मध्यप्रदेश विधान सभा

 

की

 

कार्यवाही

 

(अधिकृत विवरण)

 

 

 

                 __________________________________________________________

 

चतुर्दश विधान सभा                                                                                                 त्रयोदश सत्र

 

 

फरवरी-मई, 2017 सत्र

 

बुधवार, दिनांक 22 फरवरी, 2017

 

(3 फाल्‍गुन, शक संवत्‌ 1938)

 

 

[खण्ड- 13 ]                                                                                                                 [अंक- 2 ]

 

               __________________________________________________________

 

 

 

 

 

 

 

 

मध्यप्रदेश विधान सभा

 

बुधवार, दिनांक 22 फरवरी, 2017

 

(3 फाल्‍गुन, शक संवत्‌ 1938)

 

विधान सभा पूर्वाह्न 11.02 बजे समवेत हुई.

 

{अध्यक्ष महोदय (डॉ. सीतासरन शर्मा) पीठासीन हुए.}

 

निधन का उल्‍लेख

 

 

(1)               श्री सुन्‍दरलाल पटवा, मध्‍यप्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री,

(2)               श्री ई. अहमद, संसद सदस्‍य,

(3)               श्री सुरजीत सिंह बरनाला, पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री,

(4)               श्री बालासाहिब विखे पाटील, पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री,

(5)               श्री मानकूराम सोढ़ी, पूर्व संसद सदस्‍य,

(6)               श्री माणकलाल अग्रवाल, पूर्व संसद सदस्‍य,

(7)               श्री तरूण चटर्जी, पूर्व विधान सभा सदस्‍य,

(8)               श्री हुकुमचंद यादव, पूर्व विधान सभा सदस्‍य,

(9)               श्री जगदीश प्रसाद वर्मा, पूर्व विधान सभा सदस्‍य,

(10)             श्री रामलाल यादव, पूर्व विधान सभा सदस्‍य,

(11)             श्रीमती दुर्गावती पाटले, पूर्व विधान सभा सदस्‍य,

(12)             श्री बाबूलाल अर्जुन, पूर्व विधान सभा सदस्‍य तथा

(13)             हिमस्‍खलन में शहीद होने वाले सेना के हवलदार श्री विजय कुमार शुक्‍ला एवं

                   सिपाही श्री देवेन्‍द्र कुमार सोनी.

 

 

 

 

 

 

 

 

           

 

            मुख्यमंत्री (श्री शिवराज सिंह चौहान)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, स्वर्गीय श्री सुन्दरलाल पटवा जी मध्यप्रदेश की राजनीति का एक ऐसा नाम हैं जिनके बिना मध्यप्रदेश की राजनीति की कल्पना नहीं की जा सकती है. वे अपने जीवन के प्रारंभ से ही सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हो गए थे. पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सेवक के रुप में और बाद में भारतीय जनसंघ की स्थापना के बाद भारतीय जनसंघ के कार्यकर्ता के नाते उन्होंने पूरे मध्यप्रदेश में काम करना प्रारंभ किया था.

          माननीय अध्यक्ष महोदय, हम सब जानते हैं वे कुशल संगठक थे, मौलिक चिंतक थे वकृत्वकला ऐसी थी की जिसका लोहा हम सभी मानते थे. उनकी प्रभावी भाषणशैली, उनके चुटीले व्यंग्य कई बार अंदर तक मार करते थे. प्रदेश में वे जहां जाते थे उनको सुनने के लिए जन-सैलाब उमड़ा करता था. मध्यप्रदेश में जनसंघ को बढ़ाने में श्रद्धेय कुशाभाऊ ठाकरे जी, राजमाता जी, प्यारेलाल जी और कई लोगों का योगदान था, लेकिन सही अर्थों में मॉस तक भारतीय जनसंघ के संगठन को ले जाने में एक बड़ा योगदान श्रीमान् सुन्दरलाल पटवा जी का था. सन् 1956 में मध्यप्रदेश का निर्माण हुआ. सन् 1957 में वे पहली बार विधायक चुनकर आए और अपने प्रथम कार्यकाल में ही संसदीय ज्ञान की जानकारी से तथ्यों और तर्कों के साथ अपनी बात रखने के कारण वे सदन के सर्वश्रेष्ठ वक्ता के रुप में मध्यप्रदेश की विधान सभा में स्थापित हुए थे. सचमुच में उन जैसी भाषणशैली, यह मैं नहीं कहता हम सब जानते हैं कि पत्रकार मित्रों ने एक नया नाम दिया था "पटवाशैली" का. वे जब बोलते थे, चाहे वे पक्ष में रहे हों या प्रतिपक्ष में उनकी वकृत्वकला  बहुत प्रभावी होती थी.

          माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने उन्हें पहली बार सन् 1974 में सुना था. जब श्रीमान् बाबूलाल गौर जी एक चुनाव जे.पी. के उम्मीदवार के रुप में लड़ रहे थे. उस चुनाव में मैं भी एक छोटा कार्यकर्ता था, काम करने गया था. मैंने न्यू मार्केट में उनकी पहली सभा सुनी. वह प्रथम सभा और प्रथम दर्शन मेरा उनका था. उससे मैं इतना प्रभावित हुआ कि जब भी भोपाल में या आसपास कहीं पटवा जी की सभा होती थी. मैं उस सभा को सुनने जरुर जाता था. पटवा जी ने जीवन भर संघर्ष किया. मध्यप्रदेश की जनता के जीवन से जुड़ी हुई हर समस्या को लेकर उन्होंने लड़ाई लड़ी. जब वे सन् 1980 में थोड़े से दिनों के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे तो उनका छोटा कार्यकाल भी इतना प्रभावी रहा था कि  जन नेता के रुप में आम जनता ने अपने मन में पटवा जी को बसा लिया था. उसके बाद उनका संघर्ष का काल प्रारंभ हुआ. उन्होंने बस्तर से लेकर झाबुआ तक पूरे मध्यप्रदेश की पदयात्रा की. शायद मध्यप्रदेश में किसी और राजनेता ने नहीं की होगी. उस पदयात्रा के माध्यम से जनता को वे लगातार जोड़ते चले गए और भारतीय जनता पार्टी की जड़ों को आम आदमी तक,  नीचे तक मजबूत करने में उनका बहुत जबर्दस्त योगदान रहा. इसके बाद जब सरकार बनी, पटवा जी मुख्यमंत्री बने, मुझे कहते हुए गर्व है कि पटवा जी ने मुख्यमंत्री रहते हुए मध्यप्रदेश की प्रगति और विकास के नये अध्याय लिखे. ग्रामीण विकास के क्षेत्र में, ग्रामीण सड़कों के निर्माण से लेकर, गांव में पंचायत भवन, पंचायत सचिवालय, रुरल डेवलपमेंट की मध्यप्रदेश में जो अवधारणा थी सही अर्थों में उसको जमीन पर उतारने का काम माननीय पटवा जी ने किया था. पहली बार ग्रामीण विकासखण्डों को, गांव की सड़कों के लिए विकास के बाकी कामों के लिए प्रचुर मात्रा में धनराशि का आवंटन किया गया. उन्हीं के कार्यकाल में कानून और व्यवस्था की स्थिति बेहतर रहे, आज तक लोग याद करते हैं कि कुछ ख्यातिनाम जो लोग थे, माफियाज़ थे, उनके खिलाफ बहुत प्रभावी कार्यवाहियाँ, पटवा जी ने अपने मुख्यमंत्री रहते हुए की थी. पूरे मध्यप्रदेश में ग्रामराज अभियान के माध्यम से सीधे वे जनता से जुड़े भी और जनता को जो वचन दिए थे, वे सारे वचन, मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पूरे किेए. वे कुशल प्रशासक थे, कठोर प्रशासक थे. उनके नाम की एक अपनी अलग धमक थी. माननीय अध्यक्ष महोदय, मुख्यमंत्री रहते हुए उनका कार्यकाल मध्यप्रदेश के विकास के लिए सदैव याद किया जाएगा. लेकिन इसके बाद भी मुझे एक घटना याद आती है. माननीय कमलनाथ जी छिंदवाड़ा के लोकप्रिय नेता हैं और एक चुनाव कमलनाथ जी जब लड़ रहे थे तो अचानक पटवा जी ने तय किया कि मैं चुनाव लड़ूँगा. मैंने उनसे कहा भी कि छिंदवाड़ा जाकर लड़ने की क्या तुक है? आप वहाँ से क्यों लड़ना चाहते हैं? तो उन्होंने कहा कि नहीं अब तो फैसला हो गया, लड़ेंगे. मैंने कहा कि वहाँ कुछ मिलेगा नहीं, कुछ निकलेगा नहीं. लेकिन यह उनका जुझारुपन था, सोच थी, दूरदृष्टि थी. उन्होंने कहा कि मैं तो उस मैदान में जाकर लड़ूँगा. बाद में फिर हम भी चुनाव प्रचार करने गए, हम में से कई लोग गए. एक दिन मैंने शाम को पूछा पटवा जी क्या हाल हैं, कैसा चल रहा है? तो उन्होंने कहा कि चिंता किस बात की,  गाजर की पुंगी जब तक बजेगी बजाएँगे, नहीं तो खा जाएँगे, उसी मस्ती में उन्होंने उत्तर दिया और उस चुनाव का परिणाम सारी जनता ने उस समय देखा. कहीं भी लड़कर जूझ जाना, यह जुझारुपन उनके स्वभाव में था.

