्ढे में भी काम नहीं हुआ है, अत्यंत महत्वपूर्ण मार्ग है वह.
केवलारी विधानसभा क्षेत्र में पुल निर्माण
8. ( *क्र. 1782 ) श्री रजनीश सिंह : क्या लोक निर्माण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) सिवनी जिले के अंतर्गत केवलारी विधानसभा क्षेत्र में निर्माण हेतु कितने बड़े व छोटे पुल स्वीकृत हैं एवं कितने निर्माणाधीन हैं? (ख) क्या प्रश्नकर्ता द्वारा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत चकरघटा घाट गुवरिया एवं चमरया नाला छपारा में उच्चस्तरीय पुल निर्माण हेतु विधानसभा प्रश्न के माध्यम से निरंतर मांग की जा रही है? यदि हाँ, तो इस संबंध में शासन द्वारा क्या कार्यवाही की गई? यदि नहीं, तो क्यों नहीं, कारण स्पष्ट करें? (ग) इसी प्रकार ब्रिटिश शासन काल में निर्मित पलारी कहानी मार्ग के अंतर्गत ग्राम मझगंवा में बैनगंगा नदी पर स्थित पुल जीर्ण-शीर्ण हो गया है जिस पर विगत कुछ माह पहले आवागमन अवरूद्ध हो गया था? क्या विभाग के पास उक्त स्थान पर नवीन उच्चस्तरीय पुल निर्माण हेतु कोई प्रस्ताव विचाराधीन है? यदि हाँ, तो कब तक इसे कार्य रूप में परिणित कर लिया जावेगा? यदि नहीं, तो क्यों नहीं? (घ) यदि उक्त पुल निर्माण नहीं होने से कोई दुर्घटना होती है तो इसका जवाबदार कौन होगा?
लोक निर्माण मंत्री ( श्री रामपाल सिंह ) : (क) जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (ख) जी हाँ, चकरघटा गुवरिया मार्ग पंचायत मार्ग होने के कारण कोई कार्यवाही नहीं की गई है एवं चमरया नाला पुल निर्माण हेतु दिनांक 16.03.2016 को स्थायी वित्तीय समिति से अनुमोदित। अत: शेष का प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) जी हाँ। जी हाँ। शेष जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (घ) पुल निर्माण की कार्यवाही प्रगति पर है। अत: प्रश्न उपस्थित नहीं होता.
परिशिष्ट - ''चार''
श्री रजनीश सिंह – माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने आपके माध्यम से माननीय लोक निर्माण मंत्री महोदय से प्रश्न पूछा था, इसमें जो जवाब दिया मैं अधिकांश जवाब से तो संतुष्ट हूं पर एक जवाब से बहुत पीड़ा है और बहुत ज्यादा असंतुष्ट हूं. सात पुलों के बारे में माननीय मंत्री महोदय ने जानकारी दी, जिसमें उन्होंने कहा सात पुल की जो स्थिति है, उसमें सिर्फ एक ही पुल बनकर तैयार हुआ है, बाकी के जो छह पुल है उसमें न गति है, न प्रगति है, न चाल है, न कुछ है, न कुछ है.
अध्यक्ष महोदय – आप तो प्रश्न पूछिए.
श्री रजनीश सिंह – मैं उदाहरण देना चाहूंगा, पांच वर्ष हो गए माननीय अध्यक्ष महोदय, मल्हारा के पुल में, प्रश्न से ही उदभूत है, माननीय अध्यक्ष महोदय, आपका संरक्षण चाहूंगा कि पांच साल में दो बार प्रश्न लगाया. उसका उत्तर जो मिला कि पांच वर्ष में भी मल्हारा का पुल बनकर तैयार नहीं हुआ है. मेरे छपारा ब्लाक का तीन साल हो गए वह पुल तैयार नहीं हुआ है, उसके बाद एक मैंने पुल की बात की.
अध्यक्ष महोदय-- आप सीधा सीधा पूछें कि पुल कब तक बनायेंगे.
श्री रजनीश सिंह -- अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी ने जानकारी दी है कि निविदा की कार्य़वाही प्रगति पर है.
अध्यक्ष महोदय-- हां तो उस पर प्रश्न पूछ लीजिये.बजाए भाषण देने के.
श्री रामपाल सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, भाई रजनीश सिंह जी ने जो प्रश्न पूछा है उसमें एक प्रश्न में तो कहा है कि अंग्रेजों के जमाने से है, प्रश्न में ही पूछ लिया. उसमें बीच में कांग्रेस शासनकाल भी रहा वह भी आप पूछ लेते, लेकिन अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय सदस्य को जानकारी देना चाहूंगा, उनके लिये खुशखबरी भी है कि आपके यहां पर जो 7 पुलों का काम है उसमें से एक पुल का काम तो पूर्ण हो गया है...
डॉ.गौरीशंकर शेजवार-- अध्यक्ष महोदय, अंग्रेजों के जमाने की तुलना कांग्रेस शासन से मतलब क्या, मंत्री जी और रजनीश सिंह जी ने ऐसे प्रश्न रखे हैं तो मैं जानना चाहता हूं कि अंग्रेजों के शासनकाल का क्या है...
अध्यक्ष महोदय-- कुछ नहीं पता नहीं वह तो कहने वाले जाने.(श्री रजनीश सिंह के खडे होने पर) आप उत्तर तो लीजिये, आपका काम हो रहा है.
श्री रजनीश सिंह --मैं एक मिनट में उन्हें धन्यवाद तो दे दूं .
अध्यक्ष महोदय-- आपका काम हो रहा है फिर उसके बाद उन्हें धन्यवाद दे देना.
डॉ. गोविंद सिंह -- अध्यक्ष महोदय, हमारा आपसे अनुरोध है कि प्रश्नोत्तरी में जो आप 25 प्रश्न रखते हैं उन्हें कम करके 5 कर दें, क्योंकि हम देख रहे हैं कि 5 प्रश्नों से ज्यादा बढ़ नहीं पाते हैं.
अध्यक्ष महोदय-- ऐसा नहीं है, अभी 8वां चल रहा है.
डॉ.गोविंद सिंह -- अध्यक्ष महोदय, प्रश्नकाल अगर इतनी धीमी गति से चलेगा तो 25 प्रश्न का कोई औचित्य नहीं है.
अध्यक्ष महोदय-- 5-7 मिनिट शुरू में खराब कर दिये.
डॉ.गोविंद सिंह -- अध्यक्ष महोदय, रोज ऐसा ही हो रहा है. इस सत्र में आज तक 10 से ज्यादा नहीं हो पाये हैं.
अध्यक्ष महोदय- ऐसा नहीं है, जिस दिन व्यवधान नहीं हुआ है उस दिन 21 प्रश्न भी हुये हैं. इसी सत्र में हुये हैं.
डॉ.गोविंद सिंह-- मंत्री जी भी आधे आधे घंटा जबाव देते हैं, प्रश्न का उत्तर नहीं देते हुये भाषण देते हैं.
अध्यक्ष महोदय-- कृपया बैठ जायें अभी तो उत्तर आने दें. आपका प्रश्न 20वे नंबर पर है, वह आयेगा (हंसी)
डॉ.गोविंद सिंह --आयेगा . (हंसी) तो धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय-- मंत्री जी कृपया संक्षिप्त में उत्तर दें.
श्री रामपाल सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा माननीय रजनीश जी से कहना है कि जो काम अभी तक नहीं हुये हैं वह काम हम लोग कर रहे हैं और आपको जानकारी देना चाहते हैं कि जहां तक पुलों का मामला है तो एक कार्य तो आपका पूर्ण हो गया है. चकरपाटस-सेमरिया मार्ग यह पंचायत मार्ग है इसमें हम पुल नहीं बना पायेंगे, आपने इसकी मांग की है. चमरया नाला पुल पर हम लोगों ने 121 लाख स्वीकृत कर दिये है यह आपके क्षेत्र की जनता के लिये और आपके लिये अच्छा समाचार है. दूसरा पलारी कहानी पुल की स्वीकृति 87 करोड़ 62 लाख की थी इसकी स्वीकृति हम लोग अभी कर रहे हैं इससे भी आपके क्षेत्र की जनता को काफी लाभ मिलेगा. इसमें पुल के लिये 5 करोड़ 68 लाख का वैनगंगा पुल भी शामिल है, यह भी आपके क्षेत्र और आपके लिये अच्छी खबर है. अध्यक्ष महोदय मैं कह सकता हूं कि 15 गांव के लगभग 21 हजार लोगों को इस सड़क से लाभ मिलेगा. दूसरी बात जो माननीय सदस्य ने कही है उसका हम लोग परीक्षण करा कर एक एक चीज से अवगत करायेंगे. माननीय विधायक जी यह काम करने वाली सरकार है और आपकी भावनाओं के हिसाब से पूरे प्रदेश की सड़कों का हम लोग विकास कर रहे हैं.
श्री रजनीश सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी की बड़ी सहृदया, बड़ा स्नेह और प्यार है . मैं कल इनके चेंबर में जाकर के अपने क्षेत्र की जनता के साथ में आभार भी व्यक्त कर आया हूं. मुख्यमंत्री जी का भी आभार व्यक्त कर लिया पर मैंने पहले ही कहा है कि मैं अधिकांश उत्तर से संतुष्ट हूं पर एक में मुझे पीड़ा है जिसका माननीय मंत्री जी ने उल्लेख किया है कि क्या ग्राम पंचायत के अंतर्गत अगर थावर नदी पर वह पुल आयेगा तो क्या जीवन भर वहां की जनता की सुविधा के लिये वह पुल नहीं बनेगा ? जबकि वह पुल मंडला जिला और केवलारी को जोड़ता है और आप जानते हैं कि 18 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार है इतिहास गवाह है कि आला-उदल ने अपनी बहनों के साथ में रक्षाबंधन मनाने के लिये ..
अध्यक्ष महोदय-अब नहीं. भाषण नहीं. श्री गोवर्धन उपाध्याय.....
श्री रजनीश सिंह --अध्यक्ष महोदय वह पुल बहुत जरूरी है.
अध्यक्ष महोदय- आप बैठ जाईये, आप अच्छे विधायक हैं.
श्री रजनीश सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी का बहुत बहुत धन्यवाद.
प्रश्न संख्या 9 (अनुपस्थित)
फर्जी निर्वाचन की शिकायत की जाँच
10. ( *क्र. 2453 ) श्री सुरेन्द्रनाथ सिंह : क्या खनिज साधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) असिस्टेंट रजिस्ट्रार, फर्म्स एवं संस्थाएं भोपाल नर्मदापुरम संभाग के जावक क्रमांक 3485, दिनांक 03 नवंबर, 2015 द्वारा किस संस्था की कार्यकारिणी मान्य की गई? (ख) असिस्टेंट रजिस्ट्रार को वर्ष 2016 में उक्त कार्यकारिणी के निर्वाचन दिनांक 05 जुलाई, 2015 फर्जी होने के संबंध में किस-किस की ओर से शिकायत प्राप्त हुई है? (ग) संज्ञान में आये तथ्यों अनुसार उक्त निर्वाचन प्रक्रिया में कितने व्यक्ति उपस्थित रहे? किस शासकीय स्थल और स्थान पर निर्वाचन हुए? निर्वाचन में उपस्थित व्यक्तियों के स्पष्ट नाम, शासकीय पद एवं उनके कार्यालय की स्पष्ट और पठनीय सूची उपलब्ध करावें? (घ) निर्वाचन में उपस्थित भोपाल के बाहर पदस्थ व्यक्तियों द्वारा शासकीय मुख्यालय छोड़ने की अनुमति संबंधी आवेदनों की प्रति उपलब्ध करावें। प्रथम दृष्टया निर्वाचन फर्जी पाये जाने पर मान्यता अब तक निरस्त क्यों नहीं की गई? कब तक की जायेगी? प्रश्नाधीन मामले का जाँच प्रतिवेदन दें।
खनिज साधन मंत्री ( श्री राजेन्द्र शुक्ल ) : (क) जावक क्रमांक 3485 दिनांक 03 नवम्बर, 2015 द्वारा कार्यकारिणी मान्य करने की कार्यवाही नहीं की गई है, अपितु म.प्र. तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ, भोपाल द्वारा प्रस्तुत धारा 27 की जानकारी की नकल जारी की गई है। (ख) श्री अरूण द्विवेदी एवं डॉ. सुरेश गर्ग दवारा शिकायत प्रस्तुत की गई है। (ग) मध्यप्रदेश सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1973 के तहत प्रश्नांकित जानकारी का संधारण रजिस्ट्रार कार्यालय में अपेक्षित नहीं है। अत: शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (घ) उपरोक्तानुसार। मध्यप्रदेश सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1973 में मान्यता दिये जाने संबंधी प्रावधान नहीं है, अत: शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
श्री सुरेन्द्रनाथ सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे प्रश्न में मंत्री जी द्वारा जो उत्तर दिया गया है उससे मैं संतुष्ट नहीं हूं. उसमें यह बताया गया है कि मध्यप्रदेश तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ, को मान्यता नहीं दी गई है लेकिन फर्म्स एवं सोसायटी द्वारा जो सूची जारी की गई है उसी के आधार पर सामान्य प्रशासन विभाग ने उसको मान्यता दे दी है. अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से मेरी मंत्री जी से मांग है कि 3 लोगों ने वहां पर सूची दी थी लेकिन एक ही को उसकी सूची सोंपी गई है. मेरी मांग है कि रजिस्ट्रार के माध्यम से उसके निष्पक्ष चुनाव कराये जायें क्योंकि यह बहुत बड़ी संस्था है, करोड़ों की संपत्ति इस संस्था के अधीन है इसलिये मेरी मांग है कि रजिस्ट्रार के माध्यम से निष्पक्ष चुनाव कराये जायें.
महिला एवं बाल विकास मंत्री (श्रीमती अर्चना चिटनिस)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, जैसा कि माननीय विधायक जी ने जो प्रश्न किया था मान्यता देने का विषय इस विभाग के अंतर्गत नहीं आता है और जहां तक यह वाला मसला है, ये आलरेडी हाईकोर्ट में प्रक्रियाधीन है. माननीय सदस्य का कोई और प्रश्न हो तो मैं ....
श्री सुरेन्द्र नाथ सिंह-- फर्म्स सोसायटी से जो नियम 27 के तहत सूची जारी की गई है उसी को जीएडी ने मान्यता दे दी है. मेरा अनुरोध है कि यह तो कम से कम नहीं होना चाहिये.
श्रीमती अर्चना चिटनिस-- माननीय अध्यक्ष महोदय, जो मान्यता देने वाला विभाग है, वह दूसरा विभाग है और जो रजिस्ट्रेशन करने वाला विभाग है, वह उद्योग विभाग है, अगर कोई अनियमितता हुई है तो उस अनियमितता की जांच कराई जा सकती है और जांच के लिये सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट 1973 के अंतर्गत धारा 32 (2) के अंतर्गत वह शिकायत दर्ज करें तो जांच नियमानुसार करा ली जायेगी.
अध्यक्ष महोदय-- शिकायत दर्ज कराईये तो जांच होगी.
हरियाली महोत्सव के अंतर्गत पौध रोपण
11. ( *क्र. 1925 ) श्री संजय शर्मा : क्या वन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) वर्ष 2014 से प्रश्न दिनांक तक जिला नरसिंहपुर में हरियाली महोत्सव के अंतर्गत रोपण कार्यों में कितनी राशि शासन द्वारा आवंटित की गई? (ख) रोपण कार्यों में कितनी राशि व्यय की गई? विधानसभा क्षेत्रवार जानकारी प्रदान करें। (ग) जिले में कितने पौधों का रोपण किन-किन स्थानों पर किया गया? विधानसभा क्षेत्रवार जानकारी प्रदान करें। (घ) इन रोपित पौधों की विधानसभा क्षेत्रवार वर्तमान स्थिति क्या है?
वन मंत्री ( डॉ. गौरीशंकर शेजवार ) : (क) वर्ष 2014 से प्रश्न दिनांक तक जिला नरसिंहपुर में हरियाली महोत्सव के अंतर्गत रोपण कार्य हेतु 36560000/- रूपये राशि शासन द्वारा आवंटित की गई। (ख) जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र-1 अनुसार है। (ग) एवं (घ) जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र-2 अनुसार है।
श्री संजय शर्मा-- माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी ने मेरे प्रश्न के उत्तर में बताया कि वर्ष 2014 में 3 करोड़ 65 लाख रूपये का जो पौधारोपण किया गया था, राशि आवंटित जो की थी उसमें 51 लाख 73 हजार का अंतर खर्च में है, आपने जो व्यवस्था दी चलो ठीक है, बाकी प्रश्न (ग) के उत्तर में जो जानकारी दी गई है, वह पूरी असत्य जानकारी दी गई है. मैंने अपने क्षेत्र के बारे में जानकारी चाही थी कि कहां-कहां पर कितना पौधारोपण किया गया है, तो उसमें नरसिंहपुर विधानसभा के कई स्थान चिन्हित करके बता दिये कि तेंदूखेड़ा में इन-इन स्थानों में किया गया है, जबकि जानबूझकर गलत जानकारी सदन में दी गई है. वर्ष 2014 में जिन स्थानों पर पौधा रोपित किये गये थे, उन स्थानों पर पौधा रोपित किये भी नहीं गये हैं. महुआखेड़ा में इन्होंने बताया कि 35 हजार पौधा रोपित किये गये हैं, जबकि वर्तमान में वहां पर अगर दिखवाया जाये तो 3500 पौधे भी नहीं निकलेंगे.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्न पूछ लें आप.
श्री संजय शर्मा-- माननीय अध्यक्ष महोदय, जानकारी असत्य आई वह बता दें.
अध्यक्ष महोदय-- जो असत्य जानकारी है उसमें क्या चाहते हैं आप ?
श्री संजय शर्मा-- पौधारोपण नहीं किया गया है और असत्य जानकारी सदन में दी गई है, ऐसे अधिकारियों को अलग करके उनके खिलाफ कार्यवाही कराई जाये और समय सीमा निश्चित की जाये और क्या दोषी अधिकारियों को दंडित किया जायेगा और कब तक किया जायेगा ?
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- जांच करवा लेंगे साहब, और अधिकारी को हटाने के बाद जांच करवा लेंगे.
श्री संजय शर्मा-- समय-सीमा तय कर दी जाये और जांच किससे कराई जायेगी ?
अध्यक्ष महोदय-- जांच किससे करायेंगे और कितने समय में करायेंगे ?
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- माननीय विधायक जी बता दें किससे करवाना है, करवा लेंगे.
अध्यक्ष महोदय-- जिससे आप बतायेंगे उससे जांच कराने के लिये तैयार हैं.
श्री संजय शर्मा-- भोपाल के किसी अधिकारी से और विधायकों को उसमें शामिल किया जाये. जहां जांच होगी, क्षेत्रीय विधायक साथ रहें.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- विधायक जी समय नहीं दे पायेंगे इतना और एक-दो जगह आप चले जायें बाकी की अधिकारी जांच कर लेंगे.
श्री संजय शर्मा-- माननीय मंत्री जी सही तो हम बता पायेंगे न, अधिकारी तो वही लिखकर ले आयेंगे जो यहां गलत जानकारी दी है.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- नहीं अब किसी न किसी पर तो विश्वास करना पड़ेगा.
श्री संजय शर्मा-- नहीं तो हम लोगों पर तो विश्वास करो, हम जायेंगे साथ में. ..(हंसी)...
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- आप अपना विधायी काम छोड़कर 100 प्रतिशत नहीं जा सकते.
श्री संजय शर्मा-- प्रश्न लगाया है तो क्यों नहीं जायेंगे ? ...(व्यवधान)....
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- बीच में मत बोलों भाई, मैं धन्यवाद मानता हूं रावत जी का इन्होंने मुझे बोलने दिया ...(हंसी).... लेकिन इन्होंने अधिकृत कर दिया है व्यवधान करने के लिये लोगों को.
श्री संजय शर्मा-- माननीय अध्यक्ष जी, व्यवस्था ऐसी कर दी जाये, समय सीमा तय कर दी जाये.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- आप ऐसा करो, पहले तो यह बता दें कि अनियमितता कितनी जगह होगी, अनुमान से.
श्री संजय शर्मा-- मैं वही बता रहा हूं.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- मेरी सुन तो लो पहले ...(हंसी)....
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया-- मंत्री जी, दिल है कि मानता नहीं, छेड़े बिना काम चलता नहीं. ...(हंसी)....
श्री संजय शर्मा-- माननीय अध्यक्ष जी, सभी जगह गलत जानकारी दी गई है, पहली बात तो अधिकारियों को यह नहीं मालूम कि कौन सा विधानसभा क्षेत्र कहां है.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- आपके नरसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र की पूरी जानकारी की जांच करवा लेंगे.
श्री संजय शर्मा-- तेंदूखेड़ा विधान सभा की.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- करवा लेंगे, नरसिंहपुर में जहां की आप कहोगे, वहां की करवा लेंगे और तेंदूखेड़ा में आप जहां की कहोगे, वहां की करवा लेंगे और आप कितनी जगह सम्मिलित रहना चाहेंगे वह बता दीजिये, आपको उस समय बुलवा लेंगे. और आप मना कर देंगे तो लिख देंगे कि विधायक जी नहीं आये.
श्री संजय शर्मा-- जहां पौधारोपण नहीं किया गया है और स्थान बताये गये हैं, वहां मैं जाऊंगा.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- आप जो जांच चाहते हैं सब करवा लेंगे.
श्री संजय शर्मा - समय-सीमा बता दें.
डॉ.गौरीशंकर शेजवार - अध्यक्ष महोदय, समय-सीमा के बारे में इसीलिये नहीं कह सकता कि अभी यह निश्चित नहीं है कि कितने प्वाइंट हैं और विधायक जी कितने उपलब्ध रहेंगे.
श्री संजय शर्मा - अगर आप अधिकारी को भिजवाएंगे तो हम 24 घंटे में करवा देंगे ज्यादा समय नहीं लगेगा.
डॉ.गौरीशंकर शेजवार - मैं एकदम हां नहीं कह सकता गलत साबित हो गया तो लोग कहेंगे कि गलत है इन्होंने आश्वासन दिया.
श्री संजय शर्मा - माननीय मंत्री जी गलत तो हो ही रहा है. सही कराना है गलत तो हो ही रहा है.
डॉ.गौरीशंकर शेजवार - अच्छा उसको जल्दी से जल्दी करवा लेंगे.
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष(श्री बाला बच्चन) - माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी आज आपने सही जवाब दिये और आज आप मन बनाकर आये थे किसी की तरफ से कोई गदर नहीं हुआ. आज आपका रुख और रवैया सदन और विधायकों के पक्ष में था और ऐसा लगा कि जैसी विधायकगण उम्मीद करते हैं वैसा आपका प्रश्न का जवाब था.
डॉ.गौरीशंकर शेजवार - अध्यक्ष महोदय, विपक्ष का नेता जिस मंत्री को प्रमाणपत्र देता है उसका भविष्य अच्छा नहीं रहता.
ग्वारीघाट फोर लेन सड़क का निर्माण
12. ( *क्र. 1422 ) श्री अशोक रोहाणी : क्या लोक निर्माण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) कटंगा से ग्वारीघाट जबलपुर 6.2 कि.मी. फोरलेन सड़क के निर्माण की मूल योजना क्या है? इसकी निर्माणाधीन अवधि व लागत क्या है तथा इसका जून 2016 तक कितना कार्य पूर्ण/अपूर्ण व कौन-कौन सा कार्य कब से निर्माणाधीन है? इस पर कुल कितनी राशि व्यय हुई है? (ख) क्या प्रश्नांकित सड़क का निर्माण मूल योजना के तहत निर्धारित चौड़ाई के तहत कराया गया है? यदि नहीं, तो क्यों? इसका निर्माण कहाँ से कहाँ तक कितने फीट तक निर्धारित चौड़ाई के तहत नहीं कराये जाने का कारण क्या है? सड़क निर्माण में बाधक चिन्हित कहाँ-कहाँ के अतिक्रमणों को समयावधि में नहीं हटाया गया है एवं क्यों? इसके लिए कौन दोषी है? (ग) प्रश्नांकित सड़क के निर्माण कार्य में सड़क के किनारे लगे हुये किस-किस प्रजाति के कितने-कितने वृक्षों को किसके आदेश से किसने कटवाया है तथा इसकी कितनी मात्रा में कटी लकड़ी का संग्रहण कहाँ-कहाँ पर किया गया है? पर्यावरण संरक्षण के लिए कितने क्षेत्रफल में किस-किस प्रजाति के कितने-कितने पौधों का रोपण कार्य कब किसने कराया है? यदि नहीं, तो क्यों? (घ) क्या प्रश्नांकित सड़क के निर्माण कार्य में बाधक पानी की पुरानी पाईप लाईन को शिफ्ट नहीं करने से इसके लीकेज से सड़क में गारंटी पीरियड में ही जगह-जगह छोटे-बड़े गड्ढे हो गये हैं? यदि हाँ, तो क्या शासन इस लापरवाही व गुणवत्ताविहीन कार्य कराने के लिए दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही करेगा?
लोक निर्माण मंत्री ( श्री रामपाल सिंह ) : (क) विस्तृत जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र 'अ' अनुसार है। (ख) विवरण संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र 'ब' अनुसार है। कोई दोषी नहीं। (ग) प्रस्तावित सड़क के निर्माण हेतु सड़क के किनारे लगे हुये आम, पीपल, नीम आदि प्रजाति के कुल 109 वृक्ष की कटाई हेतु नगर पालिका निगम उद्यान विभाग द्वारा पत्र क्रं. 224/दिनांक 24.08.2012 के द्वारा अनुमति प्रदान की गई तदुपरांत 23 वृक्षों की कटाई लोक निर्माण विभाग के अनुबंधित ठेकेदार से कराई जाकर 67.265 घन मीटर मात्रा में लकड़ी का संग्रहण उपसंभागीय स्टोर में किया गया। नगर पालिका निगम जबलपुर के ज्ञापन क्रमांक 281/दिनांक 18.09.2012 को माननीय उच्च न्यायालय में दायर रिट याचिका क्रमांक 436/2009 का उल्लेख कर अनुमति निरस्त की गई। माननीय उच्च न्यायालय द्वारा डब्लू.पी. 436/09 में पारित आदेश दिनांक 05.02.2013 के तहत कुल 50 वृक्ष काटने की अनुमति प्रदान की गई जिसके तहत समय समय पर कुल 09 वृक्ष नगर निगम जबलपुर द्वारा काटे गये एवं लकड़ी का उपयोग संग्रहण नगर निगम द्वारा किया गया। शेष पेड़ों को नहीं काटा गया है। पौधरोपण नहीं कराया गया। सघन बसाहट होने के कारण। (घ) जी नहीं। पाईप लाईन लीकेज के कारण मामूली पेंच निर्मित हुये थे, जिन्हें ठेकेदार द्वारा सुधार दिया गया है, प्रश्न उपस्थित नहीं होता है।
परिशिष्ट - ''छ:''
श्री अशोक रोहाणी - माननीय अध्यक्ष महोदय, कटंगी से ग्वारीघाट का जो मैंने प्रश्न पूछा था उसका जो उत्तर आया है यह मार्ग क्या पूर्ण हो गया है और नहीं हुआ तो कब तक होगा ? दूसरे मंत्री जी की सहृदयता के चलते उसी रोड पर मांग करूंगा कि बटौली से तिलहरी तक संकरा मार्ग है और जो कटंगा से ग्वारीघाट सड़क है उस पर यातायात का बहुत दबाव रहता है क्या उस सड़क को चौड़ा करने का काम करेंगे ?
श्री रामपाल सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय विधायक की जो चिंता है, कटंगा से ग्वारीघाट सड़क का काम लगभग पूर्णता की ओर ,है अतिक्रमण की वजह से रुका हुआ है. उसमें माननीय विधायक जी का भी हमें सहयोग चाहिये कि वहां से अतिक्रमण हटवा देंगे तो इस रोड पर जो नाली और जो काम शेष रह गये हैं वह काम हम पूरा करेंगे दूसरा जो आपने प्रस्ताव दिया है इस प्रश्न में तो वह प्रस्ताव नहीं है.
श्री अशोक रोहाणी - यह मैंने इसलिये प्रस्ताव रखा क्योंकि आपकी सहृदयता का सदन में उल्लेख हुआ तो यहां आप सहृदयता दिखा दें.
श्री रामपाल सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय विधायक जी जो बात रखेंगे उसको हम गंभीरता से चर्चा करके पूरा कराएंगे.
श्री अशोक रोहाणी - धन्यवाद.
कौशल विकास केन्द्र के बर्खास्त कर्मियों की सेवा में वापसी
13. ( *क्र. 2465 ) एडवोकेट सत्यप्रकाश सखवार : क्या राज्यमंत्री, तकनीकी शिक्षा महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) कौशल विकास केन्द्रों की स्थापना ब्लॉक व तहसीलों पर कब से किस आदेश से एवं किन-किन अवधारणाओं को ध्यान में रखकर की गई थी? (ख) क्या उक्त कौशल विकास केन्द्रों में कार्यरत अमले को उन्हें सुनने का अवसर न देते हुए, एक पक्षीय कार्यवाही कर 16.05.2016 से तुगलकी फरमान जारी कर सेवा से पृथक कर दिया गया है, जिसके कारण उनका परिवार पलायन की स्थिति में आ गया है? यदि हाँ, तो ऐसा क्यों किया गया है? (ग) क्या मा. विधायक श्री पुष्पेन्द्र नाथ पाठक द्वारा विधान सभा में पूछे गये प्रश्न के जवाब में मा. तकनीकी शिक्षा मंत्री श्री उमाशंकर गुप्ता जी ने कहा था कि कौशल विकास केन्द्र के कर्मचारी/अधिकारी की वेतन वृद्धि एवं नई नीति बनाने की कार्यवाही जारी है? यदि हाँ, तो उन्हें वेतन वृद्धि का लाभ तो नहीं दिया गया, बल्कि सेवा से ही पृथक करने का औचित्य क्या रहा ? (घ) शासन प्रश्नांश (ख) में वर्णित कर्मचारी/अधिकारी को पुन: सेवा में रखने पर विचार करेगा? यदि हाँ, तो कब तक, नहीं तो क्यों नहीं?
राज्यमंत्री, तकनीकी शिक्षा ( श्री दीपक जोशी ) : (क) जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (ख) जी हाँ। कौशल विकास केन्द्रों में कार्यरत अमले को उनकी संविदा अवधि पूर्ण होने पर सेवा से पृथक किया गया है। (ग) माननीय विधायक श्री पुष्पेन्द्र नाथ पाठक के द्वारा पूछे गए प्रश्न क्रमाक 6312 माह मार्च 2016 के जवाब में माननीय उमाशंकर गुप्ता जी, मंत्री, तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग ने कहा था कि संविदा आधार पर नियुक्त कर्मचारियों/अधिकारियों के मानदेय बढ़ाने की कार्यवाही प्रचलन में है। सेवा से पृथक करने का औचित्य प्रश्नांश (ख) अनुसार। (घ) जी नहीं। प्रश्नांश (ख) के उत्तर अनुसार।
एडव्होकेट सत्यप्रकाश सखवार - माननीय अध्यक्ष महोदय, तहसील और ब्लाक स्तरों पर कौशल विकास केन्द्रों पर संविदा कर्मियों की नियुक्ति की गई थी. एक तरफ तो सरकार रोजगार की बात करती है दूसरी तरफ इन संविदा कर्मियों को पृथक कर दिया गया है. मेरी आपके माध्यम से मांग है कि जो संविदा कर्मी सेवा से पृथक किये गये हैं उनको सेवा में वापस कब तक लेंगे ?
श्री दीपक जोशी - माननीय अध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश शायद देश में पहला राज्य होगा जिसने माननीय प्रधानमंत्री जी की स्किल इंडिया योजना को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस दिशा में मध्यप्रदेश ने पहला कदम 2011 में ही उठाया था. जहां पर हमारी आई.टी.आई. कार्यरत् नहीं थे वहां हमने कौशल विकास केन्द्रों की स्थापना की थी और इन कौशल विकास केन्द्रों के माध्यम से गांव के समीप या अपने रहने वाले स्थान के समीप ही व्यक्तियों को तकनीकी रोजगार से जोड़ने के लिये इन कौशल विकास केन्द्रों की स्थापना की गई थी चूंकि यह अल्प अवधि प्रशिक्षण के कार्यक्रम होते हैं और मांग के अनुसार इन कार्यक्रमों को चलाया जाता है. यदि प्रशिक्षण पूरा हो जाता है या मांग पूरी हो जाती है तो यह स्वत: बंद कर दिये जाते हैं इसलिये इसमे संविदा नियुक्ति का हमने प्रावधान रखा है.
एडव्होकेट सत्यप्रकाश सखवार - माननीय अध्यक्ष महोदय,जब संविदा नियुक्ति का कोई मतलब ही नहीं है तो इनको क्यों रखा जाता है इसकी कोई समय-सीमा हो,इनको परमानेंट किये जाने का शासन की तरफ से माननीय मंत्री जी कोई प्रबंध करेंगे ? उनके वेतन और वेतन वृद्धि हेतु कोई नई नीति निर्धारित करें ?
श्री दीपक जोशी - माननीय अध्यक्ष महोदय, जैसा मैंने बताया कि यह अल्प अवधि प्रशिक्षण कार्यक्रम हैं. मांग के अनुरूप हम इस कार्यक्रम को चलाते हैं. जब वह काम खत्म हो जाता है तो वह स्वत: बंद हो जाते हैं. माननीय सदस्य ने जिन बातों पर ध्यान दिलाया उसके लिये हम प्रयास कर रहे हैं
औद्योगिक क्षेत्रों के लिए कृषि भूमि का अर्जन
14. ( *क्र. 3582 ) श्री हर्ष यादव : क्या खनिज साधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) प्रदेश में कहाँ-कहाँ औद्योगिक विकास निगम द्वारा विगत 05 वर्षों में कृषि भूमि का अर्जन कर उद्योगों, लघु उद्योगों की स्थापना हेतु भूमि आरक्षित कर उन क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की है? कहाँ-कहाँ कितनी-कितनी भूमि पर ऐसे क्षेत्र बनाये गये हैं? (ख) क्या उक्त आरक्षित भूमि/क्षेत्र में उद्योग समूहों/कंपनी/फर्मों को आवंटित भूमि पर सही जगह उत्पादन किया जा रहा है? ऐसे कौन-कौन से क्षेत्र हैं, जहां भूमि आवंटन के बाद भी प्रश्न दिनांक तक कोई औद्योगिक गतिविधियां आंरभ नहीं हो सकी हैं? (ग) क्या विभाग/शासन ऐसी अर्जित भूमियों को जो कि औद्योगिक गतिविधियां आरंभ न होने से रिक्त हैं, को पुन: भू-स्वामियों को लौटाने पर विचार करेगा, ताकि वहां पूर्ववत् कृषि गतिविधियां जारी रह सके और भूमि का सार्थक उपयोग हो सकें? यदि हाँ, तो कब तक और यदि नहीं, तो क्यों?
खनिज साधन मंत्री ( श्री राजेन्द्र शुक्ल ) : (क) प्रदेश में औद्योगिक केन्द्र विकास निगमों द्वारा विगत 05 वर्षों में उद्योगों, लघु उद्योगों की स्थापना हेतु कोई कृषि भूमि अर्जित नहीं की गई है। अपितु राज्य शासन के माध्यम से औद्योगिक क्षेत्रों के विकास के लिये संलग्न परिशिष्ट अनुसार निगमों हेतु भूमि अर्जित की गई है। (ख) उक्त भूमि इकाइयों/उद्योगों को आवंटित नहीं की गई है अत: शेष का प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) उक्त भूमि औद्योगिक विकास के लिये अर्जित की गई है। अत: रिक्त भूमि भू-स्वामियों को लौटाने का प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
परिशिष्ट - ''आठ''
श्री हर्ष यादव - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से जानना चाहता हूं कि पूरे मध्यप्रदेश में सरकार के द्वारा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये हर जिले में दो या तीन जगह चिन्हित की गई है. मेरा मंत्री जी से पूछना है कि जो जगह अधिकृत की गई है, वहां अधोसंरचना विकास के लिये बिजली, सड़क और पानी की व्यवस्था की गई है और जहां नहीं हुई है, वहां बहुत सारी इकाईयां चालू नहीं हो पाई है. माननीय अध्यक्ष महोदय, ऐसी भी स्थिति है कि किसानों को जो भूमि अधिकृत की है, वह वैसी ही पड़ी है. मेरा माननीय मंत्री जी से आपके माध्यम से जानना है कि ऐसी जगह जो किसानों की अधिकृत की है क्या वह सरकार वापस करेगी ?
महिला एवं बाल विकास मंत्री (श्रीमती अर्चना चिटनिस) - माननीय अध्यक्ष महोदय, इस प्रश्न के उत्तर में माननीय विधायक जी को यह बताया गया है कि औद्योगिक विकास केंद्र के द्वारा किसानों से कोई भूमि अर्जित नहीं की गई है और निगमों द्वारा भूमि अर्जित की जाती है. जानकारी के अनुसार तद्नुसार मात्र तीन ऐसे स्थान है जिसमें पहला जो स्थान है वह मध्यप्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम भोपाल में पीलूखेड़ी क्षेत्र के विस्तार के लिये किया गया है, उसमें अब तक कोर्ट से स्थगन आदेश था जो समाप्त हुआ है और उसमें भूमि आधिपत्य की कार्यवाही जारी है. दूसरा जो स्थान है, वह नवीन औद्योगिक केंद्र उज्जैनी जिला धार में वहां रोड के लिये भूमि अधिग्रहण किया गया है, और वहां रोड के निर्माण का काम चालू है. जहां रोड के लिये अधिग्रहण किया गया है, उस विशेष जगह पर कोई उद्योग की स्थापना का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है. तीसरा जो स्थान है, वह देहली मुंबई इंडस्ट्रीयल कोरीडोर के अंतर्गत एक औद्योगिक क्षेत्र का उज्ज्ौन जिले में विकास किया जा रहा है. वहां लगभग एक हजार एकड़ में विकास कार्य चालू है. बिजली,पानी, सड़क का काम चालू है, जैसे ही काम पूर्ण हो जाता है तो उसकी एक न्यूनतम लागत मूल्य निर्धारित करके उद्योगों की स्थापना प्रारंभ की जा सकेगी.
