मध्यप्रदेश विधान सभा
की
कार्यवाही
(अधिकृत विवरण)
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चतुर्दश विधान सभा षोडश सत्र
फरवरी-मार्च, 2018 सत्र
शुक्रवार, दिनांक 16 मार्च, 2018
(25 फाल्गुन, शक संवत् 1939)
(खण्ड- 16 ) (अंक- 11)
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मध्यप्रदेश विधान सभा
शुक्रवार, दिनांक
16 मार्च, 2018
(25 फाल्गुन, शक संवत् 1939)
विधान सभा पूर्वाह्न 11.02 बजे समवेत हुई.
{अध्यक्ष महोदय (डॉ. सीतासरन शर्मा) पीठासीन हुए.}
तारांकित प्रश्नों के मौखिक उत्तर
प्रश्न संख्या--1 (अनुपस्थित)
प्रश्न संख्या--2 (अनुपस्थित)
आवंटन के विरुद्ध व्यय पर कार्यवाही
[लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण]
3. ( *क्र. 4035 ) श्रीमती ऊषा चौधरी : क्या लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत मांग संख्या-19 के मुख्य शीर्ष 2210 एवं 2211 के अंतर्गत उद्देश्य शीर्ष कार्यालय व्यय-22-008, भोजन व्यवस्था-34-004, सुरक्षा व्यवस्था-31-005 एवं साफ-सफाई व्यवस्था-31-006 में विगत 03 वर्षों में कितना आवंटन दिया गया? जिलेवार जानकारी देवें। (ख) प्रश्नांश (क) अनुसार आवंटन के विरुद्ध कितना व्यय किया गया? जिलेवार जानकारी देवें। (ग) विभाग द्वारा योजना शीर्ष 1508, 2283, 2777, 5998, 8150, 0621 एवं 2703 के अंतर्गत प्रदेश के समस्त जिलों को वर्ष 2016-17 एवं 2017-18 में कितना आवंटन दिया गया? जिलेवार जानकारी देवें। वर्तमान में साफ-सफाई, सुरक्षा व्यवस्था, वेतन, कार्यालय व्यय के कितने देयक भुगतान हेतु लंबित हैं? उक्त देयकों का भुगतान कब तक कर दिया जावेगा? (घ) क्या विभिन्न प्रकार के उद्देश्य शीर्ष के अनियमित रूप से वित्तीय आवंटन में संचालनालय स्तर से भारी भ्रष्टाचार किया जा रहा है? इसके लिए दोषी अपर संचालक वित्त, संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएँ के विरुद्ध क्या कार्यवाही की जावेगी? यदि नहीं तो क्यों?
लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री (श्री रूस्तम सिंह)--
श्रीमती ऊषा चौधरी--अध्यक्ष महोदय, मेरे प्रश्न के बिन्दु (ग) में साफ-सफाई पर रूपये 6 करोड़ 29 लाख 86 हजार 63 रूपये सुरक्षा व्यवस्था, 2 करोड़ 90 लाख 96 हजार 262 वेतन में 18 करोड़ 6 हजार 815, कार्यालय व्यय में 4 करोड़ 56 लाख 230 रूपये के देयक लंबित हैं. मंत्री जी बतायें कि इसका भुगतान क्यों नहीं किया गया तथा इसका भुगतान कब तक किया जाएगा ?
श्री रूस्तम सिंह--अध्यक्ष महोदय, लंबित भुगतान के बारे में माननीय सदस्या द्वारा कहा गया है. विभाग ने जो जानकारी उपलब्ध कराई है उसमें पेंडेंसी नहीं है. माननीय सदस्या चाहें तो मैं उनको एक एक चीज की उपलब्धता भी बता दूंगा और व्यय हुआ वह भी बता दूंगा, फिर भी कोई जानकारी माननीय सदस्या के पास पर्टिकुलर प्वाइस्ट्स की जानकारी है कि इस जगह पर यह पेंडेंसी है, तो उसका हम भुगतान करवा देंगे.
श्रीमती ऊषा चौधरी--अध्यक्ष महोदय, 6-6 महीने से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को वेतन का भुगतान नहीं हुआ है. अगर भुगतान नहीं हुआ है तो पैसा गया कहां ? जैसे बिन्दु (घ) में मैंने जानकारी चाही थी कि विभिन्न शेष की अनियमितताएं तथा आवंटन स्तर से संचालन में भारी भ्रष्टाचार किये जाने वाले अपर सचिव के विरूद्ध कार्यवाही की जाएगी. उन्होंने छः महीने से वेतन नहीं दिया तो यह पैसा कहां गया ? तथा भुगतान क्यों नहीं किया गया. इन शीर्ष मदों में भुगतान हेतु लंबित है.
श्री रुस्तम सिंह - अध्यक्ष महोदय,वेतन मद में तो कोई भुगतान ही लंबित नहीं है.
अध्यक्ष महोदय - "ग" का आप उत्तर देखें. साफ सफाई में इतने रुपये,सुरक्षा में इतने रुपये,वेतन इतने रुपये,कार्यालय व्यय में इतनी राशि के देयक लंबित हैं. समय-सीमा बताना संभव नहीं है.
श्री रुस्तम सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, यह केवल सतना जिले का ही पूछ रही हैं कि प्रदेश का ?
श्रीमती ऊषा चौधरी -सतना जिले का भी और मध्यप्रदेश का भी.
अध्यक्ष महोदय - इनके जिले में पेंडेंसी नहीं होगी.
श्रीमती ऊषा चौधरी - मेरे जिले में भी है. 6 महीने से वेतन नहीं मिला है चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के जो साफसफाई में लगे हैं और जो कार्यालयों में कार्यरत् हैं.
श्री रुस्तम सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, मुझे यह बताना है कि 2 मद हमारे यहां होते हैं. एक सीएमएचओ का होता है,एक सिविल सर्जन का होता है. जिला चिकित्सालय का सिविल सर्जन का होता है और पूरे जिले का सीएमएचओ का होता है. तो सीएमएचओ में साफ-सफाई में लंबित राशि जीरो है, वेतन में जीरो लंबित राशि है,साफसफाई में अभी हाल के जो बिल हैं वे पेंडिंग होंगे. 6 महीने का एक भी बिल पेंडिंग नहीं है. दूसरे कार्यालय व्यय की बात है, इसमें भी कोई लंबित नहीं है. आप स्पेसिफिक बता देंगी कि इस व्यक्ति का यह बिल लंबित है. तो हम इसे दिखवा लेंगे और आपको बता देंगे तथा पेमेंट भी करवा देंगे.
अध्यक्ष महोदय - आपकी जानकारी में कोई स्पेसिफिक मामला हो तो बता दें.
श्रीमती ऊषा चौधरी - अध्यक्ष महोदय, जानकारी है. यह जो बताया जा रहा है कि लंबित नहीं है जीरो है. लंबित है.
अध्यक्ष महोदय - आप डिटेल्स दे दीजिये मंत्री जी को.
श्रीमती ऊषा चौधरी - धन्यवाद.
प्र.सं. 4 श्रीमती रेखा यादव ( अनुपस्थित )
इंदौर संभाग अंतर्गत पैथोलॉजी लेब/ब्लड कलेक्शन सेंटरों की संख्या
[लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण]
5. ( *क्र. 1945 ) श्री कालुसिंह ठाकुर : क्या लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) अलग-अलग स्थानों पर एवं अन्यत्र शहरों एवं गांवों मे ब्लड सेंपल कलेक्शन करने के सेंटर खोलने के शासन द्वारा क्या दिशा निर्देश दिये गये हैं? उक्त संबंध में प्रसारित दिशा निर्देशों की प्रति उपलब्ध करावें। (ख) इन्दौर संभाग में किन-किन पैथोलॉजी लेब के कितने ब्लड कलेक्शन सेंटर हैं? उन पैथोलॉजी लेब के नाम एवं उनके सेंटर कहाँ-कहाँ पर हैं? उनके नाम, पते सहित जानकारी उपलब्ध करावें।
लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री ( श्री रुस्तम सिंह ) : (क) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र “अ” अनुसार है। (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र “ब” अनुसार है।
श्री कालुसिंह ठाकुर - अध्यक्ष महोदय, मैंने मंत्री जी से जानकारी मांगी थी कि जो भी कलेक्शन सेंटर खोले जाते हैं उनके लिये शासन स्तर पर क्या दिशा-निर्देश हैं ? बहुत सी जगह ऐसे सेंटर खोले गये हैं, जो गैरकानूनी तरीके से चल रहे हैं. क्या उनकी जानकारी उपलब्ध कराएंगे ?
श्री रुस्तम सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, जहां तक सरकारी कलेक्शन सेंटर हैं,वे जितने भी हैं, वह अधिकृत होते हैं लेकिन जो प्रायवेट हैं, जैसे एक लाल पैथोलाजी है उनका कलेक्शन सेंटर तो मध्यप्रदेश के हर जिले में है लेकिन पेथ लैब उनकी दिल्ली में है. तो वह कलेक्शन करते हैं और भेजते हैं. कुछ ऐसे उपकरण हैं तो उनसे कुछ बीमारियों का तत्काल मौके पर बता देते हैं जैसे बी.पी.,शुगर,ब्लड ग्रुप है, वह तो हमारी ऊषा और आशा कार्यकर्ता भी बता देती है कि आपका ब्लड ग्रुप यह है,बी.पी.इतना है,शुगर इतना है. शेष जो जानकारी होती है, वह तो सेम्पल कलेक्ट के बाद ही दी जाती है. माननीय सदस्य ने जो बात कही है, मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि प्रायवेट अस्पताल,प्रायवेट पैथ लैब जहां से भी कलेक्शन करते हैं, जो लोग कलेक्शन करते हैं वह अधिकृत हैं, क्वालीफाईड हैं, नहीं हैं ? यह जानकारी भी मंगवा लेंगे और इस जानकारी की कापी इनको उपलब्ध करवा देंगे.
श्री कालुसिंह ठाकुर - धन्यवाद मंत्री जी. अनुरोध है कि ऐसे जो भी गैरकानूनी लैब खोल रहे हैं उनकी जांच की जाये और उन पर कार्यवाही की जाये.
अध्यक्ष महोदय - उन्होंने कह दिया.
श्री रुस्तम सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, गैरकानूनी जैसी बात ही नहीं है क्योंकि पैथोलाजी अधिकृत होती हैं.
श्री शैलेन्द्र जैन - कुछ नार्म्स निश्चित कर दीजिये. मेरा आपसे आग्रह इतना है. इसमें काफी अनियमितताएं हो रही हैं. अगर सेम्पल कलेक्शन प्वाइंट पर गलतियां हो जाएंगी उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
श्री कालुसिंह ठाकुर - अध्यक्ष महोदय, मैं मंत्री जी से अनुरोध कर रहा हूं कि वह कह रहे हैं कि ऐसा नहीं है परंतु कई जगह लोग बैठे हुए हैं जिनके पास अनुभव नहीं है. ग्रामीण क्षेत्र में लोग समझदार नहीं हैं.
अध्यक्ष महोदय - उसकी तो वह जांच करा लेंगे.
श्री कालुसिंह ठाकुर - बस यही चाहते हैं कि उनकी जांच कराकर उन पर कार्यवाही की जाये.
अध्यक्ष महोदय - इसके नार्म्स तय कर दें.
श्री रुस्तम सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं यह आग्रह करना चाह रहा था. थोड़ी सी मिसअण्डरस्टैंडिंग हो रही है.कलेक्शन सेंटर और पैथोलाजी बिल्कुल अलग-अलग चीजें हैं. ये पैथोलाजी लैब को भी कलेक्शन सेंटर बोल देते हैं. कोई भी पैथ लैब बिना क्वालिफाईड एलोपैथी के डॉक्टर के चल ही नहीं सकते, वे बकायदा हमारे यहां रजिस्टर्ड होते हैं, बकायदा उनकी जांच होती है, ऐसी कोई बात नहीं है.
अध्यक्ष महोदय- जो श्री शैलेन्द्र जैन जी ने कहा है वह पैथोलॉजी लैब के बारे में नहीं है, वह कलेक्शन सेंटर के बारे में ही है, कलेक्शन सेंटर में भी अलग-अलग सॉल्यूशन्स में अलग-अलग टेस्ट उसमें लिया जाता है.
श्री शैलेन्द्र जैन - अध्यक्ष महोदय, अनस्किल्ड लोग कलेक्शन कर रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय - उसमें भी ट्रेंड लोग होना चाहिए, उनका कहना है कि कलेक्शन सेंटर के भी कोई नॉर्म्स तय हो जायं, पैथोलॉजी लैब के तो नॉर्म्स है हीं, ऐसा उनका कहना है.
श्री रुस्तम सिंह - अध्यक्ष महोदय, मैं पहले ही आपको निवेदन कर दिया था कि हमने ऐसे निर्देश जारी किये हैं कि जितने भी प्राइवेट पैथोलॉजी की या कोई भी जो पैथ लैब हैं वे अधिकृत हैं टेस्ट करने के लिए, उनकी कोई भी एजेंसी कहीं भी जाती है तो उनकी जो मिनिमम क्वालिफिकेशन है वह है कि नहीं, यह जानकारी मिले और वे ठीक हैं कि नहीं हैं, यह 15 दिन में हम सुनिश्चित करा देंगे.
श्री कालुसिंह ठाकुर - ठीक है, मंत्री महोदय. धन्यवाद.
प्रसूता माताओं/आशा कार्यकर्ताओं को आर्थिक सहायता
[लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण]
6. ( *क्र. 2626 ) पं. रमेश दुबे : क्या लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) म.प्र. प्रसूता माताओं एवं आशा कार्यकर्ताओं को किस योजना में कितनी राशि, प्रसूति के कितने दिनों के भीतर भुगतान किये जाने के नियम निर्देश हैं? क्या छिन्दवाड़ा जिले में नियम निर्देशों के अनुसार समय पर इस योजना का लाभ हितग्राहियों को मिल रहा है? यदि नहीं तो क्यों और यदि हाँ, तो विकासखण्ड चौरई एवं बिछुआ के विगत एक वर्ष में हुए प्रसूति का दिनांक एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के दिनांक सहित दस्तावेज संलग्न करें। (ख) छिन्दवाड़ा जिले के विकासखण्ड चौरई एवं बिछुआ में किन-किन प्रसूता माताओं एवं आशा कार्यकर्ताओं को उक्त योजना के तहत राशि का भुगतान होना कब से लंबित है? लंबित रहने का कारण स्पष्ट करते हुए यह बतावें कि इसके लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं और इन्हें कब तक भुगतान कर दिया जावेगा? (ग) क्या विकासखण्ड चौरई में उक्त योजना की राशि नगद भुगतान करने, भुगतान करते समय राशि काटकर कम भुगतान करने की शिकायत प्राप्त होने पर प्रश्नकर्ता ने कलेक्टर छिन्दवाड़ा, जिला कार्यक्रम अधिकारी, छिन्दवाड़ा, प्रभारी मंत्री छिन्दवाड़ा को पत्र प्रेषित किया है? यदि हाँ, तो इस पत्र पर किस स्तर से क्या कार्यवाही की गयी है? (घ) क्या उक्त शिकायत की कोई जांच की गयी है? यदि हाँ, तो कौन लोग दोषी पाये गये? क्या कार्यवाही की गयी है? कथन व जांच प्रतिवेदन की प्रति संलग्न करें और यदि नहीं तो क्या जांच की जाकर इस प्रकार के नगद भुगतान करने वालों के विरूद्ध कार्यवाही कर नगद भुगतान प्रतिबंधित किया जावेगा?
लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री ( श्री रुस्तम सिंह ) :
पं.रमेश दुबे - अध्यक्ष महोदय, मेरे प्रश्नांश ग के उत्तर में जवाब दिया गया है कि मैंने जो पत्र दिया था, वह उन्हें प्राप्त हुआ है. मेरा पत्र दिनांक 5.8.16 का था. इस पत्र के विषय में जो जांच की गई, वह जानकारी मुझे नहीं दी गई और पत्र प्राप्ति की भी जानकारी नहीं दी गई. मेरे पत्र में मैंने पूछा था कि आशा कार्यकर्ताओं, प्रसूता महिलाओं की मातृत्व की जो राशि वितरित की जाती है और इसमें जो विसंगति है उस बात का उल्लेख इस पत्र में किया था. अध्यक्ष महोदय, मुझे जो उत्तर प्राप्त हुआ है, जिसमें जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत 10 दिवस के अंदर प्रसूति महिलाओं को भुगतान होना चाहिए. लगभग 4 से 5 माह के बाद यह भुगतान हुआ है, ऐसा उत्तर में परिलक्षित हो रहा है. साथ ही साथ मैंने मातृत्व सहायता योजना की भी जानकारी मांगी थी, वह जानकारी मुझे अभी तक प्राप्त नहीं हुई है. यह विसंगतियां मेरे अपने विकासखण्ड में सीएचसी सेंटर में हो रही हैं. मैं माननीय मंत्री जी से जानना चाहता हूं कि जो उत्तर दिया गया है तो चौरई विकासखण्ड में 150 के आसपास अभी तक जननी सुरक्षा योजना में भुगतान नहीं हुआ है. 50 के आसपास बिछुआ विकासखण्ड में भुगतान नहीं हुआ है. आखिर इसके लिए हमारे प्रशासनिक अधिकारी जिम्मेदार तो हैं और मातृत्व सहायता योजना की जानकारी मुझे प्रदान नहीं की गई है?
श्री रुस्तम सिंह - अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने जो पहला प्रश्न किया है वह यह है कि कितने दिन में भुगतान होना चाहिए और कितने मामलों में भुगतान हो गया और विशेषकर इन्होंने दो विकासखण्डों के बारे में पूछा है. पहले प्रश्न में चौरई और बिछुआ के बारे में कहा है. अध्यक्ष महोदय, पूरे भुगतान हुए हैं. केवल यह बिछुआ में 153 मामले थे उनमें से अब भुगतान होने के बाद 31 मामले बचे हैं, चौरई के 47 मामले पेंडिंग थे, वे 47 अभी भी पेंडिंग हैं. मैं यह निवेदन करना चाहता था कि यह पेंडेंसी का जो कारण है, वह केवल इसलिए है कि उनके खाते नम्बर उपलब्ध नहीं हो पाए हैं. हमने निर्देश दिये हुए हैं कि हितग्राही जिसका हो गया, चाहे उसके गांव जाना पड़े, उसके घर जाना पड़े और बैंक भी जाना पड़े तो इसको लीजिए और इनके भुगतान कराइए. जल्दी से जल्दी भुगतान हों, अगर ऐसा हो कि किसी का खाता ही नहीं खुला है तो खाता खुलवाने के लिए भी प्रेरित करेंगे.
पं. रमेश दुबे - अध्यक्ष महोदय, हम आशा कार्यकर्ता को प्रोत्साहन राशि देते हैं. मैं ऐसा मानता हूं कि आपकी आशा कार्यकर्ता बैंक के नम्बर लेकर भी वह प्रसूता को लेकर अस्पताल आती है. लेकिन जो प्रशासनिक दृष्टि से कार्यवाही सीएचसी सेंटर पर होना चाहिए, उसके पीछे मुख्य जो कारण है कि मेरे चौरई विकासखण्ड में मात्र एक डॉक्टर है वह भी अप-डाउन छिंदवाड़ा से करता है. वहां प्रशासनिक नियंत्रण नहीं है और आने के बाद वह प्राइवेट प्रैक्टिस करता है, उसके पास बीएमओ का भी चार्ज है. लगातार आपसे संपर्क करके और प्रश्न के माध्यम से इस विषय को उठाया और इसके कारण जितनी शासन की योजना है, उसमें बहुत ज्यादा विलंब हो रहा है. यह स्थिति बन जाती है तो जब हम आपके बीएमओ से चर्चा करते हैं तो बीएमओ हमसे इस बात को कहता है कि साहब मुझे हटा दीजिए. इस प्रकार की बातचीत करता है, जिसके बारे में मैंने जिला अधिकारियों से चर्चा भी की है. मैं माननीय मंत्री जी से इस बात का आग्रह करना चाहता हूं, योजनाओं का समय के अंदर क्रियान्वयन हो सके. हितग्राही को उसका लाभ मिल सके. वह जो डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस करता है, छिंदवाड़ा से आता है. रात में कोई डॉक्टर सीएचसी सेंटर में नहीं है. 5 पीएचसी है और 1 सीएचसी है, जिसमें 1 ही डॉक्टर है, वह बीएमओ के चार्ज में भी है. उसको प्रशासनिक कार्यवाही भी करना पड़ती है और लोगों का इलाज भी करना पड़ता है, जिसके कारण यह बहुत ज्यादा असंतोष का विषय है. प्रशासनिक कार्यवाही भी करनी पड़ती है और लोगों का इलाज भी करना पड़ता है. जिसके कारण बहुत ज्यादा असंतोष है. मैं माननीय मंत्री जी से इतना आग्रह करना चाहता हूं कि उसको बीएमओ के चार्ज से हटा दें और मुझे वहां पर और डॉक्टर दे दें जिससे प्रशासनिक योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक हो सके और लोगों का समय पर इलाज हो सके.
श्री रुस्तम सिंह- अध्यक्ष महोदय, आपके प्रश्न से जो अब आपने कहा है उससे कहीं भी यह प्रश्न उद्भूत नहीं होता है.
पं. रमेश दुबे- अध्यक्ष महोदय, यह बात जरूर है, लेकिन हमारे यहां बीएमओ प्रशासनिक क्रियान्वयन को देखता है, सप्ताह में और मंथली बैठकें होती हैं, उसके बाद बीएमओ का चार्ज है. यह बात सही है कि प्रश्न उद्भूत नहीं होता, लेकिन मैंने ही प्रश्न लगाया है. व्यवस्थाओं से यह उद्भूत होगा है, अगर आपके अधिकारी क्रियान्वयन नहीं करेंगे तो यह कैसे संभव होगा ?
अध्यक्ष महोदय- क्रियान्वयन नहीं होने का उन्होंने कारण भी बता दिया है. अब मंत्री जी आप वह कारण ठीक कर दीजिए.
श्री रुस्तम सिंह- अध्यक्ष महोदय, कारणों को ठीक कर देंगे और सदस्य का कहना है कि वह रहता नहीं है और ऐसा जबाब माननीय विधायक जी को देता है कि मेरा स्थानांतरण करा दीजिए, यह तो बिल्कुल गैर-जिम्मेदाराना और अनुशासन- हीनता वाला जवाब है. मैं आपके मार्फत विधायक जी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि वह अधिकारी आचरण सुधारें, बात संवेदनशीलता की करें और बाकी व्यवस्थाएं ठीक हों इसको हम सुनिश्चित करेंगे.
पं. रमेश दुबे- अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए कहा है मैं इतना आग्रह करना चाहता हूं कि इसकी समय सीमा सुनिश्चित भी कर दें.
श्री सुखेन्द्र सिंह- अध्यक्ष महोदय, जब तक डॉक्टर उपलब्ध नहीं कराएंगे तब तक इसका निदान कैसे होगा ? पूरे प्रदेश में यह हालत है.
अध्यक्ष महोदय- वे सक्षम और बहुत सीनियर सदस्य हैं.
श्री रुस्तम सिंह- माननीय सदस्य इतने वरिष्ठ हैं, आप ही बता दें कि इतने दिन में कर दें, तो हम उतने दिन में कर देंगे.
पं. रमेश दुबे- मैं आग्रह करना चाहता हूं कि आप वहां पर 15 दिन में व्यवस्था करवा दीजिए.
श्री रुस्तम सिंह- अध्यक्ष महोदय, हम 12 दिन में ही कर देंगे.
पर्यटन विकास की योजनाओं का क्रियान्वयन
[पर्यटन]
7. ( *क्र. 4319 ) श्री जितू पटवारी : क्या राज्यमंत्री, संस्कृति महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) म.प्र. में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री जी द्वारा विगत पांच वर्षों में क्या-क्या घोषणायें की हैं? वर्षवार जानकारी देवें। (ख) प्रश्नांश (क) के अनुसार की गई घोषणाओं की वर्तमान स्थिति क्या है? कितनी घोषणाओं पर प्रश्न दिनांक तक कोई कार्य नहीं हुआ है एवं जिन घोषणाओं पर कार्य चल रहा है अथवा पूर्ण हो चुका है, उन पर कितनी राशि व्यय की गई है? (ग) विगत तीन वर्षों में विभाग को केन्द्र सरकार के द्वारा किन-किन योजनाओं हेतु कितना-कितना फंड अनुदान के रूप में प्रदान किया गया है एवं विभाग द्वारा उनमें से किन-किन योजनाओं पर कितना-कितना व्यय किया गया है? योजनावार एवं वर्षवार जानकारी देवें। (घ) विभाग द्वारा सिंहस्थ महापर्व 2016 हेतु किन-किन योजनाओं के कार्यों हेतु कितना-कितना फंड रखा था? किन-किन योजनाओं या कार्यों में कितना-कितना व्यय हुआ, इसकी जानकारी देते हुए यह भी बतायें कि विभाग द्वारा सिंहस्थ महापर्व में कुल कितना व्यय किया गया है?
राज्यमंत्री, संस्कृति ( श्री सुरेन्द्र पटवा ) : (क) एवं (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'अ' अनुसार। (ग) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'ब' अनुसार। (घ) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'स' अनुसार।
कुंवर सौरभ सिंह सिसोदिया- अध्यक्ष महोदय, मेरा मंत्री जी से यह प्रश्न है कि विगत जो घोषणाएं हुई हैं वर्ल्ड हैरिटेज को शामिल कराने के लिए इसमें क्या क्या प्रयास हुए हैं ?
राज्यमंत्री, स्कूल शिक्षा (श्री दीपक कैलाश जोशी)- अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य के प्रश्न का विस्तृत उत्तर हमने दे दिया है और कुल 83 घोषणाएं की थीं जिसमें से 29 घोषणाएं पूर्ण कर ली गई हैं और 51 घोषणाएं प्रचलन में हैं और तीन घोषणाएं जो दूसरे विभागों से जुड़ी हुई थीं उनके बीच कार्यवाही चल रही है.
कुंवर सौरभ सिंह सिसोदिया- अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न यह है कि ओंकारेश्वर और मांडव को वर्ल्ड हैरिटेज के लिए हम क्या कर सकते हैं ? इसमें शासन क्या पहल करेगा ?
श्री दीपक कैलाश जोशी- अध्यक्ष महोदय, वर्ल्ड हैरिटेज बनाने के लिए केन्द्र सरकार के साथ मिलकर काम करना पड़ता है. प्रस्ताव हमने प्रस्तावित किए हैं. उसमें अभी कार्यवाही प्रचलन में है.
सिविल चिकित्सालय रांझी का उन्नयन व विस्तार
[लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण]
8. ( *क्र. 1691 ) श्री अशोक रोहाणी : क्या लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) विधानसभा क्षेत्र केंट जबलपुर के तहत स्थित सिविल चिकित्सालय रांझी में आसपास के कितने गांवों के मरीज इलाज हेतु आते हैं? ओ.पी.डी. में औसतन प्रतिमाह कितने मरीजों की जांच कर उनका उपचार किया जाता है? कितने मरीजों को भर्ती किया गया एवं कितने मरीजों को अन्यत्र रेफर किया गया है? वर्ष 2014-15 से वर्ष 2017-18 तक की माहवार जानकारी दें। (ख) क्या प्रश्नांकित सिविल चिकित्सालय की ओ.पी.डी. में मरीजों के इलाज व स्वास्थ्य संबंधी सभी सुविधाएं व संसाधन पर्याप्त हैं? यदि नहीं, तो इसके लिये कौन-कौन सी व्यवस्थाएं, संसाधन उपकरण व मशीनरी की आवश्यकता है? चिकित्सकों के कितने पद खाली हैं एवं क्यों? इसके लिये जिला प्रशासन व शासन ने क्या प्रयास किये हैं? (ग) क्या प्रश्नांकित सिविल चिकित्सालय में मरीजों की बढ़ती हुई संख्या को देखते हुये इसकी ओ.पी.डी. व चिकित्सालय का उन्नयन व विस्तार कराने की आवश्यकता है? यदि हाँ, तो जिला प्रशासन व शासन ने इसका उन्नयन व विस्तार कराने की क्या योजना बनाई है? यदि नहीं तो क्यों? (घ) प्रश्नांकित सिविल चिकित्सालय में व्याप्त अव्यवस्थाओं, संसाधनों, उपकरणों आदि का अभाव चिकित्सकों की कमी को दूर करने हेतु शासन ने क्या प्रयास किये हैं? इसमें कब-कब, क्या-क्या सुधार व्यवस्थाएं, संसाधनों, उपकरणों/मशीनरी की पूर्ति की है? वर्ष 2014-15 से 2017-18 तक वर्षवार पृथक-पृथक जानकारी दें।
मंत्री, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण (श्री रुस्तम सिंह)-
श्री अशोक रोहाणी- अध्यक्ष महोदय, आज आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी का सबसे पहले आभार और धन्यवाद प्रकट करूंगा कि उन्होंने रांझी अस्पताल जो डॉक्टर्स के लिए तरसता था वहां पर 12-12 डॉक्टर्स हमको एक साथ दिए हैं, इसके लिए मैं उनका आभार और धन्यवाद प्रकट करता हूं और जब उम्मीद पूरी होती है तो उम्मीद और बढ़ती भी है. मैं आपके माध्यम से जो अस्पताल में संसाधनों की कमी है, डॉक्टरों के कारण मरीजों की संख्या भी बढ़ी है, लेकिन संसाधन नहीं हैं, तो मैं इस सदन में आग्रह करूंगा कि मुझे रांझी अस्पताल के लिए वे संसाधन प्रदान किए जाएं. वहां पर आकस्मिक चिकित्सा कक्ष विभाग नहीं है जिसके कारण इमरजेंसी में गंभीर रूप से पीडि़त मरीज की विक्टोरिया और मेडिकल पहुंचते-पहुंचते डेथ हो जाती है. इसलिए आकस्मिक चिकित्सा विभाग खोला जाए. वर्तमान में अस्पताल में चार वार्ड हैं. दो वार्ड मेडिसिन वार्ड और सर्जिकल वार्ड की और आवश्यकता है. वर्तमान में एक्सरे मशीन 100 एमए पोर्टेबल मशीन है जिससे संपूर्ण जांच पूरी नहीं हो पाती हैं. अत: मेरा आग्रह है कि 300 एमए पोर्टेबल मशीन उपलब्ध कराने का कष्ट करें. डॉक्टरों में स्टॉफ के लिये 4 स्टॉफ क्वार्टर्स की आवश्यकता है. ओपीडी रुम की आवश्यकता है. आज मैं मंत्री जी से आग्रह करुंगा कि इस अस्पताल को आस पास के क्षेत्र के हिसाब से और सर्व सुविधायुक्त बनाया जाये, क्योंकि आस पास बहुत बड़े गांव और रांझी का बहुत बड़ा एरिया उससे जुड़ा हुआ है, उनको बहुत लाभ मिलेगा.
श्री रुस्तम सिंह -- अध्यक्ष महोदय, हम वैसे तो आपके मार्फत में यही कहना चाहते हैं कि इन्होंने आनुपातिक दृष्टि से बहुत सुविधाएं प्राप्त की हैं. इनकी विनम्रता भी और इनके मांग करने के तरीके भी, अब और जो बचा है, जिस-जिस चीज की जरुरत है, यह हमें बतायें, बता भी देंगे अलग से और उसको भी कराने का हम पूरा प्रयास करेंगे, क्योंकि मेरा व्यक्तिगत भी इनके प्रति भाव रहता है कि इनके कहने से अधिक से अधिक काम हों. इनके पिताजी मेरे बहुत करीबी मित्र रहे, क्योंकि मैं जबलपुर में साढ़े चार साल एसपी रहा, तब से मेरे इनसे अच्छे संबंध हैं. मैं इनका वह काम भी करवा दूंगा.
श्री अशोक रोहाणी -- अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से मंत्री जी का बहुत बहुत धन्यवाद करता हूं.
पं. रमेश दुबे -- अध्यक्ष महोदय, मैं मंत्री जी से यह जानना चाहता हूं कि आपके डॉक्टरों के पदों की पूर्ति के लिये तरीका क्या है. वह हमें पता नहीं है, मैं मंत्री जी से जानना चाहूंगा कि वे तीरका बता दें, हम वैसा तरीका अपनायें और इतने बड़े अस्पताल में चूंकि रात में हमारे यहां डॉक्टर नहीं रहने के कारण दुर्घटना होने के कारण लोगों का इलाज नहीं करा पाते हैं. मंत्री जी, जो तरीका आप बतायें, वह तरीका मैं करने के लिये तैयार हूं, लेकिन मेरे यहां तो कम से कम व्यवस्था हो जाये.
..(हंसी)..
डॉ. गोविन्द सिंह -- मंत्री जी, सामने नहीं बता सकते तो गुपचुप तरीके से बता दे, कौन सी व्यवस्था हम ढूंढे. आज भी तमाम संविदा के लिये एमबीबीएस डॉक्टर घूम रहे हैं. आपने उन पर प्रतिबंध लगा दिया. आप उनकी भर्ती क्यों नहीं कर रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय -- डॉक्टर साहब, अभी उनके विभाग की डिमांड्स आयेंगी, तब आप पूरी बात कर लेंगें, तो अच्छा रहेगा. प्रश्न संख्या-9.
निजी एवं शा. चिकित्सालयों में संचालित भोजन शालाएं
[लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण]
9. ( *क्र. 686 ) श्री यशपालसिंह सिसोदिया : क्या लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) उज्जैन, इंदौर संभाग के कितने शासकीय एव निजी चिकित्सालय आई.एस.ओ. एवं नेशनल क्वालिटी इंश्योरेंस जैसी संस्थाओं से रजिस्टर्ड हैं? सूची उपलब्ध करायें। क्या निजी चिकित्सालयों को उक्त संस्थाओं से रजिस्टर्ड नहीं होने के बाद भी चिकित्सालय संचालन की अनुमति दी जा सकती है? (ख) उक्त संभाग के कितने चिकित्सालयों, नर्सिंग होम ने अस्पताल में ही भोजनशाला प्रारम्भ करने हेतु फूड लायसेंस रजिस्ट्रेशन ले रखा है, उनकी प्रतिलिपि चिकित्सालयों के नाम सहित उपलब्ध करायें। क्या उक्त संभाग के निजी चिकित्सालयों में मरीजों एवं परिवारजनों के भोजन की दर स्वास्थ्य विभाग के किसी सक्षम अधिकारियों की उपस्थिति में तय किये जाते हैं? यदि हाँ, तो निजी चिकित्सालयों में तय दर चिकित्सालयवार उपलब्ध करायें (ग) गत 1 जनवरी 2010 के पश्चात उक्त संभाग के कितने-कितने निजी चिकित्सालयों में फूड-पॉयजनिंग के प्रकरण कहाँ-कहाँ सामने आये? क्या चिकित्सालयों में भोजन मरीज की डाईट अनुसार दिया जाता है? यदि हाँ, तो कम मात्रा के भोजन के 200-300 रु. क्यों लिए जाते हैं? क्या उक्त अवधि में उपसंचालक खाद्य व औषधि प्रशासन ने इन निजी चिकित्सालयों के भोजन के सेम्पल की जाँच की है? यदि हाँ, तो उसमें क्या-क्या कमियाँ कहाँ-कहाँ पायी गयी? सेम्पल की दिनांकवार जानकारी देवें। यदि नहीं तो क्यों?
लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री ( श्री रुस्तम सिंह ) :
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया -- अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न वैसे तो पूरे मध्यप्रदेश के निजी और सरकारी अस्पतालों से संबद्ध था,लेकिन संक्षिप्त करते हुए इन्दौर एवं उज्जैन संभाग तक इसको सीमित किया गया है. आप स्वयं एक चिकित्सक रहे हैं और मैं आपसे संरक्षण चाहूंगा. जीवन से जुड़ा मामला है, उन निजी चिकित्सालयों एवं सरकारी अस्पतालों में जहां पर औषधि के साथ साथ भोजन की सामग्रियां निजी केंटीन्स के माध्यम से, भोजन शालाओं के माध्यम से या यूं कहें कि निजी चिकित्सालयों में स्वयं के द्वारा वितरित करने को लेकर के है, एक तो उसका जो रेट है, अगर किसी मरीज की न्यूनतम डाइट है, उस दिन जिस दिन भर्ती होता है, उस दिन भी 300 रुपये, 400 रुपये वसूल किये जाते हैं प्रायवेट अस्पतालों में और जिस समय वह ठीक होने की स्थिति में होता है, तब भी डाइट के 300-400 रुपये लिये जाते हैं. मेरा एक आपसे यह निवेदन था. अध्यक्ष महोदय, मुझे मंत्री जी के विभाग से प्राप्त प्रश्नांश (क) के उत्तर में इंदौर एवं उज्जैन संभाग के नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस एवं आई.एस.ओ. रजिस्ट्रेशन की बाध्यता से इंकार किया है. इसी के साथ साथ दोनों संभागों में परिशिष्ट दो को अगर आप देखेंगे, तो संभाग में 13 ने निजी में आई.एस.ओ. रिजस्ट्रेशन हैं, जबकि 7 की जानकारी निरंक है. मैं मंत्री जी की बात से सहमत हो सकता हूं कि नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस में एवं आई.एस.ओ. में रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता के लिये बाध्यता नहीं है. मैं मंत्री जी का ध्यान आकर्षित भी करना चाहूंगा और यह भी आग्रह करना चाहूंगा कि माननीय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, श्री जे.पी. नड्डा जी का एक पत्र 12 जनवरी,2017 का आप और आपका विभाग अवलोकन कर लें और उसके बारे में आप जब भी चाहें मुझे अवगत करा दें. एन.क्यू.ए.एस की बाध्यता को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जी ने बेहतरीन सेवा देने के लिये और कायाकल्प के संदर्भ में 3 सदस्यीय टीम का भारत शासन के मूल्यांकन के आधार पर दिनांक 6.12.2016 से लेकर के 8.12.2016 तक के लिये एक असिस्मेंट समिति बनाई थी. जिला तापी, गुजरात के व्यास जनरल हास्पीटल में 85 प्रतिशत उपयुक्त मानदण्डों के आधार पर एन.क्यू.ए.एस. में प्रथम है, पूरे हिन्दुस्तान में..
अध्यक्ष महोदय -- आपका प्रश्न क्या है.
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया -- अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न इसी से उद्भूत हो रहा है. साथ में स्वास्थ्य मंत्री जी ने नड़ियाद और मेहसाणा में भी कुछ शर्तों के साथ एनक्यूएएस की प्रामाणिकता को सशर्त दिया गया था. मैं मंत्री जी से आग्रह करुंगा कि अगर भारत सरकार ने गुजरात को कोट करते हुए अगर इतना महत्वपूर्ण पत्र प्रेषित किया और पूरे देश पर लागू करने की बात की है, तो क्या आपका विभाग और आप स्वयं इन शर्तों के आधार पर, ताकि उसकी बेहतरीन सुविधा के लिये एनक्यूएएस का प्रमाण पत्र प्राप्त किया जा सके, इसके बारे में कोई कार्यवाही करेंगे. यह मेरा एक प्रश्न है.
श्री रुस्तम सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय विधायक जी ने व्यवस्थाओं को बेहतर करने के लिए सजेस्टिव और सुधारात्मक उपाय करने के केन्द्रीय मंत्री जी के पत्र का उल्लेख किया है, हम उसका गहन परीक्षण भी कराएंगे और उसके परिप्रेक्ष्य में बेहतरी के लिए और क्या-क्या हो सकता है, वह जरूर करेंगे.
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा दूसरा प्रश्न निजी चिकित्सालयों और शासकीय चिकित्सालयों में भोजन की व्यवस्था को लेकर है. माननीय मंत्री जी ने इस बात से इंकार किया है कि हमारे विभाग का मामला नहीं है, यह खाद्य विभाग का मामला है. लेकिन परिसर तो लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय का है और उसमें अगर भोजन केन्टीन से आता है, कहीं किसी भण्डारे से आता है और अगर प्रदूषित तथा अमानक भोजन मरीजों को मिलता है तो अनेक घटनाएं घटित हुई हैं. अगर आप परिशिष्ट-तीन देखें तो पता चलता है कि 9 में से 4 की जांच रिपोर्ट विभाग ने, संयुक्त नियंत्रक, खाद्य एवं औषधीय प्रशासन ने अभी भी अप्राप्त बताई है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इंदौर का अरबिंदो चिकित्सालय बड़ा नामचीन चिकित्सालय है. माननीय मंत्री जी, मगज, तरबूज और कोकोनट पाऊडर मानक स्तर से कम पाया गया था और उस पर मिथ्या छाप थी, उसके ऊपर फर्जी छाप था, इसको लेकर प्रकरण क्रमांक 78, दिनांक 17.02.2016 माननीय न्याय निर्णय अधिकारी, जिला इंदौर में दायर किया गया था. आरोपी यानि अरबिंदो अस्पताल पर 20 हजार रुपये का अर्थदण्ड आरोपित किया गया था. मैं माननीय मंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूँ कि आपकी जवाबदारी है या नहीं है, लेकिन संयुक्त जवाबदारी होती है कि आप खाद्य विभाग के महकमे के साथ, विशेषकर खाद्य एवं औषधि विभाग तो आपका स्वयं का है, आप उनकी संयुक्त टीम का गठन करें और इस प्रकार अमानक जो खाद्य सामग्रियां जा रही हैं और अर्थदण्ड हो रहे हैं, इस पर ध्यान दें. मुझे जो जवाब मिला है उसमें से 9 में से 4 की रिपोर्ट्स अभी भी अप्राप्त हैं, ये चारों रिपोर्ट्स मुझे कब तक प्राप्त हो जाएंगी, इसकी समय-सीमा आप बताने का कष्ट करें.
श्री रुस्तम सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, फूड एंड ड्रग्स वाला जो विभाग है, यह विभाग भी स्वास्थ्य विभाग में ही आता है. यह स्वास्थ्य विभाग का ही एक हिस्सा है. इसलिए वह जवाबदारी भी स्वास्थ्य विभाग की है. मैं आपके मार्फत माननीय विधायक जी को यह बताना चाहता हूँ कि विभाग पूरी तरह से मुस्तैद है. जहां भी हमको लगता है, शिकायत मिलती है या मोटे तौर पर भी जानकारी मिलती है तो स्वास्थ्य विभाग का हमारा अमला, जैसा वे चाहते हैं, टीम बनाकर इन हॉस्पिटल्स में, जो प्राइवेट हॉस्पिटल्स हैं, उनमें भी जो खाद्य सामग्री तैयार की जा रही है, उनके सैम्पल भी लिए जाएंगे और त्वरित गति से कार्यवाही की जाएगी. मैं आपके मार्फत पूरे सदन को यह बताना चाहता हूँ कि इसके लिए पहले केवल एक ही लैब भोपाल में थी, अब इंदौर और जबलपुर में भी लैब खोली जा रही है, इस तरह से 3 लैब हो गई हैं तो जो देरी लगती थी, वह नहीं होगी और रिजल्ट्स जल्दी मिलेंगे. यह विशेषकर इंदौर में हुआ है तो इंदौर उज्जैन संभाग में बहुत जल्दी इसके रिजल्ट्स हमें मिलेंगे. पहले पेंडेंसी होती थी, यह कार्यवाही भी स्वास्थ्य विभाग ने कराई है. यह स्वीकृत हो चुकी हैं, जल्दी चालू हो जाएंगी.
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा उत्तर नहीं आया है. 9 में से 4 की जांच रिपोर्ट्स अभी भी अप्राप्त हैं, मैं परिशिष्ट-तीन की बात कर रहा हूँ, इसकी जानकारी मुझे कब तक उपलब्ध करा देंगे, समय-सीमा बता दें.
श्री रुस्तम सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय विधायक जी वैसे तो बहुत विद्वान हैं, समय-सीमा मैं क्या बताऊँ, जब रिपोर्ट्स उपलब्ध हो जाएंगी तभी तो दी जाएंगी. मैंने कह भी दिया कि एक ही लैब है, बहुत पेंडेंसी रहती है, इंदौर में भी शुरू हो जाएगी तो पेंडेंसी नहीं रह जाएगी. लेकिन इतना विश्वास दिलाता हूँ कि जिस दिन भी इसकी रिपोर्ट आ जाएगी, उसी दिन माननीय सदस्य को उपलब्ध करा दी जाएगी.
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया -- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने रेट का तो कुछ बताया ही नहीं, 200 रुपये डाईट, 300 रुपये डाईट, 400 रुपये डाईट, मनमाना पैसा ले रहे हैं, रेट का आप बता दें, आपका अस्पताल परिसर है ?
श्री रुस्तम सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, ये प्राइवेट हॉस्पिटल्स हैं, जिनमें बाम्बे हॉस्पिटल, चोईथराम हॉस्पिटल हैं या और भी हॉस्पिल्स हैं, उनके रेट वे स्वयं तय करते हैं. उस पर शासकीय तौर पर हम लोगों की तरफ से कोई बंधन नहीं है कि आप इस चीज को इस रेट में देंगे क्योंकि फिर यह बात आती है कि हम क्वालिटी मेन्टेन नहीं कर पाएंगे. इसलिए इस झमेले में स्वास्थ्य विभाग अभी तक नहीं पड़ा है. फिर भी विधायक जी इस पर भी कोई सजेशन देंगे तो उस पर कार्यवाही करने का जरूर प्रयास करेंगे.
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया -- अध्यक्ष महोदय, बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री शंकरलाल तिवारी -- माननीय अध्यक्ष महोदय, बहुत संवेदनशील विषय है, मुझे एक सेंकड कह लेने दीजिए.
अध्यक्ष महोदय -- नहीं तिवारी जी, श्री सोलंकी जी अपना प्रश्न करें.
श्री शंकरलाल तिवारी -- अध्यक्ष महोदय, बहुत संवेदनशील मामला है, सिर्फ एक सेकंड.
अध्यक्ष महोदय -- नहीं, सिर्फ प्रश्नकर्ता ही एलाऊड है.
श्री शंकरलाल तिवारी -- अध्यक्ष महोदय, सोनोग्रॉफी, सिटी स्केन, एमआरआई, यह सारा एक ही मशीन से होता है. कहीं 5 हजार रुपये, कहीं 3 हजार रुपये लिये जाते हैं.
अध्यक्ष महोदय -- यह विषय नहीं है. यह प्रश्न उद्भुत नहीं होता. सोलंकी जी, प्रश्न पूछे.
चिकित्सकों एवं उपकरणों की पूर्ति
[लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण]
10. ( *क्र. 124 ) श्री हितेन्द्र सिंह ध्यान सिंह सोलंकी : क्या लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) बड़वाह विधान सभा क्षेत्र में शासकीय अस्पतालों में सेटअप अनुसार शासन द्वारा चिकित्सकों एवं स्टॉफ के कितने पद स्वीकृत हैं? अस्पतालवार सूची देवें। (ख) प्रश्नांश (क) अनुसार स्वीकृत पद के अनुसार कितने चिकित्सक एवं स्टॉफ कार्यरत हैं? विगत 4 वर्षों में प्रश्नकर्ता के द्वारा चिकित्सकों एवं स्टॉफ, चिकित्सा उपकरणों की पूर्ति हेतु कब-कब प्रस्ताव प्रस्तुत किये गए हैं? प्राप्त प्रस्ताव अनुसार विभाग द्वारा क्या कार्यवाही की गई है? (ग) क्या बड़वाह अस्पताल में दन्त चिकित्सक की पदपूर्ति तो हो गई, किन्तु उपकरण उपलब्ध नहीं कराये गए हैं? यदि हाँ, तो ऐसी पदपूर्ति का क्या औचित्य है? उपकरणों की पूर्ति कब तक की जावेगी? इसी प्रकार अन्य अस्पतालों में भी पद एवं उपकरणों की पूर्ति कब तक की जावेगी?
लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री ( श्री रुस्तम सिंह ) : (क) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। विभाग निरंतर पदपूर्ति हेतु प्रयासरत है, विगत 04 वर्षों में उपलब्धता अनुसार बड़वाह विधानसभा क्षेत्रान्तर्गत 12 चिकित्सक, 07 स्टॉफ नर्स, 03 फार्मासिस्ट, 04 ए.एन.एम. की पदस्थापना की गई है। मांग अनुसार डेंटल चेयर एवं डेंटल स्टुल की आपूर्ति की जा चुकी है। मांग अनुसार एवं निर्धारित मापदण्ड अनुसार संस्था की पात्रता अनुसार उपकरण प्रदान किए जाने संबंधी कार्यवाही निरंतर जारी है। (ग) उत्तरांश (ख) अनुसार। निर्धारित मापदण्ड अनुसार एवं मांग अनुसार परीक्षण उपरांत निरंतर उपकरणों की पूर्ति की कार्यवाही जारी है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
श्री हितेन्द्र सिंह ध्यान सिंह सोलंकी -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी को धन्यवाद देता हॅूं कि उन्होंने जो सामान डेंटिस्ट के लिए भेजा है, वे धन्यवाद के पात्र हैं. लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी, कर्मचारी कहीं न कहीं थोड़ा बहुत इसमें लापरवाही कर रहे हैं और जब डेंटिस्ट साल भर से वहां पर था तो मैंने जब प्रश्न लगाया उसके बाद से कोई सामग्री उन्होंने भेज दी तो मैं यह चाहूंगा कि डेंटिस्ट की स्थापना कब हुई और इन्होंने यह सामग्री इतने विलंब से क्यो भेजी, इसमें दोषी कौन था ? क्योंकि डॉक्टर को तो भेज दिया और यदि वहां पर टेबल नहीं होगी, कोई चेयर नहीं होगी या सामान नहीं होगा तो, वह क्या काम कर पाएगा ? दूसरी बात मैं यह कहूंगा कि बड़वाह नगर, सनावद नगर हमारा ग्राम काटकूट और ग्राम बेडि़या इनमें दवाखाना बहुत बडे़-बड़े हैं. यहां पर स्त्री रोग विशेषज्ञ नहीं हैं और आपने अपने जवाब में भी स्वीकार किया है कि यहां पर स्त्री रोग विशेषज्ञ पदस्थ नहीं हैं. दो की स्थापना होनी चाहिए और दोनों पद रिक्त हैं तो एक न एक डॉक्टर की स्थापना हो जाए, ताकि महिलाओं को इसकी सुविधा मिल सके. आप कब तक इसकी पद पूर्ति कर देंगे ?
श्री रूस्तम सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, आपकी पहले जो डिमांड थी कि दंत चिकित्सक के पास चेयर और टेबल भी नहीं है वह सब तो उपलब्ध हो गए हैं उसके लिए वे धन्यवाद भी दे रहे हैं लेकिन मैं उनको यह विश्वास दिलाना चाहता हॅूं कि विभाग के और डायरेक्टोरेट के यह निर्देश हैं कि केवल कोई भी साधन उपलब्ध करा देना ही पर्याप्त नहीं है, उसका पूरी तरह से उपयोग होना चाहिए. माननीय सदस्य ने जो चिन्ता व्यक्त की है उसमें क्यों कमी रह गई, कौन दोषी है, क्यों पूरा नहीं हो पाया, शीघ्रातिशीघ्र 8 दिवस, एक हफ्ते के अंदर इसकी मैं पूर्ति करवा दूंगा. आप महिला गॉयनिक डॉक्टर की बात कर रहे हैं मैं आपके मार्फत यह अवगत कराना चाहता हॅूं कि अभी पुन: हमने लगभग 1400 पद पीएससी से आग्रह किया है कि भर्ती कर दें. हमारे प्रदेश में महिला गॉयनिक डॉक्टरों की बहुत कमी है. इसलिए मैं यह नहीं कह पाउंगा कि मैं इनको कब उपलब्ध करा दूंगा.
श्री हितेन्द्र सिंह ध्यान सिंह सोलंकी -- माननीय अध्यक्ष महोदय, एनेस्थिसिया वाले जो सूंघाते हैं वह हम बाहर से अवेलेबल कराते हैं. हमारे पास खरगोन जिले में कई जगह है. परन्तु विसंगतियां यह हैं कि कई जगह दो हैं, कई जगह तीन हैं और कई जगह हैं ही नहीं, तो इसको जरूर दिखवा दें. डॉक्टर जब एनेस्थिसिया नहीं कर पाएगा तो वह ऑपरेशन किस प्रकार से कर पाएगा और यदि ऑपरेशन नहीं होगा तो मरीज को वहां से ट्रांसफर करना पड़ता है कि मरीज को बड़वाह भेज दो, इंदौर, खरगोन भेज दो, तो इसे एक बार जरूर दिखवा लीजिए. इसकी जांच हो जाएगी, तो ठीक रहेगा.
श्री रूस्तम सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य का जो सुझाव है इसको करा देंगे.
तालाबों से पानी लिफ्ट किया जाना
[जल संसाधन]
11. ( *क्र. 4060 ) श्री लाखन सिंह यादव : क्या जल संसाधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या ककेटो, अपर-ककेटो एवं पेहसारी तालाब से जो पानी तिघरा डेम में लिफ्ट कर लाया जा रहा है, क्या यह स्थाई निदान है? यदि हाँ, तो कैसे? यदि नहीं तो इस वर्ष कितने दिनों तक इस ककेटो डेम से कितना पानी लिफ्ट किया गया तथा कितना पानी तिघरा डेम में पहुंचा तथा कितना वेस्टेज गया? इस पानी को लिफ्ट कर तिघरा तक लाने में सरकार का कितना खर्चा आया? इतना खर्चा कर उक्त तालाब क्षेत्रों के किसानों की फसलों को सिंचाई से वंचित रखा जाना क्या इन तालाब क्षेत्र के किसानों के साथ अन्याय नहीं है? यदि हाँ, तो ऐसा क्यों किया जा रहा है? क्या स्थाई निदान हेतु ग्वालियर शहर को पेयजल पूर्ति के लिये चम्बल नहर से पानी लाना है? यदि हाँ, तो इस संकट के पैदा होने तक इस सम्बन्ध में विलम्ब किन-किन अधिकारियों की लापरवाही के कारण हुआ? कब तक चम्बल नहर से तिघरा डेम में पानी लाने की स्थाई व्यवस्था कर पानी पहुंचा दिया जावेगा? (ख) क्या ककेटो, अपर ककेटो, पेहसारी तालाब से हिम्मतगढ़, रायपुर एवं बरई चौरसिया तालाब को लिंक कर जलभराव की शासन की योजना थी? यदि हाँ, तो क्या इन तालाबों से लगने वाले ग्राम पंचायत, बड़ा गांव, मोहना, ददौरी, सहसारी, दौरार, चराई श्यामपुर, रेहट, महारामपुरा, सिरसा, घाटीगांव, धुआँ, बरई, पनिहार, रायपुर, नयागांव, हिम्मतगढ़, पार, सिमरिया, हुकुमगढ़, बनवार, उर्वा, मऊछ, धिरौली, अमरौल इत्यादि जहाँ पिछले 10-12 वर्षों से वर्षा बहुत कम होती जा रही है? यदि हाँ, तो इन पंचायतों तथा तालाब क्षेत्र के कैचमेन्ट ऐरिया में क्या इतनी कम वर्षा से इन ग्रामों में पेयजल एवं फसलों की सिंचाई का संकट पैदा हो गया है? यदि हाँ, तो क्या आने वाले वर्षों में इन तालाबों का पानी तिघरा तालाब को न देकर हिम्मतगढ़, रायपुर एवं बरई चौरसिया तालाबों को भरकर इन तालाब क्षेत्रों में आने वाली ग्राम पंचायतों के ग्रामवासियों को उपलब्ध कराया जावेगा? यदि हाँ, तो कब तक?
जल संसाधन मंत्री ( डॉ. नरोत्तम मिश्र ) : (क) जी नहीं। अल्प वर्षा से उत्पन्न गंभीर स्थिति के कारण ककेटो बांध से दिनांक 13.11.2017 से दिनांक 10.02.2018 तक 32.03 मिघमी. पानी उद्वहन किया जाकर तिघरा बांध में 22.71 मिघमी. पानी पहुंचाया गया। मार्ग में 9.32 मिघमी. पानी की हानि हुई। उद्वहन करने पर रू. 544.96 लाख व्यय हुआ। जी नहीं। उद्वहन किया गया पानी डेड स्टोरेज का है, जिसे नहर में प्रवाहित नहीं किया जा सकता। चंबल नहर केवल रबी में संचालित होने से ग्वालियर शहर के लिए पेयजल की व्यवस्था चंबल नहर से की जाना तकनीकी रूप से साध्य नहीं है। अल्प वर्षा भौगोलिक आपदा है जिसके लिए किसी अधिकारी के जिम्मेदार होने की स्थिति नहीं है। जी नहीं। (ख) विभाग की कोई योजना नहीं है। प्रश्न उत्पन्न नहीं होता है। जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। अल्प वर्षा से जल की कमी उत्पन्न हुई है। जी नहीं, पेयजल सर्वोच्च प्राथमिकता होने के कारण प्रश्न उपस्थित नहीं होता है।
श्री लाखन सिंह यादव -- माननीय अध्यक्ष महोदय, ग्वालियर जिले में पिछले 10-12 सालों से पानी बहुत कम गिरा है जिसकी वजह से समूचा ग्वालियर जिला सूखे की स्थिति में है. अभी पिछले साल जो रेन फॉल हुआ है जहां से तिघरा केचमेंट एरिया है जहां से पूरे शहर को पानी पिलाया जाता है, वहां मात्र 246 एम.एम. बारिश हुई है. उसकी परिणति यह हुई कि जो ककेटो डेम है जो मेरी विधानसभा का बड़ा डेम है, हरसी और ककेटो बडे़ डेम हैं वहां से शहर के लिए 82-83 दिन पानी लगातार छोड़ा गया. उसकी वजह यह रही कि मेरे विधानसभा क्षेत्र के किसानों का जो पानी था जिन्हें सिंचाई के लिए पानी मिलना था, जिन्हें पीने के लिए पानी मिलना था, पशु और जानवरों के पानी रहता था वह सारा का सारा पानी तिघरा डेम के लिए पिछले 82-83 दिन में ड्रॉप कर दिया गया. मेरा आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से निवेदन है कि यह अभी आपने जो टेम्पररी व्यवस्था की है इस टेम्पररी व्यवस्था के लिए मैं पिछली जिला योजना समिति की मीटिंग में भी बोलता रहा हॅूं. केन्द्रीय मंत्री माननीय श्री नरेन्द्र सिंह तोमर जी से भी मैं निवेदन करता रहा हॅूं.
अध्यक्ष महोदय -- कृपया प्रश्न कर दें. लंबी भूमिका हो गयी है.
श्री लाखन सिंह यादव -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं प्रश्न ही कर रहा हॅूं. यह ककेटो डेम का जो पानी है जब इस ककेटो डेम का निर्माण हुआ था तब इस ककेटो डेम का निर्माण इसलिए कराया गया था कि यह जो बरई चौरसिया डेम, रायपुर डेम, हिम्मतगढ़ डेम और ग्वालियर का डेम है हमारे माननीय मंत्री जी बैठे हैं इनके गांव का डेम है, इन डेमों के लिए पानी देने के लिए उस प्लॉनिंग से इसका निर्माण किया गया था. लेकिन अभी पिछले कुछ समय से तिघरा के लिए पानी दिया जा रहा है चूंकि माननीय अध्यक्ष जी, हम यह भी जानते हैं कि पानी कम गिर रहा है. सबसे पहले इंसान को पानी पीने की आवश्यकता होती है.
अध्यक्ष महोदय -- आप पहले प्रश्न तो करें ?
श्री लाखन सिंह यादव -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं इसलिए कह रहा हॅूं कि ग्वालियर के तीन-तीन कद्दावर मिनिस्टर यहां बैठे हैं लेकिन लगातार लंबे समय से टेम्पररी आपने 11 करोड़ रूपए के टेण्डर किए. साढ़े 5 करोड़ रुपये आप सिर्फ लिफ्ट करने के लिए दे रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय-- आप प्रश्न तो करें.
श्री लाखन सिंह यादव-- मैं वही तो कह रहा हूँ.
अध्यक्ष महोदय-- पृष्ठभूमि मत बताओ.
श्री लाखन सिंह यादव-- अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न यह है कि मैं पिछले लगातार कई वर्षों से यह निवेदन कर रहा हूँ कि इस समय वर्षा की स्थिति ठीक नहीं रह रही है मैं चाहता हूँ कि इसका एक परमानेंट निदान हम निकालें और उसके लिए मैंने चंबल नदी से...
अध्यक्ष महोदय-- आप फिर भाषण करने लगे.
श्री लाखन सिंह यादव-- अध्यक्ष महोदय, मैं वही तो कह रहा हूँ यह मेरे प्रश्न में है मैंने चंबल नदी से तिघरा तक पानी लाने के लिए अनुरोध किया था. मेरा प्रश्न है कि इसकी समय सीमा बता दें. माननीय अध्यक्ष महोदय, हमारे ग्वालियर के यहाँ बड़े बड़े मंत्री बैठ हैं,केंद्र में बैठें हैं, यह चाहे तो बहुत जल्दी इसका निदान हो जाएगा. मुझे पूरा विश्वास है कि..
अध्यक्ष महोदय-- आप बैठ जाएं, भाषण ना दें.
श्री लाखन सिंह यादव--मैं भाषण नहीं दे रहा हूँ. ग्वालियर में त्राहि-त्राहि मची हुई है.
अध्यक्ष महोदय-- आप तो भाषण दे रहे हैं. आप प्रश्न पूछ लें.
श्री लाखन सिंह यादव-- अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी यह बता दें कि चंबल नदी का पानी आप तिघरा में लाएंगे या नहीं लाएंगे और लाएंगे तो कब तक लाएंगे?
अध्यक्ष महोदय-- इतनी बात के लिए आपने कितना लंबा समय ले लिया दूसरे सदस्यों का.
श्री लाखन सिंह यादव-- अध्यक्ष महोदय, बहुत परेशानी है वहाँ.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- माननीय अध्यक्ष महोदय, सम्मानित सदस्य ने बहुत बड़ा प्रश्न किया है आप कहें तो अपर ककेटो, ककेटो, तिघरा ऐसे होते हुए ग्वालियर पर आऊँ या उन्होंने जो स्पेसीफिक आखिरी में पूछा है उसका उत्तर दूँ?
अध्यक्ष महोदय-- असल में वही इम्पॉर्टेंट है यह तो जबर्दस्ती उन्होंने सबका दूसरे सदस्यों का भी प्रश्न किया है.
श्री लाखन सिंह यादव-- आपको इसलिए समझा रहा था मंत्रीजी कि आपका गाँव भी उसी में आता है मैं चाहता हूँ कि आप कुछ तो आश्वासन दे दें.
अध्यक्ष महोदय-- बैठ जाएं, वह सब समझते हैं. अरे, भई क्या है यह?
श्री लाखन सिंह यादव-- अध्यक्ष महोदय, पूर्व में भी जो आश्वासन दिये हैं वही पूरे नहीं हुए हैं.
अध्यक्ष महोदय-- आपको उत्तर लेना है या नहीं लेना है. यह क्या है आप प्रश्नकाल में भाषण दे रहे हैं.दूसरों के प्रश्न भी हैं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी आपसे इतनी प्रार्थना यह थी कि आखिरी वाले प्रश्न का उत्तर देना है? उन्होंने मुझे समझाया, वह समझदार हैं यह सिद्ध हो गया.मैं आखिरी प्रश्न का उत्तर दूँ या पूरे का उत्तर दूँ?(हंसी)
अध्यक्ष महोदय-- आप तो कृपा करके आखिरी का दे दें कि पानी कब देंगे, चंबल से देंगे या नहीं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- माननीय अध्यक्ष महोदय, दो अलग-अलग तरह की बात है. यह जो वर्तमान में ककेटो से पानी तिघरा जा रहा है, तिघरा से पानी ग्वालियर जा रहा है, उसमें हम सिर्फ एजेंसी है. नगर निगम के द्वारा यह पानी ले जाया जा रहा है. हम उसमें नोडल एजेंसी हैं, पेयजल का वह पानी है. दूसरी बात चंबल से पानी ग्वालियर लाने के लिए हमारी सम्मानित मंत्री महोदया माया सिंह जी ने यह प्रस्ताव केंद्र को भी भेजा है और उनको भी भेजा है. जहाँ तक तिघरा में पानी डालने का सवाल है , तिघरा, चंबल की जो नहर निकलती है उससे काफी ऊँचाई पर है.
अध्यक्ष महोदय-- लाखन सिंह जी, एक प्रश्न और पूछ लें वह भी बिना भाषण के.
श्री लाखन सिंह यादव-- अध्यक्ष महोदय, जैसे माननीय मंत्री जी ने कहा है कि यह प्रस्ताव भेजा है और आपने कह दिया कि तिघरा की हाईट चंबल से ज्यादा है.जब हाईट ज्यादा है तो मंत्री जी ने वह प्रस्ताव कहाँ के लिए भेजा है. क्या शहर के लिए डायरेक्ट पानी आएगा क्या?
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- माननीय अध्यक्ष महोदय, जी हाँ.
श्री लाखन सिंह यादव-- अध्यक्ष महोदय, मैं तो यह कह रहा हूँ कि आप तो मोटर से लिफ्ट करवाओ ना, पंपों से लिफ्ट करवा दें.
अध्यक्ष महोदय-- मंत्री जी, पानी डायरेक्ट आएगा?
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- माननीय अध्यक्ष महोदय, जी हाँ.
