मध्यप्रदेश विधान सभा
की
कार्यवाही
(अधिकृत विवरण)
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पंचदश विधान सभा तृतीय सत्र
जुलाई, 2019 सत्र
मंगलवार, दिनांक 23 जुलाई, 2019
(1 श्रावण, शक संवत् 1941 )
[खण्ड- 3 ] [अंक- 12 ]
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मध्यप्रदेश विधान सभा
मंगलवार, दिनांक 23 जुलाई, 2019
(1 श्रावण, शक संवत् 1941 )
विधान सभा पूर्वाह्न 11.05 बजे समवेत हुई.
{अध्यक्ष महोदय (श्री नर्मदा प्रसाद प्रजापति (एन.पी.) पीठासीन हुए.}
बधाई
चन्द्रयान-2 की सफलता में योगदान पर सदन द्वारा बधाई
अध्यक्ष महोदय - चन्द्रयान-2 की सफलता में वैज्ञानिकों ने देश का नाम विश्व में गौरवान्वित किया है. मध्यप्रदेश के शहर मंदसौर के श्री हिमांशु शुक्ला, कटनी की मेघा भट्ट ने टीम बूस्टर तैयार करने में वैज्ञानिकों की भूमिका में द्वारा महती योगदान दिया है. (मेजों की थपथपाहट) इससे मध्यप्रदेश गौरवान्वित हुआ है एवं दोनों होनहारों को समूचा सदन, मध्यप्रदेश की ओर से बधाई देता है और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है.
मुख्यमंत्री (श्री कमलनाथ) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं भी इस बधाई से जुड़ना चाहता हूँ, जब भी इस प्रकार की सफलता की बात हुई, कुर्बानी या शहीदों की बात हुई, मध्यप्रदेश का नाम आवश्यक रूप से आता है. यह बड़ी खुशी की बात है कि हमारे मध्यप्रदेश के हिमांशु शुक्ला जो मंदसौर के हैं, मेघा भट्टा कटनी से हैं, वे इस प्रयास से जुड़े रहे, इन्होंने बूस्टर बनाया और इनके योगदान से हमारा चन्द्रयान-2 सफल रहा. मुझे कोई शक नहीं है कि यह विश्व में सफलता का उदाहरण बनेगा.
डॉ. नरोत्तम मिश्र (दतिया) - अध्यक्ष महोदय, पड़ोसी देश झण्डे पर चांद बनाता रहा और भारत ने चांद पर झण्डा फहरा दिया. (मेजों की थपथपाहट) ''चांद का सफर" और सूरज पर नजर'', यह इस देश की विशेषता है. चन्द्रमा के दक्षिण में हमारा यान उतरने वाला है, आज तक विश्व का कोई भी देश इस स्थान पर नहीं पहुँचा है, जहां भारत पहुँचने वाला है. यह सफर 48 दिन का है, जैसा मेरी जानकारी में आया है.
अध्यक्ष जी, यह बहुत प्रसन्नता का क्षण है, गौरवान्वित होने का क्षण है. माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी को बहुत बधाई, देश की जनता को बधाई, शुक्ला जी को बधाई, भट्ट जी को बधाई, बहुत-बहुत धन्यवाद.
भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास (श्री आरिफ अकील) - हर बात में मोदी को बधाई, उन्होंने क्या किया ?
डॉ. नरोत्तम मिश्र - आपकी समझ में आ ही नहीं रहा है, कुछ चीजें आपके ऊपर से निकल जाती हैं, लपककर पकड़नी पड़ेंगी इसीलिए तो मैंने कहा कि वह झण्डे पर चांद बनाता रहा और हमने चांद पर झण्डा पहरा दिया. (हंसी)
श्री आरिफ अकील - आपको सिर्फ मोदी ही दिखते हैं, इसके अलावा आगे नहीं दिखता.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - अच्छा, मुझे एक चीज बताओ. दिखते हम दोनों को मोदी ही हैं. (हंसी)
श्री आरिफ अकील - लेकिन हमें नहीं दिखते.
अध्यक्ष महोदय - मुझे एक चीज बता दो. ये दोनों चांद क्यों टकरा रहे हैं ?
लोक निर्माण मंत्री (श्री सज्जन सिंह वर्मा) - माननीय अध्यक्ष महोदय, इनकी नजर चांद और सूरज पर है. हमारी नजर तो मंगल पर है, इनका भी मंगल हो.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - अध्यक्ष जी, ये मंगल पर नजर रखने वाले इस बात की सोच रहे हैं कि मंगल पर कैसे जाएं ? गरीब के घर में मंगल हो, इसकी नहीं सोचते.
श्री सज्जन सिंह वर्मा - माननीय अध्यक्ष महोदय, इसका सरल सा जवाब है. जब मंगलयान छोड़ा गया था, तब माननीय नरेन्द्र मोदी जी को प्रधानमंत्री बने हुए केवल 2 महीने हुए थे. 10 वर्षों की मेहनत मनमोहन सिंह की सरकार और वैज्ञानिकों की थी. प्रधानमंत्री मोदी जी को केवल 2 माह हुए थे, उस समय बड़ी वाहवाही लूट रहे थे, उस समय किसी गरीब की याद नहीं आई कि मंगलयान नरेन्द्र मोदी ने .....
अध्यक्ष महोदय - धन्यवाद.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया (मंदसौर) - माननीय अध्यक्ष महोदय, जैसा गर्व का विषय है, गौरव का विषय है. जैसा आपने प्रारंभ से ही आसंदी से जिस प्रकार से देश के वैज्ञानिकों का मान-सम्मान बढ़ाया और गर्व की अनुभूति आपको, हमको सदन में हुई है, मेरा भी गर्व और अधिक बढ़ रहा है. भगवान पशुपतिनाथ महादेव की नगरी मंदसौर के श्री हिमांशु शुक्ला जो बूस्टर को तैयार करने वाली टीम में सम्मिलित थे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं जब नौवीं, दसवीं और ग्यारहवीं पढ़ता था, तब इनके दादा श्री पुरूषोत्तम शुक्ला जी मेरे खेल गुरू थे, वह उस समय मेरे पी.टी.आई. थे और इनके पिता श्री चंद्रशेखर जी शुक्ला मध्यप्रदेश राज्य परिवहन निगम रोडवेज में एक साधारण से कर्मचारी थे. वैज्ञानिक के पिता इन दिनों रतलाम में वकालत कर रहे हैं और बहुत नीचे से उठते-उठते उनके बेटे और मेरे खेल के गुरू के पौत्र ने जो उपलब्धि हासिल की है, उससे मेरा शहर, मैं स्वयं, आप सब और पूरे देशवासी गर्व की अनुभूति कर रहे हैं. मैं आप सबको एक सुझाव देना चाहता हूं कि ऐसी बड़ी उपलब्धियों में अगर हमारी विधानसभा और माननीय अध्यक्ष महोदय आप कोई निर्देश जारी करें कि विधानसभा के किसी भी सत्र में हम ऐसे वैज्ञानिकों का मानसरोवर ऑडिटोरियम में सम्मान करें, अभिनंदन करें और स्वागत करें, तो बहुत अच्छा होगा, धन्यवाद (मेजों की थपथपाहट)
श्री विश्वास सारंग (नरेला) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, बहुत खुशी की बात है कि आज हम सभी इस बात को लेकर अभिभूत हैं कि आज इस क्षेत्र में हिंदुस्तान दुनिया के चौथे नंबर के राष्ट्र में पहुंचा है और हमारी चंद्रमा पर पहुंच बनी हैं. मैं सभी वैज्ञानिकों को देश की जनता को केंद्र सरकार को और श्री नरेन्द्र मोदी जी को बहुत -बहुत बधाई देता हूं कि उनका यह नारा जय किसान, जय जवान, जय विज्ञान और जय अनुसंधान इसको परिपूर्ण करते हुये हमारे वैज्ञानिकों ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है,इसमें मध्यप्रदेश का बड़ा योगदान है और इस सबको लेकर हम बहुत अभिभूत हैं, धन्यवाद.
श्री संजय सत्येन्द्र पाठक(विजयराघवगढ़) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, चंद्रयान-2 की सफलता में जहां पूरे विश्व में भारत गौरवान्वित हुआ है, वहीं मैं अपने इसरो के सभी वैज्ञानिकों को बधाई देता हूं. मध्यप्रदेश भी बहुत गौरवान्वित हुआ है क्योंकि इस सफलता में मध्यप्रदेश के दो वैज्ञानिक थे और मेरे लिये यह और भी गौरव की बात है कि हमारे कटनी जिले की मेरी विधानसभा कैमोर की ए.सी.सी. के कर्मचारी की बिटिया मेज्ञा इस अभियान में उसकी भी सहभागिता रही है. इसलिये मेरे लिये भी यह गौरव का क्ष्ाण हैं कि मैं ऐसे विधानसभा से प्रतिनिधित्व करता हूं, जहां से एक बिटिया ने निकलकर पूरे विश्व में भारत और मध्यप्रदेश का नाम गौरवान्वित किया है. मैं एक बार फिर से भारत के प्रत्येक नागरिक को इस गौरवपूर्ण क्षण के लिये बधाई देता हूं, वैज्ञानिकों को बधाई देता हूं और बिटिया मेघा को बधाई देता हूं.
श्री लक्ष्मण सिंह (चाचौड़ा) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, आज के दिन हम अगर पंडित नेहरू को याद करें तो और अच्छा होगा (मेजों की थपथपाहट) क्योंकि इसरो का गठन अगर पंडित नेहरू नहीं करते तो न मंगल यान जाता, न ही चंद्रयान जाता. मैं सभी को बधाई देता हूं और साथ में यह चाहता हूं कि पंडित नेहरू जी को भी हम स्मरण करें, धन्यवाद.
श्री अजय विश्नोई (पाटन) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह इसरो जैसे कुछ ऐसे काम हुये हैं, जिसमें वास्तव में देश के हर उस नेतृत्व को बधाई देना चाहिये और स्मरण करना चाहिये, जिनके नेतृत्व में इसकी शुरूआत हुई और आज हम इस लक्ष्य तक पहुंचे हैं. इसमें दलगत और राजनीतिक रूप से नाम लेना उचित नहीं है, इसके लिये पंडित नेहरू जी को बधाई देना चाहिये, उसके बाद के प्रधानमंत्रियों को भी बधाई देना चाहिये. डॉ. मनमोहन सिंह को बधाई देना चाहिये और श्री नरेन्द्र मोदी जी जो आज इसका नेतृत्व कर रहे हैं, उनको भी बधाई देना चाहिये. हम इसके साथ-साथ श्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी नहीं भूल सकते हैं, जो पोखरण विस्फोट में अग्रिम रूप से आगे आये थे और देश को मजबूत करने का काम किया था, इसलिये इसरो के इस काम के लिये दलगत राजनीति से ऊपर उभरकर पूरे सदन की बधाई है, धन्यवाद.
श्री लक्ष्मण सिंह -- मैं आपसे सहमत हूं.
श्री हरदीप सिंह डंग (सुवासरा) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, चूंकि मंदसौर जिले का मामला है, इसलिये मैं भी कुछ बोल देता हूं कि ''चांद सी मेहबूबा हो मेरी, कब ऐसा मैंने सोचा था'' बिल्कुल ऐसा का ऐसा ही आज जो मंदसौर जिले के हिमांशु जी ने और मेघा जी ने जो करके दिखाया है, उससे मंदसौर जिले सहित पूरे मध्यप्रदेश मैं जो गौरव बढ़ा है, उसके लिये मैं अपनी विधानसभा और पूरे क्षेत्र की तरफ से बधाई देता हूं और बहुत-बहुत शुभकामनाएं और बधाई, धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय -- (श्री यशपाल सिंह सिसौदिया जी द्वारा अपने आसन पर बैठे-बैठे मेहबूबा शब्द को विलोपित किये जाने का बोलने पर और इसी बात के समर्थन में डॉ. नरोत्तम मिश्र जी के अपने आसन पर खड़े होने पर) अभी आप ठीक कर देना, आप रूक जाईये, अभी इनको बोल लेने दीजिये, उसके बाद फिर आप जरा ठीक कर देना. डॉ. नरोत्तम मिश्र जी आप ठीक कर देना.
संस्कृति एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री (डॉ.विजयलक्ष्मी साधौ) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, हमारे प्रदेश के युवाओं की भागीदारी हम सबके लिये बहुत अनुकरणीय हैं. मेघा भट्ट और हिमांशु शुक्ला, मेघा भट्ट अगर यहां है तो मेरा बोलना उचित होता है. कहा जाता है कि ''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:'' और इसके साथ-साथ यह भी कहा जा रहा है कि ''ढोल, गंवार,शूद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी'' इन परिस्थितियों में महिलाओं के लिये जो फील्ड वर्जित थी और जो फील्ड उनकी पहुंच से बाहर कही जाती थीं, वहां पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराना और देश को ही नहीं विश्व में अपनी पहचान बनाना, यह बहुत ही अनुकरणीय है (मेजों की थपथपाहट) मैं इस सदन के माध्यम से दोनों को बहुत-बहुत धन्यवाद देती हूं और उन्होंने हमारे प्रदेश का नाम बढ़ाया है, इसलिये बहुत-बहुत धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय-- आप कोई संशोधन ला रहे थे.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- माननीय अध्यक्ष महोदय, उसमें महबूबा शब्द आया है, वह बिटिया है मेरे ख्याल से उसको हटा देते.
अध्यक्ष महोदय-- क्या आया है.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- चांद सी महबूबा हो, भाई ने कहा था न तो महबूबा शब्द हटा देते. उसमें वह शब्द कहीं आना नहीं चाहिये.
श्री हरदीप सिंह डंग-- माननीय अध्यक्ष महोदय..
अध्यक्ष महोदय-- हरदीप जी बैठ जाइये, क्यों फंस रहे हो, जिस शब्द का यह उल्लेख कर रहे हैं उसमें आप लोग मत फसिये.
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव)-- अध्यक्ष जी, हम सभी और पूरा देश गौरवांवित है. आज हमारे देश के दो वैज्ञानिक जिनमें हिमांशु शुक्ला जी है, मेघा भट्ट जी हैं, ये चंद्रमा पर उतरेंगे, आज से प्रक्षेपण हुआ है. अध्यक्ष महोदय, यह बात सही है कि पहले चंद्रमा के बारे में हम लोगों की कल्पनायें होती थीं, अनेकों कथानक, अनेकों साहित्य, अनेकों गीत, अनेकों कवितायें चंद्रमा के ऊपर लिखी गईं. फिल्मों में भी जब हम देखते हैं, कई गाने बड़े प्रसिद्ध होते थे, बच्चों के लिये खास तौर से चंदा मामा शब्द,
''चंदा मामा से प्यारा मेरा मामा,
जग की आंखों का तारा मेरा मामा''
जैसा कि सरदार जी कह रहे थे मैं थोड़े परिष्कृत रूप में कहूंगा-
''चलो दिलदार चलें, चांद के पार चलें, हम हैं तैयार चलें''
अध्यक्ष महोदय, वह तैयारी आज पूरी हो गई. कभी हम सबके लिये जो कल्पना की बातें होती थीं, वह साकार होने जा रही हैं. मैं उन तमाम वैज्ञानिकों के लिये, हमारे देश के नेतृत्वकर्ता उन शख्सियतों के लिये, चाहे नेहरू जी हों, अटल जी हैं, हमारे मोदी जी हैं, सभी के लिये मैं धन्यवाद देता हूं. सभी का समान योगदान है. बजट में यदि राशि का प्रावधान नहीं करते, ठीक है कोई शोध शुरू हुआ था, कोई कार्यक्रम शुरू हुआ था और उसकी उपेक्षा करके उसको रोक देते तो आज यह स्थिति नहीं आ पाती और इस कारण से मैं सभी लोगों के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं. हमारे जो भी राष्ट्रीय नेतृत्व के पुरोधा रहे हैं, हम सबके लिये गर्व और गौरव की बात है. हम जब अपने पड़ोसी देशों के लिये देखते हैं कि वह कितने पिछड़ रहे हैं, दुनिया में उनका सम्मान कम हो रहा है, लेकिन हमारा सम्मान निरंतर बढ़ रहा है और सम्मान उनका नहीं बढ़ रहा है, सम्मान पूरे देश का बढ़ रहा है, देशवासियों का भी बढ़ रहा है, तो भारत के लिये जो सम्मान इस प्रक्षेपण के माध्यम से मिला है, निश्चित रूप से दुनिया में हमारे देश के लिये, प्रत्येक नागरिक का गर्व से सिर ऊंचा हुआ है. मैं सभी को धन्यवाद देता हूं और उसकी सफलता की भी कामना करता हूं.
11.18 बजे तारांकित प्रश्नों के मौखिक उत्तर
जिला सह. बैंक मंदसौर में वेयरहाउस ऋण वितरण की जाँच
[सहकारिता]
1. ( *क्र. 3138 ) श्री राम दांगोरे : क्या सामान्य प्रशासन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या जिला सहकारी बैंक मंदसौर में अनूप कुमार जैन एम.डी. की पदस्थापना के समय वेयरहाउस ऋण वितरण में 15 करोड़ रूपये की अनियमितता हुई थी जिसमें अनूप कुमार जैन एवं बैंक के 40-50 कर्मचारियों को सहकारिता विभाग एवं नाबार्ड द्वारा जाँच में दोषी पाया गया था? जाँच के आधार पर क्या मंदसौर एवं नीमच में अनूप कुमार जैन एम.डी. एवं बैंक के कर्मचारियों को सजा हुई? यदि हाँ, तो अनूप कुमार जैन पर आज दिनांक तक कार्यवाही क्यों नहीं की गई? (ख) यदि कार्यवाही चल रही है तो कितने समय में श्री जैन पर कार्यवाही हो जाएगी? बैंक की अनियमितता की आज दिनांक पर कितनी राशि शेष है? (ग) क्या वर्तमान में इसी प्रकरण में श्री जैन को निलंबित भी किया गया था, किंतु उन पर एफ.आई.आर. की कार्यवाही नहीं की गई है और जैन को बहाल कर दिया गया? यदि हाँ, तो क्यों?
सामान्य प्रशासन मंत्री ( डॉ. गोविन्द सिंह ) : (क) जी हाँ, जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित, मंदसौर में मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पद पर श्री अनूप कुमार जैन की पदस्थापना के समय वेयरहाउस के ऋण वितरण की अनियमितता के संबंध में जाँच विभाग एवं नाबार्ड द्वारा की गई थी, जिसमें श्री अनूप कुमार जैन तथा बैंक की शाखा जीरण, सावन एवं नीमच के तत्कालीन शाखा प्रबंधक दोषी पाये गये थे। बैंक की शाखा जीरण, सावन एवं नीमच के तत्कालीन शाखा प्रबंधकों, वेयरहाउस के मालिकों एवं ऋणियों के विरूद्ध अपराधिक प्रकरण दर्ज कराये गये थे जिसमें चालान प्रस्तुत हो चुका है। प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है, अभी तक किसी को भी सजा नहीं हुई है। जाँच प्रतिवेदन के आधार पर श्री अनूप कुमार जैन की विभागीय जाँच म.प्र. राज्य सहकारी बैंक द्वारा संस्थित की गई। विभागीय जाँच पूर्ण होकर अंतिम दण्डादेश जारी करने के पूर्व व्यक्तिगत सुनवाई हेतु अपेक्स बैंक द्वारा दिनांक 05.07.2019 को पत्र जारी किया गया है। (ख) उत्तरांश (क) अनुसार कार्यवाही की जा रही है, समय-सीमा बताया जाना संभव नहीं है। वेयरहाउस की रसीदों के तारण पर ऋण वितरण में अनियमितता में ब्याज सहित राशि रू. 1719.72 लाख बकाया है। (ग) श्री अनूप कुमार जैन के विरूद्ध जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित खंडवा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पद पर पदस्थी अवधि में अनियमितता प्रकाश में आने पर अपेक्स बैंक के आदेश दिनांक 29.10.2018 से निलंबित किया गया था, निलंबन आदेश में जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित, मंदसौर में तारण ऋण में अनियमितता का भी उल्लेख किया गया था। जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित, मंदसौर के तारण ऋण के संबंध में श्री जैन के विरूद्ध उत्तरांश (क) अनुसार पूर्व से विभागीय जाँच संस्थित की जा चुकी थी। जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित, मंदसौर में वेयरहाउस की रसीद के तारण पर ऋण वितरण में अनियमितता के संबंध में जनवरी, 2015 में 04 एफ.आई.आर. संबंधित शाखा प्रबंधक, वेयरहाउस मालिक एवं ऋणग्रहिताओं के विरूद्ध उत्तरांश (क) अनुसार दर्ज की गई थी। श्री अनूप कुमार जैन को जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित, खंडवा के संबंध में दिनांक 02.04.2019 को विभागीय जाँच संस्थित कर निलंबन से बहाल किया गया। श्री अनूप कुमार जैन का नाम अपराधिक प्रकरण में जोड़ने की कार्यवाही करने हेतु जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मंदसौर को निर्देश दिये गये हैं।
श्री राम दांगोरे-- धन्यवाद, आदरणीय अध्यक्ष जी, समस्त विधान सभा सदस्यों को मैं सादर प्रणाम करता हूं और आज पहली बार इस सदन में पूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय अटल जी की कविता के साथ में अपने शब्दों की शुरूआत करता हूं-
''बाधायें आती हों आयें, घिरे प्रलय की घोर घटायें,
पैरों में अंगारे हों, सर पर बरसे यदि ज्वालायें,
निज हाथों में हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा.''
माननीय मंत्री जी, मेरा प्रश्न है कि क्या जिला सहकारी बैंक मंदसौर में अनूप कुमार जैन, एम.डी. की पदस्थापना के समय वेयर हाउस ऋण वितरण में 15 करोड़ रूपये की अनियमितता हुई थी, जिसमें अनूप कुमार जैन एवं बैंक के 40-50 कर्मचारियों को सहकारिता विभाग एवं नाबार्ड द्वारा जांच में दोषी पाया गया था. जांच के आधार पर क्या मंदसौर एवं नीमच में अनूप कुमार जैन, एम.डी. एवं बैंक के कर्मचारियों को सजा हुई, यदि हां तो अनूप कुमार जैन पर आज दिनांक तक कार्यवाही क्यों नहीं की गई.
अध्यक्ष महोदय-- दांगोरे जी, यह तो आपने लिखित में प्रश्न दिये थे जिसका लिखित में उत्तर भी आ गया है. अब आपने जो प्रश्न दिये थे और जो उत्तर पढ़ा उससे क्या नया प्रश्न उद्भूत हो रहा है, कष्ट करके उसको सूचित करें.
श्री राम दांगोरे - आदरणीय मंत्री जी, जैसा कि बैंक के द्वारा संबंधित थाना क्षेत्र में संबंधित अधिकारियों के खिलाफ आवेदन दिया गया था लेकिन सांठगांठ के माध्यम से जो मुख्य मास्टर माईंड आफ क्राईम ए.के.जैन है उसको छोड़कर सबके खिलाफ एफ.आई.आर. क्यों दर्ज हुई और ए.के.जैन के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज क्यों नहीं की गई ?
डॉ. गोविन्द सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, यह घटना बैंक में उस समय हुई जब भारतीय जनता पार्टी का निर्वाचित बोर्ड था और उनके वहां अध्यक्ष थे. मैं कहना चाहता हूं कि यह घटना 2011 से 2014 तक की है. 2015 में एफ.आई.आर. हुई और आपकी पुलिस थी.एफ.आई.आर.में उन्होंने72 जो गोदाम कीपर हैं कर्मचारी हैं, मुख्य कार्यपालन अधिकारी हैं, सबके विरुद्ध आरोप लगाकर एफ.आई.आर. दर्ज की थी, परन्तु वहां की पुलिस ने जांच की और इन्वेस्टीगेशन में यह पाया गया कि चूंकि यह ऋण वितरण जिन शाखाओं में हुआ था, तो तीनों शाखाएं जीरण, सावन और नीमच. इन तीनों शाखाओं के प्रबंधकों पर अपराध पंजीबद्ध किया गया, किन्तु इसमें भी अभी तक किसी को सजा नहीं मिली है. क्योंकि ए.के.जैन बैंक का एम.डी. है, इसके विरुद्ध जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित, मंदसौर के तारण ऋण के संबंध का भी उल्लेख किया गया था. गल्ला किसान, जो गोदाम में बैठता है उसमें न उसका रोल रहता है न उसको जानकारी रहती है. यह अलग-अलग शाखाओं का मामला था इसलिये आपकी सरकार ने ही उसको आरोपी नहीं माना लेकिन उसके बाद भी बैंक ने आरोपपत्र दिया और आरोप पत्र जारी करने के बाद उसको निलंबित किया था. निलंबित किया, फिर आरोप पत्र दिया, फिर जांच हुई और जांच में भी उसको दण्डित किया गया, विभागीय जांच के द्वारा. अब आपसे मैं कहना चाहता हूं कि जब आपने प्रश्न लगाया तो हमने, कहीं कोई कमी रह गई हो, अगर वह दोषी हो और उसको किसी अधिकारी ने बचाया हो, तो पुन: इस जांच के लिये निर्देश दिये हैं और जांच में अगर फिर कोई तथ्य मिलते हैं और आपके पास अगर कोई तथ्य हैं कि वह दोषी है, तो भले ही उस पर वरद हस्त रहा हो आपकी सरकार का, माननीय कमलनाथ जी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार किसी को बख्शेगी नहीं. भ्रष्टाचारियों को सबक सिखायेगी और हमारी जितनी ताकत होगी उसको जेल पहुंचाने का काम करेंगे.
श्री राम दांगोरे - आदरणीय मंत्री जी, यह जो सरकार है न तो बी.जे.पी. की है न कांग्रेस की, यह जनता की सरकार है. दूसरा आपके पास जो जवाब आया है. आपने कहा कि 2015 में कार्यवाही की गई है जबकि मेरे पास जो प्रमाणित दस्तावेज हैं उसमें 20.10.2016 को एफ.आई.आर. के लिये जब जिला सहकारी बैंक ने थाने को एप्लीकेशन दी है तो आपके पास कौन से कागज आ गये ? दूसरा, जब उनको निलंबित कर दिया गया तो उसके बाद उनकी बहाली का सवाल ही नहीं उठता. मेरा सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि अभी तक उनको निलंबित क्यों नहीं किया गया है और उन पर एफ.आई.आर. क्यों नहीं हुई है. जिला सहकारी बैंक की जो जांच रिपोर्ट आई है उसमें भी वे दोषी पाये गये हैं और नाबार्ड द्वारा अलग से जो जांच करवाई गई उसमें भी वह दोषी पाये गये हैं. इस व्यक्ति ने 17 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का करप्शन किया है और मास्टर माईंड व्यक्ति है और यह जहां-जहां पर भी रहा है वहां-वहां पर इस व्यक्ति ने व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार किया है और इसके अलावा भी कई सारे लोगों को भी इसने दबाव और धमकी देकर इस भ्रष्टाचार में सम्मिलित किया है. अध्यक्ष महोदय, मेरा आपसे निवेदन है कि इसको तत्काल निलंबित किया जाना चाहिये और आपको अभी आदेश देना चाहिये कि इन पर तत्काल एफ.आई.आर. हो.
डॉ. गोविन्द सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, एक बार एफ.आई.आर. की जा चुकी है और आपकी सरकार ने एफ.आई.आर. में उसको दोषी नहीं माना है. मैं आपसे पुन: कह रहा हूं कि आप हमें तथ्य दे दें कि वे इसमें दोषी हैं तो हमने दोबारा जांच के लिये लिख दिया है,अगर जांच में कोई कमी रही होगी, इन्वेस्टीगेशन में कोई कमी रही होगी तो दोबारा हमने पत्र लिखा है कार्यवाही करने के लिये और सुनिये आपके कहने से निलंबित नहीं करेंगे. दोषी पाया जायेगा तो निलंबित भी करेंगे सजा भी करेंगे.
श्री राम दांगोरे - आदरणीय मंत्री जी, ठीक है, बिल्कुल सही है लेकिन मुझे आप एक बात बताईये कि बाकी के खिलाफ एफ.आई.आर. क्यों दर्ज की गई ? मास्टर माईंड को क्यों छोड़ दिया गया ?
अध्यक्ष महोदय - माननीय विधायक जी, प्रश्न करना अच्छी बात है. जब माननीय मंत्री जी उत्तर देते हैं तो उसका भी श्रवण किया करिये, क्योंकि जो आप बार-बार पूछ रहे हैं उसका उत्तर वे दे चुके हैं. अब मेरा आपसे अनुरोध है कि अगर आपके पास कोई प्रमाण के दस्तावेज हैं. आप उनको पटल पर रख दीजिये. उनकी भी जांच हो जायेगी. कृपया बैठिये.
श्री राम दांगोरे - आदरणीय अध्यक्ष महोदय, लेकर आया हूं. (दस्तावेज दिखाए गए) अध्यक्ष महोदय, एक मिनट और चाहता हूं कृपया बोलने की अनुमति दी जाये.
अध्यक्ष महोदय - हो गया. मैंने पूरे दस्तावेज पटल पर रखवा दिये.
विधायक निधि से स्वीकृत कार्यों का भुगतान
[योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी]
2. ( *क्र. 694 ) श्री सुदेश राय : क्या वित्त मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या विधायक अपनी निधि से जो कार्य स्वीकृत करते हैं, उसमें यदि एजेंसी लघु उद्योग निगम को बनाया जाता है तो कार्य का भुगतान मात्र एक सप्ताह में हो जाता है और इसके अतिरिक्त एजेंसी किसी अन्य को बनाया जाता है तो कार्य होने के उपरांत भी भुगतान कई महीनों तक लंबित होने से निर्माण एजेंसी को काफी परेशानी होती है, कभी-कभी तो राशि लेप्स भी हो जाती है? यदि हाँ, तो इसके क्या कारण हैं? (ख) क्या विधायक निधि से ग्रामीण क्षेत्र में ग्राम पंचायत एवं शहरी क्षेत्र में नगर पालिका को एजेंसी बनाये जाने से इनका भुगतान जिले से सीधे इन एजेंसी के खाते में जाता है, यदि इसके अतिरिक्त एजेंसी लो.नि.वि. अथवा लो.स्वा.यां.वि. अथवा किसी अन्य को बनाया जाता है तो उसकी राशि जिले से उसके खाते में सीधे न आते हुये उसके विभाग प्रमुख के माध्यम से आती है इस प्रक्रिया में समय बहुत लगने से भुगतान में काफी विलंब होता है, कभी-कभी तो राशि लेप्स भी हो जाती है, यदि हाँ, तो इसका क्या कारण है?
वित्त मंत्री ( श्री तरूण भनोत ) : (क) विधायक निधि से स्वीकृत कार्यों की राशि सभी एजेन्सियों को जारी करने की कार्यवाही अविलम्ब कर दी जाती है। अतः लघु उद्योग निगम को जल्दी भुगतान करने का प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। कार्यान्वयन एजेन्सी द्वारा समय पर राशि का उपयोग नहीं करने से राशि लेप्स होती है। (ख) राशि वित्त विभाग की व्यवस्था के अनुसार क्रियान्वयन एजेन्सी को अंतरित की जाती है। बजट नियंत्रण अधिकारी से बजट नियंत्रण अधिकारी को राशि अंतरित करने के प्रकरणों में विलम्ब नहीं होता है। सामान्यतः राशि लेप्स होने की स्थिति क्रियान्वयन विभाग के स्तर पर ही निर्मित होती है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है।
श्री सुदेश राय - अध्यक्ष महोदय, मेरा सवाल विधायक निधि से संबंधित है और यह मेरे अकेले की समस्या नहीं है अपितु यहां जितने सदस्य बैठे हैं यह सभी की समस्या होगी तो मैं आप सभी का संरक्षण चाहूंगा . मेरा सवाल माननीय वित्तमंत्री जी से है. विधायक अपनी निधि से जो कार्य स्वीकृत करते हैं उसमें यदि एजेंसी लघु उद्योग निगम को बनाया जाता है तो कार्य का भुगतान मात्र एक सप्ताह में हो जाता है. इसके अतिरिक्त एजेंसी कोई और होती है तो उसे महीनों-महीनों भुगतान नहीं होता है. कृपया इसका कारण बताएं?
वित्त मंत्री (श्री तरुण भनोत) - अध्यक्ष महोदय, हमारे लिये बहुत महत्वपूर्ण है कि जो आदरणीय सदस्य विधायक निधि से काम कराते हैं उनका भुगतान तुरन्त हो और काम भी अविलंब हो. भुगतान के कारण काम में देरी न हो. ऐसा कोई भी एक प्रकरण आप मुझे बता दें. मैंने परिशिष्ट में जानकारी आपको पूरी उपलब्ध कराई है जहां तक आपके विधानसभा से जो संबंधित है पिछले 5 वर्ष में जितने भी कार्य आपने विधायक निधि से कराए, वे सब एक हफ्ते के अंदर भुगतान की स्थिति में आ गये हैं. हां, आप अगर कोई ऐसा तरीका और बताएं कि इसको हम और सरल कर सकते हैं तो हम उसको स्वीकार कर लेंगे.
श्री सुदेश राय - अध्यक्ष महोदय, मेरा यह कहना है कि लघु उद्योग निगम जो भी एजेंसी है हम उससे 100 रुपये की चीज 200 रुपये क्यों खरीदे?
श्री तरुण भनोत - यह उद्भूत कहां से हो गया?
श्री सुदेश राय - मेरा सवाल माननीय वित्तमंत्री जी से यह है कि इसका सरलीकरण करें.
श्री तरुण भनोत -अध्यक्ष महोदय, लघु उद्योग निगम कहां से आ गया? किससे खरीदी है, यह प्रश्न तो उद्भूत ही नहीं होता है. आपने यह पूछा कि विधायक निधि से जो काम होते हैं, उनके भुगतान में देरी नहीं होनी चाहिए और मैं इस बात से सहमत हूं. हमने इसका परीक्षण किया. ऐसा नहीं हुआ. अगर आपको कहीं ऐसा लगता है कि आपके पास ऐसा कोई सुझाव है कि हम इसको और बेहतर तरीके से और त्वरित कर सकते हैं..
श्री सुदेश राय - अध्यक्ष महोदय, ये दोनों एक-दूसरे से कनेक्टेड हैं.
श्री तरुण भनोत - लघु उद्योग निगम की खरीदी मुझसे कैसे कनेक्टेड है?
अध्यक्ष महोदय - यह इससे उद्भूत नहीं हो रहा है.
श्री सुदेश राय - अध्यक्ष महोदय, क्यों नहीं है?
अध्यक्ष महोदय - श्री सुदेश जी, जो आप पूछ रहे हैं वह इससे उद्भूत नहीं हो रहा है.
श्री सुदेश राय - अध्यक्ष महोदय, मेरा सवाल यह है कि माननीय मंत्री जी ने यह माना कि मेरे साथ जो समस्या है, ठीक है मैं आपको अवगत करा दूंगा. जो जनरल प्रॉब्लम है जैसे मेरा दूसरा सवाल है, इसमें ग्रामीण क्षेत्र में राशि ग्राम पंचायत को दे दी जाती है. शहरी क्षेत्र में नगरपालिका को दी जाती है. इसके अलावा अगर लोक निर्माण विभाग या लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को यह राशि दी जाती है तो यह किस माध्यम से दी जाती है, वह इनके मूल विभाग के पास जाती है उसके बाद यह उस जिले में आती है तो इसमें इतना डिले हो जाता है कि काम भी समय से पूरा नहीं हो पाता है और जो भी संबंधित ठेकेदार है वह बेचारा चक्कर लगाता रहता है. कुल मिलाकर मेरा कोई बहुत बड़ा सवाल नहीं है. मेरी आपसे यह उम्मीद है कि आप अच्छे काम करना चाह रहे हैं और कर रहे हैं कृपया इसका सरलीकरण करें.
श्री तरुण भनोत - अध्यक्ष महोदय, मैंने पूर्व में ही कहा कि हम तो चाहते हैं, बहुत सरल प्रक्रिया है. आपने पूछा कि जिस एजेंसी से माननीय विधायक कहते हैं, प्रस्तावित करते हैं उससे काम होता है और उसको भुगतान होता है. अगर आपके पास कोई मेथड, सिस्टम आपको लगता है इसका और सरलीकरण हो सकता है तो मैं सारे सदस्यों से कहता हूं आप बता दीजिए. हम उसको इम्प्लीमेंट करके लागू कर देंगे. हम तो चाहते हैं कि माननीय विधायकों के काम जल्दी से जल्दी पूरे हो जायं, उसमें राशि में कहीं से रोक नहीं है.
श्री सुदेश राय - अध्यक्ष महोदय, मेरा सिर्फ यह निवेदन है कि जैसे पीएचई, पीडब्ल्यूडी को भी राशि डायरेक्ट दी जाय क्योंकि वहां हैड ऑफिस जाती है वहां से यहां पर आती है. हमारा उससे तो कोई संबंध नहीं है.
श्री तरुण भनोत -सम्माननीय सदस्य, हमने आपको जो उत्तर दिया है आप उसका अध्ययन अच्छे से करें.
श्री सुदेश राय - अध्यक्ष महोदय, और कोई समस्या होगी तो मैं आपसे पर्सनली मिल लूंगा.
श्री तरुण भनोत - जरूर व्यक्तिगत मिलते रहिएगा, स्वागत है.
श्री सुदेश राय - अध्यक्ष महोदय, विधायक निधि बढ़ाने का भी माननीय सदस्यों का एक आग्रह है . माननीय मुख्यमंत्री जी भी इसकी कृपया स्वीकृति की कृपा करें.बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री जालम सिंह पटेल - अध्यक्ष महोदय, आरईएस में जो पैसा देते हैं विधायक निधि से, मार्च के बाद वह विभाग में आ जाता है और फिर 3-4 महीने बाद वापस जाता है. जैसे आरईएस को हमने यदि एजेंसी बनाया और मार्च तक अगर हमारा काम नहीं हुआ तो सारी की सारी हमारी विधायक निधि आरईएस की जो निधि होती है उसके साथ हो जाती है, 4 महीने बाद पुनः वह पैसा वापस जाता है. मैं माननीय मंत्री जी से आग्रह करता हूं और जानकारी भी देना चाहता हूं कि ऐसा होता है.
श्री तरुण भनोत -आदरणीय ऐसा मेरी जानकारी में नहीं होता है, अगर आपके पास ऐसी कोई जानकारी है...
श्री जालम सिंह पटेल - अध्यक्ष महोदय, मेरी जानकारी में है मैं इसका भुगत-भोगी हूं. आप इसका परीक्षण करा लें.
श्री तरुण भनोत - आप मेरा उत्तर सुन लें, बिल्कुल आप जानकारी उपलब्ध कराएं, मैं उसका परीक्षण करा लेता हूं और मैं फिर से कह रहा हूं सरलीकरण हेतु अगर कोई सुझाव है तो बताएं.
अध्यक्ष महोदय- डॉ. सीतारसरन शर्मा..मुझे आगे के भी प्रश्न लेना है, मैं मूल प्रश्न में सिर्फ अतिरिक्त एक प्रश्न अलाऊ करूंगा.
श्री रामेश्वर शर्मा -- एक सेकण्ड का निवेदन है कि आज मुख्यमंत्री जी सदन में हैं और मुख्यमंत्री जी का संसदीय अनुभव बहुत लंबा है. विधायकों और सांसदों के पास में समस्याओं को हल करने के लिए, विधायकों के काम करने के लिए एक मात्र विधायक निधि होती है और हम चाहते हैं कि मुख्यमंत्री जी सदन में हैं . सभी सदस्यों की राय है कि विधायक निधि बढ़ायी जाय सभी सदस्य इससे सहमत हैं.
अध्यक्ष महोदय-- एक इतना विद्वान व्यक्ति सदन में खड़ा है ( डॉ सीतासरन शर्मा जी को इंगित करते हुए) और यह पीछे से(रामेश्वर शर्मा जी को इंगित करते हुए) जिस निधि की बात कर रहे हैं उसका पहले माहौल बनाओ ऐसे नहीं होता है.
श्री रामेश्वर शर्मा -- अध्यक्ष महोदय 175 से ज्यादा विधायकों ने लिखकर दिया है.
नेता प्रतिपक्ष ( श्री गोपाल भार्गव ) -- अध्यक्ष महोदय मैं नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपने दल के सदस्यों की तो पीड़ा समझता हूं, लेकिन सामने जो विधायक हैं उनकी पीड़ा भी समझता हूं. इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए पिछले कार्यकाल में जब विधायक निधि लगभग समाप्त हो गई थी. हमारे सभी साथी इस बात के गवाह हैं जो दूसरी बार चुनकर आये हैं. मैंने 50 - 60 लाख रूपये की व्यवस्था विभिन्न कार्यों के लिए सभी विधायकों के लिए समान रूप से की थी. विधायकों के ऊपर इस बात का बहुत ज्यादा इस बात का दवाब रहता है कि उनके छोटे छोटे से काम होते हैं जिनके लिए पीडब्ल्यूडी, एरिगेशन या फिर पीएचई में भी प्रावधान नहीं होता है, शायद कुछ विभागों के बजट भी कम हो गये हैं. इस कारण से लगता है कि और भी ज्यादा दिक्कत आये. यदि मुख्यमंत्री जी अनुकंपा करके राशि को बढ़ाने का काम कर देंगे तो यह विधायक हैं यह थोड़े से समस्या में रहते हैं इस गांव में करें, उस गांव में करें, इस कम्यूनिटी के लिए करें, उस कम्यूनिटी के लिए करें, तो इससे निश्चित रूप से उनको थोड़ी सी राहत मिल जायेगी.
मुख्यमंत्री ( श्री कमलनाथ ) -- माननीय अध्यक्ष महोदय यह सुझाव तो अच्छा है. जब मैं संसद में था तो हम भी कहते थे कि सांसद निधि को बढ़ाया जाय लेकिन वहां पर हमारी बात कोई नहीं सुनता था. मैं उनमें से नहीं रहना चाहता हूं जिसकी बात नहीं सुनी जाय, लेकिन इसका भी इस मौके पर मैं थोड़ा सा खुलासा करना चाहता हूं कि यह जो तिजोरी आपने हमें सौंपी है, यह आपने खुद ही स्वीकार किया है, फिर भी खाली तिजोरी में से जितना हम समेट सकते हैं विधायकों के लिए यह प्रश्न इस तरफ या उस तरफ का नहीं है यह सब विधायकों का है कि विधायकों को जनसेवा में कुछ राहत मिले. हमारा पूरा प्रयास रहेगा हम प्रतिपक्ष के नेता और विभिन्न नेताओं के साथ बैठकर इस पर चर्चा करेंगे. यह भी मैं कह दूं कि आपको निराश नहीं होने देंगे. प्रतिपक्ष के नेता संतुष्ट हो जायेंगे, धन्यवाद देंगे.
अध्यक्ष महोदय -- नेता प्रतिपक्ष जी अब इस विषय को यहीं पर छोडिये.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया -- आप तो आज ही सदन को संतुष्ट कर दें.
श्री विश्वास सारंग -- आप तो आज ही घोषणा कर दें.
श्री गोपाल भार्गव -- अध्यक्ष महोदय, मैं तो हमेशा संतुष्ट हूं यह हो या नहीं हो, लेकिन मैं यह मानकर चलता हूं कि आज मुझे खुशी है कि हमारे अधिकांश सदस्य, चाहे पक्ष के हों या विपक्ष के हों, आज सदन में उपस्थित हैं. बहुत कम बार ऐसी उपस्थिति देखने को मिलती है. मैं यहां पर सभी सदस्यों की जागरूकता के लिए और विधायी कार्यों के लिए उनकी प्रतिबद्धता के लिए उनको धन्यवाद देना चाहता हूं कि इतनी अच्छी संख्या में सभी विधायक यहां पर हैं. ऐसे स्वर्णिम समय में और ऐसे अनुकूल समय में ऐसी उपस्थिति में यह घोषणा होगी तो जब यह सभी विधायक अपने क्षेत्रों को लौटेंगे तो एक खुशी का माहौल होगा.
श्री तरूण भनोत -- अध्यक्ष महोदय माननीय सदस्यों ने जब बजट पर चर्चा हो रही थी तब अवगत कराया था. हमने पूरे सदन के सदस्यों की भावना से पहले भी मुख्यमंत्री जी को अवगत कराया था. उन्होंने कहा था कि इस पर विचार करके जरूर बढायेंगे, यह बहुत अच्छी बात है कि आज सदन में भी यह बात हो गई है निश्चिंत रहिये मुख्यमंत्री जी पहले ही निर्देशित कर चुके हैं, परंतु चूंकि आज सदन में उन्होंने यह कहा है कि नेता प्रतिपक्ष के साथ बैठकर और सम्मानित सदस्यों के साथ बैठकर तय कर लेंगे, इसलिए यह बात हमें इन पर ही छोड़ देना चाहिए.
श्री विश्वास सारंग -- अध्यक्ष महोदय, मुख्य मंत्री जी एवं वित्त मंत्री जी खुद ही लक्ष्मीपुत्र हैं, अपनी तरफ से भी आप दोनों दे सकते हैं.
श्री तरुण भनोत -- अभी तो सिर्फ नरोत्तमम जी दे रहे हैं सबको.
अध्यक्ष महोदय -- धन्यवाद. प्रश्न संख्या 3.
श्री विश्वास सारंग -- हम भगवान से प्रार्थना करेंगे कि और लक्ष्मी आप पर बरसे.
अध्यक्ष महोदय -- विश्वास जी, डॉ. सीतासरन शर्मा जी की वरिष्ठता का तो ध्यान रखें.