श्री हर्ष यादव - माननीय अध्यक्ष महोदय, जैसा कि मंत्री जी ने बताया मेरा ऐसा मानना है और पूरा प्रदेश जानता है कि मंडीदीप, पीथमपुर, हरनामपुर यह सतना है एवं हमारे यहां देवरी विधानसभा क्षेत्र में एक भी जगह अधिकृत की गई है यहां किसानों की जगह भी अधिकृत की गई है. मंत्री जी आप बतायें.
श्रीमती अर्चना चिटनिस - माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय विधायक यह ठीक कह रहे हैं कि 28 जिलों में औद्योगिक क्षेत्रों के विकास के लिये भूमि का अधिग्रहण किया गया है और इसका विकास किया जायेगा, पर यह भूमि शासकीय भूमि है यह भूमि किसानों की भूमि नहीं है. किसी विशेष जगह के औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिये आपका अगर आग्रह है, यदि आप प्रश्न करेंगे मैं उसका उत्तर दे सकूंगी.
शास. नवीन महाविद्यालय सेमरिया का भवन निर्माण
15. ( *क्र. 318 ) श्रीमती नीलम अभय मिश्रा : क्या उच्च शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या शासकीय नवीन महाविद्यालय सेमरिया के भवन निर्माण हेतु शासकीय भूमि का आवंटन किया जा चुका है एवं क्या भवन निर्माण हेतु राशि स्वीकृत कर जारी की जा चुकी है? यदि हाँ, तो कब? यदि नहीं, तो क्यों एवं कब तक राशि जारी कर दी जावेगी? (ख) क्या उपरोक्त महाविद्यालय के 40 कि.मी. की परिधि में कोई दूसरा शा. महाविद्यालय नहीं है? यदि नहीं, तो क्या इस क्षेत्र के लोग कला (स्नातक) के अलावा अन्य संकाय हेतु बाहर जाते हैं या उच्च शिक्षा से वंचित हो जाते हैं? (ग) क्या उपरोक्त महाविद्यालय में नवीन कक्षायें प्रारंभ करने हेतु तैयारियां चल रही हैं? यदि नहीं, तो क्यों? यदि हाँ, तो कब तक?
उच्च शिक्षा मंत्री ( श्री जयभान सिंह पवैया ) : (क) जी हाँ। भवन निर्माण हेतु राशि स्वीकृत नहीं हुई है। आवंटित भूमि पर श्री मार्तण्ड सिंह का कब्जा होने के कारण न्यायालयीन प्रकरण क्रमांक 13663/16 में दिनांक 29.06.2016 को स्थगन आदेश होने के कारण सीमांकन स्थगित है। समय-सीमा बताया जाना संभव नहीं है। (ख) जी हाँ। जी नहीं। अशासकीय यमुना प्रसाद शास्त्री महाविद्यालय, सेमरिया संचालित है, जहाँ विद्यार्थी अध्ययन कर सकते हैं। (ग) जी हाँ। महाविद्यालय में विज्ञान संकाय एवं स्नातकोत्तर (कला संकाय) की कक्षायें प्रारंभ करने हेतु निर्धारित मापदण्ड अनुसार प्रकरण का परीक्षण किये जाने की कार्यवाही प्रकियाधीन है। समय-सीमा बताया जाना संभव नहीं है।
श्रीमती नीलम अभय मिश्रा - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय उच्च शिक्षा मंत्री महोदय से यह प्रश्न करना चाहती हूं कि माननीय मंत्री जी यह बताने की कृपा करेंगे सिमरिया में लगभग दो वर्षो से जो पांच एकड़ जमीन शासकीय नवीन विद्यालय सिमरिया के नाम से आवंटित है तथा जिसमें किसी मार्तण्ड सिंह के नाम के व्यक्ति का कब्जा है तथा कुछ वर्षों से उक्त व्यक्ति जमीन में खेती भी करता है, जो कि सरकारी जमीन है. वह व्यक्ति पुलिस का सिपाही भी है तथा पास ही के बिरसिंहपुर चौकी में पदस्थ है तथा तहसीलदार और एस.डी.एम. की कमी से आज दिनांक तक न तो उक्त व्यक्ति को कोई नोटिस जारी किया गया है, न ही उस जमीन का आज तक सीमांकन हो पाया है. जबकि चार, पांच बार कॉलेज के प्राचार्य, टी. आई. सभी जा चुके है, लेकिन उस व्यक्ति से वह जमीन खाली नहीं करा सके हैं. लगभग दो वर्षो से यह प्रयास जारी है. माननीय मंत्री जी से मेरा यह प्रश्न है कि क्या माननीय मंत्री जी उस जमीन को खाली करने का प्रयास करेंगे. अधिकारी, कर्मचारी को निर्देशित करेंगे ?
श्री जयभान सिंह पवैया - माननीय अध्यक्ष महोदय, यह भूमि के संबंध में एक न्यायायलीन मामला है. आवंटित भूमि पर श्री मार्तण्ड सिंह नाम के व्यक्ति का कब्जा होने के कारण न्यायालयीन प्रकरण क्रमांक - 13663/2016 में दिनांक 29 जून, 2016 को कोर्ट द्वारा स्थगन आदेश होने के कारण सीमांकन स्थगित है. जैसे ही स्थगन आदेश हट जायेगा, तो सीमांकन की कार्यवाही शुरू कर देंगे.
श्रीमती नीलम अभय मिश्रा--माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपका संरक्षण चाहते हुए माननीय मंत्रीजी से यह प्रश्न करना चाहती हूं कि जब वह मध्यप्रदेश शासन की जमीन है और दो वर्षों से कॉलेज के नाम से आवंटित है लेकिन आज दिनांक तक सिर्फ उस व्यक्ति की दादागिरी के चलते उसका सीमांकन नहीं हो पाया है. उसने उस 5 एकड़ जमीन पर कब्जा किया है जिसके कारण छात्र-छात्राएं एक कमरें में फूटी छत के नीचे बैठ कर पढ़ाई करते हैं. जिससे बहुत परेशानी होती है. मैं माननीय मंत्रीजी से यह आश्वासन चाहती हूं कि उस जमीन को खाली कराने की कृपा करें ताकि छात्र-छात्राओं के लिए नया कॉलेज बन सके और वह कॉलेज के लिए राशि कब तक स्वीकृत की जायेगी, मैं इसका भी आश्वासन चाहती हूं.
श्री जयभान सिंह पवैया-- अध्यक्ष महोदय, मैंने पहले ही निवेदन किया कि कोर्ट का स्थगन आदेश है. जैसे ही स्थगन आदेश वेकेट होगा, तत्काल सीमांकन की कार्रवाई करायेंगे. कौन व्यक्ति है, कौन दादा है इससे अन्तर नहीं आता है. सरकारी भूमि है तो उसका सीमांकन तत्काल होगा उसमें कोई बाधा पैदा नहीं होगी लेकिन यहां पर सवाल न्यायालय के स्थगन आदेश का है और उसके बाद में राशि जारी कर दी जायेगी.
अध्यक्ष महोदय-- न्यायालय की प्रक्रिया जल्दी करा लें. अगली हियरिंग की दरख्वास्त लगवा दें.
श्रीमती नीलम अभय मिश्रा-- मंत्रीजी, वह स्थगन कब तक हट जायेगा?
श्री जयभान सिंह पवैया--जी, अध्यक्ष महोदय, हम प्रयास करेंगे.
श्रीमती नीलम अभय मिश्रा-- मंत्रीजी, भवन की स्वीकृति मिल जाये.
शासकीय महाविद्यालय जीरापुर में कॉमर्स संकाय की स्वीकृति
16. ( *क्र. 1036 ) कुँवर हजारीलाल दांगी : क्या उच्च शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) राजगढ़ जिले के अंतर्गत शासकीय महाविद्यालय जीरापुर में कौन-कौन से संकाय संचालित हैं? क्या उक्त महाविद्यालय में कॉमर्स संकाय के संचालन की शासन स्तर से कॉलेज प्रारंभ दिनांक से प्रश्न दिनांक तक कोई व्यवस्था नहीं है? यदि हाँ, तो क्या कॉमर्स संकाय का संचालन कॉलेज की जनभागीदारी समिति के माध्यम से किया जा रहा है, जिससे कॉलेज की जनभागीदारी समिति पर अनावश्यक वित्तीय भार आ रहा है तथा अन्य विकास कार्य बाधित हो रहे हैं? (ख) क्या प्रश्नकर्ता द्वारा उक्त कॉलेज में कॉमर्स संकाय के संचालन की शासन स्तर से स्वीकृति हेतु अनेकों बार माननीय मुख्यमंत्री जी, माननीय उच्च शिक्षा मंत्री जी, प्रमुख सचिव, उच्च शिक्षा एवं आयुक्त उच्च शिक्षा को निवेदन पत्र प्रेषित किये गये हैं? यदि हाँ, तो क्या शासन उक्त कॉलेज में कॉमर्स संकाय के संचालन की स्वीकृति प्रदान करेगा? यदि हाँ, तो कब तक? यदि नहीं, तो क्यों?
उच्च शिक्षा मंत्री ( श्री जयभान सिंह पवैया ) : (क) शासकीय महाविद्यालय जीरापुर में कला एवं विज्ञान संकाय संचालित है। जी हाँ। जी हाँ। पाठयक्रम स्ववित्तीय होने से अनावश्यक वित्तीय भार का प्रश्न नहीं उठता है। शेष प्रश्नांश उपस्थित नहीं होता। (ख) जी हाँ। जी नहीं। कैचमेंट एरिया में वाणिज्य के पर्याप्त विद्यार्थी-संख्या नहीं होने के कारण विभागीय मापदण्डों की पूर्ति नहीं हो रही है, जिससे शासकीय महाविद्यालय जीरापुर में वाणिज्य संकाय प्रारंभ किये जाने में कठिनाई है।
कुंवर हजारीलाल दांगी-- अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्रीजी से पूछना चाहता हूं कि मेरे विधानसभा क्षेत्र में शासकीय महाविद्यालय जीरापुर है उसमें नगर पंचायत,माचलपुर नगर पंचायत,जीरापुर और नगर पंचायत छापेड़ा इतने लंबे-चौड़े एरिया के बच्चें वहां पर पढ़ते हैं. जब से कॉलेज खुला है तब से वाणिज्य संकाय की क्लासेस स्व-वित्तीय आधार पर हमने चालू कर रखी है. राजगढ़ जिले में सबसे अधिक बच्चे उस कॉलेज में अध्ययन करते हैं. मैं जब से विधायक बना हूं तब से मांग करता आ रहा हूं कि वाणिज्य संकाय के एक प्रोफेसर की नियुक्ति करके संकाय की एक क्लास चालू करा दी जाये.अध्यक्ष महोदय,मैं माननीय मंत्रीजी से यही जानना चाहता हूं कि मेरे जीरापुर महाविद्यालय में वाणिज्य संकाय की क्लास कब तक चालू करा देंगे?
श्री जयभान सिंह पवैया--अध्यक्ष महोदय, हम जब पीजी क्लास शुरु कराते हैं. नया संकाय शुरु करते हैं तो उसके लिए केचमेंट एरिया में 200 विद्यार्थी होना अनिवार्य है. इस समय की स्थिति यह है कि कुल 47 विद्यार्थी पूरे केचमेंट एरिया में है इसलिए शासकीय स्तर पर संकाय खोला जाना मानदण्डों के अंतर्गत बिलकुल नहीं आ रहा है. जब विद्यार्थियों की संख्या अधिक हो जायेगी उस समय विचार हो जायेगा. दूसरी बात यह है कि जन भागीदारी समिति इसे संचालित कर रही है और उसके ऊपर वित्तीय भार आने का प्रश्न इसलिए नहीं उठता क्योंकि जन भागीदारी समिति के पास इस समय 1 लाख 82 हजार रुपये है और उसका कुल व्यय 62 हजार 436 रुपया होता है. फिलहाल हमें जन भागीदारी समिति से उसे संचालित रखना ही उचित होगा. मानदण्डों के अनुसार नया संकाय देने में अभी कठिनाई है.
कुंवर हजारीलाल दांगी--अध्यक्ष महोदय, एक और प्रश्न है. माननीय मंत्रीजी नये-नये विश्वविद्यालय खोल रहे हैं. सब कुछ कर रहे हैं. चूंकि यह ग्रामीण क्षेत्र का इलाका है और उसमें किसानों के बच्चे पढ़ते हैं और उन किसानों के बच्चों को सुविधा देने के लिए एक प्रोफेसर देकर वहां क्लास चालू नहीं करा सकते? राजगढ़ जिले में सबसे ज्यादा छात्र संख्या जीरापुर महाविद्यालय में है. मेरा निवेदन है कि एक प्रोफेसर देकर क्लास चालू करा दी जाये.
अध्यक्ष महोदय-- आपके प्रश्न का उत्तर आ गया है.
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया--अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्रीजी से प्रश्न पूछना चाहता हूं कि पूरे प्रदेश के महाविद्यालयों के छात्र-छात्राएं संकाय और प्रोफेसर सहित अन्य विद्यालयों में शिफ्ट किये जा रहे हैं. माननीय मंत्रीजी मैं आपसे आश्वासन चाहूंगा मंदसौर में भी होम साईंस और आर्ट्स की कन्या महाविद्यालय की छात्राओं को प्रोफेसर सहित पीजी कॉलेज में भेजा जा रहा है. यह गंभीर मामला है. मैं आपसे निवेदन करुंगा.
अध्यक्ष महोदय - नहीं, मंदसौर का नहीं. उनको मैंने पूरक प्रश्न की अनुमति दी थी. अब समय हो गया है. श्री दांगी जी का उत्तर आ जाने दें.
कुंवर हजारीलाल दांगी - मेरी माननीय मंत्री जी से एक ही प्रार्थना है कि मेरे यहां पर वाणिज्य संकाय कैसे भी चालू करवा दिया जाय, मैं यही चाहता हूं.
अध्यक्ष महोदय - 16 प्रश्न हो पाए क्या करें?
डॉ. गोविन्द सिंह - आपका आश्वासन सदन में सबने सुना.
अध्यक्ष महोदय - समय की मर्यादा है. माननीय मंत्री जी उनका उत्तर दे दें, समय हो गया है.
श्री जयभान सिंह पवैया - मान्यवर अध्यक्ष महोदय, आदरणीय दांगी जी ने जो संकाय खोलने की मांग की है. मैंने प्रारंभ में कहा कि कुछ मानदंडों के अनुसार सरकारी तौर पर संकाय खुलते हैं. अगर बच्चे पर्याप्त उपलब्ध हो जायं, आप भी कोशिश करें कि बच्चे उपलब्ध हो जायं, यह प्रयास करेंगे तो हमें संकाय खोलने में कोई कठिनाई नहीं होगी.
अध्यक्ष महोदय - प्रश्नकाल समाप्त.
(प्रश्नकाल समाप्त)
समय 12.00 बजे नियम 267-क के अधीन विषय
अध्यक्ष महोदय - नियम 267-क के अधीन लंबित सूचनाओं में से 16 सूचनाएं
श्री बाबूलाल गौर - बगैर पढ़े उसका महत्व कम हो जाता है.
अध्यक्ष महोदय - आपकी इस बात पर विचार कर लेंगे.
समय 12.01 बजे शून्यकाल में उल्लेख
डॉ. गोविन्द सिंह (लहार) - अध्यक्ष महोदय, व्यापम घोटाले में सुप्रीम कोर्ट ने आज मध्यप्रदेश की सरकार को आईना दिखाया है और कहा है कि यह व्यापम घोटाला समूचे देश का घोटाला है, इसमें पूरे देश के लोग जुड़े हुए हैं. इस सरकार को शर्म आनी चाहिए, मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना चाहिए. लगातार घोटालों पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है, इससे ज्यादा मध्यप्रदेश की सरकार के लिए शर्म की बात नहीं हो सकती है.
संसदीय कार्यमंत्री (डॉ. नरोत्तम मिश्र) - इसमें सरकार का क्या है? सरकार ने ही उसको पकड़ा था. हमने घोटाले को उजागर किया. (व्यवधान)...हमने ही कार्यवाही की, हमें किस बात की शर्म? सुप्रीम कोर्ट में यह सरकार लेकर गई है.
श्री रामनिवास रावत - अध्यक्ष महोदय, माननीय संसदीय मंत्री जी ने कुछ कहा है. मेरा व्यापम के संबध में स्थगन लगा है, कृपया इसे स्वीकार कर लें.
श्री बाबूलाल गौर - अध्यक्ष महोदय, यह ज्यूडिश्यल मामला है, इसके ऊपर कोई विचार नहीं किया जा सकता है. इस पर बोला भी नहीं जा सकता है.
अध्यक्ष महोदय - यह मामला कोर्ट में है.
श्री सुन्दरलाल तिवारी (गुढ़) - अध्यक्ष महोदय, प्रदेश की एक सीनियर आईएएस ऑफिसर सुश्री शशि कर्णावत ने इच्छा मृत्यु की मांग माननीय मुख्यमंत्री जी से की है और यह आरोप लगाया है कि ..
अध्यक्ष महोदय - यह क्या शून्यकाल का विषय है?
श्री सुन्दरलाल तिवारी - मैं एक निवेदन कर लूं. 3 वर्ष से वह सस्पेंड हैं.
श्री रामनिवास रावत - वह दलित अधिकारी है. दलित अधिकारियों को प्रताड़ित किया जा रहा है, यह विषय नहीं है?
श्री सुन्दरलाल तिवारी - केवल आईएएस ही नहीं, अभी उन्हीं के क्षेत्र में अनुसूचित जाति, आदिवासियों (व्यवधान)..मृत्यु की अनुमति मांगी है, प्रदेश में प्रशासनिक हालात अच्छे नहीं हैं.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे (लांजी) - अध्यक्ष महोदय, पुलिस की लापरवाही के चलते मेरी विधान सभा क्षेत्र के ग्राम पंचायत टेमडी के अंतर्गत दो युवाओं को जिंदा जला दिया गया. अध्यक्ष महोदय, वे दोनों युवा एक उत्तरप्रदेश और दूसरा बिहार से थे. मैंने 21 तारीख को विधान सभा सचिवालय में ध्यान आकर्षण की सूचना दी है. मेरा आपसे निवेदन है कि आप इसे चर्चा के लिए ग्राह्य करें.
अध्यक्ष महोदय - इस पर विचार कर लेंगे.
श्री दुर्गालाल विजय (श्योपुर) - अध्यक्ष महोदय, श्योपुर जिले के अंतर्गत और श्योपुर नगर में कन्या महाविद्यालय नहीं हो पाने के कारण वहां की कन्याओं को आगे पढ़ने में बहुत बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. कई परिवार के अभिभावक शिक्षा ग्रहण कराने के लिए अपनी बालिकाओं को संयुक्त रूप से चल रहे महाविद्यालय में नहीं भेज पाते हैं. मेरा आग्रह है, माननीय मुख्यमंत्री जी की भी घोषणा है कि श्योपुर में कन्या महाविद्यालय अलग से होना चाहिए. कन्या महाविद्यालय अलग से स्थापित किये जाने का मैं निवेदन करता हूं.
श्री गिरीश भण्डारी (नरसिंहगढ़) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, आज पूरे प्रदेश में गायों की बड़ी दुर्दशा हो रही है, गांव के लोग एक गांव से दूसरे गांव में गायों को छोड़ देते हैं इसकी वजह से गांवों में काफी विवाद की स्थिति हो रही है और आज स्थिति यह हो गई है कि चाहे नेशनल हाईवे, चाहे स्टेट हाईवे पर आज पूरी जगह गायें बैठी हुई हैं इसकी वजह से आवागमन भी बाधित हो रहा है और सबसे बड़ा कभी-कभी रात में एक्सीडेंट होने की वजह से वहां पर धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंचती है और मेरा सुझाव है कि ग्राम पंचायतों को रोजगार गारन्टी के माध्यम से हर पंचायत में एक पशु शेड ऐसा बड़ा बना दिया जाए जिससे कि गांवों की जो गायें हैं उनको वहां पर रखा जा सके व गांव के जनसहयोग से वहां पर उनके भूसे की व्यवस्था हो सके.
डॉ.मोहन यादव (उज्जैन दक्षिण) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी अपनी विधानसभा में ग्राम मुंडला सुलेमान में नाले में अत्यधिक वर्षा का पानी आने के कारण से दो भाई-बहन बह गए. एक को तो बचा लिया गया लेकिन एक बालिका को बचाया नहीं जा सका. मैं आपके माध्यम से शासन से निवेदन करना चाहता हूँ कि मृतक के लिए सहायता दी जाए. साथ ही साथ भविष्य में बार-बार ऐसी घटनाएं जहां-जहां भी हो रही हैं वहां पुलिया बना दी जाए, ताकि ऐसी घटनाओं को रोका जा सके.
श्री मधु भगत (परसवाड़ा ) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, जिला बालाघाट के अंतर्गत 126 युवा सहकारी समिति के 900 दैनिक कर्मचारियों को आयुक्त, सहकारिता एवं पंजीयक कर सहकारी संस्थाओं मध्यप्रदेश, भोपाल के पत्र दिनांक 13.07.2016 के अनुसार समस्त 900 कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं. इन कर्मचारियों द्वारा शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं का संचालन किया जाता था, जिससे राशन वितरण व रसायनिक खाद का वितरण, आहरण का कार्य जोकि दिनांक 20.07.2016 से बाधित हो रहा है उक्त कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त होने से जिले की जनता में रोष है एवं आंदोलन की चेतावनी क्षेत्र की जनता द्वारा दी जा रही है. अत: सभी कर्मचारियों की बहाली के लिये सादर प्रेषित है.
श्री दिनेश राय ( सिवनी ) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे जिले में लगातार चोरी-डकैती की घटनाएं घट रही हैं. कल एक घटना मैंने बतायी थी. आज फिर हमारे यहां लगातार यातायात विभाग की लापरवाही से एक बच्चे की मृत्यु हो गई है. मेरा आग्रह है कि विभाग की घोर लापरवाही का मैंने जो प्रश्न लगाया है उसको कल ग्रहण कर ध्यानाकर्षण में लगाएं.
श्री आरिफ अकील (भोपाल उत्तर) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, नगर निगम भोपाल में 25 दिन और 90 दिन के कर्मचारी पिछले 10-15 सालों से डेलीवेजेस पर काम कर रहे हैं उनको सरकार ने अभी तक परमानेंट नहीं किया है. इन्होंने यह कहा था कि जिनको 10 साल से ज्यादा हो गए हैं उनको परमानेंट कर देंगे लेकिन आज 10-10 साल 15-15 साल से ज्यादा हो गए, जिनको 25 दिन और 90 दिन में रखे हैं उनको परमानेंट नहीं कर रहे हैं.
श्री प्रताप सिंह (जबेरा) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, वन विभाग के जितने भी वृक्षारोपण हुए हैं उनमें 4 से 6 माह के बीच जो चौकीदार लगे हैं उनकी तनख्वाह नहीं मिल रही है तो मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि उनकी तनख्वाह क्यों नहीं मिल रही है, उसको दिलाई जाए.
श्री सोहनलाल बाल्मीक (परासिया) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी विधानसभा क्षेत्र, परासिया में एक ही शासकीय महाविद्यालय है और वह चूंकि शासकीय महाविद्यालय शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है और नई बिल्डिंग बनने के कारण पुराना महाविद्यालय जहां संचालित होता था तो उसको वहां शिफ्ट कर दिया गया है जिसके चलते सभी छात्राओं को पेरशानी का सामना करना पड़ता है. मैंने माननीय मुख्यमंत्री जी से कई बार आग्रह किया है, शिक्षा मंत्री जी से भी कई बार आग्रह किया है कि मेरे क्षेत्र में एक कन्या महाविद्यालय खोला जाए, ताकि छात्राओं को जो आने-जाने में या असुरक्षित होती हैं तो कहीं न कहीं उनको इसका लाभ मिलेगा. मेरा आपसे यही निवेदन है कि मेरे विधान सभा क्षेत्र में कन्या महाविद्यालय खोला जाए.
श्री बलबीर सिंह डण्डोतिया (दिमनी) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं दो बार विधान सभा में प्रश्न लगा चुका हूँ मेरे कुछ ऐसे गांव हैं उनमें जैसे बरसात हो गई, तो वहां पढ़ने के लिए व्यवस्था नहीं है. गोपी से मनपुरा के 8-10 गांव हैं उनमें रास्ता नहीं है तो मैं मंत्री महोदय जी से निवेदन करना चाहता हूँ कि मेरी पूरी विधान सभा क्षेत्र में दो रोड करवा दें.
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष ( श्री बाला बच्चन ) -- माननीय अध्यक्ष महोदय 26 जुलाई को सिंहस्थ से संबंधित प्रश्नों के जवाब की तारीख थी. मेरा भी एक प्रश्न लगा हुआ था और मेरे प्रश्न के जवाब में शासन के द्वारा यह उत्तर आया है कि क से घ तक की जानकारी एकत्रित की जा रही है. अध्यक्ष महोदय इससे संबंधित और इसके अलावा मैंने और मेरे दल के 10 से 12 आदरणीय विधायकगणों ने स्थगन प्रस्ताव दिया है कि सिंहस्थ में जो अनियमितताएं हुई हैं, जो भ्रष्टाचार और घोटाले हुए हैं इससे संबंधित स्थगन दिया है उस पर चर्चा कराई जाय जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो सके. अभी तक सरकार जवाब एकत्रित कर रही है, यह बहुत दुख की बात है मैं समझता हूं कि हम सबका दुर्भाग्य होगा, इस स्थगन पर चर्चा होना चाहिए 10 - 12 विधायकों का स्थगन इस संबंध में दिया गया है.
अध्यक्ष महोदय -- आपसे चर्चा कर लेंगे.
श्री बाला बच्चन -- हम चाहेंगे कि सदन में इस पर चर्चा करा ली जाय.
अध्यक्ष महोदय -- नहीं, अभी सदन में इस पर चर्चा नहीं करायी जी सकती है.
श्री बाला बच्चन -- अध्यक्ष महोदय, यहां पर संसदीय कार्य मंत्री जी हैं, काफी विधायकों ने इससे संबंधित स्थगन दिया है
अध्यक्ष महोदय -- आपका विषय आ गया है. इस पर बात कर लेंगे.
श्री रामनिवास रावत -- अध्यक्ष महोदय, विषय केवल आने के लिए नहीं लगाये जाते हैं, उस पर व्यवस्था आना चाहिए केवल एक दिन सदन का शेष बचा है, या तो अग्राह्य कर दें कि सरकार चर्चा नहीं कराना चाहती है या फिर चर्चा कराने के लिए ग्राह्य करें.
अध्यक्ष महोदय -- व्यवस्था दे तो दी है. आज आपने इस विषय को उठाया है, उस पर विचार करने दें.
श्री रामनिवास रावत -- नहीं, हमने यह विषय आज नहीं उठाया है. तीन दिन पहले से स्थगन दिया हुआ है.
अध्यक्ष महोदय -- हां तो उस पर विचार कर रहे हैं.
श्री रामनिवास रावत -- वह आपके सचिवालय में प्रस्तुत कर दिया है सामान्यत: यह व्यवस्था रहती है , आप उस पर विचार कर रहे हैं तो कल तो विधान सभा ही समाप्त हो जायेगी.
अध्यक्ष महोदय -- अभी कल तक का समय है.
श्री रामनिवास रावत-- यह प्रदेश का बहुत बड़ा सिंहस्थ घोटाला हुआ है, यह तो बहुत बड़े भ्रष्टाचार को दबाने का एक तरीका है. आखिर इस पर चर्चा कब हो पायेगी.
अध्यक्ष महोदय -- आपको आज अवगत करा देंगे. स्थगन प्रस्ताव तो कभी भी लिया जा सकता है.
श्री बाला बच्चन -- अध्यक्ष महोदय जब से सत्र प्रारम्भ हुआ है तब से इस विषय पर स्थगन दिये गये हैं, इस पर चर्चा कराई जाना चाहिए.
श्री कैलाश चावला (मनासा) -- अध्यक्ष महोदय मंदसौर जिला चिकित्सालय में डायलिसिस यूनिट की स्थापना की गई है. डायलाइजर उपलब्ध न होने के कारण वहां पर किडनी रोग से ग्रसित जो मरीज हैं उनको परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इतना ही नहीं बीपीएल कार्ड धारी जो मरीज हैं उनसे प्रति डायलिसिस 500 रूपये वसूल किये जा रहे हैं. 1500 से 2000 रूपये उनसे लिये जा रहे हैं, जबकि डायलाइजर की कीमत ही 500 रूपये हैं. मेरा सरकार से आग्रह है कि यह डायलाइजर उपलब्ध कराये जायें. इधर उधर से मांग कर डायलिसिस कराना पड़ रहा है. यह गंभीर रोग से ग्रसित लोग हैं इनकी जान पर बन आयी है. इसलिए शासन को डायलाइजर उपलब्ध कराने के निर्देश देना चाहिए.
12.12 बजे. पत्रों का पटल पर रखा जाना.
(1) मध्यप्रदेश राज्य रोजगार गारंटी परिषद भोपाल की वार्षिक रिपोर्ट
वर्ष 2014-15 एवं 2015-16
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री ( श्री गोपाल भार्गव ) -- अध्यक्ष महोदय मैं महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (क्रमांक 42 सन् 2005) की धारा 12 की उपधारा (3) (च) की अपेक्षानुसार मध्यप्रदेश राज्य रोजगार गारंटी परिषद भोपाल की वार्षिक रिपोर्ट वर्ष 2014-15 एवं 2015-16 पटल पर रखता हूं.
(2) मध्यप्रदेश खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड भोपाल का वार्षिक प्रतिवेदन
वर्ष 2012-13
कुटीर एवं ग्रामोद्योग मंत्री ( श्री अंतर सिंह आर्य ) --
(3) आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की अपेक्षानुसार गृह विभाग की अधिसूचना
गृह मंत्री ( श्री भूपेन्द्र सिंह ) --
(4) (क) अटल बिहारी बाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय का तृतीय वार्षिक प्रतिवेदन वर्ष 2014-15, (ख) मध्यप्रदेश भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय, भोपाल का वार्षिक
प्रतिवेदन वर्ष 2015-16
उच्च शिक्षा मंत्री ( श्री जयभान सिंह पवैया ) --
12.16 बजे ध्यानाकर्षण
(सदन द्वारा सहमति प्रदान की गई.)
श्री मुकेश नायक (पवई) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, तीन साल में कई सदस्यों का एक भी ध्यानाकर्षण नहीं लगा है और कई सदस्य ऐसे हैं जिनके एक-एक सत्र में तीन-तीन, चार-चार ध्यानाकर्षण लग गए हैं. तीन साल बीतने को हैं विधान सभा में अनेक सदस्य ऐसे हैं जिनका एक भी ध्यानाकर्षण विधान सभा में नहीं आया है जबकि वे विषय अपेक्षाकृत ज्यादा लोकमहत्व के हैं, अविलंबनीय लोकमहत्व के हैं, जनता की समस्याओं को स्पर्श करते हैं. मध्यप्रदेश में सम्मानित सदस्य प्रभावी ढंग से जनसमस्याओं को उठा सकें इसके लिए हम आपसे न्याय की उम्मीद करते हैं.
अध्यक्ष महोदय -- ठीक है आपकी बात का ध्यान रखेंगे. श्री रामनिवास रावत कृपया अपने ध्यानाकर्षण की सूचना पढ़ें.
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री (श्री गोपाल भार्गव) -- अध्यक्ष महोदय, मुझे आपत्ति है, ये विषय आपके कक्ष में लिया जाना चाहिए और वहां चर्चा होनी चाहिए, यह सचिवालय से संबंधित है.
अध्यक्ष महोदय -- आपकी बात ठीक है पर वे भी वरिष्ठ सदस्य हैं.
श्री सुदर्शन गुप्ता (इन्दौर-1) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, सदस्य अगर व्यवधान न करें तो सबके नंबर आ जाएं परंतु व्यवधान करके ये प्रश्न भी नहीं होने देते हैं.
अध्यक्ष महोदय -- (श्री रामनिवास द्वारा श्री सुदर्शन गुप्ता की ओर देखने पर) आप उनकी तरफ मत देखिए, आप अपना ध्यानाकर्षण पढ़िए.
श्री रामनिवास रावत (विजयपुर) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, आज की प्रश्नकाल की कार्यवाही दिखवा लें, व्यवधान किसने प्रारंभ किया.
अध्यक्ष महोदय -- यह बहस करने का समय नहीं है, यह कॉल अटेंशन मोशन है. आप अपना ध्यानाकर्षण पढ़ें.
(1) मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक होना
श्री रामनिवास रावत -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी ध्यान आकर्षण की सूचना का विषय इस प्रकार है :-
राज्य मंत्री, सामान्य प्रशासन (श्री लालसिंह आर्य) -- माननीय अध्यक्ष महोदय,
श्री रामनिवास रावत- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने उत्तर दिया है. मंत्री जी के उत्तर की प्रथम लाईन में लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा 2013 का उल्लेख है. जिस पर माननीय मंत्री जी ने जवाब दिया कि वर्ष 2013 में कोई पेपर लीक नहीं हुआ है. मैंने अपने ध्यानाकर्षण में वर्ष 2012-13 का उल्लेख किया है. इसका आशय वर्ष 2012 भी हो सकता है और वर्ष 2013 भी हो सकता है. वर्ष 2012 एवं 2013 में लोक सेवा आयोग द्वारा भिन्न-भिन्न परीक्षा का आयोजन किया गया होगा. मंत्री जी ने बाद में स्वीकार किया है कि उक्त मामले में एसटीएफ द्वारा अपराध क्रमांक 13/14 कायम किया गया तत्पश्चात् अपराध क्रमांक 14/14 भी कायम किया गया, जो कि राज्य सेवा आयोग परीक्षा 2012 के संबंध में है. उक्त प्रकरण में फरियादी एसटीएफ के उप पुलिस अधीक्षक श्री शैलेन्द्र सिंह यादव है. उन्होंने होटल उदय पैलेस इंदौर में छानबीन के दौरान राज्य सेवा आयोग से संबंधित पेपर पकड़े. उन्होंने अपनी एफआईआर में स्पष्ट लिखा है कि ''अपराध क्रमांक 13/14 द्वारा 420, 120 भारतीय दण्ड विधान के तहत जब्तशुदा हस्तलिपि प्रपत्रों के प्रश्नों का पूर्णत: लोक सेवा आयोग से प्राप्त सामान्य हिन्दी, सामान्य अध्ययन प्रथम एवं द्वितीय के मूल प्रश्नों से मिलान होना पाया गया, जिसमें कि प्रथमदृष्टया आरोपियों राजीव प्रसाद, अखिलेश पांडे, बबलू पांडे, विजेन्द्र गुप्ता, इलियाज खान आदि ने मिलकर अयोग्य परीक्षार्थियों प्रियंका भदौरिया एवं सपना जैन तथा अन्य 10-12 परीक्षाथियों को अवैध लाभ पहुंचाने एवं स्वयं को अवैधानिक रूप से अवैध धन लाभ प्राप्त करने के आशय से आपराधिक षड्यंत्र कर उक्त परीक्षा को अवैधानिक रूप से प्रभावित किया जाना पाया जाता है''. आपने आयुर्वेदिक चिकित्सा परीक्षा एसटीएफ की रिपोर्ट के आधार पर निरस्त कर दी. एसटीएफ ने लोक सेवा आयोग की परीक्षा के संबंध में भी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, आपको तत्काल लोक सेवा आयोग की परीक्षा को भी निरस्त करना चाहिए था. आपके द्वारा परीक्षा निरस्त नहीं की गई. आप जिन छात्रों को लाभ पहुंचाना चाहते थे, आपने उन्हें मौका दिया कि वे माननीय न्यायालय में जायें. आपके द्वारा केवल लोक सेवा आयोग की परीक्षा के साक्षात्कार पर रोक लगाई गई. माननीय अध्यक्ष महोदय, राज्य सरकार को इस प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए था. मैं माननीय मंत्री जी का सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं, परीक्षाओं की गोपनीयता एवं पारदर्शिता के संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश रिट पीटिशन क्रमांक 298 of 2015 with nos. 299, 305 एवं 325 of 2015 decided on 15 जून 2015 में उल्लेख किया गया है कि Education and Universities- Examination- Unfair means/ cheating/leakage of question paper/cancellation of All India examination and directions for conduct if fresh examination- When warranted- All India Pre-Medical and Pre-Dental Entrance Test, 2015 dated 3-5-15- Question paper leaked large scale cheating and malpractices during examination aided by organised gang of ..................
अध्यक्ष महोदय-- आप उसका उल्लेख कर दीजिए, पढ़ कर मत सुनाइये.
श्री रामनिवास रावत-- इसलिए पढ़ कर सुना रहा हूँ कि उन्होंने स्पष्ट दिया है कि किसी भी परीक्षा में इस तरह के पेपर लीक होने की स्थिति बनती है, लीक होना पाया जाता है, किसी भी परीक्षा की गोपनीयता, पारदर्शिता भंग होती है तो सारी परीक्षाएँ निरस्त की जानी चाहिए. राज्य सरकार को माननीय सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए था और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के पालन में अपील करके ऐसी परीक्षाओं को तुरन्त निरस्त कराना चाहिए था. वह राज्य सरकार ने न करते हुए जिस तरह से व्यापम को आपने व्यावसायिक उद्योग, सरकारी उद्योग, मंत्रियों के लिए उद्योग बना रखा है....
अध्यक्ष महोदय-- विषय से न भटकें.
श्री रामनिवास रावत-- इसी तरह से पीएससी को भी आप उद्योग मत बनाओ. इस परीक्षा को निरस्त कराओ और जो प्रतिभावान युवक हैं उनको हक दिलाने का काम करें मेरी ऐसी माननीय मंत्री जी से अपेक्षा है. क्या आप इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे परीक्षा निरस्त कराने के लिए.
अध्यक्ष महोदय-- बस ठीक है. यही प्रश्न था जिसकी आपने इतनी भूमिका बाँधी.
