मध्यप्रदेश विधान सभा
की
कार्यवाही
(अधिकृत विवरण)
__________________________________________________________
चतुर्दश विधान सभा षोडश सत्र
फरवरी-मार्च, 2018 सत्र
मंगलवार, दिनांक 27 फरवरी, 2018
(8 फाल्गुन, शक संवत् 1939)
[खण्ड- 16 ] [अंक-2 ]
__________________________________________________________
मध्यप्रदेश विधान सभा
मंगलवार, दिनांक 27 फरवरी, 2018
(8 फाल्गुन, शक संवत् 1939)
विधान सभा पूर्वाह्न 11.02 बजे समवेत हुई.
{अध्यक्ष महोदय (डॉ. सीतासरन शर्मा) पीठासीन हुए.}
निधन का उल्लेख
(1) श्रीयुत् श्रीनिवास तिवारी, मध्यप्रदेश विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष,
(2) श्री सुरेश सेठ, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,
(3) श्री पूरन सिंह बेड़िया, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,
(4) श्री तातूलाल अहिरवार, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,
(5) श्रीमती केशर बाई डामर, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,
(6) श्री रघुनाथ झा, पूर्व केन्द्रीय राज्यमंत्री,
(7) डॉ. बोल्ला बुल्ली रमैया, पूर्व केन्द्रीय राज्यमंत्री,
(8) श्री भरत नारायण श्रीवास्तव, मध्यप्रदेश विधान सभा के भूतपूर्व सचिव, एवं
(9) जम्मू-कश्मीर के राजौरी में पाकिस्तानी सेना द्वारा की गई गोलीबारी में शहीद जवान.
मुख्यमंत्री (श्री शिवराज सिंह चौहान) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, स्वर्गीय दादा श्रीनिवास तिवारी इस सदन के लगातार 10 साल तक अध्यक्ष रहे. पहले उपाध्यक्ष भी रहे और 1952 में केवल 26 वर्ष की उम्र में वे विंध्य विधानसभा में विधायक के नाते प्रतिनिधित्व करते थे. ऐसे दादा श्रीनिवास तिवारी नहीं रहे. वे अपनी तरह के धाकड़ नेता थे. काम करने के तरीकों से मतभेद हो सकता है. वे समाजवादी थे, लेकिन अपने ढंग से राजनीति करते थे. मैं एक घटना देख रहा था. डॉ. राम मनोहर लोहिया समाजवादियों के भगवान थे. उनकी बात कभी कोई नहीं काटता था, लेकिन 1952 के चुनाव सीधी संसदीय क्षेत्र से, भैया जानते होंगे, सोशलिस्ट पार्टी ने भगवानदत्त शास्त्री को टिकट दिया था. शास्त्री जी को सिम्बल भी मिल गया. बाद में पता नहीं लोहिया जी के दिमाग में क्या बात आयी, वे कानपुर के किसी उद्योगपति को ले आये. उन्होंने कहा सोशलिस्ट पार्टी से सेठ राम रतन चुनाव लड़ेंगे. शास्त्री जी नाम वापस लेने के लिये तैयार थे, लेकिन तिवारी जी ने तय किया कि यह नहीं होगा. हम दिन रात बात करते रहें शोषण की, शोषण के खिलाफ लड़ाई की, जमींदारों के खिलाफ, साहूकारों के खिलाफ और अंत में सेठों से समझौता, यह नहीं होगा. सोशलिस्ट पार्टी ने तय किया कि शास्त्री जी पर्चा वापस ले लें, लेकिन जिस दिन पर्चा खींचने का दिन आया, उस दिन तिवारी जी ने कहीं से साईकिल जुगाड़ी और शास्त्री जी को डण्डे पर बैठाया और जंगल ले गये. वे वापस तभी आये, जब नाम वापसी का समय निकल गया था. आमतौर पर यह दुस्साहस कोई नेता अपने प्रारंभिक काल में जब कैरियर बनाने का वक्त होता है यह नहीं कर सकता. लोगों ने कहा कि लोहिया जी कह रहे हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि लोहिया जी नहीं जिताते, जनता जिताती है. उस समय सोशलिस्ट पार्टी में रहकर यह कहना अपने आप में अदम्य साहस का प्रतीक था. डॉ. लोहिया जी सेठ जी के पक्ष में सभायें करने भी आये, लेकिन चुनाव में विजय शास्त्री जी हुये. वे अपने तरह के धाकड़ नेता थे. मध्यप्रदेश विधान सभा में सोशलिस्ट पार्टी का विधायक दल का नेता कौन हो, पार्टी ने तय किया, लोहिया जी ने तय किया था उस समय स्वर्गीय बृजलाल वर्मा जी के बारे में, लेकिन तिवारी जी ने फिर खम्भ ठोक दी और उन्होंने कहा कि जाति को योग्यता पर हावी नहीं होने देंगे और उन्होंने कहा कि जगदीश जोशी जी नेता होंगे. बाद में जगदीश जोशी जी नेता चुने गये. नाराज होकर लोहिया जी ने उनको सब कमेटियों से बाहर कर दिया था. यह दो घटनायें बताती हैं कि स्वर्गीय तिवारी जी का व्यक्तित्व कैसा था. बाद में वे कांग्रेस में आये. जगदीश जोशी जी ही उनको कांग्रेस में लाये. मेरी जितनी जानकारी है, वे समाजवादी पार्टी छोड़ने के लिये सहमत नहीं थे और कांग्रेस में आने के बाद फिर कांग्रेस में ही रच और बस गये. बाद में जब जगदीश जोशी जी ने कांग्रेस छोड़ने की उनसे बात की कि अब चलो जनता पार्टी में चलें, तो उनके शब्द थे कि खसम किया तो बुरा और करके छोड़ दिया तो और बुरा. अब मैं नहीं छोड़ूंगा. मैं कांग्रेस में ही रहूंगा. अब कांग्रेस में भी रहकर जिस ढंग से उन्होंने काम किया, वह अपने आप में उनकी कार्यशैली का, प्रणाली का और उनके अदम्य साहस का प्रतीक है. पार्टी के अन्दर भी उनको कई चुनौतियां मिलती रहीं. वे चुनाव जीते भी और हारे भी. यह शायद उन्होंने अटल जी के पहले ही कहा था कि क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं ! कर्तव्य पथ पर जो मिला, ये भी सही वो भी सही. हार से घबराकर वे कभी बैठे नहीं. मैंने जैसे कहा कि काम करने की उनकी अपनी शैली थी, जिससे मतभेद थे. लेकिन उसके बावजूद भी वे अपने तरह के ऐसे नेता थे कि तत्कालीन मुख्यमंत्री जी भी कहते थे, जब वे विधान सभा के अध्यक्ष थे कि बाकी जगह का तो मुख्यमंत्री मैं हूं, लेकिन रीवा के तो पण्डित जी ही हैं. यह सब जानते थे, यह कोई छुपी हुई बात नहीं है. पूरी एक दबंगता के साथ जनता के लिये वे खड़े रहते थे और जनता भी उनके पीछे खड़ी रही. इस उम्र में भी लगातार उनके कार्यक्रम, साल में जो एक कार्यक्रम होता था जन्म दिवस का, तो हजारों की तादाद में, हजारों की संख्या में लोग आते थे. सचमुच में उनके निधन से राजनीति का एक युग समाप्त हुआ है. उनकी अपने शैली थी, कानून के वे बहुत अच्छे जानकार थे और हमारे मित्र जानते थे, एक विशेषकर जमींदारी उन्मूलन, ऑफिस ऑफ प्रॉफिट और विलिनीकरण के खिलाफ विधान सभा में उनके ऐतिहासिक भाषण हुए थे. May's Parliamentary Practice पुस्तक तो उनको रटी हुई थी. कानून के और संसदीय ज्ञान के उनसे जानकार सचमुच में बहुत कम हुए हैं. उनकी तार्किकता अद्भुत और अद्वितीय रहती थी और जब वे विचार प्रकट करते थे, तो यह नहीं देखते थे कि ऊपर वाले क्या सोचते हैं और नीचे वाले क्या सोचते हैं. वे दिल्ली में बैठे हुए नेताओं को कहते थे कि ये तो अष्ट धातु के देवता हैं. ये क्या जानें जमीन में जनता का पसीना कैसा बहता है. जो समझते थे, बेबाक टिप्पणी करते थे. सचमुच में उनकी अपनी एक शैली थी, उनका अपना एक तरीका था. विधान सभा के अध्यक्ष के नाते भी 10 साल उन्होंने इस सदन का संचालन अपने तरीके से किया. मैं यही कह सकता हूं कि वे पीछे से वार करने वाले नेता नहीं थे. जो करते थे, सामने ताल ठोक कर करते थे. उनके निधन से राजनीति के एक युग का अंत हुआ है और विंध्य के तो, विंध्य उनके लिये प्राण था. सदैव विंध्य के विकास की वे चिंता करते थे. ऐसे दबंग और अपने तरह के अद्वितीय नेता के निधन से सार्वजनिक जीवन में जो एक रिक्तता पैदा हुई है, मुझे नहीं लगती है कि वह रिक्तता भरी जा सकेगी.
माननीय अध्यक्ष महोदय, श्री सुरेश सेठ जी इंदौर नगर निगम के महापौर भी रहे. वे इंदौर समाचार अखबार के संपादक भी रहे. समाजसेवी के रूप में गांधी भवन के ट्रस्टी और अध्यक्ष के रूप में भी उन्होंने काम किया. पूरे इंदौर अंचल में, मालवा अंचल में उनकी अपनी दबंगता अलग से दिखाई देती थी. उनकी अपनी कार्यशैली थी. इस सदन में जब वे भाषण देते थे तो कई बार वे दल की सीमाओं से ऊपर उठकर भाषण देते थे. उनके कई भाषण चर्चा का विषय रहे हैं. मैं तो उस समय विधान सभा का सदस्य नहीं था, लेकिन 'हमाम में सब नंगे होते हैं' इस तरह के उनके बयान यहां विधान सभा में आते थे. उन्होंने भी अपने ढंग से इंदौर में राजनीति की. पूरी दबंगता के साथ वे लड़ाई लड़ते रहते थे. वे केवल विधायक ही नहीं रहे, 7वीं विधान सभा की अवधि में वे प्रदेश सरकार में स्थानीय शासन मंत्री भी रहे हैं. उनके निधन से प्रदेश ने एक लोकप्रिय और जूझारू नेता खोया है और इंदौर में तो उनकी कमी कभी पूरी नहीं की जा सकती.
माननीय अध्यक्ष महोदय, श्री पूरन सिंह बेड़िया जी जमीन से जुड़े नेता थे. 7वीं, 8वीं और 11वीं विधान सभा में वे कोलारस विधान सभा क्षेत्र से विधायक हुआ करते थे. 11वीं विधान सभा में तो वे अनेक विभागों के राज्य मंत्री भी रहे. सहकारी आंदोलन से वे आते थे. निगम के अध्यक्ष के रूप में भी उन्होंने काम किया. उनके निधन से गरीबों के लिए काम करने वाले, जमीन से जुड़े जूझारू नेता को हमने खोया है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, श्री तातूलाल अहिरवार जी राजनीति में आने से पहले शिक्षक के रूप में काम करते थे तथा वे चाहते थे कि गरीब और दलित बच्चे अध्ययन करें क्योंकि उस दौर में स्कूलों में इन बच्चों के एडमिशन बहुत कम हुआ करते थे. वे इसके लिए प्रयत्नशील रहे. पन्ना जिले की अमानगंज विधान सभा सीट का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया था. उनके निधन से भी सार्वजनिक जीवन में अपूरणीय क्षति हुई है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, श्रीमती केशर बाई डामर जी जमीन से जुड़ी नेता थीं. वे सरपंच रहीं, जनपद सदस्य रहीं और झाबुआ जिले में महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष भी रहीं. आदिम जाति सेवा सहकारी समिति में काम करते-करते 9वीं विधान सभा में उपचुनाव में वे पेटलावद विधान सभा क्षेत्र से निर्वाचित हुई थीं. उनके निधन से भी झाबुआ जिले के सार्वजनिक जीवन में शून्य पैदा हुआ है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, श्री रघुनाथ झा जी के साथ मैं लोकसभा का सदस्य रहा हूँ. वे बिहार के जाने-माने, जूझारू और संघर्षशील नेता थे. वे लगातार वर्ष 1972 से 1998 तक बिहार विधान सभा