            माननीय अध्यक्ष महोदय, बाद में जब लोकसभा के सदस्य बने, केन्द्र में सरकार बनी, तो उसमें ग्रामीण विकास मंत्री पटवा जी बने. आज मुझे कहते हुए गर्व होता है कि "प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना", माननीय अटल जी के प्रधानमंत्री रहते हुए बनी. लेकिन उस योजना को मूर्तरूप देने का काम अगर किसी ने किया तो पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रहते हुए श्रद्धेय सुन्दरलाल पटवा जी ने किया. जिसके कारण ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल गई. हम लोग पहले कल्पना नहीं कर सकते थे कि इतनी सड़कों का जाल गाँव-गाँव बिछ जाएगा. वह उनकी कल्पनाशीलता थी. ग्रामीण विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता थी और उसी प्रतिबद्धता के कारण आज गाँव-गाँव में "प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना" के कारण सड़कों का जाल बिछा है पर ग्रामीण भारत की आर्थिक दशा को बदलने में भी उनके फैसले का बड़ा योगदान है. मैंने देखा कि केन्द्रीय मंत्री रहते हुए भी हमेशा उन्होंने बड़े प्रभावी ढंग से एक कुशल प्रशासक के नाते, एक अच्छे वक्ता के नाते, संसद् में एक अपना अलग स्थान बनाया था. माननीय अध्यक्ष महोदय, संसद् अक्सर समुद्र होती है. पहचान बनाने में ही कई वर्ष निकल जाते हैं. लेकिन पटवा जी का पहला भाषण, सांसद रहते हुए, जब संसद् में हुआ तो पूरे सदन ने टेबिल थपथपाकर पक्ष, प्रतिपक्ष ने, सब ने, उनके भाषण का जबर्दस्त स्वागत किया था और उनकी वक्तृत्व कला का लोहा माना था. उनको संसद् में देखते हुए भी हमको गर्व होता था, गौरव होता था. वे पंचायत ग्रामीण विकास मंत्री रहे. वे केन्द्रीय कृषि मंत्री रहे. वे केमिकल फर्टिलाइजर मिनिस्टर भी रहे. वे जो मंत्री रहे उस मंत्री के रूप में उन्होंने प्रशासन के नाते भी अपने काम की एक प्रभावी छाप पूरे भारत देश में छोड़ी, भारत सरकार के मंत्री के नाते छोड़ने का काम किया.

            माननीय अध्यक्ष महोदय, हम जैसे कार्यकर्ताओं ने तो उनसे बहुत सीखा है. जब से वे चुनाव नहीं लड़ रहे थे, अस्वस्थता के कारण हम जानते हैं,  मैं सच में उनकी जीवटता देख कर हतप्रभ रह जाता था. जब पहली बार उनको पैरेलिसिस अटेक हुआ, संसद् में रहते हुए हुआ और जब मैं देखने अस्पताल गया तो हम बड़े दुखी मन से गए थे. पटवा जी के शरीर का एक हिस्सा काम नहीं कर रहा था. लेकिन चेहरे पर वही तेज था और उतनी ही कड़क आवाज में, उसी स्थिति में, जब डॉक्टर देखने को मना कर रहे थे कि जा नहीं सकते तो मैं तो चला गया था. तब उन्होंने कहा था चिन्ता मत कर अभी मैं सौ साल जीऊँगा, पूरे सौ साल करके जाऊँगा और फिर से मैं चलूँगा. यह सचमुच में आत्मविश्वास से भरे होना और यह जीवटता, उसी जीवटता ने उनको वापस फिर सार्वजनिक जीवन में सक्रिय कर दिया. हम में से सब लोगों ने देखा पटवा जी,यद्यपि एक पैर उनका थोड़ा कमजोर हो गया था उसके कारण चलने में कई बार थोड़ी दिक्कत होती थी लेकिन अंतिम साँस तक मैंने उनको सक्रिय रहते हुए देखा. भारतीय जनता पार्टी की बैठकों में, कोई भी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक ऐसी नहीं थी,जिसमें वह न पहुंचे हो. केवल एक आखिरी बैठक ऐसी थी जिसमें वह नहीं पहुँच पाए थे लेकिन हर बैठक में श्रीमान सुंदरलाल पटवाजी जाते ही थे और पूरे समय, दिन भर बैठते थे. ऐसा नहीं कि थक गये तो थोड़ी देर आराम करने चले जायें. भोजन भी वह कार्यकर्ताओं के बीच में करते थे. अंतिम समय तक काम करने की ललक उनकी लगातार बनी रही और जागरूक इतने थे कि एक घटना भी कहीं कोई होती थी तो मेरे पास फोन आता था कि शिवराज यह क्या हुआ ?

          माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं एक बात और सदन से शेयर करना चाहूंगा कि जब सदन में व्यवधान होता था और कुछ ऐसे भी प्रसंग आए थे जब सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित की गई थी तब भी उन्होंने मुझे यह कहा था कि विधानसभा चलनी चाहिए, विधानसभा लोकतंत्र का मंदिर है यह बीच में स्थगित नहीं करनी चाहिए. समय-समय पर वह ऐसे सुझाव देते थे. जब भी कोई बड़ी समस्या आती थी, वह मार्गदर्शन करते थे. वह हमको बुलाते थे, हम उनके पास जाते थे. वह फोन करके भी बताते थे कि ऐसा करना चाहिए, ऐसा नहीं करना चाहिए. वह एक ऐसे नेता थे जिन्होंने सभी दलों के नेता और कार्यकर्ताओं के दिलों में स्थान बनाया था. मैं एक बात और कहना चाहूँगा कि वह पूरे जुझारूपन के साथ लड़ते थे, वह तीखे व्यंग्य करते थे.1990 में जब वह मुख्यमंत्री बने थे मैं पहली बार चुनकर आया और इस सदन में बड़े वरिष्ठ नेता स्वर्गीय श्रीमान् अर्जुनसिंह जी,श्री श्यामाचरण शुक्ला जी, श्रीमान् मोतीलाल वोरा जी इस सदन के सदस्य थे, मुझे याद है उस समय एक स्थगन प्रस्ताव आया था. अक्सर यह होता है कि स्थगन का प्रस्ताव आता है तो सत्तापक्ष ना-नुकुर करता है लेकिन पटवाजी खड़े हुए  और कहा कि स्थगन बिल्कुल स्वीकार कीजिये और चर्चा होने दीजिये और उस चर्चा का स्वरूप धीरे-धीरे ऐसा हो गया कि लगने लगा कि पटवा जी विपक्ष के नेता हैं,जब वह चर्चा का उत्तर दे रहे थे तो एक नहीं अनेकों तीखे वार प्रतिपक्ष के मित्रों पर कर रहे थे, मैंने जो अभी नाम लिये वह हमारे बहुत सम्मानित नेता रहे हैं. मोतीलाल जी वोरा आज भी हैं और हालत यह हो गई थी कि उधर से उठकर उन्होंने कहा कि पटवा जी, अब बहुत हो गया छोड़ो. आधी रात हो गई थी, आप लोगों को ध्यान होगा,तेंदूपत्ते के राष्ट्रीयकरण पर चर्चा चल रही थी. तो उधर सामने से कहा गया कि हो गई आधी रात, अब घर जाने दो. पटवाजी ने कहा अभी नहीं जाने दूंगा अभी तो मेरा भाषण चलेगा. उल्टे उन्होंने उस समय प्रतिपक्ष को घेर लिया था.उनकी जो व्यंग्यात्मक शैली रहती थी और जिस ढंग से उनके तर्क तथ्यों के साथ रहते थे उसका लोहा सभी मानते थे और बाद में पटवा जी को सबने बधाई भी दी कि आप बहुत अच्छा बोले.