राज्य मंत्री, सामान्य प्रशासन (श्री लाल सिंह आर्य)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य का यह आरोप कि मंत्रियों की सुविधाओं की दृष्टि से या उनके काम कराने की दृष्टि से उसको उद्योग न बनाएँ...
अध्यक्ष महोदय-- नहीं, वह जाने दीजिए.
श्री लाल सिंह आर्य-- माननीय अध्यक्ष महोदय, सरकार की मंशा न कभी ऐसी रही है न है और पारदर्शी प्रक्रिया के तहत ही हम लोग वह परीक्षाएँ आयोजित कराते हैं. इनको भी मालूम है, इनकी सरकार के समय में भी हुआ है. अध्यक्ष महोदय, दिल्ली में कहीं भी किसी प्रकार से हमको जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि जैसा माननीय सदस्य ने कहा है परीक्षाएँ 2012 की प्रारंभिक और मुख्य हो चुकी थी. साक्षात्कार होना था. तब एसटीएफ ने जो आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी 2013 की जाँच कर रहे थे उसमें पाया. तब तक कोई प्रकाश में नहीं आया और जैसे ही एसटीएफ ने अपराध पंजीबद्ध किया. हमने साक्षात्कार की प्रक्रिया पूरी रोक दी और माननीय उच्च न्यायालय के आदेश क्रमांक 2.5.16 का तीन माह में साक्षात्कार करने के लिए जो अण्डरटेकिंग के आधार पर आदेश दिया हमने उसका पालन भी शुरू कर दिया और उसका परिणाम है कि कुल अभ्यर्थी जो 1191 थे उसमें से 1091 का साक्षात्कार हो भी चुका है. दो दिन शेष हैं शेष सौ बचते हैं उनका भी साक्षात्कार होगा.
श्री रामनिवास रावत-- माननीय अध्यक्ष महोदय, किसी भी परीक्षा की गोपनीयता भंग हुई, पेपर लीक हुए. आप कह रहे हैं परीक्षा आयोजित कर ली. परीक्षा आयोजित होने के बाद ही तो परीक्षा निरस्त होने की बात आती है. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का भी मैंने उल्लेख किया. मैं कॉपी भी उपलब्ध करा दूँगा. राज्य सरकार को जाना चाहिए. अध्यक्ष महोदय, प्रदेश के युवाओं के हित के लिए बहुत गंभीर बात है. कल ही सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय आया है. जिसमें लिखा है कि मध्यप्रदेश का व्यापम....
अध्यक्ष महोदय-- नहीं, उसका संबंध नहीं है. श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा....
श्री रामनिवास रावत-- अध्यक्ष महोदय, मैं आ रहा हूँ...
अध्यक्ष महोदय-- नहीं डिसएलाउड. आपका सीधा जो प्रश्न था...
श्री रामनिवास रावत-- कोर्ट ने कहा है बुधवार को राज्य सरकारों को....
अध्यक्ष महोदय-- नहीं, श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा कृपया अपना प्रश्न करें.
श्री रामनिवास रावत-- माननीय अध्यक्ष महोदय, आप सुनने नहीं देंगे?
अध्यक्ष महोदय-- सुनने थोड़ी, बोलने नहीं देंगे, बोलिए आप..(व्यवधान). ..
डॉ मोहन यादव-- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह रावत जी के बोलने पर घोर आपत्ति है. यह आसंदी का अपमान है. यह आपका अपमान नहीं. रावत जी, आप से उम्मीद नहीं थी कि आप ऐसे.... .(व्यवधान). ..
श्री रामनिवास रावत-- मुझे बोलने का भी अधिकार है. .(व्यवधान). ..
डॉ मोहन यादव-- आप जरूर बोलिए लेकिन बोल कैसे रहे हों.आपका बोलने का लहजा थोड़ा अच्छा नहीं है. .(व्यवधान). ..
श्री रामनिवास रावत-- मुझे बोलने का भी अधिकार है. .(व्यवधान). ..
अध्यक्ष महोदय-- रिलेवेंट कोई बात नहीं है. .(व्यवधान). ..
डॉ मोहन यादव-- आप इतने वरिष्ठ सदस्य हैं आप इतने समझदार सदस्य हैं.
श्री रामनिवास रावत-- मुझे बोलने का भी अधिकार है.
अध्यक्ष महोदय-- आप बोलिए पर रिलेवेंट बोलिए.
डॉ मोहन यादव-- आप से हमको सीखना है आप तो जैसे बच्चे को डाँट रहे हों.
श्रीमती ऊषा चौधरी-- माननीय अध्यक्ष महोदय, छात्रों का भविष्य बर्बाद हो रहा है. .(व्यवधान). ..
श्री रामनिवास रावत-- आप चलाओगे सदन वैसा चलेगा? .(व्यवधान). ..
अध्यक्ष महोदय-- बैठ जाएँ. रावत जी, मेरा अनुरोध यह है...
श्री रामनिवास रावत-- ध्यानाकर्षण लगाया है मैंने. .(व्यवधान). ..
अध्यक्ष महोदय-- रावत जी, मेरा अनुरोध यह है आपको बोलने का अधिकार है. किन्तु उसमें एक रिजर्वेशन है और रिजर्वेशन यह है कि रिलेवेंट बोलने का अधिकार है तो आप रिलेवेंट इसमें जो आपने दिया है और जो उत्तर आया है.
श्री रामनिवास रावत-- रिलेवेंट ही बोल रहा हूँ.
अध्यक्ष महोदय-- यह रिलेवेंट नहीं है.
श्री रामनिवास रावत-- पीएससी की परीक्षा से संबंधित ही बोल रहा हूँ. कल सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्देश दिए हैं उसमें उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार.....
अध्यक्ष महोदय-- तो उसका आप मंत्री जी से पूछिए ना. .(व्यवधान). ..
श्री रामनिवास रावत-- (xxx)
अध्यक्ष महोदय-- यह नहीं लिखा जाएगा.
श्री रामनिवास रावत-- पटवारी से लेकर पीएससी की परीक्षा की भर्ती की जानकारी चाही है.
अध्यक्ष महोदय--सुप्रीम कोर्ट का आब्जर्वेशन तो पेपरों में आ गया है वह आब्जर्वेशन तो पेपर में सभी ने पढ़ा है. आप तो इससे उद्भूत विषय पूछिए.
श्री रामनिवास रावत--अध्यक्ष महोदय, सुप्रीम कोर्ट ने पीएससी के संबंध में कहा है कि हमें पटवारी से लेकर पीएससी की भर्ती तक की जानकारी चाहिए, मध्यप्रदेश राज्य में हमें सभी जगह घोटालों की आशंका है. मैं माननीय मंत्री जी से जानना चाहता हूँ कि कल सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में एक आदेश आया है कि राज्य सरकार हमें बताए कि व्यापम की तरह राज्य में कितने घोटाले हुए हैं. हमें पटवारी से लेकर पीएससी तक की भर्ती की जानकारी चाहिए. क्या राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के पालन में इस तरह की सभी परीक्षाओं की जांच करेगी ?
श्री लाल सिंह आर्य-- माननीय अध्यक्ष महोदय, समाचार-पत्रों में कोई चीज छपी है.
श्री रामनिवास रावत--छपी है तो आप इसी परीक्षा के मामले में देख लीजिए, इसी परीक्षा को निरस्त कराने के लिए क्या आप सुप्रीम कोर्ट जाएंगे ? मेरा एक प्रश्न है कि पीएससी की जो परीक्षा आयोजित हुई, पेपर लीक हुए क्या उसके लिए आप सुप्रीम कोर्ट जाएंगे या नहीं ?
डॉ. राजेन्द्र कुमार पाण्डे--अध्यक्ष महोदय, माननीय रावत जी हवाला दे रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है क्या वह फैसला उन्होंने पढ़ लिया है ? क्या वह फैसला आपको मिल गया है ? अखबार का उल्लेख कर रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय-- किसी ने नहीं पढ़ा है इसीलिए वह इररिलेवेंट है.
श्री रामनिवास रावत--आजकल ऑनलाइन डला रहता है.
श्री लाल सिंह आर्य--माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने दो प्रश्न किए हैं. मैं आपके माध्यम से उन्हें संतुष्ट करना चाहता हूँ. एक तो यह कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश दिया है उसकी अथेंटिक रुप से हमारे पास जब कॉपी आएगी तो स्वाभाविक है कि माननीय न्यायालय के आदेश का हम सम्मान करेंगे ही, महाधिवक्ता की उसमें राय लेंगे. इस विषय को लेकर हम सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएंगे क्योंकि उसकी आवश्यकता नहीं है.
श्री रामनिवास रावत--माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने कहा था कि हम अधिवक्ता की राय लेंगे.
अध्यक्ष महोदय--अब नहीं, इस पर अंतहीन बहस नहीं हो सकती है दो प्रश्न आपके हो गए हैं. अब आपको एलाउ नहीं कर सकता हूँ. आप इस तरह से जिद न करें. इसमें नहीं कहा है.
श्री रामनिवास रावत--अध्यक्ष महोदय, मैंने जो सुप्रीम कोर्ट का हवाला दिया है रिट पिटीशन का क्या आप उसे इसमें सम्मिलित करके अधिवक्ता से राय लेंगे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश में लिखा हुआ है परीक्षाओं की गोपनीयता के संबंध में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जो आदेश पारित किया गया है इसको लेकर क्या आप अधिवक्ता से राय लेंगे?
अध्यक्ष महोदय-- कॉल अटेंशन में वाद-विवाद नहीं होता है. यह विषय महत्वपूर्ण था इसीलिए इसे कॉल अटेंशन में लिया गया.
श्री रामनिवास रावत--किस तरह से प्रदेश के युवाओं के साथ अन्याय हो रहा है. किस तरह से उनके हक मारे जा रहे हैं. किस तरह से अयोग्य लोगों को भर्ती कराया जा रहा है. इनका पूरा संरक्षण है.
श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा--अध्यक्ष महोदय, मैंने मंत्री जी का उत्तर ध्यान से सुना. व्यापम की तरह ही पब्लिक सर्विस कमीशन भी पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है. इसके लिए उसके अध्यक्ष, समस्त सदस्य और सब लोग जिम्मेदार हैं और अभी जो विधायक खड़े हुए थे वे सब भी जिम्मेदार हैं. पब्लिक सर्विस कमीशन जैसी पवित्र संस्था के साथ जो खिलवाड़ हो रहा है यह उचित नहीं है. आप यह बताने का कष्ट करें कि जब एसटीएफ को यह जानकारी मिल गई....
डॉ. कैलाश जाटव--माननीय कालूखेड़ा जी, जब पर्चियों पर भर्ती होती थी तब आपको आपत्ति नहीं होती थी अभी सब निष्पक्ष भर्तियां हुई हैं तो आपको आपत्ति हो रही है. आप विधायकों के ऊपर उंगली क्यों उठा रहे हैं विधायक कोई प्रशासन है क्या ? हम सब तो आपके सहयोगी हैं.
श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा(मुंगावली)--माननीय अध्यक्ष महोदय, यूपी की अदालत में ट्रांजिट रिमांड पर लेपटॉप और कुछ कागजात जप्त हुए हैं और एसटीएफ ने भी कुछ कागजात जप्त किए हैं. आपने यह स्वीकार किया है कि यह जानकारी आपको मिली थी कि एमपी पीएससी की 2012 की प्रारंभिक परीक्षा में भी पेपर लीक हुए थे. अगर पेपर लीक हुए थे तो उसके बाद जितने भी इंटरव्यू हुए हैं उसमें आपने हाई कोर्ट में अपना पक्ष अच्छी तरह से नहीं रखा. परीक्षा के पेपर लीक हो गए थे और उस परीक्षा में उसमें जो पास हुए हैं उनका क्या मतलब है. सैकड़ों छात्रों के साथ अन्याय हुआ है जिनको लीक हुए पेपर मिले थे उन्हीं को फायदा मिला है और सैकड़ों अन्य छात्रों को नहीं मिला तो आपकी इमेज क्या हुई. आपने हाई कोर्ट में इस केस को ढंग से कांटेस्ट नहीं किया और आप सुप्रीम कोर्ट में भी जाने से इंकार कर रहे हैं. इसका मतलब यह है कि आप पेपर लीक करने वालों को संरक्षण दे रहे हैं. यह भी बतायें कि पेपर लीक करने वालों में कितने लोग हैं शामिल हैं और उनके खिलाफ आपने क्या एक्शन लिया है उनके नाम बताइए.
श्री लाल सिंह आर्य :- माननीय अध्यक्ष महोदय, एस.टी.एफ. इस प्रकरण की जांच कर रही है और माननीय उच्च न्यायालय ने अण्डर टेकिंग के आधार, पर इस शर्त के आधार पर कि आपका साक्षात्कार होता है और यदि आप इन्वाल्वड पाये गये तो ऐसे लोगों की परीक्षा निरस्त कर दी जायेगी, अमान्य कर दिया जायेगा. नंबर दो- आपने पूछा है कि कौन-कौन लोग इसमें इन्वाल्वड थे, जो प्रमुख अभियुक्त बेदीराम था,उसको गिरफ्तार कर लिया गया है और साथ ही 23 और अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया है. जिसमें 22 अभ्यर्थी थे और 11 अन्य थे. यदि आप कहें तो उनके नाम पढ़ देता हूं. मुझे लगता है कि इसकी आवश्यकता नहीं है.
श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा :- अध्यक्ष महोदय, मैंने यह पूछा था कि यदि पेपर लीक हुआ है तो उसके बाद आप साक्षात्कार करके नौकरियां देना चाहते हैं, इसका क्या तुक है ? क्योंकि आपके पास प्रमाण है, लेपटॉप जब्त हुआ है, एस.टी.एफ. की सारी जानकारी है और यह प्रमाण है कि पेपर लीक हुआ था. तो आपने इसको हाई कोर्ट में इसको कांटेस्ट क्यों नहीं किया, क्योंकि इतने लोगों के आप साक्षात्कार ले रहे हैं.जब यह सिद्ध हो जायेगा कि पेपर लीक हुआ था तो यह सब निरस्त होंगे तो इसका क्या मतलब है. इसको आपको कांटेस्ट करना चाहिये और आपको यह साक्षात्कार नहीं होने देना चाहिये था. यह जो पेपर लीक हुए हैं, इनको आपने दण्डित क्यों नहीं किया ? आपने हाई कोर्ट में प्रमाणित क्यों नहीं किया, जब एस.टी.एफ के पास जानकारी थी तो.
श्री लालसिंह आर्य :- माननीय अध्यक्ष महोदय, एस.टी.एफ. ने प्रमाणित किया है कि यह लोग उस गड़बड़ी में हैं. इसलिये वह 23 लोग गिरफ्तार किया गया है, लेकिन जो साक्षात्कार लिया जा रहा है, वह साक्षात्कार माननीय उच्च न्यायालय के आदेश में ही किया जा रहा है और दूसरा उन्होंने उसमें अण्डर टेकिंग यह लिया है कि शर्त लगायें, उनसे लिखकर लें कि यदि इसमें दोषी पाया जाये तो उनको अलग किया जायेगा. इसलिये माननीय अध्यक्ष महोदय, जो भी शासन कर रहा है, वह माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के परिपालन में कर रहा है.
श्री रामनिवास रावत :- माननीय अध्यक्ष महोदय, राज्य सरकार को तुरन्त सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिये था. राज्य सरकार संरक्षण दे रही है.
अध्यक्ष महोदय :- आपकी राय आ गयी है. आपके विषय आ गये हैं, शासन का उत्तर आ गया है.
श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा :- क्या शासन का यह कोई तरीका है. आपने हाई कोर्ट में इसको कांटेस्ट क्यों नहीं किया. (व्यवधान)
बहिगर्मन
इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदस्यगण द्वारा शासन के उत्तर से असंतुष्ट होकर सदन से बहिर्गमन
श्री रामनिवास रावत:- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं शासन के उत्तर से संतुष्ट नहीं हूं, प्रदेश सरकार प्रदेश के युवाओं के साथ अन्याय कर रही है. इसलिये हम सदन से बहिर्गमन करते हैं.
(इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदस्यगणों द्वारा शासन के उत्तर से संतुष्ट नहीं होने और युवाओं के साथ अन्याय करने पर सदन से बहिर्गमन किया.)
12.38 बजे { उपाध्यक्ष महोदय (डॉ.राजेन्द्र कुमार सिंह) पीठासीन हुए.}
(2) शाजापुर जिले के ग्राम खेड़ावद में कृषकों को भूमि का उचित मुआवजा न दिये जाना.
श्री जसवंत सिंह हाड़ा:- उपाध्यक्ष महोदय, मेरी ध्यानाकर्षण का विषय इस प्रकार है.
राजस्व मंत्री (श्री उमाशंकर गुप्ता)--माननीय उपाध्यक्ष महोदय,
श्री जसवंतसिंह हाड़ा--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मंत्री जी के जवाब में जो बात आयी है उसमें केवल मैं इतनी प्रार्थना करूंगा कि मंत्री जी ने जिस बात को जोर देकर कहा था प्रावधान की धारा निरस्त की जा चुकी है. मैं उनको इतना ही ध्यान दिलाना चाहता हूं कि क्योंकि मैं भी मास्टर रहा हूं वह भी रहे हैं, बहुत बच्चे पढ़ाये हैं वह इसको अच्छे तरीके से समझ लेते, पर उसको जोर देकर के इसलिये बताये कि यह निरस्त कर दिया गया. मैं उनको यह ध्यान दिला रहा हूं कि इसमें रामचन्द्र एवं गंगाबाई दोनों पृथक-पृथक थे. 1978 में जब गंगाबाई का देहांत हुआ तो रामचन्द्र ने गलत तरीके से वह जमीन अपने नाम पर नामांतरण करा ली. उनके दत्तक पुत्र ने जब आपत्ति का केस न्यायालय में लगाया तो यह 1979 में उनके पक्ष में मामला गया और यह निर्णय ऐसा हुआ कि यह गलत तरीके से रामचन्द्र जी ने स्वीकार किया और तहसीलदार ने 1982 में गलत तरीके से वह जमीन सीलिंग एक्ट 1974 के तहत 22 किसानों को बांटने का प्रस्ताव बनाया और 2008 में कलेक्टर शाजापुर ने विस्तार से प्रतिवेदन भेजा, 2011 में कलेक्टर साहब ने पुनः भेजा उसमें लिखा गया है कि उसकी जमीन वहां पर हो सकती है तो किसान को उपलब्ध करायें. उसके बाद 2013-14 में उसके चार-चार प्रतिवेदन आये. आज मंत्री जी कह रहे हैं तो मुझे इतना दुःख हो रहा है और मैं इस बात को कहना चाहता हूं कि उनको मुआजवा देंगे अथवा नहीं. अगर नहीं देंगे तो आप शासन स्तर पर निर्णय ले रहे हैं, क्या निर्णय ले रहे हैं, यह बता दें, माननीय उपाध्यक्ष महोदय, उसके बाद वह किसान दर दर, मारा मारा फिर रहा है । मैं आपके सामने सदन में घोषणा करता हूं कि अगर अधिकार हो तो मेरे स्वेच्छानुदान से उस गरीब किसान को राशि दे दें । गलत तरीके से उसकी जमीन बांट दी, जमीन भी नहीं दे रहे हैं और मुआवजा की परिभाषा बता रहे हैं । धारा 16 के अंदर यह मूल अधिकार है किसान की संपत्ति और उसके हक के लिए यह मुआवजा नहीं है । मुआवजा लेने का नियम क्या है, जब सरकार को रोड़ के लिए जमीन चाहिए, भवन निर्माण के लिए चाहिए, उसको तो सीलिंग एक्ट के कारण दी है माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आप बहुत अच्छे से जानते हैं, आपकी जमीन भी 74 में लपेट में आई होगी । इसके तहत वह जमीन ली थी । राजस्व मण्डल का 2001 में गलत तरीके का निर्णय हुआ है, उसमें भी स्पष्ट किया था । माननीय मंत्री जी शासन स्तर पर क्या निर्णय लेंगे, क्या किसान को मुआवजा देंगे ? कितने दिन में देंगे, यह भी बता दें ?
श्री उमाशंकर गुप्ता- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, उत्तर में मैंने साफ किया है मैंने कहीं मना नहीं किया है । जमीन ली गई है बाद में जमीन सीलिंग से छूट गई । इसी बीच में जमीन 20-22 लोगों को बंट गई है । मैंने अपने उत्तर मे कहा है कि उनसे जमीन वापस लेना व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि नियम के हिसाब से तो धारा 89 में माननीय न्यायालय द्वारा मुआवजा की राशि निरस्त कर दी गई है । जो भी 88 में एक्ट बना, क्यों बना, उसका मैं उल्लेख नहीं करूंगा लेकिन निरस्त कर दिया तो मुआवजा नहीं दे सकते हैं । तरीका यही है कि जमीन उनको वापस करें । लेकिन जो खेती कर रहे हैं, किसानों के हित में नहीं होगा, । यह प्रकरण अभी ध्यान में आया है । मैं विधायक जी को कहना चाहता हूं कि बहुत जल्द हम उस किसान को मुआवजा देने की कार्यवाही करेंगे और अतिशीघ्र करेंगे ।
उपाध्यक्ष महोदय- आपने मुआवजा देने की ही मांग की थी ।
श्री जसवंत सिंह हाड़ा- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, कलेक्टर शाजापुर के प्रतिवेदन के आधार पर पूरी जमीन ढूढने की कोशिश की है, जिले में कहीं भी ऐसी जमीन उपलब्ध नहीं थी । हम उन किसानों से जमीन वापस लेने के पक्ष में नहीं है किसान भी नहीं है । उनको कोई शासकीय भूमि मिल जाए । बार बार वर्ष 2008,2013,2014 में स्पष्ट था कि जमीन उपलब्ध नहीं है, लेकिन उसके बाद मुआवजे का कोई उल्लेख नहीं किया है, उसमें उन्होंने क्षतिपूर्ति का उल्लेख किया है । हम उसको मुआवजा तो तब देंगे जब सरकार ने लिया हो । मैं मंत्री जी को साधुवाद देता हूं कि शीघ्र कर देंगे और उसको मुआवजा देंगे पर मैं यह चाह रहा था कि .......
उपाध्यक्ष महोदय- श्री जसवंत सिंह हाड़ा जी, उन्होंने आपको संतुष्ट कर लिया है ।
श्री जसवंत सिंह हाड़ा- मैं उनको ह्रदय से साधुवाद देता हूं पर मैं इतना और आपके माध्यम से पूछना चाहता हूं कि वह किसान 47 वर्ष से लड़ रहा है तो क्या उसको वर्तमान दर से उसको क्षतिपूर्ति देंगे, क्या उसको ब्याज सहित देंगे ? यह मैं
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया- माननीय हाड़ा जी माननीय मंत्री जी ने बड़ी सह्रदयता के साथ उसको स्वीकार किया .......
श्री जसवंत सिंह हाड़ा- यशपाल जी पहले तो यह साफ साफ हो जाए कि आप मेरे वकील हैं या मंत्री जी के वकील हैं । आप वकील किसके है, क्योंकि आप व्यवसाय से भी वकील हैं ।
श्री ओमप्रकाश सखलेचा- फीस किसने दी है पहले यह तय कर लें ।
उपाध्यक्ष महोदय- आप साथी विधायक की वकालत करें ।
श्री जसवंत सिंह हाड़ा- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, उसको वर्तमान दर से या उसको ब्याज के साथ देंगे और उसकी समय सीमा भी बता दें ।
श्री उमाशंकर गुप्ता- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, 37 महीने हो गए हैं तो 37 दिन और इंतजार करना चाहिए, 37 साल के प्रकरण को हम सुलझाने जा रहे हैं माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आप भी मंत्री रहे हैं । केबिनेट में जाएगा विशेष प्रकरण मानकर हमको ले जाना पड़ेगा वहां क्या निर्णय होगा यह मैं अभी नहीं कह सकता लेकिन हम चाहेंगे कि कलेक्टर का जो भी प्रस्ताव आया है उसके हिसाब से किसान को राशि मिल जाए ।
उपाध्यक्ष महोदय- मंत्री जी, उनका प्रश्न दूसरा है । जो कलेक्टर का प्रस्ताव आया है वह अपनी जगह है उनका यह कहना है कि जो प्रचलित बाजार दर है क्या उसके आधार पर मुआवजा देंगे ? अगर वे नहीं देंगे तो जो भी पुराना आया है, उसमें ब्याज वगैरह जोड़कर देंगे, इन्होंने ये 2 प्रश्न पूछे हैं.
श्री उमाशंकर गुप्ता – उपाध्यक्ष महोदय, मेरा कहना है कि उस किसान को कुछ मिल जाये. जो हो सकता है, मैं वह अधिकतम देने की कोशिश करूँगा.
उपाध्यक्ष महोदय – ऐसा प्रस्ताव, वे संक्षेपिका के माध्यम से केबिनेट में लायेंगे.
श्री जसवंत सिंह हाड़ा – उपाध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी से यह कह रहा हूँ कि अगर आपको लगता है कि उसका हक है. यह मैं इस सदन में कह रहा हूँ और अगर उसके साथ अन्याय नहीं हुआ हो तो आप पेपर का अध्ययन करके देखिये. इसलिए, मैं उसके हक के लिए इतनी बात कर रहा हूँ.
उपाध्यक्ष महोदय – आपकी बात आ गई है.
श्री जसवंत सिंह हाड़ा – उपाध्यक्ष महोदय, मैं कह रहा हूँ कि यह निर्णय उन्हीं को, उनके विभाग को लेना है और विभाग के विलम्ब के कारण, वह 37 वर्षों से भटक रहा है, उसके बच्चे, उनकी पढ़ाई, उनके जीवन-यापन में परेशानियां हैं. यह मेरे विधानसभा क्षेत्र का मामला है.
उपाध्यक्ष महोदय – मैं आपकी वेदना एवं चिन्ता को समझ रहा हूँ. आपकी सारी बातें आ गई हैं. मंत्री जी ने भी स्वीकार कर लिया है कि वे इसको लेकर केबिनेट में जायेंगे और यथाशीघ्र इसका निर्णय करायेंगे.
श्री जसवंत सिंह हाड़ा – धन्यवाद.
(3) होशंगाबाद जिले के देहात थाने में पदस्थ पुलिस कर्मियों द्वारा नागरिकों
को प्रताडि़त किया जाना.
पंडित रमेश दुबे (चौरई) - अध्यक्ष महोदय, मेरी ध्यान आकर्षण सूचना का विषय इस प्रकार है:-
गृह मंत्री (श्री भूपेन्द्र सिंह) – अध्यक्ष महोदय,
पं.रमेश दुबे—माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा माननीय मंत्री जी से इतना आग्रह है कि यह आत्महत्या का विषय है पुलिस प्रताड़ना से आत्महत्या की गई है. मैं चाहता हूं कि वहां का जो थाना प्रभारी है उसको हटाया जाए साथ ही आई.जी. स्तर के अधिकारी से क्या जांच कराई जाएगी और अगर झूठी रिपोर्ट पाई जाती है तो उनके खिलाफ जो मामला बना है क्या वह वापस लिया जाएगा.
श्री भूपेन्द्र सिंह—माननीय उपाध्यक्ष जी इसमें जो एडिश्नल स्तर के अधिकारी एडिश्नल एस.पी. को इसके लिए जांच के लिए हमने निर्देशित किया है जवाब में भी इसको लिखा है जहां तक टी.आई. का सवाल है हम टी.आई. को आज ही तत्काल हटा देंगे और जांच में जो आपने कहा है वह बिंदु भी सम्मिलित कर लेंगे.
(4) सीधी जिले में पात्र व्यक्तियों के नाम गरीबी रेखा सूची से काटे जाना.
श्री कमलेश्वर पटेल (सिहावल)—माननीय उपाध्यक्ष महोदय,
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री (श्री गोपाल भार्गव)—उपाध्यक्ष महोदय,
श्री कमलेश्वर पटेल – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जो माननीय मंत्री जी द्वारा जवाब आया है, वह पूरी तरह से भ्रामक है. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, सच्चाई तो यह है ग्राम उदय से भारत उदय अभियान के तहत गरीबी रेखा में नाम जोड़ने के बजाये यह सरकार गरीबों को उठाने की बजाए गरीबो को खत्म करने का काम किया है, ज्यादातर अनुसूचित जाति - जनजाति के लोग हैं. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपका संरक्षण चाहूंग. इसमें 90 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति जनजाति के लोग हैं, जिन लोगों के नाम काटे गए हैं और जो संख्या भी बताई गई है वह भी भ्रामक लोग है. पूरे जिले में बीस हजार से ज्यादा नाम काटे गए हैं और विधानसभा क्षेत्र सिंहावल में पांच हजार से ज्यादा लोग हैं. यह भी एक जानकारी दी गई है कि जिन्दा लोगों के नाम नहीं काटे गए हैं, उजागिर कोल पुत्र निजकउ कोल, दूसरा हिंछा कुशवाह पिता नर्मदा कुशवाह ग्राम गुढ़ाही यह हम उदाहरण स्वरूप बता रहे हैं ऐसे कई लेागों के नाम काटे गए हैं, माननीय उपाध्यक्ष महोदय जो जिन्दा है. इसके खिलाफ पचास किलोमीटर तहसील मुख्यालय से लेकर जिला मुख्यालय तक बरसते पानी में पदयात्रा भी की थी जिला प्रशासन के खिलाफ, प्रदेश सरकार के खिलाफ. माननीय उपाध्यक्ष महोदय मेरा कोई हंगामा खड़ा करने का मकसद नहीं है, मेरा मतलब इतना निवेदन है कि जो लोग पात्र है और जिनका नाम कट गया है या जो अभी विधवा, विकलांग, निराश्रित ऐसे लोग हैं जो वंचित है, जिनको सुविधा नहीं मिल पा रही है, खाद्यान की, या पेंशन की क्या पंचायतवार शिविर लगाकर इस तरह की व्यवस्था करेंगे.
पंचायत एवं ग्रामीम विकास (श्री गोपाल भार्गव) – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, 2002-03 में जब गरीबी रेखा का सर्वे हुआ था, उपाध्यक्ष महोदय, उस समय 54,68,000 परिवार बीपीएल सूची में थे, अभी अप्रैल 2016 में 61,82000 परिवार हुए और जब यह ग्रामोदय से भारत उदय अभियान पूरे प्रदेश में चला तो 65 लाख 8 हजार परिवार इसमें और जुड़ गए टोटल संख्या इसमें 54 लाख से बढ़कर 65 लाख 8 हजार हो गई है इसका अर्थ यह है लगभग 11 लाख से ज्यादा व्यक्ति इसमें सम्मिलित हुए. सीधी जिले में भी इसी तरह से 2002-03 में जो आंकड़ा था उससे लगभग दस प्रतिशत लोगों की वृद्धि हुई है. वर्तमान में लगभग 1 लाख 39 हजार लोग इससे लाभान्वित हो रहे हैं. उपाध्यक्ष महोदय, समय समय पर जैसे व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है या व्यक्ति कहीं अन्य स्थान पर रहने लगते हैं, सालों के लिए रोजगार के लिए चले जाते हैं तो स्वाभाविक रूप से वह संख्या कम हो जाती है, यह बड़ा विस्तारित सर्वे हुआ और ग्राम सभा में पूरे नाम पढ़कर सुनाये गये और सुनाने के बाद यह तय हुआ कि यह लोग नहीं है, सर्वसम्मति से विस्तारित सभाएं हुई है, तीन तीन ग्राम सभाएं हुई है. मैं मानकर चलता हूं कि इससे ज्यादा लोकतांत्रिक तरीका और ज्यादा बीपीएल सूची के निर्धारण हेतु नहीं हो सकता है.
उपाध्यक्ष महोदय, जहां तक मेरा मानना है, हालांकि बीपीएल सूची के जो मापदंड है, आपको भी जानकारी हो, इसमें जो 14 अंक दिए जाते हैं, जिनके आधार पर बीपीएल के अंतर्गत आदमी आता है या नहीं आता है वह है- परिवार द्वारा धारित भूमि शून्य होना चाहिए, निरंक होना चाहिए, मकान का प्रकार कोई मकान नहीं होना चाहिए, आवासहीन होना चाहिए, प्रतिव्यक्ति पहनने के कपड़ों की उपलब्धता सिर्फ दो जोड़ी कपड़ा होना चाहिए, खाद्य सुरक्षा में वर्ष के अधिकांश समय प्रतिदिन एक समय से भी कम भोजन उपलब्ध होना चाहिए, खुले में शौच होना चाहिए, उपभोक्ता वस्तुओं का स्वामित्व क्या निर्धारित, निम्नांकित धारित है यह निरंक होना चाहिए, उपभोक्ता वस्तु कोई होना नहीं चाहिए, सर्वाधिक पढ़े लिखे व्यक्ति का शैक्षणिक स्तर अशिक्षित होना चाहिए, पारिवारिक श्रम का स्तर बंधुआ मजदूर होना चाहिए, जीवीकोपार्जन के साधन आकस्मिक मजदूरी होना चाहिए, बच्चों का स्तर पांच से चौदह वर्ष का स्कूल न जाकर के काम पर जाना चाहिए, देनदारी का प्रकार अनौपचारिक .
देनदारी का प्रकार - अनौपचारिक स्त्रोतों से दैनिक उपयोग के लिये देनदारी होना चाहिये, परिवार के पलायन का कारण आकस्मिक कार्य होना चाहिये. सहायता की प्राथमिकता मजदूरी आधारित रोजगार लक्षित सार्वजनिक प्रणाली होना चाहिये. उपाध्यक्ष महोदय, आप भी भलीभांति जानते हैं और सभी माननीय सदस्य भी जानते हैं यह जो 64 लाख से अधिक परिवार वर्तमान में काम कर रहे हैं. हम यह जानते हैं कि सरकार ने पूरी उदारता के साथ में दुबारा सर्वे करके यह किया है और मैं बड़ी ईमानदारी के साथ में कहना चाहता हूं कि जो बीपीएल के मापदण्ड भारत सरकार ने निर्धारित किये हैं, जो अंक निर्धारित किये हैं इसके बाद भी हमने अपने अधिकारियों और कर्मचारियों से खुले मन से कहा है कि कोई भी पात्र व्यक्ति इसके अधिकार से वंचित नहीं रहना चाहिये. इसके बाद भी यदि कोई वंचित रहा है तो इसके लिये भी व्यवस्था है तहसीलदार, एसडीएम, एडिशनल कलेक्टर, कलेक्टर उसकी सुनवाई कर सकते हैं और 45 दिन में उनको निर्णय करना पड़ेगा और वो पात्रता में आ जायेंगे.
उपाध्यक्ष महोदय- माननीय मंत्री जी, आप अगर यह मापदण्ड कड़ाई से लागू करायेंगे तो 25% लोग ही बीपीएल सूची में बचेंगे, लेकिन माननीय सदस्य का जो प्रश्न है , दो व्यक्तियों के माननीय सदस्य ने नाम लिये हैं, जिनके बारे में सदस्य का कहना है कि वे जीवित हैं और मृत बताकर के उनका नाम बीपीएल सूची से काटा गया है तो एक तो आप उसकी जांच करा लें. (माननीय सदस्य श्री कमलेश्वर पटेल से) आप मंत्री जी को नाम दे दें.
श्री गोपाल भार्गव -- उपाध्यक्ष महोदय, हम उनकी जांच करा लेंगे और उसके अतिरिक्त और भी ऐसे कोई व्यक्ति होंगे और यह सिर्फ इसी विधानसभा क्षेत्र या सीधी जिले में नहीं बल्कि राज्य के किसी भी 230 विधानसभा क्षेत्रों में कहीं पर भी इस प्रकार की शिकायत होगी तो यह कहीं कोई ऐसी बात नहीं है कि यह लक्ष्मण रेखा हो जिसको हम पार नहीं कर सकते हों, हम इसके लिये निश्चित रूप से यदि कोई त्रुटि हुई होगी या फिर गलत हो गया होगा तो हम उसको संशोधित कर देंगे.
श्री कमलेश्वर पटेल -- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मंत्री जी ने आश्वासन दिया जबाव में भी आश्वासन दिया है उसके संदर्भ में कहना चाहता हूं कि हम उन निरीह लोगों की बात कर रहे हैं जिनके पास में इतना किराया भी नहीं है कि वह वकील करके एसडीएम कार्यालय में जाये, फिर एडीएम के यहां पर अपील करें इसीलिये मैं कह रहा हूं अगर आप पंचायतवार व्यवस्था बना देंगे तो हम समझते हैं कि उनको न्याय मिल जायेगा. आप अपात्र लोगों के नाम काटिये, पर पात्र लोगों के नाम मत काटिये. आपसे यही निवेदन है कि आप पंचायतवार शिविर लगवा दीजिये. प्रदेश में 50 लाख से ज्यादा लोगों के नाम कटे हैं.
श्री गोपाल भार्गव -- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय सदस्य को यह अवगत कराना चाहता हूं कि जो देढ़ महीने तक हमारा ग्रामोदय से भारत उदय अभियान चला, एक नोडल अधिकारी बाहर से आया उसकी निगरानी में 3 ग्राम सभायें गांव की आयोजित की गईं, इसके बाद भी यदि कोई त्रुटि रही है, कहीं कोई कमी रही है तो हम देखेंगे क्योंकि हर गांव में फिर से जाना, मैं मानकर के चलता हूं कि किसी अधिकारी के लिये 52 हजार गांव में जाना संभव नहीं है और इस कारण से संबंधित अपील करें, हम इसके लिये और उदारतापूर्वक निश्चित रूप से व्यवस्था करेंगे कि कोई भी पात्र अपने अधिकार से वंचित न रहे.
उपाध्यक्ष महोदय --देखिये इसकी एक प्रक्रिया है.
श्री कमलेश्वर पटेल-- वह प्रक्रिया मुझे मालूम है. इसीलिये मैंने मंत्री जी से निवेदन किया है कि थोडी सी सहृदयता दिखायें और ऐसी व्यवस्था बना दें क्योंकि मंत्री जी के पास में सारे अधिकार हैं. उपाध्यक्ष महोदय, बहुत सारे ऐसे लोग है जिनके गरीबी रेखा में नाम नहीं है, विधवा, विकलांग,निराश्रित और आज भी उनको योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है, खाद्यान नहीं मिल रहा है अगर मंत्री जी ऐसी व्यवस्था बना दें तो जो लोग रह गये हैं उनको भी लाभ मिल जायेगा.