के सदस्य रहे. वे राज्य सरकार में मंत्री भी रहे. बाद में 13वीं और 14वीं लोकसभा के सदस्य निर्वाचित होकर केन्द्र में राज्य मंत्री भी रहे. उनके निधन से भी देश ने एक वरिष्ठ नेता खोया है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, डॉ. बोल्ला बुल्ली रमैया आंध्रप्रदेश के बहुत लोकप्रिय नेता थे. वे 8वीं, 10वीं, 11वीं और 13वीं लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए थे और केन्द्र सरकार में वाणिज्य राज्य मंत्री भी रहे. उनके निधन से देश ने एक वरिष्ठ नेता और कुशल प्रशासक को खोया है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, श्री भरत नारायण श्रीवास्तव इस विधानसभा की स्मृतियों में सदैव बने रहेंगे. श्री भरत नारायण श्रीवास्तव वर्ष 1952 में ही राज्य विधानसभा की सेवा में आए थे. विधानसभा सचिवालय में वे अनेक पदों पर रहे और हम जानते हैं कि विधानसभा की कार्यवाही के सुचारू संचालन में विधानसभा के सचिवालय की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. उन्होंने हर भूमिका को जिम्मेदारी से निभाया. उन्हें विधानसभा के एक कुशल और अनुभवी अधिकारी के रूप में हम लोग सदैव स्मरण करते रहेंगे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, भारत माता की सीमाओं की सुरक्षा करते हुए हमारे प्रदेश के ग्वालियर जिले के निवासी श्री रामअवतार शहीद हुए. तीन जवान और शहीद हुए. देश की सीमाओं की सुरक्षा करते हुए उन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावार कर दिया. मध्यप्रदेश ने यह तय किया है कि अगर हमारा कोई जवान शहीद होता है तो जान तो अनमोल होती है उसकी कोई कीमत नहीं होती लेकिन श्रद्धा के भाव से एक करोड़ रूपए की श्रद्धानिधि ऐसे जवान के परिवार को दी जाएगी. मैं श्री रामअवतार जी को और हमारे बाकी जवानों को, जो शहीद हुए हैं उनको भी श्रद्धा के सुमन अर्पित करता हॅूं.
" पूजे न शहीद गए तो फिर, यह पंथ कौन अपनाएगा ?
तोपों के मुंह से कौन अकड़ अपनी छातियॉं अड़ाएगा ?
चूमेगा फंदे कौन, गोलियॉं कौन वक्ष पर खाएगा ?
अपने हाथों अपने मस्तक फिर आगे कौन बढ़ाएगा ?
पूजे न शहीद गए तो फिर आजादी कौन बचाएगा ?
फिर कौन मौत की छाया में जीवन के रास रचाएगा ?
पूजे न शहीद गए तो फिर यह बीज कहां से आएगा ?
धरती को मॉं कहकर, मिट्टी माथे से कौन लगाएगा ?"
मैं उनको और सभी हमारे वरिष्ठ सम्मानीय नेताओं को, जिनका उल्लेख आपने किया है उनके चरणों में मैं अपनी ओर से, सदन की ओर से, मध्यप्रदेश की साढे़ सात करोड़ जनता की ओर से श्रद्धा के सुमन अर्पित करता हॅूं, श्रद्धांजलि अर्पित करता हॅूं और परमपिता परमात्मा से यह प्रार्थना करता हॅूं कि वे दिवगंत आत्मा को शांति दे और उनके परिवार को, मित्रों को, उनके समर्थकों और अनुयायियों को यह गहन दु:ख सहन करने की क्षमता दे. ओम् शांति.
नेता प्रतिपक्ष (श्री अजय सिंह) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, आदरणीय मुख्यमंत्री महोदय ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आदरणीय श्रीयुत् श्रीनिवास तिवारी जी के बारे में जो श्रद्धांजलि दी और दो कहानियों का जिक्र करते हुए जो उन्होंने जानकारी दी, विंध्य संभाग के किसी गांव में, किसी चौपाल में आप चले जाएं जहां बुजुर्ग बैठे हों, इस तरह की अनेक कहानियॉं आदरणीय तिवारी जी के बारे में सुनने को मिलती हैं. वे एक जुझारू नेता, संघर्षशील नेता और एक अलग किस्म के नेता थे. माननीय मुख्यमंत्री जी ने सही कहा कि एक युग समाप्त हो गया. मध्यप्रदेश जब बना नहीं था, तब वे विंध्य प्रदेश से उस समय के सबसे कम उम्र के विधायक चुने गए थे. आजादी के बाद बहुत लोग सत्ता की तरफ भागे लेकिन आदरणीय तिवारी जी, जो आठवीं कक्षा पढ़ने के लिए रीवा में मार्टिन स्कूल में आए थे और आठवीं में ही स्वतंत्रता संग्राम से जुडे़ थे. उन्होंने सत्ता की तरफ मुंह नहीं किया बल्कि संघर्ष की तरफ उन्होंने अपना रूख अपनाया. एक बहुत बड़ा उदाहरण है विंध्य की धरती पर उनका एक नारा था "भूखी जनता चुप ना रहेगी, धन और धरती बंटकर रहेगी" उन्होंने इतना बड़ा आंदोलन किया था जिसके कारण वह पूरा अंचल आदरणीय तिवारी जी के पदचिह्नों पर चलने लगा था. यहाँ पर शायद बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि सोशलिस्ट विचारधारा के अधिकांश नेता रीवा संभाग के थे इसके बहुत सारे उदाहरण हैं चाहे तिवारी जी हों, चाहे चंद्रप्रताप तिवारी जी हों, चाहे जगदीश जोशी जी हों लेकिन इन नेताओं में तिवारी जी का नाम सबसे ऊपर था. शुरुआती तौर में हमारे पिताजी भी पीएसपी के थे लेकिन पूरे विंध्य अंचल में यदि सोशलिस्ट विचार धारा का कोई सबसे बड़ा कद्दावर नेता था या रहा है वह आदरणीय तिवारी जी रहे हैं. उन्होंने अपने मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया उन्होंने गरीबों के हित की, उनके संवर्धन और संरक्षण की लड़ाई हमेशा लड़ी.