वेतन विसंगति का निराकरण
[लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण]
12. ( *क्र. 4084 ) श्री तरूण भनोत : क्या लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा अक्टूबर, 2006 में ब्रह्मस्वरूप समिति की अनुशंसायें लागू की गई थीं? यदि हाँ, तो स्वास्थ्य विभाग में किन-किन पदों पर उक्त अनुशंसायें की गई थीं? जानकारी पदों के नामवार पृथक-पृथक से दी जावे। (ख) प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में विभिन्न पदों पर आई.टी.आई. से उत्तीर्ण योग्यता वाले पदों में वेतन विसंगतियां हैं, जिसमें स्टेनोग्राफर पद पर 1 वर्ष आई.टी.आई. योग्यता वाले पद को अधिक वेतनमान और रेफ्रिजरेटर मैकेनिक पद पर दो वर्ष की आई.टी.आई. योग्यता वाले को कम वेतनमान दिया जा रहा है? (ग) यदि प्रश्नांश (क) एवं (ख) सही है तो इस वेतन विसंगति के लिये कौन-कौन अधिकारी एवं कर्मचारी जिम्मेदार हैं और इन पर कब तक अनुशासनात्मक कार्यवाही की जायेगी? (घ) प्रश्नांश (क) एवं (ख) अनुसार ब्रह्मस्वरूप समिति की अनुशंसाओं में रेफ्रिजरेटर मैकेनिक के वेतनमान की वेतन विसंगति कब तक दूर कर स्टेनोग्राफर के समान वेतनमान दिया जावेगा?
लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री ( श्री रुस्तम सिंह ) : (क) जी हाँ। जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ख) लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के अधीन स्वीकृत पदों हेतु नियमानुसार सेवा भर्ती नियम बनाये जाकर वेतनमान स्वीकृत किये गये हैं। विभाग के अधीन क्रमशः ‘‘मध्यप्रदेश लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण (संचालनालय स्वास्थ्य सेवायें) तृतीय श्रेणी, लिपिक वर्गीय भर्ती नियम 1989‘‘ तथा ‘‘मध्यप्रदेश लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग अलिपिकीय (संचालनालय स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित) तृतीय श्रेणी, सेवा भर्ती नियम, 1989‘‘ प्रचलित है। जिनमें विभिन्न पदों हेतु निर्धारित योग्यता तथा वेतनमान निर्धारित है। उक्त नियमों के तहत् कर्मचारियों को वेतनमान प्रदत्त किये जा रहे हैं। (ग) उत्तरांश (ख) के परिप्रेक्ष्य में शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (घ) सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा अक्टूबर 2006 में ब्रह्मस्वरूप समिति की अनुशंसाओं के बिन्दु 5.3 ‘‘परिशिष्ट-1 एवं परिशिष्ट-2 के अतिरिक्त शेष समस्त पदों का वेतनमान यथावत रखा जाकर अपरिवर्तित रहेगा।‘‘ अनुसार अन्य पदों सहित रेफ्रिजरेटर मैकेनिक का वेतनमान अपरिवर्तित रखा गया है।
डॉ. गोविंद सिंह-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न है कि..
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- माननीय अध्यक्ष महोदय,(XXX).
अध्यक्ष महोदय-- इसको कार्यवाही से निकाल दें.
डॉ. गोविंद सिंह-- माननीय अध्यक्ष महोदय,इनके आश्वासन का तो कोई भरोसा नहीं है.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- माननीय अध्यक्ष महोदय,आपकी थोड़ी तवज्जो चाहूँगा, ध्यान चाहूँगा आप देखिये क्या स्थिति है. गोविंद सिंह जी को आप देखो. नेता प्रतिपक्ष गये तो चार्ज इनको नहीं देकर गये वह राजा को नेता प्रतिपक्ष का चार्ज दे गये हैं और (XXX).
अध्यक्ष महोदय-- यह निकाल दें.
डॉ. गोविंद सिंह-- माननीय अध्यक्ष महोदय,मुझे आज बीच में जाना है. हम लोगों का चार्ज सामूहिक है. चार्ज होता काहे का है.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- माननीय अध्यक्ष महोदय, चार्ज या तो उपनेता को दिया जाता, मुख्य सचेतक को दिया जाता है, सीनियर को दिया जाता है, लेकिन राव विक्रम सिंह जूदेव महाराजाधिराज को चार्ज दिया गया है, आपको मालूम है.
डॉ. गोविंद सिंह-- हाँ तो उनको शाम तक रहना है, मुझे नहीं रहना है.
अध्यक्ष महोदय-- डॉ. साहब प्रश्न करें.
डॉ.गोविंद सिंह-- माननीय अध्यक्ष महोदय, तरुण भनोत जी ने जो प्रश्न किया था उसमें पूछा है कि ब्रम्ह स्वरूप कमेटी वेतन विसंगतियों के लिए बनाई गई थी. तो मैं यह जानना चाहता हूँ कि ब्रम्ह स्वरूप कमेटी की रिपोर्ट आई है और उसमें एक वर्ष की आईटीआई को, जो स्टेनोग्राफर है, उसको अधिक वेतन और जिसने दो वर्ष आईटीआई का कोर्स किया है, उसको वेतन कम, रेफ्रिजरेटर मेकेनिक को दिया जा रहा है, तो क्या अगर वेतन विसंगति रह गई है, तो दुबारा क्या उसको रिओपन करके दूसरी कमेटी के द्वारा इसका पुनर्निर्धारण किया जा सकता है कि नहीं?
अध्यक्ष महोदय-- माननीय मंत्री रुस्तम सिंह जी, वेतन विसंगति है, वे कह रहे हैं इसको ठीक करें.
श्री रुस्तम सिंह-- माननीय अध्यक्ष महोदय, संविदा कर्मचारियों के बारे में यह पूरी जानकारी मेरे पास है, चर्चाएँ भी उनसे होती रही हैं और जब जब इनकी मांगें आईं हम लोगों ने सहानुभूतिपूर्वक इन पर विचार भी किया. लेकिन उनकी कुछ ऐसी मांगें हैं जिनका संभवतः पालन हो नहीं हो सकता है. वे रेग्युलर होना चाहते हैं, अध्यक्ष महोदय, रेग्युलर होने के लिए कुछ अर्हताएँ होती हैं, कुछ क्वालिफिकेशंस होती हैं, उसकी परीक्षाएँ होती हैं, हमने इनको, जितने संविदा कर्मचारी हैं, जब जब रेग्युलर पद निकाले हैं, तो इनको बोनस मार्किंग देकर, अभी कुछ पद स्वीकृत होकर, भर्ती किए गए थे, 1800, ये संविदा कैडर के ही कर्मचारी 80-90 परसेंट उसमें भर्ती हुए हैं. उनको 2 परसेंट बोनस मार्क्स, सर्विस के हिसाब से, लैंथ आफ सर्विस से, हम लोग देते हैं, जितना संभव है इनको हम लोग करते हैं, बार बार हमेशा, जो दूसरी वाली उन्होंने इसमें जो चिन्ता व्यक्त की है, उनका हमारी तरफ से, शासन की तरफ से, एक समिति गठित करके, उस पर अपना प्रस्ताव भी, फायनेंस विभाग को भेजा जा चुका है. वह काफी सकारात्मक है, उससे सभी को लाभ भी होगा.
डॉ.गोविन्द सिंह-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने जो प्रश्न किया है, माननीय मंत्री जी पहले तो सोच रहे थे कि भनोत जी हैं नहीं, ये बैठे बैठे यह सोच रहे थे. अब आपने पढ़ा नहीं है. आपने स्वयं कहा है कि वेतनमान निर्धारित है, ये संविदा कर्मचारी नहीं हैं, ये नियमित कर्मचारी हैं और नियमित कर्मचारी के साथ आपने जो दिया है परिशिष्ट 5 (3) में, इन्होंने कहा है कि इनका अभी फिलहाल वेतन अपरिवर्तित रहेगा. 20-25 वर्षों की इनकी सेवाएँ हो चुकी हैं, सबका पुनर्निर्धारण हो रहा है, तो क्या रेफ्रिजरेटर मेकेनिक के वेतनमान का निर्धारण करने के लिए शासन कोई नीति बनाएगा और बनाएगा तो कब तक बनाएगा?
श्री रुस्तम सिंह-- अध्यक्ष महोदय, सामान्यतः मैंने डॉक्टर साहब को पहले सब्सिट्यूट के रूप में नहीं देखा, आज वे सब्सिट्यूट कर रहे हैं भनोत जी को इसलिए मैंने पहले इसको बहुत उससे नहीं लिया. मैंने कहा आपको तो चिन्ता संविदा कर्मियों की है तो मैंने बताया लेकिन वे खुद विद्वान हैं, सब जानते हैं कि जो वे कह रहे हैं वह हो नहीं सकता, ये जानते हैं. अध्यक्ष महोदय, मेरा आग्रह यह है कि आईटीआई से स्टेनो भी होता है, आईटीआई से रेफ्रिजरेटर का मेकेनिक भी होता है. ये रेफ्रिजरेटर के मेकेनिक को स्टेनो के बराबर तनख्वाह दिलाने की बात कर रहे हैं, यह जो है, वह संभव नहीं है, वह हो नहीं पाएगा, मैं गलत आश्वासन देना भी बिल्कुल भी उचित नहीं समझता.
डॉ.गोविन्द सिंह-- माननीय अध्यक्ष महोदय, तो फिर क्या सेवानिवृत्ति तक एक ही वेतनमान रहेगा, अपरिवर्तनीय ही रहेगा जो आपने जवाब दिया है? इसमें परिवर्तन, बढ़ोत्तरी होगा या नहीं होगा कि जितना आपने जो 30 साल पहले तय कर दिया उतना ही रहेगा?
श्री रुस्तम सिंह-- माननीय अध्यक्ष महोदय, जब वे भर्ती हुए, इन्हीं शर्तों के साथ हुए. वे जानते थे कि हमें इस तरह की सर्विस करनी है. लेकिन फिर भी आप चिन्ता कर रहे हैं तो हम इस पर जरूर एक बार आंकलन कराएँगे, तनख्वाह तो बढ़नी चाहिए.
संविदा कर्मचारियों की मांगों का निराकरण
[लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण]
13. ( *क्र. 4168 ) श्री सुरेन्द्र सिंह बघेल : क्या लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या कारण है कि म.प्र. के ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने वाले संविदा कर्मचारियों की मांगों का निराकरण विभाग द्वारा नहीं किया जा रहा है? (ख) वर्ष 2013- 2016 के हड़ताल/आंदोलन के समय इन्हें दिए गए आश्वासन प्रश्न दिनांक तक क्यों लंबित है? स्वास्थ्य संचालक भोपाल के पत्र क्र.-3/ए/क्र./स्था./2013/785 भोपाल, दि. 19.03.2013 पर की गई समस्त कार्यवाही की छायाप्रति देवें। (ग) यदि उपरोक्तानुसार कार्यवाही नहीं की गई है तो कारण बतावें। क्या यह पत्र हड़ताल/आंदोलन समाप्त कराने का कोई षड्यंत्र था? (घ) इनकी मांगों का निराकरण कब तक कर दिया जाएगा?
लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री ( श्री रुस्तम सिंह ) :
श्री सुरेन्द्र सिंह बघेल-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश के लगभग 22,800 बहुउद्देशीय स्वास्थ्य कर्मचारी विगत 7 दिनों से हड़ताल पर हैं. जिसमें एएनएम, एमपीएचडब्ल्यू, एलएचव्ही, एमपीएस, जेएमआई और बीके स्वास्थ्य कर्मचारी हैं. जिससे मध्यप्रदेश की ग्रामीण क्षेत्र की पूरी स्वास्थ्य सेवाएँ ठप्प पड़ी हुई हैं और गाँवों में रहने वाला व्यक्ति स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं ले पा रहा है.
अध्यक्ष महोदय-- आप कृपया प्रश्न करें.
श्री सुरेन्द्र सिंह बघेल-- अध्यक्ष महोदय, मेरा पहला प्रश्न माननीय मंत्री जी से है, क्या माननीय मंत्री जी यह बताने की कृपा करेंगे कि श्रीमान स्वास्थ्य संचालक महोदय के पत्र क्रमांक 2013/785/ दिनांक 19.3.2013 के लिखित आश्वासन के बावजूद स्वास्थ्य कर्मचारियों की 20 सूत्रीय मांगों का निराकरण क्यों नहीं किया गया है ?
श्री रुस्तम सिंह--माननीय अध्यक्ष महोदय, इसके पहले मैंने इन्हीं की बातों की चर्चा संविदा कर्मियों को लेकर की थी. मेरा आग्रह इतना सा है कि जो मांगें नियमों के अन्तर्गत नहीं आती हैं. मूल मांग उनकी नियमितीकरण की रहती है बाकी उसके साथ अटैच रहती हैं. जो मांगें होने लायक थीं वे हमने स्वीकृत की भी हैं. समय-समय पर संविदा कर्मियों का वेतनमान भी बढ़ा है लेकिन मूल मांग है कि हम सबको रेग्यूलर कर दिया जाए. इसके लिए परीक्षा होती है इसके लिए मैंने अभी आपके द्वारा आग्रह किया था कि पिछली बार भी जो 1800 एएनएम नर्सिंग स्टाफ की भर्ती की गई थी उसमें 1400-1500 यही संविदा कर्मी ही भर्ती किेए गए थे. इनको बोनस मार्किंग दी गई थी और इनको प्रायरिटी भी दी गई थी. इसमें यह कहना कि सरकार इसमें संवेदनशील नहीं है कतई उचित नहीं है. शासन पूरी संवेदनशीलता रखता है. मेरी लगातार इनसे चर्चाएं होती हैं. कई मांगें इनकी मानी गईं पहले भी इनने आन्दोलन किया. मेरा आपके द्वारा इस सदन के सभी सदस्यों से आग्रह है कि यह सेवा अतिआवश्यक सेवा है इन्हें इस सेवा में हड़ताल बिलकुल नहीं करना चाहिए. यह सेवा लोगों के जीवन-मरण का सवाल होता है, यह ठीक नहीं है, यह अमानवीय है. दूसरी सेवाएं बाधित हो सकती हैं. स्वास्थ्य सेवाएं बाधित करना बिलकुल उचित नहीं है. जब हम उनकी मानने लायक मांगों को यूं ही मानने को तैयार रहते हैं. इसमें यह तरीका उचित नहीं है.
श्री सुरेन्द्र सिंह हनी बघेल--माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी को मैं दूसरे प्रश्न का उल्लेख करके बताना चाहता हूँ कि इनकी सरकार और इनका विभाग उनके प्रति कितना संवेदनशील है. पत्र क्रमांक 703/1257/2016. वापिस स्वास्थ्य कर्मचारियों ने हड़ताल की अपनी 20 सूत्रीय मांगों को लेकर उस हड़ताल को खत्म करने के लिए, स्वास्थ्य कर्मचारियों को समझाने के लिए स्वास्थ्य मंत्री स्वयं, प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य विभाग, आयुक्त, स्वास्थ्य एवं संचालक महोदय ने चर्चा की और एक संचालक समिति फिर बना दी.
अध्यक्ष महोदय--आपका प्रश्न क्या है ?
श्री सुरेन्द्र सिंह हनी बघेल--अध्यक्ष महोदय, समिति की समयावधि निर्धारित कर दी कि 3 महीने में इनकी मांगों का निराकरण कर देंगे. इस समिति को बनाने के बाद भी इन मांगों का निराकरण आपकी सरकार ने, आपके विभाग ने क्यों नहीं किया ?
श्री रुस्तम सिंह--अध्यक्ष महोदय, यह गतवर्ष की बात कह रहे हैं उसमें से नियमितीकरण की मांग को छोड़कर लगभग जो भी व्यावहारिक मांगें थीं वे समस्त मांगें मान ली गईं थीं. लेकिन वे पुन: उन्हीं से लगी हुई कुछ न कुछ चीजों को लेकर मांग कर रहे हैं मैंने जो आग्रह किया यदि उस पर यह विचार करेंगे तो इनके विधान सभा क्षेत्र में यह भी परेशान होंगे. यह तरीका ठीक नहीं है. हड़ताल करना कतई जायज नहीं है.
श्री सुरेन्द्र सिंह हनी बघेल--अध्यक्ष महोदय, और मंत्री जी का तरीका सही है बार-बार उनकी हड़ताल समाप्त कराने उनके पास चले जाते हैं और उनकी मांगें मानते नहीं हैं. वर्ष 2018 में इस महीने में 7 दिन से फिर से कर्मचारी हड़ताल पर बैठे हुए हैं और स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही हैं और वे लोग 12 से 2 मांगों पर आ गए हैं. वे दो मांगें मैं आपको बताना चाहता हूँ एक वेतन विसंगति को लेकर है और दूसरी आरसीएच संविदा, एएनएम, एमपीडब्ल्यू, मलेरिया वर्कर के आधार पर नियुक्त कर्मचारियों को नियमित किए जाने को लेकर है. मैं आपसे फिर विनम्र निवेदन करता हूँ कि हर बार इस तरह से हड़ताल खत्म न करवाएं कि बस हड़ताल खत्म करवाना है. आप वहां जाकर वापिस एक कमेटी का गठन करिए, उनसे मिलिए और जो मांगें हैं वह पूरी हो सकती हैं तो वह मांगें पूरी कर दीजिए. ताकि वे वापिस जाकर ग्रामीण क्षेत्र में अपनी सेवाएं दें. यह आपसे और आपकी सरकार ने विनम्र निवेदन है.
श्री रुस्तम सिंह --माननीय अध्यक्ष महोदय, मुझे बहुत अच्छा लगता है कि स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों के प्रति आपकी अतिसंवेदनशीलता है बहुत अच्छी बात है लेकिन मैंने जो आग्रह किया कि जो नियमित कर्मचारी हैं. जो हड़ताल की बात की है उनसे मेरी प्रतिदिन प्राय: कल सवेरे मुलाकात हुई. वे कल रात को 11 बजे आए तो मैंने मुलाकात की और मैं उनसे सतत् संपर्क में हूं. वह आज प्रश्नकाल के तत्काल बाद पुन: मेरे पास आने वाले हैं. सकारात्मक जो संभव थी वह मांगे पूरी करके फायनेंस विभाग को भेजी गई हैं. उनमें भी मैं वित्त मत्री जी से आग्रह करूंगा, फायनेंस विभाग से कि जल्दी से जल्दी इनकी मांगे मान ली जाएं. जो संभव है वह जरूर हम कराते हैं लेकिन मैं उनसे बराबर यह आग्रह करता हूं कि यह चीजें आप हड़ताल पर न भी जाते तब भी हम करते क्योंकि हम मानते हैं कि विभाग अतिसंवेदनशील है. मैं पुन: आपके मार्फत कहना चाहता हूं कि कर्मचारियों को इस तरह के कदम स्वास्थ्य विभाग में नहीं उठाना चाहिए.
श्री सुरेन्द्र सिंह हनी बघेल-- वर्ष 2003 से वर्ष 2018 हो गया है अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है. अभी तक आप उसमें कोई निराकरण नहीं कर पाए हैं.
अध्यक्ष महोदय-- आप बैठ जाइए. श्री सुरेन्द्र सिंह हनी बघेल जो भी बोल रहे हैं उनका कुछ नहीं लिखा जाएगा. (व्यवधान)...
श्री सुरेन्द्र सिंह हनी बघेल-- (XXX)
अध्यक्ष महोदय-- इनका कुछ नहीं लिखा जाएगा. आपका प्रश्न हो गया है. (व्यवधान)...
प्रश्न संख्या-14 (अनुपस्थित)
प्रश्न संख्या-15 (अनुपस्थित)
श्री बहादुर सिंह चौहान-- यह हड़ताल करके वोटों की राजनीति करना चाहते हैं. उनका वेतन नहीं बढ़ाना चाहते हैं. (व्यवधान)...
अध्यक्ष महोदय-- बहादुर सिंह चौहान जी आप अपना प्रश्न करें. यह कुछ नहीं लिखा जाएगा. (व्यवधान)...
श्री सुरेन्द्र सिंह बघेल-- (XXX)
श्री नीलेश अवस्थी-- (XXX)
डॉ. गोविन्द सिंह-- (XXX)
श्री यादवेन्द्र सिंह-- (XXX)
कॅुंवर सौरभ सिंह सिसोदिया-- (XXX)
श्री सुखेन्द्र सिंह-- (XXX)
श्री जयवर्द्धन सिंह -- (XXX)
कॅुंवर विक्रम सिंह -- (XXX)
अध्यक्ष महोदय-- आप तो अपना प्रश्न करिए.
11.52 बजे बहिर्गमन
इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदस्यों द्वारा सदन से बहिर्गमन
कॅुंवर विक्रम सिंह-- अध्यक्ष महोदय, हम बहिर्गमन करते हैं. (व्यवधान)...
श्री सुरेन्द्र सिंह बघेल-- हम शासन के उत्तर से असंतुष्ट होकर बहिर्गमन करते हैं. (व्यवधान)...
(इंडियन नेशनल के कांग्रेस के सदस्यों द्वारा शासन के उत्तर से असंतुष्ट होकर सदन से बहिर्गमन किया गया)
एडवोकेट सत्यप्रकाश सखवार-- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह पूरे प्रदेश की समस्या है यह संविदा, अतिथि और यह सारी भर्तियां बंद करके सीधी भर्ती कराने का प्रबंध किया जाए.
अध्यक्ष महोदय-- आपकी बात आ गई है.
अमानक खाद्य सामग्री विक्रेताओं पर कार्यवाही
[लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण]
16. ( *क्र. 4166 ) श्री बहादुर सिंह चौहान : क्या लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) दिनांक 01.02.2017 से 31.01.18 तक उज्जैन जिले में अमानक, मिथ्याछाप, मिलावटी, नकली खाद्य सामग्री के कितने प्रकरण बनाये गये? इस अवधि में फूड पॉयजनिंग की घटनाओं की जानकारी भी स्थान का नाम, व्यक्ति का नाम (जिसके यहाँ घटना हुई हो) पीड़ित संख्या सहित देवें। (ख) उपरोक्त घटनाओं में सक्षम न्यायालयों में प्रश्न दिनांक तक कितनी तारीखें लगीं? कितने प्रकरणों में शास्ति अधिरोपित की गई? राशि सहित जानकारी देवें। वसूली की जानकारी भी देवें। (ग) प्रश्न क्र. 3175 दिनांक 01.03.17 के (क) उत्तर के अनुसार 140 में से 80 प्रकरणों का निराकरण बताया गया, शेष 60 प्रकरणों की अद्यतन स्थिति देवें। इन 80 प्रकरणों में प्रश्न दिनांक तक कितनी वसूली शेष है? (घ) उपरोक्त फूड पॉयजनिंग की घटनाओं पर विभाग ने क्या-क्या कार्यवाही की है।
लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री ( श्री रुस्तम सिंह ) : (क) उज्जैन जिले में दिनांक 01/02/2017 से 31/01/2018 तक अवमानक, मिथ्याछाप, असुरक्षित एवं अधिनियम में प्रावधानित अन्य धाराओं के अन्तर्गत कुल 50 प्रकरण बनाये गये हैं शेष जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (ख) जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (ग) विधानसभा प्रश्न क्रमांक 3175 दिनांक 01/03/2017 के प्रश्नांश (क) शेष प्रकरणों में से 22 प्रकरणों में सक्षम न्यायालय द्वारा कुल 2085000/- रूपये शास्ति संबंधित आरोपी विक्रेताओं के विरूद्ध अधिरोपित की गई है। निर्णित 80 प्रकरणों में प्रश्न दिनांक तक राशि रूपये 655000/- की वसूली हेतु शेष है। (घ) फूड पॉयजनिंग की घटित घटना पर अभिहित अधिकारी खाद्य सुरक्षा प्रशासन जिला उज्जैन द्वारा श्री पियूष सकलेचा पिता श्री विमलचंद जैन श्री जैन नाश्ता पाईन्ट महिदपुर को खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 की धारा 32 अन्तर्गत सुधार सूचना नोटिस जारी किया गया था जिस पर दिये गये निर्देशों का पालन नहीं किये जाने पर संबंधित फर्म का खाद्य पंजीयन 15 दिवस के लिए निरस्त किया गया है, साथ ही संबंधित फर्म के विरूद्ध खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 की धारा 58 अन्तर्गत परिवाद सक्षम न्यायालय में दर्ज किया गया है।
श्री बहादुर सिंह चौहान-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न स्वास्थ्य विभाग से है. मेरे द्वारा प्रश्न लगाया गया था कि दिनांक 1.2.2017 से लेकर 1.1.2018 तक उज्जैन जिले में अमानक मिथ्याछाप ऐसे कितने प्रकरण बनाए गए हैं उत्तर में आया है कि 50 प्रकरण बनाए गए हैं. मैं इससे संतुष्ट हूं लेकिन मेरा पूर्व का प्रश्न मैंने इसमें पूछा है कि 1.3.2017 को मेरे द्वारा प्रश्न क्रमांक 3175 पूछा गया था उसमें क्या क्या कार्यवाही हुई. विभाग ने बहुत ही अच्छी कार्यवाही की है. उसमें से 22 प्रकरणों में से 20 लाख 85 हजार शास्ति संबंधित विक्रेताओं के विरूद्ध आरोपित कर दी है. इसके लिए मैं मंत्री जी को धन्यवाद करना चाहता हूं और वर्णित 80 प्रकरणों में से 6 लाख 55 हजार वसूली शेष है यह वसूली भी माननीय मंत्री जी अतिशीघ्र करवा लेंगे. मैं इस प्रश्न में क, ख और ग तीनों के उत्तर से संतुष्ट हूं, पर घ में मुझे माननीय मंत्री जी से पूछना है कि यह प्रश्न मैं बार-बार लगा रहा हूं इसको लेकर हमारे नगर में लॉ एण्ड ऑर्डर की स्थिति खराब हो गई थी आपने दोनों फर्मों के विरूद्ध खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम 2006 की धारा (58) के तहत प्रकरण सक्षम न्यायालय में दे दिया है. मैं आपके माध्यम से मंत्री जी से इतना जानना चाहता हूं सक्षम न्यायालय चूंकि न्यायालय है लेकिन फिर भी आपके विभाग के जो जिले के अधिकारी हैं वह इसमें रुचि लेकर इसका जल्द से जल्द निर्णय करवाने की कृपा करें.
श्री रुस्तम सिंह --माननीय अध्यक्ष महोदय, वैसे तो विधायक जी ने जो बात कही है वह स्वयं अपने आप में काफी स्पष्ट है. वह पर्टिकुलर एक इश्यू था जिसके बारे में अभी आपने उल्लेख किया उसमें पुलिस केस भी कायम हुआ है. पुलिस ने भी उसका चालान किया है. अपनी तरफ से उसमें पूरी प्रभावी कार्यवाही करने का प्रयास हुआ है. जहां तक केस को जल्दी निपटाने का, जो स्वास्थ्य विभाग के अमले का जो उत्तरदायित्व है वह पूरा करे और जल्दी निपटाएं, इसके लिए हम प्रयास करेंगे.
श्री बहादुर सिंह चौहान- माननीय अध्यक्ष महोदय, कुछ ऐसे विषय हैं जिसके संबंध में मैं एक पत्र मंत्री जी को लिखकर दे रहा हूं. उस पर कार्यवाही हो जाए, मंत्री जी ऐसा आश्वासन दे दें.
अध्यक्ष महोदय- मंत्री जी ने बोल दिया लेकिन आप पत्र में क्या लिखेंगे, वे यहां कैसे आश्वासन दे दें ? (हंसी)
श्री बहादुर सिंह चौहान- यह पत्र कार्यवाही के संबंध में ही है. ये ऐसी फर्में हैं, आप कहें तो मैं पढ़ दूं.
अध्यक्ष महोदय- मत पढि़ये. आप मंत्री जी को पत्र दे दें और उनके विवेक पर छोड़ दीजिये.
श्री बहादुर सिंह चौहान- धन्यवाद.
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र खिलचीपुर का उन्नयन
[लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण]
17. ( *क्र. 1264 ) कुँवर हजारीलाल दांगी : क्या लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र खिलचीपुर के अंतर्गत 125-130 ग्राम उपचार हेतु आश्रित हैं? यदि हाँ, तो क्या खिलचीपुर नगर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर पर्याप्त स्टॉफ एवं सुविधाओं की अनुपलब्धता तथा सिविल अस्पताल में उन्नयन न हो पाने से नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्र के आमजनों को हायर सेंटर इन्दौर, भोपाल तथा राजस्थान राज्य के जिला झालावाड़ के चिकित्सालयों पर आश्रित होना पड़ता है, लेकिन निर्धन एवं वंचित वर्ग समूह के लोगों को समय पर उचित उपचार नहीं मिल पाता है? यदि हाँ, तो प्रश्न दिनांक तक शासन द्वारा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र खिलचीपुर का सिविल अस्पताल में विस्तार करने हेतु कोई ठोस कार्यवाही की गई है? यदि हाँ, तो क्या? यदि नहीं तो क्यों? (ख) क्या शासन सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र खिलचीपुर पर आश्रित नगरीय जनसंख्या 30 हजार एवं 125-130 ग्रामों के निर्धन वर्ग के लोगों को उचित उपचार प्रदान करने की दृष्टि से सिविल अस्पताल में उन्नत करेगा? यदि हाँ, तो कब तक?
लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री ( श्री रुस्तम सिंह ) :
(ख) जी नहीं। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
कुँवर हजारीलाल दांगी- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे द्वारा स्वास्थ्य विभाग से संबंधित रखे गए प्रश्न के जवाब में जो उत्तर आया है चूंकि मंत्री जी ने उत्तर दिया है इसलिए मैं उससे संतुष्ट हूं परंतु फिर भी मैं अनुरोध करना चाहूंगा कि मेरे विधान सभा क्षेत्र खिलचीपुर में मैंने सिविल अस्पताल प्रारंभ करने की मांग की थी. मंत्री जी ने इसका जवाब दिया है- जी नहीं. जी नहीं. जी नहीं और फिर उसमें संशोधन करके उत्तर दिया है, जी हां. राजगढ़ विधान सभा क्षेत्र के विधायक जी भी यहां बैठे हैं. खिलचीपुर अस्पताल, खिलचीपुर विधान सभा क्षेत्र का तो है ही लेकिन 40-50 पंचायतें जिसमें से कम से कम सौ गांव राजगढ़ विधान सभा क्षेत्र के भी लगते हैं. मेरे विधान सभा में खिलचीपुर, जीरापुर और माचलपुर, तीन अस्पताल ऐसे हैं जो राजस्थान के बॉर्डर से लगे हुए हैं.
अध्यक्ष महोदय- आपका प्रश्न क्या है ?
कुँवर हजारीलाल दांगी- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न यह है कि मैंने कई बार मंत्री जी से इस बारे में अनुरोध भी किया है कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का सिविल अस्पताल में उन्नयन किया जाये. वह क्षेत्र राजस्थान की बॉर्डर से लगा हुआ होने के कारण वहां काफी परेशानी है.
अध्यक्ष महोदय- आप सीधा प्रश्न कर लें कि क्या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का सिविल अस्पताल में उन्नयन करेंगे ?
कुँवर हजारीलाल दांगी- मेरा सीधा प्रश्न यह है कि अभी जो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है वहां केवल दो डॉक्टर पदस्थ हैं. वहां डॉक्टर पदस्थ करने के लिए कई बार मंत्री जी ने आदेश भी किए हैं कि तत्काल पदस्थ किया जाये. मेरे विधान सभा क्षेत्र में महिला डॉक्टर एक भी नहीं है. मंत्री जी के आदेश के बाद भी आज तक महिला डॉक्टर वहां पदस्थ नहीं हुई है. मेरा मंत्री जी से अनुरोध है कि राजस्थान से लगा होने के कारण मेरे खिलचीपुर विधान सभा क्षेत्र के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का उन्नयन सिविल अस्पताल में करने की घोषणा कब तक करेंगे ? या चालू करवा देंगे, या परीक्षण करायेंगे ? माननीय अध्यक्ष महोदय, मुझे कुछ संतोषप्रद जवाब मिले.
श्री रूस्तम सिंह- माननीय अध्यक्ष महोदय, हमारे विद्वान विधायक आज बहुत ही विनम्र हैं. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. अभी बीच में कुछ दिन पूर्व बड़ी जोरदार नोंक-झोंक हुई थी. आज इनका प्रश्न आया तो मुझे लगा कि मुझे बहुत तैयारी के साथ जाना चाहिए. अध्यक्ष महोदय, मैं आपके मार्फत् उन्हें धन्यवाद देना चाहता हूं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं इनके प्रश्न के संबंध में कहना चाहता हूं कि सिविल अस्पताल के लिए जो आवश्यक नॉर्म्स हैं, उसकी पूर्ति इनका क्षेत्र नहीं करता है लेकिन इनके आग्रह, राजस्थान का बॉर्डर एवं अन्य बातों को ध्यान में रखते हुए, हम पुन: इसका परीक्षण करवायेंगे. यदि वह क्षेत्र उस कैटेगरी में आयेगा तो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को सिविल अस्पताल बनाने के लिए हम अपनी तरफ से पूरा प्रयास करेंगे.
कुँवर हजारीलाल दांगी- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा दूसरा प्रश्न यह है कि चूंकि यह क्षेत्र राजस्थान के बॉर्डर से लगा हुआ है इसलिए वहां बहुत अधिक एक्सीडेंट होते हैं और गरीब मरीज इतने अधिक होते हैं कि उन्हें राजस्थान रैफर करना पड़ता है.
अध्यक्ष महोदय- उन्होंने स्वीकार तो कर लिया.
कुँवर हजारीलाल दांगी- मेरा कहना यह है कि खिलचीपुर में 6 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं और केवल 2 डॉक्टर पदस्थ हैं. महिला डॉक्टर तो जब से मैं विधायक हूं और उससे पहले से भी मैंने नहीं देखी है. मंत्री जी ने डॉक्टर के लिए मेरे सामने बैठकर आदेश भी किया था. यदि मंत्री जी वहां डॉक्टरों और स्टाफ की पदस्थापना करवा देंगे तो वहां के गरीबों को सुविधा हो जायेगी.
श्री रूस्तम सिंह- माननीय अध्यक्ष महोदय, विधायक जी भली-भाँति जानते हैं कि महिला डॉक्टर उपलब्ध नहीं हो सकीं. अभी हमने पुन: 1400 डॉक्टरों की भर्ती का आग्रह किया है. इसके अलावा एन.आर.एच.एम. से डॉक्टर उपलब्ध होते हैं तो हम आपके यहां शीघ्र एक डॉक्टर और जरूर भिजवा देंगे.
कुँवर हजारीलाल दांगी- धन्यवाद.
भवन विहीन स्वास्थ्य केन्द्रों के भवन का निर्माण
[लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण]
18. ( *क्र. 1379 ) श्री यादवेन्द्र सिंह : क्या लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) नागौद विधान सभा क्षेत्र के वि.खं. उचेहरा के अंतर्गत उपस्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक उपस्वास्थ्य केन्द्र के भवनों के संबंध में प्रश्नकर्ता सदस्य को खण्ड चिकित्सा अधिकारी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र उचेहरा जिला सतना द्वारा अपने पत्र क्रमांक 363 दिनांक 15/07/2017 द्वारा जानकारी दी है कि कौन-कौन से उपस्वास्थ्य केन्द्र भवन विहीन, मरम्मत योग्य हैं तथा समुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र उचेहरा 100 बिस्तरीय सिविल अस्पताल में उन्नयन किये जाने हेतु संचालनालय स्वास्थ्य सेवायें भोपाल के पत्र क्रमांक 5/विकास-सेल-3/2017/248 दिनांक 04/05/2017 द्वारा जानकारी चाही गई थी, जिसका प्रतिवेदन 25/05/2016 को मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी जिला सतना को भेजा गया था? (ख) प्रश्नांश (क) यदि हाँ, तो भवन विहीन एवं मरम्मत योग्य उपस्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के निर्माण्ा हेतु प्रश्न दिनांक तक क्या कार्यवाही की गई? तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र उचेहरा को 100 बिस्तरीय को सिविल अस्पताल में उन्नयन करने हेतु क्या कार्यवाही की गई?
लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री ( श्री रुस्तम सिंह ) : (क) जी हाँ, खण्ड चिकित्सा अधिकारी उचेहरा द्वारा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र उचेहरा को 100 बिस्तरीय सिविल अस्पताल में उन्नयन किये जाने हेतु प्रतिवेदन दिनांक 25.05.2016 को नहीं अपितु दिनांक 12.05.2017 को मुख्य चिकित्सा एवं अधिकारी जिला सतना को भेजा गया था।
अध्यक्ष महोदय- कृपया एक ही प्रश्न करेंगे तो बेहतर होगा क्योंकि समय हो रहा था और मैंने जल्दी करवाकर आपका प्रश्न पुकारा है.
श्री यादवेन्द्र सिंह- माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी से मैं जानना चाहता हूं कि मैंने उचेहरा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 100 बिस्तर सिविल अस्पताल का जिक्र किया है. मेरे विधान सभा क्षेत्र में उचेहरा और नागौद में दो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. उनमें से कहीं भी चाहे उचेहरा पात्र हो या नागौद पात्र हो. मंत्री जी के जवाब में पहले आया है कि हम उन्नयन करेंगे. बाद में जो संशाधित उत्तर में दिया है कि अपात्र, जो भी दो में पात्र हों, उसमें आप 100 बेड का अस्पताल अभी सामुदायिक अस्पताल में 30 बेड हैं, उसको 30 की जगह 60 कर दें. उसको 100 न करें, 10-20 और बढ़ा दें. पर माननीय मंत्री जी ने सीधे सीधे अपात्र लिख दिया है. दूसरी बात मैंने पूछी थी कि मेरी विधान सभा में कितने उप - स्वास्थ्य केन्द्र मरम्मत योग्य हैं, कितने भवन विहीन हैं, उसमें तीन सामुदायिक भवनों का उत्तर आया है कि तीन उप- स्वास्थ्य केन्द्रों की मरम्मत करायी जायेगी, जबकि काफी उप-स्वास्थ्य केन्द्र योग्य हैं और काफी नये बनाने की आवश्यकता है, तो इसका मंत्री जी के द्वारा कोई उत्तर नहीं दिया गया है. अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से पूछना चाहता हूं कि क्या 30 बेड से कुछ और बेड बढ़ाने का कष्ट करेंगे ?
श्री रूस्तम सिंह :- आपने स्पेसिफिक प्रश्न 100 बिस्तरों का किया है. उसका जवाब मुझे विभाग से प्राप्त हुआ है, वह मैंने दिया है, लेकिन अब विधायक जी यह चाहते हैं कि कुछ ही बढ़ जायें तो उस तरीके से हम उसका आंकलन करा लेंगे और केटेगरी में आयेगा तो उस पर विचार करेंगे. दूसरा जो मरम्मत योग्य उप-स्वास्थ्य केन्द्र हैं, उसकी मरम्मत सुनिश्चित कर दी जायेगी और काफी जल्दी कर दी जायेगी.
श्री यादवेन्द्र सिंह:- माननीय अध्यक्ष महोदय, नये नहीं खोलेंगे ? 15 साल से न तो सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, उचेहरा का सिविल अस्पताल में उन्नयन नहीं किया गया है.
अध्यक्ष महोदय:- नहीं अब समय हो गया है, मंत्री जी ने बोल दिया है कि वह बढ़ाने का परीक्षण करा रहे हैं और मरम्मत के लिये उन्होंने सुनिश्चित कर दिया है.
श्री यादवेन्द्र सिंह:-मेरे प्रश्न का पूरा उत्तर तो जाये.
अध्यक्ष महोदय:- आपके प्रश्न का उत्तर आ गया है.
श्री यादवेन्द्र सिंह:- नहीं आया है, अभी तक. मेरा एक उप-स्वास्थ्य केन्द्र है, उसका प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में उन्नयन कर दिया जाये.
अध्यक्ष महोदय:- आपके प्रश्न का उत्तर आ गया है. मैंने बाकी सदस्यों के प्रश्नों को जल्दी-जल्दी करवाकर आपके प्रश्न को चर्चा में लाया है.
आज 18 प्रश्नों में से 2 प्रश्न छोड़कर के 16 प्रश्नों के उत्तर माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी ने दिये हैं और उनके उत्तर लगभग समाधानकारक दिये हैं. उसके लिये मैं उनको बधाई देता हूं, सभी प्रश्न एक ही तरफा थे.
श्री रूस्तम सिंह :- अध्यक्ष महोदय, मैं आपको बहुत धन्यवाद देता हूं.
अध्यक्ष महोदय:- प्रश्नकाल समाप्त.
(प्रश्नकाल समाप्त)
12.03 बजे नियम 267-क के अधीन विषय
12.04 बजे शून्यकाल में मौखिक उल्लेख
(1)प्रदेश में दुष्कर्म की शिकार छात्राओं द्वारा आत्महत्या की जाना.
डॉ. गोविन्द सिंह (लहार) :- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय गृह मंत्री के जिले में कल फिर एक बेटी ने दुष्कर्म की शिकार होकर आत्महत्या कर ली है. प्रदेश में 5 दिन के अन्दर तीन मासूम बेटियों ने दुष्कर्म के कारण आत्महत्या कर ली है. पूरे प्रदेश में बलात्कारियों का राज कायम हो गया है. मैं माननीय गृह मंत्री जी से और सरकार में बैठे मंत्रियों से चाहता हूं कि कोई कठोर कार्यवाही करें, ताकि प्रदेश की बालिकाएं और छात्राएं सुरक्षित रहें, प्रदेश में भय का वातावरण हो गया है. तमाम छात्राएं भोपाल छोड़कर बाहर जाने को तैयार हैं. आप कठोर कार्यवाही करें, यही हमारा सरकार से अनुरोध है.
(2) मऊगंज के गाड़ाबांध में एकपकरा के निवासी का डूब जाना.
श्री सुखेन्द्र सिंह (मऊगंज) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत गाड़ाबांध में 3 दिन से एकपकरा के निवासी अय्यूब खान डूब गए हैं, लेकिन उनकी लाश 3 दिनों से नहीं मिल पा रही है. मेरा आपके माध्यम से शासन, प्रशासन से अनुरोध है कि उसकी लाश सुचारू रूप से मिल सके, इसके लिए व्यवस्था बनाई जाये एवं राहत राशि प्रदान की जाये. धन्यवाद.
(3) बहोरीबंद में गांव-गांव में शराब बिकना.
कुँवर सौरभ सिंह सिसोदिया (बहोरीबंद) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी विधानसभा क्षेत्र में शराब गांव-गांव में बिक रही है और जब महिलाएं विरोध कर रही हैं तो पुलिस उनके खिलाफ 107/16 का मुकदमा कायम कर रही है. मैं इस विषय में यह चाहूँगा कि माननीय गृह मंत्री जी इस पर ध्यान दें.
(4) सागर में मेडीकल कॉलेज में व्यवस्था की जाना .
श्री शैलेन्द्र जैन (सागर) - माननीय अध्यक्ष महोदय, एक मेरा विषय था. सागर में हमारा मेडीकल कॉलेज बनकर तैयार हो गया है. उसमें ऑडिटोरियम भी बनकर तैयार हो गया है, लेकिन उसमें जो सिटिंग अरेन्जमेंट होना चाहिए, एयर कंडीशनिंग होनी चाहिए और इकोसिस्टम होना चाहिए, वह नहीं लग पाया है, इसकी वजह से वह डीफंक्ट पड़ा हुआ है. इस संबंध में मैंने प्रश्न भी लगाया था. अध्यक्ष महोदय, आपसे मेरी गुजारिश है कि हमारा 3.22 करोड़ रुपये का प्रस्ताव है, उसको शासन अविलम्ब स्वीकृति देने की कष्ट करे.
(5) मंदसौर में मण्डी जी के बाग के नजदीक एक बालक का लापता होना.
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया (मंदसौर) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मंदसौर शहर में मण्डी जी के बाग के नजदीक लगभग 3-4 दिनों से, मेरे शहर का एक बालक उम्र करीब 12 से 14 वर्ष है, वह लापता है. उसके परिवार के सदस्यों ने आशंका व्यक्त की है कि उसका अपहरण हो गया है. पुलिस तथा प्रशासन अभी तीन-चार दिनों से उसका पता नहीं लगा पाई है. यह मेरे शून्यकाल का विषय है.
(6) जौरा के कैलाश नगर में अलोपीशंकर मंदिर के पास खनन किया जाना .
श्री सूबेदार सिंह रजौधा (जौरा) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे विधानसभा में कैलाश नगर में अलोपीशंकर मन्दिर है, उसमें रोजाना हजारों श्रद्धालु दर्शन करने जाते हैं और यह पता नहीं है कि वहां राजस्व विभाग ने खनन का ठेका दे दिया है या वे वैसे ही खनन कर रहे हैं. यदि ऐसे ही खनन होते रहा तो वह मन्दिर नष्ट हो जायेगा. शहरवासियों में तथा भक्तों में बहुत आक्रोश है. इसे तत्काल रोकने की कृपा करें.
(7) नीमच में ट्रामा सेन्टर एवं इक्यूपमेंट तथा स्टाफ की पूर्ति किया जाना.
श्री दिलीप सिंह परिहार (नीमच) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे शून्यकाल की सूचना स्वास्थ्य विभाग से संबंधित है. वहां ट्रामा सेन्टर तैयार हो गया है, उसमें इक्यूपमेंट और स्टाफ की पूर्ति हो जाये और माननीय खुमान सिंह शिवाजी के नाम से उसका नाम रखा जाये. ऐसा मेरा निवेदन है.
(8) पुष्पराजगढ़ में जनपद पंचायत जतहरी में गूजर नाले में पुलिया बनाई जाना.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को (पुष्पराजगढ़) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे विधानसभा क्षेत्र के ग्राम पंचायत ढ़लवां उमरिया, जनपत पंचायत जतहरी में एक गूजर नाला है, जो छत्तीसगढ़ को जोड़ने वाली नदी है. उसमें यदि पुलिया बना दी जाये तो बड़ी कृपा होगी.
(9) पाटन में भीषण जल संकट पैदा होना.
श्री नीलेश अवस्थी (पाटन) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे शून्यकाल में विषय इस प्रकार है कि हमारे क्षेत्र में भीषण जल संकट पैदा हो रहा है क्योंकि जहां-जहां जिस गांव में बोर हुए हैं, वहां 30 फुट एवं 60 फुट से ज्यादा नहीं हुए हैं. पानी नीचे जाने के कारण कई बस्तियों में बहुत हाहाकार मचा हुआ है. मैं चाहता हूँ कि वहां नये बोर कराए जाएं.
(10) पथरिया में विकासखण्ड बटियागढ़ में भीषण जल संकट हेतु 2 सबमर्सिबल उपलब्ध कराया जाना.
श्री लखन पटेल (पथरिया) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे शून्यकाल में विषय इस प्रकार है कि मेरे निर्वाचन क्षेत्र के विकासखण्ड बटियागढ़ में भीषण जल संकट है. मैं आपके माध्यम से ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूँ कि प्रत्येक गांव में लगभग 2 सबमर्सिबल उपलब्ध कराने की कृपा करें.
12.08 बजे पत्रों का पटल पर रखा जाना
(1) जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर (मध्यप्रदेश) का वार्षिक प्रतिवेदन
वर्ष 2016-2017.
(2) मध्यप्रदेश पॉवर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड का पंचदश वार्षिक प्रतिवेदन वित्तीय वर्ष 2016-2017.
12.09 बजे ध्यानाकर्षण
(1) बालाघाट जिले में नियमित रूप से बिजली का प्रदाय न किया जाना
सुश्री हिना लिखीराम कांवरे (लांजी) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी ध्यान आकर्षण की सूचना का विषय इस प्रकार है कि
ऊर्जा मंत्री (श्री पारसचंद्र जैन) - माननीय अध्यक्ष महोदय,
सुश्री हिना लिखीराम कावरे – माननीय अध्यक्ष महोदय, जब से छत्तीसगढ़ अलग हुआ है, तब से पूरे मध्यप्रदेश में बालाघाट जिला ही एक ऐसा जिला है, जहां पर धान उत्पादकता सबसे ज्यादा होती है. यदि वहां लगातार 10 घंटे विद्युत सप्लाई नहीं की जाएगी तो जिस उद्देश्य से आपने किसानों को 10 घंटे बिजली देने की बात की है उसकी पूर्ति संभव ही नहीं है. अध्यक्ष जी, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से यह जानना चाहती हूं कि क्या ए.जी. फीडर में एक ही शिफ्ट में लगातार 10 घंटे बिजली देने का अधिकार क्या राज्य शासन को है? या विद्युत वितरण कंपनी को है? या आपके विद्युत नियामक आयोग को है, कृपया बताएं?
श्री पारस चन्द्र जैन – हम 10 घंटे बिजली पर्याप्त मात्रा में धान उत्पादन के क्षेत्र में देते हैं, लेकिन एक साथ बिजली देने में हमें तकनीकी समस्या है, यदि समस्या नहीं होती हमको देने में कोई समस्या नहीं थी. लेकिन हम नियमानुसार बराबर मात्रा में 10 घंटे बिजली दे रहे हैं, एक साथ लगातार 10 घंटे बिजली देने में तकनीकी समस्या है इसलिए 10 घंटे बिजली साथ देना उचित नहीं समझते.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे – माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे प्रश्न का अभी जवाब ही नहीं आया.
अध्यक्ष महोदय – माननीय सदस्या पूछ रही हैं कि बिजली देने का अधिकार विद्युत वितरण कंपनी को है या राज्य शासन को?
श्री पारस चन्द्र जैन – माननीय अध्यक्ष महोदय, विद्युत वितरण कंपनी राज्य शासन के समन्वय से समय समय पर विचार करके इस बात को निर्धारित करती हैं .
सुश्री हिना लिखीराम कावरे – माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं मंत्री जी से यह निवेदन करना चाहती हूं कि क्या राज्य शासन पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के माध्यम से विद्युत नियामक आयोग को क्या यह सिफारिश भेजेगा कि बालाघाट जिले में चूंकि धान की खेती होती है, अगर वहां लगातार 10 घंटे बिजली नहीं दी गई तो निश्चित रूप से उत्पादकता में भी अंतर आयेगा और किसानों को 10 घंटे बिजली का लाभ नहीं मिलेगा, हम सीधे सीधे शब्दों में कह सकते हैं कि किसानों को सिर्फ 6 घंटे का ही लाभ बालाघाट के किसानों को मिल रहा है. माननीय अध्यक्ष महोदय मेरा निवेदन है व्यवहारिकता के अनुसार भी इस बात पर विचार करें. हमारे कृषि मंत्री जी यहां पर उपस्थित नहीं हैं, मैं जानती हूं कृषि मंत्री जी हमारे जिले के हैं और वे भी इस बात को भलीभांति जानते हैं कि अगर बालाघाट के किसानों को 10 घंटे विद्युत नहीं मिलेगी तो वहां पर खेती संभव नहीं है.
श्री पारस चन्द्र जैन – माननीय अध्यक्ष महोदय, विद्युत नियामक आयोग बिजली के घंटे निर्धारित नहीं करता है और यह बात जरूर है कि हम एक दिन में सुबह शाम, 10 घंटे बिजली बराबर दे रहे हैं, हम यही व्यवस्था कर करते हैं.
अध्यक्ष महोदय – आप वही प्रश्न करेंगी और उत्तर भी वही आयेगा इसलिए बार बार प्रश्न करने का क्या मतलब है.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे – माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आसंदी से यह अपेक्षा करती हूं कि कम से कम बालाघाट की परिस्थतियों को ध्यान में रखकर सरकार यह निर्णय ले लें, खासकर जब धान की फसल का समय होता है उस समय यदि यह व्यवस्था करने के लिए माननीय अध्यक्ष महोदय यदि आप माननीय मंत्री जी से उत्तर दिलवा दें तो बालाघाट के किसानों की समस्या हल हो जाएगी.
अध्यक्ष महोदय –मंत्री जी ने आपके प्रश्न का उत्तर तो दे दिया और आपका आग्रह भी सुन लिया.
2) दमोह जिले के ग्राम गीदन में लौह संयंत्र स्थापित न किया जाना.
श्री लखन पटेल (पथरिया) – माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी ध्यान आकर्षण की सूचना का विषय इस प्रकार है:-
मंत्री, उद्योग नीति एवं निवेश प्रोत्साहन (श्री राजेन्द्र शुक्ल, )-- अध्यक्ष महोदय, ध्यानाकर्षण सूचना पर विभाग का उत्तर इस प्रकार है -
श्री लखन पटेल--माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से यह जानना चाहता हूं कि क्या इसकी जगह किसी दूसरी कंपनी को उद्योग लगाने के लिये प्रोत्साहित करेंगे, अगर नहीं तो क्या फिर यह जमीन राजस्व विभाग को वापस करेंगे ताकि वहां पर अन्य दूसरे कार्य हो सकें.
श्री राजेन्द्र शुक्ल -- अध्यक्ष महोदय, अभी उक्त भूमि को राजस्व विभाग को वापस करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि एस.पी.जे. स्टील एण्ड मिनरल्स लिमिटेड कंपनी ने आयरन हेतु पी.एल. के लिये आवेदन किया था, उन्होंने एमएल के लिये एप्लाई किया है.इसका मतलब यह है कि उनको ऐसा लगता है कि वहां पर कुछ लोह अयस्क उनको प्राप्त हुआ है. इसलिये हम उसका परीक्षण कर रहे हैं और जैसे ही वह कन्फरमेशन होगा उनको एमएल.ग्रांट होगी और फिर एक अवसर उस कंपनी को और देंगे कि वह कंपनी यदि वहां पर स्टील का प्लांट लगाना चाहे तो वह आगे आ सकती है.
श्री लखन पटेल -- माननीय अध्यक्ष महोदय, आज के ध्यानाकर्षण के माध्यम से एक बात तो जानकारी में आई कि वह कंपनी अभी इसमें एक्टिव रोल कर रही है. मैं मंत्री जी से जानना चाहता हूं कि यह फेक्ट्री बहुत जल्दी शुरू हो जाये या कब तक शुरू करा देंगे ?
श्री राजेन्द्र शुक्ल -- माननीय अध्यक्ष महोदय, हम लोग तो चाहते हैं कि फेक्ट्री जल्दी से जल्दी आये और ज्यादा से ज्यादा निवेश हमारे मध्यप्रदेश में आये.लेकिन निर्भर करता है उस कंपनी पर कि वह कितनी सक्रियता से आगे आती है. यदि उन्होंने अपनी रूचि दिखाई तो एक बार भूमि फिर से उनको आफर करके आवंटित करने का काम किया जायेगा. और यदि उनकी रुचि नहीं होगी तो दूसरे निवेशकों को आमंत्रित करने का प्रयास किया जायेगा.
श्री लखन पटेल -- मंत्री जी हालांकि इस बात को 10 से 11 वर्ष हो गये हैं. लेकिन फिर भी मंत्री जी को धन्यवाद.
श्री शैलेन्द्र जैन (सागर) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं मंत्री के ध्यान में इस बात को लाना चाहता हूं कि न केवल यह एस.पी.जे. स्टील की बात है, हमारे बुंदेलखण्ड के संबंध में लगभग 2 दर्जन एम.ओ.यू. साइन हुये थे, उसमें से एक भी धरातल पर नहीं आ पाया है. अध्यक्ष महोदय, औद्योगिक क्षेत्र में बुंदेलखण्ड का विकास रूक गया है इसलिये मंत्री जी से आग्रह है कि बुंदेलखण्ड के लिये कुछ ऐसे इंसेटिव देने की आवश्यकता है ताकि लोग वहां पर उद्योग लगाने के लिये आकर्षित हों.
श्री राजेन्द्र शुक्ल -- माननीय सदस्य का बहुत अच्छा सुझाव है. हम लोग जरूर विचार करेंगे.
12.24 बजे प्रतिवेदनों की प्रस्तुति
याचिका समिति का इकसठवां,बासठवां एवं तिरेसठवां प्रतिवेदन
अध्यक्ष महोदय -- श्री शंकरलाल तिवारी...(श्री शंकरलाल तिवारी दूसरे सदस्यों से चर्चा करते हुये ) श्री शंकरलाल तिवारी....
राजस्व मंत्री (श्री उमाशंकर गुप्ता ) -- अध्यक्ष महोदय, सदन में श्री सुंदरलाल तिवारी जी आ रहे हैं, इसलिये शंकरलाल तिवारी जी का ध्यान वहां है.
श्री शंकरलाल तिवारी -- अध्यक्ष महोदय, एक को तो आप तिवारी जी कहते हैं, एक को आप शंकरलाल तिवारी कहते हैं उसमें धोखा हो जाता है. नाम तो आप प्यार से मेरा ही लेते हैं इसके लिये आपको हृदय से धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय- और सुंदरलाल जी का नाम कैसे लेते हैं (हंसी)
श्री शंकरलाल तिवारी(सभापति) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मै याचिका समिति का याचिकाओं से संबंधित इकसठवां, बासठवां एवं तिरेसठवां प्रतिवेदन प्रस्तुत करता हूं.
12.25 बजे याचिकाओं की प्रस्तुति
अध्यक्ष महोदय-- आज की कार्यसूची में सम्मिलित सभी याचिकायें प्रस्तुत की हुई मानी जायेंगीं.
12.26 बजे वर्ष 2018-2019 की अनुदानों की मांगों पर मतदान (क्रमश:)
(1) |
मांग संख्या – 8 |
भू-राजस्व तथा जिला प्रशासन |
|
मांग संख्या – 9 |
राजस्व विभाग से संबंधित व्यय |
|
मांग संख्या – 46 |
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी |
|
मांग संख्या – 58 |
प्राकृतिक आपदाओं एवं सूखा ग्रस्त क्षेत्रों में राहत पर व्यय.
|
अध्यक्ष महोदय-- उपस्थित सदस्यों के कटौती प्रस्ताव स्वीकृत हुये, अब मांगों के कटौती प्रस्तावों पर एक साथ चर्चा होगी.
श्री रामपाल सिंह (ब्यौहारी)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं मांग संख्या 8, 9, 46 एवं 58 के विरोध में बोलने के लिये खड़ा हुआ हूं. राजस्व विभाग में वर्ष 2011-2012 में खसरे का कम्प्यूटरीकरण किया गया, उसमें तमाम् विसंगतियां हैं. कृषकों के कहीं-कहीं खसरे नंबर सही नहीं है, रकबों में भी गड़बड़ी है जिससे किसान काफी परेशान हैं. मात्रा पाइयों की काफी व्यापक रूप में त्रुटियां हैं और मैं यह मानता हूं कि इसकी गहन रूप से एक समीक्षा होनी चाहिये और समीक्षा करने की जरूरत भी है जिससे इनमें सुधार हो सके. आज किसानों को इस प्रदेश में नि:शुल्क खसरा खतौनी देने का काम इस सरकार के द्वारा किया जाता है. मैं यह मानता हूं कि यह महज एक औपचारिकता है. नि:शुल्क कहीं नहीं मिल रहे हैं. वन अधिकार के जो पट्टे प्राप्त हुये हैं, वर्ष 2006 के बाद वह भूमि तो किसी खसरे में भूमि स्वामी के रूप में दर्ज है ही नहीं. मैं तो यह कहता हूं कि वनाधिकार के जो पट्टे दिये गये हैं इनको भी खसरे में दर्ज होना चाहिये. जिनको वन अधिकार के पट्टे मिले हैं उनको सूखा राहत की राशि का मुआवजा भी नहीं मिलता है, इसमें भी सुधार करने की आवश्यकता है. फसल बीमा की बात करें, सहकारी संस्थाओं के माध्यम से या कृषि विभाग के माध्यम से जो किसानों को प्रदाय किया जाता है वह कागज में सिमटकर रह गया है. अगर सच्चाई देखें तो कई ऐसे किसान हैं जो आज भी इस योजना से वंचित हैं. वर्ष 2015-16 में जब सूखा पड़ा था उस समय भी फसल बीमा के प्रमाण पत्र बांटे गये थे, किंतु उन कृषकों को आज भी उनके मुआवजें की राशि नहीं मिल पाई है, इसमें मैं माननीय मंत्री जी से यह चाहता हूं कि उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिये. जंगली जानवरों जैसे सुअर, नीलगाय किसानों की फसलों का इतना नुकसान करते हैं कि जहां हमारा 50 हजार का नुकसान है उसमें मात्र 5 हजार मुआवजा मिलता है, इस राशि को बढ़ाने का विचार किया जाना चाहिये.
12.31 बजे माननीय सभापति (श्री कैलाश चावला) पीठासीन हुये.
माननीय सभापति महोदय, पटवारियों की आप बात करें, विभाग में पटवारियों की इतनी कमी है कि 5-5, 6-6 हल्के एक पटवारी के पास हैं, अर्थात यह कह लें कि एक नायब तहसीलदार के बराबर इनके हल्के हैं. आपके पटवारियों के कहीं आवास भी नहीं हैं, बहुत कम आवास बने हैं, एक निश्चित जगह हो कि सप्ताह में पटवारी यहां मिलेंगे तो किसानों को परेशानी न हो, कृपया इसे भी तय होना चाहिये कि पटवारी अपने हल्कों में रहें. पटवारी कब-कब रहेंगे यह तय हो जाये, किस-किस दिनांक को मिलेंगे, तो किसानों को सुविधा होगी. शहडोल लोकसभा का जब उप चुनाव था, पूरे संभाग में आवासीय पट्टे का वितरण किया गया. वह मात्र एक प्रमाण-पत्र टाइप से एक अधिकार पत्र टाइप से दिये हैं वह न कहीं खसरे में दर्ज है, न कहीं कुछ है, मात्र एक औपचारिकता है. सीमांकन का काम जो पहले होता था, मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता की धारा 139 के तहत जो अधिकार पहले तहसीलदार को था, आज वह राजस्व निरीक्षक को दे दिया गया है. राजस्व निरीक्षक अगर किसी प्रभावशाली व्यक्ति के प्रभाव में आकर अगर गलत सीमांकन करता है तो उसकी अपील पहले तहसीलदार के यहां हो जाती थी, कलेक्टर के यहां हो जाती थी किंतु अब उसे राजस्व मंडल ग्वालियर जाना पड़ेगा. मतलब एक किसान जो गरीब है उसके साथ कितना अन्याय हो रहा है, यह उसके लिये बहुत बड़ी चीज है, इस पर विचार करना चाहिये, इसमें संशोधन होना चाहिये. जैसा पहले नियम था उसी नियम को लागू करना चाहिये. मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता की धारा 44 में अपील का प्रॉवीजन है. पहले अनुविभागीय अधिकारी को 45 दिन की जो समयावधि रहती थी, आयुक्त को 60 दिन की और राजस्व मंडल को 90 दिन की समयावधि अपील करने की जो रहती थी, आज वर्तमान में उसको घटाकर क्रमश: 30, 45 और 60 दिन कर दिया गया है. इस प्रॉवीजन को भी पूर्ववत संशोधन करना चाहिये. माननीय सभापति महोदय, मैं ऐसा मानता हूं कि इसमें भी सुधार करने की जरूरत है जिससे किसानों को पर्याप्त समय मिले और वह अपील कर सकें. धारा 50 के पुनर्विलोकन में संबंधित राजस्व न्यायालय में कोई त्रुटि हुई है, उसमें 90 दिन के भीतर अपील करने का समय रहता था, वह घटाकर 75 दिन कर दिया गया है, इसमें भी सुधार करने की आवश्यकता है. मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता की धारा 51 में जो निगरानी का प्रॉवीजन पहले था, पहले कलेक्टर को सीमांकन या व्यवस्थापन आदि के संबंध में अधिकार थे, उसे संशोधित कर राजस्व मंडल को दे दिये गये हैं. किसान राजस्व मंडल नहीं पहुंच पाते, चूंकि कई किसान इतने गरीब हैं कि वह कलेक्टर के पास नहीं पहुंच पाते, राजस्व मंडल तो उनके लिये बहुत बड़ी चीज है. निगरानी का जो प्रॉवीजन है जैसे पहले था अगर आप ऐसा करते हैं तो उन मध्यम और गरीब तबके के जो किसान हैं उनको बड़ी आसानी से, सहजता के साथ न्याय सुलभ हो सकेगा. मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता की धारा 248 संशोधन कर जैसे पहले शासकीय जमीन का जुर्माना करने का अधिकार तहसीलदार को 1500 रूपये अधिकतम था, एसडीओ को 500 रूपये अधिकतम था, किंतु आज यह स्थिति है कि शासकीय जमीन पर कहीं कोई कृषक या कोई व्यक्ति काबिज किया है. हर हल्के का जो बाजार वेल्यू अलग अलग है और उसका 20 प्रतिशत जुर्माना लगाया जाता है. मेरे विधान सभा क्षेत्र में मैंने देखा कि कई ऐसे गरीब हैं, छोटे-छोटे धंधे कर रहे हैं, ठेले रखते हैं, या गुमटी रखते हैं उनको 10 हजार अथवा 20 हजार रूपये जुर्माना कर रहे हैं. मेरे यहां पर ऐसे बहुत सारे कृषक हैं जिनको इतना ज्यादा जुर्माना किया है कि वह अपना जुर्माना नहीं दे सकते हैं. इसमें आपको सुधार करना चाहिये. इसमें सबसे ज्यादा नीचे तबके के लोग परेशान हो रहे हैं, यह सोचने की बात है. जंगली जानवरों के द्वारा जो नुकसान हो रहा है उसका किसान को त्वरित मुआवजा मिलना चाहिये, वह नहीं मिलता है, उस पर विचार करना चाहिये.
