मध्यप्रदेश विधान सभा
की
कार्यवाही
(अधिकृत विवरण)
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चतुर्दश विधान सभा एकादश सत्र
जुलाई, 2016 सत्र
मंगलवार, दिनांक 26 जुलाई, 2016
(4 श्रावण, शक संवत् 1938 )
[खण्ड- 11 ] [अंक- 6 ]
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मध्यप्रदेश विधान सभा
मंगलवार, दिनांक 26 जुलाई, 2016
(4 श्रावण, शक संवत् 1938 )
विधान सभा पूर्वाह्न 11.03 बजे समवेत हुई.
{अध्यक्ष महोदय (डॉ.सीतासरन शर्मा) पीठासीन हुए.}
पुनासा डेम के अंतर्गत संचालित परियोजनाएं
1. ( *क्र. 2857 ) श्री सचिन यादव : क्या राज्यमंत्री, नर्मदा घाटी विकास महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) इंदिरा सागर परियोजना (पुनासा डेम) के अंतर्गत ऐसी कितनी परियोजनाएं हैं, जिनके माध्यम से कितने ग्रामों की कितनी-कितनी हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित एवं अपरिष्कृत पेयजल सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है? इनका विस्तार कर और कितने ग्रामों एवं क्षेत्र की कृषि भूमि को सिंचित किया जायेगा एवं कितनी-कितनी परियोजनाएं स्वीकृत एवं प्रस्तावित हैं, उन परियोजनाओं से कितने ग्रामों की कितनी हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित एवं अपरिष्कृत पेयजल सुविधा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है एवं उनके विस्तारीकरण की भी क्या आगामी कार्ययोजना है? (ख) क्या इंदिरा सागर परियोजना (पुनासा डेम) जलाशय की भंडारण क्षमता के मान से प्रश्नांश (क) में दर्शित परियोजनाएं बनाई गई हैं? हाँ तो उक्त परियोजनाओं की पूर्ति के उपरांत कितना पानी उक्त डेम में शेष रहेगा? (ग) प्रश्नांश (क) अनुसार जिला खरगोन के कितने-कितने ग्रामों की कितनी-कितनी हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित एवं अपरिष्कृत पेयजल सुविधा दी जा रही है एवं दी जायेगी तथा अस्वीकृत एवं प्रस्तावित आगामी परियोजनाओं से कितने हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित एवं अपरिष्कृत पेयजल सुविधा दिये जाने का लक्ष्य रखा गया है? (घ) क्या उक्त परियोजनाओं के अंतर्गत क्षेत्रों में पड़ने वाले तालाबों, जलाशयों आदि को भी इन परियोजनाओं के माध्यम से पानी डाला जायेगा? हाँ तो बतायें? नहीं तो क्यों?
राज्यमंत्री, नर्मदा घाटी विकास ( श्री लालसिंह आर्य ) : (क) इस संरचना के अंतर्गत दो परियोजनाएं आती हैं, जिसमें से एक इंदिरा सागर नहर परियोजना एवं दूसरी पुनासा उद्वहन सिंचाई परियोजना है। (1) इंदिरा सागर परियोजना के अंतर्गत खरगोन उद्वहन नहर का कार्य भी सम्मिलित है। वर्तमान में इंदिरा सागर परियोजना से लक्षित 596 ग्रामों की 123000 हेक्टेयर के विरूद्ध 358 ग्रामों की 105000 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है एवं खरगोन उद्वहन नहर से 152 ग्रामों में अपरिष्कृत पेयजल उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित है। (2) पुनासा उद्वहन सिंचाई परियोजना में इंदिरा सागर जलाशय से सीधे पानी उद्वहन कर खण्डवा जिले के 99 ग्रामों की 35000 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित एवं अपरिष्कृत पेयजल सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। (3) इंदिरा सागर की मुख्य नहर के विस्तारीकरण के अंतर्गत दो परियोजनाएं स्वीकृत हैं, जिनका विवरण निम्नानुसार है :- (i) छैगाँवमाखन उद्वहन योजना-सिंचाई क्षमता 35000 हेक्टेयर, लाभान्वित ग्रामों की संख्या 58, अपरिष्कृत जल उपलब्ध कराये गये ग्रामों की संख्या 0. (ii) बिस्टान उद्वहन योजना-सिंचाई क्षमता 22000 हेक्टेयर लाभान्वित ग्रामों की संख्या 92, अपरिष्कृत जल उपलब्ध कराये गये ग्रामों की संख्या 0. (4) पुनासा सिंचाई योजना के विस्तारीकरण के अंतर्गत सिंहाडा उद्वहन योजना स्वीकृत है, जिसकी सिंचाई क्षमता 5750 हेक्टेयर, लाभान्वित ग्रामों की संख्या 17 तथा अपरिष्कृत जल उपलब्ध कराये गये ग्रामों की संख्या 17 है। (5) इसके अतिरिक्त इंदिरा सागर परियोजना के जलाशय से हरसूद उद्वहन योजना प्रस्तावित है, जिससे खण्डवा जिले की हरसूद तहसील के 13 ग्रामों में 5648 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई प्रस्तावित है। (ख) इंदिरा सागर परियोजना के जलाशय से सिंचाई हेतु 1730 मिलियन क्यू.मी. पानी सुरक्षित रखा गया है जो कि प्रश्नांश (क) में दर्शाई गई योजनाओं हेतु सुरक्षित है। उक्त योजनाओं में पानी की आपूर्ति के पश्चात (पुनासा डेम) में 8020 मिलियन क्यू.मी. पानी उपलब्ध रहता है। (ग) प्रश्नांश (क) अनुसार जिला खरगोन के 225 ग्रामों की 54000 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता निर्मित हो चुकी है तथा योजना का शेष कार्य पूर्ण होने पर 62 ग्रामों की 12551 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा एवं 152 ग्रामों के लिये अपरिष्कृत पेयजल उपलब्ध कराई जावेगी एवं स्वीकृत बिस्टान उद्वहन नहर सिंचाई योजना से 92 ग्रामों की 22000 हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचित कराया जाना प्रस्तावित है। (घ) जी नहीं। प्रस्तावित परियोजनाओं में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
श्री सचिन यादव--अध्यक्ष महोदय,मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्रीजी से पूछना चाहता हूं. मैंने जो प्रश्न किया था उसका जो जवाब आया है कि सारी परियोजनाओं को पानी आवंटित करने के पश्चात इंदिरा सागर बांध में पर्याप्त पानी रहता है. मैं, आपके माध्यम से पूछना चाहता हूं कि क्या कारण है कि पर्याप्त पानी होने के बावजूद जब बोनी का समय आता तो हर साल किसानों को सड़कों पर उतर कर एनव्हीडीए के अधिकारियों के दफ्तरों का घेराव करना पड़ता है. हर साल ऐसी स्थिति निर्मित होती है जिसके कारण किसान परेशान होते हैं. मैं मंत्रीजी से इसका कारण जानना चाहता हूं.
श्री लाल सिंह आर्य--अध्यक्ष महोदय, बहुत सारी नहरों का कहीं न कहीं काम चल रहा है इसके कारण थोड़ा बहुत काम प्रभावित होता है. अध्यक्ष महोदय, जब भी किसान फसल के लिए पानी की मांग करते हैं तो हम निर्माण कार्य रोक कर किसानों के हित में पानी देने का काम करते हैं, और यह भविष्य में जारी रहेगा.
श्री सचिन यादव--अध्यक्ष महोदय, मैं, आपके माध्यम से यह भी जानना चाहता हूं कि नहरों के काम के जो टेण्डर 2006 में स्वीकृत हुए थे, उन नहरों का काम आज तक क्यों नहीं पूरा हो पा रहा है. मैं कई बार धरने दे चुका हूं. कई बार उच्चाधिकारियों से, प्रमुख सचिव से, चर्चा कर चुका हूं. कलेक्टर के माध्यम से जो जिले के बड़े अधिकारी हैं, उनसे चर्चा कर चुका हूं. लेकिन हर बार मुझे सिर्फ आश्वासन मिलता है. विगत 2-3 सालों से लगातार यही स्थिति निर्मित हो रही है कि हर बार जब भी पानी छोड़ने की बात आती है तो विभाग के लोग नहरों का काम पूरा करने की आड़ लेकर हर बार ऐसी स्थिति निर्मित करते हैं जिसके कारण किसानों को बहुत समस्या का सामना करना पड़ता है.
अध्यक्ष महोदय--कृपया प्रश्न पूछें.
श्री सचिन यादव--अध्यक्ष महोदय, मैं, आपके माध्यम से पूछना चाहता हूं कि एक समयावधि बतायी जाये जिसमें नहरों का काम, विशेष कर मेरे क्षेत्र में जो अधूरा पड़ा है, वह काम कब तक पूर्ण कर लिया जाएगा?
श्री लाल सिंह आर्य - अध्यक्ष महोदय,जब कभी प्राकृतिक घटनाएं होती हैं, तब काम प्रभावित होता है. निमाड़ क्षेत्र में कभी-कभी बरसात अधिक होती है, कभी-कभी किसानों के आन्दोलन भी होते हैं कि हमें पानी दिया जाय, काम रोक दिया जाय, इसलिए ऐसी परिस्थिति होती है, तब काम प्रभावित होता है. लेकिन फिर भी श्री सचिन जी मैं आपको संतुष्ट करना चाहता हूं कि जून, 2017 तक हम इस काम को पूर्ण कर देंगे.
श्री सचिन यादव - अध्यक्ष महोदय, मैं जब पिछली बार धरने पर बैठा था, तब मुझे कहा गया था कि अक्टूबर, 2016 तक जो नहरों का काम अधूरा पड़ा हुआ है, उसको पूर्ण कर लिया जाएगा. अब माननीय मंत्री जी कह रहे हैं कि जून, 2017 तक किया जाएगा. अब यह बताएं कि अगली बार जब बोवनी का सीजन आएगा, फिर यही स्थिति निर्मित होगी, फिर वही धरने, आन्दोलन, किसानों को सड़कों पर उतरना पड़ेगा. इस स्थिति से बचने के लिए मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूं कि इस काम अतिशीघ्र पूरा किया जाय और जो मुझे आश्वासन दिया गया था कि अक्टूबर, 2016 तक इस काम को पूर्ण कर लिया जाएगा, उसका आश्वासन मैं माननीय मंत्री जी से लेना चाहता हूं. अध्यक्ष महोदय, साथ ही साथ आपके माध्यम से माननीय मंत्री यह भी आश्वासन लेना चाहता हूं कि चूंकि जवाब में दिया है कि डेम में पर्याप्त पानी उपलब्ध है तो क्या जो मेरा क्षेत्र है, जो सूखा क्षेत्र है, विशेषकर हमारा बलकवाड़ा, सिंगून, दाबरी, नाइदड़ वाला जो बेल्ट है, साला, उमरिया वाला जो बेल्ट है, उस बेल्ट में उन किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए क्या कोई योजना मंजूर करने का काम हमारे माननीय मंत्री जी करेंगे?
अध्यक्ष महोदय - मंत्री जी एक मिनट, श्री हितेन्द्र सिंह सोलंकी जी का प्रश्न भी इसी से संबंधित है, आप दोनों का साथ में उत्तर दे दीजिए.
श्री हितेन्द्र सिंह सोलंकी - अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी से यह चाहता हूं कि यह किसानों से जुड़ा हुआ नहरों का मामला है, नहरें बिछ चुकी हैं. तालाब के किनारे कई नहरें निकल गई हैं. तालाब सूख जाते हैं, तालाब से भी नहरें बनी हुई हैं. क्या उन नहरों में पानी छोड़ा जाएगा और यह बार-बार विपक्ष के लोग जो यह काम किया करते हैं कि कभी भी खड़े हो जाना, आन्दोलन करना तो इसमें कोई तारीख निश्चित कर दें कि जब गर्मी में पानी छोड़ा जाय, फसलें जब किसान लगाता है, उस समय यदि पानी छोड़ देंगे तो यह आन्दोलन वाली बात खत्म हो जाएगी.
श्री लाल सिंह आर्य - अध्यक्ष महोदय, जैसा माननीय श्री सचिन जी और श्री हितेन्द्र जी ने कहा है, अभी तक जो हमने बातचीत की है. मुश्किल में दो महीने हमारा नहरों का काम हो पाता है. उसका कारण है कि हमें कभी रबी की फसल में पानी देना पड़ता है, कभी खरीफ की फसल में पानी देना पड़ता है. कभी बरसात होती है, इस कारण से काम प्रभावित होता है. लेकिन किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए माननीय मुख्यमंत्री जी ने एक नहीं कई ऐतिहासिक निर्णय लिये हैं. एक नहीं कई योजनाओं को जन्म दिया है, जिसके कारण किसानों में खुशहाली आई है. लेकिन माननीय श्री सचिन जी जैसा कह रहे हैं, आपने जैसा इंगित किया है, बलकवाड़ा, सिंगून, दाबरी जोन, आप निश्चिंत रहिए, ऐसे बेल्ट जहां पर सूखा है, उन बेल्टों को भी सोलर प्लांट लगाकर हम किसान को पानी कैसे दे पाएं, यह भी हमारा विचार चल रहा है.
श्री सचिन यादव - माननीय मंत्री जी, इसमें साला, उमरिया भी जोड़ लें.
श्री लाल सिंह आर्य - आपका जो विषय आया है, आप वह भी लिखकर दे देना. सरकार का मंतव्य एक ही है कि एक भी इंच जमीन जो सूखी है, उस किसान के खेत तक पानी पहुंचाना. जहां तक तालाब वाली बात आई है, हम समीक्षा करेंगे. किसान के हित में जो आवश्यक हो सकता होगा, वह हम करेंगे.
अध्यक्ष महोदय - श्री मनोज कुमार अग्रवाल..
श्री हितेन्द्र सिंह सोलंकी - माननीय मंत्री जी, केवल तारीख निश्चित कर दें. (व्यवधान)..गर्मी के समय में पानी छोड़ने वाली बात है.
श्री सचिन यादव - अध्यक्ष महोदय, मेरा पाइंटेड प्रश्न है. आपसे निवेदन करना चाहता हूं.
अध्यक्ष महोदय - अब नहीं. 4-4, 5-5 प्रश्न हो गये. वाद-विवाद नहीं होता, आपकी सब बातें आ गईं.
दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों का नियमितीकरण
2. ( *क्र. 1481 ) श्री मनोज कुमार अग्रवाल : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश क्र. एफ 5-3/2006/1/3 भोपाल दिनांक 29 सितम्बर, 2014 के अनुसार म.प्र. शासन के विभिन्न विभागों में कार्यरत दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को 31 मार्च, 2016 तक नियमित किये जाने के आदेश दिये हैं? (ख) शासन के किन विभागों ने इस आदेश के तहत विभागों में कार्यरत दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित नहीं किया है? सूची प्रदाय की जावे। (ग) उक्त आदेश का पालन संबंधित विभागों द्वारा कब तक किया जावेगा?
मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) जी नहीं। (ख) एवं (ग) उत्तरांश (क) के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता है।
माननीय अध्यक्ष महोदय, यह कर्मचारियों और मानव के शोषण का मामला है । इसमें दैनिक वेतन भोगियों के साथ अन्याय हो रहा है, उसका मामला है, सुप्रीम कोर्ट का 2015 का भी आदेश है कि नियमितिकरण किया जाए । आज तक इसमें यह नहीं बताया कि कितने लोगों का नियमितिकरण किया गया और नियमितिकरण करने की इनकी आगे की क्या प्लानिंग है । कृपया मुख्यमंत्री महोदय बताने की कृपा करें कि कब तक नियमितिकरण होगा ।
राज्यमंत्री,सामान्य प्रशासन ( श्री लाल सिंह आर्य)- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने यह नहीं पूछा कि कितने लोगों का नियमितिकरण हो चुका है । फिर भी मैं आपके संज्ञान में ला रहा हूं कि 58 हजार कर्मचारी हमारे मध्यप्रदेश में हैं जिनमें से 10 हजार का हम नियमितिकरण कर चुके हैं,48 हजार शेष हैं ।
माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मुख्यमंत्री जी, हमारी पूरी सरकार हर पहलू पर विचार कर रही है और नियमितिकरण की लाईन में खड़े हुए हमारे जो कर्मचारी हैं किस एंगल से हम काम कर पाए इस पहलू पर हम काम कर रहे हैं । माननीय अध्यक्ष महोदय, कर्मचारी हमारा है, उसने कभी सरकार के खिलाफ आंदोलन नहीं किया है, आंदोलन करने की बारी नहीं आ पाई । तब तक हमने कर्मचारी और अधिकारियों के हितों में हम जो कुछ कर सकते हैं वह हमने किया है ।
श्री मनोज कुमार अग्रवाल- माननीय अध्यक्ष महोदय, इसकी समय सीमा क्या है ।
श्री बाला बच्चन- माननीय अध्यक्ष महोदय, इसी से संबंधित मेरा भी प्रश्न है कृपया मुझे समय दें ।
अध्यक्ष महोदय- पहले उनका प्रश्न पूरा हो जाए उसके बाद ।
श्री मनोज कुमार अग्रवाल- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी से जानना चाहता हूं कि इसकी समय सीमा क्या है । कितनी समय सीमा में यह कर पाएंगे कितने प्रतिशत यह कर पाएंगे ।
श्री बाला बच्चन- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने विधायक के जबाव को पूरी तरह से भ्रमित करने का प्रयास किया है । मैं यह जानना चाहता हूं दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों कोर्ट से जीत चुके हैं उसके बाद भी सरकार उनको कितना परेशान करेगी । उनको नियमित क्यों नहीं किया जा रहा है, माननीय मंत्री जी इससे बड़ी और व्यवस्था क्या हो सकती है ।
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया- माननीय अध्यक्ष महोदय, प्रतिपक्ष आज दैनिक वेतन भोगी की हिमायती बन रहा है कांग्रेस के समय में एक झटके में उनको निकाल कर बाहर कर दिया था । ( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय- कृपया उत्तर तो आने दीजिए .
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया- आपने 28 हजार को निकाल दिया था । (व्यवधान)
श्री जितू पटवारी- माननीय अध्यक्ष महोदय......( व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय- कृपया बैठ जाइए प्रश्नकाल को बाधित न करें । कृपया उत्तर आने दें । जितू पटवारी जी बैठ जाइए । (व्यवधान)
श्री लालसिंह आर्य- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने एक प्रश्न का जबाव उनको दिया था दूसरे प्रश्न से भी मैं उनको संतुष्ट करना चाहता हूं पर मुझे लग रहा है कि यह प्रश्न का जबाव लेने से ज्यादा राजनैतिक लाभ उठाने का ज्यादा प्रयास हो रहा है । माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय शिवराज सिंह जी की सरकार कर्मचारी अधिकारी किसान मजदूरों की हितैषी सरकार है । इसलिए आप चिन्ता मत करिए यह खाने के दांत और दिखाने के दांत कृपया आप ऐसा मत करिए, 28 हजार कर्मचारियों को आपने निकाला था, लेकिन आप जिन कर्मचारियों को जिन शिक्षकों को 2300 रूपए देते थे हमने उनको 22000 तक पहुंचा दिया है । इसलिए माननीय अध्यक्ष महोदय मैं आपके माध्यम से कहना चाहता हूं और पूरे दावे के साथ पूरी गंभीरता के साथ कहना चाहता हूं कि कर्मचारी हमारे परिवार का अंग है, मध्यप्रदेश को आगे बढ़ाने में उसकी भी सहभागिता है । इसलिए माननीय मुख्यमंत्री हमारा शासन प्रशासन सारे विषयों पर हम गंभीरता से विचार कर रहे हैं और इनकी चिन्ता का कारण यह नहीं है इनकी चिन्ता का कारण सत्ता है । मुख्यमंत्री जी की चिन्ता का कारण है इसलिए हम पूरे पहलुओ पर विचार करके उनके हित में कोई अच्छा निर्णय हो सके । इसका हम प्रयास कर रहे हैं ।
प्रश्न संख्या -3 (अनुपस्थित)
अवैध खनन के प्रकरण में वसूली
4. ( *क्र. 1136 ) श्री बहादुर सिंह चौहान : क्या खनिज साधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) कमिश्नर उज्जैन के समक्ष दिनेश पिता मांगीलाल जैन निवासी महिदपुर रोड के विरूद्ध चल रहे प्रकरण की अद्यतन स्थिति बतावें। (ख) विगत 3 माह में इसमें कितनी तारीखें लगीं? इसकी जानकारी देवें। (ग) इस प्रकरण का कब तक निराकरण होगा और क्या इनसे राशि वसूल की जावेगी? समय-सीमा बतावें।
खनिज साधन मंत्री ( श्री राजेन्द्र शुक्ल ) : (क) प्रकरण न्यायालय, अपर आयुक्त, उज्जैन संभाग, उज्जैन के समक्ष प्रकरण क्रमांक 395/15-16 दर्ज है। इसमें दिनांक 25.07.2016 को पेशी नियत है। (ख) प्रश्नाधीन अवधि में प्रकरण में 5 तारीखें सुनवाई हेतु लगी हैं। (ग) प्रकरण अर्धन्यायिक प्रक्रिया के तहत विचाराधीन है। अत: प्रश्नानुसार समय-सीमा बताया जाना संभव नहीं है।
श्री बहादुर सिंह चौहान- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न अवैध खनन को लेकर है । पूर्व में भी माननीय अध्यक्ष जी इस प्रश्न पर चर्चा हो चुकी है । 30 करोड़ 29 लाख 25 हजार 625 का केस अवैध खनन का है । चूंकि मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा अवैध खनन का केस मेरे द्वारा विधानसभा में उठाने के बाद बनाया गया है पर माननीय अध्यक्ष जी मुझे ऐसा लग रहा है कि अभी भी खनन माफिया जिसके विरूद्व इतना बड़ा केस बनाया है उसके विरूद्व कोई कार्यवाही नहीं हो रही है । इस पर उत्तर आया कि 5 तारीखें लग गई हैं । कल भी तारीख थी 25.7 को विभाग की ओर से कोई वकील वहां पर उपस्थित नहीं हो रहा है । अर्ध न्यायालय अपर आयुक्त उज्जैन में यह केस चल रहा है मेरा आपसे आग्रह है कि इतना बड़ा केस 30 करोड़ का है मैं बार बार इस प्रश्न को ला रहा हूं ।
अध्यक्ष महोदय- आप सीधे प्रश्न कर दें ।
श्री बहादुर सिंह चौहान- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी से कहना चाहता हूं कि आपके विभाग का वरिष्ठ अधिकारी जो भोपाल स्तर का अधिकारी होगा जाकर इस केस को जो कि अर्द्व न्यायालय में चल रहा है उसका निराकरण करवाएंगे ।
श्री राजेन्द्र शुक्ल- माननीय अध्यक्ष महोदय, अर्द्व न्यायायिक मामला है । कमिश्नर कोर्ट में सुनवाई चल रही है और गुणदोष के आधार पर न्यायालय जो फैसला करेगा उसके हिसाब से कार्यवाही होगी जहां तक कुर्की के आदेश को जारी करने का सवाल है उस पर बोर्ड ऑफ रेवेन्यू ने भी स्टे लगाया हुआ है इसलिए कुर्की की कार्यवाही नहीं हो पा रही है ।
श्री बहादुर सिंह चौहान- माननीय अध्यक्ष जी, आर आर सी जारी हो चुकी है और जो तीन महीने का स्टे दिए हुआ है वह वेकेट हो गया है मेरी अपनी जानकारी के हिसाब से तीन माह के लिए स्टे दिया था उसका मकान आदि भी सीज हो रहा था गाडी । मेरा कहना है कि 6 तारीखें लग गई हैं क्या कारण है कि बार बार इसमें तारीखें बढ़ रही हैं । अपर आयुक्त उज्जैन इसकी तारीखें बढ़ा रहे हैं तो विभाग क्या देख रहा है । वहां के जो खनिज का अधिकारी है वह खनिज माफिया से मिला हुआ है । मैं कहना चाहता हूं क्या भोपाल के अधिकारी इस केस को डील करेंगे । मेरा आपसे सिर्फ इतना आग्रह है कि यह अर्द्व न्यायिक प्रकरण अपर आयुक्त उज्जैन न्यायालय में चल रहा है । क्या माननीय मंत्री जी इस अर्ध न्यायालय में इस केस को निराकरण कराने के लिए भोपाल स्तर के अधिकारी को नियुक्त करेंगे । ताकि समय पर तारीखों पर जाकर वकील इसका निराकरण करा सकें ।
श्री राजेन्द्र शुक्ल- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य की मंशा के अनुसार जो भी इसमें न्यायायिक तौर से किया जा सकता है वह किया जाएगा ।
श्री बहादुर सिंह चौहान- माननीय अध्यक्ष जी मेरी मांग है कि इसके लिए कोई दूसरा अधिकारी नियुक्त करें । उज्जैन का अधिकारी उस खनन माफिया से मिला हुआ है । मेरा आग्रह है कि भोपाल स्तर से अधिकारी नियुक्त करने में क्या दिक्कत है । माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं गलत क्या कह रहा हॅूं ? भोपाल स्तर के अधिकारी को इसके निराकरण के लिए नियुक्त कर दें.
अध्यक्ष महोदय -- आप बैठ जाएं कृपया. (व्यवधान) उनका उत्तर आ रहा है.
श्री मुकेश नायक -- अध्यक्ष महोदय, माननीय मुख्यमंत्री जी सदन में हैं हमारी तो वे नहीं सुनते लेकिन उनकी पार्टी के विधायक जो कह रहे हैं उसे तो सुन लें. (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय -- आप लोग बैठ जाइए, उत्तर आ रहा है.
श्री राजेन्द्र शुक्ल -- माननीय अध्यक्ष महोदय, बहादुर सिंह जी ने मेरी बात को ध्यान से नहीं सुना. मैंने कहा बहादुर सिंह जी की मंशा के अनुसार नियम के अनुरूप जो भी कार्यवाही होगी, वह की जावेगी.
डायवर्सन शुल्क एवं सम्पत्तिकर का निराकरण
5. ( *क्र. 1812 ) श्री सूबेदार सिंह रजौधा : क्या नगरीय विकास एवं आवास मंत्री महोदया यह बताने की कृपा करेंगी कि (क) क्या नगर परिषद जौरा क्षेत्रान्तर्गत डायवर्सन कर समाप्त करने बावत परिषद द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर कलेक्टर मुरैना व राज्य शासन की ओर से पत्र क्रं. 108570/860 दिनांक 17-09-2004 को भेजा गया था? यदि हाँ, तो उस पर क्या कार्यवाही की गई? (ख) क्या अभी भी नगर के लगभग 3000 भवन स्वामी सम्पत्ति कर व डायवर्सन शुल्क दोनों भार वहन कर रहे हैं? यदि हाँ, तो क्या दोनों शुल्क अदा करना न्याय संगत है? (ग) प्रश्नांश (क) (ख) के परिप्रेक्ष्य में क्या नगर के भवन स्वामियों को दोहरी शुल्क अदायगी से मुक्त किया जावेगा? यदि हाँ, तो कब तक? यदि नहीं, तो कारण स्पष्ट करे?
नगरीय विकास एवं आवास मंत्री ( श्रीमती माया सिंह ) : (क) जी हाँ, नगर परिषद, जौरा द्वारा जौरा क्षेत्रांतर्गत डायवर्सन कर समाप्त करने हेतु प्रस्ताव अनुविभागीय अधिकारी एवं कलेक्टर महोदय जिला-मुरैना की ओर भेजा गया है, सही है, किन्तु डायवर्सन शुल्क राज्य शासन के प्रावधानानुसार होने से कोई कार्यवाही प्रचलित नहीं है। (ख) जी हाँ (1) जौरा नगर में नगर परिषद द्वारा म.प्र. नगर पालिका अधिनियम, 1961 के अध्याय 7 भाग 1 की धारा 126 अनुसार दर निर्धारित कर संपत्ति कर एवं समेकित कर अधिरोपित किया जाता है, जो कि नियमानुसार है, (2) डायवर्सन शुल्क म.प्र. भू-राजस्व संहिता, 1961 के अध्याय 11 की धारा 57, 58 एवं 137 से 140 तक में भू-राजस्व के अधिरोपण एवं वसूली के संबंध में प्रावधान है, धारा 57 के अनुसार समस्त भूमि राज्य सरकार की संपत्ति है, धारा 58 के अंतर्गत समस्त भूमि चाहे वह किसी भी प्रयोजन के लिये उपयोजित की जाती हो और चाहे वह कहीं भी स्थित हो राज्य सरकार को राजस्व के भुगतान के लिये दायित्वाधीन है, 57 एवं 58 से स्पष्ट है कि प्रत्येक भूमि पर भू-राजस्व देय होता है, जो कि सांकेतिक रूप से दर्शाता है कि सभी भूमि का अंतिम स्वामित्व सरकार में ही निहित है और भूमि स्वामी/भू-धारक/उपयोगकर्ता उक्त भूमि के उपयोग के एवज में राज्य शासन को भू-राजस्व अदा कर रहा है। इस प्रकार सम्पत्ति कर व डायवर्सन शुल्क अदा करना नियमानुसार है। (ग) जी नहीं, शेषांश का प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
श्री सूबेदार सिंह रजौधा -- माननीय अध्यक्ष महोदय, जौरा नगर के तीन हजार नागरिकों पर दोहरा टैक्स लग रहा है एक तो नगर पंचायत वूसल कर रहा है दूसरा डायवर्सन के रूप में राजस्व विभाग वसूल कर रहा है तो यह विसंगति है. मैंने जो प्रश्न लगाया था उसमें माननीय मंत्री जी से पूछा था कि वर्ष 2004 में नगर पंचायत, जौरा ने यह प्रस्ताव करके भेजा है कि हम मकान वालों को पूरी मूलभूत सुविधाएं दे रहे हैं उनसे टैक्स वसूल कर रहे हैं तो राजस्व विभाग को इसमें टैक्स लेने का कोई औचित्य नहीं है यह प्रस्ताव गया है लेकिन माननीय मंत्रीजी ने जो जवाब दिया है उसमें इतनी धाराएं लिख दी हैं कि मैं पढ़ते-पढ़ते उनको समझ ही नहीं पाऊंगा, इसलिए माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपका संरक्षण चाहूंगा. सौभाग्य से माननीय मुख्यमंत्री जी भी बैठे हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, अगर कोई कानूनी पेंच है कि उसमें नहीं कर सकते तो उसमें उस कानूनी पेंच को आज अध्यक्ष जी बैठे हैं पूरे विधानसभा के सब सदस्य बैठे हैं, क्या दोहरा टैक्स उन गरीब किसानों के साथ न्याय नहीं होगा ? मैं चाहूंगा कि इसमें आपका भी संरक्षण मिलेगा और माननीय मंत्री जी तो हमारी बहुत उदार मंत्री हैं और फिर हमारी प्रभारी मंत्री भी हैं. इनसे तो मैं पूरी उम्मीद करता हॅूं लेकिन इसमें पढ़कर थोड़ी हताशा हुई है. मैं माननीया मंत्री जी से आग्रह करता हॅूं कि कुछ न कुछ व्यवस्था ऐसी निकालें कि उन मकान मालिकों को दोहरा टैक्स न लगे या तो डायवर्सन लगे या संपत्ति कर के रूप में नगर पंचायत वसूल करे.
श्रीमती माया सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से मैं सम्मानीय विधायक जी को बताना चाहती हॅूं कि उन्होंने जो सवाल पूछा है कि नगर परिषद जौरा में वहां के रहने वाले लोगों के ऊपर दोहरा करारारोपण किया जा रहा है. मैं आपको बताना चाहती हॅूं वास्तविकता यह है कि यह नियमों के अंतर्गत वैधानिक रूप से ही वसूल किया जा रहा है. मैं आपके माध्यम से बताना चाहती हॅूं कि संपत्ति कर मध्यप्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 126 के अंतर्गत लिया जाता है. विधायक जी कहना है कि बहुत सारे ऐसे कागज दे दिए हैं और नियमों का हवाला दिया है जो उनके समझ में नहीं आ रहा है. मैं बहुत ही सरल भाषा में बताना चाहती हॅूं जो डायवर्सन शुल्क है वह मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 11 के अंतर्गत 57, 58, 137 और 140 के अंतर्गत उल्लेखित प्रावधानों के अंतर्गत यह डायवर्सन शुल्क लिया जा रहा है क्योंकि सारी जो जमीन है वह राज्य सरकार की संपत्ति है और उसके उपयोग के एवज में भू-राजस्व अदा करना अनिवार्य है तो इसलिए यह दोनों जो कर हैं, वह नियमानुसार लिये जा रहे हैं.
श्री सूबेदार सिंह रजौधा -- माननीय अध्यक्ष महोदय यह विधान सभा नियमों को दुरूस्त करने के लिए ही तो है. आप स्वयं सोचें कि उनको संपत्तिकर भी लगे और डायवर्सन शुल्क भी लगे और इस तरह के एक या दो प्रकरण नहीं है, 3 हजार लोग हैं. आपकी परिषद में चुने हुए लोग होते हैं और सरकार की तरफ से सीएमओ होता है. मैं माननीय मंत्री जी से उम्मीद करता हूं कि उनको एक ही कर लगे, ऐसी कोई व्यवस्था माननीय मंत्री जी करेंगी.
श्रीमती माया सिंह -- माननीय अध्यक्ष जी, मैं पुन: अपनी बात को दोहराना चाहती हूं और विधायक जी से मेरा भी आग्रह है कि इनसे यह दोनों शुल्क नियमानुसार लिये जा रहे हैं. संपत्ति कर और डायवर्सन शुल्क जमा करना नियमों के अंतर्गत है. नियमों में परिवर्तन करना और यहां पर उसका आश्वासन देना, यह मेरे लिए संभव नहीं है.
बादलडोह जलाशय की नहर की मरम्मत
6. ( *क्र. 1935 ) श्री चैतराम मानेकर : क्या जल संसाधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) बादलडोह जलाशय की नहर का निर्माण कब हुआ? (ख) क्या सिंचाई के समय नहर का पानी अत्याधिक मात्रा में सीवेज होता है? (ग) यदि नहीं, तो सिंचाई के समय नहर के नीचे खेतों में पानी का जमाव कैसे होता है? नहर को कब तक ठीक कर लिया जायेगा?
जल संसाधन मंत्री ( डॉ. नरोत्तम मिश्र ) : (क) ग्रीष्म काल 2016 में। (ख) एवं (ग) निर्माणाधीन नहर की लाईनिंग का कार्य पूर्ण कराए बगैर रबी सिंचाई में पानी देने से सीपेज हुआ जो स्वभाविक था। लाईनिंग का कार्य पूर्ण करा लिया गया है।
श्री चैतराम मानेकर -- माननीय अध्यक्ष महोदय मेरे प्रश्न के उत्तर में माननीय मंत्री जी ने जानकारी दी है कि लाइनिंग का कार्य पूर्ण कराये बगैर रबी सिंचाई में पानी देने से सीपेज हुआ है जो कि स्वाभाविक था, मैं स्वीकार करता हूं लेकिन अध्यक्ष महोदय मैंने तो उस जगह कीबात की है जहां पर लाइनिंग का काम हो गया था. इसके बाद में भी अब नहर का लाइनिंग का काम पूर्ण हो गया है और 2 - 3 माह के बाद में अक्टूबर नवम्बर में रबी सीजन आयेगा और नहर से पानी देने का काम शुरू होगा तो उस समय नहर से यदि पानी सीपेज होगा तो क्या मंत्री जी दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही करेंगे?
डॉ नरोत्तम मिश्र -- माननीय अध्यक्ष महोदय, सीपेज की समस्या बताई कि लाइनिंग का काम पूर्ण हो गया है. अब वहां पर समस्या का भी समाधान हो गया है उसके बाद में भी अगर सदस्य अगर किसी बात के बारे में आशंका व्यक्त करते हैं या हमें ऐसा बताते हैं कि यहां पर कोई अनियमितता की है तो दोषी व्यक्ति के विरूद्ध निश्चित रूप से कार्यवाही करेंगे.
श्री चैतराम मानेकर -- धन्यवाद.
सीहोर विधानसभा क्षेत्रांतर्गत खराब/जले ट्रान्सफार्मर
7. ( *क्र. 111 ) श्री सुदेश राय : क्या ऊर्जा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) जिला सीहोर अंतर्गत विधानसभा क्षेत्र 159 सीहोर में ऐसे कितने ट्रान्सफार्मर हैं जो जल जाने एवं अन्य कारणों से खराब पड़े हैं, इनमें से कितने को बदला गया तथा कितने बदले जाने शेष हैं? यदि शेष हैं तो इनको बदलने में देरी का कारण बतावें तथा कब तक बदल दिये जायेंगे? (ख) खरीफ फसल की बुआई के पूर्व ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रान्सफार्मरों के रख-रखाव के लिये विभाग द्वारा क्या कार्यवाही की जा रही है और यदि कृषकों को फसलों की बुआई के बाद तत्काल में ट्रान्सफार्मर की आवश्यकता होती है तो उसकी आपूर्ति किस प्रकार की जावेगी?
ऊर्जा मंत्री ( श्री पारस चन्द्र जैन ) : (क) सीहोर विधान सभा क्षेत्रान्तर्गत वित्तीय वर्ष 2016-17 में प्रश्न दिनांक तक 68 ट्रांसफार्मर फेल हुए हैं, जिसमें से 67 ट्रांसफार्मर बदल दिये गये हैं, 1 ट्रांसफार्मर संबद्ध उपभोक्ताओं द्वारा रू. 10 लाख की बकाया राशि में से नियमानुसार राशि जमा नहीं करने के कारण बदला जाना शेष है। नियमानुसार बकाया राशि जमा होने पर उक्त ट्रांसफार्मर बदल दिया जावेगा। (ख) खरीफ फसल की बुआई के पूर्व ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रांसफार्मरों का रख-रखाव कार्य वितरण कंपनी द्वारा विभागीय स्तर पर सुनिश्चित किया जाता है। साथ ही वितरण कंपनी द्वारा विभागीय तौर पर एवं रेट कान्ट्रेक्ट के माध्यम से विभिन्न फर्मों से जले/खराब ट्रांसफार्मरों में आवश्यक सुधार कार्य करवाकर क्षेत्रीय भण्डारों में ट्रांसफार्मरों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है। कृषि कार्यों हेतु ट्रांसफार्मरों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी द्वारा उक्तानुसार कार्यवाही की जा रही है।
श्री सुदेश राय -- माननीय अध्यक्ष महोदय मंत्री जी ने मेरे प्रश्न क के उत्तर में बताया है कि मेरी विधान सभा क्षेत्र में 68 में से 67 खराब व जले ट्रांसफार्मर बदले जा चुके हैं. मेरे पास में ऐसे 27 गांवों में 40 ट्रांसफार्मरों की सूची है जो अभी तक खराब पड़े हुए हैं. अध्यक्ष महोदय, मैं पूछना चाहता हूं कि अगर मंत्री जी को गलत जानकारी उपलब्ध कराई जाती है तो इसकी जवाबदारी किसकी है? अगर उनको गलत जानकारी दी जा रही है तो हमें क्या देंगे.
श्री पारस चन्द्र जैन -- माननीय अध्यक्ष महोदय आपके माध्यम से मैं माननीय सदस्य को बताना चाहता हूं कि जब उन्होंने विधान सभा में प्रश्न लगाया था, उस समय 68 में से 67 सुधर गये थे एक रह गया था, लेकिन 100 प्रतिशत बकाया होने के बाद में यह ट्रांसफार्मर उठाये गये हैं.
श्री सुदेश राय -- माननीय अध्यक्ष महोदय, क्या मेरे प्रश्न लगाने के बाद में इतने सारे ट्रांसफार्मर खराब हो गये हैं. अगर मंत्री जी को गलत जानकारी उपलब्ध कराई गई है तो यह कितनी गलत बात है. क्या आप गलत जानकारी देने वालों पर कार्यवाही करेंगे?
श्री पारस चन्द्र जैन -- अध्यक्ष महोदय, मैंने इनको बताया है, आंकड़े और तारीख इनके पास है, यदि उस तारीख पर देख लेंगे विधान सभा का प्रश्न जब लगाया है उस समय 68 में से सब सुधार दिये थे केवल एक ही बकाया था, लेकिन जब 100 प्रतिशत बकाया है तो उसके बाद में लाये हैं क्योंकि आगे फसल आयेगी तो उसके लिए मरम्मत कराना भी हमारे लिए आवश्यक है.
श्री सुदेश राय -- अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी जो बता रहे हैं यह अभी अभी नहीं हुआ है. आपको जानकारी ही गलत उपलब्ध कराई गई है. आप अपने अधिकारियों से पता करें और उन पर क्या कार्यवाही की जायेगी, क्योंकि अगर उनका सुधार कार्य नहीं होगा तो कोई भी अधिकारी किसी की नहीं सुनेगा. जब माननीय मुख्यमंत्री जी किसानों के लिए इतना काम कर रहे हैं और अधिकारी गलत काम करेंगे तो किसानों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
अध्यक्ष महोदय -- आप सही जानकारी उपलब्ध करा दें उसके आधार पर कार्यवाही करेंगे या आपको रीजन बता देंगे.