माननीय अध्यक्ष महोदय वह इन्हीं विचारों से और समाजवादी पृष्ठभूमि से ही हमेशा रहे और शायद इसी की वजह से हमारे अंचल में उनको शेर की उपाधि दी गई थी उनको विंध्य का टाइगर कहा जाता था. माननीय तिवारी जी बेरोजगारी समाप्त करने के लिए हरदम प्रयासरत् रहे. वर्ष 1973 में जैसा कि आदरणीय मुख्यमंत्री जी ने जिक्र किया इंदिरा जी का नेतृत्व मानते हुए वह कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए लेकिन कांग्रेस पार्टी में आने के बाद भी उनकी समाजवादी विचारधारा नहीं बदली उस विचारधारा के लिए वह जीवन पर्यन्त लड़ाई लड़ते रहे और उन्हीं के वर्ग के संरक्षण के लिए आगे भी लड़ाई उन्होंने की उनका पहला प्यार था विंध्य प्रदेश और उसकी किस तरह से तरक्की हो. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है हमारे रीवा शहर का संजय गाँधी मेडीकल कॉलेज जिसके लिए हरदम उन्होंने कोशिश की कि वह बेहतर से बेहतर बन सके. बहुत सारे और अन्य उदाहरण है लेकिन रीवा संजय गाँधी मेडीकल कॉलेज का सबसे बड़ा उनका उदाहरण है. अध्यक्ष महोदय, सब चीजों में वह समझौता कर लेते थे लेकिन विंध्य की प्राथमिकता पर समझौता नहीं होता था और दूसरा उनके जो साथी हों उनके लिए चाहे अंत तक तक लड़ाई लड़नी पड़े तिवारी जी फिर पीछे नहीं हटते थे और खुद को उनके अभिभावक के रूप में ही वह मानते थे.
आदरणीय मुख्यमंत्री महोदय ने कहा कि 10 साल वह स्पीकर थे. मध्यप्रदेश के इतिहास में शायद कोई भी व्यक्ति उपाध्यक्ष और फिर निरंतर 10 साल अध्यक्ष नहीं रहा है लेकिन अध्यक्ष रहने के बाद उन्होंने जो एक परंपरा कायम की वह शायद आजकल कुछ हल्की होती जा रही है कि सबसे ज्यादा वह विपक्ष की सुनते थे और विपक्ष को उन्होंने अपनी प्राथमिकता दी थी और बहुत सारे विधायकों को राजनीति सिखाने का श्रेय तिवारी को जाता है. मैं इसके एक-दो उदाहरण देना चाहूंगा. आज के जो मंत्री सत्ता पक्ष में हैं, हमारे नरोत्तम मिश्रा जी, छत्तीसगढ़ में बृजमोहन अग्रवाल जी, इन्होंने राजनीति की प्रेक्टिस यदि किसी से सीखी है तो आदरणीय तिवारी जी से सीखी है. मैं एक चीज और कहना चाहता हूं कि तिवारी जी का अपने लोगों के लिए फिर कोई कानून कायदा नहीं होता था. कानून कायदा उसके लिए होता था कि कानून के अंदर आदमी का संरक्षण कैसे हो. विधान सभा में नियम पालन करने का उनको सबसे ज्यादा श्रेय जाता है. विधान सभा में एक ही अध्यक्ष हुए हैं जिन्होंने मुख्यमंत्री प्रश्न काल की भी शुरुआत की थी ऐसा फिर कभी और नहीं हुआ. अध्यक्ष महोदय, मैं चाहता हूं कि यह इस विधान सभा का आखिरी बजट सत्र है इसमें आप भी इसकी शुरुआत कर दें. माननीय अध्यक्ष महोदय, उन्होंने लोगों के हितों का संरक्षण हर दम किया और यदि मध्यप्रदेश विधान सभा सर्वाधिक समय चली है, सर्वाधिक दिन चली है, इतिहास रचा गया है, तो इसका श्रेय आदरणीय तिवारी जी को जाता है, यह आदरणीय तिवारी जी के समय हुआ है. सबसे ज्यादा समय, सबसे ज्यादा दिन बहस करने का अवसर, लोगों को मिलता था. अध्यक्ष महोदय, आजकल जैसा है वह आप जानते हैं. माननीय अध्यक्ष महोदय, श्रीनिवास तिवारी जी के निधन से विन्ध्य क्षेत्र की अपूरणीय क्षति हुई है. वे विन्ध्य की एक सशक्त आवाज के रूप में रहे. एक सूझबूझ वाले, दूरदर्शी, कुशल और लोकप्रिय जननेता के हमारे बीच से चले जाने का हमें बेहद दुःख है. अध्यक्ष महोदय, उनका जो एक विचार, सिद्धान्त और जो एक सपना था, वह शायद, अभी भी अधूरा है. उन्होंने चाहा था कि एक गरीब, गरीबी से दूर हो और उसके लिए उन्होंने हरदम लड़ाई लड़ी है. अध्यक्ष महोदय, आदरणीय तिवारी जी आज हमारे बीच में नहीं हैं. आदरणीय मुख्यमंत्री महोदय ने उनके जन्म दिन का भी जिक्र किया. माननीय, वे किस चीज के बने हुए थे यही समझ में नहीं आता था. इस उम्र में जब आदमी कमरे से न निकले, चल न सके, लेकिन आदरणीय तिवारी जी उन उसूलों के लिए, चलने को भी तैयार थे, लड़ाई लड़ने के लिए भी तैयार थे और उन्होंने जनता की आवाज आखरी दिन तक उठाई. अध्यक्ष महोदय, काँग्रेस विधायक दल की तरफ से, रीवा अँचल की तरफ से, मध्यप्रदेश की जनता की तरफ से, आदरणीय तिवारी जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ.