उपाध्यक्ष महोदय-- कमलेश्वर जी, ऐसे लोगों की आप अपील करवायें, मंत्री जी ने आश्वासन दिया है कि संबंधित अधिकारी जो सुनवाई करते हैं, उदारता से वे उस पर विचार करेंगे और पात्र लोगों के नाम जोड़ें जायेंगे.
श्री कमलेश्वर पटेल- उपाध्यक्ष महोदय, ग्रामोदय से भारत उदय में मर्यादा अभियान के तहत लाखों आवेदन हर पंचायत से 300-400 आवेदन जमा हैं, उनका आज तक कोई निराकरण नहीं हुआ है. निराकरण किनका होता है जिनके पास में नगद नारायण होता है, 4-5 हजार रूपये हों तो उनका नाम जुड़ जाता है.
श्री गोपाल भार्गव -- उपाध्यक्ष महोदय, मैं इतना कह सकता हूं कि 3 ग्राम सभायें हुई हैं इसमें कोई पैसे का सवाल नहीं है, एक बहुत पारदर्शी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत रिमोट एरिया तक और सूक्ष्म स्तर तक हमने इसका प्रयोग किया है और मैं कहना चाहता हूं कि आप(श्री कमलेश्वर पटेल) जब पद यात्रा कर सकते हैं तो आप नायब तहसीलदार और तहसीलदार के यहां नहीं जा सकते हैं, आप कर सकते हैं.
श्री कमलेश्वर पटेल -- उपाध्यक्ष महोदय, कलेक्टर के यहां गये थे, एसडीएम के यहां गये थे.
श्री गोपाल भार्गव -- उपाध्यक्ष महोदय, एक संशोधित आदेश हम फिर से आज भेज देते हैं कि कोई भी व्यक्ति जो पात्र हो वंचित नहीं रह जाये, नीचले स्तर के अधिकारी को भी हम अधिकार दे देंगे इसकी सुनवाई का.
उपाध्यक्ष महोदय-- कमलेश्वर जी आपकी समस्या का निराकरण हो गया.
श्री कमलेश्वर पटेल --उपाध्यक्ष महोदय, इसके लिये मंत्री जी को धन्यवाद.
श्री जयवर्द्धन सिंह -- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, ऐसा ही मुद्दा बीपीएल सूची के संबंध में इसी महीने आरटीआई इन्क्वायरी के माध्यम से आया था जहां पर कि 8 लाख से अधिक नाम नगरीय क्षेत्र में काटे गये थे क्योंकि उन लोगों के पास में आधार कार्ड नहीं था.जबकि सर्वोच्च न्यायालय का आदेश है कि आधार कार्ड को आधार बनाकर यदि किसी हितग्राही के पास पहचान पत्र नहीं है तो भी अगर वह बीपीएल लिस्ट में है तो उसको पूरा अधिकार मिलना चाहिये, लेकिन वह नाम काटे गये हैं और यह मुद्दा पिछले हफ्ते विधान सभा में उठा भी था, लेकिन अभी भी उसका कोई निराकरण नहीं हुआ है. हर शहर में, हर नगर पंचायत में, हर नगर पालिका में हजारों नाम काटे गये हैं, सिर्फ इसलिये क्योंकि उनके पास आधार कार्ड नहीं है. इसके बारे में मैं मानता हूं क्योंकि यह मामला मंत्री जी का है तो मंत्री जी उत्तर दें और कब तक वह 8 लाख नाम वापस जुड़ जायेंगे.
श्री गोपाल भार्गव-- उपाध्यक्ष महोदय, जैसा कि मैंने कहा कि इतनी बड़ी संख्या इन 10 वर्षों में बढ़ गई. 11 लाख परिवार और ज्यादा बढ़ गये.
श्री जयवर्द्धन सिंह-- उपाध्यक्ष महोदय, यह शहरी क्षेत्र का मुद्दा है.
श्री कमलेश्वर पटेल-- बढ़ता तो वहां हैं जहां चुनाव होता है.
उपाध्यक्ष महोदय-- बैठ जाइये कमलेश्वर पटेल जी, मंत्री जी इनका कहना यह है कि आधार कार्ड न होने के कारण नाम जो कटे हैं तो क्या यह जायज है ?
श्री गोपाल भार्गव-- उपाध्यक्ष महोदय, यह बात सही है यह व्यवस्था दी थी कि आधार कार्ड के साथ में इनका परिचय पत्र लिंक किया जायेगा क्योंकि पारदर्शिता बहुत आवश्यक है और जिनके आधार कार्ड नहीं बने हैं वह आधार कार्ड बनवा लें, उसके बाद में नाम जुड़ जायेगा.
श्री जयवर्द्धन सिंह-- जिनके नाम काटे गये हैं उनको पूरी सुविधा बीपीएल की अभी नहीं मिल रही है, क्योंकि जो लिंक सिस्टम है त्रिपल एसएम का उसमें आधार कार्ड न होने के कारण उनको सुविधा नहीं मिल रही है तो उनका क्या होगा.
श्री गोपाल भार्गव-- मैं समझता हूं कि यदि आधार कार्ड बनवा लेंगे लोग तो उन्हें ही भविष्य में सुविधा होगी, मैं मानकर चलता हूं कि यह हमें बनवाना चाहिये, उससे आगे जाकर सभी को लाभ होगा और यदि हम आधार कार्ड के बगैर बनवाये ये सुविधा लेंगे, जैसे शासकीय राशन है और भी अन्य योजनायें हैं उनका बहुत बड़ा दुरूपयोग होता है. हमारे देश की पूरी स्टेटिक्स और सांख्यिकी उसी आधार पर चलती है और वह पूरी की पूरी धीरे-धीरे फेल हो जायेगी.
श्री जयवर्द्धन सिंह-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, उनका अधिकार है और वैसे भी बीपीएल हितग्राहियों को तो ..
उपाध्यक्ष महोदय-- नहीं तो बनवा लें.
श्री जयवर्द्धन सिंह-- अतिरिक्त पहचान पत्र जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी है कि कोई भी बीपीएल हितग्राही को आधार कार्ड प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है तो फिर एम.पी. गवर्नमेंट ऐसा क्यों कर रही है, जबकि बीपीएल हितग्राही के पास कार्ड तो वैसे भी होता है तो वही काफी होना चाहिये.
उपाध्यक्ष महोदय-- माननीय मंत्री जी, सर्वोच्च न्यायालय का ऐसा कोई फैसला है, क्या.
श्री गोपाल भार्गव-- सर्वोच्च न्यायालय का 2 वर्ष पहले आदेश हुआ था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी नहीं कहा है कि आप बगैर आधार कार्ड के पूरा देश चला सकते हैं.
श्री जयवर्द्धन सिंह-- बीपीएल हितग्राही को पूरी सुविधा मिलना चाहिये, इतना तो कहा है.
श्री गोपाल भार्गव-- उपाध्यक्ष महोदय, विचार कर लेंगे.
श्री मुकेश नायक (पवई)-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने प्रश्न के उत्तर में बताया कि वर्तमान में 65 लाख 8 हजार बीपीएल कार्डधारी मध्यप्रदेश में हैं और जो गरीबी के मापदण्ड बताये उसमें यह बताया, खुले में शौच करना चाहिये, दो जोड़ी कपड़े होना चाहिये, एक समय भोजन करना चाहिये, घर नहीं होना चाहिये और अंत में उन्होंने यह कहा कि हितग्राही को बंधुआ मजदूर होना चाहिये. मैं आपके माध्यम से मंत्री जी से यह पूछना चाहता हूं कि बंधुआ मजदूरी के खिलाफ राज्य शासन का भी कानून है और केन्द्र शासन का भी कानून है और मंत्री जी अपने उत्तर में जो यह कह रहे हैं कि बंधुआ मजदूर होना चाहिये, सबसे पहले तो यह पूरे कानून का एक्ट का वायलेशन है स्टेट के और सेंट्रल गवर्नमेंट के कानून का, उनका उत्तर है. दूसरी बात मैं उनसे यह पूछना चाहता हूं कि 65 लाख 8 हजार में से कितने हितग्राही हैं जो बंधुआ मजदूर हैं, कितने हितग्राही हैं जिनके पास केवल 2 जोड़ी कपड़े हैं, कितने हितग्राही हैं जो खुले में शौच करते हैं और कितने हितग्राही हैं जो केवल एक समय भोजन करते हैं और कितने हितग्राही हैं जिनके पास मकान नहीं है.
उपाध्यक्ष महोदय-- नायक जी, इतनी विस्तृत जानकारी इस समय नहीं दी जा सकती.
श्री मुकेश नायक-- तो केवल एक प्रश्न का उत्तर दे दें. माननीय मंत्री जी यह बताने की कृपा करें कि कितने बंधुआ मजदूर हैं और बंधुआ मजदूरी प्रथा को इन्होंने मध्यप्रदेश में चालू रखा है क्या और साढ़े सात करोड़ लोगों में से 65 लाख 8 हजार लोग अगर गरीबी रेखा में हैं तो शिवराज सिंह जी की सरकार का मध्यप्रदेश में क्या हाल है आप स्वयं जान सकते हैं.
श्री गोपाल भार्गव - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, नायक जी कुतर्क कर रहे हैं. कुतर्क इस तरह से कर रहे हैं कि भारत सरकार के कटआफ मार्क्स जो हैं उसके स्थापित नियम हैं. हमारे लिये सर्वे हुआ उसके आधार पर बी.पी.एल. के मानक तय किये गये. यदि जो निर्धारित अयोग्यताएं या फिर जो मार्क्स निर्धारित हैं. एक-एक नंबर,तेरह-चौदह विषयों के लिये, यदि लोगों के नहीं होते हुए भी हम उनको बी.पी.एल. में शामिल कर रहे हैं, तो यह हमारी सरकारी की उदारता है. उसको धन्यवाद देने के बजाय उसको मजाक का विषय बना रहे हैं. आप क्या चाहते हैं क्या 65 लाख के लोगों के नाम काट दिये जायें, क्या विलोपित कर दिये जायें ?
श्री मुकेश नायक - यह तो उनका अधिकार है. यह तो उद्भूत होता है इस प्रश्न से. आप यह बता दीजिये कि मध्यप्रदेश में कितने बंधुआ मजदूर हैं ?
श्री गोपाल भार्गव - मैं श्रम विभाग में काम नहीं करता न उस विभाग का मंत्री हूं.
श्री शंकरलाल तिवारी - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, यह गाईड लाईन कांग्रेस के जमाने में केन्द्र सरकार से बनी है दूसरी बात कांग्रेस यह स्पष्ट कर दे कि वह कटवाना चाहती है या जुड़वाना चाहती है. एक कह रहा है काटो एक कह रहा जोड़ो.
उपाध्यक्ष महोदय - मैंने आपको अनुमति नहीं दी है. आप कृपया बैठ जायें.
(..व्यवधान..)
श्री मुकेश नायक - हम अपात्र लोगों के नाम कटवाना चाहते हैं और पात्र लोगों के नाम जुड़वाना चाहते हैं.
श्री कमलेश्वर पटेल - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने जो शौचालय का क्रायटीरिया बताया है. यह डंडे मारकर जो गरीबों के यहां शौचालय बनवा रहे हैं, अगर उनके यहां शौचालय बन गये तो एक भी गरीब गरीबी रेखा में नहीं रह जायेगा.
उपाध्यक्ष महोदय - बैठ जाईये.
श्री गोपाल भार्गव - यदि राज्य के 65 लाख बहुसंख्यक लोग आज भी वंचित हैं,आज भी लाचार हैं, आज भी वे दो समय खाना खाने की स्थिति में नहीं हैं, कमाने की स्थिति में नहीं है तो हम उनके लिये सुविधा दे रहे हैं और सदस्य विरोध कर रहे हैं. इसका अर्थ यह है कि आप बाहर मैसेज देना चाहते हैं कि उनके नाम कटवा दो.
श्री कमलेश्वर पटेल - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश में हजारों,लाखों की संख्या में नाम कट रहे हैं. हम लोग क्या चाह रहे हैं सरकार काट रही है.
उपाध्यक्ष महोदय - बैठ जायें.
श्री शंकरलाल तिवारी - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, उदारता से जो दिया जा रहा है उसका मैं स्वागत करता हूं परंतु इस गाईड लाईन में संशोधन की बात जो वास्तविक धरातल की हो वह होनी चाहिये. गाईड लाईन और गरीबी रेखा में इतना फासला नहीं हो कि हम सिर्फ उदारता दिखाएं.
उपाध्यक्ष महोदय - यह गलत है. आप बैठें. नहीं तो हम कार्यवाही से निकाल देंगे. आप सुनते नहीं हैं. जिसको जो समझना हो सब समझ गये हैं.जिसको जिस रंग से देखना है सब इस चीज को देख चुके हैं. अब इस बात का पटाक्षेप करें.
श्री मुकेश नायक - पैंसठ लाख लोग यह कह रहे हैं कि वे खाना खाने की स्थिति में नहीं है तो इनकी सरकार 13 साल से मध्यप्रदेश में क्या कर रही है यह बताएं.
श्री गोपाल भार्गव - यह इस तरह से प्रश्न और प्रतिप्रश्न करके आप लोग क्या राज्य के लाखों लोगों का अहित करना चाहते हैं ? यदि करना चाहते हो तो आप बताएं. यह इस बात को उद्भूत करता है कि आप उनका नाम कटवाना चाहते हैं क्योंकि भारत सरकार इसकी अनुमति नहीं देती.
श्री मुकेश नायक - हम चाहते हैं कि अपात्र लोगों के नाम काटें और पात्र लोगों के नाम जोड़ें.ज्यादातर अपात्र लोगों के राशनकार्ड बने हुए हैं और पात्र लोगों के नाम नहीं जोड़े गये हैं.
(..व्यवधान..)
उपाध्यक्ष महोदय - अब किसी सदस्य का नहीं लिखा जायेगा. प्रतिवेदनों की प्रस्तुति. सुश्री मीना सिंह माण्डवे...
01.18 बजे प्रतिवेदनों की प्रस्तुति
(2) शासकीय आश्वासनों संबंधी समिति का सत्रहवां, अठारहवां एवं उन्नीसवां प्रतिवेदन
डॉ. राजेंद्र पाण्डेय, सभापति - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं शासकीय आश्वासनों संबंधी समिति का सत्रहवां, अठारहवां एवं उन्नीसवां प्रतिवेदन प्रस्तुत करता हूं. साथ ही सदन के मध्य अपनी और समिति की भावना भी व्यक्त करते हुए समिति के सदस्यों और सचिवालय का आभार व्यक्त करना चाहता हूं. चूंकि लगातार आपकी सजगता और सदस्यों की सक्रियता के कारण आश्वासन काफी बढ़े और समिति ने काफी तेजी के साथ काम किया और उन आश्वासनों का निराकरण भी किया. प्रतिवेदन प्रस्तुत है. आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद.
1.21बजे याचिकाओं की प्रस्तुति
उपाध्यक्ष महोदय - आज की कार्यसूची में सम्मिलित सभी याचिकाएं प्रस्तुत की हुई मानी जावें.
शासकीय विधि विषयक कार्य
उपाध्यक्ष महोदय - आज की कार्यसूची के पद 6 के अंतर्गत शासकीय विधि विषयक कार्य के पद (1) एवं (2) में उल्लेखित विधेयकों की महत्ता एवं उपादेयता को दृष्टिगगत रखते हुए, मैंने स्थायी आदेश की कंडिका 24 में विनिर्दिष्ट, अपेक्षाओं को शिथिल कर आज पुर:स्थापन हेतु प्रस्ताव प्रस्तुत करने की अनुमति प्रदान की है.
मैं समझता हूं कि सदन इससे सहमत है.
सदन द्वारा सहमति प्रदान की गई.
(1) मध्यप्रदेश नगरपालिक विधि( द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2016 (क्रमांक 22 सन् 2016)
नगरीय विकास एवं आवास मंत्री (श्रीमती माया सिंह) - उपाध्यक्ष महोदय, मैं मध्यप्रदेश नगरपालिक विधि (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2016 के पुर:स्थापन की अनुमति चाहती हूं.
उपाध्यक्ष महोदय - प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश नगरपालिक विधि (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2016 के पुर:स्थापन की अनुमति दी जाए.
अनुमति प्रदान की गई.
श्रीमती माया सिंह - उपाध्यक्ष महोदय, मैं मध्यप्रदेश नगरपालिक विधि (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2016 के पुर:स्थापन करती हूं.
(2) मध्यप्रदेश भूमिस्वामी एवं बटाईदार के हितों का संरक्षण विधेयक, 2016(क्रमांक 23 सन् 2016)
राजस्व मंत्री (श्री उमांशकर गुप्ता) - उपाध्यक्ष महोदय, मैं मध्यप्रदेश भूमिस्वामी एवं बटाईदार के हितों का संरक्षण विधेयक, 2016 के पुर:स्थापन की अनुमति चाहता हूं.
उपाध्यक्ष महोदय - प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश भूमिस्वामी एवं बटाईदार के हितों का संरक्षण विधेयक, 2016 के पुर:स्थापन की अनुमति दी जाए.
अनुमति प्रदान की गई.
श्री उमाशंकर गुप्ता - उपाध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश भूमिस्वामी एवं बटाईदार के हितों का संरक्षण विधेयक, 2016 का पुर:स्थापन करता हूं.
1.23 बजे वर्ष 2006-2007 के आधिक्य व्यय की अनुदान मांगों पर मतदान
वित्तमंत्री (श्री जयंत मलैया) - उपाध्यक्ष महोदय, मैं राज्यपाल महोदय की सिफारिश के अनुसार प्रस्ताव करता हूं कि :-
"दिनांक 31 मार्च, 2007 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में अनुदान संख्या 24 एवं 67 के लिये स्वीकृत राशि के अतिरिक्त किये गये समस्त आधिक्य व्यय की पूर्ति के निमित्त राज्यपाल महोदय को तीस करोड़ सत्ताईस लाख, नौ हजार, छ: सौ सतानवे रूपये की राशि दिया जाना प्राधिकृत किया जाय. "
उपाध्यक्ष महोदय - प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ.
उपाध्यक्ष महोदय - प्रश्न यह है कि -
"दिनांक 31 मार्च, 2007 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में अनुदान संख्या 24 एवं 67 के लिये स्वीकृत राशि के अतिरिक्त किये गये समस्त आधिक्य व्यय की पूर्ति के निमित्त राज्यपाल महोदय को तीस करोड़ सत्ताईस लाख, नौ हजार, छ: सौ सतानवे रूपये की राशि दिया जाना प्राधिकृत किया जाय. "
आधिक्य मांगो का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष (श्री बाला बच्चन) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से जानना चाहता हूं कि एक तो यह जो विधेयक है, जहां तक मैंने समझा है यह विनियोग है इसका प्रस्तुतीकरण ही गलत है. वर्ष 2006-07 के अनुपूरक में आप इसको क्यों नहीं लाये.
श्री जयंत मलैया - आप भी जानते हैं जब यह लोक लेखा समिति जिसके अध्यक्ष आदरणीय महेंद्र सिंह कालूखेड़ा हैं, उनका 20 वां प्रतिवेदन अभी आयेगा उसके बाद ही तो इसके ऊपर बात आयेगी.
श्री बाला बच्चन - आप मेरी पूरी बात सुन लें.
उपाध्यक्ष महोदय - उनकी पूरी बात सुन लें.
श्री बाला बच्चन - दूसरा एक डिटेल आना चाहिए. डिटेल इसका कुछ भी नहीं है कि दस साल बाद जो राशि सदन में स्वीकृत की है. दस साल बाद में आप उसमें तीस करोड़ रूपये और खर्च करना जो बताते हैं. माननीय मंत्री जी मेरे पास मध्यप्रदेश विनियोग क्रमांक 2016 है. आपने कार्यसूची में 30 करोड़ रुपये का आंकड़ा दिया है. मेरे पास जो विधेयक है उसमें 31 मार्च 2007 को समाप्त हुए वर्ष के कतिपय आधिक्य व्यय की पूर्ति करने के लिए मध्यप्रदेश राज्य की संचित निधि में से रुपये 35 करोड़ 99 लाख 34 हजार 526 की राशि दी जाये, यह आंकडा है. मेरे हिसाब से सूची में भी गलत प्रिंट है. इन दोनों में से सच क्या है? सूची में जो प्रिंट हुआ है वह जो अभी आपने पढ़ा वह है तो इतना बड़ा अन्तर सूची में और विधेयक में है तो इन दोनों में से सच क्या है? 35 करोड़ रुपये या 30 करोड़ रुपये है?
श्री जयन्त मलैया-- 35 करोड़ 99 लाख रुपये.
श्री बाला बच्चन-- आपने अभी सूची में से 30 करोड़ रुपये पढ़ा. कितनी बड़ी चूक है.
उपाध्यक्ष महोदय--माननीय मंत्रीजी आप इकट्ठा जवाब दे देंगे.
श्री बाला बच्चन-- लेकिन कितनी बड़ी चूक है. माननीय मंत्रीजी मद 5 में 35 करोड़ रुपये आना चाहिए उसकी जगह सूची में 30 करोड़ लिखा है यह बहुत बड़ी चूक है. आदरणीय रावत जी और मैंने इसको देखा. मैं भी इसको थोड़ा कन्फर्म करने में लगा था. वर्ष 2006-07 के अनुपूरक के बजाय अभी आपने आधिक्य व्यय लाना बताया है. सरकार के संज्ञान में 10 साल बाद क्यों आया है? मैं यह भी जानना चाहता हूं कि सदन में जो राशि स्वीकृत होती है और उससे ज्यादा खर्च हो गया. आज के दोनों जो विधेयक हैं उसमें 160 करोड़ रुपये का अंतर है. एक राशि वर्ष 2006-07 की है दूसरी 2010 की है यानि 10 साल और 7 साल पहले जो सदन ने स्वीकृति दी थी उससे लगभग 160 करोड़ रुपये जो अधिक खर्च हुआ उसकी स्वीकृति अभी मांग रहे हैं. उपाध्यक्ष महोदय, मैंने गलत इसलिए बोला कि इसका भी तरीका होता है. बजट बनता है उसकी बुक छपती है जिसको हम पढ़ते हैं उसमें मुख्य शीर्ष में जो मांगे होती हैं उन मांगों में जिन जिन मदों में राशियों का उल्लेख किया जाता है. आप जो राशि की स्वीकृति लेना चाह रहे हैं उसको आपने कहां कहां और कैसे कैसे खर्च किया है वह बतायें. दूसरे विधेयक की बात मैं बाद में करुंगा. आपने लोक निर्माण सड़क तथा पुल पर 2 करोड़ 48 लाख 32 हजार 322 रुपये खर्च करना बताया है. दूसरा, आप इसको तो भूल गये कि लोक निर्माण सड़क तथा पुल के पूंजीगत पर 5 करोड़ 72 लाख 24 हजार 829 रुपये को तो आपने सूची में से मिस कर दिया है आपने उसको माना भी है कि 30 करोड़ रुपये के बजाय 35 करोड़ रुपया होना चाहिए. अनुदान संख्या 24 और 67 राजस्व में 27 करोड़ 78 लाख 77 हजार 375 रुपये का है. मैं इसका डिटेल जानना चाहता हूं कि किस मांग संख्या के किस मद के अंतर्गत आपको खर्च करना था वह आपने सिर्फ ऐसा ही बना दिया है. मेरे हिसाब से गलत प्रस्तुतीकरण है. आप 10 साल और 7 साल बाद विधानसभा में ला रहे हैं और आपने 160 करोड़ रुपये खर्च कर डाले उसकी जानकारी आप ठीक ढंग से बनाकर नहीं ला रहे हैं. कार्यसूची में आप 30 करोड़ रुपये लिखते हैं उसके बाद विधेयक में 35 करोड़ रुपये का उल्लेख है. मंत्रीजी मैं आपसे आग्रह करना चाहता हूं कि इतने वरिष्ठ मंत्री से इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई है. सदन में जो बजट पास होता है. मैं समझता हूं कि सदन का भी यह खुल्लमखुल्ला अपमान है. 10 साल बाद आप 35 करोड़ रुपये की राशि लेना और दूसरे विनियोग विधेयक में 123 करोड़ रुपये लेंगे. अगर इसको देखकर और व्यवस्थित करके लायेंगे तो मैं समझता हूं कि ज्यादा ठीक है. इसको थोड़ी गंभीरता से सरकार और माननीय मंत्रीजी लेंगे तो ज्यादा बेहतर होगा. मैं समझता हूं कि आपको भी इसमें व्यवस्था देना चाहिए. मंत्रीजी ऐसा होना नहीं चाहिए.
श्री रामनिवास रावत--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्रीजी द्वारा अभी अनुपूरक अनुमान और विनियोग विधेयक पारित कराया. राज्य के विकास के लिए अभी राशि दी गई. अब राशि राज्य के विकास के लिए दी या काहे के लिए दी यह तो माननीय मंत्रीजी बता सकते हैं. अभी आप अधिक व्यय की पूर्ति के लिए सदन से राशि मांग रहे हैं.
अध्यक्षीय घोषणा
सदन के समय में वृद्धि विषयक.
उपाध्यक्ष महोदय-- कार्यसूची के पद 10(1) तक की कार्यवाही पूर्ण होने तक सदन के समय में वृद्धि की जाये, मैं समझता हूं सदन इससे सहमत है.
सदन द्वारा सहमति प्रदान की गई.
श्री रामनिवास रावत - उपाध्यक्ष महोदय, लंच कर दें इसको बाद में ले लें.
उपाध्यक्ष महोदय - नहीं, थोड़ा-सा ही बचा है.
श्री रामनिवास रावत - विद्यासागर जी भी आने वाले हैं. इसमें अभी एक और है, दोनों विनियोग विधेयक साथ में प्रस्तुत नहीं किये हैं, देखा जाय तो अभी एक ही प्रस्तुत किया है.
उपाध्यक्ष महोदय - आप संक्षेप में बात कह लें, मुख्य बात श्री बाला बच्चन जी ने कह दी है, बात रिपीट न करें.
श्री रामनिवास रावत - आधिक्य व्यय जो हुआ है, आप बजट प्रस्तुत करते हैं, बजट अनुमान लगाते हैं, बजट पारित कराते हैं.
उपाध्यक्ष महोदय - मेरी राय है कि दूसरे पर भी कह लें क्योंकि वही बात आप दूसरे में भी कहेंगे.
श्री रामनिवास रावत - नहीं, दूसरा अलग है. जो आधिक्य व्यय की स्थिति है, यह स्थिति क्यों बनी? आपने विभागों के नाम दिये हैं, जबकि स्थिति यह होना चाहिए थी कि लोक लेखा समिति की रिपोर्ट के साथ या आप अपनी रिपोर्ट के साथ यह प्रस्तुत करते कि मध्यप्रदेश के किस जिले के किस पुल और किस सड़क में ज्यादा राशि व्यय की गई, किन कारणों से की गई, क्यों राशि अधिक व्यय हुई, इसका अनुमान क्यों नहीं लगाया जा सका? इसका पहले अनुमान लगाना चाहिए था. वर्ष 2007 की राशि अधिक व्यय होने के बाद आज आप वह राशि मांग रहे हैं, 35 करोड़ रुपए की राशि मांग रहे हैं. आपको वर्ष 2008 मिला, वर्ष 2009 मिला, अभी तो वर्ष 2016 है. उपाध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी हंस रहे हैं.
उपाध्यक्ष महोदय - माननीय मंत्री जी जवाब देंगे.
श्री रामनिवास रावत - हो सकता है कि कोई जरूरी नहीं है. चाहे जैसे खर्च करें, चाहे जैसे जब मांग लो, बहुमत है, हम विरोध करते रहें तो फर्क नहीं पड़ना. उपाध्यक्ष महोदय, हम चाहते हैं कि इस तरह का एक विवरण आधिक्य व्यय के संबंध में विधान सभा में प्रस्तुत होना चाहिए कि किस विभाग के किस मद में किस पर्टिक्युलर काम में अधिक व्यय हुआ, यह क्यों हुआ इसके लिए क्या कारण रहे, क्यों इसकी राशि बढ़ी, क्यों यह व्यय भार बढ़ा, किसके द्वारा अधिक व्यय किया गया, इसके लिए कौन उत्तरदायी है? इसके बाद राशि की मांग की जानी चाहिए, मेरा यह निवेदन है.
उपाध्यक्ष महोदय, उन्होंने इसी तरह से वर्ष 2009-10 का आधिक्य व्यय प्रस्तुत किया है, जबकि जो अधिक व्यय होता है, उसके वित्तीय वर्ष में तो अगले ही वित्तीय वर्ष में यह व्यवस्था होनी चाहिए कि अगले वित्तीय वर्ष में ही उस व्यय की प्रतिपूर्ति करें. 7-7-, 8-8 साल तक उस व्यय की प्रतिपूर्ति नहीं होना, कहीं न कहीं यह वित्तीय अनियमितता की ओर संकेत करता है. या तो किसी महालेखाकार ने पकड़ा हो, या लोक लेखा समिति ने पकड़ा हो, अगर नहीं पकड़ा होता तो आप इसकी भी पूर्ति नहीं कराते. यहां से अभी भी मांग नहीं करते. अभी तक जो राशि खर्च की है, वह किस मद की राशि थी? उसका आपने भुगतान तो कर दिया होगा, भुगतान तो अपेक्षित नहीं है? वह किस मद में किस अनुदान संख्या में से और किस राशि में से आपने व्यय किया? आप अब उसकी प्रतिपूर्ति कर रहे हैं. यह स्पष्ट बात आना चाहिए. इससे नहीं तो यह परिलक्षित होता है कि वित्तीय अनियमितता इसमें हुई है. वित्तीय अनियमितता नहीं हो, इसको रोकने के लिए ठोस नियम बनें ऐसी व्यवस्था हो, हम यह अपेक्षा करते हैं. माननीय वित्त मंत्री जी ने जो आधिक्य व्यय के लिए दो विनियोग विधेयक प्रस्तुत किये हैं, उनका मैं विरोध करता हूं. आप ना जाने किसके पापों की प्रतिपूर्ति कर रहे हैं?
वित्त मंत्री (श्री जयंत मलैया) - उपाध्यक्ष महोदय, महालेखाकार के अंकेक्षण दलों द्वारा विभिन्न शासकीय कार्यालयों का अंकेक्षण किया जाता है. अंकेक्षण की प्रक्रिया के अंतर्गत अंकेक्षण प्रतिवेदनों को समेकित कर पुस्तिका के स्वरूप में संविधान के अनुच्छेद 151 के अंतर्गत माननीय राज्यपाल को प्रस्तुत की जाकर विधान सभा के पटल पर प्रस्तुत की जाती है. उक्त प्रतिवेदनों पर लोक लेखा समिति में विचार किया जाता है. इस विचारण प्रक्रिया में विभागों से प्रश्नावली रूप में उत्तर प्राप्त किये जाने के बाद आवश्यकतानुसार विभागों के सचिवों से साक्ष्य प्राप्त किये जाते हैं. जब लोक लेखा समिति में विभागों के सचिवों से साक्ष्य प्राप्त किये जाते हैं, तब उसमें यह देखा जाता है कि यह नियमितीकरण करने योग्य है या नहीं है, किस कारण से यह हुआ है और इसके लिए क्या कोई दोषी है. अगर कोई व्यक्ति दोषी होता है तो उसके खिलाफ कार्यवाही की जाती है. मैं यहां निवेदन करना चाहता हूं कि संभवतः इन्होंने देखा नहीं है. यह लोक लेखा समिति का 20वां प्रतिवेदन है. इसमें लिखा है कि वर्ष 2006-07 में जिन्होंने अनियमितताएं की हैं, उनमें 41 लोगों के खिलाफ कार्यवाही की गई है और उसके अलावा कई लोगों का वेतन भी रोका गया है. यह पूरा का पूरा इसमें उल्लेख है. परन्तु अगर आप पढ़ेंगे नहीं तो आपको जानकारी नहीं मिलेगी. यह परम्परा केवल यहां ही नहीं है, यह सब जगह होता है.
श्री रामनिवास रावत - मैं यह कह रहा हूं कि इसमें उल्लेख होना चाहिए.
श्री जयंत मलैया - उपाध्यक्ष महोदय, मुझे नहीं पता, यह व्यवस्था तो सचिवालय की होगी कि किस चीज का उल्लेख होना चाहिए या किस चीज का उल्लेख नहीं होना चाहिए. मैं यहां यह और निवेदन करना चाहता हूं कि साथ-साथ इसके बारे में इसमें कारण भी रहता है कि यह आधिक्य क्यों हुआ. आधिक्य होने के कारण जो लोक लेखा समिति होती है उसके रिकमंडेशंस रहते हैं उन्हीं रिकमंडेशंस के आधार पर काम किया जाता है. अभी वर्ष 2009-10 का प्रतिवेदन आएगा तो उसमें चार विभाग आते हैं चारों विभागों में अब आप कहेंगे कि आधिक्य की स्थिति कैसे बनी. जब आप बजट बना रहे थे तब आपको उसी समय ख्याल रखना करना चाहिए था कि किस प्रकार का बजट होगा. अब 6वां वेतन आयोग आ गया जैसे अभी 7वां वेतन आयोग आ गया तो वह आधिक्य का व्यय तो होगा. उसको हमने उसमें लिया है. यह एक सामान्य सी प्रक्रिया है. अगर आप लोग पढ़ेगें, समझने की कोशिश करेंगे तो आप लोगों को समझ में आएगा.
मेरा निवेदन यह है कि यह हमेशा से रहा है. यह पुराने वर्षों के और यह तब होता है जब एजी साहब की टीप अलग-अलग विभागों में जाकर अंकेक्षण का कार्य करती है, रिपोर्ट सबमिट करती है और उसके बाद अपने ऑब्जर्वेशन के साथ सरकार को भेजती है. फिर यह लोक लेखा समिति में जाती है और लोक लेखा समिति के अध्यक्ष हमेशा प्रतिपक्ष के होते हैं. इस तरीके से कोई गड़बड़ी न हो सके इसीलिए लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाई गई है. इसमें अगर आपको कुछ और भी पूछना हो मुझसे, तो आप पूछ सकते हैं. दूसरी बात मैं बाला बच्चन जी की करूंगा. यह जो दो बातें आई थी 30 करोड़ 27 लाख 9 हजार 697 रूपये जो कि मैंने अपने इसमें उल्लेख किया है. इसका यह मतदत्त है और जो 35 करोड़ रूपये का है यह भारत अनुदान है जिसके ऊपर विधान सभा में मतदान नहीं होता है.
उपाध्यक्ष महोदय -- प्रश्न यह है कि दिनांक 31 मार्च 2007 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में अनुदान संख्या 24 एवं 67 के लिए स्वीकृत राशि के अतिरिक्त किए गए समस्त आधिक्य व्यय की पूर्ति के निमित्त राज्यपाल महोदय को 30 करोड़ 27 लाख 9 हजार 697 रूपये की राशि दिया जाना प्राधिकृत किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
1:37 बजे शासकीय विधि विषयक कार्य
मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक-4) विधेयक, 2016
वित्त मंत्री (श्री जयंत मलैया) -- उपाध्यक्ष महोदय, मैं मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक-4) विधेयक, 2016 का पुर:स्थापन करता हूँ. अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूँ कि मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक-4) विधेयक, 2016 पर विचार किया जाए.
उपाध्यक्ष महोदय -- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक-4) विधेयक, 2016 पर विचार किया जाय.
उपाध्यक्ष महोदय -- प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक-4) विधेयक, 2016 पर विचार किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
उपाध्यक्ष महोदय -- अब विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
उपाध्यक्ष महोदय -- प्रश्न यह है कि खण्ड 2, 3 तथा अनुसूची इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 2, 3 तथा अनुसूची इस विधेयक का अंग बने.
उपाध्यक्ष महोदय -- प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
उपाध्यक्ष महोदय -- प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
श्री जयंत मलैया -- उपाध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूँ कि मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक-4) विधेयक, 2016 पारित किया जाय.
उपाध्यक्ष महोदय -- प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक-4) विधेयक, 2016 पारित किया जाय.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक पारित हुआ.
वर्ष 2009-2010 के आधिक्य व्यय की अनुदान मांगों पर मतदान
श्री जयंत मलैया -- अध्यक्ष महोदय, मैं राज्यपाल महोदय की सिफारिश के अनुसार प्रस्ताव करता हूँ कि :-
“दिनांक 31 मार्च, 2010 को समाप्त हुये वित्तीय वर्ष में अनुदान संख्या 3, 27, 32 एवं 49 के लिये स्वीकृत राशि के अतिरिक्त किये गये समस्त आधिक्य व्यय की पूर्ति के निमित्त राज्यपाल महोदय को एक सौ तेईस करोड़, पचानवे लाख, बत्तीस हजार, पांच सौ चालीस रूपये की राशि दिया जाना प्राधिकृत किया जाय.”
प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ.
उपाध्यक्ष महोदय -- प्रश्न यह है कि “दिनांक 31 मार्च, 2010 को समाप्त हुये वित्तीय वर्ष में अनुदान संख्या 3, 27, 32 एवं 49 के लिये स्वीकृत राशि के अतिरिक्त किये गये समस्त आधिक्य व्यय की पूर्ति के निमित्त राज्यपाल महोदय को एक सौ तेईस करोड़, पचानवे लाख, बत्तीस हजार, पांच सौ चालीस रूपये की राशि दिया जाना प्राधिकृत किया जाय.”
आधिक्य मांगों का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
श्री बाला बच्चन -- उपाध्यक्ष महोदय हमें इस पर बोलना है.
उपाध्यक्ष महोदय -- हम तो आगे बढ़ गये हैं.
श्री बाला बच्चन -- हमें तो बोलना है इस पर हमें लगा कि आप हमें इस पर बोलने के लिए चांस देंगे. यह 123 करोड़ रूपये का मामला है हम इस पर दो मिनट बोलना चाहते हैं.
उपाध्यक्ष महोदय -- आप विनियोग विधेयक पर बोल लीजियेगा.
श्री बाला बच्चन -- ठीक है.