सभापति महोदय, जहां सूखा-पाला पड़ता है उसमें व्यापक रूप से गड़बड़ी होती है. जैसे अभी ब्यौहारी एवं शहडोल जिले में सूखा घोषित है, किन्तु आज भी बहुत सारे कृषक हैं वह मुआवजे के लिये भटक रहे हैं या हो सकता है कि उनका खाता गलत हो. कईयों के तो नाम ही नहीं हैं उनकी फसल का नुकसान हुआ है. इसका आप पुनः परीक्षण करवा लें. जो किसान इससे छूट गये हैं उनको मुआवजा मिलना चाहिये. आपने समय दिय धन्यवाद.
श्री हेमंत विजय खंडेलवाल--(अटेर)--सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 8, 9, 46 के समर्थन में अपनी बात कहने के लिये खड़ा हुआ हूं. मैं माननीय मुख्यमंत्री, राजस्व मंत्री जी को धन्यवाद देना चाहूंगा कि पहली बार हमारे राजस्व विभाग के कोर्ट हैं उन्हें निर्णय करने के लिये पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत किया है. हमारे सीमांकन में किसी तरह का विवाद न आये इसलिये ई.टी.एस. मशीन के माध्यम से आपने प्रक्रिया को शुरू किया अब लोगों का सीमांकन पर भरोसा भी बढ़ा है और समस्याओं में भी कमी आयी है. सीमांकन प्रक्रिया में सुधार के लिये यू.आर.एस. की स्थापनी भी की जा रही है तथा इसके लिये 30 करोड़ रूपये का बजट भी रखा गया है. हमारे मंत्री जी के नेतृत्व में राजस्व अमला मुख्यमंत्री हेल्प लाईन में सबसे आगे है और उसने सबसे ज्यादा समस्याओं का निवारण किया है उसके लिये धन्यवाद देता हूं. एक जमाना था जब चाहे किसान हों, आम नागरिक हों वह सारे के सारे पटवारी, आर.आई को ढूंढते थे अब वह दौर आ गया है कि आर.आई एवं पटवारी लोगों को ढूंढते हैं कि आपका कोई काम हो तो बता दें. अगर काम बच गया हमें दिक्कत आ जाएगी. ऐसा दौर पहली बार राजस्व मंत्रालय के लाया गया है मैं सबकी तरफ से धन्यवाद देता हूं. हमारे किसान भाई तहसील के चक्कर न लगायें इसके लिये उनको खसरा-किश्त बंदी को घर पर पहुंचाने का काम किया. भू-राजस्व, भू-भाटक ऑन-लाईन जमा करने की प्रक्रिया भी शीघ्र शुरू की जा रही है. किसानों की भूमि के सीमांकन अविवादित नामांतरण, अविवादित बंटवारे तीन माह में पूरे कर लिये जाएं इसका एक अभियान आपके द्वारा चलाया जा रहा है. इसमें 3 हजार 940 करोड़ का प्रावधान आपने राजस्व मंत्रालय के लिये किया है इसमें 1582 करोड़ रूपये सूखा राहत जिलों में भेजने का भी है. पटवारियों की कमी से पूरा प्रदेश जूझ रहा है और पहली बार जितने पटवारी मैदान में हैं उतने ही पटवारियों का चयन आपके द्वारा किया गया है. 9 हजार पटवारी शीघ्र ही प्रदेश में और आयेंगे. इस प्रदेश में जो भी थोड़ी बहुत समस्याएं हैं उनका निपटारा करेंगे. हमारा राजस्व मंत्रालय लगातार अच्छे काम कर रहा है इसमें और भी सुझाव एवं सुधार की गुंजाइश रहती है, क्योंकि लोगों के आम जीवन से जुड़ा हुआ मंत्रालय है. मैं आपको धन्यवाद के साथ कुछ सुझाव भी देना चाहूंगा कि गृह मंत्रालय में एक परिवार परामर्श केन्द्र होता है, पुलिस थानों में जिन परिवारों के विवाद जाते हैं उससे पहले वह परिवार परामर्श केन्द्र पति-पत्नी, सास-बहुओं को बिठाकर उनके झगड़े निपटाने का काम करता है. मेरा आपसे अनुरोध है कि राजस्व कोर्ट भी बनाया जाए जिसमें पारिवारिक मसलों को वहीं पर हल करने की कोशिश की जाए. कई बार परिवारों में विवाद नहीं रहता छोटा-मोटा व्यक्ति अगर समझा दे तो मैं समझता हूं कि परिवार में एकता भी आयेगी और वह मसले आपसी सहमति से हल हो सकते हैं. ग्रामीण सचिवालय को हमारे माननीय पटवा जी तथा माननीय शिवराज सिंह जी चाहते थे कि एक ग्रामीण सचिवालय शुरू हो. मैं मंत्री जी से अनुरोध करूंगा कि एक बड़ी पंचायत को लें और उसके आसपास की 5-6 छोटी पंचायत अथवा छोटे हल्कों को मिलाकर एक राजस्व हमारा ग्रामीण सचिवालय है उसके प्रारूप को फिर से जिन्दा करें उसके कारण जो लाभ होंगे. मैं बताना चाहूंगा कि प्रधानमंत्री आवास माननीय नरेन्द्र मोदी जी द्वारा बड़ी संख्या में दे रहे हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की एक रूलिंग है कि जिसमें किसी भी गांव में 2 प्रतिशत से कम कोई चरनोई भूमि होती है, तो वहां पट्टे नहीं दिये जा सकते हैं. अगर हमारा हल्का 5-6 पंचायतों को मिलाकर बन जाएगा तो एक बड़ा राजस्व हल्का बन जाएगा तो किसी गांव में 4 प्रतिशत चरनोई भूमि तो किसी गांव में डेढ़ प्रतिशत है उसका हल 5-7 गांव के किसी न किसी गांव में चरनोई को चिन्हित करके ही हो जाएगा और मैं समझता हूं कि हमारे पट्टे देने की तथा प्रधानमंत्री आवास की बहुत बड़ी योजना है वह इस छोटे से काम से हल हो जाएगी. हमारी तहसीलों के चक्कर लोग न लगायें इसके लिये हमारा ग्रामीण सचिवालय बहुत कारगर सिद्ध होगा. मैं मंत्री जी को धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने ई.टी.एस. मशीन का उपयोग शुरू किया, लेकिन ई.टी.एस. मशीन कम है. एक तहसील में एक है. मेरी बैतूल तहसील है वहां पर पूछा तो बताया कि पांच सौ सीमांकन पेंडिंग हैं. मेरा आपसे अनुरोध है कि कम से कम एक तहसील में चार-पांच मशीनें दी जाएं उसी के साथ साथ मेरा सुझाव है कि हमारे प्रदेश में बहुत सारे बेरोजगार बच्चे हैं, इंजीनियर हैं, वह ई.टी.एस. मशीन ले लें और ऐसे सीमांकन जिसमें विवाद नहीं हैं उसमें दोनों पक्ष सहमत हो जाते हैं उसे भी हम कानूनी प्रक्रिया में लें उनसे थोड़ा शुल्क लेकर के उनका सीमांकन कर दें जिससे चार-छः महीने में लोगों के सीमांकन हो जाएंगे. आपके राजस्व अमले पर बोझ कम हो जाएगा. मेरा ध्यानाकर्षण था उसमें पूरे प्रदेश की समस्या थी स्थायी आवासीय पट्टे, स्थायी व्यावसायिक पट्टे और अस्थायी व्यावसायिक पट्टे उसमें 2009 में एक निर्णय लिया जिसमें आबादी के हिसाब से जो पहले 9 रूपये प्रति वर्ग फिट होता था उसे छोड़कर उसको गाईड लाईन से जोड़ दिया इसके कारण बैतूल शहर में ही लगभग 50 गुना की वृद्धि हो गई और यह स्थिति पूरे प्रदेश में है. अस्थायी पट्टे का 1990 में प्रति वर्ग फिट का 5 रूपये का रेन्ट लगता था उसको गाईड-लाईन से जोड़ने में मेरे यहां पर 1450 रूपये हो गया है. उसमें लगभग 300 गुना वृद्धि हो गई है. यह स्थिति पूरे प्रदेश की है जिसके कारण पूरे प्रदेश में कोई पैसा भर नहीं पा रहा है इसलिये राजस्व की बहुत बड़ी राशि लंबित हो रही है इसमें हमें नीतिगत निर्णय लेने चाहिये. मंत्री जी को धन्यवाद दूंगा कि आपने ध्यानाकर्षण के जवाब में 30 मार्च तक उसको हल करने के लिये कहा है, आपकी तरफ से पूरा काम हो गया है, लेकिन वित्त विभाग में अटका हुआ है. मैं इसको बार बार इसीलिये बोल रहा हैं कि यह बड़ी बीमारी है. कोई बीमारी एक इंजेक्शन से ठीक नहीं होती उसको बार बार बताना भी पड़ता है और आप इस दिशा में लगे हैं इसलिये आपको पुनः धन्यवाद देता हूं. एक लोकल समस्या बताकर अपनी बात समाप्त करूंगा मेरे जिले के मुल्ताई और बैतूल बाजार को 1980 में आपने राजस्व से हटार नजूल में लिया है, लेकिन उसकी प्रक्रिया 25 साल से अधूरी पड़ी है. लोगों के वहां न तो पट्टे बन पाये हैं और न ही लोगों का सीमांकन हुआ है, न ही लोग जमीन खरीद-बेच पा रहे हैं. यह समस्या पिछले 25 वर्षों से है. किसी अधिकारी को लगायें ताकि वह मेरे साथी चन्द्रशेखर देशमुख जी ने भी यह मामला उठाया था. यह समस्या अगर हल होती है तो दोनों शहरों में हम प्रधानमंत्री आवास दे पाएंगे पुन: सभापति जी, आपके माध्यम से मैं मंत्री जी और हमारे मुख्यमंत्री जी का धन्यवाद करूंगा. आपके कारण जब हम विधायक लोग गांवों में जाते हैं तो हमसे भी कोई राजस्व विभाग की शिकायत नहीं करता. बड़ी तेजी से आपके नेतृत्व में मंत्रालय काम कर रहा है. आपने पारदर्शिता बनाई है. पुन: इस अच्छे काम को आपको धन्यवाद देते हुए मैंने जो आपको दो-तीन सुझाव दिये हैं उन पर अमल करने से हमारी और पारदर्शिता बढ़ेगी. धन्यवाद.
डॉ.गोविन्द सिंह(लहार) - माननीय सभापति महोदय,मध्यप्रदेश में जब-जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती तो पूरे प्रदेश में कहां-कहां मुख्य जमीनें हैं. अरबों की जमीनें हैं, शहरों के पाश इलाके की जमीनों पर कब्जा करने की नीति बनाई जाती है.1990 में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तो पूरे प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने अपने-अपने संगठनों को,अपने-अपने चहेतों को करोड़ों की जमीन कौड़ियों के भाव बांटी और उसकी जांच जगतपति कमेटी जब बनी थी उस जगतपति कमेटी की जो रिपोर्ट आयी उसमें विस्तार से चर्चा थी लेकिन वह जमीनें आज भी जैसी की तैसी उन्हीं लोगों के पास हैं. इसी प्रकार से मैं पुन: कहना चाहता हूं कि लगभग पंद्रह साल को यह सरकार होने को आयी इस सरकार ने पूरे प्रदेश में, हमने एक प्रश्न लगाया था विधान सभा में आज से दो वर्ष पहले. उसमें 86 प्रमुख शहरों की जमीनें 1 रुपये में,2 रुपये में संस्थाओं को और निजी अस्पतालों के नाम पर बांट दीं और इसके बाद जो बची खुची जमीनें थीं उन पर अन्य लोगों के माध्यम से कब्जा करने की योजना बनाई. पिछली विधान सभा में हम कई प्रश्न लगा चुके, चर्चा हो चुकी,ध्यानाकर्षण भी लग चुके. सतना के पास एयरबेस के पास करीब 1 हजार करोड़ से अधिक की जमीन है. इस जमीन पर नेता प्रतिपक्ष जी ने भी इस मुद्दे को विधान सभा में उठाया लेकिन लगातार विधान सभा में शिकायतें करने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई और उस पर कालोनी बन गई और गैस के गोदाम भी बन गये.सागर का भी एक मुद्दा हर्ष सिंह जी ने उठाया था. उस प र जब कोर्ट में गये तब न्याय मिला. इसी प्रकार मैं कहना चाहता हूं कि भोपाल में आज माननीय ललिता यादव जी,आज मंत्री हैं, उन्होंने विधान सभा में 16 दिसम्बर,2015 को इसी प्रकार छतरपुर जिले में जमीनों पर कब्जा होने का मुद्दा उठाया था. जांच कमेटी भी बनाई थी. आदरणीय देवड़ा जी की अध्यक्षता में, उस कमेटी की रिपोर्ट आज तक नहीं आई. इसके साथ ही भोपाल मेमोरियल अस्पताल के पास 7 एकड़ शासकीय जमीन पर भूमाफियाओं ने अधिकारियों और कुछ राजनेताओं से सांठगांठ करके उस पर कब्जा करके डुप्लेक्स मकान बना लिये. तमाम कार्यवाही हुई,आंदोलन भी हुए, कुछ तोड़फोड़ भी कराई गई लेकिन दो-चार मकान तोड़कर चले आये,आज भी उसका यथावत कब्जा है. मामला न्यायालय में चला गया.विवादित हो गया. सरकार को जो पैरवी जमीन बचाने के लिये करनी चाहिये वह सरकार नहीं कर रही है. आपके राज्य सभा के सदस्य माननीय शर्मा जी ने भी कहा कि सरकार सो रही है हम शिकायत करने कहां जाएं. आखिर दिग्गज नेता का छलका दर्द. सरकारी जमीनों के मामले में संगठन से लेकर सरकार तक सब जगह शिकायत कर चुके और उन्होंने 8-19 उदाहरण दिये हैं. मैं बताऊंगा तो देर लगेगी लेकिन आज तक भी उन जमीनों पर कब्जा नहीं हटाया गया,न कोई कार्यवाही की गई. इस तरह की हालत है. जब कांग्रेस में दिग्विजय सिंह जी मुख्यमंत्री थे उस समय जहां 10 परसेंट से ज्यादा चरनोई जमीन थी, उस जमीन के अनुसूचित जाति,जनजाति के भूमिहीनों को पट्टे बांटे गये थे. पूरे प्रदेश में व्यापक रूप से पट्टे बंटे लेकिन मुरैना में तमाम पट्टे जो गैरकानूनी तरीके से कलेक्टरों ने दे दिये,प्रतिबंध है कि ये पट्टे गरीब भूमिहीनों को दिये गये थे तो कलेक्टर यह देखेगा कि वह क्यों बेचना चाहता है, इसकी आवश्यकता क्यों है,अगर उसके यहां कोई पारिवारिक कठिनाई है या घर में कोई नहीं है तो अनुमति लेकर वह बेच सकता है. ग्वालियर में भी हुआ और हमारे आपकी पार्टी के सदस्य हैं सत्यप्रकाश सिकरवार "नीटू" उन्होंने भी कई प्रश्न लगाये लेकिन विधान सभा में जवाब आये कि कार्यवाही होगी लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई और मैंने भी सूचना के अधिकार के तहत् आवेदन लगाये ग्वालियर,मुरैना और कई जगह लगाये,अपीलें कीं लेकिन सूचना के अधिकार की धज्जियां, सरकार में शीर्षस्थ में बैठे हुए अधिकारियों के संरक्षण के चलते वह भी दबा दी गईं. श्योपुर जिले के करहल की बात बताना चाहता हूं. करहल में आदिवासियों को जो पट्टे मिले थे. हमने वहां देखा कि आदिवासियों के पास पट्टे हैं. कई लोगों ने पट्टे पर नोटरी लिखा ली और बेचारे आदिवासी पत्थरों को मकान बनाए,घास और पत्ता लगाकर रह रहे हैं. इतनी भीषण गर्मी में भी कैसी जिंदगी काट रहे हैं यह सोचनीय विषय है. गांव से बाहर के तमाम लोग वहां पहुंच गये और कुछ लोग तो हमारे क्षेत्र से भी पहुंच गये. मैंने देखा कि उनकी वहां तमाम गाड़ी,ट्रेक्टर,जे.सी.बी. चल रही हैं. बंगले बने हुए हैं. हमने कहा कि तुम कहां से इतने पैसे वाले हो गये.
श्री दुर्गालाल विजय - ज्यादातर भिण्ड जिले के लोग हैं.
डॉ.गोविन्द सिंह - अगर भिण्ड के अपराधी हैं तो कार्यवाही करो उन पर. हो सकते हैं हम नहीं कहते हमारी पार्टी के भी हो सकते हैं किसी भी दल के हो सकते हैं. उन्होंने गरीबों की जमीन छीनकर बड़े-बड़े महल बना लिये और दुर्गालाल जी को सब पता है लेकिन उस पर कार्यवाही नहीं हो रही और जो सचिव हैं ग्राम पंचायत विभाग के, तो जितने भी सचिव हैं उनकी भी जांच कराई जाए तो उन्होंने अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति,गरीब आदिवासियों की जमीन लिखाकर अवैध कब्जा करके खेती कर रहे हैं. सिंचाई कर रहे हैं और 15-20 सालों से वहां काबिज हैं और पैसा कमा रहे हैं और आदिवासी दर-दर भटक कर भूखों मरने की स्थिति में हैं. मेरा मंत्री जी आपसे अनुरोध है कि इस प्रकार का कोई एक अभियान चलायें ताकि गरीबों के साथ न्याय हो और अनुसूचित जाति,जनजाति के जो पट्टे बंटे हैं इनकी भी अगर आप कमेटी बनाकर जांच कराएंगे तो अवैध रूप से कई दिल्ली के,मुंबई के बिल्डर आ गये उन्होंने भी आकर महानगरों में जमीनें खरीद लीं. उन्होंने कलेक्टर से परमीशन ले ली,कलेक्टर ने आर्डर कर दिये. जबकि दूसरी जगह जमीन खरीदने की शर्त के साथ परमीशन दी जाती है. दूसरी जगह जमीन नहीं खरीदी गईं लेकिन जमीनें बिक गईं. इस पर ध्यान दें. इसके साथ हमारा आपसे कहना है मैं प्रश्न भी लगा चुका विधान सभा में मंदिरों की जमीन का. मंदिरों की जमीन पर भारी पैमाने पर पुजारियों ने अपने नाम कब्जा कर रखा है. हमारे दबोह क्षेत्र में शासन ने जो कृषि उपज मण्डी को जमीन दी थी. वहां एक पुजारी उत्तराखण्ड से आ गया. उसने नाम लिखाकर,अधिकारियों से सांठगांठ करके,वह जमीन अब बीच बस्ती में आ गयी है. करीब 100 एकड़ जमीन है. डेढ़-दो हजार करोड़ रुपये की जमीन पर कब्जा कर लिया. लगातार हमने कई प्रयास किये.लड़ाई भी लड़ रहे हैं. हाईकोर्ट भी चले गये. अधिकारियों से सांठगांठ करके वह जमीन दबा ली गई. कोई पैरवी नहीं होती. तो मंदिरों की जमीनों की भी आप समीक्षा कराएं. करोड़ों रुपयों की जमीनें हैं.
सभापति महोदय - गोविन्द सिंह जी,थोड़ा संक्षिप्त करें. बहुत लोगों के नाम हैं.
डॉ. गोविन्द सिंह - सभापति महोदय, उस पर भी आप देखें. मैं समाप्त ही कर रहा हूं. हमारे यहां पर एक मंदिर है नारदेश्वर मंदिर, वहां पर नारद जी ने तपस्या की है, ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है. शिवजी का मंदिर है, हमारी भी सरकार रही है, उसकी जमीन के लिए तब भी हमने प्रश्न लगाए और वर्ष 1990 से लेकर अभी तक 47 प्रश्न विधान सभा में लगा चुके हैं, लेकिन उस जमीन से कब्जा नहीं हट पा रहा है. दतिया में कुछ जमीन है, यह सवा सौ बीघा जमीन है. कुछ जमीन का कब्जा तो हट गया है. श्री रामपाल सिंह जी जब राजस्व मंत्री थे, उन्होंने भी आश्वासन दिया था कि एक महीने में कर देंगे. दिनांक 16.12.2015 की बात है. आपकी धार्मिक भावना दिख रही है. आपने कहा था कि मैं कठोर कार्यवाही करूंगा, तुरन्त एक माह के अंदर कब्जा हटाकर सीमांकर कराएंगे. कई जगहों पर कब्जा हट गया. आपको भी हमने चिट्ठी लिखी थी. आपके समय भी हमने प्रश्न लगाया है. आपके प्रमुख सचिव ने भी कलेक्टर दतिया, भिण्ड को पत्र लिखा कि इस जमीन का सीमांकन कराओ, लेकिन जो विधान सभा प्रश्न लगाया, कल ही उसमें जवाब आ गया है कि सीमांकन हो गया है, यह असत्य जवाब दिया गया है. सीमांकन तो हुआ नहीं है, यह जरूर है कि कई जगहों पर कब्जा हट गया है. 2 गांवों की जमीनों पर कब्जा रह गया है, लेकिन सीमांकन अभी तक नहीं हुआ है. कई लोग अभी भी कब्जा किये हुए हैं.
श्री उमाशंकर गुप्ता - कुछ अच्छा हुआ हो तो वह भी बोल लें.
डॉ. गोविन्द सिंह - कुछ कब्जा हटा है. लेकिन विधान सभा जैसे पवित्र मंदिर में गलत जानकारी आती है. आप जरा कड़क मंत्री हैं तो कार्यवाही करें कि प्रमुख सचिव ने 2-2, 3-3 पत्र लिखे उनको गलत जवाब दे दिया. सीमांकन हुआ नहीं है तो सीमांकन करा दें. दतिया जिले के 2 गांवों बिजौरा और गुमानपुरा में अभी भी कब्जा किये हुए हैं, उस पर कार्यवाही करें. सभापति महोदय, अंतिम बात कहना चाहता हूं कि यह आप सुधार करें. जो खसरा, खतौनी की नकल है वह आपने लोक सेवा गारंटी से कर दी है, किसान वहां जाता है, पहले वह10 रुपये फीस जमा करता था, तहसील में वह कापी मिल जाती थी. अब वहां इसके 35 रुपये जमा करना पड़ते हैं. इसके बाद आपने एक आदेश दिया, यह केवल राजस्व विभाग का है, न्यायालय का नहीं है. राजस्व विभाग में कमिश्नर, तहसीलदार, नायब तहसीलदार के यहां से पहले एक नकल ले आते थे, पटवारी फार्म लेकर भर देता था. अब कम्प्यूटर से कापी लेते हैं पहले तब भी कापी 10 रुपये में तहसीलदार के यहां से मिल जाती थी. अब एक नम्बर की 20 रुपए फीस कर दी है. अब छोटे-छोटे किसान है. भाइयों का बंटवारा हो जाता है.
श्री उमाशंकर गुप्ता - सभापति महोदय, एक तो साल में हम निःशुल्क बांट रहे हैं, घर-घर जाकर बांट रहे हैं. इस साल की बंट गई हैं. दूसरा आप जो कह रहे हैं कि अगर एक ही किसान के 4 भी खाते होंगे, 5 भी खाते होंगे. एक पेज की फीस है 30 रुपये है, वह आदेश निकल गये हैं.
डॉ. गोविन्द सिंह - वह आदेश पहुंचे नहीं हैं.
श्री उमाशंकर गुप्ता - इसको सालभर हो गया है. अगर कहीं दिक्कत है तो बताएं.
डॉ. गोविन्द सिंह - लेकिन भिंड जिले में नहीं पहुंचे हैं, हमें वकीलों ने ज्ञापन दिया है.
डॉ. कैलाश जाटव- माननीय मंत्री जी, वह 30 रुपए लग रहे हैं.
श्री अनिल फिरोजिया - सभी जगहों पर यह शुल्क लग रहा है.
श्री उमाशंकर गुप्ता -आप बात सुन लें 30 रुपए लग रहे हैं लेकिन अगर एक किसान के 4 खाते हैं तो 30-30 रुपये चारों खातों पर नहीं लग रहे हैं.
डॉ. कैलाश जाटव - माननीय मंत्री जी, चारों खातों पर लग रहे हैं.
श्री अनिल फिरोजिया - चारों खातों पर लग रहे हैं.
श्री कुंवर विक्रम सिंह - माननीय मंत्री जी, सब पर शुल्क लग रहा है.
श्री उमाशंकर गुप्ता -सभापति महोदय, यह आदेश निकल गया है, उसकी कापी आप सबको उपलब्ध करवा दूंगा.
डॉ. कैलाश जाटव -माननीय मंत्री जी, आदेश की कापी उपलब्ध करा दें.
श्री अनिल फिरोजिया - यहां से निर्देश जाएं तो ठीक रहेगा.
डॉ. गोविन्द सिंह -हमारी आपसे यही प्रार्थना है कि एक कापी तो हम लोगों को भिजवा दिया करें ताकि असलियत पता चल जाय. दूसरा, इसमें निर्देश दोबारा जारी करा दें क्योंकि यह प्रक्रिया अभी लागू नहीं हुई है. 8 दिन पहले हमें वकीलों ने ज्ञापन दिया है, उसमें लिखा है कि 1 नम्बर, सगे दो भाई हैं उनमें बंटवारा हो गया तो उनको भी शुल्क लग रहा है, एक सर्वे क्रमांक के 20 रुपये लग रहे हैं, अगर 10 सर्वे क्रमांक हैं तो 200 रुपए लग रहे हैं.
सभापति महोदय - माननीय मंत्री जी, इसके आदेश आप सबको भिजवा दें.
डॉ. गोविन्द सिंह - इसमें एक फीस निर्धारित कर दें.
श्री उमाशंकर गुप्ता -सभापति महोदय, यह मैं उपलब्ध करा दूंगा. यह साल भर से हो गया है. अगर शिकायत है, पैसे लिये गये हैं तो हम उन पर कार्यवाही भी करेंगे. अगर एक ही व्यक्ति के नाम पर अगर बंटवारा हो गया है 2 नाम हो गये तो अलग-अलग पैसा लगेगा. लेकिन एक ही व्यक्ति के नाम पर एक पेज में साधारणतः 4 खाते आ जाते हैं तो उस एक पेज का शुल्क 30 रुपये है और एक ही व्यक्ति के नाम पर वह 4 खाते हैं तो 30 ही रुपये लगेंगे.
सभापति महोदय - माननीय मंत्री जी, आदेश की कापी सभी विधायकों को दे दें.
श्री उमाशंकर गुप्ता -सभापति महोदय, मैं सब विधायकों को कापी दे दूंगा.
डॉ. गोविन्द सिंह - ठीक है, आप कापी दिलवा दें, आपका धन्यवाद. अगर ऐसा आदेश हो गया है तो अच्छा है.
श्री जसवंत सिंह हाड़ा - सभापति महोदय, मैं अनुरोध करता हूं कि मंत्री जी कह रहे हैं यह बात भी सही है. लेकिन व्यावहारिक रूप से जैसा उन्होंने बताया है, वह पैसा लग रहा है. मैं सोच रहा हूं कि जो आदेश दे रहे हैं अगर उसकी कापी हम विधायकों को भी मिल जाएगी तो हम उसको देख लेंगे.
सभापति महोदय - वह बता दिया है, वही बात अभी कही है.
डॉ. गोविन्द सिंह - 20 रुपए प्रति नम्बर लग रहे हैं तो आप फिक्स कर दें, 30 रुपये किये हैं तो अच्छा है धन्यवाद. इसी प्रकार से अगर राजस्व के तहसीलदार ने कोई निर्णय दिया तो तहसीलदार के निर्णय पर भी 40 रुपये प्रति पेज लग रहे हैं, अगर वह निर्णय 5 पेज में है तो 200 रुपये हो गये. इस प्रकार इसकी फीस फिक्स कर दें. नम्बर का हिसाब है. यह सब बोझ किसान पर ही पड़ रहा है. हमारा आपसे अनुरोध है कि किसानों के हित में तमाम निर्णय ले रहे हैं तो कृपया इसको भी देखें. सदन में मुख्यमंत्री जी ने घोषणा की थी और आदेश भी शायद निकले हैं लेकिन वह पहुंचे नहीं हैं. नामांतरण, बंटवारे के भी जो प्रकरण हैं. पटवारी एक-एक साल से यह नहीं कर रहे थे, पंचायतों को जब आपने इसको दे दिया है तो आदेश पंचायतों को भी दे दें और उसकी कापी हम लोगों को दे दें ताकि ग्राम पंचायत में नामांतरणों का निराकरण हो सके. धन्यवाद.
श्री इन्दर सिंह परमार (कालापीपल) - सभापति महोदय, राजस्व विभाग में हमारी सरकार बनने के बाद में सुधार करने का काम मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी और राजस्व मंत्री जी के द्वारा किया गया है. इसके लिए हमारे प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री और माननीय मंत्री जी को मैं धन्यवाद देना चाहता हूं. जिस प्रकार से विभिन्न प्रकार के राहत कार्यों में आरबीसी 6 (4) में संशोधन किये गये हैं. मैं समझता हूं कि आजादी के बाद में वर्ष 2006 से बदलाव की जो प्रक्रिया प्रारंभ की गई और समय समय पर उस काम को आगे बढ़ाते गये. अभी जो सिंचित जमीन है उस पर 30,000 रुपये प्रति हैक्टेयर का जो सरकार के द्वारा निर्णय लिया गया है, मैं उसके लिए माननीय मुख्यमंत्री जी और राजस्व मंत्री जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं. इसके कारण किसानों को वास्तविक राहत का लाभ मिल सकेगा. हमारे प्रदेश में 18 जिलों को सूखा राहत प्रदान की गई है. सूखा क्षेत्र घोषित किया गया, जो फसलों को नुकसान हुआ, उसमें राहत देने का काम किया गया है. 1582 करोड़ रुपये का आवंटन मध्यप्रदेश में किया गया है. मेरे जिले शाजापुर में ही 87 करोड़ रुपये देकर माननीय मुख्यमंत्री जी और माननीय राजस्व मंत्री जी ने हमारे किसानों का जो दर्द था, उसको समझा है. आज किसानों को सभी राशि वितरित हो रही है. इसी प्रकार से जो बिजली के करंट से या पानी में डूबने के कारण से किसी की मृत्यु हो जाती थी तो 1 लाख रुपये का प्रावधान भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने किया था, लेकिन उसको बढ़ाकर अब 4 लाख रुपये कर दिया गया है. इसके लिए भी माननीय मंत्री जी को धन्यवाद देता हूं.
श्री यादवेन्द्र सिंह - माननीय सभापति महोदय, अभी करंट का प्रावधान नहीं हुआ.
श्री इन्दर सिंह परमार - यह हो गया है. आप देख लें.
श्री यादवेन्द्र सिंह - माननीय मंत्री जी बताएं कि करंट का प्रावधान हुआ है कि नहीं?
श्री इन्दर सिंह परमार - वह बताएंगे. सभापति महोदय, जिस प्रकार से लगातार ग्रामीण क्षेत्र में कृषि कार्य का जो दबाव है. किसानों को समय पर सेवाएं उपलब्ध हो सकें, इसलिए पटवारी हल्के बढ़ाने का काम पिछले सालों में किया गया है. लेकिन उसमें जो पटवारियों की कमी थी, उसके लिए भी 9000 पटवारियों की भर्ती करने का काम मध्यप्रदेश की सरकार करने जा रही है. तहसीलदार, नायब तहसीलदारों के पदों के लिए भी लोक सेवा आयोग के माध्यम से 400 से अधिक पद भरने सरकार जा रही है. मैं सोचता हूं कि इन सब प्रयासों के कारण से जल्दी लोगों को न्याय मिलेगा. जल्दी लोगों की समस्याओं का निराकरण हो सकेगा बाकि विषय हम सब लोगों की जानकारी में हैं कि राजस्व विभाग में जो कम्प्यूराइज्ड मॉनिटरिंग की व्यवस्था की गई है, उसके कारण काफी बदलाव हो रहा है. लेकिन मैं समझता हूं कि हमारे यहां राजस्व न्यायालय का जो सिस्टम है उसमें थोड़ा और परिवर्तन करने की जरूरत है क्योंकि कई बार जैसा देखने में आता है कि लोग शासकीय जमीन पर अतिक्रमण कर लेते हैं, रास्ता रोक देते हैं यहां तक कि कई जगहों पर तो जो जमीनें शासन ने शासकीय स्कूलों को आवंटित कर रखी है, कृषि उपज मंडियों समितियों को आवंटित कर रखी है, जिसका गजट नोटिफिकेशन हुआ है उन जमीनों पर भी लोगों ने कब्जे कर लिये हैं, गलत ढंग से दस्तावेज बना लिये हैं और उन जमीनों को अपने नाम करने का प्रयास करते है और बाद में जाकर उसमें राजस्व न्यायालयों से स्टे मिल जाता है. उन जमीनों को अपने नाम से करने का प्रयास और उसमें बाद में राजस्व न्यायालय से स्टे मिल जाता है. इसलिए मेरी प्रार्थना है कि कम से कम ऐसे प्रकरणों में राजस्व न्यायालय प्रकरण को सुन ले और स्टे देना है कि नहीं देना यह निर्णय भी थोड़ा जल्दी करेंगे तो अच्छा रहेगा. अभी हमारे सम्माननीय गोविंद सिंह जी उल्लेख कर रहे थे कि जब-जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार मध्यप्रदेश में बनती है तो सामाजिक संगठनों एवं संस्थाओं को भूमि का आवंटन करते हैं, लेकिन मैं गोविंद सिंह जी से एक प्रश्न पूछना चाहता हूं कि जिस समय हमारे प्रदेश में बीस सूत्रीय समितियों को पट्टे देने का अधिकार दिया गया था उस समय का आंकड़ा यदि हम उठाकर देखेंगे तो सारे पट्टे अपने नौकरों को दे दिए और उसके बाद वह पट्टे उन मालिकों के नाम से ट्रांसफर हो गए जो बीस सूत्रीय समितियों में सदस्य थे.
1.06 बजे अध्यक्षीय घोषणा
भोजनावकाश न होना
सभापति महोदय- आज भोजनावकाश नहीं होगा. भोजन की व्यवस्था सदन की लॉबी में की गई है. माननीय सदस्यों से अनुरोध है कि सुविधानुसार भोजन ग्रहण करने का कष्ट करें.
1.07 बजे वर्ष 2018-2019 की अनुदानों की मांगों पर मतदान (क्रमश:)
श्री इन्दर सिंह परमार- सभापति महोदय, पूरे मध्यप्रदेश में हजारों प्रकरण ऐसे होंगे, लेकिन मैं जिस स्थान का प्रतिनिधित्व करता हूं, कालापीपल में ऐसे पचासों पट्टे जो किसी नाम से लिए थे और बाद में समिति के सदस्यों ने अपने नाम पर करा लिये. मैंने बीच में जानकारी ली कि हमारा भू-राजस्व अधिनियम, 1959 लागू हुआ उस समय शासकीय जमीन का जो रकबा था बाद में वह रकबा कैसे कम हुआ ? वे पट्टे दिए गए जिनमें सारी जानकारी आई है और थोड़ा-बहुत नहीं 500 हैक्टेयर जमीन को इस प्रकार से हेराफेरी करने का काम कांग्रेस की सरकार में बीस सूत्रीय समितियों के माध्यम से हुआ है.
डॉ. गोविन्द सिंह- बीस सूत्रीय समितियां कब थीं ? जब आप पढ़ रहे होंगे, जब आप बच्चे रहे होंगे. उस समय जब पढ़ते थे तब समाजवादी पार्टी थी.
श्री इन्दर सिंह परमार- मैं उस समय भले ही पढ़ रहा था, परंतु रिकार्ड तो है.
श्री अनिल फिरोजिया- बीस सूत्रीय समिति माननीय अर्जुन सिंह जी ने चालू की थी.
श्री इन्दर सिंह परमार- सभापति महोदय, मैं उसका रिकार्ड दे दूंगा. मैं अपने विधानसभा क्षेत्र का आपको रिकार्ड दे दूंगा बाकी मध्यप्रदेश का आप ढूंढ़ लेना. मंत्री जी से मेरी प्रार्थना है कि ग्रामीण क्षेत्र में किसानों ने जो अपने बाड़े की जमीन थी और कृषि कार्य के यंत्र रखने के लिए वहां पर छोटे-मोटे मकान बना लिए हैं, हमारे जिले में उन पर डायवर्शन शुल्क अनाप-शनाप लगाने का काम किया है. मेरा निवेदन है कि ग्रामीण क्षेत्र में कम से कम डायवर्शन शुल्क न लगाया जाए और हमारे छोटे नगरीय क्षेत्र हैं उनमें भी कुएं पर और जंगल में जो घर बने हैं उन पर भी डायवर्शन लगाया गया है, जिसके कारण किसानों में बेचैनी है. इस व्यवस्था को समाप्त करें.
सभापति महोदय- अब आप अपनी बात समाप्त करें.
श्री इन्दर सिंह परमार- सभापति महोदय, जी मैं समाप्त कर रहा हूं. हमारे यहां पर पर श्मशान, सामुदायिक भवन को भूमि आरक्षित करने के बहुत सारे प्रकरण तहसीलदार और कलेक्टर के पास लंबित हैं, लंबे समय तक उनमें निर्णय नहीं होता है. मैं आपसे प्रार्थना करना चाहता हूं कि शाजापुर जिले के विशेषकर शुजालपुर अनुभाग के जितने प्रकरण हैं, उनका तत्काल निराकरण करें क्योंकि उसके कारण भवन नहीं बन रहे हैं और शमशान के लिए भी पर्याप्त जगह की उपलब्धता नहीं हो रही है. साथ ही जिन ग्रामों में ग्राम पंचायतों के द्वारा नवीन आबादी बनाने के लिए आवासीय जमीन की मांग की गई थी, उन प्रकरणों का भी अभी तक निराकरण नहीं किया गया है. इसलिये मंत्री जी से निवेदन है कि शाजापुर जिले के 4-5 बिन्दु हैं, इनकी ओर ध्यान देंगे. सभापति महोदय, आपने बोलने का समय दिया बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री रजनीश हरवंश सिंह (केवलारी)- सभापति महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय राजस्व मंत्री जी से कुछ बिन्दुओं पर निवेदन करना चाहूंगा. जैसे व्यक्ति की कमाई का पैसा बैंक में उसका अकाउण्ट, बही खाता मेन्टेन रहता है उससे बढ़कर गांव, देहात में अगर किसानों का, गांव में रहने वाले व्यक्ति का, अगर किसी के पास कोई बही या खाता होता है, जिंदगीभर की कमाई का, तो वह राजस्व विभाग के पास होता है और राजस्व विभाग एक ऐसा विभाग है जो व्यक्ति की जमीन का ऐसा आंकलन करता है कि वह पीढ़ी दर पीढ़ी उसके नाम से अंकित होती है. किसी दुर्घटनावश अचानक अगर घर का मुखिया चला गया तो नामांतरण और फौती के बंटवारे में आज सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना ग्रामवासियों को करना पड़ता है. आज शासन ने एक ओर अधिकार दिया, दूसरी ओर उस पर स्टॉम्प ड्यूटी पर सरचार्ज लगा दिए. गांव के लोग हैं. बड़ी मुश्किल से एकड़, दो एकड़, घर बनाने की स्थिति में रहते हैं और तहसील के चक्कर लगाते रहते हैं. कभी पटवारी नहीं मिलते, पटवारी मिल गए तो आरआई नहीं मिलते, आरआई मिल गए तो तहसीलदार नहीं मिलते, तहसीलदार मिल गए तो पेशी आगे बढ़ गई. मेरा कहने का आशय यह है कि यह फौती नामांतरण का बंटवारा ग्रामवासियों के लिए एक अहम बिन्दु और विषय है इसमें सरलीकरण होना चाहिए. इसका अधिकार ग्राम पंचायत को ही राजस्व विभाग के द्वारा देना चाहिए और 100 रुपये के स्टॉम्प पर ही लोगों की उपस्थिति में उसको मान्य करना चाहिए. अगर घर-परिवार में 4 बेटा-बेटी हैं, मां है और वह कहती है कि परिवार के एक व्यक्ति का उसमें नाम होना चाहिए और अगर बाकी के तीन लोग तहसीलदार के समक्ष सहमति देते हैं तो वहीं पर उसको मान्य करके बिना स्टाम्प ड्यूटी के उसका खाते में नाम आ जाना चाहिए. सभापति महोदय, पूर्व में भी यह व्यवस्था हमारे प्रदेश में लागू थी.
सभापति महोदय, आपके माध्यम से मेरा दूसरा निवेदन माननीय मंत्री जी से यह है कि आपने डिसमिल बनाया, आपने जरीब बनाई, आपने कड़ी बनाई, आपने आरे बनाए, यही राजस्व विभाग का माप करने का पैमाना है. जो भी पटवारी आता है, चांदा बिखर चुके हैं, लोगों को जमीन की आवश्यकता है, परिवार बढ़ रहे हैं, बखर-बखर के, जोत-जोत के जो चांदों के आसपास की जगह थी वह बिलकुल पास में आ गई है. चांदों का कई जगह से नामो-निशान मिट चुका है. शासन हमेशा कहता है कि चांदों को पक्का किया जाए. कहीं-कहीं पर हैं भी, परंतु अधिकांश जगहों पर चांदों ने अपनी जगह को ही राजस्व विभाग से खो दिया है. वहां पक्के चांदे बनने चाहिए. कोई पटवारी आया, नप्ती हुई, कोई मामला आया, इस पटवारी ने दो कड़ी उसके यहां ज्यादा निकाल दी, उसके यहां तीन कड़ी कम कर दी और यह गोलमाल, पूरे परिवार में जब तक एक-दो पीढ़ी नहीं चली जाती तब तक केस निरंतर चलते रहते हैं. रजिस्ट्री हुई, पटवारी जी के पास गए उन्होंने नक्शा बनाया और एक स्केल और प्रकार रहता है जिससे हम पढ़ते थे, प्रकार से नापा और नक्शा बना दिया, परंतु जब वही किसानी की जमीन शहर के पास आ गई और हमने मकान बनाने का काम चालू कर दिया तो जब स्क्वायर फुट की बात आती है तो वह स्केल और वह नक्शा उस दिन काम नहीं आता क्योंकि वह आरे, डिसमिल में रहता है. अगर फ्रंट में उसका निश्चित मापदंड हो जाए तो यह अव्यवस्था नहीं होगी. दूसरा पटवारी को अपने मुख्यालय पर रहना चाहिए, ब्लॉक मुख्यालय पर रहना चाहिए. यह अधिकांश जगह नहीं होता है. मेरा आपके माध्यम से मंत्री जी से अनुरोध है कि आपके पास अधिकार हैं, आप इसमें भर्ती खोल सकते हैं, युवाओं को रोजगार मिल सकता है.
सभापति महोदय- आप अपनी बात संक्षिप्त में कीजिए.
श्री रजनीश हरवंश सिंह- सभापति महोदय, मैं बड़े महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रहा हूं, मैं आपसे संरक्षण चाहता हूं. मुझे समय दिया जाए. सभापति महोदय, एक पटवारी के पास 4-4 पटवारी हलका के प्रभार रहते हैं. एक पटवारी को सिर्फ एक हलका मिलना चाहिए, अतिरिक्त प्रभार उसके पास नहीं रहना चाहिए. इस सदन में बैठे सभी लोगों की जनभावना का विषय है कि जब आपदा-विपदा आती है तो आरबीसी 6(4) में शासन के जो नियम हैं .उसमें शासन भी बंध कर रह जाता है. नियमावली एवं कानून से शासन भी बंधा है. मेरा निवेदन है कि अगर आपदा,विपदा के समय पर आपने सीलिंग एक्ट लगाया और एक व्यक्ति के खाते में आप 100 एकड़ का अधिकार नहीं दे रहे हैं, आप सिंचित और असिंचित मिलाकर लगभभग 45 एकड़ का अधिकार दे रहे हैं, तो जब आपदा, विपदा आती है, तो फिर क्यों 2 हेक्टेयर तक का मुआवजा और 60 हजार रुपये की लिमिट बांधने का काम करते हैं. एक तरफ तो आपने किसान की जमीन की लिमिट बांध दी, दूसरी तरफ जब आपदा, विपदा आई, तो लघु किसान भी उतना ही खाद,बीज डालता है और सीमांत किसान भी उतना ही खाद, बीज डालता है. आपने 30 हजार रुपया हेक्टेयर का एलान किया,पर आज अगर किसी की 10 एकड़ जमीन है, तो उसको उस 30 हजार रुपये हेक्टेयर के हिसाब से नहीं मिलेगा. 60 हजार रुपये से ज्यादा सीमांत किसान को मुआवजा सरकार नहीं देगी. इस आरबीसी की धारा 6(4) में संशोधन होना चाहिये. जिसके रिकार्ड में जितनी जमीन में वह काश्त कर रहा है, उसके हिसाब से आपदा और विपदा के समय में सरकार को पैसा देना चाहिये. दूसरा मेरा निवेदन यह है कि आपने चना, गेहूं,मसूर,तेवड़ा,बटरी जिस समय आपदा आई, उस समय तो आंकलन करा लिया, जो आज खेती को लाभ का धंधा बनाने का प्रदेश के मुखिया का जो ध्येय है, जो आपकी सरकार हमेशा किसानों को कहती है कि खेती को लाभ का धंधा बनाओ. फूल, साग, सब्जी लगाओ एवं अच्छी अच्छी हाईब्रीड की वेरायटियों का काम करो. उसका क्या प्रतिफल है. जब विपिदा आई, तो साग, सब्जी, भाजी भी उसी तराजू में तुल रहे हैं और गेहूं, चना, मसूर,तेवड़ा,बटरी भी उसी तराजू में तुल रहे हैं..
श्री इन्दर सिंह परमार -- सभापति महोदय, जब इनकी सरकार थी ती आपने कभी आरबीसी में संशोधन नहीं किया, न कभी किसानों ने मुआवजा देखा. न कभी साग,सब्जी उगाने वालों ने देखा. आज इनका केवल मांग करने का काम बचा है.
सभापति महोदय -- कृपया माननीय सदस्य को बोलने दें.
श्री रजनीश हरवंश सिंह -- सभापति महोदय, आप बड़े वरिष्ठ हैं, आप भी खुद शासन में मंत्री के रुप में रहे हैं. मैं आपसे एक निवेदन करना चाहता हूं, जो मेरे माननीय सदस्य कहते हैं,पहले क्या था. आप भूतकाल में, उस अतीत में क्यों जाते हैं. वर्तमान की बात करें. जिससे विकास होगा, समुद्धि आयेगी. आप भूतकाल की बात में क्यों जाते हैं. भविष्य की बात करें.
श्री इन्दर सिंह परमार -- सभापति महोदय, हम तो कर रहे हैं. सरकार ने एक महीने पहले ही 30 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर किया है. ओले से नुकसान हुआ, उन किसानों के लिये.
श्री रजनीश हरवंश सिंह -- सभापति महोदय, मैं माननीय सदस्य जी से निवेदन करता हूं कि जब आपने जन्म लिया, तो जो आयु आपकी है, इस आयु में आपने जन्म लिया क्या. आप इतने से थे, 9 महीने गर्भ धारण में लग गये. धीरे धीरे आपकी आयु बढ़ी. धीरे धीरे हमने इस प्रदेश एवं देश को इस मुकाम पर लाकर खड़ा किया और आपने तो गजब कर दिया. एक दिन में आप मंगलयान में चले गये, वाह. मेहनत करने वाला कोई, फल खाने वाला कोई और फिर भी स्वीकार नहीं करते. एक दिन में 100 किलोमीटर कोई आदमी नहीं चल सकता. उसको 1,2,3,4 किलोमीटर चल करके ही दूरी तय करनी पड़ती है. सभापति महोदय, 13 फरवरी को हमारे सिवनी जिले और जिसमें मेरी केवलारी विधान सभा के 276 गांवों में ओले गिरे और ओले सामान्य नहीं गिरे. आधे-आधे किलो के ओले गिरे. मेरी विधान सभा के 118 गांव प्रभावित हुए. न केवल फसल, अन्न, बल्कि हमारा पशुधन है, उसके लिये चारे तक हम अपने खेत से भूसा तक नहीं ला सके. यह विकराल समस्या है. इस विकराल समस्या को देखते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने संवेदना प्रकट की. वे आये, उन्होंने देखा, 30 हजार रुपया हेक्टेयर की घोषणा की, जो हमारे किसानों के हिसाब से कम है, उसके लिये हमने उनसे आग्रह किया है, पर कवैलू टूटे,लोगों की शीट्स, चादरें टूटीं, लोगों की गाड़ियां टूटीं. जो बाहर में शौचलाय बने, शौचालय के दरवाजे टूटे. 1200 एवं 3200 रुपया कैसा मापदण्ड है. इसमें किसान क्या करेगा. मेरा आपसे अनुरोध है कि यह मुआवजा राशि बढ़ाई जाये, कवैलू और घरों के जो नुकसान हुए हैं, उसकी राशि बढ़ाई जाये. सभापति महोदय, आपने मुझे बोलने के लिये समय दिया, मैं आपका आभारी हूं, धन्यवाद.
श्री रामलाल रौतेल (अनूपपुर) -- सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 8,9,46 एवं 58 के पक्ष में बात करने के लिये यहां पर खड़ा हुआ हूं. मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता,1959 जब से यहां पर लागू हुई और लागू करने के पश्चात् जब भी समय समय पर जो भी आवश्यकता हुई, जिस काल खण्ड में, निश्चित रुप से शासन ने उसमें परिवर्तन, संवर्द्धन और नई चीज जोड़ने का प्रयास किया है. मैं मध्यप्रदेश सरकार, मुख्यमंत्री जी एवं राजस्व मंत्री जी के प्रति आभार प्रकट करता हूं, जिन्होंने लगातार अनेक हमारे साथियों ने कहा है, उसको मै पुनरावृत्ति नहीं करना चाहता. चाहे वह पटवारियों की भर्ती हो, आवासीय निशुल्क पट्टा देने की बात हो, भू- अभिलेख के आधुनिकीकरण की बात हो, तहसीलों में अभिलेखागार के आधुनिकीरण करने की बात हो और पूरे प्रदेश में, जिसके लिये पूरा किसान बहुत पीड़ित रहता था. खसरा, नक्शा निशुल्क देने का काम मध्यप्रदेश की सरकार ने निश्चित तौर पर किया है. राजस्व विभाग एक ऐसा विभाग है, जो आम जनता से बिलकुल जुड़ा हुआ है. बुनियादी, छोटी छोटी समस्याओं को लेकर किसान बहुत पीड़ित रहता था. लेकिन मध्यप्रदेश की सरकार ने लगातार, अभी हमारे साथी ने कहा कि पटवारियों की भर्ती की. लगभग आज भी 9 हजार के आस पास पटवारियों के रिक्त पद हैं. मैं मंत्री जी से निवेदन करता हूं कि छोटे सेछोटे, जो गरीब तबके का व्यक्ति है, उसका पटवारी से बहुत वास्ता पड़ता है. इसकी अगर प्रतिपूर्ति कर दें, तो निश्चित तौर से बहुत ही अच्छा होगा. राजस्व प्रशासन को सुदृढ़ करने के लिये लगभग 9 हजार पटवारियों की भर्ती की, इसके लिये मैं धन्यवाद ज्ञापित करता हूं और लगभग 400 के आस पास नायब तहसीलदारों की उन्होंने पद स्थापना की है, इसके लिये भी मंत्री जी के प्रति आभार प्रकट करता हूं. मैं कुछ सुझाव देना चाहता हूं. एक, आज ई-रजिस्ट्री होती है. सबसे पहले हमारे अनूपपुर जिले में , जब मध्यप्रदेश में शुरुआत हुई, तो अनूपपुर जिले से यह काम प्रारंभ हुआ था. मैं मंत्री जी को धन्यवाद ज्ञापित करुंगा कि जो हमारे जिले से प्रारंभ हुआ, लेकिन मैं एक बात कहना चाहता हूं कि जैसे ई-रजिस्ट्री होती है और ई-रजिस्ट्री करने के पश्चात् वह व्यक्ति पुनः तहसीलदार के यहां नामांतरण का आवेदन करता है. तो हम चाहते हैं कि फिर वह तहसीलदार के यहां जायेगा, फिर पटवारी प्रतिवेदन देगा, फिर राजस्व अभिलेख में सुधार होगा. अगर वह ई-रजिस्ट्री हो रही है, तो अपने आप उस भू-अभिलेख के परिशिष्ट में अंकित हो जाये, तो बेहतर होगा. जो यह किसान भटकता है, वह कम हो जायेगा. एक ऋण पुस्तिका के बारे में कहना चाहता हूं. ऋण पुस्तिका सरकार ने बहुत बांटने का अभियान चलाया. हम खुद गये थे. मैंने एवं संबंधित विधायक गण अपने अपने क्षेत्र के ढेर सारे लोगों को ऋण पुस्तिका का वितरण किया. इसमें भी ऐसा कोई टोकन सिस्टम कर दिया जाये कि उनको ऋण पुस्तिका जैसे अपने एटीएम कार्ड रखते हैं, ऐसी एक ऋण पुस्तिका उपलब्ध करा दें, ताकि समय पर उनको हमेशा ध्यान में रहे कि अमुख अमुख आराजी खसरा नम्बर का मैं भूमि स्वामी हूं. ऐसी अगर व्यवस्था भी सुनिश्चित करेंगे, तो बहुत अच्छा रहेगा. इसी तरह से लोक सेवा गांरीट में, अगर खसरा लेना है, तो 7 दिन का समय लगता है और अगर नक्शा लेना है, तो उसको 15 दिन का समय लगता है. तो पहले सरकार ने एक सिस्टम बनाया था, एकल खिड़की, मतलब आज आवेदन करिये, तुरन्त उसको शाम के वक्त आपको खसरे की नकल मिल जाती थी. लेकिन आज किसान आवेदन करता है और 5,10 एवं 15 दिन तक तहसील कार्यालय में भटकता है. एक विनम्र अनुरोध है कि इसका भी अगर सरलीकरण कर दें, तो बहुत ही अच्छा होगा. एक बात हमारे रामपाल सिंह जी ब्यौहारी ने बहुत अच्छी कही, मैं उसको पुनः दोहराना चाहता हूं. अगर न्यायालयीन प्रक्रिया है, तहसीलदार के यहां से कोई प्रकरण है, उसकी अपील पहले एसडीएम के पश्चात् कमिश्नर के यहां होती थी, अब वह रेवेन्यू बोर्ड में जाती है. सभापति महोदय, हमारे यहां अनूपपुर से लेकर के ग्वालियर बहुत दूर पड़ता है. वह रीवा में भी आते हैं, लेकिन मतलब कोई सुनवाई नहीं होती है. मैं यह चाह रहा था कि अगर कमिश्नर को इसको अधिकृत कर दिया जाये, तो निश्चित तौर से वहां के किसानों को लाभ मिल सकता है. एक खसरे की नकल में जैसे 30 रुपये लगते हैं. अभी मंत्री जी ने कहा, हमारे पास पत्र तो नहीं है, कुछ लोग अवगत होंगे. लेकिन हमारे यहां तक वह सर्कुलर सर्कुलेट नहीं हुआ है. एक आराजी खसरा नम्बर की नकल लेने में 30 रुपये लगते हैं. अब वह 30 रुपये एक ही खसरा नम्बर उसमें अंकित रहता है. मुश्किल से वह 5 रुपये का कागज आता है. अगर मैं 10 आराजी का भूमि स्वामी हूँ तो 10 आराजी खसरा नंबर उसमें अंकित कर दिया जाए. हमारा काम बहुत कम राशि में हो जाएगा. 50 पैसे का कागज लगता है, अगर यह सस्ते दर पर मिल जाए तो बहुत अच्छा हो जाएगा. अभी मैं समाचार-पत्र में पढ़ रहा था कि सीमांकन के लगभग 65 हजार मामले लंबित हैं और इसमें लिखा है कि यह काम निजी कंपनियों को सौंपा जा रहा है. माननीय मंत्री जी काफी सजग हैं, सहज हैं, सरल हैं, अनुभवी हैं, निजी कंपनियों की काम करने की शैली अलग होती है. खसरे में अगर ये 30 रुपये, 50 रुपये ले रहे हैं तो निजी कंपनी अगर इस दिशा में पहल करेगी तो बहुत नुकसान होगा, इसलिए हम चाह रहे हैं कि जो व्यवस्था सुनिश्चित है, उसी व्यवस्था के आधार पर अगर किसानों को मिलता रहे तो मुझे लगता है कि बहुत लाभ होगा.
माननीय सभापति महोदय, मैं अपने क्षेत्र की समस्याओं की बात करना चाहता हूँ. मेरे विधान सभा क्षेत्र के अनेक ऐसे गांव हैं, जिन्हें मैं गिना भी सकता हूँ, इनमें अनूपपुर है, जैतहरी है, पुष्पराजगढ़ हैं, वेंकटनगर है, इन गांवों में नजूल की भूमि पर सैकड़ों लोगों ने कब्जा किया हुआ है. तहसीलदार प्रसन्न हैं तो ठीक है और अगर कभी नाराज हो गए तो एक नोटिस जारी करते हैं कि अमुख-अमुख आराजी खसरे नंबर में, इतने रकबे में आपने बेजा कब्जा किया हुआ है, क्यों न आपको बेदखल कर दिया जाए. जब वे बेदखल करने के नोटिस देते हैं तो वे लोग बहुत परेशान हो जाते हैं. इसमें मेरा एक सुझाव है कि एक निर्धारित शुल्क लेकर अगर संबंधित व्यक्ति को हम मालिकाना हक दे दें तो हमें राजस्व की प्राप्ति भी होगी और उस व्यक्ति को आराजी खसरा नंबर मिल सकता है.
माननीय सभापति महोदय, क्षेत्र के विषय में एक और निवेदन मैं यह करना चाहता हूँ कि अभिलेखों में त्रुटि हो जाती है. अभी रामपाल सिंह जी ने जो बात कही, उसी को मैं दोहराना चाहता हूँ. कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के कारण किसी व्यक्ति के नाम में गलती हो गई, रामलाल के स्थान पर रामलला हो गया, तो इसमें सुधार के लिए उसका नक्शा निकालिए, पटवारी के यहां आवेदन करिए, फिर धारा-115 और 116 के तहत रिकार्ड सुधार का आवेदन लगता है और संबंधित व्यक्ति महीने भटकता रहता है. मेरा सुझाव है कि कुछ नहीं, तहसीलदार एक साधारण आवेदन पत्र लें, आवेदन पत्र स्व-मोटो में लेकर उस अभिलेख को दुरुस्त कर दिया जाए. इससे संबंधित व्यक्ति को कहीं भटकने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.
माननीय सभापति महोदय, मेरे विधान सभा क्षेत्र में दो-तीन गांव ऐसे हैं, जिनमें पॉवर प्रोजेक्ट ने भू अर्जित किया है, भू अर्जित किए हुए आज 10 वर्ष हो गए, लेकिन आराजी में जिस प्रयोजन हेतु भू अर्जित की गई थी, आज तक उस भूमि का उपयोग नहीं हुआ. हम चाहते हैं कि उसका उपयोग हो.
सभापति महोदय, अंत में मैं माननीय मंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूँ कि माननीय मंत्री हमारे क्षेत्र में गए थे. हमारे यहां एक उप तहसील फुनगा है. माननीय मुख्यमंत्री जी और माननीय राजस्व मंत्री जी के समक्ष लोगों ने आवेदन किया था कि यह फुनगा नामक उप तहसील अनूपपुर में लगती है, नायब तहसीलदार वहां बैठते हैं, अगर वह फुनगा में ही संचालित हो, तो मैं माननीय मंत्री जी को बहुत-बहुत धन्यवाद दूंगा. इतना ही मेरा कहना है.
माननीय सभापति महोदय, मैं अवगत कराना चाहता हूँ कि हमारे यहां 5वीं अनुसूची लागू है. आदिवासी क्षेत्र है. वहां किसी आदिवासी की भूमि गैर-आदिवासी नहीं खरीद सकता है. लेकिन बड़ी विडंबना है, बड़ा कष्ट है कि वहां आदिवासी के नाम से दूसरा व्यक्ति जमीन खरीदकर बेजा कब्जा किए हुए है. आदिवासी के पास जमीन के अलावा कुछ हो ही नहीं सकता. वह अच्छा व्यवसाय नहीं कर सकता है, हालांकि सर्विस कर सकता है. मैं उदाहरण के रूप में एक छोटा सा प्रसंग सुनाकर अपनी बात समाप्त करूंगा. एक बैगा समाज का आदिवासी था, हम लोगों ने उसकी किराना दुकान खुलवाई. उसने मुझे बुलाया कि विधायक जी आप फीता काट दें, मैं फीता काटने गया, उद्घाटन किया. मैं जब एक महीने बाद उसके यहां गया और उस बैगा से पूछा कि दुकान का क्या हाल-चाल है तो उसने कहा कि साहब, पूरी दुकान बिक गई, मैंने बेच डाला. मेरे कहने का मतलब यह है कि वह यह नहीं जानता था कि दुकान में सामान बेचने के बाद पुन: सामान खरीदा जाता है. वह दुकान बेचने पर बहुत खुश था. मैंने पूछा कि किसको बेचा, तो उसने कहा कि फलां गुप्ता जी आए थे, मैंने उनको बेच दिया. मैं उस गुप्ता जी के पास गया कि गुप्ता जी, आपने ऐसा क्यों किया तो गुप्ता जी बोले कि साहब, 4 रुपये किलो सुपारी दे रहा था तो मैंने उसकी पूरी दुकान ही खरीद डाली. यह आदिवासी की दशा है. इसलिए मैं चाहता हूँ कि आदिवासी को जमीन से बेदखल न किया जाए. आदिवासी का जीवन, मरण, सब कुछ यदि कोई चीज है तो वह भूमि है. सभापति महोदय, आपने मुझे बोलने का अवसर दिया, बहुत-बहुत धन्यवाद.
सभापति महोदय -- मेरा अनुरोध है कि अभी कई माननीय सदस्यों को बोलना है, अत: 5 मिनट में सदस्य अपनी बात कह दें.
श्री सुखेन्द्र सिंह (मऊगंज) -- माननीय सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 8, 9, 46 और 58 के विरोध में बोलने के लिए खड़ा हुआ हूँ. अभी हमारे बहुत से साथी राजस्व विभाग पर बोल रहे हैं. हमारे रजनीश भाई ने बड़े ही सार्थक सुझाव भी रखे, मैं उन्हें दोहराना नहीं चाहता, लेकिन कल कृषि विभाग की मांगों के दौरान हमारे बिसेन साहब ने बड़े विस्तार से किसानों के हित में बात कही. बड़े-बड़े वादे किए गए. सभापति महोदय, आप भी किसान होंगे, किसानों से जुड़े हुए हैं, किसानों की क्या दुर्दशा है, किसान मेहनत से, मजदूरी से, सूखे से निपटकर जो भी गाढ़ी कमाई करता है, यह बड़ी विडम्बना है कि अपनी कमाई का आधे से अधिक पैसा वह तहसीलों में जाकर जमा कर देता है. लगभग 14 वर्षों से माननीय मुख्यमंत्री, श्री शिवराज सिंह चौहान जी की भारतीय जनता पार्टी की सरकार प्रदेश में है. माननीय उमाशंकर गुप्ता जी राजस्व मंत्री हैं, लेकिन किसानों की दुर्दशा लगातार बढ़ रही है और राजस्व विभाग ज्यों का त्यों पड़ा हुआ है. अभी बीस-सूत्रीय कार्यक्रम की बात आई. बात यह हुई कि कौन पैदा हुआ था, कौन नहीं पैदा हुआ था. मैं समझता हूँ कि उस समय श्री अर्जुन सिंह जी तत्कालीन मुख्यमंत्री थे. उन्होंने आदिवासियों के हित में, भूमिहीनों के हित में बीस-सूत्रीय कार्यक्रम लागू किये और उसमें पट्टे बांटे गए. वह पट्टा आज भी आदिवासियों के पास सुरक्षित है और उसी में आदिवासी बसे हुए हैं. इस सरकार में लगातार कई कार्यक्रम चलाए गए, भारत उदय, ग्रामोदय, क्या-क्या, कैसे-कैसे कार्यक्रम, उसमें आवेदन लिए गए लेकिन उन आवेदनों का कोई ठोस निराकरण नहीं हुआ है. जनसंख्या बढ़ रही है, जहां भी सरकारी जमीनें हैं, आज भी जो भूमिहीन हैं, उनके पट्टे पेंडिंग हैं. पटवारियों के पास जाते हैं, तहसीलों में जाते हैं, उसका कोई निराकरण नहीं होता. हम भी 4 साल से विधायक हैं. ऐसे बहुत सारे प्रकरण आए, लेकिन उनका निदान नहीं हुआ. हम लोगों ने विधान सभा में भी प्रश्न लगाया. बहुत सारी बातें कीं, लेकिन आज तक उनका कोई निदान नहीं हुआ है.
माननीय सभापति महोदय, पटवारियों की क्या हालत है. अभी हमारे कुछ साथी कह रहे थे कि पटवारियों के पद खाली हैं. पटवारी के 9 हजार पदों के लिए एग्जाम ले लिया गया. उसका क्या निराकरण हुआ, उसका निराकरण सिर्फ यह हुआ कि जो भी हमारे यहां का बेरोजगार युवा था, आवेदन के नाम पर उसको लूटा गया, अभी तक पटवारियों की नियुक्ति नहीं हुई है. बेरोजगारों को और किसानों को एक साथ इस सरकार में लूटा जा रहा है.