शास. पॉलीटेक्निक, होशंगाबाद में नवीन पाठ्यक्रम प्रारंभ किया जाना
[तकनीकी शिक्षा, कौशल विकास एवं रोज़गार]
3. ( *क्र. 2614 ) डॉ. सीतासरन शर्मा : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या होशंगाबाद जिले के शासकीय पॉलीटेक्निक, होशंगाबाद में पाँच तकनीकी पाठ्यक्रम प्रारंभ करने की अनुमति शासन द्वारा नवम्बर 2016 में दी जा चुकी है? यदि हाँ, तो कौन-कौन से पाठ्यक्रमों की? (ख) क्या शासकीय पॉलीटेक्निक, होशंगाबाद में उक्त पाठ्यक्रम प्रारंभ हो चुके हैं? यदि नहीं तो क्यों? (ग) क्या नवम्बर 2016 में शासन की अनुमति के बाद भी नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रेडिटेशन से प्रमाण-पत्र प्राप्त न करने के कारण उक्त पाठ्यक्रम प्रारंभ नहीं हो पा रहे हैं? (घ) यदि हाँ, तो उक्त प्रमाण-पत्र हेतु निर्धारित शर्तों को पूरा करने में शासन की असमर्थता के क्या कारण हैं? (ड.) शासन कब तक नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रेडिटेशन से प्रमाण-पत्र प्राप्त कर नवीन पाठ्यक्रम प्रारंभ करेगा?
मुख्यमंत्री ( श्री कमल नाथ ) : (क) नवम्बर 2016 में 04 पाठ्यक्रम प्रारम्भ करने की अनुमति प्रदान की गई है। 1. कम्प्यूटर साईंस एण्ड इंजीनियरिंग, 2. इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग, 3. मैकेनिकल इंजीनियरिंग एवं 4. आर्किटेक्चर एण्ड इंटीरियर डेकोरेशन। (ख) जी नहीं। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद्, नई दिल्ली से पाठ्यक्रमों को संचालित करने की स्वीकृति प्राप्त न होने के कारण पाठ्यक्रम प्रारंभ नहीं किये जा सके हैं। (ग) जी नहीं। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद्, नई दिल्ली के मापदण्डों के अनुसार नहीं होने के कारण। (घ) उत्तरांश (ग) के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। (ड.) समय-सीमा बताया जाना सम्भव नहीं है।
डॉ. सीतासरन शर्मा -- अध्यक्ष महोदय, आप तो ऐसी स्थिति में अनुमति दिया करिये कि हम वहीं जाकर प्रश्न पूछकर आयें. ..(हंसी)... मंत्री जी,आपने अनुमति दे दी थी 2016 में. परन्तु अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् की परमीशन नहीं होने के कारण यह नहीं खुल पाये. अब जिला मुख्यालय है और उसमें कुल एक ही ट्रेड, सबजेक्ट है. आपसे अनुरोध है कि यह बिल्डिंग अलर में 2008 में मंजूर हुई थी, तब अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् के नार्म्स दूसरे थे और अब दूसरे हो गये हैं. तो इटारसी में नये नार्म्स से बिल्डिंग बनी, तो 5 ट्रेड हमको मिल गये, किन्तु होशंगाबाद में एक ही ट्रेड इसलिये मिला कि अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् के सब नार्म्स बदल गये और बिल्डिंग थोड़ी देर से तैयार हुई. अब दो ट्रेड हम शुरु कर सकते हैं, इलेक्ट्रीकल और मेक्नेीकल के. यदि आप लगभग 2 करोड़ रुपये स्वीकृत कर देंगे, तो अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् के नार्म्स में जो कमी बताई है उन्होंने केफेटेरिया, एडिश्नल वर्कशॉप,लाइब्रेरी एंड रीडिंग रुम, अदर्स एक्सपेंसेस व्हीकल पार्किंग सेट रिनोवेशन ईटीसी. यह कुल 2 से ढाई करोड़ की है. मेरे पास तो थोड़ा सा कम का इस्टीमेट है. किन्तु मैंने आज ही बात की है, तो इसमें, यदि आप यह स्वीकृत कर देंगे, तो हम दो ट्रेड और चालू कर सकेंगे, बिल्डिंग सब तैयार है. तो आपसे अनुरोध है कि यदि आज घोषणा हो जायेगी, तो हम अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् के नार्म्स में फिट होकर के और 3 ट्रेड हमारे यहां चालू हो सकेंगे.
गृह मंत्री(श्री बाला बच्चन) -- अध्यक्ष महोदय, जैसा आदरणीय हमारे विधायक जी ने जानना चाहा है कि होशंगाबाद पॉलीटेक्निक कालेज के बारे में पहले तो आपका प्रश्न यह था कि क्या पांचों पाठ्यकक्रम संचालित हैं या कब तक किये जायेंगे. तो एक ही पाठ्यक्रम अभी संचालित है और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् के जो मापदण्डों की कमी के कारण वह नहीं स्टार्ट कर पाये थे. मैंने भी इस पर काम किया है, वर्क आउट किया है. मैंने अपने विभाग के अधिकारियों के साथ में, तो लगभग इस कमी को पूरा करने में 2.14 करोड़ रुपये लग रहे हैं, उसकी प्रशासकीय और वित्तीय स्वीकृति के लिये लगभग एक से दो महीने समय लग जायेगा. मैं माननीय सदस्य को कहना चाहता हूं कि आपने जो प्रश्न उठाया है, इसमें हम आपको बिलकुल भी निराश नहीं होने देंगे.जो प्रशासकीय और वित्तीय स्वीकृति लग रही है 2.14 करोड़ रुपये की, दो महीने में हम इसको कम्पलीट करके जो आने वाला सत्र है, उसमें हम यह चारों पाठ्यक्रम स्टार्ट कर देंगे. आप तो इलेक्ट्रीकल और मेक्नीकल की बात कर रहे हैं. हम बचे हुए चारों पाठ्यक्रम स्टार्ट करवा देंगे.
डॉ. सीतासरन शर्मा -- धन्यवाद , मंत्री जी. आप एक टेक्नोक्रेट मंत्री जी हैं, इसका हमें लाभ मिला है, इसके लिये मैं मंत्री जी को धन्यवाद देता हूं.
अध्यक्ष महोदय -- नहीं, वे आपकी वरिष्ठता का भी अदब कर रहे हैं.
डॉ. सीतासरन शर्मा -- अध्यक्ष महोदय, इसके लिये आपका भी आभार, मंत्री जी का भी एवं मुख्यमंत्री जी का भी.
''मध्यप्रदेश माध्यम'' का निर्धारित सेटअप
[जनसंपर्क]
4. ( *क्र. 2941 ) श्री विनय सक्सेना : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या जनसंपर्क विभाग और "मध्यप्रदेश माध्यम" का सेटअप निर्धारित है? यदि हाँ, तो सेटअप के अनुसार जनसंपर्क विभाग में अपर संचालक, संयुक्त संचालक, उप संचालक और सहायक संचालक तथा सहायक जनसंपर्क अधिकारी के कर्तव्य, कार्य और जिम्मेदारियां क्या-क्या हैं? यदि निर्धारित नहीं हैं तो क्या निर्धारित की जाएंगी? (ख) क्या "मध्यप्रदेश माध्यम" सोसायटी अधिनियम के अंतर्गत गठित एक स्वतंत्र संस्था है? यदि हाँ, तो उक्त संस्था जनसंपर्क विभाग के प्रशासकीय नियंत्रण में किस प्रावधान के अंतर्गत कार्य कर रही है? (ग) "मध्यप्रदेश माध्यम" संस्था का गठन कब और किस उद्देश्य से हुआ था? पिछले पाँच सालों में कौन-कौन सी संस्थाएं किन-किन कार्यों के लिए इम्पेनल की गयीं?
मुख्यमंत्री ( श्री कमल नाथ ) : (क) जी हाँ। विभाग में पदस्थ अधिकारियों का मुख्य दायित्व सरकार की नीतियों, निर्णयों, योजनाओं, कार्यक्रमों और उपलब्धियों की जानकारी प्रचार-प्रचार माध्यमों से लोगों तक पहुँचाना और जनमानस में शासन की उज्जवल छवि प्रस्तुत करना है। शेषांश का प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ख) जी हाँ। संस्था के विधान एवं जनसम्पर्क विभाग के आदेशों के तहत मध्यप्रदेश माध्यम जनसम्पर्क विभाग के प्रशासकीय नियंत्रण में कार्य कर रहा है। (ग) संस्था का गठन 01 अक्टूबर, 1983 को मध्यप्रदेश शासन एवं उसके उपक्रमों की जनकल्याणकारी योजना के प्रचार-प्रसार के लिए किया गया है। जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है।
श्री विनय सक्सेना -- अध्यक्ष महोदय, एक बड़ा महत्वपूर्ण सवाल था, लेकिन जिसका जवाब बड़ा अधूरा आया है. मैं मुख्यमंत्री जी से, मंत्री जी से पूछना चाहता हूं कि एस सीधा सवाल था कि माध्यम संस्था जो है, वह किस आधार पर जनसम्पर्क का पूरा काम कर रही है. एक जन सम्पर्क विभाग बनाया है, जिसको बजट एलाटमेंट होता है, लेकिन खर्च पूरा जो है, माध्यम संस्था करती है और यह संस्था जो है, वित्तीय अनियमितता का शिकार हो चुकी है. इसने हर वह बड़े काण्ड किये हैं, जो पिछली सरकारों में हुए हैं. पूरे पूरे प्रचार प्रसार के माध्यम से करोड़ों रुपये खर्च हुए. सिंहस्थ अकेले में 327 करोड़ रुपये का बजट था जन सम्पर्क विभाग का, 100 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च कर दिये गये. इसमें मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि इसमें जो अधिकारी हैं, उनकी कोई जिम्मेदारी तय नहीं है. मैंने प्रश्न यह किया था कि अपर संचालक, संयुक्त संचालक, उप संचालक, सहायक संचालक और सहायक जनसम्पर्क अधिकारी के कर्तव्य, कार्य और जिम्मेदारियां क्या क्या हैं. जनसम्पर्क विभाग में तो हर चीज की जिम्मेदारी तय है. माध्यम में एक प्रबबंध समिति बन गई और वह मनमाने ढंग से पैसे का अपव्यय करती है. मैं इसमें आपका संरक्षण चाहता हूं और मैं इसमें यह भी चाहता हूं कि इसमें यह भी बताना चाहिये कि जब वही काम जनसम्पर्क विभाग कर रहा है पिक्चर बनाने से लेकर विज्ञापन देने का, तो वही काम माध्यम संस्था के माध्यम से फिर क्यों हो रहा है. मेरा आपको यह भी बताना जरुरी है कि मध्यप्रदेश माध्यम के एक्ट में सिर्फ निगम,मण्डल के विज्ञापन जारी करना और प्रचार प्रसार का दायित्व था. इसमें सब से गंभीर बात यह है कि 15 प्रतिशत की राशि यह जो वसूल करते हैं निगम, मण्डल से, ये जो विभाग इनको बजट देता है जनसम्पर्क विभाग, ये 15 परसेंट की राशि उनसे ही वसूली करते हैं. मैं यह प्रश्न में जवाब चाह रहा था, लेकिन जवाब नहीं आया. मैं यह भी कहना चाहता था कि एमपी माध्यम में कार्यपालिक संचालक का पद रिक्त है, इस से कार्य भी प्रभावित हो रहा है. गंभीर बात यह भी है कि जनसंपर्क विभाग एक रजिस्टर्ड संस्था होने के बावजूद भी नियमों की अवहेलना करके मनमाने ढंग से करोड़ों रुपये की राशि प्रचार-प्रसार में खर्च कर रही है, सिंहस्थ के दौरान एक निरोरा सम्मेलन हुआ, जिसका इस संस्था से कोई लेना-देना नहीं था, उसमें भी करोड़ों रुपये खर्च किए.
अध्यक्ष महोदय -- विनय जी, ये सब विषय आ गए हैं, आप प्रश्न तो करें.
श्री विनय सक्सेना -- अध्यक्ष महोदय, मैं पूछना चाहता हूँ कि क्या जनसंपर्क मंत्री यह बताने का कष्ट करेंगे कि जब सेटअप निर्धारित है तो जो जिम्मेदार अधिकारी हैं, उनकी जिम्मेदारियां क्या हैं ? और इसमें जो राशि 'मध्यप्रदेश माध्यम' के माध्यम से खर्च की जा रही है, क्या उसका अलग से बजट है ? क्या बजट में उसका प्रावधान है ? फिर जनसंपर्क विभाग और यह विभाग दोनों पैरेलल रूप से बराबरी से क्यों काम कर रहे हैं. सिंहस्थ में 327 करोड़ रुपये का बजट था, 100 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च कर दिए गए और एक माह के अंदर ऑडिट हो गया, जबकि बाकी जो संस्थाएं हैं, उनका साल में एक बार होता है. ये सब जो खेल हुआ है, भ्रष्टाचार हुआ है, एक छोटे कद के अधिकारी थे, लेकिन उनके कारनामे अरबों के, खरबों के थे, जो उनके द्वारा कीर्तिमान स्थापित हुए हैं, मैं माननीय मंत्री से पूछना चाहता हूँ कि क्या इसकी जांच कराई जाएगी ?
जनसंपर्क मंत्री (श्री पी.सी. शर्मा) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, हमारे विधायक जी ने बड़ा लंबा सवाल पूछ लिया है. पर इसमें सिम्पल सी बात है, पूरी जानकारी भी इनको दे दी गई है. जहां तक 'मध्यप्रदेश माध्यम' का सवाल है, जो इन्होंने प्रश्न पूछा है, तो 1983 में इसका गठन हुआ था. पहले यह 'मध्यप्रदेश प्रकाशन' के नाम से था. यह एक सेल्फ-सफिशिएंट संस्था है. जैसा आदरणीय विधायक जी ने ही कहा कि इसका काम शासन के निगमों, मंडलों और अन्य संस्थाओं के प्रचार-प्रसार और शासन के सृजनात्मक कार्य करना है और जनसंपर्क विभाग शासन का प्रचार-प्रसार विभिन्न माध्यमों से करता है. ये जो भी अधिकारी हैं, 'मध्यप्रदेश माध्यम' में, अलग-अलग अधिकारियों को अलग-अलग कार्य सौंपे गए हैं, जो भी काम होता है, उसका सत्यापन वह अधिकारी और जिले के लेवल के अधिकारी इसमें करते हैं. उन्होंने एक बात की है कि सिंहस्थ में अनियमितता हुई, पहले 327 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे, बाद में 100 करोड़ रुपये और खर्च किए गए और इसका ऑडिट एक महीने में हो गया, तो जो उन्होंने जांच की मांग की है, इसकी जांच कराई जाएगी कि सिंहस्थ के समय क्या मामला था. दूसरा प्रश्न उन्होंने यह पूछा है कि 'मध्यप्रदेश माध्यम' में जिस अधिकारी की बात की है तो उसकी प्रक्रिया चल रही है, जो एग्जेक्यूटिव डायरेक्टर होता है, वहां पर जनसंपर्क से ही जाता है, उसकी प्रक्रिया चल रही है.
श्री विनय सक्सेना -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि जिन्होंने कहा कि 100 करोड़ रुपये जो प्रदेश की जनता की खून-पसीने की गाढ़ी कमाई का था, उसकी जांच कराई जाएगी. अध्यक्ष महोदय, मैं यह भी इनसे पूछना चाहता हूँ कि जो 15 प्रतिशत की राशि है, जब मूल विभाग जनसंपर्क है तो उससे भी विज्ञापन के नाम पर 15 प्रतिशत की राशि 'मध्यप्रदेश माध्यम' संस्था कैसे वसूल सकती है ? यह जो दोहरा लाभ कमाने का तरीका अपनाया गया है, यह उचित नहीं है. जनसंपर्क विभाग या 'मध्यप्रदेश माध्यम' में से किसी एक संस्था को फायनल कर दीजिए. दो-दो संस्थाओं को पैरेलल चलाने का आखिर औचित्य क्या है ? अध्यक्ष महोदय, दूसरी बात यह कि जिस तरह से निरोरा सम्मेलन में भी इस विभाग ने 'मध्यप्रदेश माध्यम' के साथ करोड़ों रुपये खर्च कर दिए गए, विषय तो जांच का वह भी है कि आखिर निरोरा सम्मेलन क्यों कराया गया, उसका बजट जब 'मध्यप्रदेश माध्यम' या जनसंपर्क विभाग के पास नहीं था तो उसमें करोड़ों रुपये क्यों खर्च कर दिए गए ? एक और गंभीर बात जो माननीय अध्यक्ष जी, आप हमेशा कहते हैं कि नरसिंहपुर और जबलपुर वालों को मौका नहीं मिलता, इनके यहां जो इम्पेनल्ड संस्थाएं हैं, उसमें सिर्फ भोपाल और इन्दौर की संस्थाएं हैं, उसमें लघु संस्थाओं और लघु एजेंसियों को काम क्यों नहीं दिया जाता, उसमें प्राइवेट एजेंसीज का अनुभव क्यों नहीं माना जाता ? इम्पेनल्ड जो संस्थाएं हैं, उनकी अर्हताएं ऐसी रखी जाती हैं, जिससे बड़े लोग ही लाभान्वित हो पाएं, उसमें शर्तें ऐसी रखी जाती हैं..
अध्यक्ष महोदय -- आप चाहते क्या हैं ?
श्री विनय सक्सेना -- अध्यक्ष महोदय, मैं चाहता हूँ कि उसमें सभी को मौका मिलना चाहिए, जिन्होंने प्राइवेट काम किया है, उनको भी मौका मिलना चाहिए.
श्री पी.सी. शर्मा -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं विधायक की जी मंशा समझ गया हूँ. इसमें वे चाहते हैं कि इम्पेनलमेंट में जो शर्तें हों, उसमें केवल शासकीय या 'मध्यप्रदेश माध्यम' में या जनसंपर्क विभाग में जिन्होंने काम किया हो, उन्हीं को मान्यता दी जाती है तो प्राइवेट के भी जो टर्नओवर वाले होंगे उनको भी छोटे लोगों को भी मौका दिया जाएगा, इसमें मुख्यमंत्री जी खुद देख रहे हैं, निश्चित तौर पर ऐसे निर्णय होंगे, जिससे छोटे और छोटे शहरों के लोगों को भी मौका मिल सके. निश्चित तौर पर इसका ध्यान रखा जाएगा. जो उन्होंने जांच की मांग की है तो जो जांच सिंहस्थ के मामले में है, उस पूरे मामले की जांच होगी कि वह अलग से वहां पर एक संस्था का कार्यक्रम क्यों किया गया, उसकी भी जांच होगी.
श्री विनय सक्सेना -- माननीय अध्यक्ष महोदय, एक अंतिम प्रश्न पूछना चाहता हूँ, इम्पेनल्ड संस्थाओं को एक समय-सीमा के लिए काम दिया गया था, समय-सीमा के बावजूद वे इम्पेनल्ड संस्थाएं अभी तक काम कर रही हैं, उनका पूरा परीक्षण किया जाना चाहिए और उन इम्पेनल्ड संस्थाओं को एक बार पूरा कैंसिल करके पूरे मध्यप्रदेश के नए लोगों को मौका मिलना चाहिए, यह मैं आपसे आग्रह करना चाहता हूँ और यह जो अतिरिक्त 100 करोड़ रुपया खर्च किया गया है, जो अधिकारी उसमें शामिल थे, उसमें जो नेता और उनका गठजोड़ था, उसकी जांच होनी चाहिये और जांच का समय कितना होगा ? यह और बता दें.
श्री पी.सी. शर्मा - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं पहले ही कह चुका हूं कि निरोरा की बात जो इन्होंने की, उस जांच के अंदर यह आयेगा और इम्पैलेंट संस्थायें जितनी भी हैं उनको कैंसिल करके फिर से यह सब किया जा रहा है. इसलिये मैं समझता हूं कि उनकी बात का उत्तर आ चुका है.
अध्यक्ष महोदय - मंत्री जी, समय सीमा बता दीजिये.
श्री पी.सी. शर्मा - अध्यक्ष महोदय, दो महीने के अंदर जांच करवा ली जायेगी.
श्री विनय सक्सेना - मैं माननीय अध्यक्ष महोदय और माननीय मंत्री जी को धन्यवाद देता हूं.
विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी पद पर संविलियन
[जनसंपर्क]
5. ( *क्र. 3272 ) श्री संजीव सिंह : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या तत्कालीन प्रबंध संचालक ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता संस्थान से विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी पद पर प्रोफेसर की नियुक्ति की थी और बाद में संविलियन कर दिया था? (ख) यदि हाँ, तो कौन सी प्रक्रिया अपनाई गई थी और किस पद पर पदस्थ किया गया था?
मुख्यमंत्री ( श्री कमल नाथ ) : (क) जी हाँ। (ख) प्रबंध समिति की स्वीकृति के पश्चात प्रधान संपादक के पद पर पदस्थ किया गया है।
श्री संजीव सिंह ''संजू'' - धन्यवाद माननीय अध्यक्ष महोदय. मेरा जो मूल प्रश्न था, वही बदल गया है. 'क, ख, ग' पहुंच गया हमारे विनय सक्सेना जी के पास और 'घ' मेरे पास रह गया. मतलब ऐसा डिस्ट्रीब्यूशन होता है क्या ?
अध्यक्ष महोदय - कोई बात नहीं. उन्होंने आधा पूछ लिया, आधा आप पूछ लीजिये.
श्री संजीव सिंह ''संजू'' - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं मुख्यमंत्री जी से यह जानना चाहता हूं कि उस समय माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता संस्थान से जो विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी के पद पर संविलियन हुआ था, आपका जवाब है हां. उससे तो मैं सहमत हूं, लेकिन उसमें क्या प्रक्रिया अपनाई गई थी ? और उसकी समिति में कितने सदस्य थे ? क्या वह सही प्रक्रिया अपनाई गई थी ?
श्री पी.सी. शर्मा - माननीय अध्यक्ष महोदय, विधायक जी ने जो सवाल पूछा है, इसका जवाब आ गया है और वह जो चाहते हैं उसमें मैं बताना चाहता हूं कि माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में प्रबंध समिति होती है और प्रबंध समिति ने अनुमति दी थी कि वह डेपुटेशन पर माध्यम में जायें और माध्यम की प्रबंध समिति ने वर्ष 2017 में उनका अपने विभाग माध्यम में संविलियन कर लिया. इन दोनों समितियों को यह अधिकार है और उस अधिकार के तहत ही यह हुआ है, तो मैं समझता हूं कि इसमें कहीं कोई गड़बड़ी नहीं है.
श्री संजीव सिंह ''संजू'' - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं यह पूछना चाहता हूं कि इस समिति में सदस्य कौन था और उसके अध्यक्ष कौन थे ? और यह जो संविलियन किया गया, क्या वह नियम के अनुरूप किया गया है ?
श्री पी.सी. शर्मा - अध्यक्ष महोदय, मैंने कहा न, यह नियम के अनुरूप हुआ है और दूसरा यह है कि उस समय के जो तत्कालीन मंत्री थे, वह इन दोनों में उसके अध्यक्ष थे और समिति के जो मेम्बर्स हैं, उन मेम्बर्स की लिस्ट आपके जवाब में दे दी गई है.
प्रश्न क्रमांक 6 - श्री अनिरुद्ध मारू - (अनुपस्थित)
अशोक नगर स्थित ट्रामा सेन्टर का संचालन किया जाना
[लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण]
7. ( *क्र. 4016 ) श्री जजपाल सिंह : क्या लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) अशोक नगर के ट्रामा सेंटर भवन का लोकार्पण 3 वर्ष पूर्व हो चुका है लेकिन आज दिनांक तक कोई चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी है? इसका क्या कारण है? (ख) क्या ट्रामा सेंटर संचालित करने हेतु उपयुक्त संसाधन की व्यवस्था की जा चुकी है?
लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री ( श्री तुलसीराम सिलावट ) : (क) जी नहीं। अशोक नगर के ट्रामा सेंटर भवन का लोकार्पण दिनांक 29/11/2017 को किया गया है, ट्रामा सेन्टर उपलब्ध संसाधनों द्वारा संचालित किया जा रहा है। संचालनालय के आदेश क्रमांक/अ.प्रशा./सेल-3/2018/2018/306 दिनांक 23/02/2018 के द्वारा उपकरण तथा फर्नीचर क्रय करने हेतु आवश्यक बजट उपलब्ध कराया गया है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ख) ट्रामा सेंटर हेतु मानव संसाधन हेतु पदपूर्ति की कार्यवाही प्रचलन में है।
श्री जजपाल सिंह ''जज्जी'' - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे प्रश्न में विभाग द्वारा जो जवाब दिया गया है, इसी से अधिकारियों की गम्भीरता का अंदाजा लगा सकते हैं कि जवाब में उन्होंने कहा है कि 3 साल पहले नहीं दिनांक 29.11.2017 को ट्रामा सेन्टर के भवन का लोकार्पण हुआ है. जबकि उसमें इतना बड़ा पत्थर लगा है कि ट्रामा सेन्टर अशोक नगर का लोकार्पण श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी द्वारा दिनांक 22.7.2017 को किया गया है. मतलब 6 महीने पहले. इससे अंदाजा लगता है कि कितनी गम्भीरता से अधिकारियों ने जवाब दिया है और जो जवाब दिया है उससे मैं संतुष्ट नहीं हूं. इन्होंने जवाब में कहा है कि ट्रामा सेंटर संचालित किया जा रहा है, जबकि मैं मंत्री महोदय से पूछना चाहता हूं कि ट्रामा सेंटर में जो 60 पद स्वीकृत हैं उनमें से कोई एक भी पद के विरुद्ध क्या वहां पर पदस्थापना की गई है ? यदि नहीं की गई, तो फिर ट्रामा सेंटर संचालित कैसे हो रहा है ? मंत्री जी बताने की कृपा करें.
श्री तुलसीराम सिलावट - माननीय अध्यक्ष महोदय, सम्माननीय सजग, जागरूक विधायक ने अपनी विधान सभा क्षेत्र अशोक नगर ट्रामा सेंटर की बात कही है, मैं उनकी बात से बिलकुल सहमत हूं कि 60 पद रिक्त हैं. उसमें से एक भी पूर्ति नहीं की गई और उनका ट्रामा सेंटर जिला अस्पताल के द्वारा सुचारू रूप से संचालित किया जा रहा है. यह मैं सम्मानित सदस्य को आश्वस्त करता हूं.
श्री जजपाल सिंह-- अध्यक्ष महोदय, ट्रामा सेंटर में हड्डी के बड़े ऑपरेशन होते हैं. अशोक नगर जिला अस्पताल में एक भी अस्थि रोग विशेषज्ञ नहीं है, तो फिर संचालन किसके द्वारा हो रहा है?
श्री तुलसीराम सिलावट-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने कहा कि जिला अस्पताल के माध्यम से संचालित किया जा रहा है. सम्माननीय विधायक जी को मैं विस्तार पूर्वक भी बता देता हूँ कि ट्रामा सेंटर अशोक नगर को उपलब्ध संसाधनों से क्रियाशील किया जा रहा है. वर्तमान में शल्य क्रिया विशेषज्ञ डॉक्टर डी.के.भटनागर, पी.जी.ओमो, शल्य क्रिया डॉक्टर अजय गेहलोत, पी.जी.ओ.मो. हड्डी रोग डॉक्टर तेजवारकर, निश्चेतना विशेषज्ञ डॉक्टर ओ.पी.गुप्ता, पी.जी.ओ. निश्चेतना डॉक्टर मुकेश गोलिया, मेडिसिन विशेषज्ञ डॉक्टर डी.के.जैन, पी.जी.ओ. मेडिसिन डॉक्टर मनीष चौरसिया, कुल सात विशेषज्ञ इस ट्रामा सेंटर में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं, पर उसके बाद भी मैं सम्माननीय जागरूक सदस्य को यह आश्वस्त करता हूँ कि मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पद पूर्ति के गंभीरता से प्रयास किए जा रहे हैं. ऐसे ही चिकित्सकों की पूर्ति होती जाएगी, इस ट्रामा सेन्टर को प्राथमिकता के आधार पर जो कमी पूर्ति है, अतिशीघ्र उपलब्ध करा दी जाएगी.
अध्यक्ष महोदय-- धन्यवाद.
श्री जजपाल सिंह-- धन्यवाद, अध्यक्ष महोदय.
खण्डवा जिले में उद्योगों की स्थापना
[औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन]
8. ( *क्र. 1152 ) श्री देवेन्द्र वर्मा : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या खण्डवा जिले के ग्राम रुधी में औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया गया है? यदि हाँ, तो यहाँ पर नवीन उद्योगों की स्थापना के लिये क्या-क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं तथा वर्तमान में कितने उद्योग स्थापित हुए हैं? (ख) क्या जिले के इस औद्योगिक क्षेत्र की भूमि की दरें प्रदेश के अन्य औद्योगिक क्षेत्र की भूमि की दरों की अपेक्षा अधिक होने के कारण इस क्षेत्र में उद्योगपतियों का रुझान कम है? (ग) क्या प्रश्नाधीन औद्योगिक क्षेत्र की भूमि आवंटन का अधिकार जिला उद्योग केन्द्र खण्डवा के स्थान पर ए.के.वी.एन. इंदौर है? यदि हाँ, तो क्या इसके कारण उद्योगपतियों को परेशानी हो रही है? (घ) यदि हाँ, तो क्या प्रश्नांश (क) एवं (ग) के क्रम में रुधी औद्योगिक क्षेत्र की भूमि दर कम की जायेगी एवं उक्त भूमि के आवंटन की प्रक्रिया का सरलीकरण कर खण्डवा जिला उद्योग केन्द्र से किये जाने पर शासन विचार करेगा? यदि हाँ, तो कब तक? (ङ) क्या खण्डवा जिले में बिजली-पानी की प्रचुरता, रेल्वे परिवहन की सुविधा को देखते हुए म.प्र. सरकार प्रदेश में उद्योगों की स्थापना एवं बेरोजगारी दूर करने के लिये राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की समिट का आयोजन करेगी यदि हाँ, तो कब तक?
मुख्यमंत्री ( श्री कमल नाथ ) : (क) खण्डवा जिले के ग्राम रूधी-भावसिंगपुरा में नवीन औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया गया है, जिसमें आधारभूत सुविधाएं जैसे डामरीकृत सड़कें, जल प्रदाय पाईप लाइन, पक्की नाली, विद्युत लाइन की सुविधाएं उपलब्ध हैं तथा वर्तमान में 03 उद्योग स्थापित हुए हैं। (ख) विभाग के अधीन निगम द्वारा इस औद्योगिक क्षेत्र हेतु तय की गई भू-खण्ड की दरें, निगम के क्षेत्रीय कार्यालय इंदौर द्वारा विकसित किये गये अन्य नवीन औद्योगिक क्षेत्रों की तुलना में कम हैं एवं उपयुक्त है। (ग) भूमि आवंटन का कार्य विभाग अंतर्गत एम.पी.आई.डी.सी. के एकीकृत पोर्टल से ऑन लाइन पद्धति द्वारा किया जा रहा है, अत: इच्छुक निवेशक कहीं से भी भूमि हेतु आवंटन आवेदन कर सकते हैं। (घ) प्रदेश में विभाग के अधीन स्थापित समस्त औद्योगिक क्षेत्र की दरें उक्त क्षेत्र की कलेक्टर गाइड लाइन एवं संबंधित औद्योगिक क्षेत्र में अधोसरंचना विकास पर किये गये व्यय (विकास शुल्क) के आधार पर निर्धारित होती है, जहां तक भू-आवंटन प्रक्रिया का प्रश्न है तो इस हेतु प्रचलित ऑन लाइन आवंटन प्रक्रिया पारदर्शी एवं सरल है। औद्योगिक क्षेत्र रूधी का विकास औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन विभाग द्वारा किया गया है अत: इस क्षेत्र में भू-आवंटन की कार्यवाही विभाग अंतर्गत संचालित एम.पी.आई.डी.सी. द्वारा ही की जावेगी। (ड.) प्रदेश में निवेश आकर्षित करने हेतु विभाग द्वारा समय-समय पर देश/प्रदेश में इन्वेस्टर समिट/रोड शो का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में संपूर्ण प्रदेश में (जिसमें खण्डवा भी सम्मिलित है) निवेश आकर्षित करने के लिये समुचित कार्यवाही की जाती है।
श्री देवन्द्र वर्मा-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी को बताना चाहूँगा कि मेरा खंडवा जिला, जहाँ पर ओंकारेश्वर डेम, इंदिरा सागर परियोजना, इस प्रकार की बड़ी बड़ी परियोजनाएँ संचालित हैं, जिसमें लगभग तीन सौ से साढ़े तीन सौ गाँव पूर्व में विस्थापन का दंश झेल चुके हैं और ऐसे क्षेत्र में औद्योगिक विकास हो, इसके लिए हमारे खंडवा जिले में ग्रोथ सेंटर का निर्माण किया गया था, लेकिन वर्तमान की हालत तक वहाँ पर किसी भी प्रकार की औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित नहीं हुई हैं, मात्र दो या तीन औद्योगिक इकाइयाँ हैं बाकी पूरा ग्रोथ सेंटर खाली पड़ा है. मैं माननीय मंत्री जी से निवेदन करूँगा कि हमारे इस ग्रोथ सेंटर में आने वाले जो भी उद्योगपति हों या ऐसे इस प्रकार के बेरोजगार हैं, क्या उनको किसी प्रकार की छूट प्रदान की जाएगी और साथ ही साथ उसे ए.के.व्ही.एन. से जोड़ा गया है, तो क्या उसे खंडवा उद्योग विभाग से संबद्ध किया जाएगा?
श्री तरुण भनोत-- आदरणीय अध्यक्ष महोदय, हम भी प्रश्नकर्ता सदस्य की भावनाओं से सहमत हैं कि औद्योगीकरण तेजी से होना चाहिए, अगर औद्योगीकरण होता है तो नौकरियाँ बढ़ती हैं, समृद्धि भी बढ़ती है, परन्तु खंडवा जिले के ग्राम रुधि का जो मामला आपने उठाया है, उसमें सरकार के द्वारा जो अधोसंरचना का कार्य है, वह पूरा किया जा चुका है. तीन इकाइयाँ हैं जो वहाँ पर लगी हैं और तीनों चालू भी हैं. अब हम अपनी नीतियों के मुताबिक सुविधाएं सारी उपलब्ध करा सकते हैं पर उद्योग सरकार स्वयं कैसे लगाए, यह तो संभव नहीं है कि हम ही उद्योग लगा दें, तो उद्योग के लिए तो निवेश आना जरूरी है और जहाँ तक आपने प्रश्न में यह भी पूछा है कि, हालाँकि उस पर अभी आप आए नहीं हैं, मैं पहले ही उत्तर दे देता हूँ कि इसके लिए हम क्या कर रहे हैं, तो समय समय पर संपूर्ण मध्यप्रदेश के जितने भी स्थान हैं, जहाँ पर औद्योगिक निवेश होना चाहिए, वहाँ उनके बारे में हम प्रचारित करते हैं, अलग-अलग मीटिंग्स होती हैं, अलग अलग फोरम्स पर होती हैं और मुझे विश्वास है कि अभी आने वाले समय में “मेगनीफिशेंट मध्यप्रदेश” का हम इन्दौर में आयोजन करने जा रहे हैं. उसमें हम आपके खंडवा के अंतर्गत ये रुधि का भावसिंगपुरा का जो औद्योगिक क्षेत्र है, इसके लिए भी जरूर यह कोशिश करेंगे कि उद्योगपति वहाँ भी आएँ, निवेश करें और अपने उद्योग लगाएँ.
श्री देवन्द्र वर्मा-- अध्यक्ष महोदय, मैंने इसमें यह निवेदन किया है कि क्या वहाँ पर किसी प्रकार की छूट प्रदान की जाएगी? और दूसरा मेरा आप से यह निवेदन है कि वहाँ पर जो जमीनों के रेट हैं उसके आसपास वहाँ पर उससे सस्ती जमीन मिल रही है, तो जमीन के एक तो रेट अधिक हैं और किसी प्रकार का प्रोत्साहन या छूट प्रदान नहीं की जा रही है, तो मेरा आप से निवेदन है कि इस प्रकार की छूट और जमीन के रेट या इसमें जो भी कुछ सहयोग हो सकता हो, इस प्रकार का सहयोग शासन करेगा क्या?
श्री तरुण भनोत-- अध्यक्ष महोदय, सरकार की जो औद्योगिक निवेश की नीति है, वह संपूर्ण प्रदेश के लिए एक सी है. विशेष स्थान के लिए ऐसा कुछ नहीं है कि हम उसको अलग से इसमें कुछ छूट दे पाएँगे यह तो नीति के अंतर्गत काम करना पड़ता है. जहां तक आपने यह बात कही कि वहां पर जमीन महँगी है और बाकी जगह सस्ती है. इससे मुझे लगता है कि या तो मैं आपका प्रश्न समझ नहीं पाया या आप प्रश्न ठीक से पूछ नहीं पाए हैं. क्या आप औद्योगिक क्षेत्र के रेट की बात कर रहे हैं ? जहाँ पर विकास नहीं हुआ है, अधोसंरचना के कार्य नहीं हुए हैं वहां की जमीन इससे सस्ती होगी परन्तु इस इंडस्ट्रीयल एरिया को विकसित करने में निश्चित तौर पर सरकार का पैसा लगा है. आप परिशिष्ट में देखिए आपके पास जानकारी उपलब्ध है. वहां के आसपास के जो इंडस्ट्रियल एरिया हैं जैसे हातोद, यह धार जिले में आता है यहां पर 1400 रुपए प्रति वर्ग मीटर दर है. उज्जैन के पास उज्जैनी जिला धार में ही 968 रुपए का रेट है. विजयपुर यह इंदौर जिले में आता है यहां पर 1300 रुपए का रेट है. जबकि रुधी के खण्डवा जिले में जो रेट रखा है वह 774 रुपए का प्रति वर्ग मीटर का रेट है. आसपास के जितने औद्योगिक क्षेत्र हैं उनसे आपके क्षेत्र का रेट कम है. मैं माननीय सदस्य को यह अवगत कराना चाहता हूँ कि सम्माननीय मुख्यमंत्री जी ने यह प्रयास किया है सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में औद्योगिक विकास बेहतर तरीके से हो इसके लिए औद्योगिक पॉलिसी में कुछ बदलाव भी किए गए हैं. उसकी जानकारी सदन में पहले दी चुकी है. हम यह प्रयास करेंगे कि आपके क्षेत्र में अधिक से अधिक उद्योग आएं और लोगों को लाभ मिले.
श्री देवेन्द्र वर्मा--माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा अनुरोध है कि जो अन्य भूमि के रेट हैं और इस भूमि के रेट हैं उनमें जमीन-आसमान का अन्तर है. मैंने पूर्व में भी निवेदन किया है कि हमारे क्षेत्र में पूर्व में बहुत बड़ा विस्थापन हुआ था वहां के विस्थापितों के लिए, बेरोजगारों के लिए यह इकाई स्थापित की गई थी लेकिन वहां पर किसी भी प्रकार का सहयोग या प्रोत्साहन नहीं दिया जा रहा है. मैं मंत्री जी से पूछना चाहता हूँ कि क्या इसमें कोई छूट देंगे या वहां के बराबर रेट करेंगे ? वहां के युवाओं के लिए विशेष प्रकार की छूट दी जाए.
श्री तरुण भनोत--आदरणीय अध्यक्ष महोदय, मैंने पूर्व में भी कहा कि जिले में जो जमीन उपलब्ध है जो कि विकसित नहीं है उससे यदि इसकी तुलना कर रहे हैं तो यह संभव नहीं है. सरकार का पैसा अधोसंरचना के विकास में खर्च हुआ है. बिजली की, पानी की, सड़क की व अन्य व्यवस्थाएं उस क्षेत्र में की गई हैं. यदि माननीय सदस्य जानकारी देंगे कि किस प्रकार से वहां पर किस तरह के उद्योगों को प्रोत्साहित कर सकते हैं जिससे वहां के विस्थापित लोगों को जल्द से जल्द रोजगार मिल सके. अगर आपको कोई सलाह होगी उसको मान्य करेंगे.
श्री देवेन्द्र वर्मा--माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे प्रश्न का जवाब ही नहीं आया है.
अध्यक्ष महोदय--जवाब आ गया है.
श्री देवेन्द्र वर्मा--माननीय अध्यक्ष महोदय, वहां पर अन्य जमीन के जो भाव हैं उससे 100 गुना ज्यादा इस जमीन के भाव हैं. ग्रोथ सेन्टर में जो डेवलपमेंट कराया है उससे भी तुलना करें तो इनके भाव ज्यादा होंगे. वहां के भाव या तो बराबर किए जाएं या वहां के युवाओं के रोजगार लिए सरकार किसी प्रकार की छूट दे या इन इकाइयों के लिए छूट दे.
श्री तरुण भनोत-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं बार-बार एक ही बात कह रहा हूँ कि जो भी रेट निर्धारित किए गए हैं उसके निश्चित मापदण्ड हैं कोई भी सरकार हो उसको उन मापदण्डों का पालन करना पड़ता है.
श्री देवेन्द्र वर्मा--माननीय अध्यक्ष महोदय, विकास के लिए खूब से खूब 200-300 रुपए रेट होता है लेकिन जो रेट हैं उसमें जमीन आसमान का अन्तर है.
श्री तरुण भनोत-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं एक बात सदन में कहना चाहता हूँ कि यदि माननीय सदस्य के पास कुछ ऐसे लोग पहुंचते हैं जो वहां पर उद्योग लगाना चाहते हैं और जमीन के रेट के कारण उद्योग नहीं लगा रहे हैं तो आप उनकी हमसे मुलाकात करवाइए. हम देखेंगे कि वे कितने लोगों को रोजगार देने की बात कर रहे हैं तत्पश्चात् हम देखेंगे कि किस प्रकार से हम उनकी वहां पर उद्योग लगाने में मदद कर सकते हैं उस पर अलग से निर्णय ले लेंगे.
श्री देवेन्द्र वर्मा--माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी को बहुत-बहुत धन्यवाद.
जिला उमरिया (मंठार) में सीमेंट प्लांट की स्थापना
[औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन]
9. ( *क्र. 3154 ) श्री शिवनारायण सिंह : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) म.प्र. शासन की उद्योग नीति क्या है? (ख) क्या उमरिया जिले में स्थित संजय गांधी ताप विद्युत गृह मंठार से निकलने वाली राखड़ से क्षेत्र में सीमेंट फैक्ट्री निर्माण करने की कोई योजना शासन के पास विचाराधीन है? यदि हाँ, तो कब तक सीमेंट फैक्ट्री निर्माण का कार्य प्रारंभ हो जाएगा?
मुख्यमंत्री ( श्री कमल नाथ ) : (क) वर्तमान में मध्यप्रदेश शासन की उद्योग संवर्धन नीति 2014 (यथा संशोधित-2018) लागू है। (ख) राज्य शासन द्वारा स्वयं उद्योग स्थापित नहीं किये जाते हैं, अपितु उद्योगों की स्थापना हेतु फेसिलिटेट किया जाता है। अद्यतन उमरिया जिले में सीमेंट फैक्ट्री निर्माण की किसी परियोजना का प्रस्ताव शासन को निवेशकों से प्राप्त नहीं हुआ है।
श्री शिवनारायण सिंह-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूँ कि बांधवगढ़ विधान सभा क्षेत्र पहाड़ी क्षेत्र से घिरा हुआ है, वहां पर खेती का रकबा भी कम है. इस क्षेत्र में दो नदियाँ हैं एक झूला नदी और दूसरी घोचक नदी. पढ़े लिखे नौजवानों के लिए रोजगार की कमी है. मेरे प्रश्न के उत्तर में आया है कि निवेशकों द्वारा कोई प्रस्ताव शासन के पास नहीं आया है. मैं आपसे आग्रह करना चाहता हूँ कि संजय गाँधी थर्मल पॉवर हाउस प्लान्ट, बिरसिंहपुर में पहले से स्थापित है वहां से रॉ-मटेरियल अन्य जिलों में जाता है जिसके कारण नौजवानों में एक निराशा उत्पन्न होती है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी से कहना चाहता हूँ कि निवेशकों से आग्रह करके वहां पर उद्योग लगाने का प्रयास करें.
श्री तरुण भनोत-- अध्यक्ष महोदय, यह बात बिलकुल सही है कि सब चाहते हैं कि क्षेत्र में निवेश है और बेरोजगारों को रोजगार मिले. मैंने पूर्व में भी कहा कि यह तो निवेशकों पर निर्भर करता है कि वह कहां निवेश करना चाहते हैं. सरकार उनको प्रोत्साहन देने को तैयार है. अगर आपको भी ऐसा लगता है कि आपके क्षेत्र में कोई विशेष उद्योग लग सकता है तो आप जरूर मेरी जानकारी में लाइए उसको कैसे हम और आकर्षित बनाकर वहां निवेश ला सकें यह मैं आपको भरोसा दिलाता हूं. जरूर हल निकालेंगे.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्नकाल समाप्त.
(प्रश्नकाल समाप्त)
अध्यक्ष महोदय-- आप लोग बैठ जाइए, मैं मौका दूंगा. मैंने अब नया तरीका निकाल लिया है. मैं सूचना पढ़कर अपनी लॉटरी के हिसाब से पांच लोगों को मौका देता हूं. मैं मौका दूंगा. मैं मना नहीं कर रहा हूं. आप सभी बैठ जाइए. मेरी व्यवस्था पर ध्यान दीजिए.
12:01 बजे नियम 267-क के अधीन विषय
अध्यक्ष महोदय-- निम्नलिखित माननीय सदस्यों की सूचनाएं सदन में पढ़ी हुई मानी जाएंगी.