श्री सुदेश राय -- क्या गलत जानकारी देने वालों पर कार्यवाही होगी.
अध्यक्ष महोदय -- आप पहले सही जानकारी तो उपलब्ध करा दें.
श्री सुदेश राय -- हां मेरे पास में पूरी जानकारी है.
अध्यक्ष महोदय -- हां आप उनको उपलब्ध करा दें.
नगरपालिका हटा/पटेरा द्वारा शौचालयों का निर्माण
8. ( *क्र. 1277 ) श्रीमती उमादेवी लालचंद खटीक : क्या नगरीय विकास एवं आवास मंत्री महोदया यह बताने की कृपा करेंगी कि (क) नगर पालिका परिषद हटा एवं नगर पंचायत पटेरा द्वारा विगत वर्ष 2014-15 व 2015-16 में कितने शौचालय बनाये गये? नाम, पतावार सूची उपलब्ध करायें। (ख) नगर परिषद पटेरा द्वारा गठन दिनांक से प्रश्न दिनांक तक नगर पंचायत अंतर्गत क्या-क्या खरीदी एवं कार्य किए गए? राशिवार कार्यों की जानकारी उपलब्ध करायें। साथ ही भ्रमण उपरांत प्राप्त शिकायतें व कार्यों की व खरीदी की जाँच हेतु दल गठित कर जाँच कराई जावेगी एवं दोषियों पर कार्यवाही के निर्देश कब तक प्रदाय किये जावेंगें।
नगरीय विकास एवं आवास मंत्री ( श्रीमती माया सिंह ) : (क) वर्ष 2014-15 में नगरपालिका परिषद हटा एवं नगर परिषद पटेरा के द्वारा कोई शौचालय नहीं बनाये गये हैं। वर्ष 2015-16 में नगर पालिका परिषद हटा द्वारा 25 तथा नगर परिषद पटेरा द्वारा 60 शौचालयों का निर्माण कराया गया जिनकी जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र ''अ'' अनुसार है। (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र ''ब'' अनुसार है। कोई शिकायत प्राप्त नहीं होने से शेषांश का प्रश्न उपस्थित नहीं होता है।
श्रीमती उमादेवी लालचंद खटीक -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से घोषणा के अनुसार नगर पालिका परिषद् के गठन की माननीय मुख्यमंत्री जी को बहुत-बहुत बधाई देती हूँ. मैं माननीय मंत्री महोदया जी के जवाब से संतुष्ट हूँ. मैं माननीय मंत्री जी से निवेदन करती हूँ कि नवगठित नगर परिषद् पटेरा में पद सरंचना के हिसाब से पदों की पूर्ति की जावे जिससे छोटी-मोटी अनियमितताएं नहीं होंगी एवं शासन स्तर पर अधोसरंचना मद से राशि प्रदाय की जावे जिससे नगर का विकास हो सके. मैं निवेदन करती हूँ कि परिषद् में एक मंगल-भवन का निर्माण किया जावे एवं पटेरा बस स्टैंड को व्यवस्थित रखने की घोषणा की जावे, ये दोनों हमारी मांगे हैं, इनको पूर्ण किया जावे, ऐसा मैं निवेदन करती हूँ.
अध्यक्ष महोदय -- प्रश्न उद्भूत नहीं होता है, परंतु माननीय मंत्री जी यदि आप उनको कुछ आश्वस्त करना चाहें तो कर दें.
श्रीमती माया सिंह -- माननीय अध्यक्ष जी, सम्माननीय सदस्या जी ने जो सवाल उठाया है मैं उनसे कहना चाहती हूँ कि पद पूर्ति की जो बात की गई है वह हम अवश्य वहां सारी जानकारी उपलब्ध करेंगे और उसके आधार पर पदों की पूर्ति करने का मैं उनको आश्वासन देती हूँ. साथ ही साथ अधोसरंचना के विकास कार्यों के लिए उन्होंने कहा है तो वे प्रस्ताव बनाकर हमारे पास भेज दें और जो भी मदद संभव हो सकती है हम जरूर मदद करेंगे.
श्रीमती उमादेवी लालचंद खटीक -- माननीय अध्यक्ष महोदय, बहुत-बहुत धन्यवाद.
सड़क निर्माण हेतु मुरम खदानों के आवंटन में रियायत
9. ( *क्र. 1450 ) श्रीमती नीना विक्रम वर्मा : क्या खनिज साधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या धार-गुजरी सीमेंटीकृत रोड के निर्माण हेतु संबंधित ठेकेदार को धार जिले में मुरम खदान आवंटित की गई है? (ख) यदि हाँ, तो कहाँ-कहाँ आवंटित की गई है? ग्राम का नाम, खसरा नम्बर व क्षेत्रफल सहित निर्मित किये जा रहे मार्ग से दूरी बताएं। (ग) क्या सड़क निर्माण हेतु मुरम खदानों के आवंटन में ठेकेदारों को कुछ रियायत दी जाती है तथा इस प्रयोजन हेतु मुरम खदान कितने समयावधि के लिये आवंटित की जाती है? (घ) क्या मुरम का परिवहन अधिक क्षमता के भारी डम्पर के माध्यम से करने में ग्रामीण सड़कों को हो रहे नुकसान की भरपाई संबंधित ठेकेदार से करवाये जाने का प्रावधान है अथवा ठेकेदार से इन मार्गों की मरम्मत करवाये जाने का प्रावधान है?
खनिज साधन मंत्री ( श्री राजेन्द्र शुक्ल ) : (क) जी नहीं। (ख) प्रश्नांश (क) के उत्तर के प्रकाश में प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) मध्यप्रदेश गौण खनिज नियम 1996 के नियम 68 के तहत सड़क निर्माण हेतु मुरम खनिज के उत्खनन अनुज्ञा दिये जाने का प्रावधान है। यह उत्खनन अनुज्ञा निर्माण की कालावधि हेतु दिये जाने का प्रावधान है। राज्य सरकार के सार्वजनिक उपक्रम, स्थानीय निकाय तथा सरकारी विभागों के अधीन किये जाने वाले समस्त निर्माण कार्यों के लिये मुरम पर रॉयल्टी देय नहीं है। (घ) जी नहीं। प्रश्नानुसार प्रावधान नियमों में नहीं है।
श्रीमती नीना विक्रम वर्मा -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपका संरक्षण चाहते हुए अपनी बात रखना चाहूंगी. मैंने प्रश्न इसलिए लगाया क्योंकि गांवों के अंदर जो छोटी-मोटी सड़कें होती हैं वे खराब हो जाती हैं तो गांव के लोग परेशान होते हैं. यह जरूर है कि विकास के लिए हम बड़े-बड़े प्रोजेक्ट बनाते हैं, ढाई सौ, तीन सौ करोड़ के प्रोजेक्ट हैं जिन्हें गिट्टी, मिट्टी की आवश्यकता होती है सरकार उन्हें खदानें आवंटित भी करती है लेकिन रॉयल्टी नहीं लेती, ये न ले कोई बात नहीं लेकिन जो ठेकेदार हैं जो मिट्टी, गिट्टी लेकर आते हैं ये छोटे-छोटे गांवों में से होकर आते हैं जिससे गांवों की सड़कें खराब हो जाती हैं जो कि प्रधानमंत्री सड़क योजना की सड़कें हैं, मुख्यमंत्री सड़क योजना की सड़कें हैं, विधायक और सांसद निधि की सड़कें हैं. ये सड़कें इनके कारण क्षतिग्रस्त हो जाती हैं क्योंकि इनके बड़े-बड़े वाहन आते-जाते हैं. इससे गांववालों को भी परेशानी होती है तो मैं माननीय मंत्री जी से आपके माध्यम से पूछना चाहूंगी कि क्या कोई ऐसा प्रावधान बनाएंगे जिससे ठेकेदार इन सड़कों की मरम्मत करें या विभाग के द्वारा इन सड़कों की मरम्मत करके गांव वालों को सुविधा प्रदान की जा सके, कृपया माननीय मंत्री बताने का कष्ट करें ?
श्री राजेन्द्र शुक्ल -- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्या के प्रस्ताव पर विचार करेंगे. अभी कोई प्रावधान तो नहीं है लेकिन भविष्य में क्या किया जा सकता है संबंधित विभागों से बातचीत कर प्रावधान करने के बारे में विचार करेंगे.
श्रीमती नीना विक्रम वर्मा -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा यह विचार है कि जब तक विभाग द्वारा प्रावधान करने पर विचार हो तब तक क्या हम इन बड़े ठेकेदारों को यह बता सकते हैं या यह कह सकते हैं कि वे कुछ समय के लिए ही सही उन सड़कों को टेम्पोरेरी रूप से थोड़ा सा तो सुधार दें ताकि गांव वालों का आवागमन सुगम हो सके.
अध्यक्ष महोदय -- माननीय मंत्री जी, यह बात सही है कि जो ट्रक्स चलते हैं उनसे प्रधानमंत्री सड़क योजना की सड़कें या अन्य जो सड़कें हैं वे खराब होती हैं, उनके रिपेयर की फिर कोई व्यवस्था नहीं होती तो इस संबंध में जरूर कुछ करें जैसा कि माननीय सदस्या ने भी प्रश्न उठाया है आप कुछ विचार करें और जो आप अभी कुछ कहने वाले थे वह भी कहें.
श्री राजेन्द्र शुक्ल -- माननीय अध्यक्ष महोदय, जैसा आपका निर्देश है इस पर विचार करेंगे क्योंकि ज्यादातर प्रधानमंत्री सड़क योजना की सड़कें बनती हैं या लोक निर्माण विभाग की भी जो सड़कें बनती हैं उनके मेंटेनेंस पीरिएड के अंतर्गत संबंधित ठेकेदार को उनको सुधारना होता है लेकिन भारी वाहनों से यदि वे डेमेज हुई हैं तो उनके स्कोप के अंतर्गत वे सुधार रहे हैं या नहीं सुधार रहे हैं और जैसा माननीय सदस्या ने कहा है कि यदि थोड़ा-बहुत काम करने से, मुरम वगैरह डालने से वह मोटरेबल हो सकती हैं तो मुझे वह सूची आप उपलब्ध करा देंगे तो जो ठेकेदार उसमें परिवहन कर रहे हैं उनसे बातचीत करके रास्ता निकालेंगे.
श्रीमती नीना विक्रम वर्मा -- माननीय अध्यक्ष महोदय, नहीं तो ये पंचायतों को थोड़ा-बहुत टैक्स दे दें तो पंचायतें खुद रिपेयर कर सकती हैं या ठेकेदार द्वारा दिलवा दिया जाए क्योंकि बहुत बड़े-बड़े प्रोजेक्ट होते हैं और गांव बहुत छोटे-छोटे होते हैं उनमें प्रधानमंत्री सड़कें कई बार नहीं होतीं, पर मुख्यमंत्री सड़क योजना की सड़कें या विधायक, सांसद निधि से बनी सड़कें बहुत ज्यादा डेमेज हो जाती हैं उनके लिए कोई प्रावधान ही नहीं है या तो विधायक फिर उन्हें दोबारा बनाएं जो कि इतनी जल्दी संभव नहीं होता और ये सड़कें बहुत जल्दी टूट जाती हैं क्योंकि इनकी क्षमता उतनी नहीं होती है जितने कि वहां डम्पर और ट्रक चलाए जा रहे हैं तो माननीय अध्यक्ष जी, मेरा निवेदन है कि उन ठेकेदारों को निर्देशित कर दिया जाए.
अध्यक्ष महोदय -- ठीक है, आपकी बात आ गई, मंत्री जी भी सहमत हैं, अग्रवाल जी आप कुछ कह रहे थे.
श्री प्रदीप अग्रवाल -- माननीय अध्यक्ष महोदय, होता क्या है कि जो हमारी प्रधानमंत्री सड़क योजना की सड़कें हैं या मुख्यमंत्री सड़क योजना की सड़कें हैं ये केवल 10, 20 और 30 टन की क्षमता के लिए पास होती हैं जबकि इन सड़कों पर 80 से 100 टन के वाहन जो कि 15-15 सौ, 12-12 सौ फुट रेत लेकर जा रहे हैं इसके कारण सड़कें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. वे सड़कें एक महीने भी नहीं चलती हैं और एक महीने के अंदर ही उखड़ जाती हैं.
अध्यक्ष महोदय -- ठीक है, वही विषय है.
शास. कार्यों के भूमिपूजन/लोकार्पण में क्षेत्रीय विधायकों को आमंत्रित किया जाना
10. ( *क्र. 2820 ) श्रीमती इमरती देवी : क्या नगरीय विकास एवं आवास मंत्री महोदया यह बताने की कृपा करेंगी कि (क) क्या म.प्र. शासन सामान्य प्रशासन विभाग के आदेशानुसार शासकीय कार्यों के भूमिपूजन/लोकार्पण में क्षेत्रीय विधायक को भी आंमत्रित करना तथा पट्टिका में भी क्षेत्रीय विधायक का नाम अंकित करने के निर्देश हैं? (ख) यदि हाँ, तो वर्ष 2015-16 एवं 2016-17 में नगर पालिका परिषद् डबरा, नगर पंचायत पिछोर एवं नगर परिषद् बिलौआ जिला ग्वालियर में वर्षवार उक्त अवधि में कितने कार्य स्वीकृत हुए तथा कितने पूर्ण/अपूर्ण हैं? उक्त अवधि में इनमें से कितने कार्यों के भूमिपूजन/लोकार्पण में क्षेत्रीय विधायक को आमंत्रित किया गया? यदि नहीं, तो क्या शासन के आदेश की अवहेलना की गई है? इसके लिये कौन दोषी है, उस पर क्या कार्यवाही की गई है? नहीं तो कब तक की जावेगी?
नगरीय विकास एवं आवास मंत्री ( श्रीमती माया सिंह ) : (क) जी हाँ। (ख) नगर पालिका परिषद् डबरा, नगर परिषद् पिछोर एवं विलौआ द्वारा वर्ष 2015-16 एवं 2016-17 में कराये गये कार्यों का भूमिपूजन/लोकार्पण कराने की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है, शेषांस का प्रश्न उपस्थित नहीं होता है.
श्रीमती इमरती देवी-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से पूछना चाहती हूं कि डबरा नगरपालिका, पिछोर नगर पंचायत,बिलौआ नगर पंचायत में 2015-16 कितने कार्य हुए हैं और कितनों का भूमिपूजन हुआ है एवं लोकार्पण हुआ है ?
अध्यक्ष महोदय-- यह जानकारी पुस्तकालय में रखी हुई है.
श्रीमती इमरती देवी—अध्यक्ष महोदय, जानकारी तो है लेकिन गलत है इसलिए मैंने पूछा है.
श्रीमती माया सिंह--- माननीय अध्यक्ष महोदय, वैसे तो इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है और परिशष्ट में संलग्न भी है लेकिन आपने पूछा है तो मैं आपको बताना चाहती हूं कि नगरपालिका परिषद् डबरा में वर्ष 2015-16 में आपने जिन कार्यों की जानकारी चाही है उसमें 15 कार्य पूर्ण हुए हैं और 1 निर्माण कार्य अधूरा है. इसी तरीके से नगरपालिका परिषद् डबरा में वर्ष 2016-17 में 10 कार्य पूर्ण हुए हैं और 5 के निर्माण कार्य अभी अपूर्ण हैं. पिछोर के अंदर 6 निर्माण कार्य पूर्ण हुए हैं, 5 निर्माण कार्य अभी अपूर्ण हैं.पिछोर में वर्ष 2016-17 में 1 कार्य पूरा हुआ है और 7 निर्माण कार्य अपूर्ण हैं. बिलौआ में वर्ष 2015-16 में 2 निर्माण कार्य स्वीकृत हैं जिसमें से दोनों निर्माण कार्य पूरे हो गये हैं और बिलौआ में वर्ष 2016-17 में 4 कार्य पूर्ण हुए हैं और 7 निर्माण कार्य अपूर्ण हैं.
श्रीमती इमरती देवी-- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी से मैं कहना चाहती हूं कि डबरा नगरपालिका में 31 कार्य स्वीकृत हुए हैं, 31 के भूमि पूजन हुए हैं और 25 में लोकार्पण हुए हैं. इन कार्यों में क्या विधायक को बुलाया जाता है? यह बड़े भाईसाहब मुख्यमंत्री जी बैठे हैं, इन्होंने इसी विधानसभा में एक नियम बनाया था कि जहाँ भी लोकार्पण भूमिपूजन होगा, वहाँ क्षेत्र के विधायक को बुलाया जाएगा.19 भूमिपूजन पिछोर में हुए हैं उसमें 7 लोकार्पण हुए हैं उसमें बुलाया, बिलौआ में लोकार्पण हुए हैं, उसमें हमें बुलाया है वहाँ हम गये भी हैं, पट्टिका भी लगी है. मैं मंत्री जी से पूछना चाहती हूं कि जो मुख्यमंत्री जी ने नियम बनाया है उसका पालन क्यों नहीं हो रहा है और पूरे मध्यप्रदेश में जहाँ कांग्रेस के विधायक हैं, वहाँ उनको क्यों नहीं बुलाया जाता है. (शेम-शेम की आवाजें)
श्रीमती माया सिंह—माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं विधायक जी को बताना चाहती हूं, वह बहुत परिश्रमी हैं और बहुत ही व्यवहार-कुशल भी हैं. शासकीय कार्यों के भूमिपूजन और लोकार्पण में क्षेत्रीय विधायक को आमंत्रित करना चाहिए यह निर्देश भी हैं और नगर परिषद् बिलौआ में 2015-16 में दो निर्माण कार्य हुए हैं जिनका लोकार्पण किया गया और उसमें सांसद जी मौजूद थे, मैं स्वयं मौजूद थी, आप भी मौजूद थीं और एक कार्यक्रम में आप मेरे ही साथ मौजूद थीं. बाकी के और जो भूमिपूजन के कार्यक्रम हुए हैं, पत्र जाता है और जिसमें अगर आपको लगता है कि निमंत्रण नहीं दिया है तो मुझे आप लिखित में बता दें कि किसमें नहीं दिया है. मैं इस बात की हिमायती हूं कि वहाँ के स्थानीय विधायक को जरूर बुलाना चाहिए.
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष(श्री बाला बच्चन)--- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह पूरे मध्यप्रदेश में हो रहा है, हम लोगों के साथ भी होता है. पूरे मध्यप्रदेश में जहाँ-जहाँ कांग्रेस पार्टी के विधायक या सांसदगण हैं, वहाँ पर ऐसा किया जा रहा है...(व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय--- बात आ गई है...(व्यवधान)... यह क्या इतना महत्वपूर्ण है कि इस पर बहस की जाए.
श्री बाला बच्चन--- अध्यक्ष महोदय, पूरे मध्यप्रदेश में हो रहा है,हमें कलेक्टर और कमिश्नर्स से बात करना पड़ती है, संबंधित प्रभारी मंत्रियों से बात करना पड़ती है.
अध्यक्ष महोदय--- इसके निर्देश भी हैं और मंत्री जी राजी हैं, यह क्या इतना महत्वपूर्ण है कि प्रश्नकाल को बाधित करके इस पर बात की जाए?
श्री बाला बच्चन--- अध्यक्ष महोदय, आसंदी से सरकार को आपका आदेश जाना चाहिए. ..(व्यवधान).. हमारे प्रोटोकॉल का हक मार रही है सरकार.
श्री रामनिवास रावत-- क्या विधायकों का सम्मान महत्वपूर्ण नहीं है?
अध्यक्ष महोदय-- विधायकों का सम्मान महत्वपूर्ण है परन्तु प्रश्नकाल भी महत्वपूर्ण है ..(व्यवधान)... आप बैठ जाइए कृपा करके. यह प्रश्न जनता के हैं.
श्री बाला बच्चन-- हम क्या बोले, हमारे साथ भी हो रहा है.
श्री रामनिवास रावत-- अध्यक्ष महोदय, हम आपसे ही अपेक्षा करेंगे कि आप हमारे सम्मान की रक्षा करें. संरक्षण प्रदान करें.
अध्यक्ष महोदय-- इस तरह से किसी भी विषय को लेकर के बाधित करना उचित नहीं है.
श्री बाला बच्चन-- अध्यक्ष महोदय, इस संबंध में सरकार पुनः आदेश जारी करें, हमें संरक्षण दें और इस सरकार को इस बारे में आप हिदायत दें यह हम लोगों के साथ में भी हो रहा है.
अध्यक्ष महोदय-- जब मंत्री जी खुद ही तैयार हैं तो उसमें क्या हिदायत दें.
श्री बाला बच्चन- वो ये कह रहे हैं कि वह लिस्ट दें कि किस-किस तारीख को लोकार्पण हुआ है, उनको नहीं बुलाया है. ये हो सकता है कि मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की यह रणनीति हो कि जो भी कांग्रेस के जनप्रतिनिधि हैं, उन्हें न बुलाया जाए. हम विधायक हैं, फिर भी हमारे साथ ऐसा हो रहा है. (व्यवधान)
डॉ. नरोत्तम मिश्र- सरकार की ओर से परिपत्र गया हुआ है. सरकार का यह मामला नहीं है. ये बीएसपी की अध्यक्ष हैं, यह बीएसपी और कांग्रेस दोनों का चुनाव लड़ी हैं, ये उनका मामला है, सरकार कहां से बीच में आ गई. सरकार ने तो परिपत्र जारी किया है. जहां तक नेता प्रतिपक्ष्ा ने और जगह का कहा है, वहां एक बार और रिमाण्डर करवा देंगे.
श्रीमती इमरती देवी- माननीय अध्यक्ष महोदय, ये बीएसपी और बीजेपी का कोई प्रश्न नहीं है, मुख्यमंत्री जी ने सदन में नियम बनाया है, उसका पालन नहीं हो रहा है. मुझे लोकार्पण और भूमिपूजन से मतलब है.
अध्यक्ष महोदय- वो मान तो रहे हैं कि एक बार और निर्देश दे देंगे. कुछ नहीं आएगा अब रिकॉर्ड में.
श्रीमती इमरती देवी- (xxx)
चंदला विधानसभा क्षेत्र में रेत/बालू माफियाओं द्वारा अवैध खनन
11. ( *क्र. 2051 ) श्री आर.डी. प्रजापति : क्या खनिज साधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या छतरपुर जिले की चंदला वि.स. क्षेत्र की केन नदी में म.प्र. एवं उत्तर प्रदेश के खनन माफिया दिन-रात केन नदी के पास की खदानों में आये दिन अवैध खनन करते हैं। क्या इन बालू माफिया से गरीब जनता व किसानों में भय व्याप्त है? (ख) क्या मवईघाट, परेई, वरूआ, फत्तेपुर, रामपुर, हर्रई, कुरधना, बधारी आदि से अवैध रूप से किसी किसान के खेत से बालू उठाने के नाम पर पट्टा लेकर सीधे नदी से रेत/बालू निकाल रहे हैं एवं इसकी कितनी शिकायतें प्राप्त हुयी हैं? सूची प्रदाय करें। (ग) क्या प्रतिदिन लगभग 800 से 1000 ट्रक/ट्रालों से बालू निकाली जाती है? बालू उठाने की स्वीकृति कहीं की होती है, परन्तु उठाते सीधे नदी से पोपलेन एवं एल.एन.टी. आदि मशीनों से बालू उठाते हैं जिससे अवैध उत्खनन से सिर्फ पर्यावरण संतुलन ही नहीं बल्कि केन नदी के अस्तिव पर भी खतरा मंडरा रहा है, इससे प्रतिदिन कितने राजस्व की चोरी होती है? (घ) क्या खनिज माफिया आये दिन फायरिंग कर यहां के ग्रामीणों को धमकाते हैं, दिनांक 10.3.16 को फत्तेपुर में फायरिंग हुयी एवं मवईघाट में फायरिंग हुयी, जिसमें 02 लोग मारे गए एवं कई घायल हो गये हैं? यदि हाँ, तो इससे कितने किसानों ने पलायन किया है? सूचीवार जानकारी देवें।
खनिज साधन मंत्री ( श्री राजेन्द्र शुक्ल ) : (क) जी नहीं। (ख) जी नहीं। प्रश्नानुसार प्राप्त शिकायतों का विवरण पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ग) एवं (घ) जी नहीं। अत: शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
श्री आर डी प्रजापति- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा विधानसभा क्षेत्र चंदला उत्तरप्रदेश की सीमा से लगा हुआ है और तीन तरफ से उत्तरप्रदेश से घिरा हुआ है. केन नदी पर उत्तरप्रदेश के माफिया प्रतिदिन हजारों की संख्या में आते हैं और मेरे क्षेत्र में बंदूकों से फायरिंग करते हैं. एक ही दिन में एक हजार ट्रक निकलते हैं. मेरे प्रश्न के उत्तर में मंत्री जी ने कहा है कि वहां कोई अवैध उत्खनन नहीं होता है. जब अवैध उत्खनन नहीं हो रहा है तो फिर मेरे पास वहां के 500 लोगों का रिकॉर्ड है, जिन्होंने मुख्यमंत्री हेल्पलाईन में फोन किया है.
श्री बाला बच्चन- माननीय अध्यक्ष महोदय, (व्यवधान)
गर्भगृह में प्रवेश एवं वापसी
बसपा की सदस्य श्रीमती इमरती देवी का गर्भगृह में प्रवेश
(बसपा की सदस्य श्रीमती इमरती देवी अपनी बात कहते हुए गर्भगृह में आई और अध्यक्ष महोदय की समझाईश पर वापस अपने स्थान पर गई.)
अध्यक्ष महोदय- आप सीट पर जायें. मुख्य सचेतक जी ये क्या तरीका है. सारे प्रश्न का उत्तर आ गया है. सरकार निर्देश दे रही है. मंत्री जी भी राजी हैं. आप कुछ बोलते क्यों नहीं? प्रश्न काल बाधित हो रहा है.
श्री बाला बच्चन- माननीय अध्यक्ष महोदय, उनके पास वो पूरी तारीखें हैं, जब-जब लोकार्पण, शिलान्यास हुआ है और उन्हें नहीं बुलाया गया है. माननीय अध्यक्ष महोदय, आप जवाब दिलवायें.
डॉ. नरोत्तम मिश्र- सारा जवाब दिया है. (व्यवधान)
श्री आर डी प्रजापति- माननीय अध्यक्ष महोदय, 10-03-2016 को हथ्थेपुरा और मवई घाट में खनिज माफिया द्वारा फायरिंग की गई. जिसमें कई लोग घायल हो गए. मवई घाट में बालू के लिए दो आदमियों की हत्या हो गई. लेकिन मंत्री जी कहते हैं वहां कुछ नहीं हो रहा है.
श्री बाला बच्चन- माननीय अध्यक्ष महोदय, मुख्यमंत्री जी यहां बैठे हुए हैं, उन्हें इस बारे में जवाब देना चाहिए.
अध्यक्ष महोदय- मंत्री जी ने जवाब दे दिया.
श्री आर डी प्रजापति- मैं आपको बताना चाहता हूं कि कम से कम चार सौ पांच सौ लोगों ने पीजी सेल में, मुख्यमंत्री हेल्पलाईन में शिकायत की है और ये कह रहे हैं कि कुछ नहीं हुआ है. आप मेरे क्षेत्र में जांच करवा लीजिये. यदि मैं दोषी हूं तो मेरे ऊपर एफआईआर दर्ज की जाए.
श्री राजेन्द्र शुक्ल- माननीय अध्यक्ष महोदय, ये जो फायरिंग और दो लोगों के मारे जाने की बात माननीय सदस्य ने कही है. इस प्रकार की कोई घटना वहां नहीं हुई है. ये जानकारी खनिज विभाग द्वारा नहीं दी जा रही है बल्कि पुलिस अधीक्षक छतरपुर का 18 मार्च का पत्र है. जिसमें ये कहा गया है कि न तो कोई फायरिंग हुई है, न किसी की मौत हुई है और न ही कोई घायल हुआ है.
श्री आर डी प्रजापति- माननीय मंत्री जी कह रहे हैं कि कुछ नहीं हुआ. लेकिन कम से कम पांच सौ लोगों ने पीजी सेल में शिकायत की है. आप जांच करवा लीजिये कि वहां अवैध खनन हो रहा है या नहीं ? सुबह से लेकर रात तक फायरिंग होती है. (XXX). मां-बहनों के साथ अन्याय करते हैं. एक दिन में एक हजार ट्रक निकलते हैं. एक करोड़ की प्रतिदिन बालू निकालते हैं. इन्होंने मेरे प्रश्न के उत्तर में बिंदु (ख) में कहा है कि अभी तक मुझे चार आवेदन प्राप्त हुए हैं और चार आवेदनों में से पहला एसडीएम कार्यालय में, दूसरा एसडीएम कार्यालय में, तीसरा खनिज विभाग और तहसीलदार ने जाँच की, वह भी अप्राप्त है. चौथा, आप कह रहे हैं जाँच दल बना है, वह भी अप्राप्त है, 2014 से और ये पाँच सौ से ज्यादा....
अध्यक्ष महोदय-- आप प्रश्न पूछिए.
श्री आर.डी.प्रजापति-- मेरा निवेदन है कि...
अध्यक्ष महोदय-- आप सीधा प्रश्न पूछिए.
श्री आर.डी.प्रजापति-- महत्वपूर्ण जानकारी दी है. ऐसे अधिकारी को निलंबित किया जाए और उनके ऊपर एफआईआर की जाए या तो मेरे ऊपर एफआईआर दर्ज की जाए या तो उस अधिकारी के ऊपर एफआईआर दर्ज की जाए जिसने असत्य जानकारी दी है. (शेम शेम की आवाज)
अध्यक्ष महोदय-- आप बैठिए. प्रश्न का उत्तर तो आ जाए...(व्यवधान)..
श्री आर.डी.प्रजापति-- मैं दो साल से लगातार परेशान हूँ....(व्यवधान)..
अध्यक्ष महोदय-- अजय सिंह जी आप बोलिए.
श्री आर.डी.प्रजापति-- दो साल से परेशान हूँ....(व्यवधान)..
अध्यक्ष महोदय-- नहीं, सिर्फ अजय सिंह जी बोलेंगे.
श्री अजय सिंह-- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह बहुत ही गंभीर बात है कि सत्तापक्ष के विधायक, ये दूसरे विधायक हैं आज सुबह से अवैध उत्खनन की बात कर रहे हैं. सरकार की तरफ से जो उत्तर आ रहा है....
अध्यक्ष महोदय-- मंत्री जी भी उत्तर देंगे.
श्री अजय सिंह-- जो अभी उत्तर इन्होंने दिया कि कोई जानकारी नहीं, कोई फायरिंग नहीं, यदि एक सम्मानित विधायक भारतीय जनता पार्टी का बोल रहा है कि पाँच सौ, आठ सौ से हजार ट्रक रोजाना अवैध उत्खनन हो रहा है. क्या सरकार अवैध उत्खनन के लिए चिंतित है या नहीं?
अध्यक्ष महोदय-- (श्री आर.डी.प्रजापति जी के खड़े होने पर) प्रजापति जी, आप भी बैठिए.
श्री आर.डी.प्रजापति-- अध्यक्ष महोदय, मेरे प्रश्न का उत्तर दिलवाइये.
अध्यक्ष महोदय-- मंत्री जी को तो बोलने दें.
श्री आर.डी.प्रजापति-- मैं निवेदन करना चाहता हूँ..
अध्यक्ष महोदय-- आप उत्तर तो लीजिए.
श्री राजेन्द्र शुक्ल-- माननीय अध्यक्ष महोदय, पूर्व नेता प्रतिपक्ष जी ने जो बात कही है कि सरकार अवैध उत्खनन को लेकर के चिंतित है कि नहीं है. मैं उनको यह जानकारी देना चाहता हूँ कि जब उनकी सरकार रहती थी तो......(व्यवधान)..
अध्यक्ष महोदय-- उत्तर तो लेना पड़ेगा. ..(व्यवधान)..
श्री रामनिवास रावत-- माननीय अध्यक्ष महोदय, अवैध उत्खनन के संबंध में सदन की समिति बनाकर जाँच कराने की घोषणा कर दें. ..(व्यवधान)..
अध्यक्ष महोदय-- बोलने तो दें भाई. आप बोलने ही नहीं दे रहे. ..(व्यवधान)..
श्री जितू पटवारी-- हमारी सरकार थी, 15 साल में कितना पानी बह गया नदी में... ..(व्यवधान)..
श्री राजेन्द्र शुक्ल-- पूरी बात सुनने का साहस नहीं है क्या? ..(व्यवधान)..
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ नरोत्तम मिश्र)-- अध्यक्ष महोदय, मेरे को विपक्ष पर तरस आने लगा है. खुद तो कोई प्रश्न लगाते नहीं और पूछते नहीं ..(व्यवधान)..
श्री आर.डी.प्रजापति-- अध्यक्ष महोदय, मेरे प्रश्न का उत्तर आ जाने दीजिए. मेरा आप लोगों से हाथ जोड़कर निवेदन है. यह गंभीर मामला है. ..(व्यवधान)..
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष (श्री बाला बच्चन)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, आपकी पार्टी के एमएलए ने यह कहा है कि अगर मैं असत्य हूँ तो मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाए...(व्यवधान)..
डॉ नरोत्तम मिश्र-- पहले सवाल का जवाब आने दें. पहले से ही खड़े हो जाते हैं. माननीय सदस्य का जो मूल प्रश्न चल रहा है. उसका जवाब आया नहीं और खड़े हो
जाएँगे. ..(व्यवधान)..
श्री रामनिवास रावत-- आप तो बैठ जाओ भैय्या.
अध्यक्ष महोदय-- रावत जी, बैठिए.
श्री बाला बच्चन-- माननीय अध्यक्ष महोदय, भारतीय जनता पार्टी के एमएलए ने यह कहा है कि अगर मैं गलत हूँ तो मेरे खिलाफ एफआईआर कराई जाए और क्या बच जाता है माननीय मंत्री जी?
अध्यक्ष महोदय-- आप बैठिए. उत्तर तो सुन लीजिए.
डॉ नरोत्तम मिश्र-- यह भारतीय जनता पार्टी का स्वस्थ लोकतंत्र है आप लोग अपनी सोचो.
श्री राजेन्द्र शुक्ल-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं इनके समय के कुशासन की याद नहीं दिलाता यदि पूर्व नेता प्रतिपक्ष खड़े नहीं होते. लेकिन यह बताना आवश्यक है कि छःसौ करोड़ रुपये इनके शासनकाल में जो रायल्टी से राजस्व आता था. वह साढ़े तीन हजार करोड़ हो गया है. (मेजों की थपथपाहट) यदि हमने अवैध उत्खनन में शिकंजा नहीं कसा होता, अंकुश नहीं लगाया होता तो क्या यह कभी संभव हो सकता था? ..(व्यवधान)..
श्री सुन्दरलाल तिवारी-- तनख्वाह कितनी बढ़ गई मंत्री जी की... ..(व्यवधान)..
डॉ नरोत्तम मिश्र-- आपकी तुलना में कम बढ़ी है.. ..(व्यवधान)..
अध्यक्ष महोदय-- उत्तर तो आने दो ..(व्यवधान)..
श्री बाला बच्चन-- माननीय मंत्री जी, पहले ..(व्यवधान)..जवाब दीजिए
आप ..(व्यवधान)..
श्री आर.डी.प्रजापति-- मेरा निवेदन है कि मेरे प्रश्न का जवाब तो आ जाने
दीजिए. ..(व्यवधान)..
श्री बाला बच्चन-- यह पिछली सरकार से तुलना करके जवाब देना तो सदन को भ्रमित करने जैसा है.
डॉ नरोत्तम मिश्र-- ये जवाब लेना नहीं चाहते हैं क्या? ..(व्यवधान)..
श्री बाला बच्चन-- उन्होंने स्पेसिफिक प्रश्न पूछा है आपकी पार्टी के विधायक ने पूछा है और कहा है कि अगर मैं असत्य हूँ तो मेरे खिलाफ एफआईआर कराई जाए. इससे बड़ी बात क्या हो सकती है? आप प्रश्न से बचना चाहते हों और...
अध्यक्ष महोदय-- उत्तर दे रहे हैं भाई.
श्री बाला बच्चन-- गलत जवाब दे रहे हों. काँग्रेस की सरकार को जाने को 13 साल हो गए उसका जवाब देकर आप सदन को क्यों भ्रमित कर रहे हों?
अध्यक्ष महोदय-- कृपा करके उत्तर तो ले लें. प्रजापति जी की बात का उत्तर
दीजिए. ..(व्यवधान)..
डॉ नरोत्तम मिश्र-- पूरे झूठे, कोई प्लेट नहीं खरीदी गई ..(व्यवधान)..कोई प्लेट नहीं पूरे के पूरे झूठ के आधार पर काँग्रेस चल रही है. पूरा का पूरा झूठ. पूरी काँग्रेस झूठ के आधार पर चल रही है. ..(व्यवधान)..
श्री सुन्दरलाल तिवारी-- सोलह सौ रुपये में.... ..(व्यवधान)..
डॉ नरोत्तम मिश्र-- कोई प्लेट नहीं खरीदी गई ..(व्यवधान)..
अध्यक्ष महोदय-- झूठ शब्द निकाल दीजिए. ..(व्यवधान)..
(व्यवधान)
श्री आर.डी. प्रजापति--मेरा आप लोगों से हाथ जोड़कर व्यक्तिगत निवेदन है कि मंत्री जी को मेरे प्रश्न का उत्तर देने दीजिए..(व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय--मेरा आप लोगों से अनुरोध है कि माननीय सदस्य ने एक प्रश्न पूछा है उस पर माननीय वरिष्ठतम् सदस्य श्री अजय सिंह जी ने भी बात रखी है मंत्री जी को उनकी बात कहने दें और उनका समाधान होने दें. बैठ जाइये.
डॉ. नरोत्तम मिश्र--अध्यक्ष जी पूरे असत्य पर कांग्रेस चल रही है.100 प्रतिशत असत्य बोल रहे हैं. एक भी प्लेट नहीं खरीदी गई. एक भी मटका नहीं खरीदा गया.हम सही बात कह रहे हैं. दावे के साथ कह रहे हैं. हम मंत्री हैं आधार पर बोल रहे हैं और आपकी कृपा से नहीं हैं.
श्री रामनिवास रावत--असत्य शब्द क्या होता है जवाब आने दो. आप बीच में उठकर सदन नहीं चलाने देते हैं. आप संसदीय मंत्री हो सदन बाधित करते हो. चर्चा बाद में कर लेना पहले इस प्रश्न का जवाब आए.
अध्यक्ष महोदय--तो आप उत्तर तो लीजिए.
श्री आर.डी. प्रजापति--माननीय अध्यक्ष महोदय, 15 मई को मैंने स्वयं तीन ट्रक पकड़े थे.
श्री गोपाल भार्गव--(XXX)
अध्यक्ष महोदय--यह जो गोपाल भार्गव जी ने कहा यह रिकार्ड में नहीं आएगा. (व्यवधान)
श्री बाला बच्चन--यह कोई तरीका है आपका भ्रष्टाचार करते हो (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय--उसे कार्यवाही से निकाल दिया गया है (व्यवधान)
श्री आर.डी. प्रजापति--माननीय अध्यक्ष महोदय, दूसरे लोग डिस्टर्ब करते हैं.(व्यवधान)
श्री बाला बच्चन--अध्यक्ष महोदय, गोपाल भार्गव जी का यह कोई तरीका है बात करने का..(व्यवधान)
11.52 बजे
गर्भगृह में प्रवेश एवं वापसी
इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदस्यगण द्वारा गर्भगृह में प्रवेश
(पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री (श्री गोपाल भार्गव) की टिप्पणी से नाराज होकर इंडियन नेशनल कांग्रेस के कई सदस्यगण अपनी अपनी बात कहते हुए गर्भगृह में आए)
अध्यक्ष महोदय--उसे कार्यवाही से निकाल दिया है (व्यवधान)
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ. नरोत्तम मिश्र)--अध्यक्ष जी कोई माफी नहीं मांगी जाएगी. कोई असभ्य बात नहीं कही है चले या न चले (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय--कृपा करके अपने स्थान पर जाइये. (व्यवधान)
श्री बाला बच्चन--मुख्यमंत्री जी के संरक्षण में माननीय मंत्रीगण इस तरह की बातें कर रहे हैं. (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय--उसे कार्यवाही से निकाल दिया गया है.