माननीय अध्यक्ष महोदय, आदरणीय सुरेश सेठ जी एक वरिष्ठ नेता थे. अखबारों से जुड़े थे, ट्रस्ट से जुड़े थे, तीन बार विधायक बने और इन्दौर की मिलों के मजदूरों के संरक्षक थे और मध्यप्रदेश की विधान सभा में शायद उन्होंने एक रिकार्ड भी स्थापित किया था कि विपक्ष के विधायक होने की हैसियत से, हाथी पर सवार होकर, पुरानी विधान सभा में, विपक्ष की आवाज उठाते हुए आए थे, ऐसे जुझारु नेता हमारे बीच में नहीं रहे, उनके लिए भी श्रद्धांजलि देते हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, आदरणीय पूरन सिंह बेड़िया जी 22 जुलाई 1943 को जन्मे, 7 वीं, 8 वीं और 11 वीं विधान सभा में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस पार्टी की ओर से कोलारस विधान सभा के विधायक थे और मंत्री भी रहे. हमारे साथ ही माननीय बेड़िया जी मंत्री थे, उनके हाव-भाव, चाल-चलन से कोई कह ही नहीं सकता था कि ये विधायक भी होंगे. आदरणीय बेड़िया जी इतने सरल स्वभाव के थे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, तातूलाल अहिरवार जी, शिक्षक रहे और फिर राजनीति शुरू की, अमानगंज क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. उनके निधन से भी प्रदेश के सार्वजनिक जीवन की अपूरणीय क्षति हुई है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, श्रीमती केशर बाई डामर, सरपंच, जनपद सदस्य, विधायक, बैंक की अध्यक्ष, संचालक, सब होने के साथ-साथ, एक बहुत ही मृदुभाषी अनुसूचित जनजाति की महिला हमारे बीच में आज नहीं रहीं, उनके लिए भी हम शोक व्यक्त करते हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय रघुनाथ झा जी, बिहार से सांसद, मंत्री रहे, उनके अपने बीच न रहने से एक अपूरणीय क्षति हुई है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, डॉ.बोल्ला बुल्ली रमैया जी का जन्म 1926 को गोदावरी आन्ध्रप्रदेश में हुआ था. 10 वीं, 11वीं, 8 वीं एवं 13 वीं लोकसभा के सदस्य रहे थे और 11 वीं लोकसभा में वे केन्द्र सरकार के वाणिज्य राज्य मंत्री भी रहे थे. उनके निधन से देश ने एक वरिष्ठ नेता खोया है.
आदरणीय भरत नारायण श्रीवास्तव जी, जब मैं पहली बार विधायक बना था तो वे विधान सभा के सचिव थे. वे बहुत कम बोलते थे. उस समय मैं, मुकेश नायक और करीब 90 विधायक ऐसे थे जो कि 35 वर्ष से कम उम्र के थे. हमें श्रीवास्तव जी ने बहुत सूझबूझ से पार्लियामेंट्री प्रेक्टिस की जानकारी दी. जो भी जानकारी हमें उनसे लेना पड़ती थी वे बहुत सरलता से देते थे. उनके हावभाव से ऐसा नहीं लगता था कि वे विधान सभा के सचिव हैं. वे बहुत ही मृदुभाषी व्यक्ति थे. उनके निधन से भी दु:ख हुआ है.
दिनांक 4 फरवरी, 2018 को जम्मू कश्मीर के राजौरी में पाकिस्तानी सेना द्वारा की गई गोलाबारी से श्री रामअवतार, रायफलमेन व चार जवान शहीद हुए. आदरणीय मुख्यमंत्री जी ने उन्हें बहुत अच्छी पंक्तियों से नवाजा है. यह बात सही है कि इन लोगों के लिए जितना कहा जाए वह कम है. देश की सुरक्षा के लिए वह जवान जो शहीद होता है उसे जितना भी दिया जाए वह कम है. माननीय मुख्यमंत्री जी ने जो भी कहा है उसकी मैं सराहना करता हूँ.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इन दिवंगत आत्माओं को मैं कांग्रेस विधायक दल की तरफ से श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ वह इनके परिवारों को यह गहन दु:ख सहन करने की शक्ति प्रदान करें.
उपाध्यक्ष महोदय (डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, आदरणीय स्वर्गीय श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी जी के रुप में लोकतंत्र का एक सजग प्रहरी चिरनिद्रा में सो गया है. तिवारी जी के बारे में माननीय मुख्यमंत्री जी और आदरणीय अजय सिंह जी ने बड़े विस्तार से अपने भाव रखे व घटनाओं का उल्लेख किया. मेरा सौभाग्य था कि उनसे मेरी निकटता थी. अनेकों बार अनेकों मंचों से उन्होंने यह उद्घोष किया था, घोषणा की थी कि राजेन्द्र सिंह मेरे तीसरे बेटे के समान हैं. मुझे तो निश्चित ही एक पारिवारिक क्षति के रुप में उनका न रहना महसूस हो रहा है. यह बात सही है कि वे एक अलग किस्म के नेता थे. उनकी सोच समाजवादी थी. गरीब जनता के प्रति सेवा भाव था. सन् 1952 में विन्ध्य प्रदेश के समय जब वे पहली बार विधायक बने तो बड़ा भारी मुद्दा उठा था. आजादी तो मिल गई थी संविधान भी बन गया था लेकिन जमींदारी प्रथा थी. इस प्रथा में कुछ लोगों के पास सैंकड़ों, हजारों एकड़ जमीन हुआ करती थी और लाखों लोग भूमि विहीन होते थे. उस आन्दोलन की उन्होंने विन्ध्य प्रदेश में बड़ी प्रमुखता से शुरुआत की. उस समय सोशलिस्ट पार्टी में बंटवारा हो गया था, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी. तिवारी जी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में थे. उसके गठन से लेकर उसको खड़ा करने तक में उनकी महती