          माननीय अध्यक्ष महोदय, पटवा जी को विधान पुरुष की संज्ञा दी गई है. बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जिनको विधान पुरुष के सम्मान से सम्मानित किया जाता है. उनको भारत सरकार ने मरणोपरांत पदम विभूषण से सम्मानित किया. मैं मानता हूं कि यह उनका सम्मान नहीं मध्यप्रदेश का सम्मान था. जिस भावना से उन्होंने मध्यप्रदेश में काम किया, एक बड़ी बात जो उनसे सीखनी चाहिए, हम भी सीखने की कोशिश करेंगे कि व्यंग्यबाण कितने ही तीखे हों दोस्ती पटवा जी ने कभी नहीं छोड़ी. प्रतिपक्ष के मित्रों से भी चाहे स्वर्गीय अर्जुनसिंह जी रहे हों, चाहे श्यामाचरण शुक्ला जी रहे हों, चाहे मोतीलाल वोरा जी हों, चाहे दिग्विजय सिंह जी हों, उन्होंने व्यवहारिक संबंध कभी किसी से नहीं तोड़े, संबंध कभी ख़राब नहीं किये.व्यंग्यबाण चलते थे, तीखे वार होते थे लेकिन इसके बाद भी मित्रता सदैव बरकरार रहती थी. मैं मानता हूं कि लोकतंत्र की सही भावना उनके अंदर दिखाई देती थी. एक ऐसा राजनेता, जो पूरे प्रदेश में तो लोकप्रिय थे ही लेकिन देश में भी उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि एक बार जब भारतीय जनता पार्टी ने चार यात्राएं निकाली, आप में से कई लोगों को ध्यान होगा अलग-अलग हिस्सों से चार यात्रा पूरे देश में, तो उसमें से एक यात्रा का नेतृत्व पटवा जी करेंगे, यह भारतीय जनता पार्टी के हाईकमान ने किया और कई प्रदेशों से होती हुई उनकी यात्रा भोपाल आई थी. उनकी लोकप्रियता असंदिग्‍ध थी. वे प्रदेश के बाहर भी बडे़ ध्‍यान से, बडे़ चाव से सुने जाते थे. जितना शानदार जीवन उन्‍होंने जिया मैंने उन्‍हें कभी हताश नहीं देखा, निराश नहीं देखा. कभी उनके चेहरे पर ऐसे भाव नहीं देखे कि किंकर्त्‍तव्‍यविमूढ़ हों. हमेशा मस्‍ती से काम करते थे, आनंद से काम करते थे. जो भी परिस्थ्‍िातियां हों, उससे जूझते हुए आगे बढ़ने का जो ज़ज्‍बा मैंने पटवा जी में देखा, जो जिद देखी, जो जुनून देखा, ऐसा बहुत कम दिखाई देता है. संसदीय ज्ञान के जानकार बहुत कम हुआ करते हैं.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, जितना शानदार जीवन श्रीमान् पटवा जी ने जिया, हम मृत्‍यु को कभी अच्‍छा नहीं कहते. वे रात तक काम करते रहे. 10 बजे भी वह सक्रिय रहते थे. घर में, परिवार में भोजन किया, परिवार के सदस्‍यों से बात की, चाय पी. एक दिन पहले ही मेरी श्रीमान पटवा जी से फोन पर बात हुई थी. उन्‍होंने कहा कब आ रहा है. ऐसी बात करते थे और मैं अकेले नहीं बल्कि मेरे कई मित्र, वरिष्‍ठ नेता यहां बैठे हैं. कई बार फोन करते थे, बुलाते थे, चर्चा करते थे, बातचीत करते थे, सुझाव देते थे, सलाह देते थे लेकिन यह अहसास नहीं होने दिया कि अब वे अचानक जाने वाले हैं. रात को अच्‍छे सोए. स्‍वस्‍थ थे, प्रसन्‍न थे. भोजन किया लेकिन उन्‍होंने किसी को यह मौका नहीं दिया कि वे किसी से अपनी सेवा करवाएं. कोई वेंटिलेटर नहीं लगा, कोई अस्‍पताल में नहीं रहे. सोते-सोते सुबह पता चला कि पटवा जी नहीं रहे. "बडे़ गौर से सुन रहा था ज़माना, तुम्‍हीं सो गए दास्ताँ कहते कहते". कल्‍पना नहीं थी कि इतनी जल्‍दी पटवा जी चले जाएंगे क्‍योंकि उनकी जो सक्रियता दिखाई देती थी, हमको लगता था कि वे 100 साल पूरे करेंगे. लेकिन जितना शानदार जीवन उन्‍होंने जिया वैसी मृत्‍यु मैं कहूंगा कि इतनी खामोशी से कोई चला जाए, हवा भी ना लगने दे, पता भी न चलने दे, स्‍वयं को भी कोई कष्‍ट न हो. सुबह जब पौने आठ बजे के आसपास पता चला. हम लोग अस्‍पताल पहुंचे और डॉक्‍टर ने मुझे बताया कि सुबह 5 बजे के आसपास श्री पटवा जी ने अंतिम सांस ली, एक शानदार जीवन जीकर और उसी निश्‍चिंतता के साथ, शांति के साथ पटवा जी ने दुनिया छोड़ी, परलोक गमन किया. पटवा जी के बिना इस मध्‍यप्रदेश विधानसभा का इतिहास कभी नहीं लिखा जा सकेगा. वे हमेशा एक मार्गदर्शक के रूप में, एक कुशल संगठक के रूप में, एक राजनेता के रूप में, एक पब्लिक लीडर के रूप में, संसदीय ज्ञान के शानदार जानकार के रूप में, एक अच्‍छे प्रशासक के रूप में, मध्‍यप्रदेश की जनता के दिलों में सदैव जीवित रहेंगे. मैं उनके चरणों में अपनी श्रद्धा के सुमन अर्पित करता हॅूं.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, ऐसे ही श्री ई.अहमद, संसद सदस्‍य संसदीय ज्ञान के बहुत अच्‍छे जानकार थे. केरल के बहुत लोकप्रिय नेता थे और केरल विधान सभा में पांच बार सदस्‍य रहने के साथ-साथ वे लगातार दसवीं, ग्‍यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं, चौदहवीं, पंद्रहवीं और वर्तमान सोलहवीं लोक सभा के सदस्‍य निर्वाचित हुए. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्‍होंने केन्‍द्र सरकार के विदेश और रेल राज्‍य मंत्री के नाते भी अपनी प्रशासनिक क्षमता की छाप छोड़ी. उनके निधन से हमने एक वरिष्‍ठ राजनेता और एक कुशल प्रशासक को खोया है.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, यह देश श्री सुरजीत सिंह बरनाला, पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री को भी कभी नहीं भूल सकता. वे एक शालीन नेता थे. संसद में मुझे उनके साथ काम करने का अवसर मिला. उनकी शालीनता, उनकी सहजता, उनकी वाकपटुता के सब कायल थे. सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्‍होंने बड़ी सक्रियता के साथ हिस्‍सा लिया था. पंजाब विधानसभा के सदस्‍य के रूप में, शिक्षा मंत्री और बाद में मुख्‍यमंत्री के रूप में भी पंजाब के विकास में उनका अतुलनीय योगदान रहा है. लोक सभा सदस्‍य के रूप में भी और केन्‍द्र सरकार में कृषि मंत्री के रूप में खाद्य और सिंचाई, रसायन और उर्वरक मंत्री के रूप में भी उन्‍होंने देश की बड़ी सेवा की है. श्री बरनाला अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लेफ्टिनेंट गवर्नर भी रहे हैं. पांडिचेरी के प्रशासक और उत्‍तराखंड, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु के राज्‍यपाल के रूप में भी उन्‍होंने सार्वजनिक जीवन में एक अमिट छाप छोड़ी है.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, श्री बालासाहिब विखे पाटील, पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री महाराष्‍ट्र के एक लोकप्रिय नेता थे. वे प्रख्‍यात शिक्षाविद् थे. शिक्षा के क्षेत्र में जो काम उन्‍होंने किया उससे वे सदैव महाराष्‍ट्र में पहचाने जाएंगे. माननीय अध्‍यक्ष महोदय, उन्‍होंने भी लोकसभा के सदस्‍य के नाते, अब उनकी लोकप्रियता का अंदाज इसी से लग पाएगा कि आज भी पांचवीं, छठवीं, सातवी, आठवीं, नौवीं, बारहवीं, तेरहवीं, चौदहवीं लोकसभा के सदस्‍य रहे और राज्‍य मंत्री के नाते उन्‍होंने भारी उद्योग और सार्वजनिक उपक्रम मंत्रालय में जिस ढंग से काम संभाला, सब उनकी प्रशासनिक दक्षता के कायल हो गए थे, उनके निधन से भी हमने एक वरिष्‍ठ राजनेता और एक कर्मठ जनसेवी को खोया है.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, श्रीमान मानकूराम सोढ़ी जी आदिवासियों के मसीहा थे, उन्‍होंने वंचित वर्ग के लिए और गरीबों के लिए जीवन भर काम किया और अपनी लोकप्रियता के बल पर तीसरी, चौथी, पाँचवीं, छठवीं और सातवीं विधान सभा के वे सदस्‍य रहे और राज्‍य मंत्री, राजस्‍व के नाते भी उन्‍होंने जो काम किया, उसके कारण हमें उनकी प्रशासनिक दक्षता का परिचय मिला और अपनी लोकप्रियता के कारण वे लगातार तीन बार लोकसभा के सदस्‍य रहे. उन्‍होंने एक अलग अमिट छाप छोड़ी थी, उनके निधन से भी मध्‍यप्रदेश के सार्वजनिक जीवन में अपूरणीय क्षति हुई है.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, श्री माणकलाल अग्रवाल जी स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. सन् 1942 के स्‍वतंत्रता संग्राम में उन्‍होंने सक्रियता के साथ भाग लिया था और सन् 1957 में दूसरी लोकसभा और बाद में चौथी विधान सभा में गरोठ विधान सभा से उपचुनाव में वे निर्वाचित हुए थे. वे एक लोकप्रिय नेता थे. उनके निधन से भी सार्वजनिक जीवन में अपूरणीय क्षति हुई है.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, श्री तरूण चटर्जी बड़े जुझारू नेता थे, यह इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि रायपुर नगर-निगम के वे लगातार तीन बार महापौर रहे और रायपुर के विकास में उन्‍होंने बड़ा सक्रिय योगदान दिया. सातवीं, नौवीं, दसवीं और ग्‍यारहवीं विधान सभा के वे सदस्‍य रहे. वे कांग्रेस के सदस्‍य थे और भारतीय जनता पार्टी में भी कार्यकर्ता रहे. उन्‍होंने अपनी क्षमता का यहां परिचय दिया था और सन् 2000 में छत्‍तीसगढ़ बनने के बाद सन् 2002 में वे लोक निर्माण मंत्री भी रहे हैं. उनके निधन से भी सार्वजनिक जीवन में अपूरणीय क्षति हुई है.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, श्री हुकुमचंद यादव खांटी नेता थे, पहलवान थे और कुश्‍ती में ''मध्‍यप्रदेश केसरी'' का खिताब सन् 1972 में उन्‍होंने जीता था. वे अलमस्‍त स्‍वभाव के धनी थे, उनका फक्‍कड़ स्‍वभाव था, जो दिल में रहता था वह जुबान पर आ जाता था. वे कभी किसी बात को अपने मन में नहीं रखते थे, तुरंत बोलते थे. वे बहुत जुझारू नेता थे. वे आपातकाल में लगातार मीसा में बंद रहे. वे लगातार वहां संघर्ष करते रहे और उनकी लोकप्रियता के कारण वे नौवीं, दसवीं विधान सभा के उपचुनाव में निर्वाचित हुए और ग्‍यारहवीं और बारहवीं विधान सभा के सदस्‍य निर्वाचित हुए. अपने फक्‍कड़ स्‍वभाव के कारण और लोगों के बीच जनसेवा के कारण जो स्‍थान उन्‍होंने बनाया था उसको कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. उनके निधन के कारण भी सार्वजनिक जीवन में अपूरणीय क्षति हुई है.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, श्री जगदीश प्रसाद वर्मा जी बहुत संघर्षशील और जुझारू नेता थे. उस समय जब जनसंघ को कुछ सीटें मिला करती थीं तब भी वे शायद पोहरी विधान सभा से लगातार चुनाव जीत के आते थे. चौथी, पाँचवीं और नौवीं विधान सभा के वे सदस्‍य रहे. आपातकाल में मीसा में निरुद्ध रहे. वे बहुत अच्‍छे इंसान और किसान नेता थे.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, श्री रामलाल यादव जी कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ता थे, कुशल संगठक थे. वे अपनी प्रतिभा के बल पर संगठन के पदों पर भी रहे, उन्‍होंने अनेक संस्‍थाओं के अध्‍यक्ष के रूप में भी कार्य किया और ग्‍यारहवीं विधान सभा में वे इंदौर से निर्वाचित होकर आए थे. उनके निधन से भी हमने एक अत्‍यंत लोकप्रिय नेता को खोया है.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, श्रीमती दुर्गावती पाटले जी प्रख्‍यात पत्रकार थीं. वह बिलासपुर जिले में जन्‍मी थीं. वे स्‍मॉल न्‍यूज़ एसोसिएशन (आइसना) की  अध्‍यक्ष भी रहीं और आठवीं विधान सभा में वे कांग्रेस पार्टी की ओर से इस विधान सभा की सदस्‍य रहीं. उनके निधन से भी हमने एक समर्पित पत्रकार और एक जननेता को खोया है.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, श्री बाबूलाल अर्जुन जी बहुत लोकप्रिय नेता थे. उन्‍होंने बंगलादेश मान्‍यता के सत्‍याग्रह में सक्रिय भाग लिया था, वे जेल भी गए थे और चौथी और पाँचवीं विधान सभा में पोहरी विधान सभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे. उनके निधन के कारण भी सार्वजनिक जीवन में अपूरणीय क्षति हुई है.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, 25 जनवरी को हिमस्‍खलन के कारण सेना के हवलदार श्री विजय कुमार शुक्‍ला जी और सिपाही श्री देवेन्‍द्र कुमार सोनी जी सहित जो अनेक जवान देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए शहीद हुए हैं, उनके चरणों में भी हम अपने श्रद्धा के सुमन अर्पित करते हैं. मैं इन सभी महापुरुषों को अपनी ओर से और सदन की ओर से इनके चरणों में श्रद्धा के सुमन अर्पित करता हूँ और परमपिता परमात्‍मा से यह प्रार्थना करता हूँ कि दिवंगत आत्‍मा को शांति दे और उनके परिजनों को, उनके सहयोगियों को और उनके अनुयायियों को यह गहन दु:ख सहन करने की क्षमता दे. ऊँ शांति.