श्री बाला बच्चन--अध्यक्ष महोदय, कार्यवाही से निकालने से नहीं चलेगा..(व्यवधान)
(गर्भगृह में आए इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदस्यगण अपने-अपने आसन पर वापस गए)
श्री आर.डी. प्रजापति--माननीय अध्यक्ष महोदय, 15 तारीख को मैंने तीन ट्रक पकड़े. पुलिस को और टी आई को सूचित किया. 100 नंबर पर पुलिस को भी सूचित किया (व्यवधान) मैंने खनिज अधिकारी से कहा कि माननीय खनिज अधिकारी जी आ जाइये तो उन्होंने कहा कि मैं क्या हवाई जहाज से आ जाऊं, यह खनिज अधिकारी के बोल थे..(व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय-- बैठ जाइए उत्तर ले लीजिए. मंत्री जी को उत्तर पूरा कर लेने दें उसके बात भनोत जी का प्रश्न है.
श्री अजय सिंह--माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी इस सदन के वरिष्ठ सदस्य हैं जिस तरह से उन्होंने टिप्पणी की उसे आपने कार्यवाही से तो विलोपित कर दिया है लेकिन हम सब का अनुरोध है कि इस तरह से मंत्री को बात नहीं करना चाहिए. कृपा करके आप इस पर कुछ व्यवस्था दे दें.
श्री गोपाल भार्गव--माननीय अध्यक्ष महोदय, आप भी देख रहे हैं जब से सत्र शुरु हुआ है. पहले दिन से प्लेट, चम्मच घड़ा इसके अलावा अन्य किसी लोक महत्व के विषय पर चर्चा नहीं कर रहे हैं. (व्यवधान)
डॉ. नरोत्तम मिश्र--माननीय अध्यक्ष महोदय, यदि चवन्नी का भी भ्रष्टाचार है तो कोर्ट में जाएं, लोकायुक्त में जाएं वहां प्रमाण रखें. लोकायुक्त में क्यों नहीं जाते हैं. कौन रोक रहा है जाने के लिए, इनको चुनौती दे रहे हैं यदि चवन्नी का भ्रष्टाचार हुआ हो तो..(व्यवधान)
श्री बाला बच्चन--कोर्ट की प्रक्रिया अलग है. कोर्ट में भी जाएंगे लेकिन विधान सभा की प्रक्रिया अलग है. यह विधान सभा सदन किसलिए है (व्यवधान) यह मध्यप्रदेश की विधान सभा यह संस्था, यह सदन किसलिए है (व्यवधान) कोर्ट की प्रक्रिया के लिए भी हम जाएंगे.
श्री गोपाल भार्गव--यदि गलत हुआ है तो आपके पास दस फोरम हैं लोकायुक्त में जाएं, हाई कोर्ट में जाएं, ईओडब्ल्यू में जाएं, अन्य किसी एजेंसी में जाएं.
अध्यक्ष महोदय--यहां यह विषय नहीं है. सिंहस्थ पर बहस नहीं हो रही है. कृपा करके माननीय मंत्रीगणों से और सदस्यों से भी अनुरोध है कि यहां सिंहस्थ पर बहस नहीं हो रही है. बैठिए आप लोग..(व्यवधान)
श्री गोपाल भार्गव--लोक महत्व के अन्य विषय भी हैं चर्चा करने के लिए. प्रदेश की और भी कठिनाइयां हैं लोक महत्व के अनेकों विषय हैं (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय :- सिंहस्थ पर बहस नहीं हो रही है. कृपा करके शांति रखें. सुखेन्द्र जी कृपया बैठिये. कृपा करके रावत जी,पटवारी जी बैठिये. आप लोग बैठिये उत्तर आने दीजिये.
(व्यवधान)
डॉ. नरोत्तम मिश्र :- इतने लोक महत्व के प्रश्न है, लेकिन कभी उत्तर प्रदेश के मामले पर, कभी दिल्ली के मामले पर और कभी अन्य विषय पर प्रश्नकाल को बाधित करते हैं.
श्री रामनिवास रावत :- आप क्या कर रहे हैं.आप बैठ जाईये.
(व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय :- मंत्री जी आप बोलिये. आप लोग उत्तर नहीं लेना चाहते हैं. आप लोग बैठ जाईये. मंत्री जी आप जल्दी से उत्तर दीजिये. फिर मैं दूसरा प्रश्न करूंगा.
श्री राजेन्द्र शुक्ल :- माननीय प्रजापति जी ने जो मुद्दा उठाया है, हालांकि रेत की जो नयी नीति बनी है और उससे जो आक्शन पद्धति से हमने रेत को अलाट करने का काम किया है, उससे अकेले छतरपुर में 56.68 करोड़ रूपये रेत की रायल्टी से प्राप्त होने वाली है.
(व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय:- आप लोग जबरदस्ती खड़े हो जाते हैं. आप लोग उत्तर ही नहीं आने देना चाहते हैं.
श्री राजेन्द्र शुक्ल :- जब आपका प्रश्न लगे, तब आप सवाल करना. अभी दूसरे सदस्य का प्रश्न है तो आप क्यों डिस्टर्ब कर रहे हैं. दूसरे के प्रश्न पर डिस्टर्ब कर रहे हैं.
(व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय :- आप लोग माननीय सदस्य के अधिकारों का हनन कर रहे हैं. कृपा करके उनका उत्तर आने दीजिये. यह बात उचित नहीं है.
श्री राजेन्द्र शुक्ल :- प्रजापति जी ने इतने मुश्किल से प्रश्न लगाया है, उनका जवाब आने दीजिये.
अध्यक्ष महोदय:- दण्डोतिया जी आप बैठ जाईये, उसका उत्तर आने दीजिये.
(व्यवधान)
श्री राजेन्द्र शुक्ल:- अध्यक्ष महोदय, यह गैर जिम्मेदारी की पराकाष्ठा है, माननीय सदस्य की.
अध्यक्ष महोदय :- आप माननीय सदस्य के प्रश्न का उत्तर दें, उनका समाधान कर दें.
श्री राजेन्द्र शुक्ल :- अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय सदस्य से चर्चा करूंगा और उन्होंने जो -जो बातें कही हैं, शिकायत के रूप में उसकी जांच करायी जायेगी, जो दोषी होगा उसके खिलाफ कार्यवाही होगी.
अध्यक्ष महोदय :- प्रश्न क्रमांक 12 श्री तरूण भानोत.
(व्यवधान)
श्री आर.डी.प्रजापति :- माननीय अध्यक्ष महोदय, निलंबित कर दिया जाये. मेरा आपसे हाथ जोड़कर निवेदन है कि या तो मेरे ऊपर कार्यवाही की जाये. मैंने चार पत्र बतायें हैं, जबकि पांच सौ से ज्यादा ट्रक हैं. जिसका मैंने बताया है उनको निलंबित किया जाये. गलत जानकारी दी है.
(व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय :- भानोत जी आप अपना प्रश्न करिये. अपने अपने माईक बंद करिये, उनका माईक चालू नहीं हो रहा है. सिर्फ भानोत जी का लिखा जायेगा. प्रजापति जी आपका प्रश्न समाप्त हो गया है.
(व्यवधान)
श्री आर.डी.प्रजापति :- उनको निलंबित किया जाये.
अध्यक्ष महोदय :- माननीय मंत्री जी ने जांच कराने का बोल दिया है.
(व्यवधान)
श्री आर.डी.प्रजापति :- राजस्व विभाग की वसूली नहीं होती, मेरे कारण ही वसूली हुई है. उसको निलंबित किया जाये. जिसने गलत जानकारी दी है. मैं दो साल से परेशान हूं.
(व्यवधान) मैं जांच के लिये तैयार हूं. गलत हुआ तो मेरे ऊपर कार्यवाही की जाये. मेरा इस्तीफा लिया जाये, मैं तैयार हूं.
(व्यवधान)
(इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदस्यों द्वारा शेम-शेम के नारे लगाये गये.)
श्री आर.डी.प्रजापति :- अध्यक्ष महोदय, मैं नहीं मान सकता, उसे निलंबित किया जाये.
(व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय :- आप लोग कृपा करके बैठ जायें. आपके प्रश्न का उत्तर आ गया है. मंत्री जी ने जांच कराने का बोल दिया है.
श्री आर.डी. प्रजापति :- जिस आदमी ने इतना बड़ा अन्याय किया है, क्या उसको निलंबित नहीं किया जा सकता है. इतना बड़ा खनन माफिया है.(व्यवधान) उसको हटाया जाये, उसको निलंबित किया जाये. जब तक निलंबित नहीं किया जायेगा मैं नहीं बैठने वाला हूं. (व्यवधान)
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष (श्री बाला बच्चन):- अध्यक्ष महोदय, सत्ता पक्ष के सदस्य बोल रहे हैं. (व्यवधान) आप विधायकों को संरक्षण देने के बजाए आप सरकार को संरक्षण दे रहे हैं...(व्यवधान )इस पर आपको विचार करना पड़ेगा. हम सबकी गरिमा का मामला है.
प्रश्नकाल समाप्त
अध्यक्ष महोदय-- माननीय सदस्य ने प्रश्न किया है मंत्री जी इसकी जांच कराने के लिये तैयार हैं. श्री प्रजापति जी आप अपने स्थान पर बैठ जाएं, यह ठीक बात नहीं है.
(व्यवधान)
श्री रामनिवास रावत(विजयपुर)--अध्यक्ष महोदय, इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि सदस्यों के अधिकारों का यहां पर हनन हो रहा है.
श्री आर.डी.प्रजापति--अध्यक्ष महोदय, मैं नहीं बैठने वाला चाहे आप मुझे निलंबित कर दें.
(व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय--आप बैठ जाएं प्रश्नकाल समाप्त हो गया है आप यहां पर परम्पराएं नहीं समझाएं.
श्री आर.डी.प्रजापति--मैं आसन्दी से निवेदन करना चाहता हूं कि यहां पर विधायक को कोई बात बोलने का अधिकार नहीं है जब मंत्री जी सदन को असत्य जानकारी दे रहे हैं उनको विधान सभा में ऐसी बातें नहीं बोलना चाहिये.
अध्यक्ष महोदय--आप बैठ जाएं. पंडित रमेश दुबे अपनी शून्यकाल की सूचना को पढ़ें.
श्री आर.डी.प्रजापति--संबंधित अधिकारी को हटाया जाए, तब ही बैठूंगा, उनके ऊपर कार्यवाही की जाए, तब ही सीट पर बैठूंगा. जांच की बात हो या कुछ भी मैं इसके लिये बैठने के लिये तैयार नहीं हूं.
(व्यवधान)
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष(श्री बाला बच्चन)--माननीय विधायक जी ने बोला है कि मेरा इस्तीफा ले लें मुझे पार्टी से निलंबित कर दें अथवा मुझे सदस्यता से निलंबित कर दें इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है. मंत्री जी आपकी पार्टी का विधायक बोल रहा है कि मुझे निलंबित कर दें अथवा मेरा इस्तीफा ले लें.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ.नरोत्तम मिश्र)--वह बैठ गये हैं उनकी समस्या का समाधान हो गया है. आप कृपया आराम करें.
(व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय--वह विषय अब समाप्त हो गया है, इस विषय पर यहां पर कोई भी चर्चा नहीं होगी.
श्री बाला बच्चन--प्रकरण समाप्त नहीं हुआ है.
अध्यक्ष महोदय--आपके कहने से इस तरह से नहीं होगा. वह विषय समाप्त हो गया आपका कंसर्न उसमें नहीं है. सभी सदस्य अपनी बात कहने के लिये सक्षम हैं. यहां पर किसी के गार्जियन बनने की जरूरत नहीं है.
(भाजपा के अनेक सदस्यगण अपनी बात कहते हुये श्री राजेन्द्र शुक्ल खनिज मंत्री के आसन्न के समीप आये)
श्री रामनिवास रावत--अध्यक्ष महोदय, यह क्या हो रहा है (सत्तापक्ष की ओर इशारा करते हुए.)
(व्यवधान)
(श्री बाला बच्चन के नेतृत्व में इंडियन नेशनल कांग्रेस के समस्त सदस्यगण गर्भ गृह में आ गये.)
अध्यक्ष महोदय--विधान सभा की कार्यवाही 10 मिनट के लिये स्थगित.
(12.03 बजे विधान सभा की कार्यवाही 10 मिनट के लिये स्थगित)
12.21 बजे [विधानसभा पुन: समवेत हुई ]
{उपाध्यक्ष महोदय (डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह) पीठासीन हुए}
श्री बाला बच्चन – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश विधानसभा के इतिहास में यह पहली बार हुआ है.
उपाध्यक्ष महोदय – शून्यकाल की सूचनाएं ली जायेंगी. (व्यवधान)
श्री बाला बच्चन – यह माननीय विधायकों का अपमान है.
श्री रामनिवास रावत – जिसकी वजह से हाऊस स्थगित हुआ था. उस पर कम से कम व्यवस्था तो आ जाये.
श्री बाला बच्चन – कई विधायकों ने माननीय मंत्री जी को घेरा है. यह पूरे सदन के विधायकों का यह अपमान है.
डॉ. नरोत्तम मिश्र – नेताजी, बाला बच्चन जी....
श्री रामनिवास रावत – अगर वे संतुष्ट हो गए हों तो कोई बात नहीं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र – बाला बच्चन जी, (श्री आर.डी.प्रजापति की ओर देखते हुए) वे कुछ बोल रहे हैं.
श्री आर.डी.प्रजापति – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जो मेरी मांग थी माननीय मंत्री जी ने मेरी मांग पूरी कर ली है. जो कह दिया है, उससे मैं सहमत हूँ.
श्री आरिफ अकील – क्या सदन के सामने कहने में शर्म आ रही थी ?
श्री बाला बच्चन – यह माननीय मंत्री जी बता दें. (व्यवधान)
श्री रामनिवास रावत – माननीय मंत्री ने सदन का अपमान किया है. सदन चल रहा है. सदन में प्रश्न पूछ रहा हैं और आप सदन के बाहर संतुष्ट कर रहे हो. आपको सदन में जवाब देना चाहिये. (व्यवधान)
डॉ. गोविन्द सिंह – जनता के प्रतिनिधियों का अपमान है. (व्यवधान)
उपाध्यक्ष महोदय – अब वे संतुष्ट हो गए हैं, मामला पटाक्षेप हो गया है.
डॉ. गोविन्द सिंह – अकेले में माफी मांगते हो और सदन का अपमान करते हो.
.............(व्यवधान)......
उपाध्यक्ष महोदय – कोई एक सदस्य बोले. आप लोग एक साथ बोल रहे हैं.
श्री बाला बच्चन – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, यह विधायकों का अपमान है. मंत्री जी से बुलवाओ.
उपाध्यक्ष महोदय – माननीय मंत्री जी ....
डॉ. गोविन्द सिंह – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, यह सदन का अपमान है....... (व्यवधान)
उपाध्यक्ष महोदय – आप बोलें, एक व्यक्ति बोले कि क्या बोलना चाहता है ?
श्री आर.डी.प्रजापति – उपाध्यक्ष महोदय, मैं अपनी बात स्वयं कर लेता हूँ एवं मुझे जनता ने चुना है. मेरी बात माननीय मंत्री जी ने मान ली है और मैं पूर्ण रूप से संतुष्ट हूँ. मुझे किसी भी प्रकार की जरूरत नहीं है. मैं स्वयं नेता एवं विधायक हूँ. (व्यवधान)
उपाध्यक्ष महोदय – आरिफ अकील साहब, मेरी बात भी सुन लीजिये. आप एक मिनट सुनिये. (व्यवधान) एक मिनट, आप बात ही नहीं सुनेंगे.
श्री आरिफ अकील – हमें महाभारत की जरूरत नहीं है. (व्यवधान)
उपाध्यक्ष महोदय – आरिफ साहब, मेरी बात सुन लीजिये. मैं खड़ा हूँ. आप बैठ जाइये. आसन्दी की मर्यादा रखिये. कोई एक व्यक्ति बोले कि क्या बोलना है तो उसके बाद, हम उसकी बात सुनें. फिर मामला पटाक्षेप होगा. आप सबकी तरफ से बोल रहे हैं.
श्री बाला बच्चन – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, हमारा यह आग्रह है कि जिस समय प्रश्न का जवाब माननीय मंत्री महोदय को देना था, उस समय जवाब क्यों नहीं दिया ? यह पूरे सदन का अपमान है. यह विधायकों का अपमान है. यह उसी समय अगर माननीय मंत्री जी जवाब दे देते तो मैं समझता हूँ कि बात इतनी नहीं बढ़ती और सदन 10 मिनट के लिए जो स्थगित हुआ. उस दौरान 40 विधायकों ने माननीय मंत्री जी को घेरा था, जो उनकी पार्टी के थे तब जाकर जवाब दिया है. यह सदन का अपमान है. (व्यवधान)
उपाध्यक्ष महोदय – चलिये, आपकी बात आ गई है. अब उनको बोलने दीजिये.
श्री बाला बच्चन – यह भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में ...... (व्यवधान)
श्री रामनिवास रावत – उपाध्यक्ष महोदय, जो हम सदन में पूछ रहे हैं.....
उपाध्यक्ष महोदय – यह प्रभारी नेता प्रतिपक्ष ने पूछ लिया है. उन्होंने अपनी बात रख दी है. बात यही हुई थी कि सबकी तरफ से बोलेंगे.
श्री रामनिवास रावत – जब सदन चल रहा है तो सदन के बाहर मंत्री जी बतायेंगे. यह सदन का अपमान नहीं है. ...
श्री आरिफ अकील – आप पहले व्यवस्था दें.
उपाध्यक्ष महोदय – अब उनको बोल लेने दीजिये.
श्री आरिफ अकील – उपाध्यक्ष महोदय, आपकी व्यवस्था उस पर आनी चाहिये.
उपाध्यक्ष महोदय – किस चीज पर ?
श्री आरिफ अकील – पहले उस पर व्यवस्था दीजिये.
उपाध्यक्ष महोदय – देखिये, मामला आगे बढ़ चुका है.प्रश्नकाल समाप्त हो गया है. परम्परा यही रही है एक घंटे के बाद प्रश्नकाल नहीं चलता. यह मेरी व्यवस्था है. (व्यवधान)
श्री राम निवास रावत— परम्परा रही है लेकिन सदस्यों का सम्मान क्या परम्परा से हटकर है? (व्यवधान)
उपाध्यक्ष महोदय— यह ठीक है लेकिन बात वहां खत्म हो गई. (व्यवधान)
श्री रामनिवास रावत— सदन की गरिमा बनाए रखना क्या हम लोगों का दायित्व नहीं है. सदन चल रहा है, सदन में प्रश्न पूछा जा रहा है, सदन में जवाब देना चाहिए. (व्यवधान)
उपाध्यक्ष महोदय— जिस माननीय सदस्य का मुद्दा है. वह बैठ गए रावत जी आप बैठ जाइए, यह गलत बात है. यह कुछ नहीं लिखा जाएगा. (व्यवधान)
श्री आरिफ अकील – (XXX)
उपाध्यक्ष महोदय— आरिफ जी मेरी बात सुन लीजिए. प्रश्नकाल समाप्त हो गया विधायक जी अपना कोई वक्तव्य देना चाहते हैं सुन लीजिए. जिनका मूल प्रश्न था. (व्यवधान)
श्री आरिफ अकील – बाला बच्चन ने जो व्यवस्था की बात उठाई है उस पर क्या कर रहे हो आप. (व्यवधान)
उपाध्यक्ष महोदय— आपत्ति किसको थी. कौन इससे परेशान था. माननीय विधायक थे. (व्यवधान)
श्री रामनिवास रावत—बाला बच्चन को. (व्यवधान)
डॉ. नरोत्तम मिश्र—अध्यक्ष महोदय, मेरा प्वाइंट ऑफ आर्डर.
उपाध्यक्ष महोदय— आप तो उनको समर्थन दे रहे थे. आप इन्हीं की बात रख रहे थे. पाइंट ऑफ आर्डर सुन लीजिए. (व्यवधान)
12:27 बजे {अध्यक्ष महोदय (डॉ. सीतासरन शर्मा) पीठासीन हुए}
डॉ. नरोत्तम मिश्र— अध्यक्ष महोदय मेरा व्यवस्था का प्रश्न यह है. (व्यवधान)
श्री आरिफ अकील – पहले बाला बच्चन जी की बात पर व्यवस्था दीजिए. (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय—दोनों की बात पर व्यवस्था देंगे. (व्यवधान)
डॉ. नरोत्तम मिश्र—दूसरे के ललना का पलना झुलाने से कुछ नहीं मिलने वाला. (व्यवधान)
श्री आरिफ अकील — तुम्हारा ललना न पलना कुछ नहीं है. (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय— माननीय मंत्री जी आपका पाइंट ऑफ आर्डर क्या है? (व्यवधान)
श्री आरिफ अकील—अब आप यही कहने वाले हो.
डॉ. नरोत्तम मिश्र— अध्यक्ष जी, मेरी गुजारिश सिर्फ इतनी है कि सम्मानित सदस्यों का यह कहना है कि सदन के बाहर जवाब दिया है. इसको मैं उचित इसलिए नहीं मानता कि अभी तक जब हाउस में व्यवधान आता है तब विधानसभा के सम्मानित अध्यक्ष जिस तरफ से व्यवधान आता है उस पक्ष को, मंत्री को या नेता प्रतिपक्ष को बुलाकर उस विषय पर बात करते हैं. आज भी माननीय अध्यक्ष महोदय ने सम्मानित सदस्य को सम्मानित मंत्री को बुलाया और समाधान किया हाउस को समवेत चलाने के लिए इसमें न तो कोई सदन के बाहर जवाब दिया. (व्यवधान)
श्री रामनिवास रावत – क्या समाधान किया, यहां बात आ जाए?
डॉ. नरोत्तम मिश्र— मुझे अपनी पूरी बात कह लेने दीजिए.
श्री रामनिवास रावत – मेरा भी व्यवस्था का प्रश्न है.
डॉ. नरोत्तम मिश्र— क्या मैं अपनी पूरी बात न बोलूं? क्या मेरी बात नहीं सुनी जाएगी? मेरी बात सुन लीजिए उसके बाद अपनी बात बोलिए आपको कोई नहीं रोक रहा है. यहां पर हम लोग बोलने के लिए आए हैं.
श्री बाला बच्चन – माननीय संसदीय कार्य मंत्री जी आप ठंडे मिजाज से बोलिए.
डॉ. नरोत्तम मिश्र— जब भी व्यवधान आएगा मैं संसदीय कार्य मंत्री हूं] इस व्यवस्था का अंग होऊंगा. (व्यवधान)
श्री बाला बच्चन – उसी समय जवाब दे देते तो यह स्थिति बनती ही नहीं. माननीय मंत्री जी हमारा यह कहना है आप हाउस को चलाते, हाउस को देखते आपको बुला लिया. कौन सी बात हमारी जानकारी में आई.
डॉ. नरोत्तम मिश्र— माननीय मंत्री जवाब दे रहे थे उसी वक्त प्रश्नकाल समाप्त की घोषणा सम्मानित अध्यक्ष ने आसंदी से की थी इसके बाद सम्मानित सदस्य ने उठकर कह दिया कि मैं अब संतुष्ट हूं. मैं कोई वकालत नहीं चाहता तो विषय समाप्त हो जाता है . आपके पास में आप समाधान करते हैं या नहीं यह मेरी व्यवस्था का प्रश्न है, आप बता दो. (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय—पाइंट ऑफ आर्डर कैसे होगा?
श्री आरिफ अकील – अध्यक्ष महोदय.
अध्यक्ष महोदय – हां आपकी बात भी सुनेंगे.
श्री आरिफ अकील – अध्यक्ष महोदय पहले बाला बच्चन जी ने व्यवस्था मांगी थी उपाध्यक्ष जी ने उनको सुना था उसके बाद आप आ गए. तो उनकी बात अधूरी रह गई.
श्री बाला बच्चन – अध्यक्ष महोदय, जिस तरह से माननीय संसदीय कार्य मंत्री जी ने अभी बोला क्या यह आपकी पार्टी का मेटर था? आप जिस तरह से बोल रहे हैं, यह सदन का मेटर था. यह इश्यू सदन में रेस हुआ था.
डॉ. नरोत्तम मिश्र— सदन में जो मेटर रेस होता है उसे अध्यक्ष जी बुलाते हैं.
श्री बाला बच्चन—यह सदन का हक और अधिकार है. यह पार्टी का मेटर नहीं था. (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय -- उन्होंने उनसे कहा, मेरे से तो कुछ कहा ही नहीं.
श्री बाला बच्चन -- अध्यक्ष महोदय, मैं यह बोल रहा हूं कि 10 मिनट की कार्यवाही छूटने के बाद मंत्री जी को भारतीय जनता पार्टी के ही 40 विधायकों ने घेरा था. तब जाकर मजबूरन विधायक जी को बुलाकर यह बात कही.
श्री रामनिवास रावत -- अध्यक्ष महोदय, मेरा पाइंट ऑफ आर्डर है.
अध्यक्ष महोदय -- अब इस पर पाइंट ऑफ आर्डर कब तक चलेगा. अभी माननीय संसदीय कार्य मंत्री जी और बाला बच्चन जी ने जो विषय उठाया, चूंकि आपने कहा, इसलिये दोनों का उत्तर मैं दे देता हूं.
श्री रामनिवास रावत -- अध्यक्ष महोदय, तो हम पाइंट ऑफ आर्डर नहीं उठा सकते.
अध्यक्ष महोदय -- आप भी उठा सकते हैं, पर पाइंट ऑफ आर्डर पर पाइंट ऑफ आर्डर नहीं होता. कृपया बैठ जायें.
श्री बाला बच्चन -- अध्यक्ष महोदय, यह सदन का मेटर है.
अध्यक्ष महोदय -- आप कृपया बैठ जायें. अभी माननीय संसदीय कार्य मंत्री जी ने एक विषय उठाया..
श्री आरिफ अकील -- अध्यक्ष महोदय, पहले बाला बच्चन जी ने उठाया.
अध्यक्ष महोदय -- बाला बच्चन जी ने भी उठाया, दोनों के उत्तर इकट्ठा दूंगा. उन्होंने अपनी बात रखी कि माननीय सदस्य का समाधान हो गया है और ऐसी पहले भी परम्परा है. माननीय नेता प्रतिपक्ष, बाला बच्चन जी ने भी उस विषय को उठाया और कहा कि समस्या सदस्य की नहीं सदन की थी. यही विषय था न आपका. मेरा इसमें कहना यह है कि माननीय सदस्य ने सदन में ही कहा है कि उनका समाधान हो गया है. अब उसमें कोई विषय कैसे उठता है.
..(व्यवधान)..
श्री रामनिवास रावत -- अध्यक्ष महोदय, क्या सदन को यह जानने का अधिकार नहीं है.
अध्यक्ष महोदय -- जिस सदस्य ने समाधान की बात उठाई, वही सदस्य यदि सदन में कह रहा है, तो आप उस पर से क्या कह सकते हैं.
डॉ. गोविन्द सिंह -- कक्ष में क्या निर्णय हुआ, उस निर्णय की जानकारी सदन में आनी चाहिये और अभी मंत्री जी जवाब देने के लिये खड़े हुए थे, तो उनको जवाब देना चाहिये.
श्री बाला बच्चन -- अध्यक्ष महोदय, यह सदन का अपमान है. जो सदन में सदस्य गण आते हैं, उनका अपमान है.
अध्यक्ष महोदय -- नहीं. यह कोई अपमान नहीं है. अब इस विषय को यही समाप्त किया जाता है.
श्री रामनिवास रावत -- अध्यक्ष महोदय, मेरा पाइंट ऑफ आर्डर है.
श्री मुकेश नायक -- अध्यक्ष महोदय, जिस सदस्य ने प्रश्न पूछा है, तो उसका उत्तर मंत्री जी आपके कक्ष में विधान सभा के सदस्य को थोड़ी देंगे. वह तो विधान सभा के अन्दर ही देना पड़ेगा.
अध्यक्ष महोदय -- उत्तर नहीं दिया है. उत्तर तो यहीं दिया है.
श्री रामनिवास रावत -- अध्यक्ष महोदय, कहां दिया है.
अध्यक्ष महोदय --यह आपने कैसे अनुमान लगा लिया कि उत्तर वहां दे दिया.
श्री मुकेश नायक -- समाधान क्या हुआ है, इसका उत्तर मंत्री जी सदन को बता दें.
डॉ. गोविन्द सिंह -- अध्यक्ष महोदय, क्या उत्तर दिया है, हम लोगों को भी उसकी जानकारी हो. आपने वहां क्या गुड़ फोड़ दिया है, वह गुड़ फोड़ने की जानकारी यहां तो हो.
डॉ. नरोत्तम मिश्र -- अध्यक्ष महोदय, यह तो गलत परम्परा पड़ जायेगी. यह ऐसा नहीं होगा.
डॉ. गोविन्द सिंह -- यह गलत परंपरा नहीं है.
..(व्यवधान)..
अध्यक्ष महोदय -- कक्ष की कोई बातें यहां नहीं होतीं, यह पुरानी परम्पराएं हैं.
..(व्यवधान)..
श्री रामनिवास रावत -- अध्यक्ष महोदय, मेरा व्यवस्था का प्रश्न है.
श्री सुन्दरलाल तिवारी -- अध्यक्ष महोदय, मेरा भी पाइंट ऑफ आर्डर है.
डॉ. गोविन्द सिंह -- अध्यक्ष महोदय, आपके कक्ष में क्या चर्चा हुई है, उसकी जानकारी आप सदन में अवगत करा दें. ..(व्यवधान).. आपके समक्ष निर्णय हुआ है, उस निर्णय की जानकारी आप सदन को दें, ऐसा मेरा आपसे अनुरोध है.
श्री आरिफ अकील -- अध्यक्ष महोदय, पहले आप ही ने बारबार कहा है कि जो आपके कक्ष में बात होती है, उसकी चर्चा यहां नहीं कर सकते.
अध्यक्ष महोदय -- उसकी चर्चा यहां नहीं होती.
श्री आरिफ अकील -- नहीं होती ना. फिर यहां कैसे हो रही है.
अध्यक्ष महोदय -- गलत है . नहीं करना चाहिये.
श्री रामनिवास रावत -- अध्यक्ष महोदय, मेरा व्यवस्था का प्रश्न है. मैं आपका संरक्षण चाहते हुए, आपसे निवेदन करते हुए यह व्यवस्था चाहता हूं कि सदन में एक घण्टे का समय प्रश्नकाल के लिये निर्धारित किया गया है. सदन में सदस्य प्रश्न पूछते हैं और प्रश्न इसलिये लगाये जाते हैं कि हमें सदन में जवाब मिल जाये. सदस्य का प्रश्न चर्चा में आया. सदस्य ने अपनी पीड़ा व्यक्त की. जब सदस्य प्रश्न कर रहा था, तब सदस्य ने यहां तक कहा कि या तो मेरा इस्तीफा ले लो, मेरे खिलाफ एफआईआर करा दो, अगर मेरी बात गलत सिद्ध हो, तो मुझे निलम्बित कर दो. उन्होंने यहां तक कहा कि मुझे निलम्बित भी कर दो विधान सभा से, अगर मेरी बात गलत सिद्ध हो तो. उसकी यह पीड़ा, सदस्य के अधिकारों की रक्षा करना, मैं आसंदी से निवेदन करता हूं. उसके बाद सदन स्थगित हो गया. सदन के बाहर मंत्री जी ने क्या उत्तर दिया, चूंकि उनकी पार्टी का सदस्य है, उनकी पार्टी के 40 विधायक इकट्ठे हुए. मंत्री जी ने क्या उत्तर दिया, यह क्या सदन की गरिमा को भंग करने का सवाल नहीं है. जो प्रश्न सदन में उठा, सदन में पूछा, तो सदन में उसका जवाब आना चाहिये. यह नियमों में भी व्यवस्था है कि जब सदन चल रहा हो और सदस्य कोई प्रश्न उठाता है, तो उसका जवाब सदन में आना चाहिये, न कि वह सदस्य आपकी पार्टी का है, तो दबाव बनाकर बाहर उसे सहमति के लिये तैयार कर रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय -- यह दबाव बनाने वाली बात कार्यवाही से निकाल दें.
श्री रामनिवास रावत -- अध्यक्ष महोदय, मैं यह बात आसंदी से जानना चाहता हूं कि ..
डॉ. नरोत्तम मिश्र -- यह मैं बता रहा हूं, जवाब दे रहा हूं.
श्री रामनिवास रावत -- मैं आसंदी से जवाब चाह रहा हूं, आपसे नहीं.
अध्यक्ष महोदय -- मैंने उनको अनुमति दी है. पाइंट ऑफ आर्डर में ऐसी व्यवस्थाएं हैं कि यदि कोई सदस्य पाइंट ऑफ आर्डर उठाये, तो संसदीय कार्य मंत्री जी से या किसी अन्य सदस्य को बोलने की अनुमति दी जा सकती है.
श्री रामनिवास रावत -- अध्यक्ष महोदय, यह सदन की गरिमा का सवाल है. यह सदस्य के मौलिक अधिकारों का सवाल है.
अध्यक्ष महोदय -- कृपया बैठ जायें. आप लोगों के साथ यही मुश्किल है कि आप प्रश्न उठाते हैं, उत्तर नहीं लेते. आप बैठ जाइये.
संसदीय कार्यमंत्री (डॉ. नरोत्तम मिश्र) – अध्यक्ष महोदय, आपने बोल लिया इसके बाद मुझे बोलने दो (श्री सुन्दरलाल तिवारी के खड़े होने पर) इसके बाद आप बोल लेना तिवारी जी, कोई दिक्कत नहीं है, सार्थक चर्चा होगी.
श्री आरिफ अकील – यह बता दीजिए कि (XXX) क्या हुई.
डॉ. नरोत्तम मिश्र – बता रहे हैं वह भी सुनो.
अध्यक्ष महोदय – इसको कार्यवाही से निकाल दीजिए.
डॉ. नरोत्तम मिश्र – अध्यक्ष जी, सिर्फ (XXX) पालिटिक्स ही करना है तो कहां तक जवाब देंगे. (...व्यवधान...)
श्री रामनिवास रावत – पूरे प्रदेश में अवैध उत्खनन हो रहा है और यह आपके संरक्षण में हो रहा है. (...व्यवधान...)
डॉ. नरोत्तम मिश्र – क्या अध्यक्ष जी (XXX) करते हैं. आप अध्यक्ष जी पर आरोप लगा रहे हैं ? (...व्यवधान...)
श्री रामनिवास रावत –अध्यक्ष जी पर आरोप किसने लगाया, तुम्हारे ऊपर लगाया है. (...व्यवधान...) हम आसंदी का सम्मान करते हैं.
अध्यक्ष महोदय – यह शब्द कार्यवाही से निकाल दीजिए. (व्यवधान)
श्री आरिफ अकील – मैंने यह शब्द अध्यक्ष जी के लिए कुछ नहीं कहा, यह वापस लो. (व्यवधान)
श्री रामनिवास रावत – आप कार्यवाही में दिखवा लो.
श्री अध्यक्ष महोदय – रावत जी, मैंने खुद कहा है कि आरिफ अकील जी की कोई दुर्भावना नहीं थी, उन्होंने सहज भाव से ऐसा कह दिया. (...व्यवधान...)
डॉ. नरोत्तम मिश्र – अध्यक्ष जी, मेरी यह गुजारिश है कि सम्मानित सदन के सदस्यों की मर्यादा को रखना, स्वाभिमान को रखना, सम्मान को रखना हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी हैं, जहां तक सम्मानित सदस्य ने जो प्रश्न उठाया था, सम्मानित मंत्री उसका जवाब दे रहे थे और सम्मानित मंत्री का जबाव चूंकि (व्यवधान)
श्री मुकेश नायक – सम्मानित सदस्य बस यह जानना चाहते हैं कि मंत्री जी का आश्वासन क्या है, इतनी सी बात है, इतनी चतुराई की, इतने घुमाने-फिराने की आवश्यकता क्या है.
अध्यक्ष महोदय – आप बैठ जाइए.
डॉ. नरोत्तम मिश्र – ये आपकी समझ में नहीं आएगी मुकेश भाई, अध्यक्ष महोदय, आपने बोलने की अनुमति मुझे दी है कि इनको दी है.
अध्यक्ष महोदय – आपको अनुमति दी है.
डॉ. नरोत्तम मिश्र – यदि मुझे अनुमति दी है तो इनको बैठालो आप.
श्री मुकेश नायक -- अध्यक्ष महोदय, सदन यह जानना चाहता है कि माननीय मंत्री जी सदन को क्या आश्वासन देना चाहते हैं.
अध्यक्ष महोदय – आप कृपया बैठ जाएं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र -- मेरी बात तो पूरी कर लेने दें, खड़े हो गए वकालत करने को जैसे किसी ने वकील नियुक्त कर दिया हो. मेरी यह गुजारिश है सिर्फ कि उस हो-हल्ले के बीच में माननीय मंत्री जी ने यह आश्वासन दिया,
श्री मुकेश नायक – आपकी चालाकी के लिए विधान सभा नहीं है.
डॉ. नरोत्तम मिश्र – विधान सभा इसके लिए भी नहीं है कि आप वकालत करो.
अध्यक्ष महोदय – मुकेश नायक जी आप बैठ जाइए, तिवारी जी आप बैठ जाएं, उनकी बात पूरी होने दो, उसके बार पुष्पेन्द्र नाथ पाठक जी कुछ कहेंगे.
श्री रामनिवास रावत – माननीय संसदीय कार्य मंत्री जी उत्तेजित न हों, सदन की गरिमा का ख्याल रखें.
डॉ. नरोत्तम मिश्र – सारे सदस्य एक साथ खड़े हो गए, ये क्या तरीका है. अध्यक्ष जी, ये पूरी बात नहीं सुनना चाहते हैं.
श्री आरिफ अकील – पानी पी लो पानी (डॉ. नरोत्तम मिश्र की ओर इशारा करते हुए)
अध्यक्ष महोदय – संबंधित मंत्री जी खड़े हुए हैं, अब तो बैठ जाइए.
डॉ. नरोत्तम मिश्र – पानी पीने की जरूरत नहीं है, बिना पानी पीए कोसता रहूंगा. मेरा यह कहना है अध्यक्ष जी, जब सम्मानित सदस्य सवाल पूछ रहे थे, तब मंत्री जी ने उस वक्त भी जवाब दिया, उस वक्त हो-हल्ले में जवाब नहीं आया. सम्मानित सदस्य की एक ही मांग थी कि उसको हटाकर जांच की जाए मंत्री ने उस वक्त भी कहा. आप कार्यवाही देख लें, वही बात अंदर हुई.
श्री बाला बच्चन – कार्यवाही दिखवा लो, माननीय मंत्री जी गलत बोल रहे हैं, कार्यवाही दिखवा लो, अगर यह बात मंत्री जी के द्वारा आ जाती, माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने नहीं बोला, संसदीय कार्य मंत्री जी कार्यवाही निकलवाकर चैक करा लें.
डॉ. नरोत्तम मिश्र – मैं यह कह रहा हूँ कि हो-हल्ले में वह बात नहीं आई.
श्री रामनिवास रावत – आप संसदीय कार्य मंत्री हो, सदन में असत्य मत बोलो.
श्री बाला बच्चन – माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री को बचाने के लिए, सरकार को बचाने के लिए सदन में संसदीय कार्यमंत्री असत्य बोल रहे हैं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र – मैं कह रहा हूँ, पूरी बात तो सुन लो, हो-हल्ले में वह बात नहीं आई. मंत्री खुद खड़े होकर कह रहे हैं चलो उनसे ही पूछ लो.
अध्यक्ष महोदय – नेता प्रतिपक्ष जी, मैं अलाउ नहीं किया है.
श्री रामनिवास रावत – माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी जवाब दे रहे हैं.
श्री बाला बच्चन – अध्यक्ष जी, मंत्री जी जवाब देना चाह रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय – मैं अलाउ करूंगा तभी तो जवाब देंगे. मैं उन्हें अलाउ ही नहीं करूंगा तो कैसे जवाब देंगे.
श्री बाला बच्चन – माननीय अध्यक्ष महोदय, अभी संसदीय कार्यमंत्री जी ने बोला है कि उस समय सुनाई नहीं दिया, जवाब नहीं आया था तो माननीय मंत्री जी का जवाब आने दीजिए.
श्री रामनिवास रावत – अध्यक्ष महोदय, जवाब आने दीजिए, इस विषय पर आपसे संरक्षण की अपेक्षा है. सदन की कार्यवाही इतनी बाधित हुई.
श्री बाला बच्चन – माननीय अध्यक्ष महोदय, वे जवाब देना चाह रहे हैं जवाब आने दीजिए.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- नेता प्रतिपक्ष और स्पीकर खड़े हैं, आपको इतना भी ख्याल नहीं है.... (व्यवधान).....
श्री बाला बच्चन-- आपके संसदीय कार्यमंत्री जी की व्यवस्था के ऊपर हम जवाब चाह रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय-- आप सदन चलने देना चाहते हैं या नहीं.
श्री बाला बच्चन-- जी चाहते हैं.
अध्यक्ष महोदय-- तो बैठ जाइये. .... (व्यवधान).....