माननीय सभापति महोदय, भू-माफियाओं का आतंक बढ़ रहा है. यह बात कोई छिपी हुई नहीं है कि हमने कई बार रीवा शहर के बारे में ध्यानाकर्षण लगाया, मऊगंज के बारे में ध्यानाकर्षण लगाया. मुझे यह कहने में कतई संकोच नहीं है, इसलिए कि सदन में कई बार ये बातें आ चुकी हैं कि हमारा पूरा रीवा शहर एक व्यापारी के हाथों बिक चुका है. समदड़िया के नाम से बिक चुका है. यह बात मैं नहीं बोल रहा हूँ, इसका पूरा रिकार्ड है, पेपरों में छपा है, सारी बातें हैं. अभी पिछले सत्र में हमने ध्यानाकर्षण लगाया था, तहसील कोर्ट, जिला कोर्ट शिफ्ट किया जा रहा है. भू-माफियाओं के दबाव में आकर इंजीनियरिंग कॉलेज की जमीन उनको औने-पौने दाम पर बेच दी गई है. यह स्थिति रीवा शहर की है. पूरा रीवा शहर बिक चुका है. नामों-निशान नहीं है, भविष्य में अगर कोई जमीन किसी जरूरी चीज के लिए चाहिए तो वहां जमीन नहीं बची है. वहां पर सिर्फ बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल बनाए जा रहे हैं और सारी सरकारी जमीनें बेची जा रही हैं.
माननीय सभापति महोदय, इसी तरीके से हमारे मऊगंज क्षेत्र में जमीनों की हेरा-फेरी की जा रही है. रीवा सभांग में चार जिले रीवा, सतना, सीधी और सिंगरौली आते हैं. हमारे रीवा जिले को सूखाग्रस्त घोषित नहीं किया गया. यह बडे़ दुर्भाग्य का विषय है. आपके माध्यम से मैं कहना चाहता हूँ कि क्या रीवा जिले में ज्यादा बरसात हो गई थी, वैसे तो हम लोग प्रश्न पूछते हैं तो उसका कोई जवाब नहीं आता है. मंत्री जी कभी भी इस बारे में नहीं सोचते, सीधे-सीधे जवाब यह आता है कि जानकारी एकत्रित की जा रही है और तमाम तरह की बातें होती हैं. अत: मेरा आपके माध्यम से यह अनुरोध है कि हमारे रीवा जिले को सूखाग्रस्त घोषित किया जाए और जो रीवा जिले के किसानों के साथ अन्याय हुआ है, उनके साथ न्याय किया जाए.
माननीय सभापति महोदय, हमारे विधानसभा क्षेत्र में एक आदिवासी अंचल पिपराही आता है वहां के आदिवासी हनुमना आते हैं वहां की दूरी लगभग 70 किलोमीटर पड़ती है. इसमें मेरा आपके माध्यम से अनुरोध है कि अगर पिपराही में एक उप-तहसील के लिए सदन में एक घोषणा हो जाएगी तो निश्चित रूप से मैं समझूंगा कि आदिवासियों के लिए सरकार है और जैसा कि लगातार भाषण दिया जाता है तो हमारे क्षेत्र में कुछ हित हो सकेगा. वैसे माननीय सभापति जी, मैं अंतिम बात यह बोलना चाहता हॅूं कि कि यह सरकार किसान हितैषी नहीं है सिर्फ व्यापारी हितैषी है और क्या कारण हैं मैं नहीं जानता. (XXX).
सभापति महोदय -- इसे कार्यवाही से निकाल दें.
श्री सुखेन्द्र सिंह -- माननीय सभापति महोदय जी, हमारा रीवा बिक रहा है. मेरा माननीय मंत्री जी से अनुरोध है कि रीवा को बिकने से बचाएं. मेरा आपके माध्यम से अनुरोध है कि इसका ख्याल रखा जाए. धन्यवाद.
श्री बहादुर सिंह चौहान -- माननीय सभापति महोदय, पूरा रीवा कैसे खरीदेंगे ? माननीय सदस्य, कौन है ऐसा, जिसने मध्यप्रदेश खरीद लिया है. माननीय सभापति जी, पूरा रीवा कैसे खरीद लेगा ? यह कार्यवाही से निकलना चाहिए...(व्यवधान)...
सभापति महोदय -- आप बैठिए. अभी आपका अवसर नहीं है...(व्यवधान)...
श्री यादवेन्द्र सिंह -- बहादुर सिंह जी, आप जाकर देख आइए. सरकारी जमीनें वहां पर कई हैं.
श्री सूबेदार सिंह रजौधा -- तिवारी जी का हाथ है...(व्यवधान).. आप ही का साम्राज्य है. सभापति महोदय -- डॉ.कैलाश जाटव.
डॉ.कैलाश जाटव (गोटेगांव) -- माननीय सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 8, 9, 46 और 58 के समर्थन में बोलने के लिए खड़ा हुआ हॅूं. हमारे राजस्व मंत्री और यशस्वी माननीय मुख्यमंत्री जी को मैं धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने राजस्व विभाग के लिए बहुत सारे क्रांतिकारी कदम उठाए हैं. राजस्व के बारे में बहुत लोगों ने चर्चा की है लेकिन मैं माननीय मंत्री जी को इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहूंगा कि वर्तमान में डिजिटल इंडिया की बात हो रही है और आईटी के क्षेत्र में मध्यप्रदेश ने जिन-जिन कामों को हाथ में लिया है वह भारतवर्ष में नंबर वन पर है. आज हमारी सरकार ने वर्ष 2018-19 के लिए लक्ष्य निर्धारित किए हैं. प्रदेश के सभी शासकीय सेवाओं को ऑनलाइन करने का प्रयास हमारी सरकार करने जा रही है. ग्राम पंचायत स्तर पर नागरिक सुविधा केन्द्र की स्थापना का भी लक्ष्य वर्ष 2018-19 में रखा गया है. मध्यप्रदेश उन राज्यों में भी शामिल है जहां ग्राम पंचायतों में टेलीफोन और ब्राडबैंड नेटवर्क का कार्य शुरू हो चुका है और प्रदेश
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XXX : आदेशानुसार रिकार्ड नहीं किया गया.
में लगभग 85 प्रतिशत कार्य हमारा समापन की स्थिति में है. शासकीय अधिकारियों, कर्मचारियों को प्रौद्योगिकी में अपेक्षित प्रशिक्षण प्रदान किया गया है. पेपरलेस ऑफिस का वातावरण हमारी सरकार बना रही है. सरकारी कार्यालयों के अंदर दक्षता, ऑटोमेशन की प्रक्रिया, रि-इंजीनियरिंग को अपनाने की पहल की जा रही है. शासकीय सेवाओं में सुधार हेतु अच्छा प्रबंधन और कर्मचारियों की विशेष सेवाएं ई-ऑफिस प्रणाली ऑनलाइन उपलब्ध कराने के लिए वर्ष 2018-19 में लक्ष्य रखा गया है.
माननीय सभापति महोदय, मैं माननीय मंत्री महोदय से दो-तीन बातों पर विशेष रूप से निवेदन करना चाहूंगा कि इसी विधानसभा में माननीय राजस्व मंत्री उस समय माननीय श्री रामपाल जी हुआ करते थे. उन्होंने अनुविभागीय अधिकारी की घोषणा की थी और उन्होंने कहा था कि हम एक हफ्ते के अंदर गोटेगांव के लिए अनुविभागीय अधिकारी घोषित कर देंगे लेकिन माननीय मंत्री जी, वह अभी तक नहीं हो पाया है. अगर उसको कर देंगे तो यह बहुत अच्छा होगा. एक नायब तहसीलदार हमारे यहां काफी दिनों से नहीं है, दो बाबू नहीं हैं, एसडीएम भवन जीर्ण-शीर्ण हो गया है. यदि उस भवन का भी कर देंगे तो बहुत अच्छा होगा. नकल, खसरा जो आप घर पहुंचा रहे हैं उसके लिए मैं आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हॅूं. उप-तहसील कार्यालय यदि मुगवानी में बन जाए तो जो आदिवासी, वनवासी बंधुओं का क्षेत्र है वहां करीब हमारी 45 पंचायतें हैं उनको नरसिंहपुर करीब 60 किलोमीटर जाना पड़ता है तो वहां उप-तहसील बन जाएगी तो यह बहुत बड़ी सुविधा होगी और शासन से मैं यह निवेदन करना चाहूंगा कि शासन ने अभी वर्तमान में गांवों में खेल मैदान और शमशान घाट के लिए सीमांकन किया है, इसके लिए मैं माननीय मंत्री जी को एक सुझाव देना चाहूंगा कि प्रत्येक गांवों में प्रत्येक ग्राम पंचायतों में गणेश मूर्ति और दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है अगर हम इनका भी छोटे-छोटे टुकड़ों में सीमांकन कर दें, वहां पर राजस्व भी अपने रिकॉर्ड में चढ़ा दें कि ये प्रतिमा स्थल प्रतिमाएं स्थापित करने की जगह है तो उससे लड़ाई-झगड़े काफी कम होंगे जिससे शासन की ओर से एक बहुत अच्छा मैसेज जाएगा. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति बंधुओं को इसके पहले पट्टे दिए गए थे. अभी वर्तमान में गोटेगांव विधानसभा के अंतर्गत एसडीएम गोटेगांव के पास में करीब 50 प्रतिशत ऐसे मामले पेंडिंग हैं जिनको उस पर कब्जा नहीं मिल पाया है तो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति बंधुओं के जो भी पट्टे दिए गए हैं यदि उसके ऊपर किसी दबंगों ने भी कब्जा किया है तो माननीय मंत्री महोदय, अगर हमारी सरकार रहते हुए हम उनको कब्जा दिला देंगे तो मैं समझता हॅूं कि यह हमारी सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि होगी और एक निवेदन साथ में यह भी करना चाहता हॅूं कि वर्तमान में सरकार सभी जगह सामुदायिक भवन दे रही है. अगर राजस्व विभाग सामुदायिक भवनों के लिए वहां पर जमीन आरक्षित कर दे तो कभी भी हमें बार-बार सीमाकंन नहीं करना पडे़गा. तीन-चार सीमांकन है एक तो मूर्ति पूजा के लिए, दूसरा सामुदायिक भवन के लिए और तीसरा अनुसूचित जाति, जनजाति बंधुओं की जो जमीनें दबंगों ने हासिल की है उनकी जमीनें का कब्जा उनको वापस दिलाने के लिए निवेदन करता हॅूं. माननीय सभापति महोदय, आपने मुझे बोलने का मौका दिया, उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
सभापति महोदय -- धन्यवाद.
श्री यादवेन्द्र सिंह (नागौद) -- माननीय सभापति महोदय, मैं माननीय मंत्री से यह जानना चाहता हॅूं कि जब सत्ता पक्ष के विधायक तारीफ कर रहे थे, मैं सुन रहा था.
डॉ.कैलाश जाटव -- आपको भी तारीफ करना चाहिए. अगर कोई नये काम की शुरूआत हो रही है तो उसको सुधारने के लिए बोलिए ना. आप इतने सीनियर हैं.
श्री यादवेन्द्र सिंह -- तो फिर बाद सरकार की काहे पोल खोलते हो, जब तारीफ कर रहे हो. फिर आप लोग विरोध करते हैं. प्रस्ताव का समर्थन करते हैं बाद में विरोध की भाषा बोलने लगते हैं.
सभापति महोदय -- डॉ. कैलाश जी, आप बैठिए.
श्री यादवेन्द्र सिंह -- माननीय सभापति महोदय, मेरे पिताजी को एक वर्ष पूरा हो रहा है. जब मेरा ही वारिसाना नहीं हुआ है तो आम जनमानस का किस तरह से राजस्व विभाग काम करता होगा, यह माननीय मंत्री जी बताएं. एक बार तहसीलदार से मैंने कहा कि आज तक मेरा स्वयं का वारिसाना नहीं हुआ, यह हालत है रेवेन्यू विभाग की. पटवारियों के लिए सुन रहे हैं कि भर्ती हो रही है. जब हम से हम लोग आएं हैं तब से सुन रहे हैं. पटवारियों को फुर्सत नहीं है. मैं रिपीट नहीं करना चाहता. मंदिरों की जमीन कलेक्टर सतना या प्रदेश के सभी व्यवस्थापक हैं. मालिक कलेक्टर है पर उन्हें सांमत लोगों से या किसी बडे़ लोगों के द्वारा जोती जाती है उसकी नीलामी नहीं होती, बोली नहीं होती. कई मंदिर में मेरे क्षेत्र में हैं बडे़-बडे़ अखाडे़ हैं. सौ-सौ, डेढ़-डेढ़ सौ एकड़ जमीनें हैं मगर कोई दूसरा काबिजदार है और कलेक्टर साहब खुद अपनी रक्षा नहीं कर सकते. देवी-देवताओं की जमीनें चढ़ी हैं. इसी तरह उचेहरा, नागौद में नजूल विभाग की जमीनें हैं पूरा शहर है. वहां पर यदि किसी ने तीन मंजिला बिल्डिंग बनाया है तो कभी भी उसको पट्टे नहीं दिए गए. यदि वह चाहे कि मैं इसको गिरवी रखकर बैंक में लोन ले लूं, तो वह लोन नहीं ले सकता. यह सब अव्यवस्थाएं हैं. आज तक सुधार नहीं किया गया. उसके अलावा शासन के द्वारा गरीबों के लिए कच्चे मकान से पक्के मकान बनाने के लिए प्रधानमंत्री आवास उचेहरा में स्वीकृत हैं. नजूल की जमीन है, नगर पंचायत है. खसरे में कहीं-कहीं झाड़ी और झंखाड़ लिखा है. उसमें प्रधानमंत्री आवास से वंचित हो रहे हैं और माननीय कलेक्टर ने यहां पर भेजा है तो अभी तक यहां से स्वीकृति नहीं गई कि नजूल की जमीन में झाड़ी-झंखाड़ लिखा है, उसे सुधार किया जाए ताकि प्रधानमंत्री आवास में उन गरीबों को फायदा मिल सके. कानूनगो आपके तहसीलदार बने. अब आप सोच लें कितना बड़ा भ्रष्टाचार है. मेरे यहां नायब तहसीलदार हैं, एक-दो तहसील देख रहे हैं. मेरे यहां उचेहरा और नागौद के प्रभारी एसडीएम उचेहरा में प्रभार में रहते हैं कभी मैहर के प्रभारी रहते हैं. एसडीओ की वहां पर कोई स्थापना नहीं हुई है. आज 15 साल से एसडीओ बैठते हैं पर उसका पदांकन नहीं हो पाया कि उसकी तनख्वाह या कोई ट्रेजेरी से पंजीयन हो सके उचेहरा में, इसकी व्यवस्था बनायी जाए. जब एसडीएम प्रभारी की जगह परमानेंट एसडीओ की पोस्टिंग की जाए. वहाँ पर 70 ग्राम पंचायतें, 1 नगर पंचायत है, विकासखंड उचेहरा में बहुत सालों से यह समस्या है उसकी व्यवस्था की जाये. विभाग का कम्प्यूटरीकरण हुआ था उसमें किसानों की जमीन में, पट्टों में मध्यप्रदेश शासन लिख गया था. एकाध बार यहाँ से आदेश हुआ लेकिन आज तक उसमें सुधार नहीं हुआ है और इसका रेट है दो हजार से पांच हजार, तब जाकर सुधार होता है. पटवारियों के बारे में जितना कहा जाये कम है, जितना भ्रष्टाचार हो सकता है, वह होता ही है. जहाँ 10 रुपये के स्टाम्प लगना चाहिए वहाँ 100 रुपया का स्टाम्प लग रहा है. जहाँ 10 रुपये में जमीनों के नंबर की जाँच होती है वहाँ आजकल 30 रुपया लगता है और कम से कम 500 रुपया एक किसान को अपनी जमीन का नाप कराने में लगता है.
सभापति महोदय, जहाँ तक रीवा जिले की बात है तो अभी बन्ना जी कह ही रहे थे. हमारे सतना में भी वही हाल है. मैं मंत्री जी से कहना चाहता हूँ कि 1958-59 की खतौनी निकाल कर देख ली जाये, कुछ तो निकली हैं और कुछ में मध्यप्रदेश शासन दर्ज हुआ है पर प्रापर सतना शहर की जहाँ तक बात है उसको निकाल कर जब आप देखेंगे तो समझ में आ जाएगा कि कैसे उनका नाम आ गया एकदम, कोई रिकार्ड कीपर कानूनगो पोस्ट पर था उसने वर्ष 1958-59 में काबिज कब्जा दर्ज करके सरकारी जमीनों में और आज वहाँ पर सतना शहर की जमीनें इसी तरह माफियों के हाथ में चली गई.
सभापति महोदय-- कृपया समाप्त कीजिये.वेलसिंह भूरिया भाषण प्रारंभ करें.
श्री यादवेन्द्र सिंह-- मैं समाप्त कर रहा हूँ सब बात हो ही गई है. दो महीने पहले मैंने एक तहसीलदार को एक आवेदन दिया था कैंथा से सहिजना मार्ग का नाप हो जाये ताकि सड़क बन जाये लेकिन अभी तक आपके तहसीलदारों को टाइम नहीं मिला है और विधायकों का काम भी यह अधिकारी नहीं सुन रहे हैं तो आम जनता की बात कहाँ तक सुनेंगे. आपने मुझे बोलने का समय दिया बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री दुर्गालाल विजय(श्योपुर)-- माननीय सभापति महोदय, मैं माँग संख्या 8,9,46 और 58 का समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूँ. वैसे तो हमारे साथियों ने बहुत सारी बातें यहाँ पर रखी हैं मैं दो-तीन बातें निवेदन करना चाहता हूँ. हमारा राजस्व महकमा किसी समय में विवादों की जड़ हुआ करता था, उसके कई कारण थे. अव्यवस्था के कारण, बहुत सारे राजस्व अमले के द्वारा गड़बड़ियाँ पैदा करने के कारण और विशेष करके हमारे चंबल क्षेत्र में यह महकमा बहुत बड़े फौजदारी मामलों का कारण बनता था और इस प्रकार की परिस्थितियाँ निर्मित होती थी कि आमजन बहुत कष्ट में रहता था. माननीय सभापति महोदय, पिछले 15 वर्षों से विभाग ने जिस मुस्तैदी के साथ कार्य करना प्रारंभ किया, प्रदेश की सरकार ने राजस्व विभाग ने उसके कारण से इन तमाम सारे विवादों में बहुत बड़ी कमी आई है और धीरे-धीरे यह राजस्व विभाग एक ठीक और सही रास्ते पर आ गया है और जिसके कारण किसानों को विवादों से और बहुत सारे झंझटों से मुक्ति मिली है.
1.49 बजे { अध्यक्ष महोदय (डॉ. सीतासरन शर्मा) पीठासीन हुए }
माननीय अध्य़क्ष महोदय, इसके साथ-साथ यह भी हुआ कि बहुत सारे कामों में जिनमें विलंब हुआ करता था उनको आईटी सेक्टर के माध्यम से ठीक करने का एक अच्छा काम मध्यप्रदेश की सरकार ने, माननीय मंत्री जी ने किया है उसका परिणाम भी हम सबको सामने देखने को मिल रहा है कि आज प्रदेश में सुशासन की दिशा में जो कार्य किया गया उसके कारण योजनाओं का जो क्रियान्वयन है, विभाग की योजना का तो है ही लेकिन अन्य योजनाओं के क्रियान्वयन में भी और सुशासन की स्थापना की दृष्टि से आईटी सेक्टर में बहुत बड़ा काम हुआ. माननीय अध्यक्ष महोदय, निकटतम सुविधाजनक स्थान पर हमारे किसानों को एमपी आनलाइन कियोस्क की सुविधा प्राप्त होने से बहुत सारे सरकारी कामकाज उसके माध्यम से करने का उचित मौका ग्रामवासी बंधुओं को मिला है. शहरी क्षेत्रों में भी यह काम हुआ है. इसके अलावा एक और काम मोबाइल एप के माध्यम से 224 केंद्रीयकृत सेवायें कहीं भी, एकीकृत प्लेटफार्म से उपलब्ध कराई गई हैं जिसके कारण बहुत सुविधाजनक तरीके से इन कार्यों को करने में हमारे ग्रामवासी भाईयों को सुविधा उपलब्ध हुई है. जो एसएमएस देने के काम करने के लिए आईटी सेक्टर ने हमारे प्रदेश के अँदर विकसित किया है उसके कारण से किसानों को समय पर वह ठीक तरीके से एसएमएस मिलने के कारण बहुत बड़ी सुविधा उपलब्ध हुई है. खासकर जब समर्थन मूल्य पर किसी भी कृषि उपज के उपार्जन की बात आती है तो कृषक को ठीक समय पर मैसेज प्राप्त हो जाता है कि फलानी तारीख को आपको अपनी कृषि उपज को लेकर उस स्थान पर आना है और साथ दिन पहले यह मैसेज मिलने के कारण से उसको बड़ी भारी सुविधा उपलब्ध हो जाती है और सात दिन का जो अवसर मिलता है उसमें वह समय पर अपनी कृषि उपज को उपार्जन केंद्र पर लाकर विक्रय करने में ठीक तरीके से सक्षम हो जाता है.
अध्यक्ष महोदय-- मेरा अनुरोध यह है कि माननीय मंत्री जी का यह बड़ा विभाग है और आज अशासकीय दिन भी है तो सिर्फ यदि कोई नीतिगत विषय हो तो वह, कोई सुझाव हो तो वह और अपने क्षेत्र की समस्यायें यदि इन तीन विषयों पर बात कर लेंगे तो समय भी बचेगा.
श्री दुर्गालाल विजय-- माननीय अध्यक्ष महोदय, उस विषय से हटकर जो सरकार ने काम किये हैं वह तो हमारे अन्य वक्ताओं ने बताये हैं.दो तीन बात कहना चाहता हूँ कि यह जो पटवारियों को लेपटॉप उपलब्ध कराने का काम प्रारंभ हुआ है,यह ई-बस्ता के स्वरूप में सामने आया है और मोबाइल एप से जो सूचनायें दी जाती है और इनको लगातार कार्य करने के लिए कहा जा रहा है उसके कारण से लोगों को सुविधायें बहुत ठीक तरीके से उपलब्ध हुई हैं. अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से अपने क्षेत्र की दो तीन बातों की ओर मंत्री जी का ध्यानाकर्षित करना चाहता हूँ. इसमें सबसे पहली बात यह है कि हमारे श्योपुर जिले के अंदर मानपुर कस्बा है जिसके आसपास लगभग 100 गाँव लगते हैं वहाँ पर राजस्व के कामकाज से लोगों को श्योपुर जाना पड़ता है जिसकी दूरी लगभग 40-45 किलोमीटर रहती है. इसलिए इस स्थान पर उप तहसील खोलने के लिए वहाँ के ग्रामवासियों की माँग है और लगातार इसके लिए ग्रामवासी, जब भी कोई जाता है तो निवेदन करते हैं यदि इसको प्रारंभ कर दिया जाएगा तो वहाँ के लोगों को बड़ी सुविधा प्राप्त होगी. दूसरी बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में जो लोग बरसों से रह रहे हैं और उनके जो कच्चे-पक्के मकान और बाड़े बने हैं वहाँ पर राजस्व न्यायालय तहसीलदार के द्वारा डायवर्सन के लिए नोटिस जारी किये गये हैं. जो वर्षों से वहाँ रहते हैं, कोई 50 वर्ष से रह रहा है, कोई 60 वर्ष से रह रहा है, कोई 30 वर्ष से रह रहा है, कोई 40 वर्ष से रह रहा है उनके वहाँ पुश्तैनी कच्चे-पक्के मकान हैं उनसे डायवर्सन वसूल करने की जो कार्यवाही प्रारंभ की गई है इस पर मेरा विनम्रतापूर्वक मंत्री जी से निवेदन है कि इस पर सह्रदयता से विचार करें, यह मामला सभी गाँव का है विशेषकर मेरे क्षेत्र में यह कठिनाई है तो गाँव के अंदर पहले से बसे हुए लोगों पर इस प्रकार की कार्यवाही रोकी जानी चाहिए.
अध्यक्ष महोदय-- यह तो प्रदेश भर का मामला है.
श्री दुर्गालाल विजय-- अध्यक्ष महोदय, मेरे क्षेत्र की एक समस्या यह है कि तहसीलदार है नहीं और उसके ना होने के कारण से रोजाना के बहुत सारे न्यायालयीन और प्रशासकीय कार्यों में दिक्कत आ रही है मैंने अभी चार-पाँच दिन पहले भी मंत्री जी निवेदन किया था कि बहुत अधिक नहीं तो एक तहसीलदार आप हमें दे दें तो हमारे श्योपुर विधानसभा क्षेत्र का काम ठीक से चल जाएगा.माननीय अध्यक्ष महोदय, अभी जो राहत कार्य में आपने पैसा दिया है और वह किसानों को वितरण भी हो रहा है लेकिन जो लोग मंदिर की जमीन को जोतते हैं, वहाँ के पुजारी हैं, जिनको वैधानिक रूप से एकाधिकार प्राप्त है, उन्होंने जो फसल की है, वह फसल नष्ट हो गई, उसका मुआवजा देने पर वहाँ के कलेक्टर ने रोक लगा रखी है इसलिए मेरा निवेदन है कि उनको भी मिलना चाहिए, क्षति तो उनकी भी हुई है और उन्होंने भी खाद, बीज वगैरह दिया है. इसके कारण से उनको यह करने की आवश्यकता है. अध्यक्ष महोदय, एक और बात, मेरे विधान सभा क्षेत्र में कुछ गाँवों को राजस्व गाँव बनाए जाने की आवश्यकता है, जिनके बारे में जिला कलेक्टर को भी पूर्व में लिखा था, आपको भी कहा है. कुछ गाँव तो राजस्व गाँव बन गए हैं. लेकिन जो गाँव रह गए हैं उनके बारे में मैं निवेदन करना चाहता हूँ कि गुन्नावदा पंचायत का सोभागपुरा गाँव है और जावदेश्वर का चिमलका है. सामरसा गाँव का चेनपुरा है और चकबमूलिया गाँव है. मजरा, झोपड़ी है, जो ज्वालापुर गाँव के....
अध्यक्ष महोदय-- कृपया समाप्त करें.
श्री दुर्गालाल विजय-- बस कर ही रहा हूँ. अध्यक्ष महोदय, एक नदावद का कोलूखेड़ा गाँव है और नंदापुर का हनुमानखेड़ा गाँव है. ये तो जरूर होना ही चाहिए. इसके लिए मैंने निवेदन किया है और एक बात और है कि बहुत सारे गाँव बसे हुए हैं. लेकिन अभी भी उनको आबादी घोषित नहीं की है. अब वह आबादी घोषित नहीं की है इसके कारण से उनको प्रधानमंत्री आवास की, अन्य प्रकार की, सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का जो लाभ मिलना चाहिए. वह नहीं मिल पा रहा है और मैंने जिला कलेक्टर को भी लगातार कहा है कि ऐसे जो गाँव हैं जो आबादी घोषित नहीं हैं, उनको चिन्हित करके आबादी घोषित करना चाहिए. इसमें मेरे पास कुछ है, तो मैं माननीय मंत्री जी को लिख कर के दे दूँगा. ये गाँव राजस्व गाँव बने और आबादी क्षेत्र घोषित हो. यही मेरा निवेदन है.
अध्यक्ष महोदय-- श्री फुन्देलाल सिंह जी मार्को....
श्री यादवेन्द्र सिंह-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा एक रह गया था, बहुत जरूरी है.
अध्यक्ष महोदय-- नहीं, अब नहीं.
श्री यादवेन्द्र सिंह-- सुन तो लीजिए.
अध्यक्ष महोदय-- नहीं, बाद में.
श्री यादवेन्द्र सिंह-- विवाद है सतना, पन्ना जिले का.
अध्यक्ष महोदय-- बाद में.
श्री यादवेन्द्र सिंह-- आप जब ना कह देते हैं तो फिर कोई मौका ही नहीं दिया करते.
बहुत जरूरी विवाद है.
अध्यक्ष महोदय-- नहीं, बाद में. आप पहले ही 6 मिनट बोल चुके हैं.
श्री यादवेन्द्र सिंह-- इनके बाद?
अध्यक्ष महोदय-- सब सदस्यों का हो जाए उसके बाद आपको दो मिनट देंगे. यदि क्षेत्र की बात करना है तो बैठना तो पड़ेगा. आखरी में समय देंगे.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को(पुष्पराजगढ़)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मांग संख्या 8,9, 46 एवं 58 के विरोध में बोलने के लिए खड़ा हुआ हूँ और...
श्री दुर्गालाल विजय-- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह सजा तो नहीं है कि बैठे रहो, जब तक कार्यवाही चले? (हँसी)
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को-- कटौती प्रस्तावों का समर्थन करता हूँ. अध्यक्ष महोदय, राजस्व विभाग और कार्य.....
अध्यक्ष महोदय-- कृपया अपने क्षेत्र के बारे में संक्षेप में कह दें और सुझाव, जो नये हों तथा कोई नीतिगत विषय हो, जो अपने को शासन से कराने की बात हो, उसी पर आएँ तो ठीक रहेगा. बाकी तो सब निन्दा और प्रशंसा सभी करेंगे, वही वही बात रिपीट करेंगे.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को-- जी अध्यक्ष महोदय. तो मैं सीधे समस्याओं पर ही और सुझावों पर ही बात कर लेता हूँ. अध्यक्ष महोदय, वर्ष 2015-16 में मेरे विधान सभा क्षेत्र पुष्पराजगढ़, तहसील पुष्पराजगढ़ में सूखा पड़ा और सूखे के साथ ही लगभग 30 करोड़ रुपये की राशि का वितरण भी कर दिया गया. इस 30 करोड़ रुपये के वितरण के साथ इसी सदन के माध्यम से जब यह वितरण चल रहा था तो सदन के माध्यम से हमने माननीय मंत्री जी से निवेदन भी किया कि माननीय मंत्री जी, मेरे क्षेत्र में जो राशि का वितरण हो रहा है. उसमें अधिया वूसली की जा रही है. पटवारियों ने, आरआई, ने और राजस्व के अमले ने मिल करके करीब 53 लाख रुपये उन किसानों के खाते में, उनके नाम से चेक काटे गए, वितरित किए गए और जब उनकी वसूली की जा रही थी, सदन में हमने बात उठाई और वह बात वहीं दब गई. अध्यक्ष महोदय, अभी पुनः फार्म अ, मांगपत्र, मध्यप्रदेश भू राजस्व संहिता 1959 की धारा 146 के अधीन तहसीलदार, वसूली अधिकारी, तहसील पुष्पराजगढ़, जिला अनूपपुर द्वारा सैकड़ों किसानों को यह नोटिस जारी किया गया कि श्यामलाल रामलाल पिता मंगलू निवासी ग्राम मझगवां तहसील पुष्पराजगढ़, जिला अनूपपुर को यह सूचना दी जाती है कि सूखा राशि रुपये 27,274/- आपके खाते में दुबारा जमा हो गया है, भुगतान हो गया है, उक्त राशि की वसूली कर शासन के मद में जमा किया जाना है और यदि आप जमा नहीं करते हैं तो आपके स्वामित्व की धारित भूमि को कुर्क कर लिया जाएगा, आपके स्वामित्व की धारित भूमि को कुर्क कर मध्यप्रदेश शासन मद में अंकित कर दिया जाएगा. आपको शासन द्वारा देय सभी योजनाओं के लाभ से वंचित कर दिया जाएगा और आपके द्वारा शासकीय राशि नहीं दी जाती है तो आपके बैंक के खाते से किसी भी प्रकार की जमा राशि आहरण करने पर रोक लगा दी जाएगी, का नोटिस जारी किया गया. माननीय अध्यक्ष महोदय, यह बड़ा संवेदनशील मामला है कि आपने प्रकरण बनाया, आपने सर्वे कराया और शासन की मंशा पीड़ित किसान परिवारों को लाभ पहुँचाने की थी. आपने पैसा जमा किया, चेक दे दिया. किसान पीड़ित था, आपने जो राशि दी, अपने बैंक खाते में डाला और उसका उपयोग कर लिया. 2015-16 की राशि, 2018 में आप नोटिस जारी करके उनको वसूली का काम आपने प्रारंभ कर दिया. जिससे मेरे क्षेत्र के सैकड़ों, हजारों किसान, यह जो मेरे पास है (कोई कागज दिखाते हुए) यह नोटिस है, अध्यक्ष महोदय, इसमें वसूली अधिकारी द्वारा नोटिस जारी किया गया. मैं सदन के माध्यम से माननीय राजस्व मंत्री जी से यह निवेदन करना चाहता हूँ कि आप ऐसा निर्देश जारी करें और मैं यह जानना भी चाहता हूँ कि जिन पटवारियों ने, राजस्व अधिकारियों ने, अनुविभागीय अधिकारियों ने, जिसने सर्वे किया, जिसने चेक जारी किया, राशि जारी की, उन पर आपने आज दिनाँक तक क्या कार्यवाही की?
अध्यक्ष महोदय-- कृपया समाप्त करें.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को-- अध्यक्ष महोदय....
अध्यक्ष महोदय-- एक ही विषय पर तो आपने पूरा टाइम ले लिया.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को-- अध्यक्ष महोदय, एक ही विषय 53 लाख का है और...
अध्यक्ष महोदय-- तो बात आ गई ना.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को-- उन आदिवासियों का है जो जंगल और पहाड़ों में बेचारा रहकर और आपकी राशि का जिन्होंने सदुपयोग कर लिया और...
अध्यक्ष महोदय-- ठीक है, आपने बात बोल दी. कृपया समाप्त करें.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को-- मेरा आप से निवेदन है कि इस वसूली को बंद किया जाए और जिन्होंने ऐसी गलती की है उससे यह राशि वसूल की जाए.
अध्यक्ष महोदय, मेरा दूसरा निवेदन सीमांकन के संबंध में है, सीमांकन की बहुत बात होती है, एक काश्तकार सुरेश सिंह पिता स्वर्गीय प्रताप सिंह, मुकाम पोस्ट वैंकर नगर, जिला अनूपपुर, तहसील जतारी, आपने वर्ष 6.5.2009 को सीमांकन का आवेदन लगाया. अध्यक्ष महोदय, दुख इस बात का है कि 2009 से आज दिनाँक तक इस किसान का सीमांकन नहीं किया गया. तहसीलदार का पत्र क्रमांक, जो आदेश इन्होंने जारी किया वह आदेश की कॉपी भी मेरे पास है. माननीय मुख्यमंत्री महोदय के मन की बात में आपने कहा था कि 3 माह में सभी अविवादित नामांतरण, बँटवारे एवं सीमांकन....
अध्यक्ष महोदय-- मार्को जी, कृपया समाप्त करें.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को-- प्रकरण निराकृत किए जाएँगे. 3 माह के ऊपर यदि हो जाता है तो ऐसे व्यक्ति को पुरस्कार दिए जाएँगे. माननीय राजस्व मंत्री महोदय से मैं निवेदन करूँगा कि इस किसान को कितना आप पुरस्कार देंगे या इससे संबंधित अधिकारियों पर क्या आप कानूनी कार्यवाही करेंगे? यह मैं जानना चाहता हूँ. मैं और ज्यादा न कहते हुए मैं एक बात निवेदन करना चाहूँगा कि मेरे पुष्पराजगढ़ विधान सभा में काफी दिनों से करीब एक तहसीलदार और दो नायब तहसीलदार के पद रिक्त हैं, 120 पटवारी के पद स्वीकृत हैं 60 भरे हैं 60 खाली हैं. मैं आप से निवेदन करता हूँ कि 60 पटवारियों के रिक्त पदों को भर्ती करने की कृपा की जाए.
अध्यक्ष महोदय--यादवेन्द्र सिंह जी आप अपनी बात एक मिनट में बोल लीजिए.
राजस्व मंत्री (श्री उमाशंकर गुप्ता)--माननीय अध्यक्ष महोदय, फुन्देलाल सिंह जी ने जो बात कही है भुगतान वसूली के बारे में, मैं जानकारी में लाना चाहता हूँ कि अनूपपुर जिले में लगभग 50 लाख रुपए का दोहरा भुगतान हो गया था. किसानों को एक ही मुआवजे की राशि दो बार चली गई थी. उसी की वसूली के नोटिस जारी हुए हैं.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को--किसने गड़बड़ी की उस पर आपने क्या कार्यवाही की जिन्होंने दोहरा भुगतान कर दिया ? क्या किसान लेने गए थे ? या आपसे मांगने गए थे ? क्या आपसे अनुरोध किया था ?
श्री यादवेन्द्र सिंह--माननीय अध्यक्ष महोदय, सतना व पन्ना जिले आपस में लगे हुए हैं वहां पर एक गांव है मालन पन्ना जिले का और सतना जिले का नागौद तहसील का उमरी गांव. उमरी की जमीन पर पन्ना जिले का मालन गांव का सरपंच सामुदायिक भवन और ग्राम पंचायत भवन बना रहा था. तहसीलदार ने सीमांकन किया वह जमीन अपने में निकल रही है. ग्वालियर से स्थगन है. मैं चाहता हूँ कि कलेक्टर पन्ना और सतना द्वारा इसका नाप कर लिया जाता तो यह बात साफ हो जाती. यह बॉर्डर तय कराने का कष्ट करें. मेरा क्षेत्र अक्टूबर से सूखा घोषित है आज तक मुआवजा नहीं मिला है उसका निराकरण करने का कष्ट करें.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को--माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा माननीय मंत्री जी से निवेदन है कि जब तक उन अधिकारियों पर आप कार्यवाही नहीं करते हैं तब तक आप किसानों से वसूली बंद करें. जिसने गलती की है पहले उसे तो सजा दें.
श्री उमाशंकर गुप्ता--अध्यक्ष महोदय, अधिकारियों के खिलाफ भी कार्यवाही चल रही है.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को--माननीय अध्यक्ष महोदय, कोई कार्यवाही नहीं चल रही है. आज दिनांक तक कोई कार्यवाही की हो तो नाम बताइए, पढ़िए की क्या कार्यवाही की है. नाम बताइए कौन से पटवारी, कौन से आर.आई. कौन से तहसीलदार....
अध्यक्ष महोदय--मंत्री जी कुछ कह रहे हैं आप सुन तो लीजिए.
श्री उमाशंकर गुप्ता--अध्यक्ष महोदय, आखिर दोहरा भुगतान खाते में गया है तो वापस लेना पड़ेगा. जिनने गलत किया है उनके खिलाफ भी विभागीय जांच चल रही है.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को--माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी आज तक आपने कोई कार्यवाही नहीं की है. आप करें.
श्री बहादुर सिंह चौहान (महिदपुर)-- अध्यक्ष महोदय, मैं मांग संख्या का समर्थन करते हुए. अपनी बात को रखना चाहूंगा. माननीय अध्यक्ष महोदय 1-2 मिनट तो सरकार की तारीफ करना पड़ेगी क्योंकि केवल बुराई ही बुराई हो रही है.
अध्यक्ष महोदय--1-2 मिनट में कर दीजिए तारीफ. उसके बाद में मैंने जो अनुरोध किया है वह करें.
कुँवर सौरभ सिंह सिसोदिया--चौहान साहब तारीफ करके बैठ जाओ क्या मतलब फिर बाकी काम करने का.
श्री बहादुर सिंह चौहान--माननीय अध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश लोक सेवा गारंटी अधिनियम वर्ष 2010 में बना था और राजस्व विभाग की 16 सेवाएं इसके अन्तर्गत आती हैं. इसमें विभाग को दिनांक 15.3.2018 तक 1 करोड़ 37 लाख 54 हजार 14 आवदेन प्राप्त हुए. उसमें से 1 करोड़ 28 हजार 311 आवेदनों का निराकरण विभाग द्वारा करा दिया गया है. यह प्रशंसा योग्य है.
2.10 बजे {सभापति महोदय (श्री ओमप्रकाश सखलेचा) पीठासीन हुए}
माननीय सभापति महोदय, राजस्व विभाग में इतने आवेदनों का निराकरण कर देना असंभव सा है. इसके लिए मैं माननीय मंत्री जी और माननीय मुख्यमंत्री जी को धन्यवाद देना चाहता हूँ.
श्री घनश्याम पिरौनियॉ--माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे विधान सभा क्षेत्र भाण्डेर में शत-प्रतिशत किसानों को सूखा की राशि बांटी गई है. मैं माननीय मंत्री जी को धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ. दतिया जिले की भाण्डेर को सूखाग्रस्त घोषित किया गया. घर-घर बैठकर किसानों के खाते में पैसा पहुंचाने का काम हो रहा है और कांग्रेसी आरोप लगा रहे हैं.
श्री बहादुर सिंह चौहान--माननीय अध्यक्ष महोदय, 18 जिलों में सूखा पड़ा उसमें से 133 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया. आँधी आए तो राजस्व विभाग, तूफान आए तो राजस्व विभाग, शीतलहर हो तो राजस्व विभाग, ओलावृष्टि हो तो राजस्व विभाग, दुर्घटना हो तो राजस्व विभाग. इस विभाग के द्वारा पटवारी गांव-गांव में जाकर खसरा नकल और बंटवारे की पावती दे रहे हैं. अध्यक्ष महोदय, मैंने मेरी 52 साल की उम्र यह कभी नहीं देखा है. यह पहली बार शिवराज जी की सरकार में हो रहा है कि पटवारी गांव में जाकर निशुल्क यह वितरित कर रहा है. यह संभव नहीं था. एक नकल लेने के लिए इन पटवारियों के कितने चक्कर लगाने पड़ते थे यह हम अच्छी तरह से जानते हैं. यह बात भी सत्य है कि माननीय मंत्री जी के पास जो अमला होना चाहिए वह नहीं है. 400 नायब तहसीलदारों की कमी है जिसकी भर्ती होने जा रही है. 9000 पटवारियों की कमी है. उसके बावजूद इस विभाग द्वारा इतना कार्य किया गया है. 1 हजार 82 करोड़ रुपए राहत राशि के लिए जिला कलेक्टर को विभाग द्वारा दिए गए हैं जिसमें से 300 करोड़ रुपए राहत राशि के वितरित कर दिए गए हैं. फरवरी 2018 में ओलावृष्टि हुई है जिसमें 219 करोड़ रुपए का वितरण कर दिया गया है. RBC 4(6) में 15 वर्ष पहले कितने पैसे मिलते थे ? आप भी किसान हैं मैं भी किसान हूँ. 100 रुपए 500 रुपए मिलते थे. आज असिंचित भूमि पर खरीफ फसल के लिए एक हेक्टेयर को 16 हजार रुपए इस सरकार ने किये हैं और सिंचित के लिए 30 हजार रुपए किये गए हैं. माननीय मंत्री जी का और माननीय शिवराज जी का जितना ज्यादा धन्यवाद करें उतना कम है.
माननीय सभापति महोदय, भू-राजस्व संहिता के अन्तर्गत हम जानते हैं सर्पदंश हो जाता था, आकाशीय बिजली गिर जाती थी, पानी में आदमी डूब जाता था, मृत्यु हो जाती थी. क्या देते थे ? पहले हमने 1 लाख दिए अब उसके लिए 4 लाख रुपए का प्रावधान किया गया है. इसके लिए मैं राजस्व मंत्री जी और विभाग के अधिकारियों को धन्यवाद देना चाहता हूँ.
माननीय सभापति महोदय, पूर्व की स्थिति की तुलना करने का तो मेरे पास अब समय नहीं है. समय की कमी है. मैं कहना चाहता हूँ कि यह जो 4 लाख रुपए देने का प्रावधान जिला कलेक्टर को था इसका सरलीकरण किया गया. हम अनुविभागीय अधिकारी के पास जाकर घटना के 2-4 दिन बाद 4 लाख रुपए का चेक दे देते हैं. कोई भी व्यक्ति हो यह उसके लिए प्रावधान किया गया है. मध्यप्रदेश में 356 तहसीलें हैं. माननीय मंत्री जी मेरे क्षेत्र ग्राम डोंगला में पधारे थे. ग्राम डोंगला हिन्दुस्तान का नहीं विश्व का सेंटर पाइंट है. यह बात माननीय मंत्री जी जानते हैं वहां पर प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा बहुत कार्य किए जा रहे हैं. रात्रि में तारामंडल को देखने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करके कार्य किया जा रहा है. आप वहां आए थे तो जो-जो चर्चाएं हुईं थीं वह राशि आप निश्चित रुप से आवंटित करने वाले हैं, करेंगे मुझे पूरा विश्वास है.
सभापति महोदय, मैं एक महत्वपूर्ण उदाहरण देना चाहता हूँ कि जब कोई भी रोड बनती है या कोई ब्रिज बनता है या कोई डेम बनता है तो किसानों की भूमि अधिग्रहित की जाती है और उनको मुआवजा राशि दे दी जाती है. देखने में यह आया है कि वह किसान मुआवजा राशि तो ले लेता है लेकिन राजस्व रिकार्ड से उसका नाम नहीं कटता है. इससे भू-माफिया उसकी रजिस्ट्री दूसरे के नाम से करवा कर उस पर कॉलोनियां काटने लगे हैं. मैं मंत्री जी से चाहूंगा कि ऐसे आदेश कम से कम मेरे विधान सभा क्षेत्र महिदपुर के लिए स्पेशल आप करें कि जिस जिस भूमि की मुआवजा राशि किसान ले चुके हैं उनके नाम एक सप्ताह में डिलीट करके शासन का नाम उस पर चढ़ा दिया जाए.
सभापति महोदय, अभी रीवा शहर की बात हो रही थी कि पूरा रीवा शहर किसी ने खरीद लिया है. किसी ने एक हेक्टयर या 50 हेक्टेयर जमीन खरीद ली होगी पूरा रीवा शहर खरीदने वाला कोई नहीं है.
श्री सुखेन्द्र सिंह--आओ घूम जाओ बहादुर सिंह जी. घूम आओ फिर देखो. रीवा नहीं पूरे प्रदेश में, रीवा में किताबें छप गईं, पोस्टर छप गए, जमीनें बिक गईं (व्यवधान)
श्री बहादुर सिंह चौहान--मैं जानता हूँ कोई भू-माफिया हो सकता है. हमारे मंत्री जी जो कार्य कर रहे हैं उस क्षेत्र में राजेन्द्र शुक्ल जी वह आपको पच नहीं रहे हैं. उससे आप परेशान हो..(व्यवधान)
श्री सुखेन्द्र सिंह--हमें पच रहे हैं, राजेन्द्र शुक्ल जी के समदड़िया के साथ इतने बड़े-बड़े फोटो लगे हुए हैं. (व्यवधान)
सभापति महोदय--कृपया आपस में बात न करें. जब आपका नाम आए तब बोल लीजिएगा. आपस में बात करने की बजाए ...(व्यवधान)
श्री सुखेन्द्र सिंह--आप अपने क्षेत्र की बात करो रीवा में हम हैं.
श्री बहादुर सिंह चौहान--आप रीवा में हो तो मध्यप्रदेश के अन्तर्गत आता है रीवा और रीवा को हम भी जानते हैं, रीवा में हमारे लोग भी रहते हैं. सिर्फ कांग्रेस के लोग नहीं रहते हैं. भारतीय जनता पार्टी के लोग भी वहां पर रहते हैं. इसलिए मेरा निवेदन है.
श्रीमती शीला त्यागी--माननीय सभापति महोदय, माननीय सदस्य कब से रीवा नहीं गए जरा इनसे पूछ लीजिए. ...(व्यवधान)
श्री सुखेन्द्र सिंह--समदड़िया से आपकी क्या दोस्ती है. ...(व्यवधान)
श्री बहादुर सिंह चौहान--हमारी पार्टी के मंत्री हैं हम उनके साथ हैं, दोस्ती का क्या मतलब है उसमें...(व्यवधान)
सभापति महोदय--आपका नंबर आएगा तब आप बात करिएगा...(व्यवधान)
श्री बहादुर सिंह चौहान--आप हमारे मंत्री के खिलाफ असत्य बात करोगे हम सुनते रहेंगे क्या ? ...(व्यवधान)
श्री सुखेन्द्र सिंह--समदड़िया इनके मंत्री हैं. ...(व्यवधान)
सभापति महोदय--आपका नंबर आए तब बोल लीजिएगा...(व्यवधान)
डॉ. गोविन्द सिंह--पृथ्वीराज सिंह चौहान रखते थे...आप चौहान होकर कहां भांडगिरी कर रहे हो...(व्यवधान)
श्री बहादुर सिंह चौहान--यह भांडगिरी नहीं कर रहे हैं सत्य कर रहे हैं. भांडगिरी नहीं करते हैं चौहान होकर आप मुझे अपनी ओर बुलवाना चाहते हो यह संभव नहीं है.
सभापति महोदय--माननीय बहादुर सिंह जी आप अपना विषय रखिए आपस में बात न करें. (व्यवधान)
श्री सुखेन्द्र सिंह--माननीय सभापति जी भांडगिरी के लिए अलग से समय निर्धारित करवा दें.
सभापति महोदय--जी जी. आप विराजिए.
श्री बहादुर सिंह चौहान-- माननीय सभापति महोदय, यह सूची नहीं देखी है. माननीय मुख्यमंत्री जी 29.11.2017 को मेरे विधान सभा क्षेत्र में आए थे और सूखे की तहसील की घोषणा की थी. वह 133 में जुड़ी या नहीं, मुझे नहीं पता. निश्चित रूप से जो वर्षा है भारत सरकार के जो नार्म्स हैं उसके अंतर्गत पूरी रिपोर्ट माननीय जिलाधीश ने आपको भेज दी थी. संभवत: हो गई होगी नहीं तो मेरा यह आग्रह है आप कर दें. बहुत ही अच्छी आनावारी, पहले पटवारी आनावारी नहीं लिखता था माननीय सभापति महोदय, आप जानते हो आपकी ग्रामीण विधान सभा है. पटवारियों को कहना पड़ता था. पहले दिग्विजय सिंह जी की सरकार थी उस समय कांग्रेस बोलती थी ज्यादा मत लिखना. आज हमारे मुखिया क्या कहते हैं कि यदि कम लिख दोगे तो नौकरी के लायक नहीं छोड़ेंगे, यह मुख्यमंत्री जी कहते हैं. इससे बढि़या किसानों के लिए और क्या हो सकता है. हजारो करोड़ रुपए जो है...
श्री सुखेन्द्र सिंह -- लिखित आदेश दिलवाइए.
श्री बहादुर सिंह चौहान-- आप लिखित आदेश मांगेंगे.
सभापति महोदय-- बार-बार बहस न करें. यह आपके अधिकार क्षेत्र में नहीं है. आपके अधिकार क्षेत्र की बातें नहीं हैं. आप बार-बार खडे़ हो जाते हैं और व्यवस्था बिगाड़ रहे हैं. तिवारी जी आपको भी मौका है आपका नाम भी है. आप अपनी पूरी बात रखिएगा.
श्री बहादुर सिंह चौहान-- माननीय सभापति महोदय, यह मानव अधिकार है और उसके कारण जो भी नुकसान होता है चाहे ओलावृष्टि से, चाहे शीतलहर से, चाहे अल्पवर्षा से या इल्ली के प्रकोप से तो आज खेतों पर राजस्व विभाग के पटवारी और कृषि विभाग के ग्राम सेवक वहीं जाकर सही रिपोर्ट बनाते हैं और आनावारी की सही रिपोर्ट बनती है. उसके बाद आर.बी.सी. 6 (4) के अंतर्गत राहत राशि और प्रधानमंत्री फसल बीमा का लाभ हम लोगों को मिलता है. अब बताइए कि एक हेक्टेयर पर 16 हजार खरीफ फसल में और सिंचाई में हमें 3 हजार...
सभापति महोदय-- बहादुर सिंह जी अब आप विषय को समेटने का प्रयास करिए.
श्री बहादुर सिंह चौहान-- जी सभापति महोदय. मैं चाहता हूं एक उदाहरण माननीय मंत्री जी नोट कर लेंगे और मैं ज्यादा गांव नहीं गिना रहा हूं एक ही गांव गिना रहा हूं. बस यही उदाहरण देकर मैं अपनी बात समाप्त कर दूंगा. मेरे विधान सभा क्षेत्र में उज्जैन जिले का अरनया डेम लगभग 8 हजार सिंचाई उस पर होती है और जब वह गांव विस्थापित हुआ था तो एक गांव जाकर, मानपुरा एक नई बस्ती जाकर 300 से 400 परिवार बसे थे. मैं एक ही गांव का निवेदन कर रहा हूं विधान सभा क्षेत्र तहसील महतूर का गांव मानपुरा यह राजस्व विभाग के रिकार्ड में गांव नहीं है. हमने जैसे-तैसे वहां जाकर स्कूल बनवा लिया है लेकिन वह भी ऐसे ही दबाव प्रभाव बनाकर बना लिया है, लेकिन वह नियम में नहीं है. मानपुरा को राजस्व रिकार्ड में आप ले लें मैं इतना ही आग्रह करता हूं और एक बार पुन: माननीय मुख्यमंत्री जी की और राजस्व विभाग के मंत्री जी की मैं यहां पर प्रशंसा करता हूं इनके नेतृत्व में मध्यप्रदेश में अमले की कमी होने के बावजूद बहुत ही अच्छा कार्य राजस्व विभाग का चल रहा है. बहुत-बहुत धन्यवाद देते हुए मैं मेरी वाणी को विराम देता हूं.
श्रीमती झूमा सोलंकी (भीकनगांव)-- माननीय सभापति महोदय, मै मांग संख्या 8, 9, 46 और 58 के ऊपर अपनी बात रख रही हूं. राजस्व विभाग बहुत ही महत्वपूर्ण और बड़ा विभाग है. वर्तमान में मेरे विधान सभा क्षेत्र भीकनगांव में दो तहसीलें हैं और पिछले चार सालों से एक ही तहसीलदार दोनों तहसीलों को संभाल रहे हैं इससे बहुत विसंगतियां आ रही हैं. किसानों के कोई काम नहीं हो रहे हैं. जाति प्रमाण पत्र या जमीन से जुड़े हुए कोई भी कार्य हों वह बहुत ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. मेरा माननीय मंत्री जी से अनुरोध है कि एक तहसीलदार वहां जरूर दिया जाए क्योंकि टी.एल. की बैठक में पूरे जिले में जाने में एक दिन वहां पर खत्म होता है और फिर वीडियो कांफ्रेंसिंग. ऐसे दो दिन तो यह हो गए तो वह दो तहसीलों में कितना समय दे पाएंगे. दोनों ब्लॉकों में जाना और काम करना आप सोच सकते हैं कि जनकल्याणकारी कार्यों में कितनी रुकावटें पैदा होती हैं. यहां बहुत ज्यादा आवश्यकता है. इस बात का विशेष तौर से ध्यान दिया जाए. इसके साथ ही 67 पटवारी के पद सृजित हैं और उसमें मात्र 18 पटवारी कार्य कर रहे हैं. रिक्त पद 49 हैं और अत्याधिक कार्य होने की वजह से 8 पटवारी वहां पर अपना कार्य छोड़कर स्थानांतरण करके चले गए हैं. मेरा माननीय मंत्री जी से अनुरोध है कि ज्यादा न करें तो कम से कम यह जो 8 पटवारी बिना रिलीवर आए ही वहां से चले गए हैं और अधिकारियों से सांठ-गांठ करके एक तरफा चले गए हैं उनको वापस किया जाए क्योंकि उनके बगैर अभी जो जितने काम हो रहे हैं वह ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं ताकि इसकी व्यवस्था सुचारू रूप से चले. यह गंभीर समस्या उत्पन्न होने का नियम भी शासन की ओर से है कि आदिवासी क्षेत्रों में जब तक रिलीवर नहीं आए उनको रिलीव न किया जाए, किंतु कलेक्टर की ओर से यह कर दिया गया है. मेरा अपसे अनुरोध था कि इनको फिर से वापस किया जाए. कुर्की के आदेश विभाग के द्वारा सोसायटियों के बकायादार और एम.पी.ई.बी. के बकायादारों के यहां कुर्की की जा रही है और जो आवश्यक चीजें हैं उनकी भी कुर्की की जा रही है क्या ऐसा कुछ नियम है? जब वह अपनी बात रखें तो मुझे इससे जरूर स्पष्ट कराएं क्योंकि नियम यही कह रहा है कि आदिवासी क्षेत्रों में इस तरह की कुर्की का आदेश नहीं होना चाहिए एक बात और कहना चाहती हूं कि हल्का स्तर पर पटवारियों के आवास का नहीं होना और इसी वजह से वह जिले में रहते हैं जिससे उनके आवागमन में ही आधा समय चला जाता है इसीलिए इसकी भी व्यवस्था की जाए और हर तहसील स्तर पर उनके आवास बनाए जाएं ताकि वह स्थाई रूप से वहां रहें और आमजनों के काम आसानी से हो जाएं. आबादी में नहीं होने की एक बड़ी समस्या है क्योंकि मजरे टोले मेरा पूरा क्षेत्र पहाड़ी अंचल भी है. एक तहसील झिरनियां जहां पहाड़ी अंचल के फालियों में बसाहट है. आबादी में नहीं होने से प्रधानमंत्री आवास या अन्य जितनी जनकल्याणकारी योजनाएं हैं उसका फायदा किसानों, मजदूरों और अन्य जनों को नहीं मिल पाता है तो उसमें आबादी क्षेत्र के हमारे तहसील के जितने प्रस्ताव आए हैं उनमें तुरंत निर्णय करके निराकरण अवश्य करें. ज्यादा न कहते हुए एक आखिरी बिंदु है कि जब दुर्घटना होती हैं तो यह पटवारी और तहसीलदार के अभाव में दो से तीन माह तक लग जाते हैं यदि किसी व्यक्ति का मकान जला है तो तुरंत जो आवश्यकता होती है वह सहायता उनको तुरंत नहीं मिलती है. दो तीन माह का समय तो बहुत ज्यादा होता है. तब तक उनके पास सहायता नहीं पहुंच पाती है इसकी व्यवस्था जल्दी हो और उनकी समस्याओं का निराकरण हो. आपने बोलने का अवसर दिया इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूं.
श्रीमती शीला त्यागी (मनगंवा)-- माननीय सभापति महोदय, राजस्व विभाग मध्यप्रदेश शासन का एक बहुत महत्पूर्ण विभाग है और सरकार का कमाऊ पुत्र भी है. इसलिए भ्रष्टाचार भी चरम सीमा पर है. मैं ज्यादा तो कुछ नहीं कहूंगी बस इतना ही कहना चाहती हूं कि हमारा मनगंवा विधान सभा क्षेत्र जो कि आरक्षित क्षेत्र है वहां एस.टी., एस.सी. के लोगों की संख्या भी ज्यादा है इसीलिए उसे आरक्षित किया गया है लेकिन माननीय मुख्यमंत्री जी ने घोषणा की थी कि जितने भी एस.टी., एस.सी. के लोग जहां जिस स्थान पर बसे हैं उनको स्थाई पट्टे दिए जाएंगे लेकिन स्थाई पट्टे की बात तो दूर उनकी आबादी तक अभी नहीं कटी है. मैं माननीय मंत्री जी से अपील करती हूं कि उनकी आबादी काटी जाए और अतिशीघ्र उनको पट्टा देने का काम माननीय मंत्री जी जरूर निर्देश करेंगे. साथ ही प्राकृतिक आपदाओं और क्षतिपूर्ति जैसे आगजनि हो या बाढ़ आ गई हो या किसी के घर जल जाते हैं या फसलें जल जाती हैं तो यह प्रकरण बहुत लंबित हो जाते हैं लंबे समय तक उनको मुआवजा नहीं दिया जाता है. मैं मंत्री जी से यहीं कहना चाहती हूं कि वहां जो पटवारी तहसीलदार एस.डी.एम. हैं इनको आप सख्त निर्देश करें और मॉनिटरिंग करवाएं कि ऐसे प्रकरणों का निर्णय वह अतिशीघ्र करें. साथ ही साथ मैं माननीय मंत्री जी से यह भी गुजारिश करती हूं कि हमारी जो गंगेवपूर्वा जो जनपद पंचायत है उसको तहसील का दर्जा देने का विशेष अनुरोध कर रही हूं. मनगंवा नगर पंचायत में जो जो जमीनें हैं उसमें अवैध रूप से भू-माफियाओं ने कब्जा कर रखा है मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से यही कहना चाहती हूं कि जांच करवाकर भू-माफियाओं से उन ऐसी सरकारी जमीनों को मुक्त कराया जाए और साथ ही साथ यह मेरी ही विधान सभा और केवल रीवा जिला ही नहीं बल्कि पूरे मध्यप्रदेश में सबसे विकराल समस्या ऐरा प्रथा और ऐरा प्रथा के कारण एक तो वैसे भी किसान प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है कभी सूखा, कभी पाला कभी ओला और बहुत सारी प्राकृतिक आपदाएं हैं. इस समय हमारी मनगवां विधान सभा क्षेत्र में सबसे बड़ी आपदा ''ऐरा-प्रथा'' है. ऐसा कोई गांव, कोई गली, कोई क्षेत्र नहीं है जहां आवारा पशुओं का जमावड़ा न हो. इससे बहुत सी दुर्घटनायें होती है और फसलें भी चौपट होती हैं इसलिए मैं मंत्री जी से कहना चाहती हूं कि ग्राम पंचायत स्तर पर कोई कांजी हाऊस या ऐरा पशुओं को इकट्ठा करके उनके लिए कोई प्रबंध किया जाये, राजस्व विभाग एवं कृषि विभाग आपसी सामंजस्य बनाकर प्रत्येक पंचायत के स्तर पर एक कांजी हाऊस बनायें, वहां कर्मचारी रखे जायें और आवार पशुओं को वहां रखा जाए. उन पशुओं के गोबर से खाद बनेगी, किसानों की फसलों का नुकसान नहीं होगा और दुर्घटनायें भी नहीं होंगी. यह मेरा एक महत्वपूर्ण सुझाव है.
माननीय सभापति महोदय, मेरा एक और निवेदन आपके माध्यम से मंत्री जी से है कि हमारी मनगवां विधान सभा का तहसील मुख्यालय सदैव सुर्खियों में रहता है, विवादों में रहता है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वहां अभी तक जितने भी तहसीलदार आयें हैं, वे प्रभारी पद पर आये हैं. मेरा मनगवां विधान सभा क्षेत्र बहुत ही संवेदनशील और ऐतिहासिक है इसलिए वहां कोई अनुभवी तहसीलदार हो जो प्रभारी पद पर न होकर स्थाई पद पर रहे जिससे कि मनगवां विधान सभा क्षेत्र के किसान, गरीब, मजदूर जो इससे प्रभावित होते हैं और उनका काम-काज रूक जाता है, वे प्रभावित न हों.
माननीय सभापति महोदय, मेरे विधान सभा क्षेत्र में पटवारी और आर.आई. अविवादित नामांतरण और बंटवारे को भी विवादित कर देते हैं. यह नियम में है कि अविवादित प्रकरणों के लिए आप पंचायत में जायेंगे, वहां लोगों के बीच डंका पिटवाकर, सूचना देकर और फिर बंटवारा किया जायेगा लेकिन पटवारी और आर.आई. की मिलीभगत से जो प्रकरण विवादित नहीं होते हैं उसे भी विवादित करके तहसील मुख्यालय में पटक दिया जाता है. ऐसे पटवारियों और आर.आई. के बहुत से शिकायत-पत्र तहसील मुख्यालय में एस.डी.एम., कलेक्टर और कमिश्नर के ऑफिस में पड़े हुए हैं. मैं कहना चाहती हूं कि ऐसे लंबित प्रकरण, जिनमें अविवादित प्रकरणों को भी विवादित बनाया गया है इसमें सख्त निर्देश जारी किए जायें कि प्रकरणों को अनावश्यक रूप से विवादित न बनाया जाये जिससे लोग परेशान होने से बच सकें.
माननीय सभापति महोदय, हमारे राजस्व मंत्री जी काफी अनुभवी हैं और मेरे ऊपर विशेषकर उनका ज्यादा स्नेह रहता है इसलिए मैं उनसे एक और मांग करना चाहती हूं कि हमारा क्षेत्र गंगेऊ है. भले ही हमारी मनगवां विधान सभा का मुख्यालय मनगवां है परंतु यह बिल्कुल कॉर्नर में पड़ता है लेकिन हमारी गंगेऊ जनपद का मुख्यालय मनगवां का ह्दय स्थल है. करीब 150 पंचायतों के बीच में वह पड़ता है इसलिए मैं आपसे विशेष रूप से अपील करूंगी कि आप मेरी गंगेऊ को ही तहसील का दर्जा देने का कष्ट करें. माननीय सभापति महोदय, आज मेरे भाषण के बीच में कोई टोका-टाकी नहीं हुई इसलिए मैं अपनी बात अच्छे से रख पाई. आपने मुझे बोलने का अवसर दिया, इसके लिए धन्यवाद.