          प्रभारी नेता प्रतिपक्ष ( श्री बाला बच्चन )-- माननीय अध्यक्ष महोदय, श्री सुन्दरलाल पटवा जी का जन्म 11 नवम्बर, 1924 को नीमच जिले के कुकडेश्वर में हुआ था. वह अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे इसमें कोई शंका की बात नहीं है.  मैंने भी उनके साथ में 10वी और 11वी विधान सभा में काम किया है.  मैं समझता हूं कि हमारे दल के और सत्तापक्ष के काफी विधायकों ने उनके साथ में काम किया है, उनको बहुत अच्छे से हम लोगों ने सुना है, अच्छे से हम लोगो ने उनको समझा है.  आदरणीय मुख्यमंत्री जी ने पटवा जी के बारे में जो बताया है कि वे दूसरी, तीसरी, छटवीं, सातवीं, आठवीं, नवमीं, दसवीं और ग्यारहवीं विधान सभा के लिए चुने गये. इस सदन के मुख्य विरोधी दल के वे मुख्य सचेतक भी रहे हैं. वे विरोधी दल के नेता भी रहे हैं, मतलब मध्यप्रदेश विधान सभा के प्रतिपक्ष के नेता भी रहे हैं. हम लोगों ने उनको काफी सुना है, और इसके अलावा वह भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं, मुख्यमंत्री भी रहे हैं और छिंदवाड़ा लोक सभा का आदरणीय मुख्यमंत्री जी ने उल्लेख किया है उप चुनाव छिंदवाड़ा का हुआ, वहां से वे चुनाव लड़े वे जीते और उसके बाद में दूसरा लोकसभा का चुनाव भी उन्होंने जीता, दो बार वह इस तरह से लोक सभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित होकर गये. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री वे रहे हैं और बाद में केन्द्र सरकार में भी मंत्री रहे हैं. वे बड़े नेता थे उनको अभी अभी कुछ समय पहले ही पद्मविभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया है. मैं समझता हूं कि हम सबके लिए मध्यप्रदेश के लिए यह गर्व की बात है कि ऐसे इतने बड़े नेता जो कि आज हमारे बीच में नहीं रहे हैं, उनके निधन से मध्यप्रदेश को सभी क्षेत्र में एक अविस्मरणीय क्षति हुई है. दूसरा वह वरिष्ठ राजनेता थे, कर्मठ जनसेवी थे, कुशल प्रशासक थे  हम सबने उनका लंबा कार्यकाल  राजनीति में रहते हुए  देखा है, बड़ी बड़ी पदयात्राएं उन्होंने की हैं उससे हम सबके लिए भी एक संदेश है.  एक बड़े राजनेता हमारे अपने बीच में नहीं रहे हैं तो मैं उनको मेरी तरफ से तथा मेरे दल के सभी साथियों की तरफ से श्रद्धांजलि, श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं और ईश्वर से यह प्रार्थना करता हूं कि उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और शोक संतप्त परिवार के प्रति मैं संवेदना व्यक्त करता हूं.

          अध्यक्ष महोदय, ऐसे ही श्री ई. अहमद जी का जन्म 29 अप्रैल, 1938 को कन्नूर केरल में हुआ था और वे 5 बार केरल विधान सभा के सदस्य चुने गये थे और सात बार वे लोक सभा के लिए संसद सदस्य चुने गये. वे भी एक वरिष्ठ राजनेता थे कुशल प्रशासक थे और एक कर्मठ जनसेवी थे वे हमारे बीच में नहीं रहे हैं. मैं समझता हूं कि उनके निधन से हम सबको अविस्मरणीय क्षति हुई है और उसकी पूर्ति नहीं की जा सकती है. मैं उन्हें भी श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं.

          अध्यक्ष महोदय, श्री सुरजीत सिंह बरनाला जी को मैं समझता हूं कि ऐसा कोई भी राजनीतिक क्षेत्र में काम करने वाला  व्यक्ति नहीं होगा जो कि उनको नहीं जानता होगा, इसके अलावा भी पूरे प्रदेश और देश भर के लोग काफी उनको जानते थे और समझते थे. उसके बाद में लंबे समय तक  प्रदेश के लिए और हम सबके लिए उन्होंने भी काफी काम किया है. उनका जन्म 21 अक्टूबर, 1925 को अटेली बैकपुर जिला मनेन्द्रगढ़ हरियाणा में हुआ था और श्री सुरजीत सिंह बरनाला जी ने वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था. उसके बाद वे पंजाब राज्य के शिक्षा मंत्री और वहां के मुख्यमंत्री भी रहे हैं. हमारे देश की लोकसभा के छठवीं, ग्यारहवीं तथा बारहवीं लोकसभा के सदस्य भी निर्वाचित हुए हैं और केन्द्र में वे मंत्री भी रहे हैं. इसके अलावा श्री सुरजीत सिंह बरनाला जी, अंडमान निकोबार द्वीप समूह के लेफ्टिनेंट गवर्नर रहे हैं. उन्होंने पुडुचेरी के प्रशासक तथा उत्तराखंड, आंधप्रदेश एवं तमिलनाडू के राज्यपाल पद को भी सुशोभित किया है. उनके निधन से हम सभी को दुःख हुआ है. ऐसे नेता, जिन्हें किसी भी क्षेत्र में जो जिम्मेदारी मिली, उन्होंने उसका सफलतापूर्वक निर्वहन किया है. वे भी बहुत बड़े राजनेता, कुशल प्रशासक और कर्मठ जनसेवी रहे हैं. इसके अलावा बड़े फ्रीडम फाइटर भी थे. उनको भी मैं, मेरी तरफ से तथा मेरे दल की तरफ से  श्रद्धांजलि और श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं. 