डॉ. गोविंद सिंह-- माननीय स्पीकर जी, खनिज मंत्री जी जवाब देना चाहते थे तो कृपया आप जवाब दिलवा दें.
अध्यक्ष महोदय-- आप बैठ जायें, आपकी बात सुन ली मैंने. .... (व्यवधान).....
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- (XXX).... (व्यवधान).....
श्री बाला बच्चन-- (XXX). .... (व्यवधान).....
श्री आरिफ अकील-- (XXX). .... (व्यवधान).....
श्री रामनिवास रावत—(XXX).... (व्यवधान).....
श्री मुकेश नायक-- अध्यक्ष महोदय,(XXX).
डॉ. गोविंद सिंह-- (XXX). .... (व्यवधान).....
श्री रामनिवास रावत—(XXX). .... (व्यवधान).....
डॉ. गोविंद सिंह—(XXX)
अध्यक्ष महोदय-- इसे कार्यवाही से निकाल दें. आप लोग कृपा करके बैठ जायें. .... (व्यवधान).....
एक माननीय सदस्य-- गोविंद सिंह जी, यह जंगल के शेर हैं, उलझो मत.
श्री रामनिवास रावत-- अध्यक्ष महोदय, विषय पर आये बात.
अध्यक्ष महोदय-- आप सुन कहां रहे हैं.
श्री रामनिवास रावत-- यह बात को डायवर्ट करते हैं (डॉ. गौरीशंकर शेजवार की तरफ इशारा करते हुये) आप इन्हें डांटते ही नहीं हो.
अध्यक्षीय व्यवस्था
प्रश्नकाल में चर्चा होने के पश्चात् भोजन अवकाश के बाद या विधान सभा स्थगित होने के बाद उस चर्चा को पुन: नहीं उठाये जाने विषयक
अध्यक्ष महोदय-- माननीय मंत्री जी कृपया शांत रहेंगे, बोल दिया मैंने. अब सभी बैठ जायें. .... (व्यवधान)..... आप लोगों को सदन चलने देना है कि नहीं चलने देना है, बार-बार खड़े हो जाते हो. दोनों पक्षों से अनुरोध है मेरा कोई भी खड़ा नहीं होगा. .... (व्यवधान)..... अरे बैठ जाओ महाराज. .... (व्यवधान).....
अभी प्रश्नकाल के बाद में माननीय सदस्यों ने कुछ विषय यहां उठाये थे, उस पर पाइंट्स ऑफ आर्डर्स भी उठाये गये माननीय प्रतिपक्ष के नेता जी ने और मुख्य सचेतक जी ने, आरिफ अकील साहब ने डॉ. गोविंद सिंह जी ने और संसदीय कार्यमंत्री जी ने उन पाइंट्स ऑफ आर्डर्स के बारे में अपनी बात कही. जैसा कि मैंने पहले भी कहा था कि समाधान हो गया है किंतु सदस्यगण यह जानना चाहते थे कि समाधान क्या हुआ. इस संबंध में मैं आपको जो अध्यक्षीय व्यवस्था है उसके बारे में अवगत कराना चाहता हूं. प्रश्नकाल में जो प्रश्न उठाया गया था उसकी जांच के संबंध में मंत्री जी ने आश्वासन दे दिया था, उसके बाद में व्यवधान हुआ और मेरे बार-बार अनुरोध करने के बाद भी वह शांत नहीं हुआ, जबकि सदस्य और मंत्री जी, सदस्य प्रश्न पूछना जारी रखना चाहते थे और मंत्री जी उत्तर देना भी चाहते थे. प्रश्नकाल समाप्त हो गया और उसके बाद में माननीय सदस्य ने यहां कहा कि उनका समाधान हो गया है वह संतुष्ट हैं.
इसके संबंध में जो आसन्दी की अध्यक्षीय व्यवस्था है वह मैं पढ़कर सुनाता हूं. प्रश्नकाल के समय किसी मुद्दे पर चर्चा हुई हो और अपराह्न में भोजन अवकाश के बाद या स्थगित होने के बाद विधान सभा जब समवेत् हुई हो तो वह मामला नहीं उठाया जा सकता इसीलिये यह व्यवस्था का प्रश्न अग्राह्य किया जाता है और सदन की कार्यवाही आगे जारी रहेगी.
श्री बाला बच्चन - समाधान क्या हुआ.
श्री रामनिवास रावत - एक मामला और था.
(..व्यवधान..)
अध्यक्ष महोदय - वह नहीं उठाया जा सकता.पं.रमेश दुबे.
श्री रामनिवास रावत - माननीय अध्यक्ष महोदय, एक मामला और उद्भूत हो गया है. अभी संसदीय कार्य मंत्री ने कहा था कि उसे हटाने के निर्देश दे दिये हैं. क्या संसदीय कार्य मंत्री जी ने असत्य कहा. अभी हाऊस में कहा था कि उस खनिज अधिकारी को हटाने के निर्देश दे दिये हैं. क्या संसदीय कार्य मंत्री जी ने असत्य कहा.
श्री रामनिवास रावत - अध्यक्ष महोदय, क्या संसदीय कार्य मंत्री जी ने असत्य कहा.
अध्यक्ष महोदय - वह विषय अब व्यवस्था के बाद समाप्त हो गया है.
श्री बाला बच्चन - खनिज मंत्री जी जवाब दे रहे हैं तो आप वह दिलवाईये ना कि समाधान क्या हुआ.
श्री रामनिवास रावत - वह स्पष्ट करें.
श्री बाला बच्चन - यह सदन का मेटर था.
अध्यक्ष महोदय - अब यह व्यवस्था आने के बाद में वह चर्चा पूर्ण हो गई. अब उस पर कोई चर्चा नहीं होगी.
(..व्यवधान..)
श्री रामनिवास रावत - मंत्री जी कह रहे थे कि उस अधिकारी को हटा दिया गया है.
श्री बाला बच्चन - सदन यह जानना चाहता है कि समाधान क्या हुआ.
ए़व्होकेट सत्यप्रकाश सखवार - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से शून्यकाल की विशेष सूचना बताना चाहता हूं.
श्री बाला बच्चन - सदन यह जानना चाहता है कि समाधान क्या हुआ है. माननीय संसदीय कार्य मंत्री जी ने अभी बोला था कि खनिज मंत्री जी जवाब देना चाहते हैं. तो खनिज मंत्री का जवाब आ जाने दीजिये. सदन का मेटर था समाधान क्या हुआ. यह सदन भी जानना चाहता है.
(..व्यवधान..)
डॉ.गौरीशंकर शेजवार - माननीय अध्यक्ष महोदय,आपकी व्यवस्था के बाद इस तरीके से व्यवधान करना यह उचित नहीं है.
श्री बाला बच्चन - क्या व्यवधान है.
श्री रामनिवास रावत - क्या उचित है क्या अनुचित है क्या आपसे पूछकर बोलेंगे.
(..व्यवधान..)
डॉ.गौरीशंकर शेजवार - आप आसन्दी का अपमान कर रहे हो.
श्री रामनिवास रावत - (..व्यवधान..)क्या आप चलाओगे सदन.
डॉ.गौरीशंकर शेजवार - आपको कोई अधिकार नहीं है.आप आसन्दी का अपमान कर रहे हो और आसन्दी का अपमान करना न्यायसंगत नहीं है. बैठ जाईये आप.
श्री बाला बच्चन - हम आसन्दी से मांग कर रहे हैं इस सरकार से जवाब दिलवाएं. वह सदन का मेटर था. सरकार सदन को भ्रमित कर रही है.
श्रीमती ऊषा चौधरी - बाला बच्चन जी इनकी नियत नहीं है जवाब देने की. दूसरा विषय आने दें.
श्री बाला बच्चन - समझौता क्या हुआ है वह सदन को बताना चाहता हूं.
12.46 बजे नियम 267-क के अधीन विषय
अध्यक्ष महोदय - माननीय सदस्यों की शून्यकाल की सूचनाएं पढ़ी हुई मानी जायेंगी.
शून्यकाल में उल्लेख
एडव्होकेट सत्यप्रकाश सखवार - माननीय अध्यक्ष महोदय, ग्वालियर में सरकार की शह पर पुलिस द्वारा दलित बस्तियों में घुसकर बहन,बेटियों के साथ अभद्र व्यवहार कर शराब के नशे में घरों में घुसकर छेड़खानी की जा रही है एवं जबरन मुकदमे लगाकर जेल में बंद करने की धमकी दी जा रही है.
अध्यक्ष महोदय - शून्यकाल समाप्त हो गया. सखवार जी,
ए़व्होकेट सत्यप्रकाश सखवार - इससे पूरे ग्वालियर जिले में दलितों का उत्पीड़न हो रहा है, उनमें भयंकर रोष व्याप्त है.
अध्यक्ष महोदय - सखवार जी कुछ पढ़कर नहीं बोल सकते. सिर्फ शून्यकाल की सूचनायें जो लिस्टेड होती हैं सिर्फ वही पढ़ सकते हैं.
ए़व्होकेट सत्यप्रकाश सखवार - अध्यक्ष महोदय,इस पर जरूर चर्चा करा ली जाये.
अध्यक्ष महोदय - ठीक है आपकी बात आ गई. आप बैठ जाईये.
(..व्यवधान..)
12.47 बजे पत्रों का पटल पर रखा जाना
(1) मध्यप्रदेश वेट नियम,2006 में संशोधन संबंधी वाणिज्यिक कर विभाग की अधिसूचना क्रमांक एफ ए 3-18-2016-1-पांच(25) दिनांक 2 अप्रैल 2016 तथा, वाणिज्यिक कर विभाग की अधिसूचना क्रमांक एफ ए-3-17-2016-1-पांच(22)दिनांक 31मार्च,2016
वाणिज्यिक कर मंत्री(श्री जयंत मलैया) - अध्यक्ष महोदय, मैं, मध्यप्रदेश वेट अधिनियम,2002(क्रमांक 20 सन् 2002) की धारा 71 की उपधारा(5) की अपेक्षानुसार
मध्यप्रदेश वेट नियम,2006 में संशोधन संबंधी वाणिज्यिक कर विभाग की अधिसूचना क्रमांक एफ ए 3-18-2016-1-पांच(25) दिनांक 2 अप्रैल 2016 तथा,
मध्यप्रदेश विलासिता,मनोरंजन,आमोद एवं विज्ञापन कर अधिनियम 2011(क्रमांक11 सन्2011) की धारा 13 की उपधारा(3) की अपेक्षानुसार
वाणिज्यिक कर विभाग की अधिसूचना क्रमांक एफ ए-3-17-2016-1-पांच(22)दिनांक 31मार्च,2016 पटल पर रखता हूं.
(..व्यवधान..)
12.48बजे उपाध्यक्ष महोदय(डॉ.राजेन्द्र कुमार सिंह) पीठासीन हुए.
12.49 बजे गर्भगृह में प्रवेश
बहुजन समाज पार्टी के समस्त सदस्य एवं इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदस्यगणों का प्रदेश में दलितों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में गर्भगृह में प्रवेश
(एडव्होकेट सत्यप्रकाश सखवार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी के समस्त सदस्य एवं इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदस्यगण प्रदेश में दलितों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में गर्भगृह में आये तथा नारे लगाये.)
(2) मध्यप्रदेश राज्य बीज एवं फार्म विकास निगम का वार्षिक प्रतिवेदन एवं लेखे वित्तीय वर्ष 2015 -2016
(3) अपेक्षानुसार ऊर्जा विभाग की निम्न अधिसूचनाएं:-
(i) क्रमांक 2493-एफ-3-02-2011-तेरह, दिनांक 01 अप्रैल, 2016
(ii) क्रमांक 03-02-2011-तेरह, दिनांक 14 जून, 2016
ख) (i) शहपुरा थर्मल पॉवर कंपनी लिमिटेड, जबलपुर का नौवां वार्षिक प्रतिवेदन वर्ष 2014-2015, एवं
(ii) मध्यप्रदेश पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड, इंदौर का त्रयोदश वार्षिक प्रतिवेदन दिनांक 31 मार्च, 2015 को समाप्त अवधि हेतु.
(ग) (i) क्रमांक 894- मप्रविनिआ - 2016, दिनांक 30 मई 2016, एवं
(ii) क्रमांक 900/2016, दिनांक 31 मई, 2106
(4) उद्योग और रोजगार विभाग की अधिसूचना क्रमांक एफ 16-18- 2015-बी-ग्यारह दिनांक 11 मार्च, 2016.
(5) एम.पी.स्टेट एग्रो इंडस्ट्रीज डेव्हलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड का 45 वां वार्षिक प्रतिवेदन एवं लेखे वर्ष 2013 - 2014
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष (श्री बाला बच्चन) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय सखवार जी के द्वारा जो शून्यकाल में मामला उठाया गया है कि ग्वालियर में पुलिस दलित बस्तियों में जाती है और अभ्रदता करती है तथा वहां की महिलाओं के साथ में भी छेड़खानी करती है. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय सखवार जी ने शून्यकाल में मामला उठाया है, आपके संज्ञान में आ गया है, इस पर कार्यवाही होनी चाहिए. वहां की पुलिस जो निर्दोष लोगों के खिलाफ करती हैं, आप इस पर ध्यान दें. (व्यवधान..)
माननीय उपाध्यक्ष महोदय आपको इस पर व्यवस्था देना चाहिए. ग्वालियर जिले की पुलिस बस्तियों में जाती है और वहां पर बदतमीजी करती है, आपको इस पर व्यवस्था देना चाहिए और कार्यवाही करना चाहिए कि दलितों के साथ में ऐसा न हो. (व्यवधान)
डॉ. नरोत्तम मिश्र - (व्यवधान)...कांग्रेस कभी भाजपा का, कभी बसपा का कांग्रेस विषय उठा रही है..... (व्यवधान)...
श्री बाला बच्चन - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, शराब के नशे में पुलिस जाती है, मारपीट करती है, छेड़छाड़ करती है... (व्यवधान)...दलितों का अपमान है. यह सरकार की तानाशाही है. इस पर चर्चा करानी चाहिए.
उपाध्यक्ष महोदय - कल शूल्यकाल में ले लेंगे ... (व्यवधान)...
(गर्भगृह में उपस्थित सदस्यगण नारे लगाते रहे.)
श्री बाला बच्चन - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, ... (व्यवधान)..यह सरकार की तानाशाही है, हम इसकी निंदा करते हैं, दलितों का अपमान है दलितों बस्तियों में पुलिस जाती है छेड़छाड़ करती है, शराब के नशे में दलितों को पीटती है, अपमानित करती है और उनके खिलाफ पुलिस थानों में एफ.आई.आर. कराती है. यह बहुत निंदनीय है.
उपाध्यक्ष महोदय - ध्यानाकर्षण की सूचनाऐं श्री जयवर्धन सिंह .
श्री बाला बच्चन - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, विधानसभा की कार्यवाही को रोककर इस पर चर्चा कराई जाये.
उपाध्यक्ष महोदय - कल शून्यकाल में ले लिया जायेगा.
श्री बाला बच्चन - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, यह विधायकों का अपमान भी है, हमारे द्वारा यह जो बात उठाई जा रही है इसके ऊपर आसंदी कोई संज्ञान ले. सरकार से कार्यवाही करवायें.
उपाध्यक्ष महोदय - श्री बाला बच्चन जी इस विषय का पटाक्षेप हो गया.
श्री बाला बच्चन - यह दलितों का अपमान है, शराब पीकर पुलिस जाती है, वहां की महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करती है.
उपाध्यक्ष महोदय - कल शून्यकाल में उनकी सूचना ले ली जायेगी. समाधान हो गया है फिर क्यों खड़े होकर बोल रहे हैं. (व्यवधान)
श्री बाला बच्चन - ठीक है. अगर आपने शून्यकाल की चर्चा ले ली और इसमें अगर आप कार्यवाही करवा रहे है, तो इस पर हमारा धन्यवाद.
उपाध्यक्ष महोदय - श्री जयवर्धन सिंह का ध्यानाकर्षण आने दीजिए.
श्री रामनिवास रावत - इस विषय को शून्यकाल में लेने की आपने कृपा की है.. ध्यानाकर्षण में ले लें तो कृपा होगी.
उपाध्यक्ष महोदय - नहीं कल शून्यकाल में ले लेंगे.
श्री रामनिवास रावत - यह ध्यानाकर्षण का विषय है. दलितों पर अत्याचार ध्यानाकर्षण का विषय है.
उपाध्यक्ष महोदय - नहीं. अब वह संतुष्ट हो गये हैं. यह बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना समझ नहीं आ रहा है बार-बार. इधर से भी उठते हैं, उधर से भी उठते हैं, बैठ जाईये.
श्रीमती ऊषा चौधरी - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, सदन में दलितों के साथ बहुत अत्याचार हो रहा है. (व्यवधान) ....
श्रीमती शीला त्यागी - (व्यवधान) ....अन्याय हो रहा है, रात को दारू पी-पी कर 25-25 लोग जाकर बस्तियों में जाकर अत्याचार करते हैं, बहुत अश्लील हरकतें करते है...... (व्यवधान) ....
उपाध्यक्ष महोदय - बैठ जाईये. उनका ध्यानाकर्षण आने दीजिए.
श्रीमती शीला त्यागी - आप यह असत्य कह रहे हैं कि हम लोग संतुष्ट हो गये हैं. हम लोग संतुष्ट नहीं है.
उपाध्यक्ष महोदय - श्री सत्यप्रकाश सखवार जी संतुष्ट हैं, कल ले लिया जायेगा उनका. जितू पटवारी जी बैठ जाये. आप सदन नहीं चलने देना चाह रहे हैं क्या ? (व्यवधान) ....
श्रीमती शीला त्यागी - (व्यवधान) ....20 से 25 लोग जा जाकर बच्चियों और महिलाओं के साथ अश्लील हरकतें करते हैं इससे गंभीर मामला क्या हो सकता है.
उपाध्यक्ष महोदय - शीला जी बैठ जाये. जितू पटवारी जी बैठ जाये. उनका ध्यानाकर्षण आने दीजिए महत्वपूर्ण विषय है.
श्रीमती ऊषा चौधरी - (व्यवधान) ....उन पुलिस वालों पर कार्यवाही होना चाहिए.
उपाध्यक्ष महोदय - कल सूचनाओं में ले लिया जायेगा.
श्रीमती ऊषा चौधरी - (व्यवधान) ... संसदीय कार्य मंत्री जी दलितों का मुद्दा उठता है तो मजाक उड़ातें हैं, इनको शर्म आना चाहिए.
उपाध्यक्ष महोदय - नहीं-नहीं मजाक नहीं उड़ा रहे हैं. (व्यवधान) ...
एडव्होकेट सत्यप्रकाश सखवार--उपाध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्रीजी मजाक उड़ाते हैं यह बड़ी शर्म की बात है. जब सदन में दलितों के, महिलाओं के अधिकारों की बात कही जाती है तब माननीय मंत्रीजी को गंभीरता से उस मसले को निपटाना चाहिए.
उपाध्यक्ष महोदय-- सखवार जी, ऐसी कोई बात नहीं है. बैठ जायें. आपकी शून्यकाल की सूचना कल ले ली जाएगी.(व्यवधान)
श्री जितू पटवारी-- उपाध्यक्षजी, तहसीलदार ने एक व्यक्ति को कह दिया कि तू जहर खा ले तो उसने जहर खा लिया. सरकारी तंत्र में यह बहुत महत्वपूर्ण है. (व्यवधान) विदिशा का कुशवाह नामक व्यक्ति को तहसीलदार ने कहा कि तू जहर खा ले, उसने जहर खा लिया. (व्यवधान)
उपाध्यक्ष महोदय-- श्री जितू पटवारी जो बोल रहे हैं, उनका कुछ नहीं लिखा जाएगा.
श्री जितू पटवारी-- (XXX)
उपाध्यक्ष महोदय-- ऊषा जी, हम खड़े हैं अब आप बैठ जाईये. आसंदी की मर्यादा रखिये. बैठ जायें.
12.56 बजे ध्यानाकर्षण
प्रदेश में कृषकों से प्याज खरीदी में अनियमितता किये जाने.
श्री जयवर्द्धन सिंह (राघोगढ़)-- उपाध्यक्ष महोदय,
राज्यमंत्री सहकारिता( श्री विश्वास सारंग)-
श्री जयवर्द्वन सिंह- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आदरणीय मंत्री जी युवा मंत्री हैं और पहली बार शायद ध्यानाकर्षण का उत्तर दे रहे हैं । मेरे चार प्रश्न हैं और मुझे उम्मीद है कि मेरे चारों प्रश्नों का उत्तर मिलेगा ।
उपाध्यक्ष महोदय- चार प्रश्न पूछने का नियम नहीं है । आप उसको जोड़ लीजिए । नियम एक का है हम अधिकतम दो प्रश्न की अनुमति दे सकते हैं ।
श्री जयवर्द्वन सिंह- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, अभी भी एक करोड़ 75 लाख की राशि का ब्यावरा में अभी भुगतान नहीं हुआ है । वर्तमान में अभी तक एक लाख मेट्रिक टन में 62 करोड़ की खरीदी की गई है यह पहले पृष्ठ पर लिखा है दूसरे पृष्ठ पर यह लिखा है कि जो भुगतान किसानों को हुआ है वह मात्र 23 करोड़ का है बाकी जो 40 करोड़ की राशि है वह कहां गई है और अगर इतना भुगतान बाकी है लेकिन जो अनुपूरक बजट है उसमें सिर्फ 15 करोड का उल्लेख है तो यह पूरी राशि जो अतिरिक्त अभी शेष है वह कहां से बांटी जाएगी, कैसे बांटी जाएगी ? अंतिम प्रश्न मेरा यह है कि जो प्याज खरीदी गई थी उसकी स्थिति क्या है ? मुझे जानकारी मिली है कि वह पूरी सड़ चुकी है । माननीय मंत्री जी उत्तर दें कि जो प्याज खरीदा गया था उसकी क्या स्थिति है ? कितना सड़ चुका है ? कितना अभी भी ठीक है ? यह व्यवस्था मौके पर की गई थी लेकिन भविष्य के लिए जब पूरे मालवा क्षेत्र में प्याज का इतना उत्पादन बढ़ रहा है और वाकई में अगर किसान के पास स्टोरेज सुविधा होगी तों यह स्वाभाविक है कि जब सप्लाई ज्यादा होती है तो दाम घटता है लेकिन जब सप्लाई कम होगी तो दाम बढ़ेगा तो अपने पास यदि स्टोरेज की सुविधा होगी तो उसके माध्यम से जब दाम ज्यादा होगा उसका सीधा लाभ किसान को मिल सकेगा । उसके लिए ब्लाक स्तर पर सुविधा मिलना चाहिए, ऐसी बुनियादी व्यवस्था होनी चाहिए उसके लिए मंत्री जी की क्या प्लानिंग है ?
श्री विश्वास सारंग- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, विधायक साथी ने जो प्रश्न पूछे हैं उसमें उन्होंने पहला प्रश्न किया है कि उनके विधानसभा क्षेत्र में लगभग 1 करोड़ 72 लाख रूपया का अभी भुगतान नहीं हुआ है । उन्होंने यह भी जिक्र किया कि पहले पृष्ठ पर कुछ उत्तर है और दूसरे पृष्ठ पर दूसरा उत्तर है । मुझे लगता है कि उन्होंने पूरा उत्तर नहीं पढ़ा उसमें लिखा हुआ है कि अभी 23 करोड़ का भुगतान हुआ है बाकी भुगतान की प्रक्रिया चल रही है ।
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आरटीजीएस के माध्यम से भुगतान होना है कहीं कहीं जहां किसानों के बैंक खातों की जानकारी रह गई है तो वह एकत्रित करके यह प्रक्रिया चल रही है और मैं सदन में बताना चाहता हूं कि इस सप्ताह तक राशि का भुगतान पूरी तरह से सुनिश्चित कर दिया जाएगा, मैं यह सदन में बोलना चाहता हूं दूसरा विधायक जी ने पूछा है कि जो 40 लाख रूपए शेष रह गए हैं मैं बताना चाहता हूं कि 15 करोड़ की राशि राज्य शासन द्वारा दी गई और बाकी राशि की प्रतिपूर्ति लोन से की जाएगी इसलिए उसका किसी बजट में प्रावधान या दिखाने का कोई औचित्य नहीं था वह लोन भी हमको मिल चुका है और उसके माध्यम से हम इस राशि का भुगतान करेंगे । तीसरा जो माननीय विधायक जी ने प्रश्न किया है कि कितनी प्याज सड़ चुकी है. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं बताना चाहता हूं कि सही मायने में मुझे ऐसा लगता है कि सदन में इस बात की कहीं न कहीं तारीफ होना चाहिए क्योंकि माननीय मुख्यमंत्री जी ने जिस प्रकार से मुख्यमंत्री बनने के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने लगातार किसान हितैषी निर्णय लिए हैं उसी निर्णय में यह निर्णय भी शामिल हुआ है जब देश में पहली बार किसानों को प्याज में दिक्कत पैदा हुई तो किसानों के आसुओं को पोछने का काम भी शिवराज सिंह चौहान जी ने किया इसकी तारीफ होनी चाहिए । ( मेजों की थपथपाहट) मैं यहां पर निवेदन करना चाहता हूं .......
उपाध्यक्ष महोदय- भविष्य में भण्डारण की क्या व्यवस्था होगी ? यह और बता दें ।
श्री विश्वास सारंग- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, राष्ट्रीय उद्यानिकी अनुसंधान एवं विकास केन्द्र, नासिक, जो कि राष्ट्रीय स्तर की संस्था है जो प्याज के पूरे भण्डारण को लेकर अध्ययन किया है उन्होंने भी कहा है कि 25 से 30 प्रतिशत यदि अल्पावधि में हम इसका भण्डारण करते हैं तो उसमें क्षरण होने की आशंका रहती है. यह जानकारी प्रारंभिक जानकारी है इसमें 10 से 12 प्रतिशत ही क्षरण हुआ है, यह और बढ़ भी सकता है क्योंकि यह तो एक प्रक्रिया है प्याज की प्रवृति ऐसी है कि उसमें क्षरण होना है इसलिए मैं विश्वास दिलाना चाहता हूं ।
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, एक बात का और मैं जिक्र करना चाहता हूं । इस पूरी प्रक्रिया में मध्यप्रदेश शासन के 3-3, 4-4 विभागों ने मिलकर काम किया है और बहुत को-आर्डिनेशन से काम किया है. इसमें उद्यानिकी विभाग, सहकारिता विभाग, मंडी के माध्यम से कृषि विभाग ने भी काम किया है. सभी विभागों के अधिकारियों ने को-आर्डिनेशन से यह स्थिति बहुत अच्छी की है. मुझे ऐसा लगता है कि इसमें हम सबको मिलकर माननीय मुख्यमंत्री जी का अभिवादन करना चाहिए कि उन्होंने किसान हितैषी निर्णय लिया है. (मेजों की थपथपाहट)...
उपाध्यक्ष महोदय - भविष्य में आपकी भण्डारण की क्या व्यवस्था है, यह भी बता दें? क्योंकि आपके पास प्याज के गोदाम नहीं थे, आपने जनरल गोदामों में भण्डारण किया है.
श्री विश्वास सारंग - उपाध्यक्ष महोदय, जैसा उत्तर में भी आया है कि तकनीकी रूप से अभी मध्यप्रदेश में इस तरह के गोदाम नहीं हैं जो कि प्याज के भण्डारण के लिए उपयुक्त हों, उद्यानिकी विभाग ने एक योजना बनाई है और उस योजना के तहत वह सब्सिडी देकर ऐसे भण्डारों को आगे बनाने के लिए प्रोत्साहित करने का काम करने वाले हैं.
श्री जयवर्द्धन सिंह - उपाध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी को धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने लगभग सभी उत्तर दे दिये हैं. लेकिन पहला जो बिन्दु था कि शेष राशि जिसके लिए माननीय मंत्री जी ने कहा है कि बजट में राशि आवंटित हो गई है.
उपाध्यक्ष महोदय - उन्होंने बजट में नहीं कहा है, बैंकों से ऋण लेने की बात कही है.
श्री जयवर्द्धन सिंह - उपाध्यक्ष महोदय, अनुपूरक बजट में 15 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है और बाकी जो शेष राशि है उसके लिए उन्होंने कहा है कि बैंक के ऋण के माध्यम से उसको आवंटित करेंगे. लेकिन मुझे इस बात का संदेह है कि वह पूरी 40 करोड़ रुपए की राशि किसानों को इस हफ्ते के अंत तक मिल जाएगी, इसीलिए अगर हो सके तो शुक्रवार तक एक आंकड़ा पूरा साफ हो जाय तो उसके बारे में कह दें.
उपाध्यक्ष महोदय - उन्होंने आश्वासन दिया है कि एक हफ्ते में भुगतान हो जाएगा.
श्री जयवर्द्धन सिंह - अगर वह विधान सभा में प्रस्तुत हो सके?
उपाध्यक्ष महोदय - आपकी समस्या का पूरा समाधान हो गया है और मार्केट इंटरवेंशन प्याज के मामले में पहली बार हुआ है, यह बात भी सही है.
श्री सत्यपाल सिंह सिकरवार - प्याज खरीदी के लिए सरकार को बधाई तो दे दें, पहली बार यह निर्णय हुआ है.
श्री जयवर्द्धन सिंह - उपाध्यक्ष महोदय, अगर अच्छे वेयर हाऊसेस होते तो और अच्छी कीमत मिलती. 10-15 रुपए बढ़े हुए मिलते. आपके क्षेत्र का मुद्दा था आपने नहीं उठाया. मैं इसे उठा रहा हूं.
श्री अमर सिंह यादव - बहुत अच्छे से प्याज की खरीदी हुई है, जहां तक किसानों की बात है तो कोई रोष नहीं है.
श्री मनोज निर्भय सिंह पटेल - आपको सरकार को इतना धन्यवाद देना चाहिए कि किसान प्याज को सड़कों पर फेंक रहा था, पहली यह संवेदनशील सरकार है, किसानों के हितैषी मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने प्याज को खरीदा.
उपाध्यक्ष महोदय - आप बैठ जाइए. यह बात मैंने आसंदी से कह दी है.
श्री रामनिवास रावत (विजयपुर) - उपाध्यक्ष महोदय, सभी सदस्यों ने कहा और माननीय मंत्री जी ने भी काफी लंबा चौड़ा भाषण दिया. किसानों के हितों के संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री जी ने प्याज खरीदने का निर्णय लिया, बिल्कुल धन्यवाद के काबिल है. हम भी कह रहे हैं धन्यवाद के काबिल है. लेकिन मेरा यह निवेदन है, मंत्री जी ने जवाब दिया है कि पूरे प्रदेश में 1 लाख 4 हजार 26 मीट्रिक टन प्याज जून में खरीदी गई. 4 जून से लेकर 23 जून तक आपने प्याज खरीदी है. यह स्थिति कब बनी? जब प्रदेश में प्याज का बम्पर उत्पादन हुआ. कम से कम 12 लाख से अधिक मीट्रिक टन प्याज का प्रदेश में उत्पादन हुआ है. उस उत्पादन के बाद जब किसान मंडियों में फसल ले जाने लगे, वह मंडियों में बिकी नहीं. वह 50-60 पैसे किलो बिक रही थी, तब वे उसको फेंकने लगे. हमारा कहना था कि आपने बताया है कि किसानों में आक्रोश नहीं है. मेरा आरोप है कि आपने प्याज के बम्पर उत्पादन में 10 प्रतिशत की खरीदी का भी काम नहीं किया है.
उपाध्यक्ष महोदय, मेरा सीधा-सा प्रश्न है कि प्रदेश में प्याज का उत्पादन कितना किया है और आपका यह उत्तर सदन के पटल पर भी रहेगा, यह आपके आर्थिक सर्वेक्षण में भी आता है, इसका उत्तर आप मंत्री जी सोच-समझकर देना. इसे मंत्री जी नोट करते जायं कि कितना उत्पादन हुआ और उत्पादन के कितने प्रतिशत में खरीदी की गई? दूसरा, माननीय मंत्री जी आपके पास भण्डारण की क्या व्यवस्था थी, आसंदी ने भण्डारण की बात की. मेरा यह निवेदन है कि जिस समय किसान की प्याज का रेट कम था, उस समय सरकार ने प्याज खरीदने का निर्णय लिया. आपने भण्डारण किया, भण्डारण के बाद प्याज सड़ने लगी, गलने लगी और आज आपने बेचने का काम किया है. प्याज बेचने का काम किया है सरकार प्याज भी बेचने का काम कर रही है. आपने दो बार टेण्डर बुलाए. नंबर एक यह इसलिए बुलाए और इसलिए प्याज खरीदी कि किसानों को उचित भाव मिल सके. मैं एक बात सीधी सी जानना चाहता हॅूं, सभी सदस्यों से भी पूछना चाहता हॅूं जो धन्यवाद दे रहे थे कि मार्केट में आज किसान की अच्छी प्याज का भाव क्या है. 9 रूपये किलो है, 10 रूपये किलो है अगर किसान की अच्छी क्वॉलिटी की प्याज है तो आप कितने रूपये में बेच रहो हो, 60 पैसे से लेकर 3 रूपये 62 पैसे में बेचने का काम कर रहे हो. अभी तक कितनी प्याज बेची ? आपके टेण्डर में इतनी रेट आई है, 4 रूपये किलो आप मार्केट में खुले रूप में बेच रहे हो, खुले बाजार में बेच रहे हो, अभी तक आपकी कितनी प्याज बिकी और क्या इस तरह आप मार्केट रेट से वर्तमान में कम दर पर प्याज बेचकर किसानों के साथ में अन्याय नहीं कर रहे ?
श्री मनोज निर्भय सिंह पटेल -- माननीय उपाध्यक्ष जी, मेरा एक निवेदन है कि माननीय रावत जी...
उपाध्यक्ष महोदय – आपके प्रश्न आ गए है. माननीय मंत्री जी जवाब दें. मनोज जी आप बैठ जाइए.
श्री रामनिवास रावत – मनोज जी को जवाब देने दीजिए.
उपाध्यक्ष महोदय – नहीं मनोज जी आप जवाब नहीं देंगे. आप बैठ जाइए. आपको भ्रम हो रहा है.
श्री मनोज निर्भय सिंह पटेल -- माननीय उपाध्यक्ष जी, मेरा निवेदन है कि आपने कहा कि आज प्याज के क्या भाव हैं ? खाली एक लाईन में बोलूंगा. अगर सरकार भंडारण नहीं करती तो यह भाव भी नहीं मिलते....(व्यवधान)
उपाध्यक्ष्ा महोदय – मनोज जी, मंत्री जी जवाब दे रहे है. आप बैठ जाइए.
श्री रामनिवास रावत -- तुम्हारे पिताजी सदन में किसानों के लिए बहुत लड़ते थे, उनका तो सम्मान करो. थोड़ी बहुत किसानों के लिए पीड़ा जगाओ.
उपाध्यक्ष महोदय -- यह क्या है ? मनोज जी, आप बैठ जाइए. (व्यवधान)
श्री विश्वास सारंग -- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आदरणीय रावत जी ने थोड़ा मुझे लगता है कि कुछ भ्रामक जानकारी उनको मिली है कहीं भी उत्तर में यह नहीं लिखा है कि टेण्डर में जो रेट आया है उसके हिसाब से 6 पैसे और 3 रूपये 62 पैसे तक..
श्री रामनिवास रावत -- माननीय उपाध्यक्ष जी, क्रय विक्रय के लिये पारदर्शी व्यवस्था के अंतर्गत दो बार टेण्डर आमंत्रित किए गए.
उपाध्यक्ष महोदय -- रावत जी, उनको जवाब दो देने दीजिए.
श्री रामनिवास रावत -- दूसरी बार टेण्डर आमंत्रित करने पर 60 पैसे प्रथम बार तो आया ही नहीं.
उपाध्यक्ष महोदय – बड़ी मुश्किल है. उत्तर आने दीजिए.
श्री रामनिवास रावत – माननीय उपाध्यक्ष जी, मैं उन्हीं का उत्तर पढ़ रहा हॅूं.
श्री विश्वास सारंग – माननीय उपाध्यक्ष जी, मुझे बोलने ही नहीं दे रहे हैं.
श्री रामनिवास रावत – 60 पैसे से लेकर 3 रूपये 16 पैसे प्रति किलो के भाव से प्राप्त हुए.
उपाध्यक्ष महोदय – यह टेण्डर रेट्स की बात कर रहे हैं. आप बैठ जाइए. ठीक तो है. वह बेच कितने में रहे हैं यह भी तो आप सुन लीजिए.
श्री शंकरलाल तिवारी -- माननीय उपाध्यक्ष जी, मेरे माइक की लाल बत्ती नहीं जला करती है. रावत जी जो विघ्न पैदा कर रहे हैं, माननीय शिवराज सिंह जी के इतने ऐतिहासिक निर्णय पर किसानों की तत्काल प्याज खरीदी जाए. उसमें जो विघ्न पैदा कर रहे हैं उसमें मैं इनको धन्यवाद देता हॅूं.
उपाध्यक्ष महोदय -- ठीक है आप बैठ जाइए. आपने धन्यवाद दे दिया, आप बैठ जाइए.
श्री रामनिवास रावत -- आप मंत्री तो बन जाओ, मैं और विघ्न पैदा कर दूंगा, तुम मंत्री तो बन जाओ. तुम्हारा नंबर नहीं लगने वाला. सात साल में बाहर चले जाओगे.
उपाध्यक्ष महोदय -- रावत जी, दूसरा ध्यानाकर्षण भी है वह भी महत्वपूर्ण है.
श्री विश्वास सारंग -- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जो उत्तर में लिखा है इसमें हम 4 रूपये किलों ही प्याज का विक्रय कर रहे हैं 3 रूपये 62 पैसे का रेट आया था उसको दृष्टिगत रखते हुए 4 रूपये और माननीय उपाध्यक्ष महोदय मैं फिर निवेदन करना चाहता हॅूं कि...
श्री रामनिवास रावत -- प्याज अभी तक कितनी बिकी ?
उपाध्यक्ष महोदय -- आप जवाब तो ले लीजिए. आपने पूछा है कितनी प्याज बिकी.
श्री विश्वास सारंग – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, दो दिन में लगभग 7 हजार क्विंटल प्याज बिक चुकी है. इसमें तो धन्यवाद देना चाहिए. एक तरफ माननीय शिवराज सिंह जी के निर्णय से किसानों का फायदा हुआ.
श्री रामनिवास रावत -- मार्केट रेट क्या है ? अभी तक किसानों को नुकसान हो रहा है. प्याज सस्ता कर दिया आपने. आपको किस बात का धन्यवाद दें? (व्यवधान)
उपाध्यक्ष महोदय -- रावत जी, आप बैठ जाइए. अरे, उपभोक्ताओं को तो फायदा दे रहे हैं. आप क्यों चिन्ता कर रहे हैं. प्याज उन्होंने पहले किसानों से ही खरीदी. (व्यवधान)..
श्री जयवर्द्धन सिंह -- अध्यक्ष महोदय यह वैकल्पिक व्यवस्था थी...(व्यवधान)..
उपाध्यक्ष महोदय -- बाजार में जब रेट ज्यादा थे तब उन्होंने खरीदा है और अब अगर बेच रहे हैं तो उपभोक्ताओं का फायदा हो रहा है..(व्यवधान).. मार्केट इंटरवेंशन क्या होता है बताइये...(व्यवधान)
श्री रामनिवास रावत -- किसानों को उनकी लागत का उचित मूल्य मिलना चाहिए...(व्यवधान)..
उपाध्यक्ष महोदय -- नहीं गलत बात है...(व्यवधान)..
श्री रामनिवास रावत --( X X X )
उपाध्यक्ष महोदय -- यह निकाल दीजिये...(व्यवधान)...
डॉ नरोत्तम मिश्रा -- नहीं, यह आसंदी से बात करने का तरीका गलत है.(व्यवधान)..
उपाध्यक्ष महोदय -- नहीं, रावत जी आप किसी बात को समझ ही नहीं रहे हैं. रावत जी आप इतने बुद्धिमान और होशियार सदस्य हैं समझें उस बात को..(व्यवधान)..
श्री रामनिवास रावत -- मैं समझ रहा हूं..
उपाध्यक्ष महोदय -- जब डेढ रूपये किलो प्याज बिक रही थी तब उन्होंने 6 रूपये किलो खरीदी है तो उससे किसको फायदा हुआ है ?..(व्यवधान)...
श्री रामनिवास रावत -- लेकिन जिन किसानों की प्याज नहीं खरीदी गई है उनको लाभ मिलना चाहिए..(व्यवधान)..
उपाध्यक्ष महोदय -- अब तो यह चित हम जीते, पट तुम हारे यह बात करेंगे हमेशा, यह भी बात गलत है...(व्यवधान)..
श्री रामनिवास रावत.. --( X X X )
उपाध्यक्ष महोदय -- रावत जी जो कह रहे हैं वह नहीं लिखा जायेगा.. ( व्यवधान).. नहीं किसी की बात नहीं..मंत्री जी का जवाब पूरा आ जाने दें. आप मंत्री जी का पूरा जवाब लेना चाहते हैं या नहीं ?..(व्यवधान)..