क्रमांक सदस्य का नाम
1 श्री रामेश्वर शर्मा
2 श्री अनिल जैन
3 श्री पहाड़ सिंह कन्नौजे
4 श्री गोवर्धन दांगी
5 श्री नीरज विनोद दीक्षित
6 श्री विष्णु खत्री
7 श्री संजय शर्मा
8 श्री देवीलाल धाकड़
9 श्री राकेश पाल सिंह
10 श्री गौरीशंकर बिसेन
12:02 बजे शून्यकाल में मौखिक उल्लेख एवं अध्यक्षीय व्यवस्था
(1) किसानों के मुद्दे पर चर्चा करायी जाना.
श्री शिवराज सिंह चौहान (बुधनी)-- अध्यक्ष महोदय, मेरा निवेदन है कि किसानों के मुद्दे पर सदन के सत्र में चर्चा होनी चाहिए. नियम (139) की चर्चा का नोटिस मैंने और बाकी माननीय सदस्यों ने भी दिया है. मेरा अनुरोध है कि किसानों के महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा जरूर होनी चाहिए और उसका समय निर्धारित हो जाए क्योंकि अब कल का ही दिन है.
अध्यक्ष महोदय-- जरूर. मैं आज निर्धारित कर दूंगा.
श्री शिवराज सिंह चौहान-- धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय--आप यदि ऐसे ही सदन में खड़े हो जाएंगे तो मैं आप लोगों को मौका नहीं दूंगा. मैं ईमानदारी से पांच माननीय सदस्यों को शून्यकाल के अलावा अभी बालने का मौका दूंगा. गोपाल जी अब आप बोलना चाहेंगे क्योंकि पीछे वालों के नंबर रह जाएंगे.
(2) गरीबों से जुड़ी योजनाओं पर क्रियान्वयन की मांग.
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव) (रेहली) -- अध्यक्ष महोदय, प्रदेश के गरीबों से जुडे़ हुए मेरे दो प्रश्न हैं जिनका हम इस विधान सभा के इस पूरे सत्र में उन पर चर्चा नहीं कर पाए थे. पहला विषय यह है कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में जो प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना चल रही थी. बारिश का सीजन चल रहा है अधिकांश लोगों ने अपने घर, मकान जो पुराने टपरे थे वह तोड़ लिए हैं. बारिश कभी-कभी तेजी से आ जाती है. बच्चे इधर से उधर, उधर से इधर होते हैं. कई लोगों ने तो तिरपाल लगा लिए हैं परंतु वह तिरपाल भी काम नहीं कर रही है और प्रधानमंत्री आवास की जो किश्ते हैं वह जारी नहीं हो रही हैं. अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे निवेदन करूंगा कुछ ऐसी व्यवस्था दे दें कि जिन लोगों ने अपने घर, मकान तोड़ लिए हैं, छप्पर तोड़ लिए हैं और जो एक प्रकार से विस्थापित स्थिति में हैं उनकी शेष किश्तें उनके लिए प्रदान की जाएं. दूसरा प्रश्न यह है कि संबल योजना के अंतर्गत जिन लोगों के लिए राशन दिया जा रहा था उनके लिए अब राशन नहीं दिया जा रहा है. उनके राश्न कार्ड रद्द हो गए हैं जबकि वह बी.पी.एल. में भी आते हैं, सारी बातें हैं तो क्या राशन का कोटा कम हो गया है, यदि कोटा ज्यों का त्यों हैं तो उन गरीब लोगों के लिए जो एक रुपए किलो का राशन है वह यथावत मिलता रहे. एक तो गरीबों के आवास का और दूसरा गरीबों के राशन इन दो व्यवस्थाओं के बारे में यदि आपकी तरफ से व्यवस्था आ जाती.
अध्यक्ष महोदय-- बिलकुल मेरे यहां से लिखित जाएगा. आप लोग अगर गफलतबाजी करेंगे तो फिर मैं शून्यकाल में किसी को बोलने नहीं दूंगा. मैं आपको व्यवस्था दे रहा हूं. मेरी व्यवस्था में सहयोग करिए. आप लोग सब ऐसे हाथ उठा देते हैं मेरी नजरे सिर्फ (इशारा करते हुए.) मैं कहां-कहां देखूं. (डॉ. नरोत्तम मिश्र की ओर देखते हुए) एक नूरानी चेहरा खड़ा हो. कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि तुम ऐसे ही खडे़ रहो, दिल्ली मत जाया करो. जरा बोलिए नरोत्तम जी.
(3) कानून एवं व्यवस्था की स्थिति पर चर्चा करायी जाना.
डॉ. नरोत्तम मिश्र ( दतिया) --अध्यक्ष महोदय, विषय बहुत गंभीर है सतना जिले के नागौर थाना के जिगनार गांव में दबंगों के द्वारा एक (XXX) महिला को मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी गई. यह सवाल (XXX) महिला का नहीं है. पूरे प्रदेश के अंदर भयावह स्थिति लॉ एण्ड आर्डर की बनी हुई है.
श्री जितु पटवारी-- संविधान में थोड़ा परिवर्तन हो गया है. दलित हो गया है.
अध्यक्ष महोदय-- यह शब्द विलोपित कर दें. आप अनुसूचित जाति बोलें.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- अध्यक्ष महोदय. एस.सी. की महिला, दलित महिला, अनुसूचित जाति की महिला को मिट्टी का तेल डालकर आग सरेआम आग लगा दी, हत्या कर दी, (जारी)..
श्री एदल सिंह कंषाना-- अध्यक्ष महोदय, यह जो शब्द कह रहे हैं वह विलोपित किया जाए.
अध्यक्ष महोदय-- विलोपित कर दिया है.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- अध्यक्ष महोदय पूरे प्रदेश की हालत इतनी भयावह हो गई है. कल आपने ब्यावरा का देखा होगा कि सरेराह गोलियां चलीं. दो महिलाओं को गोलियां लगी, दो लोगों को गोलियां लगी. सरेआम टी.वी.पर पूरे प्रदेश ने यह देखा. इससे पूरे प्रदेश में हाहाकार मचा हुआ है. इसलिए हम चाहते है कि पूरे प्रदेश के लॉ एण्ड ऑर्डर के लिए, इस पर आप स्थगन लें और स्थगन में लॉ एण्ड ऑर्डर पर चर्चा होनी चाहिए. आपने तो बजट भी पास कर दिया है.
अध्यक्ष महोदय- थोड़ा धीरे, आप एकदम से तेज हो जाते हैं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र- माननीय अध्यक्ष महोदय, आप टेमपरामेंट नहीं बनने देते हैं.
अध्यक्ष महोदय- जब तक आप बढि़या गुड लैंथ गेंद फेंकते हैं, तब तक ही बल्लेबाजी में मजा आता है. आप एकदम से पटकी हुई गेंद फेंकते हैं तो ज़रा दिक्कत हो जाती है.
श्री गोपाल भार्गव- नरोत्तम जी को थोड़ा फोर्स बनाना पड़ता है.
डॉ. नरोत्तम मिश्र- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी आपसे प्रार्थना है कि पूरे प्रदेश में भयावह स्थिति है. आप स्थगन पर चर्चा करवायें. यह सतना जिले की घटना है.
(4) सिवनी विधान सभा क्षेत्र में हुई दो पुलिसकर्मियों की मृत्यु की जांच किया जाना
श्री दिनेश राय ''मुनमुन'' (सिवनी)- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी विधान सभा के दो पुलिस अधिकारियों की मृत्यु हो गई है. जिसमें ढैंकी से सतपाल सिंह बघेल ए.एस.आई. एवं बंडोल से शंकर लाल बघेल जी हैं. इनकी मृत्यु हो गई है लेकिन आज तक उसकी FIR नहीं लिखी जा रही है. सरकारी बटालियन का वाहन उन पर चढ़ गया था जिससे उनकी मृत्यु हो गई. ये दोनों व्यक्ति रिश्ते में साढू भाई थे. ये अपने ही एक पुलिस अधिकारी की पत्नी की मौत पर जा रहे थे. इनकी विधवायें थाने जा-जाकर थक गई हैं. TI न रिपोर्ट लिख रहा है न SP कुछ कर रहे हैं. माननीय अध्यक्ष महोदय, इस घटना को एक माह हो गया है और मैं यह बता देना चाहता हूं कि यह घटना छिंदवाड़ा की है. छिंदवाड़ा में दोनों पुलिस वालों की मृत्यु हुई है लेकिन आज तक उन विधवा महिलाओं को न्याय नहीं मिल रहा है. इसलिए मैं चाहता हूं कि इस पर कार्यवाही हो.
(5) अटेर विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत रजिस्टर्ड झूठे प्रकरणों की जांच किया जाना
श्री अरविंद सिंह भदौरिया (अटेर)- माननीय अध्यक्ष महोदय, अटेर विधान सभा क्षेत्र के चार थाना क्षेत्रों (पावई, अटेर, बरोही और भिण्ड देहात थाना) में करीब 20 लोगों पर धारा 307 के केस रजिस्टर्ड हुए हैं. धारा 302 के केस भी 3 लोगों पर रजिस्टर्ड हुए हैं. धारा 376 के अंतर्गत 2 लोगों, जो कि बाप-बेटे हैं और दोनों शासकीय सेवा में हैं.
अध्यक्ष महोदय- मैंने आपको वक्तव्य देने के लिए नहीं अपितु शून्यकाल में सूचना देने के लिए समय दिया है. कृपया दोनों का अंतर समझिये.
श्री अरविंद सिंह भदौरिया- थाना प्रभारी अटेर ने अपराध क्रमांक 112/2019 दिनांक 2.7.2019 को धारा 307, 145, 148 एवं 341 में झूठे केस रजिस्टर्ड किए हैं. थाना प्रभारी पावई द्वारा अपराध क्रमांक 0062/2019 दिनांक 29.6.2019 में धारा 307, 506 के अंतर्गत केस रजिस्टर्ड किए गए हैं. माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा आपसे अनुरोध है कि इसमें जांच करवाई जाए.
अध्यक्ष महोदय- मेरा आप सभी सदस्यों से पुन: अनुरोध है कि शून्यकाल की सूचना अर्थात् केवल सूचना.
खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री (श्री प्रद्युम्न सिंह तोमर)- माननीय अध्यक्ष महोदय, कृपया मेरी एक बात सुन लें.
अध्यक्ष महोदय- मंत्री जी, यह शून्यकाल चल रहा है. आप विराजिये. प्रताप जी मैंने आपको समय दिया है आप बोलिये.
(6) PMT परीक्षा के फर्जीवाड़े में प्राप्त गुमनाम पत्र की जांच की जाना
श्री प्रताप ग्रेवाल (सरदारपुर)- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा कल 22 नंबर पर तारांकित प्रश्न था कि क्या गृह मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि 20 जून 2013 को गुप्तचर शाखा इंदौर की PMT परीक्षा के फर्जीवाड़े के संदर्भ में जो गुमनाम पत्र मिला था तथा क्या विभाग द्वारा इस पत्र की जानकारी तत्कालीन मुख्यमंत्री को दी गई थी ?
माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे प्रश्न के उत्तर में गृह मंत्री जी के जवाब में कहा गया है कि जी नहीं. शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है. किंतु वर्ष 2014 को विधान सभा में इस बात का उल्लेख तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने स्थगन पर चर्चा के दौरान किया था. माननीय अध्यक्ष महोदय, प्रदेश की जनता यह जानना चाहती है. आसंदी की व्यवस्था का सवाल है. जब विधान सभा में माननीय पूर्व मुख्यमंत्री जी ने गुमनाम पत्र पर जांच के आदेश दिए तो वह गुमनाम पत्र आज कहां है ?
अध्यक्ष महोदय- मेरा आप सभी से अनुरोध है कि मैं शून्यकाल में आपको समय दे रहा हूं. पहले कभी ऐसा नहीं हुआ है. मैं जो नई व्यवस्था और नई प्रणाली चालू कर रहा हूं, अगर आप सभी इसे व्यवस्थित चलायेंगे, तो ही मैं इसे चलाऊंगा. शून्यकाल यानि केवल सूचना. क्या हुआ है उसकी सूचना दे दीजिये, यह सही तरीका है. आप लोग तो पूरा का पूरा पढ़ने लगते हैं. आप लोग ज़रा अंतर समझियेगा, मेहरबानी होगी. मैंने कहा है कि मैं एक दिन में सिर्फ पांच लोगों को, जिसकी लॉटरी निकल जायेगी, बोलने दूंगा. पांचवा व्यक्ति हो गया है, धन्यवाद. पत्रों का पटल पर रखा जाना, डॉ. गोविंद सिंह जी.
एक माननीय सदस्य:- अध्यक्ष महोदय, आपसे निवेदन है कि रानी अवंती बाई नहर परियोजना से पानी चालू करवाने की कृपा करें, जिससे पेड़-पौधे जीवित रह सकें.
इंजी. प्रदीप लारिया:- माननीय अध्यक्ष महोदय,....
अध्यक्ष महोदय:-देखिये, इंजीनियर साहब हर विषय पर बोलना, हर विषय में मुझे टोकना, हर समय मुझे आकर्षित करना, नहीं. आप वरिष्ठ सदस्य हैं. आप अपनी जवाबदारी समझियेगा. जब मौका मिलता है, मैं आपको बोलने का मौका मिलता है. चलिये, विश्वास जी बोलिये.
7. निशात एजुकेशन एण्ड वेलफेयर सोसाइटी द्वारा बैसरिया रोड पर 34 हजार स्केवेयर हजार फिट जमीन पर कूटरचित दस्तावेजों के माध्यम से कब्जा किया जाना.
श्री विश्वास सारंग(नरेला):- माननीय अध्यक्ष महोदय, बैसरिया रोड स्थित लगभग 34 हजार स्केवेयर हजार फिट जमीन पर कूटरचित दस्तावेजों के माध्यम से निशात एजुकेशन एण्ड वेलफेयर सोसाइटी द्वारा बेज़ा कब्जा किया जा रहा है.
अध्यक्ष महोदय, आपका संरक्षण चाहता हूं. नगर-निगम, पुलिस, नजूल आदि सब में शिकायत की गयी. वहां पर कब्जा रोकने के लिये निर्देश भी दिये गये, परन्तु वह कार्यवाही नहीं हो पा रही है. आसंदी से आपका संरक्षण चाहिये, करोड़ों रूपये की जमीन पर बेजा कब्जा हो रहा है. अध्यक्ष महोदय, आप निर्देश दे दें.
अध्यक्ष महोदय:- बेज़ा कब्जा हो रहा है. मेरा लिखा जा रहा है और मैंने परमानेंट बोल दिया है कि जो बोला जायेगा वह विभागों को सूचना जायेगी. आपकी जानकारी के लिये.
श्री विश्वास सारंग:- अध्यक्ष महोदय, रूकवाने के लिये, धन्यवाद.
12.02 बजे
पत्रों का पटल पर रखा जाना
1. मध्यप्रदेश लोकायुक्त और उप लोकायुक्त का बत्तीसवां एवं तैंतीसवां वार्षिक प्रतिवेदन क्रमश: वर्ष 2013-2014 एवं 2014-2015, शासन के व्याख्यात्मक ज्ञापन सहित
2. मध्यप्रदेश अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय अधिनियम, 2011 (क्रमांक 34 सन् 2011) की धारा 44 की उपधारा (2) की अपेक्षानुसार
12.14 बजे
सदन द्वारा सहमति प्रदान की गयी.
औचित्य का प्रश्न एवं अध्यक्षीय व्यवस्था
माननीय सदस्यों द्वारा दी गई ध्यानाकर्षण सूचनाओं का उत्तर संबंधित विभाग द्वारा न दिया जाना.
नेता प्रतिपक्ष( श्री गोपाल भार्गव)-- हम लोग पहले ध्यानाकर्षण अथवा स्थगन की सूचनाएं देते थे उनके आपके सचिवालय में उत्तर आ जाते थे, उसी दिन सूचनाएं संबंधित विभागों को प्रेषित हो जाती थीं उनकी सूचनाएं एक दो दिन के अंदर आ जाती थीं. मेरी शायद मान्यता है कि उसमें थोड़ी बहुत कार्यवाही होती होगी जिससे जो भी समस्या होती थी, वह हल हो जाती थी. फिर आप उसको चर्चा में लें अथवा न लें. लेकिन बहुत कुछ परपज उससे साल्व हो जाता था. लेकिन इस सत्र में यह देखने को मिला है कि सूचनाएं जानकारी तथा उत्तर के लिये नहीं भेजी जाती हैं. इसलिये मैं चाहता हूं कि पुरानी व्यवस्था को लागू किया जाये. क्योंकि सारे सदस्यों को ध्यानाकर्षण, स्थगन आप नहीं दे सकते हैं क्योंकि बड़ी संख्या में सदस्यों के ध्यानाकर्षण स्थगन की सूचनाएं रहती हैं. लेकिन बाद में हमको लिफाफे में उत्तर मिल जाते थे. आप अंतिम दिन ध्यानाकर्षण की 30-40 सूचनाएं लेंगे.
अध्यक्ष महोदय--मैं बता रहा हूं कि ऑन लाइन, ऑफ लाइन दोनों जगहों से सूचनाएं जा रही हैं. अगर आपको ऐसा अंदेशा है. पूर्व में कार्यसूची को मैं देखता था ध्यानाकर्षण 4 लिये जाते थे उसमें 20-25 की सूची लगी रहती थी. पहले हम ऐसे ही देखते थे. आप वही चाह रहे हैं. जब सूचना पहुंचा जायेगी तो वह कार्यसूची में भी आ जायेगी.
श्री गोपाल भार्गव--अध्यक्ष महोदय, यह सभी का विषय है. क्या होता है यहां हमने आज सूचना दी. सूचना साढ़े सात से साढ़े आठ बजे के बीच में ली जाती थी. जो साढ़े आठ के बाद जो सूचनाएं ली जाती थीं वह दूसरे दिन की मानी जाती थीं. मेरा निवेदन है कि साढ़े सात बजे अथवा 7.40 बजे कोई हमने सूचना दी तत्समय वह विभाग अथवा जिले के लिये पहुंच जाये तो उसकी रिप्लाई आ जायेगी तो बहुत कुछ समस्याएं हल हो जायेंगी.
अध्यक्ष महोदय--रिप्लाई तो बहुत सारी आ चुकी हैं मैं आपको यह बता रहा हूं. मैं उसको कार्यसूची में छाप नहीं पाया.
श्री गोपाल भार्गव--अध्यक्ष महोदय, कार्य सूची में नहीं छापना है.
अध्यक्ष महोदय--आप लोगों के पिजन हॉल में दे दिया करूंगा.
श्री विश्वास सारंग--अध्यक्ष महोदय जो उत्तर आये वह सदस्य तक पहुंच जाये, यह निवेदन है.
अध्यक्ष महोदय--माननीय संसदीय मंत्री जी कृपया आप संबंधित विभाग को सूचित करने का कष्ट करें जो ध्यानाकर्षण की सूचनाएं आती हैं. विभिन्न विभाग को उसका पालन करने हेतु प्रेषित कर दिया जाता है, लेकिन समय पर विभाग उसको उत्तर देकर नहीं पहुंचाते हैं. कृपया इसको सुनिश्चित करवाने का कष्ट करें.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ.गोविन्द सिंह)--अध्यक्ष महोदय, आपके निर्देश का पालन होगा, लेकिन उसमें विधान सभा की भी जवाबदारी है कि अकेले संसदीय मंत्री की नहीं. हम लिखकर सूचना देंगे, लेकिन आपके विधान सभा सचिवालय की भी जवाबदारी है कि समय पर विभाग से सूचना मांगे तथा सब लोगों को उपलब्ध करवायें.
श्री गोपाल भार्गव--आप मंत्रियों को कह दें. वह अपने सचिवों को कह देंगे तो सूचनाएं आ जायेंगी.
अध्यक्ष महोदय--माननीय मंत्री जी मेरे सचिवालय द्वारा सूचनाएं जाती ही हैं, लेकिन मंत्रालय में बैठे हुए विभिन्न विभाग के अधिकारियों को निर्देशित करें. आप मुझसे कोई टिप्पणी मत करवाइये.
डॉ.गोविन्द सिंह--अध्यक्ष महोदय, नहीं आता है आप कॉल बेक करो.
श्री गोपाल भार्गव--मेरा सुझाव है कि आप संबंधित मंत्रियों के लिये भेज दें. संबंधित मंत्री उसी दिन उसका जवाब दे दें.
अध्यक्ष महोदय--माननीय नेता प्रतिपक्ष जी मैंने आपकी बात का समाधान निकाल दिया है. अब आप लोग कृपया विराजें.
श्री हरिशंकर खटीक--अध्यक्ष महोदय, मैं निवेदन करना चाहता हूं.
अध्यक्ष महोदय--जब आपके नेता प्रतिपक्ष जी जिस विषय की बात को उठाते हैं अन्य सदस्य को टेकन ओव्हर नहीं करना चाहिये, क्योंकि आपके नेता प्रतिपक्ष इसके लिये सक्षम हैं. उनको आप लोगों को सपोर्ट करने की आवश्यकता नहीं है.
श्री हरिशंकर खटीक--अध्यक्ष महोदय, यह रबी की फसल का शून्यकाल नहीं है. खरीफ की फसल का है कोदो और मूंगफली का बीज आज तक नहीं मिला है.
अध्यक्ष महोदय--यह कौन सा विषय आ गया है.
श्री हरिशंकर खटीक--हमने इसका तारांकित प्रश्न लगाया है, इसका शून्यकाल भी दिया है, याचिकाएं दी हैं. सब कुछ दिया है.
अध्यक्ष महोदय--आप वरिष्ठ सदस्य हो जब शून्यकाल की सूचनाएं चल रही थीं तब उस विषय को नहीं उठाते.
श्री हरिशंकर खटीक--अध्यक्ष महोदय आप मेरा निवेदन तो सुन लीजिये.
अध्यक्ष महोदय--यह तरीका नहीं होता है आप अपनी वरिष्ठता का दुरूपयोग कर रहे हैं.
श्री हरिशंकर खटीक--आप आदेश करवा दीजिये.
श्री गोपाल भार्गव--अध्यक्ष महोदय, इसको प्रश्न एवं संदर्भ समिति को भेज दीजिये.
अध्यक्ष महोदय--गोपाल जी मेरी प्रार्थना सुनिएगा. वरिष्ठ सदस्यों का एक कायदा होता है. कौन सा विषय चल रहा है ? मैंने ध्यानाकर्षण मांग लिया उसके बाद वह बीच में खड़े हो गये. यह छूट सिर्फ मैंने माननीय नेता प्रतिपक्ष जी को दे रखी है.
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव) - माननीय अध्यक्ष महोदय, प्रश्नोत्तरी में प्रश्न आते हैं. यदि वह प्रश्न चर्चा में नहीं आ पाते हैं, या ध्यानाकर्षण सूचना में आप उन्हें लेते हैं लेकिन वह चर्चा में नहीं आ पाते हैं, तो अक्सर आसंदी से यह व्यवस्था दे दी जाती थी कि यह प्रश्न संदर्भ समिति को फारवर्ड कर दें, तो वह समिति जो है उसकी विस्तृत चर्चा करके सचिवों के साथ में समिति के सदस्य उसका निराकरण कर देते थे, तो वह और ज्यादा प्रभावी तरीके से विधानसभा की समिति के माध्यम से जाता था.
अध्यक्ष महोदय - चलिए मैं इसको देखूंगा. करण सिंह वर्मा .
श्री गोपाल भार्गव - तो जो सदस्य आपको आवेदन करें कि हमारा प्रश्न उस कमेटी के लिए रेफर किया जाए तो मैं मानकर चलता हूं कि बहुत प्रभावी परिणाम आएंगे.
अध्यक्ष महोदय - माननीय नेता प्रतिपक्ष जी, चलिए मैं सार्वजनिक तौर पर बोल देता हूं जिनको अपने प्रश्नों से कहीं भी कोई दुविधा, किन्तु परन्तु उत्तर से लगता है, मैं कई बार बोल चुका हूं, प्रश्न संदर्भ शाखा में पहुंचाने का कष्ट करें और दिक्कत है तो एक पत्र खिलकर मुझे दे दीजिए, संबंधित विषय का दे दीजिए. मैं स्वमेव प्रश्न संदर्भ शाखा में पहुंचा दूंगा, ताकि उसमें न्यायोचित कार्यवाही हो सके.
श्री गोपाल भार्गव - अध्यक्ष महोदय, बहुत धन्यवाद, इससे हमारा लोकतंत्र और मजबूत होगा.
अध्यक्ष महोदय - जी, जरूर.
12:22 बजे. नियम 138(1) के अधीन ध्यान आकर्षण.
(1) सीहोर जिले की इछावर तहसील में खसरे की नकल देने हेतु अवैध राशि की वसूली संबंधी.
श्री करण सिंह वर्मा (इच्छावर) - माननीय अध्यक्ष महोदय-
राजस्व मंत्री(श्री गोविन्द सिंह राजपूत) - माननीय अध्यक्ष महोदय,
श्री करण सिंह वर्मा - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने मंत्री जी से पूछा था वहां मैंने प्रदर्शन और धरना भी दिया था. सारे किसान पूरे मध्यप्रदेश के किसान, मैंने इछावर का एक मामला उठाया था.
अध्यक्ष महोदय - यह सिर्फ जिला सीहोर तक सीमित है. कृपया वैसा ही प्रश्न करें, आप वरिष्ठ सदस्य हैं.
श्री करण सिंह वर्मा - जी अध्यक्ष महोदय, मैं वहीं तक सीमित रहूंगा. मैं जब राजस्व मंत्री था, जब नि:शुल्क खसरे की नकल और खसरा दिया जाता था. हमारा पटवारी घर पर जाकर सांकल बजाता था कि आपकी यह खसरे की नकल है, यह ले लीजिए. इसके बाद भी वह बंद होने के बाद कोई दिक्कत आने के बाद कोई कारणवश हमारा किसान तहसील में जाता था और 10 रूपए की रसीद लगाता था. और उसे नकल, खसरा मिल जाता था.
अध्यक्ष महोदय - आप प्रश्न करिए.
श्री करण सिंह वर्मा - मैं माननीय मंत्री जी से यह पूछना चाहता हूं कि आप एक पन्ने की नकल के तीस रूपए लेते हैं, उसमें 4-5 नंबर और भी लिखे जाते हैं, मैं बता दूं आपको नाम लेकर, मैं गया था तहसील में एक गोलूखेड़ी का किसान है वह 4-5 एकड़ जमीन का किसान है, उससे 1,800 रुपये लिये गये और रसीद नहीं दी गई. एक बावडि़या गोसाई के हेमराज व्यक्ति से 730 रुपये लिए गए लेकिन रसीद नहीं दी गई.
अध्यक्ष महोदय, एक और भी व्यक्ति है, राधेश्याम. जिससे पैसा ले लिया गया. अब वह खसरे का मामला जो कि एक कागज है, जिसमें 5 भी नकल दी जा सकती हैं. मगर एक पेज की कीमत 30 रुपये माननीय मंत्री जी ने बोला है, उसमें सिर्फ एक ही खसरा नम्बर डालते हैं. मैं माननीय मंत्री जी से पूछना चाहता हूँ कि क्या एक पन्ने में 5 खसरे नम्बर नहीं डाले जा सकते हैं ? आप बताइये.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत - माननीय अध्यक्ष महोदय, यह जो पूर्व राजस्व मंत्री जी कह रहे हैं कि हमारे जमाने में खसरे, नकल सांकल बजाकर दी जाती थी. उस समय पटवारियों के पीछे किसान हफ्तों नहीं, महीनों घूमते थे, भ्रष्टाचार बहुत होता था और इन पटवारियों की परेशानी से हम नहीं आपकी भाजपा सरकार भी पीडि़त रही है और माननीय सदस्य राजस्व मंत्री रहे हैं. आपको शायद ज्ञात है कि नहीं, मुझे नहीं मालूम क्योंकि आपकी सरकार में राजस्व मंत्री बहुत जल्दी-जल्दी बदले गए हैं. एक, दो, तीन तो यहीं बैठे हैं.
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव) - माननीय अध्यक्ष महोदय, अभी 6 महीने हुए हैं, आप क्या बात कर रहे हैं ? अभी कितने बदल दें ? आप 6 महीने में ही चाहते हैं कि और बदल जाएं.
अध्यक्ष महोदय - आप उत्तर दीजिये, मुझे आगे का कार्य करना है.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत - आप प्रथम थे, आप बैठ जाइये.
श्री गोपाल भार्गव - गोविन्द भाई, हम लोग जितने साल रहे हैं, उतने महीने भी नहीं रहोगे. (हंसी)
श्री गोविन्द सिंह राजपूत - यह तो वक्त बताएगा.
अध्यक्ष महोदय - देखो भाई, सागर वाले आपस में न बात करें.
श्री करण सिंह वर्मा - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने इनसे सीधा प्रश्न पूछा है. अगर आप डिटेल में आएंगे तो मैं भी डिटेल में आ जाऊँगा.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत - अध्यक्ष महोदय, आपकी ही सरकार में वेब जीआईएस लागू हुआ.
श्री करण सिंह वर्मा - अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न यह है कि एक नकल के लिए किसान जाता है, राजपूत जी तहसील में जाते हैं, कहते हैं कि मुझे खसरा, नकल की कॉपी चाहिए तो उसमें यदि आपके पांच खसरे नम्बर हैं तो क्या तहसीलदार लिखकर देगा ? या आपकी वह बाहर की जो कम्पनी है, जो नकल वगैरह देती है, क्या लिखकर देगी ? मैं यह प्रश्न पूछ रहा हूँ.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत - अध्यक्ष महोदय, मैं आपको पूरा विस्तार से समझा रहा हूँ. एक खाते के अगर 4 नम्बर होते हैं तो एक ही पृष्ठ में आ जाते हैं. एक पृष्ठ का वेब जीआईएस में 30 रुपये निर्धारित किया गया है और जो उसके पीछे के पृष्ठ होते हैं, उसमें भी 30 रुपये के हिसाब से ही लिये जाते हैं. लेकिन मैं माननीय सदस्य को बताना चाहता हूँ कि हमारी सरकार ने और हमने निर्णय लिया है कि आपकी बात जो संज्ञान में आई है, वह भी सही है और हमारी सरकार ने इस बात को महसूस किया है कि यह पैसा अधिक है, इसलिए पहले पेज के 30 रुपये और अन्य पेज के 15 रुपये लिये जाएंगे. हमने यह निर्णय लिया है. माननीय सदस्य आपकी जानकारी में अगर कुछ है तो मैं उसकी जांच करवा लूँगा.
श्री करण सिंह वर्मा - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा आपसे विशेष निवेदन है कि मैंने माननीय मंत्री को नाम बताकर सदन में कहा है कि इन-इन लोगों से इतना पैसा लिया गया है, जिन लोगों ने पैसा लिया है, क्या उनके खिलाफ कार्यवाही करेंगे? दूसरा, एक ही पेज में 4 खसरे नम्बर आ सकते हैं तो क्या चारों खसरों के नम्बर एक ही पेज में डालेंगे ? इनके उत्तर मुझे दे दीजिये.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत - अध्यक्ष महोदय, मैंने विस्तार से समझा दिया है. अगर आपकी जानकारी में कहीं कुछ, जो आपने नाम लिये हैं, जहां से इस प्रकार की शिकायत आई है, मैं इसकी जांच करवा लूँगा.
श्री करण सिंह वर्मा - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा मुख्य प्रश्न तो वही है. अगर एक-एक आदमी के 20 खसरे नम्बर हैं, किसी किसान की अगर 5 जमीन होगी और 20 खसरे नम्बर हैं तो उनसे 600 रुपये ले रहे हैं, वह उत्तर दीजिये.
अध्यक्ष महोदय -- श्री वर्मा जी आप बैठ जायें, श्री संजय यादव जी आप बोलें.
श्री संजय यादव (बरगी) -- माननीय अध्यक्ष महोदय. (व्यवधान) ...
श्री करण सिंह वर्मा -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मुझे उत्तर चाहिये. क्या एक ही पन्ने में चार ही खसरे नंबर डाले जायेंगे ?
अध्यक्ष महोदय -- श्री वर्मा जी आपकी बात आ गई है, आपके उत्तर आ गये हैं, कृपया आप बैठ जायें.
श्री करण सिंह वर्मा -- माननीय अध्यक्ष महोदय, आपकी मेहरबानी हो तो मेरा उत्तर आ जाये. मैंने एक उत्तर के लिये ही प्रश्न किया है.
अध्यक्ष महोदय -- श्री वर्मा जी मैंने ग्राह्य इसलिये किया है, मैं वह सूचना पढ़कर बता देता हूं कि मुझे सहयोग दीजिये, तीन प्रश्नों के अलावा कुछ नहीं.
श्री करण सिंह वर्मा -- माननीय अध्यक्ष महोदय, आपकी मेहरबानी हो जाये उत्तर आ जाये.
अध्यक्ष महोदय -- चलिये वर्मा जी के शरीर को देखते हुये एक प्रश्न और पूछ लीजिये (हंसी)..(एक माननीय सदस्य के अपने आसन पर खड़े होने पर) आपको तो आधा प्रश्न भी नहीं.
श्री करण सिंह वर्मा -- अध्यक्ष महोदय, आप शरीर के अलावा बाकी भी देख लीजिये. मेरा उत्तर आ जाये.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया -- माननीय अध्यक्ष महोदय, शरीर के हिसाब से तो हमारा नंबर कभी आयेगा ही नहीं.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं पहले कह चुका हूं कि इस व्यवस्था में थोड़ा सुधार किया जा रहा है और अब जो एक खसरे के बाद पीछे के पन्ने जो आयेंगे, हम उसमें पंद्रह रूपये करने जा रहे हैं, यह असुविधा खत्म हो जायेगी.
(2) भोपाल में भूमि पूजन के बाद भी विकास कार्य न होना.
श्री संजय यादव(बरगी) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी ध्यानाकर्षण की सूचना का विषय इस प्रकार है कि
नगरीय विकास एवं आवास मंत्री(श्री जयवर्द्धन सिंह) -- माननीय अध्यक्ष महोदय,
श्री संजय यादव -- माननीय मंत्री मेरा आपसे यह प्रश्न उठता है कि स्वाभाविक रूप से भारतीय जनता पार्टी की विकास यात्रा के पूर्व इन लोगों की तो आदत रही है कि (XXX) था तो इनके स्वाभाव में था.
अध्यक्ष महोदय -- आप प्रश्न करिये, मुझे जल्दी है, मुझे अन्य विषय भी लेना हैं.
श्री संजय यादव -- माननीय अध्यक्ष महोदय, सबसे ज्यादा (XXX) तो नरेला में हुआ है.
श्री गोपाल भार्गव -- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह आपत्तिजनक है इसलिये इसको विलोपित किया जाये.
अध्यक्ष महोदय -- इसको विलोपित किया जाये. मैंने इसको विलोपित कर दिया है.
श्री संजय यादव -- मैं वही (XXX) बोल रहा हूं.
अध्यक्ष महोदय -- संजय जी बहुत जल्दी प्रश्न करिये, मुझे दूसरे विषय लेना हैं.
श्री संजय यादव -- माननीय अध्यक्ष महोदय, बैरागढ़ में महापौर ने प्रस्तावित पगड़ी रस्म हॉल के लिये भूमि पूजन किया था, इन्होंने न टेंडर खुलने का और न ही वर्क आर्डर जारी होने का इंतजार किया, पहले चरण में पचास लाख जारी करना था, दूसरे चरण में डेढ़ करोड़ की घोषणा करना थी, लेकिन अब तक काम शुरू नहीं हुआ है क्योंकि भूमि पूजन (XXX) था. मेरा आपसे निवेदन है कि स्वाभाविक रूप से इन्होंने 156 (XXX) भूमिपूजन किये, तो स्वाभाविक रूप से नारियल भी आया होगा, मिठाई भी आई होगी, टेंट भी लगा होगा, सब काम हुये होंगे, वह 114 अगर (XXX) भूमि पूजन इन्होंने किये हैं तो 114 जो (XXX) भूमि पूजन हैं उसमें टेंट का खर्चा, माला, धैला, नारियल का खर्चा, वह खर्चा अगर सम्मिलित करो तो उसकी राशि कितनी होती है, क्योंकि भूमि पूजन (XXX) थे, उस राशि की भी जांच होना चाहिये, जैसे नाम विश्वास है और काम विश्वासघात का, क्योंकि जिस गुरू का चेला है, उस गुरू की भी वैसी ही आदत है. इसलिये मेरा आपसे निवेदन है कि 156 जो (XXX) भूमि पूजन हुये थे उस (XXX) भूमि पूजन में जो राशि खर्च हुई थी उसकी भी जांच होना चाहिये. उसकी भी जांच कराने का कष्ट करें.
श्री शैलेन्द्र जैन-- माननीय अध्यक्ष महोदय, ये क्या भाषा शैली है .. (व्यवधान)... यह संवैधानिक नहीं है.
अध्यक्ष महोदय-- नेता प्रतिपक्ष खड़े हैं, सब लोग बैठ जाइये.
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव)-- अध्यक्ष महोदय, यादव जी सीधा प्वाइंटेड प्रश्न पूछ लें, अब ये नारियल जेब में रखकर जा रहे थे, फिर विश्वास जी, अविश्वास. मैं समझता हूं यह रिलीवेंट नहीं होता, कोई मतलब नहीं है.
अध्यक्ष महोदय-- मैं पहले ही मना कर चुका हूं उनको. अब अगर प्वाइंटेड प्रश्न नहीं होंगे, मैं आगे बढ़ जाऊंगा.
श्री रामेश्वर शर्मा-- माननीय अध्यक्ष महोदय... .. (व्यवधान)...
अध्यक्ष महोदय-- रामेश्वर जी मुझे खुद अच्छा नहीं लग रहा, मैं बोल रहा हूं आप प्वाइंटेड प्रश्न करिये.
नगरीय विकास एवं आवास मंत्री (श्री जयवर्द्धन सिंह)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, जो विधायक जी ने आपत्ति उठाई है, जैसा मैंने पहले कहा कि नगर निगम भोपाल के पास ऐसे कोई अतिरिक्त भूमि पूजन की जानकारी नहीं है, लेकिन जो इन्होंने उदाहरण दिया कि एक भवन का भूमि पूजन हुआ था, लेकिन न तो वर्क आर्डर जारी हुआ, न टेंडर हुआ तो अगर ऐसी कोई प्रक्रिया हो रही है तो यह गलत है. मैं माननीय विधायक जी से निवेदन करता हूं कि जो इनके पास पूरी सूची है कि ऐसे जो 156 भूमि पूजन हुये हैं, जिनका यह उल्लेख कर रहे हैं, मुझे पूरी जानकारी दे दें, मैं पूरी कार्यवाही कराऊंगा.
अध्यक्ष महोदय-- चलिये धन्यवाद, संजय जी.
अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री (श्री आरिफ अकील)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, इसमें आपकी व्यवस्था की आवश्यकता है. इतने सारे भूमि पूजन हुये हैं और काम शुरू नहीं हुआ, इसकी भी आप एक बड़ी समिति बनाकर जांच करा दीजिये.
अध्यक्ष महोदय-- मंत्री जी ने बोल दिया.
श्री आरिफ अकील-- उन्होंने बोला है, लेकिन जांच कराने का कहा है.
अध्यक्ष महोदय-- मंत्री जी ने स्वयं संज्ञान में ले लिया है और मुझे विश्वास है जो मंत्री जी कहेंगे वह हो जायेगा.
श्री आरिफ अकील-- उसके बाद आपके संज्ञान में नहीं आयेगा, आपका आदेश लागू नहीं होगा.
अध्यक्ष महोदय-- मुझे मंत्री पर विश्वास है कि जो वह बोल रहे हैं, वह हो जायेगा.
श्री आरिफ अकील-- वह तो है, धन्यवाद, लेकिन हमें विश्वास है कि आप सच्चाई निकलवाने में मदद करोगे, हम इसलिये आपसे कह रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय-- मैं मदद कर रहा हूं न.
श्री आरिफ अकील-- क्या हुआ मदद.
अध्यक्ष महोदय-- मुझे भरोसा है वह जो बोल रहे हैं वह होगा.
श्री आरिफ अकील-- वह बोल रहे हैं वह होगा, लेकिन हमें आप पर भरोसा है, आप चाहोगे तो जांच हो जायेगी, नहीं चाहोगे तो नहीं होगी.
अध्यक्ष महोदय-- चलिये. डॉ मोहन यादव जी, आप बोलते थे मौका नहीं देते, मैंने मौका दिया.
डॉ. मोहन यादव (उज्जैन दक्षिण)-- बहुत-बहुत आभारी. माननीय अध्यक्ष महोदय, आपका प्रेम बना रहे. माननीय अध्यक्ष महोदय,
(3) उज्जैन की विनोद मिल के श्रमिकों को बकाया राशि न मिलना.
श्रम मंत्री, (श्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया)-- माननीय अध्यक्ष महोदय,
माननीय अध्यक्ष जी, यह सही है कि सम्मानीय सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2019 में एक आदेश पारित किया है जिसमें उन्होंने मध्यप्रदेश शासन थ्रू कलेक्टर को पार्टी बनाया है. मेरा विभाग इससे सीधा जुड़ा हुआ नहीं है फिर भी माननीय सदस्य ने जो बात पूछी है मैं उनके संज्ञान में लाना चाहता हूं कि जिस दिन सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आदेश आया उसी दिन कलेक्टर ने जो लिक्यूडेटर होता है उन्होंने उससे छीनकर अपने पजेशन में कलेक्टर ने उस जमीन को ले लिया है. साथ ही उस पर जल्दी से जल्दी कार्यवाही की जायेगी कि श्रमिकों को उस भूमि के माध्यम से उसका पैसा उनको भुगतान किया जाये. इसके लिये राजस्व विभाग और नगरीय प्रशासन विभाग की कार्यवाही जारी है और अतिशीघ्र ही, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने 2 साल का इसमें टाईम दिया है. 2 साल के भीतर उनको भुगतान करना है. हमारी सरकार श्रमिकों के लिये कटिबद्ध है. उनका भुगतान निश्चित रूप से किया जायेगा.
डॉ.मोहन यादव - माननीय अध्यक्ष महोदय - माननीय मंत्री जी ने जो जवाब दिया है उसी में उसका उत्तर आ गया है. मूलत: 4300 से ज्यादा श्रमिक लगभग 25 सालों से उम्मीद में बैठें हैं कि हमको हमारा पैसा मिलेगा लेकिन एक विभाग से दूसरे विभाग दूसरे विभाग से तीसरे विभाग, ये फुटबाल बनाया जा रहा है. मूलत: उद्योग विभाग का मामला था फिर श्रम में आ गया. जमीन तो नगर निगम ने राजस्व वालों के माध्यम से ले ली, न नगर निगम पैसा दे रहा, न राजस्व विभाग दे रहा, न श्रम विभाग दे रहा और उसमें भी आठ महीने हो गये. 2 हजार से ज्यादा लोग काल के गाल में समा गये जो उम्मीद में 2 हजार लोग बैठे हैं वह चाह रहे हैं कि पैसा मिल जाये. एक और जानकारी अध्यक्ष महोदय, देना चाहूंगा कि इतना सरल मामला है कि जमीन 400 करोड़ की है, मात्र 80 करोड़ बकाया देना है लेकिन वह पैसा नहीं दिलवा पा रहे हैं तो यह टालने से बहुत अन्याय होगा.
श्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया - अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य जी को इस बात का ध्यान रखना होगा और यह भी समझना पड़ेगा कि मामला सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश अनुसार ही चल रहा है. वर्ष 1996 में 4117 श्रमिकों को 10 करोड़ रुपये दिया जा चुका है शेष राशि जो माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जो प्रोसीजर एडाप्ट किया है थ्रू कलेक्टर, उसके माध्यम से ही श्रमिकों को भुगतान किया जायेगा और दो वर्ष का जो समय दिया है उसके अन्दर उन लोगों का निश्चित रूप से भुगतान होगा.
डॉ.मोहन यादव - माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने जो कहा कि 1996 पैसा दिया था. आज 2019 चल रहा है और उनका अपना बकाया पैसा है. हम किसी से नहीं ले रहे हैं. उनका अपना मेहनत का पैसा, पेंशन,ग्रेच्युटी, किसी को 25 साल तक नहीं मिले तो हम कल्पना कर सकते हैं कि कैसे कष्ट की बात है. मैं जानकारी देना चाहूंगा कि पास की हीरा मिल के 7 हजार अधिकारी,कर्मचारी थे..
अध्यक्ष महोदय - यह विषय सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है ?
डॉ.मोहन यादव - माननीय अध्यक्ष महोदय, नहीं, समाप्त हो गया. 8 महीने हो गये. मैं इसीलिये कह रहा हूं कि 2 साल की टाईम लिमिट थी. वह खत्म होने के बाद चालू करेंगे क्या ? आज भी आक्शन करने जायेंगे तो एक-डेढ़ महीने, आप भी जानते हैं कि समय लगेगा.
श्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया - अध्यक्ष महोदय, ये प्रकरण 1991 से लेकर 2019 तक सबज्यूडिश रहा और सबज्यूडिश होने के कारण इसके भुगतान पर निर्णय नहीं हो पाया. अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जो आदेश दिया है उसके पालन में राजस्व विभाग और नगरीय प्रशासन विभाग जिन्होंने उस जमीन को पजेशन में ले लिया है. उसके माध्यम से जल्दी से जल्दी श्रमिकों का भुगतान किया जायेगा.
डॉ.मोहन यादव - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे निवेदन कर रहा हूं कि मेरा प्रश्न इतना सा है कि पैसा विभागों के चक्कर में श्रमिकों तक नहीं पहुंच पा रहा है.