1.41 बजे. शासकीय विधि विषयक कार्य (क्रमश:)
मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक 5 ) विधेयक,2016(क्रमांक 20 सन् 2016)
वित्त मंत्री (श्री जयंत मलैया) -- उपाध्यक्ष महोदय मैं प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक 5) विधेयक, 2016 का पुर:स्थापन करता हूं.
उपाध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक 5)विधेयक,2016 पर विचार किया जाय.
उपाध्यक्ष महोदय -- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक 5 ) विधेयक 2016 पर विचार किया जाय.
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष ( श्री बाला बच्चन ) -- उपाध्यक्ष महोदय, जब मैं आग्रह कर रहा था कि इस पर बोलने के लिए दो मिनट का समय दिया जाय तो माननीय मंत्री जी कह रहे थे कि आगे बढ़ गये हैं. मैं उनको आपके माध्यम से बताना चाहता हूं, सरकार की जानकारी में लाना चाहता हूं. देखिये अरूणाचल प्रदेश में जो 7 माह आगे घड़ी का कांटा बढ़ चुका था सुप्रीम कोर्ट ने उसे पीछे कर दिया है.
उपाध्यक्ष महोदय -- बाला जी, सुप्रीम कोर्ट जो करता है वह करने दें. जो हमें करना है वह हम करेंगे. यह भी संवैधानिक संस्था है अलग से, कमतर नहीं है सुप्रीम कोर्ट से.
श्री बाला बच्चन -- आप बोल ही रहे थे उसी बीच में हमने अपनी बात रखी थी. घड़ी का कांटा भी पीछे किया जा सकता है. वह भाजपा ने शायद 7 माह तक सरकार चलायी थी उसके बाद में हमारी पार्टी सरकार में आयी है.
उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से यह जानना चाहता हूं कि पहले वाले विनियोग में यह निवेदन किया था कि आप पुलिस विभाग में पुलिस अनुदान की जो संख्या है उसमें लगभग आप 86 करोड़ रूपये ले रहे हैं. हम इसमें यह जानना चाहते हैं आधिक्य है 86 करोड़ रूपये का जो कि 6 साल पुरानी बात है, इसकी विस्तृत जानकारी तो देते कि कौन से मद में किस मांग संख्या के अनुसार इसे खर्च किया जाना था. क्या भवन बनाना है, कपड़े खरीदना है या पुलिस विभाग में किस काम के लिए लेना था ? ऐसे ही स्कूल शिक्षा के लिए 31 करो़ड़ 69 लाख के करीब है, इसमें भी मुझे यह जानना है कि किस काम में यह खर्च कर रहे हैं? जनसंपर्क विभाग के आपके लगभग 200 करोड़ रूपये है यह किसको भुगतान किया गया है? यह हम विस्तृत जानकारी में जानना चाहते थे और ऐसे ही अनुसूचित जाति कल्याण विभाग का 4 करोड़ 64 लाख 92 हजार 620 रूपये है.
उपाध्यक्ष महोदय, मेरी जानकारी में वर्ष 2013-14 में इसी अनुसूचित जाति विभाग के 600 करोड़ रूपये खर्च नहीं हो पाये थे और 2014-15 के 1300 करोड़ रूपये खर्च नहीं हो पाये थे. इस वर्ष का जो विनियोग आया है उसकी मैं बात कर रहा हूं कि इसकी विस्तृत रूप में जानकारी दे देंगे तो हम भी देख लें कि यह राशि का मिस यूज, भ्रष्टाचार या करप्शन कहां कहां हुआ है किस किस रूप में हुआ है और मध्यप्रदेश के खजाने की राशि जो मध्यप्रदेश की जनता की राशि है वह किस तरह से लुटायी गई है तो कम से कम इसकी विस्तृत जानकारी तो देना चाहिए. वित्त मंत्री जी यह जो 6 साल बाद 123 करोड़ रूपये की आधिक्य की राशि आप मांग रहे हैं, यह सदन का हक और अधिकार है, माननीय मंत्री जी इसकी विस्तृत जानकारी दिया करें, यह मेरा आग्रह है और हम इसका विरोध करते हैं.
श्री जयंत मलैया -- उपाध्यक्ष महोदय, मैं यहां पर निवेदन करना चाहता हूं कि पुलिस विभाग में जो 85 करोड़ 81 लाख रूपये का व्यय हुआ है. यह वेतन आदि के ऊपर है. मैं यहां पर निवेदन करना चाहता हूं कि इस वर्ष 6वां वेतन आयोग लगा था इसलिए इसकी वृद्धि हुई है. स्कूल शिक्षा विभाग में भी जो वृद्धि हुई है वह वेतन मद में हुई है. जनसंपर्क में जो वृद्धि हुई है वह भी वेतन मद की हुई है और जो अनुसूचित जाति कल्याण विभाग में हुई है वह भी वेतन मद की हुई है. मेरा निवेदन है कि नेता प्रतिपक्ष कम से कम लोक लेखा समिति का प्रतिवेदन देखकर तो आते, अगर वे देख लेते तो इनको सब कुछ मिल जाता. इसमें हरेक चीज का उल्लेख है. परंतु इन्होंने वह देखा ही नहीं और बताने लगे कि यह-यह चीजें होनी चाहिए. यह आप देख लेंगे तो आपको पूरी चीजें स्पष्ट हो जाएंगी. यह वह प्रतिवेदन है जिसमें एक-एक चीज का, एक-एक हेड का लिखा हुआ है.
उपाध्यक्ष महोदय -- प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक-5) विधेयक, 2016 पर विचार किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
उपाध्यक्ष महोदय -- अब विधेयक के खंडों पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2, 3 तथा अनुसूची इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 2, 3 तथा अनुसूची इस विधेयक का अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
श्री जयंत मलैया -- उपाध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूँ कि मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक-5) विधेयक, 2016 पारित किया जाए.
उपाध्यक्ष महोदय -- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक-5) विधेयक, 2016 पारित किया जाए.
प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक-5) विधेयक, 2016 पारित किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक पारित हुआ.
उपाध्यक्ष महोदय -- सदन की कार्यवाही अपराह्न 4.00 बजे तक के लिए स्थगित.
(1.47 बजे से 4.00 बजे तक अंतराल)
04.02 बजे {उपाध्यक्ष महोदय (डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह) पीठासीन हुए}
2. पंडित एस. एन. शुक्ला विश्वविद्यालय विधेयक, 2016
उच्च शिक्षा मंत्री(श्री जयभान सिंह पवैया)- अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूं कि पंडित एस एन शुक्ला विश्वविद्यालय विधेयक, 2016 पर विचार किया जाए.
उपाध्यक्ष महोदय- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि पंडित एस एन शुक्ला विश्वविद्यालय विधेयक, 2016 पर विचार किया जाए.
श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा(मुंगावली)- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, एक और नए विश्वविद्यालय का प्रस्ताव माननीय मंत्री जी द्वारा किया गया है. ग्लोबिलाईजेशन के तहत, मध्यप्रदेश में शिक्षा के विकास को देखते हुए और अन्य राज्यों में खुल रहे शिक्षण संस्थानों को देखते हुए यह आवश्यक है कि अच्छी से अच्छी गुणवत्ता वाले शिक्षण संस्थान मध्यप्रदेश में भी खुलें. किसी भी अच्छे विश्वविद्यालय का हमेशा हमारी ओर से स्वागत है. लेकिन सामान्यत: देखा गया है कि विश्वविद्यालयों में जबरदस्त भ्रष्टाचार, अनियमिततायें हैं. विश्वविद्यालय में ऐसे लोगों की नियुक्तियां हो रही हैं, जिनकी नियुक्तियां नहीं होनी चाहिए. इन लोगों के संबंध में पहले से ही कई शिकायतें हैं और उन शिकायतों की जांच भी चल रही है. आपके द्वारा बनाए गए नियामक आयोग के तहत विश्वविद्यालयों को भूमि एवं अन्य आवश्यक सुविधाओं की पूर्ति करनी है. कल आपके द्वारा पास किए गए बिल के प्रावधानों के अधीन विश्वविद्यालय खुलने के बाद भी आप उन पर नियंत्रण रख सकेंगे. जिसकी व्यवस्था बिल पास होने के पहले नहीं थी. लेकिन सरकार की ओर से विश्वविद्यालयों पर कॉन्सटेंट मॉनिटरिंग की आवश्यकता है. सारा कुछ विश्वविद्यालयों पर नहीं छोड़ा जा सकता है इसलिए विश्वविद्यालयों की मॉनिटरिंग हेतु आपको एक विशेष सेल बनाना चाहिए. यह सेल सुनिश्चित करेगा कि विश्वविद्यालयों में हो रही नियुक्तियों में अनियमितता न हो. व्यापम और पीएससी की नियुक्तियों में जिस प्रकार की शिकायतें प्राप्त हुई हैं, उस प्रकार की शिकायतें विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों में प्राप्त न हो. विश्वविद्यालय की नियुक्तियों में ईमानदारी बरती जाए, योग्य लोगों का चयन हो. खासतौर से उपकुलपति ऐसा होना चाहिए, जिसका क्रैडेन्शियल्स इम्पेकेबल हो और उन पर कोई ऊंगली न उठा सके. जिस तेजी से विश्वविद्यालय खुल रहे हैं, तो इन बिंदुओं पर ध्यान रखना और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है. आज आपने पंडित एस एन शुक्ला विश्वविद्यालय का विधेयक सदन के पटल पर रखा है और संभवत: भविष्य में आप अन्य विश्वविद्यालयों को खोलने का विधेयक भी सदन के पटल पर रखेंगे. परंतु आप विश्वविद्यालयों में हो रही अनियमितताओं को रोकने की व्यवस्था भी करें. उनकी स्वायत्तता भी बनी रहे. लेकिन स्वायत्तता बने रहने के साथ-साथ वहाँ पर अनियमितता न हो. वहाँ गलत नियुक्तियाँ न हों और वहाँ का चार्टर्ड एकाउंटेंट से सारा हिसाब किताब ठीक हो. वित्तीय अनियमितता न हो, इसको भी सुनिश्चित करने का कष्ट करें. धन्यवाद.
श्री रामनिवास रावत(विजयपुर)-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी द्वारा पंडित एस.एन.शुक्ला विश्वविद्यालय विधेयक 2016 प्रस्तुत किया गया है. विश्वविद्यालय आप नया बनाने जा रहे हैं इसके हम कतई विरोधी नहीं हैं, विश्वविद्यालय बिल्कुल बनाया जाना चाहिए. छोटे छोटे विश्वविद्यालय बनाकर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए जो भी हो सकता है उसे करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए. उपाध्यक्ष महोदय, मैं विश्वविद्यालय अधिनियम जो प्रस्तुत किया है उसे देख रहा था. इस विश्वविद्यालय का मुख्यालय शहडोल मध्यप्रदेश होगा और इसमें शहडोल का ही एक कॉलेज इसका परिसर रहेगा. उपाध्यक्ष महोदय, इसका कार्यक्षेत्र कितना होगा, इसमें कितने कॉलेज होंगे, क्या केवल एक ही कॉलेज का आपने विश्वविद्यालय बनाया है. यह इसमें स्पष्ट नहीं किया गया है. ज्यादातर पहले से हमारे जितने भी विश्वविद्यालय बने हैं उनके कार्यक्षेत्र के अन्दर कई कॉलेज हैं. अगर आपने एक कॉलेज का विश्वविद्यालय बनाया है तो इसके लिए हम आपको बधाई देते हैं. प्रदेश के अन्य जिलों में भी ऐसे ही एक एक कॉलेज के विश्वविद्यालय बना दें तो बड़ी कृपा होगी कि शिक्षा की गुणवत्ता के सुधार के लिए आप इस तरह के विश्वविद्यालय बना रहे हैं. क्या ऐसा तो नहीं कि शहडोल में जो विश्वविद्यालय बनाया जा रहा है, अभी जो बाय इलेक्शन होना है उसको दृष्टिगत रखते हुए तो नहीं हो रहा है कि इसमें कुछ लाभ चाहते हों इस वजह से इसका गठन किया गया है. दूसरी महत्वपूर्ण बात, शहडोल आदिवासी जिला है और इसका जो कार्यक्षेत्र होगा वहाँ आदिवासी आबादी अधिक निवास करती है. आदिवासी संस्कृति और विकास के इसमें जो आपने उद्देश्य दिए हैं, सामान्य उद्देश्य जो सभी विश्वविद्यालयों में रहते हैं (आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने सदन के द्वार से सदन का अवलोकन किया इस दौरान अनेक माननीय सदस्य उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु महाराज जी के पास तक गए) उसमें सारे उद्देश्य सामाजिक आर्थिक विकास, सभी क्षेत्रों में कला वाणिज्य विधि एवं समुचित कार्यक्रमों का विकास, पाठ्यक्रमों का विकास, सभी चीजें आपने इसमें समाहित की हैं. लेकिन जिस जगह जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है जहाँ विश्वविद्यालय खोला जा रहा है.
04.08 बजे स्वागत उल्लेख.
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सदन में पधारने पर स्वागत उल्लेख.
उपाध्यक्ष महोदय-- रावत जी, एक मिनट. माननीय सभी सदस्यों से अनुरोध है कि आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद अपने अपने स्थान पर बैठ जाएँ. सदन के लिए यह बड़ी प्रसन्नता की बात है कि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जो हमारे राष्ट्र संत हैं वे यहाँ पधारे हैं, वह सदन के अन्दर दृष्टि डाल रहे हैं. (मेजों की थपथपाहट) और उनके आने से प्रदेश का जन कल्याण होगा और एक सबसे बड़ी बात, हम लोग चर्चा किया करते हैं कि हमारे इस भवन में कोई वास्तुदोष है तो आज मैं यह सोचता हूँ कि महाराज श्री के पधारने से सारे वास्तुदोष दूर हो जाएँगे. (मेजों की थपथपाहट) मैं आप सबकी तरफ से उनका बहुत स्वागत करता हूँ. रावत जी, आप जारी रखिए.
04.09 बजे शासकीय विधि विषयक कार्य (क्रमशः)
श्री रामनिवास रावत-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, इस विश्वविद्यालय में यह समाहित अवश्य होना चाहिए कि हम उस क्षेत्र में बहुतायत में निवासरत आदिवासी लोगों के विकास के लिए, उनकी संस्कृति, उनके विचार, उनकी भाषा और उनके कृतित्व विकास को भी इसमें हम समाहित करें और इसके लिए व्यवस्था करें कि इसके साथ साथ एक आदिवासी विकास के लिए भी इसमें पाठ्यक्रम पृथक् से चलाया जाए. हमें चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े. उपाध्यक्ष महोदय, बाकी सभी विश्वविद्यालयों के लिए जो व्यवस्था रहती है वही है और इसके साथ साथ संचालन के लिए जो अशासकीय सदस्यों के मनोनयन में आपने लिखे हैं पदेन सदस्यों में प्रमुख सचिव, मध्यप्रदेश शासन वित्त विभाग, विधि विधायी कार्य विभाग, उच्च शिक्षा. इन सब के साथ साथ मैं आपको अपनी तरफ से यह सलाह दूंगा कि यह आदिवासी जिला है तो पीएस, ट्रायबल को भी इसमें समाहित करने का कष्ट करेंगे जिससे वे आदिवासी शोध और आदिवासी संस्कृति के विकास के लिए कार्य करते रहेंगे.
उपाध्यक्ष महोदय, इसी तरह से अशासकीय सदस्यों के मनोनयन में भी आदिवासी विद्वान को भी रखने की आवश्यकता है इसे कम्पलसरी करें. दो की बजाय भले ही आप तीन, चार सदस्यों का मनोनयन करें लेकिन आदिवासी संस्कृति, उनके आचार और व्यवहार की जानकारी रखने वाले विद्वान, आदिवासी भाषा, स्थानीय भाषा का ज्ञान रखने वाले विद्वान के भी मनोनयन की व्यवस्था करें.
उपाध्यक्ष महोदय, आदरणीय तिवारी जी और अन्य साथी बता रहे हैं कि अमरकंटक में राष्ट्रीय केन्द्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय कुंवर अर्जुन सिंह जी ने पूर्व से ही खोला हुआ है. उसके बावजूद यह खोला गया है इसका स्वागत है. चलो चुनाव के समय पर कुछ तो करते हैं, शहडोल में बाय इलेक्शन आया तो कुछ तो दे रहे हैं.
श्री शंकरलाल तिवारी--इसकी घोषणा दो साल पहले हो गई थी.
श्री रामनिवास रावत--हम स्वागत ही कर रहे हैं सलाह भी दे रहे हैं. माननीय मंत्री जी बहुत एनर्जेटिक हैं. चंबल संभाग के सभी जिलों में एक एक विश्वविद्यालय बनाएंगे और आप सब लोग भी सहयोग करें. सरकार से बजट दिलवा दें. हम सलाह भी दे रहे हैं और हमारी मांग भी है. शिक्षा में गुणवत्ता होना चाहिए लेकिन विश्वविद्यालय की जो स्थापना की है उसे चलाने में, उनके पदाधिकारी बनाने में भी पूर्ण पारदर्शिता होना चाहिए. ऐसा न हो कि जैसे चित्रकूट विश्वविद्यालय में, कहीं संस्कृति विश्वविद्यालय में किन-किन को बैठा दिया है इस तरह से इसमें नहीं बैठाएं ऐसी हम माननीय मंत्री जी से अपेक्षा करते हैं. मैं नाम नहीं लेना चाहूंगा.
चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय रामनिवास जी को मालूम सब रहता है लेकिन उसके बाद भी कहते जरुर हैं. सब कुछ जानते हैं कि राज्यपाल करते हैं लेकिन उसके बाद भी त्रुटि निकालना उनकी एक आदत सी बन गई है. त्रुटि होती भी नहीं है उसके बाद भी निकालना है. आप सचेतक हैं अच्छी बात है आप सचेत रहिए और अपने लोगों को सचेत करिए लेकिन अनावश्यक आरोप मत लगाइए.
श्री रामनिवास रावत--हम यह भी जानते हैं कि पीएससी की परीक्षा कैसे हो रही है. व्यापम में भ्रष्टाचार कैसे हो रहा है यह भी जानते हैं. कल सुप्रीम कोर्ट ने क्या कमेंट किया वह भी जानते हैं.
चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी--रामनिवास जी बात अगर भ्रष्टाचार की करेंगे तो आपके यहां ऐसे लोग भी बैठे हैं जो ढाई-ढाई बीघा जमीन के मालिक थे और आज 500 बीघा के जमींदार हैं जिनके यहां न तो कोई उद्योग हैं और न ही आय के अन्य कोई साधन हैं.
उपाध्यक्ष महोदय- मुकेश जी ऐसे आरोप न लगायें.
श्री रामनिवास रावत--लगाओ न आरोप किसने मना किया है. जांच करिए, सरकार में बैठे हो. किसने रोका है ? इसका मतलब है कि आप भ्रष्टाचार को संरक्षण दे रहे हैं, आपको पता है फिर भी कार्यवाही नहीं कर रहे हैं.
श्री सुन्दरलाल तिवारी--ऐसे लोगों को जेल क्यों नहीं भेजते हो.
चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी--हर सदस्य सन् 1985 से अपनी संपत्ति की घोषणा करे सब सामने आ जाएगा कि कौन कितना भ्रष्ट है.
डॉ. गोविन्द सिंह--आप में हिम्मत हो तो करवाओ. मैं तो कल ही घोषणा कर दूंगा आप करवाइये.
चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी--डॉक्टर साहब आप व्यक्तिगत क्यों ले रहे हैं मैंने आपका नाम नहीं लिया है.
डॉ. गोविन्द सिंह--आप आरोप लगाओगे तो क्या हम चुप रहेंगे.
चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी--मैंने आपका नाम नहीं लिया है यह तो वही बात हो गई कि बीरबल ने एक बार कहा कि चोर की दाड़ी में तिनका तो चोर दाड़ी टटोलने लगा.
डॉ. गोविन्द सिंह--यह भिण्ड की जनता जानती है. हर साल दल बदल कर रहे हैं इधर से उधर जाना.
श्री शंकरलाल तिवारी :- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मेरी एक विनती है कि अभी कहा गया है कि चुनाव को देखकर यह घोषणा की गयी है. किसी को मालूम था कि क्या हमारे माननीय सांसद दलपत सिंह परस्ते जी का निधन होगा और शहडोल में चुनाव होगा. उसके बावजूद युनिवर्सिटी के नाम पर इस तरह की भाषण बाजी सुधारी जाये, ठीक की जाये. किसी को नहीं मालूम था कि उनकी मृत्यु हो जायेगी. इसलिये चुनाव होगा तो युनिवर्सिटी खोल दें. ऐसी बात मत करें.
श्री रामनिवास रावत :- माननीय उपाध्यक्ष महोदय,मेरा यही निवेदन है कि आदिवासी जिले शहडोल में एक विश्वविद्यालय बनाया गया है. लेकिन कार्यक्षेत्र का विवरण नहीं दिया गया है. वहां के निवासरत जनता के विकास के लिये आदिवासी संस्कृति विभाग की स्थापना जरूर करें और मनोनयन में भी, आदिवासी संस्कृति के विद्धान व्यक्ति के मनोनयन की व्यवस्था करें, यही मेरी मांग है. उपाध्यक्ष महोदय, आपने बोलने का समय दिया उसके लिये धन्यवाद.
वन मंत्री(डॉ गौरीशंकर शेजवार):- मेरा निवेदन है कि रावत जी ने विश्वविद्यालय पर कितना भाषण किया और अनर्गल कितना किया. दोनों को निकाला जाये तो मेरा आरोप है कि दस प्रतिशत इन्होंने विषय पर बोला और नब्बे प्रतिशत दूसरी बाते बोली तो ऐसी चीजें निकाल देना चाहिये और इन्हें हिदायत देना चाहिये कि रावत जी कम से कम विषय पर बोलें.
श्री रामनिवास रावत :- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि मेरे भाषणों के लिये माननीय डॉक्टर शेजवार जी को उसके परीक्षण के लिये और कितना विषय पर भाषण दिया और कितना नहीं दिया, उसको निकालने के लिये अधिकृत किया जाये और मुझे बताया जाये कि मैं कितना विषय पर बोलता हूं, कितना नहीं.
डॉ गौरीशंकर शेजवार :- उपाध्यक्ष महोदय, लेकिन इनके बोलने पर अंकुश लगाने के लिये भी मुझे अधिकृत किया जाये. जब मैं इशारा करूं कि गलत बोल रहे हैं तो फोरन मान जाईये.
श्री रामनिवास रावत :- जब मैं आपको अधिकृत कर रहा हूं तो फिर आपको क्या दिक्कत है.
डॉ गौरीशंकर शेजवार :- आप बाद में बदल जाओगे.
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री (श्री गोपाल भार्गव):- आपको और अन्य विधायकों को तो खुश होना चाहिये कि इसी विधानसभा के जो सदस्य रहे हैं श्री शिवकुमार जी श्रीवास्तव वह हमारी सागर युनिवर्सिटी में बाद में वाईस चांसलर रहे हैं इसलिये आप खुश हों.
श्री सुखेन्द्र सिंह :- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपने बीच में बोलने का समय दिया इसके आपको बहुत-बहुत धन्यवाद. अभी हमारे सीनियर विधायक रामनिवास रावत जी, आदरणीय महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा जी ने बड़े विस्तार से चर्चा की लेकिन मैं अपने विधान सभा क्षेत्र के एक डिग्री कालेज सेठ रघुनाथ प्रसाद महाविद्यालय हनुमना है.मैं उसके बारे में थोड़ा सा निवेदन करता चाहता हूं.
उपाध्यक्ष महोदय :- यह तो दूसरा विषय है. यह शहडोल के विश्वविद्यालय का विधेयक है. शहडोल विश्वविद्यालय के बारे में कुछ बोलना हो तो वह बोलिये.
श्री सुखेन्द्र सिंह :- विधेयक पर बोलना है. यह विश्वविद्यालय पर चर्चा हो रही थी, जैसा कि अभी बीच में चर्चा आयी. आपने बोलने का समय दिया, बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री ओमकार सिंह मरकाम :- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, पंडित एस.एन.शुक्ला विश्वविद्यालय शहडोल में खोलने के लिये माननीय मंत्री जी ने अभी सरकार की तरफ से इस पर चर्चा चल रही थी. शहडोल की जो जगह है वह विध्यांचल का पूरा एरिया है. वह आदिवासी बाहुल्य एरिया है और वहां पर शिक्षा की उत्तरोत्तर विकास के लिये शासन का प्रयास होना चाहिये. शिक्षा के माध्यम से वहां के ग्रामीण क्षेत्र के जो आदिवासी हैं उनको बेहतर शिक्षा मिले इसके लिये जो आपका यह विश्वविद्यालय है, इसमें जिस तरह से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में और बनारस में हिन्दू विश्वविद्यालय में जो वहां की जो व्यवस्था है उसी तरह से इन व्यवस्थाओं को रखते हुए मेरे एक प्रस्ताव है कि हमारे शहडोल संसदीय क्षेत्र से लगातार पांच बार सांसद रहे स्वर्गीय दलपत सिंह परस्ते की वह कर्मभूमि है और शहडोल संसदीय में रहकर के वह आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिये काम किया और जहां पर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई है, अगर उस वर्ग के बड़े कोई महान कार्य करने वाले महापुरूष की तरह है तो उनके नाम से विश्वविद्यालय का नामकरण होता.
श्री ओमकार सिंह मरकाम--मेरा प्रस्ताव है कि प्रदेश सरकार आदिवासियों के सम्मान के लिये और स्वर्गीय नेता दलपतसिंह परस्ते जी जिनका अभी निधन हुआ है वह पांच बार सांसद थे. यह विश्वविद्यालय है पंडित एस.एन.शुक्ला जी के नाम की जगह स्वर्गीय दलपतसिंह परस्ते विश्वविद्यालय किया जाए, यह मेरा प्रस्ताव है कि आदिवासियों के सम्मान के लिये तथा दलपतसिंह परस्ते जी पांच बार से सांसद रहे हैं उनके कार्य एवं जो सेवा है, वह क्षेत्र के लिये अविस्मरणीय है. हम चाहते हैं कि उनके निधन पर जो हमारे आदिवासी समाज पर कमी हमारे नेता की हुई है, हम चाहते हैं कि यह विश्वविद्यालय हमारी सरकार को लगे तो जनसंख्या के अनुपात में सर्वे करवा लीजिये अनूपपुर, शहडोल, उमरिया, यह आदिवासी बाहुल्य है, मैं सरकार से, माननीय मंत्री जी से आपके माध्यम से निवेदन करना चाहता हूं कि पंडित एस.एन.शुक्ला की जगह स्वर्गीय दलपतसिंह परस्ते पूर्व सांसद के नाम से यह विश्वविद्यालय किया जाए, यह हमारी मांग है. मैं यही उम्मीद करते हुए आदिवासी विद्यार्थियों के हित के लिये, वहां पर आदिवासी स्टॉफ रहे इसके लिये आप बेहतर प्राक्कलन की व्यवस्था देंगे. माननीय मुख्यमंत्री जी भी सदन में आ गये हैं मैं आपसे भी अनुरोध करना चाहता हूं कि शहडोल क्षेत्र में जो शहडोल मुख्यालय में एस.एन.शुक्ला की जगह हमारे स्वर्गीय नेता दलपतसिंह परस्ते विश्वविद्यालय किया जाए इसमें माननीय मुख्यमंत्री जी से भी अनुरोध करना चाहता हूं कि हमारे आदिवासी क्षेत्र के नेता के नाम से विश्वविद्यालय का नामकरण करने का कष्ट करें.
श्री बाला बच्चन--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, पंडित एस.एन.शुक्ला विश्वविद्यालय 2016 इस पर मैं भी अपने विचार रखना चाहता हूं. पंडित एस.एन.शुक्ला, शासकीय स्वशासी महाविद्यालय शहडोल को विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाए इस कारण से यह विधेयक आया है. में यह विश्वविद्यालय खुलने जा रहा है शहडोल में ऐसे एरिये जो कि आदिवासी क्षेत्र है वहां के नौजवानों को इसका लाभ होगा. अक्सर यह देखने एवं पढ़ने में आया है कि उच्चतम न्यायालय के अधिकतम फैसलों में उच्च शिक्षा को लेकर हमेशा इस बात की ओर ध्यान दिलाया गया है और उच्च शिक्षा पर हमेशा इस बात के फैसले आये हैं कि उच्च शिक्षा का व्यापार न किया जाए, उस पर राजनीति न की जाए. हम भी यह चाहते हैं कि उसमें अच्छी क्वालिटी की शिक्षा बच्चों को मिले जिससे अच्छा टेलेन्ट उनमें विकसित हो और मैं भी यह चाहता हूं कि यह विश्वविद्यालय और जगहों पर भी खुलें, आदिवासियों एरियों में भी खुलें, लेकिन कम से कम उच्च शिक्षा का व्यापार न हो, उसका राजनीतिकरण न हो और शहडोल जो आदिवासी जिला है वहां पर जो अभी विश्वविद्यालय खुल रहा है मैं चाहता हूं कि आदिवासियों की जो कला एवं साहित्य है और उनकी जो संस्कृति है और उनकी परम्पराओं को मजबूत करने के लिये भी यह विश्वविद्यालय कार्य करे तो मैं समझता हूं कि जो मकसद एवं उद्देश्य जो इन विश्वविद्यालयों के हैं उसमें आदिवासियों की कला, साहित्य, संस्कृति एवं उनकी परम्परा के लिये भी अगर कार्य करेंगे तो मैं समझता हूं कि बेहतर होगा और विश्वविद्यालय खोलने की सार्थकता और ज्यादा फलीभूत होगी यही मेरा कहना है. बाकी की बातें तो जो संशोधन विधेयक आये थे जो निजी विश्वविद्यालयों से संबंधित थे उनमें यह चीजें हमने बोली भी हैं और मैं समझता हूं कि हमारे बच्चों का जो टेलेन्ट होगा और जो सारी फेकल्टीज होगी और इसमें जो लिखी गई है बराबर स्टॉफ होगा, साधन होंगे सभी कुछ सुविधाएं होंगी तो निश्चित ही अच्छे परिणाम होंगे. इतना ही मेरा कहना है कि जिस मकसद और उद्देश्य के साथ पंडित एस.एन.शुक्ला विश्वविद्यालय जो शहडोल में खोला जा रहा है, वह सभी मकसदों को पूरा करे ऐसी हमारी बधाई एवं शुभकामनाएं हैं .
उपाध्यक्ष महोदय, इस विश्वविद्यालय के निर्णय में हम भी सहमत हैं । हमारा अंदेशा केवल इतना रहता है कि मध्यप्रदेश के बच्चों का, विद्यार्थियों का, नौजवानों का टेलेंट हिन्दुस्तान में और इसके बाहर भी अगर जाते हैं तो लगना चाहिए कि मध्यप्रदेश के बच्चे आए हैं और जो प्रतियोगी परीक्षाएं होती हैं उनका सामना करने का माजदा उनमें है, उनमें वह शक्ति हो । इसी के साथ में मैं अपनी बात समाप्त करता हूं ।
श्री शैलेन्द्र जैन(सागर)- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जैसा कि सर्वविदित है मध्यप्रदेश पूरे देश में तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है । बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में कुशल योग एवं प्रशिक्षित मेन पावर की नितान्त आवश्यकता है । एक बहुत बड़ी चुनौती है । इस चुनौती को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश की सरकार ने बहुत पहले से इस संदर्भ में काम करना शुरू किया है । माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं मध्यप्रदेश की सरकार को इस बात के लिए बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने शहडोल के डॉ. पंडित एस. एन. शुक्ल महाविद्यालय को विश्वविद्यालय के रूप में उन्नयन करने का निर्णय लिया है । मैं आपके माध्यम से सदन को अवगत कराना चाहता हूं, यह राजनैतिक निर्णय नहीं है । यह निर्णय लगभग एक वर्ष पहले तय हो गया था, इसके संबंध में सैद्वान्तिक सहमति बन गई थी । कालान्तर में इस तरह की दुर्घटना हुई कि हमने अपने पूज्य नेता को खो दिया और आज उस तरह की बातचीत हो रही है । मैं समझता हूं कि इस तरह की बातचीत नहीं होनी चाहिए । इतना ध्यान हमारे संबंधित सदस्यों को रखना चाहिए । माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जैसा कि एक समय था जिस समय पर शिक्षा का स्तर अत्यन्त निम्न समय पर आ गया था । आज हमारी सरकार ने विशेष रूप से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काम करना शुरू किया है । मैं कहना चाहता हूं कि
"मुल्क और मलकूत पर बे इल्म अगर काबिज हों,
इल्म का, फन का होना किताबों का जिक्र कौन करे" ।।
आज हमारी सरकार ने इस दिशा में सोचने का काम किया है, समझने का काम किया है इसलिए मैं सरकार को बधाई देना चाहता हूं । एक निवेदन करना चाहता हूं कि हमारे शहडोल और आदिवासी क्षेत्र के हमारे आदिवासी भाईयों को रोजगार मूलक शिक्षा मिले, उनके कौशल उन्नयन के लिए विशेष पाठ्यक्रम वहां चलाए जाएं । इस तरह की व्यवस्था वहां के पाठ्यक्रम में होगी तो वहां के लोगों को रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे और यह विश्वविद्यालय अपने उद्देश्य पूरा करने में जरूर सफल होगा । माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपने बोलने का अवसर दिया मैं आपका बहुत बहुत धन्यवाद करता हूं ।
श्री सोहनलाल बाल्मीक( परासिया)- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं एक मिनट आपसे समय लूंगा । स्वर्गीय परस्ते जी के नाम पर नामकरण करने का प्रस्ताव माननीय ओंकार जी ने रखा है । सदन में इस बात की सहमति बनना चाहिए और केबिनेट में पास होकर स्वर्गीय परस्ते जी का नामकरण होना चाहिए ।
उच्च शिक्षा मंत्री( श्री जयभान सिंह पवैया)- मान्यवर उपाध्यक्ष महोदय, आज इस विधेयक पर दोनों ही पक्षों से जो चर्चा हुई है, वह बहुत सुखद है, रचनात्मक है और इसलिए मैं सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के ही उन माननीय सदस्यों को अपनी ओर से बहुत धन्यवाद देता हूं, उन्होंने बहुत ही बहूमूल्य सुझाव दिए हैं, उन सुझावों पर जरूर विचार करेंगे । मैं स्पष्ट कर दूं, कुछ भ्रम हमें इस मामले में न रहे । हम निजी विश्वविद्यालय के विधेयक लाए थे । यह विश्वविद्यालय शासकीय विश्वविद्यालय हो और विश्वविद्यालय का दर्जा स्वाशासी महाविद्यालय को मिला है । यह राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान यानि रूसा जो केन्द्र सरकार की योजना है उसके अंतर्गत मिला है । कुछ उत्कृष्ट और स्वाशासी महाविद्यालयों के नाम हमसे रूसा चाहता है । देश भर में स्वीकृति देता है । विश्वविद्यालय बनाने की यह जो स्वाशासी महाविद्यालय हैं । यह पंडित शंभु नाथ शुक्ला जी के नाम पर ही है. उसी महाविद्यालय का चूँकि उन्नयन हुआ है. इसलिए रूसा ने उसके अंतर्गत पंडित शंभु नाथ शुक्ला विश्वविद्यालय के रूप में इसको मान्यता दी है, दर्जा दिया है. यह नया विश्वविद्यालय न होकर उन्नयन होकर, अपग्रेड होकर बनते हैं, उस योजना के अंतर्गत है. दूसरी बात यह है कि अमरकंटक में केन्द्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय की चर्चा अभी की गई थी. वह पहले से वहां पर है लेकिन यह जो विश्वविद्यालय होने वाला है, इसमें और उस विश्वविद्यालय में अन्तर है. अन्तर यह है कि शहडोल में जो यह विश्वविद्यालय होगा, यह आदिवासी बाहुल्य जिले को ध्यान में रखकर किया गया है. हम उसका अपग्रेडेशन करा रहे हैं, यह सही है. लेकिन यह विश्वविद्यालय सभी के लिए होगा और उस विश्वविद्यालय में केवल आदिवासी आधार पर ही शिक्षा ले सकते हैं और इसलिए उसकी तुलना अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय या काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से नहीं की जा सकती है, लेकिन यह भी सत्य है कि शहडोल को ध्यान में रखकर हमारी आदिवासी आबादी को ध्यान में रखकर इसको स्थापित किया जा रहा है. शहडोल जिले का उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सकल पंजीयन अनुपात मात्र 9 है जबकि प्रदेश का पंजीयन अनुपात 19.6 और देश का पंजीयन अनुपात 23.6 है. इस क्षेत्र में विश्वविद्यालय की स्थापना से सकल पंजीयन अनुपात भी निश्चित रूप से बढ़ेगा. यह इसके पीछे एक मुख्य उद्देश्य रहा है.
उपाध्यक्ष महोदय, आदरणीय कालूखेड़ा जी ने उनकी कुछ चिन्ताएं व्यक्त की हैं एवं सुझाव दिए हैं. उन्होंने नियुक्तियों के संबंध में, सभी विश्वविद्यालयों की दृष्टि से कहा है कि एक सेल हो, जो मॉनिटरिंग करे और अनियमितता न हो पाये. हम लगातार इसकी चिन्ता कर रहे हैं और आने वाले दिनों में विश्वविद्यालयों पर इस प्रकार का नियंत्रण और भी कसावट के साथ हो कि किसी भी प्रकार की वित्तीय अनियमितताएं न हो पायें, इसकी कोशिश हम करेंगे. रावत जी ने एक प्रश्न पूछा है कि क्या विश्वविद्यालय से अन्य महाविद्यालय भी एफिलिएटेड हो सकेंगे ? या केवल अकेला विश्वविद्यालय कॉलेज से अपग्रेड करके बनायें तो मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि यह जो रूसा का प्लान है, रूसा की योजना के अंतर्गत एकात्म विश्वविद्यालय को ही अनुमति दी जाती है और उसी को फण्डिंग किया जाता है इसलिए यह जो विश्वविद्यालय बन रहा है, यह एकात्म विश्वविद्यालय है, इससे दूसरे कॉलेज एफिलिएट नहीं होंगे, विश्वविद्यालय ही होंगे. एक चर्चा आदरणीय परस्ते जी को लेकर और सीट के उपचुनाव को लेकर आई है. सच्चाई यह है कि दिनांक 13 अप्रैल, 2015 को इसकी फाइनली स्वीकृति मिल गई थी इसलिए उपचुनाव से और इस विश्वविद्यालय की स्थापना से कहीं कोई संबंध नहीं जुड़ता है. हमें एक सुझाव यह दिया गया है कि प्रमुख सचिव, आदिवासी को सम्मिलित करने पर विचार किया जाये. मुझे लगता है कि इस सुझाव पर विचार हो सकता है और हम इस पर जरूर विचार करेंगे.