भूमिका थी. विन्ध्य अंचल में कांग्रेस के बाद खासकर तीन जिलों में रीवा, सीधी और शहडोल यहां पर मुख्य विपक्षी दल सोशलिस्ट पार्टी ही हुआ करती थी. सतना में तो जनसंघ था लेकिन इन तीन जिलों में चूंकि पूर्व में माननीय अर्जुन सिंह जी भी इसी विचारधारा से जुड़े रहे और अंत तक भी उनकी विचारधारा यही रही भले ही पृष्ठभूमि कोई भी हो. सोशलिस्ट विचारधारा के बहुत बड़े-बडे़ नेता वहां पैदा हुए. यमुना प्रसाद शास्त्री जी का शायद यहां उल्लेख नहीं हुआ. उनका उल्लेख करना भी बहुत आवश्यक है. चूंकि आप सब जानते हैं कि वे दृष्टिबाधित थे और वर्ष 1977 के चुनाव में उन्होंने महाराजा मार्तण्ड सिंह जी को हराया था. ढाई तीन हजार मत ही थे लेकिन महाराजा मार्तण्ड सिंह जी जैसे लोकप्रिय व्यक्ति को उन्होंने हराया था. निश्चित ही गरीब जनमानस के दिल में उनके प्रति सद्भावना थी इसके साथ-साथ कृष्णपाल सिंह जी का भी उल्लेख नहीं आया. कृष्णपाल सिंह जी भी शहडोल के समाजवादी आंदोलन के बड़े नेता थे. चन्द्रप्रताप तिवारी जी का उल्लेख माननीय अजय सिंह जी ने किया ही है. जगदीश चन्द्र जोशी जी बहुत बडे़ नेता थे. उस अंचल में आदरणीय तिवारी जी ने अपने उसूलों के विपरीत, अपनी सोच के विपरीत, कभी समझौता नहीं किया. पहले वह गहराई से मंथन करते थे, दूसरों के विचारों को भी सुनते थे लेकिन एक बार निर्णय करने के बाद फिर उसी मार्ग पर आगे बढ़ जाते थे. पीछे मुड़कर देखना उन्होंने कभी नहीं सीखा चाहे सामने दिल्ली की सरकार रही हो, या प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हों. आदरणीय अर्जुन सिंह जी की मंत्रि परिषद् में वह एक बार स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री भी बने लेकिन उनका कार्यकाल बहुत दिन तक नहीं रहा और यही एक कारण था कि एक जो परमानेंट डिसेंडेंट्स का एक कीड़ा उनके दिमाग में रहता था. उनका कार्यकाल ज्यादा नहीं रहा लेकिन उन्होंने जो इतिहास कायम किया है दो-दो बार विधान सभा के अध्यक्ष होने का वह भी मध्यप्रदेश जैसी विधान सभा, जो पूरे देश में जानी जाती है, उसके वे उपाध्यक्ष भी रहे. एक बहुत बड़ी शख्सियत हमने खोई है और उसकी पूर्ति करना संभव नहीं है. हम लोग उस पीढ़ी के बाद के हैं हमारी कोशिश होनी चाहिए कि उनके विचारों को और उनके द्वारा किये गये कार्यों को आगे बढ़ाएं. यही सच्ची श्रद्धांजलि आदरणीय तिवारी जी के प्रति होगी. शायद आपको मालूम है या नहीं आखिरी दिनों में वह शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो गए थे. उनको रीढ़ की हड्डी की तकलीफ थी. वह उठ नहीं पाते थे. उनकी दृष्टि भी बाधित हो गई थी. माननीय मुख्यमंत्री जी ने अगर फोन से बात की हो तो वह बात करते थे. तिवारी जी मुद्दे लाते थे, उठाते थे और माननीय सभी मंत्रियों, शायद आपसे भी बात हुई हो तो आपने यह एहसास नहीं किया होगा कि सामने एक कोई लाचार 92, 93 वर्ष का वृद्ध व्यक्ति बोल रहा है. एक युवा जैसी ऊर्जा एवं ओज तिवारी जी में रहा और यही कारण था कि वह पूरे अंचल में लोकप्रिय थे. इस उम्र में भी सेवा के लिए तत्पर रहते थे. कोई भी उनके दरवाजे पर चला जाता था. वह जिस अधिकारी से संबंधित काम होता था, जिस मंत्री से संबंधित काम होता था, उसको कहने में चूकते नहीं थे. उनका जन्मदिन मनाया गया जो वर्ष 2001 से शुरू हुआ था. इस वर्ष भी हम लोगों ने मानाया था और मेरा सौभाग्य है कि मैं इन पूरे 17 वर्षों में उनके कार्यक्रम में गया. पूरे जिले और पूरे संभाग से लोग आते थे और उनके प्रति एक अगाध प्रेम, लगाव विन्ध्य की जनता का था. यह अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है और बहुत सारे रिकार्ड उन्होंने स्थापित किए थे. अध्यक्ष महोदय, शायद आपको मालूम हो या न मालूम हो आपके संज्ञान में यह बात आई है कि नहीं मैं नहीं जानता. लेकिन आज लाभ के पद के कारण अयोग्यता का जो विषय है, यह विषय पहली बार सन् 1956-57 में विंध्यप्रदेश की विधान सभा में आया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शंभुनाथ शुक्ल जी थे चूंकि विंध्यप्रदेश ''सी'' क्लास स्टेट था और ''सी'' क्लास स्टेट को नियम या कानून बनाने का अधिकार नहीं था, संसद ही उस स्टेट के लिए कानून बनाती थी. लेकिन उन्होंने कोशिश बहुत की थी और विपक्ष के लोगों ने बहुत जोर दिया जिसके फलस्वरूप सन् 1957 में 13 माननीय विधायक अयोग्य ठहराये गए थे. भले ही वहां अभाव हो, गरीबी हो, यह स्वयं सिद्ध करता है कि उस अंचल में राजनैतिक रूप से कितनी जागरूकता थी. आज धीरे-धीरे हमारा विंध्य क्षेत्र आगे आ रहा है. परंतु वहां राजनैतिक चेतना सदैव से बहुत ज्यादा रही है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, जब विंध्यप्रदेश का विलय मध्यप्रदेश में हो रहा था तो विरोध करने वालों में सबसे अग्रणी पंक्ति में तिवारी जी ही थे. उनका हमेशा से यह सोचना था कि विकास तभी तेजी से हो सकता है, उसे गति तभी मिल सकती है, जब इलाका छोटा हो और उस पर प्रभावी प्रशासनिक नियंत्रण किया जा सके. इस दृष्टि से उन्होंने विंध्यप्रदेश के विलय का विरोध किया था. इस विषय पर तिवारी जी ने लगातार 7 घंटे का भाषण दिया था, यह भी रिकॉर्ड में है और मैंने अपनी थीसेस में इसका उल्लेख भी किया है. आज वे हमारे बीच नहीं हैं. हमने एक बहुत बड़े कद के व्यक्ति को खो दिया है. तिवारी जी, हमारे मार्गदर्शक थे और जब कभी हम कठिन परिस्थितियों में होते थे, तब वे हमें सांत्वना देते थे, मार्गदर्शक में रूप में हमें सही रास्ता दिखाते थे. आज सदन में उनके लिए मैं यही पंक्तियां कह सकता हूं कि-