श्री सूबेदार सिंह रजौधा (जौरा)- माननीय सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 8,9,46 एवं 58 के समर्थन में खड़ा हुआ हूं. मैं सर्वप्रथम आर.बी.सी.-6 (4) से अपनी बात शुरू करूंगा. वर्ष 2006-07 में मध्यप्रदेश में माननीय श्री शिवराज सिंह चौहान जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद मेरे मुरैना जिले में बुधारा गांव है जो कि तुमहरघार और सिकरवारी के बीच में पड़ता है, वहां ओला-वृष्टि हुई थी. किसानों की फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई थी. हमारे मुख्यमंत्री जी ने खेत में खड़े होकर कहा कि वास्तव में किसान की फसल नष्ट हो गई है और इसे पूरी क्षतिपूर्ति मिलनी चाहिए. धीरे से मुरैना के कलेक्टर ने मुख्यमंत्री जी के कान में कहा कि हम क्षतिपूर्ति नहीं दे सकते हैं. मुख्यमंत्री जी ने पूछा कि क्यों नहीं दे सकते हैं ? कलेक्टर ने बताया कि आर.बी.सी. में इसका कोई प्रावधान नहीं है. ओले पूरी तहसील में नहीं पड़े हैं. केवल 2-4 गांवों में ओले पड़े हैं. मुख्यमंत्री जी ने कहा कि ये आर.बी.सी. का क्या भूत है ? कलेक्टर साहब ने कहा कि आर.बी.सी. के बाहर हम क्षतिपूर्ति नहीं दे सकते हैं. मैं पूछना चाहता हूं कि आर.बी.सी. कौन बनाता है ? आर.बी.सी. शासन बनाता है. माननीय सभापति महोदय, कांग्रेस पार्टी ने उस आर.बी.सी. को सांप के पिटारे जैसे सहेजकर रखा और उसे कभी हाथ तक नहीं लगाया. किसानों पर ओले पड़े, पाला पड़ा, अतिवृष्टि हुई लेकिन उन्हें कभी कोई लाभ नहीं दिया गया.
माननीय सभापति महोदय, मैं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने कहा कि जब आर.बी.सी. में संशोधन शासन को करना है तो फिर हम इसमें संशोधन करेंगे और किसान को उसकी क्षतिपूर्ति देंगे. हमने आर.बी.सी. में संशोधन किया और हमने तहसील से पटवारी हल्का को शामिल किया. आज हमारी सरकार किसानों के हित में फैसला लेने के लिए कभी-भी तत्पर रहती है.
सभापति महोदय- कृपया अपने क्षेत्र की और नीतिगत बात सीधे करें. समय की थोड़ी सीमा है.
श्री सूबेदार सिंह रजौधा- माननीय सभापति महोदय, मैं केवल आर.बी.सी. की चर्चा करना चाहता हूं. इसके अलावा मैं और कुछ अधिक नहीं कहना चाहता हूं. आर.बी.सी. और डायवर्सन के भूत को हमारी सरकार, हमारे मुख्यमंत्री जी और राजस्व मंत्री जी ने ठीक किया है. आज किसान बहुत खुश है. मैं एक घटना का उल्लेख यहां करना चाहूंगा. मेरे पड़ोस में ओले पड़े तो एक औरत जोर-जोर से रात को रोने लगी. हमने पूछा कि क्या हुआ तो कहने लगी कि मेरी बच्ची की शादी है और अप्रैल माह में ओले पड़ गए हैं. मैं उसकी शादी कैसे करूंगी ? माननीय सभापति महोदय, मैं कहना चाहता हूं कि हमारे मुख्यमंत्री जी ने आर.बी.सी. में तो संशोधन किया ही है इसके अलावा मुख्यमंत्री कन्यादान योजना लाकर वे पूरी तरह से किसानों के साथ खड़े हो गए हैं.
माननीय सभापति महोदय, एक और बात मैं कहना चाहूंगा कि पहले सर्प के काटने पर 50 हजार रुपये मिलते थे और पानी में डूबने से 1 लाख रुपये मिलते थे. इस संबंध में मैंने विधान सभा में प्रश्न लगाया था कि सर्प के काटने से भी आदमी मरता है और पानी में डूबने से भी आदमी की मौत होती है. ऐसा तो होता नहीं है कि आदमी सर्प की बांबी पर जाकर कहे कि आ बाहर निकल, मैं तुझे ललकार रहा हूं तू मुझे काट ले. यह तो एक प्राकृतिक आपदा है. सर्प काटना, पानी में डूबना, आकाशीय बिजली में मृत्यु होना, एक ही आपदा है इसलिए इन सभी में बराबर राहत दी जानी चाहिए. मैं मुख्यमंत्री जी एवं राजस्व मंत्री जी का धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने आज 4 लाख रुपये पीडि़त को देने की व्यवस्था की है. कुछ समय पूर्व मेरे गांव के पास तिलऊआ गांव में बिजली गिर गई. हमने 4-4 लाख रुपये, 8 दिनों में कलेक्टर से उन्हें दिलवाये और घायलों को 25-25 हजार रुपये दिलवाये इसलिए मैं कहूंगा कि हमारी सरकार पूरी तरह से किसानों के साथ खड़ी है. हमारे मित्र कहते हैं कि हमने आर.बी.सी. में ज्यादा कुछ संशोधन नहीं किए हैं. मैं पूछना चाहता हूं कि आपने आर.बी.सी. को क्यों पाल-पोसकर रखा था. आर.बी.सी. के बारे में आप नहीं जानते थे क्या ? हमारी सरकार ने आर.बी.सी. में संशोधन किया है.
माननीय सभापति महोदय, मैं अंत में अपने क्षेत्र की कुछ बातें रखूंगा. एक और बहुत बड़ा भूत है, डायवर्सन का. जो कि हमारी सरकार के ध्यान में नहीं आया है. मैं मंत्री जी से अनुरोध करूंगा कि जैसे आपने आर.बी.सी. का भूत ठीक किया है इसी प्रकार इस डायवर्सन के भूत को भी सुधारें. एक-एक किसान पर 75-75हजार, 1-1लाख रुपये डायवर्सन के आते हैं इसलिए इसमें भी संशोधन किया जाये. मेरा क्षेत्र चंबल के किनारे से लगा हुआ है. चंबल में कटाव होने के कारण कई गांव ऐसे हैं जैसे- बररेड़ गांव. उसकी 5-6 हजार की जनसंख्या थी. आज बररेड़ कोई राजस्व ग्राम तो रहा नहीं. कहीं पर्वतपुरा के नाम से, डबोखरी के नाम से, बंदरी के नाम से, भोजपुरा के नाम से, गुरजा के नाम से, जहानसिंहपुरा के नाम से, इतने गांव उस गांव के हो गए और राजस्व गांव एक भी नहीं है. इससे उनको सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. ऐसे ही ग्राम सरसेनी है उसके भी 8-10 गांव हैं. चंबल के किनारे कटाव के कारण सभी गांव ऊपर उठकर आ गए हैं और उनमें राजस्व गांव एक भी नहीं है इसलिए माननीय सभापति महोदय मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से आग्रह करूंगा कि इन गावों को राजस्व ग्राम करने के लिए नियमों में सहजता और सरलता लाई जाये. जिससे वह राजस्व ग्राम हो सकें और वहां के किसानों और ग्रामवासियों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके. मेरे पारगढ़ विधान खण्ड में कुछ गांव ऐसे हैं, उनका नक्शा नहीं है- जैसे गैतोली, कुसमानी, धोंधा,देवरा हैं इन गांवों के नक्शे गायब हैं, जो ज्यादा बाहुबली है, वह ज्यादा जमीन बो लेता है. आदमी सीमांकन कराना चाहे तो पटवारी अपने मनचाहे तरीके से सीमांकन कर लेता है, इसलिये आप इस पर भी विशेष ध्यान देंगे.
सभापति महोदय, मेरे विधान सभा क्षेत्र में एक पहाड़ी क्षेत्र है, वहां पर अवर्षा के कारण बाजरा और तिल्ली की फसल पूरी तरह से सूख गयी थी. मैंने कलेक्टर साहब से कहा कि मेरे यहां पर उसका सर्वे करवायें तो एसडीओ ने मेरे साथ सर्वे किया. उसमें 15-20 गांवों का तो मुआवजा पहुंच गया है उसके बीचोंबीच आठ-दस गांव छूट गये हैं. मैं आपके माध्यम से मंत्री जी से अनुरोध करूंगा कि एक बार पुन: उसका पटवारी और तहसीलदार से जांच करवा लें. जब बगल का गांव सूख गया है तो दूसरे गांव में हरियाली कहां से आ जायेगी. इसलिये उन किसानों को भी लाभ मिलना चाहिये. एक और निवेदन है कि मेरे यहां पर जो मजरे-टोले हैं उन्हें राजस्व ग्राम बनाया जाये. सभापति महोदय, आपने बोलने का समय दिया, बहुत-बहत धन्यवाद.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे(लांजी):- माननीय सभापति मैं मांग संख्या 8, 9, 46 और 58 पर अपनी बात रखने के लिये खड़ी हुई हूं. सभापति महोदय, हमारे माननीय मुख्यमंत्री आदरणीय शिवराज सिंह चौहान जी, हमेशा अपने भाषणों में एक बात करते हैं कि कोई भी व्यक्ति, जिसका अपना कोई मकान नहीं है, जो शासकीय भूमि पर रह रहे हैं, उनको कोई भी चाहे वह कमिश्नर हो, कलेक्टर हो या तहसीलदार हो वहां से नहीं हटायेगा.यह बात वह हमेशा अपने भाषण में कहते हैं और यह बहुत अच्छी बात है, ऐसा होना भी चाहिये. हर व्यक्ति को रहने के लिये मकान की सुविधा होना भी चाहिये, लेकिन शासकीय अधिकारी नियमों/कानूनों में बंधे हुए हैं. यदि वास्तव में सरकार की ऐसी मंशा है तो जिस तरह से वन अधिकार अधिनियम के तहत, जब केन्द्र में यूपीए की सरकार थी तो वन अधिकार अधिनियम के तहत एक निश्चित तिथि तय कर दी गयी थी कि 13 दिसम्बर, 2005 के पहले जो व्यक्ति जिस भूमि पर जिसका कब्जा है, उसको उसका अधिकार दे दिया जाये. उसी तरीके से यदि विधान सभा के अंदर भी यदि वास्तव में, ऐसी मंशा शासन की और मुख्यमंत्री जी की है तो उनको भी एक ऐसा बिल विधान सभा में लाना चाहिये और कोई तिथि निर्धारित करनी चाहिये कि इस तिथि से पहले वाले लोगों को, सभी को भूमि का अधिकार दे दिया जाये. वैसे ही सभापति महोदय, बंदोबस्त, मैं समझती हूं कि बालाघाटी जिला ही नहीं, मध्यप्रदेश में और भी कई ऐसे जिले हैं, जिसमें अभी बंदोबस्त का कार्य नहीं हुआ है. जहां तक बालाघाट की बात मैं जानती हूं, जिस समय से अंग्रेजों का शासन था, वर्ष 1911 से बंदोबस्त का काम बालाघाट में नहीं हुआ है और राजस्व के जितने भी प्रकरण हैं, उन आधे से ज्यादा प्रकरणों का निराकरण का काम तो बंदोबस्त से ही निपट जायेगा. क्योंकि बहुत पहले राजस्व के रिकार्ड में दर्ज है कि वहां बड़े झाड़ का जंगल था, छोटे झाड़ का जंगल था और आज जब हम देखते हैं तो वहां पर दूर-दूर तक कोई जंगल नहीं है. दूर-दूर तक कहीं कोई, जैसे जहां छोटे-छोटे तालाबों का जिक्र था, आज वह मैदान बन चुका है. इस तरह बंदोबस्त के काम को शासन को प्राथमिकता से करना चाहिये. मैंने भी कई बार इस बात को ध्यानाकर्षण के माध्यम से इस बात को लाना चाहा, लेकिन मुझे समझ में नहीं आता कि शासन सारी चीज को समझती है तो फिर उस पर एक्शन क्यों नहीं लेती है और वहीं मेरी लांजी विधान सभा, जहां पर एसडीएम लगभग 20 वर्षों से संचालित हो रहा है, लेकिन आज दिनांक तक उसका गजट नोटिफिकेशन नहीं हो पाया है. मैंने इस संबंध में ध्यानाकर्षण, प्रश्न भी लगाया और जहां तक मुझे याद है राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव श्री सिंह थे, उनसे जब मैं मिलने गयी और उनको बताया कि हमारे यहां के एसडीएम कार्यालय का नोटिफिकेशन नहीं हुआ है तो उन्होंने कहा कि यह तो संभव ही नहीं है. बिना गजट नोटिफिकेशन के आपके यहां पर एसडीएम कार्यालय संचालित कैसे हो रहा है. यह पीएस मुझसे कहते हैं, मैंने कहा कि यही सच्चाई है कि हमारे यहां अभी तक गजट नोटिफिकेशन नहीं हुआ है. सभापति महोदय, यह ठीक है, आपको बिल्डिंग की दिक्कत आयेगी, निर्माण में दिक्कत आयेगी, लेकिन आज एक भी एसडीएम कार्यालय के किसी भी आदेश को किसी व्यक्ति ने यदि चैलेंज कर दिया तो मुझे नहीं लगता कि शासन इस बात का कभी जवाब भी दे सकता है.यह मैं बहुत महत्वपूर्ण बात कह रही हूं.यह केवल मेरे विधान सभा क्षेत्र की बात नहीं है, शायद हमारे जो अध्यक्ष महोदय है उनके विधान सभा क्षेत्र में भी इस तरह के अंदर तहसील या एसडीएम कार्यालय का नोटिफिकेशन नहीं हुआ है. मैं आपके माध्यम से मंत्री महोदय से कहना चाहती हूं कि बार-बार शासन की जानकारी में यह बात लाने के बाद भी यदि इस तरह की बात हो रही है तो आप हमें बतायें कि हम लोग क्या अपेक्षा करें. यह तो उनकी पहली जवाबदारी बननी चाहिये. अभी हमारी बहन झूमा सोलंकी जी ने एक बात कही कि हमारे यहां पर एसडीएम, तहसीलदार हफ्ते में एक दिन टीएल होती है और हफ्ते में उनको एक बार वीडियो कांफ्रेसिंग में जाना पड़ता है. मैंने इसके पहले भी सदन में यह बात रखी थी कि आप कोई एक ऐसा अधिकारी नियुक्त कर लें कि जो टीएल और वीडियों कांफ्रेसिंग अटेण्ड कर ले. क्योंकि उसमें उनको जवाब ही तो देना है, जानकारियां ही तो शासन मांगता है. मेरा कहना है कि आप जानकारी हम से ले लीजिये. क्योंकि फील्ड से अच्छी जानकारी विधायकों से अच्छी कोई नहीं दी पायेगा. अधिकारी आप लोगों को वही जानकारी देंगे जो आप उनसे पूछेंगे. लेकिन हम तो आपको वह जानकारी भी देंगे जिससे फील्ड में भी लोगों को जानकारी आती है. ऐसे आप अपने स्टॉफ का कोई व्यक्ति नियुक्त कर दें जो इसी काम को करे. मैं अंतिम बात यही करना चाहती हूं कि आपने लोक सेवा गारंटी अधिनियम, सब चीजों पर लगा दिया है. आपको तो तहसीलदार, एसडीएम के कार्यक्षेत्र में जो सीमांकन का और इस तरह के जितने भी प्रकरण आते हैं उनको भी आपको लोक सेवा गांरटी अधिनियम के अंतर्गत ले लेना चाहिये. मैं आपको बताना चाहती हूं कि आज बहुत सारे कैसेस ऐसे ही पेंडिंग हैं, क्योंकि कई ऐसे लोग हमारे पास आते हैं, जिनको छोटे-छोटे कामों के लिये उनको कितनी बार तहसील और एसडीएम के पास जाना पड़ता है और अगली तारीख लेकर वापस आ जाते हैं और कई ऐसे प्रकरण हैं जो निपट नहीं रहे हैं. इसलिये मैं आपके माध्यम से कहना चाहती हूं कि लोक सेवा गांरटी अधिनियम के तहत इन सब चीजों को लिया जाये, ताकि गरीब लोग इन सब चीजों के लिये परेशान न हों.आपने मुझे बोलने का समय दिया, बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री दिनेश राय (सिवनी):- सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 8,9,46 और 58 के लिये बोलने के लिये खड़ा हुआ हूं. हमारे राजस्व मंत्री ताकतवर और भारी-भरकम मंत्री हैं. इनके पास बहुत बड़ा महकमा है और जिले के मुखिया, संभाग के मुखिया भी आपके अंतर्गत आते हैं और प्रदेश के भी आते हैं. अभी प्रदेश के आरआई, पटवारी और तहसीलदार तक की बात हमारे सदस्य लोग कर रहे थे कि हमारे यहां पर नहीं हैं. मैं आपको बताना चाहता हूं कि हमारे यहां पर एसडीएम और एडीएम तक नहीं हैं तो जिले मैं कैसे काम होगा. आपने लोगों को अतिरिक्त प्रभार देकर रखा है. एक एडीएम हमारा जिला पंचायत संभाल रहा है और एक एसडीएम सिवली ब्लॉक जिला और केवलारी संभाल रहे हैं और ताज्जुब की बात है कि वह काम तो क्या करते हैं, वह तो भगवान ही जाने, वह आईएएस अधिकारी हैं. पता नहीं कहते हैं कि आईएएस अधिकारी से सभी लोग डरते हैं,क्यों डरते हैं. मैं उनके बारे में बताना चाहता हूं कि उनके पास केवलारी में भी मकान है, सिवनी में भी उनके पास मकान है. केवलारी की गाड़ी का भी डीजल, पेट्रोल आ रहा है और सिवनी का भी उड़ा रहे हैं. तनख्वाह मिल रही है चालीस हजार और बीस हजार बिजली का बिल, वह कहां से पटा रहे हैं. कहीं न कहीं जनता की गाड़ी की कमाई से ही वसूल रहे हैं. जिला पंचायत में जो आपने एडीएम को बैठाया है, वह अतिरिक्त कलेक्टर की गाड़ी को लेकर घूमते हैं. सिंगरौली में एसडीएम रहे हैं, वहां कोई गिफ्ट में गाड़ी ले आया है तो वहां मुफ्त में चला रहे हैं. मैं खुल्ली बात बताना चाहता हूं कि मंत्री जी आपसे, आप इस पर जरूर ध्यान दीजिये. आप ताकतवर मंत्री हैं और आप जैसा चाहें वैसा हो सकता है.आपने हमारे वहां पर जन भागीदारी के अध्यक्ष भी बना दिये हैं, पीजी कॉलेज में. आज प्रोटोकॉल के तहत एसडीएम कोई ध्यान नहीं दे रहा है. प्रोटोकॉल में आपने वहां पर जन-भागीदारी के अध्यक्ष को विधायक से बड़ा बना दिया है. वहां पर आज की डेट में कॉलेज में आपसी में मनमुटाव और झगड़े हो रहे हैं. मैं आज सदन से चाहता हूं कि माननीय मंत्री जी आप प्रोटोकॉल के सम्मान के लिये आप विशेष ध्यान दें. वहां के एसडीएम पर कार्यवाही करें और जो कॉलेज का प्रिंसिपल है, उसके ऊपर तत्काल कार्यवाही करें. जो लोग सरकारी राशि का कॉलेज में दुरुपयोग कर रहे हैं, वे किसी भी प्रकार से इसको, उसको बुलाकर उस कार्यक्रम की गरिमा मिटा रहे हैं तथा बच्चों के बीच और हमारे तथा जनता के बीच में माहौल गंदा कर रहे हैं.
माननीय सभापति महोदय, सिवनी को सूखा घोषित करने की बड़ी उम्मीद लोगों ने पाल रखी थी. हमारा क्षेत्र सिवनी में ट्रायबल बेल्ट भी है और वहां पर ऊबड़-खाबड़ जमीनें हैं, बर्रा जमीनें हैं. यहां लोगों ने काफी उम्मीदें लगाई थी. हमारे माननीय कृषि मंत्री जी बैठे हुए हैं, हमारे क्षेत्र में आप भी गए थे, उस समय सोयाबीन के लिए आपने 100 प्रतिशत मुआवजा के लिए मान लिया था, वहां पर अभी तक मिलना प्रारंभ नहीं हुआ है, अभी कुछ लोगों से सुनने को मिला था कि मुआवजा आ रहा है, आ रहा है, यह सबके पास नहीं आया है, अभी सिर्फ हल्ला है कि मुआवजा मिलेगा, लेकिन मुआवजा मिला नहीं है. मैं चाहता हूँ कि कम से कम सोयाबीन का जो नुकसान हुआ था, उसके लिए माननीय मुख्यमंत्री जी गए थे, उन्होंने कहा कि खपड़ों का भी मिलेगा, मुर्गा-मुर्गी का भी 40 रुपये मिलेगा, लेकिन बता दें कि आपने मेरे जिले में खपड़े और मुर्गे का कितना मुआवजा दिया है ?
सभापति महोदय, अभी जमीनों की भी बात चल रही थी. एक माननीय सदस्य जी बता रहे थे कि हमारी सरकार ने बहुत कुछ दिया है लेकिन हमारे क्षेत्र में 500 प्रकरण सीमांकन के हैं. मैं पूछना चाहता हूँ कि कोई भी एक माननीय सदस्य सदस्य बता दे कि बिना पैसे लिए दिये तहसीलदार और आर.आई. सीमांकन करता हो, बिना पैसे लिए दिए आपके इस स्तर के कर्मचारी कोई की जमीन का सीमांकन नहीं करते हैं. मैं तो कहता हूँ कि मंत्री जी आप भी करवाते होंगे तो धीरे से पैसे देना ही पड़ता होगा, नहीं तो आपकी जमीन घटा-बढ़ा देते होंगे. उनके हाथ में सब कुछ है. लखनादौन के विधायक जी अभी नहीं हैं, उन्होंने कहा था कि वहां माननीय मुख्यमंत्री जी, एडीएम का बोल आए थे क्योंकि वहां पर एक पूर्व विधायक जीती थीं, उन्होंने घोषणा की थी कि हम जिला बनाएंगे, जिला नहीं बना तो एडीएम का बोला था. लेकिन वहां पर आज तक एडीएम नहीं बैठ रहे हैं, तहसील की भी घोषणा हो गई थी, जिसके कारण आपके जो पूर्व विधायक बने थे, वे इस बार हार गए. वे इसलिए हार गए कि उनके दोनों काम नहीं हो पाए. आप छोटे-छोटे क्षेत्रों को तहसील बना दें, वहां जिला बनाएं और सिवनी की सबसे बड़ी मांग है- संभाग की. माननीय मंत्री जी, भोपाल उस समय राजधानी बना था, जब जबलपुर को राजधानी बनना था. हमारे महाकौशल क्षेत्र को छीनकर आपने भोपाल बनाया, भोपाल बहुत छोटा था, आज भोपाल इतना बड़ा हो गया है. हर व्यक्ति की इच्छा है कि हमारा जिला बड़ा बने, हर व्यक्ति चाहता है कि हमारा गांव नगर परिषद् बने, नगरपालिका बने तो आपसे आग्रह है कि हमारे सिवनी के लिए आप ऐसा कुछ कीजिये, मेरा आपसे आग्रह है. एक हमारा बायपास खैरीटेक से नकझर वाला है, पता नहीं किन कारणों से वहां बेन लगा दिया गया था लेकिन न्यायालय से भी आदेश हो गया है, अब उस रोड की जगह दूसरा बायपास बन गया है, जहां जमीनों की न ही रजिस्ट्री हो रही है और न ही डायवर्सन हो रहा है, डायवर्सन में कहीं न कहीं कोई समस्या है, डायवर्सन वही लोग करते हैं, जो एसडीएम के नीचे बैठे बाबू हैं, जिनका भारी-भरकम लिफाफा पहुँच जाता है, उन्हीं का डायवर्सन करते हैं, नहीं तो नियम कानून बीच में अड़ाकर रोक देते हैं. आपने मुझे बोलने का मौका दिया, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ और मैं मंत्री जी को भी धन्यवाद देता हूँ कि आप जिले के लिए संभाग की घोषणा कर देंगे बहुत बहुत धन्यवाद.
सभापति महोदय - धन्यवाद. श्री महेन्द्र सिंह बागड़ी. श्रीमती ऊषा चौधरी बोलें.
श्रीमती ऊषा चौधरी (रैगांव) - माननीय सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 8, 9, 46 एवं 58 पर कटौती प्रस्ताव के समर्थन पर बोलने के लिए खड़ी हुई हूँ. मेरी विधानसभा क्षेत्र में मुख्यालय में तहसील कार्यालय खोला जाये क्योंकि तहसील कार्यालय न होने के कारण किसानों को और गरीबी रेखा के राशन कार्ड बनवाने वालों को बड़ी दिक्कत होती है क्योंकि आर.आई. और पटवारी वहां पर नहीं रुकते हैं तथा उनकी पदस्थापना की जाये, वहां पर अनुविभागीय अधिकारी राजस्व कार्यालय खोलने की स्वीकृति दी जाये. इसी प्रकार विधानसभा मुख्यालय रैगांव में भी विश्राम गृह का निर्माण कार्य कराया जाये क्योंकि मेरे सतना जिले में हर विधानसभा में विश्राम गृह है. मेरा रैगांव विधानसभा रिजर्व सीट है और रैगांव केवल एक छोटी सी पंचायत है. रैगांव के नाम से विधानसभा है, लेकिन वहां पर केवल एक छोटी सी पंचायत है, वहां पर आज तक कोई भी निर्माण कार्य नहीं कराया गया है, न ही विश्राम गृह है और न ही तहसील है, न ही कोई कॉलेज है. वहां पर कोई भी ऐसा काम नहीं करवाया गया है जिससे रैगांव का नाम ऊँचा हो. मैं माननीय मंत्री जी से निवेदन करूँगी कि मेरे विधानसभा मुख्यालय में विश्राम गृह बनवाया जाये. इसी प्रकार रैगांव मुख्यालय में पटवारी भवन और आर.आई. क्वार्टर का निर्माण कार्य कराया जाये, यह बहुत आवश्यक है. जिससे मुख्यालय में पटवारी और आर.आई. उपस्थित रहकर किसानों और गरीबों की समस्याओं को सुलझा सकें. मेरे प्रश्नों के माध्यम से बहुत बड़े-बड़े राजस्व घोटाले उजागर हुए हैं. सुनौरा ग्राम में 1600 एकड़ का एक राजस्व घोटाला था, माननीय मंत्री जी ने उसको सरकारी कराया था, मैं उन्हें धन्यवाद देती है पर आज तक उन अपराधियों पर मुकदमा कायम है, पर गिरफ्तारी नहीं हुई है. इसी तरह मेरी विधानसभा के सोहावल गांव में एक चौरसिया हैं, जिसने पेपलेट सिटी भी बनाई है और एक सिटी और बनाई है, जिसमें सरकारी सतनालों पर कब्जा करके उसने पूरी बिल्डिंग बना दी है, बाउण्ड्री भी बना दी है और वहां बाढ़ की स्थिति भी आ जाती है क्योंकि वह सतनाला था, नदी को जोड़ता था और बाढ़ में आधी बिल्डिंग डूब जाती है. वहां लोगों ने पैसा भी मांगा था, उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई. मैंने कई बार प्रश्न भी लगाया है, लेकिन माननीय मंत्री जी से मैं चाहूँगी कि उस पर भी कार्यवाही की जाये. उसने ग्वालियर न्यायालय में एविडेंस दिया है, लेकिन सरकार ने अपना कोई पक्ष नहीं रखा.
माननीय सभापति महोदय, माननीय मंत्री जी से मेरा अनुरोध है कि मेरी विधानसभा क्षेत्र कोठी से लेकर उदयसागर के लिए 6 किलोमीटर की सड़क बनाई गई थी, जिसमें एक किलोमीटर की सड़क अभी भी पड़ी हुई है क्योंकि उन किसानों को मुआवजा नहीं मिला है, जिन किसानों की जमीनें थी. उन किसानों का मुआवजा जिला कलेक्टर के यहां पड़ा है लेकिन आज तक उनको मुआवजा नहीं दिया गया है. उस मुआवजे की रकम का ब्याज वसूला जा रहा है. उनको मुआवजा दिया जाये ताकि एक किलोमीटर की सड़क का निर्माण भी हो जाये. वहां बरसात में चलना बहुत मुश्किल है और वहां उन चार माहों में अध्ययनरत् स्कूली बच्चों को बहुत दिक्कत होती है. इसलिए वह बहुत जरूरी है.
सभापति महोदय - कृपया समाप्त करें.
श्रीमती ऊषा चौधरी - सभापति जी, मैं एक मिनट लूँगी. मेरी विधानसभा क्षेत्र में नक्शाविहीन गांव हैं, जैसे शिवराजपुर, दुर्गापुर, मढ़ई, कलपा, खुटकाह एवं लालपुर ये सारे गांव बिल्कुल नक्शाविहीन हैं. जिस तरह अभी माननीय सदस्य कह रहे थे कि इसमें जो दबंग लोग हैं, वे अपनी ज्यादा जमीनों को जोत लेते हैं लेकिन जो गरीबों की जमीनें हैं, नक्शा न होने के कारण वे बेचारे अधीन रह जाते हैं कि हमारे साथ न्याय हो. इसी तरह कोठी नगर पंचायत में माननीय मंत्री जी ने नगर पंचायत में 30 लाख रुपये का कम्प्युनिटी हाल दिया था, लेकिन जमीन सरकारी है तथा उस जमीन का भू-भाटक 85 लाख रुपये मांगा जा रहा है. मैं माननीय मंत्री जी से निवेदन करूँगी कि 30 लाख रुपये की बिल्डिंग है और 85 लाख रुपये सरकारी जमीन का भू-भाटक लिया जा रहा है. मैं निवेदन करूँगी कि सरकारी जमीन के लिए सरकारी बिल्डिंग बनाने के लिए मुझे लगता है कि भू-भाटक की जरूरत नहीं है. माननीय मंत्री जी, आप कृपा करें कि उस जमीन को आरक्षित किया जाये. यह सरकारी काम है, सरकारी जमीन में बनाना है ताकि वह कम्युनिटी हाल बन सके. मैं एक बात और कहूँगी कि अभी मेरी विधानसभा क्षेत्र से रेल्वे लाईन जा रही है, उसमें सरकार की नीति थी कि किसानों को 60 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर का मुआवजा दिया जाना था लेकिन उसको 30 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर कैसे कर दिया गया ? तो किसानों को 60 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर का मुआवजा दिया जाये. आपने मुझे बोलने का मौका दिया, बहुत बहुत धन्यवाद.
सभापति महोदय - धन्यवाद. श्री आर.डी.प्रजापति, आप अपनी बात दो मिनट में समाप्त करें.
श्री आर.डी.प्रजापति (चन्दला) - माननीय सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 8,9, 46 और 58 के समर्थन मैं बोल रहा हूं. मैं अपने क्षेत्र के बारे में बोलना चाहता हूं. मेरी विधानसभा क्षेत्र में एक उप तहसील बझोन है, लेकिन इसमें कार्यालय न होने के कारण नायब तहसीलदार चन्दला में बैठता है और इसकी चन्दला से दूरी करीब 30-35 किलोमीटर है. माननीय सभापति महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से निवेदन करूंगा कि इस हेतु अगर चन्दला में एक भवन बनवा दिया जाये, इससे कम से कम वहां के किसानों को फायदा मिलेगा.
माननीय सभापति महोदय, मेरा दूसरा निवेदन यह है कि मेरे विधानसभा में केवल दो तहसील चन्दला और गौरीहार हैं और वहां पर तहसीलदार नहीं है, इसलिए वहां पर कम से कम एक तहसीलदार नियुक्त कर ही दिया जाये. मेरा तीसरा निवेदन है कि आर.आई. सूर्यमणि माझी यहां पर पर कई वर्ष से पदस्थ हैं और इनके ऊपर हजारों शिकायते हैं. आपने इनका स्थानांतरण करवा दिया था और वह चले भी गये थे लेकिन वह बालू में इतना लिप्त हैं कि बार-बार ऊपर से स्टे ले आते हैं. मेरा आपसे व्यक्तिगत निवेदन है कि इनका स्थानांतरण करवा दिया जाये और इन्हें किसी भी काम में कहीं पर भी लगवा दिया जाये.
माननीय सभापति महोदय, मेरा चौथा निवेदन यह है कि जनसमस्या निवारण शिविर में अधिकतर तहसीलदार, नायब तहसीलदार, आर.आई. पटवारी नहीं जाते है, जिससे शासन द्वारा दिये गये नियम और आदेश के अनुसार सीमांकन, नामांकन, फौजी नामांतरण नहीं हो पाते हैं. मेरा निवेदन यह है कि ऐसे प्रकरणों की जांच कराई जाये कि कितने वर्षों से यह नामांतरण सीमांकन और फौती नामांतरण नहीं किये गये हैं. अगर माननीय मंत्री जी इन अधिकारियों के विरूद्ध कार्यवाही करेंगे तो बहुत अच्छा होगा नहीं तो मेरा यह पिछड़ा इलाका है और यहां पर यह काम रूका ही रहेगा.
माननीय सभापति महोदय, मेरा निवेदन यह है कि कई जगह शासन द्वारा जो पट्टे दिये गये थे, वह खसरा खतौनी में तो चढ़ में गये हैं लेकिन कम्प्यूटर में नहीं चढ़े हैं, जिसके कारण शासन की जो योजना हैं उनका लाभ किसानों को नहीं मिल पाता है और किसान परेशान रहता है. मेरा निवेदन है कि जिनका नाम पंजी में है उनको जरूर चढ़वाया जाये.
माननीय सभापति महोदय, मेरी विधानसभा में दो तहसीलें हैं गौरीहार और चन्दला लेकिन यहां किसान बड़े परेशान रहते हैं. किसान इसलिए परेशान रहते हैं कि कई बालू खदाने चलती हैं और उनका माइनिंग में आज तक सीमांकन नहीं हुआ है और मुनारे नहीं बनाये गये हैं. मेरा माननीय मंत्री जी से निवेदन है कि अगर मुनारे बना दिये जायें तो किसानों की भूमि पर जबर्दस्ती जो लोग कब्जा कर लेते हैं और किसान परेशान करते हैं, उनकी भूमि पर लोग कब्जा करते हैं और अवैध उत्खनन करते हैं यह रोका जा सकता है. मैं निवेदन करूंगा कि जब भी सीमांकन हो तो मुझे भी इस सीमांकन में साथ रखा जाये, जिससे सही सीमांकन हो सके.
सभापति महोदय - अब आप अपनी बात समाप्त करें.
श्री आर.डी.प्रजापति - माननीय सभापति महोदय, मेरे क्षेत्र में सूखे की राशि अभी तक नहीं पहुंची है, वह राशि दिलाई जाये. मैं आपसे एक ओर निवेदन करना चाहता हूं कि रजिस्ट्री का 15 से 30 दिन के अंदर नामांतरण हो जाना चाहिए लेकिन मैं अपनी ही बात बता देना चाहता हूं कि दो साल बाद मेरी स्वयं की रजिस्ट्री का अभी तक नामांतरण नहीं हुआ है और आज तक मैं कब्जा नहीं ले पाया हूं. मैं बड़े दुख के साथ कहना चाहता हूं कि बवारी एक राजनगर में तहसील है. बवारी पटवारी हल्का द्वारा मेरी स्वयं की जमीन की रजिस्ट्री करवाई की गई थी और बकायदा शासन को पैसा दिया गया और शासन ने स्वीकृति दी लेकिन आज तक कब्जा नहीं मिला है. इसलिए मेरा निवेदन है कि जब मेरे जैसा आदमी कब्जा नहीं ले सकता है तो गरीब आदमी का क्या होता होगा, इस पर भी ध्यान दिया जाये. माननीय सभापति महोदय, जब तक शासकीय अमले पर लगाम नहीं लगाई जायेगी तब तक काम नहीं बनने वाला है.
माननीय सभापति महोदय, कुछ सरकारी पट्टे हैं, उनको जानबूझकर अभी तक नहीं चढ़ाया गया है. मैं यह नहीं कहना चाहता हूं कि क्यों नहीं चढ़ाया जाता है परंतु उनकी भी जांच कराई जाये. मेरी विधानसभा में जुझार नगर, केवलाहा, धवारी, कटहरा कई गांव ऐसे हैं जहां आज राजस्व में पट्टे दिये गये हैं, लेकिन वन विभाग कहता है मेरे पट्टे हैं, मेरी जमीन है. राजस्व विभाग ने जब पट्टा दिया है तो उस समय वन विभाग कहां चला गया था. अगर वह वन विभाग की जमीन है तो मेरा निवेदन है कि राजस्व की जमीन जहां खराब हो, वहां वह जमीन वन विभाग को दे दी जाये. चूंकि वहां पर सैकड़ों वर्ष से किसान काबिज है और सैकड़ों वर्ष से वह उसमें खेती कर रहे हैं इसलिए उनको वह जमीन वापस दी जाये.
माननीय सभापति महोदय, मैं एक निवेदन और करना चाहता हूं कि मेरे क्षेत्र में पड़वार, बरूआ, परई एवं पचवरा इस प्रकार के 20 गांव ऐसे है जो नदी के किनारे बसे हुये हैं और जहां ऊबड़ खाबड़ जमीन हैं. अगर शासन इस जमीन का समतलीकरण करवा दे, बहुत अच्छा होगा. चूंकि यह राजस्व की जमीन है और यहां आदमी खेती नहीं कर पाता है, अगर वहां यह समतलीकरण का काम हो जाये तो वहां पर अच्छी तरह से खेती हो सकती है.
संसदीय कार्यमंत्री (डॉ.नरोत्तम मिश्र) - सभापति जी जब आप कहते हो कि कृपया समाप्त करें तो मुझे वह दृश्य याद आता है, जब आप कहते हो कि अभी तो मैं बोलने के लिये ही खड़ा हुआ हूँ. (हंसी)
श्री आर.डी.प्रजापति - माननीय सभापति महोदय, हम जितने भी लोग पहली बार जीतकर आये हैं, वह सभी अभी सीख रहे हैं. (हंसी)
कुंवर विक्रम सिंह - माननीय सभापति महोदय, यदि आपकी अनुमति हो तो मैं इसी बात पर कुछ कहना चाहता हूं.
डॉ.नरोत्तम मिश्र - नातीराजा जी, आज आपको अनुमति की जरूरत नहीं है क्योंकि नेता प्रतिपक्ष नहीं है. (हंसी)
श्री आर.डी.प्रजापति - माननीय मंत्री जी हमारे संवेदनशील मंत्री हैं वह हमारी बातों को जरूर ध्यान रखेंगे और जो मैंने मांगे रखी हैं इस संबंध में मेरा हाथ छोड़कर निवेदन है कि पिछड़ा क्षेत्र होने के कारण और उत्तरप्रदेश की सीमा से लगा हुआ होने के कारण जहां लोग आज भी नहीं पहुंच पाते हैं, उसका आप जरूर ध्यान रखेंगे. माननीय सभापति महोदय, आपने बोलने के लिये समय दिया उसके लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री शैलेन्द्र पटेल (इछावर) - माननीय सभापति महोदय, मैं इछावर विधानसभा क्षेत्र से आता हूं और पूर्व की जो सरकार थी, उसमें राजस्व मंत्रालय इछावर के पास ही था और माननीय गुप्ता जी का भी इछावर से गहरा नाता है. उस समय का यह रिकार्ड था कि 10 से 11 प्रमुख सचिव बदल दिये गये थे. इछावर के साथ अभी अभी नया रिकार्ड बना है, हमारे यहां पिछले चार साल में सात एसडीएम बदल दिये गये हैं, न जाने क्या इछावर की विडंबना है कि पहले जब मंत्री जी हुआ करते थे तो प्रमुख सचिव बदल दिये जाते थे और अब वहां पर सातवां एसडीएम पदस्थ हुआ है. न जाने क्यों हर छ: माह चार माह में वहां का एसडीएम हटा दिया जाता है ,इस पर मैं ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता हूं क्योंकि भ्रष्टाचार की बहुत सारी बातें इस विभाग की हुई है. मेरा सीहोर जिला जो कि माननीय मुख्यमंत्री जी का ग्रह जिला भी है, उस ग्रह जिले में कलेक्टर के फर्जी हस्ताक्षर से आठ डम्पर रेत के छूट जाते हैं (शेम-शेम की आवाज) अब इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि जिले के कलेक्टर के फर्जी आदेश से थाने के टीआई डम्पर छोड़ देते हैं और बाद में उनके ऊपर कार्यवाही होती है. वह कार्यवाही कलेक्टर के एक छोटे से चपरासी पर हो जाती है और बाकी सब को बचा लिया जाता है, इससे बड़ा भ्रष्टाचार का कोई और नमूना मैं पेश नहीं कर सकता हूं.
माननीय सभापति महोदय, माननीय मंत्री जी के लिये मेरे कुछ सुझाव हैं कि आरबीसी 6 (4) में वाहन दुर्घटना में कुछ राशियों का प्रावधान है. पूर्व में वक्ताओं ने कहा कि पहले अलग-अलग दुर्घटनाओं में प्राकृतिक मौतों में अलग-अलग राशि दी जाती थी. हम सभी सदस्यों ने अलग-अलग मौके पर उस राशि को समान करने का आग्रह किया था. मैं सरकार को इस बात के लिये धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने सभी को चार लाख रूपये की घोषणा की है, उन्होंने बहुत अच्छा न्याय किया है और सबको समान रूप से राशि मिल रही है इसके लिये उन्हें बहुत-बहुत साधुवाद. मैं यह कहना चाहता हूं कि अज्ञात वाहन से दुर्घटना हो जाती है तब उनको बीमे का क्लेम भी नहीं मिल पाता है, मात्र 15 हजार रूपये उनको मिलते हैं और जो अपंग हो जाते हैं या दुर्घटना में जिनको चोटें लगती है, उनको साढ़े सात हजार रूपये मिलते हैं. मेरा आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से निवेदन है कि ज्ञात वाहन से दुर्घटना में तो बीमा मिल जाता है लेकिन अज्ञात वाहन से दुर्घटना होने पर बीमा नहीं मिलता है. मेरा निवेदन यह है कि अज्ञात वाहन से दुर्घटना होने पर भी चार लाख रूपये की राशि मिलनी चाहिए क्योंकि उसमें दुर्घटनाग्रस्त होने वाला या जिसकी मृत्यु होती है वह भी कहीं न कहीं परिवार का एक मुखिया होता है और परिवार का कमाने वाला इंसान होता है. अगर आप यह व्यवस्था करेंगे तो निश्चित रूप से बहुत अच्छा होगा क्योंकि दिन प्रति दिन दुर्घटनायें बढ़ती ही जा रही है.
सभापति महोदय, आपके माध्यम से एक और निवेदन है कि पूर्व में एक सवाल भी आया था, एक अशासकीय संकल्प भी लेकर आए थे कि जो राजस्व गांव की घोषणा होना था वह अभी तक नहीं हुई. आपने कलेक्टर के माध्यम से इसका रिकार्ड भी मांगा था और हमने रिकार्ड भेजा भी था, लेकिन वह घोषणा अभी तक नहीं हुई है. बहुत से ऐसे गांव हैं जिनको राजस्व गांव बनना है, लेकिन वे ग्राम आज तक राजस्व गांव नहीं बन पाए और वे उस क्षेत्र में आते हैं, उन्हें और बढ़ा दिया जाए. एक और महत्वपूर्ण बात है आरबीसी 6(4) के अंतर्गत जब कोई फसल जल जाती है, खासकर गेहूं की फसल तो जो राशि दी जाती है वह पुराने हिसाब से ही दी जा रही है, चूंकि अब गेहूं का समर्थन मूल्य और लागत भी बढ़ गई है और राशि 10 हजार रूपए एकड़ के हिसाब से दी जाती है और उसमें अधिकतम 20 हजार या 25 हजार रूपए से अधिक नहीं मिलता. अब ऐसे में यदि किसी किसान की 10 एकड़ गेहूं की फसल जल जाती है तो यह राशि उसके लिए ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. मैंने विधान सभा में इसमें अशासकीय संकल्प भी प्रस्तुत किया है. मंत्री जी आपसे निवेदन है कि उस राशि को थोड़ा बढ़ा दिया जाए ताकि किसानों को इसका फायदा मिल सके. मेरा एक और निवेदन है कि एक बड़ी भ्रांति लोगों में है कि पिछले वर्ष यह कहा गया है कि नई फसल बीमा योजना आ गई है अब मुआवजा नहीं मिलेगा, अभी मुख्यमंत्री जी ने मुआवजे की घोषणा कर दी है, तो पिछले साल यह आम चर्चा का विषय था, इसको लेकर सरकार अपनी नीति स्पष्ट करें कि क्या प्राकृतिक आपदा के समय मुआवजा लगातार मिलेगा या नहीं. अंत में एक बात और कहना चाहता हूं कि जब हम भ्रष्टाचार की बात करते हैं तो उसमें एक मानवीय पहलू यह भी देखना चाहिए कि हम पटवारियों को कितनी वेतन दे रहे हैं, उनको चपरासियों से भी कम वेतन दिया जाता है. यह भी एक बड़ा कारण है भ्रष्टाचार का, सरकार को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए. अंत मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि मेरे क्षेत्र में विलकिसगंज बड़ा कस्बा है और सीहोर जिला मुख्यालय होने के साथ साथ हमारी इच्छावर विधान सभा के लगभग आधे गांव का तहसील मुख्यालय भी सीहोर है इसके कारण वहां पर कार्य का अधिक भार रहता है, विलकिसगंज को अगर तहसील बनाते हैं तो निश्चित रूप से वहां के लोगों को इसका फायदा मिलेगा. माननीय सभापति महोदय, आपने मुझे बोलने का समय दिया इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
कुंवर विक्रम सिंह (राजनगर) – माननीय सभापति महोदय, मेरे विधान सभा क्षेत्र में कई ग्राम ऐसे हैं, जो बसाहटों में बसे हुए हैं और अभी राजस्व ग्राम घोषित नहीं हुए हैं. माननीय सदस्य आर.डी. प्रजापति जी कह रहे हैं वह हमारी पंचायत में हरपुरा ग्राम है जहां पर हरपुरा ग्राम बसा हुआ है वह किसी की निजी पट्टे की भूमि पर बसा हुआ है और वह अभी तक राजस्व रिकार्ड में लेख नहीं किया गया है. हरपुरा में जो जमीन माननीय सदस्य आर.डी. प्रजापति जी ने खरीदी है, वास्तविकता यह है कि उस भूमि की रजिस्ट्री एवं दाखिल खारिज सब हो गया है, लेकिन अभी तक कब्जा नहीं मिल पाया है. कब्जा नहीं मिला उसका एक कारण है, जैसे उदाहरण के लिए एक ही नंबर की रजिस्ट्री जैसे 1/60 की रजिस्ट्री आपके पास में है और 1/60 का किसी और के पास में भूमि अधिकार पुस्तिका है, यह विवाद की स्थिति है, उस विवाद का समाधान किया जाए. माननीय मंत्री जी से कहना चाहूंगा कि कलेक्टर महोदय को निर्देशित करें और उस विवाद का समाधान करें, क्योंकि इस रजिस्ट्री के प्रति ग्राम के लोगों में रोष है. जिस प्रकार से यह रजिस्ट्री और नामांतरण हुआ है, इसमें कहीं न कहीं विसंगति और त्रुटि है. मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि मेरे कर्री ग्राम में एक द्रमदा पुरबा हैं वह अभी तक राजस्व ग्राम घोषित नहीं हुआ है. इसी प्रकार से टिकरी पंचायत का शनिचरा पुरबा है, वह भी राजस्व ग्राम घोषित नहीं है. माननीय मंत्री जी मेरा निवेदन है कि मेरे विधान सभा क्षेत्र में जितने भी इस प्रकार के ग्राम, मजरा, टोला है उनको राजस्व ग्राम घोषित करने के लिए अपने अधीनस्थ अधिकारियों-कर्मचारियों को निर्देश करें. आपने मुझे बोलने के लिए समय दिया बहुत बहुत धन्यवाद. माननीय अध्यक्ष महोदय आसीन हो गए.
03:00बजे {अध्यक्ष महोदय (डॉ. सीतासरन शर्मा) पीठासीन हुए.}
श्री ओमकार सिंह मरकाम (डिण्डोरी) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं मांग संख्या 8, 9, 46 एवं 58 का विरोध करता हूं और कटौती प्रस्तावों का समर्थन करता हूं. माननीय राजस्व मंत्री जी से एक उम्मीद के साथ कुछ विषय मैं अनुरोध करना चाहता हूं. राजस्व विभाग एक ऐसा विभाग है जिसकी व्यवस्थाओं के संचालन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है और गांव में कहावत भी है- जर, जोरू, जमीन – झगड़ा की जड़ तीन. इसमें जमीन का झगड़ा ज्यादा बड़ा कारण होता है और बहुत परिवार इसको लेकर लड़ते-झगड़ते हैं. अध्यक्ष जी, मेरा निवेदन है कि जिस तरह से अभी राजस्व विभाग में कार्य की कम्प्यूटराइज्ड प्रक्रिया शुरू हुई है उससे लोगों के नामों में त्रुटि आई है और नक्शा खसरा नंबर इधर से उधर बदले हैं, इसके कारण प्रदेश के हजारों परिवार अनावश्यक रूप से न्यायालयों के चक्कर लगाकर परेशान होते हैं, लोगों के बीच में अनावश्यक विवाद बढ़ गया है, हंसता खेलता परिवार आपस में झगड़ रहा है. उदाहरण के लिए मेरे नाम की जमीन है और वह किसी दूसरे के नाम पर कम्प्यूटर की त्रुटि के कारण चली गई और मौके पर हम ही कब्जे में है, यह काम हमारी सहमति के बिना नहीं हुआ है,यह कम्प्यूटर में कार्य करने वालों से त्रुटि हुई है तो इसको आप सुधार दो, लेकिन आप इस मामले को न्यायालय भेज देते हो, इसके लिए हम वकील लगाएंगे और जमाने भर की प्रक्रिया से गुजरते हैं. इससे बहुत ज्यादा परेशानी हो रही है, अगर कम्प्यूटर की त्रुटि से किसी का नाम इधर से उधर हुआ है तो उसको सरलता के साथ सुधारने के लिए व्यवस्था करनी चाहिए या तो ग्राम पंचायतों को अधिकार दे दिया जाए जैसे पहले होता है. दूसरा, यह है कि आप लोग जो कम्प्यूटर के माध्यम से नक्शा देते है, उदाहरण के लिए किसी राजस्व सर्किल में 22 पटवारी है तो नक्शा 22 पटवारियों द्वारा दिया जाता था अब आपके पास एक कम्प्यूटर है, ऑनलाइन में लिंक फेल हो जाता है, लेकिन गांव से 60-70 किलोमीटर दूर से कोई व्यक्ति आ रहा है उसमें उस व्यक्ति की क्या गलती है. यदि आप वास्तव में कम्प्यूटर से ही नक्शा देना चाहते हैं तो प्रत्येक हल्का में पटवारी के पास कम्प्यूटर देना चाहिए ताकि लोग वहां से नक्शा खसरा ले सके तो इससे सरलता होगी. मेरा निवेदन है कि गांव के लोगों की सुविधा के लिए इसमें आप सुधार करेंगे. आपका जो राजस्व अमला है उसका जीएसटी के बाद भारी भरकम बजट आया है तो कृपा करके पटवारियों के लिए उनके हल्के में उनको आफिस बना दे ताकि लोगों को उनके आफिस और समय का पता रहे तो लोग अपना काम समय पर जाकर करवा सकते हैं. जैसे हमको पता रहता है कि विधान सभा में माननीय अध्यक्ष जी मिलेंगे तो हम विधानसभा आ जाते हैं वैसे ही किसान के लिए भी यह सुनिश्चित होना चाहिए कि उनको उनका पटवारी कहां और कब मिलेगा इसकी व्यवस्था करने का अनुरोध है. माननीय मंत्री जी आप बहुत काबिल है, भोपाल के लिए आप बजट ले लेते हो तो इस कार्य के लिए भी थोड़ा सा बजट बढ़वा लें. मेरा एक और अनुरोध है कि डिण्डोरी में एकात्म यात्रा चल रही थी 1 तारीख का दिन था वर्ष 2018 की शुरूआत थी, किसान उम्मीद के साथ बैठे हुए थे, कोई राजनैतिक आंदोलन नहीं था. हम जानते थे कि हम वहां चले जाएंगे तो सरकार वाले इस बनते काम को बिगाड़ देंगे, हमें भी पुराना अनुभव है इसलिए हम दूर ही रहे. बड़े खेद के साथ मुझे कहना पड़ रहा है एकात्म यात्रा चल रही थी, पूरा सिस्टम चल रहा था, लेकिन वहां पर 6 दिन से किसान भूख हड़ताल में बैठे हुए थे, लेकिन वहां पर कोई भी आपका आदमी उन किसानों को सुनने के लिए नहीं गए और किसान मजबूरी में एक नारा दिए कि ‘मध्यप्रदेश सरकार की क्या बढि़या तरकीब, सरकार के लोग करें मौज और किसान मांग भीख’. यही नारा के साथ किसान नये वर्ष की शुरूआत किए. मेरा एक निवेदन है कि अगर आप वास्तविकता जानेंगे तो उन किसानों के लिए राहत स्वीकृत करेंगे. विनम्रता के साथ सूखे राहत के लिए डिण्डोरी जिले में किसान आंदोलन कर रहे हैं इतना बड़ा अनर्थ न करें. नर्मदा के किनारे बसे हुए कृषक है. माननीय गुप्ता जी अगर आप वाकई किसान के हितैषी है तो डिण्डोरी के किसानों के दर्द को समझेंगे. नहीं तो हम यह कहेंगे कि – जाके पैर न फटे बवाई, वह क्या जाने पीर पराई. आप लोग कभी नांगर जोते नहीं हो, हम लोग नांगर जोतने वाले हैं. माननीय अध्यक्ष महोदय जी, आप आए और मुझे भी आपके दर्शन हो गये, आपने मुझे बोलने का समय दिया इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय – मरकाम जी आप भी बहुत दिनों में आए हैं. श्री सुंदरलाल तिवारी जी अपनी बात रखें.
डॉ. गोविन्द सिंह --अध्यक्ष महोदय, तिवारी जी अभी उपस्थित हैं सुबह जब इनका महत्वपूर्ण प्रश्न था तब उपस्थित नहीं थे. अंतरराष्ट्रीय महत्व का प्रश्न था. कहां गायब हो गये थे.
श्री सुन्दरलाल तिवारी -- अध्यक्ष महोदय, गायब नहीं हुये थे बहुत आवश्यक काम था इसलिये गये थे.
डॉ.नरोत्तम मिश्र- अध्यक्ष महोदय, जानकारी आनी चाहिये क्योंकि उनके दल के सदस्य इस बात को उठा रहे हैं.गोविंद सिंह जी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं.
डॉ.कैलाश डाटव-- अध्यक्ष महोदय मैं भी डॉक्टर गोविंद सिंह जी की बात का समर्थन करता हूं.
अध्यक्ष महोदय-कृपा करके तीनों डॉक्टर बैठ जायें. तिवारी जी संक्षेप में प्रारंभ करें.
श्री सुंदरलाल तिवारी (गुढ़) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, संक्षेप में ही बात करने का प्रयास करूंगा. अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से मंत्री जी से कुछ निवेदन करना चाहता हू कि हमारे जिले में बहुत से कस्बों में चेक आबादी स्थित है. चेक आबादी का मतलब हुआ कि पूरी जमीन सरकार के नाम पर है केवल उसमें आबादी लिखी हुई है और उन जमीनों की रजिस्ट्री नहीं होती है. जो जहां कब्जे में है, या आपस में एक दूसरे से बात करके एक दूसरे को बेच देते हैं और वह उसमें जाकर के काबिज हो जाता है. लेकिन रजिस्ट्री नहीं है, कोई मालिक नहीं है, मालिक शासन है लोग घर बनाये या नहीं तो आजादी के बाद से यह स्थिति हमारे रीवा जिले की है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा यह कहना है कि इस विषय पर कई बार बात आई लेकिन यह दुर्भाग्य रहा कि आज तक उसमें कोई निर्णय सरकार के द्वारा नहीं लिया गया. आप यह कह सकते हैं कि कांग्रेस की सरकार ने नहीं लिया लेकिन अब आपको भी 15 वर्ष होने जा रहे हैं केवल एक बहाना कि कांग्रेस ने क्यों नहीं कर लिया था सुधार इसलिये हम भी नहीं कर रहे हैं. यह जबाव नहीं होगा.(राजस्व मंत्री द्वारा बैठे बैठे यह कहने पर कि "ऐसा जबाव नहीं दूंगा") धन्यवाद परंतु मेरा यह कहना है कि चेक आबादी की जो समस्या पूरे प्रदेश में है या हमारे जिले में इसका निदान करने का कष्ट करें.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी से यह भी अनुरोध करना चाहता हूं कि पट्टे के नाम पर जो सरपट्टा बांटा जा रहा है, अध्यक्ष जी मैंने पट्टे को सरपट्टा इसलिये कहा कि एक फार्म बनाकर के गरीबों को दे दिया जाता है कि यह लो तुम आज से पट्टेदार हो गये हो, लेकिन रीवा जिले में एक भी चाहे वह अनुसूचित जाति का हो चाहे अनुसूचित जनजाति का हो या पिछड़ा वर्ग का हो, जिनको पट्टे दिये गये हैं उनकी खसरे में कहीं कोई एन्ट्री नहीं है कि कौन सी जमीन इनको मिली है क्या इसका खसरा नंबर है और जब कभी वह बैंक में जाते हैं या उसके माध्यम से सरकार की किसी योजना का लाभ लेने का प्रयास करता हैं तो खसरे की नकल निकालते हैं तो उसमें उनका कब्जा तो लिखा नहीं है उसमें कोई एन्ट्री हैं नहीं तो उनको योजना का कोई लाभ नहीं मिल पाता है इसलिये मैं माननीय मंत्री जी से कहना चाहता हूं कि जो पट्टा आपने अनुसूचित जाति का हो चाहे अनुसूचित जनजाति का हो या पिछड़ा वर्ग का हो, भूमिहीन को दिया है उसकी एन्ट्री खसरे में कराने की कृपा करें.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी से एक और निवेदन करना चाहता हूं कि यह आपकी बेदखली के जो नियम हैं वह काफी पुराने चले आ रहे हैं जब से लेंड रेवेन्यू कोर्ट बना है उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, तो आज तक अगर कोई शासन की जमीन में जबरदस्ती किसी ने कब्जा कर लिया , या किसी की निजी जमीन पर किसी ने कब्जा कर लिया , मुकदमे आपके यहां जरूर चलते हैं और कई बार बेदखली के आदेश भी तहसीलदार के द्वारा दे दिये जाते हैं लेकिन बेदखली की कार्यवाही मौके पर कभी नहीं होती जिससे बेदखल हो जायें और जिसकी वो जमीन है उसको वह वापस मिल जाये. केवल मुकदमेबाजी चलती है , एक स्थिति यह है. इसमें भी सरकार की तरफ से कार्यवाही की जानी चाहिये.
माननीय अध्यक्ष महोदय, लोक सेवा गारण्टी की बात यहां पर आई . यह लोक सेवा गारन्टी में बहुत बड़ी बड़ी बातें की. मेरा कहना है कि लोक सेवा गारन्टी लूट की गारन्टी है. हमने 30 या 40 रूपये दिये कि हमें ब्लाक से यह रिकार्ड चाहिये. या हमारा गरीबी रेखा में नाम लिखा जाये, हमने उसमें पैसा डाल दिया 50 रूपये हमारे चले गये, अब वह चला जाता है ब्लाक में, सीईओ के कार्यालय में हमारा आवेदन पत्र चला गया, और एक माह के बाद या जो भी निर्धारित अवधि है उसके बाद वह आवेदन पत्र लोटकर के आता है कि आपका फार्म रिजेक्ट हो गया है. मंत्री जी इस संबंध में मेरा आपसे कहना है कि इस साफ्टवेयर में, क्योंकि मैंने पहले भी निवेदन किया था आज फिर से आपसे निवेदन कर रहा हूं कि ऐसा साफ्टवेयर लोड करें जो कि स्टेटस बताये, प्रकरण की स्थिति बताये. साफ्टवेयर इस तरह तैयार करें कि जैसे अगर हमने कहा है कि हमारा नाम गरीबी की रेखा में लिखा जाये, या कोई अभिलेख मुझे उपलब्ध कराये जायें तो उसमें स्टेटस में बताये कि मैंने आवेदन देने में या प्रपत्र लगाने में क्या कमी कर रखी है, या मैंने कौन सा कागज नहीं दिया है जिसकी वजह से यह हमको उपलब्ध नहीं हो पा रहा है जिससे 6 से 7 दिन के अंदर जो हमारी कमी है उसको अगर हम आफिस में उपलब्ध करा दें तो हमें वह रिकार्ड मिल जाये.तो यह पुराना साफ्टवेयर जो आपका है इसमें ऐसा सुधार करवायें कि आवेदन पत्र हमारा कहां लंबित है उसकी क्या स्टेटस है और आफिस हमसे क्या अपेक्षा करता है यह भी जानकारी उसमें मिलती रहे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी से एक निवेदन और करना चाहता हूं नामांतरण, फौती नामांतरण की बात भाई आर.डी.प्रजापति जी ने की है इस पर भी मैं कहना चाहता हूं. यह लूट का बहुत बड़ा धंधा है. किसी ने रजिस्ट्री कराई उसका एग्जीक्यूशन करना है पट्टा होना है, न तो लेंड रेवेन्यू कोर्ट में इसका प्राविजन है न इसका कोई प्राविजन आरबीसी एक्ट में है क्या होता है कि हमने रजिस्ट्री कराई और करवाकर के तहसीलदार के कार्यालय में दे दी और तहसीलदार को जब हमने दे दिया तो तहसीलदार उसको रख लेते हैं और एक नया मुकदमा शुरू कर देते हैं, दूसरे पक्षकार को बुलायेंगे मुकदमा शुरू हो गया, अब वो बोलेंगे इनका पट्टा कर दो कोई बोलेगा कि नहीं कर देंगे. रजिस्ट्री अपनी जगह पर है क्योंकि रजिस्ट्री तो केंसिल हो नहीं सकती है उसके लिये तो सिविल कोर्ट जाना पड़ेगा और उसको एक मुकदमे का रूप दे दिया जाता है और तहसीलदार के न्यायालय में वह लंबित रहता है तो जो यहां पर अभी कहा गया है कि अगर हमारी रजिस्ट्री है तो उस पर तुरंत एक निश्चित अवधि के अंदर उसमें नामांतरण हो जाना चाहिये या कोई आदेश तहसीलदार ने किया एसडीएम ने किया कमिश्नर ने किया तो रिकार्ड में उसकी एन्ट्री तुरंत हो जानी चाहिये, पटवारी की यह जवाबदारी होनी चाहिये कि कमिश्नर या रेवेन्यू बोर्ड के जो आदेश हुये हैं उसकी एन्ट्री खसरे में हो जाये न कि तहसील में फिर से मुकदमा चलने लगे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी से एक और निवेदन करना चाहता हूं कि रीवा जिले की एक बड़ी समस्या है और लेंड रेवेन्यू कोर्ट में भी इसकी कोई व्यवस्था नहीं है. एक शहर है. उदाहरण के लिये रीवा शहर को ले लें. उस शहर में जितनी जमीन है यह देखा गया है कि सरकारी दफ्तर बन गये, सरकारी जमीनें बिल्डरों को दे दी गईं, अब शहर के अंदर कोई जमीन खाली नहीं है, आखिर यह कौन से मापदंड हैं कि हमारा शहर अगर पांच किलोमीटर के रेडियस में बसा हुआ है, या 10 किलोमीटर के रेडियस में हमारा शहर बसा हुआ है , वहां एक पार्क नहीं है, बच्चों को खेलने के लिये एक मैदान नहीं है, अगर गांव के बुजुर्ग और युवा खेलना चाहें, दौड़ना चाहें, मार्निंग वॉक करना चाहें तो 10 किलोमीटर के एरिया में कहीं पर कोई जमीन नहीं है, कोई सार्वजनिक काम करना चाहें तो उसके लिये भी कोई जमीन नहीं है लेकिन अगर कोई बिल्डर लेना चाहे तो बिल्डर के लिये पूरी की पूरी जमीन उपलब्ध है वह चाहे जहां ले ले. तो मेरा मंत्री जी से यह निवेदन है कि इसके लिये क्या लेंड रेवेन्यू कोर्ट में कोई नियम बनेंगे ?
माननीय अध्यक्ष महोदय, दो मिनट में अपनी बात को समाप्त कर रहा हूं. मंत्री जी अपने जबाव में बतायें कि हमारे शहर रीवा की कितनी जमीन समदड़िया नामक बिल्डर को दे दी गई है. इसी विधानसभा में मैंने पांच प्रश्न लगाये हैं लेकिन दुर्भाग्य है कि आज तक मुझे यह जबाव नहीं मिला कि समदड़िया नामक बिल्डर को रीवा शहर की कितनी जमीन दे दी गई है. यह पीड़ा हम प्रजातंत्र के मंदिर में बता रहे हैं..
अध्यक्ष महोदय-- अब कृपया समाप्त करें, आपकी सारी बात आ गई. बैठ जाइये.
श्री सुंदरलाल तिवारी-- यह बिल्डर क्या सरकार से बड़े हो गये. यह इतने मजबूत हो गये कि सरकार विधान सभा में इनका जवाब नहीं देना चाहती.
अध्यक्ष महोदय-- बस अब बैठ जायें. भारत सिंह जी आप बोलिये.