श्री विश्वास सारंग -- उपाध्यक्ष महोदय आपने बिल्कुल सही कहा है कि एक तरफ तो इस निर्णय से उन किसानों को जिनकी प्याज एक से डेढ़ रूपये किलो में बिक रही थी 6 रूपये किलो में खरीदकर सरकार ने किसानों का हित किया है, उसके बाद में4 रूपये किलो में बेचकर उपभोक्ताओं को लाभ देने का प्रयास किया गया है. यह तो सरकार का बहुत ही उपयोगी और अच्छा निर्णय है. इ सके लिए तो आपको सरकार की तारीफ करना चाहिए.
श्री रामनिवास रावत -- जिन किसानों के पास में प्याज का भण्डारण है उनके साथ में तो अन्याय हो रहा है....(व्यवधान)... आप उनके साथ में क्यों अन्याय कर रहे हैं..(व्यवधान). मार्केट में कितना रेट है यह बता दें..(व्यवधान)..
उपाध्यक्ष महोदय -- कितना उत्पादन हुआ है यह नहीं आया है...(व्यवधान)..यह कोई जबरदस्ती है, इस तरह से नहीं चलेगा ?
श्री रामनिवास रावत --- उपाध्यक्ष महोदय हम अपनी बात कहेंगे, किसानों के साथ में अन्याय कर रही है सरकार.
उपाध्यक्ष महोदय -- नहीं, ऐसा नहीं. जब हम अनुमति दें तब आप अपनी बात कहेंगे ऐसा नहीं है...(व्यवधान).. इनका एक प्रश्न अनुत्तरित है कि कितना उत्पादन हुआ है यह बता दें...(व्यवधान)..
श्री बाला बच्चन -- उपाध्यक्ष महोदय जो मई जून में किसानों का प्याज खरीदा गया है. वह मई जून का भुगतान अभी तक सरकार ने नहीं किया है,..(व्यवधान).
उपाध्यक्ष महोदय -- बाला बच्चन जी आपने मंत्री जी का स्टेटमेंट नहीं सुना, उन्होंने कहा है कि एक हफ्ते में भुगतान कर देंगे...(व्यवधान)..
बहिर्गमन
सरकार द्वारा किसानों को प्याज का भुगतान नहीं किये जाने इण्डियन नेश्नल कांग्रेस के सदस्यगण द्वारा सदन से बहिर्गमन
श्री बाला बच्चन -- सरकार पूरी बातों का जवाब नहीं दे पा रही है..(व्यवधान).. पुराना प्याज का भुगतान नहीं कर पा रही है, हमारे प्रश्नों का जवाब नहीं दे पा रही है, हम सदन से इसके लिए बहिर्गमन करते हैं.
( प्रभारी नेता प्रतिपक्ष श्री बाला बच्चन के नेतृत्व में इ.ने.कां. के सदस्यगण द्वारा सरकार द्वारा किसानों को प्याज का भुगतान नहीं किए जाने के विरोध में सदन से बहिर्गमन किया)
नीमच एवं जबलपुर के केन्टोनमेंट क्षेत्र में शासन की योजनाओं का लाभ न मिलना
श्री दिलीप सिंह परिहार ( नीमच ) --
नगरीय विकास एवं आवास मंत्री (श्रीमती माया सिंह) -- माननीय उपाध्यक्ष जी,
श्री दिलीप सिंह परिहार-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय,लगभग 15 हजार मकान बंगला बगीचा क्षेत्र में हैं और लगभग 40 से 45 हजार लोग वहाँ निवास करते हैं.
उपाध्यक्ष महोदय-- कार्यसूची के पद 7(1) में उल्लेखित कार्य पूर्ण होने तक सदन के समय में वृद्धि की जाय. मैं समझता हूं सदन इससे सहमत हैं.
(सदन द्वारा सहमति प्रदान की गई)
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, दिलीप सिंह परिहार जी माननीय मंत्री महोदया से कुछ आश्वासन चाहेंगे. आज सदन में भाभीजी श्रीमती परिहार भी विराजित हैं, मैं मंत्री महोदया से आग्रह करूंगा कि दिलीप सिंह जी का भाषण बड़े गौर से आज मिसेस परिहार सुन रही हैं.
श्री दिलीप सिंह परिहार--- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, लगभग 40-45 हजार लोग वहाँ निवास करते हैं,वह लोग वहाँ पर मूलभूत सुविधायें जैसे बिजली, पानी, भी प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं.
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष(श्री बाला बच्चन)--- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपने कार्यसूची के पद 7(1) तक कार्य पूरा करने के लिए बोला है, पद क्रमांक 7 में शासकीय विधि विषयक कार्य है?
उपाध्यक्ष महोदय--- हम चाहते हैं कि उसमें एक विधेयक आ जाये चूंकि माननीय मंत्री जी को दिल्ली जाना है, उनके पिताजी अस्पताल में भर्ती है, इस कारण वहाँ तक की कार्यसूची का कार्य लेंगे.
श्री दिलीप सिंह परिहार--- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से चाहूंगा कि जो गरीब लोग वहाँ निवास करते हैं यदि उनको अपनी बेटी का विवाह करना होता है तो वह प्लॉट बेचना चाहते हैं, गिरवी रखना चाहते हैं, लोन लेना चाहते हैं तो वह कुछ भी नहीं कर पाते हैं और बिल्कुल नारकीय जीवन जी रहे हैं.यह समस्या मैंने लगातार माननीय मुख्यमंत्री जी के सामने उठाई,विधायक दल में भी उठाई है. माननीय मुख्यमंत्री जी ने यह आश्वासन दिया कि जो जहाँ है, वहीं रहेगा. उनको बिजली की,सड़कों की व्यवस्था दी जाएगी, नाली की निकासी की जाएगी मगर आज तक कोई व्यवस्था नहीं की गई है. मैं मंत्री जी से इस प्रश्न के माध्यम से यही पूछना चाहता हूं कि क्या आप वहाँ निर्माण अनुमति,रजिस्ट्री व नामांतरण इत्यादि दिये जाने का निर्देश देंगी? एक तो मेरा यह प्रश्न है और जो वहाँ विस्थापित सिंधी समाज के लोग निवास करते हैं उनको जो मकान दिये गये थे वह बिल्कुल क्षतिग्रस्त हैं, वहाँ पानी चूँ रहा है, जनहानि तक हो गई है. ना तो वह वहाँ निर्माण कर पाते हैं, ना अपना टेंट लगाकर वहाँ रह सकते हैं तो कम से कम मानवीय आधार पर मंत्री जी उनको अनुमति दें.
उपाध्यक्ष महोदय--- आपका एक प्रश्न है.
श्री दिलीप सिंह परिहार--- और भी प्रश्न हैं.
उपाध्यक्ष महोदय--- इसके बाद एक ही एलाऊ करेंगे.
श्री दिलीप सिंह परिहार--- मैं इसी में अपना प्रश्न कर लेता हूं. माननीय मंत्री महोदया जी, जो हमारी समिति बनी है, उसकी भी बैठकें हुई हैं उसमें भी कुछ निर्णय नहीं हुआ है. जबलपुर नगरपालिका में चोरी-छुपे नामांतरण किये जा रहे हैं. जो प्रभावशाली लोग हैं, उनके नामांतरण किये गये हैं तो विवादित स्थिति उत्पन्न हो रही है और जो प्रभावशाली लोग हैं वह लोग निर्माण भी कर रहे हैं, गरीब आदमी निर्माण नहीं कर पा रहा है तो कहीं-न-कहीं जो विवादित विक्रयपत्र, वसीयत के आधार पर जो पूर्व अधिकारी ने नामांतरण किये हैं, जो लगभग 95.36 वर्गमीटर भूमि पर परिषद संकल्प 180.61, 3.1.2014 पर नामांतरण स्वीकृत किया गया है तो उस अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी जिसने यह किया है. या तो सबको समान अधिकार दें कि उनके नामांतरण हो जाए उनको ऋण मिल जाये, सरकार की योजनाओं का लाभ मिल जाए जिससे कि वह लोन ले सके अपना मकान बना सके.
श्रीमती माया सिंह--- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, सम्माननीय विधायक जी ने जो बात पूछी है उस संबंध में मैं कहना चाहती हूं कि माननीय वित्तमंत्री जी की अध्यक्षता में केबिनेट सब-कमेटी बनाई गई और समिति ने 5 हजार वर्ग फीट तक के भूखंडों के व्यवस्थापन हेतु नियमों को 27 फरवरी 2016 की बैठक में सहमति दी. नियमों में सर्वेक्षण,पात्रता व व्यवस्थापन के बारे में विस्तृत नियम है. अतः विधि विभाग के अभिमत के बाद नियम लागू किये जाने हैं और विधि विभाग ने 22.7.2016 की टीप में कहा है कि न्यायालयीन प्रकरणों पर अभिमत नहीं दिया जा सकता इसलिए न्यायालयीन प्रकरणों को छोड़कर अन्य भूमियों पर योजना लागू करने के लिए पुनः परीक्षण करने के लिए विधि विभाग से अनुरोध किया जा रहा है.
श्री दिलीप सिंह परिहार--- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जिन अधिकारियों ने विवादित नामांतरण किये हैं उनके खिलाफ तो कार्यवाही होना चाहिए या तो वह सबके नामांतरण करें.माननीय उपाध्यक्ष महोदय, वसीयत के आधार पर 3.1.2014 को कुछ नामांतरण हुए, जो प्रभावशाली लोग हैं उनके नामांतरण हो गये हैं मेरा कहना है कि फिर सबके नामांतरण होना चाहिए.
श्रीमती माया सिंह- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं ये कहना चाहती हूं कि मंत्रिमंडल की उपसमिति का शीघ्र ही पुनर्गठन कर बैठक हम आयोजित करेंगे. आपने जो बात रखी है, उस पर बैठक में अवश्य ध्यान देंगे. प्रारूप और नियमों पर कार्यवाही प्रचलित है. बाकी की बातें हम उस बैठक में रखेंगे.
श्री दिलीप सिंह परिहार- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मूलभूत सुविधायें- बिजली, पानी, सड़क की व्यवस्था तो कम से कम हो जाए.
उपाध्यक्ष महोदय- कमेटी की बैठक में वे विचार करेंगे.
श्री ओमप्रकाश सखलेचा- एक सवाल यह है कि जिन्होंने गलत नामांतरण कर दिए हैं, उनके खिलाफ क्या कार्यवाही होगी ?
श्री दिलीप सिंह परिहार- कम से कम उन्हें मूलभूत सुविधायें तो मिल जायें.
उपाध्यक्ष महोदय- दिलीप सिंह जी आपकी बात आ गई है. माननीय मंत्री जी ने जवाब दिया है. एक बात और उन्होंने पूछी है कि जिनके गलत तरीके से नामांतरण हो गए हैं, उनके खिलाफ आप क्या कार्यवाही करेंगे ?
श्रीमती माया सिंह- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, क्योंकि मंत्रिमंडल का पुनर्गठन हुआ, इसी वजह से समिति का पुनर्गठन करके एक माह में उक्त प्रकार से सभी प्रकरणों को संज्ञान में लेकर जल्दी से जल्दी निर्णय किया जायेगा.
श्री दिलीप सिंह परिहार- बहुत- बहुत धन्यवाद मंत्री जी.
श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा- उपाध्यक्ष महोदय, नीमच के बंगला बगीचा की समस्या बहुत सालों से पेंडिंग थी. इस पर कई घोषणायें भी हुई. माननीय मुख्यमंत्री जी ने भी घोषणा की. सभी जनप्रतिनिधि बहुत समय से प्रयासशील थे. आपने खेत एरिया में आवासीय भवनों के नामांतरण की अनुमति दे दी है. लेकिन बंगला बगीचा के आवासीय भवनों के नामांतरण पर आपने रोक लगा रखी है. आप समय-सीमा बतायें कि कब तक ये रोक हटा ली जायेगी और मंत्रिमंडलीय उपसमिति इस पर कब तक निर्णय दे देगी और आप सभी समस्याओं का समाधान कर देंगे ?
श्रीमती माया सिंह- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने खेत और बगीचे के बारे में जो बताया है, उस पर भी हम उपरोक्त समिति की बैठक में निर्णय करेंगे. जितने भी विवादित नामांतरण के मामले हैं, जो शिकायतें हैं उसके निराकरण हेतु तो कलेक्टर भी सक्षम हैं. यदि इस संबंध में विधायक जी ने कोई लिखित शिकायत कलेक्टर को दी है तो कलेक्टर भी इसका निराकरण कर सकते हैं. महेन्द्र सिंह जी ने जो बात कही है, उसके परिपेक्ष्य में मैं पुन: अपनी बात दोहराना चाहती हूं कि एक माह के भीतर ही कमेटी की बैठक में आपके द्वारा उठाये गए बिंदुओं को रखेंगे. इस संबंध में विधि विभाग का अभिमत भी चार दिन पहले हमें प्राप्त हो चुका है. इन बिंदुओं पर विचार करके सकारात्मक कदम हम शीघ्र ही उठायेंगे. मंत्रिमंडलीय उपसमिति में भी यह मामला रखा जाएगा.
उपाध्यक्ष महोदय- मंत्री महोदय, कलेक्टरों को आप शासन स्तर से निर्देश दे दीजिए ताकि वे ऐसे प्रकरणों का निराकरण कर सकें.
श्रीमती माया सिंह- जी, माननीय उपाध्यक्ष महोदय.
श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा- पचास सालों से ये समस्या है, आप कुछ समय-सीमा बता दीजिये कि कब तक इसका समाधान होगा ?
श्रीमती माया सिंह- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, हमारे मंत्रिमंडल का पुनर्गठन हुआ है. पहले कमेटियां बनी थी, अभी विभागों में भी बदलाव हुआ है. उस दृष्टि से हम समिति का पुनर्गठन करके एक माह के अंदर बैठक में आपने जो बातें हमारे संज्ञान में लाई हैं, जो बिंदु सदन में रखे हैं, उस पर सकारात्मक चर्चा करके शीघ्र हल निकालेंगे.
श्री अशोक रोहाणी- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जो समस्यायें माननीय परिहार जी ने सदन में रखी हैं. वे लगभग सभी कैन्टोंमेंट बोर्ड में व्याप्त हैं. मेरे क्षेत्र में भी बगीचों को हटाने के लिए कैंटोंमेंट बोर्ड प्रयास करता है. लगभग तीन सौ एकड़ की जमीन राज्य शासन ने कैंटोंमेंट बोर्ड को दी थी. उसके बदले एक सौ तिरेपन एकड़ की जमीन पर बगीचावासी निवासरत हैं. अदला-बदली का यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास प्रस्तावित है. मेरा निवेदन है कि शीघ्र ही केन्द्र सरकार से जो अदला-बदली का प्रस्ताव है वह पास कराया जाए. दूसरा शासन की योजनाओं के लाभ के लिए जो मेरे पास उत्तर आया है उसमें कलेक्टोरेट में जो शासन की योजनाएँ संचालित होती हैं वह तो केंटोनमेंट बोर्ड को मिलती हैं लेकिन नगर पालिक निगम से संचालित योजनाओं का लाभ केंटोनेमेंट बोर्ड के निवासियों को नहीं मिलता है. हमारे जबलपुर में केंटोनेमेंट बोर्ड में लगभग पचास हजार लोग निवास करते हैं. मेरा माननीय मंत्री जी से निवेदन है कि उनके लिए अलग से कोई एक व्यवस्था करें ताकि वे लोग न भटकें.
श्रीमती माया सिंह-- माननीय उपाध्यक्ष जी, विधायक जी ने जो बात उठाई है मैं उनको बताना चाहती हूँ कि नगर पालिका निगम, जबलपुर द्वारा सिटी मिशन मैनेजमेंट सेल गठित किया गया है, जो कि केंटोनेमेंट बोर्ड की शासकीय योजनाओं के प्रभारी अधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित करके केंट क्षेत्र के नागरिकों को योजनाओं का लाभ प्रदान करें.
उपाध्यक्ष महोदय-- पर माननीय सदस्य का कहना यह है कि जो नगर पालिक निगम की योजनाएँ हैं उनका लाभ नहीं मिलता है. केंट क्षेत्र के नागरिकों को शासन की योजनाओं का लाभ तो मिलता है, यह उनका कहना है.
श्री अशोक रोहाणी-- उपाध्यक्ष महोदय, जो नगर पालिक निगम संचालित करता है उन योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है. जिलाध्यक्ष कार्यालय से जो योजनाएँ संचालित होती हैं उनका लाभ मिलता है.
श्रीमती माया सिंह-- माननीय उपाध्यक्ष जी, मैंने वही बात रखी कि नगर पालिका निगम जबलपुर द्वारा सिटी मिशन मैनेजमेंट सेल गठित किया गया है और केंटोनेमेंट बोर्ड के शासकीय योजनाओं के प्रभारी अधिकारी के साथ समन्वय स्थापित करके केंट क्षेत्र की जितनी भी नागरिकों की योजनाएँ हैं उनका लाभ उन्हें मिले और केंटोनेमेंट बोर्ड के क्षेत्र में सभी योजनाओं का लाभ लोगों को मिल रहा है, यह भी है और पूरक जानकारी में मैंने पहले इस बात को रखा भी है.
इंजीनियर प्रदीप लारिया(नरयावली)-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जैसा कि माननीय मंत्री महोदया ने बताया है कि एक सब कमेटी बना रहे हैं और उसकी बैठक भी जल्दी कर रहे हैं. इसमें मेरा सिर्फ इतना ही आग्रह है कि जो अभी रोहाणी जी कह रहे थे, यह बात सही है कि कई शासकीय योजनाओं का लाभ मिलता है और कई योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. एक बार सब कमेटी में इसका परीक्षण हो जाए. दूसरा, मध्यप्रदेश में तो पाँच छः केंटोनमेंट (छावनी) परिषद् हैं, पूरे देश में भी अस्सी के ऊपर छावनी परिषद् हैं. दिल्ली में और अन्य राज्यों में केंटोनमेंट क्षेत्र के विकास के लिए ग्राण्ट मिलती है और दिल्ली की राज्य सरकार अपने बजट में वहाँ के विकास और योजनाओं के लिए बजट का प्रावधान करती है. क्या यह सब कमेटी अन्य राज्यों का और दिल्ली का परीक्षण कराकर जो लाभ वहाँ के रहवासियों को मिल रहा है यह मध्यप्रदेश के केंटोनमेंट क्षेत्र के रहवासियों को भी मिलेगा? माननीय मंत्री जी से मैं उत्तर चाहूँगा.
श्रीमती माया सिंह-- माननीय उपाध्यक्ष जी, मैंने पूर्व में भी अपनी बात कही थी कि हम इस उप समिति का शीघ्र गठन करके बैठक आयोजित करेंगे और यहाँ जितने सम्माननीय विधायकों ने जो-जो सुझाव यहाँ दिए हैं और अभी लारिया जी ने जो बात कही है उस बैठक में उन सारी बातों को रख कर फिर निर्णय करेंगे, नियम के अनुसार निर्णय किया जाएगा.
श्री शैलेन्द्र जैन-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, सेम मेरा प्रश्न था जो नहीं आ पाया है. एक प्रश्न करने की अनुमति अध्यक्ष महोदय ने दी थी मेरे को...(व्यवधान)..
इंजीनियर प्रदीप लारिया-- उपाध्यक्ष महोदय, केंटोनमेंट क्षेत्र के विकास के लिए वहाँ कुछ प्रावधान हैं...
उपाध्यक्ष महोदय-- माननीय मंत्री जी, इनका स्पेसिफिक सुझाव है कि दूसरे राज्यों में केंटोनमेंट बोर्ड्स में जो सुविधाएँ मिल रही हैं क्या उनका परीक्षण करके अपने यहाँ लागू करेंगे?
श्रीमती माया सिंह-- बिल्कुल हम इस पर ध्यान देंगे और परीक्षण करके जो उनके हित में कदम उठाए जा सकते हैं. बिल्कुल ध्यान रखेंगे..(व्यवधान)..
इंजीनियर प्रदीप लारिया-- माननीय मंत्री महोदया, सरकार की जितनी भी योजनाएँ हैं उसका लाभ भी सुनिश्चित कराएँ.
श्रीमती माया सिंह-- सरकार की बहुत सारी योजनाओं का मैंने पूर्व में अपना वक्तव्य आपके सामने पढ़ा, उसमें बताया है बहुत सारी योजनाओं का लाभ लोगों को मिल रहा है.
श्री अशोक रोहाणी-- उपाध्यक्ष महोदय, मेरे एक प्रश्न का उत्तर अभी नहीं आया है कि केन्द्र सरकार में जो प्रस्ताव गया है अदला-बदली का उसके लिए प्रयास किए जाएँ. उसका उत्तर आ जाए.
उपाध्यक्ष महोदय-- अब उन्होंने स्पष्ट कह दिया है कि समिति की बैठक में उन सब चीजों को रखेंगे.
श्री अशोक रोहाणी-- मेरा बगीचों का प्रश्न है और जो प्रस्ताव केन्द्र सरकार को गया है उसमें प्रयास किए जाएँ बस इतना मेरा निवेदन है.
उपाध्यक्ष महोदय-- मंत्री जी ने यही कहा है कि बैठक में इन सब बिन्दुओं को रखेंगे और उसमें प्रयास करेंगे, उन्होंने अपने जवाब में कहा है.
श्री तरूण भनोत(जबलपुर-पश्चिम)-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपको धन्यवाद कि आपने बोलने के लिए समय दिया. मैं माननीय मंत्री महोदया से सिर्फ यह जानना चाहता हूँ कि जो केंटोनमेंट में आपने यह कहा कि हमने नोडल अधिकारी जो है उससे यह कहा है कि समन्वय बना कर काम करें. वह अलग बात हो गई. मैं प्वाईंटेड यह पूछना चाहता हूँ कि क्या राशि का प्रावधान किया जाएगा? जो राशि अभी नगर निगम को प्राप्त हुई है.जो नगर निगम के क्षेत्रों में खर्च करने के लिए है. क्या नगर निगम के पास अलग से राशि उपलब्ध कराई जाएगी ताकि वह राशि केन्टोनमेंट क्षेत्रों में व्यय की जा सके. या वह राशि कम करके केन्टोनमेंट क्षेत्र में खर्च की जाएगी.
श्रीमती माया सिंह--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं माननीय विधायक जी की इस बात का बाद में जवाब दूंगी क्योंकि इस बारे में मुझे विस्तृत जानकारी नहीं है विस्तृत जानकारी हासिल करके इस बात का जवाब दूंगी. लेकिन केन्टोनमेंट क्षेत्र में प्रमुख सचिव और आयुक्त के द्वारा हितग्राहियों के लाभ के संबंध में हम समीक्षा करेंगे और यदि उन्हें लाभ नहीं मिला है तो लाभ दिलवाया जाएगा.
श्री तरुण भनोत--उपाध्यक्ष महोदय, अगर राशि का प्रावधान नहीं किया जाएगा तो आप केन्टोनमेंट में लाभ कैसे देंगे.
श्रीमती माया सिंह--उस संबंध में देखेंगे.
उपाध्यक्ष महोदय--मंत्री जी ने कहा है आपको बाद में वे जानकारी दे देंगी अभी उनके पास जानकारी नहीं है.
श्री अशोक रोहाणी--उपाध्यक्ष महोदय, जो समन्वय समिति बनाई गई है उसने अपना कार्य करना शुरु कर दिया है इसके लिए मंत्री जी को बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री शैलेन्द्र जैन--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, छावनी परिषद् की धारा-243 (सी) के तहत जितने भी केन्टोनमेंट बोर्ड हैं उनको नगर पालिका के समान दर्जा देने का प्रावधान है. क्या यह लागू करेंगे ?
श्रीमती माया सिंह--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, समिति की जो बैठक होगी उस समिति की बैठक में इन सब बिंदुओं पर हम विचार कर लेंगे और नियम के अनुसार हित में जो भी कदम उठाए जा सकते हैं वह उठाए जाएंगे. इस बात के लिए यहां पर सहमति देना संभव नहीं है.
1.47 बजे
प्रतिवेदनों की प्रस्तुति
(1) सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति का इक्यानवेवां से एक सौ एक वां प्रतिवेदन
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया (सभापति)--उपाध्यक्ष महोदय, मैं सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति का इक्यानवेवां से एक सौ एक वां प्रतिवेदन सदन में प्रस्तुत करता हूँ.
(2) प्रश्न एवं संदर्भ समिति का आठवां, नौवां, दसवां, ग्यारहवां, बारहवां, तेरहवां एवं चौदहवां प्रतिवेदन.
श्री अंचल सोनकर (सभापति)-- उपाध्यक्ष महोदय, मैं, प्रश्न एवं संदर्भ समिति का आठवां, नौवां, दसवां, ग्यारहवां, बारहवां, तेरहवां एवं चौदहवां प्रतिवेदन प्रस्तुत करता हूँ.
1.48 बजे
याचिकाओं की प्रस्तुति
उपाध्यक्ष महोदय--आज की याचिकाएं पढ़ी हुई मानी जाएंगी.
1.49 बजे
संविहित संकल्प
(क) मध्यप्रदेश विधान सभा सदस्य वेतन, भत्ता तथा पेंशन अधिनियम, 1972 (क्रमांक 7 सन् 1973) के अधीन बनाए गए मध्यप्रदेश विधान मंडल यात्रा भत्ता नियम, 1957 में किए गए संशोधन संबंधी.
1.50 बजे
(ख) मध्यप्रदेश विधान सभा सदस्य, वेतन भत्ता, तथा पेंशन अधिनियम, 1972
(क्रमांक 7 सन् 1973)
1.52 बजे
(ग) मध्यप्रदेश विधान सभा सदस्य वेतन, भत्ता तथा पेंशन अधिनियम, 1972
(क्रमांक 7 सन् 1973)
1.54 बजे शासकीय विधि विषयक कार्य
उपाध्यक्ष महोदय:- विधान सभा की कार्यवाही अपराह्न 3.30 बजे तक के लिये स्थगित.
(1.55 बजे से 3.30 बजे तक अंतराल)
3.37 बजे {अध्यक्ष महोदय (डॉ.सीतासरन शर्मा) पीठासीन हुए.}
शासकीय विधि विषयक कार्य.
मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2016 (क्रमांक 13 सन् 2016)
उच्च शिक्षा मंत्री(श्री जयभान सिंह पवैया)--अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2016 पर विचार किया जाय.
अध्यक्ष महोदय--प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2016 पर विचार किया जाय.
श्री मुकेश नायक (पवई)--माननीय अध्यक्ष महोदय, संशोधन विधेयक सरकार ने सदन में प्रस्तुत किया है और संशोधन विधेयक के परिपत्र में ही लिख दिया है कि सदन चालू होने में समय था इसलिये दो महीने पहले इसका अध्यादेश जारी कर दिया गया. इस तरह से अध्यादेश को जारी करने का कोई औचित्य नहीं था इसको सदन में ही रखकर इस अधिनियम में संशोधन विधेयक लाने की आवश्यकता थी और नये विश्वविद्यालयों की अनुमति भी सदन में लाने की आवश्यकता थी. मैं माननीय मंत्री जी से आपके माध्यम से यह कहना चाहता हूं कि भविष्य में कभी भी इस तरह के संशोधनों की आवश्यकता हो तो विधान सभा का फोरम ही सबसे अच्छा होता है उसके बाहर अध्यादेश लाने की परम्परा हमें नहीं डालना चाहिये. दूसरी बात में कहना चाहता हूं कि पहले से ही मध्यप्रदेश में 20 निजी विश्वविद्यालय काम कर रहे थे आज 3 विश्वविद्यालयों को हमने अनुमति देने के लिये प्रस्ताव सदन में रखा है. इस तरह से मध्यप्रदेश में 23 निजी विश्वविद्यालय हो जाएंगे. सरकार ने यह कहा है कि निजी विश्वविद्यालय का उद्देश्य यह है कि ज्यादा से ज्यादा रोजगारोन्मुखी शिक्षा को प्रोत्साहित करना एक सम्यक और जनचेतना को शिक्षा के उद्देश्य में इसको जोड़ना. शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के जीवन में समझ और रोजगार दोनों में समन्वय है. सिर्फ रोजगार ही शिक्षा दे, यह शिक्षा अधूरी है और शिक्षा रोजगार न दे, यह शिक्षा भी अधूरी है. इस उद्देश्य से शिक्षा को समझ और रोजगार दोनों के समन्वय के साथ उसका प्रारूप तैयार करना होता है एवं शिक्षाविदों ने बार-बार इस बात को कहा है. मैंने यह बात इसलिए कही क्योंकि मैं माननीय मंत्री महोदय का ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा कि जब भी हम सदन में परंपराओं की श्रृंखलाओं को आगे बढ़ाते हैं तो परंपरा क्या रही है इस पर विचार करना आवश्यक होता है. मेरा उद्देश्य जब आप तीन नये विश्वविद्यालयों की स्थापना करने के लिए आ रहे हैं तो आप इस पर विचार करें कि पहले 20 निजी विश्वविद्यालय जो मध्यप्रदेश में आपने खोले हैं. वे क्या काम करते रहे हैं ? उनकी क्या कार्य-प्रणाली रही है ? आपने विनियामक आयोग का गठन किया. इस आयोग का यह उद्देश्य था कि शासन के द्वारा शिक्षा के परिसर में जो निर्धारित मापदण्ड हैं, उनका आकलन करें और वे मापदण्ड कोई भी आवेदक करता है या नहीं करता है, इसका आकलन करने के बाद यदि वह मापदण्डों में खरा उतरता है तो विश्वविद्यालय की सिफारिश राज्य सरकार को भेजे.
अध्यक्ष महोदय, मुझे आश्चर्य होता है कि पहले किस तरह से शिक्षा विभाग में काम होता रहा है. निर्धारित मापदण्ड है कि निजी विश्वविद्यालय के लिए 20 हेक्टेयर जमीन जरूरी है फिर आपने उसको घटाकर 10 हेक्टेयर कर दिया. लेकिन जब मापदण्डों में 20 हेक्टेयर जमीन थी तब मैं सी.ए.जी. की एक रिपोर्ट की तरफ आपका ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूँ कि यह कैसा विनियामक आयोग है जो इस बात को नहीं देखता है कि कोई भी आवेदक अपने निर्धारित मापदण्ड पूरा कर रहा है या नहीं कर रहा है. अगर विश्वविद्यालय में लायब्रेरी नहीं होगी, रिफरेंस लायब्रेरी नहीं होगी, लैब नहीं होगा, इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं होगा, खेल-मैदान नहीं होंगे तो फिर ये विश्वविद्यालय विद्यार्थियों को क्या शिक्षा देंगे ? आप देखिये, जो सी.ए.जी. ने टिप्पणी की है, मैं उसकी ओर माननीय मंत्री जी का ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा. यह भारत के नियंत्रक महालेखाकार परीक्षण का प्रतिवेदन दिनांक 21 मार्च, 2015 है, ‘‘मध्यप्रदेश विनियामक आयोग संबंधित जिला कलेक्टरों से प्रायोजी निकायों द्वारा प्रस्तुत भूमि संबंधी विवरणों के साथ अनुपालन प्रतिवेदन के सत्यापन हेतु निवेदन करता है. जिला कलेक्टरों के प्रतिवेदन की संवीक्षा में प्रकट हुआ कि 6 प्रायोजी निकायों के पास शैक्षणिक उद्देश्य हेतु 20 हेक्टेयर भूमि नहीं थी, 4 प्रायोजी निकायों के प्रकरण में उनकी सम्पूर्ण 20 हेक्टेयर भूमि शैक्षणिक उद्देश्यों के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिये थी, जबकि 2 प्रायोजी निकायों के पास क्रमश: 3.94 हेक्टेयर, 5.15 हेक्टेयर भूमि शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए थी. शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए अपेक्षित भूमि की अनुपलब्धता के बावजूद मध्यप्रदेश विनियामक आयोग ने अपने प्रतिवेदन में 6 निजी विश्वविद्यालयों की अनुशंसा राज्य सरकार से की. विभाग ने भी प्रायोजी निकायों द्वारा इन कमियों को दूर किया जाना सुनिश्चित किये बिना ही उनकी स्थापना कर दी.’’ इतना ही नहीं किसी भी नये विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए जरूरी होता है कि विनियामक आयोग की सिफारिशों के बाद 90 दिन की कार्यावधि में उच्च शिक्षा अनुदान आयोग के द्वारा उस विश्वविद्यालय का निरीक्षण होता है, पूरी यू.जी.सी. की कमेटी आती है और वह कमेटी, विश्वविद्यालय निर्धारित मापदण्डों को पूरा करता है या नहीं करता है, इसका आकलन करती है.
अध्यक्ष महोदय, मैं आपका ध्यान सी.ए.जी. की रिपोर्ट की टिप्पणी की तरफ आकर्षित करता हूँ कि ‘अधिनियम की धारा 8.5 के अनुसार राज्य सरकार आशय पत्र पर, अनुपालन प्रतिवेदन पर, मध्यप्रदेश विनियामक आयोग से प्रतिवेदन प्राप्त होने के पश्चात् यू.जी.सी. से प्रस्तावित निजी विश्वविद्यालय का निरीक्षण करने का अनुरोध करेगा अन्यथा राज्य सरकार ऐसा निर्णय कर सकेगी कि जैसा वह उचित समझे.’ उच्च शिक्षा विभाग ने प्रस्तावित निजी विश्वविद्यालय श्री सत्य सांई प्रौद्योगिक एवं चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, सीहोर की अधोसंरचना भवन, भूमि, स्टॉफ, पुस्तकालय एवं पाठ्यक्रमों की स्थिति के निरीक्षण हेतु सचिव, यू.जी.सी. नई दिल्ली से अनुरोध किया था. निरीक्षण हेतु सचिव यू.जी.सी. नई दिल्ली को 06-07-2013 को अनुरोध किया था प्रस्तावित निजी विश्वविद्यालय के निरीक्षण हेतु यू.जी.सी. से किये गये अपने अनुरोध के तीन माह की समाप्ति के पूर्व ही विभाग ने 17-09-2013 को निजी विश्वविद्यालय की स्थापना कर दी आप तीन महीने इंतजार नहीं कर सकते थे? अगर तीन महीने यू.जी.सी. की टीम आकर निरीक्षण नहीं करती तो उसके बाद मध्यप्रदेश सरकार को यह अधिकार था कि उस विश्वविद्यालय की स्थापना की आप अनुमति दें लेकिन तीन महीने खत्म नहीं हुए और आर.के.डी.एफ. जिसने चार विश्वविद्यालय पहले ही मध्यप्रदेश में बना लिए उस यूनिवर्सिटी को आपने अनुमति दे दी यू.जी.सी. की टीम की सिफारिश के बगैर जो बिलकुल भी आपके अधिनियम के विरूद्ध है मान्य परम्पराओं के विरुद्ध है और जो किसी भी शिक्षा संस्थान का जो एक्सीलेंस होता है, उसकी जो उत्कृष्टता होती है उसके भी विरुद्ध है इस तरह का काम निजी विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए किया. इतना ही नहीं माननीय अध्यक्ष महोदय, आपने निजी विश्वविद्यालय को जो सीट निर्धारित की है, आर.के.डी.एफ. यूनिवर्सिटी को बी.एड. और डी.एड. और एम.एड. की पांच सौ सीट अलॉट की है. उन्होंने पांच हजार बच्चों को परीक्षा में बैठा दिया और डिग्रियां बांट दीं. आर.के.डी.एफ. में, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में पांच हजार बच्चे फर्स्ट इयर में फेल हो गए थे.
अध्यक्ष महोदय—यह विषय परिवर्तन है.
श्री मुकेश नायक—मैं एक्ट पर बोल रहा हूं. विश्वविद्यालय की स्थापना को लेकर विनियामक आयोग और यू.जी.सी. के बारे में जो लिखा है मैं उसी पर बोल रहा हूं. वही विषय है.
अध्यक्ष महोदय—यह जो एक्ट है इसमें तीन विश्वविद्यालय जिनको कि अध्यादेश द्वारा लाया गया था उनको अब एक्ट बनाया जा रहा है.
श्री मुकेश नायक—मैं इसी का विरोध कर रहा हूं कि आपने इससे पहले जो 20 निजी विश्वविद्यालय बनाए हैं क्या वह काम कर रहे हैं, इसका क्या औचित्य है. अगर उसका कोई औचित्य नहीं है तो यह तीन विश्वविद्यालय क्यों बनाए जा रहे हैं. मैं यह कहना चाहता हूं और इसीलिए यह प्रासंगिक हो जाता है, रिलेवेंट हो जाता है और यह एक्ट की चर्चा का हिस्सा बन जाता है. आप देखिए कि पांच हजार बच्चे जो राजीव गांधी यूनिवर्सिटी में फेल हो गए थे. पांच हजार बच्चों को माइग्रेशन सार्टिफिकेट नहीं मिला. उनको टी.सी. नहीं मिली, वह परीक्षा में फेल हो गए. और उनको आर.जी.पी.वी. और दूसरे निजी विश्वविद्यालयों ने अपने यहां एडमिशन दे दिया. पहली बात तो यह है कि कोई भी इंजीनियरिंग कॉलेज का बच्चा है जब फर्स्ट इयर में वह फेल हो जाता है तो उसको कोई यूनिवर्सिटी अपने यहां इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन कैसे दे सकती है. यह अपने आप एक्ट का वाएलेशन है. अपने आप यह नियमों का उल्लंघन है. मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि जिस तरह से निजी विश्वविद्यालय निरंकुश और स्वेच्छाचारी हो गए हैं. जिस तरह से निजी विश्वविद्यालय एक व्यावसायिक अड्डे बन गए हैं. इसके कारण जिस उद्देश्य से आप शिक्षा संस्थानों को बनाते हैं, जिस उद्देश्य से आप विश्वविद्यालयों को बनाते हैं वह शिक्षा का उद्देश्य आपका पूरा नहीं हो रहा है. आज आइसेक्ट यूनिवर्सिटी की चर्चा करें. आइसेक्ट यूनिवर्सिटी आपने बनाई, मध्यप्रदेश की सरकार ने इग्नू से एक एग्रीमेंट किया कि मध्यप्रदेश में पंद्रह हजार शिक्षकों को हम डी.एड. कराएंगे. इग्नू और भोज विश्वविद्यालय डिस्टेंस एज्यूकेशन के सेंटर पाइंट हैं. यह दूरस्थ शिक्षा प्रणाली के विश्वविद्यालय हैं. जहां बच्चे रोजमर्रा की पढ़ाई में शामिल नहीं होकर केवल परीक्षा केन्द्रों पर परीक्षा देने के लिए जाते हैं. और उन्हें डिग्रियां मिलती हैं. यह उन बच्चों के लिए है जो ड्राप रेट में आ गए हैं. जो किसी न किसी कारण से शिक्षा की निरंतरता से नहीं जुड़ पाते हैं उन बच्चों के लिए हमने एक डिस्टेंस एज्यूकेशन के कंसेप्ट को इंट्रीड्यूस किया है और उसके दो बड़े केन्द्र भारत में हैं. एक इग्नू यूनिवर्सिटी और दूसरी भोज यूनिवर्सिटी इग्नू से आपकी सरकार ने एग्रीमेंट कर लिया कि पंद्रह हजार सरकारी शिक्षकों को डी.एड. की परीक्षा कराएंगे और इग्नू ने उसमें से पांच हजार टीचर के एक्जामिनेशन को आइसेक्ट यूनिवर्सिटी को आउटसोर्स कर दिया. आपके एक्ट में कहीं ऐसा लिखा है क्या कि एक यूनिवर्सिटी अपने विद्यार्थियों की परीक्षा को दूसरे यूनिवर्सिटी के लिये आउट सोर्स कर देगा. हमने एडमिशन दिया, हम उसको दूसरे विश्वविद्यालय में कैसे परीक्षा में बिठाल सकते हैं. यह आउट सोर्स एक्सामिनेशन के लिये पहली बार है कि कोई बच्चों को एक्सामिनेशन के लिये किसी दूसरी यूनिवर्सिटी आउट सोर्स कर दे. यह तो हमने पूरी दुनिया में कभी सुना नहीं. भोपाल की आईसेक्ट यूनिवर्सिटी को 5 हजार शिक्षकों की एक्सामिनेशन के लिये उनको अनुमति दे दी. करोड़ों रुपये, सौ करोड़ से ज्यादा, एक शिक्षक से 40 हजार रुपये से ज्यादा फीस ली. आप अंदाज लगा लीजिये कि 5 हजार शिक्षकों की फीस कितनी हुई और उनकी एक साल की परीक्षा कराई एवं दूसरे साल परीक्षा कराई ही नहीं. आज तक वह लोग फीस देने के बाद भटक रहे हैं, उनके एक्सामिनेशन के लिये आईसेक्ट यूनिवर्सिटी को उनका कोर्स कम्पलीट करवाना था, वह कोर्स कम्पलीट नहीं करवाया. मेरे कहने का आशय यह है कि निर्धारित मापदंड, शिक्षा के उद्देश्य, इन तमाम चीजों को लेकर के अगर आप निजी विश्वविद्यालय और निजी क्षेत्र में शिक्षा को प्रोत्साहन देंगे, तो आपके लिये उपयोगी रहेगा. अगर निर्धारित मापदंड, समाज के उद्देश्य और शैक्षणिक व्यवस्था की उत्कृष्टता इसको अनदेखा करके अगर निजी क्षेत्र में शिक्षा को आपने प्रोत्साहित किया तो आपका वह उद्देश्य पूरा नहीं होगा, जिस उद्देश्य से शैक्षणिक संस्थान तैयार किये जाते हैं. राष्ट्रीय दायित्व के लिये, रोजागर, समझ के लिये और भारत वर्ष का एक जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिये जिन शिक्षा परिसरों को हम उत्तरदायी बनाते हैं, वह अधूरे रह जायेंगे, यही मेरा कहना है. मंत्री जी, आपने नया-नया कार्यभार संभाला है. इसलिये मैं इन तमाम अव्यवस्थाओं के लिये आपको जिम्मेदार नहीं मानता हूं. मुझे आपसे बहुत उम्मीद है, आप एक संजीदा व्यक्ति हैं, पढ़े लिखे, समझदार व्यक्ति हैं. आप इस शिक्षा के महत्वपूर्ण दायित्व को सम्भालने के बाद अपने शिक्षा संस्थानों में पूरे शैक्षणिक वातावरण में, केम्पस कल्चर में और यूनिवर्सिटीज में आप परिवर्तन लायेंगे, ऐसी मैं आपसे उम्मीद करता हूं. बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया(मंदसौर) -- अध्यक्ष महोदय, मैं मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक,2016 (क्रमांक 13 सन् 2016) का समर्थन करता हूं. अध्यक्ष महोदय, मैं मंत्री जी का हृदय से धन्यवाद इसलिये ज्ञापित करना चाहता हूं कि मध्यप्रदेश में विभिन्न श्रेणियों की शिक्षा को लेकर के एक वातावरण निर्मित हुआ है, एक विश्वास जागृत हुआ है. विश्वविद्यालय की स्थापना से व्यवस्थाओं में सुधार हो और कहीं न कहीं उन तमाम जिम्मेदार संस्थाओं के ऊपर, जिसकी प्रस्तावना या जिसकी कल्पना अधिनियम के अधीन गठित विनियामक आयोग समय समय पर ऐसे विश्वविद्यालयों की स्थापना को लेकर अनुशंसा करता है. उन अनुशंसाओं को गुण-दोष के आधार पर तय करते हुए जब सदन में विधेयक की बात आती है, तो पूरे मध्यप्रदेश में यदि आप देखेंगे, मुकेश नायक जी ने जिन पूर्व से गठित 20 विश्वविद्यालयों का जो उल्लेख किया है, मैं भी इनका अध्ययन कर रहा था. ऐसा कोई क्षेत्र, विषय और ऐसा कोई निजी विश्वविद्यालय, जिसकी स्थापना या जिसकी अनुमति चलते चलते यूं ही नहीं दे दी गई है. उसके पीछे कोई ठोस कारण है. उसके पीछे वह तमाम व्यवस्थाएं हैं और उसके पीछे चलाने वाले, संचालन करने वाले उन लोगों की सहभागिता है और उसमें चाहे गुना,भोपाल, ग्वालियर, इंदौर, मंदसौर हो. इन अन्यान्य शहरों में जिस विधान की, जिस विधायिका की मंशा के अनुरुप यदि कोई संस्था इस स्थिति में आन पड़ी है और शासन से उन नियमावली के अंतर्गत यदि मंशा रखती है कि विश्वविद्यालय का दर्जा मिले और उसी श्रृंखला के तहत श्रृंखलाबद्ध तरीके से बीस पूर्व गठित विश्वविद्यालयों का गठन हुआ और आज जिस विधेयक पर हम चर्चा कर रहे हैं, सुदूर वनवासी आदिवासी अंचल, जहां छिन्दवाड़ा में अभी कोई विश्वविद्यालय ही नहीं है और न कोई निजी विश्वविद्यालय है. कहा जाता है कि छिन्दवाड़ा के बारे में बहुत विचार करते हैं, बहुत चिन्ता करते हैं, छिन्दवाड़ा तो बिलकुल स्वर्ग है, धरती पर चांद सितारे उतर गए हैं, छिन्दवाड़ा में कोई कमी नहीं है और वर्तमान सरकार यह सदन.