अध्यक्ष महोदय - बैठिये. माननीय मंत्री जी, हम इसमें महीना, दो महीना कुछ तय कर पाएंगे ?
श्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया - अध्यक्ष महोदय, श्रम विभाग का विचार इसमें नहीं आता है. यह राजस्व विभाग और नगरीय प्रशासन विभाग देख रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय - दोनों मंत्रालय के बीच में है.
श्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया - अध्यक्ष महोदय, मैं दोनों मंत्रालयों से बात करके अग्रिम से अग्रिम भुगतान कराने की कार्यवाही करूंगा.
अध्यक्ष महोदय - नहीं समय-सीमा निर्धारित करिये.
श्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया - माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हमें 2 साल का टाईम दिया है उससे पहले ही हम कराने का प्रयास करेंगे.
डॉ.मोहन यादव - माननीय अध्यक्ष महोदय, लगभग 8 महीने हमारे हो गये, अब ये दो साल तक विभागों में तालमेल ही नहीं हुआ. दो साल के बाद लगता है कि हम उस पर कंटेन लगाने जायेंगे. आपने बहुत अच्छा कहा कि चार महीने, छह महीने, भले आठ महीने बोलें तो सही समय तो दें कि हम इतने महीने में कंपलीट कर लेंगे, कोई समय-सीमा तो होनी चाहिये ?
श्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया - नगरीय प्रशासन विभाग ने उस जमीन को एक्वायर कर लिया है स्मार्ट सिटी के लिये और उनकी कार्यवाही जारी है कि किस तरीके से उस जमीन से पैसा निकालकर सबसे पहले उन श्रमिकों का भुगतान किया जाये. माननीय नगरीय प्रशासन मंत्री जी भी मौजूद हैं. हम मिलकर उस पर निश्चित रूप से कोई न कोई कार्यवाही जल्दी कराएंगे.
डॉ.मोहन यादव - माननीय अध्यक्ष महोदय, समय-सीमा बता दें भले आठ महीने, साल भर बता दो.
नगरीय प्रशासन मंत्री( श्री जयवर्द्धन सिह ) - माननीय अध्यक्ष महोदय, अगर इसमें कोई ऐसा विषय है जो मेरे विभाग से संबंधित है तो माननीय विधायक जी जानकारी मुझे दे दें मैं कार्यवाही करवा दूंगा.
डॉ.मोहन यादव - माननीय अध्यक्ष महोदय,
अध्यक्ष महोदय - देखिये, आपको मंत्री जी सपोर्ट कर रहे हैं.
डॉ.मोहन यादव - मैं सहमत हूं अध्यक्ष महोदय.
अध्यक्ष महोदय - 8 महीने हो चुके हैं, ऐसी क्या विवशता है कि 2 विभाग जो एक ही मंत्रालय में बैठते हैं क्यों बैठक नहीं कर पा रहे हैं? मेरा आपसे अनुरोध है कि आज यह प्रश्नकाल समाप्त होने के बाद जो तारीख तय करें और कितने समय में निर्णय ले लेंगे, कृपया मेरे कार्यालय में सूचित कर दें.
श्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया - अध्यक्ष महोदय, बिल्कुल.
डॉ. मोहन यादव - अध्यक्ष महोदय, बहुत बहुत धन्यवाद. बाबा महाकाल, आप पर, हम पर सब पर कृपा करेंगे, गरीबों का भला हो जाएगा.
श्री पारस चन्द्र जैन (उज्जैन-उत्तर) - अध्यक्ष महोदय, आपने व्यवस्था तो बहुत अच्छी दी है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में 2 साल का कहा है और आपने बैठक के लिए उनको कहा है. मैं चाहता हूं और आज ही आपने समय दिया है 2-4 दिन में बैठक हो जाय तो उन मजदूरों को पैसा मिल जाएगा तो जिसका लाभ उनको मिलेगा. दूसरा, जो मजदूर वहां पर निवास कर रहे हैं क्या उनके लिए एल.आई.जी. आवास बनाने की योजना भी बनाएंगे कि उनको ये आवास मिल सकें? यह मैं माननीय मंत्री जी से पूछना चाहता हूं.
श्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया - अध्यक्ष महोदय, आपने जो आदेश दिया है, उसके परिपालन में निश्चित रूप से हम दोनों मंत्री बैठकर और दोनों सदस्यों को भी बैठाकर उस पर कोई न कोई रास्ता निकालेंगे.
श्री रमेश मेन्दोला (इन्दौर-2) - अध्यक्ष महोदय, इसी से संबंधित इंदौर की हुकुमचन्द मिल का मामला है, इस पर मैंने प्रश्न लगाया है.
अध्यक्ष महोदय - इससे यह उद्भूत नहीं होता है. मैं परमिट नहीं करूंगा. जिस विषय पर चर्चा है, उस दायरे में आप बोलेंगे, मैं परमिट करूंगा. उससे अलग विषय है तो मैं इस पर परमिट नहीं करूंगा.
श्री रमेश मेन्दोला - अध्यक्ष महोदय, मेरा इसमें प्रश्न लगा हुआ था. आपका संरक्षण चाहिए.
अध्यक्ष महोदय - मैंने 4 ध्यानाकर्षण लेने के समय आप लोगों से अनुरोध कर लिया था, मूल प्रश्नकर्ता को मैं 3 प्रश्न करने की अनुमति दूंगा. इस प्रश्न में 2 माननीय सदस्य थे, माननीय डॉ. मोहन यादव जी ने 4 प्रश्न किये, माननीय श्री पारस चन्द्र जैन साहब ने एक प्रश्न किया. अब इस दायरे के बाहर मैं नहीं जाऊंगा.
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव) - अध्यक्ष महोदय, श्री रमेश मेन्दोला जी तो बहुत कम प्रश्न करते हैं.
श्री रमेश मेन्दोला - मेरा प्रश्न लगा था लेकिन वह चर्चा में नहीं आया.
अध्यक्ष महोदय - नेता प्रतिपक्ष जी उसकी बात नहीं है दायरे के बाहर का पूछ रहे हैं, चद्दर यहां तक है अब पैर कहां तक निकालोगे?
श्री रमेश मेन्दोला - (XXX)
अध्यक्ष महोदय - यह कुछ नहीं लिखा जाएगा. श्रीमती रामबाई गोविन्द सिंह..
(4) सहायक संचालक मत्स्योद्योग द्वारा अनियमितता किया जाना
श्रीमती रामबाई गोविन्द सिंह (पथरिया) - अध्यक्ष महोदय,
मत्स्य विकास मंत्री (श्री लाखन सिंह यादव) - अध्यक्ष महोदय,
श्रीमती रामबाई गोविन्द सिंह -- अध्यक्ष महोदय, हमारे पास यह पूरी फाइल है, इसके पहले अधिकारियों ने जांच भी की है उसमें वह दोष सिद्ध भी हुआ है, हमने मंत्री जी को यह फाइल भी दिखायी थी. उनको भी मालूम है कि वह दोष सिद्ध हुआ हैं. इसलिए हमारा निवेदन है कि उस पर एफआईआर दर्ज करवाई जाय और उनसे वसूली की जाय. उऩ्होंने अपने पति के लिए लाभ दिया है जो सरकारी कर्मचारी हैं, अपने पिता के लिए लाभ दिया है, यह पूरी फाइल में पूरी जांच है, मेरे पास में प्रमाण हैं.
श्री लाखन सिंह यादव -- अध्यक्ष महोदय जैसा कि माननीय सदस्या ने जो बात कही है कि अनेकों उनकी शिकायतें हैं, लेकिन हमारे पास में 4 शिकायतें हैं और चारों शिकायतों में जांच के बाद में जो प्रतिवेदन आया है, वह हमने जो शिकायतकर्ता थे उऩको उपलब्ध करा दिया है, और माननीय सदस्या जिस बात को कह रही हैं कि मुझे वह फाइल दिखायी थी, फाइल दिखायी लेकिन हमारे पास में विधिवत जो कागजात आये हैं, उसके हिसाब से एक और शिकायत की जांच चल रही है यदि वह उसमें दोषी पाये जायेंगे तो निश्चित रूप से उनके खिलाफ कार्यवाही करेंगे.
श्रीमती रामबाई गोविन्द सिंह -- अध्यक्ष महोदय मुझे इसकी समय सीमा चाहिए क्योंकि मेरे पास में पूरे प्रमाण हैं, बल्कि जिन अधिकारियों ने इनकी जांच की है उनको भी सजा मिलना चाहिए क्योंकि जांच करने के बाद में कोई कार्यवाही नहीं की गई है तो उनको भी सजा मिलना चाहिए और मुझे समय सीमा बतायें, उनके खिलाफ में एफआईआर दर्ज होना चाहिए उनसे पैसे वसूल होना चाहिए.
श्री लाखन सिंह यादव -- अध्यक्ष महोदय मैंने पूर्व में कहा है कि उनकी जांच चल रही है जांच का जैसे ही प्रतिवेदन आयेगा,निश्चित तौर पर उनके खिलाफ में कार्यवाही करेंगे.
श्रीमती रामबाई गोविन्द सिंह -- समय सीमा बतायें.
श्री लाखन सिंह यादव -- जल्दी करा देंगे.
श्रीमती रामबाई गोविन्द सिंह -- नहीं, जल्दी कोई समय नहीं होता है.
श्री लाखन सिंह यादव -- माननीय अध्यक्ष महोदय मैं शीघ्र जांच करवाकर जो भी निर्णय आयेगा उस हिसाब से कार्यवाही करेंगे.
अध्यक्ष महोदय --( श्रीमती रामबाई के लगातार बोलते रहने पर ) आप बैठ जाओ आपकी तरफ से मैं प्रश्न कर लेता हूं. मंत्री जी इसमे से दो प्रश्न निकल रहे हैं. विधायक का कहना है कि जो अधिकारी जांच कर रहे हैं. वह भी गलत जांच कर रहे हैं, कहीं न कहीं कोर्ट में संरक्षण प्राप्त करके ऐसा तो नहीं है कि जो घपला हुआ है उसको बचाया तो नहीं जायेगा, माननीय सदस्या जो फाइल आप रखे हैं वह फाइल आप पटल पर रख दीजिये उसको भी दायरे में लिया जाय और जो अधिकारी अभी जांच कर रहेहैं उनको छोड़कर नये अधिकारी नियुक्त करियेगा, और यह जांच दो माह में करवाकर दीजियेगा.
श्री लाखन सिंह यादव -- अध्यक्ष महोदय आसंदी का जो आदेश होगा उसका पालन करेंगे, वैसे जांच जारी है लेकिन आपने निर्देशित कर दिया है तो दो माह में हम जांच करा लेंगे.
याचिकाओं की प्रस्तुति
अध्यक्ष महोदय -- आज की कार्य सूची में सम्मिलित सभी माननीय सदस्यों की 58 याचिकाएँ प्रस्तुत की हुई मानी जायेंगी.
सदस्यों का निर्वाचन
राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्विद्यालय, ग्वालियक के प्रबंध मण्डल हेतु
तीन सदस्यों का निर्वाचन
किसान कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री ( श्री सचिन सुभाष यादव )--अध्यक्ष महोदय मैं प्रस्ताव करता हूं कि --
यह सभा उस रीति से जैसी अध्यक्ष महोदय निर्दिष्ट करें, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009(क्रमांक 4 सन् 2009) की धारा 27 की उपधारा (2) के पद (नौ) की अपेक्षानुसार राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर के प्रबंध मंडल के लिए राज्य विधान सभा के सदस्यों में से तीन सदस्यों के निर्वाचन के लिए अग्रसर हो.
अध्यक्ष महोदय -- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ.
प्रश्न यह है कि --
यह सभा उस रीति से जैसी अध्यक्ष महोदय निर्दिष्ट करें, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009(क्रमांक 4 सन् 2009) की धारा 27 की उपधारा (2) के पद (नौ) की अपेक्षानुसार राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर के प्रबंध मंडल के लिए राज्य विधान सभा के सदस्यों में से तीन सदस्यों के निर्वाचन के लिए अग्रसर हो.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
12.56 बजे वर्ष 2008-2009 की अधिकाई अनुदानों की मांगों पर मतदान एवं तत्संबंधी विनियोग विधेयक.
12.57 बजे मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक-5)विधेयक,2019 (क्रमांक 22 सन् 2019) का पुरःस्थापन एवं पारण.
1.00 बजे वर्ष 2010-11 की अधिकाई अनुदानों की मांगों पर मतदान एवं तत्संबंधी विनियोग विधेयक
1.01 बजे मध्यप्रदेश विनियोग (क्रमांक-6)विधेयक,2019 (क्रमांक 22 सन् 2019) का
पुरःस्थापन एवं पारण.
1.03 बजे शासकीय विधि विषयक कार्य
(1) मध्यप्रदेश गौ-भैंस वंश प्रजनन विनियमन विधेयक, 2019 (क्रमांक 25 सन् 2019) का
पुर:स्थापन
(2) मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2019
(क्रमांक 26 सन् 2019) का पुर:स्थापन
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री जितु पटवारी) :-
अध्यक्ष महोदय, मैं, मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2019 के पुर:स्थापन की अनुमति चाहता हूँ.
अध्यक्ष महोदय --
प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2019 के पुर:स्थापन की अनुमति दी जाए.
अनुमति प्रदान की गई.
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री जितु पटवारी) :-
अध्यक्ष महोदय, मैं, मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2019 का पुर:स्थापन करता हूँ.
(3) मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 (क्रमांक 19 सन् 2019)
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री जितु पटवारी) :-
अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूँ कि मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
अध्यक्ष महोदय --
प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
अध्यक्ष महोदय - इसमें चतुर्भुज क्यों हटा दिया भाई ? इतना अच्छा वह आम खिला रहे हैं, चावल खिला रहे हैं.
श्री गौरीशंकर चतुर्भुज बिसेन (बालाघाट) - अध्यक्ष महोदय, पिता जी का नाम मैंने हटाया नहीं है. टाइपिंग मिस्टेक होगा. माननीय उच्च शिक्षा मंत्री, जितु पटवारी जी ने जो मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक, 2019 लाया है, इसका मैं समर्थन भी करता हूं और स्वागत भी करता हूं. बालाघाट, सिवनी, मंडला, डिंडौरी, यह सभी रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर से सम्बद्ध हैं. रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के ऊपर इतना वर्क लोड रहता है कि न तो समय पर एग्जामिनेशन हो पाते, न तो रिजल्ट मिलते और कई बार तो ऐसा हुआ है कि एग्जाम हो चुके डीएचएमएस के और 3 वर्षों तक छात्रों के रिजल्ट प्राप्त नहीं हुये. विश्वविद्यालय जबलपुर का बड़ा आकार होने से हमारे उन बच्चों को जो उच्च शिक्षा में अपना ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्रियां प्राप्त करते हैं, उनको काफी असुविधा होती थी और विशेष तौर से हमारे वनांचल क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के बच्चे इसमें काफी सफर करते थे.
अध्यक्ष महोदय - माननीय मंत्रीगण, कृपया अधिकारी दीर्घा से, माननीय भनोत जी, माननीय गोविंद जी, कृपया अपने स्थान पर जाएं. चलिये.
श्री गौरीशंकर चतुर्भुज बिसेन - अध्यक्ष महोदय, जो हमारा नया प्रस्ताव छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय का इस सदन में आया है, इसमें छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट और बैतूल आयेगा. इन चारों जिलों के लोगों को छिंदवाड़ा आने-जाने में कहीं पर भी असुविधा नहीं है. वैसे हमारा जो बैतूल है, वह भोपाल सम्भाग के बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के अंतर्गत है, लेकिन मुझे लगता है कि छिंदवाड़ा में भी यदि यहां के बच्चों को अपने एग्जामिनेशन के रिजल्ट के लिये छिंदवाड़ा यूनिवर्सिटी आना पड़े, तो बहुत ज्यादा दूरी तय नहीं करनी है. जिस उद्देश्य से यह विधेयक आया है, उस उद्देश्य के ऊपर मैं थोड़ा अध्ययन कर रहा था. हमको इस बात की चिंता करनी पड़ेगी कि हम विश्वविद्यालय स्थापित तो करते हैं, यह होने भी चाहिये, क्योंकि हमारे छात्रों की बढ़ती हुई संख्या और विषयों का, नये-नये पाठ्यक्रमों का खुलना, आज इस बात की नितान्त आवश्यकता है कि शासकीय विश्वविद्यालय खुलें. आज प्रायवेट क्षेत्र में छोटे-छोटे स्थानों पर निजी विश्वविद्यालय खुल रहे हैं. उनके पास न तो संसाधन होते, न ही योग्य स्टाफ होता है. मैं किसी निजी विश्वविद्यालय की बात नहीं करना चाहूंगा, लेकिन मध्यप्रदेश में हमने देखा है कि एक कॉलेज अपना विश्वविद्यालय बना लेता है. उनके पास न तो अच्छा टीचिंग स्टाफ होता है, न विशेषज्ञ होते हैं और फिर आप जानते हैं कि जब सत्यापन के लिये टीम आती है, तो गलत रास्ते से उपस्थिति दर्ज करा देते हैं और अपने विश्वविद्यालय को चला रहे हैं. यदि शासकीय विश्वविद्यालय खुलते हैं, उनके प्रति विश्वसनीयता भी अधिक है और उनमें हमारे योग्य टीचिंग स्टाफ, हमारे प्रोफेसर, सारे डिपार्टमेंट के एचओडी वगैरह सब उपलब्ध होते हैं. इस संदर्भ में मैं बहुत ज्यादा न कहते हुये इतना कहना चाहूंगा कि निश्चित रूप से छिंदवाड़ा में जो विश्वविद्यालय की स्थापना हो रही है, स्वागत योग्य कदम है. मैं बालाघाट की ओर से सिवनी की ओर से, बैतूल की ओर से, जितने हमारे जिले इसमें सम्मिलित हो रहे हैं, उन सभी जिलों के हमारे छात्रों को ...
अध्यक्ष महोदय - नरसिंहपुर भी बोल दीजिये. नरसिंहपुर भी मिला लीजिये.
श्री गौरीशंकर चतुर्भुज बिसेन - अध्यक्ष महोदय, इसमें नरसिंहपुर नहीं है. नरसिंहपुर को रहने दीजिये. जबलपुर आपके नजदीक है. फिर जबलपुर का आकार छोटा हो जायेगा. लेकिन सिवनी, छिंदवाड़ा और बालाघाट यह तो बिलकुल एक ही जोन हैं. मैं 10 वर्षों तक छिंदवाड़ा में प्रभारी मंत्री रहा हूं. मुझे कभी लगा ही नहीं कि छिंदवाड़ा और बालाघाट में कोई दूरी है. बीच में सिवनी को क्रॉस करेंगे, ब-मुश्किल एक घंटा लगता है, तो दूरी की दृष्टि से, सड़कों की दृष्टि से, आवागमन की दृष्टि से, सर्व सुविधा की दृष्टि से यह बहुत अच्छा निर्णय है. इसलिये मैं माननीय मुख्यमंत्री जी को भी बधाई देना चाहूंगा और हमारे उच्च शिक्षा मंत्री जी को और पूरे सदन से चाहूंगा कि एक मतेन इस युनिवर्सिटी के विधेयक को हम लोग पारित करें.
मुख्यमंत्री (श्री कमलनाथ)-- माननीय अध्यक्ष जी, मैं आपके माध्यम से गौरीशंकर बिसेन जी का धन्यवाद करना चाहता हूँ, बहुत दिनों, कई साल, ये छिंदवाड़ा के प्रभारी मंत्री रहे और ये परिचित हैं, इन्होंने इसे खुद स्वीकार किया कि बालाघाट, सिवनी छिंदवाड़ा, में कोई ज्यादा अन्तर नहीं है, इन्होंने यह एहसास किया होगा. अंतर है, बहुत चीजों में अंतर है. यह कह देना कि कोई अंतर नहीं है, तो यह पूरी तरह सही नहीं रहेगा....
श्री गौरीशंकर बिसेन-- आवागमन में मैंने कहा.
श्री कमलनाथ-- आवागमन में, ठीक है.
श्री गौरीशंकर बिसेन-- लेकिन एक बात मैं माननीय कमलनाथ जी आप से कहना चाहता हूँ, एक मिनिट सर....
श्री कमलनाथ-- मैं आपको बधाई दे रहा हूँ, धन्यवाद दे रहा हूँ. मैं तो आपको धन्यवाद ही दे रहा हूँ और भी धन्यवाद दे रहा हूँ कि आपने कहा है कि इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से इसे पारित किया जाए. यह बात एक आवश्यक है कि आज जो बढ़ती हुई संख्या हमारे छात्रों की है, यह बढ़ती हुई संख्या के बारे में अगर आज से विचार नहीं करेंगे तब बड़ी कठिनाई में जाएंगे. गौरीशंकर जी ने भी इसका जिक्र किया है कि अगले 5 साल में हमारे कॉलेजेस की कितनी संख्या होगी और खास करके जो पिछड़े हुए जिले हैं, जिनमें एक नई जागरूकता, एक नई चेतना, उत्पन्न हो रही है, ये छात्र जो कभी कॉलेज नहीं जाते थे, ये कॉलेज जाएँगे. मुझे खुशी है कि आप चाहते हैं कि नरसिंहपुर भी जोड़ लिया जाए, मुझे कोई ऐतराज नहीं, स्वागत है. कोई छिंदवाडा़ विश्वविद्यालय से जु़ड़ना चाहें, स्वागत है, उतना ही बड़ा होगा (मेजों की थपथपाहट) और मैं मंत्री जी को कहूँगा इसका संशोधन ले आएँ और हम इसे पारित जरूर करेंगे आपके....
नेता प्रतिपक्ष(श्री गोपाल भार्गव)-- माननीय अध्यक्ष जी, शिक्षा के क्षेत्र का जितना विस्तार हो, उसमें कोई हर्ज नहीं है, खासतौर से उच्च शिक्षा में, अध्यक्ष महोदय, हमारे.....
अध्यक्ष महोदय-- आप दोनों खड़े हों. गोपाल जी, बोलिए.
श्री गोपाल भार्गव-- अध्यक्ष जी, मैं इतना ही आग्रह करना चाहता हूँ कि छिंदवाड़ा का विकास हो, सिवनी का हो, बालाघाट का हो साथ में नरसिंहपुर भी जुड़ जाए, हम सबके लिए खुशी की बात है. अध्यक्ष महोदय, सागर विश्वविद्यालय प्रदेश का सबसे पुराना विश्वविद्यालय है. संयोग से उसको जब अर्जुन सिंह जी ह्यूमन रिसोर्सेस मिनिस्टर थे तो उन्होंने सागर विश्वविद्यालय के लिए केन्द्रीय विश्वविद्यालय घोषित किया, हम सबको बड़ी खुशी हुई थी, लेकिन अध्यक्ष महोदय, सागर संभागीय मुख्यालय भी है, बड़ा शहर है. वहाँ के बच्चों के लिए छतरपुर का जो विश्वविद्यालय है उसके साथ में अटेच कर दिया गया. अब सागर में कोई विश्वविद्यालय नहीं है जो राज्य सरकार के अंतर्गत काम करता हो, तो बच्चे सारे सागर जिले से, दमोह जिले से, सभी जगह छतरपुर जाते हैं. सभी का आग्रह था कि सागर जिले में, हमारे सागर के सभी विधायकगण भी बैठे हैं, दमोह जिले के साथी भी बैठे हैं, कि सागर में भी एक विश्वविद्यालय आप यदि आज ही इस विधेयक के साथ में जोड़ दें तो आपकी बड़ी अनुकंपा होगी. मैं आग्रह इसलिए कर रहा हूँ कि बहुत बड़ी मांग है और मैं यह मानकर चलता हूँ कि शायद 20-25 विधायक इस मांग से सहमत हैं.
श्री कमलनाथ-- माननीय प्रतिपक्ष के नेता ने मांग रखी थी जब मैं भी सागर गया था, यह मांग सामने आई थी और राजनैतिक दृष्टि से नहीं, यह मांग सार्वजनिक थी और इस पर जरूर विचार किया जाएगा, सागर का नाम तो वैसे ही रोशन है कि वहाँ हमारा बड़ा प्रसिद्ध विश्वविद्यालय है तो इस पर विचार किया जाएगा, पर आज का विषय तो छिंदवाडा़ तक सीमित है और मेरा....
श्री गोपाल भार्गव-- मेरा निवेदन इतना ही है कि आप विचार में ले लें जब भी एक महीने, दो महीने....
अध्यक्ष महोदय-- विचार में ले लिया, उन्होंने बोल दिया विचारेंगे.
श्री गोपाल भार्गव-- मतलब हो जाएगा?
अध्यक्ष महोदय-- अगले सत्र में.
श्री गोपाल भार्गव-- अगले सत्र में, बहुत बहुत धन्यवाद, अध्यक्ष महोदय.
श्री कमलनाथ-- मेरा सदन से निवेदन है कि जैसे गौरीशंकर जी ने बड़े अनुभव के साथ, 10 साल के अनुभव, छिंदवाडा़ के अनुभव, के साथ इस प्रस्ताव का समर्थन किया है. पूरा सदन मिलकर कि एक अच्छी चीज होने जा रही है, केवल छिंदवाडा़ के लिए नहीं है, हम चाहते हैं कि विश्वविद्यालय और बनें, सागर का हो, कहीं का भी हो, विश्वविद्यालय और बनें क्योंकि यह बढ़ती हुई संख्या, एक बहुत बड़ी चुनौती है और अगर हमारे विश्वविद्यालय बनेंगे तो, प्रायवेट यूनिवर्सिटीज़ कम बनेंगी. प्रायवेट यूनिवर्सिटी में यह बात सही है कि कुछ अच्छी हैं, कुछ अच्छी नहीं हैं. पर यह तभी संभव है, प्रायवेट यूनिवर्सिटीज़ तो नफा के लिए ये चलाते हैं और जब यह देखेंगी कि नफा नहीं हो रहा है क्योंकि शासकीय विश्वविद्यालय खुल रहे हैं तो यह इसके बारे में सोचना बंद कर देंगी. यह हमें बैठकर सोचना पड़ेगा कि कितने विश्वविद्यालयों की आवश्यकता है. इस पर हम जरुर अध्ययन करेंगे, खासकर सागर पर जैसा मैंने कहा कि यह मांग बहुत जोर से उठी थी.
मेरा अन्त में यही निवेदन है कि सदन इसे सर्वसम्मति से पारित करे.
श्री गोपाल भार्गव--माननीय अध्यक्ष महोदय, हम इस विधेयक का समर्थन करते हैं और सर्वानुमति से इसे पारित करना चाहते हैं. छिंदवाड़ा, सिवनी जैसे ट्रायबल इलाके में उच्च शिक्षा की व्यवस्था होगी यह एक अच्छी सोच है इसको क्रियान्वित करें और आपने सागर के बारे में जो आश्वासन दिया उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ.
अध्यक्ष महोदय--प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाय.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
अब, विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2 तथा 3 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 2 तथा 3 इस विधेयक के अंग बने.
अध्यक्ष महोदय--प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
अध्यक्ष महोदय--प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री जितु पटवारी)--अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूँ कि मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
अध्यक्ष महोदय--प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक सर्वानुमति से पारित हुआ.
1.18 बजे
मध्यप्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक, 2019 (क्रमांक 15 सन् 2019)
सामान्य प्रशासन मंत्री (डॉ. गोविन्द सिंह)-- अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूँ कि मध्यप्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
अध्यक्ष महोदय--प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
श्री प्रदीप पटेल (मऊगंज)-- अध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक, 2019 में वचन-पत्र के हिसाब से 27 प्रतिशत आरक्षण प्रस्तावित किया गया है. मैं इस 27 प्रतिशत आरक्षण का समर्थन करता हूँ. इस विधेयक में उद्देश्यों और कारणों की जो बात लिखी गई है उस तरफ ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूँ. इसमें लिखा है कि मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग कुल जनसंख्या का 27 प्रतिशत है. पूर्व में रामजी महाजन आयोग बना था उस आयोग की रिपोर्ट में तत्समय वर्ष 1980 में 49 प्रतिशत आबादी ध्यान में आई थी. उसके बाद बहुत सारी और जातियाँ पिछड़े वर्ग में शामिल की गईं हैं. इस समय यह आबादी 52 प्रतिशत से भी ज्यादा है. उस समय उन्होंने 35 प्रतिशत आरक्षण का सुझाव दिया था और 35 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव किया गया था जो कि आज तक विचाराधीन है. यह जो 27 प्रतिशत आरक्षण की बात आई है यह मंडल कमीशन में, जब केन्द्र में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू हुई थी और उस समय एस.सी. और एस.टी. के साढ़े बाईस प्रतिशत आरक्षण के बाद सुप्रीमकोर्ट ने जो पचास प्रतिशत की सीमा का सुझाव दिया था उसमें केवल 27 प्रतिशत बचता था इसलिए केवल यह 27 प्रतिशत आया था. मेरा कहना यह है कि यदि रामजी महाजन आयोग उस समय की तत्कालीन सरकार कांग्रेस की सरकार थी और उसी में वह रामजी महाजन मंत्री भी रहे हैं उन्हीं का यह आयोग बना था, उन्हीं का निर्णय था, उन्होंने 35 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव दिया था तो मेरा यह सुझाव है कि रामजी महाजन आयोग, आपके द्वारा बनाया गया और आप आबादी को (XXX) नहीं सकते हैं क्योंकि आज की तारीख में आबादी 52 प्रतिशत से ज्यादा है. उस समय के लिए भी 39 प्रतिशत जबकि बहुत सारी जातियां उसमें शामिल नहीं थीं इसलिए मैं चाहता हूं कि 35 प्रतिशत आरक्षण के लिए जो आपके आयोग में था उसको करने की व्यवस्था करना चाहिए जैसे आपने 27 प्रतिशत लागू किया है. आज इसमें मेरा कुछ सुझाव है. मैं चाहता हूं कि अर्द्धशासकीय, सहकारी, संविदा और निजी क्षेत्रों में भी इस आरक्षण की व्यवस्था को लागू किया जाना चाहिए. आउटसोर्सिंग से बहुत सारे लोग आ जाते हैं. हर विभागों में सब जगह आउटसोर्सिंग से कर्मचारी रखने की व्यवस्था है मगर यह आउटसोर्सिंग को या तो बंद करना चाहिए या आउटसोर्सिंग की व्यवस्था करनी है तो उसमें भी रोस्टर लागू होना चाहिए, उसमें भी रिजर्वेशन की व्यवस्था होना चाहिए ताकि सभी वर्गों का इसमें सहयोग हो सके. सभी वर्ग इसमें आ सकें वरना होता क्या है कि आऊटसोर्सिंग से रखते हैं फिर इसके बाद उनकी स्थाई नियुक्ति होती है, स्थाईकर्मी बनते हैं फिर वह कर्मचारी आपके सरकारी कर्मचारी घोषित हो जाते हैं और इस तरह रिजर्वेशन के अंतर्गत अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़े वर्गों का बहुत बड़ा नुकसान होता है इसलिए आउटसोर्सिंग व्यवस्था में मेरा मानना है और मुझे लगता है कि इसमें सभी लोग सहमत होंगे कि आउटसोर्सिंग व्यवस्था में भी इस नियम का प्रस्ताव आना चाहिए. दूसरा यह कि बैकलॉग के बहुत पद खाली पड़े हैं. आजतक बैकलॉग के पद इसीलिए खाली रह गए हैं कि जब इस देश में संविधान बना था तो संविधान के अंदर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्वेशन की व्यवस्था थी. संविधान में पिछडे़ वर्ग के लिए रिजर्वेशन की व्यवस्था नहीं थी पर रिजर्वेशन के लिए सरकार को कहा गया था कि सरकार चाहे तो पिछडे़ वर्गों की आर्थिक स्थिति, सामाजिक स्थिति को देखकर के रिजर्वेशन की व्यवस्था कर सकती है मगर दुर्भाग्य उन दिनों की सरकारों ने एक काका कालेकर आयोग आया उस पर भी गोलमोल हुआ और उसका कोई जवाब नहीं आया. उस समय की सरकार यदि चाहती तो पिछडे़ वर्ग को आरक्षण की व्यवस्था और आर्थिक स्थिति और सामाजिक स्थिति में सुधार करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था लाती तो मुझे लगता है शासकीय नौकरियों में आज जो पिछड़े वर्ग की स्थिति है वह दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाए हैं वह आंकड़ा पूरा होता. इसका दोषी किसी न किसी को स्वीकार करना चाहिए. हम सब यहां बैठे हैं मुझे लगता है कि दल से हटकर कर इस पर विचार करने की जरूरत है और अगर उस समय विचार नहीं हुआ तो आज विचार करके उसकी भरपाई करने की जरूरत है. मैं चाहता हूं कि आप इस बैकलॉग के पदों में जब तक उनके पद भर न जाएं तब तक बैकलॉग में उनकी भर्ती कर पूरे पद भरे जाएं. मैं चाहता हूं कि सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा पूरी जानकारी लेकर बैकलॉग के पद भरे जाएं. शासकीय खरीदी, ठेके में इन चीजों में भी आरक्षण का बहुत बड़ा आय का सोर्स पिछडे़ वर्ग के लोगों को अनुसूचित जनजाति के लोगों को आगे उठाने का यह भी बहुत बड़ा माध्यम है. इसमें भी व्यवस्था होना चाहिए. प्राकृतिक संसाधन हैं, खनिज संसाधन हैं अन्य चीजें उसमें भी यह व्यवस्था लागू होगी तो मैं समझता हूं कि आप पिछड़े वर्ग अनुसूचित जाति, जनजाति के साथ न्याय कर सकेंगे और इसको भी इसमें लागू होना चाहिए. सबसे बड़ी समस्याएं आती है काउंसलिंग की कि किसी भी संस्थान में जब काउंसलिंग होती है तो आप एस.सी. को, एस.टी. को, ओ.बी.सी. को अलग करके काउंसलिंग करते हैं इससे लगता है कि आप किसी की योग्यता को सामने नहीं लाना चाहते हैं. मेरा कहना है कि काउंसलिंग पहले अनारक्षित वर्ग की होना चाहिए. उस अनारक्षित वर्ग में जितने लोग योग्य लोग हों उसको पहले शामिल करना चाहिए फिर इसके बाद योग्यता के आधार के बाद रिजर्व केटेगरी के लोगों की काउंसलिंग बाद में होना चाहिए. उससे एस.सी., एस.टी. बैकवर्ड के लोगों को न्याय मिलेगा. मैं पिछली बार के बहुत सारे उदाहरण आपको बता सकता हूं, पटल पर रखवा सकता हूं कि बहुत सारे ऐसे लोग हुए हैं कि एस.सी., एस.टी. और अन्य पिछडे़ वर्ग के लोगों ने बहुत सारी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में पी.एस.सी. से लेकर अन्य परीक्षाओं में ज्यादा अंक प्राप्त किए हैं. उन परीक्षाओं में ज्यादा अंक प्राप्त करने के बावजूद उन्हें इंटरव्यू के लिए कॉल नहीं किया गया था और कम नंबर प्राप्त करने वाले सामान्य वर्ग के लोगों को इंटरव्यू के लिए कॉल किया गया था. यह आरक्षण में एक तकनीकी गलती है. मैं समझता हूं कि आप इस गलती का दूर करेंगे और मेरी इस बात से सदन के सभी पक्ष सहमत होंगे. इसके अतिरिक्त मैं एक विशेष बात यह कहना चाहता हूं कि बजट पेश हो गया है और आरक्षण के लिए संशोधन बिल भी आ गया है. मैं समझता हूं कि यह बिल सभी की सहमति से पास भी हो जाएगा.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा कहना है कि जब आप पिछड़े वर्ग के बच्चे, जो उच्च शिक्षा में जाते हैं. जब आप उनके आरक्षण की बात करते हैं, उनकी योग्यता की बात करते हैं, सरकारी नौकरियों में उनको रखने की बात करते हैं तो निश्चित तौर पर उनमें से योग्यतम व्यक्तियों और छात्रों को हमें बाहर निकालना पड़ेगा. इसके लिए जरूरत है कि वे अच्छे संस्थानों में पढ़ें लेकिन आपने 961 करोड़ 19 लाख 46 हजार के बजट को घटाकर 788 करोड़ 53 लाख 83 हजार कर दिया है. 172 करोड़ 65 लाख का बजट आपने पिछड़े वर्ग का काट दिया है तो ऐसे कैसे आप पिछड़े वर्ग के लोगों को योग्य बना पायेंगे ? यह सारा का सारा बजट आपने पिछड़े वर्ग के कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों का घटाया है. मैं आपको बताना चाहता हूं कि 419 करोड़ रुपये का बजट इसमें दिया गया है जबकि पहले यह 569 करोड़ था यानि 150 करोड़ 35 लाख रुपये आपने कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों के घटा दिए हैं. माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपको बताना चाहूंगा कि यदि 200-250 करोड़ रुपये की अतिरिक्त व्यवस्था कर दी जाती तो आज पूरे मध्यप्रदेश के अंदर एक भी प्राइवेट कॉलेज में यदि पिछड़े वर्ग का कोई भी बच्चा पढ़ना चाहता है तो उसे इस बजट से पढ़ाया जा सकता था. इंजीनियरिंग कॉलेज में, मेडिकल कॉलेज में, एम.बी.ए. एवं अन्य जगहों पर पिछड़े वर्ग के उस बच्चे को पढ़ाया जा सकता है लेकिन आपने इस बजट को घटाकर पिछड़े वर्ग के लोगों के साथ अन्याय किया है. मैं चाहता हूं कि आप इसकी व्यवस्था अनुपूरक बजट में करें और यदि आने वाले समय में आप सही मंशा से 27 प्रतिशत आरक्षण, पिछड़े वर्ग के लोगों को देना चाहते हैं तो आप यह व्यवस्था जरूर करेंगे कि उनके बच्चे अच्छी संस्थाओं में पढ़ें और जब ज्यादा अच्छे संस्थाओं में, ज्यादा संख्या में पिछड़े वर्ग के बच्चे पढ़ेंगे तो उनके अंदर एक प्रतियोगिता की भावना जागृत होगी और उन बच्चों का भला होगा.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं मानता हूं कि आप आने वाले बजट में ऐसा प्रावधान करेंगे. मैं चाहता हूं कि सरकार द्वारा जिस 27 प्रतिशत के आरक्षण की बात की गई है और मैंने इसमें थोड़ा सा सुधार करने के लिए कहा है. सरकार द्वारा पिछड़े वर्ग की जो संख्या बताई गई है उस पर मेरा अनुरोध है कि इसके उद्देश्य और कारणों में पिछड़े वर्ग की जनसंख्या 27 प्रतिशत लिखी गई है लेकिन मैं बताना चाहूंगा कि पिछड़े वर्ग की आबादी 27 प्रतिशत नहीं है. रामजी महाजन जी ने जब पिछड़े वर्ग की जनसंख्या की गणना करवाई थी तो उन्होंने सभी जिलाधीशों से पूछा था कि आप इनकी जनसंख्या की गणना कैसे करेंगे तो जिलाधीशों द्वारा कहा गया था कि हमारे पास पटवारी हैं और पटवारी के पास खसरा है. खसरे में जाति लिखी हुई है, उन जातियों से हम पता लगा सकते हैं कि पिछड़े वर्ग की कितनी आबादी है और उस समय वास्तविक आबादी की गणना की गई थी. उस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि पिछड़े वर्ग की आबादी 27 प्रतिशत नहीं है. कम से कम ''रामजी महाजन आयोग'' की सिफारिशों के बाद जिन जातियों को पिछड़े वर्ग में जोड़ा गया था, उनको इसमें शामिल करते हुए, सही आंकड़ा प्रस्तुत किया जाये. माननीय अध्यक्ष महोदय, आपने मुझे बोलने का अवसर दिया, इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. मैं पिछड़े वर्ग के लिए इस 27 प्रतिशत आरक्षण की बात का धन्यवाद करता हूं और जो मैंने इस हेतु जो सुझाव दिए हैं, मैं चाहता हूं कि उन सुझावों को सरकार अपने संज्ञान में ले क्योंकि पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए, हम सभी की और इस पूरे सदन की जिम्मेदारी बनती है. बहुत-बहुत धन्यवाद.
1.29 बजे
अध्यक्षीय घोषणा
अध्यक्ष महोदय- इस विधेयक पर चर्चा पूर्ण होने तक, सदन के समय में वृद्धि की जाये, मैं समझता हूं कि सदन इससे सहमत है.
सदन द्वारा सहमति प्रदान की गई.
श्री कुणाल चौधरी (कालापीपल)- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह एक बड़ा महत्वपूर्ण विधेयक है. जिसमें अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है. हम मध्यप्रदेश में पिछड़े वर्ग की जनसंख्या को यदि देखें तो मैं मेरे पूर्व वक्ता ने जिस बात को रखा कि आबादी के मान से पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत बताया गया है तो मैं बताना चाहूंगा कि पिछड़ी जातियों की जनसंख्या मध्यप्रदेश में लगभग 54 प्रतिशत के आस-पास है और लगातार कई वर्षों से यह मांग पिछड़ी जाति के लोगों की थी कि उनकी जनसंख्या के मान के मुताबिक लगातार, उनके आरक्षण की व्यवस्था को बढ़ाया जाये. अनुसूचित जाति के लिए 16 प्रतिशत में होने वाली जनंसख्या रिक्तियों का जो भाग है, अनुसूचित जनजातियों का भाग 20 प्रतिशत है और अन्य जो पिछड़ी जाति वर्ग के लोग थे, उनका 14 प्रतिशत भाग था. इसको पहले माननीय अर्जुन सिंह जी के समय इसे 27 प्रतिशत करा गया था, जो बाद में जाकर 14 प्रतिशत हुआ था और पिछड़े वर्ग के लोग पिछले कई सालों से लगातार अपनी मांग कर रहे थे. मैं माननीय मुख्यमंत्री जी को धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों का भी इसमें ध्यान रखा, उनकी जनसंख्या के मुताबिक 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गयी. इसी प्रकार से पूरे प्रदेश के, वह चाहे अनुसूचित जाति के लोग हों या अनुसूचित जनजाति के लोग हों और जो बैक-लॉग के पदों की बात है कि उनकी रिक्तियां कितनी जल्दी हम पूर्ण रूप से भरने का काम करें और सही व्यक्ति को सही रूप से कैसे हम उसको, उसका स्थान दिलाने का काम करें. अन्य जगहों पर जहां हम इन लोगों को समाहित कर सकते हैं. रोजगार की व्यवस्था के अंदर हमारी जो रोजगार की व्यवस्था है, कई प्रायवेट सेक्टर्स में भी कर सकते हैं तो इसकी एक बेहतर व्यवस्था उसमें भी हो सकती है. क्योंकि लगातार पिछड़े वर्ग के नाम पर सिर्फ पिछले कई सालों से मुख्यमंत्री बनते आये हैं, परन्तु उनके उत्थान के लिये बहुत कम व्यवस्था और यहां पर बहुत कम विधेयक यहां पर लाये गये हैं. मैं माननीय मंत्री जी को धन्यवाद दूंगा कि पिछड़े वर्ग को 14 प्रतिशत के स्थान पर 27 प्रतिशत आरक्षण समाहित किया गया है. इन सबका हम समर्थन करते हैं और मैं सदन से आग्रह भी करूंगा कि सभी लोग मिलकर इस भाव को, क्योंकि लगातार कई वर्षों से लोगों की मांग चली आ रही थी कि जनसंख्या के मुताबिक हर वर्ग को उसका अधिकार मिले और कहीं न कहीं अभी भी इसमें थोड़ी और गुंजाइश है, इसमें अभी और व्यवस्था हो सकती है. मैं इसका समर्थन करता हूं और धन्यवाद देता हूं कि सभी वर्गों को ध्यान में रखते हुए, सरकार जो काम कर रही है, उसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री जालम सिंह पटेल (नरसिंहपुर):- माननीय अध्यक्ष महोदय, अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण संबंधी संशोधन विधेयक, 2019 के लिये आपने बोलने का अवसर प्रदान किया इसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद.
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आजादी के बाद आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी और मुझे जहां तक जानकारी है कि आरक्षण 10 वर्ष के लिये लागू किया गया था. आजादी के 70 वर्ष हो गये हैं, मगर आज भी आरक्षण की चर्चा, आरक्षण के लिये लगातार जो पिछड़ापन है. पिछड़े लोगों के लिये अभी तक अपनी बात कहना पड़ रही है. पिछड़ापन कब समाप्त होगा, इसके लिये जवाबदार कौन है, जिम्मेदार कौन है ? इस पर जरूर चर्चा होनी चाहिये. हमारे जो पूर्ववत् नेता थे उनका अनुमान था कि शायद 10 वर्ष में आरक्षण समाप्त हो जायेगा. मगर जो सरकारें रहीं, मैं ऐसा मानता हूं कि लम्बे समय तक कांग्रेस की सरकार केन्द्र में और प्रदेश में रही है और पिछड़ों और अनुसूचित जाति और जनजाति की राजनीति हमेशा होती रही है. मगर उसके लिये काम बहुत कम हुआ है. आज मैं ऐसा आरोप भी लगाता हूं और दावे के साथ कह भी सकता हूं कि जो पिछड़ापन है, वह राजनीतिक लाभ लेने के लिये बहुत सारी घोषणाएं और बहुत सारी बातें की जा रही हैं. इसके दोषी कौन हैं, इसके ऊपर भी चर्चा होनी चाहिये कि इनको लाभ क्यों नहीं मिला ? जहां तक पिछड़े वर्ग और अनुसूचित जाति और जनजाति की बात है तो मैं ऐसा मानता हूं कि यह वर्ग ऐसा है, जो हमारा समाज का ताना-बाना है और हमारे समाज की जो व्यवस्था है उसकी कमर है, उसकी रीढ़ है. जब तक यह मजबूत नहीं होगी, ताकतवर नहीं होगी. मैं ऐसा मानता हूं कि देश और समाज आगे नहीं बढ़ सकता है तथा इसी प्रकार की समस्याएं और राजनीतिक मुद्दे हैं, वह आते रहेंगे. मैं ऐसा मानता हूं कि इसमें खोट है, दिमाग में खोट है. इसमें 27 प्रतिशत आरक्षण की बात कही गयी है. मैं यह भी कहना चाहता हूं कि मंडल आयोग की रिपोर्ट आयी हुई थी और आदरणीय बी.पी.सिंह जी उसको 1989 में लेकर आये थे. इसके बाद पिछड़े वर्ग का गठन हुआ, गठन होने के साथ उसको अनूसूचित जाति वर्ग में जोड़ दिया. उसका अलग से कोई आयोग नहीं बनाया.