ऐसे ही श्री बाबासाहिब विखे पाटील का जन्म 10 अप्रैल, 1932 को अष्टागांव जिला अहमदनगर महाराष्ट्र में हुआ था और वे कितने लोकप्रिय थे, कितने बड़े थे, वहां की जनता में कितने चर्चित थे, उनके लिए कितना काम करते थे, 8 बार वहां की संसदीय सीट से वे चुनकर आए हैं. श्री बाबासाहिब विखे पाटील, पांचवी, छठवीं, सातवीं, आठवीं, नौवीं, बारहवीं, तेरहवीं तथा चौदहवीं लोकसभा के लिए चुने गये. केन्द्र सरकार में आप वित्त राज्यमंत्री भी रहे हैं. लोक सभा की जो अनेक सभा समितियां होती हैं, उनके सदस्य और सभापति भी रहे हैं. अभी उन्हीं के जो सुपुत्र हैं श्री राधाकृष्ण विखे पाटील जी, वे महाराष्ट्र विधान सभा के नेता प्रतिपक्ष हैं और चूंकि मैं भी वहां जाता हूं, मैं उनके साथ काम करता हूं. अखिल भारतीय  कांग्रेस पार्टी का सचिव होने के नाते, सहप्रभारी महाराष्ट्र का होने के नाते काफी मैंने इन परिवारों के साथ में काम किया है, मैंने इनको देखा है. शायद श्री राधाकृष्ण विखे पाटील जी भी छठवीं, सातवीं बार विधायक हैं जो महाराष्ट्र विधान सभा के नेता प्रतिपक्ष हैं. अध्यक्ष महोदय, वे लोकप्रिय और बड़े नेता थे. इनके रूप में भी हमने एक बड़ा नेता खोया है. एक वरिष्ठ राजनेता, कुशल प्रशासक और जनसेवी को खोया है, उन्हें भी मैं श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं.

ऐसे ही श्री मानकूराम सोढ़ी जी का जन्म 1 अगस्त, 1934 को ग्राम सोनावल जिला बस्तर में हुआ था. आप हमारे आदिवासी समाज के बड़े नेता थे और मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ का जब विभाजन हुआ तो वह छत्तीसगढ़ चले गये. हम भी उनसे प्रेरणा और सीख लेते थे. उनका बेटा भी हम लोगों के साथ में पूर्व में मध्यप्रदेश विधान सभा में विधायक श्री शंकर सोढ़ी नाम था, वे भी हमारे साथ में थे. उसके बाद आदरणीय श्री दिग्विजय सिंह जी के मंत्रिमंडल में वे मंत्री भी बने थे. हम लोगों ने साथ साथ में काम किया था. उनकी भी लोकप्रियता इस बात से पता चलती है कि पांच बार विधायक का चुनाव उन्होंने जीता और तीन बार वे सांसद चुने गये. आठवीं, नौवीं तथा दसवीं लोकसभा के लिए सदस्य चुने गये, ऐसे एक बड़े आदिवासी नेता के निधन से निश्चित ही सार्वजनिक जीवन की अपूरणीय क्षति हुई है. मैं उन्हें भी मेरी तरफ से तथा मेरे दल की तरफ से श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं.

श्री माणकलाल अग्रवाल का जन्म 9 जुलाई, 1923 को रामपुरा जिला मंदसौर में हुआ था. आपने वर्ष 1942 के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया था. श्री माणकलाल अग्रवाल जी वर्ष 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए तथा चौथी विधान सभा के उप चुनाव में गरोठ क्षेत्र से सदस्य निर्वाचित हुए थे. आपके निधन से भी प्रदेश के सार्वजनिक जीवन की अपूरणीय क्षति हुई है. मैं उन्हें भी श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं, श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.

          अध्यक्ष महोदय, श्री तरुण चटर्जी का जन्म 4 जुलाई 1950 को खुलना में हुआ था. श्री चटर्जी रायपुर नगर निगम के तीन बार महापौर रहे हैं. श्री चटर्जी मप्र विधानसभा के सातवीं,नौवीं,दसवीं तथा ग्यारहवीं विधानसभा के सदस्य चुने गए. इस प्रकार चार बार विधायक चुनकर आये.  उसके बाद राज्य विभाजन के फलस्वरुप सन् 2000 में आप छत्तीसगढ़ विधानसभा के सदस्य बने और 2002 में लोक निर्माण मंत्री बनाये गए. मैं उन्हें भी अपनी और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं. उनके निधन से निश्चित ही सार्वजनिक जीवन की अपूरणीय क्षति हुई है.

          अध्यक्ष महोदय, श्री हुकुमचंद यादव जी का जन्म 15 अगस्त 1942 को खंडवा में हुआ था. आप 1992-97 में खंडवा भाजपा के जिलाध्यक्ष भी रहे हैं. श्री यादव को कुश्ती में मध्यप्रदेश केसरी खिताब से भी नवाजा गया है. वे  नौवीं, दसवीं विधानसभा के उप चुनाव में और ग्यारहवीं और बारहवीं विधानसभा में सदस्य निर्वाचित हुए. इस प्रकार वे 4 बार इस सदन के सदस्य रहे हैं. मैंने उनके साथ काम भी किया है. हमारे बहुत सारे साथी जो यहां बैठे हैं उन्होंने भी उनके साथ काम किया है. वे आक्रामकता से अपनी बात कहते थे. दबंगता से अपनी बात कहते थे. अपनी बात का लोहा वह मनवाते थे ऐसे हुकुमचंद यादव जी नहीं रहे हैं. उनके निधन से भी एक अपूरणीय क्षति हुई है. मैं उन्हें भी अपनी और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.

          अध्यक्ष महोदय, श्री जगदीश प्रसाद वर्मा जी का जन्म 4 सितम्बर 1940 को पिपरसवा में हुआ था. श्री वर्मा ने विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और जेल गए. आपातकाल(मीसा) में निरुद्ध रहे. श्री वर्मा मप्र की चौथी, पांचवीं तथा नवीं विधानसभा के सदस्य रहे. वे तीन बार इस विधानसभा के सदस्य चुनकर आये. निश्चित ही उनके निधन से प्रदेश में सार्वजनिक जीवन की अपूरणीय क्षति हुई है. मैं,उन्हें भी अपनी और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.

          अध्यक्ष महोदय, श्री रामलाल यादव जी का जन्म 9 अप्रैल 1952 को इंदौर में हुआ था. वर्तमान में वे मप्र कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष थे. वे कांग्रेस पार्टी की ओर से विधायक रहे. हमने उनके साथ इस विधानसभा में और बाहर काम किया है. आप कांग्रेस पार्टी के शहर महामंत्री भी रहे हैं. उन्होंने पार्षद समेत कई अन्य पदों पर काम किया है. वे 20 सूत्रीय समिति के सदस्य और कई सस्थाओं के अध्यक्ष भी रहे हैं. उनके निधन से हमारी कांग्रेस पार्टी में एक बड़े नेता की कमी हुई है. मैं,उन्हें भी अपनी और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं. उनके निधन से सार्वजनिक जीवन में अपूरणीय क्षति हुई है.

          अध्यक्ष महोदय, श्रीमती दुर्गावती पाटले का जन्म 14 जून, 1954 को ग्राम मोसिमपुर जिला बिलासपुर में हुआ था. श्रीमती पाटले पत्रकारिता से जुड़ी हुई थीं. यूथ एसोशिएशन (आइस्ना) की सदस्य रही हैं. मध्यप्रदेश की आठवीं विधानसभा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से मुंगेली क्षेत्र का आपने प्रतिनिधित्व किया था. उनके निधन से भी प्रदेश के सार्वजनिक जीवन की अपूरणीय क्षति हुई है. मैं उन्हें भी अपनी और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.

          अध्यक्ष महोदय, श्री बाबूलाल अर्जुन जी जन्म 15 मार्च 1934 को ग्राम मालबरबे, जिला शिवपुरी में हुआ था. आपने बांग्लादेश मान्यता के सत्याग्रह में भाग लिया और जेल गए. श्री अर्जुन चौथी एवं पांचवीं विधानसभा में पोहरी क्षेत्र से सदस्य निर्वाचित हुए थे. उनके निधन से भी निश्चित ही प्रदेश के सार्वजनिक जीवन की अपूर्णीय क्षति हुई है. मैं उन्हें भी अपनी और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.