श्री भारत सिंह कुशवाह (ग्वालियर ग्रामीण)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मांग संख्या 8, 9, 46 का मैं समर्थन करने के लिये खड़ा हुआ हूं. माननीय अध्यक्ष महोदय, पहले तो मुख्यमंत्री जी को, मंत्री जी को इस बात के लिये धन्यवाद देना चाहूंगा कि राजस्व विभाग की तरफ से पूरे मध्यप्रदेश में जो अभियान फोती नामांतरण और बंटवारों का चलाया गया था, वह बहुत ही सफल रहा है और लोगों के मौके पर काम भी हुये हैं. मेरा एक और सुझाव है कि नगर निगम सीमा से 8 किलोमीटर की दूरी के अंदर भू-अधिकार पट्टे जो गरीब लोगों को मिलना चाहिये, उन पर प्रतिबंध है. मेरा आपके माध्यम से मंत्री जी से यह अनुरोध है कि जब आप ग्रामीण क्षेत्र में भू-अधिकार पट्टा दे रहे हैं, शहर में भी आप देने का काम कर रहे हैं तो 8 किलोमीटर के बीच का जो दायरा है वह भी इस भू-अधिकार पट्टे में सम्मिलित किया जाये, ऐसा मैं आपके माध्यम से अनुरोध करना चाह रहा हूं और माननीय मंत्री जी से एक अनुरोध और करना चाहूंगा कि मेरा पूरा क्षेत्र ग्रामीण है और ग्रामीण लोग मेरी मुरार तहसील में काम के लिये आते हैं जो लगभग 50 किलोमीटर दूरी पर है. विभाग के द्वारा एक प्रस्ताव राजस्व विभाग को भेजा गया है कि एक तहसील हस्तनापुर में स्वीकृत करके प्रारंभ करने की कृपा करें ऐसा मैं माननीय मंत्री जी से अनुरोध करता हूं. अध्यक्ष महोदय, आपने मुझे बोलने का मौका दिया, बहुत-बहुत धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय-- सखलेचा जी सिर्फ एक मिनट.
श्री ओमप्रकाश सखलेचा (जावद)-- जी अध्यक्ष जी, मैं सिर्फ एक छोटा सा सुझाव दे रहा हूं. वर्ष 2013 में सेडे़-मेड़े की जमीन किसान और सड़क के बीच की जमीन को निजी उसी व्यक्ति को लीज पर देने का अधिनियम बनाया था, लेकिन उसकी नियमावली आज तक नहीं आई है, 5 साल होने आये हैं, ऐसे हजारों किसानों के विवाद हैं जिनकी जमीन पर उनका कब्जा है और वह सरकार के किसी काम की नहीं है, अविवादित, तो उसमें यह लाइन थी ''अविवादित सेड़े-मेड़े की जमीन उस किसान को लीज पर दी जाये'', उसकी नियमावली अगर आप दे देंगे तो हजारों किसान का हमारे क्षेत्र में, चावला जी के क्षेत्र में भी है और हमारी सभी से चर्चा हुई आप उसके बारे में भी कुछ बोलेंगे तो अच्छा लगेगा. धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय-- सुखेन्द्र सिंह जी, कोई भी एक बात करना बस.
श्री सुखेन्द्र सिंह (मऊगंज)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, हमारे रीवा जिले में मऊगंज हमारी विधान सभा है. लगातार जिले की बात आ रही है, हमारे क्षेत्र के किसान, आम जनमानस समय-समय पर लगभग 15-20 वर्षों से जिले की मांग उठाते रहते हैं. वैसे मैंने बजट भाषण में भी यह बात बोली थी, लेकिन पता चला है कि निवाड़ी के जिला बनने की कवायद चल रही है या और भी जिले, लेकिन मऊगंज प्राथमिकता के तौर पर करें, यह पूरे प्रदेश में प्राथमिकता रखता है. माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से मंत्री जी से अनुरोध है कि जब भी कोई जिला बने तो मऊगंज को प्राथमिकता से ध्यान में रखा जाये. आपने बोलने का अवसर दिया, धन्यवाद.
राजस्व मंत्री (श्री उमाशंकर गुप्ता)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं धन्यवाद देता हूं लगभग सवा बारह बजे से राजस्व विभाग पर हम सब चिंतन कर रहे हैं और माननीय सर्व श्री रामपाल सिंह जी, हेमंत खंडेलवाल जी, गोविंद सिंह जी, इंदर सिंह जी, रजनीश सिंह जी, रामलाल जी रौतेल, सुखेन्द्र सिंह जी दो बार, कैलाश जाटव जी, मानवेन्द्र सिंह जी, यादवेन्द्र सिंह जी, दुर्गालाल जी विजय, फुंदेलाल जी मार्को, बहादुर सिंह चौहान जी, श्रीमती झूमा सोलंकी जी, श्रीमती शीला त्यागी जी, सूबेदार सिंह जी, सुश्री हिना कावरे जी, दिनेश राय मुनमुन जी, श्रीमती ऊषा चौधरी जी, आर.डी. प्रजापति जी, शैलेन्द्र पटेल जी, नातीराजा जी, ओमकार सिंह मरकाम जी, सुन्दरलाल तिवारी जी, भारत सिंह जी और ओमप्रकाश जी सखलेचा जी इन सभी माननीय सदस्यों ने अनेक बहुमूल्य सुझाव भी दिये हैं और काम में आ रही कुछ कठिनाईयों के बारे में भी यहां अपनी बात रखी है. मैं सभी का स्वागत करता हूं. मैंने सामान्यत: सभी बातें नोट की हैं और उनको विश्वास दिलाता हूं कि उसमें जो व्यवस्था में सुधार कर सकते हैं, उसको करेंगे. माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आज अपनी बात की शुरूआत इससे करना चाहता हूं कि आप और आपसे पहले भी जो भी अध्यक्ष रहे इस विधान सभा के हमेशा हम पर एक आरोप लगता रहा आप उसको सहन करते रहे कि राजस्व विभाग के जवाब नहीं आते. पिछले सत्र से हमारा प्रयास है और इस सत्र में भी लगभग शत-प्रतिशत प्रश्नों के जवाब दिये हैं, जानकारी एकत्रित की जा रही है, इस प्रकार की व्यवस्था हमने खत्म कर दी है, इससे आपको आनंद होगा. पिछली विधान सभा के समय के अपूर्ण प्रश्न थे वह 601 थे उसमें अभी तक 580 के जवाब भेज चुके हैं केवल 21 रह गये हैं, वह भी अगले सत्र तक मुझे विश्वास है कि उसकी पूर्ति कर देंगे, तो कोई अपूर्ण प्रश्न की जानकारी का शेष नहीं रहेगा. आश्वासन भी 297 उसमें से 255 की पूर्ति कर भेज चुके हैं, केवल 42 रह गये हैं. उसमें हमारी कोशिश है कि अगले सत्र तक हम उनको पूरा कर देंगे. हमसे संबंधित तो नहीं हैं, लेकिन लोक लेखा समिति के लिये ऑडिट कंडिकाओं की जो आपत्ति हमारे विभाग की 72 लंबित थी उसमें से 55 की पूर्ति कर चुके हैं. 17 शेष रह गई है उसकी पूर्ति का अभियान चला रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय, कुछ प्रमुख बातें आई हैं मैं अपनी और बात कहूं इससे पहले हम राजस्व विभाग में काफी परिवर्तन कर रहे हैं, क्योंकि मेरा ऐसा मानना है कि व्यवस्था में सुधार करना पड़ेगा, अमले की पूर्ति करनी पड़ेगी. आज जो भी टेक्नॉलॉजी उपलब्ध है उसका पूरा उपयोग हम करेंगे तो अनेक समस्याओं का निदान हो सकेगा. उसमें हमने लगातार कोशिश की है. इस बार दुर्भाग्य से सूखा पड़ा है अनेक माननीय सदस्यों ने कहा है हमने 18 जिलों की 133 तहसीलें केन्द्र सरकार के सूखा प्रभावी मापदंड में आती हैं, घोषित की हैं. हमने 1582 करोड़ रूपये का आवंटन जिलों में भेज दिया है उसमें से लगभग मेरे पास जानकारी है लगभग 356 करोड़ की राशि का वितरण हो चुका है और शेष राशि लगभग एक माह में वितरित की जाएगी. माननीय मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है सिंचित फसलों पर प्रति हैक्टेयर 15 हजार रूपये मुआवजा था उसको बढ़ाकर 30 हजार रूपये एकदम दुगना कर दिया है ताकि किसानों को लाभ मिल सके. एक बात उठी है कई बार जनहानि के मामले रहते हैं. पहले बहुत कम मुआवजा दिया जाता था और उसमें भी काफी समय लगता था हमने उसको बढ़ाकर 4 लाख रूपये कर दिया है. यह पॉवर पहले कलेक्टर को था इसलिये उसमें काफी समय लगता था हमने उसमें आदेश जारी कर दिये हैं. यह पॉवर अब एस.डी.एम को दे दिये हैं ताकि वहीं से राशि स्वीकृत हो जाएगी इसमें लोगों को परेशान नहीं होना पड़ेगा. आप जानते हैं कि 1.10.2016 से राजस्व मामलों को कम्प्यूटराईज्ड किया है. आर.सी.एम.एस.सिस्टम लागू किया है. इसके कारण मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि जब हम रिव्यू करते थे तो उसमें जानकारी आती थी कि कोई प्रकरण लंबित नहीं हैं, जब हम क्षेत्र में जाते थे तो अनेक नामांतरण, बंटवारे, सीमांकन के प्रकरणों की शिकायतें मिलती थीं. रिकार्ड में कुछ होता नहीं था उसमें पता चलता था कि उसमें से किसी को रिकार्ड में ही नहीं लिया गया है. कहीं आवेदन पटवारी के बस्ते में पड़े हैं, कई प्रकरण तहसील में पड़े हैं, लेकिन इसमें आर.सी.एम.एस.सिस्टम लागू होने से हमने पिछला भी रिकार्ड भी दर्ज कराया है और नये आवेदन भी दर्ज कराये हैं. अब तहसील में अथवा पटवारी के पास जाने की जरूरत नहीं है ऑनलाईन भी आवेदन दे सकते हैं उनको रजिस्ट्रेशन नंबर मिल जाता है उसका आप स्टेटस भी देख सकते हैं. ऐसे 16 लाख 50 हजार प्रकरणों का निपटारा इस समय किया है. आपको ज्ञात ही है कि अभी मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हमारे सभी प्रमुख सचिव एवं अन्य अधिकारी हर संभाग में गये हैं, दो-दो बार होकर आये हैं, समीक्षा की है, इन मामलों के बारे में देखा है. इस अभियान में करीबन 12 लाख मामलों का निपटारा हमने किया है. निश्चित ही इससे किसानों को राहत मिलेगी. कई माननीय सदस्यों ने कहा कि रजिस्ट्री हो गई,नामांतरण नहीं हुआ. दूसरी रजिस्ट्री हो रही है. एक हमने वेबसाईट डेव्लहप किया है. अभी ट्रायल में है. अप्रैल में उसकी पूरे प्रदेश में लांचिंग कर देंगे कि जैसे ही रजिस्ट्री होगी वहीं एक स्लिप उसको उस रजिस्ट्री के साथ मिलेगी उसमें लिखा होगा कि आपका नामांतरण का प्रकरण दर्ज कर लिया गया है. आप संबंधित तहसील में संपर्क करें. हम एकदम तो नामांतरण तो नहीं कर सकते क्योंकि कहीं कोई विवाद या कोई आब्जेक्शन है,बुलाना हमारी बाध्यता है लेकिन यह नामांतरण का प्रकरण दर्ज हो जायेगा और हमने पंजीयन विभाग को यह आग्रह किया है कि जब पंजीयन के लिये कोई व्यक्ति जाये उस समय हमारे रेवेन्यू की वेबसाईट पर पंजीयन विभाग यह देखे कि जो रजिस्ट्री कराने आया है उसी के नाम वह प्रापर्टी रेवेन्यू के रिकार्ड में है कि नहीं और उसके नाम पर है तो रजिस्ट्री करे नहीं तो उसकी क्वेरी करे. वास्तविकता को देखे. यह आग्रह भी हमने पंजीयन विभाग से किया है और मुझे लगता है कि यह व्यवस्था भी इसमें शुरू हो जायेगी. अभी जो एक ही प्लाट,एक ही प्रापर्टी की रजिस्ट्री अनेक बार हो गई. इस समस्या से बहुत बड़ी राहत जनता को मिलेगी. हमने पिछले साल माननीय मुख्यमंत्री जी के निर्देश पर खसरा,खतौनी की नकल नि:शुल्क घर पहुंचायी है और करीब 4 करोड़ 20 लाख से अधिक खसरा,खतौनी की नि:शुल्क प्रतिलिपि हमने उपलब्ध करायी है. कहीं जाने की जरूरत नहीं है. साल में एक बार पर्याप्त होता है. एक बार किसान को खसरा,खतौनी की नकल किसान को मिल जाये तो फिर उसको उसकी जरूरत नहीं रहती है. बाद में कोई लेनदेन,बिक्री होती है तो ही जरूरत पड़ती है और हम इससे आगे जा रहे हैं और हम बहुत जल्दी इस खसरा,खतौनी का पूरा रिकार्ड मोबाईल एप पर दे देंगे और वह उपलब्ध रहेगा पब्लिक डोमेन पर.जिसको जब चाहिये वह अपना प्रिंट निकाल ले,कोई शुल्क नहीं है और इस व्यवस्था पर बहुत तेजी से काम चल रहा है.
श्री ओमप्रकाश सखलेचा - एक मिनट,डिजिटल साईन सर्टिफाई के लिये अटके हुए हैं जिसके कारण नकल निकलने के बाद भी वेरीफाई नहीं होती है.
श्री उमाशंकर गुप्ता - आपको मौका था. अभी नहीं बोलेंगे तो ज्यादा सुविधा होगी. बाद में लिखकर दे दीजिये उस पर मैं जरूर ध्यान दूंगा अगर कोई कठिनाई है. तो अब खसरा,खतौनी की नकल जो हम फ्री में बांट रहे थे. अब इसकी भी जरूरत नहीं रहेगी. मोबाईल एप पर हम दे रहे हैं जब जिसको जरूरत हो निकाल ले कहीं जाने की जरूरत नहीं है. यह व्यवस्था भी हम बहुत जल्द लागू करने जा रहे हैं. हमारे यहां अमले की कमी है इसे मैं स्वीकार करता हूं और इसलिये लगभग दुगुने, यानी 9 हजार पटवारी हमारे यहां काम नहीं कर रहे, लेकिन 9 हजार पटवारियों के नये पद स्वीकृत हुए थे. उनकी व्यापम में परीक्षा हो गई है रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं. इस सप्ताह में आ जायेगा और अप्रैल से हम उनकी ट्रेनिंग का काम शुरू कर देंगे तो पटवारियों के जो खाली पद पड़े हैं क्योंकि आप और हम जानते हैं कि रेवेन्यू के पटवारी,आर.आई.,नायब तहसीलदार इनको अपने काम के अलावा और भी कामों में लगना पड़ता है और इसलिये अमले की कमी के कारण भी कई काम विलंब से होते हैं. उसको भी हम कर रहे हैं. 400 से ज्यादा नायब तहसीलदारों का चयन पी.एस.सी. से हो गया है. उनकी पदस्थापना भी हम शीघ्र करने जा रहे हैं. पटवारियों को स्मार्ट फोन हमने दिये हैं लेकिन अब बस्ता प्रथा खत्म हो,हम उसके लिये लेपटॉप धीरे-धीरे उनको देने जा रहे हैं और उस लेपटॉप में सारी जानकारी उनके पास उपलब्ध रहेगी और ई बस्ते के रूप में लेपटॉप का उपयोग हो जायेगा. भू-राजस्व,भू-भाटक के आनलाईन जमा करने की व्यवस्था भी हम शुरू कर रहे हैं और इस कारण कार्यालयों में जाने की जरूरत नहीं पडे़गी. विभाग का सारा जो हमारा अमला है उनको हम सी.यू.जी.ग्रुप में हम फोन दे रहे हैं, एक ग्रुप में यदि फोन रहेंगे तो अफसरों को आपस में बात करने में दिक्कत नहीं रहेगी. लोगों के पास वह नंबर रहेंगे वह नंबर उस स्थान के लिये रहेंगे अगर व्यक्ति ट्रांसफर होगा तो उसके साथ वह नंबर नहीं जायेगा. जो आयेगा उसी के पास वह नंबर रहेंगे. यह व्यवस्था भी हम बहुत जल्दी शुरू कर रहे हैं. सीमांकन की बातें बहुत आई हैं. पेंडिंग की बातें भी आई हैं. हम यह निर्णय कर रहे हैं कि प्रायवेट लोगों से भी हम सीमांकन करा सकेंगे और इतना ही नहीं अगर कोई अविवादित सीमांकन है किसी माननीय सदस्य ने कहा था. यह व्यवस्था भी हम कर रहे हैं कि सीमांकन करने वाले लोगों को हम लाईसेंस देंगे. रजिस्ट्रेशन करेंगे और अविवादित मामले का सीमांकन करके तहसीलदार को पेश करेगा और कोई विवाद नहीं तो सीमांकन को जायज मानकर उसको भी जारी कर देंगे ताकि यह आसानी भी लोगों को हो जाएगी. आवासीय पट्टे का 26 जनवरी से पूरे प्रदेश में अभियान चल रहा है. इसमें जो कुछ अभी श्री भारत सिंह जी ने बात उठाई थी कि नगरीय क्षेत्र में समस्या थी. हमने आज ही निर्णय लिया है, दिनांक 31.12.14 तक के कब्जेदारों के पट्टों का तो हम कर ही रहे हैं. नेशनल हाईवे में भी एक कि.मी. तक अभी पट्टे नहीं देने की व्यवस्था थी, उसको हम 500 मीटर पर ले जा रहे हैं और नगरीय क्षेत्र में जो 16 कि.मी. में पट्टे नहीं देने की व्यवस्था थी, उस बंधन को हम समाप्त कर रहे हैं. यह व्यवस्था कैबिनेट में हुई है. विधेयक के रूप में लेकर हम आपके सामने आएंगे. वह सुविधा भी हम देने जा रहे हैं. अधिकारियों, कर्मचारियों के 666 आवास हम बना रहे हैं और उसके लिए राशि की व्यवस्था भी इस बार की है. समाधान एक दिवस, किसी माननीय सदस्य ने बात की थी कि कई दिन वहां पर जाना पड़ता है, इसके अंतर्गत 4 सेवाएं लागू की हैं, खसरा, खतौनी, नक्शा प्रदाय. एक ही दिन में उसी दिन एप्लाई करेगा, उसी दिन ये उसको मिलने की व्यवस्था कर दी है. राजस्व न्यायालयों के न्यायालयीन प्रकरणों की नकल भी देने की व्यवस्था की है, इसमें फीस की बात भी आई थी कि कई बार ज्यादा लम्बा आदेश होता है उसको हम यह करने जा रहे हैं कि आदेश कितना ही लम्बा हो, 100 रुपये उसकी फीस निश्चित करने जा रहे हैं ताकि पेज के आधार पर समस्या नहीं होगी. फसल कटाई प्रयोग के लिए गिरदावरी की हमने ऑन-लाइन व्यवस्था की है और इसमें अब हम यह भी व्यवस्था करने जा रहे हैं कि किसान खुद उसमें अपनी क्या फसल बोई है, इसकी प्रविष्टि कर सकेगा और एक निश्चित समय सीमा में पटवारी उसको वेरिफाई कर लेगा और नहीं तो किसान ने जो लिखा है, उसकी को हम सहमत मान लेंगे. एक बहुत बड़ा जो हम काम करने जा रहे हैं. हम जानते हैं कि भू-राजस्व संहिता, 1959 तब से ही चल रही है और उसमें बहुत-सी विसंगतियां आ गई हैं, बहुत से नियम-कायदे व्यवस्थाएं आधुनिक तकनीक आ गई है और इसलिए हमने भूमि सुधार आयोग के अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक वरिष्ठ लोगों की कमेटी बनाई है, उस पर वह विचार कर रही है. शायद अब संभव होगा कि नहीं होगा कि उनमें कुछ हम सुधार के विधेयक इस विधान सभा में ही लाने की हमारी इच्छा है, उस पर काफी गहन चर्चा हुई है और उसमें उन सारी व्यवस्थाओं को कैसे सरल कर सकते हैं, चाहे डायवर्शन का मामला हो या अन्य जो व्यवस्था है उस पर अंतिम चरण में उस कमेटी की रिपोर्ट की हम प्रतीक्षा कर रहे हैं. अगर वह हमें मिल जाती है जो हमें उम्मीद है कि उसमें भी आवश्यक संशोधन के लिए हम विधेयक यहां लेकर आएंगे. प्राकृतिक आपदा, इसके लिए बजट की कोई कमी नहीं है. माननीय मुख्यमंत्री जी के स्पष्ट निर्देश हैं कि कहीं भी राहत राशि में कोई कमी आने नहीं देंगे. एक बात पटवारी के लिए निवास की आई है, उसका काम भी हम शुरू कर रहे हैं. यह काम बड़ा है लेकिन इस बार उसकी व्यवस्था हमने की है. पटवारी कार्यालय के साथ उसके निवास की. इसके साथ ही चांदे, मुनारे की बात आई थी, वह लगभग हमने नये लगा दिये हैं. कुछ रह सकते हैं उसको देखेंगे. लेकिन चांदे, मुनारे भी हमने नये लगाए हैं. डायवर्शन की व्यवस्था कर रहे हैं. नवीन तहसील और एसडीएम कार्यालय, शायद हमारी बहन हिना कांवरे ने यह बात उठाई थी.
डॉ. कैलाश जाटव - उसमें गोटेगांव भी था.
श्री उमाशंकर गुप्ता - सभी, लगभग 75 ऐसे मामले वर्षों से ऐसे पड़े थे. आपके यहां का भी उल्लेख किया था.
अध्यक्ष महोदय - हां, इटारसी भी उसमें है.
श्री उमाशंकर गुप्ता -माननीय सदस्य ने आपका भी उल्लेख किया था. ऐसे लगभग 75 ऐसी नवीन तहसील और एसडीएम कार्यालय के प्रकरण मंत्रिपरिषद् को भेजे हैं, जल्दी ही उनकी हमें स्वीकृति मिल जाएगी. एक बात और आई थी कि मुआवजा और फसल बीमा, फसल बीमा अलग है जो बीमा कराते हैं उनके लिए है, लेकिन मुआवजा अलग है. इन दोनों की कोई एकता नहीं है. जो पात्रता वाले राजस्व ग्राम हैं, मैंने खुद आप लोगों को भी पत्र लिखा था और जिले से भी हमने प्रस्ताव बुलाए हैं. जो प्रस्ताव आ रहे हैं हम उनको घोषित करते जा रहे हैं, उसमें कोई विलंब हम नहीं लगाएंगे. मेरा माननीय साथियों से कहना है कि जिला कार्यालय से हमें प्रस्ताव भिजवा दें और एक कापी इन एडवांस अगर मुझे भी आप दे देंगे तो उसका हम फॉलो-अप कर लेंगे. दो नये हम काम करने जा रहे हैं. मेरे सामने बहुत से मामले आए कि हमारी महिला पटवारी, हमारी बेटियां जब उनकी शादी नहीं हुई थी तब वे पटवारी में आ गईं, अब शादी हो गई, शादी हो गई तो जिला कैडर बदलता नहीं, तो हम इसको नीति में ला रहे हैं कि कोई भी बेटी अगर शादी के पहले पटवारी बनेगी और उसके बाद अगर शादी होगी तो उसका जिला कैडर हम यथा संभव बदल देंगे. पटवारी का भी बिना परीक्षा के प्रमोशन चैनल नहीं है, जिंदगीभर पटवारी ही रहता है. उसके प्रमोशन के चैनल भी हम सीनियॉरिटी और सी.आर. के आधार पर शुरू कर रहे हैं बाकी कर्मचारियों के जैसे प्रमोशन होते हैं. यह व्यवस्था भी अभी तक नहीं थी, उसको भी हम लागू करने जा रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय, मेरे पास साइंस एण्ड टेक्नालॉजी विभाग भी है, आपकी अनुमति से उसके बारे में मैं कहना चाहूंगा. आईटी का बेहतर उपयोग मध्यप्रदेश कर रहा है और इसलिए कई क्षेत्रों में हम देश में नंबर वन हैं. कम से कम अग्रणी राज्यों में तो हम हैं ही. भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में आईटी पार्क विकसित करने के लिए हमने 527 एकड़ भूमि आवंटित की है और 252 प्लॉट आवंटित हो चुके हैं. ग्वालियर में 5 एकड़ भूमि पर निर्माण किया जाकर 4 कंपनियों को हमने स्थान आवंटित किया है. भोपाल और जबलपुर में इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर मैन्युफेक्चिरिंग क्लस्टर की स्थापना की है और इसके संचालन के लिए हमने स्पेशल पर्पस व्हीकल बना दिया है. अधोसंरचना विकास कार्य प्रगति पर है. छिन्दवाड़ा जिले में बीपीओ हब के रूप में हम विकसित कर रहे हैं और ऐसे ही अन्य 10 जिलों में भी भूमि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत हम बीपीओ बनाने जा रहे हैं. ई-गवर्नेंस सोसायटी के माध्यम से हमने सभी जिलों, विकासखंड और तहसीलों में लगभग 460 आईटी विशेषज्ञों की पदस्थापना की है ताकि इन सारी बातों का उपयोग वहां पर हो सके.
अध्यक्ष महोदय, ऑन लाइन सेवा बहुत अच्छे ढंग से हमारे यहां काम कर रही है और उसमें अनेक सरकारी बातों की सूचना देने का हमने मोबाइल एसएमएस शुरू किया है. अब तक लगभग 70 करोड़ एसएमएस के जरिये हम जनता को जानकारी दे चुके हैं. आधार परियोजना के अंतर्गत हमारे यहां 93 परसेंट जनसंख्या का आधार पंजीयन फरवरी तक हो चुका है और 18 साल से ऊपर का कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसका आधार पंजीयन नहीं हुआ. 18 से कम उम्र के आधार कार्ड नहीं बने हैं, उसके लिए विद्यालयों, आंगनबाड़ी के माध्यम से उनके आधार कार्ड बनाने की कोशिश हम कर रहे हैं. अध्यक्ष महोदय, एक प्रसन्नता का विषय है कि हमारी मैप आईटी को केन्द्र सरकार ने मोबाइल एप्लीकेशन तथा वेबसाइट की सिक्युरिटी ऑडिट के लिए अधिग्रहित किया है. देश भर में केवल तीन ऐसी संस्थाएं हैं जिनको यह ऑडिट की परमिशन दी है, जिसमें हम भी हैं. अध्यक्ष महोदय, विधानसभा के सारे प्रश्नों को ऑनलाइन करने में हमारा पूरा सहयोग है जिसके कारण यहां सारी व्यवस्था ऑन लाइन हो चुकी है. जैसा मैंने बताया था आरसीएम सिस्टम में 20 लाख, 68 हजार पुराने लंबित मामले थे, उसमें उनकी प्रविष्टि हो चुकी है. पुरारे सारे मामलों का राजस्व विभाग में ढूंढ़ना और उनको फीड करना यह बड़ा जटिल काम था, लेकिन उसमें भी हमें धीरे-धीरे सफलता मिलती जा रही है. जीआईएस के माध्यम से प्रदेश के नक्शों का 96 प्रतिशत एकीकृत डाटा का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है. लगभग 3500 गांव अभी मध्यप्रदेश में हैं जहां अपूर्ण नक्शे हैं उनको भी पूरा करने का काम हम बहुत तेजी से कर रहे हैं. स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क जिसमें हमने लगभग पूरे प्रदेश में 10 हजार से अधिक शासकीय कार्यालयों को कनेक्टिविटी प्रदान की है. पेपर लेस ऑफिस वातावरण को बढ़ावा दे रहे हैं. आप जानते हैं कि अभी पिछले दिनों कैबिनेट ने डिसीजन लिया है कि हम मंत्रालय को पेपर लेस करने का काम शुरू करने जा रहे हैं. कैबिनेट भी ई-कैबिनेट होगी. मंत्रियों के भी प्रशिक्षण हुए हैं. अधिकारी और कर्मचारियों के भी हुए हैं. मुझे लगता है कि मंत्रालय से ही शुरुआत होगी और यह जो समस्या बहुत होती थी फाइल गुमने की, फाइल ट्रेस नहीं होती थी, कहां कितने दिन पड़ी है, इसकी कहीं कोई जिम्मेदारी नहीं थी, अब उसमें सारा कम्प्यूटराइज्ड हो जाने के कारण सारी व्यवस्था पारदर्शी होगी. कहां किसके पास फाइल पड़ी है, क्यों पड़ी है, कितने दिन से पड़ी है. यह सामने होगा और फाइल ढूंढना और फिर नहीं मिल रही है, तो एफआईआर करना, जानबूझकर गुमना या गुमाना, इस सारी समस्या से राहत मिलेगी. यह काम हम मंत्रालय से ही शुरु करने जा रहे हैं. इसी प्रकार से युवा उद्यमियों के लिये हमने बिजनेस-इन्क्यूबेशन सेंटर्स, डिजाइन एवं टेक्नॉलॉजी सहायता आदि काम शुरु किये हैं. हम पहले राज्य हैं, जहां जलवायु परिवर्तन के कारणों पर भी शोध कार्य हम इस माध्यम से कर रहे हैं. प्रदेश के कारीगरों एवं शिल्पियों के कौशल उन्नयन तथा उन्हें नवीन तकनीकी की जानकारी प्रदान करने के लिये सितम्बर,2017 को 7वीं मध्यप्रदेश कारीगर विज्ञान कांग्रेस 2017 का आयोजन किया गया, जिसमें बांस शिल्प, चर्म शिल्प, माटी शिल्प तथा लाख शिल्प एवं उत्पादन की विधाओं में कारीगरों ने भाग लिया. यह उनको हमने ट्रेनिंग दी है. इसी प्रकार मिशन एक्सीलेन्स ऑफ एम.पी. ह्यूमन रिसोर्स के अंतर्गत विज्ञान मंथन यात्रा का आयोजन हुआ, इसमें 525 विद्यार्थिों एवं 47 विज्ञान शिक्षकों ने भाग लिया और हमने इसमें से 289 विद्यार्थियों को स्कालरशिप भी दी है. जबलपुर के लिये एक साइंस सेंटर की स्थापना के लिये भूमि आवंटित हो गई है और वहां एक साइंट सेंटर जबलपुर में हम बनाने जा रहे हैं, उसका कार्य तेजी से शुरु कर रहे हैं. शरद जी, धन्यवाद तो दें. (राज्यमंत्री, चिकित्सा शिक्षा,श्री शरद जैन द्वारा बैठे-बैठे धन्यवाद दिया गया.)
अध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश में एग्रोक्लाइमेंट जोन में पाई जाने वाली प्रजातियों का जेनेटिक मेपिंग एवं दस्तावेजीकरण करने की कार्यवाही भी हम कर रहे हैं और जैव प्रौद्योगिकी विद्यार्थियों के लिये एवं फार्मा कम्पनियों के सहयोग से इस उद्योग आधारित प्रशिक्षण प्रदान करने का काम भी कर रहे हैं. इसी के साथ मेरा सदन के सभी सदस्यों से आग्रह है कि राजस्व विभाग में हमने एक क्रांतिकारी परिवर्तन किया है और भी जो भी आपके सुझाव आये हैं, उन पर भी हम आगे विचार करेंगे और कृपया इस बजट को स्वीकृति प्रदान करें.
अध्यक्ष महोदय -- धन्यवाद, आपने संक्षेप में सभी विषयों को और सभी माननीय सदस्यों के सुझावों को भी समायोजित किया.
मैं, पहले कटौती प्रस्तावों पर मत लूंगा.
प्रश्न यह है कि मांग संख्या 8,9,46 एवं 58 पर प्रस्तुत कटौती प्रस्ताव स्वीकृत किये जायें.
कटौती प्रस्ताव अस्वीकृत हुए.
अब मैं, मांगों पर मत लूंगा.
3.53 बजे
(2) |
मांग संख्या – 55 |
महिला एवं बाल विकास.
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उपस्थित सदस्यों के कटौती प्रस्ताव प्रस्तुत हुए. अब मांग और कटौती प्रस्तावों पर एक साथ चर्चा होगी.
श्री जयवर्द्धन सिंह (राघोगढ़) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं महिला एवं बाल विकास विभाग की मांग संख्या - 55 पर प्रस्तुत कटौती प्रस्तावों का समर्थन करता हूँ.
अध्यक्ष महोदय, पिछले एक हफ्ते में पूरे मध्यप्रदेश में और हमारी राजधानी में भी महिलाओं के साथ जो अत्याचार हो रहा है, उसके बारे में प्रतिदिन प्रदेश के अखबारों में हेडलाइन के रूप में खबरें आ रही हैं. संयोग की बात है कि इसी समय पर महिला एवं बाल विकास विभाग की मांगों पर इस सदन में चर्चा भी हो रही है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, एक बड़े अखबार की आज ही हेडलाइन है कि सिर्फ पिछले 7 दिनों में महिलाओं के साथ मारपीट की 31 घटनाएं हुई हैं. यह पिछले 7 दिनों की बात है और इन्हीं 7 दिनों में छेड़छाड़ की 8 घटनाएं हुई हैं, साथ ही महिलाओं के साथ ज्यादती की 5 घटनाएं हुई हैं. भोपाल में जो घटना हुई, जिसमें बी.कॉम. की एक छात्रा ने ज्यादती के कारण आत्महत्या की, इस हादसे के कारण पूरे भोपाल की महिलाएं, उनका पूरा परिवार प्रतिदिन धरना कर रहा है. उन्होंने कैंडल-मार्च भी निकाला, लेकिन अभी तक उस परिवार के साथ भी न्याय नहीं हो पाया है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, हम सबको सदन में यह प्रश्न पूछना चाहिए कि आखिर महिलाओं की ऐसी स्थिति पूरे मध्यप्रदेश में क्यों है. मैं मांग संख्या - 55 का अध्ययन कर रहा था. विभाग से संबंधित कुछ शासकीय योजनाएं हैं. इन शासकीय योजनाओं के लिए कितनी राशि आवंटित हुई है, इसके बारे में मैं यहां उल्लेख करना चाहता हूँ. महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा, सरंक्षण और सहायता के लिए सिर्फ 1 करोड़ 40 लाख रुपये आवंटित किए गए हैं, जबकि पिछले साल 2 करोड़ 40 लाख रुपये आवंटित किए गए थे. माननीय मंत्री महोदया से मेरा निवेदन है कि इसके बारे में पुनर्विचार हो और अगली बार से इसमें वृद्धि की जाए, वैसे अगली बार तो मौका नहीं मिलेगा, लेकिन फिर भी. अध्यक्ष महोदय, साथ ही बेटी बचाओ योजना, जो कि एक महत्वपूर्ण योजना है, इस योजना के लिए पिछले साल 9 करोड़ 20 लाख रुपये आवंटित हुए थे, इस साल राशि कम हो गई है और सिर्फ 8 करोड़ 95 लाख रुपये आवंटित हुए हैं. लाड़ो अभियान, जिसके लिए प्रदेश सरकार को पुरस्कार भी मिला है, यह भी बहुत ही महत्वपूर्ण योजना है, लेकिन इस योजना के लिए भी सिर्फ 3 करोड़ रुपये आवंटित हुए हैं. मैं मानता हूँ कि ऐसी जो महत्वपूर्ण और गंभीर योजनाएं हैं, जिनसे महिलाओं के बीच में जागरूकता बढ़ेगी, अगर इन योजनाओं पर मध्यप्रदेश शासन ज्यादा पैसे खर्च करेगा तो उससे स्वाभाविक रूप से महिलाओं को काफी लाभ मिल सकता है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, दूसरा विषय, जिसके कारण महिला एवं बाल विकास विभाग की चर्चा पूरे प्रदेश में और पूरे देश में चल रही है, जिसकी खबर भी प्रतिदिन अखबारों में आ रही है पोषण आहार की व्यवस्था. इसके बारे में माननीय उच्च न्यायालय ने बहुत ही तल्ख टिप्पणी करके यह कहा कि शायद मध्यप्रदेश सरकार कुछ कंपनियों को फेवर करना चाहती है. अध्यक्ष महोदय, यह माननीय उच्च न्यायालय का कहना है.
3.59 बजे अध्यक्षीय घोषणा
कार्यसूची के पद 6 के उप पद (3) के पश्चात् अशासकीय कार्य लिया जाना
अध्यक्ष महोदय -- मध्यप्रदेश विधान सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन संबंधी नियम, 23 के अनुसार शुक्रवार की बैठक के अंतिम ढाई घंटे गैर-सरकारी सदस्यों के कार्य के संपादन के लिए नियत हैं. परंतु आज की कार्यसूची में उल्लेखित खाद्य विभाग की मांगों पर चर्चा होने के उपरांत अशासकीय कार्य लिया जाएगा. मैं समझता हूँ कि सदन इससे सहमत है.
(सदन द्वारा सहमति प्रदान की गई)
4.00 बजे वर्ष 2018-2019 की अनुदानों की मांगों पर मतदान (क्रमश:)
श्री जयवर्द्धन सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, कुपोषण के आंकड़ों में पूरे भारत में सबसे अधिक कुपोषित बच्चे अगर हैं तो वह मध्यप्रदेश में हैं और इसी योजना के अंतर्गत इतना बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश थे कि पोषण आहार और टेक होम राशन पूर्ण रूप से स्व-सहायता समूह के द्वारा बनाया जाए. लेकिन फिर भी मध्यप्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के यह आदेश नहीं माने. उसके बाद भोपाल के एक एनजीओ ने इसी संदर्भ में पिटीशन लगायी थी और जिसके तीन साल से माननीय हाईकोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार को यह निर्देश दिए थे कि पूरक पोषण आहार की व्यवस्था स्व-सहायता समूह के द्वारा होनी चाहिए थी लेकिन फिर भी तीन साल से वही तीन कम्पनियां पूरे मध्यप्रदेश का टेमहोम राशन बना रही थीं. ऐसा लगता है कि अगर किसी को भी पौष्टिक आहार मध्यप्रदेश में मिला है तो सिर्फ एमपी एग्रो के बडे़ अधिकारियों को मिला है. ऐसी जो निजी कम्पनियां हैं एमपी एग्रो न्यूट्री फूड्स है उनके जो मालिक हैं उनका तो बहुत पेट भरा है. लेकिन जो हमारे प्रदेश के गरीब बच्चे हैं उनको सही सुविधा नहीं मिल पायी है. पूरे मध्यप्रदेश पर यह एक बहुत ही बड़ा कलंक है और मैं मानता हॅूं कि इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार और विशेषकर महिला बाल विकास का विभाग जिम्मेदार है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, पिछले पांच वर्षों में 5000 करोड़ रूपए से अधिक रूपए सिर्फ अकेले पोषण आहार के लिए खर्च किए गए हैं. यह आंकडे़ मैं सीएजी की रिपोर्ट्स से बता रहा हॅूं. 100 करोड़ रूपए से अधिक रूपए वेस्ट हो गए, कहीं उपयोग नहीं हो पाए. उसके साथ में सीएजी ने यह भी टिप्पणी की है कि टेकहोम राशन के जो पैकेट बनाए गए थे उनमें गेहूं और चावल की अधिक संख्या थी जिसके कारण एमपी एग्रो को 15 करोड़ रूपए का अन्य उचित लाभ मिला है. यह सीएजी की रिपोर्ट वर्ष 2016-17 की है लेकिन इस रिपोर्ट के बावजूद भी सरकार ने एमपी एग्रो और उनकी जो विशेष तीन कम्पनियां हैं उनको यह काम देते रहे, जिससे वे और भ्रष्ट होते रहे. जो पैसा गरीबों के लिए, कुपोषित बच्चों के लिए था, वह उनको नहीं मिल पाया और उल्टा बडे़-बडे़ उद्योगपति, बडे़-बडे़ जो कुछ खास अधिकारी हैं उन्होंने इसका लाभ उठाया.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इसी के साथ आईसीडीएस योजना का बहुत महत्व रहता है. इसकी सीएजी रिपोर्ट में बहुत ही तल्ख टिप्पणी की गई है. उसमें उल्लेख है कि 6 माह से लेकर 3 वर्ष तक के जो बच्चे हैं उनमें से 20 लाख बच्चों को पोषण आहार नहीं मिला. इसी के साथ 3 वर्ष से 6 वर्ष के जो बच्चे हैं उनमें 57 लाख बच्चों को पोषण आहार नहीं मिला. यह सब आंकडे़ कोई अखबार के या निजी कोई आंकडे़ नहीं हैं. यह सब आंकडे़ मध्यप्रदेश शासन के सीएजी की रिपोर्ट के हैं. माननीय सभापति महोदय, साथ में इसी रिपोर्ट में कहा जाता है कि 8 लाख गर्भवती महिलाएं ऐसी हैं जिनको पोषण आहार महिला बाल विकास विभाग नहीं पहुंचा पाया. यह बहुत ही गंभीर बिन्दु है और मैं मानता हॅूं कि माननीय मंत्री महोदया इन सब बिन्दुओं पर, जब उनका भाषण होगा इस पर स्पष्टीकरण दें कि इतना सारा सरकारी पैसा जो खर्च हो रहा है, कहा जा रहा है. जिनको इस राशि से लाभ मिलना चाहिए, उनको लाभ नहीं मिल पा रहा है.
4.04 बजे {सभापति महोदय (डॉ.राजेन्द्र पाण्डेय) पीठासीन हुए}
श्री जयवर्द्धन सिंह -- माननीय सभापति महोदय, अब मैं प्रदेश की आंगनवाडि़यों की तरफ सदन का ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा. सीएजी रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है कि जनसंख्या के आधार पर वर्तमान में लगभग 18 हजार आंगनवाडि़यों की कमी है. ऐसी लगभग 18 हजार जगहें हैं. जहाँ पर आंगनवाड़ी होनी चाहिए और वहाँ पर अभी तक वर्तमान में शासन की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं हो रही है और लगभग ऐसी 3 हजार मिनी आंगनवाड़ी हैं जहाँ पर अभी वर्तमान में कोई सुविधा नहीं है. साथ में 11 हजार ऐसे गाँव हैं, ऐसे वार्ड हैं पूरे मध्यप्रदेश में, जो अभी आंगनवाड़ी विहीन हैं साथ ही इन 11 हजार वार्डों और ग्रामों में लगभग 53 लाख लोग हैं जो आंगनवाड़ी की सुविधा से वर्तमान में वंचित हैं इसके अलावा 22 हजार ऐसी आंगनवाड़ियाँ हैं जहाँ पर सरकार किराये से एक या दो कमरे में आंगनवाड़ी का संचालन कर रही हैं और अगर हम पिछले 5-6 सालों की बात करें और अगर हम यह आंकड़े देखें कि पिछले 5-6 सालों में सरकार ने आंगनवाड़ियों के निर्माण के लिए, आंगनवाड़ी के भवन के लिए कितने पैसे खर्च किये वह तो एक बात है लेकिन पिछले 5-6 सालों में मध्यप्रदेश सरकार के 450 करोड़ रुपये वेस्ट हो गये, व्यय नहीं हो पाये. 450 करोड़ रुपये जो आंगनवाड़ी भवन निर्माण के लिये थे, वह सरकार खर्च नहीं कर पाई.
सभापति महोदय, यह आंकड़े सीएजी रिपोर्ट में हैं और इसी के साथ-साथ यह जो माँग संख्या 55 है जो किताब पेश हुई है उसी में यह बात शामिल है कि पिछले साल आंगनवाड़ी भवन के लिए 90 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे उनमें से सिर्फ 50 करोड़ रुपये सरकार खर्च कर पाई है 40 करोड़ रुपये सरकार खर्च ही नहीं कर पाई जबकि 11 हजार गाँव ऐसे हैं जहाँ अभी भी आंगनवाड़ी का केंद्र नहीं है तो ऐसा क्यों हो रहा है? पैसे उपलब्ध हो रहे हैं,बजट में इसका उल्लेख हो रहा है लेकिन फिर भी सरकार यह पैसा खर्च नहीं कर पा रही है. हम मानते हैं कि अगर पूरी सुविधा होती, पूरी बुनियादी व्यवस्था होती, पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर होता, सभी गाँवों में आंगनवाड़ी होते और अगर तब सरकार पैसा खर्च नहीं कर पाती तो हम मान लेते स्वीकार कर लेते लेकिन वर्तमान में जो स्थिति है सदन के सामने है और यह एक बहुत ही दुख की बात है कि जो एक ऐसा मुद्दा है जो कहीं न कहीं मानवाधिकार से जुड़ा हुआ है.
सभापति महोदय, राइट टू फूड के बारे में बहुत बात होती है और वही अधिकार अगर हमारे प्रदेश के बच्चों को नहीं मिल पा रहा है तो मैं मानता हूं कि यह एक बहुत बड़ी विफलता पूरे हमारे विभाग के सामने खड़ी हो गई है. साथ में जो 90 करोड़ रुपये पिछले साल आवंटित हुए थे, वह पूरे खर्च नहीं हो पाये थे. इस साल आंगनवाड़ियों के लिए सिर्फ 60 करोड़ रुपये भवन निर्माण के लिए आवंटित हुए हैं जबकि कुछ दिन पहले मैंने प्रश्न पूछा था कि मध्यप्रदेश सरकार बाहर की संस्थाओं को विज्ञापन के लिए कितना पैसा दे रही है उस पर उत्तर आया है 140 करोड़ रुपये दे रही है और यहीं आंगनवाड़ियों के लिए सिर्फ 60 करोड़ रुपये? मैं मानता हूँ कि इसमें भी वृद्धि होना चाहिये क्योंकि जैसा मैंने कहा 11 हजार अभी ऐसे गाँव हैं, वार्ड हैं जहाँ पर आंगनवाड़ी नहीं हैं अगर इस पर सरकार ज्यादा पैसा खर्च करेगी तो स्वाभाविक तौर पर जो गर्भवती महिलायें हैं, जो गाँवों के और शहर के बच्चे हैं उनको आंगनवाड़ी का लाभ मिलेगा.
माननीय सभापति महोदय, बजट में कुछ ऐसी चीजें आती हैं विशेषकर जब वित्त मंत्री जी का भाषण होता है, जिस पर वह ज्यादा ध्यान देते हैं, वर्ष 2016-17 में माननीय वित्त मंत्रीजी के भाषण में उल्लेख हुआ था महिलाओं के लिए वन स्टॉप क्राइसेस सेंटर बनाये जाएंगे लेकिन जो हादसे पिछले एक साल में हुए हैं, पिछले विधानसभा सत्र में भी महिलाओं के ऊपर जो दुष्कर्म के घटनायें बहुत हो रही हैं उसके बारे में स्थगन प्रस्ताव पारित हुआ था और जो कुछ घटनाएँ पिछले कुछ महीने में भी हुई हैं और जिसके बारे में मैंने मेरे भाषण के शुरुआत में उल्लेख किया था, उसमें भी यह बात स्पष्ट होती है कि जो ये वन स्टाप क्रायसिस सेंटर महिलाओं के लिए बनाए गए हैं, उनका कहीं भी कुछ उपयोग नहीं हो पाया है. कहीं न कहीं यह भी एक बहुत बड़ा फेल्युअर मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से हुआ है. साथ में माननीय सभापति महोदय, पिछले साल के बजट में, 2017-18 के बजट में, तेजस्विनी ग्राम महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम आयोजित हुआ था. पिछले साल के बजट भाषण में माननीय वित्त मंत्री जी ने कहा था कि इस योजना के लिए सरकार विदेशी मद से, बाहर की मद से, 630 करोड़ रुपये लाएगी और पिछले साल इस योजना के लिए 50 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. लेकिन बहुत अफसोस की बात है कि इस बजट में 600 करोड़ तो दूर की बात है, सिर्फ 27 करोड़ रुपये आवंटित हुए हैं तो मैं मानता हूँ कि अगर वित्त मंत्री जी भी ऐसे उनके भाषण में, वह भी बजट भाषण में, ऐसे ही इधर-उधर की घोषणाएँ करते हैं और फिर बाद में उसका पालन नहीं होता है तो कहीं न कहीं यह मध्यप्रदेश सरकार के लिए बहुत शर्म की बात है.
माननीय सभापति महोदय, जो माननीय मुख्यमंत्री जी की सबसे मशहूर योजना है और मैं यह भी मानता हूँ कि कहीं न कहीं उससे लाखों बालिकाओं को बहुत लाभ भी मिला है, लाड़ली लक्ष्मी योजना, उसके बारे में मैं कुछ आँकड़े सदन के बीच प्रस्तुत करना चाहता हूँ.
सभापति महोदय-- जयवर्द्धन सिंह जी, थोड़ा संक्षिप्त करिए.
श्री जयवर्द्धन सिंह-- जी, बस दो मिनट और लूंगा. माननीय सभापति महोदय, 2011-12 में लगभग 3 लाख 80 हजार कन्याओं को इसका लाभ मिला था, महिलाओं को लाभ मिला था. 2012-13 में 3 लाख 80 हजार से यह नंबर हो गया, 3 लाख 18 हजार और इसी प्रकार गिरते-गिरते, 2016-17 में हितग्राही बचे, 2 लाख 20 हजार. मेरा माननीय मंत्री महोदया से यह प्रश्न है कि ऐसा क्यों है कि हर साल इसी योजना के अंतर्गत कम महिलाओं को लाभ मिल रहा है, क्या ऐसी कहीं कोई बात सामने आ रही है कि जेण्डर गैप में ज्यादा वृद्धि हो रही है? माननीय सभापति महोदय, यह बहुत गंभीर मुद्दा है, इस पर भी स्टडी हो कि क्या जेण्डर गैप के कारण कम महिलाओं को इसका लाभ मिल पा रहा है? यह काफी गंभीर मुद्दा है और क्योंकि जैण्डर इक्वलिटी का एक ऐसा मुद्दा है जिसके बारे में हमेशा चर्चा होती है तो इस पर भी कार्यवाही हो कि ऐसा क्यों हो रहा है कि हर साल कम महिलाओं को इसका लाभ मिल रहा है. लेकिन मूल रूप से माननीय सभापति महोदय, इस विभाग के जो मेन बिन्दु हैं, जैसे मैंने पहले उल्लेख किया था कि जो हादसे महिलाओं के साथ हो रहे हैं, इस विषय पर सरकार गंभीर नहीं है. इसके लिए....
सभापति महोदय-- जयवर्द्धन सिंह जी, प्रारंभ में ही आपकी ये सारी बातें आ गई थीं.
श्री जयवर्द्धन सिंह-- बस एक मिनट और. माननीय सभापति महोदय, इस विषय के लिए भविष्य में सरकार और पैसा आवंटित करे, विशेषकर मंत्री महोदया हमें बताए कि महिलाओं को सुरक्षित रखने के लिए आगे कौन कौन सी योजनाएँ हैं और किस प्रकार से हम यह प्राप्त कर सकेंगे? उसके बारे में सदन को जरूर अवगत कराएँ और साथ में पोषण आहार की नीति के बारे में जो अव्यवस्था फैली. जबकि 3 साल से यह आदेश थे कि समूहों के माध्यम से वह आहार बनना चाहिए लेकिन फिर भी सरकार ने बात नहीं मानी. 7 या 8 मार्च को फिर जब एक दिन बाकी था आदेश पालन करने के लिए फिर अचानक 6 महीने के टेण्डर के बारे में बात आई. यह सब इसलिए हुआ क्योंकि सरकार इन सब चीजों के लिए तैयार नहीं थी, तो इसके बारे में भी माननीय मंत्री महोदया उनके भाषण में हमको अवगत कराएँ. माननीय सभापति महोदय, आपने मुझे बोलने का अवसर दिया उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
श्री के.के.श्रीवास्तव-- माननीय सभापति महोदय, आप बड़ा अच्छा संचालन कर रहे हैं, आप जम रहे हैं.
सभापति महोदय-- धन्यवाद. श्री हेमन्त खण्डेलवाल जी, श्री ठाकुरदास नागवंशी जी, सुश्री मंजू राजेन्द्र दादू.
श्री रजनीश हरवंश सिंह--सभापति महोदय, कोई नहीं हैं.
राज्यमंत्री, सामान्य प्रशासन (श्री लालसिंह आर्य)--माननीय सभापति महोदय, चार पर एक है. (हंसी)
श्री इन्दर सिंह परमार (कालापीपल)--सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 55 के संदर्भ में अपनी बात रखूंगा.
सभापति महोदय, हमारी सरकार ने महिला बाल विकास विभाग के माध्यम से एक बहुत बड़ा अभियान मध्यप्रदेश में चलाया "लाड़ली लक्ष्मी योजना" निश्चित रुप से इस योजना के प्रारंभ होने से आज तक 27 लाख बेटियाँ इसके लाभ के दायरे में आई हैं. इसके कारण इस योजना का महत्व समझते हुए अन्य राज्यों ने भी इसका अनुसरण किया है. इसके लिए मैं माननीय मुख्यमंत्री जी और माननीय मंत्री महोदया को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहता हूँ. बेटी बचाओ का अभियान केवल कागज पर न हो उनको प्रोत्साहित करने की योजना बने उसे यथार्थ पर उतारने का काम किया है, वह केवल मध्यप्रदेश में प्रारंभ हुआ है. पूरा देश कुपोषण के लिए लड़ाई लड़ रहा है लेकिन मध्यप्रदेश में योजना बनाकर व्यापक संदर्भ में काम खड़ा किया जा रहा है. हमारे आंगनवाड़ी केन्द्रों में आने वाले हितग्राही परिवारों के लिए अनाज की व्यवस्था तो हो जाती है, परन्तु जो पोषक तत्व हैं उनकी पूर्ति अनाज से नहीं हो पाती है. उसके लिए सब्जी और फलों की आवश्यकता होती है. उसकी कमी के कारण पोषण आहार जैसा बनना चाहिए उसमें कठिनाई हो रही थी. सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के कारण बच्चों में कई प्रकार की बीमारियां जैसे एनीमिया, रतौंधी, दीर्घकाल में अंधेपन की बीमारी भी उससे होती है. इससे बच्चों का विकास भी प्रभावित हो रहा था. सरकार ने उसको दूर करने के लिए दो काम हाथ में लिए एक पंचवटी से पोषण अभियान और दूसरा पोषण परिपूर्ण ग्राम. जो आंगनवाड़ी केन्द्र हैं उन केन्द्रों में ऐसे पौधे लगाना जिनसे आगे आने वाले समय में पोषक तत्वों की पूर्ति हो सके. बारहमासी सब्जी देने वाले पेड़ में सुरजना को विशेषकर स्वास्थ्यवर्धक मानते हुए उसको रोपित करने का अभियान चलाया. हितग्राहियों के परिवारों तक लगाने का भी काम किया और बड़ी संख्या में किया. सुरजना, नींबू, आंवला, महुआ, कटहल, कबीट, करोंदा, अमरुद एवं आम, ऐसे पौधों की संख्या जो कि लाखों में है आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में उन परिवारों तक लगाने का काम किया. सभी जगह आंगनवाड़ियों के परिसर इतने अच्छे नहीं हैं जहां पर इतनी बड़ी संख्या में प्लांटेशन किया जा सके. लेकिन उनको घरों से जोड़ने का काम किया है. इसके कारण काफी बड़ा काम होने वाला है.
सभापति महोदय, इसी प्रकार से पोषण परिपूर्ण ग्राम में भी हर ब्लाक में एक गांव को केन्द्रित किया है. 313 विकासखण्डों में 313 ही ऐसे ग्रामों को चिह्नित किया गया है जहां पोषण स्मार्ट विलेज का निर्माण होगा. ऐेसे परिवार जहां पर कम वजन के बच्चे ज्यादा संख्या में हों उनको उसमें चिह्नित किया गया है वहां पर भी इस प्रकार के पौधे लगाए ताकि उनको परिपूर्ण पोषक तत्व मिल सके उसके लिए विशेष रुप से उन गांवों को जोड़ने का काम किया है. इसमें विभिन्न प्रकार के प्रोटीन, कार्बोहाइट्रेड, कैलोरी, वसा, विटामिन एवं खनिज तत्वों का होना रोज के भोजन के लिए आवश्यक काम की पूर्ति करेगा, तत्वों की पूर्ति करेगा. मैं समझता हूं कि जो खाते हैं वही उगाएं और जो उगाते हैं वही खाएं, इस सिद्धांत पर महिला बाल विकास ने जो अभियान प्रारंभ किया है उसके लिए मैं हमारे विभाग की मंत्री महोदया को बहुत बहुत धन्यवाद देता हूं. मैं समझता हूं कि यह निरंतर आगे बढ़ेगा तो कुपोषण के खिलाफ जो बड़ी लड़ाई है यह आज की आवश्यकता है उन सब से हम जल्द ही इस कुपोषण पर विजय प्राप्त कर सकेंगे. मेरा माननीय मंत्री जी से निवेदन है कि समेकित बाल संरक्षण योजना में महिला सशक्तिकरण विभाग के द्वारा जो संचालित होता है. निराश्रित बच्चे जिनके माता-पिता नहीं हैं उनके पालन पोषण के लिए दो हजार रुपए प्रतिमाह देने का प्रावधान है. परंतु जो हमारी योजना है इसमें कई बच्चियों को लाभ मिलता है लेकिन कुछ जगह पर जो बाल कल्याण समितियां बनी हुई हैं, एन.जी.ओ. को जोड़कर उनकी अनुशंसा अनिवार्य की गई है उसके कारण दो दो साल से प्रकरण पेंडिंग हैं और जब उनसे बातचीत की जाती है तो वह कहते हैं कि इसमें सरकार ने बार-बार परिवर्तन किया है. यदि कोई परिवर्तन तीन माह में किया गया हो तो साल भर पुराने में भी वही बातें बताकर उन प्रकरणों के पात्र हितग्राहियों को लाभ से वंचित करने का काम यह बाल कल्याण समिति विशेषकर शाजापुर जिले में उसके द्वारा हुआ है . मैं माननीय मंत्री महोदया से निवेदन करता हूं कि शाजापुर जिले के उमा पिता महेश का प्रकरण ऐसा है जो वर्ष 2016 से लंबित है उसका निराकरण करें और उसमें कौन दोषी है उसके खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए क्योंकि सरकार जो लाभ देना चाहती है बाल कल्याण समिति उसमें बाधक क्यों बन रही है? एक तो मेरी यह प्रार्थना है दूसरा विषय यह है आंगनवाड़ी क्षेत्रों में जो सहायिकाएं हैं उनकी भर्ती होती है और उसमें तलाकशुदा और परित्यक्ता महिलाओं के लिए अहर्ताएं तय की गई हैं लेकिन फर्जी तरीके से तलाक देकर केवल ग्राम पंचायतों के प्रमाण पत्र लगाकर नियुक्तियां की गई हैं. मैं मंत्री महोदय से निवेदन करता हूं कि ऐसे प्रकरणों को चिह्नित करके यदि तलाक है तो वह कोर्ट से होना चाहिए लेकिन ग्राम पंचायत ने लिख दिया, सहमति से तलाक हो गया और दोनों पति-पत्नी एक साथ ही रहते हैं. केवल नौकरी करने के लिए पद प्राप्त करने के लिए उनके द्वारा तलाक का बहाना लिया गया है. उस पद के लिए जो पात्र हितग्राही हैं उनके द्वारा लगातार शिकायत की जाती है लेकिन कार्यवाही नहीं की गई है. शाजापुर जिले के ही चाकरोद गांव की एक आंगनवाड़ी केन्द्र का प्रमाण है. मैं समझता हूं कि इसके कारण से यदि यह व्यवस्था ठीक होगी और जो पात्र हैं उन्हीं को लाभ मिलेगा. अपात्र लोग उसका लाभ ले रहे हैं उस पर रोक लगेगी. मैं मंत्री महोदया से निवेदन करता हूं कि आपकी दोनों योजनाएं ऐसी हैं जिनके माध्यम से हम कुपोषण से एक बड़ी लड़ाई लड़ सके हैं उसके लिए आपने जो काम किया है उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद. आपने बोलने का समय दिया धन्यवाद.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे (लांजी) -- माननीय सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 55 पर अपनी बात रखने के लिए खड़ी हुई हूं. महिला सशक्तिकरण. हमेशा मैं यह सोचती हूं कि महिला सशक्तिकरण की जो बात है वह पाश्चात्य देशों में उतनी नहीं होती है जितनी कि भारत और पाकिस्तान इन्हीं देशों में क्यों सबसे ज्यादा महिला सशक्तिकरण की बात होती है और मुझे लगता है कि शायद इसीलिए हमारे यहां कुछ परम्पराएं ऐसी हैं जिसकी वजह से महिला सशक्तिकरण की बात हमारे यहां ज्यादा होती है. माननीय सभापति महोदय, निश्चित रूप से इन परम्पराओं के चलते आज भी हमारा देश उस ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाया है, जहां तक उसे पहुंचना चाहिए था. ये परम्परायें हमारे मार्ग में किस तरह से बाधक बनी हैं मैं इसका एक उदाहरण यहां रखना चाहूंगी. हम सभी प्रथम महिला शिक्षिका माता सावित्री बाई फुले को जानते हैं. जब मैं उनकी फोटो की ओर देखती हूं तो हमेशा मेरे मन में यह बात उठती है.
कुँवर विक्रम सिंह- माननीय सभापति महोदय, मेरी एक आपत्ति है- कोरम.
सभापति महोदय- सभी आ रहे होंगे. चाय पीने गए होंगे. चलने दें.
राज्यमंत्री, सामान्य प्रशासन विभाग (श्री लालसिंह आर्य)- माननीय सभापति महोदय, आप इस आसंदी पर स्थाई रूप से बहुत अच्छे लगेंगे.
सभापति महोदय- पूरे सदन और बड़े भाइयों की कृपा एवं आशीर्वाद है. आपकी शुभकामनायें सदैव बनी रहें.
ऊर्जा मंत्री (श्री पारस चन्द्र जैन)-माननीय सभापति महोदय, ये आपके दोस्त हैं कि दुश्मन ?
सभापति महोदय- उनका मित्रवत भाव है. हिना जी आप जारी रखें. कोरम पूरा है.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे- माननीय सभापति महोदय, माता सावित्री की फोटो देखने से एक बात हमेशा दिमाग में आती है कि बहुत अच्छा हुआ कि उनका जन्म महाराष्ट्र में हुआ. जहां पर्दा-प्रथा का चलन नहीं है. यदि उनका जन्म हमारे देश के ऐसे किसी राज्य, मैं केवल मध्यप्रदेश की बात नहीं करूंगी, जहां पर्दा-प्रथा का चलन है, यदि उनका जन्म वहां होता तो मैं समझती हूं कि माता सावित्री को उनका घूंघट जो चेहरे को ढकते हुए नीचे तक डाला जाता है, उस घूंघट को ऊपर लाते-लाते ही उनकी सारी एनर्जी समाप्त हो जाती. नारी शिक्षा की बात वे पता नहीं कब कर पातीं.
माननीय सभापति महोदय, ऐसी ही एक और बात मैं कहना चाहूंगी कि जब भी हमारे यहां कोई मेहमान आता है तो वह जब बच्चों के बारे में पूछता है तो कहता है कि आपका बेटा क्या कर रहा है ? यदि बेटा पढ़ रहा है तो पूछा जाता है कि आगे क्या करेगा ? कौन-सी नौकरी करेगा ? सदैव ऐसे ही प्रश्न लड़कों के बारे में किए जाते हैं.
श्री लालसिंह आर्य- माननीय सभापति महोदय, कोरम पूरा है. 25 सदस्य सदन में हैं.
कुँवर विक्रम सिंह- कोरम अभी पूरा हुआ है. पहले तो 17 ही सदस्य थे.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ. नरोत्तम मिश्र)- हिना बिटिया इतना अच्छा बोल रही हैं इसलिए इससे ईर्ष्या करके आप बार-बार खड़े हो रहे हैं ? पहली बार वह अच्छा बोल रही है. आज हिना जी इतना अच्छा बोल रही हैं उनको टोको मत. आज आपको नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी क्या मिली है, आप अपने दल को ही रौंदने में लगे हुए हैं.
कुँवर विक्रम सिंह- मैं तो हिना जी को प्रोत्साहित करता हूं और मैं दल को रोकने में नहीं लगा हुआ हूं.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे- हमारे नाती राजा जी हमें सदैव अपनी बात रखने का अवसर देते हैं. माननीय सभापति महोदय, मैं लड़कियों की बात कर रही थी. जब लड़कियों के बारे में पूछा जाता है तो पहला सवाल होता है कि क्या आपकी बेटी की शादी हो गई ? यदि पिताजी ने बता भी दिया कि अभी हमारी लड़की आंगनबाड़ी में लग गई है, किसी ने बताया कि वह शिक्षाकर्मी बन गई है. फिर भी उन्हें बीच में रोककर पूछा जाता है कि यह सब कुछ तो ठीक है लेकिन लड़की की शादी कब कर रहे हो ? यह बात हमेशा पूछी जाती है. शादी क्या केवल लड़कियों की होती है ? यह बात मैं सदन में इसलिए रख रही हूं क्योंकि यहां बात हमारी मानसिकता की है. हमारी सोच की है. जिस दिन हमारी यह सोच बदल जायेगी, जिस दिन हमारी यह मानसिकता बदलेगी, वह एक नया दिन होगा. ये सभी चीजें हम कोई कानून बनाकर नहीं बदल सकते हैं. लोगों के साथ, उनके विश्वास और उनकी सोच को बदलकर यह काम किया जा सकता है. यह किसी कानून से नहीं होगा.