उपाध्यक्ष महोदय, आदरणीय बाला बच्चन जी का सुझाव आया है, हम उस पर चिन्ता करेंगे. वहां प्रतिभाओं का उन्नयन हो, आदिवासी संस्कृति और वहां की भाषा इत्यादि के विकास के लिए कोई पाठ्यक्रम में जगह होनी चाहिए, इस सुझाव पर हम जरूर विचार करेंगे. मझे ऐसा लगता है कि इसमें सभी के विचार आ गए हैं, वक्तव्य बहुत अधिक देने की आवश्यकता नहीं लगती है.
श्री ओमकार सिंह मरकाम – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय मुख्यमंत्री जी से विनम्र अनुरोध करना चाहता हूँ कि शहडोल आदिवासी बाहुल्य जिला है और यह बात किसी ने कही थी.
उपाध्यक्ष महोदय – आपका प्रश्न तो पहले ही आ गया है.
श्री ओमकार सिंह मरकाम—उपाध्यक्ष महोदय, मेरा अनुरोध है कि पांच बार से सांसद रहे स्वर्गीय दलपत सिंह परस्ते जी के नाम से नामकरण के लिए हमने अनुरोध किया है.
उपाध्यक्ष महोदय—मरकाम जी आपकी यह बात पहले आ चुकी है. आपके भाषण में आप इसे क्यों दोहरा रहे हैं.
श्री ओमकार सिंह मरकाम—मेरा माननीय मुख्यमंत्री जी से अनुरोध है.
उपाध्यक्ष महोदय— मुख्यमंत्री जी सदन में थे जब आप बोल रहे थे. आप बैठ जाएं. यह गलत बात है आप उसी बात को दोहरा रहे है. आप इस बात को कह चुके हैं आपका प्रस्ताव आ गया है, आपका सुझाव आ गया है अब आप बैठ जाएं. मंत्री जी को अपना भाषण करने दें. आप बैठ जाइए. सरकार को अपना विचार करने दीजिए.
श्री जयभान सिंह पवैया —माननीय सदस्य का सुझाव हमारे ध्यान में आया है मैंने शुरूआत में ही कहा था कि एक स्वशासी महाविद्यालय रूसा के द्वारा अपग्रेडेशन हुआ है विश्वविद्यालय के रूप में और जिस नाम से स्वशासी महाविद्यालय है उसी नाम से उसका अपग्रेडेशन होता है और जो सुझाव हमारे ध्यान में है लेकिन इस समय जो स्थितियां हैं वह यह हैं कि हमको उसी नाम से विश्वविद्यालय को अपग्रेड करना होता है. मैं सभी से अनुरोध करता हूं कि आप सभी की सद्भावनाएं इस विधेयक के साथ में हैं.
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष (श्री बाला बच्चन)– माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं एक मिनट चाहूंगा, बहुत सारे माननीय सदस्यों की भावना है, इच्छा है यह चाहते हैं कि अशासकीय सदस्य के रूप में किसी आदिवासी नेता को या बड़े प्रतिनिधि को रख लें जो इससे संबंधित शिक्षाविद् हो, जो एक्सपर्ट हो शिक्षा से संबंधित उन्हें रख लें ऐसा कुछ प्रोविजन कर लें.
उपाध्यक्ष महोदय— बाला जी आपका सुझाव आ गया है सरकार विचार करेगी.
श्री जयभान सिंह पवैया — आपके सुझाव पर जरूर विचार करेंगे. धन्यवाद.
उपाध्यक्ष महोदय— अब विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2 से 43 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 2 से 43 इस विधेयक का अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड एक इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड एक इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री जयभान सिंह पवैया) --उपाध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूं कि पंडित एस.एन शुक्ल विश्वविद्यालय विधेयक, 2016 पारित किया जाए.
उपाध्यक्ष महोदय—प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि पंडित एस.एन शुक्ल विश्वविद्यालय विधेयक, 2016 पारित किया जाए.
प्रश्न यह है कि पंडित एस.एन शुक्ल विश्वविद्यालय विधेयक, 2016 पारित किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक पारित हुआ.
4:38 बजे नियम 142-क के अधीन अल्पकालीन विषय की सूचना पर चर्चा
प्रदेश में संचालित अशासकीय शिक्षण संस्थाओं द्वारा मनमाने तरीके से फीस व अन्य शुल्क वसूले जाने से उत्पन्न स्थिति के संबंध में.
डॉ. गोविन्द सिंह (लहार)— माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आज समूचे मध्यप्रदेश में स्कूल शिक्षा का शासकीय विद्यालयों में स्तर पूरी तरह गिर चुका है जितने भी शासकीय प्राइमरी से लेकर 10+2 हायर सेकेण्डरी स्कूल हैं उनमें गांव में तो करीब आधे से ज्यादा शिक्षक खाली हैं और जहां हैं भी तो वहां क्रम से जाते हैं अगर तीन शिक्षक हैं तो एक दिन जाएगा फिर आठ दिन की गेप मारेगा कई गांव की हालत दयनीय हो चुकी है. इसलिए आम जनता का, प्रदेश की जनता का विश्वास शासकीय शिक्षा के प्राइमरी मिडिल और हायर सेकेण्डरी स्कूलों से उठ रहा है. आदमी परेशान होकर जगह-जगह प्रायमरी से लेकर पहली क्लास से लेकर बारहवी तक प्रायवेट स्कूल, पूरे प्रदेश में जगह जगह गांव गांव मोहल्ले मोहल्ले में खुल रहे हैं और शासकीय स्कूल में व्यवस्था नहीं है, बैठने के लिए फर्नीचर नहीं है, पीने के लिए हैण्डपम्प का पानी नहीं है, गांवों में.इस प्रकार से लोगों का शिक्षा विभाग से मोह भंग हुआ है और मजबूरी में शहर में रहने वाले जो सम्पन्न है, वह अपने बच्चों को प्रायवेट स्कूल में पढ़ाने के लिए बाध्य होते हैं, मजबूरी में उनको जाना पड़ता है. अब प्रायवेट स्कूलों की स्थिति यह कि वे मनमानी तरीके से फीस वसूल कर रहे हैं, तमाम वर्षों से यह समस्या चल रही है लेकिन प्रदेश सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया, तब नागरिक उपभोक्ता मंच है, जबलपुर में उसके डाक्टर पी.जी. देशपाण्डे हैं, अध्यक्ष है, मंच के संयोजक हैं, उन्होंने जबलपुर उच्च न्यायालय में एक याचिका लगाई और उस याचिका में माननीय उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया अगस्त 2015 में कि शासन इस तरह की अव्यवस्था रोकने के लिए मनमानी फीस वसूलने के लिए निजी शिक्षण संस्थाओं पर रोक लगाए. शासन ने उस संबंध में अगस्त 2015 में निर्णय भी ले लिया और निर्णय लिया कि हम कुछ करेंगे, विशेषज्ञ समिति गठित करेंगे, परन्तु अभी तक विशेषज्ञ समिति की चार मीटिंग हो चुकी है, बैठक हो चुकी है लेकिन अभी तक अधिनियम का प्रारूप अभी तक तैयार नहीं हुआ है और लगातार बैठकें हो रही है, लेकिन आगे कार्यवाही बढ़ नहीं रही है.
4.42 बजे [सभापति (श्री कैलाश चावला) पीठासीन हुए]
माननीय सभापति महोदय, मुझे इस विषय पर सदन का ध्यान आकर्षित करना पड़ा. अभी 18 जुलाई को माननीय सुखेन्द्रसिंह जी ने प्रश्न लगाया है, उसमें भी शासन ने स्वीकार किया कि हमने विशेषज्ञ समिति बनाई है, विशेषज्ञ समिति की प्रक्रिया चल रही है, अधिनियम बनाने की कार्यवाही विचाराधीन है. पिछले 10-15 वर्षों में लगातार हर वर्ष शिक्षकों के द्वारा फीस बढ़ाई जा रही है. गरीब जो मेधावी छात्र हैं, जिनके पास फीस देने को नहीं है, कई स्कूल तो प्रायमरी स्कूल से लेकन अन्य आगे 25 हजार से 30 हजार, 50 हजार तक फीस वसूल रहे हैं. हम मानते हैं कि अगर निजी अशासकीय शिक्षण संस्थाएं फीस नहीं लेंगी तो कहां से शिक्षकों को वेतन भत्ता देंगे, कहां से इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करेंगे, फीस लें लेकिन उचित मात्रा में ले, लेकिन यह व्यापारिक संस्थाएं बन चुकी है, शिक्षा जैसे पवित्र चीज को इन्होंने व्यापारिक रूप दे दिया है. इसलिए हमारी मांग है कि जब अधिनियम बने तो उस अधिनियम में यह जोड़ना चाहिए कि शिक्षण संस्थाओं का आडिट तो होता है, परन्तु यह अपना आडिट स्वयं करा लेते हैं, शासन की ओर से ऐसी व्यवस्था हो ताकि इन पर कंट्रोल रखें कि ये जितनी फीस ले रहे हैं, उसका कहां खर्चा कर रहे हैं, कहां व्यवस्था कर रहे हैं, किस उपयोग में कर रहे हैं, कितनी राशि अपने घर परिवार को चलाने में, अपनी पूंजी बढ़ाने में कर रहे हैं. शासकीय स्तर पर इसका आडिट होना चाहिए.
माननीय सभापति महोदय, इसके साथ साथ जो मेधावी छात्र हैं, जो पढ़ने वाले गरीब है, जिनके अच्छे अंक आते हैं, उनके लिए भी कोई फीस कम हो ऐसी कोई व्यवस्था अधिनियम में होना चाहिए और अधिनियम में जब शामिल हो तो जितने शिक्षा विशेषज्ञ हैं उनको कमेटी में रखना चाहिए ताकि वे पूरा अध्ययन करें. हर स्कूलों में, गांव में, शहरों में परीक्षण करें कि वहां क्या व्यवस्था चल रही है. अध्यक्ष महोदय, फीस के साथ प्रतिवर्ष स्कूल वाले यूनिफार्म बदलते हैं यह मनमानी है उनकी. एक बार रेपोटेशन बन गई तो वह फीस बढ़ाएंगे, ड्रेस बदलेंगे और ड्रेस खरीदने के लिए दुकान निर्धारित कर देते हैं, जो ड्रेस अपनी स्वेच्छा से लोग खरीदेंगे वह करीब 500 रूपए में आ जाएगी, लेकिन वहां वे एक हजार रूपए वसूल करवाते हैं और वहां वे कमीशन खाते है और अभिभावकों को लूटने का काम करते हैं. इसी प्रकार किताबों की स्थिति है, हर साल किताब बदल देते हैं, कोर्स बदल देते हैं, जब कि सीबीएसई ने कक्षा 1 से 8 तक का पाठयक्रम निर्धारित कर रखा है. जिसमें बताया गया है कि यह किताबें आपको खरीदना है. लेकिन मनमानी तरीके से फीस बढ़ाते हैं, किताबें खरीदने को अभिभावकों को मजबूर करते हैं. और जो प्रकाशक हैं, बुक सेलर और निजी स्कूल के मालिक हैं यह सब मिलकर के अभिभावकों को लूटने का काम कर रहे हैं और 40 से 60 प्रतिशत का कमीशन ले रहे हैं.
सभापति महोदय कोई किताब उतने ही पेज की, वैसी ही प्रिंट की बाजार में अगर 100 रूपये की मिल सकती है वह 400 रूपये में खरीदने को मजबूर करते हैं. इसलिये हमारा मंत्री जी से अनुरोध है कि आपने जो शिक्षा के लिये आयोग बनाया है या समिति का गठन किया है, उसकी सीमा भी तय होना चाहिये कि यह समिति कितने समय में अपनी रिपोर्ट देगी और शासन कब तक इस विधेयक को अधिनियम में परिवर्तित करने के लिये विधानसभा में प्रस्तुत करेगा. इस पर मुख्य रूप से शासन को ध्यान देना चाहिये.
सभापति महोदय, बहुत महत्वपूर्ण विषय है और जनमानस में इसकी मांग हो रही है इसलिये सरकार से अनुरोध है कि विधानसभा के आगामी सत्र में इस समिति का प्रतिवेदन सदन के पटल पर आना चाहिये, शासन को इन संस्थाओं पर नियंत्रण रखना चाहिये कि फीस न बढायें. सभापति जी एक सुझाव और देना चाहता हूं और वह यह है कि हमने देखा है कि कई गरीब छात्र ऐसे रहते हैं जो किसी कारण से समय पर फीस जमा नहीं कर पाते हैं तो शिक्षण संस्थाओं द्वारा उन छात्रों के प्रवेश पत्र को रोक लिया जाता है, यह भारी पैमाने पर समस्या सामने आ रही है, जो छात्र साल भर फीस देते हैं, पढ़ाई करते हैं किसी कारण से अगर कुछ पैसे इन शिक्षण संस्थाओं के रह जाते हैं तो यह परीक्षा में बैठने नहीं देते हैं. सरकार को इस पर भी अंकुश लगाना चाहिये. सभापति महोदय, यदि किसी छात्र की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और उसको फीस देने में कठिनाई होती है तो यह संस्थायें उनके जो मूल दस्तावेज होते हैं वह भी रोक लेते हैं और अभिभावकों को मनमाने पैसे देने के लिये मजबूर करते हैं इसलिये इन सब बातों का उल्लेख और समाधान होना चाहिये ताकि जो शिक्षा का आयोग आप बना रहे हैं इन सब बातों का समाधान उसको करना चाहिये. प्रवेश पत्र न रोकने का प्रतिबंध हो, गरीब छात्रों की फीस पर कन्ट्रोल हो. यही मंत्री जी से अनुरोध है कि मेरे द्वारा जो बिंदू उठाये गये हैं इस पर विशेष ध्यान दें, इन पर नियंत्रण शासन का हो.
सभापति महोदय-- श्री जालम सिंह (अनुपस्थित). श्री ओमप्रकाश सखलेचा...
श्री दिलीप सिंह परिहार(नीमच) -- माननीय सभापति महोदय, बोलने वाले वक्ता ओमप्रकाश जी, नीमच जिले के हैं, पूर्व मुख्यमंत्री जी के पुत्र हैं और आसंदी पर आप विराज मान हैं आप भी नीमच जिले के हैं. मैं स्वागत करता हूं.
सभापति महोदय-- आप भी नीमच के ही हैं.
श्री दिलीप सिंह परिहार-- सभापति महोदय, एक छोटा सा निवेदन है कि भारत माता की जय बोलने में कहीं न कहीं कान्वेन्ट स्कूल में लोग हिचकिचा रहे हैं तो इस मामले को भी आयोग देखे, यही मंत्री जी से निवेदन है.
श्री ओमप्रकाश सखलेचा(जावद)-- माननीय सभापति महोदय, मैं शिक्षा के नियामक आयोग के समय सीमा या उसके नियम बनाने की प्रक्रिया बनाने के बारे में जो चर्चा चल रही है उसके बारे में अपनी बात रखना चाहता हूं. माननीय सभापति महोदय, जहां तक मैं समझता हूं कि शिक्षा का स्तर जिस तेजी से पूरे भारत में गिरा और पिछले कुछ वर्षों में मध्यप्रदेश ने बहुत अच्छे से उसको कवर किया, मुख्यमंत्री जी ने उसमें 85% तक अंक लाने वालों को 25 हजार रूपये या कम्प्यूटर एजूकेशन हेतु प्रोत्साहन राशि देकर के उसमें बढौती भी की है, लेकिन कहीं न कहीं कुछ और अलग दृष्टिकोण के बारे में, मैं चर्चा के माध्यम से कुछ सुझाव सभी सदस्यों के सामने रखना चाहता हूं. 10वीं तक की शिक्षा तो सामान्य विषय के लिये, सामान्य ज्ञान के लिये, समाज में अपने आप को कैसे प्रस्तुत करें उसके लिये अनिवार्य होती है या अक्षरों का ज्ञान और अपने अधिकारों का हनन होने से रोकने तक समझ आती है. लेकिन 10वीं के बाद जिस तेजी से शिक्षा के कई फील्ड के आयाम खुले हैं उन सब नये आयामों के बारे में स्कूल में काउंसिलिंग चाहे सरकारी हो, चाहे प्राइवेट हो, उस काउंसिलिंग में कितने विषय आगे 12वीं के बाद बायफरकेशन हैं, उसके बारे में ज्ञान देना और कहीं न कहीं काउंसिलिंग के माध्यम से यह उस बच्चे के दिमाग में सेट होना चाहिये कि आगे की पढ़ाई, उसको जीवन में जो भी करना है उसके लिये कौन सी पढ़ाई उपयोगी है और उस पढ़ाई के लिये क्या विषय लेना चाहिये. 12वीं के बाद जब हम पढ़ते थे तो 4-5 विषय होते थे आगे ग्रेजुएशन में कामर्स में चले जाओ, साइंस में चले जाओ या बायोलॉजी में चले जाओ, लेकिन आज इतने अलग-अलग फील्ड हो गये कि हर बच्चे के दिमाग में यह तय करवाना और यह ज्ञान देना सरकार की एक जिम्मेदारी का अंश मैं मानता हूं कि कौन से विषय को अध्ययन करने के बाद कितना उसका खर्चा आयेगा उस अध्ययन में और कितने समय में उसकी प्लेसमेंट की गुंजाइश है, क्योंकि कहीं न कहीं शिक्षा अपने जीवन को और अच्छे तरीके से जीने के लिये वह ग्रहण कर रहा है, लेकिन उस गांव में जो इंटीरियर में उन 50 प्रतिशत बच्चों के माता पिता को यह पता नहीं कि कौन सी शिक्षा से कितना उसके रोजगार में, कितना उसके जीवन में उपयोगी होगी तो इन दोनों के बीच के समन्वय के लिये हम क्या कर सकते हैं और उसको कैसे नियम बनाया जाये, क्योंकि आज जहां तक मैं समझता हूं कैरियर काउंसिलिंग की चर्चा जब आती है वह एक स्टेण्डर्ड सा विषय बन गया. मैं पिछले 4-5 सालों से लगातार बच्चों को प्रोत्साहन देने हर हायर सेकेण्डरी स्कूल में साल में दो बार जाता हूं और वहां जब बात करता हूं तो यह महसूस होता है चाहे वह सरकार हो, चाहे वह प्राइवेट हो, उस बच्चे को यह पता नहीं है कि पढ़ाई कर रहा है, अच्छे नंबर ला रहा है लेकिन उसके बाद उसका क्या उद्देश्य है, क्या टारगेट है, वह उसके दिमाग में तय करवाने में सरकार उसमें क्या मदद कर सकती है. क्योंकि 12वीं तक की पढ़ाई ही उसके जीवन का एक तरीके से एजुकेशन में फाउंडेशन है. अगर उस फाउंडेशन की मजबूती हो गई और वह अगर मजबूत हो गया तो जीवन में वह कभी भी यह बेरोजगार इधर-उधर चक्कर नहीं काटेगा. अगर मैं आज बात करूं थोड़ी सी और हटकर, प्राइवेट जितने भी इंस्टीट्यूट हैं उनके स्टॉफ में कितने एजुकेटेड हैं, कितनों ने किस विषय पर बीएड या डीएड किया है या क्या उनकी क्वालीफिकेशन है, किस स्तर के उनके शिक्षक हैं, कौन वहां पर कैरियर बता रहा है, कौन उसको आगे की तैयारी करवा रहा है. साथ ही मैं थोड़ी सी बातें हटकर यह भी कहना चाहता हूं कि जो शिक्षा का मूल उद्देश्य है, जिस तेजी से व्यवसायीकरण में जा रहा है, लेकिन उसका जीवन सरल बनाने के लिये कैसे हम उसमें सहयोग कर सकते हैं, क्योंकि जितने प्राइवेट कॉलेज वाले आज की तारीख में और कुछ कोर्सेस तो ऐसे हैं जिसमें किसी कीमत में कहीं भी प्लेसमेंट नहीं होती है, वह सरकार स्कूल और प्राइवेट स्कूल में आकर अपनी मार्केटिंग करते हैं. जो बच्चे पहली बार शिक्षा जिनके परिवार में और जो सबसे कमजोर वर्ग है वह उन प्राइवेट इंस्टीट्यूटों के चक्कर में आकर अपना पैसा और अपना समय बर्बाद करते हैं बाद में और आज की तारीख में मैं अगर नीमच जिले की बात करूं तो कम से कम ऐसे 5 हजार बच्चे हर साल 12वीं के बाद स्टेण्डर्ड कॉलेज में चले जाते हैं क्योंकि उनको स्कूल में कहीं इस चीज का ज्ञान नहीं दिया जाता है कि कैसे आगे के कोर्स सिलेक्शन करना है और क्या विषय सिलेक्शन करना है, किस टाइप के इंस्टीट्यूट में जाने से उनका जीवन सफल हो सकता है जो उनकी भावना के अनुरूप काम हो. तो उसके लिये जब तक हम तय नहीं करेंगे तब तक वास्तव में हम अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं कर रहे, ऐसा मैं मानता हूं कम से कम. मैं मध्यप्रदेश के बारे में अगर यह बात करूं तो 10 से 12 लाख बच्चे हर साल बारहवीं में माध्यमिक शिक्षा मंडल और केन्द्रीय बोर्ड के माध्यम से बारहवीं की परीक्षा देते हैं उनमें से 8 से 10 लाख बच्चे ही निपुण होकर आगे निकलते हैं लेकिन उसमें से शायद पचास हजार या एक लाख बच्चों के पास यह विकल्प नहीं होता कि वह क्या करें ? कहीं न कहीं इस नियामक आयोग के द्वारा या और कैसे नियम बनाये जाएं उसके बारे में चिंता होनी चाहिये. केरियर काउंसलिंग,सब्जेक्ट वाईज चर्चा,उनके स्टाफ की क्वालिटी के बारे में और किसी विशेष परीक्षा में एंट्रेंस के लिये आगे उन्हें कोचिंग लेनी है तो क्यों न स्कूल में ही 3 से 6 महीने का विशेष कोर्स चलाया जाये और उसके बारे में चिंता की जाये. प्रायवेट वाले अपनी मार्केटिंग करना चाहे तो वे करें और सरकारी में यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि उनको हम यह बताएं कि इसके बाद यह-यह संभावनाएं हैं. मैं हायर एजुकेशन के बारे में भी अपनी बात रखना चाहता हूं. बारहवीं कक्षा तक बच्चा अठारह साल का बालिग हो जाता है.
सभापति महोदय - आप विषय तक सीमित रहें तो ज्यादा अच्छा रहेगा.
श्री ओमप्रकाश सखलेचा - माननीय सभापति महोदय, विषय सभी परिवारों से जुड़ा हुआ है अगर थोड़ा समय दे दें.
सभापति महोदय - मैं समय के लिये मना नहीं कर रहा हूं. विषय तक सीमित रहें.
श्री ओमप्रकाश सखलेचा - यह जरूरी है कि यह बात पूरे प्रदेश में सभी बच्चों तक चली जाये तो उचित और अच्छा रहेगा क्योंकि जहां हायर एजुकेशन में आज की तारीख में एक लाख की इंजीनियरिंग सीट्स में से कितने बच्चे पढ़ रहे हैं. जिस हिसाब से हायर एजुकेशन का कामर्शियलाईजेशन हुआ उसके बारे में भी इस सदन को चिंता करनी चाहिये. चिंता तीन दृष्टिकोण से करना चाहिये. बारहवीं कक्षा के बाद बच्चा अठारह साल का हो गया, बालिग हो गया फिर उसके बाद उसकी पढ़ाई टारगेट ओरियेंटेड से हटकर एक दिन का भी किसी दूसरी ओर नहीं होना चाहिये और उसका टारगेट क्या होना चाहिये, किस इंस्टीट्यूट में जाने के बाद उसके प्लेसमेंट की क्या स्थिति है, वहां से उसके जाब की कितनी क्रियेशन हो रही है, उसके बारे में भी कहीं न कहीं नियम बनाने चाहिये. जो कालेज हैं उसका प्लेसमेंट का क्या रिकार्ड है ? उनके यहां से प्रायवेट और सरकारी सेक्टर में क्या प्लेसमेंट हो रहा है ? उसके बारे में जानकारी होनी चाहिये. ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा की स्थिति अच्छी नहीं है. मेरे पास नीमच जिले का रिकार्ड है 6 हजार औसत बच्चे बाहर पढ़ने जा रहे हैं और उसमें से 500 बच्चों से ज्यादा की प्लेसमेंट नहीं है तो इन विषयों के बारे में भी जब नियम बनाएं तो इसका ध्यान रखा जाये. मेरा निवेदन है लेकिन किसी दिन उच्च शिक्षा पर जब बात होगी तब मैं अपनी बात रखूंगा. यह विषय सभी के लिये हर परिवार के लिये जरूरी है.धन्यवाद.
श्री शैलेन्द्र पटेल(इछावर) - माननीय सभापति महोदय,मैं आपको धन्यवाद देना चाहता हूं कि इतने महत्वपूर्ण विषय पर उन्होंने चर्चा की शुरुआत की है. हमारी संस्कृति में अगर सबसे बड़ा दान शिक्षा को कहा गया है लेकिन आज परिस्थिति ऐसी बन रही है कि हम विद्या दान की न हीं विद्या दान के समय कितना पैसा नाजायज तरीके से वसूला जा रहा है उसकी चर्चा कर रहे हैं यह बहुत गंभीर विषय है. शिक्षा का व्यवसायीकरण पूरी तरह से हो चुका है और व्यवसायीकरण के कारण स्कूल पैसे कमाने के अड्डे बन गये हैं कि कैसे उनसे ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाया जाय. जो शिक्षा देश का निर्माण करती है, देश के भविष्य का निर्माण करती है यदि उसमें व्यवसायीकरण हो जायेगा तो देश का निर्माण जिस तरीके से होना चाहिए उस तरीके से नहीं हो पायेगा. क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य ही बदल गया है, जो शिक्षा दे रहे हैं, वह पैसा कमाना चाहते है न कि वहां पर अच्छे स्टूडेंट्स बनाना चाहते हैं.
माननीय सभापति महोदय, यह हमें आज बहुत सोचने का विषय है कि हम अच्छे स्टूडेंट्स कैसे बनाये ? हमारे देश और प्रदेश का भविष्य कैसे बनाये ? हम देख रहे हैं कि सरकारी स्कूलों में धीरे-धीरे सब लोगों की जो रूचि थी या विश्वास था वह खत्म हो गया है. गांव में भी छोटे-छोटे प्रायवेट स्कूल खुल गये हैं और निर्धन परिवार के लोग हैं, वह भी अपना पेट काटकर, अपनी दो जून की रोटी न खाकर बच्चों को प्रायवेट स्कूल में पढ़ाते हैं. क्योंकि हम सभी लोग यह देख रहे हैं कि जैसे - तैसे किसी प्रायवेट स्कूल में भर्ती तो करवा देते हैं, लेकिन सरकारी स्कूल में नहीं भेजते हैं और तो और जो मध्यम तबके के लोग हैं, वह अपने दूसरे जो खर्चे है, उन पर कटौती करते हैं कि हमारा यह खर्चा रूक जाये और हमारा बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़ ले, इस ओर उनका निरंतर प्रयास होता है. ठीक है, सबको अच्छा पढ़ाने की बात है. लेकिन मुझे आज तक यह समझ में नहीं आया है कि किस व्यवस्था से फीस का निर्धारण होता है ? इस फीस के निर्धारण के लिये क्या फार्मूला बनाया है ? या क्या व्यवस्था की है ? क्योंकि हाईकोर्ट में गये, हाईकोर्ट के बाद सरकार के पास बात आई. प्रशासन और शासन इस ओर प्रयास कर रहा है कि कितनी जल्दी इस विषय पर वह कोई ऐसी चीज लेकर आये कि जो पढ़ाई की जा रही है, उस हिसाब से पैसे वसूले जायें.
माननीय सभापति महोदय, अभी बात आई कि शिक्षा का स्तर तो बढ़ा है और यह बात भी आई है कि कुछ लोग तो हाई प्रतिशत देने लगे हैं और कुछ फेल होने लगे हैं. एक वर्गीकरण भी धीरे धीरे समाज में बढ़ रहा है कि अच्छे बच्चे भी आगे जा रहे हैं और बहुत से हमारे समाज के बच्चे नीचे फेल होते जा रहे हैं और यह प्रायवेट स्कूल इसमें कोई ज्यादा मदद नहीं कर रहे हैं. पहले तो हमें यह पहचान करनी होगी कि स्कूल कहां चल रहे हैं ग्रामीण क्षेत्र में, अर्द्ध शहरी क्षेत्र में, शहरी क्षेत्र में. क्योंकि तीनों की फीस निर्धारण, उस इलाके के हिसाब से होगी कि उस इलाके की क्या आर्थिक स्थिति है, वहां पर लोग कितना कमा रहे हैं, कितना शिक्षा के ऊपर खर्च कर सकते हैं. क्योंकि वह प्रायवेट स्कूल से वह निश्चित रूप से फीस वसूलेंगे. इसलिए इस बात का भी ध्यान रखा जाये कि वह ग्रामीण इलाका है, शहरी है, या अर्द्ध शहरी इलाका है, इस हिसाब से भी उसको शामिल किया जाय. पहले तो रिकेग्नाईजड वह हो जाया करते थे कि पब्लिक स्कूल है या प्रायवेट कांवेंट स्कूल हैं. आज तो हर गांव में ही पब्लिक स्कूल, प्रायवेट या कांवेंट स्कूल खुल गये हैं. यह समझ पाना मुश्किल है कि इनका स्तर क्या है और स्तर को हम कैसे देखेंगे ? यह एक बहुत बड़ा विषय शासन के सामने है.
माननीय सभापति महोदय, अभी गोविंद सिंह जी कह रहे थे कि ड्रेस के नाम पर अजीबोगरीब पैसे वसूले जाते हैं बहुत से प्रायवेट स्कूल में शूज के कलर की तो बात छोड़ दीजिये स्कूल का नाम भी उसके जूते पर लिखा होता है. किस कंपनी का होगा, किस मॉडल का होगा यह भी निश्चित होता है. यह भी एक सोचने का विषय है कि हम किस तरीके से एक-एक चीज में व्यवसायीकरण कर रहे हैं.
माननीय सभापति महोदय, अभी जो बात पाठ्यक्रम की आई है कि समय समय पर बदल दिया जाता है. एक साल बाद, दो साल बाद फिर बच्चों को नये हिसाब से पाठ्यक्रम लेना पड़ता है. पहले हम देखते थे, चाहे वह सरकारी स्कूल हैं पुरानी पुस्तकों को भी लोग संभाल कर रखते थे ताकि आने वाले दूसरे जो बच्चें हैं, उनके काम आ जाती है. लेकिन आज तो यह पता चलता है कि वह काम की नहीं बचती हैं. जब तक कोर्स ही बदल दिया जाता है.
माननीय सभापति महोदय, मैं आपके माध्यम से यह चाहता हूं कि शिक्षामंत्री जी सुन रहे हैं. सी.बी.एस.सी. है, एम.पी. बोर्ड है. यह अलग अलग जो बोर्डस हैं, उनकी अलग अलग एज्युकेशन की प्रणाली आजकल एन.सी.आर.टी.सी. से मिलकर सब कर रहे हैं. लेकिन स्टेंडडर्स वह क्या दे रहे हैं ? इसको भी फीस निर्धारण में देखना पड़ेगा. सी.बी.एस.सी. पेटर्न वाला पता चला रहा है कि वह एम.पी. गवर्नमेंट का या उससे भी नीचे का कोई कोर्स पढ़ा रहा है. लेकिन वह फीस उस तरीके से वसूल रहा है इस ओर भी हमें देखना पड़ेगा. फीस की भी अलग अलग केटेगरी बन गई है एडमीशन फीस, ट्यूशन फीस, स्पोर्टस फीस, लायब्रेरी फीस, और यह भी देखना होगा कि लायब्रेरी फीस वसूल रहे हैं क्या स्कूल में लायब्रेरी है या नहीं है ? स्पोर्टस फीस वसूल रहे हैं क्या स्कूल में ग्राउंड है या नहीं है ? यह भी एक विषय आना चाहिए कि जिस बात के लिये फीस ली जा रही है वह सुविधाएं है या नहीं है. पता चला एक छोटा सा ग्राउंड कर लिया और उस स्कूल के अंदर दो हजार या डेढ़ हजार बच्चे पढ़ रहे हैं, कैसे खेलेंगे ? इतने सारे बच्चे उसकी क्या व्यवस्था रहेगी ? क्या वहां पर स्पोर्टस टीचर है कि नहीं है, इन सब बातों पर भी शायद हमें सोचने का समय आ गया है और एक जो बात श्री गोविंद सिंह जी ने कही बड़ी महत्वपूर्ण बात कहीं मैं उसे दोहराना चाहता हूं.
सभापति महोदय - थोड़ा संक्षिप्त कर लें.
श्री शैलेंद्र पटेल - एक मिनट में मैं समाप्त कर दूंगा. यह कि स्कूल की बैलेंस सीट बनना चाहिए आडिट तो होता है लेकिन वह कितना कमा रहा है किस बात पर खर्च कर रहा है और वह कितना लाभ उसके लिये जा रहा है, इसकी आज बहुत आवश्यकता है और हाईकोर्ट के निर्णय के बाद आ ही गया है अगले सत्र के पहले ताकि अगले सत्र के पहले इसमें निर्धारण हो. जिससे हमारे प्रदेश की जनता को इससे राहत मिले क्योंकि यह स्कूल सिर्फ उन स्टूडेंट्स, उनके पालकों का ही शोषण नहीं कर रहे हैं, उन टीचर्स का भी शोषण करते हैं कि तीन-तीन, चार-चार हजार रूपये में अगर कोई पढ़ायेगा तो कैसे पढ़ायेगा ? प्रायवेट स्कूल में जो टीचर्स पढ़ा रहे हैं, क्या उन्होंने पढ़ाने की ट्रेनिंग ली है या नहीं ली है ? इस ओर भी देखना पड़ेगा. क्या वह क्वालिफाइड है या नहीं हैं ? यह सब भी फीस निर्धारण में आना चाहिए और मैं पुन: आपके माध्यम से सभापति महोदय आदरणीय हमारे मंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूं इस ओर जल्दी निर्णय लें ताकि प्रदेश की जनता पर जो एक अवैध वसूली हो रही है उस पर रोकथाम हो और पालकों को उससे राहत मिले. जिससे प्रदेश और देश के आगे बढ़ने में हम सबका योगदान रहे. बहुत बहुत धन्यवाद.
सभापति महोदय - श्री कमलेश्वर पटेल (अनुपस्थित)
सभापति महोदय-- श्री कमलेश्वर पटेल (अनुपस्थित) श्रीमती शीला त्यागी...
श्रीमती शीला त्यागी(मनगवां)--सभापति महोदय, मैं सरकारी स्कूलों की अपेक्षा जो निजी स्कूल हैं उनमें मनमानी तरीके से अलग अलग तरह की फीस ली जाती है उसके संबंध में आपसे यह गुजारिश करती हूं कि हमारे प्रदेश में सबसे पहले तो सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी दूर की जाये. स्कूल भवनों में जो अव्यवस्था है जैसे छत टपकना, फर्नीचर नहीं होना, शौचालय नहीं होना इसकी व्यवस्था यदि सुचारु हो जायेगी तो निजी स्कूलों में लोग अपने बच्चों को पढ़ाने भेजना बंद कर देंगे.
सभापति महोदय, जो बड़े अधिकारी हैं, कर्मचारी हैं, नेता हैं इनके बच्चे अगर सरकारी स्कूलों में एडमिशन लेना शुरु कर देंगे तो शायद गरीब पालकों का ध्यान भी निजी स्कूलों की तरफ नहीं जायेगा. हमारे प्रदेश में इस समय दोहरी शिक्षा नीति हो गई है और शिक्षा का व्यावसायीकरण हो गया है जिसके कारण शिक्षा महंगी हो गई है. जो सरकारी शिक्षा नीति है और निजी स्कूलों में जो शिक्षा की गुणवत्ता है उसमें भारी अन्तर है इसके कारण जो समाज के कमजोर तबके के लोग हैं, मध्यम वर्गीय समाज के पालक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों की अपेक्षा निजी स्कूलों में पढ़ाने की उनके मन में जद्दोजहद रहती है. वे गांव छोड़कर शहर में आते हैं. जब वे गांव से शहर की ओर आते हैं तब उनके मन में यह रहता है कि हमारा बच्चा किसी अच्छे प्रायवेट स्कूल में पढ़े और जब वह प्रायवेट स्कूल में जाता है तो उसकी फीस देखकर उसके मन में यह लगता है कुछ भी हो जाये भले ही मुझे एक बीघा खेत ही क्यों न बेचना पड़ें मैं अपने बच्चे को प्रायवेट स्कूल में पढ़ाऊंगा. शहर में एक छोटा सा मकान लेकर वह अपने बच्चे को प्रायवेट स्कूल में पढ़ाने के लिए मजबूर हो जाता है.
सभापति महोदय, इसी मजबूरी का फायदा उठाकर हमारे प्रदेश में शिक्षा माफिया पूरी तरह से अपना वर्चस्व बना चुका है. प्रदेश का ऐसा कोई शहर नहीं है, गांव नहीं है जहां निजी स्कूलों का वर्चस्व न बढ़ रहा हो. इसका सबसे बड़ा कारण है कि सरकारी स्कूलों में दलिया-खिचड़ी आदि मेन्यू हम कागजों में करके खिलाते हैं और पढ़ाई पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया जाता. वहां पर प्राचार्य से लेकर चपरासी तक सिर्फ खिचड़ी-दलिया मेन्यू बनाने में दिन-रात व्यस्त रहते हैं. इसी कारण से शिक्षा में गुणवत्ता नहीं आ पाती है.