          ऐसे ही 25 जनवरी,2017 को कश्मीर घाटी में बर्फबारी के कारण हिमस्खलन के कारण सेना के हवलदार श्री विजय कुमार शुक्ला तथा सिपाही श्री देवेन्द्र कुमार सोनी सहित अनेक जवान शहीद हुए हैं. श्री शुक्ला एवं श्री सोनी क्रमश: शहडोल जिले के निवासी थे. यह सदन हिमस्खलन में शहीद होने वाले जवानों को भी श्रद्धांजलि अर्पित करता है. माननीय अध्यक्ष महोदय, जितनी दिवंगत आत्माओं का यहां विधान सभा में उल्लेख किया गया,माननीय मुख्यमंत्री जी ने जो उल्लेख किया,उनकी भावनाओं से सहमत होते हुए मैं उन सभी दिवंगत आत्माओं  के प्रति अपनी तथा अपने दल की तरफ से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं तथा ईश्वर से यह प्रार्थना करता हूं कि उनकी आत्मा को  भगवान शांति प्रदान करें.  उनके शोक संतप्त परिवारों के प्रति मैं संवेदना व्यक्त करता हूं. ओम शांति..

          श्री कैलाश चावला(मनासा) - माननीय अध्यक्ष महोदय, आज सदन हम सबके वरिष्ठ नेता, इस प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे सम्माननीय श्री सुन्दरलाल पटवा को श्रद्धांजलि दे रहा है.  माननीय अध्यक्ष महोदय, पटवा जी ने अपना राजनीतिक जीवन कुकड़ेश्वर पंचायत के पंच से प्रारम्भ किया और वहां से उनकी जो यात्रा  शुरू हुई तो मनासा,मन्दसौर,सीहोर और  भोजपुर के विधायक होकर उन्होंने इस प्रदेश की राजनीति में अपना काम करना प्रारम्भ किया और वे यहीं तक नहीं रूके वे लोक सभा के सदस्य बनकर केन्द्रीय सरकार के मंत्री के रूप में भी उन्होंने काम किया. वे कुशल प्रशासक थे जैसा उल्लेख किया गया और वे एक कुशल संघटक भी थे. मुझे यह कहते हुए गौरव होता है आज इस सदन में जितने मित्र बैठे हैं केवल इस सदन में ही नहीं, छत्तीसगढ़ विधान सभा में भी कई राजनैतिक कार्यकर्ता, जो आज बड़े नामचीन नेता के रूप में जाने जाते हैं उनके निर्माण में श्री सुन्दरलाल पटवा का बहुत बड़ा योगदान था. जब उनका दाहसंस्कार हो रहा था तो मध्यप्रदेश के सभी दलों के नेता तो पहुंचे परंतु छत्तीसगढ़ राज्य का लगभग आधा मंत्रिमण्डल उनको श्रद्धांजलि देने के लिये एवं अंतिम विदाई देने के लिये वहां उपस्थित हुआ. यह इस बात का द्योतक था कि पटवा जी ने पूरे अविभाजित मध्यप्रदेश में जो काम किया,उसके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिये वे सभी लोग उपस्थित हुए थे. मुझे तो बचपन से ही उनके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. जनसंघ के जमाने में उन्होंने पहली बार मण्डल अध्यक्ष बनाया था और उन्हीं के साथ चलते-चलते मैं विधान सभा का सदस्य भी बना और मंत्रिमण्डल का सदस्य भी बना. जीवटता उनके स्वभाव में थी. किसी काम में पीछे हटना तो शायद उन्होंने सीखा ही नहीं था. वे सबको प्रेरित करते थे कि लक्ष्य तय करो और लक्ष्य प्राप्त के लिये संघर्ष करो. माननीय अध्यक्ष महोदय, मुझे यह भी स्मरण  आ रहा है जैसा माननीय मुख्यमंत्री जी ने उल्लेख किया कि बस्तर से लेकर झाबुआ तक उन्होंने पदयात्रा की शायद हिन्दुस्तान के इतिहास में किसी राजनेता ने इतनी लंबी पदयात्रा नहीं की होगी. एक दूसरी पदयात्रा उन्होंने राजगढ़ जिले की भी की थी. जब राजगढ़ जिले में हमारी पार्टी के लिये चुनौती थी तो उन्होंने यात्रा करकर जनता को अपने साथ जोड़ने का जो अभिनव प्रयास किया, वह वास्तव में प्रशंसनीय है, अनुकरणीय है. आज हम सब मित्रों को उनसे कुछ सीखना चाहिये कि पार्टी के लिये कितना कुछ हम कर सकते हैं. माननीय अध्यक्ष महोदय, मुझे उनके साथ मंत्रिमण्डल में रहने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ. जैसा कहा गया वे कुशल प्रशासक थे और अपने साथियों पर पूरा विश्वास करने वाले मुख्यमंत्री भी थे. यहां हमारे मित्र बैठे हैं गोपाल भार्गव जी हैं,आदरणीय बाबूलाल गौर जी हैं, शेजवार जी हैं, जयंत मलैया जी हैं जिन्होंने उनके साथ मंत्रिमण्डल के सदस्य के रूप काम किया. माननीय सुन्दरलाल पटवा जी निगाह तो रखते थे साथ ही अपने मंत्रियों को कार्य करने की जितनी स्वतंत्रता देते थे, वह वास्तव  में उनकी प्रशंसा करने लायक बात है.

          अपने साथियों पर भरोसा करना, उनको काम की खुली छूट देना और उस पर निगाह भी रखना, यह एक बहुत बड़ी विशेषता माननीय पटवा जी में थी कि जब भरोसा करते थे तो पूरा भरोसा करते थे और पूरा काम करने की क्षमता वह देते थे, ये नये लोगों को आगे बढ़ाने के लिये, उनमें प्रशासकीय योग्‍यता बढ़ाने के जो अवसर वह देते थे यह वास्‍तव में उल्‍लेखनीय है और यह सीखने लायक बात भी है. माननीय अध्‍यक्ष महोदय, वे जिस तरीके से विधान सभा में बोलते थे, माननीय अध्‍यक्ष महोदय मैं क्षमा सहित कहना चाहूंगा आज की विधान सभा में और उनके समय की विधान सभा में बहुत अंतर है. उस समय जब अविश्‍वास प्रस्‍ताव सत्‍ता पार्टी के खिलाफ आते थे तो यह जितनी हमारी विधान सभा की गैलरियां हैं यह केवल पटवा जी को सुनने के लिये कि पटवा जी किस तरीके का आक्रमण करेंगे, पूरी विधान सभा की गैलरियां खचाखच भरी रहती थीं, लोग उनको सुनने के लिये आते थे. माननीय अध्‍यक्ष महोदय, जितना चुटीला वह बोलते थे, जितने गहरे घाव वह करते थे जैसा कि माननीय मुख्‍यमंत्री जी ने उल्‍लेख किया व्‍यक्तिगत जीवन में वे उतनी ही दोस्‍ती लोगों से रखते थे. मुझे उनकी एक बात याद आती है, वह कहते थे कि विधान सभा में गुस्‍सा आना नहीं चाहिये, गुस्‍सा बताना चाहिये, जो गुस्‍सा है वह हमारे जुबान पर होना चाहिये दिल और दिमाग में गुस्‍सा हावी नहीं होना चाहिये, जनता की समस्‍याओं को उठाने के लिये, हमको सरकार पर दवाब बनाने के लिये अपनी बात को ऊंची, ओजस्‍वी वाणी में बोलना चाहिये, सरकार पर गुस्‍सा भी करना चाहिये पर उसका कारण यह नहीं होना चाहिये कि हमारे दिल और दिमाग में गुस्‍सा आ जाये और हम विवेक खोकर ऐसी बात कह जायें जो उचित नहीं हो.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, आज हमारे बीच से वह चले गये, परंतु उन्‍होंने मंदसौर के विकास के लिये, रायसेन के विकास के लिये, पूरे मध्‍यप्रदेश के विकास के लिये जो काम किया वह ऐतिहासिक है, उसे हमेशा याद किया जायेगा. मुझे एक बात और स्‍मरण आती है, मध्‍य प्रदेश में ग्रामराज अभियान का कार्यक्रम करने के बाद उन्‍होंने जो जनता से वादा किया था कि हम ऋणमुक्ति देंगे, जब सरकार आई तो उन्‍होंने ऋणमुक्ति कार्यक्रम को अपनाया, शायद हिन्‍दुस्‍तान के इतिहास में पहली बार किसानों को ऋणमुक्‍त किया गया तो वह माननीय सुंदरलाल पटवा जी के द्वारा किया गया. जब इतिहास लिखा जायेगा, किसानों का सबसे पहला सहयोग किसने किया तो ऋणमुक्ति अभियान के रूप में श्री सुंदरलाल जी का नाम निश्चित रूप से लिखा जायेगा. मैं आज इस अवसर पर उनको श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं, परमपिता परमात्‍मा से प्रार्थना करता हूं कि उनकी आत्‍मा को शांति प्रदान करे, अपने चरणों में निवास दे और हम सबको उनके बताये हुये रास्‍ते पर चलने की प्रेरणा दे, हम सब मिलकर उनके अधूरे कार्यों को पूरा करें.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, इसी तरह से माणकलाल अग्रवाल मेरे ही जिले के रामपुरा, मनासा विधान सभा के रहने वाले थे, वह मंदसौर जिले से सांसद रहे और गरोठ के विधायक भी रहे. एक अच्‍छे सफल व्‍यावसायी भी थे और स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे, उन्‍होंने अपने जीवन में राजनीति में और सामाजिक जीवन में बहुत अच्‍छे कार्य किये, उनको भी मैं श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं और सम्‍मानीय आपने जिन-जिन नेताओं के नाम यहां उल्‍लेखित किये हैं, उन सभी को श्रृद्धां‍जलि अर्पित करते हुये मैं परमपिता परमात्‍मा से प्रार्थना करता हूं इन सबको सदगति प्रदान करे अपने चरणों में निवास दे और हम सबको अच्‍छे मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे, यही कहते हुये मैं अपना स्‍थान ग्रहण करता हूं.