श्री बाला बच्चन – आप कब गए थे छिन्दवाड़ा, मैं समझता हूं कि छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश के मॉडल जिले के रूप में हैं और छिन्दवाड़ा संसदीय क्षेत्र जाकर देख लेना आप.
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया – मैं गया तो नहीं हूं, बाला भाई, लेकिन दूर के ढोल सुहाने, हाथी के दांत खाने के कुछ और दिखाने के कुछ.
श्री बाला बच्चन – वह कहावत इस पर चरितार्थ नहीं होती, आप जाकर देखना, इस पर,तब फिर बात करेंगे.
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया – आज के इस विषय के संदर्भ में यह विधेयक आता है तो हम सबको मिलकर के उसका स्वागत करना चाहिए. जीएस राय सोनी एजुकेशन मेडीकल रिसर्च फाउंडेशन, ग्राम सांईखेड़ा जिला छिन्दवाड़ा को यह सौभाग्य प्राप्त होने जा रहा है, जिसके बारे में हम चर्चा कर रहे हैं. इसी चर्चा में इंदौर जैसे महानगर को जो व्यवसायिक, आर्थिक रूप से सम्पन्न राजधानी कही जाती है, जहां विकास के अंधोसंरचना के क्षेत्र में आज इंदौर का नाम है. डीसी विश्वविद्यालय इंदौर, जिसको डेली कालेज कहा जाता है और यह प्रसन्नता की बात है कि उस डेली कालेज में पढ़ने वाले छात्र राजनीतिक के क्षेत्र में उंचाईयों पर गए होंगे, उद्योग, व्यापार के जगत में उन्होंने उंचाईयां छुआ होगा, खेल जगत के क्षेत्र में डेली कालेज से निकले हुए छात्र छात्राओं ने इस प्रदेश का और देश का नाम गौरवान्वित किया होगा. डेली कालेज के बारे में आज भी कहा जाता है कि इसके प्रवेश के लिए जो गुणवत्ता है, जो व्यवस्था है, जो वहां का संचालन है और आज इस बात की प्रसन्नता भी है कि जो डेली कालेज है, उसे डेलीकालेज का जो ट्रस्ट है, उस ट्रस्ट का सफल संचालन करने का दायित्व भी हमारी अपनी इस विधानसभा की माननीय सदस्य महोदया मेरे समक्ष मेरे पास विराजित है, माननीय श्रीमती गायत्री राजे पवार, वे उनकी अध्यक्ष हैं, यह हमको गर्व करना चाहिए, इसलिए कि हमारी विधानसभा की सम्मानित सदस्या का परिवार वर्षों से इस ट्रस्ट का सफल संचालन कर रहे हैं और आज उसको विश्वविद्यालय का दर्जा दिए जाने को लेकर के यहां पर विधेयक के माध्यम से चर्चा कर रहे हैं. माननीय अध्यक्ष महोदय, जैसा कि मैंने कहा कि तीन विधेयक आ रहे हैं, तीन में से दो का सौभाग्य मिला है, इंदौर महानगर को देवी अहिल्या की वह नगरी जो विकास की उंचाईयों को छू रही है, इंदौर के नवनिर्मित मार्ग पर जो एअरपोर्ट पर जाता है, गांधीनगर की तरफ जाता है, लवकुश चौराहा से अरविंदो अस्पताल के पास से बड़ा वाणगढ़ा, तहसील हातोद लगती है, वहां पर सिम्बोसिस यूनिवर्सिटी ऑफ एम्पलाइड साइंसेज इज इंदौर को भी विश्वविद्यालय का दर्जा दिए जाने को लेकर के हम इस सदन में चर्चा कर हैं. माननीय अध्यक्ष महोदय इसका औचित्य है, विभिन्न विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग प्रकार की स्थितियां- परिस्थितियां निर्मित होती है, जिस शहर का मैं प्रतिनिधित्व करता हूं, मंदसौर का वहां पर एमआईटी कालेज है, मंदसौर इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नॉलाजी, स्वर्गीय भंवरलाल नाहटा, स्मृति संस्थान उसका नाम है. कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं, पूर्व सांसद रहे हैं, उनके पुत्र विधानसभा में दस वर्ष तक कांग्रेस की ओर से मंत्री रहे हैं, इन बीस सूची में उसका भी नाम है, अलग अलग स्थान पर अलग अलग परिस्थितियां है और उसके आधार पर यह सुनिश्चित होता है कि विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त करने वाला व्यक्ति कौन है, संस्थाएं कौन हैं, उनका कामकाज करने का तौर-तरीका क्या है, वे किस प्रकार से उसको आगे चला पाएंगे. यह अलग बात है मुकेश जी ने इस ओर ध्यान दिया है कि इसके गठन के बाद और उसकी व्यवस्था के….
(4.00 बजे) उपाध्यक्ष महोदय (डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह) पीठासीन हुये.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया (जारी)-- कहीं न कहीं चर्चा उस पर होना चाहिये, कहीं न कहीं अंकुश भी होना चाहिये, समय-समय पर इसकी मॉनीटरिंग भी होना चाहिये, आपकी बात से मैं सहमत हूं, लेकिन इस बात को मैं कहना चाहता हूं कि यह वह सरकार है जिसने निजी विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देने को लेकर के जिस तरह से औचित्यता प्रदान की है, अब रायसौली विश्वविद्यालय छिंदवाड़ा जिसकी दरकार है कि उनको निजी विश्वविद्यालय का दर्जा मिल जाये. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, गुणवत्ता परख रोजगारोन्मुखी शिक्षा उपलब्ध कराने को लेकर के एक महत्वपूर्ण कदम छिंदवाड़ा क्षेत्र में होगा. मैंने पूर्व में भी कहा कि मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में कोई पारंपरिक शासकीय विश्वविद्यालय है ही नहीं और न वहां पर अभी तक कोई निजी विश्वविद्यालय की स्थापना हुई है. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, इस शिक्षा समूह के जो संचालक हैं उसके अध्यक्ष हैं श्री सुनील राय सोनी, शिक्षा के क्षेत्र में पूरे देश में वे प्रतिष्ठित नामचीन व्यक्ति हैं, जिनका समर्पण भाव, जिनका अनुभव, यह संस्था 1958 से महाराष्ट्र से प्राथमिक से लेकर के उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण संस्थाओं का सुव्यवस्थित प्रबंधनीय अभियांत्रिकी विधि, विज्ञान आदि पाठ्यक्रमों को शामिल करते हुये संचालन कर रही है. इस संस्था में 9 से ज्यादा कैम्प में 30 शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से 25 हजार से अधिक विद्यार्थी अध्ययनरत हैं. ऐसी संस्था का कोई संस्थागत अध्यक्ष आपसे, हमसे अपेक्षा करते हैं और इस उम्मीद के साथ कि इसको दर्जा मिलेगा तो मध्यप्रदेश में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के साथ-साथ कौशल विकास के संबंध में पाठ्यक्रमों का भी संचालन किया जायेगा. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, इसी प्रकार से मैंने डेली कॉलेज के बारे में यहां उल्लेख किया. वर्ष 1870 में इंदौर जैसे शहर में इस संस्थान की स्थापना हुई थी. सर हेनी डेली द्वारा रेजीडेंस स्कूल के रूप में इसकी स्थापना की गई थी. उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निश्चित रूप से जो इसकी गुणवत्ता है, इसकी कार्यकुशलता है हम सब उसकी प्रशंसा सुनते हैं. जिस प्रकार से वहां पर शिक्षा का पाठ्यक्रम सुनिश्चित है, जिस प्रकार से वहां पर व्यवस्थायें सुव्यवस्थित हैं, एक उत्कृष्ट मानव संसाधन का सृजन करने की ताकत डेली कॉलेज रखता है. मैं विशेष रूप से माननीय मुख्यमंत्री जी का धन्यवाद देना चाहता हूं. इंदौर के एक कार्यक्रम में डेली कॉलेज में उन्होंने विश्वविद्यालय में परिवर्तन करने को लेकर के क्या प्राथमिकता दी जायेगी, यह सार्वजनिक रूप से माननीय मुख्यमंत्री जी ने अपनी भावनाओं को प्रतिपादित किया था और इस बात की घोषणा की थी कि यदि आवश्यकता पड़ी और प्रबंधन यदि निजी विश्वविद्यालय की ओर होने का मन बनायेगा तो मैं आपको मुख्यमंत्री के नाते आश्वस्त करता हूं, ऐसा माननीय मुख्यमंत्री जी ने सार्वजनिक रूप से उस कार्यक्रम में कहा था. आज उनकी बात यहां सार्थकता लिये हो रही है और माननीय मुख्यमंत्री जी की घोषणा आज इस विधेयक के माध्यम से पूरी होने जा रही है. माननीय मुख्यमंत्री जी का भी और माननीय उच्च शिक्षा मंत्री आदरणीय पवैया जी को भी मैं हृदय से बधाई देना चाहता हूं, धन्यवाद देना चाहता हूं.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, यह प्रसन्नता का विषय है कि इंदौर जैसे शहर में ही जहां एक ओर जिस प्रकार से आर्थिक उन्नति को लेकर के, प्रगति को लेकर के, विकास को लेकर के, सिम्बायोसिस एम्प्लाइड साइंसेस को लेकर के जो इंदौर शहर तरक्की कर रहा है, माननीय अध्यक्ष महोदय, इस फाउंडेशन के जो अध्यक्ष हैं वह पद्मविभूषण उपाधि से सुशोभित हैं, ऐसे प्रोफेसर एस.बी. मजूमदार हैं जिन्होंने पुणे में, बैंगलौर में, नोएडा में, नासिक में कौशल विकास के क्षेत्र में प्रबंधन के क्षेत्र में विश्वस्तरीय संस्थाओं का संचालन किया. ऐसी संस्थाओं के संस्थागत अध्यक्ष यदि उम्मीद करें, अपेक्षा करें, मध्यप्रदेश में जो वातावरण है उस वातावरण को लेकर के यदि वे उम्मीद से लबरेज हों और इस सदन से इस विधेयक के माध्यम से अगर यह संस्था अपेक्षा करती है तो मैं समझता हूं हमारे लिये गर्व का विषय होगा. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, इस संस्था के शैक्षणिक संस्थाओं के माध्यम से पिछले 38 वर्षों में 43 शैक्षणिक संस्थाओं के माध्यम से गुणवत्ता परख शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है. विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से 27 हजार से ज्यादा देशी व विदेशी छात्र,छात्राएं अध्ययन कर रहे हैं. एक लाख से ज्यादा विद्यार्थी दुरवर्ती शिक्षा के क्षेत्र के माध्यम से लाभान्वित हो रहे हैं. इस संस्था की इन्दौर में स्थापना होने से विद्यार्थियों को औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्र में,विकास के क्षेत्र में,आई.टी. के क्षेत्र में, रिटेल के क्षेत्र में और आधुनिकतम रोजगारमूलक विषयों में डिग्री,डिप्लोमा और सर्टिफिकेट के माध्यम से पाठ्यक्रम उपलब्ध होंगे. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, प्रदेश के छात्रों को शिक्षा के क्षेत्र में विश्वस्तरीय अधोसंरचना एवं मूलभूत सुविधाओं के साथ-साथ इन विशिष्ट पाठ्यक्रमों को पढ़ने का मौका मिलेगा. प्रस्तावित विश्वविद्यालय व्यवहारिक विज्ञान एवं तकनीक के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के कल कारखानों में कार्य करने हेतु सुयोग्य मानव संसाधन उपलब्ध कराएगा. यह मानव संसाधन उपलब्ध कराने का एक योजनाबद्ध व्यवस्थित संस्थान है. संस्थान ने कम्युनिटी कालेज के माध्यम से शिक्षा से वंचित ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं एवं अन्य उपेक्षित वर्गों हेतु कौशल विकास से संबंधित प्रशिक्षण एवं शिक्षा प्रदान करने के लिये प्रतिबद्धता दिखाई है. यह एक सकारात्मक कदम है और इसको लेकर मैं समझता हूं कि जो विधेयक निजी विश्वविद्यालयों को लेकर आया है इसकी मैं भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूं और इसका समर्थन करते हुए माननीय मुख्यमंत्री जी और उच्च शिक्षा मंत्री पवैया जी को हृदय से बधाई देना चाहता हूं धन्यवाद देना चाहता हूं.माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपने बोलने का अवसर दिया बहुत-बहुत धन्यवाद.
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष(श्री बाला बच्चन) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना एवं संचालन से संबंधित जो संशोधन विधेयक आया है इस पर मैं अपनी बात रख रहा हूं. निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना में पहले भी पैसे का काफी लेनदेन हुआ है और बहुत भ्रष्टाचार होता है. मैं बताना चाहता हूं और आपके माध्यम से सरकार की जानकारी में लाना चाहता हूं कि उपयुक्त जमीन नहीं है,भवन नहीं है,संसाधन नहीं है,स्टाफ नहीं है, उसके बावजूद भी इन निजी विश्वविद्यालयों को धड़ल्ले से अनुमति दी जाती है. माननीय मंत्री जी अभी आप नये-नये मंत्री बने हैं इसको आप देखें और इसीलिये शासन को विनियामक आयोग,मतलब विषय खोलने और कोर्स खोलने के लिये विनियामक आयोग विधेयक लाना पड़ा है. अगर सब कुछ ठीक-ठाक चलता तो यह विधेयक नहीं लाना पड़ता. उसके बाद भी आये दिन निजी विश्वविद्यालयों की आये दिन अनुमति दी जा रही है. जहां निजी विश्वविद्यालय स्थापित होना हैं वहां जमीन है कि नहीं, भवन है कि नहीं है और भवन है तो कितने वर्गफीट का है जमीन कितनी लगती है. जो भी निजी विश्वविद्यालय की स्थापना के लिये जरूरी चीजें होती हैं वह नहीं होतीं, उसके बावजूद भी अनुमति दी जाती है. जो जमीन जिसका रकबा,खसरा नंबर सब होना चाहिये और जितने वर्गफीट का भवन बनता है उसमें प्रयोगशाला है कि नहीं है, लायब्रेरी है कि नहीं इसके अलावा खेलने का मैदान,बगीचा,कांफ्रेंस हाल यह जो तमाम चीजें निजी विश्वविद्यालयों से संबंधित लगती हैं नहीं होने के बाद भी अनुमति दे दी जाती है. जैसा मैंने पहले कहा कि इसमें काफी पैसे का लेनदेन और भ्रष्टाचार होता है और अभी तक हमने दर्जनों निजी विश्वविद्यालयों को इसी सदन से अनुमति दी है लेकिन उसके रिजल्ट क्या हैं. शिक्षा के नाम पर इन्होंने लूट मचा रखी है. आपने सदन में चर्चा भी नहीं कराई जैसा अभी नायक जी ने बोला था कि सदन में बिना चर्चा के ही मंजूरी दे दी है इस चीज का आप ध्यान रखें. वैसे मध्यप्रदेश में आप बिना सदन की अनुमति के निजी विश्वविद्यालयों को अनुमति देंगें तो इसके रिजल्ट अच्छे नहीं आयेंगे. बड़े दुख की बात है कि आये दिन हम लोगों की जानकारी में है और उसके बाद अखबारों में भी यह चीजें छपती आई हैं कि मध्यप्रदेश जो डिग्री बेचने वाला बहुत बड़ा प्रदेश बन चुका है. मैं आपको बताना चाहता हूं कि जो डिग्रियां हैं पैसा बोलो और माल लो. इस तरह ग्रेज्युएशन और पी.एच.डी की डिग्रियां तक मध्यप्रदेश में बिकती हैं. कम से कम आप इस पर रोक लगवायें और जिस तरह से मध्यप्रदेश में शिक्षा से संबंधित जो माहौल और वातावरण बन गया है, डिग्रियां जो बिकने लग गई हैं, इस पर आप रोक लगवायें. जब तक आप सदन को विश्वास में नहीं लेंगे और सदन की जानकारी में यह बात नहीं आयेगी, तब तक ऐसे ही निजी विश्वविद्यालयों को अनुमतियों देते रहेंगे, और यह सब चलता रहेगा.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, हम आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से यह भी जानना चाहते हैं कि यह तीनों जो निजी विश्वविद्यालय स्थापित होना है उसके लिये आपने कितनी जमीन दी है, वह कितने कीमत की जमीने हैं, उसमें निजी विश्वविद्यालयों का कितना पैसा लगा है ? जहां तक मेरी जानकारी में है एक जगह लगभग पांच सौ करोड़ रूपये की जमीन सरकार ने मुफ्त में दी है, कम से कम यह नुकसान न कराये. ठीक है, शिक्षा का स्तर भी इसमें सुधरना चाहिए बाकी शिक्षा के नाम पर जो लूट मचा रखी है, इस पर आप ध्यान दें. इस पर आप कसावट करें, जिस तरह पहले एक समय हमारे मध्यप्रदेश के स्टूडेंटस के शिक्षा के स्तर का पूरा लोहा देश मानता था, वह आज कहीं न कहीं कमजोर और कम होता जा रहा है, इस पर भी माननीय मंत्री जी आप इस बात का ध्यान रखें.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जहां तक निजी विश्वविद्यालय स्थापित कर रहें है, उनमें असेट्स कितने लगे हैं और सरकार से कितने जमीन के रूप में ले रहे हैं. जहां तक मैंने आपको बताया है कि 500-500 करोड़ रूपये तक की जमीन इन निजी विश्वविद्यालय स्थापित करने वालों को मुफ्त में दी जाती है. मैं समझता हूं कि यह प्रदेश का दुर्भाग्य है. इन सभी पहलुओं का आप ध्यान दें और प्रदेश का किसी तरह से नुकसान न होने दें. नौजवानों को अच्छी क्वालिटी की शिक्षा देंगे तो मैं समझता हूं कि यह ज्यादा बेहतर होगा, यही मेरा सुझाव और विचार है. धन्यवाद.
उपाध्यक्ष महोदय - माननीय मंत्री जी.
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री जयभान सिंह पवैया) - मान्यवर उपाध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना और संचालन) संशोधन अधिनियम 2007 के अंतर्गत प्रदेश में निजी संस्थाओं द्वारा शिक्षा के बेहतर सुविधाएं एवं गुणवत्ता लाये जाने के उद्देश्य से निजी विश्वविद्यालय स्थापित किये जा रहे हैं. चूंकि अधिनियम की धारा 9.1 के तहत निजी विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिये अधिनियम 2007 की अनुसूची में संशोधन करना होता है. जून जुलाई से अकादमिक सत्र प्रारंभ होने से विद्यार्थी हित में और जनहित में निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना अकादमिक सत्र के दृष्टिकोण से आवश्यक थी और इसलिए जी.एच.रायसोनी निजी विश्वविद्यालय, छिंदवाड़ा डी.सी. निजी विश्वविद्यालय इंदौर और सिंबायसिस यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लायड साइंसेज इंदौर की स्थापना संशोधन अध्यादेश 2016 के तहत की गई, इसका राजपत्र में प्रकाशन किया गया. अभी हमारे माननीय सदस्य ने तीनों विश्वविद्यालयों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और मैं सोचता हूं कि उसके बारे में बहुत बोलने की आवश्यकता नहीं है. सदस्य सहमत होंगे कि भूमंडलीकरण के इस दौर में हम शिक्षा के दरवाजे बंद नहीं कर सकते हैं. यह विचारों के आदान- प्रदान का सदन है. अभी मान्यवर नायक जी और मान्यवर बाला बच्चन जी ने कुछ सुझाव और कुछ बिंदु हमारे सामने लाये हैं. मैं बहुत खुले दिमाग से और सकारात्मक दृष्टिकोण से रचनात्मक सुझावों का स्वागत करने का हामी हूं. (मेजों की थपथपाहट) हम सब की चिंता का केंद्र बिंदु छात्र होता है. किसी अस्पताल का मूल्यांकन करना हो तो भवन से नहीं होगा, कितने डॉक्टर हैं, इससे नहीं होगा लेकिन मरीज का इलाज कैसा हो रहा है, इससे होगा. इसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों को देखकर ही हम मूल्यांकन कर सकते हैं. मैं सहमत हूं इन सब बातों से हम सुधार भी करेंगे और अपने द्वार भी शिक्षा विस्तार के लिये खुले रखेंगे. कुछ बिन्दु नायक जी ने हमारे सामने लाये हैं. जो अध्यादेश लाना पड़ा उसका कारण मैंने निवेदित किया कि अकादमिक सत्र जुलाई से प्रारंभ होना था इसलिए आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए अध्यादेश लाना पड़ा और इसलिए भी क्योंकि संपूर्ण देश का (जीआर) सकल पंजीयन अनुपात 23.6 प्रतिशत है. मध्यप्रदेश का 19.6 प्रतिशत है. सीमित संसाधनों के कारण और बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण शिक्षण की जरुरतों के कारण बढौत्री बहुत आवश्यक है. निजी शिक्षण संस्थानों के द्वारा रोजगारोन्मुखी और व्यावसायिक स्व वित्तीय पाठ्यक्रम चलाये जाने के बारे में सरकार पर कोई वित्तीय भार नहीं आता लेकिन हमें उसकी मान्यता के बारे में विचार करना चाहिए.
उपाध्यक्ष महोदय, आपने CAG की टीप में वर्णित तथ्यों की बात की. आपने CAG की रिपोर्ट पढ़कर यह तथ्य सामने लाया है तो मैं आपको यही कह सकता हूं कि इसका तत्काल हम परीक्षण करा लेंगे. दूसरी बात आपने UGC के निरीक्षण की कही है. मैं आपसे अनुरोध कर दूं कि अभी हम इसके पश्चात जो दूसरा विधेयक ला रहे हैं उसका उद्देश्य ही यही है. प्रारंभिक तौर पर जब सबसे पहले UGC का निरीक्षण होता था और उसमें वह केवल तीन चीजों का निरीक्षण करती- भूमि,भवन और फिक्स डिपॉजिट. जब विश्वविद्यालय अपना रुप ही नहीं ले सकता, न स्टॉफ का निरीक्षण हो सकता था, न प्रयोगशाला का निरीक्षण हो सकता और इसलिए उस धारा में संशोधन करके, हम उस निरीक्षण को पाठ्यक्रम शुरु होने के 6 महीने भीतर ला रहे हैं और सारी सुनिश्चित बातें नियामक आयोग के द्वारा पहले तय करके, प्रक्रिया आगे बढ़ेगी.
उपाध्यक्ष महोदय, निजी विश्वविद्यालय में सभी विद्यार्थियों की जानकारी सार्वजनिक हो, पारदर्शी तरीके से हो यह जानकारी वेबसाईट पर प्रकाशित करने की हम तत्काल व्यवस्था करने जा रहे हैं. अगर वेबसाईट पर होगी तो किसी प्रकार के संदेह नहीं रहेगा.
उपाध्यक्ष महोदय, एक बिन्दू इनसेट के बारे में उठाया है. यह कांट्रेक्ट मध्यप्रदेश की सरकार से नहीं था, भारत सरकार से था. इग्नू विश्वविद्यालय ने किया था. यह चूंकि राज्य सरकार के द्वारा नहीं है लेकिन मैं जानकारी के लिए बता दूं कि इग्नू के वाईस चांसलर के खिलाफ भारत सरकार ने कार्रवाई कर भी दी है.
उपाध्यक्ष महोदय, आपने आरकेडीएफ कॉलेज के संबंध में कुछ बातें उठाई हैं. आप अगर तथ्य दे दें तो मैं सदन में उसकी तत्काल जांच कराने की घोषणा करता हूं.
उपाध्यक्ष महोदय, आदरणीय बाला बच्चन जी ने कहा है कि उसकी भूमि,भवन,अधो संरचना इसकी जांच किए बिना हम उसको Recognised कर देते हैं, आप भरोसा रखिये कि बिलकुल ऐसा नहीं होता. उसकी पूरी प्रक्रिया है. अगर अभी भी ऐसी कोई बात है कि विनियामक आयोग ने वह जांच नहीं की है, निरीक्षण नहीं किया है, आप मुझे कागज मुहैया करा दीजिए, हम तत्काल विनियामक आयोग को इसके लिए लिखेंगे और आपको जवाब भी देंगे. धन्यवाद.
उपाध्यक्ष महोदय-- प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय(स्थापना एवं संचालन)संशोधन विधेयक,2016 पर विचार किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
अब,विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2 तथा 3 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 2 तथा 3 इस विधेयक का अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियम सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियम सूत्र विधेयक का अंग बने.
श्री जयभान सिंह पवैया - उपाध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2016 (क्रमांक 13 सन्, 2016) पारित किया जाय.
उपाध्यक्ष महोदय - प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2016 (क्रमांक 13 सन्, 2016) पारित किया जाय.
प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2016 (क्रमांक 13 सन्, 2016) पारित किया जाय.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक पारित हुआ.
मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) द्वितीय संशोधन विधेयक, 2016 (क्रमांक 14 सन् 2016)
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री जयभान सिंह पवैया)- उपाध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) द्वितीय संशोधन विधेयक, 2016 (क्रमांक 14 सन् 2016) पर विचार किया जाय.
उपाध्यक्ष महोदय - प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) द्वितीय संशोधन विधेयक, 2016 (क्रमांक 14 सन् 2016) पर विचार किया जाय.
श्री दुर्गालाल विजय ( श्योपुर ) -- उपाध्यक्ष महोदय मैं मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) द्वितीय संशोधन विधेयक, 2016 ( क्रमांक14 सन् 2016) का समर्थन करता हूं. उपाध्यक्ष महोदय संशोधन में भले ही दो धाराओं में संशोधन करने का प्रावधान किया गया है, लेकिन उपाध्यक्ष महोदय इन दोनों धाराओं के कारण से जो सदस्यों ने अभी चिंता प्रकट की है उसी को दूर करने का प्रयत्न इन दो संशोधनों के माध्यम से किया गया है.
उपाध्यक्ष महोदय, वर्तमान समय में परंपरागत रूप से जो शिक्षा प्रणाली चली आ रही है देश और विदेश में तमाम सारे परिवर्तनों के कारण से शिक्षा में भी बहुत अधिक परिवर्तन की आवश्यकता महसूस हुई है और यह बात भी सच है कि राज्य सरकार के सीमित संसाधनों से इस सब को पूरा करना कठिन है. जब हम मध्यप्रदेश राज्य को अग्रणी राज्य में लाना चाहते हैं तो अन्य राज्यों के मुकाबले और विदेशों के मुकाबले शिक्षा की स्थिति और अच्छी बने इसके लिए हमें निजी निवेश की आवश्यकता भी है और निजी रूप से आने वाले लोगों को भागीदार बनाने की आवश्यकता भी है. निजी विश्वविद्यालय स्थापित किये जाने के यही उद्देश्य हैं और इसी के कारण 2007 में मध्यप्रदेश की सरकार ने और मध्यप्रदेश की विधान सभा ने निजी विश्वविद्यालय स्थापित करने का फैसला किया था वह जो फैसला किया था उस समय जो अधिनियम बना था, उस अधिनियम में कुछ खामी होने के कारण समय समय पर यह महसूस किया जाने लगा कि निजी विश्वविद्यालयों के नियंत्रण के लिए और अधिक कसावट किये जाने की आवश्यकता है. इस कसावट को करने की दृष्टि से ही यह संशोधन इसमें लाया गया है .
उपाध्यक्ष महोदय, आज विद्यार्थी रोजगार मूलक शिक्षा की ओर आगे बढ़ रहे हैं. निजी विश्वविद्यालयों में भी बहुत तेजी के साथ कुछ ऐसे कोर्स प्रारम्भ किये जा रहे हैं जो व्यावसायिक प्रकृति के हैं जिनके कारण से लोगों को रोजगार उपलब्ध होने का अवसर प्राप्त होता है, उसमें स्थापत्य कला, इंजीनियरिंग, औद्योगिकी, औषधि, निर्माण विज्ञान, प्रबंधन, दंत चिकित्सा, सह चिकित्सा, आयुर्वेद, होम्योपैथी यूनानी और प्राकृतिक चिकित्सा और कृषि उद्यानिकी ऐसे अनेक विषय यह निजी विश्वविद्यालयों के माध्यम से किये गये हैं. आज प्रतिस्पर्धा का युग है. कुछ कमियां और खामियां तो हो सकती हैं. लेकिन मुझे यह कहते हुए गर्व है कि मध्यप्रदेश के विद्यार्थियों ने न केवल हिन्दुस्तान में पिछले 10 वर्षों के अंदर विदेश में भी मध्यप्रदेश के नाम को गौरवान्वित किया है. इससे यह बात तो प्रगट होती है कि मध्यप्रदेश में कहीं न कहीं शिक्षा में गुणवत्ता की ओर, उत्कृष्टता की ओर मध्यप्रदेश की सरकार की ओर से प्रयास किये गये हैं, इसी के कारण से आज हमारे मध्यप्रदेश के विद्यार्थी विभिन्न सारे क्षेत्रों में चाहे वह तकनीकी का क्षेत्र हो, चाहे वह चिकित्सा का क्षेत्र हो या वह अन्य कोई क्षेत्र हो उसमें उन्होंने देश में और विदेश के अंदर अपने आपको बहुत आगे बढ़ाने का काम किया है, बड़ी उत्कृष्टता के साथ में अपने अध्ययन और अध्यापन के माध्यम से बड़ी उत्कृष्टता के साथ अपने अध्ययन और अध्यापन के माध्यम से मध्यप्रदेश के नाम को गौरवान्वित करने का काम किया है. आज मध्यप्रदेश के निजी विश्वविद्यालयों के बारे में कुछ प्रश्नचिह्न उठाए जाते हैं लेकिन बहुत से विश्वविद्यालयों में अच्छी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उत्कृष्टता के साथ दी जा रही है. जिन विश्वविद्यालयों में खामियां हैं उनको दुरुस्त करने के लिए माननीय मंत्री जी ने जैसा अभी अपने वक्तव्य में कहा है कि इसमें किसी प्रकार की कसर नहीं छोड़ी जाएगी लेकिन आज जो परिस्थिति है और जिसके अंतर्गत यह अधिनियम लाया गया है यह निश्चित रूप से सराहनीय है. मैं प्रदेश के मुख्यमंत्री जी को और माननीय मंत्री जी को हृदय से बहुत-बहुत साधुवाद देना चाहता हूँ. इसमें दो प्रावधान किए गए हैं एक तो धारा 9 में संशोधन किया गया है और धारा 9 में संशोधन कर उसके अंदर नियामक आयोग को सशक्त तो बनाया ही है और साथ ही साथ यह भी प्रावधान किया गया है कि जो कोई शासी निकाय हैं और जिनसे नियामक आयोग ने निरीक्षण के बाद कुछ खामियां निकलने के बाद जरूरी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए कहा है यदि वे समय सीमा में उसको पूरा करेंगे तो उस विश्वविद्यालय को मान्यता प्रदान की जाएगी और अगर उसमें कहीं किसी प्रकार की खामी रही है जिसकी ओर नियामक आयोग ने ध्यान आकृष्ट किया है यदि उसकी पूर्ति नहीं होती है तो इस अधिनियम में यह भी प्रावधान कर दिया गया है कि ऐसे विश्वविद्यालय को किसी भी प्रकार से अनुमति प्राप्त नहीं होगी. इसमें धारा 9 (ख) को स्थापित किया गया है जिसमें कहा गया है कि निजी विश्वविद्यालय किन्हीं कक्षाओं अथवा पाठ्यक्रमों को प्रारंभ करने के पूर्व निरीक्षण के लिए विनियामक आयोग को विहित प्रारूप में आवेदन प्रस्तुत करेगा और निरीक्षण के पश्चात् विनियामक आयोग द्वारा पाई गई किसी न्यूनता के बारे में उक्त विश्वविद्यालय को सूचित किया जाएगा. उसे ठीक करने के लिए एक युक्तियुक्त अवसर भी प्रदान किया जाएगा और विनियामक आयोग ऐसी कक्षाओं अथवा पाठ्यक्रमों को चलाने की अनुज्ञा तब तक प्रदान नहीं करेगा जब तक कि उस न्यूनता को ठीक नहीं कर दिया गया है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जैसा अभी माननीय नायक जी ने और नेता प्रतिपक्ष ने भी इस बात की ओर ध्यान आकृष्ट किया था, इसी व्यवस्था को ठीक करने के लिए ये धारा 9 (ख) अंत:स्थापित की गई है और इस संशोधन के माध्यम से एक और मौका विश्वविद्यालय को देने का भी प्रावधान किया गया है. पहले तो यह होता था कि निरीक्षण के समय कोई खामी पाई जाती है तो मान्यता मिले न मिले लेकिन उस विश्वविद्यालय को एक बार अवसर देने का प्रावधान इस अधिनियम में संशोधन के माध्यम से किया गया है. यह जो प्रावधान है इस प्रावधान के कारण विश्वविद्यालय को एक अवसर भी प्राप्त हुआ है और यदि पूरा नहीं करता है तो फिर उसको मान्यता न देने का भी इस उपबंध के माध्यम से प्रावधान किया गया है जो बहुत सराहनीय और प्रशंसनीय है. इसके माध्यम से ऐसे बहुत से कार्य जो विश्वविद्यालय के पूरे नहीं होने के कारण उसको मान्यता देने से रोके जाने का प्रावधान है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, धारा 39 का जो प्रावधान है यह बहुत महत्वपूर्ण प्रावधान है और उसमें भी विश्वविद्यालय अपनी मनमर्जी से कोई काम न कर सके, विश्वविद्यालय मनमानी के कारण केवल डिग्री देने का एक माध्यम न बने और उत्कृष्टता के साथ, गुणवत्ता के साथ विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान कर सके इसके लिए उसकी अधोसंरचना, इसके लिए उसका पुस्तकालय, इसके लिए विश्वविद्यालय का प्रांगण, इसके लिए वहां के कर्मचारी, व्याख्याता, प्राध्यापक, ये सब उस श्रेणी के हैं अथवा नहीं और इसके लिए जब नियामक आयोग अनुमति देता है तो ये प्रावधान विशेष रूप से किया गया है कि प्रथम पाठ्यक्रम प्रारंभ होने के बाद और 6 महीने के अंदर उस विश्वविद्यालय के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि वह विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को आवेदन करेगा कि हमने संपूर्ण अपेक्षाएं पूर्ण कर ली हैं और विश्वविद्यालयों के लिए जितनी अपेक्षा कानून और नियमों के अंदर दी गई हैं वह सब अपेक्षाएं पूरी हो गई हैं .आप हमारा निरीक्षण करें. इसमें विशेष प्रावधान यह भी हुआ है कि पहले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग निरीक्षण के लिए बहुत लंबा समय लगाते थे काफी कोशिश होने के बाद भी समय पर उसका निरीक्षण नहीं हो पाता था, इसके लिए समय-सीमा भी इस धारा 39 का संशोधन करके निश्चित की गई है कि छह माह के अंदर आप इसका आवश्यक रूप से निरीक्षण करके और जिस प्रकार की व्यवस्था है, जो आप देखते हैं उसके बारे में अपना निर्णय दें. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, नियामक आयोग के अनुमति देने के बाद भी छह महीने के अंदर यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग जो निरीक्षण करेगा, उस बात से यह बात पक्की हो जाएगी कि वास्तव में जो अपेक्षायें हैं जैसा किया जाना चाहिए उस सबको करने के लिए विश्वविद्यालय ने ठीक से प्रबंध कर लिया है. यह जो दो संशोधन आए हैं यह दोनों संशोधन विश्वविद्यालय अधिनियम के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे. बहुत दिनों से इसकी आवश्यकता महसूस की जा रही थी. जहाँ तक आदरणीय डॉ. साहब ने अभी कहा कि आप अध्यादेश क्यों लाये ? वह समय ऐसा था जब विद्यार्थियों को प्रवेश देने का समय समय बिल्कुल नजदीक आ गया था औऱ इसके कारण यह निर्णय करना बहुत आवश्यक था, चूंकि विधानसभा का सत्र नहीं था, ऐसी अवधि में विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रखते हुए अध्यादेश लाये हैं तो संवैधानिक तरीके से वह अध्यादेश आया था और आज उस अध्यादेश को यहाँ सदन के सामने अधिनियम के रूप में प्रस्तुत किया गया है इसलिए मेरा अनुरोध है कि इसको पारित किया जाये. इस अध्यादेश को लाने के लिए मैं प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी को और हमारे उच्च शिक्षा मंत्री माननीय पवैया जी को बहुत- बहुत धन्यवाद देता हूं. धन्यवाद.