श्री जालम सिंह पटेल --मैं यह भी कह सकता हूं कि जैसे पिछड़े वर्ग के लोग हैं उनके हाथ-पैर बांध दिये, आप कह रहे हैं कि दौड़िये. हमारे यहां खेतों में एक जकोना होता है उसको विजूका कहते हैं. इसी प्रकार का हमारे प्रदेश का 27 प्रतिशत के आरक्षण की जो बात कही गई है, ऐसा न हो जाये. अभी हाईकोर्ट ने स्टे दे रखा है. पता नहीं इसमें सरकार की क्या मंशा है ? इसमें क्या कुछ करने वाले हैं. आपने कुछ घोषणाएं भी की हैं उनको भी मैं इंगित करना चाहता हूं कि आपका जो वचन-पत्र है उसमें कहा गया है कि 27 प्रतिशत आरक्षण देंगे. बहुत सारे पिछड़े वर्ग के लोगों ने आपको वोट भी दिये होंगे. शिक्षा में क्रीमिलेयर की सीमा 10 लाख तक बढ़ाएंगे. मैंने प्रश्न लगाया था. मेरे प्रश्न के जवाब में आया है कि 8 लाख क्रीमिलेयर है आगे बढ़ाने की कोई योजना नहीं है. आपके वचन-पत्र में यह लिखा है. मैं मांग करता हूं कि लगभग 20 लाख क्रीमिलेयर सीमा की जाये. रजक, प्रजापति, कीर, मीन, पारदी और मांझी की वर्षों पुरानी मांगों को सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे, यह भी आपके वचन-पत्र में है. पिछड़े वर्ग तथा अति पिछड़े वर्ग की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक स्थिति का सर्वे कराएंगे. मां सावित्री बाई फुले के नाम से आवासीय कोचिंग सेंटर काम करेंगे. पिछड़े वर्ग के बजट हेतु पिछड़ा वर्ग उपयोजना लायेंगे. संवैधानिक संस्थाओं एवं चयन पदोन्नति समिति में पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व अनिवार्य करेंगे. मैं ऐसा मानता हूं कि पिछड़ा वर्ग एक रफ कापी के समान है. जब कोई व्यक्ति सफल होता है, कुछ काम करता है, सब प्रकार की जानकारी उस रफ कापी में होती है. उसी प्रकार से यह पिछड़ा वर्ग है. जो अनुसूचित जाति, जनजाति के वर्ग हैं वह इस समाज के लिये, देश के लिये, प्रदेश के लिये लगातार काम करते हैं. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि हमारी जो आबादी है. अभी हमारे सम्माननीय सदस्य कुणाल भाई कह रहे थे कि 54 प्रतिशत है. अभी सम्माननीय सदस्य प्रदीप भाई ने कहा कि 51 प्रतिशत है. मैं कहता हूं कि लगभग 60 प्रतिशत के आसपास हमारी आबादी है, लेकिन इस आबादी ने कभी कोई काम रोकने की बात नहीं कही, कहीं आंदोलन नहीं किया ? सड़क पर कोई हिसंक आंदोलन नहीं किये ? अन्य वर्गों की हम तुलना करें तो जमीन आसमान का अंतर है इसलिये मैं कहता हूं कि यह वर्ग पूरा का पूरा समाज को तथा देश को लेकर चलने वाला है. मैं अपनी बात इसलिये कहना चाहता हूं कि हमारे यहां पर वाणी है कि दानव से लड़ने के लिये महादानव बनने की आवश्यकता नहीं है. सख्ती बनने की आवश्यकता है उसके लिये हमको प्रयास करने चाहिये. खासकर पिछड़ वर्ग, अनुसचूति जाति, जनजाति वर्ग की पढ़ाई लिखाई करने की आवश्यकता है. मुझे इसमें कुछ सुझाव भी देने हैं इसलिये आपसे थोड़ा समय चाहता हूं. एक जनसंख्या के अनुपात में अन्य पिछड़े वर्ग के लिय बजट का आवंटन किया जाये. दूसरा हमारे न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट अन्य न्यायाधीश तथा न्यायालयीन संस्थाओं में अन्य पिछड़े वर्ग के लिये आरक्षण लागू कराया जाये. क्रीमिलेयर की बात अभी मैंने की है. इसके अलावा पिछड़ी जाति का जनसंख्या का सर्वे साथ में किया जाये. राज्य में शासकीय, अर्द्ध शासकीय एवं सहकारी क्षेत्रों की सेवा के लिये भी अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षण व्यवस्था लागू की जाये. इसके अलावा एक और बात कहना चाहता हूं कि अगर हम सारे आरक्षण को मिला लें 27 प्रतिशत पिछड़े वर्ग, एस.सी.एस.टी अभी 10 प्रतिशत सामान्य वर्ग को मिलाकर ऐसे 72 प्रतिशत हो गया है. यह होगा कहां से? क्या एस.सी.एस.टी का कम करेंगे? कहां से बढ़ाएंगे ? माननीय मंत्री आप अपने उद्बोधन में जानकारी देंगे. मैं पिछड़े वर्ग की तरफ से, प्रदेश की तरफ से कह सकता हूं कि पिछड़े और सामान्य भाई-भाई, मगर हिसाब होगा पाई-पाई. इसी आशा के साथ आपको बहुत बहुत धन्यवाद. भारत माता की जय.
डॉ. मोहन यादव (उज्जैन दक्षिण) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आज एक ऐसे विषय पर बात करने के लिए खड़ा हुआ हूं. पिछड़े वर्ग के आरक्षण के संबंध में जिसको बहुत समय पहले ही लागू हो जाना चाहिए था. मैं इस बात के लिए सरकार की प्रशंसा तो करता हूं, लेकिन इसका पूरा श्रेय सरकार को नहीं देता हूं, उसका कारण है. हमारे सबके सामने कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने जब पहली बार सामान्य वर्ग का 10 प्रतिशत आरक्षण का रेश्यो बढ़ाया, तब जाकर यह जो झूठा मिथक था कि 50 प्रतिशत से ऊपर आरक्षण बढ़ा नहीं सकते थे. इसी कारण से पिछड़ा वर्ग वर्षों से इस तकलीफ को भोगता हुआ, यद्यपि.
गृह मंत्री (श्री बाला बच्चन) - माननीय विधायक जी, आपकी पार्टी पिछले 15 साल तक मध्यप्रदेश में शासन में रही, हम तो मात्र 6 महीने में इसको ले आए.
अध्यक्ष महोदय - टोका टाकी न करें.
डॉ. मोहन यादव - अगर मुझे समय मिला तो अभी वह भी पोल खोलूंगा, माननीय मंत्री जी, मेरा निवेदन तो मानो, मैंने धन्यवाद भी दिया है, अभी बात पूरी नहीं हुई.
श्री बाला बच्चन - (श्री जालम सिंह जी की तरफ देखते हुए) जालम सिंह जी, इसका प्रतिशत 60 नहीं 64 प्रतिशत है.
अध्यक्ष महोदय - मंत्री जी कृपया विराजे, डॉ मोहन यादव जी, आप शुरू रखें.
डॉ. मोहन यादव - अध्यक्ष जी, धन्यवाद. माननीय नरेन्द्र मोदी जी ने जब पहली बार 10 प्रतिशत का आरक्षण सामान्य वर्ग को बिना किसी समस्या के बढ़ाया तो यह रास्ता दिखा कि हां, हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे. मैं आपकी बात इसलिए कहना चाहता हूं कि पूर्ववर्ती जो माननीय रामजी महाजन आयोग हैं, उन्होंने स्वयं ने प्रदेश में सिर्फ 35 प्रतिशत आरक्षण की अपनी गणना करके जब उन्होंने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, उसकी तुलना में 50 प्रतिशत के कारण से मात्र 14 प्रतिशत लोग ही आरक्षण का लाभ ले पा रहे थे. हम आज अगर पूरे देश का आंकलन करें, हम अपने पुराने हिसाब में देखें तो लगभग 50 प्रतिशत आरक्षण के बावजूद भी मध्यप्रदेश सरकार में आज भी 11500 पद खाली पड़े हुए हैं. वह 14 प्रतिशत से आंकड़ा देखेंगे तो आज भी हमारे पास 11500 पद खाली पड़े हुए हैं. हम अपने ही सरकार की व्यवस्थाओं के आधार पर बात करें कि जब आप बढ़ा रहे है, जब आप बढ़ाना ही चाहते हैं तो 27 की बजाए 35 प्रतिशत आरक्षण बढ़ाए, क्योंकि आबादी का जो वास्तविक रेश्यो है, उस वास्तविक रेश्यो पर हमको जाना पड़ेगा. आप उसको कम मत करिएगा, अगर आप कम करेंगे तो अन्याय करेंगे. मैं इस माध्यम से भी कहना चाहूंगा कि आपने सबने देखा कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री माननीय चरण सिंह के बाद माननीय नरेन्द्र मोदी जी देश के दूसरे ओबीसी प्रधानमंत्री है.
श्री कुणाल चौधरी - मोहन भैया, मेरी इस बात पर भी प्रकाश डाल देना कि 3-3 मुख्यमंत्री पिछड़ी जाति के बन गए, लेकिन उन्होंने कभी भी पिछड़ी जाति पर ध्यान नहीं दिया. माननीय कमलनाथ जी का धन्यवाद देना पड़ेगा, जिन्होंने आते ही यह कर दिया है.
अध्यक्ष महोदय - यादव साहब, आप उस तरफ ध्यान मत दो.
डॉ. मोहन यादव - माननीय अध्यक्ष जी, यह बिलकुल सही बात है कि ओबीसी को पहले प्रधानमंत्री कांग्रेस के बजाए ओबीसी के लिए जनता पार्टी की सरकार में चरण सिंह जी आए, भाजपा दूसरी बार प्रधानमंत्री बनाकर माननीय नरेन्द्र मोदी जी को लाई, उसी प्रकार से तीन-तीन मुख्यमंत्री ओबीसी से शुरूआत हुई जो कमलनाथ जी पर आकर टिकी है. यह सौभाग्य की बात है, अच्छी बात है. अब मैं यह मानकर चलता हूं कि आगे जो आपने बात कही है, जिस दृष्टि से हम आगे बढ़ रहे हैं कि जो 27 प्रतिशत आपने किया है, इसके लिए पहले तो धन्यवाद, लेकिन इसको 33 प्रतिशत की तरफ ले जाने की आवश्यकता पड़ेगी. मैं बताना चाहता हूं कि इसी सरकार ने भाजपा सरकार से बहुत सारे मामलों में तुलना की है, लेकिन आपने खुद ने ही वर्ष 1994 में जब पहली बार आरक्षण की तरफ आगे बढ़े थे, तो 2002 में खुद ने कांग्रेस सरकार ने स्वीकार किया था कि जितने ओबीसी के लोग हैं, उनकी पोस्टिंग नहीं हो पा रही, उनकी नियुक्तियां नहीं हो पा रही है, इसमें इसकी आवश्यकता पड़ेगी, इसी चलते हुए सदन में माननीय अध्यक्ष जी आपके माध्यम से आपने ही निश्चित किया कि बैकलॉग और बाकी प्रमोशन के मामले में क्लास 1 को छोड़कर, क्लास 2, 3, 4, इनमें जो विसंगति कोर्ट के कारण लटकी पड़ी है, उसका निराकरण करने की आवयकता है. वहीं इसमें एक और विशेष बात यह रहती है कि जो शासकीय अनुदान प्राप्त संस्थाएं हैं, वह तो आपकी बात मानती ही नहीं है, वह आरक्षण का लाभ ही नहीं देती है, और उसके आरक्षण का लाभ न देने के कारण यह जो एक बड़ा वर्ग वंचित है, उसकी दिशा में भी हमको कार्य करने की आवश्यकता है कि जिनको भी शासन से एक बार स्वीकृति होती है, उनको सबको इसका लाभ देना चाहिए. भाजपा सरकार ने पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए 961 करोड़ रूपए का प्रावधान किया था, जबकि इस सरकार ने मात्र 821 करोड़ रूपए किया है. जब आप 27 प्रतिशत की बात कर रहे हैं तो आप उस अनुपात में बजट भी तो दीजिए, जब आप बजट नहीं दे रहे है और आप पैसे की बात कर रहे हैं, जब तक आप गंभीरता से उस दिशा में नहीं बढ़ेंगे तो 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा का पूरा लाभ नहीं मिलेगा. आपने राम जी महाजन सम्मान, सावित्री बाई फुले सम्मान, ये आपने घोषणा की थी, अब इन घोषणाओं के बाद हमारी सरकार ने तो सबको सम्मान और पुरस्कार दिए हैं, लेकिन वर्तमान सरकार ने इस ओर कोई कदम नहीं बढ़ाया है. छात्रावास में जो दाखिले मिलने पर 2-2 छात्रों के लिए जो धनराशि देने की बात थी, सरकार ने वह भी बन्द कर दी है. आपने यह मान लिया है, यह बहुत अच्छी बात है. अब मैं माननीय मंत्री जी से आपके माध्यम से कहना चाहूँगा कि आने वाले समय में पंचायत, नगर निगम चुनाव हैं. क्या आप 27 प्रतिशत आरक्षण उन संस्थाओं में भी रखेंगे ? हमारे निर्वाचन की जो आपने बात कही है, उसको बढ़ाइये, उसका दायरा बढ़ाइये. अभी आपने बाकी संस्थाओं के साथ, इसमें भी आपको आरक्षण की सीमा बढ़ाने की आवश्यकता पड़ेगी. इसी प्रकार से हम जिस दृष्टि से यहां बैठकर बात कर रहे हैं. क्या आपने समग्र रूप से ओ.बी.सी. की बात की ? अगर बात करेंगे तो ओ.बी.सी. का यह आरक्षण किसी पर एहसान नहीं है, ओ.बी.सी. का आरक्षण एक सामाजिक क्रांति है. हमारे अपने आरक्षण के बलबूते पर समाज मे वर्षों तक जो विसंगतियां फैली हुई थीं, उन विसंगतियों में भविष्य में कोई विस्फोट न हो, परस्पर ताल-मेल चले, एक-दूसरे को लेकर चलने का भाव बने तो चाहे अनुसूचित जाति का हो, अनुसूचित जनजाति का हो, पिछड़े वर्ग का हो, यह भाव बड़ा करने की आवश्यकता है. हम काल के प्रवाह में और वर्तमान परिदृश्य में देखते हैं एवं कई बार (XXX). इसमें कई ओ.बी.सी. वाले आएंगे और डॉक्टर बन जाएंगे तो पता नहीं कि कितने लोग मर जाएंगे ?
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से बताना चाहूँगा कि ओ.बी.सी. का यह आरक्षण सर्वप्रथम तमिलनाडु में दिया गया था लेकिन तमिलनाडु में आज स्वास्थ्य सेवाओं में देखिये. सबसे उच्चतम श्रेणी अगर कहीं से आती है, तो तमिलनाडु की आती है, वहां कोई दिक्कत नहीं आई. जबकि इसमें उल्टा यह हो यह रहा है कि स्वास्थ्य सेवाओं में अगर गिरावट आई है तो आर्थिक रूप से एन.आर.आई. का कोटा और तमाम प्रकार के दूसरे रास्ते निकले हैं, इसलिए हमारी स्वास्थ्य सेवाओं में यह गिरावट आई है. यहां तक की सामान्य वर्ग के लोग भी अगर आरक्षण लेते हैं तो डॉक्टर, वकील, इंजीनियर बन जाते हैं . इन सेवाओं के माध्यम से, खासकर डॉक्टर तो यूरोप चले जाएंगे या कहीं और चले जाएंगे. हमारे यहां जिसकी आवश्यकता है, वह आज भी कम इसीलिए है. हम आज जिस आवश्यकता पर आगे बढ़े एवं मैंने जिन-जिन बिन्दुओं की तरफ ध्यान दिलाया, आप उसका ध्यान रखेंगे. माननीय अध्यक्ष महोदय, आपने मुझे बोलने का मौका दिया और आप इसी प्रकार से बोलने का मौका देते रहेंगे. बहुत-बहुत धन्यवाद.
सामान्य प्रशासन मंत्री (डॉ. गोविन्द सिंह) - माननीय अध्यक्ष महोदय, आज हमारे द्वारा प्रस्तुत मध्यप्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक में माननीय सदस्य श्री प्रदीप पटेल, श्री कुणाल चौधरी, श्री जालम सिंह पटेल और डॉ. मोहन यादव ने अपना पक्ष रखा एवं सभी ने इसका समर्थन किया. किसी ने घुमा-फिराकर समर्थन किया, किसी ने सीधा-सीधा कर दिया. मैं यह कहना चाहता हूँ कि वास्तव में सबसे पहले इस बात के लिए स्व. श्री अर्जुन सिंह जी को हम धन्यवाद देना चाहते हैं और आज उन्हें याद करेंगे. (मेजों की थपथपाहट) यह सोच उत्तर भारत में सबसे पहले हमारे स्वर्गीय नेता अर्जुन सिंह जी की थी, उनकी समग्र विकास, सभी जातियों, सभी वर्गों को समानता का अधिकार देने की सोच थी. उस सोच के तहत उन्होंने रामजी महाजन आयोग का गठन किया और इस आयोग ने पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर, जो पिछड़ी जातियां थीं, उन जातियों को इसमें शामिल करने का प्रयास किया, यदि कहीं कोई छूटी भी, तो बाद में यदि उन्होंने आग्रह किया तो उनको भी इसमें शामिल किया गया है. आज मध्यप्रदेश में शासकीय सेवा में प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी के अधिकारी और कर्मचारी भर्ती होते हैं, उनमें अभी अनुसूचित जाति का आरक्षण 16 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 20 प्रतिशत और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 14 प्रतिशत का आरक्षण है, इस प्रकार यह कुल मिलाकर अभी 50 प्रतिशत था, वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत हुआ था. परन्तु जब इसका पूरे देश में अध्ययन किया गया तो तमिलनाडु में, केरल में और कर्नाटक में कई जगह 67 प्रतिशत, कई जगह 72 प्रतिशत और कई जगह 70 प्रतिशत आरक्षण है तो मध्यप्रदेश में क्यों नहीं हो सकता है ? अभी माननीय सदस्य ने कहा कि इस पर स्थगन आदेश है तो मैं मानता हूँ कि पूरी जानकारी करने के बाद एवं अध्ययन करने के बाद ही तय किया है कि मध्यप्रदेश में इस आरक्षण के लिए कोई रोक माननीय सर्वोच्च न्यायालय और माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा नहीं है. अब हम यह नहीं कहते कि आपने किया कि नहीं किया.
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव) - डॉक्टर साहब, रोक की बात तो तब आएगी, जब महामहिम राज्यपाल महोदया से इसका कानून बन जायेगा. मैं यह कहना चाहता हूँ कि ठीक है, आरक्षण के सभी समर्थन में हैं, कोई विरोध नहीं कर रहा है
माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय संसदीय कार्यमंत्री जी से दो बातें कहना चाहता हूं. क्या आपके राज्य में नौकरियां हैं ? आपने राजनीतिक लाभ के लिये यह 27 प्रतिशत आरक्षण किया है और आप और भी मांग कर रहे हैं, आप यह कह रहे हैं कि हम आरक्षण बढ़ायेंगे. क्या आप इसको सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिये कर रहे हैं ? क्या आप ओ.बी.सी. के लोगों के लिये, उस वर्ग में आने वाली सभी समाज और जातियों के लिये, आप यह (XXX) पकड़ाना चाहते हैं कि हमने आपको इतना आरक्षण दे दिया है. यदि आप कुछ करना चाहते हैं तो आप नंबर एक काम यह करें कि आप नौकरियों की संख्या बतायें ?, और दूसरी बात आपके मुख्यमंत्री जी कहते थे कि हम प्रायवेट सेक्टर में नौकरिया दिलवायेंगे, हम करवा देंगे, तो क्या आप प्रायवेट सेक्टर में भी इस आरक्षण को लागू करेंगे ? एस.सी, एस.टी और ट्रायबल के लिये बीस प्रतिशत है, एस.सी. के लिये शायद 17 प्रतिशत आरक्षण है और यह आरक्षण 27 प्रतिशत होगा, इस प्रकार से कुल मिलाकर 73 प्रतिशत आरक्षण हो रहा है. क्या यह आरक्षण आप प्रायवेट सेक्टर के लिये भी लागू करवायेंगे ? क्योंकि सबसे ज्यादा नौकरियां यदि आने वाली है तो वह प्रायवेट सेक्टर में ही आने वाली हैं, आपकी शासकीय सेवाओं में नहीं आने वाली हैं. यदि यह (XXX) नहीं है, यह (XXX) नहीं है तो आप यह बतायें कि कितनी नौकरियां आप इन वर्षों में जनरेट करने वाले हैं?
डॉ. गोविन्द सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, (XXX) और (XXX) तो आप पंद्रह साल से प्रदेश की जनता को दिखाते रहे हैं(मेजों की थपथपाहट)
श्री गोपाल भार्गव -- माननीय अध्यक्ष महोदय, हमने इस तरह से कभी बात नहीं की है.
डॉ. गोविन्द सिंह -- मैं जवाब दे रहा हूं, कृपया आप सुन तो लें.
श्री गोपाल भार्गव -- माननीय अध्यक्ष महोदय,जब खुली चर्चा हो रही है और चर्चा के उपरांत ही विधेयक पारित होगा. इस प्रकार से जब खुली चर्चा हो रही है तो थोड़ा इन बातों को आप बता दें कि प्रायवेट सेक्टर में या शासकीय नौकरियों में आप कितनी नौकरियां उपलब्ध करवायेंगे ? क्या इसके बारे में आपकी कोई कार्य योजना, कोई सांख्यिकीय, कोई आपका गणित है ?
डॉ. गोविन्द सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह आज जो प्रस्ताव है, यह संशोधन विधेयक केवल पिछडे़ वर्ग के आरक्षण को 14 प्रतिशत से 27 प्रतिशत आरक्षण करने का आया है. आज प्रस्ताव जब हम लायेंगे, 27 प्रतिशत निजी सेक्टर एवं प्रायवेट संस्थानों में......
श्री गोपाल भार्गव -- आप 100 प्रतिशत कर दें, लेकिन डॉक्टर साहब जब मिठाई की दुकान खाली पड़ी है, कोपर खाली पड़े हैं और आप कह रहे हैं कि रसगुल्ले खा लो, इससे क्या होना है ?
डॉ. गोविन्द सिंह -- कहां खाली पड़ी है ? आप खोखला करके गये हैं और हम भर रहे हैं.
राजस्व एवं परिवहन मंत्री (श्री गोविन्द सिंह राजपूत ) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मिठाई की दुकान खाली छोड़ी किसने है?
श्री वालसिंह मैड़ा -- माननीय अध्यक्ष महोदय, अभी सिर्फ छ: माह हुये हैं, होगा, होगा बिल्कुल होगा.
डॉ. गोविन्द सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं बता दूं कि आज भी मध्यप्रदेश में शासकीय संस्थाओं में, गवर्नमेंट के विभागों में, निजी स्वास्थ्य संस्थाओं में, नगरीय प्रशासन में, कोऑपरेटिव में, निगम में, मंडल में भी कम से कम दो-ढाई लाख पद लगभग खाली पड़े हैं. हमारे पास अभी सीधे आंकड़े नहीं अगर आप पहले बता देते तो वह भी मंगा लेते. दो-ढाई लाख संख्या भरी जाना है और हम अभियान चलाकर इन्हें भरना चाहते हैं. इसलिये इस आरक्षण को अभी लाना जरूरी था क्योंकि इससे पिछड़े वर्ग के लोग वंचित हो जायेंगे. अभी पिछड़े वर्ग में भी दो वर्ग हो गये हैं, एक अति अगड़ा, एक अति पिछड़ा. पिछड़े वर्ग में भी मार्शल कौम हैं जैसे पटेल है, यादव हैं, जाट हैं, लोधी हैं, यह तमाम लोग ताकतवर हैं. यह लोग पैसे से, पढ़ाई से, लिखाई से, लठ्ठ से हर चीज से गांव में मजबूत हैं, यह लोग बराबर से टक्कर लेते हैं. लेकिन जो वास्तव में बहुत गरीब लोग हैं वह कम हैं, इस 27 प्रतिशत के आरक्षण से उनकी इस मामले में संख्या बढ़ेगी और उनको भी लाभ मिलेगा. जैसे धोबी है, बढ़ई है, लुहार हैं, उनको भी लाभ मिलेगा.
श्री गोपाल भार्गव -- डॉक्टर साहब यह आप बहुत अच्छी बात कर रहे हैं. जैसे हमारे यहां रैकवार हैं, पानी भरने वाले लोग हैं, सेन हैं या अति पिछड़े जो लोग हैं, उनका कोई संरक्ष्ाक नहीं है जो बाहूबली जातियां हैं, थोड़ी सी समृद्ध हैं, वह अपना अधिकार ले जाती हैं और पूरा आरक्षण वह लूट कर ले जाती है, क्या आप इनके लिये कुछ कोटा निश्चित कर सकते हैं ? 27 प्रतिशत आरक्षण में कुछ इनके लिये आप यदि 7 प्रतिशत भी निश्चित कर दें तो मैं मानकर चलता हूं कि पिछड़े और अति पिछड़े में यदि हमें कहीं कभी इसमें अंतर भी करना पड़े तो सात प्रतिशत आरक्षण में ऐसे लोगों को जिनके घर में एक भी नौकरी में नहीं हैं, भृत्य भी नहीं हैं और कई परिवार ऐसे हैं जहां दस-दस नौकरियां हैं तो अगर आप इसमें कुछ न्याय संगत कर दें तो मैं मानकर चलूंगा कि यह आपका बहुत अच्छा प्रस्ताव रहेगा.
अध्यक्ष महोदय -- मुझे यह बताओ कि एक तरफ से गोपाल खड़े हो जाते हैं, एक तरफ से गोविन्द खड़े हो जाते हैं, दोनों सीधी-सीधी बात कर रहे हैं तो नर्मदा क्या करे ?(हंसी)
डॉ.गोविन्द सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं यह कहना चाहता हूं कि नेता प्रतिपक्ष का सुझाव वास्तव में सही और सराहनीय है. पहले जब यह संशोधन आया, उस समय आपसे सुझाव नहीं मिल पाये न चर्चा हो पाई. (श्री जालम सिंह पटेल के अपने आसन पर खड़े होकर कुछ कहने पर) अरे आपसे ज्यादा बाहुबली कौन हैं, आपके लठ्ठ की वजह से पूरा नरसिंहपुर हिल रहा है. आपकी लाठी से पूरा नरसिंहपुर हिल रहा है(हंसी)
श्री जालम सिंह पटेल -- आपसे बड़ा बाहुबली कोई नहीं हो सकता है. मैं निवेदन करना चाहता हूं कि जिनको आरक्षण मिल गया है और आरक्षण का लाभ मिल गया है उनके परिवार के लोग आरक्षण न लें.
अध्यक्ष महोदय -- आप बैठ जायें, डॉक्टर साहब आप बोलें.
श्री कुणाल चौधरी-- अध्यक्ष महोदय, यह सब पिछड़ी जाति का विरोध इसलिये कर रहे हैं, नेता प्रतिपक्ष भी क्यों कर रहे हैं, मुझे लगता है .. (व्यवधान)..
अध्यक्ष महोदय-- संसदीय मंत्री जब बोलें कोई न टोके.
डॉ. गोविंद सिंह-- नेता प्रतिपक्ष ने विरोध नहीं किया है, उन्होंने सहयोग किया है और वास्तव में नेता प्रतिपक्ष जी की भावना से मैं सहमत हूं, पहले से यह बात समझ में नहीं आई. आपने उठाया तो भविष्य में इस पर चर्चा करेंगे, विचार करेंगे और जो संभव हो सकेगा....
श्री गोपाल भार्गव-- अध्यक्ष महोदय, मैं इसलिये संशोधन नहीं लाया, मैंने कहा हाउस में बात कर लेंगे.
अध्यक्ष महोदय-- आपकी बात से सहमत हैं गोविंद.
श्री गोपाल भार्गव-- आप आगे इस बात पर विचार कर लेना जैसे जो अति पिछड़े हैं, जैसे बिहार में हैं, उत्तर प्रदेश में हैं और अन्य राज्यों में उनके लिये अलग से आरक्षण है. मैं चाहता हूं वास्तव में उनके साथ न्याय मिले, घर में एक भृत्य की भी नौकरी नहीं है, चपरासी की नौकरी भी नहीं है और कहीं-कही इस आरक्षण के दम पर पूरा परिवार नौकरी में हैं. 10-10, 15-15 लोग शासकीय सेवाओं में हैं, लेण्ड लार्ड भी हैं उनमें, मैं चाहता हूं कि ऐसे अति गरीब, अति पिछड़े जो लोग हैं उनके लिये भी, उनका हक मिले.
अध्यक्ष महोदय-- चलो, हो गया, समाप्त करिये. उन्होंने कह दिया.
श्री गोपाल भार्गव-- बल्कि अनुसूचित जाति से भी ज्यादा गये बीते लोग हैं.
डॉ. गोविंद सिंह-- वास्तव में सच्चाई है. मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं और वास्तविकता है. आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति खतरनाक है, वह कई वर्षों से अनुसूचित जाति, जनजाति से भी ज्यादा गरीब, पिछड़े, शोषित और परेशान हैं. इस बात पर अब आगे से आपका सुझाव है तो विचार करेंगे. अपने सभी अधिकारियों से राय लेंगे और अन्य प्रदेशों में जहां-जहां लागू है उनका भी हम अध्ययन करेंगे.
श्री गोपाल भार्गव-- बिहार में है.
डॉ. गोविंद सिंह-- बिहार, यूपी में जहां आपने बताया, उनको भी बुलायेंगे कि क्या हो सकता है. चूकि आप सबने इसका समर्थन किया है और वास्तव में यह सराहनीय है इससे पिछड़े वर्ग के लोगों को आगे जो 14 की बजाय 27 प्रतिशत लाभ मिलेगा और जहां तक शासकीय भर्तियां हैं और निगम मंडलों की भर्तियों में भी इसको पूरा लागू किया जायेगा और जल्दी से जल्दी हम प्रयास करेंगे कि जो भर्तियां वर्षों से खाली पड़ी हैं उन्हें भरा जाये और उसमें भी इन सबको आरक्षण दिया जाये. बजट का सवाल जहां तक आपने उठाया है तो इसका जब बजट स्वीकृत पद हैं तो उन पर हम भरती करेंगे तो इसमें बजट की कोई आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि पूर्व से स्वीकृत बजट है, पद पूर्व से स्वीकृत हैं, उन्हीं को हम अभियान चलाकर भरेंगे तो हाल फिलहाल बजट की आवश्यकता नहीं होगी. अगर पद बढ़ायेंगे तो बजट भी स्वीकृत करेंगे और इसमें यह भी तय है कि बैकलॉग के जो पद हैं उस पर अन्य किसी वर्ग का, सामान्य वर्ग के व्यक्ति को रोजगार नहीं मिलेगा, यह भी आपसे सुनिश्चित करते हैं. 10 प्रतिशत आरक्षण सामान्य वर्ग के अति पिछड़े गरीब लोग हैं उनको भी किया है, इस प्रकार कुल मिलाकर 73 प्रतिशत आरक्षण मध्यप्रदेश में हो जायेगा. वास्तव में जिनको हक मिलना चाहिये था उनको इसमें हक प्राप्त हो सकेगा. माननीय अध्यक्ष महोदय, समूचे पक्ष, विपक्ष ने इसमें अपनी राय से समर्थन व्यक्त किया है, इसलिये मैं आपसे निवेदन करता हूं कि हमारा प्रस्ताव जो पिछड़ वर्ग के संशोधन का है उसे सर्व सम्मति से स्वीकृत किया जाये.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण) संशोधन विधेयक, 2019 (क्रमांक 15 सन् 2019) पर विचार किया जाये.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
अब विधेयक के खंडों पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2 तथा 3 इस विधेयक के अंग बने.
खण्ड 2 तथा 3 इस विधेयक के अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
डॉ. गोविंन्द सिंह-- अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण) संशोधन विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
अध्यक्ष महोदय-- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण) संशोधन विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण) संशोधन विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक सर्वानुमति से पारित हुआ.
अध्यक्ष महोदय-- सदन की कार्यवाही अपराह्न 3.30 बजे तक के लिये स्थगित.
(2.00 बजे से 3.30 बजे तक अंतराल)
(3.35 बजे) अध्यक्ष महोदय { श्री नर्मदा प्रसाद प्रजापति (एन.पी.) } पीठासीन हुए.
(5) मध्यप्रदेश मोटरयान कराधान(संशोधन) विधेयक,2019 (क्रमांक 24 सन् 2019)
परिवहन मंत्री( श्री गोविन्द सिंह राजपूत) - अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश मोटरयान कराधान(संशोधन) विधेयक,2019 पर विचार किया जाय.
अध्यक्ष महोदय - प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश मोटरयान कराधान(संशोधन) विधेयक,2019 पर विचार किया जाय.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया ( मंदसौर ) - माननीय अध्यक्ष जी, वर्ष 2019-20 का आम बजट माननीय वित्त मंत्री जी द्वारा प्रस्तुत किया जा चुका उस पर सामान्य चर्चा हो चुकी. सभी विभागों की अनुदान मांगों पर भी चर्चा हो चुकी और सरकार ने कहा कि यह बजट जन कल्याणकारी है, लोक कल्याणकारी है और बगैर किसी कर को लगाये यह बजट बनाया गया है और बजट प्रस्तुत किया गया और बजट पास भी किया गया. यह बात ठीक है कि बजट में पेड़े की ब्रांडिंग हो गई, सेव की ब्रांडिंग हो गई, महेश्वर की साड़ियों की ब्रांडिंग हो गई और किसी प्रकार का कर भी न लगा, लेकिन जब विधेयकों का सिलसिला शुरू हुआ और आज कार्य सूची में 15-17 विधेयक आये तो मुझे लगा कि मोटर यान कराधान(संशोधन) विधेयक के अंतर्गत मध्यप्रदेश की जनता को कोई और सौगात मिलेगी, या सामान्य सा ऐसा प्रावधान होगा ,जिसे पढ़कर हमको प्रसन्नता होगी, लेकिन विधेयकों के माध्यम से माननीय परिवहन मंत्री जी ने जो विधेयक प्रस्तुत किया, वाहनों पर भारी भरकम करारोपण किया गया. मुझे कल्पना नहीं थी कि दुपहिया वाहन हों, चार पहिया वाहन हों, भारी वाहन हों, ट्रक हों,, बड़े ट्राले हों जिनकी हजारों किलोग्राम की ढुलाई क्षमता हो. सबको इस कराधान के अंतर्गत, इस टेक्स के अंतर्गत सम्मिलित करने का सरकार ने मन भी बनाया और उसकी खूबसूरत डिजाईन भी की. पूर्ववर्ती सरकार के समय जहां प्रति त्रैमासिक हुआ करता था इसे आपने मासिक कर दिया. एक तरफ हम चाहते हैं कि मध्यप्रदेश का कारोबार बढ़े, व्यापार,व्यवसाय बढ़े लेकिन जब लोग नया वाहन खरीदेंगे और विशेषकर आर.टी.ओ. में पंजीयन कराएंगे, जब उसका नवीनीकरण कराएंगे, मोटर साईकल से लेकर और दूसरे व्हीकल भी या सड़क पर दौड़ने वाले भारी भरकम वे वाहन, जिनको इस एक्ट के पास होने के बाद कर की मार झेलनी पड़ेगी. निश्चित रूप से महाराष्ट्र हमारे नजदीक पड़ता है, गुजरात हमारे नजदीक पड़ता है, राजस्थान हमारे नजदीक पड़ता है, सीमावर्ती राज्य हैं और बीच में हम मध्यप्रदेश. जब भारी भरकम वाहनों को त्रैमासिक को मासिक में आप परिवर्तित कर रहे हैं किलोग्राम में आप उसको परिवर्तित कर रहे हो तो मध्यप्रदेश के व्यापार,व्यवसाय का फर्क पड़ेगा. हम देखते हैं अगर राजस्थान,उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे हुए पेट्रोल पंप 5 से 10 कि.मी. दूर होते हैं जब भी हमारे यहां का पेट्रोल,डीजल भरवाने वाला व्यक्ति उन राज्यों में जाता है तो डीजल, पेट्रोल गाड़ियों में भी भरवाकर ले आता है और ड्रमों में भी भरवाकर ले आता है क्योंकि उसको बचत होती है. हमारे मध्यप्रदेश की वह जनता जो मोटर साईकल से लेकर ट्रकों तक सफर करती है उसमें चार पहिया वाहन, आठ पहिया वाहन, सोलह पहिया वाहन, भारी भरकम ट्राले हों, इस मध्यप्रदेश की जनता को तीन प्रकार से टेक्स देना पड़ता है. रोड टेक्स वह देता है, टोल टेक्स वह देता है और पुलिस प्रशासन और यातायात पुलिस को समय-समय पर जो सामान्य शुल्क होता है, वह देता है. कई बार हम देखते हैं कि किसी एक वाहन के मालिक का एक महीने में दो-तीन बार चालान बन जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की हालत तो बहुत खराब है वह अगर खेतों से गांव की तरफ जा रहा है. शहर से गांव और गांव से शहर की ओर जा रहा है, बीच में एक स्थान पर चेकिंग चल रही है, दूसरे स्थान पर चेकिंग चल रही है. उसको उस दौर से गुजरना पड़ता है. मंत्री जी निश्चित रूप से आप मेरे सुझावों को गंभीरता से देखेंगे, समझेंगे और उस पर कहीं न कहीं रिलेक्सेशन देंगे, जनता को लाभ होना चाहिए क्योंकि विधेयक माध्यम से आप कराधान बढ़ा रहे हो, टैक्स बढ़ा रहे हो. आम बजट में आपने टैक्स नहीं बढ़ाया, आपको साधुवाद और धन्यवाद, लेकिन कान सीधे हाथ से न पकड़कर कान उलटे हाथ से पकड़ लिया. जनता पर भार तो पड़ना है लोक सेवा यान के अंतर्गत आप वृद्धि देखेंगे तो मैंने कुछ अध्ययन किया है. पहले 90 रुपये प्रति सीट प्रति तिमाही था, अभी आपने उसको बढ़ाकर 150 रुपये प्रति सीट प्रतिमास कर दिया है. अब इसे आप हर माह लेंगे जबकि वह पहले हर तीन माह में था. 13+1 सीटर, 14 सीट के जो वाहन होते हैं उसमें आपने 200 रुपए प्रति माह कर दिया है और उसमें 20 रुपये की वृद्धि कर दी है. पहले यह 180 रुपये प्रति तिमाही थे. प्रति तिमाही तो यह भी है लेकिन इसमें आपने 20 रुपये का इजाफा कर दिया है.
मद - 5 अगर आप देखेंगे 28000 किलोग्राम से अधिक किन्तु 29000 किलोग्राम से अधिक नहीं, 9000 रुपए प्रति तिमाही क्षमता को बढ़ाकर आपने इसमें कर दिया. जबकि पूर्ववर्ती सरकार के समय 3250 रुपये प्रति तिमाही था, क्षमता थी 12000 किलोग्राम से अधिक किन्तु 13000 किलोग्राम से अधिक न हो, इसमें किलोग्राम बढ़ाया है, इसमें 28000 किलोग्राम से 29000 किलोग्राम तक कर दिया है.
अध्यक्ष महोदय, आप संरक्षण देंगे. इसी प्रकार 1000 किलोग्राम या उसके भाग के लिए आप देखेंगे तो 350 रुपये प्रति तिमाही कर दिया है. पहले 250 रुपये प्रति तिमाही था. इसमें भी 100 रुपये प्रति माह की वृद्धि करके 1000 रुपये तक सालाना वृद्धि कर दी. 5000 किलोग्राम से अधिक नहीं, में आपने 1000 रुपये सालाना की वृद्धि कर दी. पहले यह 4200 रुपये प्रति वर्ष था जो अब 6000 रुपया प्रति वर्ष हो गया. पहले यह 4200 रुपये प्रति वर्ष था. अभी आपने 500 रुपये प्रतिमाह के हिसाब से देखेंगे इसको 12x5=60, इसको 6000 रुपया कर दिया. इसी प्रकार से 5000 किलोग्राम से अधिक किन्तु 6000 किलोग्राम से अधिक नहीं, इसमें 1200 रुपये की अभिवृद्धि हुई है. (घंटी बजने पर) अध्यक्ष महोदय, आपने घंटी बजा दी, लेकिन अभी बोलने के लिए तो मेरे पास में बहुत है.
अध्यक्ष महोदय - मेरे पास में समय कम है.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया - अध्यक्ष महोदय, मैं जल्दी ही समाप्त कर दूंगा. हजारों किलोग्राम के माध्यम से आप देखेंगे और दो पहिया वाहन ले लें या अन्य सीटर देख लें. दो पहिया वाहन की कीमत में टैक्स गत समय 7 प्रतिशत था, इस आपने प्रस्तावित 9 प्रतिशत कर दिया, 2 प्रतिशत की अभिवृद्धि कर रहे हैं. पेट्रोल कार 4 पहिया की कीमत में जो टैक्स 7 प्रतिशत था आपने 9 प्रतिशत उसको कर दिया. 2 प्रतिशत की आपने वृद्धि कर दी. डीजल कार 4 पहिया की कीमत में 1 प्रतिशत का अंतर आया, पहले यह टैक्स 9 प्रतिशत था, अब इसको 10 प्रतिशत कर दिया. यात्री वाहन को अगर आप देखेंगे तो 180 रुपये प्रति सीट था, 20 रुपये की वृद्धि इसमें की है. आप इसे 200 रुपये प्रस्तावित कर रहे हैं. इसी प्रकार भारी वाहन के ऊपर जो टैक्स आहूत किया है उसको आपने 2 प्रतिशत बढ़ा दिया है. यह पहले 6 प्रतिशत था, इस बार आपने 8 प्रतिशत कर दिया.
अध्यक्ष महोदय, कुल मिलाकर आप मध्यप्रदेश की जनता के साथ विशेषकर दो पहिया से लेकर बसों में बैठने वाले यात्री हों या नगर सेवा का मामला हो, चाहे वह भारी वाहन हों, जिसमें हजारों क्विंटल के भार में उसमें जादूगिरी की है. किलोग्राम में कर करके उसको कहीं न कहीं दिखाने की कोशिश की है. प्रति तिमाह से आप उसको प्रति माह पर ले आये. जो नवीनीकरण होगा, उस नवीनीकरण में भी आपने वृद्धि की है. आप जो विधेयक ला रहे हैं इसमें आम जनता को आज नहीं तो कल मालूम पड़ेगा और आपसे भी माननीय मंत्री जी स्पष्ट कहना चाहूंगा कि आप बिल्कुल क्लियर कीजिए कि मध्यप्रदेश की जनता पर आखिर इससे भार कितना पड़ेगा? दो पहिया वाहन से लेकर चार पहिया वाहनों तक कितना भार पड़ेगा, इसको जरूर आप स्पष्ट कीजिएगा, क्योंकि इसको जल्दीबाजी में देखा था और आपने घंटी भी बजा दी, लेकिन कुल मिलाकर के मध्यप्रदेश की जनता का भला होना चाहिए. जो वाहनों पर चल रहे हैं जो ट्रक लेकर चल रहे हैं ट्रक आपरेटर्स, ट्रक आनर्स, 13+1 सीटर की गाड़ी वाले, जीप, कार, निजी वाहन वाले, इन सबको लेकर हमको चलना है और विशेषकर कारोबार, व्यवसाय, व्यापार में भी हमारे मध्यप्रदेश में इन पर कोई असर न पड़े उसको भी देखना पड़ेगा. अध्यक्ष महोदय, आपने जो समय दिया उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
श्री देवेन्द्र वर्मा ( खण्डवा ) -- माननीय अध्यक्ष महोदय माननीय मंत्री जी ने जो मोटर यान कराधान संशोधक विधेयक प्रस्तुत किया है. मैं उसका विरोध करता हूं. जब हम मोटरयान की बात करते हैं तो उसमें मेरा मानना ऐसा है कि कहीं न कहीं एक वह लोग जो कि रोजगार कर रहे हैं, एक वह लोग जो कि उसमें यात्रा कर रहे हैं एक वह लोग जो कि उसकी सेवा दे रहे हैं. इन तीनों लोगों की अगर हम चिंता करेंगे तो ध्यान में आता है कि जो मंत्री जी ने यह विधेयक पेश किया है उसका उद्देश्य यह है कि किस प्रकार से हम केवल अपना खजाना भरें, किस प्रकार से हम ज्यादा से ज्यादा टैक्स वसूलें, सिर्फ एक मात्र यह ही ध्येय लेकर यह संशोधन विधेयक लाये हैं.