          श्री यशपाल सिंह सिसौदिया (मंदसौर)--  माननीय अध्‍यक्ष महोदय, जिस विधान सभा क्षेत्र का मैं प्रतिनिधित्‍व कर रहा हूं, उस मंदसौर शहर से माननीय पटवा जी को न केवल विधायक होने का अवसर प्राप्‍त हुआ बल्कि वे उस समय मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री भी बने. माननीय अध्‍यक्ष महोदय, तब मैं पत्रकारिता करता था, जब हम पत्रकारिता करते थे तो माननीय मुख्‍यमंत्री जी से हम सवाल करते थे कि मंदसौर को पर्यटक नगरी बनाईये. माननीय पटवा जी का उत्‍तर हुआ करता था कि पर्यटन नगरी नहीं यहां पर पशुपतिनाथ मंदिर विश्‍वविख्‍यात है, यह शहर तीर्थ नगरी के रूप में जाना जाना चाहिये. माननीय अध्‍यक्ष महोदय, वाकपटुता के क्षेत्र में, तर्कशक्ति के क्षेत्र में, स्‍मरण शक्ति के क्षेत्र में माननीय पटवा जी का कोई सानी नहीं था. मैं और मेरा पूरा परिवार माननीय सुंदरलाल पटवा जी के बहुत नजदीक रहा, उनका बहुत आशीर्वाद, बहुत मार्गदर्शन मुझे मेरे पिताश्री को मेरे बड़े भाई को पूरे परिवार को मिलता रहा. माननीय अध्‍यक्ष महोदय, तब मैं बहुत छोटा था तो माननीय पटवा जी की कार्यशैली को मैंने बहुत बचपन से देखा और जब मैं स्‍कूल में पढ़ा करता था. माननीय अध्‍यक्ष महोदय, अविभाजित जिला था मंदसौर, पटवा जी का मुख्‍यालय हुआ करता था, नीमच और मंदसौर एक ही जिला हुआ करता था, वह सहकारिता के नेता थे, उनकी दो-तीन बातें स्‍मरण में आती हैं कि तब वह जनसंघ की राजनीति कोर्ट में, कचहरी में और कृषि उपज मंडी में करते थे. किसानों की लड़ाई को लेकर के और पक्षकारों की मदद को लेकर के मंदसौर का जो किला है, जो कोर्ट है उसकी जो घाटी है उसमें  कभी वह सायकिल से, कभी पैदल,  कभी जीप से जब जैसा साधन मिलता था वह जाया करते थे, वह मंदसौर की मंडी के किसानों से भी  निरंतर संपर्क में रहते थे. आज यदि मंदसौर शहर की मंडी आदर्श मंडी के रूप में स्थापित हुई है तो उसका श्रेय भी आदरणीय पटवा जी को जाता है.तीन दशक पूर्व मंदसौर की कृषि उपज मंडी कैसी होगी लेकिन उस जमीन को तराशने का काम यदि किसी ने किया है तो माननीय सुन्दरलाल पटवा जी ने किया है .

          माननीय अध्यक्ष महोदय, पटवा जी का दायित्व पटवा परिवार के प्रति, जनसंघ परिवार के प्रति और भारतीय जनता पार्टी परिवार के प्रति अद्वितीय था. वे दोनों परिवारों के प्रति समर्पण का भाव रखते थे. जो दूरदृष्टि उनकी संगठन को लेकर के थी, पटवा परिवार को लेकर थी उसका कोई सानी नहीं था. नीमच जिला, मंदसौर जिला वहां की सिंचाई योजनायें चाहे वे मनासा की हों, रामपुरा की हों चाहे मंदसौर विधानसभा क्षेत्र की हों, चाहे भानपुरा-गरोठ की हो उस  मंदसौर जिले को सिंचाई के लिये पानी देने को लेकर माननीय पटवा जी ने जो संघर्षमय यात्रा की है वह अविस्मरणीय है.

          माननीय अध्यक्ष महोदय, आदरणीय पटवा जी से जुड़ी एक घटना आज भी मेरी स्मृति में है जब मेरे पूज्य पिता  ठाकुर किशोर सिंह जी जो कि पूर्व में विधायक भी रहे हैं, तत्समय वह जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के डायरेक्टर थे, तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी और माननीय पटवा जी जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक, नीमच और मंदसौर के अध्यक्ष हुआ करते थे. अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय पटवा जी की दूरदृष्टि को बयान करने का प्रयास कर रहा हूं . भोपाल से एक आदेश पटवा जी को जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के अध्यक्ष पद से हटाये जाने को लेकर निकला जिसमें यह उल्लेख था कि आपको जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के अध्यक्ष पद से हटाया जाता है. इस आशय का आदेश लेकर के दो अधिकारी जब भोपाल से रेल से चलकर मंदसौर आ रहे थे उस समय पटवा जी को इस बात की जानकारी मिल गई थी कि मेरे को पद से हटाये जाने को लेकर के एक आदेश प्रसारित हो गया है जिसे अधिकारी लेकर के आ रहे हैं.माननीय अध्यक्ष महोदय, सुनकर के आश्चर्य हुआ कि तब माननीय पटवा जी ने बोर्ड आफ डायरेक्टर की तत्काल बैठक बुलाई और मेरे पूज्य पिता श्री किशोर सिंह जी को जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक का अध्यक्ष बनाकर के वह स्वयं डायरेक्टर बन गये और जब वे दोनों अधिकारी उस पत्र को लेकर के उनके पास में आये कि पटवा जी आपको इस पद से हटा दिया गया है . मैं आश्चर्य चकित हूं कि पटवा जी कितने दूरदृष्टा थे, उन्होंने दोनों अधिकारियों को कहा कि आप विलंब से आये हैं, इस बैंक के अध्यक्ष तो अब ठाकुर किशोर सिंह जी हो गये हैं आप वापस चले जाईये मैं तो बोर्ड आफ डायरेक्टर का सदस्य मात्र रह गया हूं. ऐसे विचारधारा के व्यक्ति, पार्टी को बचाने वाले, पार्टी को चलाने वाले, पार्टी को शीर्ष स्थान पर पहुंचाने वाले माननीय पटवा जी का हम सब यहां पर स्मरण कर रहे हैं.

          माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं अपने पूरे परिवार की ओर से, इस सदन की ओर से जैसा कि आदरणीय मुख्यमंत्री जी ने, आदरणीय चावला जी ने, आदरणीय बाला बच्चन जी ने पटवा जी और आज की कार्यसूची में जो भी दिवंगत जिनके नामों का यहां पर उल्लेख किया गया है, मैं उनके प्रति अपनी सच्ची श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं, उनके चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करता हूं, और पटवा जी का जो मार्गदर्शन था उस पर हम चलें और पटवा परिवार पर जो वज्रपात हुआ है, भारतीय जनता पार्टी के ऊपर जो वज्रपात हुआ है उसको सहन करने की ईश्वर शक्ति प्रदान करे. इन्ही शब्दों के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं.    ऊं शांति, शांति, शांति.

          श्री महेन्द्र सिंह कालूखेडा(मुंगावली) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मुख्यमंत्री जी, बाला बच्चन जी, चावला जी और यशपाल जी ने स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा जी के बारे में बहुत कुछ कहा मैं कुछ रिपीट नहीं करूंगा. मेरे कुछ अनुभव हैं उनके साथ उनको आपके साथ शेयर करना चाहूंगा.

          माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मंदसौर संसदीय क्षेत्र का चुनाव लड़ा था तब पटवा जी प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, चावला जी गृह मंत्री थे, और यशपाल जी भी हमारे खिलाफ में थे एक पत्रकार के रूप में. उस समय मैं 6 विधानसभा में चुनाव जीता था जावरा, मंदसौर, नीमच, जावद और दो विधानसभा क्षेत्र में मैं माइनस हो गया.टोटल मुझे 3 लाख वोट मिले थे और ड़ॉ.लक्ष्मीनारायण पाण्डेय जी को 3 लाख 6 हजार वोट मिले थे. उस समय चुनाव आयोग की सख्ती भी इतनी नहीं हुआ करती थी, जितनी सख्ती आज है तो कहने का तात्पर्य यह कि चुनाव में काफी संघर्ष हुआ लेकिन उसके बाद भी हमारे व्यक्तिगत संबंध डॉक्टर लक्ष्मीनारायण पाण्डेय और पटवा जी से बहुत अच्छे रहे हैं. उम्र में वे मुझसे बड़े थे और मुझे उनका पूरा आशीर्वाद रहा है.इसके बाद मैं नेश्नल डेयरी कोपरेटिव्ह फेडरेशन का चेयरमेन बना, डॉक्टर कोरियर के स्थान पर तीन वर्ष के लिये और उस समय हमने आंदोलन किया था दुग्ध संघ को लेकर के, उस समय पटवा जी मुख्यमंत्री थे और एक National Dairy Development Board की मीटिंग हुई थी उसमें उन्होंने मुझे डिनर पर बुलाया और मुझे पटवा जी ने कहा कि अच्छा चुनाव लड़े, अब की बार लड़ना जीत सकते हो. मैं एक बार और पटवा जी के   पास में गोपाल भार्गव  जी  की शिकायत लेकर गया कि साहब ये दुग्ध संघों को  इस तरह से कार्यकाल पूरा नहीं करने दे रहे हैं और  हटा रहे हैं, आप उनको रोकिये.  उन्होंने कहा कि हम क्यों रोकें.  आप लोगों ने भी हमारे साथ ऐसा किया था. तो मैंने कहा कि साहब  दुग्ध संघ  में  आप तत्काल वोटर नहीं बन सकते.  एक वर्ष में  कुछ दिनों में निर्धारित कुछ लीटर दूध देना पड़ता है, तब अध्यक्ष बनते हैं.  इसलिये दुग्ध संघों का चुनाव  बहुत स्वच्छता से होता है, उसमें बेईमानी की कोई गुंजाइश  नहीं  होती है.  तो बाकी का  बदला  आप हमसे मत लीजिये. तो  फिर वह मुस्करा दिये.  कुछ नहीं बोले.  मैंने कहा कि  साहब,  इसलिये आपको हम लोगों  को कार्यकाल पूरा करने देना चाहिये  कि  बीजेपी के मंडी अध्यक्ष, श्री भागीरथ पाटीदार जी,  मंदसौर के मंडी अध्यक्ष, श्री गूजर.  आप इन दोनों से पूछ लीजिये  कि कृषि मंत्री  और मंडी बोर्ड के अध्यक्ष के रुप में   मैंने उनके सारे काम किये और  खूब पैसा दिया. तो जब मैंने भेदभाव नहीं किया था, तो आप मेरे साथ  क्यों भेदभाव  कर रहे हैं.  मैंने कहा कि आप श्री बाबूलाल गौर जी से पूछिये.  वे मुझे पकड़ कर  करोंद  मंडी ले गये.  आपने जो मुझे निर्देश दिये,  वह  सब मैंने पूरे किये.  तो फिर वे मुस्करा दिये, कुछ नहीं बोले.  तो मेरा उनसे बहुत अच्छा  अनुभव रहा है और  हम लोग श्री अर्जुन सिंह जी के नेतृत्व में  पटवा जी के खिलाफ आंदोलन करने के लिये कुकड़ेश्वर गये थे. उस समय  जब मैं चुनाव  में  हारा था, वह भड़ास भी मैंने निकाली.लेकिन उसके बाद भी  उनका मुझ पर हमेशा आशीर्वाद बना रहा. श्री  माणकलाल अग्रवाल जी भी   मेरे संसदीय क्षेत्र  मंदसौर से  सांसद थे. उन्होंने  शानदार  रिटायरमेंट लिया, जो कि हमारे लिये एक  शिक्षा हो सकती है.   उनका बहुत अच्छा कार्यकाल  रहा. श्री जगदीश प्रसाद वर्मा जी, शिवपुरी के मेरे मित्र थे. मैंने  श्री मानकूराम सोढ़ी जी  के साथ भी   काम किया है.  अध्यक्ष महोदय,  मैं इन सबको और  बाकी  जिनके नाम  आपने पढ़े हैं,  उन सबको    श्रद्धांजलि देता हूं.

                   श्री बाबूलाल गौर (गोविन्दपुरा) -- अध्यक्ष महोदय,  पूर्व मुख्यमंत्री  और हमारे देश के वरिष्ठ नेता, माननीय सुन्दरलाल पटवा जी के निधन उल्लेख पर आज  हम सब उनको श्रद्धांजलि देने के लिये उपस्थित हैं.  मेरा लगभग 30-40 साल का जो जीवन है, उसकी कृति के लिये अगर  कोई नेता जो हैं, वे दो ही   व्यक्ति मेरे  जीवन  के कृति के नेता  हैं.  एक माननीय कुशभाऊ ठाकरे जी  और दूसरे माननीय सुन्दरलाल पटवा जी.  अध्यक्ष महोदय, उनका अद्भुत  व्यक्तित्व था.  माननीय मुख्यमंत्री जी ने बहुत अच्छे शब्दों में उनको  श्रद्धांजलि अर्पित की और  भी हमारे साथियों ने   उनको श्रद्धांजलि दी.  इस प्रकार के  शब्द तो मेरे पास नहीं हैं.  लेकिन मैं उनके  उदार हृदय  के बारे में बताना चाहता हूं.  मुझसे वे एक दिन कहने लगे  कि पंडित  दीनदयाल उपाध्याय  जी की जयंती है और माननीय अर्जुन सिंह जी को उसमें बुलाना है.  मैंने कहा कि आप क्या बात कर रहे हैं. कहने लगे कि क्या बात कर रहे हैं.  चलो उनको निमंत्रण देकर आयें.  मैंने कहा कि वे  कांग्रेस के  और हमारी पार्टी के  विचारों के  बिलकुल विरोधी हैं, सख्त विरोधी हैं.  उन्होंने कहा कि नहीं, तुम ऐसा समझते हो.  चलो और वे  हमारा निमंत्रण स्वीकार करेंगे  और हम माननीय अर्जुन सिंह जी के पास गये.  वे मुस्करा दिये और बोले  कि  भाई  आप मुझे धर्म संकट में डाल दोगे,  लेकिन मैं आपके कार्यक्रम में आऊंगा जरुर  और उन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के बारे में  विचार रखे थे, गांधी भवन में वह कार्यक्रम हुआ था.  उस समय  कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने  उनके खिलाफ शिकायतें पेश कीं. ऐसे ही मेरे  खिलाफ भी  शिकायतें पेश होती हैं कि मैंने तिरंगा झंडा पकड़ लिया और मेरे खिलाफ  कार्यवाही की जाये.  तो प्रजातंत्र के अन्दर  जितना उदार हृदय माननीय अर्जुन सिंह जी का था,  उतना ही उदार हृदय  सुन्दरलाल पटवा जी का था.  मैं तो उनके  मुख्यमंत्री  कार्यकाल में बुलडोजर मंत्री बना.  अगर और कोई मुख्यमंत्री होता  तो वह परमीशन ही नहीं देता.   कितना कठोर अनुशासन और पूरी निगाह मंत्रियों पर.    इतने अच्छे शब्दों में लोगों ने उनके प्रति   जो सद्भावना  प्रकट की है.  मैं भी उनके चरणों में प्रणाम  करता हूं.  मैं आज जो कुछ भी हूं, उनकी कृपा  से हूं.  इन्हीं शब्दों के  साथ  और हमारे जो साथी हमसे  बिछड़ गये हैं,  उन सभी के चरणों में विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.  जय हिन्द.

          अध्‍यक्ष महोदय - मैं सदन की ओर से शोकाकुल परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करता हूँ. अब सदन दो मिनिट मौन खड़े रहकर दिवंगतों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करेगा.

 

 

 

 

                             (दो मिनिट का मौन धारण किया गया)         

 

 

 

 

 

 

                                        अध्‍यक्षीय घोषणा

मध्‍यप्रदेश के विभिन्‍न उत्‍पादों के प्रदर्शन सह-विक्रय केन्‍द्रों का प्रारंभ एवं

बजट प्रक्रिया पर कार्यशाला विषयक्

          अध्‍यक्ष महोदय - आज दिनांक 22 फरवरी को सदन की कार्यवाही समाप्‍त होने के पश्‍चात् विधानसभा परिसर में मध्‍यप्रदेश के विभिन्‍न उत्‍पादों के प्रदर्शन सह-विक्रय केन्‍द्र भी प्रारंभ हो रहे हैं. तत्‍पश्‍चात् मानसरोवर सभागार में बजट प्रक्रिया पर कार्यशाला का आयोजन किया गया है, जिसमें पीआरएस लेजिस्‍लेटिव दिल्‍ली के विषय विशेषज्ञों द्वारा बजट संबंधी जानकारी दी जायेगी. माननीय सदस्‍यों से अनुरोध है कि दोनों कार्यक्रमों में पधारने का कष्‍ट करें.

                                निधन का उल्‍लेख (क्रमश:)

          दिवंगतों के सम्‍मान में विधानसभा की कार्यवाही गुरुवार, दिनांक 23 फरवरी, 2017 को प्रात: 11.00 बजे तक के लिये स्‍थगित.  

          मध्‍याह्न 12.11 बजे विधानसभा की कार्यवाही गुरुवार, दिनांक 23 फरवरी, 2017 ( 4 फाल्‍गुन, शक संवत् 1938 ) के पूर्वाह्न 11.00 बजे तक के लिये स्‍थगित की गई.

 

भोपाल :                                                                           अवधेश प्रताप  सिंह

दिनांक- 22 फरवरी, 2017                                                          प्रमुख सचिव

                                                                                     मध्‍यप्रदेश विधान सभा