'' जब कबीर पैदा हुए, जग हंसे हम रोये,
ऐसे करनी कर चलो कि, हम हंसे जग रोये ''
माननीय अध्यक्ष महोदय, उनकी अंतिम यात्रा में, मैं शामिल था. उनके पैतृक गांव, तिवनी में कई हजार लोग इकट्ठा हुए थे. वहां तिल-तिल में लोग समाये हुए थे और खड़े होने की जगह भी नहीं थी. यह सिद्ध करता है कि उस अंचल में वे कितने लोकप्रिय थे और कैसे महान व्यक्तित्व के वे धनी थे. मैं समझता हूं कि उनकी रिक्तता संभवत: जल्दी नहीं पूरी की जा सकेगी. मैं इस अवसर पर माननीय मुख्यमंत्री जी से अनुरोध करूंगा कि उनकी एक आदम-कद अष्टधातु की प्रतिमा रीवा में या विधान सभा परिसर में जरूर स्थापित की जाए चूंकि वे 10 साल तक विधान सभा अध्यक्ष रहे, उपाध्यक्ष रहे, मंत्री भी रहे और वे एक प्रखर समाजवादी वक्ता थे. माननीय तिवारी जी समाजवाद के एक हस्ताक्षर थे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, स्वर्गीय सुरेश सेठ जी, एक अल्हड़ किस्म के नेता थे. जब वे सदन में बोलते थे तब मैं भी उनके साथ सदन में था और कब वे सरकार के खिलाफ बोलने लगते थे, यह पता नहीं लगता था. कभी-कभी उनका भाषण बिल्कुल 360 डिग्री में सरकार की ओर भी घूम जाता था. कभी कोई अन्याय हो, कोई गलती हो, सुरेश सेठ जी उसे बिल्कुल बर्दाशत नहीं करते थे. सन् 1967 में उन्होंने विधान सभा का चुनाव लड़ा था तो वे हार गए थे लेकिन सन् 1968 में इंदौर की जनता ने उन्हें महापौर चुना. इसके बाद वे 3 बार विधायक बने, मंत्री थे. वे एक समाजवादी सोच के व्यक्ति थे और अंत तक वे संघर्ष करते रहे, इंदौर की जनता इसकी साक्षी है. उनके लिए मैं कहना चाहूंगा कि-
'' बड़े गौर से सुन रहा था ज़माना,
तुम ही सो गए दासतां कहते-कहते ''
सुरेश सेठ जी आज हमारे बीच नहीं हैं. हम सभी को इस बात का बहुत दुख है और उनके प्रति हम अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, पूरन सिंह बेडि़या जी, तातूलाल अहिरवार जी, श्रीमती केशर बाई डामर जी के प्रति मेरी श्रद्धांजलि है. बिहार के श्री रघुनाथ झा जी 7 बार विधायक और 2 बार सांसद रहे. मैं झा जी, का उल्लेख इसलिए कर रहा हूं क्योंकि वे बिहार के भागलपुर से एक बार सांसद थे. वहां से हमारी पत्नी के दादाजी भी भागलपुर से कई बार सांसद रहे. श्री झा भी भागलपुर से सासंद हुआ करते थे. वह बड़े प्रखर और प्रभावशाली नेता थे और अपनी बात पुरजोर तरीके से कहा करते थे जनता के बीच में भी और पार्टी के बीच में भी.
डॉ. बोल्ला बुल्ली रमैया, पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री आन्ध्रप्रदेश के और अंत में इन सबसे महत्वपूर्ण में पाकिस्तानी सेना के द्वारा जो कायराना हमला हुआ, गोलीबारी हुई, उसमें हमारे रायफलमैन रामवतार तथा चार जवान शहीद हुए. मैं समझता हूं कि यह बड़ी ही कायराना बात है, जो इस तरह से पाकिस्तान के लोग हमले करते हैं. हमें पुरजोर उसका जवाब भी देना चाहिये. मुझे खुशी इस बात की है कि माननीय मुख्यमंत्री जी ने एक करोड़ रूपये देने की घोषणा की है और यह पूरे भारत में शायद यह नज़ीर बनेगी कि जब ऐसे लोग शहीद होंगे,चूंकि अगर हम शहीदों का सम्मान नहीं करेंगे तो आने वाली पीढि़यां और हमारी पीढ़ी या आने वाली पीढ़ी कभी देश की सेवा में नहीं जायेगी, देश की रक्षा में नहीं जायेगी. इसलिये शहीदों का सम्मान करना यानि हम स्वयं अपना सम्मान कर रहे हैं.
मैं आपकी, मुख्यमंत्री जी की, नेता प्रतिपक्ष जी की भावनानों से अपनी भावनाओं को जोड़ते हुए, सबके प्रति श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं. ऊँ शांति ऊँ.
श्री गिरीश गौतम(देवतालाब) :- श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी जी के संबंध में माननीय मुख्यमंत्री जी ने, नेता प्रतिपक्ष जी ने और डॉ. राजेन्द्र सिंह जी ने काफी विस्तृत रूप से चर्चा की है. मैं तो उन्हें संघर्षों का प्रतीक मानता था और उनके संघर्ष को अपने जीवन का आदर्श माना. जबकि मैं उनके खिलाफ चुनाव लड़ता था. मैंने उनके खिलाफ वर्ष 1993, 1998 और 2003 में चुनाव लड़ा. वह जनता की समस्याओं के लिये सड़कों पर संघर्ष करके इतनी ऊंचाई तक पहुंचने का यदि हम कहें तो श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी जी ने एक अनूठी मिसाल कायम की है.