मैं इस संशोधन विधेयक का विरोध करता हूं. इन्होंने जो संशोधन इसमें किये हैं इसमें एक बात जो अच्छी देखने को मिलती है कि बैटरी चलित जो टैक्सी या वाहन हैं उन पर कुल मानक मूल्य का चार प्रतिशत से केवल एक प्रतिशत टैक्स घटाया है बाकी इसके अतिरिक्त हर जगह पर इन्होंने चार गुना टैक्स करने का काम किया है. जब हम बस की बात करते हैं या सवारी वाहन की बात करते हैं तो ध्यान में आता है कि मंत्री जी ने अपने बजट भाषण में भी बात रखी थी कि हम छिंदवाड़ा और सागर में वाल्वो बस चलाने जा रहे हैं. मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से निवेदन करूंगा कि अन्य शहरों के उन गरीबों की भी आप चिंता करिये जहां पर कि यात्रियों को जानवरों की तरह ठूंसा जाता है और आम आदमी उन बसों में यात्रा नहीं कर सकते हैं. मैं अपने यहां इंदौर और खण्डवा की बात करूं खण्डवा से इंदौर के लिए प्रति 5 मिनट पर एक बस चलती है और उन बसों में हम ठीक से बैठ नहीं सकते हैं. छोटी छोटी 35 सीटर बस होती हैं उसमें पैर सीधा नहीं कर पाते हैं. इसी प्रकार की बसें इंदौर से सभी शहरों की ओर चलती हैं. इस प्रकार से कहीं न कहीं बड़े शहरों के बीच में जो बसें चलने वाली हैं उस तरह की बस छोटे शहरों में भी चलायें.आप प्रदेश में जिस प्रकार की वाल्वो बस की कल्पना कर रहे हैं तो मेरा कहना है कि इस तरह की बसें पूरे मध्यप्रदेश में चलें, जिससे पूरे मध्यप्रदेश के नागरिकों को फायदा मिले और साथ ही साथ ऐसे क्षेत्र चाहे हमारा खण्डवा अलीराजपुर झाबुआ हो आप वहां पर एक बार जाकर दौरा अवश्य करें. बाजार के दिन वहां के टैक्सी और लोड़िंग गाडियों को आप देखें लगभग जिस गाड़ी की क्षमता 12 - 12 है उसमें 40 से 50 सवारियों को बैठाया जाता है अर्थात् एक अमानवीय तरीके से बैठाया जाता है. ऐसे क्षेत्रो में ज्यादा से ज्यादा वाहन जनता की पहुंच में हों. माननीय मंत्री जी इस प्रकार का प्रावधान करने की आवश्यकता है. पूरे प्रदेश में एक समान कर, कहीं न कहीं यह बड़े और छोटे के भेद को मिटायेगा, कहीं न कहीं ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासी क्षेत्रों में जहां पर वाहनों की आवश्यकता है तो उन जगहों पर अगर टैक्स कम किया जायेगा तो उन बेरोजगारों को भी फायदा होगा जो इस क्षेत्र में है. इसके पीछे मेरा यह मानना है कि एक यह ही व्यवसाय ऐसा है जिसमें कोई बेरोजगार अगर बैंक से ऋण लेता है तो दूसरे दिन से उसकी आय प्रारम्भ हो जाती है, वह अपना रोजगार शुरू कर सकता है, कहीं न कहीं बेरोजगार युवाओं को भी इसमें टैक्स में छूट देंगे तो निश्चित रूप से राहत की बात होगी.
दूसरी बात आपने स्कूल बसों पर भी प्रति माह के हिसाब से टैक्स का प्रावधान करने जा रहे हैं इसमें यह इस बार नया प्रावधान कर रहे हैं कि प्रति दिन प्रति सीट के हिसाब से अतिरिक्त टैक्स लगा रहे हैं. इसके माध्यम से वह स्कूल जो कि बच्चों को इस प्रकार की सुविधा देते हैं कि बच्चे स्कूल बस से जा सकते हैं, हमारे खण्डवा जैसे शहर में आटो के द्वारा बच्चे स्कूल जाते हैं और आटो की सवारी संख्या तीन तीन या चार चार की होती है उसमें वह 10 - 10 बच्चों को बैठा लेते हैं. मेरा आपके माध्यम से मंत्री जी से निवेदन है कि यह इस प्रकार जो स्कूल बसों पर कर लगा रहे है इसको हटायें, इसमें संशोधन करें और इस प्रकार से प्रोत्साहित करें कि प्रत्येक स्कूल अपनी स्वयं की बस सुरक्षा के मानकों को ध्यान में रखते हुए संचालित कर सके तो हमारे प्रदेश के नौनिहालों के लिए यह एक अच्छा निर्णय होगा, इन स्कूल बसों को कर के दायरे में न लायें. इसी प्रकार से मेरा आपके माध्यम से मंत्री जी से निवेदन है कि हम देखते हैं कि हम किसी सड़क पर पैदल चल रहे हैं तो कोई भी डम्पर या ट्रेक्टर आता है तो वह काला धूंआं छोड़ते हुए जाता है इस तरह से जो वाहन प्रदूषण फैला रहे हैं इस प्रकार के वाहनों पर आप टैक्स बढ़ायेंगे या जो सुरक्षा के मानकों को पूरा नहीं करते हैं. इन पर आप कोई चिंता करेंगे क्योकि हम देख रहे हैं कि बहुत बड़ी संख्या में लोग सड़क दुर्घटना में अपनी जान खो रहे हैं, इसका भी इसमें विचार किया जाय और जो पूरा संशोधन विधेयक लाये हैं यह बगैर किसी सोच विचार के केवल टैक्स वसूलने के विचार से लाये हैं यह प्रदेश की 7.5 करोड़ जनता के साथ में अन्याय है. मै इस संशोधन विधेयक का विरोध करता हूं इस पर गहन विचार विमर्श किया जाय और सभी बातों को ध्यान में रखते हुए इस विधेयक को लाया जाता तो उचित होता. आपने बोलने का समय दिया बहुत बहुत धन्यवाद्.
कुंवर विजय शाह (हरसूद) -- अध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश मोटरयान कराधान (संशोधन) विधेयक,2019 पर विस्तार से सिसौदिया जी और देवेन्द्र जी ने अभी मंत्री जी के सामने बातें रखी हैं. अभी हमारे सिसौदिया जी कह रहे कि पैसे बढ़ाकर आप कान इधर से पकड़ो या उधर से पकड़ो. अब सिसौदिया जी, इनका हाथ है और इनका कान हैं, ये कहीं से भी पकड़ें, पर जनता के कान तो मत पकड़ो. ये पैसे बढ़ाकर जनता के कान पकड़ रहे हैं. मंत्री जी, यह तो सरासर अन्याय है. अध्यक्ष महोदय, मैं लम्बी बात नहीं करुंगा, लेकिन जिस तरीके से आपने टैक्स बढ़ाया है, केवल दो बिन्दुओं पर मंत्री जी एवं सरकार का ध्यान आकर्षित करुंगा. भारत सरकार ने भी पर्यावरण को बचाने के लिये बैटरी द्वारा चलित वाहनों पर छूट दी है. पेट्रोल और डीजल भी आने वाले समय में खत्म होने वाला है. अब अगर हम ग्रीन एनर्जी को प्रोत्साहन नहीं देंगे और वैसे ही बैटरी द्वारा चलति वाहन बहुत महंगे हैं. अगर बैटरी द्वारा चलति वाहन पर भी आप टैक्स केवल नाममात्र का कम करेंगे, मुझे लगता है कि केवल 2 प्रतिशत टैक्स बैटरी द्वारा चलित वाहनों पर आपको लेना चाहिये. इसके अलावा भी जो आपने टैक्स बढ़ाये हैं, वह कम नहीं हैं. इसके बारे में डीटेल में सिसौदिया जी ने बताया है. तीसरी बात, हमारे मध्यप्रदेश की जनता के अधिकांश बच्चे बसों से स्कूल में जाते हैं. बहुत नामिनल पैसा पहले बसों का लगता था टैक्स के रुप में. मंत्री जी, अभी जो मेरे पास जानकारी है, उसमें आपने अगर 13 सीट से ज्यादा सीट की वह बस है, तो आपने 60 रुपया प्रति सीट प्रति दिन बढ़ाये हैं. अगर कोई 50 सीटर स्कूल बस है और 60 रुपये प्रति सीट से बढ़ायेंगे, तो मंत्री जी जरा आप अंदाज लगा लीजिये कि साल का उसको कितना पैसा लगेगा. महीने का उसको कितना पैसा लगेगा और यह सारा पैसा, जो स्कूल की बसों से बच्चे जाते हैं, अगर आप बढ़ाकर लेंगे, तो गरीब आदमी, आम आदमी यह पैसा कहां से देगा. वह फीस बढ़ायेंगे, अगर वह फीस बढ़ायेंगे, तो निश्चित रुप से उसका भार आम जनता पर आयेगा. मंत्री जी, इस पर मेहरबानी करके स्कूल बसों पर आप यह नया टैक्स न लगायें, यह मेरा आपसे निवेदन है. इसी तरह से इतने सारे रोड टैक्स हैं, ऊपर से टोल टैक्स है. अगर एक गाड़ी इन्दौर से भोपाल आती एवं जाती है, तो उसको 2 हजार रुपये आने में और 2 हजार रुपये जाने में लगता है. रोड टैक्स वह अलग दे रहा है. इसके अलावा वह बेरयिर वाले अलग ले लेते हैं, बीच बीच में पुलिस के सहयोग से. कुल मिलाकर मध्यप्रदेश की आम जन का जीवन आप दुरुह करने जा रहे हैं. इसलिये मेरा आपसे निवेदन है कि इस पर आप पुनर्विचार करें और जिस तरीके से आपने जो टैक्स बढ़ाया है डीजल से चलित वाहन पर 8 से 10 प्रतिशत बाकी 7 से 8 प्रतिशत. हाईब्रिड, पेट्रोल,सीएनजी एवं एलपीजी गाड़ी, इस पर भी आपने टैक्स बढ़ा दिया. इस पर बढ़ाने की आवश्यकता नहीं थी. क्योंकि हम धीरे धीरे पेट्रोल से हाईब्रिड पेट्रोल पर जा रहे हैं. इससे निश्चित रुप से प्रदूषण भी खत्म होगा. सीएनजी, एलपीजी इस पर भी आपने टैक्स बढ़ा दिया. मेरा निवेदन है कि इस पर आपने जो 8 प्रतिशत किया है, उसको वापस 4 प्रतिशत करें और जो बैटरी द्वारा चलित वाहनों पर आपने 4 प्रतिशत किया है, उसको भी आपको कम करके 2 प्रतिशत करना चाहिये और जिस तरीके से आपने आम जनता पर इस टैक्स के रुप में भार दिया है, मैं इसका विरोध करता हूं. मेरा सरकार से निवेदन है कि बच्चों पर मेहरबानी करें. मध्यप्रदेश के जो नौजवान बच्चे हैं, जिनका भावी भविष्य स्कूल में जाकर के आगे बढ़ने का है, उन पर भी आप रहम नहीं कर रहे हैं, यह घोर अन्याय है. इसका मध्यप्रदेश के हमारे होनहार बच्चों एवं आम जनता पर भार पड़ेगा. इसलिये इस टैक्स का मैं विरोध करता हूं. धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय -- माननीय मंत्री जी.
कुँवर विजय शाह -- अध्यक्ष महोदय, दर्शक दीर्घा में बच्चे भी बैठे हुए हैं.
अध्यक्ष महोदय -- कोई बात नहीं, होता है.
परिवहन मंत्री (श्री गोविन्द सिंह राजपूत) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, केन्द्र की सरकार द्वारा गडकरी जी की अध्यक्षता में एक मीटिंग हुई. माननीय शाह साहब, ये जो टैक्स में वृद्धि हमने की है, ये हमने नहीं की, हमको ऊपर से निर्देश थे. वर्ष 2018 में गडकरी जी की अध्यक्षता में ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की बैठक असम में हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि करों को सुसंगत बनाया जाए. ये अनुशंसा सारे देश में लागू हुई, मध्यप्रदेश भी उनमें से एक था. गडकरी जी की अध्यक्षता में ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की बैठक में निर्णय लिया गया कि जितने भी गैर-व्यावसायिक वाहन हैं, उन पर लाइफटाइम टैक्स यानि जीवनकाल कर लिया जाए. यह सुझाव वहां से आया है. उस सुझाव को हमें मान्य करना पड़ा. ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स द्वारा एक सुझाव और आया कि जीवनकाल कर की नई दरें अधिसूचित जारी करने का आदेश भी हमें वहीं से मिला.
अध्यक्ष महोदय, भारत सरकार के सुझावों के संबंध में मोटरयानों पर करों के सरलीकरण और राजस्व की वृद्धि हेतु विभिन्न मदों में संशोधित प्रस्ताव प्रस्तावित किए गए, जिससे मध्यप्रदेश मोटरयान कराधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 विचार हेतु प्रस्तुत किया गया, हम लाए.
अध्यक्ष महोदय, अभी 400 करोड़ रुपये का हमने प्रावधान किया है. बहुत सारी बातों का हमने इसमें सरलीकरण किया है. जिन लोगों की बकाया राशि पहले दण्ड की, जुर्माने की राशि 100 प्रतिशत होती थी, इतना पैसा वे लोग भर नहीं पाते थे. इतना पैसा न भरने के चक्कर में कोर्ट में जा भी नहीं पाते थे, तो हमने 100 प्रतिशत से घटाकर 50 प्रतिशत कर दिया. 50 प्रतिशत करने से फायदा यह हुआ कि जिन वाहनस्वामियों की अपील होती थी, उन्हें अपील करने में सुविधा हो गई. साथ ही राजस्व की वसूली की सुविधा भी हो गई. उससे राजस्व की आय भी बढ़ी.
अध्यक्ष महोदय, 1 अक्टूबर, 2014 के पश्चात् सभी मालवाहक जीवनकाल कर को जमा करने की अनिवार्य श्रेणी में आ चुके हैं. इसलिए अब 12 टन से लेकर 28 टन तक के मालयानों को जीवनकाल कर लगाए जाने का हमने प्रस्तावित किया है. इससे दो फायदे होंगे, एक तो चोरी भी नहीं बढ़ेगी, जो कर की चोरी होती है, टैक्स की चोरी होती है, वह प्रवृत्ति रुकेगी और दूसरा शासन को एकमुश्त राजस्व मिल जाएगा.
अध्यक्ष महोदय, हमारे साथी अभी कह रहे थे कि हमने बहुत कर लगा दिया. मध्यप्रदेश में विभिन्न वर्ग के वाहनों में जीवनकाल कर में 7 से 9 को बढ़ाकर मात्र 8 से 16 प्रतिशत किया गया है और बताना चाहता हूँ सिसौदिया जी के लिए कि मध्यप्रदेश भारत में सबसे कम टैक्स लेता है. आप देखें कि केरल में 20 प्रतिशत, कर्नाटक में 17 प्रतिशत, उड़ीसा में 20 प्रतिशत और आप जिस महाराष्ट्र की बात कर रहे थे सिसौदिया जी, वहां भी 20 प्रतिशत ही है.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया -- मैंने टैक्स की बात नहीं की है, महाराष्ट्र की, गुजरात की और राजस्थान की.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत -- मुझे तो टैक्स की बात करनी पड़ेगी ना.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया -- मैंने कहा कि वहां का कारोबार बढ़ेगा और मध्यप्रदेश का कारोबार घटेगा.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत -- अध्यक्ष महोदय, मैं आपकी बात से सहमत हूँ. पर मैं बता रहा हूँ कि हम बहुत कम हैं, अभी हम आधे पर ही अटके हुए हैं. हमारे भाई कुँवर शाह साहब ने कहा तो मैं बताना चाहता हूँ कि स्कूल बसों पर हमने कोई टैक्स नहीं बढ़ाया है.
कुँवर विजय शाह -- मेरे पास जो कागज हैं, इनमें यह है.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत -- मैं समझा रहा हूँ.
कुँवर विजय शाह -- माननीय मंत्री जी, यहां कोई प्रिंटिंग मिस्टेक होगी. मैंने कोई भी बात अपने मन से नहीं रखी है.
अध्यक्ष महोदय -- एक बात का ध्यान रखें, जो मुझे इंगित न करके सीधी बात करें, वह नहीं लिखा जाएगा.
कुँवर विजय शाह -- माननीय अध्यक्ष जी, ये विधान सभा से ही प्राप्त दस्तावेज हैं.
श्री विश्वास सारंग -- अध्यक्ष महोदय, आपने तो बड़ी उलझन में डाल दिया, अभी तक वे सुन रहे थे, अब देखना भी पड़ेगा, किसकी नजर आप पर है, किसकी नहीं है.
अध्यक्ष महोदय -- देखना पड़ेगा भाई. ये जो सीधा-सीधा संवाद होने लगता है. मैं कहां चला जाता हूँ.
कुँवर विजय शाह - अध्यक्ष महोदय, बिना आपकी अनुमति से सदन नहीं चल सकता. मैं आपकी अनुमति से ही बोल रहा हूं. जो दस्तावेज मुझे विधान सभा से दिया गया है, मैंने मेरे घर से नहीं छापा.
अध्यक्ष महोदय - विजय शाह जी, आपकी गलती नहीं है. जिस ड्रेस में गोविंद राजपूत जी आये हैं, आप बिना वजह वहीं आकर्षित हो जाते हैं, यहां देखना भूल जाते हैं.
कुँवर विजय शाह - माननीय अध्यक्ष जी, चूंकि बच्चों की भी चिंता है, मध्यप्रदेश के बच्चों की.
श्री गोविंद सिंह राजपूत - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं कॅुंवर साहब की जिज्ञासा का ध्यान रखूंगा.
अध्यक्ष महोदय - चलिये. आप दोनों समय का ध्यान रखें.
श्री गोविंद सिंह राजपूत - अध्यक्ष महोदय, आप जो स्कूल बसों के टैक्स की बात कर रहे हैं, उसमें हमने सुविधा दी है. अभी तक क्या होता था कि स्कूल की बसें हों या किसी फैक्ट्री की बसें हों, स्कूल, कॉलेज की बसें जब स्कूल का टाईम खत्म हो जाता है, छुट्टियां होती हैं,उस समय वह बसें खड़ी रहती हैं. अगर वह बस अपने छात्रों को लेकर भी नाके से निकलती थी, तो उसको पुलिस वाले पकड़ लेते थे, तो हमने यह सुविधा दी है कि वह थोड़ा सा टैक्स भरकर उन 2-3 महीने की छुट्टियों के समय में अपनी बस का अन्य उपयोग भी कर सकते हैं. यह हमने सुविधा दी है कि वह जायें और अन्य उपयोग करें.
कुँवर विजय शाह - माननीय अध्यक्ष जी, यह कहीं भी स्पष्ट नहीं है.
अध्यक्ष महोदय - प्रश्न उत्तर नहीं. विजय शाह जी, जब मंत्री जी बोल रहे हैं, तो न लिखा हो, लेकिन विश्वास तो किया करो.
श्री गोविंद सिंह राजपूत - कुँवर साहब ने शायद रात में पढ़ा होगा.
कुँवर विजय शाह - मैं रात में नहीं पढ़ता गोविंद सिंह जी, मैं दिन में पढ़कर बोल रहा हूं. आप जीपीएस तो लगा नहीं पाये, फिटनेस कर नहीं पाये. स्पीड गवर्नर बच्चों की गाड़ी में लगा नहीं पाये. बच्चों की सुरक्षा कर नहीं पाये. क्या बात करते हो आप ?
अध्यक्ष महोदय - गोविंद सिंह जी, जरा जल्दी करेंगे.
श्री बृजेन्द्र सिंह राठौर - विजय शाह जी, रात में पढ़ना क्या गुनाह है ?
श्री गोविंद सिंह राजपूत – (XXX) डर क्यों गये ?
डॉ. नरोत्तम मिश्र - अध्यक्ष महोदय, बृजेन्द्र सिंह राठौर जी की चिंता यह है कि अगर यह रात में नहीं पढ़ेंगे, तो विभाग ही बंद हो जायेगा.
अध्यक्ष महोदय - मैं वही बोलने वाला था कि बृजेन्द्र राठौर जी, देखो कम से कम आपको रात का जिक्र नहीं करना चाहिये.
श्री बृजेन्द्र सिंह राठौर - माननीय अध्यक्ष महोदय, आपका निर्देश मिल गया. अब हम दिन में ही ध्यान रखेंगे.
कुँवर विजय शाह - माननीय अध्यक्ष जी, मैं जो कुछ बोल रहा हूं, आपने क्या जीपीएस, फिटनेस, स्पीड गवर्नर इसका ध्यान रखा है क्या ?
अध्यक्ष महोदय - विजय शाह जी, जब आप बोल रहे थे, मंत्री जी चुपचाप सुन रहे थे. यह अच्छी परम्परा नहीं है. दिस इज़ नॉट प्रश्नकाल.
कुँवर विजय शाह - अध्यक्ष महोदय, मेरा नाम लेकर बोला कि मैं रात में पढ़ता हूं. अब मैं रात में पढ़ूं, दिन में पढ़ूं आपको क्या लेना देना ?
श्री विश्वास सारंग - अध्यक्ष महोदय, शाह साहब का दिमाग दिन में खुलता है या रात में इससे इनको क्या लेना देना.
अध्यक्ष महोदय - मेरी बात सुनिये. शाह जी, आपके दिव्यचक्षु किसी भी समय खुल सकते हैं. उस पर कोई रोक नहीं है, लेकिन अभी फिलहाल मेरा कहना है, मेरे पास समय की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुये वरिष्ठ सदस्य मुझे सहयोग करेंगे, ऐसा मैं मानकर चलता हूं. गोविंद सिंह जी, जरा अपनी स्पीड बढ़ाइये. चौथे गेयर में गाड़ी लाइये.
श्री गोविंद सिंह राजपूत - अध्यक्ष महोदय, बहुत छोटा सा है, ज्यादा नहीं है. ग्रामीण क्षेत्र में वाहन चलाने पर 7 प्रतिशत की जगह 1 प्रतिशत टैक्स लिया जा रहा है. हमने टैक्स नहीं बढ़ाया है. आरटीओ कार्यालय में जो पुन: पंजीयन होते थे, उनमें बिल जमा नहीं किये जाते थे, इस कारण से वाहन की वास्तविक कीमत के आधार गणना करने में कठिनाई होती थी. हमने अब इसमें वाहन के कुल भार पर टैक्स प्रस्तावित किया है. इससे टैक्स में आसानी होगी और राजस्व की हमें हानि भी नहीं होगी. स्कूल की बात हम कर चुके हैं शाह जी की बात पर. अध्यक्ष महोदय, पर्यावरण को
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XXX : आदेशानुसार रिकार्ड नहीं किया गया.
ध्यान में रखते हुये हमने बैटरी संचालित समस्त वाहनों को जीवन काल कर में छूट दिया है. इन वाहनों पर मात्र 4 प्रतिशत की दर से जीवन काल कर लगेगा. हमारे देवेन्द्र वर्मा जी कह रहे थे वॉल्बो बस के बारे में, मुझे आपकी बस की चिंता है, जब हम बसें चलायेंगे, तो खंडवा से वॉल्बो बस जरूर चलेगी, इसका ध्यान रखा जायेगा. अध्यक्ष महोदय, बहुत-बहुत धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय - प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश मोटरयान कराधान (संशोधन) विधेयक 2019 पर विचार किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
अब विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2, 3 तथा 4 इस विधेयक के अंग बनें.
खण्ड 2, 3 तथा 4 इस विधेयक के अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत-- अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूँ कि मध्यप्रदेश मोटरयान कराधान (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाय.
अध्यक्ष महोदय-- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश मोटरयान कराधान (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाय.
प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश मोटरयान कराधान (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाय.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक पारित हुआ.
मध्यप्रदेश कृषि-उपज मंडी (संशोधन) विधेयक, 2019 (क्रमांक 10 सन् 2019).
किसान कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री (श्री सचिन सुभाषचन्द्र यादव)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूँ कि मध्यप्रदेश कृषि-उपज मण्डी (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाय.
अध्यक्ष महोदय-- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश कृषि-उपज मण्डी (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाय.
श्री गौरीशंकर चतुर्भुज बिसेन(बालाघाट)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश कृषि-उपज मण्डी (संशोधन) विधेयक, 2019 में एक छोटा सा संशोधन आवश्यक था. मैं समझता हूँ कि इसकी आवश्यकता थी और हम जानते हैं कि निर्वाचित मंडियों का कार्यकाल 5 साल का होता है. अधिकतम 6-6 माह करके दो बार बढ़ाया जाता है और 6 महीने तक मंडियाँ काम कर सकती हैं लेकिन कई बार ऐसे अवसर आते हैं कि मंडियों का विभाजन होता है या मंडियों के निर्वाचन में और समय लगता है. ऐसे समय में, उस समय का लाभ लेकर लोग न्यायालय जाते हैं और न्यायालय जाकर के लंबे समय तक पद पर बने रह सकते हैं. इससे शासन को असुविधा होती थी. ऐसी स्थिति पहली बार आई और इसलिए मैं समझता हूँ यह भारसाधक नियुक्त करने का जो संशोधन आया है, यह बहुत अच्छा संशोधन है. इससे सरकार का एक नियंत्रण भी रहेगा और समयावधि के अन्दर चुनाव होते तक भारसाधक उसमें काम करेंगे. मैं इसका समर्थन करता हूँ.
श्री जजपाल सिंह “जज्जी”(अशोकनगर)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं मंडी संशोधन विधेयक 2019 का समर्थन करता हूँ क्योंकि यह देखने में आता था कि जब कोई नवीन मंडी बन रही है या किसी मंडी में कोई परिसीमन हुआ है तो वहाँ पर जो राज्य शासन द्वारा समितियों का गठन किया जाता था. जैसा कि अभी हमारे माननीय वरिष्ठ सदस्य जी ने कहा कि जो समितियाँ बनती थीं वे किसी न किसी बहाने से, क्योंकि जो राज्य शासन, जो नियम 72 अभी तक था वह केवल यह कहता था कि, “ राज्य शासन अधिसूचना द्वारा मंडी समिति के गठन के लंबित रहने की कालावधि के दौरान स्थापति की गई नई मंडी के लिए एक भारसाधक समिति का गठन करेगी.” और पूर्ण विराम, “गठन करेगी” तक था. लेकिन उसके बाद उसको विघटन करने, यदि कोई परिस्थितियाँ ऐसी आती हैं कि उस समिति का अगर विघटन करना पड़े तो सरकार के पास कोई अधिकार नहीं था इसलिए लोग कोर्ट में जाकर और एक तरह से वह फिर प्रयास करते थे कि मंडियों के चुनाव लेट करें ताकि वह अधिक समय तक रह सकें इसलिए इस संशोधन के माध्यम से यह चूँकि प्रजातांत्रिक व्यवस्था है, मंडियों में चुनाव हों और उस चुनाव को किसी तरह, ऐसी समितियाँ जो बना दी जाती हैं वह प्रभावित न कर सकें. इसके लिए इस नियम में यह संशोधन है कि, “ परन्तु राज्य सरकार ऐसी गठित समिति को विघटित करने के लिए सक्षम होगी.” इसका जोड़ा जाना अति आवश्यक था. इसके लिए मैं माननीय कृषि मंत्री जी को बहुत बहुत बधाई देता हूँ कि उन्होंने प्रजातंत्र की एक व्यवस्था जिसमें कई बार अवरोध उत्पन्न होता था उसको दुरुस्त करने का कार्य किया. मैं इसका समर्थन करता हूँ. धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश कृषि-उपज मण्डी (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाय.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
अध्यक्ष महोदय-- अब विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
खण्ड 2 इस खण्ड में एक संशोधन है.
डॉ.सीतासरन शर्मा(होशंगाबाद)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने जो विधेयक प्रस्तुत किया है उसमें एक तो हमारे वरिष्ठ सदस्य और पूर्व कृषि मंत्री जी ने जो बात की वह तो ठीक है ओ.आई.सी.बनाने का अधिकार शासन को होना चाहिए.
अध्यक्ष महोदय-- माननीय, पहले आपने जो संशोधन दिया है वह पढ़ दीजिए.
डॉ.सीतासरन शर्मा(होशंगाबाद)-- अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूँ कि खण्ड 2 में इस प्रकार संशोधन किया जाय-
खण्ड 2 में विद्यमान परन्तुक की प्रथम पंक्ति में शब्दावली “ऐसी गठित समिति को” के स्थान पर “जो गठित समिति अच्छा कार्य कर रही है उन्हें छोड़कर” शब्दावली प्रतिस्थापित की जाए.
अध्यक्ष महोदय, विघटन करने का अधिकार सरकार ने ले लिया किन्तु इसको Arbitrarily करें, बस यही हमारा अनुरोध है. बहुत सी समितियाँ अच्छा काम करती हैं उन अच्छा काम करने वाली समिति को विघटित करके ओआईसी बना देना कोई अच्छा निर्णय नहीं होगा. जो समितियाँ गलत काम करती हैं उनके लिए आपने अधिकार लिया है आप उन्हें विघटित कर दीजिए. जब एक मंडी समिति की दो बनाते हैं तो आधे-आधे सदस्य हो जाते हैं परन्तु जो सदस्य चुने हुए हैं वे कन्टीन्यु कर सकते हैं उनको कन्टीन्यु करना भी चाहिए. खाली जगह पर नॉमीनेट किए जा सकते हैं. चुने हुए सदस्यों में अध्यक्ष बनाया जा सकता है. मेरा संशोधन का मतलब सिर्फ इतना था कि जो समितियाँ ठीक काम करती हैं उनको आप काम करने दें. जो समितियाँ उस दौरान या उसके पहले गलत काम कर रही थीं या ठीक काम नहीं कर रहीं थीं उनको विघटित करने का अधिकार लें. दूसरी बात यह है कि चुनाव जल्दी से जल्दी कराएं ताकि प्रशासनिक व्यवस्था की बजाए चुनी हुई मंडियाँ आएं जिससे जनता और कृषकों को उससे लाभ मिल सके.
किसान कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री (श्री सचिन सुभाष यादव)--अध्यक्ष महोदय, किसी भी समिति संस्था को असीमित अवधि के लिए रखा जाना संभव नहीं है. मैं माननीय गौरीशंकर बिसेन जी, जजपाल जी दोनों को धन्यवाद, साधुवाद देना चाहता हूँ. माननीय सीतासरन शर्मा जी को भी धन्यवाद देना चाहता हूँ. इस सदन से यह निवेदन करता हूँ कि इस विधेयक को सर्वसम्मति से पारित किया जाए.
अध्यक्ष महोदय--प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि खण्ड 2 में इस प्रकार संशोधन किया जाय :-
खण्ड 2 में विद्यमान परन्तुक की प्रथम पंक्ति में शब्दावली "ऐसी गठित समिति को" के स्थान पर "जो गठित समिति अच्छा कार्य कर रही है उन्हें छोड़कर" शब्दावली प्रतिस्थापित की जाए.
संशोधन अस्वीकृत हुआ.
अध्यक्ष महोदय--प्रश्न यह है कि खण्ड 2 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 2 इस विधेयक का अंग बना.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्न यह है कि खण्ड 3 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 3 इस विधेयक का अंग बना.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना
अध्यक्ष महोदय--प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
किसान कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री (श्री सचिन सुभाष यादव)--अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूँ कि मध्यप्रदेश कृषि-उपज मण्डी (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाय.
अध्यक्ष महोदय--प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश कृषि-उपज मण्डी (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाय.
प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश कृषि-उपज मण्डी (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाय.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक सर्वानुमति से पारित हुआ.
(7) मध्यप्रदेश सिंचाई प्रबंधन में कृषकों की भागीदारी (संशोधन) विधेयक, 2019 (क्रमांक 16 सन् 2019)
जल संसाधन मंत्री (श्री हुकुम सिंह कराड़ा)--अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूँ कि मध्यप्रदेश सिंचाई प्रबंधन में कृषकों की भागीदारी (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
अध्यक्ष महोदय--प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश सिंचाई प्रबंधन में कृषकों की भागीदारी (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
श्री बहादुरसिंह चौहान (महिदपुर) -- अध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश सिंचाई प्रबंधन में कृषकों की भागीदारी संशोधन विधेयक कृषकों से और आम जनता से जुड़ा हुआ बहुत ही महत्वपूर्ण विधेयक विधेयक है. संशोधन विधेयक 2019 यह जल उपभोग्ता संस्थाओं से जुड़ा हो, मध्यप्रदेश सिंचाई प्रबंधन, कृषकों की जनभागीदारी अधिनियम वर्ष 1999 की धारा (4) की उपधारा (3) की उपधारा (7) में यह उपबंधित है कि मध्यप्रदेश की जल उपभोक्ता संस्थाओं की प्रबंध समिति के अध्यक्ष एवं प्रबंध समिति के सदस्य निर्वाचन दिनांक से जब तक उनको हटाया नहीं गया हो या वापस नहीं बुलाया गया हो 6 वर्ष के लिए इसकी कालावधि होगा. इसका महत्वपूर्ण विषय यह है. जनवरी 2017 में प्रदेश में 1765 जल उपभोक्ता संस्थाओं के चुनाव हुए उसके बाद 93 संस्थाओं के चुनाव और हुए इस प्रकार 1865 जल उपभोक्ता संस्थाओं के चुनाव पूरे मध्यप्रदेश में हुए. जल संसाधन विभाग में तीन योजनाएं महत्वपूर्ण रहती हैं . लघु योजना, मध्यम योजना और वृहद योजना. लघु योजना में 6 सदस्यों का चुनाव होता है. मध्यम योजना में 12 सदस्यों का चुनाव होता है और वृहद में जैसी योजना हो उसके मान से उसमें सदस्य हो जाते हैं. पहले यह कालावधि पांच वर्ष की हुआ करती थी. चुनाव निर्वाचन की दिनांक से चुने हुए सदस्यों में से एक तिहाई सदस्य दो साल के लिए सेवानिवृत्त हो जाएंगे. फिर चार वर्ष की कालावधि में चुने हुए सदस्यों में से वह फिर दो वर्ष के लिए सेवानिवृत्त हो जाएंगे और फिर चुने हुए सदस्यों में से 6 वर्ष में वह फिर सेवानिवृत्त हो जाएंगे. जब तक पूरे 6 वर्ष में चुनाव आ जाएगा. इसके साथ-साथ आपने एक बात और भी कही है कि आपकी सरकार के आने के बाद जनवरी 2003 से इन जल उपभोक्ता संस्थाओं का कार्यकाल आपने 6 माह के लिए बढ़ाया और वह तीन जुलाई में पूर्ण हो गया है. पुन: सरकार और माननीय मंत्री जी इन जल उपभोक्ता संस्थाओं का कार्यकाल पुन: 6 माह के लिए बढ़ाना चाहते हैं. हमें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन मैं आपके माध्यम से चाहता हूं कि 6 वर्ष के बाद जनवरी 2020 आ जाएगा और एक वर्ष का कार्यकाल आप बढ़ा देंगे. अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से आग्रह करूंगा कि जनवरी 2020 में इन संस्थाओं के चुनाव हो जाएं. अध्यक्ष महोदय, इन संस्थाओं के पास अर्थ कम होता है लेकिन वर्ष 1999 के पहले जो भी राशि विभाग भेजता था वह पूरी राशि अधिकारियों की भेंट चढ़ जाती थी लेकिन वर्ष 1999 के बाद इन संस्थाओं के चुनाव होने के बाद वृहद परियोजना हो, मध्यम परियोजना हो या लघु परियोजना हो जो भी राशि भेजते हों, जल उपभोक्ता संस्थाओं के अध्यक्ष और जल उपभोक्ता संस्थाओं के सदस्य मिलकर जब अतिवृष्टि हो जाती है और जब वृहद परियोजना, मध्यम परियोजना, लघु परियोजना की नहरें टूट जाती हैं और जब रबी की फसल करने का समय आता है और पुन: दोनों नहरों में पानी छोड़ने का विषय आता है उस समय नहरें टूटी हुई होती हैं. यह संस्थाएं बहुत कम राशि में और यहां तक की जो राशि विभाग के द्वारा दी जाती है उसमें कार्य पूर्ण न होने के बाद कुछ किसान और बड़े किसान मिलकर अपने सहयोग से उन नहरों का संधारण करके नहरों को सही करके टेल तक, आखिर तक पानी पहुंचाने का काम यह संस्थाएं करती हैं. मैं आपके माध्यम से कहना चाहता हूं कि यह संस्थाएं मध्यप्रदेश में 1865 हैं इनको मजबूत बनाने के लिए, इनको ताकतवर बनाने के लिए मैं इस विधेयक के माध्यम से एक सुझाव देना चाहता हूं कि आप इनको विभाग की ओर से जो राशि देते हो उस राशि को और बढ़ाया जाए. वह बहुत कम राशि में बहुत अच्छा काम करते हैं और चूंकि पुरानी योजनाएं बहुत अच्छी बनी हैं और यदि हम उनको संधारित कर लेंगे उनकी अच्छी देखरेख कर लेंगे तो पूरे मध्यप्रदेश में हमारा सिंचाई का रकबा बहुत अच्छा बढ़ने वाला है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इसमें यह भी कहा गया है कि 2-2 वर्ष में सदस्यों की सेवानिवृत्ति होगी. पूर्व में व्यक्ति 1 वर्ष में सेवानिवृत्त हो जाता था लेकिन 6 वर्ष की अवधि से प्रत्येक सदस्य को 2 वर्ष का कार्यकाल मिल रहा है. पूर्व में जब लॉटरी डलती थी तो किसी सदस्य को 1 वर्ष का कार्यकाल मिलता था और किसी को 2 वर्ष का समय मिलता था लेकिन आप बहुत अच्छा विधेयक लेकर आये है कि मध्यप्रदेश में जल उपभोक्ता संस्थाओं के चुनाव होंगे, इससे प्रत्येक सदस्य को 2 वर्ष का कार्यकाल अवश्य मिल जायेगा.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश में इन संस्थाओं का चुनाव अधिकारी तहसीलदार होता है. मैं चाहता हूं कि 2-2 वर्ष के कार्यकाल में जो एक तिहाई सदस्य स्वमेव सेवानिवृत्त हो जाते हैं इसमें मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि सर्वप्रथम 12 सदस्य चुने जाते हैं. प्रथम 2 वर्ष पश्चात् 4 लोग सेवानिवृत्त हो जाते हैं, फिर अगले 2 वर्ष पश्चात् और 4 लोग सेवानिवृत्त हो जाते हैं और अंतिम 2 वर्षों में 4 लोग सेवानिवृत्त हो जाते हैं. मैं आपसे कहना चाहता हूं कि आप आगामी विधान सभा सत्र में पुन: एक विधेयक लायें कि एक बार चुनाव हो जाये तो वे सभी लोग 6 वर्ष के लिए सदस्य रहें और उनमें से एक अध्यक्ष रहे क्योंकि 4 सदस्यों के चले जाने से अध्यक्ष कमजोर हो जाता है. 2 वर्ष पश्चात् 4 नये सदस्यों के आ जाने से अध्यक्ष द्वारा जो अच्छा काम किया जा रहा था, वह काम नहीं हो पाता है. मैं इस विधेयक को इस शर्त पर सर्वानुमति से पास करवाना चाहूंगा कि मंत्री जी कह दें कि आगामी जनवरी 2020 में इन सभी संस्थाओं का चुनाव हो जायेगा क्योंकि यह विधेयक बहुत अच्छा है और कृषकों तथा सिंचाई योजनाओं से जुड़ा है इसलिए इसे सर्वानुमति से पास किया जाये.
श्री कुणाल चौधरी (कालापीपल)- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं मध्यप्रदेश सिंचाई प्रबंधन में कृषकों की भागीदारी संशोधन विधेयक 2019 का समर्थन करते हुए पूरे सदन से आग्रह करूंगा कि यह एक ऐसा महत्वपूर्ण विधेयक है जो कि सीधे जनप्रतिनिधियों से जुड़ा हुआ है क्योंकि हमारी लगभग 1858 जल उपभोक्ता संस्थायें पूरे प्रदेश में हैं. पिछली बार जब इन संस्थाओं का कार्यकाल समाप्त हुआ था क्योंकि लगभग एक से डेढ़ माह उनके चुनावों में लग जाता है और उसके कारण इन संस्थाओं की अवधि को 6 माह बढ़ाने का कार्य किया गया. यदि हमारी सरकार यह संशोधन विधेयक नहीं लेकर आती तो कहीं न कहीं ये सारी जल उपभोक्ता संस्थायें जो बेहतर काम कर रही हैं और हमारा जो मूल भाव है कि हम पंचायत स्तर से काम करें, निचले स्तर से कार्य का निर्वहन हो, पूरा कार्य निचले स्तर से हो तो जब तक ये समितियां क्रियान्वित रहेंगी, तभी निचले स्तर से, हमारी इन समितियों के माध्यम से, जल उपभोक्ता संस्थाओं के माध्यम से, जो नहरें चलती हैं उनका काम बेहतर तरीके से हो सकता है. इसलिए 6 माह के विस्तार का प्रस्ताव हम लेकर आये हैं कि इनकी अवधि बढ़ा दी जाये ताकि अधिकारी वर्ग जो इन संस्थाओं को अपने हाथ में ले लेते थे तो कई बार देखने में आया है कि चूंकि अधिकारियों के पास कई कार्य होते हैं इसलिए वे इस ओर ध्यान भी नहीं दे पाते हैं. हमने कई मंडी समितियों में भी इसी प्रकार की स्थितियां देखी हैं. सामान्यत: देखने में आता है कि जनप्रतिनिधियों की इसके प्रति जवाबदेही रहती है, जवाबदारी होती है. इसमें हर 6 साल बाद चुनाव का पुन: मौका भी मिलता है तो वह बेहतर रूप से इसमें कार्य करने की कोशिश करता है, आगे बढ़ता है, जनता की सेवा किस प्रकार की जाये इस ओर ध्यान देता है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इसलिए मैं पूरे सदन से आग्रह करूंगा कि एक ऐसा विधेयक जो कृषकों से जुड़ा हुआ है इसे शर्तों के आधार पर पास करने के बजाए इसे बिना किसी शर्त के पूर्णरूपेण पास किया जाना चाहिए जिससे यह जनप्रतिनिधियों के लिए बेहतर रहेगा. इसलिए इसे पास करने के लिए मैं आप सभी से पुन: आग्रह करूंगा.
जल संसाधन मंत्री (श्री हुकुम सिंह कराड़ा)- माननीय अध्यक्ष महोदय, इस अधिनियम में जैसा कि बहादुर सिंह जी द्वारा कहा गया कि प्रदेश में सिंचाई प्रबंधन हेतु जन भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कृषकों की भागीदारी अधिनियम 1999 से प्रभावशील था. यह व्यवस्था पूर्व में थी और वर्ष 2013 में इसे परिवर्तित कर दिया गया. जब पहली बार हम यह अध्यादेश लाये तब विधान सभा चुनावों की आचार संहिता लगी हुई थी, इस कारण 1765 संस्थाओं के एक तिहाई सदस्यों के चुनाव आ गये थे. अगर हम उनका चुनाव न कराते तो वहां प्रशासक बैठ जाता और जनप्रतिनिधियों के हाथों से ये संस्थायें चली जाती और इसके बाद जैसे ही विधान सभा के चुनाव पूर्ण हुए, लोकसभा चुनावों की आचार संहिता लग गई. जब वह आचार संहिता समाप्त हुई तो हमें पुन: दूसरा अध्यादेश दिनांक 28.6.2019 को लाना पड़ा और दोनों को रेग्युलराईज करने के लिये हम सदन में इस अधिनियम को लाये हैं. मैं इसमें यही कहना चाहता हूं कि इसमें न तो सरकार का कोई खर्चा है और न ही हम मूलरूप से अधिनियम में छेड़छाड़ कर रहे हैं. जैसा कि बहादुर भाई ने कहा, कुणाल जी ने कहा कि यह एक जन-लोकहित से और जनता से जुड़ा हुआ मुद्दा है, निश्चित तौर पर.
माननीय अध्यक्ष जी ने भी मुझे आसंदी से निर्देश दिये थे कि जो संस्थाओं को राशि दी जाती है, वह बहुत कम है. इस राशि को और 2000 के पूर्व की स्थिति में जो हर दो साल में एक तिहाई सदस्य इसके रिटायर हो जाते हैं. इसलिये अनिश्चितता बनी रहती है, हम इस पर विचार कर रहे हैं. हम नया अधिनियम लाकर, उसमें संशोधन लाकर आपके सामने फिर प्रस्तुत होंगे और आपको मैं विश्वास दिलाता हूं कि इस अधिनियम के तहत बेहतर व्यवस्था की जायेगी, ताकि संस्थाएं स्वतंत्र रूप से काम कर सकें और यहां पर जल संसाधन की व्यवस्थाएं बेहतर तरीके से हो सकें. यही मेरी आपसे प्रार्थना है, मेरा पूरे सदन आग्रह है कि इसको सर्वसम्मति से पारित करने का कष्ट करें.
अध्यक्ष महोदय:- प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश सिंचाई प्रबंधन में कृषकों की भागीदारी (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2 तथा 3 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 2 तथा 3 इस विधेयक का अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
विधेयक सर्वानुमति से पारित हुआ.
4.23 बजे अध्यक्षीय घोषणा
(सदन द्वारा सहमति प्रदान की गयी.)
4.24 बजे शासकीय विधि विषयक कार्य
8. मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2019
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री जितु पटवारी) :- अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
अध्यक्ष महोदय:- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ किमध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
श्री विश्वास सारंग:- माननीय अध्यक्ष महोदय, उच्च शिक्षा मंत्री द्वारा मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक...