माननीय सभापति महोदय, पिछले कई वर्षों में कुपोषण और पोषण आहार पर बहुत चर्चायें हुई हैं. वाद-विवाद, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप बहुत अधिक लगे हैं. माननीय मुख्यमंत्री जी ने भी कहा है कि पोषण आहार के लिए हम अल्पकालिक नीति बना रहे हैं. दीर्घकालिक नीतियों के लिए उन्होंने मना कर दिया है. कोर्ट ने भी इसमें हस्तक्षेप किया है. मैं इन सभी पचड़ों में नहीं पड़ना चाहती हूं क्योंकि जयवर्द्धन जी ने इस संबंध में काफी लंबी चर्चा की है और अक्सर इस सदन में इस विषय पर बातें गूंजती हैं. मैं तो केवल समाधान की बात करना चाहती हूं क्योंकि हम सभी जानते हैं हमारे मुख्यमंत्री जी, पूरा मंत्रिपरिषद और पूरा प्रदेश इस बात से चिंतित है कि किस तरह से हमारे प्रदेश से कुपोषण को दूर किया जाये. मुझे लगता है कि इस विषय में विशेषज्ञों से भी राय ली जा रही है और बहुत सी चीजें करने का प्रयास किया जा रहा है. लेकिन आज हमारे हाथ में कोई चीज नहीं लग रही है और कुपोषण बढ़ता जा रहा है. इसक दूर करने के लिये मैं एक उदाहरण बताना चाहती हूं कि एक बार एक सभा में सारे जनप्रतिनिधि मौजूद थे और कुछ कद्दावर नेता भी उस सभा में मौजूद थे, वहां पर लाखों की संख्या थी, सभा में अचानक भगदड़ मच जाती है और जितने कद्दावर थे, वह मंच से इस बात को कहते रहे कि आप लोग बैठ जाइये आप लोग शांत रहिये,इधर-उधर मत जाइये. यह सारी बातें मंच के माध्यम से होती है, लेकिन पब्लिक पर इसका कोई प्रभाव नहीं होता है और वहीं एक सामान्य व्यक्ति मंच पर जाता है और यह कहता है कि आप मुझे अवसर दो, शायद मैं अपनी बात रखूंगा तो शायद जो पब्लिक भगदड़ कर ही है, वह रूक जायेगी. वह व्यक्ति जब मंच पर जाता है तो सारे व्यक्ति कहते हैं कि हम लोग इतने-इतने बड़े नेता होकर यहां पर बात रख रहे हैं, जनता हमारी बात नहीं सुन रही है और आप एक सामान्य से व्यक्ति, ऐसा क्या बोल दोगे कि सारी पब्लिक रूक जायेगी. चलो ठीक है हम लोगों ने तो कोशिश कर ली है, अब आप एक बार देख लो. वह मंच पर जाकर कुछ नहीं करता है. वह मंच पर जाता है और हमारा राष्ट्र-गान '' जन-गण-मन'' गाना शुरू कर देता है. वह जैसे ही ''जन-गण-मन'' गाना शुरू करता है, सारी भीड़ जहां थी वहीं पर खड़ी हो जाती है.क्योंकि सामान्य व्यक्ति इस बात को अच्छे से जानता है कि हमारे देश के लोग, देश के प्रति कितना आदर करते हैं और वह जानते हैं कि ''जन-गण-मन'' चालू होगा तो वह सीधे खड़े हो जायेंगे. यह उदाहरण मैं इसलिये दे रही हूं कि आप कितने भी एक्स्पर्ट्स की राय ले लो, कुछ भी कर लो, लेकिन कुपोषण को दूर करने के लिये हमको बहुत छोटे से प्वाईंट से शुरू करना पड़ेगा, इसलिये मैं चाहती हूं कि सरकार अपना दिल बड़ा करे, क्योंकि जब भी कुपोषण से किसी बच्चे की डेथ होती है तो हमेशा उस जिले के कलेक्टर को दोषी बना दिया जाता है. लेकिन आप मुझे बताइये कि कोई महिला बाल विकास मंत्री को दोषी नहीं ठहराता है, कोई महिला बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव को दोषी नहीं ठहराता है.यदि कोई दोषी ठहराया जाता है तो उस जिले के कलेक्टर को दोषी ठहराया जाता है.
सभापति महोदय, क्या सारा दोष कलेक्टर का होता है ? यदि दोषी ठहराना है तो कलेक्टर,जबकि योजनाओं को लागू करवाना है तो इसके लिये विभाग जवाबदार है, इसके लिये विभाग, जो निर्णय करना है, वह विभाग करेगा.परन्तु दोषारोपण होगा तो कलेक्टर पर होगा.
सभापति महोदय, मैं जानती हूं कि मंत्री जी इस सदन में इसका जवाब नहीं दी सकती हैं, लेकिन मुझे इस बात का विश्वास है कि यदि मुख्यमंत्री जी के पास यह प्रस्ताव आयेगा कि इस पोषण-आहार की पूरी जिम्मेदारी, महिला विकास विभाग से हटाकर यदि सीधे कलेक्टर को दे दी जाये, पोषण आहार के वितरण से लेकर उसकी पूरी जिम्मेदारी दी जाये. जिस जिले को जितने बजट का आवंटन होगा, उस बजट के बंटवारें से लेकर, उसके टेण्डर से लेकर सारी जवाबदारी यदि आप कलेक्टर को दे देते हैं तो मुझे पूरा विश्वास है कि जिस तरह से कुपोषण हमारे प्रदेश पर हावी हो रहा है, उस पर निश्चित रूप से लगाम लगेगी, क्योंकि आज उसके पास सारी वह क्षमताएं हैं कि इस पर रोक लगा सकते हैं, लेकिन तब जब, उसके ऊपर आप पूरा अधिकार दो और आपको कुछ नहीं करना है. केवल आप एक बार दिल बड़ा करके देखो. आपने सारे हथकंडे अपनाकर देख लिये, हमने सब प्रयास करके देख लिये लेकिन कोई उपाय नहीं दिखता तो आप एक रास्ता ऐसा भी अपनाकर देखिये. मुझे पूरा विश्वास है कि माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी चौहान के पास यह बात रखेंगी तो वह इस बात को एक बार में मान लेंगे.
सभापति महोदय, वहीं मैं हमारी आंगनवाड़ी के बारे में कहना चाहती हूं . महिला बाल विकास विभाग की सबसे अंतिम कड़ी आंगनवाड़ी होती है, लेकिन जितनी इस विभाग की योजनाएं, चाहें वह करोड़ों, अरबों रूपये की हों, उनको अंतिम पड़ाव तक ले जाने का काम आंगनवाडि़यों के माध्यम से होता है.सबसे अंतिम लेकिन सबसे महत्वपूर्ण काम होता है, लेकिन आज हमारी उन आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की स्थिति, आपसे और हमसे छुपी हुई नहीं है. मुझे अच्छे से याद है कि जिस समय केन्द्र में कांग्रेस की, यूपीए की सरकार थी हमारी आंगनवाड़ी की कार्यकर्ताओं के लिये जो राशि का आवंटन होता था, उनको जो मानदेय मिलता था, वह 90:10 का रेश्यो हुआ करता था और उस समय तीन हजार रूपये आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को मिलता था, जिसमें 2700 रूपये केन्द्र सरकारी देती थी और हमारी राज्य की सरकार को मात्र 300 रूपये देने पड़ते थे. वैसे ही हमारी आंगनवाड़ी की सहायिकाएं हैं उनको 2500 रूपये मिलता था, जिसमें 1450 रूपये केन्द्र देता था और मात्र 50 रूपये राज्य सरकार को देना पड़ता था. जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार केन्द्र में बनीं है, हमारी इस प्रणाली में उन्होंने 90:10 के रेश्यो को खत्म करके 60:40 का रेश्यो कर दिया है और अब निश्चित रूप से राज्य सरकार के ऊपर प्रेशर आया है.
उनके ऊपर बजट का प्रभाव पड़ा है किन्तु आज यदि केन्द्र 1,800 रुपये दे रहा है तो राज्य को 1,200 रुपये देना पड़ रहा है. हम करोड़ों रुपयों की योजनाओं को लागू करवाने की बातें करते हैं और हम आंगनबाड़ी की हमारी कार्यकर्ताओं के माध्यम से उसको पूरा करते हैं तो यह हमारा फर्ज नहीं बनता कि हम उनकी तनख्वाह का भी ध्यान रखें. जब भी कोई शासकीय आयोजन होता है तो हमारी निगाहें सबसे पहले आंगनबाड़ी की कार्यकर्ताओं पर जाती है, हमें भीड़ इकट्ठी करनी है तो आंगनबाड़ी की कार्यकर्ताओं को लाकर हम सभा में बिठा देते हैं और मैं कांग्रेस या बीजेपी की बात नहीं करती. चुनाव के समय हमारी निगाहें आंगनबाड़ी की कार्यकर्ताओं पर जाती हैं और इसीलिए निगाह जाती है क्योंकि एक-एक घर और मोहल्ले में यदि किसी की पकड़ है तो वह आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की है, उनकी सहायिकाओं की है, तो सबसे पहला फोकस उन्हीं के ऊपर जाता है. जब काम लेने के लिए हम उनके ऊपर फोकस करते हैं तो क्या यह हमारा फर्ज नहीं बनता कि हम उनकी तनख्वाह बढ़ाएं, निश्चित रूप से केन्द्र की सरकार बदलने की वजह से राज्य शासन पर दबाव बना है. लेकिन फिर भी उनको इस सच्चाई को जानना पड़ेगा और उनका सही मानदेय देना पड़ेगा.
सभापति महोदय - हिना जी, अपनी बात समाप्त करें.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे - सभापति महोदय, मैं आपकी बात को सहर्ष स्वीकार करती हूँ. मैं अपनी अंतिम बात रखना चाहती हूँ. इस सदन में जब भी अनुदान मांगों पर चर्चा होती है, सारे विधायक उसमें भाग लेते हैं लेकिन सरकार, शासन उन सब बातों को गंभीरता से नहीं लेता है. मैंने इसी सदन में पिछले वर्ष महिला बाल विकास की चर्चा पर जब अपनी बात रखी थी तो उस समय भी कहा था कि हमारी जो बहनें हैं, हमारे प्रदेश की बच्चियां हैं, उनके कोचिंग की टाइमिंग में परिवर्तन होना चाहिए. उनकी कोचिंग रात-रात तक चलती हैं और हॉस्टल की टाइमिंग की वजह से उनको अपनी कोचिंग अधूरी छोड़कर वापस आना पड़ता है.
माननीय सभापति महोदय, यह बात मैं इसलिए कह रही हूँ कि हमारे प्रदेश में अभी जो घटनाएं घटी हैं, उनकी संख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है. मुझे लगता है कि यदि सरकार विधायकों की दी हुई सलाह एवं उनके दिए हुए सुझावों को गंभीरता से लेगी तो मुझे अच्छे से विश्वास था कि यदि उस सलाह को गंभीरता से शासन लेती और हमारे कोचिंग सेन्टर्स के टाइमिंग के लिए यदि कोई न कोई योजना बनाती तो मुझे लगता है कि अभी हाल ही में हबीबगंज के पास जो घटना घटी है, वह शायद घटने से बच जाती. हो सकता है कि माननीय मंत्री जी जब जवाब दें तो वे इस बात का उल्लेख करेंगी कि वह घटना शाम के 7 बजे घटी थी. यह बात 7 बजे और 8 बजे की नहीं है. यदि कोचिंग सेन्टर्स के टाइमिंग को लेकर इस विधानसभा की बात पर यदि कार्यवाही होती तो निश्चित रूप से कहीं न कहीं सारे रास्ते निकलकर आते और आज जिन घटनाओं का सामना हमारी बहनों एवं बच्चियों को करना पड़ रहा है, उसमें निश्चित रूप से कमी आती. यह सदन इसलिए नहीं होता कि हम यहां अपनी बात रखें और घर चले जाएं. यहां नियम बनते हैं, कानून बनते हैं और कायदे बनते हैं, वे इसलिए बनते हैं ताकि हमें जो फील्ड में दिक्कत हो रही है, हम उनको यहां पर रखें. मुझे लगता है कि यदि एक-एक विधायक की बात को शासन सुने और उनकी बात पर वह कोशिश भी कर ले कि जो सलाह विधायकों ने दी है, उसको मानने में कौन सी बुराई है ? आपको केवल उनकी देख-रेख ही तो करनी है.
माननीय सभापति महोदय, मैं आपका इशारा समझ रही हूँ. लेकिन कहीं न कहीं हम कांग्रेस के लोग हैं, लेकिन जब भी प्रदेश में इस तरह की कोई भी घटना घटित होती है तो हमारा सिर शर्म से झुक जाता है. यह कोई साधारण बात नहीं है. इस तरह की बातों को बहुत गंभीरता से लेना चाहिए और मुझे तो लगता है कि कोई विधायक चाहे वह कांग्रेस का हो, चाहे वह बीजेपी का हो, जब भी सलाह देता है तो वह प्रदेश की भलाई के लिए ही देता है क्योंकि उसको जनता के बीच जाना है, चाहे वह कांग्रेस का हो या बीजेपी का हो. इसलिए मैं चाहती हूँ कि इस तरह का जो विषय है, उसको सरकार गंभीरता से ले. आपने मुझे बोलने का समय दिया, उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
सभापति महोदय - धन्यवाद. देवेन्द्र वर्मा. श्रीमती चन्दा सुरेन्द्र सिंह गौर, आप बोलें.
श्रीमती चन्दा सुरेन्द्र सिंह गौर (खरगापुर) - सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 55 के विरोध में अपनी बात रख रही हूँ. महिला बाल विकास विभाग के संबंध में, मैं कहना चाहती हूँ कि 'मुखिया मुख सो चाहिए, खान पान को एक और पाले पोसे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक' ये पंक्तियां मैंने इसलिए कही हैं कि माननीय सभापति महोदय, मेरे खरगापुर विधानसभा क्षेत्र के टीकमगढ़ जिले में आंगनबाड़ी कार्यकताओं एवं सहायकों को नोटिस देकर पृथक किया गया है और उनके नोटिसों में यह लिखा गया है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता/सहायिका मुख्यालय पर निवास नहीं कर रही हैं. मैं यह कहना चाहती हूं कि जिस ब्लॉक परियोजना अधिकारी ने यह नोटिस जारी किये हैं, वह खुद मुख्यालय पर कभी निवास नहीं करती हैं, फिर भी उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती है क्योंकि वह ब्लॉक की अधिकारी हैं. मैंने इसलिये ऊपर इन पंक्तियों को बोला है.
माननीय सभापति महोदय, मैं महिलाओं के उत्पीड़न के संबंध में बोलना चाहती हूँ. पूरे प्रदेश में आज शासकीय और अशासकीय स्थानों पर जहां पर भी महिलायें कार्य कर रही हैं, उनकी सुरक्षा के लिये और महिला हित में संरक्षण के लिये परिवारवाद समिति का गठन किया जाना चाहिए, जिससे पूरे प्रदेश में महिलायें स्वतंत्र रूप से अपना जीवन जी सकें.
माननीय सभापति महोदय, मैं एक बात यह भी कहना चाहती हूं कि प्रदेश में कई स्थानों सहित टीकमगढ़ जिले में बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्रों में नाश्ता नहीं मिल रहा है. इसी संबंध में केंद्रीय मंत्री श्री वीरेन्द्र खटीक जी ने भी चिंता जाहिर की है परंतु विभाग द्वारा इन आंगनबाड़ी केंद्रों की देखरेख ठीक ढंग से नहीं की जा रही है. बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं. यह विभाग कागजों में आंकड़े कुछ भी बतायें परंतु धरातल पर हकीकत कुछ ओर ही है. इसलिए प्रदेश के कई बच्चे एवं बच्चियां जो कि प्रदेश के मामाजी जी के भांजे, भांजी हैं, वह काल के गाल में समा रहे हैं. खरगापुर विधानसभा में लगभग 100 से 150 आंगनबाड़ी केंद्र किराये के भवनों में चल रहे हैं, जिसकी व्यवस्था सुनिश्चित करने हेतु विभाग को अपने अपव्यय रोककर भवन बनाये जाने की दिशा में काम करना चाहिए. माननीय सभापति महोदय आपने बोलने का समय दिया इसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री आर.डी.प्रजापति (चन्दला) - माननीय सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 55 के समर्थन में अपनी बात रखना चाहता हूं. हमारी सरकार ने महिला बाल विकास के अंतर्गत बहुत सारी योजनायें संचालित की हैं, लेकिन मैं अपने क्षेत्र के बारे में ही कुछ बात आपको बता देना चाहता हूं. मेरा क्षेत्र उत्तरप्रदेश की सीमा से लगा हुआ होकर केन नदी के किनारे जहां पर आवागमन के कम साधन है वहां पर बसा हुआ है. हमारे यहां एक संजय जैन जी कार्यक्रम अधिकारी गये हैं, मैं आपको उनके बारे में बताना चाहता हूं कि वह स्वयं ही मध्यप्रदेश की जो श्रेणी होती है उसमें 126 वें स्थान पर है और इसके बाद भी श्री संजय जैन जी बड़ामलहरा, राजनगर तथा लवकुश नगर आईसीडी का परियोजना अधिकारी का प्रभार स्वयं लिये हैं. वह जिला के परियोजना अधिकारी हैं जबकि उन्हें वहीं के नजदीकी परियोजना अधिकारी को यह प्रभार देना चाहिए लेकिन वह स्वयं ही प्रभार लिये हुये हैं जबकि ऐसा करना बहुत गलत है.
माननीय सभापति महोदय, मेरा एक और निवेदन है कि साझा चूल्हा का जो देयक है वह देयक स्वयं नगर पंचायत को प्रमाणीकरण करते हैं और मैंने कई पत्र भी लिखें हैं लेकिन आज तक उसमें कोई कार्यवाही नहीं हुई है. एक दिलीप निगम जो बारीगड़ में बाबू है, वह 8-10 साल से पदस्थ है. वह केवल एक ही काम करते हैं कि जो समूह चलते है उन समूह से अनुबंध के बदले 5 से 10 हजार रूपए लेते हैं और प्रतिदिन उनकी गाड़ी सुबह से शाम तक जाती है और जब शाम को वे लौटते हैं तो 2-4 समूह से पैसा लेकर आते हैं. मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं कि एक समूह में 3 से 4 हजार रूपए जाता है, 6-7 हजार तो बहुत है, लेकिन उनको जो पैसा देता वह 20 हजार, 50 हजार और 70 हजार रूपए तक एक समूह को पैसा डालते हैं और वह कैसे डालते हैं, जबकि एक समूह को 6 से 7 हजार हजार से ज्यादा नहीं मिलता है. 20 से 25 पंचायतें ऐसी हैं जहां ग्रामीण समूह न चलकर शहरी समूह चल रहे हैं और एक दो समूह में पैसा जाता है और मेरा क्षेत्र जो छतरपुर जिला है वह हिन्दुतान में 115 वें स्थान पर कुपोषण में है कुपोषण की दृष्टि से भी सबसे कम है लेकिन वहां की जो आंगनवाड़ी कार्यकर्ता है वह छतरपुर में रहती है. चूंकि मुझे चुनाव लड़ना है इसलिए नहीं बताना चाहता हूं. कई महिलाओं और ये लोग पैसा लेकर उनको बता देते हैं कि वेतन आ गया है आधा आप रख लो और आधा वेतन हमें दे दो.
सभापति महोदय – माननीय सदस्य, इस बारे में आप माननीय मंत्री जी को भी अलग से लिखकर दे दीजिए.
श्री आर.डी. प्रजापति – माननीय मंत्री जी अलग से भी लिखकर दे दूंगा. लेकिन मेरा एक निवेदन है कि एक नामदेव जी है जो छतरपुर में पूरे जिले में.
सभापति महोदय – माननीय सदस्य, आपका कुछ सुझाव आ जाए.
राज्य मंत्री, सामान्य प्रशासन विभाग (श्री लाल सिंह आर्य) – प्रजापति जी अपना कोई कुपोषण तो नहीं है, कुछ आपका तो नहीं है.
श्री आर.डी. प्रजापति – नहीं मेरा नहीं है.
श्री कैलाश चावला – सभापति महोदय, जो माननीय मंत्री जी ने कहा है कि आपको कोई कुपोषण तो नहीं है उसको निकाल दिया जाना चाहिए, वह उचित नहीं है
सभापति महोदय – इसको विलोपित कर दें.
श्री लाल सिंह आर्य- फिर ठीक है.
श्री यादवेन्द्र सिंह – आप लोग सुनो, सही बात बोलने दीजिए उनको.
श्री आर.डी. प्रजापति – मेरा निवेदन है कि यह आदमी हटता नहीं है कई बार इसकी शिकायत हो चुकी है. अगर यह आधिकारी को हटा दिया जाए तो समय से पूरा काम हो जाएगा. क्षेत्र में ये अधिकारी कभी जाता नहीं है इसलिए कुपोषण हो रहा है. इसलिए श्री जैन को हटाया जाए. सब कुपोषण समाप्त हो जाएगा.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को - सभापति महोदय, माननीय मंत्री जी ने जो कहा है वह सही है, कुपोषित ही है.
श्री आर.डी. प्रजापति – जाके पैर न फटे बवाई, वह क्या जाने पीर पराई. मेरा क्षेत्र सबसे कमजोर है और मुझे मजबूरी में यह कहना पड़ता है. अगर यह बात सुन ली जाए तो मुझे कहना नहीं पड़ेगा. इसलिए कहना पड़ता है कि वहां यह काम अंधाधुंध चलता है. मैं इसलिए बता देना चाहता हूं कि एक भी महिलाएं वहां नहीं रहती है सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे क्यों है जब आंगनवाड़ी खुलती और उनको पोषण पोषण आहार जाता तो बच्चे क्यों कुपोषित होते.
सभापति महोदय – प्रजापति जी, मैंने इसलिए निवेदन किया आपसे कि आप इस बारे मंत्री जी को लिखकर दे दे. इसमें अगर कोई विभागीय सुझाव हो तो सुझाव रखें. समय का ध्यान रखें. (...व्यवधान)
श्री ओमकार सिंह मरकाम – सभापति महोदय, जी सही बात कर रहे हैं गंभीर विषय है उनको कहने दीजिए. (...व्यवधान)
श्री यादवेन्द्र सिंह – सदस्य सही बात कर रहे हैं, आपको बोलने नहीं दे रहे?
श्री आर.डी. प्रजापति – माननीय सभापति महोदय, मेरा व्यक्तिगत निवेदन है कि श्री जैन को वहां से हटाया जाए और श्री दिलीप निगम जो कई साल से वहां है और केवल एक ही काम करते हैं, जो शासन की योजना न चलाकर अपनी योजना चलाते हैं, उनकी जांच करवाई अगर जांच में वह दोषी नहीं पाए जाते हैं तो मेरे ऊपर कार्यवाही की जाए. मैं उसको भुगतने को तैयार हूं. आपने बोलने के लिए समय दिया बहुत बहुत धन्यवाद.
श्री यादवेन्द्र सिंह (नागौद) -- माननीय सभापति महोदय, मैं ज्यादा समय नहीं लूंगा और समय सीमा में अपनी बात को समाप्त करने का प्रयास करूंगा.माननीय महिला एवं बाल विकास मंत्री जी से मेरा एक अनुरोध है कि प्रदेश में महिला एवं बालकों के विकास से संबंधित यह विभाग है लेकिन इस विभाग में होने वाली भर्ती में नियंत्रण आज तक नहीं हो पाया है. महिला एवं बाल विकास विभाग में हर 2 वर्ष में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका की भर्ती की जगह निकलती रहती है. भर्ती के लिये जब फार्म की तारीख आती है तो खुले रूप से कार्यालय के बाबू और परियोजना अधिकारी इसको लेते हैं, फार्म में प्रोफार्मा पावती का रहता है उसमें सब जानकारी रहती है कि बीपीएल का प्रत्याशी है तो 10 नंबर, परित्यक्ता है, विधवा है, पांच साल के अनुभव का 10 नंबर, जाति प्रमाण पत्र के 10 नंबर ,ग्रेजूयेशन हैं तो उसके 10 नंबर, कुल मिलाकर के 50 नंबर दिये जाते हैं. उसके बाद उनकी भर्ती होती है. जब गांव की महिलायें आंगनवाड़ी में कार्यकर्ता और सहायिका के आवेदन पत्र जमा कर देती हैं उसके बाद फार्म की अंतिम तिथि के पश्चात तुरंत रिजल्ट घोषित हो जाता है. इसके बाद दूसरे दिन संबंधित परियोजना अधिकारी चपरासी को गांव में भेजता है और एक से दो लाख रूपये आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के और आंगनवाड़ी सहायिका के लिये 50 हजार रूपये सीधे सीधे चपरासी के माध्यम से परियोजना अधिकारी के पास में पहुंचते हैं. इसीलिये हमारी साथी आर.डी.प्रजापति जी कह रहे थे कि जिला परियोजना और तीन तीन विकासखण्ड का चार्ज लेकर के रखे हैं यह चार्ज इसीलिये यह परियोजना अधिकारी लेते हैं, जिले के अधिकारी लेते हैं. इसके बाद में चूंकि उनको भर्ती का अधिकार नहीं है, तो सीधे मेरिट लिस्ट बनाकर के भेज देते हैं जिला पंचायत अंतर्गत सामान्य प्रशासन विभाग को, वहां पर सीधे सीधे अनुमोदन हो जाता है और 20 से 25 लोगों की भर्ती में 25 लाख तक का टर्नओवर चलता रहता है. इस बात के लिये मंत्री जी से अनुरोध कर रहा हूं कि इस व्यवस्था को आप आज ही खतम करें और अपने वक्तव्य में इसका उल्लेख करें और इसमें विभाग को पारदर्शिता लाने की आवश्यकता है.
माननीय सभापति महोदय, यह व्यवस्था आज से नहीं 1978 से चल रही है. जब 1978-79 में मैं सरपंच बना था तब यूनीसेफ की गाड़ी आई थी और आंगनवाड़ी की स्थापना हम लोगों के सामने हुई थी , हम लोग भी भर्ती करते थे यह व्यवस्था उसी समय से चली आ रही है, जबसे पैसे का लेन देन शुरू हुआ 20 हजार से बढ़ते बढ़ते 2 लाख तक पहुंच गया है. मंत्री जी से यही कहना है कि इसके लिये कड़े नियम बनाये जायें. नहीं तो अभी तो चाहे आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हो या सहायिका हो किसी की भी नियुक्ति बिना पैसे के लेन देन के नहीं होती है.
माननीय सभापति महोदय, दूसरा मेरा मंत्री जी से अनुरोध है कि मेरे विधानसभा क्षेत्र में 84 गांव परसवनिया पठार के ऊपर हैं. वहां पर सर्वाधिक कुपोषित बच्चे हैं, जिले में मझगवां और परसवनिया कुपोषित बच्चो के मामले सबसे आगे हैं, मंत्री जी परसवनिया में विशेष ध्यान दें ताकि वहां पर कुपोषित बच्चों की संख्या घटे. कुपोषित बच्चे के होने का सिलसिला इन क्षेत्रों में कई वर्षों से चला आ रहा है.
माननीय सभापति महोदय, अंतिम निवेदन मैं माननीय मंत्री जी से यह करना चाहता हूं कि हमारे विधानसभा क्षेत्र में कई आंगनवाड़ी केन्द्र भवन विहीन हैं. उसमें वे भवन देने की व्यवस्था करें, और मेरे सुझाव पर मंत्री जी निश्चित रूप से अपने वक्तव्य में शासन का रूख स्पष्ट करेंगी ऐसी आशा और विश्वास के साथ मैं अपनी बात को समाप्त करता हूं. सभापति महोदय आपने मुझे अपनी बात को रखने का अवसर प्रदान किया उसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद.
श्री दिनेश राय (सिवनी)-- माननीय सभापति महोदय, मांग संख्या 55, महिला एवं बाल विकास, महिला एवं बाल के लिये यह विभाग है, लेकिन इसका फायदा पुरूष लेते हैं. हमारे जिले में महिला आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हों, चाहे सहायिका हों, अभी वह अपनी वेतनवृद्धि को लेकर हड़ताल में भी गईं, लेकिन वहां पर जो पुरूष प्रधान आंगनबाड़ी अधिकारी हैं माननीय मंत्री जी, उनका बर्ताव इतना गंदा रहा, उन लोगों ने हड़ताल में रो दिया. उन्होंने कहा कि हम अब दोबारा भोपाल हड़ताल में नहीं जायेंगे, न हम हड़ताल करेंगे. उनको प्रताडि़त किया गया. उसमें अधिकांश विधवा, परित्यक्ता, परेशान महिलाओं को ही तो आपने नौकरी में लगाया है और उनके साथ जिस तरह से क्रूरता से वहां के अधिकारियों ने उनके ऊपर दवाब बनाया, जैसे वह अपने आप को माई-बाप समझने लगे, जैसे सरकार उन्हीं की है और वह अधिकारी, कर्मचारी खुद उनके माई बाप हो गये हों, इस तरह से उन पर दवाब बनाया. मेरा आग्रह है, ऐसी कुछ नीति आप लायें कि एक वर्ष से ज्यादा कोई भी पुरूष उस कार्यालय में न रहे, उनका स्थानांतरण करते रहें जिससे उनकी मोनोपॉली अपने अधीनस्थ छोटे कर्मचारियों के ऊपर न चले, ऐसा मेरा आपसे आग्रह है. क्योंकि जिस विभाग में 2-2, 3-3 साल हो जाते हैं तो उतने लांग पीरियड में वह अधीनस्थ महिलायें दवाब में, डर में और भय में उनकी हर बातों को मानती हैं और शोषित भी होती हैं. अभी ज्यादा बोलने की जरूरत नहीं है, जिस तरीके से प्रजापति जी ने कह दिया है, 90 प्रतिशत काम हर विधान सभा का, हर विधायकों का उन्होंने कर दिया है, क्योंकि इस तरह से समस्यायें हैं और जो कहीं न कहीं सरकार तक नहीं पहुंच पातीं हैं, इन अधिकारियों की मिलीभगत की वजह से जिसके कारण आप इनको दंडित नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि बिना लिये दिये कोई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की भर्ती आपके यहां होती ही नहीं है. मैं माननीय मंत्री जी से अनुरोध करना चाहता हूं कि आप एक बार जमीनी स्तर पर जरूर निरीक्षण करा लें, अगर किसी का गलत तरीके से इन्होंने कर दिया और किसी कार्यकर्ता किसी आवेदक ने आवेदन लगाया उसका उन्होंने रोक दिया और उसको भी प्रताडि़त करना चालू कर दिया और दोनों से पैसे ले लिये और दोनों का कोई हिसाब नहीं, कब वापस करेंगे.
माननीय सभापति महोदय, अभी आंगनबाड़ी की बिल्डिंगों की हमारे क्षेत्र में बहुत कमी है, गांव बड़े-बड़े हो गये हैं, आपने इनको ग्राम पंचायत स्तर तक रखा है, प्रत्येक गांव में अगर आंगनबाड़ी भवन और कार्यकर्ता होंगी तो बहुत बेहतर होगा. कई नगरीय क्षेत्रों में वार्ड काफी बड़े हैं, 2-2, 3-3 आंगनबाडि़यों की वहां पर आवश्यकता है, क्योंकि छोटे बच्चे रहते हैं वह इतना लंबा नहीं चल सकते हैं, कोई गांव 2 किलोमीटर, 3 किलोमीटर दूर है, हम कैसे उम्मीद कर लें कि उन बच्चों को उन आंगनबाड़ी तक पहुंचाया जा सके. मेरा आपसे विनम्र आग्रह है कि प्रत्येक ग्राम में आवश्यकतानुसार आंगनबाड़ी केन्द्र आप खोलें और बिल्डिंग की भी जिस तरह से आवश्यकता है उस पर ध्यान दें और जो कुपोषण की बात आई थी, वास्तव में हमारे क्षेत्र में कुपोषण है. वहां के अधिकारी, कर्मचारी जनप्रतिनिधियों से आग्रह करते हैं कि उन बच्चों को गोद ले लें, हम लोग गोद लेते हैं, उनके लिये करते हैं. कहीं न कहीं वहां पर सभी अधिकारी, कर्मचारी उन बच्चों को गोद लें और उनको कुपोषित होने से बचायें. बच्चे कुपोषित हो रहे हैं, लेकिन वहां पर रहने वाला अधिकारी कुपोषण का शिकार क्यों नहीं हो रहा है, कहीं न कहीं वह कंपनी उन अधिकारियों को दाल दलिया अच्छा खिला रही है और हमारे उन बच्चों को कहीं न कहीं कमी तो है. मेरा आग्रह है कि जमीन स्तर पर मंत्री जी इसकी जांच करा लें और सिवनी में भी आप कभी आयें तो बायपास से न निकलें, कभी एकाध कार्यक्रम जिले में रखें तो बहुत बेहतर होगा. माननीय सभापति जी, बोलने का मौका दिया, धन्यवाद.
श्री शैलेन्द्र पटेल (इछावर)-- माननीय सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 55 के कटौती प्रस्ताव के समर्थन में बोलने के लिये खड़ा हुआ हूं. समय का ध्यान रखते हुये अपनी बात रखूंगा. तीन-चार लाइनों में अपनी बात खत्म कर दूंगा. किसी भी योजना को नीचे तक ले जाने में जो अंतिम कार्यकर्ता है उसकी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि क्रियान्वयन का काम उस गांव में रहने वाले, शहर के उस वार्ड में रहने वाले प्रत्येक घर में वह योजना पहुंचाने का काम वह आंगनबाड़ी की सहायिकायें करती हैं और उनकी जो अभी हड़ताल थी वह इसी बात को लेकर थी कि उनको जो मानदेय दिया जाता है वह बहुत कम दिया जाता है, उसमें उनका गुजर-बसर नहीं होता है और कहीं न कहीं योजनाओं को जिस तरह से शासन की मंशा है और उस मंशा के अनुरूप काम नहीं होने का सबसे बड़ा कारण यह भी है कि जो उनका मानदेय है वह बहुत कम मिलता है और मानदेय की कमी के कारण भी पूरा मन लगाकर काम नहीं होता है, उनकी मांग की ओर सरकार को सोचने की आवश्यकता है क्योंकि कलेक्टर रेट से भी वेतन कम मिलता है वह लोग 3-4 हजार रूपये में काम करते हैं. इतने पैसों से घर चलाना बड़ा मुश्किल होता है. इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है. मैं मंत्री जी को एक सुझाव देना चाहता हूं कि जिस भी सेन्टर में कुछ कुपोषित बच्चे रहते हैं उनको सहायिकाएं और विभाग बाहर निकालने का काम करता है इनको पारितोषिक देने की भी व्यवस्था होना चाहिये ताकि उन बच्चों को लगन से बाहर निकालकर के लेकर आयें. साथ में एक समय के दौरान बच्चे आगे नहीं निकलते हैं तो उन अधिकारियों के ऊपर कार्यवाही होनी चाहिये. मैं एक और सुझाव देना चाहता हूं कि यह विभाग, महिलाओं एवं बाल विकास से जुड़ा हुआ है माननीय मंत्री जी महिला हैं, अगर इसमें पूरा अमला महिलाओं का दे दें तो निश्चित रूप से इससे ज्यादा अच्छे से काम हो जाएगा, क्योंकि उनकी भावनाएं वह अच्छी तरह से समझ सकती हैं. पी.एस.से लेकर नीचे जिला परियोजना अधिकारी से लेकर ब्लाक लेवल तक अगर हम मध्यप्रदेश में प्रयोग कर सकते हैं, तो निश्चित रूप से इसके सकारात्मक परिणाम सामने आयेंगे. महिलाएं हमेशा से ही महिलाओं एवं बच्चों से जुड़ी रहती हैं. हमारी आंगनवाड़ियां बहुत अच्छे से काम करती हैं. मेरे विधान सभा क्षेत्र थूना में एक आंगनवाड़ी बनी हुई है. हमारे राजीव सिंह जी अधिकारी थे उन्होंने यूनिसेफ में भी काम किया है. उन्होंने बच्चों के लिये प्ले ग्राऊंड तथा प्ले स्टोर बनाये थे वहां पर कई बार प्रोग्राम हुए, लेकिन माननीय मंत्री जी नहीं आ पाईं. इसी तरह से बरखेड़ाकुर्मी गांव में आई.टी.सी. के सहयोग से एक आंगनवाड़ी बनी वहां माननीय दीपक जोशी जी पहुंचे थे. जहां पर जो एन.जी.ओ हैं या बहुत सारी प्रायवेट कम्पनी हैं उनके सहयोग से बहुत सी आंगनवाड़ियां अच्छी बनकर निकल आ रही हैं. उनके मॉडल्स को भी हमको देखना होगा मंत्री जी ऐसी जगहों पर विजिट करें वहां पर क्या क्या बच्चों को सुविधाएं हैं जैसे प्ले-स्कूल की अवधारणा है, उन स्कूलों में डालेंगे तो निश्चित रूप से उन स्कूलों में जाएंगे तो उसका फायदा होगा. आज सुबह एक कार्यक्रम में बिल्कीजगंज गया हुआ था वहां पर सेल्फ हेल्थ ग्रुप की महिलाओं का एक कार्यक्रम था वहां पर समर्थन के एन.जी.ओ ने उनके बीच में एक चुनाव करवाया 120 संस्थाएं थीं उनका रजिस्ट्रेशन था, वहां चुनाव हुआ. इस तरह के काम जब एन.जी.ओ कर सकता है. यह सरकार भी इस काम को बखूबी कर सकती है. एक और मेरा सुझाव है कि जो हम पोषण आहार की बात करते हैं. पुराने हमारे लोग थे तब इतना कुपोषण नहीं होता था. कहा जाता था कि हमारी दादी के नुस्खे और हमारी बुजर्ग लोगों को सारी जानकारियां थीं कि कौन सा आहार लेना चाहिये जिससे कुपोषण न हो. यही सब चीजें जब हम स्कूल के सिलेबस में छठवी-सातवी-आठवीं में डालते हैं तो बच्चों व बच्चियों के मन मष्तिष्क में यह बात आ सकती है कि कैसे बच्चों का कुपोषण दूर हो सकता है, किन चीजों के भोजन का हमें उपयोग करना चाहिये. वह अगर शिक्षा विभाग से मिलकर महिला बाल विकास वाले बात करेंगे तथा उनके सिलेबस में डलवाएंगे तो निश्चित रूप से उनके मन-मष्तिष्क में रहेगा. जब वह अपने मुकाम पर पहुंचेंगे तो वह अपने घर में भी उस तरह का पोषण आहार बना पाएंगी. आपने समय दिया धन्यवाद.
श्री ओमकार सिंह मरकाम (डिण्डोरी)--सभापति महोदय, यह सबसे महत्वपूर्ण विभाग है. भारत देश में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का कार्यक्रम चल रहा है. आजादी के बाद जो सभ्य समाज है उन्होंने बच्चों के ऊपर अपराध में अपनी पूरी भूमिका निभाई है. मुझे इस बात पर गर्व होता है कि जो आदिवासी समाज मध्यप्रदेश के अंदर है. चाहे बड़वानी, डिण्डोरी के हों, महिलाओं के सम्मान देने में प्रथम स्थान अर्जित किया है. इसलिये पुरूष एवं महिलाओं के गणना में जिले में महिलाओं की संख्या ज्यादा है. आज इस विभाग की चर्चा में मैं उम्मीद कर रहा था कि जी.एस.टी. के बाद जो बजट होगा वह महिलाओं पर केन्द्रित बजट होगा. प्रगति एवं महिलाओं के उत्तरोतर विकास के लिये प्रावधान किये जाएंगे, पर ऐसा कुछ हुआ नहीं है. माननीय मंत्री जी अभी सीधे जवाब में कहेंगी कि आपने 70 सालों में आपने क्या किया ? यह संकीर्णता का परिचय नहीं देना चाहिये विकास कार्यों की हमारी जो जिम्मेदारी है हम उनके लिये क्या अच्छा कर सकते हैं उसको करने की आवश्यकता है. आंगनवाड़ियों के लिये बजट में प्रावधान ही नहीं है. हम लोग भी चिट्ठी लिखते हैं, हम भी क्या करें. एक पंचायत से भी कम बजट विधायक निधि का बजट है. यह बड़ा कठिन कार्य है. सरकार के महिलाओं एवं बच्चों के लिये बजट प्रबंधन के विषय में कुछ करना चाहिये. मंत्री जी, से प्रार्थना करना चाहता हूं कि मुझे लग रहा है कि हमारी महिलाओं के विकास के लिये जो कार्य करते हैं उससे पहले महिलाओं के सम्मान करने की भी हमारी पहली जिम्मेदारी है. मैं तो यह कहना चाहूंगा मुझे अत्यंत खेद होता है जब किसी मंत्री का कार्यक्रम हो गया, किसी का कार्यक्रम हो गया तोहमारी बहनें,बेटियां जो मां बनती हैं. मां बनने का उनका एक समय होता है उनको गोद भराई के कार्यक्रम में ले आते हैं. मैं पूछना चाहता हूं कि मध्यप्रदेश के कितने बड़े परिवारों की बेटियां,लोग गोद भराई में गये हैं. क्या गरीब लोगों को ही प्रदर्शित करने के लिये उनको ले आते हैं. क्या उनके सम्मान की रक्षा नहीं करना चाहिये. अरे,मदद करिये एक नारियल और आधा किलो गुढ़ दे देने में आप क्या चाहते हैं. मेरा निवेदन है अगर मंत्री महोदया आप वाकई महिलाओं के सम्मान के विषय में थोड़ा सा भी सोचती हैं तो आज घोषणा करिये कि गोद भराई के कार्यक्रम में कोई मंत्री जाकर वहां उस पर माला नहीं चढ़ाएगा. माला चढ़ाने की क्या परंपरा है,वहां पर जाकर गोद भराई की क्या परंपरा है. मैंने हमेशा इस बात का विरोध किया कि जो योजना देना है उनके सम्मान के लिये दे दीजिये. गरीब महिला है तो उसकी मर्यादाओं का ध्यान नहीं रखेंगे. तार-तार कर देंगे. मेरा निवेदन है आपके माध्यम से कि यह जो गोद भराई का कार्यक्रम है उसमें सार्वजनिक जगह पर लाकर,पीड़ा पर बैठाकर,उनको माला चढ़ाकर के यह बताया जाता है समाज के अंदर कि ये मां बनने वाली हैं. क्या यह उचित है. क्या इस देश में यही परंपरा कायम होगी. भारत माता की धरती पर क्या महिलाओं के साथ यह बात होगी. मेरा माननीय मंत्री महोदया जी से निवेदन हे कि गोद भराई कार्यक्रम में जितनी राशि दी जाती है. एक नारियल और गुढ़ से काम नहीं चलेगा उसका बजट बढ़ा दीजिये और मंत्री जी के सामने बैठाकर उन गरीब महिलाओं को,अगर आपमें हिम्मत है तो मध्यप्रदेश के अन्दर मंत्रालय में जो ब्यूरोक्रेट्स हैं अगर यह अवसर आता है अगर उनके साथ आप यह करकर बताईये तो मैं मानूंगा. गरीबों का आप इस तरह से मजाक मत उड़ाईये. योजना बंद न कराईये. उसमें पैसा दीजिये परंतु इस परंपरा को बदलने की कोशिश कीजिये. हम जहां देखते हैं. मुख्यमंत्री जी जाएंगे,गोद भराई का एक अलग पंडाल लगा है.मंत्री जी जाएंगे गोद भराई का एक अलग पंडाल लगा है. मंत्री महोदया,चूंकि आप महिलाओं के सम्मान और अस्मिता को अच्छी तरह समझते हैं और दूसरी बात कि व्यक्ति के जन्म के बाद पहला ज्ञान देने का कार्य आँगनवाड़ी कार्यकर्ता करते हैं. वर्तमान समय में लगातार वह अपनी बातों को रख रह रहे हैं. मेरा एक प्रस्ताव है कि आप वाकई में महिलाओं के सम्मान के लिये दृढ़संकल्पित हैं तो आंगनवाड़ी कार्यकर्ता उपयुक्त शब्द नहीं है. उन्हें प्रथम गुरू का दर्जा देना चाहिये तनख्वाह बढ़ाओगे,क्या करोगे,अलग विषय है परंतु आज मंत्री महोदया जी अगर आप वाकई महिलाओं के हितैषी हैं तो पूरे आंगनवाड़ी कार्यकर्ता महिलाएं हैं. एक भी पुरुष कार्यकर्ता नहीं है. महिला कार्यकर्ता हैं तो कर दीजिये घोषणा उनको आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की जगह प्रथम गुरू का दर्ज देना चाहिये. वह अ अनार,आम,ईमली पढ़ाते हैं. तो आखिर कार्यकर्ता कैसे हो गये. पढ़ाने वाले को आप कार्यकर्ता कह रहे हैं. कार्यकर्ता की अलग परिभाषा होती है. किसी भी साहित्यकार से पूछ लीजिये.बड़े-बड़े आई.एस.एस. अफसर बैठे हैं. उनसे पूछिये कि इसकी परिभाषा क्या होती है. मैं तो चाहता हूं अगर महिलाओं के हित की आप बात करते हैं तो आज घोषणा करिये कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की जगह प्रथम गुरू का उनको दर्जा होना चाहिये और जो सहायिकाएं होती हैं उनको द्वितीय गुरू का दर्जा होना चाहिये. वह बच्चों की देखरेख करते हैं. माननीय मंत्री महोदया जी, आप महिलाओं का दर्द आप समझ सकती हैं. हम लोग तो बात ही करेंगे. " जाके पैर न फटे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई" लेकिन हमारी जो सोच है उसके लिये हम कहना चाहते हैं और हम तो यह भी कहेंगे कि माननीय मंत्री महोदया जी, आप बहुत सीनियर हैं और इन्दौर जो मध्यप्रदेश की इकोनामी राजधानी इन्दौर वहां से हैं तो आप महिलाओं के विषय में जो बजट के प्रावधान रखना चाहिये उसमें भी आप कोशिश करेंगे. आंगनवाड़ी भवन बनाने के लिये कोशिश करेंगे. अभी जिस तरह से आंगनवाड़ी बंद थीं. सब कार्यकर्ता आंदोलन में बंद थे क्या आप बताएंगी उस समय कैसे आपने उन बच्चों के लिये भविष्य के लिये क्या प्रबंधन किया था. आपने उनकी शिक्षा देने की पर्याप्त व्यवस्था की थी ? नहीं की थी तो उनके नुकसान की भरपाई कैसे होगी क्योंकि एक-एक दिन बच्चों के लिये महत्वपूर्ण होता है जो पढ़ता है. अंत में मैं तो यह कहूंगा कि महिलाओं के लिये सरकार को कोशिश करना चाहिये. मैं इन पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त करूंगा कि -
" प्रताड़ित मत करिये महिलाओं को,
महिलाओं को भी मुस्कान चाहिये,
हंसती मुस्कुराती आगे बढ़ें मेरे देश की महिलाएं,
मुझे ऐसा हिन्दुस्तान चाहिये. मुझे ऐसा हिन्दुस्तान चाहिये "
धन्यवाद.जय हिन्द.
महिला एवं बाल विकास मंत्री (श्रीमती अर्चना चिटनीस )- माननीय सभापति महोदय, आज महिला एवं बाल विकास विभाग की बजट की मांगों पर जिन भी माननीय विधायक बंधु और बहनों ने बात की, मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता है कि सबने अपने दिल और दिमाग दोनों से बात की, हृदय की गहराइयों से महिलाओं का सम्मान करते हुए, महिलाओं के प्रति संवेदनशील होते हुए और बहुत-से ऐसे सुझाव भी मुझे इस चर्चा में मिले, जो ऐसे हैं जिनका हम परिपालन कर सकते हैं. हम अपने विभाग के कार्यशैली में, उसकी परिणति में और बेहतरी लाने की परिस्थितियों तक हम आप सबके सुझावों से पहुंच पाएंगे. मैं आज बहुत जवाबदारी से कुछ बातें माननीय सभापति महोदय, आपके माध्यम से माननीय सदस्यों तक पहुंचाना चाहती हूं. एनएफएचएस 2, एनएफएचएस 3 और एनएफएचएस 4 के कुछ आंकड़ों को माननीय सदस्यों के सामने प्रस्तुत करना चाहती हूं. अपने आप में यह उनका अधिकार है, यह उनका राइट टू इनफॉर्मेशन है, जिसको मैं सदन के माध्यम से न केवल उन तक बल्कि उनके माध्यम से मध्यप्रदेश के जन-जन तक और फिर मीडिया के बंधु और बहनों तक पहुंचाना चाहती हूं.
माननीय सभापति महोदय, एनएफएचएस 2, वर्ष 1998-99 का सर्वे है, जिसमें प्रति हजार जो इनफेंट मोर्टेलिटी रेट था वह 88 था, प्रति हजार बच्चों के जन्म पर 88 बच्चे जी नहीं पाते थे. भगवान को प्यारे हो जाते थे. एनएफएचएस 3 में इसमें सुधार आया और वह सुधार 69 तक पहुंचा. एनएफएचएस 4 में उसमें और सुधार आया और वह सुधार 69 से बढ़कर 51 तक पहुंचा और यह सारा सुधार मैं किसी एक सरकार के कार्यकाल की बात नहीं करूंगी. मैं अपने मध्यप्रदेश के बच्चों की बात करूंगी.
सभापति महोदय - यह पूरे मध्यप्रदेश के गौरव की बात है.
श्रीमती अर्चना चिटनीस - माननीय सभापति महोदय, मैं इसको बहुत एम्फेसिस के साथ अंडरलाइन करके कहना चाहती हूं कि शिशु मृत्यु दर में 10 साल में जो सुधार हुआ, वह तीन अंकों में कमी आई थी और पिछले 10 सालों में एनएफएचएस 3 और एनएफएचएस 4 के बीच में जो सुधार हुआ, हम यह कह सकते हैं कि आज लेटेस्ट एनआईएन के सर्वे के अनुसार 82 से घटकर 47 प्रति हजार की जो कमी है वह 35 अंकों की कमी है जिसको लेकर एक ओर प्रसन्नता की बात है तो दूसरी ओर यह जवाबदारी की बात भी है कि प्रति हजार 47 होना भी हमारे लिए प्रसन्नता का विषय नहीं है, संतोष का विषय भी नहीं है. मेरे प्रदेश के मुख्यमंत्री का जब 12 साल का उनका कार्यकाल पूरा हुआ, हम उस पर खुशियां मना रहे थे, उन्हें बधाई दे रहे थे. वे इसको लेकर प्रसन्न थे कि इरिगेशन बढ़ा, वे इसको लेकर आनन्दित थे कि सड़कें बेहतर हुईं, वे इसको लेकर बहुत प्रसन्न थे कि बिजली बेहतर हुई. साथ ही साथ हमारे मुख्यमंत्री ने इसको कहने में कोई संकोच नहीं किया कि हम 82 से कम होकर चाहे 47 तक पहुंच गए, 10 साल में हम 69 से कम होकर चाहे 51 और अब 47 पर पहुंच गए, तब भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी उसको बहुत जवाबदारी, संवेदनशीलता से आज भी अपनी चुनौती मानते हैं और मैं आपके माध्यम से सदन को बताना चाहती हूं कि हमारे देश के जितने बड़े प्रदेश हैं उन सारे प्रदेशों में सबसे अधिक इम्प्रूवमेंट अपने मध्यप्रदेश में आईएमआर की दृष्टि से हुआ है. सभापति महोदय, 1998-99 में बंधुओं और बहनों, संस्थागत प्रसव 22 प्रतिशत था और 2005-06 में केवल 26.2 प्रतिशत था, मतलब 10 साल में हम केवल 4 प्रतिशत संस्थागत प्रसव को बढ़ा पाए थे. मैं पुन: कहती हूं कि अस्पताल में होने वाली डिलेवरी की संख्या 22 से 10 साल में बढ़कर केवल 26.2 प्रतिशत हुई थी और गत 10 वर्षों में 2005-06 से लेकर 2015-16 तक संस्थागत प्रसव 26.2 से बढ़कर 80 प्रतिशत हो गया. और 2016 से लेकर विगत दो सालों में यह 4 प्रतिशत और बढ़ा है. आज की तारीख में मैं बहुत जवाबदारी से आप सबसे कहना चाहती हूं कि हम जब सरकार में आए तब 26.2 से कम संस्थागत प्रसव था, जो आज बढ़कर करीब 84 प्रतिशत, जो लगभग नेशनल एवरेज के बराबर है, पर पहुंच गए हैं और इसको 100 प्रतिशत तक पहुंचाने की जवाबदारी मध्यप्रदेश सरकार पर है और वह हम पहुंचाएंगे. मैं माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी, मुख्यमंत्री जी और सभी जमीनी अमले से लेकर ऊपर तक के सभी अधिकारियों को इसकी बधाई देती हूं जिन्होंने संस्थागत प्रसव के क्षेत्र में मध्यप्रदेश का सिर देश में ही नहीं संसार मे गर्व से ऊंचा किया है.
सभापति महोदय, हमारा शब्द तो पोषण है. सच में दिल रोता जब इस पोषण शब्द के आगे 'कु' लग जाता है और इस पर भी मैं आपसे बहुत लंबी बात नहीं करूंगी, समय की पाबंदी जैसे माननीय विधायकों के लिए है, मेरे लिए भी है और जो महत्वपूर्ण है वह बताने के लिए आप मुझे समय दें, ऐसी मेरी आपसे प्रार्थना है. अण्डरवेट बच्चे 1998-99 में 50.8 बच्चे जितना वजन होना चाहिए उससे कम थे. यानी 100 में से आधे बच्चे, यह चिंता की बात थी और 10 सालों में यह 50 से कम नहीं हुए. मैं पुन: कहना चाहूंगी कि 10 सालों में अण्डरवेट बच्चे 50 से कम न होकर 50 से बढ़कर 60 प्रतिशत हुए थे. मैं इस मार्मिक विषय को लेकर किसी सरकार या दल का नाम इस पवित्र सदन में नहीं लेना चाहती. 10 साल में अण्डरवेट बच्चे 10 प्रतिशत बढ़ गए और 2005 और 2006 के बीच में, यह मध्यप्रदेश सरकार का सर्वे नहीं, यह राष्ट्रीय स्तर का सर्वे है, यह थर्ड पार्टी सर्वे है, यह बड़े अच्छे आंकड़ों पर किया गया सर्वे है, 10 साल में जो ऐतिहासिक हमें 60 प्रतिशत अण्डरवेट बच्चे मध्यप्रदेश की सरकार को जब वर्तमान सरकार, सरकार में आई तब मिले, वह कम होकर 42.8 हुए हैं. ऐसा एनएचएफएस 4 का सर्वे कहता है, सभापति महोदय, यह मैं आपके माध्यम से इस सदन को बताना चाहती हूं और जो सीवियर अण्डरवेट बच्चा है वह 27.3 था, वह 14.3 हुआ है. लगभग मैं समझती हूं कि यह आधे से कम हुआ है. ऐतिहासिक तौर पर जो परिस्थितियां हमें मिलीं उसमें सुधार हुआ है, परंतु हम जहां हैं उससे और बेहतर होने की जवाबदारी हमारे शासन में बैठे हुए लोगों की भी है,हम सब की है, समाज की है और उसको करने के लिये मध्यप्रदेश की सरकार जो प्रयास कर रही है, उसको संक्षिप्त में मै आपके माध्यम से बताना चाहूंगी.
सभापति महोदय, एक बहुत बड़ी जवाबदारी होती है, प्रत्येक बच्चे का वजन लेना जो आंगनवाड़ी में आता है और हर बच्चे का वजन लिया जाये, मैंने यह देखा कि एनएफएचएस-फोर का जो आंकड़ा है और मेरे विभाग का जो एमआईएस है, वह आस-पास होना चाहिये. अगर उसमें दूरी है, तो हमें काम को और बेहतर तरीके से करना चाहिये. उसकी माइक्रो प्लानिंग करना चाहिये. जो काम आंगनवाड़ी कार्यकर्ता का हर बच्चे का वजन लेने का था, विशेष वजन अभियान चलाकर उस काम को करने के लिये सुपरवाइजर्स को निर्देशित किया गया है. शत प्रतिशत बच्चों का वजन सुपरवाइजर्स ने लिया. एक संख्या दी गई कि इतनी आंगनवाड़ियों का वजन सीडीपीओ भी जाकर लेंगे. इतनी आंगनवाड़ियों का वजन डिस्ट्रिक्ट के हमारे डीपीओज़ भी लेगें और कुछ आंगनवाड़ियों का वजन जे.डीज़ भी लेंगे. हमारे कमिश्नर, प्रिंसपिल सेक्रेट्री, मैंने, हमारे विधायक, मंत्री साथियों ने इस विशेष वजन अभियान में हिस्सा लिया और जब हम विशेष वजन अभियान कर रहे थे, तब कई बार हमारे मीडिया के मित्र इस बात को ही सुर्खियों में छापते थे कि इतना वजन हुआ, इतने बच्चों में से इतने बच्चों का कम वजन लगा. मुख्यमंत्री जी भी मेरी ओर चिंता से देखते थे. वे कहते थे कि बहन यह क्या हो रहा है. तब आप जो साहस की बात करते थे न, आप जो हिम्मत की बात कर रहे थे, उसी हिम्मत और साहस का परिचय देते हुए मेरे विभाग में विशेष वजन अभियान चलाकर इसको अण्डर लाइन करने में, इसको सार्वजनिक करने में, इसका अहसास करने में कमी नहीं की कि हमारे अण्डर वेट बच्चे कितने हैं. नहीं तो कई बार यह होता था कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता अकेले अकेले आंगनवाड़ी सहायिका के साथ वजन ले रही हैं. कभी समझ पा रही हैं, नहीं समझ पा रही हैं और कभी कभी ले रही हैं, कभी नहीं ले रही हैं. कभी लिख रही हैं, लेकिन जब सामूहिक जवाबदारी दी गई, तो विशेष वजन अभियान युद्ध स्तर पर मध्यप्रदेश में चला और मुझे यह कहने में बहुत प्रसन्नता है कि 65 लाख 85 हजार 303 , यह छोटा आंकड़ा नहीं है. 65 लाख 85 हजार 303 बच्चों का वजन पूरे मध्यप्रदेश में विशेष वजन अभियान के तहत लिया गया और एक प्रकार से भाइयों, यह अपने पास बेस लाइन सर्वे आ गया. यह कोई सेम्पल सर्वे नहीं था. यह टोटल सर्वे आ गया, शत प्रतिशत बच्चों का वजन लेकर जिन पर हमें काम करना है, हमें कैसे काम करना है, इनको हमें कैसे इम्प्रूव्ह करना है और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता का काम एक ओर जहां आंगनाड़ी संभालने का है, आंगनवाड़ी सहायिका का काम घर घर जाकर बच्चों को लाने का है. कई बार मैं और आप हम जब आंगनवाड़ी में जाते हैं या कोई अफसर आंगनवाड़ी जाते हैं, तब हमें जो बच्चे आंगनवाड़ी में दिखते हैं, उनमें से एक बच्चा वह नहीं दिखता, जिसकी फोटो हम देखते हैं. जिस कमजोर और अण्डर वेट और सीवियर एक्यूट मेल न्यूट्रीशन बच्चे की हम फोटो देखते हैं. वह आंगनवाड़ी में कई बार हमें दिखता नहीं है, जिसकी चिंता हमें करनी है. इसलिये विशेष वजन अभियान के फालोअप में दीनदयाल उपाध्याय जी के नाम से हमने विशेष पोषण अभियान चलाया, जिसमें केवल इतना किया, जो कुछ हो रहा था, उसको 29 बिन्दुओं में नीचे तक इनस्ट्रक्शंस दिये. हर इनस्ट्रक्शन पर किसको क्या करना है, करने वाले को कौन मॉनीटर करेगा, हर बच्चा आंगनवाड़ी आये, इस सारे अभियान से आंगनवाड़ी की उपस्थिति बढ़ी और जब उपस्थिति बढ़ेगी तो निश्चित तौर पर सर्विसेस में भी इम्पूव्हमेंट आयेगा. मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता है कि हमारे एक विधायक साथी ने इस बात के लिये कहा कि गोद भराई का कार्यक्रम सार्वजनिक तौर पर नहीं होना चाहिये. महिलाओं के सम्मान के लिये आपके कनसर्न को, आपके इस भाव को मैं प्रणाम करती हूं और मैं आपको यह भी बताना चाहती हूं कि जो गोद भराई का कार्यक्रम है, वह पब्लिक फंक्शन नहीं है. उसका जो इंस्ट्रक्शन है, हर मंगलवार को आंगनवाड़ी में मंगल दिवस मनाया जाता है और अब यह अनुभव क्योंकि आप सच कह रहे थे कि जाके पाँव न फटी बिवाई वह क्या जाने पीर पराई. आप जो भी कह रहे थे, मैं उससे सहमत हूँ. जब स्त्री माँ बनने वाली होती है तब उसको इसकी शर्म नहीं होती, बल्कि तब उसको इसकी प्रसन्नता होती है. इस खुशी को वह बांटना चाहती है. जब पहली बार वह अपने पति को बताती है कि तुम पिता बनने वाले हो, यह सुनकर पति आनंदित होता है. माँ को बताती है, सास को बताती है और जब 3-4 महीने हो जाते हैं, 5-6 महीने और आगे बढ़ जाते हैं, प्रेग्नेंसी सेफ होती है तब माँ भी, सास भी मोहल्ले को जाकर बताती है कि मेरी बहू को बच्चा होने वाला है, मेरी बेटी को बच्चा होने वाला है. उसकी गोद भरने वाली है और यह कोई सिक्रेसी वाला विषय नहीं है. मुझे तो अपनी खुद की गोद भराई की रस्म भी आज तक याद है.
श्री ओमकार सिंह मरकाम -- सभापति महोदय, मेरा यह निवेदन है कि क्या यह गोद भराई की रस्म गरीबों के लिए ही है, अगर आपको यह रस्म कराना है तो मंत्रालय में जो आईएएस हैं, विधायक, मंत्री हैं, उनके घरों में भी गोद भराई का कार्यक्रम शुरू हो. क्या गरीबों के लिए ही करेंगे ?
श्रीमती अर्चना चिटनीस -- मेरे भाई, मैं आपकी बात का उत्तर दूंगी. मेरी बात हो जाए. सभापति जी, जब ये बोल रहे थे, मैंने सबको ध्यान से सुना है.
सभापति महोदय -- मरकाम जी, आपकी बात का ही जवाब चल रहा है. बहुत सी परंपराएं होती हैं, मान्यताएं हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग होती हैं.
श्रीमती अर्चना चिटनीस -- माननीय सभापति महोदय, जो गोद भराई का फंक्शन है, यह फंक्शन उस महिला के अंदर आनंद का, उल्लास का, होने वाली जवाबदारी का एहसास दिलाता है. उस महिला में मातृत्व के भाव आएं, वह ओत-प्रोत हो, उसके वात्सल्य से उसके अंदर के हार्मोन्स इफेक्ट होते हैं, जिससे वह अपने बच्चे को दूध पिलाने के लिए और सक्षम होती है. ये भाव उसके अंदर गोद भराई कार्यक्रम के माध्यम से बढ़ते हैं. परिवार में, समाज में गोद भराई का कार्यक्रम हमारे देश की एक अच्छी परम्परा है जो मंगल दिवस के माध्यम से हम आंगनवाड़ियों में इसको पूरा करते हैं, लेकिन मैं आपसे सहमत हूँ कि हम इसको आंगनवाड़ी के बाहर किसी पब्लिक फंक्शन में, स्टेज पर आयोजित नहीं करवाएंगे, अगर आपके ध्यान में कहीं इस प्रकार की बात आए तो आप हमें बताएं, मैं आंगनवाड़ियों के अंदर मंगल दिवस के कार्यक्रम में ही गोद भराई के कार्यक्रम आयोजित कराना सुनिश्चित करूंगी.
श्री सुखेन्द्र सिंह -- सभापति महोदय, हमारे सदस्य का कहना है कि वल्लभ भवन के मंत्रालय में, सचिवालय में भी ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाएं.
सभापति महोदय -- टोका-टाकी न करें. कुछ मान्यताएं हैं, परंपराएं हैं, सामाजिक व्यवस्थाएं हैं. हम सब ग्रामीण क्षेत्रों में ही रहते हैं, हम जानते हैं कि वर्षों से परंपराएं चली आ रही हैं. कार्ड छपते हैं, मेहमान बुलाए जाते हैं.
सुन्दरलाल तिवारी -- सभापति जी, आंगनवाड़ी केन्द्रों में ये कहीं कुछ नहीं होता, जितना माननीय मंत्री जी कह रही हैं.
सभापति महोदय -- माननीय मंत्री जी यह कह रही हैं कि यह आंगनवाड़ी केन्द्रों के अंदर किया जाता है, सार्वजनिक रूप से नहीं किया जाता है.
श्री यादवेन्द्र सिंह -- सभापति जी, हम लोगों की ट्रेन छूट जाएगी, टाइम हो रहा है.
श्री ओमकार सिंह मरकाम -- मैं माननीय मंत्री महोदया से निवेदन करूंगा.
सभापति महोदय -- मरकाम जी, समय अधिक व्यतीत हो रहा है. यादवेन्द्र जी को ट्रेन पकड़नी है. माननीय मंत्री जी आप कन्टिन्यू रखें.
श्रीमती अर्चना चिटनीस -- आप एक महिला मंत्री को सुनना ही नहीं चाहते. माननीय यादवेन्द्र सिंह जी, आपने इतना अच्छा सुझाव यहां दिया. बाहर भी जब हम बात कर रहे थे तब भी आपने मेरे ध्यान में कुछ बातें लाई हैं. आप थोड़ा धैर्य रखें, जैसा आप चाहते हैं, वैसी घोषणा मैं करने वाली हूँ.