श्री रामनिवास रावत(विजयपुर)-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने नया-नया विभाग ग्रहण किया है और जिस समय यह अध्यादेश लाये गये थे, उस समय मंत्री जी के पास यह विभाग नहीं था. लगातार मार्च में विधानसभा समाप्त हुई, बजट सत्र हुआ.मार्च के बाद अप्रैल-मई-जून, तीन महीने के बाद जुलाई में फिर विधानसभा का सत्र चल रहा है इसी बीच में अध्यादेश लाने की ऐसी कौनसी विशेष परिस्थितियाँ पैदा हो गई जिसकी वजह से अध्यादेश लाना पड़ा. वह भी एक नहीं दो-दो अध्यादेश. दोनों अध्यादेशों का उद्देश्य एक ही था, यह दोनों निजी विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान करने के लिए ही द्वितीय संशोधन अध्यादेश आपने प्रस्तुत किया था. “स्थापना एवं संचालन द्वितीय संशोधन विधेयक 2016” के संबंध में अध्यादेश आप लाये थे. आपने बताया भी कि इसलिए आवश्यक था कि हमें बच्चों को एडमीशन देना था, बच्चों की व्यवस्था करनी थी.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, कोई विश्वविद्यालय स्थापना के लिए तीन महीने बहुत कम होते हैं. इन तीन महीनों में उन्होंने पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर तो तैयार नहीं कर लिया. इससे पहले से ही तैयारी कर ली होगी उन्होंने. आपको यह बताना चाहिए कि अगर तीनों विश्वविद्यालयों को स्थापना के लिए यह अध्यादेश लाये हैं तो इन तीन विश्वविद्यालयों ने कब विनियामक आयोग के समक्ष विश्वविद्यालय की मान्यता प्राप्त करने के लिए आवेदन पत्र प्रस्तुत किया. इन्फ्रास्ट्रक्चर भी तैयार किया होगा, एकेडमिक सिस्टम भी तैयार किया होगा. जब उनका तैयार नहीं था, क्रमांक 14 पर पहले यह व्यवस्था थी कि कोई भी निजी विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के लिए विनियामक आयोग के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत करेगा और प्रस्तुत करने के बाद अगर विनियामक आयोग संतुष्ट हो जाता है अपने परीक्षण के बाद संतुष्ट हो जाता है तो वह अपनी रिपोर्ट के सहित यूजीसी(विश्व विद्यालय अनुदान आयोग) जिन्होंने विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए मानदंड निर्धारित किये हैं, मैं समझता हूं कि उन्हीं मानदंडों के अनुरूप जो विश्वविद्यालय पूर्ति करेगा उसी को विश्वविद्यालय खोलने की मान्यता प्रदान की जाना चाहिए. आपने उन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की मान्यताओं या मानदंडों को ही डिलीट करने का इस संशोधन के माध्यम से एक तरह से कार्य किया है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की रिपोर्ट है या जो मानदंड हैं अगर उनकी भी पूर्ति कोई निजी विश्वविद्यालय नहीं करता है तो विनियामक आयोग मान्यता प्रदान कर देगा.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपने मूल अधिनियम की धारा 9 में जो संशोधन किया है, उसमें लिखा गया है कि यदि विश्व विद्यालय अनुदान आयोग की कोई निरीक्षण रिपोर्ट हो तो उसे लोप किया जाए. इसका आशय क्या है ? यदि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की रिपोर्ट की आवश्यकता नहीं है. किसी निरीक्षण की आवश्यकता नहीं है. भले ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के मानदंडों की पूर्ति न हो. आपने विनियामक आयोग को ये अधिकार दे दिया कि निजी विश्वविद्यालय, अनुदान आयोग के मानदंडों की पूर्ति करें या न करें, उन्हें मान्यता प्राप्त हो जाएगी. मान्यता देने के बाद आपने मूल अधिनियम की धारा उन्तालीस एक में स्थापित पैरा में कहा है कि कोई भी पाठ्यक्रम प्रारंभ होने के छ: माह के अवधि के भीतर निजी विश्वविद्यालय के लिए ये अनिवार्य होगा कि वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को ऐसी रीति से जैसा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा विधित की जाए, निरीक्षण के लिए आवेदन प्रस्तुत करे. आपने ये बाध्यता भी कर दी. जब आप मानदंडों का मान नहीं रहे हैं, उसकी कोई चिंता नहीं है, तो आवेदन प्रस्तुत करने की बात क्यों कही. यदि आवेदन प्रस्तुत भी होगा, तो उसकी रिपोर्ट के संबंध में कोई उल्लेख नहीं है. पहले ये उल्लेखित था कि तीस दिनों के भीतर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा. विधेयक की धारा 9 की उपधारा 5 में है. लेकिन अब विश्वविद्यालय केवल आवेदन प्रस्तुत करेगा, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग उसकी रिपोर्ट कब तक देगा, इसके संबंध में कोई उल्लेख नहीं है. यदि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की रिपोर्ट उनके मानदंडों के अनुरूप नहीं हुई तो उस स्थिति में आप क्या करेंगे ? जैसा कि डॉ. साहब ने संशोधन प्रस्तुत किया है. विश्वविद्यालयों की स्थापना पर हमारा कोई विरोध नहीं है. अच्छे संस्थान बनने चाहिए इसका कोई विरोधी नहीं है. शिक्षा का कोई विरोधी नहीं हो सकता. शिक्षा समग्र विकास के लिए, व्यक्तित्व विकास के लिए, प्रदेश के भविष्य के लिए बहुत आवश्यक है. हमें उम्मीद है आप बहुत कुछ अच्छा करने का प्रयास भी करेंगे. कई निजी संस्थानों में ओबीसी, एससी, एसटी के छात्रों की शासन से जाने वाले फीस और छात्रवृत्ति के मामले में भ्रष्टाचार हुआ है. आपका कोई नियंत्रण ही नहीं रह गया है. प्रायवेट कॉलेज, प्रायवेट विश्वविद्यालय छात्रों के ओरिजनल दस्तावेज रख लेते हैं. यदि छात्र विश्वविद्यालय छोड़ना चाहे तो उनकी फीस वापसी की कोई व्यवस्था नहीं है और उनके ओरिजनल दस्तावेज वापस करने के लिए उन्हें बार-बार चक्कर कटवाये जाते हैं, उन्हें परेशान किया जाता है. हम माननीय मंत्री जी से अपेक्षा करेंगे कि प्रदेश का युवा परेशान न हो, उन्हें अच्छी शिक्षा मिले. जब हम पढ़ा करते थे, आप और हम सभी उन्हीं विश्वविद्यालयों से निकले हुए हैं, जिनकी वजह से हम यहां बैठे हुए हैं, कहीं उनका अस्तित्व ही न समाप्त हो जाए. शासन के विश्वविद्यालयों में भी गुणवत्ता सुधार का काम करिये. दिल्ली यूनिवर्सिटी, जेएनयू का अपना एक नाम है. इसी तरीके से मध्यप्रदेश के भी विश्वविद्यालयों यदि आप अच्छी सुविधायें, अच्छी फैकल्टी देंगे तो बेहतर होगा. गरीब बच्चे शासन के इन विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपने जो संशोधन प्रस्तुत किया है, वह स्पष्ट नहीं है. यदि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में छ: माह बाद आवेदन प्रस्तुत होगा और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से एक साल बाद रिपोर्ट आती है कि निजी विश्वविद्यालय स्थापना के लिए उपयुक्त नहीं है, उस स्थिति में आपका विनियामक आयोग क्या निर्णय लेगा ? उस स्थिति में बच्चों के भविष्य का क्या होगा ? मैं माननीय मंत्री जी से निवेदन करता हूं कि कृपया वे इसे स्पष्ट करें. निजी विश्वविद्यालय खोलने का कोई विरोध नहीं कर रहा है. परंतु निजी विश्वविद्यालयों पर आपका नियंत्रण रहे, नियमन रहे. बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले. उन्हें कम फीस में उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्राप्त हो, ऐसा हम चाहते हैं. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपने मुझे बोलने के लिए समय दिया उसके लिए आपका धन्यवाद.
डॉ मोहन यादव(उज्जैन दक्षिण)-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं माननीय उच्च शिक्षा मंत्री द्वारा प्रस्तुत 9 ख के अंतःस्थापन का समर्थन करता हूँ. बहुत दिनों बाद, जिसका इंतजार था, वह क्षण आया. हमारे लिए बड़े सौभाग्य की बात है कि एक महत्वपूर्ण विषय की तरफ सरकार ने ध्यानाकर्षित करते हुए निजी विश्वविद्यालय में, उपाध्यक्ष महोदय, मैं बड़ा आश्चर्य भी कर रहा हूँ कि जो रावत जी कह रहे हैं वह सारी बात इसमें संशोधन के माध्यम से ही आने वाली है इसके अलावा दूसरी बात है ही नहीं. जो आपने कहा है कि हम अपना नियंत्रण थोड़ा विश्वविद्यालय में रखें तो यही तो संशोधन है. ऐसा न होगा कि एक बार हमने विश्वविद्यालय खोल दिया बाद में शासन उसमें कुछ नहीं कर सकता, उसमें जो छूट पहले थी, इस संशोधन के माध्यम से अब उसमें दायरा बढ़ाया गया है और उसी दायरे के अँतर्गत ही होने वाली सभी घटनाओं में शासन अपनी पैनी निगाह रखने की गुंजाईश रख रहा है.
श्री रामनिवास रावत-- उपाध्यक्ष महोदय, इस संशोधन में केवल यूनिर्वसिटी ग्राण्ट कमीशन की रिपोर्ट को एग्जेमप्ट करने की व्यवस्था की गई है. इसके अलावा और कुछ नहीं है भाई मोहन यादव.
डॉ.मोहन यादव-- माननीय रावत जी, 8 (5) लें और 9 ख पढ़ लें. ये दोनों संशोधन अगर आप पढ़ेंगे तो मेरी बात का आप समर्थन करेंगे. जैसे गोविन्द जी ने कहा है, आप दोनों पढ़ेंगे तो इसमें मर्म समझ में आएगा और मैं उसी बात को दोहराना चाहता हूँ कि जिस प्रकार से यह जो भावना व्यक्त की गई है. जैसी आपकी भावना है कि वास्तव में सरकारी विश्वविद्यालय से काम नहीं चलने वाला है और अब हम पूरे देश के नक्शे में और देश क्या दुनिया के परिप्रेक्ष्य में देख लें. अब भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था, और उसमें बड़े पैमाने पर शिक्षा के महत्व के नाते से वह एक अपनी पहचान बना रहा है. ऐसे में हम जो एक बड़े पैमाने पर रोजगार की संभावना उत्कृष्ट मानव संसाधन उपलब्ध कराने की भूमिका में अगर आना चाहेंगे तो निश्चित रूप से हमको इस दिशा में बढ़ना पड़ेगा और मुझे इस बात के लिए खुशी है. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जिस प्रकार से गोविन्द सिंह जी ने बात रखी थी, आपने कहा कि फीस पर पूरा कंट्रोल होना चाहिए. मैं एक छोटी सी बात आपके सामने जरूर रखना चाहता हूँ कि अगर हम विश्वविद्यालय प्रायवेट सेक्टर में लाना चाहते हैं तो थोड़ी छूट हमको उनको भी देना पड़ेगी. आप ऐसा नहीं कर सकते कि उसको भी पूरे सरकारी ढाँचे में ही ले आएँगे. निश्चित रूप से हमको उनकी गुँजाईश भी देना पडे़गी और हमारी भूमिका भी रखना पड़ेगी. दोनों भूमिकाओं से ही काम चलने वाला है. जिस प्रकार से (डॉ गोविन्द सिंह जी के खड़े होने पर) गोविन्द सिंह जी, मैंने आपकी बात सुनी मैं जवाब नहीं दे रहा हूँ. मैं तो आपकी बात को कह रहा हूँ जो आपने कहा है....
डॉ गोविन्द सिंह-- उपाध्यक्ष महोदय, उसमें उद्देश्य में उल्लेख करवा दें, गलती से रह गया होगा तो उसको जुड़वा दें.
डॉ.मोहन यादव-- गलती से रह गया होगा, आपने अपनी बात कह दी मुझे लगता है कि मंत्री जी के जवाब में वह बात आ जाएगी, जो मैं आपकी बात समझ पाया और जो मैं उत्तर दे रहा हूँ मेरे ख्याल से उसमें इसी बात का आ रहा है कि जो आपने कहा कि फीस का कंट्रोल पूरा शासन कर ले तो शासन से जब तक स्वायत्तता नहीं होगी निजी सेक्टर कभी नहीं बढ़ सकता. निजी सेक्टर को हमको छूट देना पड़ेगी. जब निजी सेक्टर के लोग आएँगे निश्चित रूप से अगर शासकीय स्तर के विश्वविद्यालय पूरा कर देते तो फिर अब जरूरत ही क्या थी प्रायवेट सेक्टर के विश्वविद्यालय को लाने की. मनीपाल विश्वविद्यालय को देखें मनीपाल बहुत छोटा सा आर्थिक और भौगोलिक दृष्टि से अलग टाईप का एक स्थान वाला राज्य है, लेकिन उसके बावजूद भी आज देश भर में उनकी शिक्षा का स्थान बढ़ा है, जबकि मध्यप्रदेश में उससे कई गुना ज्यादा संभावना है. निश्चित रूप से अभी यह जो विश्वविद्यालय खुले हैं. इससे कई गुना ज्यादा खोलने की आवश्यकता है और कई प्रकार से जोड़ने की जरुरत है. अभी इसमें वर्तमान में मध्यप्रदेश में तो एक तरह से शुरुआत हुई है और मुझे पूरी खुशी है यह 9 ख का अंतःस्थापन और 8 (5) का जो संशोधन दिया है. निश्चित रूप से हमारे लिए बहुत काबिले-तारीफ है. मैं माननीय मुख्यमंत्री और माननीय शिक्षा मंत्री का समर्थन करता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि इन संशोधनों के माध्यम से अभी हमने जो अपनी मूल भावना रखी है उस भावना का वह ध्यान रखेंगे. मेरी अपनी ओर से इस प्रस्ताव के प्रति पूर्ण समर्थन है. बहुत बहुत धन्यवाद.
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष (श्री बाला बच्चन)-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जैसे मैंने पहले भी, इसके पहले वाले निजी विश्वविद्यालय की अनुमति देने से संबंधित संशोधन विधेयक पर अपने विचार रखे थे. यह जो निजी विश्वविद्यालय स्थापित हो रहे हैं और इसके लिए जो अनुमति दी जा रही है. इसमें नियम, कानून, कायदों को बिल्कुल ध्यान में नहीं रखा जा रहा और बिल्कुल नियम, कानून, कायदों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं. मैं आपको बताना चाहता हूँ कि यह जो विनियामक आयोग के लिए माननीय मंत्री जी यह जो संशोधन विधेयक लाए हैं मैं यह जानना चाहता हूँ कि यह कौनसी एजेन्सी होगी और उसके बाद क्या यह भी ईमानदारी से काम करेगा क्योंकि इसके पहले के जो फीस एवं प्रवेश से संबंधित विनियामक आयोग का भी अनुभव बहुत कड़वा है और मैं आपको बताना चाहता हूँ कि प्रवेश से संबंधित भी अनियमितताएँ काफी हुई हैं और अभी तक उसकी कोई जाँच हुई नहीं है तो यह विनियामक आयोग, मैं इसमें आप से यह जानना चाहता हूँ कि क्या इसमें शिक्षाविद् होंगे, इससे संबंधित एक्सपर्ट्स को आप रखेंगे, जो निजी कार्यों की समीक्षा करेंगे, विश्लेषण करेंगे, अन्वेषण करेंगे, ऐसे व्यक्तियों को भी आप इसमें रखेंगे? नहीं तो जो अभी तक का जो रिपीटिशन होता आ रहा है. वह निरंतर चलता रहेगा. आप इस आयोग को नये कोर्स या विषय खोलने की रोक तक ही सीमित न रखें. इसमें यह लिखा है कि निजी विश्वविद्यालय नये विषय नहीं खोल सकते हैं नये कोर्स नहीं खोल सकते हैं यह आयोग उन पर बंदिश लगाएगा. मेरा आग्रह यह है कि इस आयोग को इसी बात तक सीमित न रखें. निजी विश्वविद्यालय मनमाने तरीके से जो फीस वसूलते हैं उस पर भी रोक लगना चाहिए. फीस पर भी अंकुश लगना चाहिए तब मैं समझता हूँ कि इस संशोधन विधेयक की सार्थकता होगी. जिस प्रकार से राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय है उसके इंजीनियरिंग कॉलेज की फीस 60 हजार रुपए है. प्रायवेट इंजीनियरिंग कॉलेज की फीस डेढ. से दो लाख रुपए होती है. इसी तरह से एमबीए के कोर्स के भी हाल हैं. आप नये कोर्स और विषय की बंदिश तक ही सीमित न रहें निजी विश्वविद्यालय जो बढ़ा-चढ़ाकर फीस वसूलते हैं उस पर भी रोक लगाएंगे तो मैं समझता हूं ज्यादा उचित होगा. इसी प्रकार प्रायवेट यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज सामान्य मेडिकल कॉलेज से दो से तीन गुना ज्यादा फीस लेते हैं. अभी हमने तीन यूनिवर्सिटीज की अनुमति दी है और जो चर्चा की है. इसमें नर्सी मोन्जी यूनिवर्सिटी एमबीए के लिए ढाई से तीन-तीन लाख रुपये फीस वसूल रही है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, हमने लगभग 500 करोड़ रुपए की उन्हें जमीन दी है, उसके बाद भी मध्यप्रदेश के विद्यार्थियों से इतनी फीस लेंगे तो इस पर भी सरकार को विचार करना चाहिए और इस पर कहीं न कहीं रोक लगना चाहिए. जो विद्यार्थी पूरी पूरी फीस नहीं दे पाते हैं इससे ऐसे विद्यार्थी भी पढ़ना चाहें तो वे भी इंजीनियरिंग कॉलेज में, मेडिकल कॉलेज में, पेरा मेडिकल कॉलेज में पढ़ सकते हैं और अच्छी क्वालिटी की एजूकेशन ले सकते हैं. इसी प्रकार जो दो और यूनिवर्सिटी हैं उनमें भी यही हाल है. मैंने यह बात पहले भी कही है, मैं उसे रिपीट नहीं करना चाहता हूँ. हम जानकारी लेंगे कि इंदौर में सिम्बायसिस यूनिवर्सिटी स्थापित हो रही थी जो कि निजी विश्वविद्यालय है उसे 500 करोड़ रुपए की जमीन क्यों दी गई है. इस बात को हम सब जानते हैं वह बात मैं अभी बताना नहीं चाहता हूं लेकिन जब इस तरह का कोई मामला सदन में आएगा तो मैं इस बात को जरुर बताउंगा.
श्री सुदर्शन गुप्ता आर्य--बता दीजिए हम लोग सुनने के लिए तैयार हैं.
श्री बाला बच्चन--सुनो आप. क्या मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के बेटे महाराष्ट्र में इस यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं इसलिए 500 करोड़ रुपए की जमीन दी है, और सुनोगे. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, इन सब बातों को भी ध्यान में रखा जाए.
श्री सुदर्शन गुप्ता आर्य--बेटा कहीं पढ़ेगा या नहीं पढ़ेगा या आपकी तरह अनपढ़ ही रहेगा. क्या बेटे को पढ़ने का अधिकार नहीं है. इनफोसिस और अन्य कम्पनियां आने के कारण वहां पर रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे. वहां पढ़ लिखकर नये-नये युवा तैयार होंगे.
श्री बाला बच्चन--जो विद्यार्थी फीस वहन नहीं कर सकते हैं उन विद्यार्थियों का भी ध्यान रखा जाए. जिस मकसद से निजी विश्वविद्याय खोले जा रहे हैं वह पूरा हो यही मेरा आग्रह है. धन्यवाद.
श्री देवेन्द्र वर्मा (खण्डवा)-- उपाध्यक्ष महोदय, मैं मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय द्वितीय संशोधन विधेयक 2016 (क्रमांक 14 सन् 2016) के समर्थन में बोलने के लिए खड़ा हुआ हूं.
उपाध्यक्ष महोदय, जिस प्रकार हम देख रहे हैं कि मध्यप्रदेश के विद्यार्थियों को अच्छी शिक्षा मिले वह चाहे प्रायमरी से लेकर हायर एजूकेशन तक की बात हो इसके लिए हमारी सरकार और हमारे मुख्यमंत्री जी प्रयास कर रहे हैं. हमारे प्रदेश में कुछ निश्चित साधन, संसाधन हैं हमारी सरकार प्रयास कर रही है कि उसमें किस प्रकार ज्यादा से ज्यादा अच्छा कर सकें. लेकिन हम व्यापक रुप में देखते हैं तो लगता है शिक्षा के क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र को लायें और समाज के प्रत्येक तबके तक उच्च शिक्षा पहुंचे. इसका प्रयास हमारी सरकार कर रही है औरऔर निश्चित रूप से सकारात्मक परिणाम हमारे प्रदेश में देखने को मिले हैं. यहां पर नये नये विश्वविद्यालय स्थापित हुए हैं और ऐसे क्षेत्रों में जिसकी कल्पना हम नहीं कर सकते थे ऐसे क्षेत्रों तक हमारे आदिवासी और गरीब भाई आज उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. निश्चित ही इस संशोधन के माध्यम से कहीं न कहीं समाज में इस प्रकार की बात जाती है कि कहीं न कहीं निजी विश्वविद्यालय होंगे, वह इस प्रकार के सेंटर खोलते हैं, जिन सेंटरों के माध्यम से एक धारणा है कि वहां पर पढ़ाई नहीं होती है. वह शिक्षा को बेचते हैं, डिग्रियां बेचते हैं और वह मानक पूरे नहीं करते हैं. निश्चित ही इस प्रकार के संसाधनों से और ज्यादा कठोरता के साथ और सरकार के लचीले रूख के कारण इस प्रकार के सेंटरों को हमारी सरकार और अच्छे से देख पायेगी और हमारे बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दे पायेगी. निश्चित ही जब हम निजी विश्वविद्यालयों की बात करते हैं तो मैं आपके माध्यम से निवेदन करना चाहता हूं कि हम प्रायवेट विश्वविद्यालयों के लिये प्रयास कर रहे हैं कि हमारे प्रदेश में आयें.
उपाध्यक्ष महोदय, मेरा आपके माध्यम से निवेदन है कि हमारे प्रदेश में पहले से ही प्रायवेट महाविद्यालय संचालित हो रहे हैं, कहीं न कहीं यू.जी.सी. के कुछ ऐसे नियम हैं जिसके कारण से इन विश्वविद्यालयों के संचालन में दिक्कत आती है. जहां एक ओर देखें तो स्लेट की जो परीक्षा है वह 1993 के बाद हमारे मध्यप्रदेश में नहीं हो पाये हैं. इसके परिणाम स्वरूप कहीं न कहीं दिक्कतें आ रही हैं. इसी प्रकार हम देखते हैं कि जो पी.एच.डी. और नेट है, इसकी गति धीमी है जिसके कारण हमारे प्रदेश के छात्रों को को पी.एच.डी. और नेट करने में दिक्कत आ रही है, इसकी प्रक्रिया बहुत धीमी है. उसमें भी किस प्रकार सुधार किया जाये, इसका भी प्रयास हमारी सरकार के द्वारा किया जाना चाहिये और जो यू.जी.सी के नार्म्स हैं 428 उसके माध्यम से प्रायवेट महाविद्यालायों में भी दिक्कतें आ रही हैं. उन दिक्क्तों की ओर भी सरकार ध्यान देकर सुधार करती है तो ऐसे महाविद्यालय जो हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित संसाधनों में अच्छी शिक्षा देने का काम कर रहे हैं उसके लिये एक मील का पत्थर साबित होगा. उपाध्यक्ष महोदय, आपने बोलने का समय दिया, बहुत-बहुत धन्यवाद्.
श्री पन्नालाल शाक्य (गुना):- माननीय उपाध्यक्ष महोदय और माननीय सभासदों को और डॉक्टर साहब को भी बहुत-बहुत प्रणाम.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, अभी मुझे यहां पर आये हुए लगभग 31 महीने हुए हैं. मुझे यहां पर बहुत अच्छे-अच्छे उदाहरण देखने को मिले हैं. अभी यहां पर खनन के विषय पर चर्चा हो रही थी. माफी चाहूंगा मैं विषय पर भूमिका जमा लूं. ज्यादा लम्बी भूमिका नहीं होगी.
श्री गोपाल भार्गव :- उपाध्यक्ष महोदय, आप इनको पर्याप्त समय बोलने दें, क्योंकि वह बोर हो गये हैं.
श्री पन्नालाल शाक्य :- उपाध्यक्ष महोदय, मैंने दो-तीन निजी विश्वविद्यालयों के नाम सुने हैं वह आपको बताना चाहता हूं. एक निजी विश्वविद्यालय महर्षि वशिष्ठ ने स्थापित किया था. जिसने राम जैसे व्यक्ति को पैदा किया. एक सांदीपनि ने निजी विश्वविद्यालय स्थापित किया, जिसने कृष्ण जैसा व्यक्ति पैदा किया और एक निजी विश्वविद्यालय रविन्द्रनाथ टेगोर ने स्थापित किया, जिसका नाम आज तक है. हम जितने निजी विश्वविद्यालय स्थापित कर रहे हैं, क्या वह भारत के प्रति वफादार बन रहे हैं ? गांव के प्रति वफादार बन रहे हैं, क्या इस प्रकृति के प्रति वफादार बन रहे हैं ? क्या भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी ? जो भी कुछ हो, जैसे मैंने एक पत्र दिया था कि मेरे को इस पत्र का जवाब दो और उस पत्र का जवाब भी नहीं आया तो ऐसे अधिकारियों का हम निर्माण करेंगे इस शिक्षा नीति से तो क्या होने वाला है, क्या भला होगा. एक दूसरी बात और है, अभी मेरे सम्मानित सदस्य कह रहे थे कि 500 करोड़ रूपये की जमीन दे दी तो क्या बात है, बहुत अच्छी बात है उसमें अब्दुल कलाम जैसे लोग पैदा होंगे तो हमें खुशी होगी, लेकिन विजय माल्या जैसे लोग होते हैं तो ऐसे शिक्षा विश्वविद्यालय खोलने की कोई जरूरत नहीं है. तो निजी विश्वविद्यालयों के विषय में हमारे माननीय उच्च शिक्षा मंत्री जी ने जो प्रस्ताव रखा है, हम उसका समर्थन करते हैं और मैं जो कह रहा हूं उस पर जरूर ध्यान दीजियेगा कि उस विश्वविद्यालय में क्या इस स्तर की पढ़ाई होगी क्या ? जो गांव के प्रति वफादार हो, गांवों से लोगों का पलायन हो गया है उसका परिणाम यह निकल रहा है कि आदमी शहर की ओर आ रहा है. शहर में पढ़ने के बाद भारत ही छोड़कर के चला जाता है तो ऐसी शिक्षा नीति और ऐसे विश्वविद्यालयों पर बारीकी से विचार किया जाय. मैं माननीय उच्च शिक्षा मंत्री जी से जो बड़े मैदानी रहे हैं मैं इनको बड़ी ही नजदीकी से जानता हूं, वह बड़े ही ओजस्वी हैं और बड़े ही फायर हैं, वह जरूर इस पर विचार करेंगे. धन्यवाद.
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री जयभान सिंह पवैया)--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, हमारे विपक्ष के वरिष्ठ मित्रों के विचार आये हैं और हमारे भाजपा मित्रों के भी विचार प्राप्त हुए हैं. मैं प्रश्न का जवाब देता हूं तब भी और आज विधेयक पर विचार हो रहा है, तब से सामने से एक शब्द जरूर आ रहा है कि पवैया जी अभी नये नये मंत्री बने हैं. मैं मंत्री नया हो सकता हूं, लेकिन नेता बहुत पुराना हूं तथा आपके जैसा हूं. रामनिवास जी आप 18 साल पहले की बात को भूल गये हैं, लगता है.
डॉ.गोविन्द सिंह--आपको तो पूरे प्रदेश का नेता मान रहा हूं.
श्री रामनिवास रावत--हम तो पूरे प्रदेश तथा देश का नेता आपको मानते हैं. आप तो विश्व हिन्दू परिषद के देश के नेता भी रहे हैं केवल मंत्री बनने के लिये नया विभाग है, इसके लिये आपको ऐसा कहा है.
श्री जयभान सिंह पवैया--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, अभी डॉ.साहब ने अपने विचार विधेयक में संशोधन लाकर के रखे हैं इसमें कुछ बातें ऐसी आयी हैं. मैं आपको बहुत विनम्रतापूर्वक स्पष्ट कर दूं कि मुझे नहीं पता कि कितने मित्र यहां कॉलेज वाले हैं. मेरा तो मेरी जिन्दगी में कोई स्कूल का भी काम नहीं है. दूसरी बात है, तो चुटकी लेते हुए बोली होगी डॉ.साहब ने ऐसा लगता है. उन्होंने कहा कि कोई कालेज में चिकने पत्थर लगा लेते हैं, कहीं कहीं पर भोजन मंत्र कराकर के भोजन कराते हैं तो कहते हैं कि बढ़िया हो गया. डॉ. साहब चिकने पत्थर यूनिवर्सिटियों में लोग लगा रहे हैं, लेकिन आजकल साधुओं के आश्रमों में भी अगर चमकदार पत्थर नहीं होते तो भीड़ वहां पर भी नहीं जाती है, जमाना बदला है, यह सामान्य सी बात है. भोजन मंत्र का जहां तक सवाल है मैं आपका इशारा समझा हूं आप किसको कह रहे हैं और आप क्या कहना चाहते हैं अगर भोजन मंत्र कराकर के न कराया जाय तो क्या नशा करके भोजन करके भोजन करने से लोग शिक्षावान होते हैं, ऐसा बता दीजिये. बिना संस्कार के शिक्षा अधूरी होती है. मैं उत्तर पर आ रहा हूं. आदरणीय डॉ. गोविन्द सिंह जी ने 9 (ख) के पश्चात् 9 (ग) में संशोधन प्रस्तावित किया है.
उपाध्यक्ष महोदय – खण्ड 4 में संशोधन है.
श्री जयभान सिंह पवैया- उपाध्यक्ष महोदय, मैं माननीय सदस्य को अवगत कराना चाहूँगा कि अधिनियम 2007 की धारा 7 (4) (झ) के अनुसार निजी विश्वविद्यालय फीस निर्धारण का काम, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नियामक निकायों यथा ए.आई.सी.टी.ई., एन.सी.टी.ई. एवं बी.सी.आई. आदि के दिशा-निर्देशों के अनुसार करता है. मूल अधिनियम की धारा 4 (झ) के अनुसार, वह यथा-स्थिति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, विनियामक परिषदों या विनायमक आयोग के मानकों, दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रवेश प्रक्रिया में फीस के नियतन को अवधारित करता है. छात्रों से अनुचित फीस न ली जाये, इसके प्रति उच्च शिक्षा विभाग सजग है. इसका प्रावधान पहले से ही अधिनियम की धारा 36 (10) (ख) और (ग) में है.
उपाध्यक्ष महोदय, वर्तमान प्रावधानों के अनुसार लागत के आधार पर फीस निर्धारण का नाम स्वयं निजी विश्वविद्यालय करता है किन्तु उस फीस निर्धारण की समीक्षा का कार्य विनियामक आयोग अधिनियम की धारा 36 (10) (ख) के अंतर्गत करता है. अधिनियम की धारा 36 (10) (ग) यह सुनिश्चित करता है कि छात्रों से ज्यादा फीस न ली जाये. वर्तमान में विनियामक आयोग राष्ट्रीय फीस कमेटी, जिसका गठन सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज माननीय श्री कृष्ण की अध्यक्षता में हुआ था. उनकी रिपोर्ट सन् 2015 में सुझाये गये फीस निर्धारण के मार्गदर्शी सिद्धान्तों का पालन करता है. मैं उदाहरण के लिये यह निवेदन करूँगा कि श्री सत्य सांई प्रौद्योगिकी एवं चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, सीहोर द्वारा उसके अनेक पाठ्यक्रमों के लिये जो फीस निर्धारित की गई थी, उसको मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग, भोपाल द्वारा दिनांक 15/06/2016 को समीक्षा उपरांत कम किया गया. जैसे एम.कॉम. पाठ्यक्रम के लिये यूनिवर्सिटी में फीस रू. 31,000 निर्धारित की थी लेकिन विनियामक आयोग द्वारा उसे रू. 18,000 किया गया और इसी तरह बी.पी.एड. पाठ्यक्रम के लिये रू. 77,000 की फीस को रू. 56,000 निर्धारित किया गया. आपने अध्यादेश लाने के बारे में सवाल उठाया है. तीन नवीन विश्वविद्यालयों की स्थापना, नवीन अकादमिक सत्र में बहुत आवश्यक थी, प्रस्तावित थीं. उसके द्वारा पाठ्यक्रम संचालन के पूर्व, समस्त अधोसंरचना की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के उद्देश्य से अधिनियम में आवश्यक संशोधन की तात्कालिक आवश्यकता को देखते हुए यह अध्यादेश लाया गया है.
उपाध्यक्ष महोदय, यू.जी.सी. के बारे में कुछ प्रश्न आये हैं. देखिये, पहले क्रम यहां से शुरू होता था कि पी.एस.सी. प्राथमिक निरीक्षण प्रारंभ में करती थी और प्रारंभ में केवल 3 चीजों का निरीक्षण कर लेती थी कि क्या भूमि है, क्या भवन है और क्या 5 करोड़ रूपये की फिक्स डिपॉजिट है ? यह केवल पर्याप्त निरीक्षण होता था, उसमें भी प्रावधान यह था कि उसको आवेदन करना है एवं 18 मामलों में ऐसा हुआ है कि यू.जी.सी. निरीक्षण करने के लिए नहीं आया. प्रावधान में अनिवार्यता नहीं है, आवेदन का उल्लेख है इसलिए यू.जी.सी. के निरीक्षण नहीं होने के बाद प्रक्रिया शुरू करना पड़ी. अभी जो संशोधन किया गया है, वह यह है कि अब पूरी प्रक्रिया होने के बाद, पाठ्यक्रम प्रारंभ होकर 6 मास के भीतर शैक्षणिक स्टॉफ, अधोसंरचना, लेबोरेट्री वगैरह पूरे निरीक्षण का कार्य यू.जी.सी. करेगी और यू.जी.सी. के करने के बाद भी हमारे रावत जी ने पूछा कि क्या करेंगे. उसमें हमें पर्याप्त अधिकार दिये गये हैं. मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय अधिनियम 2007 में हमें यह शक्तियां दी गई हैं कि अगर निजी विश्वविद्यालय में वित्तीय कुप्रबंधन एवं कुशासन की स्थिति उत्पन्न हो रही है. तो विश्वविद्यालय आयोग ने अगर अनियमितता पाई है तो विश्वविद्यालय से जानकारी प्राप्त करने के साथ आयोग राज्य शासन को रिपोर्ट देगा और रिपोर्ट के बाद में राज्य शासन विश्वविद्यालय की मान्यता को भी समाप्त कर सकता है. इसलिए यूजीसी के निरीक्षण के बाद ऐसी कोई रिपोर्ट आती है तो शासन के पास पर्याप्त अधिकार है और शासन उस पर कार्यवाही करेगा ही इसमें हमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए.
दूसरी बात फीस के निर्धारण की शुल्क के बारे में डॉक्टर साहब ने कही है तो मैं एक सैद्धान्तिक बात आपको कहूं और आप सहमत होगें कि इस मामले में सरकार पार्टी नहीं बना सकती लेकिन सरकार को जज की भूमिका में रहना चाहिए. विश्वविद्यालय प्रायोजक और विद्यार्थियों के बीच संतुलन बनाने के लिए हमें विद्यार्थियों के हित का भी ध्यान रखना है और हमें फीस का निर्धारण देखकर करना है जो मानक सिद्धांत उसके लिए दिए गए हैं इसलिए सीधी-सीधी फीस का नियमन सरकार करेगी तो मुझे ऐसा लगता है कि इतनी अनावश्यक शर्तें भी आप थोपेंगे तो जो महत्वपूर्ण संस्थाएं मध्यप्रदेश में निवेश करने के लिए शिक्षा क्षेत्र में आ रही हैं हो सकता है कि अन्यत्र राज्यों में पलायन करने लगें और हम शासकीय और अशासकीय स्तर पर जो प्रगति चाहते हैं, शिक्षा के क्षेत्र में उसमें बाधा उत्पन्न हो. अभी शासकीय विश्वविद्यालय के बारे में आपने कहा है तो मैं आपकी जानकारी में ला दूं कि नवीन शासकीय विश्वविद्यालय भी खोले जा रहें हैं जिसमें छतरपुर में नवीन विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है. महाराजा छत्रसाल मेडिकल एज्यूकेशन, पशुचिकित्सा, एग्रीकल्चर, संगीत जिसमें दो विश्वविद्यालय तो ग्वालियर में ही स्थापित किये गए और विद्यार्थियों की आवश्यकता को देखते हुए और भी विश्वविद्यालयों की आवश्यकता है. निजी क्षेत्र से मेरा अनुरोध यह है कि अभी अलोचना भी हुई है और कुछ तथ्यात्मक सुझाव आते हैं तो उससे मैं असहमत भी नहीं हो सकता लेकिन हम जब सदन में शिक्षा क्षेत्र की केवल धुंधली तस्वीर को पेश करेंगे तो मुझे लगता है कि देश के मानचित्र पर मध्यप्रदेश के शिक्षा जगत की केवल वही तस्वीर जाती है जिसको हम अधिक उभारेंगे. मैं विनम्रता से आपकी जानकारी में ला दूं कि निजी विश्वविद्यालयों में दो विश्वविद्यालयों को एचआरडी भारत सरकार ने सौ श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों को चयन किया है उसमें ग्वालियर की आईटीएम यूनिवर्सिटी और जेपी यूनिवर्सिटी गुना को भी स्थान मिला है. एक तरफा तो नहीं कह सकते हैं कि पूरा ग्लास खाली है, ग्लास भरा हुआ भी दिखे तो मुझे लगता है कि प्रदेश की दृष्टि से हम सब उसी के जनप्रतिनिधि हैं हम न्याय कर सकेंगे. आदरणीय रावत जी ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के बारे में प्रश्न उठाए थे मैंने कुछ उत्तर देने की कोशिश भी की है लेकिन आपके ध्यान में ला दूं कि यह रिपोर्ट देना इस नियम में पहले भी बंधनकारी नहीं था लेकिन यह संशोधन करके इसका निरीक्षण अनिवार्य ही किया जा रहा है त्रुटि पाए जाने पर सुधारात्मक निर्देश देने के साथ और सुधार नहीं करने पर विश्वविद्यालयों को बंद तक करा देने का प्रावधान पूर्व से ही अधिनियम में है. स्थापना करने के पश्चात् यूजीसी निरीक्षण करने के लिए कभी भी स्वतंत्र है और समय समय पर वह इस संबंध में विश्वविद्यालयों का निरीक्षण करता है और शासन उस विचार करता है.
उपाध्यक्ष महोदय, बाला बच्चन जी ने विनियामक आयोग के बारे में कुछ सुझाव दिया है, आपका सुझाव अच्छा है लेकिन वर्तमान में भी विनियामक आयोग में अध्यक्ष सहित तीन शिक्षाविद् हैं और एक सेवानिवृत्त डी.जी. पुलिस जो स्वंय पी.एच.डी. के उपाधिधारी हैं वर्तमान में सदस्य हैं मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि शासन की ओर से भी विनियामक आयोग को इस संबंध में पत्र जारी किया गया है. उपाध्यक्ष महोदय - प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) द्वितीय संशोधन विधेयक, 2016 (क्रमांक 14 सन् 2016) पर विचार किया जाय.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
अब विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
खण्ड 4 : इस खण्ड में एक संशोधन है.
डॉ. गोविन्द सिंह - उपाध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि खण्ड 4 में इस प्रकार संशोधन किया जाय -
खण्ड 4 में, उपखण्ड 9-ख के पश्चात् निम्नलिखित उपखण्ड स्थापित किया जाए, अर्थात् -
"9-ग निजी विश्वविद्यालय किन्हीं कक्षाओं अथवा पाठ्यक्रमों के लिए शिक्षण शुल्क निर्धारित करने के लिए विनियामक आयोग को विहित प्ररूप में आवेदन प्रस्तुत करेगा और परीक्षा के पश्चात् विनियामक आयोग उक्त विश्वविद्यालय को एक सी कक्षाओं अथवा पाठ्यक्रमों को चलाने के लिए शिक्षण शुल्क निर्धारित कर सूचित करेगा."