नेता प्रतिपक्ष(श्री गोपाल भार्गव) :- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपका ध्यान आकर्षित करा रहा हूं कि विधेयक का अभी हो रहा है और कार्यसूची में विचार के लिये भी आपने आज ही ले लिया.
अध्यक्ष महोदय:- कभी- कभी होता है, हो जाता है. (हंसी)
श्री विश्वास सारंग:- अध्यक्ष जी, निवेदन यह है कि उस पर चर्चा कल ही करायी जाये.
अध्यक्ष महोदय:- धन्यवाद, कर लो हो जाता था, कभी-कभी, और विश्वास जैसा विद्धान, जिस पर मुझे विश्वास.
श्री विश्वास सारंग:- अध्यक्ष महोदय, आग दोनों तरफ लगी है, मुझे भी उतना ही विश्वास है, आप पर.
श्री गोपाल भार्गव :- अध्यक्ष महोदय, आपने कैसे अनुमान लगा लिया कि आज ही पुर:स्थापित करेंगे और हम लोग आज ही विचार के लिये तैयार हो जायेंगे?
अध्यक्ष महोदय-- पूर्व के भी ऐसे उदारण है कभी कभी हुआ है, उसका मैंने पालन कर लिया है.
डॉ.नरोत्तम मिश्र--अध्यक्ष महोदय, मनवा आखिर में आप अपनी ही लेते हैं. मानते आप कभी नहीं हो. एक पिक्चर का गाना था ना छूने न दूंगी हाथ नजरियों से दिल भर दूंगी. (हंसी)
अध्यक्ष महोदय--हम तो बोल रहे हैं कि ठाड़े रहियो बांकेलाल (हंसी)
डॉ.नरोत्तम मिश्र--अध्यक्ष महोदय, आपके आदेश से खड़े हुए हैं, लेकिन मनवा आखिर में आप अपनी ही लेते हैं.
अध्यक्ष महोदय--आप सबका सहयोग है.
डॉ.नरोत्तम मिश्र--अध्यक्ष महोदय, इससे बड़ा विपक्ष और इससे बढ़िया सदन कभी नहीं चला.
श्री विश्वास सारंग--इनसे अच्छा अध्यक्ष (हंसी)
डॉ.नरोत्तम मिश्र--अध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश के इतिहास में इससे बड़ा विपक्ष कभी नहीं रहा. (हंसी)
वाणिज्यिक कर मंत्री(श्री बृजेन्द्र सिंह राठौर)--इसलिये गाना बनाया है कि हम बने तुम बने एक दूजे के लिये (हंसी)
श्री विश्वास सारंग--माननीय अध्यक्ष महोदय, आपका संचालन बहुत अच्छा है.
नेता प्रतिपक्ष(श्री गोपाल भार्गव)--अध्यक्ष महोदय, कायदे से एक घंटे से ज्यादा सदन रोज नहीं चलना चाहिये था. (हंसी)
श्री विश्वास सारंग--माननीय अध्यक्ष महोदय, यह आपकी जर्रानवाजी है कि चल रहा है.
अध्यक्ष महोदय--चलिये श्री विश्वास सारंग
श्री विश्वास सारंग(भोपाल दक्षिण)--माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय उच्च शिक्षा मंत्री ने मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2019 यहां पर प्रस्तुत किया है, उसके अंतर्गत संजीव अग्रवाल ग्लोबल एज्यूकेशनल विश्वविद्यालय भोपाल के स्थापना का विचार है. हमें इसमें कहीं कोई दिक्कत नहीं लगती हम भी चाहते हैं कि निजी विश्वविद्यालय आयें, पर मुख्य मुद्दा यह है कि इस सरकार की रीति-नीति क्या है ? आज सुबह छिन्दवाड़ा में सरकार विश्वविद्यालय के स्थापना का विधेयक आया था. भारतीय जनता पार्टी सहित समस्त सदन ने हमने भी उसमें समर्थन दिया और सर्वानुमति से हमने पास भी किया. क्योंकि छिन्दवाड़ा से माननीय मुख्यमंत्री जी आते हैं तो निश्चित रूप से उनका इस पूरे मामले में प्रयास भी तथा और उन्होंने उसमें इंटरविन किया और मेरे मित्र शायद उच्च शिक्षा मंत्री जी बोल भी नहीं पाये, क्योंकि माननीय मुख्यमंत्री जी ने उसमें अपना वक्तव्य दिया. माननीय मुख्यमंत्री जी जब वक्तव्य दे रहे थे तो उसमें दो तीन लाईने ऐसी आयीं जिससे मुझे लगा कि उस विधेयक और इस विधेयक के लाने में कहीं न कहीं सरकार में कंफ्यूजन है. वह सरकारी विधेयक आया सरकारी विश्वविद्यालय का विधेयक था. यह निजी विश्वविद्यालय स्थापित करने का विधेयक है. उसमें माननीय मुख्यमंत्री जी ने कहा मैंने अभी वरबटम को निकलवाया कि हम चाहते हैं कि विश्वविद्यालय और बने. चाहे सागर का हो या कहीं और का भी हो, क्योंकि यह बढ़ती हुई जनसंख्या के लिये बड़ी चुनौती है. अगर हमारे विश्वविद्यालय बनेंगे तो प्रायवेट यूनिवर्सिटीज कम बनेंगी. प्रायवेट यूनिवर्सिटीज में यह बात सही है कि कुछ अच्छी हैं, कुछ अच्छी नहीं हैं. पर यह तभी संभव है जब प्रायवेट यूनिवर्सिटीज तो नफा लेने के लिये चलाते हैं और जब यह देखेंगे कि नफा नहीं हो रहा, क्योंकि शासकीय विश्वविद्यालय खुल रहे हैं. तो यह उनके बारे में विचार करना बंद कर देंगे. हमें यह बैठकर सोचना पड़ेगा कि कितने विश्वविद्यालयों की आवश्यकता है, इस पर हम जरूर अध्ययन करेंगे. सुबह तो मुख्यमंत्री जी कहते हैं कि प्रायवेट यूनिवर्सिटीज के खुलने पर हमारी कहीं न कहीं आपत्ति है. या जो खुल रही हैं वह बहुत अच्छा संचालन नहीं कर रही हैं, उसके दो घंटे बाद प्रायवेट यूनिवर्सिटी खोलने के लिये यही सरकार एक विधेयक लेकर आती है. मुझे लगता है कि सरकार के दृष्टिकोण में और सरकार की जो लाइन है उसमें कहीं न कहीं कंफ्यूजन है. मुख्यमंत्री जी और उच्च शिक्षा मंत्री जी के दृष्टिकोण में कहीं न कहीं अंतर मुझे दिखता है जो मुझे लगता है कि सरकार में ऐसा कंफ्यूजन नहीं होना चाहिये. जैसा कि हमने कहा कि यूनिवर्सिटी आ रही हैं इसमें हमें कोई दिक्कत नहीं है. भोपाल में आ रही हैं, क्योंकि मैं भोपाल का प्रतिनिधित्व करता हूं तो मेरे लिये तो बहुत ही प्रसन्नता की बात है कि यूनिवर्सिटी आ रही हैं मैं उसका स्वागत करता हूं. पर यहां उच्च शिक्षा की मांग अनुदान पर जब बहस चल रही थी तो हमारे यशपाल सिंह जी ने दो-तीन बातें इंगित की थीं. अफसोस यह रहा कि उच्च शिक्षा मंत्री जी इस विषय में बहुत ज्यादा अपना स्पष्टीकरण या जवाब नहीं दे पाये. एक अच्छी व्यवस्था बनी है जनभागीदारी समितियों की उच्च शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले जितने भी कालेजिस हैं उसमें जनभागीदारी समिति है. जैसे ही सरकार परिवर्तित हुई एक दिन के अंदर जनभागीदारी समितियों को भंग कर दिया गया. कोई दिक्कत नहीं माननीय अध्यक्ष महोदय, राजनीतिक निर्णय होते हैं. आपकी सरकार बनी थी, आपने पुराने लोगों को भंग कर दिया. पर अध्यक्ष महोदय, अच्छा यह रहता कि आप तत्काल प्रभाव से दूसरी जनभागीदारी समितियों की स्थापना कर देते. कितनी समितियां हुईं, यह मुझे जानकारी नहीं है, लेकिन पूरी नहीं हुई यह मुझे पूरी जानकारी है. यह निजी विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ विधेयक है, मैं माननीय मंत्री जी से चाहता हूं कि 33 बन चुके हैं 34 वां ये बनने वाला है. कहीं न कहीं मेकेनिजम जरूर ऐसा डेवलप करना चाहिए कि सरकार का बहुत पीरियडिक रेगूलर इन पर नियंत्रण रह सके और इनका इंस्पेक्शन हो सके और उसके लिए जरूरी है, मैं माननीय उच्च शिक्षा मंत्री जी से चाहूंगा और मैं समझता हूं सदन मेरी बात से सहमत होगा कि ऐसी प्रायवेट यूनिवर्सिटी जिस विधानसभा क्षेत्र में हैं, वहां के विधायक को आप पदेन इसमें जरूर कुछ न कुछ स्थान दिलवाएं. मुझे लगता है सदन इससे सहमत होगा कि प्रायवेट यूनिवर्सिटीज में विधायक को जरूर उसमें डायरेक्टर का पद मिले, या जनभागीदारी समिति का अध्यक्ष बने. यशपाल जी ने भी यह बात कही थी. माननीय अध्यक्ष महोदय, यह संशोधन इसमें जरूर जोड़ना चाहिए. उसके साथ ही सही मायने में जो मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रायवेट सेक्टर में यदि यूनिवर्सिटीज आ रही है तो ठीक है, पर आदर्श स्थिति तो यह होगी कि शिक्षा का मामला और आरटीई को लेकर बहुत बात होती है, स्कूली शिक्षा में, यदि शिक्षा को लेकर गारंटी की बात है तो यह उच्च शिक्षा में भी होनी चाहिए, क्योंकि उच्च शिक्षा के माध्यम से ही युवाओं का भविष्य निर्धारण होता है, उनको रोजगार के अवसर मिलते हैं, तो कहीं न कहीं सरकार को चाहिए कि प्रायवेट यूनिवर्सिटीज को आप जितना प्रश्रय दे रहे दें, पर उसके साथ साथ यह सुनिश्चित जरूर करें कि इन आगे के दिनों में सरकारी यूनिवर्सिटीज भी आए. गोपाल भार्गव जी ने सागर की बात की और बाकी विधायकों ने भी अलग अलग स्थानों की बात की है. मैं यह चाहूंगा कि उच्च शिक्षा मंत्री जी जरूर इस बात को इंगित करें कि आगे आने वाले समय में मध्यप्रदेश के वे जिले जो बहुत सालों से अपनी यूनिवर्सिटी की मांग रख रहे हैं, वहां पर यूनिवर्सिटीज आए, जिससे कि वहां के आसपास के पढ़ने वाले युवाओं को अच्छे से शिक्षा लेने का अवसर मिल सके. इसके साथ ही हमारे उच्च शिक्षा मंत्री जी के पास खेल कूद विभाग भी है, मैं यह चाहूंगा कि मध्यप्रदेश में एक खेल से जुड़ी हुई यूनिवर्सिटीज भी आना चाहिए, मेरा ऐसा सुझाव है, आगे इस पर आप विचार करेंगे. मुझे ऐसा लगता है कि जब मध्यप्रदेश में खेल विभाग के अनुदान की बात आई थी तो बहुत सारे हमारे विधायकों ने इस बात की चिन्ता व्यक्त की थी कि मध्यप्रदेश के युवाओं को और खिलाडि़यों को मध्यप्रदेश की टीम में बहुत स्थान नहीं मिल पाते, और दूसरे राज्य के खिलाड़ी आते हैं, क्योंकि वे मध्यप्रदेश की प्रतिस्पर्धा में अपना स्थान बनाना है, हमें मेडल जीतना है तो हमारी वह मजबूरी भी रहती है, खेल कूद विभाग की वह मजबूरी भी होगी, मैं उस पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाना चाहता, पर यदि आदर्श स्थिति बनानी है और मध्यप्रदेश के खिलाडि़यों को ही यदि हमारी टीम में स्थान देना है तो इसके लिए जरूरी है कि हम उनकी नर्सिंग करें, यदि नीचे से हम उनको डेवलप करेंगे तो मुझे लगता है कि खेल कूद से जुड़ी हुई यूनिवर्सिटीज यदि मध्यप्रदेश में आएगी तो वह ज्यादा उपयोगी होगी. जैसे हमने कहा कि हमें इसमें कहीं कोई दिक्क्त नहीं है.
(अध्यक्ष महोदय के घंटी बजाने पर) माननीय अध्यक्ष महोदय, आपने घंटी बजा दी, मैं तो उससे पहले ही खत्म करने वाला था.(...हंसी)
अध्यक्ष महोदय - मैं आपको टोका तक नहीं. (...हंसी)
श्री विश्वास सारंग - अध्यक्ष महोदय, आपने इलेक्ट्रानिक तरीके से टोका है. (...हंसी) माननीय अध्यक्ष महोदय, हमें इस यूनिवर्सिटी के खुलने में कहीं कोई दिक्कत नहीं लगती, पर मैंने जो सुझाव दिए हैं, मुझे लगता है कि उच्च शिक्षा मंत्री उस पर गौर करेंगे. आगे-पीछे जब भी इनको इप्लीमेंट करने की स्थिति बने करें, बस यही है कि जो सरकारी यूनिवर्सिटीज है, उनके स्टाफ, उनकी सुख-सुविधा, उनके नियंत्रण, उनको लेकर बहुत सारी बातें आती है, उच्च शिक्षा बनने के बाद बहुत सारी धारा 52, धारा 55 कौन कौन सी कंट्रोवर्सीज लगी, मुझे लगता है कि जो संवैधानिक व्यवस्था बनी है, उसको न छेड़ते हुए उनमें जबरदस्ती का इंटरफेयर न करते हुए उच्च शिक्षा मंत्री यदि मध्यप्रदेश के कॉलेजेज और यूनिवर्सिटी की अपनी सीमाओं में रहकर चिन्ता करेंगे तो ज्यादा उपयोगी रहेगा. माननीय अध्यक्ष महोदय, हम इस विधेयक का समर्थन करते हैं.
अध्यक्ष महोदय - धन्यवाद.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - अध्यक्ष जी, यह सच है आपने नहीं टोका, पर वह एक लाइन है न संकेतों के साये में, हम सबकी वाणी चलती है, भाषण उधर मुड़ जाता है, जिस ओर आसंदी कहती है.
श्री विश्वास सारंग - अध्यक्ष महोदय, एक बात तो है, जैसे ही नरोत्तम भाईसाहब दोपहर की नींद लेकर आते हैं, उसके बाद तो शेर और शायरी का माहौल खड़ा हो जाता है. (...हंसी)
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया - ये दिनभर कहीं जा ही नहीं पाते.
अध्यक्ष महोदय - (डॉ नरोत्तम मिश्रा की ओर देखकर) और जब ये बाहर निकलकर जाते हैं, तो मुझे बड़ा सूना-सूना पन लगता है. (...हंसी)
श्री विश्वास सारंग - अध्यक्ष महोदय, इनको बुला लिया करो.
अध्यक्ष महोदय - मैं तो कई बार बोलता हूं, आप नेता प्रतिपक्ष से पूछ लीजिए मैंने कई बार बोला की जब ये चले जाते हैं तो पता नहीं कैसे शेर गायब हो जाते हैं, कैसे गीत गायब हो जाते हैं.(...हंसी)
श्री गोपाल भार्गव - अध्यक्ष महोदय, (डॉ. नरोत्तम मिश्र को देखकर) इनका 20-20 ओवर जैसा काम है. शुरू में आए तो 10-20 मिनट बल्लेबाजी की, फिर लंच में आए तो बल्लेबाजी की.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - अध्यक्ष जी, सीखा इन्हीं से है. (हंसी)
श्री चैतन्य काश्यप - अध्यक्ष महोदय, ये अभिताभ बच्चन हैं, जब भी आएंगे तो उपस्थिति दर्ज हो ही जाती है.
चिकित्सा शिक्षा मंत्री (डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ) - माननीय अध्यक्ष महोदय, विपक्ष के नेता द्वारा सी.आर. लिखी जा रही है. (हंसी)
अध्यक्ष महोदय - क्या लिखी जा रही है ?
डॉ. नरोत्तम मिश्र - अध्यक्ष महोदय, सी.आर. कह रही हो या सियार कह रही हो, कुछ समझ में नहीं आ रहा है.
श्री चैतन्य काश्यप - अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे परमीशन मांग रहा था, अगर आप परमीशन दे दें तो एक मिनट का भाषण है.
अध्यक्ष महोदय - काश्यप जी, जिनके नाम आए हैं, वह हो जाने दीजिये.
श्री गोपाल भार्गव - अध्यक्ष जी, वे मेरे विशेष आग्रह पर लौटकर आए हैं. वे बहुत दूर गए थे, उन्होंने फ्लाइट पकड़ी फिर वे आए हैं. इस कारण निवेदन है.
अध्यक्ष महोदय - मैं समय दूँगा. इनके बाद आपको परमिट करूँगा.
श्री घनश्याम सिंह (सेवढ़ा) - मैं, मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2019 का समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूँ. मैं उच्च शिक्षा मंत्री, जो नौजवान भी है, बहुत सक्रिय भी हैं, मैं उनको बहुत-बहुत बधाई दूँगा. उन्होंने छोटे से काल में उच्च शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं. प्रदेश में युवाओं को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा प्रदान करना बहुत आवश्यक है और सरकार का इस ओर पूरा ध्यान है. सरकार अपने सीमित संसाधनों से उच्च शिक्षा में जो आवश्यक सुधार हैं, वह नहीं कर सकती है, जो एक्सटेंशन करना है, वह भी नहीं कर सकती है. आज निजी विश्वविद्यालय हमारी आवश्यकता है और खास तौर से, इसलिए कि जहां देश में, जो छात्रों का औसत सकल पंजीयन उच्च शिक्षा में है, वह 25.8 प्रतिशत है जबकि मध्यप्रदेश में मात्र 21.2 प्रतिशत है तो हम पिछले वर्ष के एवरेज से पीछे हैं, इसलिए हमें नये संसाधन उपलब्ध कराने होंगे. इसके लिए पूंजी की बहुत आवश्यकता होती है, इस समय निजी क्षेत्र का सहयोग लेना कोई बुराई की बात नहीं है. मैं तो यह कहूँगा कि जो हमारे माननीय सदस्य ने आशंका व्यक्त की थी कि कहीं सरकारी विश्वविद्यालयों के हितों पर कुठाराघात तो नहीं होगा, निजी विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देने से. ऐसा बिल्कुल नहीं है बल्कि एक कॉम्प्टीशन की भावना निर्मित होगी.
अध्यक्ष महोदय, आप स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में देख सकते हैं. जबसे निजी क्षेत्र बड़ी मात्रा में इसमें आया है, तब से सरकारी स्कूलों पर भी ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा है. सरकार ज्यादा सजग हो गई है क्योंकि सरकारी स्कूलों में एडमिशन कम होने लगे थे, इसलिए यह कॉम्प्टीशन की भावना बढ़े, यह अच्छी बात है. विगत महीनों में काफी तेजी से मध्यप्रदेश में प्रगति हुई है. श्री संजीव अग्रवाल का ग्लोबल एज्युकेशन विश्वविद्यालय, भोपाल में स्थापित हो ही रहा है, इसके साथ ही, मंगलायतन विश्वविद्यालय, जबलपुर की स्थापना सर्वहारा फाउन्डेशन, नई दिल्ली द्वारा की जा रही है, जिसके अध्यक्ष हेमन्त गोयल हैं. आई.ई.एस. विश्वविद्यालय, भोपाल की स्थापना इन्फोटेक एज्युकेशन सोसायटी, भोपाल कर रही है, जिसके अध्यक्ष श्री बी.एस.यादव हैं और सेम ग्लोबल विश्वविद्यालय, रायसेन की स्थापना गुरु हरगोविन्द सोसायटी, भोपाल द्वारा की जा रही है. ये सभी निजी विश्वविद्यालय हैं, जो मूल अधिनियम 2007 का है, उसमें जो विनियामक आयोग का प्रावधान किया गया है. उस आयोग के द्वारा परीक्षण करने के उपरान्त, स्थापना के प्रस्ताव का मूल्यांकन किया गया और एप्रूवल किया गया, उसके बाद ही किया जा रहा है, इसलिए इसमें कोई संशय नहीं है. अगर इसमें निजी क्षेत्र आगे आता है तो हमारे सरकारी प्रयासों को मदद ही मिलती है, इसलिए मैं सरकार को बहुत-बहुत बधाई दूँगा और खास तौर से हमारे युवा उच्च शिक्षा मंत्री श्री जितु पटवारी जी को भी. ये जो 4 विश्वविद्यालय स्थापित हो रहे हैं, इनमें व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के साथ कौशल विकास आदि से संबंधित पाठ्यक्रम भी सम्मिलित हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में हमारे प्रदेश में विद्यार्थियों को मदद मिलेगी. मध्यप्रदेश को अगर आधुनिक बनाना है तो उच्च शिक्षा को सुधारना होगा. हमें अगर बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर निकलना है तो निश्चित रूप से हमें अन्य चीजों के साथ-साथ उच्च शिक्षा पर भी जरूर ध्यान देना होगा, इसलिए मैं इस विधेयक का समर्थन करता हूँ. अध्यक्ष महोदय, बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री चैतन्य कुमार कश्यप (रतलाम सिटी) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं उच्च शिक्षा मंत्री जी से कहना चाहूंगा कि जो निजी विश्वविद्यालय बन रहे हैं, इनको विनियामक आयोग देखता है, परंतु यह लंबी प्रक्रिया है क्योंकि विश्विद्यालय को स्थापित होने में पांच से दस साल लगते हैं और प्रतिवर्ष का जो उनका आर्थिक घाटा है, उसको वहन करने की क्षमता का उसी साल के अंदर आंकलन होना चाहिये, नहीं तो उसके अंदर जो बच्चे पढ़ते हैं, लंबे भविष्य में जाकर वहां आंकलन नहीं होता है और दो, चार, पांच साल के बाद उसका भार शासन पर आता है और उससे युवाओं का भविष्य भी बिगड़ता है. शिक्षा की गुणवत्ता के साथ में उसके आर्थिक आंकलन का मैकेनिज्म एक बड़ा महत्वपूर्ण है क्योंकि और जो यूनिवर्सिटी प्रायवेट चालू हो रही हैं, इनमें रिसर्च के ऊपर और अनुसंधान के ऊपर बहुत कम काम किया जाता है. शोध व अनुसंधान यूनिवर्सिटी का सबसे पहला कार्य है, खाली कोर्सेस चलाना या कोर्सेस पढ़ाना ही इनका कार्य नहीं है, इनके आर्थिक पक्ष को खासकर देखा जाये, इसी महत्वपूर्ण विषय को बताने के लिये मैंने आपसे अनुमति मांगी थी. माननीय अध्यक्ष महोदय, आपने बोलने का समय दिया बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री फुंदेलाल सिंह मार्को -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं एक मिनट बोलना चाहता हूं.
अध्यक्ष महोदय -- नहीं, सॉरी अब मैं समय नहीं दे रहा हूं. माननीय मंत्री जी आप बोलें.
खेल एवं युवा कल्याण एवं उच्च शिक्षा मंत्री(श्री जितू पटवारी) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, बिल्कुल सही है कि देश का ग्रास रेस्यो, जैसे अभी मेरे पूर्ववक्ता ने कहा कि 25.05 प्रतिशत है और विश्व के उन्नत देशों का ग्रास रेस्यो 84 प्रतिशत के आसपास है और मध्यप्रदेश का लगभग 20 प्रतिशत के आसपास का है, यह बड़ी चिंता का विषय है. चूंकि मैंने पहले भी कहा था, जब मैं अनुदान की मांगों पर बोल रहा था कि शिक्षा में ग्रास रेस्यो बढ़ाने के लिये यह जरूरी है कि बारहवीं के बाद बच्चे कॉलेज में ज्यादा से ज्यादा जायें, इसके लिये यह स्वाभाविक है कि आपको संस्थान बढ़ाने पड़ेंगे. यह भी सही है कि निजी भागीदारी के बिना पूरे प्रदेश में सिर्फ सरकार यह व्यवस्था बना लेगी और एकदम से कोई बहुत बड़े बजट के साथ शिक्षा में कुछ काम कर दे, तो मैं समझता हूं कि यह भी विचार का विषय है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, आदरणीय विश्वास जी ने सही कहा है कि छिंदवाड़ा में जब आपने प्रायवेट यूनिवर्सिटी, सरकारी यूनिवर्सिटी, शासन की यूनिवर्सिटी खोली है तो आपने कहा कि निजी विश्वविद्यालय तो अपने लाभ और हानि के विषय पर चलते हैं, ऐसा मुख्यमंत्री जी ने कहा है. मैं समझता हूं कि अगर किसी ने सही तरीके से परीक्षण किया गया होगा तो छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय की मूल धारणा यह थी कि पहला आदिवासी अंचल में कोई विश्विद्यालय खुला है, क्योंकि सरकार बनने के बाद जो नीति, जो ग्रास रेस्यो को ठीक करने की सबसे ज्यादा आवश्यकता है वह झाबुआ में और हमारे आदिवासी अंचल के जितने भी जिले आते हैं, उनमें है. आप वहां से सिवनी और छिंदवाड़ा के आसपास के जितने भी जिले आते हैं, आदिवासी अंचल में हमारे आदिवासी बच्चों को बहुत सहायता मिले, इसके लिये सरकार ने चिंता जाहिर की है. जबलपुर में पहला निजी विश्वविद्यालय खुल रहा है, इतना बड़ा शहर था इतनी आसपास की बड़ी आबादी थी, फिर भी क्या कारण थी कि वहां पर नहीं खुल पाया ? मैं समझता हूं कि इसकी आवश्यकता को आप महसूस कर रहे होंगे. बिना निजी भागीदारी के हम शिक्षा के ग्रास रेस्यो को देश के रेस्यो से मिला दें, यह असंभव है और इसको संभव करने के लिये निजी भागीदारी को सहयोग करना पड़ेगा और यह सरकार की प्राथमिकता का विषय है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे यह भी अनुरोध करता हूं कि माननीय सदस्य ने अभी जन भागीदारी की बात कही है, यह बिल्कुल सही है कि जन प्रतिनिधि होता है और उसका एक अपना दायित्व होता है और उसका कर्तव्य होता है कि जो संस्थान चल रहे हैं, उनके अच्छे और बुरे में उसका कहीं न कहीं कोई योगदान रहे, तो इस भाव को मैं समझता हूं और मेरे विचार और सरकार के भी विचार आपसे मिलते हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, सागर की जहां तक नेता प्रतिपक्ष जी ने सुबह भी बात की थी और अभी फिर से बात आई है. सागर में विश्वविद्यालय खोलने की बात के पहले प्रदेश का पहला महिला विश्वविद्यालय खुले इसको प्राथमिकता देने की बात हुई है और मुख्यमंत्री जी ने भी जैसा कहा कि हम इसको प्राथमिकता पर ले रहे हैं. मैं समझता हूं कि आपने भी इसका स्वागत किया है और मैं इसके लिये आपको धन्यवाद देता हूं. एक बहुत अच्छी बात आदरणीय विश्वास सांरग जी ने कही है कि स्पोर्टस की गतिविधियों को लेकर कोई यूनिवर्सिटी प्रदेश में खुलना चाहिये. कोई विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी होना चाहिये जिससे कि स्पोर्टस के टीचर स्कूलों में चाहिये, स्पोर्टस के टीचर कॉलेजों में चाहिये, अन्य प्रायवेट एकेडमी में चाहिये, हमारे कोच बनाने हैं, अलग-अलग स्पोर्टस के जिले स्तर पर जितने भी हम नये-नये एकेडमी डाल रहे हैं और भी प्रायवेट सेक्टर के काम खेल कूद के माध्यम से हो रहे हैं, उसमें ऐसे बच्चे जो उस विश्वविद्यालय में ट्रेंड होकर जाये और उनको नौकरी भी मिले और उनको रोजगार भी मिले और वह खेल को बढ़ाने में सहयोग करें, मैं समझता हूं कि इसको मैं आने वाले वर्ष में मध्यप्रदेश की सरकार और मुख्यमंत्री जी खुद इस पर ध्यान दे रहे हैं. मुझे विश्वास जी आपको यह बताते हुये खुशी हो रही है कि स्पोर्टस को बढ़ावा देने के लिये हमारे उच्च शिक्षा विभाग का अगर आपने बजट सही पढ़ा हो तो पहली बार साठ करोड़ रूपये का स्पेसिफिक बजट रखा गया है कि विश्वविद्यालयों के अंदर हम स्पोर्टस की गतिविधियों को कैसे बढ़ावा दें, महाविद्यालयों के अंदर हम स्पोर्टस की गतिविधियों को कैसे बढ़ावा दें, यह पहला नवाचार हुआ है.
आपने और भी बहुत सी बातें की, चुनौती तो है, इसमें नहीं कह सकते जैसे आर्थिक अनियमितता होती है, विश्वविद्यालयों में कमजोरी आती है तो नेचुरल है कि संस्थान धीरे-धीरे बैंकों के कर्ज से चलते हैं और भी बहुत सी परेशानियां आती हैं उस पर निगरानी और उस तरीके का पहले डलने से पहले उसका एक प्रॉवीजन किया जाना चाहिये, यह काश्यप जी का अच्छा सुझाव है. मैं इसको भी सकारात्मकता से लेता हूं, पर यह जरूर है कि उच्च शिक्षा के मापदण्ड नकारात्मक नहीं हो सकते. धारा 52 और भी जो आपने कहा कि उच्च शिक्षा का मंत्री बनने के बाद होता है, वह भाव शिक्षा मंत्री होने के साथ नहीं आयेंगे, यह मैं भरोसा दिलाता हूं. शिक्षा सकारात्मकता की ओर 3 कदम आगे बढ़ने की मुझे अंदर से, आत्मा से हृदय से चलने की आदेश करती है, तो कोशिश होती है जहां अनियमिततायें हों वहां पर शासन अपना काम करें पर हो सब सकारात्मक.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2019 (क्रमांक 26 सन् 2019) पर विचार किया जाये.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
अब विधेयक के खंडों पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि यथासंशोधित खण्ड 2 इस विधेयक का अंग बने.
यथासंशोधित खण्ड 2 इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र सूत्र विधेयक का अंग बने.
श्री विश्वास सारंग-- अध्यक्ष जी, यह सर्वानुमति से.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया-- हमने विरोध थोड़ी किया है.
अध्यक्ष महोदय-- आने दो, उधर आने दो, वहां तक पहुंच जाऊं.
श्री गोपाल भार्गव-- अध्यक्ष जी, अभी तक के जितने भी विधेयक आपने पारित करवाये हैं, सभी सर्वानुमति से हुये हैं और यह पहली बार हो रहा है.
अध्यक्ष महोदय-- अभी तक जितने भी विधेयक पारित हुये हैं, वह सभी सर्वानुमति से अंकित किये जायें.
श्री जितु पटवारी-- अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2019 पारित किया जाय.
अध्यक्ष महोदय-- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2019 पारित किया जाय.
प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) संशोधन विधेयक, 2019 पारित किया जाय.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक सर्वानुमति से पारित हुआ.
(9) मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान परिषद्(संशोधन) विधेयक,2019(क्रमांक 9 सन् 2019)
चिकित्सा शिक्षा मंत्री ( डॉ.विजयलक्ष्मी साधौ ) - अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करती हूं कि मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान परिषद्(संशोधन) विधेयक,2019 पर विचार किया जाय.
अध्यक्ष महोदय - प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान परिषद्(संशोधन) विधेयक,2019 पर विचार किया जाय.
श्री अजय विश्नोई ( पाटन ) - माननीय अध्यक्ष महोदय, कुछ चीजें कालातीत हो जाती हैं समय के साथ-साथ उसमें परिवर्तन आवश्यक है. यह अधिनयम उसी उद्देश्य से लाया गया है. 1987 में जब यह अधिनिमय बना था तो स्वाभाविक रूप से स्वास्थ्य विभाग एक था बाद में स्वास्थ्य और चिकित्सा एजुकेशन अलग-अलग हो गया और राज्य चिकित्सा परिषद्, चिकित्सा शिक्षा के तहत् काम करती रही और कर रही है, परंतु जो पहले हेल्थ डिपार्टमेंट के समय सबसे बड़ा आदमी डायरेक्टर हेल्थ होता था तो जब परिषद् काम न कर रही हो तो उसकी शक्तियां डायरेक्टर,हेल्थ को दे देते थे. तो अब जब चिकित्सा परिषद आ गई है मेडिकल ऐजुकेशन विभाग में, वहां कोई डायरेक्टर, हेल्थ है नहीं. वहां सबसे बड़ा अधिकारी होता है आयुक्त,चिकित्सा शिक्षा. इसलिये कुल मिलाकर इसका उद्देश्य इतना ही है कि जहां डायरेक्टर, हेल्थ लिखा था वहां आयुक्त, चिकित्सा शिक्षा लिख दिया जाये. मैं समझता हूं सभी लोग इस बात से सहमत हैं. धन्यवाद.
नेता प्रतिपक्ष ( श्री गोपाल भार्गव ) - एक डिपार्टमेंटल अधिकारी को सुपरसीट करके एक आई.ए.एस. अधिकारी बैठा देंगे इसके अलावा क्या होना है क्या सुधार आयेगा ?
डॉ.विजयलक्ष्मी साधौ - माननीय अध्यक्ष महोदय, सम्मानित विधायक विश्नोई जी ने जो बात कही कालातीत शब्द, अब कालातीत आपने ही कर दिया तो हमें क्यों दोष दे रहे हैं.
श्री अजय विश्नोई - दोष नहीं दिया है वस्तुस्थिति से अवगत कराया है.
अध्यक्ष महोदय - वस्तुस्थिति से अवगत कराया है.
डॉ.विजयलक्ष्मी साधौ - 1987 का अधिनियम था. 1990 में ये प्रकाशित हुआ. 1996 में ये लागू हुआ उसके बाद इतने साल तक, यह कहना भी आपका उचित नहीं है कि डायरेक्टर नहीं हैं. डायरेक्टर, मेडिकल एजुकेशन भी हैं और कमिश्नर, मेडिकल एजुकेशन की नियुक्ति हुई है. इसमें सिर्फ यही हुआ है कि इस अधिनियम की धारा 4 की उपधारा 2 में संचालक,चिकित्सा सेवा की जगह आयुक्त का नाम आ गया था लेकिन इसके मूल अधिनियम 1987 की धारा 29 की उप धारा (1) में संशोधन के लिये हम आये हैं कि यहां पर संचालक,चिकित्सा सेवा के स्थान पर आयुक्त, चिकित्सा सेवा इसको किया जाये तो जैसा कि आप लोगों ने बोला तो मैं समझती हूं कि इसको पास कर देना चाहिये.
अध्यक्ष महोदय - प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान परिषद्(संशोधन) विधेयक,2019 पर विचार किया जाय.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
अब विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 2 इस विधेयक का अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
डॉ.विजयलक्ष्मी साधौ - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करती हूं कि मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान परिषद्(संशोधन) विधेयक,2019 सर्वानुमति से पारित किया जाय.
अध्यक्ष महोदय - प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान परिषद्(संशोधन) विधेयक,2019 पारित किया जाय.
प्रश्न यह है मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान परिषद्(संशोधन) विधेयक,2019 पारित किया जाय.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक सर्वानुमति से पारित हुआ.
(10) मध्यप्रदेश माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 (क्रमांक 11 सन् 2019)
जनसंपर्क मंत्री (श्री पी.सी.शर्मा) - अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
अध्यक्ष महोदय - प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
श्री केदारनाथ शुक्ल (सीधी) - अध्यक्ष महोदय, यह सदन विधेयकों पर विचार कर रहा है. इस सदन का जो सबसे बड़ा काम है वह विधेयकों पर विचार करना ही है. हम "विधेयक" के नाम पर ही "विधायक" कहे जाते हैं. हमारे "विधायक" पद को सार्थक करने वाला जो शब्द है वह "विधेयक" है, जिसको हम धारण करते हैं और इस नाते विधायकों को तो इस मामले में बहुत गंभीर रहना चाहिए.
यह मध्यप्रदेश माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के मामले में और तो सब बातें ठीक चली हैं. राज्य सरकार ने बड़ी चतुराई के साथ जो संसद के अध्यक्ष महोदय के अधिकार थे. चाहे वह लोक सभा के रहे हों, चाहे राज्य सभा के, उनको अपने पास में सीमित कर लिया है. संसद के दोनों सदनों के अध्यक्षों के अधिकार को अपने पास ले लिया है. लेकिन एक बात मुझे और कहना है कि अगर कहीं इन्होंने 5 में संशोधन कर लिया होता, हमारे प्रतिपक्ष के नेता तो इसके मेम्बर हैं. अगर कहीं विधायकों को भी मेम्बर बना लिया गया होता, 5 विधायक भी हो जाते तो इसकी सार्थकता होती. विधायकों की कोई ख्वाहिश नहीं है. इसमें इतने अधिक मेम्बर हैं, लेकिन उनमें कहीं भी विधायक नहीं हैं. केवल हमारे नेता प्रतिपक्ष जी को जरूर स्थान मिला है.
अध्यक्ष महोदय, मैं आग्रह तो यह करना चाहता हूं कि आज तो यह पास हो जाएगा. हमने संशोधन नहीं दिया है लेकिन विधायकों इस विश्वविद्यालय में महत्व दिया जाना चाहिए था. विधायकों की राय को महत्व दिया जाना चाहिए था. केवल इसी विश्वविद्यालय भर में नहीं, विश्वविद्यालय कोई भी हों, विधायक उसके अनिवार्य घटक होने चाहिए तभी जाकर विश्वविद्यालयों की कार्य समिति, कार्य परिषद् ठीक ढंग से कार्य कर पाती है और उसमें जनता की आवाज आ पाती है. गॉरिजियंस की आवाज आ पाती है, विद्यार्थियों के अभिभावकों की आवाज आ पाती है. इसमें और सब है. सभी तरह के लोगों को शामिल किया गया है विधायक को छोड़कर, इसलिए मेरा निवेदन यह है कि इस विधेयक को अभी पास कर लीजिए लेकिन पुनर्विचार करिए और विधायकों को जोड़ने पर विचार करिए. मैं इस पर क्या कहूं, विरोध करूं कि समर्थन करूं? परन्तु अभी तो मैं इसका कंडिशनल समर्थन कर रहा हूं और आप इसको भी पारित कर लीजिए. कम से कम 5 विधायक इसके मेम्बर हों, इस बात की शर्त आगे चलकर जोड़ी जानी चाहिए. धन्यवाद.
श्री पी. सी. शर्मा -- माननीय अध्यक्ष महोदय यह संशोधन लाने की आवश्यकता इसलिए पड़ी जैसा कि अभी विधायक शुक्ला जी ने कहा संसद राज्य सभा या लोकसभा के अध्यक्ष नामिनेट करें. एक लोक सभा के और राज्यसभा के सदस्य को नामांकित करें. लेकिन इसमें ऐसा हुआ कि जब भी वहां पर पत्र गया तो उसका कोई रिस्पांस नहीं आया वहां से कोई भी सदस्य कभी नामांकित नहीं हुआ है. यह हमेशा ही लंबित रहा है. इसी तरह से इसमें है कि 5 ऐसे अहिन्दी समाचार पत्र जिसमें मलयालम और मनोरमा भी है. इस तरह के समाचार पत्रों को भी पत्र लिखा जाता था, मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा जाता था कि आप इन समाचार पत्रों से एक पत्रकार संपादक को नामांकित करें. लेकिन उनकी तरफ से कभी रिस्पांस नहीं आता था तो यह सीट खाली पड़ी रहती थी. इसी तरह के अन्य जो संवर्ग हैं जो कि संशोधन दिया गया है उसमें भी यह ही स्थिति बनती थी. अब उसमें मुख्यमंत्री जी या सरकार उन वरिष्ठ पत्रकारों को जो भी होंगे उन समाचार पत्रो के उनको नामांकित करेंगे. इसी तरह से अनुशंसाओं का उसमें दिया हुआ है , इसी तरह से संसद या राज्य सभा का भी प्रावधान रखा गया है कि वह सांसद मध्यप्रदेश के ही होंगे तो मैं समझता हूं कि इससे उस यूनिवर्सिटी को ज्यादा लाभ होगा. इसलिए मुख्यमंत्री जी या शासन एक राज्य सभा से और एक लोक सभा से नामांकित कर पायेंगे. इसलिए इसकी संख्या को भी घटाकर 21 किया गया है ताकि यह एक कंपोजिट परिषद बने.
श्री विश्वास सारंग -- अध्यक्ष महोदय इसमें पहले जो संसद सदस्य थे चाहे वह लोक सभा के हों या राज्य सभा के हों, वहां के अध्यक्ष नामांकित करते थे अब इस प्रकार से क्योंकि इस यूनिवर्सिटी के चांसलर हैं वह वाइस प्रेसीडेंट आफ इण्डिया हैं, हमारा यह मानना है कि इसमें जो भी नाम आयें वह अध्यक्ष के द्वारा ही आना चाहिए, हर जगह पर राज्य सरकार इंटर्फिरियेंस रखे यह अच्छी परंपरा नहीं है. क्योंकि चांसलर वाइस प्रेसीडेंट आफ इण्डिया है जिस यूनिवर्सिटी का वहां पर केन्द्र की तरफ से ही स्पीकर को ही नामनिर्देशित करना चाहिए मंत्री जी यह संशोधन आप कर लें.
श्री पी सी शर्मा -- पहले इसमें यह था कि पहले लोक सभा के अध्यक्ष और राज्य सभा के अध्यक्ष देंगे तब उसमें यह था कि वह कहीं के भी दे सकेंगे. लेकिन इसमें यह सीमित किया गया है कि मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व हो. मध्यप्रदेश का सांसद हो चाहे वह लोक सभा का हो या राज्य सभा का हो.
श्री विश्वास सारंग --हम आपकी इस बात से सहमत हैं लेकिन इसमें इतना हो जाय कि नाम स्पीकर की तरफ से आयें.
अध्यक्ष महोदय -- ऐसा बोलिये कि इसमे ऐसा हो कि जब राष्ट्रीय है तो लोक सभा या राज्य सभा के स्पीकर बोलते हैं तो जिस राज्य में है तो उस राज्य का स्पीकर बोले, आप उसको ऐसा बोलिये.
श्री विश्वास सारंग -- मैं तो आपके ही माध्यम से बोल रहा हूं. हम तो बिल्कुल ठीक हैं, आपकी इस बात से भी सहमत हैं कि इस मामले में प्रदेश की विधान सभा के अध्यक्ष का भी तो कुछ होना चाहिए.
श्री केदारनाथ शुक्ला -- इसमें ऐसा हो कि अध्यक्ष मधयप्रदेश विधान सभा की ओर से विधायकों के नाम जायें.
अध्यक्ष महोदय -- अब आप सही जगह पर आये हैं.
श्री विश्वास सारंग -- मेरा इसमे एक निवेदन है कि यूनिवर्सिटी चल रही है अभी इसमें ऐसा कुछ नहीं है कि यह संशोधन या विधेयक नहीं आयेगा तो यूनिवर्सिटी रूक जायेगी मेरा ऐसा मानना है कि स्पीकर मध्यप्रदेश विधान सभा के मामले में भी कोई बात हो तो यह पहले प्रवर समिति के पास इस विधेयक को भेज दें उस पर वहां परविचार हो जाय और उसके बाद मे यह फिर से आ जाय यह ही निवेदन है.
श्री पी सी शर्मा -- अध्यश्र महोदय मेरा कहना है कि आपकी तरफ से नेता प्रतिपक्ष हैं तो इसमें, मेरा इसमें यह कहना है कि जो बात आ रही है कि पिछले दो साल से इसकी परिषद की बैठक नहीं हो पायी है और उसकी वजह यह ही रही है कि..
नेता प्रतिपक्ष ( श्री गोपाल भार्गव)-- अध्यक्ष महोदय इसमें यह हो सकता है कि इसकी बैठक करने के लिए एक समय सीमा निर्धारित करें, मेरा इसमें यह भी मानना है कि इसमें बहुत सी जटिलताएं हैं इसमें बहुत से प्रश्न उत्पन्न हो रहे हैं. मैं आपसे आग्रह करूंगा कि इसे अभी प्रवर समिति के सुपूर्द कर दें उसकी बाद जैसी भी रिपोर्ट आ जाय तो ठीक है.
श्री केदारनाथ शुक्ला -- यह एक अच्छी संसदीय परंपरा होगी प्रवर समिति को सौंपना.
अध्यक्ष महोदय -- ठीक बात है. मै इससे सहमत हूं. प्रवर समिति को सौंपा जाय.
श्री पी सी शर्मा -- मेरा इसमें एक ही कहना है कि पिछले दो साल से इसकी परिषद की बैठक नहीं हो पायी है.
अध्यक्ष महोदय -- मैं समझ गया, यह पिछले दो साल से पड़ा था, लेकिन जो चीज समझ में आ रही है. माननीय सदस्य भी उल्लेखित कर रहे हैं मैं भी उल्लेखित कर रहा हूं कहीं न कहीं जिस राज्य में जो चीज स्थापित है उस राज्य की भी तो भागीदारी होना चाहिए. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता यह विश्वविद्यालय कहां पर स्थापित है ?
श्री पी सी शर्मा -- यह भोपाल मध्यप्रदेश में है.