सभापति महोदय, शिक्षकों की भारी कमी है. यह कहा गया था स्कूलों में 22 हजार से अधिक शिक्षकों की भर्ती करेंगे लेकिन अभी तक भर्ती नहीं हुई. इसके साथ साथ Bed कॉलेज पूरे प्रदेश में गाजर-मूली की तरह फैल रहे हैं.
सभापति महोदय--कृपया समाप्त करें.
श्रीमती शीला त्यागी--सभापति महोदय, बहुजन समाज पार्टी के हम चार विधायक हैं इसमें से तीन अनुपस्थित है इसलिए मैं चाहती हूं उनका समय भी मुझे दिया जाये.
सभापति महोदय--ऐसा नहीं होता है.
श्रीमती शीला त्यागी-- ठीक है, अगर ऐसा नहीं होता है तो मैं अपनी बात 2-3 मिनट में समाप्त कर दूंगी. सभापति महोदय, माननीय मंत्रीजी को मेरे सुझाव है कि यहां पर प्रदेश में जितने प्रायवेट स्कूल हैं, उसमें से कुछ स्कूल जैसे दून, डीपीएस में सरकार प्रदेश के एससी/एसटी और कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए फीस जमा कराती है. ऐसे ही 4-5 अच्छे स्कूल हैं उसमें सरकार इन वर्गों के बच्चों के लिए फीस जमा कराती है. मैं कहना चाहती हूं कि भोपाल में जो द संस्कार वैली स्कूल है, वहां भी अच्छी शिक्षा दी जाती है. उस स्कूल की टॉप टेन स्कूलों में गिनती होती है. उस स्कूल में एससी/एसटी और कमजोर वर्ग के बच्चों को पढ़ने का मौका मिले और सरकार उस स्कूल को भी उन स्कूलों में शामिल करे जिसमें आर्थिक सहायता मिले ताकि इन वर्गों के बच्चों को भी अच्छी शिक्षा मिल सके..
सभापति महोदय, विश्व की महाशक्ति अमेरिका जहां पांचवीं तक प्राथमिक शिक्षा सरकारी स्कूलों में ही होती है. वहां लोग सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए जद्दोजहद करते हैं. अगर हमारी सरकार ने यह विचार किया कि हमारे बच्चों की प्राथमिक शिक्षा सरकारी स्कूलों में होगी और सारे लोग चाहे सम्भ्रांत हो, गरीब हो,नेता,अमीर सारे लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाएंगे तो प्राथमिक शिक्षा गुणवत्ता में सुधार आयेगा. कोई बच्चा अगर पांच साल का होता है तो उसके मॉं-बाप यही सोचते हैं कि हमारा बच्चा जाएगा पढे़गा-लिखेगा, पढ़-लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर, एसपी कलेक्टर बनेगा तो नींव ही कमजोर कर दी जाती है खासकर यह जो मध्यान्ह भोजन है इसके माध्यम से हमारे समाज के बच्चों की नींव कमजोर कर दी जाती है और उनके हाथ में बस्ते की जगह कटोरा थमा दिया जाता है. आप मध्यान्ह भोजन को आप बदल दीजिए लेकिन पहली प्राथमिकता शिक्षा होना चाहिए जो कि पूरी तरह से समाप्त कर दी गई है. इस दोहरी शिक्षा नीति के कारण ही दोहरी शिक्षा नीति को समाप्त करके गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार को ध्यान में रखते हुए निजी स्कूलों में प्रतिबंध लगाएं तब ही हमारे समाज में समानता रहेगी और गरीब समाज के बच्चे भी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे. आपने मुझे बोलने का समय दिया, बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री पन्नालाल शाक्य (गुना) -- माननीय सभापति जी, शिक्षा के विषय पर वह लोग बोल रहे हैं, जो संभवत: शिक्षा का मतलब नहीं समझते. (हंसी)
सभापति महोदय -- आप समझाइए, सभी को.
श्री पन्नालाल शाक्य -- बिल्कुल मैं सबको समझाऊंगा.
श्री घनश्याम पिरोनिया -- पन्नालाल जी स्वयं भी शिक्षक हैं इसीलिए.
श्री पन्नालाल शाक्य -- दो पंक्तियां कहता हॅूं.
श्री आशीष गोविन्द शर्मा -- पन्नालाल जी शिक्षक से यहां तक पहुंचे हैं.
श्री पन्नालाल शाक्य -- एक मिनट दो पंक्तियां कहता हॅूं सुन लो. बीच में मत बोलें.
श्रीमती शीला त्यागी -- माननीय सदस्य जी, क्या आपको अपनी दहलीज से ठोकर लगी है.
सभापति महोदय -- आप बैठ जाइए.
श्रीमती शीला त्यागी – सभापति महोदय, हमे तो अपनों ने लूटा, गैरों में क्या दम था.
श्री पन्नालाल शाक्य – माननीय सभापति महोदय जी, यह शिक्षा का मूल मंत्र है. शीश कटाए गुरू मिले, तो भी सस्ता जान. हमने ड्रेस की बात की, फीस की बात की, पाठ्यक्रम की बात की और यह सब हमें क्या देता है पद, प्रतिष्ठा और पैसा और यह सब के सब उसी का बखान कर रहे हैं पर इनमें से किसी ने भी यह नहीं कहा कि ज्ञान मिले ऐसी जगह हम भेजें और किसी को यदि ज्ञान प्राप्त हो जाता है तो फिर पैसा भी बचता है पद भी बचा रहता है और प्रतिष्ठा भी बची रहती है आज जो शिक्षा नीति चल रही है वह आदमी का जीवन कहीं पैसा बचाने में चला जाता है, कहीं पद बचाने में चला जाता है और कहीं प्रतिष्ठा बचाने में चला जाता है अगर उसको ज्ञान प्राप्त हो, तो यह तीनों चीजें अपने आप प्राप्त हो जाती हैं. इस मुद्दे पर कोई नहीं सोच रहा है. केवल उनकी फीस कम की जाये, उनको दलिया न मिले और उनको उत्कृष्ट शिक्षा दी जाए तो कहां से मिलने वाली है. हमने ऐसे शिक्षक ही चयन नहीं किए आज तक कि जो गुरू के रूप में हमारे सामने समाज में स्थापित हो सकें. जैसे आदरणीय सम्मानीय राधाकृष्ण जी, जो पूर्व राष्ट्रपति रहे हैं. वर्तमान में दिवगंत हो गए श्री ए.पी.जे.अब्दुल कलाम साहब ऐसा गुरू हमें कहीं नहीं मिल रहा और मेरे ख्याल से इनमें से कोई इनको मिला हो या नहीं मुझे नहीं मालूम. एक सबसे बड़ी समस्या यह है.
माननीय सभापति महोदय, दूसरा एक और विषय है कि शिक्षा एक मनोवैज्ञानिक विषय है किसी पर थोपी नहीं जाती है. शिक्षक के पढ़ाने की मानसिकता होगी तब छात्र पर असर होगा और छात्र के पढ़ने की इच्छा होगी तब उस पर असर होगा अब दोनों की ही मानसिकता नहीं है न पढ़ने की, न पढ़ाने की तो उससे कुछ नहीं मिलने वाला. जब दोनों की इच्छा होगी पढ़ने की और पढ़ाने की तब फिर ज्ञान प्राप्त होगा फिर वह कभी यह नहीं सोचेगा कि मुझे केवल पद के लिए शिक्षा ग्रहण करना है या पैसे कमाने के लिए ज्ञान प्राप्त करना है या प्रतिष्ठा के लिए शिक्षा ग्रहण करना है. आज सन् 1970 के बाद से हम देख रहे हैं कि ऐसे लोगों की संख्या बढ़ गई है और उसका परिणाम हम देख भी रहे हैं पर मैं जिस स्कूल में पढ़ता था भगवान की बड़ी कृपा हुई है कि मेरे जैसा व्यक्ति यहां आ गया सदन में, यह शिक्षा का ही परिणाम है और उसी स्कूल से निकला हुआ व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट का जज बन जाता है तो वहां के गुरू मेरे लिए आज भी वंदनीय हैं.
सभापति महोदय – आप बहुत अच्छा बोल रहे हैं. हमें अच्छा लग रहा है पर विषय पर आएं तो ठीक है जो आज की चर्चा का विषय है.
श्री गोविन्द सिंह – सभापति महोदय, आप तो इनका अभिनंदन कर लें. माननीय सदस्य जी का अभिनंदन तो जनता करेगी, लेकिन सदन की ओर से इनके अभिनंदन के लिए आज मैं अपना प्रस्ताव देता हॅूं.
सभापति महोदय – आप अच्छा बोल रहे हैं. इसके कोई दो मत नहीं है.
श्री शरद जैन – आप जब चर्चा उठाएंगे, तो वैसे ही विचार आएंगे.
श्री पन्नालाल शाक्य -- मैं यह निवेदन कर रहा था कि जो अशासकीय स्कूल हैं वे फीस ज्यादा वसूल करते हैं क्योंकि अशासकीय स्कूल तो धंधेबाज होते हैं, वे फीस क्यों कम करने लगे. सरकार उन पर कैसे नियंत्रण करेगी क्योंकि इसमें से कई लोग ऐसे होंगे जो शिक्षण संस्थाएं चलाते होंगे. अगर इनमें ऐसे लोग हैं जो शिक्षा के बड़े चिंतक हैं तो बच्चों को मुफ्त में पढ़ाएं और फ्री में शिक्षा देकर बताएं तो हम मानेंगे कि ये लोग वास्तव में शिक्षा की चिंता कर रहे हैं.
श्री शंकरलाल तिवारी -- सभापति महोदय, एक शिक्षा के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला सारे देश में लागू करिए ना.
सभापति महोदय -- देखिए, पहले यह तय हो गया है कि शाक्य जी के बीच में कोई नहीं बोलेगा. (हंसी)
श्री शंकरलाल तिवारी -- शाक्य जी, इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले की चर्चा करिए.
सभापति महोदय -- तिवारी जी, बैठ जाइये.
श्री पन्नालाल शाक्य -- सभापति महोदय, हमें मालूम है कि कोर्ट की कोई नहीं मानता, मैं यही निवेदन कर रहा था कि अगर वास्तव में ये शिक्षा के चिंतक हैं तो मुफ्त में पढ़ाएं, उस स्तर के शिक्षक दें, समाज की चिंता करें कि हमें कैसा समाज चाहिए. सुसंस्कृत और सभ्य समाज चाहिए कि भ्रष्ट, लूटेरा या लंपटबाजी से युक्त समाज चाहिए. ये इस बात की चिंता नहीं कर रहे हैं ये तो कह रहे हैं कि फीस कम करो, ड्रेस कम करो.
श्री घनश्याम पिरोनिया -- लंपटबाजी की व्याख्या कर दो.
सभापति महोदय -- शाक्य जी, आप बहुत अच्छा बोल रहे हैं लेकिन अब आप समाप्त करें क्योंकि समय की सीमा है.
श्री पन्नालाल शाक्य -- सभापति महोदय, मैं 36 साल तक शिक्षक रहा हूँ.
श्री सुखेन्द्र सिंह -- सभापति महोदय, तब तो इन्होंने तनख्वाह भी नहीं ली होगी.
डॉ. गोविन्द सिंह -- सभापति महोदय, पन्नालाल जी ने 36 वर्ष पढ़ाया है इनके पढ़े छात्र तो न जाने कहां पहुँच गए होंगे. (हंसी)
श्री पन्नालाल शाक्य -- सभापति महोदय, शिक्षा के विषय में ये मेरे विचार थे, आपने मुझे बोलने का समय दिया, उसके लिए धन्यवाद.
श्री कमलेश्वर पटेल (सिंहावल) -- माननीय सभापति महोदय, प्रदेश में संचालित अशासकीय शिक्षण संस्थाओं द्वारा मनमाने तरीके से फीस व अन्य शुल्क वसूले जाने की स्थिति के संबंध में माननीय डॉ. गोविंद सिंह जी ने चर्चा उठाई है. सभापति जी, हम तो आपके माध्यम से सरकार से और माननीय शिक्षा मंत्री जी से यही निवेदन करना चाहेंगे कि ऐसी स्थिति उत्पन्न कैसे हुई ? हम क्यों शासकीय स्कूलों को बंद करते जा रहे हैं, चाहे प्राथमिक स्कूल हों, माध्यमिक स्कूल हों, चाहे हाई स्कूल हों, प्रदेश सरकार ने हजारों स्कूल बंद कर दिए हैं. मेरे अपने जिले में 48 स्कूल बंद करने के आदेश हुए. एक तरफ हम शिक्षा के लोकव्यापीकरण की बात करते हैं, एक तरफ हम सर्वशिक्षा अभियान की बात करते हैं, एक तरफ आओ स्कूल चलें की बात करते हैं और दूसरी तरफ शासकीय स्कूल बंद कर रहे हैं. माननीय सभापति महोदय, और उन भवनों का क्या होगा जो भवन सरकार द्वारा टोले-टोले में शिक्षा शाला गारंटी के तहत बनवाए गए थे, क्या हम इनमें मवेशी बेड़ेंगे या जो बदमाश लोग हैं, असंगठित लोग हैं या असामाजिक तत्व हैं क्या इनके लिए हम इन भवनों को छोड़ेंगे या चारागाह बनाएंगे, क्या करेंगे यह बड़ा चिंता का विषय है. सभापति जी, मेरा आपके माध्यम से सरकार से और माननीय स्कूल शिक्षा मंत्री जी से निवेदन है कि आप शासकीय स्कूल्स में सुधार करिए, स्कूल्स बंद नहीं होने चाहिए. एक तरफ दूसरे देश हैं जहां पर कि अगर एक बच्चा भी पढ़ना चाहता है तो उसके लिए मेट्रो ट्रेन तक बंद नहीं की जाती है, हमने अभी कुछ दिन पहले अखबार में पढ़ा था और इलेक्ट्रानिक मीडिया में भी देखा था कि एक बच्चे को पढ़ाने के लिए मेट्रो ट्रेन बंद नहीं की गई और एक तरफ मध्य प्रदेश सरकार युक्तियुक्तकरण के तहत स्कूल्स बंद कर रही है. जहां नियम बना हुआ है कि प्राथमिक पाठशाला एक किलोमीटर के दायरे में, माध्यमिक पाठशाला तीन किलोमीटर के दायरे में, हाई स्कूल और हायर सेकेण्डरी स्कूल पांच किलोमीटर के दायरे में होने चाहिए तो फिर सरकार पर ऐसी कौन सी आफत आ गई, सरकार को तो अच्छे शिक्षकों की भर्ती करनी चाहिए.
सभापति महोदय -- कमलेश्वर जी, आप संदर्भ के लिए बोले यहां तक तो ठीक है, पर विषय यह नहीं है, आपने संदर्भ के लिए सरकारी स्कूलों की बात की, मैंने आपको टोका नहीं.
श्री कमलेश्वर पटेल -- सभापति महोदय, हम संदर्भ की ही बात कर रहे हैं.
स्कूल शिक्षा मंत्री (कुंवर विजय शाह) -- माननीय सभापति महोदय, माननीय सदस्य की बहुत सारी शिक्षण संस्थाएं हैं, वे यहां पर घोषणा कर दें कि बच्चों को मैं फ्री में पढ़ाउंगा, सदन पर बहुत उपकार होगा.
श्री कमलेश्वर पटेल -- देखिए, हमें जवाब देने की जरूरत नहीं है. माननीय मंत्री जी, आपको जो जिम्मेदारी मिली है, आप व्यवस्था बनाइये. देखिए, शाक्य जी ने ही जो कि खुद उत्कृष्ट शिक्षक रह चुके हैं और बाकी सारे शिक्षकों ने जिन्होंने हमें पढ़ाया है. उन सभी को तो माननीय शाक्य जी ने निकम्मा बना दिया है. हमारे लिए सारे गुरूजन सम्माननीय हैं. हम अपने सभी गुरूओं का चरणवंदन करते हैं. उन गुरूओं के अच्छे आदर्शों की वजह से आज यहां विभिन्न अधिकारी, विधायक और मंत्रीगण बैठे हुए हैं.
सुश्री कुसुम सिंह महदेले- सभापति महोदय, फीस के विषय पर चर्चा होनी है. (व्यवधान) पटेल इंस्टीट्यूट की चर्चा करवा लें.
श्री कमलेश्वर पटेल- माननीय मंत्री महोदया, मैं फीस की ही बात कर रहा हूं. महोदया आप वरिष्ठ सदस्य हैं, बुआजी आपको ये शोभा नहीं देता है. सभापति महोदय, यदि शासकीय स्कूल ठीक तरह से संचालित हों (व्यवधान)............
सभापति महोदय- कमलेश्वर जी समय की सीमा है, यदि आप प्रायवेट स्कूल पर कुछ बोलना चाहते हैं तो बोलिए.
श्री कमलेश्वर पटेल- यदि शासकीय स्कूल बंद नहीं होंगे तो प्रायवेट स्कूलों में बच्चे पढ़ने नहीं जायेंगे. टोले-मोले में कांग्रेस सरकार के समय जो स्कूल खुले थे, आप उन्हें बंद मत करिये. आप नए शिक्षकों की भर्ती करिये. स्कूलों के लिए जो भवन बने हुए हैं, उनका उपयोग करिये. इन उपायों से फीस पर स्वमेव ही नियंत्रण हो जायेगा.
वन मंत्री(डॉ. गौरीशंकर शेजवार)- सभापति महोदय, मेरा व्यवस्था का प्रश्न यह है कि विधानसभा में कोई भी सदस्य अपने निजी लाभ के लिए स्वयं के पक्ष में नहीं बोलेगा.
श्री कमलेश्वर पटेल- माननीय मंत्री जी मेरा कोई स्कूल संचालित नहीं है, क्षमा कीजियेगा.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार- मेरा ये निवेदन है कि जो लोग किसी संस्था के माध्यम से उसमें मेंबर हैं और इस फीस के मामले से सीधे तौर पर जुड़े हैं, उन्हें सदन में भाषण नहीं करना चाहिए.
श्री कमलेश्वर पटेल- यदि सरकारी स्कूल अच्छे से संचालित होंगे तो बच्चे प्रायवेट स्कूलों में नहीं जायेंगे. (व्यवधान)...............
श्री शंकर लाल तिवारी- माननीय सभापति महोदय, गुड़ खाने वालों को गुलगुलों से परहेज है.
डॉ. गोविंद सिंह- डॉ. शेजवार जी ने अध्यक्ष जी के चेम्बर में कहा था कि सदन में व्यवधान नहीं करेंगे और सदन में आते ही उनकी बात का असर खत्म हो गया. आप अध्यक्ष जी के चेम्बर में वादा करके आये हैं और फिर व्यवधान कर रहे हैं. (व्यवधान)............
डॉ. गौरीशंकर शेजवार- मेरे व्यवस्था के प्रश्न का कोई जवाब नहीं आया. मैं स्वयं यह घोषणा करता हूं कि मैं किसी संस्था से नहीं जुड़ा हुआ हूं और न ही मेरा कोई स्कूल है.
सभापति महोदय- मैं जवाब दे रहा हूं. गोविन्द सिंह जी आप बैठ जाईये.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार- सदन में किसी को भी इस विषय पर भाषण करने से पहले यह घोषणा करनी चाहिए कि मेरा कोई स्कूल नहीं है, मेरी कोई संस्था नहीं है. फीस बढ़ने या कम होने से मेरा कोई संबंध नहीं है. क्योंकि यदि मेरा कोई स्कूल है या मेरी कोई संस्था है और फीस कम-ज्यादा करने पर मैं सदन में कोई व्याख्यान देता हूं तो ये मेरा निजी लाभ कहलायेगा. इसलिए सदस्यों को पहले यह घोषणा करनी चाहिए कि मेरा कोई स्कूल या संस्था नहीं है और फीस बढ़ने या कम होने से मेरा कोई निजी लाभ नहीं होगा. माननीय सभापति जी, मैं अपेक्षा करता हूं कि आप मेरे व्यवस्था के प्रश्न पर ध्यान देंगे.
श्री कमलेश्वर पटेल- माननीय सभापति जी, सरकार के पास तो सारे अधिकार हैं. सरकार व्यवस्था बना दे.
श्री वैलसिंह भूरिया- माननीय सभापति जी, हम माननीय डॉ. शेजवार साहब की बातों का समर्थन करते हैं.
श्री कमलेश्वर पटेल- मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई है.
सभापति महोदय- आप बैठिये. मैं आपको पूरा समय दूंगा. शेजवार जी आपने व्यवस्था का प्रश्न उठाया है. जिसकी कोई संस्था है वह सदन में इस विषय पर नहीं बोल सकता, इसका नियम में कोई उल्लेख नहीं है.
सुश्री कुसुम सिंह महदेले- माननीय गोविंद सिंह जी ने अशासकीय शिक्षण संस्थाओं द्वारा मनमाने तरीके से वसूल की जा रही फीस का विषय उठाया है. माननीय सदस्य शासकीय स्कूलों और अन्य विषयों पर पता नहीं क्या-क्या बोल रहे हैं. इसका क्या औचित्य है ? मूल विषय पर आप बोलिये, कौन मना करता है ?
सभापति महोदय- मंत्री जी, आप बैठिये. विषय से भटकने वालों को टोकने के लिए मैं यहां बैठा हुआ हूं. शेजवार जी मेरा ये निवेदन है कि जिनको अनुभव है, वही तो सुझाव दे सकेंगे. (हंसी)
डॉ. गौरीशंकर शेजवार- मैं आसंदी का सम्मान करता हूं. आसंदी से बहुत अच्छा निर्णय प्राप्त हुआ. लेकिन प्रश्न यह है कि जिनको समझ है, वही तो समझ पायेंगे. (हंसी)
सुश्री कुसुम सिंह महदेले- सदन में सभी समझदार हैं.
श्री कमलेश्वर पटेल- माननीय सभापति महोदय, मेरा आपके माध्यम से माननीय शिक्षा मंत्री जी से, सरकार से निवेदन है कि शासकीय स्कूलों के प्रति लोगों का जो विश्वास घटा है, ऐसा नहीं होना चाहिए. लोगों का विश्वास शासकीय स्कूलों में बढ़ना चाहिए. यदि हम शासकीय स्कूलों में सुविधायें देंगे, अच्छे शिक्षकों की व्यवस्था करेंगे तो लोग अपने बच्चों को प्रायवेट स्कूलों में नहीं पढ़ायेंगे. हमें विश्वास है कि आज की इस चर्चा के माध्यम से माननीय शिक्षा मंत्री जी शासकीय स्कूलों में उत्तम व्यवस्था बनायेंगे. धन्यवाद महोदय.
सभापति महोदय- श्री मुरलीधर पाटीदार
श्री मुरलीधर पाटीदार- (अनुपस्थित)
श्री शंकर लाल तिवारी- आदरणीय विधायक जी के पिताजी श्री दिग्विजय सिंह जी के कार्यकाल में शिक्षा मंत्री रह चुके हैं. उस जमाने में नॉनगजटेड स्कूल, नॉनबजटेड स्कूल, बिना भवन के स्कूल, बिना मास्टर के स्कूल, फिजूल में स्कूल रहा करते थे.
स्कूल शिक्षा मंत्री (कुंवर विजय शाह)-- माननीय सभापति महोदय, आदरणीय हमारे वरिष्ठ सदस्य गोविन्द सिंह जी ने जो विषय इस पवित्र सदन में उठाया है मैं उनकी तारीफ करता हूँ कि उस बहाने से हमें और अच्छे काम करने का और नियम बनाने का मौका भी मिलेगा और आपकी व सदन की भावना के अनुरूप हम कुछ करके भी दिखाएँगे. यह सत्य नहीं है कि प्रदेश में संचालित निजी स्कूल संचालकों द्वारा बच्चों एवं अभिभावकों से मनमाने तरीके से फीस वसूल की जा रही है. प्रत्येक वर्ष कोर्स बदल दिया जाता है और निजी बुक सेलर प्रिंटर से मिलीभगत कर अभिभावकों से लूट की जा रही है. यह सरकार पूरी तरह से सजग और संवेदनशील है. अभी बात यह आई थी कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले आगे नहीं बढ़ते, हजारों हजार उदाहरण हैं, लाल बहादुर शास्त्री, अबुल कलाम आजाद, आदरणीय मुख्यमंत्री शिवराज जी, हमारे प्रधानमंत्री जी, माननीय गोविन्द सिंह जी और विजय शाह खुद, हम लोग सब सरकारी स्कूल में पढ़े इसलिए यह कहना कि सरकारी स्कूल से पढ़ा हुआ व्यक्ति, डॉ राधाकृष्णन जी, राष्ट्रपति थे, सब लोग सरकारी स्कूल में पढ़े. हिन्दुस्तान के सरकारी स्कूलों का रिकार्ड बहुत अच्छा है और इसमें मुझे....
श्री शंकरलाल तिवारी-- शिक्षा मंत्री जी, मैं व्यवधान कर रहा हूँ, मेरे सतना में एमएलबी हायर सेकंडरी स्कूल का रिजल्ट 92 परसेंट, कन्या धवारी हायर सेकंडरी स्कूल का रिजल्ट 96 परसेंट, ये सरकारी स्कूल हैं.
सभापति महोदय-- समय कम है. आप बैठिेए. मंत्री जी को जवाब देने दीजिए.
श्रीमती शीला त्यागी-- पहले के स्कूलों में मध्यान्ह भोजन नहीं मिलता था, सिर्फ शिक्षा मिलती थी.
कुँवर विजय शाह-- यह बात माननीय गोविन्द सिंह जी ने बहुत सही उठाई, हमने एक मार्गदर्शी सिद्धांत, सरकार की नीयत और नीति बिल्कुल स्पष्ट है. हम मध्यप्रदेश में शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं होने देंगे और जो व्यक्ति शिक्षा के माध्यम से धन कमा करके बड़ा आदमी बनने की कोशिश करेगा उसको यह सरकार नियंत्रित करेगी. चाहे हमें नये नियम बनाने पड़े तो नये नियम भी सरकार बनाएगी. (मेजों की थपथपाहट) अभी आदरणीय विद्यासागर जी महाराज यहाँ आए थे उन्होंने भी यही कहा कि शिक्षा को व्यापार मत बनाइये. पूरा सदन इस बात से सहमत है.
अध्यक्षीय घोषणा.
सदन के समय में वृद्धि विषयक.
उपाध्यक्ष महोदय-- आज की कार्यसूची का कार्य पूर्ण होने तक सदन के समय में वृद्धि की जाए. मैं समझता हूँ सदन इससे सहमत है.
(सदन द्वारा सहमति प्रदान की गई)
कुँवर विजय शाह-- माननीय विद्यासागर जी ने भी यह कहा आप और हम सब सहमत हैं कि इस देश और प्रदेश में शिक्षा को व्यापार नहीं बनने देना चाहिए. हमारी सरकार इसमें कृतसंकल्पित है चाहे हमें उसके लिए नियम बनाने पड़े. कुछ शिकायतें प्रायवेट शिक्षण संस्थाओं की आई थीं, जो आपने कहा, जिनके मैं नाम लेना चाहता हूँ कि जिन्होंने अचानक फीस वृद्धि कर दी. सेंट जॉन स्कूल, धार, क्राइस्टचर्च स्कूल, जबलपुर, सेंट जोसफ स्कूल, ग्वालियर, मिस्डी स्कूल, ग्वालियर, सेंट टैरेसा स्कूल, ग्वालियर, सिटी पब्लिक स्कूल, अशोक नगर, सेंट चाल्स स्कूल, होशंगाबाद, वीनस स्कूल, ऐसे तमाम, ये कौन स्कूल हैं, ये कौन वृद्धि कर रहे हैं. ये शिकायतें मेरे पास आई हैं. हम जाँच कर रहे हैं.
श्री कमलेश्वर पटेल-- सभापति महोदय, पर इसमें मिशनरी की स्कूलों का ज्यादा मेंशन है, सारी स्कूल ऐसे चल रही हैं और सब में फीस प्रायवेट स्कूलों में लग रही है तो यह कहीं न कहीं सरकार का, यह थोड़ा ठीक नहीं है.
कुँवर विजय शाह-- माननीय सभापति महोदय, ये मैंने वे नाम लिए हैं जिन स्कूलों की शिकायतें हमारे पास आई हैं. मेरे पास प्रुफ हैं, मैं आपको दिखा सकता हूँ. सभापति महोदय, आज शुल्क के नाम पर, कपड़ों के नाम पर, जूतों के नाम पर, खेल के नाम पर, पिकनिक ले जाएँगे उसके नाम पर जूते और टाई के नाम पर, न जाने कौन कौन से नाम पर, जिस तरीके से ये जो प्रायवेट शिक्षण संस्थाएँ वसूली कर रही हैं. गोविन्द सिंह जी, आदरणीय हमारे विधायक जी ने जो बात उठाई. कोर्ट के निर्णय के बाद, कोर्ट ने कहा कि सरकार नियम बनाए ये जो मार्गदर्शी सिद्धांत हमने दिए थे, हम नहीं चाहते थे कि हमारा कोई डंडा प्रायवेट स्कूलों पर चले, आखिर उनका भी योगदान है. हमारी सरकार नहीं चाहती थी. लेकिन हमें मजबूरी में नियम बनाने पड़ रहे हैं कि जो प्रायवेट स्कूल जिस तरीके से मध्यप्रदेश के बच्चों का शिक्षा शुल्क के नाम पर शोषण करने की जो परंपरा चली आ रही है. हम हाईकोर्ट के निर्देश पर नियम बना रहे हैं और मैं इस सदन को बताना चाहता हूँ कि दिसंबर के पहले ये सारे नियम अधिनियम बन करके इस पवित्र सदन पर रख दिए जाएँगे आदरणीय गोविन्द सिंह जी. इसके साथ साथ यह सरकार बच्चों के भविष्य के लिए कृतसंकल्पित है. माननीय सदस्यों की जो चिंता थी कि 40 हजार शिक्षकों की कमी है. मैं पवित्र सदन में बताना चाहता हूँ कि यह जो 40 हजार शिक्षकों की कमी है इसे हम दिसम्बर तक पूरा करने का पूरा प्रयास करेंगे.
सभापति महोदय, नियम क्या बनेंगे क्या नहीं बनेंगे इस पर ज्यादा चर्चा मैं अभी उचित नहीं समझता हूं क्योंकि यह अभी प्रोसेस में है. सदन में इतना जरुर बता दूं सदस्यों ने जो चिंता की है कि एक ही दुकान पर ड्रेस मिलती है, अब केवल एक ही दुकान पर ड्रेस नहीं मिलेगी 2-4-6 दुकान रखना पड़ेंगी. हर साल ड्रेस बदल दी जाती है, परन्तु अब पांच साल तक नहीं बदलने दूंगा इसके लिए नियम बना रहा हूं. जूते पर नाम, कपड़े पर नाम, टाई पर नाम ऐसी बहुत सारी चीजें हैं सभी करना संभव नहीं है लेकिन हमारी सरकार की और मुख्यमंत्री जी की जो मंशा है वह समझ लें. इस पवित्र सदन में आपने जो मुद्दा उठाया है हमारी सरकार और मुख्यमंत्री जी की मंशा है कि शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं करने दिया जाएगा. बच्चों के साथ प्रायवेट शिक्षण संस्थाएं मनमानी वसूली करती हैं उस पर रोक लगेगी चाहे इसके लिए सरकार को कड़े कदम उठाना पड़ें. यह मैं आपको आश्वस्त करता हूँ. हम सब लोगों की टीचर और शिक्षण संस्थाओं के प्रति चिंता है. हमने कहा है कि अब हम शिक्षकों को नेम प्लेट लगवाएंगे, एप्रिन पहनने को देंगे ताकि वे गौरवपूर्ण तरीके से पढ़ाने जाएं मुंह लटकाकर न जाएं. शिक्षक राष्ट्र निर्माता होता है राष्ट्र निर्माता के रुप में उसकी गौरवशाली पहचान बने. अभी तक हमने देखा था कि जो बच्चा कक्षा में पीछे बैठता है वह पीछे ही बैठता है जो आगे बैठता है वह आगे ही बैठता है. हमने निर्देश जारी कर दिए हैं कि बच्चे चक्रानुक्रम में बैठेंगे. जो सबसे पीछे बैठने वाला बच्चा होगा वह कल आगे बैठेगा, फिर सेकेण्ड पर आएगा और फिर थर्ड पर आएगा. अब हर बच्चे को आगे बैठने का मौका मिलेगा यह निर्देश हमने जारी कर दिए हैं. ऐसे अनेक निर्देश जो बच्चों के हित में देश की भावी पीढ़ी के हित में होंगे वह कदम उठाने में यह सरकार पीछे नहीं रहेगी.
सभापति महोदय, भिण्ड में बहुत सारे माफिया भी थे मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता हूँ कई जिले बदनाम थे कि न जाने कहां कहां से लोग आ जाते हैं और परीक्षा देते हैं और पास हो जाते हैं 90 और 100 प्रतिशत के आसपास अंक लाते हैं. लेकिन हमारी भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने इनको ठीक किया है. गोविन्द सिंह जी आप भी इस बात से सहमत होंगे. आपका और सदन का सहयोग मिलेगा तो हम और नये आयाम मध्यप्रदेश की शिक्षा के लिए स्थापित करेंगे. बहुत-बहुत धन्यवाद.
5:33 बजे
नियम 52 के अधीन आधे घंटे की चर्चा
दिनांक 21 जुलाई, 2016 को लोक निर्माण मंत्री से पूछे गए तारांकित प्रश्न संख्या 5 (क्रमांक 1639) के उत्तर से उद्भूत विषय.
श्री गिरीश गौतम (देवतालाब)-- माननीय सभापति महोदय, 21 जुलाई को मेरा प्रश्न था कि रीवा जिले में रीवा से हनुमना जो फोरलेन रोड है, अनुबंध के अनुसार उस 90 किलोमीटर की रोड में करीब 60 या 65 किलोमीटर पुरानी सड़क को तोड़कर चौड़ा किया. बाकी 20-25 किलोमीटर बायपास करके निकाला गया. बायपास में पेड़ नहीं थे परन्तु जो पुरानी सड़क थी उस सड़क के बारे में कहा जाता है कि वह शेर शाह सूरी के जमाने की बनी हुई सड़क थी जिसको नेशनल हाई-वे 7 कहा जाता था उस सड़क के दोनों किनारों पर बहुत घने पेड़ लगाए गए थे, छाया का उद्देश्य था, फलों का उद्देश्य था. अनुबंध में यह तय किया गया था कि उन पेड़ों को ठेकेदार काटेगा और पेड़ काटने के बाद नये पेड़ लगाएगा. यह सड़क रीवा से जब निकलती है तो हम चार विधायकों के क्षेत्र से जाती है पहले सुन्दरलाल जी का गुढ़ आता है, श्रीमती शीला त्यागी जी का मनगवां आता है, फिर मेरा देवतालाब आता है उसके बाद सुखेन्द्र सिंह बना जी का क्षेत्र आता है.
और अनुबंध के भीतर यह कहा गया कि जो पेड़ काटे हैं, उसकी एवज में वह 10 गुना पेड़ लगायेंगे, इस बात का जवाब भी आया कि उन्हों ने 40 हजार 529 पेड़ लगा दिये हैं. आम, नीम और कदम के पेड़ लगा दिये हैं, यह जवाब आया. दुर्भाग्य से यह स्थिति पैदा हुई कि वह प्रश्न के रूप में नहीं आया और इसलिये मुझे नियम 52 के भीतर इसको लाना पड़ा और अध्यक्ष जी ने नियम 52 के अंदर शामिल करके उसको चर्चा में अनुमति दी. इसके लिये मैं उनको धन्यवाद देना चाहता हूं.
जब हम उस सड़क से निकलते हैं तो मुझे पेड़ तो दिखाई नहीं पड़ते हैं. अब ऐसा हो सकता है कि वह पेड़ मिस्टर इंडिया हो, ऐसा हो सकता है कि कोई ऐसी टेक्नालाजी डवलप हुई हो, जिस टेक्नालाजी के भीतर आदमी को पेड़ दिखाई नहीं पड़ेगें. मैं माननीय मंत्री जी को जानकारी देना चाहता हूं कि जब मेरा प्रश्न लगा तो मुझे सूचना आयी कि जिस दिन प्रश्न आया है और सौभाग्य से तारांकित प्रश्न हो गया है, उस दिन यह पता चला कि ठेकेदार के आदमी जाकर के वहां पर नीम के पेड़ गाड़ रहे थे कि कोई वहां पर चेकिंग के लिये न आ जाये, परन्तु उस दिन प्रश्न नहीं लगा. फिर पेड़ गाड़ना बंद हो गया. आज मुझे फिर टेलीफोन आया, जैसे ही नियम 52 के भीतर प्रश्न आने की उन्हें जानकारी हुई तो वह फिर वहां पर पेड़ गाड़ रहे हैं. वह अब गाड़ रहे हैं या नहीं वह मुझे जानकारी नहीं है. मुझे अपेक्षा यह थी कि विपक्ष में लोग बैठे हैं ज्यादा हल्ला करते हैं, प्रश्न इनकी तरफ से आना चाहिये चाहिये था वह नहीं आया.
श्रीमती शीला त्यागी :- हमने तीन बार प्रश्न लगाने की कोशिश की लेकिन प्रश्न अग्राह्य किया गया है.