उपाध्यक्ष महोदय, माननीय उच्च शिक्षा मंत्री द्वारा संशोधन विधेयक जो प्रस्तुत किया गया है, उसमें वास्तव में निजी विश्वविद्यालय पहले तो मैं यह पूछना चाहता हूं कि आपने अभी कुछ दिन पूर्व 10 जून 2016 को अध्यादेश जारी किया है. यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर अध्यादेश की इतनी आवश्यकता क्या थी? ऐसी कोई इमरजेंसी का काम नहीं था. न कोई ऐसी बाढ़ आ गई थी कि इसमें संशोधन लाना पड़े या विपत्ति आई हो, आखिर ऐसा लगता है कि सरकार के पास कोई काम है नहीं. बैठे ठाले संशोधन निकालते रहो, न कोई अध्यादेश जारी करो? आखिर अध्यादेश की आवश्यकता तो जब होती है, संविधान में प्रावधान इसलिए किया है कि जब कोई इमरजेंसी हो, आवश्यकता हो तब. 2 महीने बाद जब आपका विधान सभा सत्र आहूत होने था, विधेयक आपने पेश किया तो 2 महीने में कौन-सी दिक्कत आ रही थी? इसे 2 महीने बाद पेश करते. इसलिए मैं आपसे अनुरोध करना चाहता हूं कि अध्यादेश की परम्परा रोकने का काम करें. यह प्रजातंत्र के हितों में नहीं है.
उपाध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने अपने उद्देश्य में उल्लेख किया है कि जो पाठ्यक्रम और उसकी विषय वस्तु , अधोसंरचना, अपेक्षित अध्यापन, अध्यापनेत्तर कर्मचारीवृंद, उनकी संख्या, अर्हताएं, प्रवेश पात्रता, प्रवेश की प्रक्रिया में फीस और ऐसे अन्य विषयों के लिए मानक स्थापित किये हैं. इसके साथ ही निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय स्थापित किये जा रहे हैं. परन्तु जो आपने उद्देश्य में तो यह किया है. परन्तु आपने विधेयक के उद्देश्य में तो किया है लेकिन आपने मूल विधेयक की धारा में जो प्रस्तावित किया है उस धारा में इस बात का कहीं उल्लेख नहीं है. आपने इसमें साफ लिखा है –
“निजी विश्वविद्यालय किन्हीं कक्षाओं अथवा पाठ्यक्रमों को प्रारम्भ करने के पूर्व निरीक्षण के लिये विनियामक आयोग को विहित प्रारूप में आवेदन प्रस्तुत करेगा और निरीक्षण के पश्चात् विनियामक आयोग पाई गई किसी न्यूनता के बारे में उक्त विश्वविद्यालय को सूचित करेगा और उसे ठीक करने के लिये उसे एक युक्तियुक्त अवसर प्रदान करेगा. विनियामक आयोग ऐसी कक्षाओं अथवा पाठ्यक्रमों को चलाने की अनुज्ञा तब तक प्रदान नहीं करेगा जब तक कि उस न्यूनता को ठीक नहीं कर दिया जाता.”
इसमें आपने अपने उद्देश्य में फीस का उल्लेख किया, लेकिन इसमें आप जो संशोधन विधयेक कानून बना रहे हैं उसमें कहीं भी फीस के लिये आपका कंट्रोल नियामक आयोग का नहीं है. इसलिए प्रदेश के हित में, जनता के हित में इस संशोधन को हमने प्रस्तुत किया है. इस संशोधन की ही बात है. एक तो नियामक आयोग बनाते हैं. उस नियामक आयोग में विषय विशेषज्ञों को रखना चाहिए. अभी सरकार ने फीस कमेटी तय की है, लेकिन जब आप पूरे विश्वविद्यालय के लिए नियामक आयोग उसके अधीनस्थ ला रहे हैं कक्षाओं को ला रहे हैं, मंजूरी के लिए ला रहे हैं, निरीक्षण का अधिकार दे रहे हैं तो फीस का अधिकार भी आपको नियामक आयोग को देना चाहिए, यह मैं कहना चाहता हॅूं क्योंकि निजी विश्वविद्यालय आजकल व्यवसायिक अड्डे हो गए हैं. जिन्होंने अभी दो वर्ष पहले विश्वविद्यालय खोला है. करोड़ों रूपये भी बिल्डिंगें, भवन बनाकर तैयार हो गये हैं. हम आपसे यह कहना चाहते हैं कि आज से करीब 20-25 वर्ष पूर्व एक विश्वविद्यालय 20-20, 25-25 जगह थे. उस वक्त मेडीकल कॉलेज भी थे, फार्मेसी कॉलेज भी थे, सभी विश्वविद्यालय के अधीनस्थ आते थे. आपकी सरकार के द्वारा, विभाग के द्वारा जो विश्वविद्यालय शासकीय स्तर पर आपने स्थापित किए हैं आप उनमें अच्छी गुणवत्ता, एक प्रोफेसर दें. पढ़ाई-लिखाई करें तो निजी विश्वविद्यालय प्रदेश की जनता की गाढ़ी कमाई के लूटने का एक जरिया न बनाएं, यह उचित होगा. यह लगातार विश्वविद्यालय खोलते चले जा रहे हैं अभी आपने तीन का प्रस्ताव कर दिया. मतलब जैसे बरसात में कुकुरमुत्ते के पेड़ उग आते हैं ऐसे विश्वविद्यालय खोल रहे हैं. जगह-जगह खोलने का काम हो रहा है. आजकल जिनके पास थोड़ा पैसा हो गया है उन्होंने लिया और मनमानी फीस ले रहे हैं उसमें फीस तय है लेकिन उस पर कहीं कोई कंट्रोल नहीं है. कानून में कोई बाध्यता नहीं है. और इसलिए जहां शासकीय मेडीकल कॉलेज में, इंजीनियरिंग कॉलेज में फीस अगर 25 से 30 हजार लग रही है तो वह 3-3, 4-4 लाख रूपये ले रहे हैं. मेडीकल कॉलेज में 5 से 7 लाख फीस तो लेते ही हैं प्रतिवर्ष, लेकिन उसके अलावा डोनेशन भी ले रहे हैं. जब मर्जी अगर कोई एक छात्र एक दिन बीमार पड़ जाए, छुट्टी का आवेदन नहीं दे पाए तो 100 रूपये का दण्ड लगा देते हैं. दो दिन न आएं तो 200 रूपये फीस. उनके हिसाब से ड्रेस पहनिए. उस फीस के अलावा सांस्कृतिक फीस, टूर फीस, बस फीस लगाकर लूटने का काम कर रहे हैं. अच्छा तामझाम बनाकर जमा लेते हैं. मार्बल के बढि़या-बढि़या चिकने पत्थर लगा लिये, लोग आकर्षित हो जाते हैं. बहुत अच्छा काम चल रहा है. अगर भोजन का मंत्र पढ़ा दिया, भोजन का मंत्र पढ़कर यदि भूल गए तो उसके भी 100 रूपये दण्ड कर दिये, यह हालत है. इसलिए इस पर कंट्रोल होना चाहिए.
हमारा माननीय मंत्री जी से अनुरोध है कि इन परिस्थितियों में आप भविष्य को देखते हुए जब आप सुधार कर रहे हैं, सुधार के लिए हम आपको धन्यवाद देते हैं लेकिन इसमें आपने खुद ही उद्देश्य में शामिल करके, हो सकता है आपकी प्रिटिंग में मिस्टेक हो गई हो, तो उसको आप सुधारने का काम करें और मनमानी फीस रोकने के लिए भी आपको नियामक आयोग के पास जाना चाहिए. कक्षाएं खोलेंगे, निरीक्षण करेंगे लेकिन इसके लिए भी मैंने कहा कि पहले आवेदन दें. आप फीस के लिए भी, जो फीस निर्धारण विनायक आयोग करेगा उसके हिसाब से फीस निर्धारित हो. इसीलिए यह संशोधन प्रदेश की जनता के हित में, छात्रों के हित में और किसान, मजदूरों के पढ़ने वाले बच्चों के हित में है.
हमारा सरकार से आग्रह है कि इस संशोधन को आप सर्वसम्मति से स्वीकार करें. उनकी मनमानी पर निजी विश्वविद्यालय जो मनमानी तानाशाही चलाते हैं उन पर रोक लगे, यही हमारा कहना है. इसी के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हॅूं.
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री (श्री गोपाल भार्गव) -- गोविन्द सिंह जी, संशोधन वापस ले लें, उसके बारे में मंत्री जी ने काफी बोल दिया है.
डॉ. गोविन्द सिंह -- उपाध्यक्ष महोदय, मैं बोल देता हूं. चूंकि माननीय उच्च शिक्षा मंत्री जी ने स्पष्ट कर दिया है कि पहले से ही धारा 36 में फीस के लिये प्रावधान है. हमारा जो संशोधन है, चूंकि इसका पहले से प्रावधान है, इसलिये अब हम अपने इस संशोधन को वापस लेते हैं.
उपाध्यक्ष महोदय - प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ.
उपाध्यक्ष महोदय -- प्रश्न यह है कि खण्ड 4 में इस प्रकार संशोधन किया जाए-
खण्ड 4 में, उपखण्ड 9-ख के पश्चात् निम्नलिखित उपखण्ड स्थापित किया जाए, अर्थात् -
"9-ग. निजी विश्वविद्यालय किन्हीं कक्षाओं अथवा पाठ्यक्रमों के लिये शिक्षण शुल्क निर्धारित करने के लिये विनियामक आयोग को विहित प्रारुप में आवेदन प्रस्तुत करेगा और परीक्षा के पश्चात् विनियामक आयोग उक्त विश्वविद्यालय को एक सी कक्षाओं अथवा पाठ्यक्रमों को चलाने के लिये शिक्षण शुल्क निर्धारित कर सूचित करेगा. "
संशोधन वापस हुआ.
प्रश्न यह है कि खण्ड 4 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 4 विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2,3,5 एवं 6 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 2,3,5 एवं 6 इस विधेयक का अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
श्री जयभान सिंह पवैया -- उपाध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) द्वितीय संशोधन विधेयक, 2016 पारित किया जाय.
उपाध्यक्ष महोदय -- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) द्वितीय संशोधन विधेयक, 2016 पारित किया जाय.
प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) द्वितीय संशोधन विधेयक, 2016 पारित किया जाय. ..
श्री जसवंत सिंह हाड़ा -- उपाध्यक्ष महोदय, सर्वसम्मति से करवा दीजिये. ना में तो है ही नहीं कोई भी और ना में बोलते भी नहीं हैं बहुत. सब हां ही हां हो रही है. इसलिये सर्वसम्मति से पारित करा दीजिये.
उपाध्यक्ष महोदय -- चलिये, अगर किसी को आपत्ति नहीं है, तो सर्वसम्मति से पारित कर देते हैं.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुआ.
(4)मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज(संशोधन) विधेयक, 2016
(क्रमांक 16 सन 2016)
पंचायत एवं ग्रामीण विकास(श्री गोपाल भार्गव) – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश पंचायत एवं ग्राम स्वराज संशोधन विधेयक 2016 पर विचार किया जाए.
उपाध्यक्ष महोदय - प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज संशोधन विधेयक 2016 पर विचार किया जाए.
श्री रामनिवास रावत (विजयपुर)– माननीय गोपाल भार्गव जी, पारित तो होना ही है, आप बुंदेलखंड के हों और मैं भी उस क्षेत्र का हूं जहां बुन्देलखंड जैसी स्थिति हुई. आपने फ्लश शौचालय या जलवाहित शौचालय संबंधी संशोधन किया है. मैं केवल मंत्री जी से सिर्फ जानना चाहता हूं आप बुंदेलखंड के हों, जहां सूखे की त्रासदी जबरर्दस्त रूप से झेली है, मैं उस क्षेत्र का हूं, जहां पानी के लिए लोग मारे मारे फिर रहे हैं. आपने इसमें संशोधन के माध्यम से फ्लश शौचालय और जलवाहित शौचालय की व्यवस्था की है. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मेरा ही एक गांव हैं, 100 प्रतिशत वहां शौचालय बन गए हैं. आप तो 12000 रूपए दे रहे हों, बहुत एक्सपर्ट हो, बहुत कम पैसे में बना देते हों. 12000 में फ्लश के शौचालय और जलवाहित शौचालय कोई नहीं बना सकता और बना भी लेंगे तो, जैसे मैंने बताया कि मेरे क्षेत्र में एक गांव है कींजरी वहां पूरे घर घर में शौचालय बने हुए हैं, लेकिन पीने के पानी के लिए इतना दूर जाना पड़ता है कि कहीं से ले आए तो ले आए एक मटका, शौचालय में उपयोग करने की तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि हम शौचालय में पानी का उपयोग कर लें.
चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, यह तो सिर्फ प्रोत्साहन राशि है 12000 रूपए तो सिर्फ प्रोत्साहन राशि है, बाकी व्यक्ति खुद बनाता है, फिर भी इस बात को आप बोल रहे हैं.
श्री रामनिवास रावत – मालूम है, सुन लो और समझ लो.
उपाध्यक्ष महोदय - रावत सिंह जी वे भी चम्बल के हैं.
श्री रामनिवास रावत – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं उस क्षेत्र में निवास करता हूं जहां पीटीजी ग्रुप सहरिया आदिवासी प्रदेश का निवास करता है और मेरा एक ब्लाक है, कराहाल, 100 प्रतिशत ट्रायबल ब्लाक है और जितने भी वहां पदाधिकारी है, सारे चेयरपर्सन ट्रायबल के ही है, सहरिया जाति के ही है, उनकी स्थिति यह है कि मजदूरी करते हैं और पेट भरते हैं. अगर हम फ्लश शौचालय और जलवाहित शौचालय की व्यवस्था कर देते उस समय कोई भी आपत्ति कर के अगर यह कह देगा कि इसके घर में फ्लश शौचालय और जलवाहित शौचालय नहीं है तो मैं यह दावा कर सकता हूं मंत्री जी कि मेरे उस विकासखंड के सभी पंचायतों में सरपंचों के पद खाली रहे जाएंगे. इसका विरोध नहीं है, यह व्यवस्था होना चाहिए. व्यवस्था तो पहले दो बच्चों की भी थी वह आपने समाप्त कर दी, व्यवस्था का विरोध नहीं है, लेकिन हम व्यवस्था से पहले पानी की व्यवस्था कराए तो तो ज्यादा अच्छा है. हमें इस तरफ भी ध्यान देना पड़ेगा, सोचना पड़ेगा, हम केवल व्यवस्था कर दें व्यवस्था से काम नहीं चलेगा, व्यवस्था करेंगे, सब एफीडेविट भी लगाएंगे बना लेंगे. आज कई गांव ऐसे हैं जहां शौचालय बने हुए है, लेकिन पानी के अभाव में सूखे के समय में लोगों ने कभी शौचालय का उपयोग नहीं किया न ही कर पाते हैं तो हम किस तरह से ज्यादा से ज्यादा सोचे की पानी की व्यवस्था कैसे मुहैया कराए. आप बुन्देलखंड के हों, भुगते भी हो, देखा भी है, क्या संभावित है कि जलवाहित और फ्लश शौचालय सब बन जाए. सबके ऊपर टंकी रख जाए, एक बाल्टी पानी पीने को नहीं मिलता क्या उन टंकियों से फ्लश चलाएंगे.
उपाध्यक्ष महोदय – इस विधेयक पर चर्चा पूर्ण होने तक सदन के समय में वृद्धि की जाए, मैं समझता हूं कि सदन इससे सहमत है. (समय के समय में वृद्धि की गई) 5.29
(सदन द्वारा सहमति प्रदान की गई)
श्री रामनिवास रावत – आप बाध्यकारी कर रहे हो, लेकिन कुछ चीजें ऐसी है कि अगर ये भी देख लें कि जो बीपीएल के लोग है या पीटीजी के लोग है, अगर ऐसी स्थिति नहीं आ पाती है तो उनके लिए बंधन कर करें, या फिर अलग से उनके लिए इतनी राशि की व्यवस्था कर दें, इतनी व्यवस्थ कर दें. भाई मुकेश जी ने कहा, उनके क्षेत्र में कुछ लोग बना लेंगे, हमारे कुछ गांव हैं, वहां भी लोग बना लेंगे स्वयं. लेकिन इस तरह के भी क्षेत्र है जो स्वयं की व्यवस्था से नहीं बना सकते, उनको अधिक से अधिक पैसे की व्यवस्था कर दें तो बड़ा उचित होगा, हम इसका समर्थन भी करेंगे, हमें कोई आपत्त्िा नहीं है.
प्रभारी नेता प्रतिपक्ष(श्री बाला बच्चन) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, पहले केन्द्र में यूपीए की सरकार थी दिल्ली में, जब निर्मल भारत अभियान के तहत यह कार्य कराये जाते थे और उसको बदलकर जो एनडीए की सरकार है दिल्ली में वह स्वच्छ भारत अभियान के तहत इन निर्माण कार्यों को करा रही है. उसी समय पहले निर्मल भारत अभियान के तहत जो राशि दी जाती थी वह बाईस सौ रूपये थी उसके बाद चार हजार हुई उसके बाद इस सरकार ने बारह हजार रुपये किये हैं.जब से यह कार्यक्रम चल रहे हैं तब से माननीय मंत्री जी ही अगर निगरानी करते,समीक्षा करते तो मैं समझता हूं कि अभी तक काफी शौचालय बन जाते तो ऐसी नौबत नहीं आती और यह संशोधन विधेयक नहीं लाना पड़ता.मैं समझता हूं कि जो राशि उस समय दी गई वह राशि उस काम में नहीं लगी और शौचालय निर्माण में भारी भ्रष्टाचार हुआ है और उन्हीं कामों के लिये उन्हीं शौचालयों के लिये फिर से राशि स्वच्छ भारत अभियान के तहत दी गई है तो मेरा मंत्री जी से यह कहना है कि शौचालय निर्माण में भ्रष्टाचार हुआ है. उन्हीं शौचालयों के लिये फिर से राशि दी जाती है और रावत जी ने जो बोला है कि जिनके घरों में फ्लश शौचालय और जलवायु शौचालय अगर नहीं हैं और उनको ग्राम पंचायत के चुनाव में, चुनाव लड़ने से सरकार वंचित करती है तो यह उन व्यक्तियों को लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित जैसा होगा. मुझे ऐसा लगता है कि आप इस संशोधन विधेयक को इसलिये लाये हैं कि आपको भरोसा नहीं है कि शौचालय बन पायेंगे कि नहीं. इसके बजाय आप ग्राम पंचायत से लेकर जनपद पंचायत तक की मॉनीटरिंग करें. आपके विभाग से मॉनीटरिंग करवाएं तो शौचालय भी बन जायेंगे और ऐसे संशोधन विधेयक का सहारा नहीं लेना पड़ेगा तो उन्हें चुनाव लड़ने से वंचित न करें. यह उनके चुनाव लड़ने वाले अधिकार का हनन है. आप स्वच्छ भारत अभियान की आपके विभाग में जमकर मॉनीटरिंग करें तो कम से कम चुनाव लड़ने वालों को चुनाव लड़ने से वंचित न करें. शौचालय बनें इसके पक्षधर हम लोग भी हैं लेकिन आप अपनी विफलताओं को छिपाने के लिये इस तरह के संशोधन विधेयक का सहारा लेते हो तो इसका कोई औचित्य नहीं है, महत्व नहीं है. विभाग चाहता तो कभी के सभी शौचालय बन जाते.माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपने समय दिया धन्यवाद.
श्री जसवंत सिंह हाड़ा - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, ये नेता प्रतिपक्ष हैं और अच्छे जनप्रतिनिधियों के लिये प्रेरणा है कि वे इस काम को करें. बाला बच्चन जी स्वच्छता अभियान का विरोध कर रहे हैं.
श्री बाला बच्चन - आपने मेरी बात ठीक से नहीं सुनी.निर्मल भारत अभियान के अंतर्गत यह शौचालय बनाने का कार्यक्रम कई सालों से चल रहा है.
श्री जसवंत सिंह हाड़ा - आप पचास-साठ साल से छूट देते आये. (XXX) अब उसको ठीक करने का समय आया है.
उपाध्यक्ष महोदय - आप बैठ जायें. गंदगी वाली बात विलोपित.
डॉ.गोविन्द सिंह(लहार) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री द्वारा प्रस्तुत मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज(संशोधन) विधेयक,2016 का मैं विरोध करता हूं. विरोध इसलिये करता हूं कि आपका जो संशोधन विधेयक है यह मध्यप्रदेश की आज की परिस्थिति में सामयिक नहीं है. जैसा कि रावत जी ने बताया कि पहले तो आपने तमाम संशोधन ला दिये. आप प्रजातांत्रिक संस्थाओं को क्यों नष्ट करना चाहते हैं. पहले आपने पंचायत के चुनाव में किया कि किसी पर विद्युत का बिल बकाया नहीं होना चाहिये, वह चुनाव नहीं लड़ पायेगा. आपको जानकारी हो कई जगह बारह-पंद्रह वर्षों से बिजली के खम्भे नहीं हैं,ट्रांसफार्मर नहीं हैं और गांव में डेढ़-दो लाख तक के बिल आ रहे हैं. कई लोग पंचायत का चुनाव लड़ने से इसलिये वंचित हो गये क्योंकि उनके पास बिजली के डेढ़ से दो लाख रुपये तक के बिल लंबित थे. दस बरस पहले उन्होंने कनेक्शन लिया होगा. कई लोगों के पिताजी ने कनेक्शन लिया. हमारे यहां एक गांव कुरथर है जिसका मैं उदाहरण बताता हूं वहां 24 लोगों पर विद्युत अधिनियम की धारा-35 लगा दी. उसमें जमानत का प्रावधान नहीं है. फर्जी बिल हैं. 10 वर्षों से खम्भे टूटे हुए हैं. फर्जी बिल हैं, दस वर्ष से खंभे टूटे हैं वहां बिजली है नहीं लेकिन वहां रोक लगा दी. पंचायत के चुनाव लड़ने से वंचित ही रहे गये है. इसके अलावा वह लोग जेल में भी गये. दीवाली उनकी जेल में मनी थी. 24 में से 3 पकड़े गये थे, बाकी अग्रिम जमानत का प्रावधान ही नहीं है, उन्होंने पूछा तो बोले कि प्रावधान नहीं है. आपने पहले इसमें रोक दिया, फिर आपने तमाम पंचायतों की रिकवरी की. ठीक है, पंचायत का चुनाव लड़ रहे हैं अगर पंचायत में अगर है पैसा, राशि का गबन है, उपयोग किया है तो उसे जमा करना चाहिए.
XXX : आदेशानुसार रिकार्ड नहीं किया गया.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आप गांव के आदमी हो, दिन भर गांव के बीच में रहते हो, जनता के बीच में गम्मत भी गाते हो, ढोलक भी बजती है, तो कम से कम व्यावहारिक रूप से देखते . शहर में बैठने वाले फाइव स्टार वाले तो अलग हैं. लेकिन आप तो सिर्फ देहात वाले हो, अब गांव में कई लोग ऐसे हैं जिनको अभी रोजगार गारंटी में काम मिला है, परंतु वेतन नहीं मिला, उनका घर कच्चा है, कच्ची मढ़या बनी हुई है, उसमें आप कहां से शौचालय बना लेंगे, बारह हजार में बनता है. लेकिन आप गांव के लोगों के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़ गये हैं कि यह चुनाव ही न लड़ पायें. आपने प्रतिबंध लगा दिया. जनजागरण करें, सामयिक चेतना जगायें.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - आप इसका विरोध कर रहे हो कि समर्थन कर रहे हो ?
डॉ. गोविंद सिंह - घोर विरोध कर रहे हैं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - दादा सरपंच बन जायेगा, लोटा लेकर गांव में जायेगा सबको दिखाता हुआ अच्छा लगेगा.
श्री रामनिवास रावत - आप ही व्यवस्था कर दो कि बनने के बाद बना ले.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - जो अच्छी चीज है, अच्छी नज़ीरे बने ऐसी व्यवस्था दो. सिर्फ विरोध करना है इसलिए हर बात का विरोध ठीक नहीं है.
उपाध्यक्ष महोदय - श्री रामनिवास रावत जी हम भी सदन में बैठे हैं चंबल वाले आपस में बात क्यों कर रहे हैं ?
श्री गोपाल भार्गव- जब सरकार एक रूपये किलो का गेहूं खिला रही है तो शौचालय की भी व्यवस्था करेगी क्या दिक्कत है. उसमें क्या समस्या है और अच्छा है.
डॉ. गोविंद सिंह - समस्या तो इसलिए है कि बना नहीं सकते है और फिर बारह हजार रूपये आप दे रहे हो, आपके पटेल साहब बोल रहे है कि हमने बारह हजार रूपये में बनवा दिये.
श्री जालम सिंह पटेल - दो ब्लॉक में बन गये हैं और साईड में टंकी बनी है.
डॉ. गोविंद सिंह - चलो हम आपको पूरे भिंड जिले का ठेका दिलवा देते हैं, आप बनवा दो.
श्री रामनिवास रावत - फ्लश लगे हैं, टंकी रखी है.
उपाध्यक्ष महोदय महोदय - जालम सिंह जी आपका माइक तो नीचे है.
डॉ. गोविंद सिंह - फ्लश के बनेंगे तो गड्ढे खोदना पड़ेगा, गड्ढे बनते है करीब ढाई से तीन हजार की तो सीट आती है.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - क्यों गोविंद सिंह जी, आपने कहा जालम सिंह जी से कि चलो भिंड के सब ठेके दिलवा देते हैं.
डॉ. गोविंद सिंह - हां पंचायतों के दिलवा देंगे.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - इतने सारे ठेके आप ही दिलवाते हो क्या
डॉ. गोविंद सिंह - हां, हम दिलवाते हैं. ग्राम पंचायतों के, गरीबों को ठेके हम दिलवायेंगे. बारह हजार में हम बनवा देंगे.
श्री मुकेश सिंह चतुर्वेदी (मेहगांव) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय अकेले पंचयतों के नहीं पीडब्लूडी वगैरह सबके ठेके हम दिलवाते हैं .(व्यवधान)....
श्री जालम सिंह पटेल - माननीय उपाध्यक्ष महोदय अब ठेका सिस्टम भी खत्म हो गया है. (व्यवधान)....
श्री दिलीप सिंह परिहार (नीमच) - रेत के भी ठेके दिलवायेंगे (व्यवधान)....
श्री मुकेश सिंह चतुर्वेदी (मेहगांव) -जो भी विभाग हो, सबके ठेके होते हैं. (व्यवधान)....
डॉ. गोविंद सिंह - हम सरपंच से दिलवा देंगे, आप बनाते जाओ....... (व्यवधान)...
श्री घनश्याम पिरोनियां (भाण्डेर) - रेत के भी ठेके दिलवा देंगे डॉक्टर साहब... (व्यवधान)...
डॉ. गोविंद सिंह - यह तो आप चड्ढी वालों के काम हैं ?
उपाध्यक्ष महोदय - श्री जालम सिंह पटेल..
डॉ. गोविंद सिंह - मैं आपसे इतना अर्ज करना चाहता हूं माननीय उपाध्यक्ष जी वास्तव में यह सच्चाई है .
श्री दिलीप सिंह परिहार - माननीय उपाध्यक्ष महोदय यह बात बार चड्ढी की बात क्यों करते हैं .(व्यवधान)
डॉ. गोविंद सिंह - लंगोट पहनकर आओ.
श्री शैलेंद्र जैन (सागर) - आप बगैर चड्ढी के हैं क्या ? आप अपना स्टेटस बताइये. .(व्यवधान)
एक माननीय सदस्य - माननीय उपाध्यक्ष महोदय यह बहुत अभ्रद भाषा है कि बिना चड्ढी के आ जाते हैं . .(व्यवधान)..
डॉ. गोविंद सिंह - लंगोट कसकर आये हैं .(व्यवधान)
श्री दिलीप सिंह परिहार - .(व्यवधान) ..माननीय उपाध्यक्ष महोदय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की वजह से इनकी नींद हराम है.
श्री घनश्याम पिरोनियां - चड्ढी पहनकर फूल खिलता है . .(व्यवधान) .(हंसी)
श्री दिलीप सिंह परिहार - हां चड्ढी पहनकर फूल खिला है.
उपाध्यक्ष महोदय - दिलीप सिंह जी..... .(व्यवधान) .
डॉ. गोविंद सिंह - इसलिए मैं कहना चाहता हूँ कि या तो इनकी राशि बढ़ाये आप कम से कम बीस हजार रूपये से ऊपर राशि कर दें तभी संभव है दूसरा आप कह रहे हैं कि खुले में ना जाय. अब हमारे गांव मैं मनसुख सरपंच है.
उपाध्यक्ष महोदय - बैठ जाये.
डॉ. गोविंद सिंह - उसके अलावा पहले मैं बता दूं ....
श्री जसवंत सिंह हाड़ा (शुजालपुर) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय मैं चाह रहा था कि डॉक्टर साहब कह रहे हैं कि यह नहीं होना चाहिए और फिर कह रहें कि राशि बढ़ा दो...
डॉ. गोविंद सिंह - अगर आप राशि बढ़ा दें तो बना सकते हैं नहीं तो कैसे बनेगा.
श्री जसवंत सिंह हाड़ा - फिर शौचालय की प्राथमिकता हो गई और यदि राशि नहीं बढ़ाओ तो यह कानून गलत हो रहा है.
डॉ. गोविंद सिंह - कई जगह गांव में आदिवासी इलाके में झोपड़ी के, पत्थर के मकान बने हैं, पत्थर का पटाव है, पत्थर की दीवारें पटिया बने हुए है वहां बारह हजार में आप गड्ढा ही नहीं खोद सकते हैं, तो कहां से बारह हजार रूपये बन जायेगा शौचालय ? वह रोजाना दैनिक मजूदरी करने वाले हैं. उन्हें सौ रूपये, डेढ़ सौ रूपये मजदूरी मिलती है गांव में रोजगार गारंटी में महीनों तक पेमेंट नहीं होता है इसलिए ऐसी परिस्थिति है. इसलिए शौचालय अनिवार्य कर दें. हम सहमत हैं लेकिन इसमें चुनाव का जो बंधन है, उससे इसको मुक्त कर दें क्योंकि आधे लोग चुनाव से वंचित होजाएंगे, यह प्रजातंत्र के विरोध में है, प्रजातंत्र के लिए घातक है, यह विधेयक लोगों के अधिकारों का हनन करने वाला है. इसलिए माननीय मंत्री जी से अनुरोध करना चाहते हैं कि आप इसमें राशि बढ़ाने की घोषणा करें, अन्यथा इस संशोधन को वापस करें. डॉ. नरोत्तम जी, जो आप कह रहे हैं तो गांव में कई लोग ऐसे हैं जो वर्षों से जा रहे हैं, उनके शौचालय नहीं हैं, वह सवेरे घूमकर खेत में ही जाते हैं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - वह तो आप भी पहले जाते थे. लेकिन यह अच्छी आदत नहीं है.
डॉ. गोविन्द सिंह - हम तो अभी भी चले जाते हैं. (हंसी)..हमें कोई दिक्कत नहीं है.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - आप अभी भी जाते हो तो यह अच्छी आदत नहीं है. गांव में बहू-बेटियां भी रहती हैं.
उपाध्यक्ष महोदय - डॉक्टर साहब, इसमें आजकल विसिल ब्लोअर भी आ गये हैं.
पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री (श्री गोपाल भार्गव) - उपाध्यक्ष महोदय, दुनिया बहुत तेज गति से आगे बढ़ रही है. हम जब यूरोप की बात करते हैं, अमेरिका की बात करते हैं, हमारे बहुत से मित्र विदेशों में जाते हैं. मैं मानकर चलता हूं कि कभी कभी हमें भी अपने देश के बारे में सोचना चाहिए. प्रधानमंत्री जी की बहुत अच्छी कल्पना स्वच्छ भारत अभियान की है. इसके पूर्व की जो सरकार थी, उसने भी निर्मल भारत अभियान चलाया था. राशि का अंतर हो सकता है, कभी 2200 रुपए, कभी 4200 रुपए, कभी 12000 रुपए हुए. उपाध्यक्ष महोदय, हम सभी की एक सहमति होना चाहिए, सम्मिलित भावना होना चाहिए. डॉक्टर साहब कह रहे थे कि गांव के लोगों के साथ मजाक है. यह नगरीय विकास विभाग जो है, उसने भी कानून बनाने का काम कर लिया है, वह केबिनेट से हो गया है और यह जल्दी से जल्दी विधेयक के रूप में सामने आएगा. आज भी हम जाते हैं सड़क के किनारे दोनों तरफ हम देखते हैं कि महिलाएं, चाहे वे नगरीय क्षेत्र की हों, चाहे ग्रामीण क्षेत्र की हों, जब हमारी गाड़ी जाती है, लाईट जलती हुई जाती है, या फिर वैसे ही पैदल जाते हैं तो बेचारी उठती हैं बैठती हैं, जैसे ही कोई वाहन आता है, जैसे ही कोई लोग आते हैं. आज भी आजादी के 70 साल के बाद यह शर्मनाक बात है, बड़ी दयनीय स्थिति हमारे हिन्दुस्तान में है.
उपाध्यक्ष महोदय - आपने पुरुषों को क्यों छोड़ दिया?.. वे उठते बैठते नहीं हैं.
श्री जसवंत सिंह हाड़ा- वे खड़े नहीं होते हैं.
श्री गोपाल भार्गव - उपाध्यक्ष महोदय, आपने भी देखा होगा. यह उन बेचारी महिलाओं की विवशता है. यह हमारी महिलाओं की मर्यादा और इज्जत से जुड़ा हुआ सवाल है. मर्यादा महिला की क्या, पुरुष की क्या? मैं मानकर चलता हूं कि यह बहुत बड़ा विषय नहीं होना चाहिए. क्योंकि भारत में जो आंकड़ा हमारे सामने है इसमें सिर्फ 42 प्रतिशत आबादी कवर कर पाए. अभी भी हमारी 58 प्रतिशत आबादी इसमें कवर होना बाकी है. समाज के जो वरिष्ठ लोग हैं, हम विधायक, मंत्री, सांसद, और भी हमारे नगरीय निकायों के लोग हैं, पंचायतों के प्रतिनिधि हैं, जिला पंचायत, जनपद पंचायत, ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधि हैं. उपाध्यक्ष महोदय, यही लोग समाज को दिशा नहीं दिखाएंगे, मैं मानकर चलता हूं कि नीचे जो वोट देने वाला आदमी है वह भी कहेगा कि सरपंच साहब आप ही तो शौचालय नहीं बनाए हो और आप हमारे शौचालयों का ठेका लिए फिर रहे हो, हमको प्रेरित कर रहे हो, हमें मोटिवेट कर रहे हो, इसलिए हमारा जो कंसेप्ट है और प्रधानमंत्री जी का ही नहीं, किसी पार्टी का ही नहीं, बल्कि पूरे देश का यह विचार है. इसलिए मैं कहता हूं कि इस 58 परसेंट आबादी को कवर करने के लिए, समाज को दिशा दिखाने के लिए जो समाज के वरिष्ठ लोग हैं, चाहे जनपद के हों, नगरीय निकायों के हों, चाहे ग्रामीण निकायों के हों, सभी के लिए सम्मिलित रूप से प्रयास करना चाहिए. वर्ष 2019 तक हमारा लक्ष्य है कि हम शतप्रतिशत जो शेष 65 लाख परिवार हैं, उनके शौचालय बनाने का काम हम कर लेंगे. इसके लिए सब प्रयास करने की थोड़ी आवश्यकता है. समाज के जो अग्रणी लोग हैं, उनके लिए भी चाहे वैधानिक रूप से बाध्यता हो, चाहे नैतिक रूप से हो, चाहे जागरूकता के माध्यम से हो, लेकिन उनसे यह काम करवाना चाहिए. इसी उद्देश्य से यह विधेयक लाया गया था. जहां तक श्री रामनिवास जी ने कहा है कि पानी की दिक्कत है तो इसका जो इंटरप्रिटेशन है, मैंने देखा है कि - does not have flush latrine or pure flush latrine in his residential premises, इसमें दोनों प्रकार की हैं, मतलब एक लोटा भी यदि एक मग्गा भी आप पानी डालेंगे तब भी अपात्र नहीं होगा. निरर्हता नहीं होगी. इसलिए इसमें कोई शंका करने की आवश्यकता नहीं है. दोनों प्रकार की हैं एक तो लिफ्ट करते हैं उससे भी और दूसरे से भी है. उपाध्यक्ष महोदय, मैं चाहता हूं कि देश हित में, समाज हित में और भारत को 70 वर्ष आजादी के लिए हो गये हैं और आज भी हम खुले में शौच करने के लिए जायं, हमारे परिवार की मर्यादा भंग हो तो मैं मानकर चलता हूं कि समेकित रूप से हम सभी के लिए राशि की जहां तक बात है, वह कम ज्यादा होती है. पहले कम थी, सभी को जानकारी में है, 1200 रुपए थी, 2200 रुपए हुई, 4200 रुपए हुई, अब 12000 रुपए हो गई. सही बात है कि यह परिवार की मुखिया की भी जिम्मेदारी है, गड्ढा खोदने का काम या दूसरा लेबर का काम भी कर सकता है, मटेरियल का काम सरकार कर देगी या हमारी जो भी एजेंसी है वह कर देगी तो मैं मानकर चलता हूं कि जहां चाह वहां राह भी है. हम इस मामले में सफल होंगे. मैं सभी से आग्रह करता हूं कि इसके लिए समर्थन दें. नमस्कार.
श्री रामनिवास रावत -- आपने अपना स्पष्टीकरण तो दे दिया लेकिन उस समय जो स्थिति होगी जब चुनाव होंगे डिस्क्वालिफिकेशन में है यह चुनाव होंगे तो लोग आपत्ति करेंगे. इनके यहां फ्लश शौचालय नहीं है, जलरहित शौचालय नहीं हैं, देखने कौन जाएगा. क्या चेक करने रिटर्निंग ऑफिसर जाएगा?
श्री गोपाल भार्गव -- इसमें आप बिल्कुल भी कोई शंका न करें. यदि वह शपथ पत्र भी देता है कि मेरे यहां शौचालय है तो मान्य होगा, उसका फार्म खारिज नहीं होगा.
श्री रामनिवास रावत -- इसमें और व्यवथा कर दें या नियमों में जोड़ दें. यह तो नियमों में होगी.
श्री कमलेश्वर पटेल -- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से मंत्री जी से एक सुझाव है, एक निवेदन है कि बहुत सारे ऐसे गरीब हैं जिनके पास शौचालय बनाने के लिये भी जगह नहीं है और शौचालय नहीं बनने की वजह से हमारे सीधी जिले में ही कई लोगों को खाद्यान्न बंद कर दिया गया, निराश्रित मिलना बंद हो गए. इस तरह की हिटलरशाही नहीं होना चाहिए. शौचालय बनें, बहन-बेटियों की इज्जत सुरक्षित रहे, पर इस तरह का कोई फरमान जारी नहीं हो. आपके माध्यम से निवेदन है कि इस तरह की व्यवस्था बनाएं कि जो शासकीय सुविधा है वह उसमें किसी प्रकार की रोक नहीं लगनी चाहिए.
उपाध्यक्ष महोदय – इस प्रकार का प्रावधान नहीं है विधेयक में.
श्री कमलेश्वर पटेल – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, इस तरह का विधेयक में प्रावधान हुआ है.
श्री जालमसिंह पटेल -- माननीय अध्यक्ष महोदय, जिनके यहां जमीन नहीं थी. सरकार ने सरकारी जमीन में उसके लिए शौचालय बनाया. हमारे यहां भी अलग से एक-दो लोग ऐसे मिल गए हैं.
श्री गोपाल भार्गव – नरसिंहपुर जिले में दो ब्लॉक ओडीएफ हो गए हैं.
उपाध्यक्ष महोदय – प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) विधेयक, 2016 पर विचार किया जाय.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
उपाध्यक्ष महोदय - अब विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2 विधेयक का अंग बने.
खण्ड 2 इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियम सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियम सूत्र विधेयक का अंग बने.
श्री गोपाल भार्गव – माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हॅूं कि मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज्य (संशोधन) विधेयक, 2016 पारित किया जाय.
उपाध्यक्ष महोदय – प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज्य (संशोधन) विधेयक, 2016 पारित किया जाय.
प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज्य (संशोधन) विधेयक, 2016 पारित किया जाय.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक पारित हुआ.
विधान सभा की कार्यवाही बुधवार, दिनांक 27 जुलाई, 2016 को प्रात: 11:00 बजे तक के लिए स्थगित.
सायं 5.50 बजे विधान सभा की कार्यवाही बुधवार, दिनांक 27 जुलाई 2016 (5 श्रावण, शक संवत् 1938) के प्रात: 11.00 बजे तक के लिए स्थगित की गई है.
भोपाल. अवधेश प्रताप सिंह
दिनांक: 26 जुलाई 2016 प्रमुख सचिव,
मध्यप्रदेश विधान सभा.