अध्यक्ष महोदय -- तो क्या मध्यप्रदेश की भोपाल राजधानी का इसमें हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए, इसलिए माननीय मंत्री जी इसे प्रवर समिति में जाने दें, ताकि मेरी भी बातें उसमें आ जाय.
श्री विश्वास सारंग -- अध्यक्ष महोदय, आपको बहुत बहुत धन्यवाद.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया -- अध्यक्ष महोदय, पूरे सदन की ओर से आपको धन्यवाद.
श्री गोपाल भार्गव -- अध्यक्ष महोदय, मैं चूंकि लंच के बाद थोड़ा सा विलम्ब से आ पाया और मैंने यह कहा था कि अभी तक जितने भी विधेयक आये हैं, हम सभी लोग उनको सर्वानुमति से पारित करें. लेकिन मेरे सदस्यों का और साथियों का कहना है कि जो मध्यप्रदेश मोटरयान कराधान (संशोधन) विधेयक,2019 है, इस पर उन्हें कुछ आपत्ति है, क्योंकि बहुत ज्यादा इसमें कराधान किया गया है. इस कारण से हम लोगों की असहमति है. मैं डिवीजन नहीं मांग रहा हूं, मतदान नहीं करवा रहा हूं..
लोक निर्माण मंत्री (श्री सज्जन सिंह वर्मा) -- अध्यक्ष महोदय, गाड़ी आगे निकल गई है. यह परम्परा मत डालो भैया.
लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री (श्री तुलसीराम सिलावट) -- अध्यक्ष महोदय, यह विधेयक पास हो चुका है.
अध्यक्ष महोदय -- चलिये हो गया. इस पर चर्चा नहीं हो रही है.
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री जितु पटवारी) -- अध्यक्ष महोदय, एक मिनट, माफी चाहते हुए. मेरी आपत्ति है कि आपके सोने के कारण पूरे प्रदेश पर यह भार आ गया, इसके लिये जिम्मेदार कौन हैं, यह तो बताओ आप.
अध्यक्ष महोदय -- चलिये, बात वह नहीं है. (श्री गोपाल भार्गव, नेता प्रतिपक्ष के उठने पर) गोपाल जी, आप बिराजिये. ठीक है.
श्री गोपाल भार्गव -- (श्री जितु पटवारी, उच्च शिक्षा मंत्री की तरफ देखते हुए)अगर आपका बड़ा मन नहीं है, तो फिर हम अभी संशोधन लाएंगे.
अध्यक्ष महोदय -- गोपाल जी, आप बिराजिये.
श्री गोपाल भार्गव -- फिर कल से वो ही क्रेडिट हम लोगों के हाथ में रहेगी.
5.16 बजे अध्यक्षीय घोषणा
माननीय सदस्यों के लिये सदन की लॉबी में चाय की व्यवस्था की जाना.
अध्यक्ष महोदय -- माननीय सदस्यों के लिये सदन की लॉबी में चाय की व्यवस्था की गई है, अनुरोध है कि सुविधानुसार चाय ग्रहण करने का कष्ट करें.
5.17 बजे शासकीय विधि विषयक कार्य (क्रमशः)
(8) मध्यप्रदेश अधिवक्ता कल्याण निधि (संशोधन) विधेयक, 2019
(क्रमांक 12 सन् 2019) पर विचार
विधि एवं विधायी कार्य मंत्री (श्री पी.सी.शर्मा) -- अध्यक्ष महोदय, मैं,प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश अधिवक्ता कल्याण निधि (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
अध्यक्ष महोदय -- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश अधिवक्ता कल्याण निधि (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
एक ही माननीय सदस्य को मैं परमिट कर रहा हूं, क्योंकि घड़ी के हिसाब से माफ करियेगा. श्री देवीलाल धाकड़.
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव)-- अध्यक्ष महोदय, मैं विधि एवं विधायी कार्य मंत्री जी एवं गृह मंत्री जी का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं कि प्रदेश के अधिवक्ताओं की लम्बे समय से यह मांग चल रही है और वे एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट के लिये मंत्रिगणों से भी मिले हैं. मुख्यमंत्री जी से भी मिले हैं, क्योंकि प्रदेश के अधिवक्ता अपने आपको कभी कभी असुरक्षित महसूस करते हैं. पक्षकारों के लिये जब वे न्यायालयों में खड़े होते हैं, तो बहुत से लोग उनके विरोधी भी हो जाते हैं और कभी कभी घटनायें भी इस कारण से होती हैं. तो इस कारण से आवश्यक है कि जब इतने विधेयकों पर चर्चा हो रही है, तो वह भी आप ले आते. मंत्री जी, आपने उनके प्रतिनिधि मण्डल को सहमति दी है.
विधि एवं विधायी कार्य मंत्री (श्री पी.सी.शर्मा)-- अध्यक्ष महोदय, एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट इस पर मंत्रिमण्डल में चर्चा हो चुकी है और कुछ उसमें ऐसे बिन्दु आये थे कि और क्या पहल की जाये और किस तरह से उसको स्ट्रांग किया जाये. जो अभी आपने बात कही है, उसी का समर्थन करते हुए, इसके संदर्भ में अभी एक बैठक भी पूरे मध्यप्रदेश के अधिवक्ताओं की यहां पर हुई थी मिंटो हाल में. उसमें बहुत से प्रस्ताव आये हैं और जजेस के आये हैं एवं एडवोकेट्स के आये हैं. इन सबका संकलन करके जब भी मंत्रिमण्डल की बैठक होगी, उसमें यह आयेगा, तो ये वचन पत्र में है और वचन पत्र में आदरणीय मुख्यमंत्री जी ने इसको दिया हुआ है. इसलिये इसको आना है, तय है, आना है. पर उसमें कुछ बिन्दु और उसको स्ट्रांग करने के लिये हैं. तो मैं समझता हूं कि जब भी अगला समय आयेगा, तो उसमें यह आ जायेगा.
अध्यक्ष महोदय -- चलिये, ठीक है, विषय आ गया. धन्यवाद.
श्री गोपाल भार्गव -- अध्यक्ष जी, इनकी सीनियर सेक्रेटरीज की कमेटी की जब मीटिंग हो, उसके बाद आपकी केबिनेट हो, तो आप आर्डीनेंस कर दें, ठीक है सत्र खत्म हो जायेगा, आप अध्यादेश से कर दें. बाद में फिर जब अगला सत्र आयेगा, तो फिर आप विधेयक लेकर आना.
श्री पी.सी.शर्मा -- इस पर विचार करेंगे.
श्री देवीलाल धाकड़ (एडवोकेट) (गरोठ) -- अध्यक्ष महोदय, माननीय विधि एवं विधायी कार्य मंत्री, शर्मा जी ने मध्यप्रदेश अधिवक्ता कल्याण निधि अधिनियम, 1982 को संशोधित करते हुए मध्यप्रदेश अधिवक्ता कल्याण निधि (संशोधन) विधेयक,2019 को प्रस्तुत किया है. यह आवश्यक है, परन्तु मैं कुछ आवश्यक सुझाव देना चाहता हूं. पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश का युवा शासकीय और अशासकीय नौकरियों में जगह नहीं मिलने के कारण लॉ करके वकालात के क्षेत्र में आया है. आपने अपने वचन पत्र में बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने का आश्वासन दिया है, हालांकि ये बेरोजगार नहीं हैं, परंतु इनकी स्थिति भी संतोषजनक नहीं है. तहसील स्तरीय और जिला स्तरीय न्यायालयों में अधिकांश अधिवक्ता ऐसे हैं, जिनको अपना ऑफिस मेंटेन करने में, लाइब्रेरी मेंटेन करने में बड़ी दिक्कतें आ रही हैं. इस विधेयक में माननीय उच्च न्यायालय में 50 रुपये के स्थान पर 100 रुपये और अधीनस्थ न्यायालयों में 20 रुपये के स्थान पर 40 रुपये का स्टाम्प शुल्क लगाने का संशोधन प्रस्ताव पेश किया गया है. अध्यक्ष महोदय, यह आवश्यक है, परंतु इतना ही पर्याप्त नहीं है. राजस्थान में अधिवक्ताओं के लिए कई प्रकार की कल्याण योजनाएं है. उनका अध्ययन किया जाना चाहिए. आखिर ये जो स्टाम्प शुल्क अधिवक्ता लगाते हैं, इन्हीं के आधार पर ये इनके कल्याण की योजनाएं हैं. ये पर्याप्त नहीं हैं, तेरा तुझको अपर्ण, क्या लागे मेरा. शासन को और भी कुछ व्यवस्था करनी चाहिए.
अध्यक्ष महोदय, एक सुझाव मेरा यह है कि कई अधिकारी और कर्मचारी, जो लॉ किए हुए रहते हैं, रिटायरमेंट के बाद वे वकालत के क्षेत्र में आते हैं. इसलिए उनको भी इन्हीं कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलता है. एक तरफ उनको पेंशन प्राप्त होती है और दूसरा, इन कल्याणकारी योजनाओं का भी लाभ मिलता है, उस स्थिति में वह रुचि न लेते हुए, केवल टाइम पास करने की उनकी स्थिति रहती है. इस पर भी विचार किया जाना चाहिए. जो अधिवक्ता प्रारंभ से इस योजना से जुड़े हुए हैं और जो रिटायरमेंट के बाद आते हैं, उनको बराबर लाभ मिलता है, इस पर विचार करना चाहिए.
अध्यक्ष महोदय, एक सुझाव मेरा यह है, वैसे नेता प्रतिपक्ष महोदय ने एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट वाली बात रखी है, क्योंकि अधिवक्ताओं की सुरक्षा न्यायालय परिसर में ही नहीं, न्यायालय परिसर के बाहर भी आवश्यक है. पक्ष में, विपक्ष में, दोनों तरफ पैरवी करते हुए जो पक्ष प्रभावित होता है, उस अधिवक्ता के प्रति उसका ठीक प्रकार का भाव नहीं रहता है, इसलिए न्यायालय परिसर के बाहर भी अधिवक्ताओं की सुरक्षा की गांरटी होनी चाहिए. इसलिए इस संशोधन प्रस्ताव का समर्थन करते हुए यह आवश्यक सुझाव मैंने दिए हैं, आपने सुना है, इसलिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री विनय सक्सेना (जबलपुर उत्तर) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, बहुत ही अच्छा प्रस्ताव माननीय मंत्री जी के द्वारा प्रस्तुत किया गया है. मैं इसके समर्थ में हूँ. किसी मामले में कोई पक्षकार किसी की पैरवी करना चाहता है तो जो स्टाम्प लगते हैं, वे 50 रुपये और 20 रुपये के लग रहे हैं. इनको 50 रुपये की जगह 100 रुपये और 20 रुपये की जगह 40 रुपये किया गया है, इसका प्रस्ताव विधान सभा में आया है. अधिवक्ताओं की जो स्थिति है, जिसके बारे में माननीय धाकड़ जी ने भी बताया, यह सही है कि बहुत से अधिवक्ताओं की तो स्थिति यह भी नहीं होती कि जरूरत पड़ने पर वे इलाज करा पाएं. कई अधिवक्ताओं की स्थिति यह भी नहीं होती कि दुघर्टना होने पर उनका परिवार उनका इलाज करा पाएं. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए अधिवक्ताओं के लिए जो एक कल्याण निधि का संकलन किया जाता है, जो इकट्टी होती है, उससे उनके लिए जो बहुत सारी सुविधाएं सरकार कर सकती है. यह प्रस्ताव अच्छा है, मैं इसका समर्थन करता हूँ. धन्यवाद.
श्री शरदेन्दु तिवारी (चुरहट) -- आदरणीय अध्यक्ष जी, मध्यप्रदेश कल्याण निधि में संशोधन के लिए यह विधेयक लाया गया है. अधीनस्थ न्यायालयों में स्टाम्प ड्यूटी 20 रुपये से बढ़ाकर 40 रुपये और उच्च न्यायालय में 50 रुपये से बढ़ाकर 100 रुपये करने का प्रस्ताव है.
अध्यक्ष महोदय, हम सब जानते हैं कि न्याय की मूल अवधारणा अधिवक्ता, पक्षकार, न्यायालय तथा न्यायाधीश से होकर जाती है, जिसमें अधिवक्ता सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है. उनकी बीमारी या मृत्यु होने पर परिवार को सहायता का प्रावधान हम इससे करते हैं. वर्ष 2012 में अधिवक्ता पंचायत बुलाकर माननीय शिवराज सिंह जी ने नए अधिवक्ताओं की मृत्यु पर दो लाख रुपये की सहायता और बीमार होने पर एक लाख रुपये की सहायता का प्रावधान किया था, उस पर यह सरकार इन्फ्लेटरी आधार पर बढ़ाने का काम कर रही है. इसका हम स्वागत करते हैं. लेकिन मुझे थोड़ा अफसोस है कि हमारे विधि मंत्री जी यदि वित्त मंत्री जी से कुछ निधि इस विषय पर ज्यादा ले लेते तो अच्छा रहता. यह भार तो जनता पर जाना है. आपके पास बजट भी था, क्योंकि मैं देख रहा था कि उच्चतम न्यायालय में मध्यप्रदेश के अतिरिक्त अधिवक्ता 5 हैं, उप महाधिवक्ता 6 हैं, पैनल में 92 हैं, स्टेंडिंग काऊंसिल पांच हैं, जबकि पिछली सरकार केवल एक अतिरिक्त महाधिवक्ता, एक उपमहाधिवक्ता और 4 स्टेंडिंग काऊंसिल से काम चला रही थी, जिसमें 19.8 लाख रुपये खर्च हो रहे थे. आज हम 2 करोड़ 7 लाख रुपये खर्च कर रहे हैं. उसके बाद भी हम यह पैसा अधिवक्ताओं के कल्याण के लिये दे सकते थे. उसमें और भी बातें हैं, जो राजनैतिक आधार पर नियुक्तियां हुई हैं, मैं उन पर बात नहीं करना चाहता. मेरा निवेदन यह है कि हम और ज्यादा सुविधाएं दें, क्योंकि अभी जो आप करने जा रहे हैं उसमें ढाई लाख रुपये दवाइयों के लिये और पांच लाख रुपये मृत्यु पर उनके परिवार को देंगे. इसको और बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि बहुत सारे अधिवक्ता केवल इसी आधार पर ही काम कर पा रहे हैं. बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री पी.सी. शर्मा - मैं आभार मानना चाहूंगा आदरणीय देवीलाल धाकड़ जी का और आदरणीय तिवारी जी का कि उन्होंने अच्छे सजेशंस दिये है. इसकी एक ट्रस्टी कमेटी होती है. मैं समझता हूं आपको ज्ञात है कि इस ट्रस्टी कमेटी में पावर काउंसिल ऑफ मध्यप्रदेश इसके मेम्बर होते हैं, वित्त के सेक्रेटरी होते हैं और यह ट्रस्टी कमेटी का यह प्रस्ताव है कि यह बढ़ाया जाना चाहिये. वर्ष 2013 में भी बढ़ाया गया था और यह जो पैसा आता है, क्योंकि जो वकालतनामा होता है, उस पर यह स्टाम्प लगते हैं, उससे जो पैसा इकट्ठा होता है इसी से वकीलों के कल्याण की सभी योजनायें चलती हैं. जो आपने अभी बताया कि 1 लाख रुपये इस निधि से और 1 लाख रुपये सरकार देती है. इस तरह से 2 लाख रुपये अभी तक दिये जाते थे, जिसको बढ़ाने का विचार चल रहा है, जो आपने खुद ही कहा और आपने कहा कि इतने एडवोकेट्स हो गये और इतना खर्चा हो गया, तो यह भी कहीं न कहीं जब इतने एडवोकेट्स उसमें लग गये हैं, क्योंकि केसेज बढ़ गये हैं, तो कहीं न कहीं इनका कल्याण है.
श्री शरदेन्दु तिवारी - अध्यक्ष महोदय, 22 तारीख को मिसलेनियस लगा था. केवल 10 केस लगे थे.
श्री पी.सी. शर्मा - अध्यक्ष महोदय, इतने वकील हो रहे हैं. जो धाकड़ जी ने उठाया वह आपने भी कहा, तो कहीं न कहीं यह एडवोकेट्स ज्यादा होंगे. हाईकोर्ट में, अलग-अलग कोर्ट्स में यह ज्यादा लगेंगे, तो निश्चित तौर पर एक तरह से मैं समझता हूं और जो आप कह रहे हैं कि उनका भला होना चाहिये, यह उसमें निहित है. मेरा यह कहना है कि जो और चीजें हैं, बार काउंसिल जो इसकी ट्रस्टी कमेटी है, वह लोग जो भी सुझाव देंगे, क्योंकि उन्हीं सुझावों पर यह चलता है. यह पैसा उनके सुझाव पर ही खर्च होता है. मुझे उम्मीद है कि हम लोग इस निधि के माध्यम से उनका ज्यादा फायदा कर सकेंगे, ज्यादा भला कर सकेंगे, इसलिये इस विधेयक को पारित किया जाना चाहिये.
अध्यक्ष महोदय - प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश अधिवक्ता कल्याण निधि (संशोधन) विधेयक 2019 पर विचार किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
अब विधेयक के खण्ड पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2 तथा 3 इस विधेयक के अंग बनें.
खण्ड 2 तथा 3 इस विधेयक के अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
विधि एवं विधायी मंत्री (श्री पी.सी. शर्मा) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश अधिवक्ता कल्याण निधि (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
अध्यक्ष महोदय - प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ.
प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश अधिवक्ता कल्याण निधि (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक सर्वानुमति से पारित हुआ.
(12) मध्यप्रदेश माध्यस्थम् अधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2019 (क्रमांक 13 सन् 2019)
विधि एवं विधायी कार्य मंत्री (श्री पी.सी. शर्मा) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश माध्यस्थम् अधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
अध्यक्ष महोदय - प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश माध्यस्थम् अधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
श्री केदारनाथ शुक्ल (सीधी) - माननीय अध्यक्ष महोदय, यह संशोधन विधेयक माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय के प्रकाश में आया है. परिस्थितियां भी ऐसी थीं जिनके कारण इसको लाना बहुत आवश्यक हो गया था. क्योंकि जब इस संस्था का गठन किया गया और आपस के विवादों के निराकरण की, अगर उस पर राशि निश्चित नहीं है, तो एक समस्या पैदा होती थी कि हम कितनी राशि तक में मध्यस्थता करेंगे, कितनी राशि तक में उनके बीच में समझौता कराएँगे, नेगोसिएशन करेंगे. इन सब बातों के लिए जिस केस को यहाँ इन्होंने लीड किया है उस पर माननीय उच्च न्यायालय ने भी बात कही थी. माननीय उच्च न्यायालय की भावनाओं के मुताबिक यह संशोधन विधेयक आया है. मैं इस विधेयक का समर्थन करता हूँ और यह जनहित में है इसलिए इसे पारित किया जाए. बहुत बहुत धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय-- श्री जजपाल सिंह “जज्जी” (अनुपस्थित)
श्री शशांक श्रीकृष्ण भार्गव(विदिशा)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय विधि मंत्री जी द्वारा मध्यप्रदेश माध्यस्थम अधिकरण अधिनियम 1983 में संशोधन लाया गया है. मैं इसका बहुत बहुत स्वागत करता हूँ. अभी तक पूर्व में यह देखा गया है कि कभी भी कोई भी विवाद ठेकेदार और सरकार के बीच में हो जाया करता था तो वह कोर्ट में जाता था और एक लंबी अवधि खिंच जाती थी जिससे कि नागरिकों को भी लाभ नहीं मिलता था और सरकार भी यह कह कर पल्ला झाड़ देती थी कि मामला लिटिगेशन में है. इस अधिनियम से यह सभी विसंगतियाँ दूर होंगी इसके लिए मैं बहुत बहुत साधुवाद देता हूँ. धन्यवाद, आपने बोलने का अवसर दिया.
5.27 बजे
अध्यक्षीय घोषणा.
सदन के समय में वृद्धि संबंधी.
अध्यक्ष महोदय-- आज की कार्यसूची के पद क्रमांक 8 के उप पद 14 तक कार्य पूर्ण होने तक सदन के समय में वृद्धि की जाय. मैं समझता हूँ सदन इससे सहमत है.
(सदन द्वारा सहमति प्रदान की गई)
श्री पी.सी.शर्मा-- माननीय अध्यक्ष महोदय, आदरणीय विधायक केदारनाथ जी और भार्गव जी ने इसमें विचार रखे मैं उनका धन्यवाद करता हूँ और इसमें यह कहना चाहता हूँ कि इसमें जो धारा घ थी,
“विवाद से अभिप्रेत है, 50,000 रुपये या उससे अधिक मूल्यांकन के अभिनिश्चित धन के दावे से संबंधित कोई विवाद जो किसी संकर्म संविदा या उसके भाग के निष्पादन या अभिनिष्पादन से उद्भूत होता है.,”
इसकी परिभाषा को विस्तृत रूप दिया गया है और इसमें केवल यह जोड़ा गया है, “अभिनिश्चित धन अथवा अभिनिश्चित किए जाने योग्य धन के दावे से संबंधित कोई विवाद जो किसी संकर्म संविदा या उसके भाग के निष्पादन या अभिनिष्पादन से उद्भूत होता है.,”
इसमें कुल मिलाकर यह है कि कोई भी विवाद होता था उसमें कोई फिक्स है कि किसी बिल्डिंग का विवाद उठ रहा है तो उसमें मालूम है कि उसमें कितना पैसा लगा है और कितने का विवाद है. लेकिन अगर हम देख लें, जैसे कोई नहर है और उस पर कोई पुलिया बन रही है या जो बैरियर्स हैं, तो बैरियर्स में यह पता नहीं कि इसका कितना वहाँ पर पैसा इकट्ठा होगा, यह विवाद कितने का है. इन बातों को लेकर इसका विस्तार किया गया है और मैं समझता हूँ निश्चित तौर पर विवादों को निपटाने में इसमें आसानी होगी. मैं निवेदन करूँगा कि इस संशोधन विधेयक को पारित किया जाए.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश माध्यस्थम अधिकरण (संशोधन) विधेयक 2019, पर विचार किया जाय.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
अध्यक्ष महोदय-- अब विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 2 इस विधेयक का अंग बना.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
श्री पी.सी.शर्मा-- अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूँ कि मध्यप्रदेश माध्यस्थम अधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
अध्यक्ष महोदय-- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ मध्यप्रदेश माध्यस्थम अधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश माध्यस्थम अधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ.
विधेयक पारित हुआ.
5:30 बजे
नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 (क्रमांक 18 सन् 2019)
पशुपालन मंत्री (श्री लाखन सिंह यादव)-- अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूँ कि नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
अध्यक्ष महोदय--प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
श्री अजय विश्नोई (पाटन)--माननीय अध्यक्ष महोदय, एक बार मैं फिर से दोहरा देना चाहता हूँ कि माननीय केदारनाथ शुक्ल जी ने जो बात कही थी कि वाकई में हम एमएलए कहलाते हैं क्योंकि हम मेम्बर ऑफ लेजिसलेटिव असेम्बली हैं. कई बार यह देखने में आया है कि कई विधायकों से पूछताछ की गई कि आपको विधायक क्यों कहते हैं तो उसका जवाब कई बार लोग नहीं दे पाते हैं इसलिए इस विषय को इतने भरे हुए सदन में बार-बार दोहराने से कम से कम अब हमारे साथी विधायक इस विषय पर सही वक्तव्य दे पाएंगे. इस हिसाब से यह चर्चा अच्छी रही, विधेयकों पर लगातार चर्चाएं हुई हैं.
अध्यक्ष महोदय, यह संयोग है कि जिस समय यह मूल विधेयक प्रस्तुत हुआ था उस समय मैं विभागीय मंत्री था मैंने तब इसको प्रस्तुत किया था. तब यह कल्पना नहीं थी कि बहुत जल्दी इसका विस्तार इतना होने वाला है कि प्रायवेट कॉलेजों की इस क्षेत्र में डिमाण्ड आने लग जाएगी पर उनको समाहित करने के लिए एक लाइन जोड़ देना चाहिए, उसका एक अनुबंध रखा जाना चाहिए. आज वह मांग आने लगी है. इस मांग को भविष्य को देखते हुए आपने इसमें संशोधन करना चाहा है यह संशोधन अपने आप में उचित है इसके लिए मैं समर्थन देता हूँ और कहता हूँ कि इसे कर लें पर साथ-साथ यह भी कहना चाहता हूँ कि यह सब तकनीकी विषय हैं तो तकनीकी विषय पर जब भी कोई कॉलेज आने की कोशिश करे तो हमारी शर्तें इतनी कड़ी होना चाहिए कि उसमें अध्ययन के लिए जो छात्र जाएंगे उनका किसी प्रकार से तकनीकी हृास न होने पाए. इस तरह की व्यवस्थाएं और चिंताएं करेंगे. मैं इसके समर्थन में अपने वक्तव्य को यहीं विराम देता हूँ. धन्यवाद.
5.32 बजे अध्यक्षीय घोषणा
मध्यप्रदेश माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 (क्रमांक 11 सन् 2019 ) प्रवर समिति को सौंपा जाना.
अध्यक्ष महोदय-- मध्यप्रदेश माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 (क्रमांक 11 सन् 2019 ) प्रवर समिति को सौंपा गया है.
मध्यप्रदेश विधान सभा प्रक्रिया तथा कार्य संचालन संबंधी नियमावली के नियम 68 (1) के अधीन प्रवर समिति में दोनों पक्षों के 8 सदस्य होंगे. विधि मंत्री इस समिति के पदेन सदस्य होंगे.
समिति का गठन शीघ्र किया जाएगा.
5.33 बजे
शासकीय विधि विषयक कार्य (क्रमश:)
पशुपालन मंत्री (श्री लाखन सिंह यादव)-- अध्यक्ष महोदय, इस विधेयक में धारा 4 (1) में आंशिक संशोधन किया गया है. पशु चिकित्सा और मत्स्य पालन विज्ञान शिक्षा देने वाला महाविद्यालय है यह पूर्व का है इसमें कोई नया महाविद्यालय नहीं खोला जाना है. चूंकि आज डिमाण्ड है, आवश्यकता है तो निश्चित तौर पर इसमें आंशिक संशोधन किया है. पशु चिकित्सा और मत्स्य पालन विज्ञान में शिक्षा देने वाला नवीन शासकीय, अशासकीय महाविद्यालय स्थापित किया जा सकेगा. मुझे लगता है विश्नोई जी भी सहमत हैं. मैं निवेदन करता हूँ कि इस विधेयक को पारित किया जाए.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्न यह है कि नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
अध्यक्ष महोदय- अब, विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
प्रश्न यह हैकि खण्ड 2 इस विधेयक का अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2 इस विधेयक का अंग बना.
अध्यक्ष महोदय--प्रश्न यह है कि खण्ड इस विधेयक का अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
अध्यक्ष महोदय--प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
श्री लाखन सिंह यादव--माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूँ कि नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
अध्यक्ष महोदय--प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
प्रश्न यह है कि नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया जाए.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक सर्वानुमति से पारित हुआ.
5:35 बजे
मध्यप्रदेश माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2019 (क्रमांक 11 सन् 2019) प्रवर समिति को सौंपा जाना (क्रमश:)
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ. गोविन्द सिंह)--अध्यक्ष महोदय, हमें लगभग तीन वर्ष का विधान सभा का अनुभव है. शायद हम लोगों ने पहली बार आपका फैसला सुना हैं. आपने पास कर दिया सभी को सर्वमान्य है. ऐसा मुद्दा नहीं था जो कि प्रवर समिति के लिए भेजा जाए. आपका आदेश है तो शिरोधार्य है, लेकिन ऐसा अभी तक हुआ नहीं है. यहां आप भी रहें हैं हम भी रहे हैं और भार्गव जी तो हम से पहले के हैं.
अध्यक्ष महोदय-- संसदीय कार्य मंत्री जी ठीक है आपने निवेदन किया है आप विराजिए. मैं जरा दूसरी बात बोल दूं. यह तो अभी एक विश्वविद्यालय पर किया है मेरा ऐसा मानना है कि जिस क्षेत्र में महाविद्यालय या विश्वविद्यालय हैं वहां के सबंधित विधायक को वहां का मनोनीत सदस्य होना चाहिए ऐसा मेरा मानना है. मैंने एक और इंगित किया है. इतना बड़ा विषय नहीं था. वह तो एक मिनट में हो जाएगा. आप कल बैठकर कर लें कल की कल ला दें तो मैं कल कर लूंगा. बात यह नहीं है. हमारे जो माननीय अधिकारीगण इसको बनाते हैं वह इस बात का ध्यान नहीं रखते कि जिस विधान सभा में यह पारित होने जा रहा है क्या वहां के विधायकों का ध्यान रखा गया है. मेरा इशारा सिर्फ उस और है उसे आप लोग अन्यथा न लें.
डॉ. गोविन्द सिंह-- अध्यक्ष महोदय, यदि आपने कहा है तो हम मान लेते हैं.
श्री गोपाल भार्गव-- डॉक्टर साहब यह अध्यक्ष जी की व्यवस्था है.
डॉ. गोविन्द सिंह-- मैं उस पर टिप्पणीं नहीं कर रहा हूं. मैं तो एक इतिहास बता रहा हूं कि पहली बार इतिहास बना है.
श्री गोपाल भार्गव-- लोकतांत्रिक इसलिए भी है. मैं इसलिए कह रहा हूं कि आपके जो विधेयक होते हैं.
डॉ. गोविन्द सिंह-- अध्यक्ष महोदय, आपसे हमारा अनुरोध था कि हम संशोधन लगाते. आप स्वीकार कर लेते.
श्री गोपाल भार्गव-- आपके वरिष्ठ सचिवों की जो कमेटी होती है उससे आगे केबिनेट से हो जाता है. मुझे लगता है कि हम सभी लोगों की उसमें एक प्रकार से हिस्सेदारी रखें, अपने सुझाव रखें, विचार रखें तो यदि प्रवर समिति की परम्परा होती है तो यह अपने आप में एक गौरव की बात है. हमारे संसदीय प्रजातंत्र के लिए, कम से कम आप लोगों के लिए उसमें विचार विनिमय करने का अवसर मिलेगा.
अध्यक्ष महोदय-- क्या आप अभी संशोधन करना चाहते हैं.
श्री गोपाल भार्गव--अध्यक्ष महोदय, मैं यह कहना चाहता हूं कि पहले पूर्व में नहीं हुआ है तो हम नहीं करें इसका अर्थ क्या होगा.
डॉ. गोविन्द सिंह-- अध्यक्ष महोदय, जब आपने कहा है तो कल का विचार हो जाएगा. हम कल वित्तमंत्री जी से चर्चा करने के बाद आपसे निवेदन कर लेंगे.
श्री गोपाल भार्गव--अध्यक्ष महोदय, यह आपकी अल्प समय में बहुत अच्छी रूलिंग आई हैं.
5:38 बजे सभापति महोदय (श्री यशपाल सिंह सिसौदिया) पीठासीन हुए.
5:38 बजे शासकीय विधि विषयक कार्य (क्रमश:)
मध्यप्रदेश लोक स्वास्थ्य (संशोधन) विधेयक, 2019 (क्रमांक 20 सन् 2019)
लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण (श्री तुलसीराम सिलावट)-- सभापति महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश मध्यप्रदेश लोक स्वास्थ्य (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाय.
सभापति महोदय-- मैं, प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश लोक स्वास्थ्य (संशोधन) विधेयक, 2019 पर विचार किया जाय.
श्री अजय विश्नोई (पाटन)-- सभापति महोदय, मैं माननीय मंत्री जी को बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने इस विधेयक संशोधन को लाकर एक बहुत ही मानवीय पहलू को छूने का प्रयास किया है और इस अवसर पर मुझे एक बहुत पुरानी चीज याद आ रही है. मैं उसका उल्लेख आज यहां सदन में करना चाहता हूं. एक समय था जब हर बड़े शहर में कहीं न कहीं कुष्ठ आश्रम हुआ करते थे आजकल वह धीरे-धीरे लोप हो गए हैं क्योंकि जिस तरीके से कुष्ठ लोप हुआ है कुष्ठ रोगी भी लोपित हो गए हैं. शासन की कुछ व्यवस्थाएं भी अभी इसी कारण बंद हो गई हैं. एक जमाना था जब हम लोग सेवा का कार्य करने जाते थे जैसे आज की तारीख में अनाथालय में जाते हैं या वृद्धा आश्रम में जाते हैं उसी प्रकार से हम कभी कुष्ठ आश्रम में भी सेवा के लिए जाया करते थे. 25 से 30 साल पहले हम लोगों ने वहां पर एक रोटरियों के साथ में मिलकर शासन की व्यवस्था में उनके सहयोग करने के लिए कुछ काम किए थे उसके संदर्भ में एक पुस्तिका छपी थी.
5.40 बजे
{अध्यक्ष महोदय (श्री नर्मदा प्रसाद प्रजापति (एन.पी.) पीठासीन हुए.}
श्री अजय विश्नोई -- पुस्तिका छपी तो उसमें मुझसे कहा गया कि आप अपनी कलम से इसमें कुछ लिख दीजिये. उसमें मैंने जो कुछ लिखा था वह अलग है लेकिन उसकी शुरूआत की दो-तीन लाईनें मुझे आज भी याद हैं. जो मैं आपको बताना चाहूंगा और उस समय वे लाईनें कितनी मौजूं हुआ करती थीं, यह मैं आपको जरूर बताना चाहता हूं. मैंने अपनी कलम से जहां से शुरूआत की थी उसमें लिखा था कि- ''चार चक्के पर फिसलता हुआ एक पटिया, पटिये पर भंग मानुषमूर्ति और उसके भंग हाथ में लटका हुआ एक डिब्बा और उसके अंग पर लिपटी हुई पट्टियां, वे पट्टियां देखकर आप द्रवित हो जाते हैं और उस कुष्ठरोगी के डिब्बे में कुछ सिक्के डालते हैं और इस बात की चिंता करते हैं कि आपका हाथ उसको या उसके डिब्बे को छू न जाये''
माननीय अध्यक्ष महोदय, यह उस समय की वास्तविक पीड़ा थी कि लोगों के मन में भ्रम था और भ्रम यह था कि कुष्ठरोग छूने से फैलता है और यह भ्रम इतना मजबूत था कि उसके संदर्भ में हमने कानून बना दिया और एक घोर अमानवीय कानून बनाया. इतने वर्षों तक यह हमारी किताबों में लिखा रहा, यह भी हमारे लिए बड़ा सोचनीय विषय है. हमने उसे बता दिया कि आप जब तक डॉक्टर से पांच रुपये देकर सर्टिफिकेट नहीं लाते हैं कि आपको कुष्ठरोग नहीं है, तब तक आप समाज में उठ-बैठ नहीं सकते और यदि डॉक्टर ने आपको लिखकर दे दिया कि आपको कुष्ठरोग है तो उसके बाद आप खेल के मैदान में नहीं जा सकते, स्कूल नहीं जा सकते, पढ़ने नहीं जा सकते, पुस्तकालय से किताब नहीं ले सकते और यदि किसी किताब का आपने उपयोग कर लिया है तो उस किबात को कोई दूसरा नहीं पढ़ सकता. इतना अमानवीय कानून ? अस्पृश्यों के साथ भी कभी इतना घोर अन्याय नहीं हुआ होगा, जितना अन्याय हमने कुष्ठरोगियों के साथ इस अध्यादेश के माध्यम से किया है. माननीय अध्यक्ष महोदय, कहानी तो लंबी चौड़ी लिखी हुई है परंतु उसके विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है. जितने भी इसके उपबंध हैं उनको शायद लोप करने की बात कही गई है और वह बात इसी भाव के साथ कही गई है कि यह निश्चित रूप से गलत था, अमानवीय था. आज उसका संशोधन हो रहा है इसलिए मुझे प्रसन्नता है कि हम इसका संशोधन सदन में प्रस्तुत कर रहे हैं और पुरानी भूल को सुधार रहे हैं. ऐसे वक्त पर जैसा कि मैंने माननीय मंत्री जी को बधाई दी, मैं पूरे सदन से निवेदन करना चाहूंगा कि सर्वानुमति से इस विधेयक को पास किया जाये. धन्यवाद.
श्री घनश्याम सिंह (सेवढ़ा)- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं मध्यप्रदेश लोक स्वास्थ्य (संशोधन) विधेयक, 2019 के समर्थन में खड़ा हुआ हूं. अभी जैसा कि हमारे वरिष्ठ साथी अजय जी ने कहा कि यह बहुत ही अमानवीय प्रावधान था और अब उसकी धारा 79, 80, 81, 82 और 83 का लोप किया जा रहा है, यह स्वागतयोग्य है. यहां मैं एक बात और कहना चाहूंगा कि उद्देश्यों और कारणों के कथन में आप देख सकते हैं कि रिट याचिका (सिविल) क्रमांक 1151/2017 विधिक नीति के लिए, विधि सेंटर विरूद्ध भारत संघ के संदर्भ में यह संशोधन आया है. माननीय उच्चतम न्यायालय में यह याचिका चल रही है उसमें सरकार की ओर कमिटमेंट किया गया था, उसके पालन में यह संशोधन विधेयक आया है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इस संदर्भ में मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि इसमें बहुत ही अमानवीय प्रावधान थे और उनके लिए आज यह संशोधन लाया गया है, जो कि स्वागतयोग्य है लेकिन इतने दिनों तक विधायिका का ध्यान इस ओर नहीं गया, विधायिका से मेरा तात्पर्य संसद और सभी प्रदेशों की विधान सभाओं से है. यह भी एक बड़ी लज्जा की बात है कि हमारा ध्यान इस ओर नहीं गया और माननीय उच्चतम न्यायालय में जब रिट याचिका दायर की गई तब पूरे देश की सभी विधान सभाओं में ये संशोधन लाए जा रहे हैं. यह विधायिका के लिए लज्जा की बात है. मैं मानता हूं कि विधायिका सर्वोच्च है लेकिन कभी-कभी न्यायपालिका को हमें याद दिलाना पड़ता है और तब हम अपने कर्त्तव्यों का पालन कर पाते हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं केवल एक बात और कहकर अपनी बात को समाप्त करूंगा कि कुष्ठरोग, टी.बी. जैसे अन्य रोग जीवाणुओं द्वारा फैलने वाली बीमारी हैं. पूरी दुनिया में, भारत में तथा मध्यप्रदेश में भी अब ऐसी बीमारियों का असर कम हो गया है. अब बीमारियों का पैटर्न बदल गया है. अब जीवनशैली से संबंधित बीमारियां ज्यादा खतरनाक हो गई हैं हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ ये सभी जीवनशैली से संबंधित बीमारियां हैं और अब जीवाणुओं से फैलने वाली बीमारियों पर पूरे विश्व में नियंत्रण कर लिया गया है. कुष्ठरोग साध्य है और अब कुष्ठरोगियों के साथ भेदभाव किया जाए, यह बहुत अमानवीय है इसलिए इस विधेयक का मैं पूरा समर्थन करता हूं. आपने मुझे बोलने का अवसर दिया, धन्यवाद.
कुँवर विजय शाह (हरसूद)- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह विषय बहुत ज्यादा बोलने का नहीं है. मैं मंत्री जी को धन्यवाद दूंगा कि एक सामाजिक पाप, जो बरसों से लोग झेलते आए, उसको समाप्त करने का श्रेय आपको जा रहा है. देरी से ही सही एक अच्छा कदम हम लोगों ने यहां पर उठाया है. लेकिन माननीय अध्यक्ष जी, इन कुष्ठ रोगियों की सेवा में लगे हुए एक से डेढ़ हजार कर्मचारी ऐसे हैं, जो इनकी सेवा करते-करते ओवर एज़ हो गये हैं. मेरा केवल एक लाईन का निवेदन है कि वह भी उस समय, जब लोग उनको छूते नहीं थे. वह उनकी सेवा करते थे, केवल एक से डेढ़ हजार संविदा कर्मचारी हैं. कृपया उनके बारे में भी कुछ साचेंगे तो हमें लगेगा कि जो कुष्ठ रोगियों की सेवा कर रहे थे, उन कर्मचारियों का भी भला आप करेंगे. इसी उम्मीद के साथ, मैं इसका समर्थन करता हूं.
श्री आशीष गोविंद शर्मा(खातेगांव):- माननीय अध्यक्ष जी धन्यवाद. मैं इस अधिनियम में संशोधन का समर्थन करता हूं. वास्तव में एक समय में भारत-भूमि पर कुष्ठ रोग को एक देवीय प्रकोप माना जाता था और कहीं न कहीं यह धारणा भी प्रचलित थी कि यह वंशानुगत होता है. हमारी पीढ़ी के पहले के यह नियम बने हुए हैं और इन नियमों को देखकर आज लगता है कि उस समय इन कुष्ठ पीडि़त व्यक्ति को कितनी प्रताड़ना सहन करना पड़ती थी और उसे बाद में प्रमाण-पत्रबनवाना पड़ता था कि मैं अब कुष्ठ-रोगी नहीं रहा. उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था और उसको ऐसी जगह पर रहना पड़ता था, जहां पर कुष्ठ-पीडि़त लोग निवास करते थे. आज भी हम लोग सड़कों पर ट्रालियों पर बैठकर और भिक्षावृत्ति करते हुए देखते हैं तो लगता है कि वास्तव में उनके साथ कितना अमानवीय व्यवहार उस समय हुआ करता था. जब विज्ञान की खोजों ने यह सिद्ध किया कि यह एक जीवाणु-जनित रोग है. यह तो न वंशानुगत होता है और न ही यह संक्रामक रोग की तरह यह फैलता है. तब जाकर धीरे-धीरे इस समाज ने इस बात को स्वीकार किया कि कुष्ठ-रोगी के साथ भी सामान्य जीवन जिया जा सकता है.
आज माननीय मंत्री जी, जिस अधिनियम में संशोधनों को लेकर आये हैं. उसके लिये उनको धन्यवाद ज्ञापित करता हूं. निश्चित ही समाज को ऐसे कानून बनाना चाहिये, जो समाज के साथ पुराने हो गये हैं, जिनमें समय के साथ बदलाव की आवश्यकता है. अंग्रेजों के जमाने के बने हुए कानूनों में यदि हम आज की वर्तमान परिस्थितियों में संशोधन करते हैं तो यह उन पीडि़त लोगों के साथ न्याय है जो इनका दंश बरसों से भुगतते हुए आ रहे हैं. निश्चित ही कुष्ठ-रोगियों के हक में हम यह जो संशोधन लेकर आये हैं. यह एक नये भारतीय समाज की नयी परिभषा को गढ़ेगा. आपने बोलने का समय दिया, बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री तुलसीराम सिलावट:- माननीय अध्यक्ष महोदय, जब हम समग्र मध्यप्रदेश के विकास और प्रगति की बात करते हैं तब ही समग्र विकास संभव है, समग्र विकास में समाज का हर तबका, हर वर्ग सम्मिलित हो लेकिन एक तबका कई वर्षों से वंचित था, उसको हम और आप सब जानते हैं. उस वर्ग को आज सब ने जोड़ने का प्रयास किया. सम्माननीय अजय विश्नोई जी ने, जो अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं. मैं अपनी भावनाओं को उनकी भावनाओं में सम्मिलित करता हूं. विजय शाह जी ने जो विचार व्यक्त किये उनको धन्यवाद देता हूं, आशीष जी ने अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं, उनको भी धन्यवाद देता हूं और सम्माननीय घनश्याम सिंह जी ने जो बात कही है उनको भी धन्यवाद.
हम और आप सभी जानते हैं कि कुष्ठ-रोग एक सकारात्मक रोग है. लगभग 99 प्रतिशत लोगों में इस बीमारी से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता होती है. नियमित एवं पूर्णकालिक उपचार से कुष्ठ-रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है. मध्यप्रदेश पब्लिक एक्ट- 1949 में ऐसी कई धाराएं थीं, जो कुष्ठ रोग पीडि़त व्यक्तियों के लिये भेदकारी है, इन धाराओं को जो कुष्ठ-रोग से पीडि़त व्यक्तियों को मानसिक पीड़ा देती थी. ऐसी धाराओं में, माननीय सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के पालन में हम सब ऐसे प्रावधानों को विलोपित करते हैं.
मेरा आप सभी से अनुरोध है कि यह विधेयक पवित्र भावना, पवित्र सोच से लाया गया है इसे सर्वसम्मति से पारित किया जाये.
कुंवर विजय शाह:- एक-डेढ़ हजार संविदा कर्मचारी हैं, उनके बारे में भी कुछ कहेंगे तो बेहतर होगा.
श्री तुलसीराम सिलावट:- अध्यक्ष महोदय, जब विजय शाह जी कोई भावना व्यक्त करते हैं, क्योंकि मैं इनको कॉलेज के जमाने से जानता हूं कि इनकी बोलनी और कथनी में कोई अंतर नहीं होता है. आपकी भावनाओं का पूरा सम्मान किया जायेगा.
अध्यक्ष महोदय--अब विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि 2 से 6 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 2 से 6 इस विधेयक के अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
पूर्ण नाम तथा अधिनियम सूत्र विधेयक का अंग बने.
विधेयक सर्वानुमति से पारित हुआ
अध्यक्ष महोदयः- विधान सभा की कार्यवाही बुधवार, दिनांक 24 जुलाई, 2019 को प्रातः 11.00 बजे तक के लिये स्थगित.
अपराह्न 5.52 बजे विधान सभा की कार्यवाही बुधवार, दिनांक 24 जुलाई, 2019 (श्रावण 2, 1941) के पूर्वाह्न 11.00 बजे तक के लिये स्थगित की गई.
भोपाल : अवधेश प्रताप सिंह
दिनांक- 23 जुलाई, 2019 प्रमुख सचिव
मध्यप्रदेश विधान सभा