श्री गिरीश गौतम :- उपाध्यक्ष जी, सवाल यह पैदा हुआ कि नियम 52 की चर्चा के लिये मुझे क्यों आना पड़ा. जो जनता का परसिप्शन है और जो ठेकेदार के आदमी वहां बातचीत करते हैं उनका कहना है कि हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है. पूरी सरकार को हम जेब में रखते हैं और विधानसभा में इस तरह के प्रश्न नहीं आयेंगे और जिस तरह से विधानसभा में बाधित होकर के और तमाम सारी परिस्थियां पैदा होती हैं, उससे उन अधिकारियों का मनोबल बढ़ेगा. जांच करके विधान सभा में हमारे मंत्री के माध्यम से कहलवाने चाहते हैं, गुमराह करना चाहते हैं कि 40 हजार 529 पेड़ आम, नीम और कदम के पेड़ वहां लगा दिये हैं और वहां पर एक भी पेड़ नहीं है. इस तरह से विधान सभा के भीतर कार्यवाहियां होती है.इन कार्यवाहियां से डर अधिकारियों का समाप्त होता जा रहा है. यदि वह डर नहीं हुआ तो मुझे चाणक्य की वह सुक्ति याद आती है कि एक बार किसी ने एक विषय प्रश्न किया कि भाई यह राजा भी मनुष्य होता है, उसको भी नींद आती है, तो राजा सो जाता है तो राज कैसे चलता है, तो चाणक्य ने जवाब दिया की राजदण्ड का भय राज्य चलाता है तो सरकार का भय होना चाहिये. ठेकेदार और अधिकारी मिलकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं, उसमें हमारे मुख्यमंत्री जी ने भी चिन्ता व्यक्त की है. तो इन ठेकेदारों का, अधिकारियों के साथ, जो नेक्सेस बना है उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही हो, जिससे कम से कम इतना भय तो पैदा हो, क्योंकि वह भ्रष्टाचार करने से तो मानेंगे नहीं. हमारे रीवा जिले में हमारे सब विधायक साथी जानते हैं कि प्रतिदिन अखबार में आता है कि पटवारी, कानूनगो और तहसीलदार ट्रेप में पकड़े जाते हैं. परन्तु क्या भ्रष्टाचार खत्म हो रहा है, उनके भीतर कोई डर पैदा नहीं हो रहा है. तो जब तक हम कोई सख्त कार्यवाही नहीं करेंगे, इसमें यह सवाल नहीं है कि हमने प्रश्न लगाया है, मंत्री जी हमको आश्वासन देंगे, पेड़ भी अनुबंध के अनुसार कर देंगे, यह सब हो जायेगा, पेड़ भी लग जायेंगे, आश्वासन भी मिल जायेगा, सारी कार्यवाहियां हो जायेंगी. परन्तु सवाल यह है कि इतनी बड़ी विधानसभा को, इसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का जिस ठेकेदार ने और किस अधिकारी ने काम किया है, उसके खिलाफ में कार्यवाही करने की मांग करता हूं. उन्होंने हमारी विधानसभा की गरिमा को गिराया है, मंत्री की गरिमा को गिराया है, सरकार की गरिमा को गिराया है उन्होंने गलत बयान देकर के, गलत तथ्य पेश करके असत्य कथन इन्होंने करवाया है. मैं आपसे निवेदन यह करना चाहता हूं, मैं इसलिये बोल रहा हूं कि तुलसीदास की एक चौपाई है कि ''सचिव वैद्य गुरू तीन जो प्रिय बोलहिं भय आस, राज, धर्म, तन तीन करू होय बेगहीं नास । इसलिये मैं बोल रहा हूं कि हमारे मंत्री जी हमको छोटे भाई की तरह मानते हैं, परन्तु मैं चाहता हूं एक बार इसमें कुछ हो जाये. इसमें मेरे तीन प्रश्न हैं -
एक तो यह है कि क्या जांच कराएंगे ? मिस्टर इंडिया की तरह पेड़ दिखाई नहीं दे रहे हैं उसकी भी जांच हो जाए उसको भी दूरबीन लगाकर के पहचान सकें कि कहां पर पेड़ लगा है उसकी जांच हो जाए और उस जांच कमेटी में यदि इसमें विधायकों की समिति बन जाए उससे अच्छा कुछ भी नहीं है, ऐसा कर सकते हैं तो एक मिसाल विधान सभा के अंदर कायम होगी. एक समिति उसकी जांच करने गई है और जांच में रिपोर्ट अगर आती है कि एक भी पेड़ नहीं लगा है और तीन विधायक महोदय भी बताएंगे कि कहां पर पेड़ लगे हैं ? जिन अधिकारियों ने असत्य जानकारी दी है उनके खिलाफ कार्यवाही करेंगे क्या ? कार्यवाही तो करना चाहिये, दूसरा उसकी समय-सीमा हो जिससे हम अगले सत्र में आयें तो उस समय कम से कम कार्यवाही हो चुकी हो.
5.41 बजे {उपाध्यक्ष महोदय (डॉ.राजेन्द्र कुमार सिंह) पीठासीन हुए}
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, यह कार्यवाही हो जाए जिससे उनको पता चले कि विधान सभा को हम अगले प्रश्नों में गुमराह कर असत्य जानकारी नहीं दे सकते हैं. इसलिये मेरी मांग तीन सवालों को लेकर यह है कि मैं तीन चीजें मंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूं. एक तो उसकी जांच करावें, जांच में विधायकों की एक समिति बना लें उससे बढ़िया कुछ भी नहीं हो सकता है, उसमें हमारे प्रतिपक्ष के लोग भी शामिल हो जाएं और भी विधायकों को शामिल करना है कर लीजिये. उनसे एक बार जांच करा लीजिये उसमें अधिकारियों को भी शामिल किया जाए. जांच करा लीजिये. उसमें यदि पाया जाये कि वहां पर कोई भी पेड़ नहीं लगा है तो निश्चित तौर पर अधिकारियों के ऊपर कार्यवाही करें. मेरा यही आग्रह है. इसलिये नियम 52 के अंतर्गत यह चर्चा में आ जाए. आपने समय दिया बहुत बहुत धन्यवाद.
श्री घनश्याम पिरोनिया‑-(XXX)
उपाध्यक्ष महोदय-- नियम 52 के तहत जो माननीय सदस्य पहले से लिखकर के देते हैं उन्हीं को ही सदन में बोलने के लिये कहा जाता है. बाकी के लिये नहीं.आप लोग कृपया बैठिये. माननीय मंत्री जी के अलावा जो भी बोलेंगे उनका नहीं लिखा जाएगा.
श्री कमलेश्वर पटेल--(XXX)
XXX : आदेशानुसार रिकार्ड नहीं किया गया.
लोक निर्माण मंत्री (श्री रामपाल सिंह)--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय गिरीश गौतम जी ने जो प्रश्न उठाया था उनको विस्तार से जानकारी दी गई, लेकिन उसमें माननीय विधायक जी का जो तर्क है वृक्ष लगाने में हमने कहा था कि 40526 पौधे लगाये गये हैं उसमें उनकी आपत्ति है कि पौधे नहीं लगाये गये हैं. हमने कहा था कि वर्तमान में 10 हजार पौधे जीवित हैं वह भी कह रहे हैं कि यह असत्य जानकारी है. मेरा निवेदन यह है कि इस साल 5 हजार पौधे लगाये जाने का भी निर्देश है, वह भी लगाएंगे. विधान सभा में माननीय सदस्य को दोबारा आना पड़ा इसकी अनुमति आपने दी है तो निश्चित रूप से कहीं न कहीं उनको कठिनाई होगी इतना प्रयास करके आपने जो अनुमति दी है तो इस बात की गंभीरता को देखते हुए जैसा कि माननीय विधायक जी ने कहा है ठेकेदार ऐसा कहते हैं और वैसा कहते हैं. मध्यप्रदेश में इस तरह की अगर बात करते हैं तो उनके ऊपर कड़ी कार्यवाही भी करेंगे मैं इसका पूरा विश्वास माननीय विधायक श्री गौतम जी को दिला रहा हूं. अगर इसमें कुछ गड़बड़ी है निश्चित रूप से बताएं वह हमारे जनप्रतिनिधि हैं और वह जनता के बीच में भी जाते हैं. निश्चित रूप से उन्होंने जो बात रखी है बड़ी गंभीरता के साथ रखी है और उनकी भावनाओं को समझते हुए को समझते हुए मैं भी इनकी गंभीरता को समझ रहा हूं. जो जानकारी आपने दी है उस पर हम सख्त कार्यवाही करेंगे.
इस मामले की पूरी निष्पक्ष जांच कराऊंगा और मैं निर्देश दे रहा हूं कि 3 महीने के अंदर जांच करके प्रतिवेदन यहां पर प्रस्तुत करें । जो भी गड़बड़ी करने वाले होंगे जांच के उपरान्त उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही करेंगे । मैं आपको विश्वास दिलाता हूं ।
श्री गिरीश गौतम- उपाध्यक्ष जी, मैंने समिति की मांग की है ।
श्री रामपाल सिंह- उपाध्यक्ष महोदय, जहां तक समिति की बात है । हमारे जनप्रतिनिधि हैं, वहां के विधायक हैं । जांच अधिकारी जाएंगे और समिति की पूरी रिर्पोट विधायक जी को देंगे । सुबह हमारे डॉ. साहब ने जैसे किया था कि चले जाओ जांच करेंगे । माननीय संजय शर्मा जी के उत्तर में आपने कहा था । विधायक हमारे जनप्रतिनिधि हैं, हमें कोई संदेह नहीं है, आप उसमें रहिए जांच अधिकारी आपको पूरी जानकारी देंगे । जो बिन्दु आप ध्यान में लाएंगे, पूरे विश्वास के साथ कार्यवाही करेंगे ।
श्री गिरीश गौतम- हमको जानकारी अधिकारी न दें । जब अधिकारी जांच करने जाएं तो हमको साथ में ले लें । हम उनको दिखाएंगे । बीच में कनेर के पेड़ लगे हैं । उनको गिनकर बता देंगे । आपने लिखा है, नीम, आम, कदम्ब, तीन पेड़ लिखे हैं ।
उपाध्यक्ष महोदय- गिरीश जी, माननीय मंत्री जी भी यही कह रहे हैं । जब जांच अधिकारी जाएंगे तो आपको सूचना करेंगे और आप चाहें तो शामिल हो जाइए यह आपकी इच्छा पर निर्भर है ।
श्री रामपाल सिंह- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आप जितनी गंभीरता से बात रख रहे हैं, उससे दुगुनी गंभीरता से शासन में हम बात को रखेंगे और जरूरत पड़ी तो इस पर सख्त कार्यवाही करेंगे ।
श्री गिरीश गौतम- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपको और माननीय मंत्री जी को बहुत बहुत धन्यवाद ।
2. दिनांक 21 जुलाई 2016 को वन मंत्री से पूछे गए तारांकित प्रश्न संख्या 22 (क्रमांक 1757) के उत्तर से उद्भूत विषय.
उपाध्यक्ष महोदय- श्री हेमंत खण्डेलवाल नियम 52 के अधीन आधे घंटे की चर्चा प्रारंभ करेंगे ।
श्री हेमंत खण्डेलवाल( बैतूल)- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, नियम 52 के तहत अध्यक्ष महोदय ने मुझे विषय उठाने के लिए अनुमति दी उसके लिए मैं धन्यवाद देता हूं । माननीय उपाध्यक्ष महोदय प्रश्न क्रमांक 1757 और 3357 के संबंध में मेरी यह चर्चा है । एक सवाल विधानसभा में काफी समय से चलता आया है, नारंगी भूमि क्या होती है ? यह नारंगी भूमि राजस्व की भूमि है कि वन भूमि है । यदि राजस्व की भूमि है तो इस पर वन विभाग का अधिनियम क्यों लागू होता है ? मैं आपको बताना चाहूंगा कि मध्यप्रदेश शासन वन विभाग के तत्कालीन सचिव अशोक मसीह ने 1994 में एक संक्षेपिका बनाई और उसमें नारंगी क्या है, उसकी व्याख्या की । उनका कहना था कि पटवारी मानचित्र में जो जमीन संरक्षित वन क्षेत्र के अंदर आ गई उसे हरे कलर से मार्क कर दिया और जिस पर जंगल नहीं है और जो वन खण्ड से बाहर थी, उसे नारंगी कलर से मार्क कर दिया । यही जमीन बाद में नारंगी भूमि कहलाई इसके अलावा वन एक्ट में नारंगी शब्द नाम का कोई शब्द नहीं है ।
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, इस प्रकरण में समय समय पर जो अधिसूचनाएं जारी हुई, विधानसभा में जो सवाल पूछे गए, जो तथ्य बताए गए, उसके संबंध में आपको विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत करना चाहूंगा । भारतीय वन संविधान में 1927 के बाद धारा 4, 20,27 और 34 में परिवर्तन किए गए. 1980 तक जो सूचनाएं राजपत्र में प्रकाशित की गईं उसे वन विभाग ने संकलित ही नहीं किया और न ही उन धाराओं का अध्ययन किया ।
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से मंत्री जी को यह भी बताना चाहूंगा कि संरक्षित वन और सर्वे डिमस्ट्रेशन और संरक्षित वन ब्लाक हिस्ट्री जो 1960 से 1980 तक है, वह भी वन विभाग के पास उपलब्ध नहीं है । उपाध्यक्ष्ा महोदय, मैं आपके माध्यम से व्यापक राज हित में एक अनुरोध करना चाहूंगा कि नारंगी जमीन से संबंधित जो भी सवाल विधानसभा में उठाए गए उनका एक बार परीक्षण करा लें । इसके अलावा मैं अपने बैतूल जिले की जो नारंगी जमीन है, वन विभाग ने जो कार्यवाही की, उसके संबंध में जानकारी देना चाहूंगा । बैतूल जिले के 680 ग्रामों में 1 लाख 49 हजार हेक्टेयर जमीन वन विभाग ने संरक्षित वन सर्वे में शामिल की । इसके अलावा ऐसी जमीन जिस पर जंगल नहीं था, 1269 राजस्व ग्राम में 1 लाख 37 हजार जमीन उन्होंने नारंगी भूमि के नाम से सर्वे में शामिल की. माननीय उपाध्यक्ष महोदय मैं यह चीज साफ करना चाहूंगा कि जो नारंगी भूमि का सर्वे हुआ उसमें जो जमीन थी, वह आज भी राजस्व अभिलेख में है । पहले भी थी और आज भी है । लेकिन जो हमारा वन विभाग है, वह अपनी जमीन बताता है. मेरा इस बारे में, आपके माध्यम से अनुरोध है कि संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची और पेशा कानून 1996 में सर्वोच्च न्यायालय में जो याचिका 202/95 दायर हुई थी और जो वन अधिकार 2006 में प्रावधान किए गए थे, उसकी वन विभाग समीक्षा करे. मेरी जानकारी में यह बात है कि वन विभाग ने इसकी समीक्षा नहीं की है. मैं चाहूंगा कि वन विभाग इस बारे में स्थिति स्पष्ट करे. मैं आपको यह भी बताना चाहूँगा कि सर्वोच्च न्यायालय ने जो आदेश और निर्देश नारंगी भूमि के संबंध में दिये थे, उसका कभी कोई उल्लेख नहीं किया गया, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 2003 में जो आदेश दिया, उसका परिपालन भी वन विभाग के द्वारा नहीं किया गया है, मेरा आपसे अनुरोध है कि यह प्रकरण पूरे प्रदेश के विकास से जुड़ा हुआ है और वन विभाग भी मानता है कि जो जमीन अनुपयोगी है और जो राजस्व विभाग के अभिलेख में है, उस पर वन विभाग का कानून लागू नहीं होना चाहिए. मेरे जो 2 प्रश्न थे, उसमें 3357 में वन विभाग ने जो उत्तर दिया, उसमें माननीय मंत्री जी ने यह माना है कि 1269 गांव की एक लाख सैंतीस हजार हेक्टेयर जमीन पर मात्र 7565 हेक्टेयर जमीन पर ही वन हैं और मात्र एक लाख तीस हजार हेक्टेयर जो जमीन है, वह अनुपयुक्त है इसलिए वनखण्ड में शामिल नहीं की गई. मंत्री जी ने यह भी माना है कि उसमें से 78,700 हेक्टेयर जमीन आज भी राजस्व के कब्जे में है. मैं माननीय मंत्री जी से पूछना चाहता हूँ कि क्या यह जमीन 18,723 हेक्टेयर वन विभाग के अभिलेख से अलग कर दी गई है ? और क्या इस भूमि पर वन विभाग का कोई कानून लागू नहीं होता ? यदि इस पर कोई कानून लागू नहीं होता है तो वन विभाग ने इस पर जो प्रकरण बनाये हैं तो क्या वन विभाग उसे वापस लेगा ? यदि हां, तो कब तक वापस लेंगे. यदि यह जमीन राजस्व के आधिपत्य में है तो वन विभाग उसे क्लीयर करे.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जिस प्रश्न का उत्तर मंत्री जी ने दिया था कि एक लाख तीस हजार एक सौ सत्यासी हेक्टेयर जमीन में से 78,723 हेक्टेयर जमीन जो राजस्व के आधिपत्य में है, यह तो राजस्व के अभिलेख में दर्ज ही है लेकिन इसके अलावा 51,000 हेक्टेयर जमीन, जो फॉरेस्ट के अभिलेख में है, उसमें से वन विभाग ने मेरे प्रश्न के जवाब में माना कि 39,361 हेक्टेयर जमीन अनुपयोगी है और उस पर जंगल नहीं है तो मैं आपके माध्यम से पूछना चाहूँगा कि सर्वोच्च न्यायालय की याचिका 337/1995 में सुप्रीम कोर्ट ने नारंगी भूमि के संबंध में जब कोई आदेश नहीं दिया था तो क्या उसे डी-नोटिफाईड करने के लिए मंत्री जी अपने विभाग को आदेशित करेंगे ? और याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर करेंगे. यह कोई व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है, यह जनहित का मुद्दा है. मेरे बैतूल जिले की बहुत सारी जमीन, लगभग 35 से 40 प्रतिशत जमीन फॉरेस्ट के पास है.
उपाध्यक्ष महोदय – हेमन्त जी, आप केवल प्वाइन्टेड बात करें.
श्री हेमन्त खण्डेलवाल – उपाध्यक्ष महोदय, कई ऐसी डब्ल्यू.आर.डी. की स्कीम्स हैं, वहां नारंगी जमीन के कारण डेम नहीं बन पा रहे हैं क्योंकि फॉरेस्ट विभाग अपने हर्जाने के लिए अगर उसकी कोई जमीन डूबती है तो 15 लाख रूपये प्रति हेक्टेयर का जुर्माना मांगता है जबकि डब्ल्यू.आर.डी. का नियम है कि 3.50 लाख रूपये प्रति हेक्टेयर के ऊपर वह डब्ल्यू.आर.डी. का जो उसका जुर्माना होता है, हर्जाना होता है, वह रहता है. इसीलिये मेरे आदिवासी एवं वनवासी जिले में बहुत सारी परियोजनायें पूरी नहीं हो पा रही हैं. जो गांव वनों के बीच हैं, वहां पर 2 प्रतिशत चरनोई भूमि के बाद, पूरी जमीन फॉरेस्ट विभाग के कब्जे में है. कई आदिवासी परिवारों को पट्टे सिर्फ इसलिए नहीं मिल पा रहे हैं क्योंकि वह जमीन राजस्व के पास नहीं है. हमारे बैतूल जिले में 52 गांव आज भी फॉरेस्ट के अडंगे के कारण विद्युत विहीन हैं. अगर नारंगी भूमि राजस्व के पास चली गईं तो इनमें बिजली विद्युतीकरण का काम हो जायेगा, कई स्कूल बन जायेंगे, प्रधानमंत्री सड़क एवं मुख्यमंत्री सड़क, फॉरेस्ट के इस एक्ट के कारण कहीं न कहीं दिक्कत में हैं. हमारे यहां रेत की जितनी भी खदानें हैं, वे सब फॉरेस्ट विभाग में हैं, मुक्त हो जाएंगी. मैं अपनी बात, आपसे इस आग्रह के साथ कर रहा हूँ कि इसके लिए आप मंत्री जी से आग्रह करें कि विधायकों की एक समिति की घोषणा करें. वह समिति विशेषज्ञों की राय ले. जिले की बात नहीं कर रहा यह पूरे प्रदेश का मामला है और लगभग दस लाख हेक्टेयर जमीन पूरे प्रदेश में इसी उलझन में है मेरा आपसे आग्रह है कि मेरे विधानसभा सवाल के जवाब में मंत्री जी ने माना 78723 हेक्टेयर जमीन राजस्व में है तो इसे संज्ञान में लेते हुए आप राजस्व विभाग को आदेशित करें और इसको साफ करें कि यह भूमि राजस्व की है और बची जो 39 हजार 361 हेक्टेयर जमीन है उसको डी नोटिफाइड के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करें. उपाध्यक्ष महोदय मैं धन्यवाद देना चाहूंगा कि इतने महत्वपूर्ण विषय पर अध्यक्ष जी ने मुझे बोलने का अवसर दिया और मैं मंत्री महोदय से आग्रह करूंगा कि इस पर सकारात्मक रूख लेते हुए पूर प्रदेश का, आदिवासी जिलों का वन क्षेत्र जिन जिलों में हैं उनके विकास से जुड़ा मामला है और इसमें एक ऐसी पहले करें कि इन जिलों का विकास हो पाए. उपाध्यक्ष जी आपने जो समय दिया उसके लिए धन्यवाद.
वन मंत्री (डॉ. गौरीशंकर शेजवार)—माननीय उपाध्यक्ष महोदय, बहुत महत्वपूर्ण विषय पर माननीय सदस्य ने चर्चा उठाई है और चर्चा में उन्होंने सारगर्भित मांगे प्रस्तुत की हैं, विषय का प्रस्तुतिकरण निश्चित रूप से बड़े प्रभावी ढंग से उन्होंने किया है और मैं भी चाहता हूं कि वन संरक्षण अधिनियम के कारण कहीं कोई विकास के काम न रूके. प्रदेश सरकार और जब से केन्द्र में हमरी सरकार आई है तब से हमने वन संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आने वाले जितने भी प्रकरण थे उन्हें क्लियर किया है और ऐसी वन भूमि के कारण या वन संरक्षण अधिनियम के कारण जो व्यवधान आ रहे थे लगभग बहुत बड़ी मात्रा में उन्हें क्लियर किया है. नारंगी भूमि कोई शब्द नहीं है मैं यह बात मानता हूं कि कोई वैधानिक शब्द नहीं है लेकिन कुछ लोगों ने इन नारंगी भूमि को जैसे हम शार्ट फार्म में बोलते हैं तो पूरा विस्तार से इसकी व्याख्या करने के बजाए नारंगी भूमि शब्द से इसको परिभाषित कर दिया और लोग समझने भी लगे और विभाग में भी बोलचाल की भाषा में नारंगी भूमि आ गई तो एकदम इसको ऐसा नहीं कहा जा सकता कि नारंगी भूमि कोई शब्द नहीं है. मध्यप्रदेश में तो है. अब इसके बारे में मैं शुरूआत से आपको सदन को बताना चाहता हूं. वर्ष 1950 में जमींदारी उन्मूलन उपरांत उनके अधीन भूमियां राज्य शासन में वेष्ठित हुईं एवं जिन जमीनों पर अच्छे वन थे प्रबंधन हेतु वन विभाग को वे हस्तांतरित कर दी गई. अमले की कमी के कारण इन भूमियों का तत्समय सर्वे सीमांकन नहीं किया जा सका और ब्लेंकेट नोटिफिकेशन से इन्हें संरक्षित वन अधिसूचित किया गया अर्थात् सीमांकन नहीं हुआ, सर्वे नहीं हुआ राजस्व विभाग ने अनुमान लगाकर कि यह वन है और वन विभाग को दे दिया वन विभाग ने एक ब्लेंकेट नोटिफिकेशन कर दिया जिसकी सीमाएं भी कहीं निर्धारित नहीं थीं कहीं- कहीं उल्लेख में यह बात आई है कि टोटल क्ष्ोत्रफल का कहीं कहीं उल्लेख है और कहीं इसका नहीं है. बैतूल जिलें में ब्लेंकेट नोटिफिकेशन 1958 में जो बिना सीमांकन के नोटिफिकेशन हुआ है यह 1958 में हुआ है. उपाध्यक्ष महोदय ब्लेंकेट नोटिफिकेशन से समृद्ध अधिसूचित संरक्षित वनों के सर्वे सीमांकन का कार्य.जैसा कि मैंने आपको बताया कि वर्ष 1966 से 69-70 के बीच में जो सर्वे हुआ और सर्वे में उनका प्रापर्ली उनका वनखंड बनाकर के उनका नोटिफिकेशन वर्ष 1970-71 में यह सर्वे किया गया. सर्वे सीमांकन उपरांत वनखंडों के बाहर छोड़ी गई भूमियों को मानचित्र पर नारंगी रंग से दर्शाए जाने के कारण इन्हें नारंगी क्षेत्र कहा गया. वास्तव में यह क्षेत्र असीमांकित संरक्षित क्षेत्र हैं, जो प्रोटेक्टेट फारेस्ट ब्लेंकेट नोटिफिकेशन में हुआ था. उपाध्यक्ष महोदय, उसके बाद प्रापर्ली सीमांकन हुआ, सीमांकन के बाद जो ब्लेंकेट नोटिफिकेशन वाली जमीन बाहर थी, वह छूट गई. वन विभाग में नोटिफिकेशन तो उस जमीन का है, लेकिन हमने जो ब्लाक बनाए सीमांकन करके उसमें वह जमीन नहीं है. यह जमीन फारेस्ट विभाग की कहलाई लेकिन सीमांकन में जो ब्लाक बनाए, उन ब्लाक नोटिफिकेशन से बाहर था, इसलिए नक्शे पर उसका रंग नारंगी बता दिया, इसलिए बोलचाल की भाषा में हम इसको नारंगी भूमि कहते है, वास्तव में यह असीमांकित संरक्षित वन है. उपाध्यक्ष महोदय, भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 4(1) के अधीन अधिसूचित वनखंडों के वन व्यवस्थापन का कार्य वर्ष 1986-87 तक किया गया.लेकिन धारा 20 में आरक्षित वन की अधिसूचना का प्रकाशन नहीं किया जा सका. शासन द्वारा वर्ष 1988 में अनुविभागीय अधिकारी, राजस्व वन व्यवस्थापन अधिकारी घोषित कर पुन: कार्यवाही प्रारंभ की गई, जो कार्यवाही अभी तक लंबित है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, यह जो नारंगी भूमि है, ब्लेंकेट नोटिफिकेशन के बाद हमारा जो असली सही सीमांकन के बाद नोटिफिकेशन हुआ है, इन दोनों में जो अंतर है, इस भूमि का भी हम व्यवस्थापना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि हमारा जो नोटिफिकेशन है उससे यह बाहर माने जाए, इसी के लिए जो वन व्यवस्थापना अधिकारी घेाषित किए गए हैं, ये अधिकारी डिप्टी कलेक्टर रैंक के होते थे, इनकी मदद के लिए हमने वन विभाग के जो अन्य अधिकारी हैं, हमने इनके साथ संलग्न किए थे, यह व्यवस्था बैतूल जिले में और अन्य जिले में पूरी नहीं हो पायी है और यह व्यवस्था प्रचलन में है. उपाध्यक्ष महोदय, मेरा यह भी कहना है कि मैं माननीय राजस्व मंत्री जी से, माननीय मुख्यमंत्री जी से पत्र लिखकर व्यक्तिगत रूप से इस बात के लिए निवेदन करूंगा कि वे स्वतंत्र रूप से वन व्यवस्थापन अधिकारी नारंगी भूमि के लिए बैतूल जिले के लिए और अन्य जिले के लिए नियुक्त करें और वह जो डिप्टी कलेक्टर रैंक के अधिकारी है, वन व्यवस्थापन अधिकारी, वे जो सीमांकन करेंगे और जो सर्वे करेंगे विभाग उसको मान्य करेगा. मेरा आपसे अनुरोध है, माननीय सदस्य से आपके माध्यम से कहना चाहता हूं कि यह जो विषय व्यवस्थापन का है, यह बंद नहीं हुआ है यह चालू है, यह केवल इस कारण रूक जाता है कि सामान्य रूप से जो एसडीएम हैं, उनको यह कार्य दिया गया, एसडीएम अपने ही कार्य में इतने व्यस्त रहते हैं कि वे वन व्यवस्थापन का कार्य नहीं कर पाते, स्वतंत्र रूप से से जिस दिन वन व्यवस्थापन अधिकारी अलग से नियुक्त हो जाएगा तो यह समस्या स्वत: समाप्त हो जाएगी. हमारा जो नोटिफिकेशन है, जहां ब्लाक बनाए गए हैं, उसमें कुछ भूमि ऐसी है, जहां वन नहीं और वनीकरण के योग्य नहीं है और हम उसमें सहमत है. यदि व्यवस्थापन अधिकारी नोटिफाइड जमीन में से जमीन निकालकर और अपनी रिपोर्ट जो वह वन विभाग को यदि वे देंगे तो जो नोटिफाइड जमीन है, उसको डी-नोटिफिकेशन के लिए हम तैयार है, जो सामन्य प्रक्रिया है केन्द्र सरकार में भेजने की और सुप्रीम कोर्ट में भेजने की उस प्रक्रिया को हम फालो करने के लिए बराबर तैयार है और जो भूमि हमारे पास नहीं है, जिसमें राजस्व का कब्जा है, उन 14 जिलों में 1802.94 किलोमीटर नारंगी क्षेत्र हैं, वर्ष 1996 में शासन द्वारा नारंगी इकाई का गठन कर पुन: सर्वेक्षण के निर्देश जारी किए गए, जिसमें यह भी निर्देशित किया गया कि वनखंडों के अनुपयुक्त क्षेत्रों को राजस्व विभाग को हस्तांतरित किया जाए. तथा ऐसे राजस्व क्षेत्र जिनमें अच्छे श्रेणी के वन हैं उन्हें भी वनखण्डों में शामिल किया जाये. यह सर्वे के बाद होगा. बैतूल जिले में नारंगी इकाई द्वारा 137752.393 हेक्टेयर क्षेत्र को प्रारंभिक सर्वेक्षण में शामिल किया गया जिसमें से 82403.14 हेक्टेयर राजस्व क्षेत्र जिसमें अच्छी श्रेणी के वन थे तथा 55349.289 हेक्टेयर नारंगी भूमि इसमें थी. नारंगी इकाई द्वारा सर्वेक्षण के उपरान्त 259 वन खण्डों में 7565.567 हेक्येटर भूमि वन प्रबंधन हेतु प्रस्तावित है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, वनखण्डों में प्रस्तावित 7565.67 हेक्टेयर में से 3679.61 हेक्टेयर राजस्व भूमि सम्मिलित है. इस प्रकार प्रारंभिक सर्वे में सम्मिलित कुल राजस्व भूमि 82403.104 हेक्टेयर में से कुल 3679.61 हेक्टेयर भूमि को वनखण्डों में प्रस्तावित किया गया है शेष 78723.489 हेक्टेयर भूमि पूर्ववत राजस्व विभाग के आधिपत्य में है. उपाध्यक्ष जी, विधायक जी मांग कर रहे थे उस विषय में हमारे डीएफओ दक्षिण बैतूल द्वारा 29.7.2015 को राजस्व विभाग को यह पत्र लिखा गया है कि यह आपके आधिपत्य में जमीन है और हमारा इसमें कही भी कोई कब्जा नहीं है. तो इसलिये यह भूमि तो विकास के काम में या अन्य चीजों में आ सकती है. वन विभाग इसमें कहीं कोई आपत्ति नहीं उठा रहा है. यह जो भी पत्र लिखा है यह पत्र मैं माननीय सदस्य को उपलब्ध करवा दूंगा.
उपाध्यक्ष महोदय, उच्च न्यायायल के समक्ष निर्वनीकरण की स्वीकृति हेतु भेजे जाने वाले प्रस्ताव में वन व्यवस्थापन अधिकारी का विनिश्चयन की कौन सी जमीनें वनखण्ड में शामिल नहीं होगी को, समाहित कर निर्वनीकरण के प्रस्ताव माननीय उच्च न्यायालय को भेजा जाना होगा. हम इस पर सहमत हैं. और बैतूल जिले के लिये प्रायोगिक तौर पर पृथक से पूर्णकालिक वन व्यवस्थापन अधिकारी की नियुक्ति किया जाना प्रस्तावित है. माननीय मुख्यमंत्री जी, माननीय राजस्व मंत्री जी से हम लिखित और व्यक्तिगत रूप से अनुरोध करेंगे. माननीय सदस्य ने जो विषय उठाया है यह महत्वपूर्ण है लेकिन विषय को विस्तार से मैंने रखा, आंकड़ों को मैंने सदन के सामने रखा, और चर्चा के लिये यह अनिवार्य था और उपाध्यक्ष महोदय आपने इस पर जो चर्चा करवाई, विधायक जी ने अपना पक्ष रखा और अपनी मांगें रखी, शासन को अपनी पूरी बात रखने का यह मौका मिला और वन विभाग की तरफ से इसमें कहीं कोई व्यवधान नहीं है . वन संरक्षण अधिनियम का पालन करना समय समय पर वन संरक्षण अधिनियम के पालन करने के लिये हमने जो वर्क्स डिपार्टमेंट हैं जो विकास के कामों में लगे हैं इनके 3-4 अधिकारियों की जिले में वर्कशाप भी करवाई है और वन संरक्षण अधिनियम में हमें कैसे आवेदन करना चाहिये, कैसे हम जल्दी से जल्दी वन संरक्षण अधिनियम से अनुमति ले सकते हैं और केन्द्र सरकार ने विशेष रूप से इस पर ध्यान देकर के ऐसे प्रकरणों को निपटाया है. वन विभाग हमेशा विकास में सहभागी है और कभी कोई अड़चन नहीं बनेगा. मैं यह सदन को विश्वास दिलाना चाहता हूं. चर्चा हुई बहुत अच्छा लगा आपको बहुत बहुत धन्यवाद.
श्री हेमंत विजय खण्डेलवाल -- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी को मैं धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने बड़ा सकारात्मक जबाव दिया लेकिन मेरा उनसे अनुरोध है कि वे पत्र न लिखे क्योंकि पत्र कैसे चलते हैं आपको भी मालूम है. विभाग में राजस्व मंत्री जी से मुख्यमंत्री जी से और आपके जो एक्सपर्ट अधिकारी हैं . उनकी एक ज्वाइंट बैठक करायें और दूसरा 78 हजार हेक्टेयर जमीन, पत्र जरूर वन विभाग ने दे दिया लेकिन मेरी बात मानिये आज भी फारेस्ट के कब्जे में है, जब तक देन लेन की कार्यवाही नहीं हो जाती और उस पर राजस्व का कब्जा नहीं हो जाता तब तक यह बहुत बड़ी जमीन है, बैतूल जिले की लगभग 20 प्रतिशत जमीन है और इसके लिये बड़े अभियान की जरूरत है, इसे भी ज्वाइंटली हम चलायेंगे तभी यह कार्यवाही हो पायेगी.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- मैं पूरे विश्वास के साथ माननीय सदस्य को यह बताना चाहता हूं कि जो जमीन राजस्व की है, वन विभाग का उस पर कोई कब्जा नहीं है और न ही वन विभाग के अधिकारी कहीं उसमें कोई अड़चन पैदा करते हैं या कुछ करते हैं. मेरा तो कहना केवल इतना है कि जो नोटिफाइड ब्लॉक हमने बनाये हैं, हमने उन पर अपना आधिपत्य किया है, इसके बाद जो ब्लेंकेट नोटिफिकेशन में जो जमीन आयेगी उसके डी नोटिफिकेशन के लिये हम बराबर पूरी तरीके से तैयार हैं. हम फिर से एक बार राजस्व अधिकारियों को हमारे डीएफओ से पत्र लिखवा देंगे और यह कहेंगे कि यह जो राजस्व की जमीन है इस पर हमारा आधिपत्य नहीं है, अब राजस्व विभाग उस पर कैसे कब्जा लेता है यह उनके ऊपर है, लेकिन हमारा कब्जा नहीं है.
श्री हेमंत विजय खंडेलवाल-- बहुत-बहुत धन्यवाद मंत्री जी.
उपाध्यक्ष महोदय-- हेमंत जी मैं समझता हूं आपको संतुष्ट होना चाहिये.
श्री हेमंत विजय खंडेलवाल-- मैं संतुष्ट हूं, लेकिन मैं मंत्री जी को बता दूं कि आज तक तो फारेस्ट का कब्जा था लेकिन आपके आश्वासन के बाद मैं उम्मीद करता हूं कि कल से इस पर फारेस्ट का कब्जा नहीं रहेगा. बहुत-बहुत धन्यवाद.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- देखिये हमारे वर्ष 2015 में डीएफओ का पत्र आपको पढ़ने के लिये उसमें संलग्न किया है, उपाध्यक्ष महोदय पढ़ लेंगे, तब तक ये प्रश्न नहीं उठाये गये थे, इसका मतलब हमारी नीयत न तो उत्तर देने में कहीं कोई खराब है और न ही उस जमीन पर हमारा कोई कब्जा है. पत्र आपको मैंने प्रेषित किया था, आपकी नजर गई होगी उस पर.
उपाध्यक्ष महोदय-- यह पत्र मेरे पास है, इसमें संलग्न है, डॉक्टर साहब मैंने पढ़ा है.
श्री हेमंत विजय खंडेलवाल-- डाटा दिये हैं वह आपके अध्ययन के लिये है ....
उपाध्यक्ष महोदय-- अब उसमें व्यवस्थापन अधिकारी जो नियुक्त होना है, वह जल्दी हो जाये, समस्या का निदान वहीं से होगा, व्यवस्थापन अधिकारी की नियुक्ति से, वह भी डॉक्टर साहब ने आश्वासन दिया है कि रेवेन्यू मिनिस्टर से और माननीय मुख्यमंत्री जी से चर्चा करके कोई एसडीएम स्तर के अधिकारी की नियुक्ति करायेंगे.
श्री हेमंत विजय खंडेलवाल-- जी बहुत-बहुत धन्यवाद.
उपाध्यक्ष महोदय-- विधान सभा की कार्यवाही शुक्रवार दिनांक 29 जुलाई 2016 को प्रात: 11.00 बजे तक के लिये स्थगित.
सायं 6.13 बजे विधान सभा की कार्यवाही शुक्रवार, दिनाँक 29 जुलाई, 2016 (7 श्रावण, शक संवत् 1938) के प्रात: 11.00 बजे तक के लिए स्थगित की गई.
भोपाल, अवधेश प्रताप सिंह,
दिनांक : 28.07.2016 प्रमुख सचिव,
मध्यप्रदेश विधानसभा