जैसा कि हमारे मुख्यमंत्री जी कह रहे थे कि वर्ष 1985 में जोशी जी ने कहा कि जनता पार्टी में चलें, जब 1977 में हवा आयी तो वह नहीं गये. इसी तरह से वर्ष 1985 में कांग्रेस पार्टी से विधायक का टिकिट नहीं दिया गया तो हजारों लोग उनके घर पर इकट्ठा थे और इस बात पर जोर दे रहे थे कि आप निर्दलीय विधायक का चुनाव लड़ो. उस समय वहां पर जो भीड़ इकट्ठा थी तो उसी से ही लग रहा था कि यदि वह निर्दलीय चुनाव लड़ेगें तो उनको कोई हरा नहीं सकता है. फिर भी उन्होंने कहा कि हमको चुनाव नहीं लड़ना है. हमको कांग्रेस पार्टी में ही रहना है और समय का इंतजार करना है. फिर वर्ष 1990 में विधान सभा के हुए, उसमें वह चुनाव जीते. वह जीवटता के प्रतीक थे उनकी इतनी शारीरिक जर्जरता के बाद, उनके देहावसान के करीब एक माह पहले जवा गांव में एक कार्यक्रम था. उस कार्यक्रम में भी वह बतौर मुख्य अतिथि के बतौर गये थे. जबकि उनको दिखाई नहीं पड़ता था, वह चल नहीं पाते थे. उनमें इस तरह की जीवटता थी और यह जनता की समस्याओं को लेकर ही थी. जब उनका पार्थिव शरीर रीवा के अंदर आया तो वह चुरहटा में करीब 5 बजे के आसपास पहुंचे और वहां से उनके निवास अमहिया पहुंचने में करीब साढ़े दस बज गये. केवल चार किलोमीटर की यात्रा में छ: घंटे लग गये.अब इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने लोग सड़कों पर इकट्ठा होंगे जो उनके पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन करना चाहते थे. जब दूसरे दिन साढ़े नौ बजे माननीय मुख्यमंत्री जी के पहुंचने के बाद उनका पार्थिव शरीर तिवनी के लिये ले जाया जा रहा था तो तिवनी का सफर 32 किलोमीटर का था तो वहां भी साढ़े नौ बजे पहुंचे. उसमें भी सड़क के दोनों तरफ लाखों लोगों का हुजूम था. वह इस बात का प्रतीक है कि वह एक राजनैतिक योद्धा थे और हम यह कह सकते हैं कि हमारे बीच से एक राजनैतिक योद्धा का अवसान हुआ है. यदि हम वाकई में श्रद्धासुमन अर्पित करना चाहते हैं तो मेरा आप सबसे आग्रह है कि हम आज की राजनीति में प्रतिद्वंदी हो सकते हैं, परंतु हमें एक दूसरे के व्यक्तिगत आक्षेपों और आरोपों से बचना चाहिये.
मैं
समझता हूं कि
इससे बड़ी
श्रद्धांजलि
और कुछ नहीं
हो सकती है.
मैं उनके
प्रति
श्रद्धासुमन
अर्पित करता
हूं, मैं
उनके चरणों
में शीश नमन
करता हूं और
ईश्वर से
प्रार्थना
करता हूं कि
उनके परिवार
को यह शोक सहन
करने की शक्ति
प्रदान हो,
उनके चाहने
वालों को
भी शक्ति
प्रदान हो.
बाकि जिनका
जिक्र आपने किया
है उन सब
दिवंगत आत्माओं
को भी शोक
श्रद्धांजलि
अर्पित करता
हूं.
श्रीमती शीला त्यागी (मनगवां) - माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीयुत् श्रीनिवास तिवारी जी की आत्मा की शांति के लिए एवं प्रभु उनके परिवार को इस गहन दु:ख को सहन करने की शक्ति दे, मैं उनको श्रद्धासुमन अर्पित करती हूँ, साथ ही वे सर्वहारा वर्ग के नेता थे, वे जुझारू, संघर्षशील, हमेशा गरीबों की लड़ाई लड़ने वाले एवं जमीन से जुड़े हुए नेता थे. उन्होंने जिस कड़ी मेहनत से अपना एक राजनीतिक कद प्राप्त किया था, उसको भर पाना विन्ध्य की धरती पर असंभव सा लगता है.
अध्यक्ष महोदय, एक इतिहास पुरुष होने के साथ-साथ उन्होंने हमेशा गरीबों की लड़ाई लड़ी और यहां तक कि विधानसभा में जितने अधिकारी एवं कर्मचारी हैं, उनसे उनका विशेष आत्मिक लगाव रहा है. उन्होंने हरसंभव अपने चाहने वालों की मदद की है और यहां तक कि उन्होंने यह बता दिया कि विधानसभा के अध्यक्ष की क्या शक्तियां होती हैं और विन्ध्य की धरती पर जन्म लेकर, वे विन्ध्य के सर्वांगीण विकास के लिए अंतिम सांस तक लड़ते रहे और यह मेरा सौभाग्य है कि जिस विधानसभा का उन्होंने कई बार नेतृत्व किया, वहां से विधायक रहे, मंत्री रहे और मैं आज वहां का नेतृत्व कर रही हूँ. मैं आज वहां से विधायक हूँ.
अध्यक्ष महोदय, माननीय श्रीयुत् श्रीनिवास तिवारी जी की यह अपूरणीय क्षति है और ऐसे महान् नेता को, मैं अपनी ओर से एक बार पुन: और अपने दल की ओर से श्रद्धासुमन अर्पित करती हूँ एवं ईश्वर से यह प्रार्थना करती हूँ कि उनके परिवार को इस असीम दु:ख को सहने की शक्ति प्रदान करे एवं साथ ही दैनिक कार्यसूची में अंकित दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए भी, मैं उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करती हूँ एवं उनके परिवार को इस असीम दु:ख को सहने की प्रार्थना करती हूँ. धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय - मैं, सदन की ओर से शोकाकुल परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करता हूँ. अब सदन दो मिनट मौन खड़े रहकर दिवंगतों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करेगा.
(सदन द्वारा दो मिनट मौन खड़े रहकर दिवंगतों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की गई.)
अध्यक्ष महोदय - दिवंगतों के सम्मान में विधानसभा की कार्यवाही बुधवार, दिनांक 28 फरवरी, 2018 को प्रात: 11.00 बजे तक के लिए स्थगित.
पूर्वाह्न 11.58 बजे विधानसभा की कार्यवाही बुधवार, दिनांक 28 फरवरी, 2018 ( 9 फाल्गुन, शक संवत् 1939 ) के पूर्वाह्न 11.00 बजे तक के लिये स्थगित की गई.
भोपाल: ए. पी. सिंह
दिनांक: 27 फरवरी, 2018 प्रमुख सचिव,
मध्यप्रदेश विधान सभा.