माननीय सभापति महोदय, हमारे एक माननीय सदस्य ने बड़ा अच्छा सुझाव दिया था कि जो अच्छा काम करें उनको भी पॉजिटीव रिइन्फोर्समेंट देना चाहिए, उनको पुरस्कृत होना चाहिए. कम काम करने वाले के प्रति हम नाराजगी व्यक्त करें, उसका हम ट्रांसफर करें, उसको सस्पेंड करें, उसकी डीई करें, यह भी जरूरी है. लेकिन जो अच्छा काम करें, उनको सम्मानित करना, उनको पुरस्कारित करना, उनको मोटिवेट करना भी जरूरी है. सभापति महोदय, विशेष वजन अभियान के बाद हमने विशेष पोषण अभियान चलाया और विशेष पोषण अभियान में हमने अपने सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका, सुपरवाईजर, सीडीपीओ, डीपीओ, जेडी, इन सबके लिए एक अच्छी सम्मान राशि की घोषणा की है और जिस आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या अधिकारी, कर्मचारी को लगता है कि उसने अच्छा काम किया है क्योंकि व्यक्ति का आंकलन जितना अच्छा स्वयं कर सकता है, दूसरा उसका आंकलन उतना अच्छा नहीं कर सकता, मैंने अपने अधिकारियों को निर्देशित किया है कि इस दीनदयाल पोषण पुरस्कार के लिए हमारे जमीनी कार्यकर्ता और अधिकारी, कर्मचारी अपनी एप्लिकेशंस दें जो उन्होंने इम्प्रूवमेंट किया है, वह बताएं, एक ज्यूरी होगी जो उसकी जांच करेगी, और उसमें 5 हजार रुपये से लेकर 50 हजार रुपये तक का पुरस्कार दीनदयाल पोषण पुरस्कार के अंतर्गत रखा गया है.
माननीय सभापति महोदय, विषय बहुत सारे हैं पर समय सीमित है और उस सीमित समय में मैं आपके माध्यम से बहुत महत्वपूर्ण बातों को ही रखकर इस समय का सदुपयोग करना चाहूंगी. पिछले सालों में मध्यप्रदेश में जो आंगनवाडि़यां, इस बात को शुरू करने के पहले मैं एक और बात कहूंगी कि कमियां काम करने के बाद भी रहती होंगी, उनको भी बेहतर होना चाहिए. मैं मंत्री होने के नाते से कह रही हॅूं जो कुछ अच्छा है, वह मेरे जमीनी कार्यकर्ता, सहायिका, सुपरवाईजर्स और हमारे जमीनी अधिकारियों के कारण है और जो कुछ कमी है उसको दुरूस्त करने की जवाबदारी मेरी और प्रशासनिक स्तर पर बैठे जवाबदार अधिकारियों की है और इसको ध्यान में रखते हुए हमने सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए आंगनवाड़ी केन्द्रों की गतिविधियों की मॉनिटरिंग के लिए आम नागरिकों के माध्यम से हम उसकी मॉनिटरिंग कराएं, इसके लिए आंगनवाड़ी हेल्प डेस्क स्थापित किया, जिसमें एंड्राइड मोबाइल फोन की भी जरूरत नहीं है उसमें एक साधारण मोबाइल से मोबाइल बेस्ड एप्लीकेशन तैयार करके टोल फ्री नंबर 1800-833-01-00 के माध्यम से आम आदमी, आम नागरिक अपनी शिकायत या सुझाव विभाग को भेजेगा और दो दिन के अंदर उसकी शिकायत या सुझाव पर हम अमल करेंगे. इसका प्रचार-प्रचार इस बजट भाषण के उपरांत अतिशीघ्र सब तक पहुंचेगा और आपके माध्यम से भी यह विषय जन-जन तक पहुंचे, मेरी ऐसी आपसे प्रार्थना है.
माननीय सभापति महोदय, हमारे विधायक साथी ने यह बताया कि शायद लाड़ली लक्ष्मी का जो पंजीयन है वह कम होता जा रहा है लेकिन वह कम नहीं हो रहा है. 28 लाख से कुछ अधिक लाड़ली लक्ष्मियों का पंजीयन हुआ है और करीब-करीब 66 हजार लाड़ली लक्ष्मियों को तो इस साल ही हमनें 6वीं क्लॉस में जाने पर 2-2 हजार रूपए का चेक दिया. जब वे 9वीं में जाएंगी तब हम उन्हें 4 हजार रूपए देंगे. 11वीं और 12वीं में 6-6 हजार रूपए पुन: देंगे और 18 साल की उम्र में शादी न करने पर 1 लाख रूपए देंगे. एक साथ बच्चे के जन्म पर बिटिया का स्वागत, उसी के साथ शिक्षा को सुनिश्चित करना, उसी के साथ उसके स्वास्थ्य की चिन्ता करते हुए उसकी 18 साल से कम उम्र में शादी न हो, इसके लिए भी इस योजना के अंतर्गत सब चीज एक साथ जोड़ दी गयीं और इस सबके लिए करीब-करीब 34 हजार करोड़ रूपए मध्यप्रदेश की सरकार का खर्चा सुनिश्चित है जिसके लिए सरकार अपने आपमें पूरी तरह तैयार है.
माननीय सभापति महोदय, आज मुझे आपको यह बताते हुए बहुत प्रसन्नता है कि वन स्टॉप सेंटर केन्द्र सरकार की एक बहुत अच्छी प्रभावी योजना है. उस वन स्टॉप सेंटर के अंतर्गत मैं देश की महिला बाल विकास मंत्री माननीय श्रीमती मेनका गांधी जी को भी इस सदन के माध्यम से धन्यवाद देना चाहूंगी जिन्होंने पिछले साल सबसे अधिक 18 वन स्टॉप सेंटर अपने प्रदेश मध्यप्रदेश को दिए. उससे पिछले साल में हमें मात्र 1 मिला था और इस साल हमें करीब 8 वन स्टॉप सेंटर और मिले हैं और हो सकता है कि अन्य प्रदेश पीछे रह जाए तो मार्च के अंदर-अंदर हम और वन स्टॉप सेंटर्स केन्द्र से ला सकें. इस एक ही स्थान पर 6 सर्विसेस एक साथ मिलती हैं और इसमें पिछले साल भर में करीब-करीब साढे़ तीन हजार बहनें इन वन स्टॉप सेंटर में आकर सेवाएं ले चुकी हैं. यहां पर आयी हुई महिला को मेडिकल एड मिलती है, यहां पर आयी हुई महिला को लीगल एड मिलती है. अभी इसका प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है. हो सकता है बहुत लोगों को यह बात पहुंची न हो, प्रचार-प्रसार करने की जवाबदारी हम सब की है. वहां पर आयी हुई महिला को कांउसलिंग की सुविधा मिलती है और उसको दो-चार दिन रहने की जरूरत पडे़ तो वह रह भी सकती है. उसको एफआईआर करने के लिए भी थाने में नहीं जाना है. वहीं पर पुलिस के अधिकारी आकर उसकी एफआईआर भी करेंगे. वन स्टॉप सेंटर इसलिए है ताकि एक साथ, एक स्थान पर सारी सेवाएं 6 प्रकार की हम दे सकें और इसके लिए हमें 8 करोड़ 16 लाख रूपए से ऊपर पैसा अपने जिलों में बिल्डिंग बनाने के लिए भी मिला है. यह योजना हमें मिली तब, जब जमीन चिन्ह्ति करके हमने केन्द्र सरकार को भेजी. तब वन स्टाप सेंटर हमारे स्वीकृत हो सके.
माननीय सभापति महोदय, मुख्यमंत्री सामुदायिक नेतृत्व क्षमता विकास कार्यक्रम के बारे में भी मैं यह कहना चाहूँगी कि यह अपने आप में अद्भुत कार्यक्रम है. हम अब तक एमएसडब्ल्यू और बीएसडब्ल्यू कॉलेजेज़ में जाकर करते थे, बड़ी-बड़ी फीस देकर करते थे और सच में जो समाज सेवा कर रहे हैं, वे डिग्री नहीं ले पाते थे. मध्यप्रदेश के महिला बाल विकास विभाग ने और महिला बाल विकास के साथ साथ हमारी जन अभियान परिषद् ने भी, हमारे लेबर डिपार्टमेंट ने भी, सब ने मिलकर इस योजना का फायदा उठाया. इसमें शासन की योजनाओं को लोगों तक पहुँचाने के साथ साथ सण्डे के सण्डे क्लास लगती है. तीन, साढ़े तीन हजार रुपये की फीस है, जिसमें सरकार वह फीस भरती है. पहले साल अगर आप इस योजना में भागीदारी करते हैं तो प्रमाण पत्र मिलेगा. दूसरे साल भागीदारी करते हैं तो डिप्लोमा होल्डर हो जाएँगे और तीसरे साल इस योजना के अंतर्गत अपने गाँव में, अपनी गली में, अपने मोहल्ले में, आम जनता की सेवा करते हुए, बिना कॉलेज की औपचारिक पढ़ाई किए, व्यक्ति बीएसडब्ल्यू की डिग्री प्राप्त करेगा जो यूजीसी द्वारा मान्यता प्राप्त है, वह आगे कोई कॉम्पिटेटिव एग्जाम भी दे सकता है. आगे वह मास्टर डिग्री के लिए भी आगे जा सकता है.
माननीय सभापति महोदय, मुझको इसको कहने में बहुत प्रसन्नता है कि हमारे आईसीपीएस के अंतर्गत हमने पिछले समय में जितने हमारे बच्चे अलग अलग संस्थाओं में रहते हैं, सबको लीगल फ्री किया है. हमारे काफी बच्चे जो कारा में रजिस्टर्ड हो चुके हैं. वे हमारे करीब 3500 बच्चे इसमें लाभान्वित हुए हैं. हमारी अलग अलग बाल संरक्षण योजनाओं के अंतर्गत, उसमें 171 बच्चे जो हैं, उनको दत्तक ले लिया गया है और 21 बच्चे जो हैं वे प्री-एडॉप्शन की स्टेप में हैं और ये बच्चे देश में, विदेश में, अच्छे से अच्छे घरों में जाकर एक बेहतर जीवन जीने की ओर आगे बढ़ रहे हैं.
माननीय सभापति महोदय, एक योजना है प्रधानमंत्री मातृ वन्दना योजना, मैं आपके माध्यम से सदन को यह बहुत आनन्द से, प्रसन्नता से और गौरव से बताना चाहती हूँ कि ये नई योजना भारत सरकार की थी. जिस योजना के अंतर्गत अगर हमारी गर्भवती बहन समय पर टीकाकरण करा ले, अपना ब्लड प्रेशर चेक करा ले, कैल्शियम और ऑयरन की गोलियाँ समय पर प्राप्त कर ले, तो उसको 5 हजार रुपया केन्द्र की सरकार से डीबीटी करके सीधे उसके एकाउण्ट में जाएगा और 1 हजार रुपया बच्चे के जन्म के बाद उसको मिलेगा, इस योजना में, प्रधानमंत्री मातृ वन्दना योजना के अंतर्गत मुझे यह कहते हुए बहुत खुशी है कि पिछले 4 महीनों से मध्यप्रदेश, आपका मध्यप्रदेश, अपना मध्यप्रदेश, हम सबका मध्यप्रदेश, पिछले 4 महीनों से हम लगातार पूरे देश में प्रधानमंत्री मातृ वन्दना योजना में सबसे ऊपर हैं (मेजों की थपथपाहट) और काम करते करते अब हम इतने ऊपर हो गए हैं कि इस मार्च के अन्दर अन्दर कोई स्टेट हमारे आसपास भी एचिवमेंट अपना नहीं कर पाएगा और करीब करीब 3,20,777 आवेदन प्राप्त हुए हैं जिनमें से 2,68,000 हम ऑन लाइन कर चुके हैं और 85,000 आवेदनों की राशि, दस करोड़ पिचहत्तर लाख तिरासी हजार का भुगतान किया जा चुका है और केन्द्र सरकार ने इसमें मध्यप्रदेश के महिला बाल विकास विभाग को बहुत एप्रिशिएट किया. जिसने कम समय में प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना नीचे तक, जमीन तक, पहुँचाई और यह तो केन्द्र सरकार से प्राप्त होने वाली बात है. मैं अभी उसके विस्तार में नहीं जाना चाहती कि मजदूर बहनों को लेकर माननीय मुख्यमंत्री जी ने अभी अभी यह घोषणा की कि 4,000 रुपये मजदूर बहन को उसकी प्रेग्नेंसी के दौरान मिलेंगे और 12,000 रुपये मजदूर बहन को उसकी प्रेग्नेंसी के बाद मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान जी की सरकार द्वारा दिया जाएगा और माननीय सभापति महोदय, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, 2011 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने बेटी बचाओ अभियान प्रारंभ किया और प्रधानमंत्री बनते ही नरेन्द्र मोदी जी ने बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ अभियान प्रारंभ किया और इस 8 मार्च को माननीय प्रधानमंत्री जी ने यह घोषणा की कि देश के सारे जिलों को अब वे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ में सम्मिलित करने जा रहे हैं और वित्तीय विषयों पर कई बार बात चली कि पैसा किसमें कम मिला, किसमें ज्यादा मिला और मिलना चाहिए था. इस योजना के तहत 2017-18 में हमें 65 लाख रुपये के बजट का प्रावधान था और आगामी वित्तीय वर्ष के प्रावधानित बजट में 348.48 लाख रुपए का प्रावधान है. यह बढ़ोतरी गुणांक में है केवल एडिशन में नहीं है.
सभापति महोदय, आप जितने विनम्र और जितने सहयोगी विधायकों के साथ रहे आपने उनको मन भरकर बात करने दी. आज मेरा सौभाग्य है कि आप आसंदी पर बैठे हैं और उतना ही स्नेह और आशीष मुझे भी आपसे चाहिए.
सभापति महोदय--सभापति होने के नाते सौभाग्य मेरा भी है महिला बाल विकास विभाग की चर्चा के समय पर मैं सभापतित्व कर रहा हूँ. प्रसन्नता होती है जब माताओं, बहनों और बालकों की बात आती है और प्रदेश में काम भी हो रहा है. यह खुशी की बात है.
श्रीमती अर्चना चिटनीस--सभापति महोदय, अवनि चतुर्वेदी हमारे रीवा की बिटिया है उन्हें मिग-21 जेट फायटर प्लेन की पायलट होने की मैं इस सदन के माध्यम से बधाई देना चाहती हूँ. मुस्कान किरार ने तीरंदाजी में एशिया कप में गोल्ड मेडल हासिल किया उसे भी मैं इस मंच के माध्यम से बधाई देना चाहती हूँ. पूजा वस्त्रकार जो शहडोल की हैं भारतीय महिला क्रिकेट टीम में शामिल हुईं उसे भी मैं इस पवित्र सदन के माध्यम से बधाई देना चाहती हूँ अभिनन्दन देना चाहती हूँ. यह वह बेटियां हैं जिनको देखकर व प्रेरणा लेकर और बेटियां भी आगे बढ़ेंगी. इनके माता-पिता का भी मैं इस सदन के माध्यम से अभिनन्दन करना चाहती हूँ जिन्होंने अपनी बेटियों को बेटों के बराबर पाला. यह माइन्डसेट का जो चेंज आ रहा है इससे आने वाले दिनों में हम उस युग की ओर जा रहे हैं जो बेटियों के लिए और बेहतर हो. इसमें मैं आपसे सहमत हूँ कि बेटियों को कुछ नहीं चाहिए उन्हें केवल दो चीज चाहिए. एक चाहिए अवसर, मानव सभ्यता का इतिहास इसका गवाह है कि जब-जब स्त्री को अवसर मिला जितनी भी चुनौतियाँ थीं उन सारी चुनौतियों का सामना करते हुए हर स्त्री को जब अवसर मिला है उसने अवसर में अपने आपको संसार के सामने अपनी प्रतिभा को साबित किया है. आज तो साइकोलाजिस्ट भी कहते हैं कि मल्टीटास्किंग महिलाओं की विशेषता है. एक साथ कई काम करने की क्षमता ईश्वर ने इस शक्ति स्वरुपा स्त्री को दी है.
सभापति महोदय, बेटियों के बारे में बात करना शुरु करें तो पन्ना धाई से लेकर कल्पना चावला तक करना होगी. लेकिन समय की कमी को देखते हुए सभी बहनों को प्रणाम करती हूँ जिन्होंने अपने आप में मिसाल पेश की है जिनको देखकर मेरी जैसी और सामने बैठी हमारी बहनों को प्रेरणा मिलती है. जिससे हम बेहतर तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर पाते हैं.
सभापति महोदय, यादवेन्द्र सिंह जी, प्रजापति जी और बाकी सदस्यों ने भी इस बात को कहा, सभी दल के सदस्यों ने कहा. मैं इस सदन के माध्यम से आपको बताना चाह रही हूँ कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका की भर्ती प्रक्रिया को बहुत पारदर्शी किया है. उसको व्यवस्थित करने का प्रयास किया है. उसमें पहले से बेहतरी भी आई है. लेकिन फिर भी कमियाँ हैं जिसको हमें दुरुस्त करना चाहिए और इस प्रक्रिया को ऑनलाइन करने के लिए मेरे प्रभार के जिले नीमच में इसको हमने ऑनलाइन करके देखा. इसमें इतनी ट्रांसपरेंसी होगी कि कोई भी गुंजाइश न सही काम को रोकने की होगी और न अपना काम करवाने की होगी. मैं भी, आप भी या हम में से कोई भी किसी अधिकारी को बुलाकर प्रभाव भी नहीं दे पाएंगे क्योंकि वह कहेगा कि यह तो ऑनलाइन प्रविष्टि है, सबकुछ ट्रांसपरेंट है. नीमच जिले की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं की ऑनलाइन प्रक्रिया को सुगमता से करने के बाद में हम आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं की भर्ती प्रकिया को पूरे प्रदेश में विस्तारित करके बहुत जल्दी ऑनलाइन करने जा रहे हैं. यह एक अच्छी जानकारी जो मैंने आपको दी उस पर मैं आपसे धन्यवाद की अपेक्षा तो करती हूँ.
माननीय सभापति महोदय, आज मैं अपनी बात को बहुत विस्तार न देते हुए एक बात लगातार हमारे माननीय सदस्यों द्वारा बार-बार कही गई कि मध्यप्रदेश की सरकार, मध्यप्रदेश का महिला बाल विकास विभाग बहुत बड़ी गड़बड़ कर रहा है और हमने कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया है. हमने कोर्ट के आदेशों के खिलाफ जाकर काम किया है. मैं आपके माध्यम से सदन को और सदन के माध्यम से मध्यप्रदेश के जन-जन को इस बात को कहना चाहती हूं. विशेष तौर पर मैं आपके माध्यम से इस बात को कहने की लिबर्टी भी आपसे चाहती हूं कि वैसे तो मध्यप्रदेश की सरकार ने माननीय न्यायालय के निर्देशों की कभी भी कोई भी अवहेलना नहीं की है. मैं यह बहुत जवाबदारी से कहना चाहती हूं और जब मैं आपसे कह रही हूं. समय-समय पर माननीय न्यायालय निर्देश देते रहे, उसमें वर्ष 2004 का एक निर्देश है, वर्ष 2004 के बाद वर्ष 2005 का एक निर्देश है, वर्ष 2005 के बाद वर्ष 2009 का एक निर्देश है और अभी जिस निर्देश की मैं बात कर रही हूं वह दिनांक 9.5.2012 का देश के सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है. आप सब जो कानून बनाने वाले मेरे साथी भाई बहन हैं आप सब यह जानते हैं कि कोर्ट का अंतिम आदेश हमको पालन करके लागू करना होता है. मध्यप्रदेश की जो सारी व्यवस्था चलती रही. वह वर्ष 2012 के माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुसार चलती रही और हमने इसमें कभी भी किसी भी न्यायालय के निर्देश की अवमानना, अवहेलना नही की है. आप चाहें तो इस निर्देश को मैं आपके माध्यम से पटल पर रखकर जो सदस्य उसको देखना चाहे मैं उनके लिए उपलब्ध कराऊंगी. उसको पढ़कर विस्तार तक जाने में मैं आपका समय नहीं लेना चाहती हूं.
माननीय सभापति महोदय, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने दिनांक 23 सितम्बर को एक बड़ी बैठक में यह निर्णय लिया जिसमें सारे मंत्री सारे अधिकारी थे और यह कोर्ट का आदेश नहीं था भाइयों यह निर्णय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने लिया कि जो हमारा आगामी टेकहोम राशन लेने का सारा विषय है आने वाले समय में शिवराज सिंह जी की सरकार ने इस बात का निर्णय लिया और यह किसी विभागीय मीटिंग में भी नहीं हुआ सारे मंत्री, सारे अधिकारी उपस्थित थे. दिनांक 23.9.2016 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने यह निर्णय लिया कि टेकहोम राशन अब हम किसी कंपनी से नहीं बल्कि स्व-सहायता समूहों के माध्यम से लेंगे और उस व्यवस्था को बनाने के लिए उन्होंने एक कमेटी गठित की. कमेटी में दो मंत्री थे तीन अधिकारी थे. कमेटी उस पर काम करती रही और अभी कमेटी काम करके निर्णय पर पहुंची थी कि दिनांक 17.10.2016 को माननीय न्यायालय ने जो व्यवस्था चल रही थी उसको निरंतर लागू करने के लिए निर्देशित किया. तत्पश्चात् हम उस पर फिर भी काम करते रहे कि हम आगे उसको कैसे बनाएं तब उस व्यवस्था को बनाने पर मेरे विभाग के अधिकारियों को उस पर उनको कोर्ट से नोटिस भी मिला जब वही व्यवस्था कायम रखने का माननीय न्यायालय का निर्देश है तो आप स्व-सहायता समूहों की तैयारी किस प्रकार कर रहे हैं क्यों कर रहे हैं फिर भी हम उस पर काम करते रहे. सभापति महोदय, मैं आपको यह बताना चाहती हूं कि स्व-सहायता समूहों के निर्णय कोर्ट के स्टे के कारण सात-आठ महीने डिले हुए हैं और अभी पिछले तीन दिनों में माननीय दो न्यायालयों में निर्णय हुए, फिर एक निर्णय माननीय चीफ जस्टिस महोदय के कोर्ट में हुआ और माननीय न्यायालय के जो निर्देश, जो निर्णय मिले हैं कहीं पर भी हमने पूर्व के किसी आदेश की अवहेलना नहीं की है और आगामी समय में भी हम किसी आदेश की अवहेलना नहीं करेंगे. मैं यह आपको जवाबदारी से कहना चाहती हूं कि यह सरकार पारदर्शी रूप से चलकर अच्छी तरह काम करके, पिछले दस सालों में हमने कुपोषण के हर मानक पर, हर स्तर पर जैसे-जैसे आंकलन किया जा सकता है, हरेक में हमने बेहतर काम किया है और मध्यप्रदेश की सरकार का यह अपना निर्णय है कि स्व-सहायता समूहों से हम टेकहोम राशन लेंगे. यह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी का क्रांतिकारी निर्णय है. जिस निर्णय को लागू करने के लिए मेरा विभाग और रूरल डेव्हलपमेंट जवाबदार हैं.
माननीय सभापति महोदय, मैं आपके माध्यम से इस सदन को बताना चाहूंगी कि हम सात जगहों पर जमीन की पहचान कर चुके हैं, हम उनकी बिल्डिंग के लिए टेण्डर कर चुके हैं, हम मशीन के लिए टेण्डर करने जा रहे है. हम इन सात केंद्रों में, इन सात हिस्सों में मध्यप्रदेश को बांटकर स्व-सहायता समूहों के माध्यम से ही आने वाले दिनों में टेकहोम राशन लेंगे. जब तक यह व्यवस्था बनेगी तब तक के लिए एक अल्पकालिक टेण्डर पारदर्शी तरीके से किया जायेगा क्योंकि हम इसे रोक नहीं सकते हैं. फूड सिक्योरिटी एक्ट की बात आपने की थी और आज आप बहुत अच्छा बोले और बहुत ही अध्ययन करके बोले. (श्री जयवर्द्धन सिंह जी की ओर इशारा करके.)
सभापति महोदय- समय की सीमा है, अब कोई सवाल नहीं. (श्री जयवर्द्धन सिंह द्वारा सवाल के लिए हाथ उठाये जाने पर)
श्रीमती अर्चना चिटनीस- माननीय सभापति महोदय, हम फूड सिक्योरिटी एक्ट के अंतर्गत उसे रोक नहीं सकते हैं. माननीय न्यायालय द्वारा 14 तारीख को अल्पकालिक टेण्डर करने के लिए सरकार को अनुमति दी गई है. उसके तहत यह व्यवस्था निर्बाध गति से चलती रहे, यह भी हमारी जवाबदारी है. स्व-सहायता समूहों के माध्यम से टेकहोम राशन दिया जाये, यह निर्णय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का है और इसे लागू करने की जिम्मेदारी हमारी है, जिसे निश्चित ही हम पूरा करेंगे.
माननीय सभापति महोदय, हिना बहन बहुत अच्छा बोलती हैं. आज तो आपने भी बहुत अच्छी बात कही कि ''मुखिया मुख सो चाहिए''. (श्रीमती चन्दा सुरेन्द्र सिंह गौर की ओर देखते हुए.) आज हमारी दोनों बहनों ने बहुत अच्छे से अपनी बात रखी. माननीय सभापति महोदय, मैं आपके माध्यम से सदन की बहनों को स्वामी विवेकानंद जी का एक वक्तव्य सुनाना चाहती हूं. मैं कहना चाहती हूं कि हमारे देश की रूढि़यों और परम्पराओं में अंतर है. सारी परम्परायें, रूढ़ी नहीं होती हैं और समय-समय पर जिन परम्पराओं को हमें अपनी व्यवस्था से अलग करना होता है, उन परम्पराओं को भी पीछे छोड़ने की हमारे यहां बहुत ही मजबूत संस्थागत व्यवस्थायें हैं. मैं बताना चाहती हूं कि शिकागो की धर्म परिषद के बाद, जब स्वामी जी अमेरिका में प्रवास के दौरान एक महिला संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे तो किसी महिला ने उनसे पूछा कि क्या भारत की महिलायें अनपढ़ हैं ? तो स्वामी जी कहा कि यदि आप अनपढ़ शब्द का प्रयोग अक्षर ज्ञान नहीं होने के अर्थ में कर रही हैं तो हां, भारत की महिलायें अनक्षर हैं. साक्षर नहीं है. वे आज पाठशाला और कॉलेज में जाकर शायद पढ़ाई नहीं कर पा रही हैं लेकिन उनके अंदर जो आध्यात्मिक शक्ति है, उस आध्यात्मिक शक्ति के समान सारे विश्व में किसी महिला में ऐसी शक्ति नहीं है. यदि मुझे कोई पूछे कि विश्व में सबसे अधिक शक्तिमान महिला कौन है, तो मैं विश्वास से कहूंगा कि वह भारतीय महिला ही है. (मेजों की थपथपाहट)
माननीय सभापति महोदय, यह एक अलग बात है कि यदि मां सावित्री बाई फुले नहीं होती तो आज हम पढ़-लिखकर यहां बैठकर बात करने की स्थिति में नहीं होते. बीच में मध्यकाल में एक ऐसा समय आया जिसमें हमारे देश की साक्षरता की स्थिति तेज गति से पिछले सौ-सवा सौ सालों में गिरी, जिसे हम पुन: प्राप्त करने जा रहे हैं. इसमें बताने को तो बहुत कुछ है लेकिन मैं इसके विस्तार में नहीं जाना चाहूंगी परंतु मैं एक बात बोलने से अपने आपको रोक नहीं पाऊंगी कि एक बड़ी कॉन्फ्रेंस में जब यह कहा गया कि भारत की महिला को इतनी समझ कैसे है कि किस उम्र के व्यक्ति को क्या खिलाना है, बच्चे को किस मौसम में क्या खिलाना है, विविध चीजों को कैसे बनाना है, प्रिज़र्वेटिव्स की समझ, अचार-पापड़-चटनी बनाने का ज्ञान उसे कैसे है ? भारत की महिलायें किस संस्थान से यह सब कुछ सीखकर आती हैं ? डलास की एक बड़ी कॉन्फ्रेंस में जब यह बताया गया कि यह सब कुछ कैसे होता है तो एक अमेरिकन महिला ने कहा कि- ''It seems that every Indian woman is knowledgeable and every home of India is an institute''.
माननीय सभापति महोदय, यह भारतीयता हम बनाये रखेंगे तभी और तभी अमेरिका के राष्ट्रपति अपने देश के बच्चों को यह कहते हैं कि अमेरिका के बच्चों, भारत के बच्चों जैसे बन जाओ लेकिन अमेरिका के बच्चे भारत के बच्चों की तरह कैसे बन पायेंगे जब तक अमेरिका की मातायें भारत की माताओं की तरह नहीं होंगी. माननीय सभापति महोदय, आपने मुझे इतना समय दिया, मैं अपनी बात को पूरा करते हुए अंत में यही कहूंगी कि
शौर्य की सृष्टा है नारी, धैर्य की प्रतिमा स्वयं
कौन कहता है कि इसकी बाजुओं में दम नहीं
नेह-निष्ठा-ओज-करूणा का निराला पुंज है
ज्ञान-गरिमा-बुद्धि-कौशल में किसी से कम नहीं
वार देती देशहित प्राणसुत भ्राता सभी
होम कर सर्वस्व इसकी आंख होती नम नहीं
आस्था विश्वास की अद्भुत अनूठा कोष है
साधिका आराध्य की मात्र कोई भ्रम नहीं
त्याग सेवा श्रम समर्पण प्रेम जिसका धर्म है
मान्यता उसका दिये बिन तो घटेगा तम नहीं
वंदना जब तक न होगी त्याग के इस रूप की
तब तलक भूतम से किंचित क्लेश होगा कम नहीं, धन्यवाद्
सभापति महोदय:- मंत्री महोदया, बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री यादवेन्द्र सिंह :- सभापति महोदय, आपने कम से कम हमारी बात पर गौर किया. हम लोग कब कह रहे हैं कि महिला शक्ति नहीं है. पहले स्व. इंदिरा जी, प्रधानमंत्री थीं, निर्मला बुच जी, यहां की मुख्य सचिव रहीं और किरण बेदी जी प्रथम आईपीएस बनीं. महिलाएं बहुत आगे रही हैं. यहां पर कौन ऐसा मंत्री या विधायक है, जो महिलाओं से नहीं डरता है, सब महिलाओं की इज्जत करते हैं, आप क्यों परेशान हैं, हम सब आपके पीछे हैं.
सभापति महोदय :- आपका बहुत-बहुत, धन्यवाद.
5.58 बजे मांग संख्या- 39 खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण.
खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण, मंत्री(श्री ओम प्रकाश धुर्वे):-
उपस्थित सदस्यों के कटौती प्रस्ताव प्रस्तुत हुए.
अब मांग और कटौती प्रस्तावों पर एक साथ चर्चा होगी.
श्री शैलेन्द्र पटेल (इछावर) - माननीय सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 39 के विरोध में और कटौती प्रस्तावों के समर्थन में बोलने के लिए खड़ा हुआ हूँ. एक पुराना नारा भारतीय जनता पार्टी का बहुत चला था, मैंने बहुत से बुजुर्गों और बड़ों से सुना है कि 'खा गए शक्कर और पी गए तेल' इस तरह का एक नारा हुआ करता था लेकिन वह इस प्रकार हो गया 'न मिलेगी शक्कर, न मिलेगा तेल, यह है भाजपा का खेल' क्योंकि न ही शक्कर का पता है और न ही तेल का पता चलता है. इस तरह का खेल आज प्रदेश के अन्दर हो गया है. मैं यह कहना चाहता हूँ कि पिछले 14 वर्षों से हमारे माननीय मुख्यमंत्री जी के मुख से एवं पूरी सरकार के नुमाइंदों से यह बात कई बार सुनते हैं, हमेशा हर मंच से यह सुनते हैं, विधानसभा में सुनते हैं कि यह गरीबों की हितैषी सरकार है एवं हम अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को लाभ पहुँचाने का प्रयास करते हैं और यह उनको लाभ पहुँचाने वाली सरकार है. लेकिन स्थिति इससे बिल्कुल उल्टी है.
सभापति महोदय, उसका जो सबसे बड़ा कारण है कि आज भी जो गरीब आदमी है, बीपीएल कार्ड बनवाने के लिए तहसीलों के चक्कर लगाकर परेशान है एवं अगर उस आदमी को राशन कार्ड बनवाना होता है तो उसके पैर में छाले आ जाते हैं, उसके जूते घिस जाते हैं लेकिन वह राशन कार्ड नहीं बनवा पाता है. उसके बाद वह कई बार आपके, हमारे पास एवं सबके पास आता है और कहता है कि साहब हमारा बीपीएल कार्ड नहीं बन पा रहा है. ऐसी स्थिति क्यों है ? मंत्री जी कह देंगे कि बीपीएल कार्ड राजस्व विभाग बनाता है, लेकिन राजस्व विभाग और खाद्य आपूर्ति विभाग को मिलाकर ही व्यवस्था चलती है, उस विभाग के सरलीकरण की बहुत आवश्यकता है. उसमें समय-समय पर प्रयास तो हुए हैं लेकिन वे प्रयास अभी भी फलीभूत नहीं हो पाए हैं. कई बार तो ऐसा लगता है कि कोई बीपीएल का कार्ड बनवा लेता है तो वह इतना खुश हो जाता है कि उसने ओलंपिक का गोल्ड मेडल जीत लिया होगा. शक्कर तो मिलना बन्द हो गई है, पहले शक्कर मिल जाती थी तो वर्ल्ड कप जीतने जितनी खुशी प्राप्त हो जाती थी, इस तरह की सरकार की व्यवस्था है एवं लोगों को आज भी राशन की उपलब्धि नहीं हो पा रही है. इन पेचीदगियों को नियमों के कारण बताकर उनके कार्ड नहीं बनते हैं, जबकि आज भी कई ऐसे लोग हैं, जो इसके पात्र नहीं हैं, लेकिन उनके पास कार्ड की व्यवस्था है. हम 14 वर्षों से देख रहे हैं, कोई व्यवस्था नहीं हो पाई, सर्वे नहीं हो पाया और पुराने सर्वे की सूची के हिसाब से काम चल रहा है. इसमें बीच-बीच में ग्रामोदय, भारत उदय के दौरान यह बात कही गई थी कि हम बीपीएल कार्ड को जोड़ेंगे. लेकिन अभी भी बहुत से लोग बाकी है.
माननीय सभापति महोदय, मैं आपके माध्यम से मंत्री महोदय जी से कहना चाहता हूँ, यहां पूरी सरकार बैठी है. आज इसकी आवश्यकता है, जो छूटे हुए लोग हैं उनको हम कैसे जोड़ें ? उस पर कोई कार्ययोजना बनना चाहिए और जब तक यह नहीं बनेगी, तब तक काम नहीं चलेगा. आज भी 70 प्रतिशत से ज्यादा लोग हमारे बीपीएल की सूची में आते हैं और वे इतने ज्यादा आ गए हैं कि जो नाम केन्द्र सरकार को जाते हैं, उसमें वह कोटा आवंटित नहीं हो पा रहा है. इसमें कहीं न कहीं सरकार के ऊपर निर्भर करता है कि उसको कैसे एडजस्ट करेंगे ? पर्चियां तो बना दी गई हैं. लेकिन उनको जो राशन मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पा रहा है. उसकी छँटाई का काम, अभी चुनाव आ रहे हैं, शायद वह चुनाव के डर के कारण कई दिनों से उस सूची पर काम नहीं हुआ है और न ही उसके कारण जो पात्र हैं, उनको राशन नहीं मिल रहा है और अपात्र लोगों को राशन मिल रहा है. घासलेट की उपलब्धता तो बंद हो गई है, केन्द्र शासन के निर्देशों के अनुसार मेरा एक प्रश्न लगा था, उसके उत्तर में मुझे जो उत्तर प्राप्त हुआ है. पिछले 2 वर्षों में हमारे सीहोर जिले में प्रायवेट डीलर्स को घासलेट आवंटित ही नहीं हुआ है और घासलेट के मूल्य हैं, वह 62 रुपये प्रति लीटर है, यह डीजल से भी महंगा है एवं कई बार तो किसी के अंतिम संस्कार में घासलेट की आवश्यकता पड़ती है तो घासलेट नहीं मिलता है, डीजल से काम चलाना पड़ता है. इसके लिए आपके माध्यम से, सभापति महोदय, मेरा खाद्य मंत्री जी से निवेदन है कि घासलेट प्रत्येक जिलों में आवंटित होना चाहिए. हम अगर राशन के माध्यम से नहीं दे पा रहे हैं तो वह किसी और माध्यम से मिलना चाहिए, एपीएल के जो लोग हैं, उनको मिलना चाहिए. वे बीपीएल से थोड़ा ऊपर ही होते हैं एवं घासलेट की अन्य कार्यों में भी आवश्यकता होती है, खासकर गांवों में, तो घासलेट की उपलब्धता भी सुनिश्चित करने का काम इस सरकार का है, जिसमें सरकार फेल हो चुकी है. दो वर्ष से सीहोर में नहीं मिला है. इसी प्रकार से पूरे प्रदेश की स्थिति है कि घासलेट कहीं लेने जाएंगे तो घासलेट नहीं मिलेगा. घासलेट मिलना बहुत मुश्किल काम है एवं डीजल से ही काम चलाना पड़ता है. हम उचित मूल्यों की दुकानों की बात करते हैं. उचित मूल्यों की दुकान को धीरे-धीरे खत्म करने का प्रयास हो रहा है, एक ओर तो सरकार कह रही है कि हम पंचायत में वे दुकाने बनाएंगे और वह गेहूँ और चावल तक ही नहीं, क्या नमक तक ही सीमित हो जाएगी तो वह उचित मूल्य की दुकान नहीं रहेगी. आज गांवों में आम आदमी को व्यवसाइयों के ऊपर ही निर्भर होना पड़ता है, जो दुकानें लगी होती हैं, उनसे राशन लेना पड़ता है. उसमें न ही दामों पर नियंत्रण होता है, न ही क्वालिटी का नियंत्रण होता है और न उसमें कोई और नियंत्रण होता है, उसमें सरकार विफल हो गई है. इन दुकानों की गुणवत्ता में सरकार का डायरेक्ट कन्ट्रोल नहीं होता है. दूरदराज के जो गांव हैं, उनमें उन दुकानों पर न ही सही तरीके से माप मिलती है, जो माप है, वह भी उस तरीके से काम नहीं करती है और न ही अच्छी क्वालिटी का सामान मिल पाता है.
सभापति महोदय - शैलेन्द्र जी, आप समाप्त करें.
श्री शैलेन्द्र पटेल - माननीय सभापति महोदय, मुझे 3 मिनट भी नहीं बोला होगा. मैंने अभी शुरूआत की है.
सभापति महोदय - आपको 5 मिनट से ज्यादा हो गए हैं. थोड़ा जल्दी कीजिये.
श्री शैलेन्द्र पटेल - सभापति महोदय, मैं ओपनिंग कर रहा हूँ. कम से कम अपनी बातें रख लें.
सभापति महोदय - आप शीघ्रता से पूरा करें.
श्री शैलेन्द्र पटेल - माननीय सभापति महोदय, मैं अपनी बात शीघ्र ही पूरा कर दूंगा. मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी को सुझाव देना चाहता हूं कि सावर्जनिक वितरण की उचित मूल्य की जो दुकान हैं, उनमें खाद, तेल, नमक, दाल मसाले, घी, साबुन आदि की भी व्यवस्था करना चाहिए. इस प्रकार से एक तरह से ग्रामीण क्षेत्र में सुपर स्टोर के रूप में काम करने से रोजगार भी निकलेगा और संस्थाओं को लाभ भी मिलेगा और आम आदमी को गुणवत्ता की चीजें मिलेंगी. इस संबंध में सरकार काम करे और इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लेकर आये और इसकी शुरूआत कुछ जिलों में करे. यदि इस काम में सफलता मिलती है तो सरकार पूरे प्रदेश में इस तरह की व्यवस्था कर सकती है, इस प्रकार से सरकार को इस काम को निश्चित रूप से करना चाहिए.
माननीय सभापति महोदय, एक बड़ी समस्या यह है कि हमारे सेल्समेन की सेलरी बहुत कम है. सेल्समेन की सेलरी कम होने के कारण वह गड़बड़ घोटाले करते रहते हैं और उस गड़बड़ घोटाले के कारण आम उपभोक्ता को लाभ नहीं मिलता है. अगर सेल्समेन की सेलरी ठीक होगी तो शायद अच्छे तरीके से वह काम कर पायेंगे और उपभोक्ता को भी लाभ मिल सकेगा.
माननीय सभापति महोदय, मैं कहना चाहता हूं कि पंचायत स्तर पर दुकान खोलने की घोषणा इसी सदन से हुई थी, उसके बाद फिर कोर्ट का मामला आ गया था वह अभी तक लंबित है और हम उम्मीद करते हैं कि शीघ्र संपन्न हो. घोषणा होने के बाद अगर कोई काम नहीं होता है तो एक तरीके से जनता में रोष आता है कि आपने कहा था कि प्रत्येक पंचायत स्तर पर दुकान खुल जायेगी लेकिन वह अभी नहीं खुली हैं और कोर्ट का निर्णय आ गया है, शायद इसके बाद आप शीघ्र दुकान खोलने का काम करेंगे.
माननीय सभापति महोदय, अब मैं मध्यप्रदेश वेयर हाउसिंग एण्ड लॉजिस्टिक कारपोरेशन के बारे में कुछ कहना चाहता हॅूं कि वेयर हाउसेस बने हैं लेकिन जिस आम आदमी ने वेयर हाउसेस को ठीक-ठाक स्थिति में बना लिये हैं, उनके वेयर हाउसेस कुर्की हो गये हैं क्योंकि जो बड़े लोग थे, जिनके सोर्सेस थे उनको तो वेयर हाउसेस में माल रखने के लिये मिल जाता था लेकिन अगर किसी छोटे मोटे आदमी ने वेयर हाउस बना लिया तो उसको रखने के लिये माल नहीं मिला जिस कारण कहीं न कहीं उनकी कुर्की हो गई क्योंकि जिन्होंने वेयर हाउसेस बनाये सब ऊपर से सेटिंग करके बनायें हैं. वेयर हाउसेस बनाने में इस तरह से सेटलमेंट का खेल होता है कि कुछ चिन्ह्ति लोगों को वेयर हाउसेस में माल रखने के लिये मिल जाता है परंतु बहुत से लोगों को वेयर हाउसेस में माल रखने के लिये नहीं मिलता है, इसके कारण जो व्यवसाय करना चाहता है और कोई नया आदमी इस काम को करना चाहता है, उसको लाभ नहीं मिलता है.
माननीय सभापति महोदय, एक ओर मामला मैं बताना चाहता हूं कि कारपोरेशन ने बहुत सारे स्टेक बनवा दिये हैं. आज हम जाते हैं तो ऐसा लगता है कि वह स्टेक बने हुये हैं, उसमें सरकार के करोड़ों अरबों रूपये खर्च हो गये हैं लेकिन उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है, मैं कहना चाहता हूं कि अगर कोई योजना लाते हैं तो उसको फलीभूत होना चाहिए. मेरे इछावर क्षेत्र में स्टेक करोड़ों रूपये खर्च करके बना दिये गये हैं लेकिन उस स्टेक के ऊपर आज तक एक बोरा भी नहीं रखा गया है. अगर आप इसका मूल्यांकन करें या जांच करायें कि कितने स्टेक बने और वह किस काम में आयेंगे तो इसमें बड़ा घोटाला सामने आयेगा.
माननीय सभापति महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री महोदय से यह कहना चाहता हूं कि पिछले सत्र के दौरान यह बात आई थी कि गेहूं में मिट्टी मिलाने का काम गोदाम के अंदर ही हो रहा था. यहां विधानसभा में यह मुद्दा उठा था, वह भोपाल का ही मामला था और यही राशन गरीबों को जाता है. अभी कहीं न कहीं कुपोषण की बात भी हो रही थी तो मैं यह बताना चाहता हूं कि इन सब मिलावट के कारण ही कुपोषण होता है, इस काम को भी आपको देखना है कि यह किस तरह से गड़बड़ घोटाले होते हैं, किस तरीके से अनाज उसमें खत्म कर दिया जाता है. किसान जो अनाज मेहनत से कमाता है, वह देश की संपत्ति हो जाती है और सरकार भी उसे रूपये किलो में बांटती है, गेहूँ 17-18 रूपये का था 20 रूपये का हो गया, इतना पैसा खर्च करने के बाद सरकार उसको खरीदती है और उसको कहीं न कहीं नष्ट कर दिया जाये तो उससे बड़ा अपराध कुछ नहीं हो सकता है, इस अपराध को रोकथाम करने के लिये अभी बहुत सारे काम करने की आवश्यकता है.
माननीय सभापति महोदय, अभी कल ही 15 मार्च था और इसे उपभोक्ता संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है. अब यह उपभोक्ता संरक्षण का मामला सिर्फ होर्डिंग और पोस्टर तक ही सीमित हो गया है. इसके लिये जो समितियां बनी हैं वह कितना काम कर रही हैं, कितना काम नहीं कर रही हैं ? हम यहां पर इतने सदस्यगण बैठे हुये हैं, इसमें से कितने को पता है कि कौन सी समिति है और समिति का क्या कार्य है, क्या कार्य करना चाहिए ? मैं यह कहना चाहता हूं कि यह समिति कहीं पर काम नहीं कर पा रही है और तो और नाप तौल विभाग भी इन्हीं के अंतर्गत आता है.
माननीय सभापति महोदय, आज अगर हम खाद्य विभाग की बात करेंगे तो हमारे ब्लॉक स्तर पर और जिला स्तर पर कोई भी प्रयोगशाला और नहीं है. अब कहीं सैंपल ले लिया जाता है तो कब तो उसकी रिपोर्ट आती है और कब तक वह पूर्ण होती है, इसका पता नहीं होता है, इसी कारण हमारे आम आदमियों को आज दूषित खाद्य साम्रगियां मिलती हैं.
माननीय सभापति महोदय, एक ओर बड़ा गंभीर विषय है बहुत सी बीमारियां खासकर कैंसर तक की जो बीमारियां हैं, वह पॉलीथिन के उपयोगों से हो जाती हैं. हम खाने को जिस पैकेजिंग में देते हैं अगर वह पॉलीथिन पैकेजिंग है वह ठीक नहीं है तो ऐसी घातक बीमारियां भी हो जाती हैं. कैंसर तक में यह देखा गया है कि कई बार हम जो प्लास्टिक के ग्लासेस हैं जिसमें पानी पिया जाता है या कई बार देखते हैं कि चाय भी पॉलीथिन में लपेटकर दे दी जाती है, उससे स्वास्थ्य को नुकसान होता है और कैंसर तक की बीमारी हो जाती है, इसको रोकथाम करने के लिये भी आपको उपाय करना होगा. इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से हमारे जो आम आदमी है इनके ऊपर इसका बहुत ज्यादा फर्क पड़ता है .
माननीय सभापति महोदय, अब तो प्लॉस्टिक चावल भी आ गये हैं, अब हम कहां कहां बचेंगे, उसकी भी रोकथाम की आवश्यकता हो, नहीं तो न जाने हमको कौन सी बीमारी लग जायेगी. अभी कई बार हमको समाचार पत्रों के माध्यम से और टी.वी. के माध्यम से यह देखने को मिलता है कि हम फल को बहुत अच्छा मानते हैं. हमारे माननीय कृषि मंत्री जी खुद ही फल उगाते हैं. हम बहुत अच्छा मानते हैं कि फल खा लेंगे तो तंदुरूस्त हो जायेंगे लेकिन उस फल को कार्बाइड से पकाने के कारण वह फल से उल्टा नुकसान हो रहा है. हम उसका कोई रोकथाम नहीं कर पा रहे हैं कि कौन सा फल किस माध्यम से पका हुआ है, अब यह कौन देखेगा ?
माननीय सभापति महोदय, गंभीर समस्या की ओर मैं ध्यान इंगित करना चाहता हूं कि अगर हम इस ओर ध्यान नहीं देंगे तो काम कैसे चलेगा? फलों को पकाने के लिए कार्बेट का प्रयोग हो रहा है, इसको रोकना चाहिए. सब्जियों में जिस तरीके से आज इंजेक्शन का प्रयोग होता है इसकी रोकथाम की आवश्यकता है. खासतौर से त्यौहारों के समय मावा में मिलावट होती है, जिस पर से लोगों का विश्वास उठा गया है, लोगों ने होटलों की मिठाई खाना बंद कर दिया है. उसका कारण यह है कि मिलावटी माल आ रहा है, मिलावटी दूध आ रहा है, दूध जिसको हम अमृत कहते हैं. पूरे प्रदेश में मिलावट हो रही है. विशेषकर ग्वालियर, भिण्ड और चम्बल मिलावटी दूध के मामले में बदनाम हो चुके हैं. इसकी रोकथाम के लिए खाद्य विभाग नाकाम हो रहा है. खाद्य विभाग इंसान के स्वास्थ्य के प्रति जवाबदारी वाला विभाग है, किसी इंसान की जान भी जा सकती है. इस तरह की बीमारियां भी हो रही हैं.
राज्य मंत्री, समान्य प्रशासन विभाग (श्री लाल सिंह आर्य) – माननीय सभापति महोदय, यह भिण्ड, मुरैना और ग्वालियर को अपमानित करने वाला बयान है, कुछ लोग मिलावट करते होंगे, लेकिन पूरा भिण्ड, मुरैना और ग्वालियर मिलावट के लिए बदनाम है. यह ग्वालियर, चम्बल के लिए आरोप है, पूरे क्षेत्र की जनता का अपमान है. माननीय सदस्य को यह शब्द वापस लेना चाहिए.
सभापति महोदय – शैलेन्द्र जी, यदि कोई विशेष शिकायत हो तो मंत्री जी को अलग से लिखकर दे दें.
श्री लाल सिंह आर्य – माननीय सभापति महोदय, सदस्य को यह शब्द वापस लेना चाहिए.
श्री शैलेन्द्र पटेल – सभापति महोदय, अगर मिलावट हो रही है तो यह अपमान पूरे प्रदेश का है. इसको मैं किसी इलाके तक सीमित नहीं कर रहा हूं. मैं केवल वहां का उदाहरण दे रहा था. मैं यह कहना चाहता हूं कि हमारे प्रदेश में किसान मेहतन से बहुत चीजें पैदा करते हैं और एक तरफ वही चीजें मिलावट करके बाजार में लायी जाती है तो यह अपमान सिर्फ ग्वालियर चम्बल का नहीं पूरे प्रदेश का अपमान है. मिलावट कारण हमारे लोगों को स्वास्थ्य का नुकसान हो रहा है, यह नाकामी हमारे माननीय मंत्री जी के ऊपर हैं, उनके विभाग के ऊपर है. अगर आज मिलावटी माल बाजार में आ रहा है तो क्यों आ रहा है? रोकथाम क्यों नहीं हो पा रही है? मैं सिर्फ उस क्षेत्र की बात नहीं कर रहा हूं, यह एक गंभीर विषय है. सभापति महोदय आपने मुझे बोलने का समय दिया बहुत धन्यवाद.
सभापति महोदय –शैलेन्द्र जी बहुत बहुत धन्यवाद.
श्री ओमकार सिंह मरकाम (डिण्डोरी) – सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 39 का विरोध करता हूं और कटौती प्रस्ताव का समर्थन करता हूं. यह बात कहना चाहूंगा कि हमें हमारे गांव के बुजुर्गों की बात याद आती है – भूखे भजन न होहिए गोपाला, धर लो अपनी कंठी माला. बड़ी मुसीबत है, आप लोग जो आज चर्चा करवा रहे हैं खाद्य नागरिक आपूर्ति में. मैं बड़ी विनम्रता के साथ कहना चाहता हूं. खाद्य नागरिक आपूर्ति विभाग बड़ी बड़ी बातें करता है गरीबों को चावल देंगे, व्यवस्था देंगे, अच्छी बात है. विभाग के पास भवन बनाने के लिए राशि तो बचती ही नहीं है, फिर कहां चावल रखेंगे, कैसे संधारण करेंगे, कैसे कार्यक्रम चलेगा. अभी आपने नया फार्मूला शुरू कर दिए है कि अंगूठा लगाओ, गांव के गरीब लोग खेती करते हैं, पत्थर तोड़ते हैं, मिट्टी खोदते हैं, लकड़ी का काम करते हैं, मेहनत का काम करते हैं, जिससे अंगूठे के ऊपर की परत थोड़ी थोड़ी छिल जाती है और अंगूठा मशीन में नहीं आता है और मशीन उनके अंगूठे को अनवेलिड बता देती है, इसके लिए कौन जिम्मेदार है? मशीन रखने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है, न भंडारण की कोई व्यवस्था है. एक तरफ ऐसी बात होती है कि हमने तो लोगों को बेहतर चावल देने में सफलता पा ली है. मेरा यह कहना है कि अगर हम लोग राजनीति में आकर के ठीक है पक्ष में आ जायें, विपक्ष में आ जायें अगर इतना ज्यादा असत्य बातें यहां पर करने लगेंगे तो लोकतंत्र में जनता नेताओं को क्या कहती है, सभापति जी आपको भी पता है, राजनीति का स्तर कितना गिर रहा है उसका कारण यही है कि हमारी सी.आर. लिखने वाली जनता है, जहां असत्य बात आप कर रहे हो, जिनके सी.आर. लिखने वाले और लोग हैं उनको दिक्कत नहीं है उनकी सीआर तो ए+ गुड जा रही है और हमारी सीआर लिखने वाले को आप असत्य बातें कहलवा देते हैं .इसमें मंत्री जी आप भी हैं, हम भी हैं ,मुख्यमंत्री जी भी हैं. मंत्री जी से हम कहेंगे कि चावल रखने के लिये भवन बनाओ, भवन कहां से लेकर के आयेंगे. बजट नहीं है. मेरा सोचना था कि देश में जीएसटी के लागू होने के बाद में अंत्योदय का कार्य चलेगा तो भवन बनाये जायेंगे. हम कह रहे हैं कि विपक्ष के सदस्य हैं तो हमारी अनुशंसा पर भवन न बनायें, लेकिन मंत्री जी के पास में जो आवेदन आयें उसमें स्वीकृति दे दें.
माननीय सभापति महोदय, पहले कुछ योजनायें केन्द्र सरकार के सहयोग से चलती थीं जैसे बीआरजीएफ योजना, आईएफबी की योजना, परियोजना की योजना यह सब योजनायें बंद हो गई हैं. परियोजना की योजना का जो अधिकार होता था उसका भी केन्द्रीयकरण कर दिया गया है, अब विभागों को सीधे राशि दे देते हैं. अनुमोदन कहां से करें. जब हमारे पास में खाद्य सामग्री के भण्डारण की व्यवस्था नहीं है तो उसके सुवितरण की व्यवस्था कैसे होगी. मेरा तो कहना है कि दूल्हा और दुल्हन उपलब्ध नहीं है, निमंत्रण पत्र आपने बांट दिया है, शादी आखिर किसकी होगी. आपके पास में भवन नहीं है, भण्डारण की व्यवस्था नहीं है, सामग्री चूहे खा जाते है, ऊपर से पानी टपक गया तो सड़ जाता है पॉईजन हो जाता है, उसको खाने से लोग बीमार पड़ जाते हैं इन सबकी जिम्मेदारी कौन लेगा. दूसरी तरफ आपके जो नार्मस हैं इस समय चावल की जो ब्रोकन की नार्मस है, मैं भोपाल के बारे में कहना चाहता हूं कि पीएमटी हॉस्टल जो भोपाल के श्यामला हिल्स में है वहां पर मैं गया था. वहां जो ब्रोकन की प्रतिशत है, बताते हुये कष्ट होता है कि जिसको जितनी मिनिमम क्वांटिटी में राइस देंगे उसमें जो ब्रोकन आता है चावल में ब्रोकन का प्रतिशत तय 25 फीसदी से ज्यादा पाया गया। अब समस्या यह है कि उसको खाये कौन. मेरा तो मंत्री जी से अनुरोध है कि वास्तव में इसको जन उपयोगी बनाना है तो जितने हमारे अधिकारी हैं, जितने हम लोग हैं हमारे सबके घर में वही चावल पहुंच जाये तो हम लोगों की अकल ठिकाने लग जायेगी. हम लोगों को तो बढ़िया खाने को मिल जाता है क्योंकि विधायक बन गये हैं, एचएमटी चावल, विष्णु भोग चावल मिल जायेंगे लेकिन हमारा कहना है कि वास्तव में मंत्री जी आपको इस सिस्टम में सुधार लाना है तो आप घोषणा कर दें कि मंत्रालय का हर अधिकारी वही चावल खायेगा जो गरीब के लिये जाता है तो इनको शिकायत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, खुद अकल आ जायेगी. अभी खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम के माध्यम से सप्लाई होती है. वहां पर भी अध्यक्ष बैठे हुये हैं, उनको फोन लगाकर के शिकायत की तो पता चला कि उनकी दुकान चालू हो गई. मैंने एक बार उनको फोन लगाया उसके परिणाम देखकर के मैंने कान पकड़ लिये कि अब शिकायत नहीं करूंगा क्योंकि मैंने जिसकी शिकायत की उसकी दोस्ती मंत्रालय में हो गई. अब वह कहता है कि क्यों विधायक जी आपने क्या कर लिया शिकायत करके, अब हमारी दोस्ती तो मंत्रालय में हो गई. और बाद में फोन आया कि विधायक जी और शिकायत किया करो. और यहां तक कहते हैं कि ऐसे नेताओं को हम जेब में पैकेट की तरह रखे रहते हैं. बडी मुश्किल है किसकी शिकायत करें. मंत्री जी इसको समझने की बात है अगर हम शिकायत करते है, शिकायत पर यहां से अधिकारी जांच करने जाते हैं, सब लीपा पोती करके आ जाते हैं. मुझे शंका है कि अगर यही स्थिति निरंतर जारी रही तो आने वाले 15 से 20 वर्ष के बाद चुनाव लड़ने के लोगों को सोचना पड़ेगा. नही तो बचो.
सभापति महोदय, आज की स्थिति में हमने एक सर्वे करवाया. एक दिन एक कार्यक्रम में हम लोग जनता से पूछे कि भैया कितने लोग बड़े होकर के नेता बनोगे तो एक भी व्यक्ति ने हाथ नहीं उठाया. अधिकारी कौन बनेगा तो पूरे लोग हाथ उठा दिये. नेता बनने पर एक भी हाथ नहीं उठ रहा है इसका क्या कारण है . कारण यह है कि नेताओं की वेल्यू गिर रही है और उसका मूल कारण यह है कि मूलभूत आवश्यकताओ को हम पूरा नहीं कर पा रहे हैं.
माननीय सभापति महोदय, मै मंत्री जी को सुझाव देना चाहूंगा कि आपको हमारे जिले में जाने में दूरी अधिक तय करना पड़ेगी, जितने भी अधिकारी हैं आप उनके माध्यम से प्रदेश की राजधानी में भोपाल में जाकर के देख लें एससी, एसटी, के स्टूडेंट हैं जिनको एक नार्मस में सामग्री दी जाती है, मैं बीच बीच में इन स्थानों पर भ्रमण करता रहता हूं उसका कारण यह है कि हम यहीं से नेता बने है. वहीं से राजनीति की शुरूवात की है कि हम जायें और हास्टल में क्या क्या गतिविधियां चल रही है, निश्चित रूप से देखने में आया है कि बहुतायत में त्रुटि हो रही है. और दूसरी बात पता चल रही है एक अजीब निर्णय हो जाता है, ट्रायबल जिलों के लिये मक्का भेज देते हैं, यह कैसा निर्णय है. मक्का अगर आ रहा है तो सभी जगह भेजो, ट्रायबल जिले में ही भेजोगे क्या. अब पता चलता है कि इसमें भी बड़ी गंभीर स्थिति बन जाती है, दूसरी तरफ मोदी जी जीतने से पहले चाय का कार्यक्रम चलाते थे, चाय पर आओ, चाय पर आओ, मोदी जी प्रधानमंत्री बन गये तो शक्कर कट. यह क्या हो गया, क्या बाकी लोग चाय न पियें, यह कैसा फार्मूला. हम लोगों ने बहुत उम्मीद की थी कि मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शक्कर की मात्रा बढ़ा दी जायेगी, उल्टा हुआ, पूरा बंद कर दिया, बड़ी मुसीबत है.
सभापति महोदय-- मरकाम जी आपकी बात जल्दी पूरी कर लें.
श्री ओमकार सिंह मरकाम-- सभापति महोदय जी, एक तो आपने टाइम से ज्यादा हमारी ड्यूटी लगा दी, अब आपके कारण हम मान भी रहे हैं, दूसरी तरफ इधर भी जल्दी करने का कह रहे हैं.
सभापति महोदय-- यह कार्यमंत्रणा समिति निश्चित करती है, आप सब जानते हो.
श्री ओमकार सिंह मरकाम-- ऐसा तो नहीं है कि सदस्यों की बात नहीं सुनी जायेगी और जल्दी सदन को समाप्त कर दें. घोषणा ही तो करना है, हम क्या करेंगे, घोषणा ही तो करना है कि सदन आगामी तिथि तक बंद, यही गणित है मुझे लग गया. आप 7-8 बजे तक चलवा रहे हो, 28 तक न चलवा कर बीच में बंद करके, क्योंकि विधायक अपनी बात रखेंगे तो गड़बड़ होती है.
सभापति महोदय-- ऐसा नहीं है. यह तो कार्यमंत्रणा में सब निश्चित होता है.
श्री ओमकार सिंह मरकाम-- कार्यमंत्रणा में निश्चित होता है तो सदन चलाने के लिये तो हम लोग अनुरोध करते हैं.
सभापति महोदय-- आपकी बात को तो सभी लोग बहुत गंभीरता से लेते हैं और आप हैं भी गंभीर, थोड़ा समय पर पूरा कर लें.
श्री ओमकार सिंह मरकाम-- जी. मेरा यह निवेदन है सरकार से कि यह सुनिश्चित किया जाये कि जीएसटी के बाद अगर आप सोसायटी भवनों के लिये राशि आवंटित नहीं कर सकते हैं तो बाकी चीजों में कल्पना करना बड़ा कठिन है. अब एक बात आ जायेगी कि हम एक रूपये किलो चावल दे रहे हैं. मैं बताना चाहता हूं मेरे यहां अभी हम पचधार गांव में गये थे तो एक युवा मिला उसने बताया कि उसके भोजन की जो डाइट है वह एक किलो की है और वह 3 से 4 किलोमीटर तक चलता है, ट्रायबल की वर्क करने की केपेसिटी होती है, आप भेज रहे हो 5 किलो, 5 किलो मतलब 2 दिन का ही भोजन हुआ, 3 दिन का भी नहीं हुआ. उसके यहां मैंने देखा तो कनकी का पतला बनाये हुये थे और गोभी की भाजी बनाई थी. मैं यह कहना चाहता हूं कि जो नाश्ता करने वाले हैं, जिनको चाय मिलना है, जिनको 3 टाइम मिलना है उनका अलग रेश्यो रखो. जो ट्रायबल है, जो वर्क करते हैं, उसकी डाइट के हिसाब से क्वांटिटी तय होना चाहिये, जितना हमारे यहां सुआ (तोता) को दे देते हैं उतना चावल आप दे रहे हो, 5 किलो में हम लोग एक महीने कैसे चलायेंगे. मेरा निवेदन है कि यह जो 5 किलो क्वांटिटी निर्धारित की है, जिनकी जितनी डाइट है वह समझ लें, शहरों में दे दें, शहर के गरीब भी मेहनत करते हैं. माननीय सभापति महोदय जी, इस समय बड़ी अजीब स्थिति है, यह साइंस कहता है कि जितनी हम मेहनत करते हैं, जितनी कैलोरी हमारी जलती है उतनी मात्रा में एनर्जी हमें मिलना चाहिये, वह भोजन से मिलती है. गरीबों के लिये दो टाइम भोजन से ही होता है. हमारे लिये जितनी कैलोरी चाहिये उतनी हमको नहीं मिल रही है. चावल 5 किलो कर दिया है और जिनको काम कम करना है उनको ज्यादा कैलोरी मिलती है, वह पचाने के लिये सुबह, शाम पैदल चलते हैं. उनसे पूछो क्या कर रहे हो भैया, कहते हैं मॉर्निंग वॉक. मतलब एक ज्यादा खाकर बीमार पड़ रहा है और एक को कम अनाज मिल रहा है वह उस कारण बीमार पड़ रहा है, बड़ी मुश्किल है, बीमार दोनों पड़ रहे हैं, इसको बेलेंस करिये, बेलेंस करना पड़ेगा और मेरा निवेदन है माननीय मंत्री महोदय जी से कि जो 5 किलो चावल है, आप भी ट्रायबल एरिया के मंत्री हैं, आप भी जानते हैं कि ट्रायबल एरिया के लोगों को ज्यादा मात्रा में भोजन की आवश्यकता होती है और बहुत से लोग ऐसे हैं जिनको 5 किलो की आवश्यकता नहीं है उसको ज्यादा की आवश्यकता है. इसमें आप कृपया कर कोशिश करेंगे कि मात्रा बढ़ाई जाये. दूसरी बात है भंडारण की, भंडारण में जो बोरा ट्रक वाले ले जाते हैं, ट्रक वाले बोरा में ले गये पता चल रहा है जहां भंडारण करना है और वहां पर भंडारण करने के साथ जो ट्रक का मालिक है. माननीय सभापति महोदय, मैं तो यह कहूंगा और मुझे पूरी उम्मीद है कि मंत्री जी इसमें निर्णय लेंगे. यह ट्रक वाले रात में सामान लेकर आते हैं, वह सामान कम उतारते हैं. पता चलता है कि 100 क्विंटल के कोटा की जगह 95 क्विंवटल सामान उतार कर चले गये. वहां के सेल्समेन की गणना शासकीय कर्मचारी के रूप में नहीं कर पा रहे हैं. वहां लिखा जाता है कि शासकीय उचित मूल्य की दुकान, तो वहां का कर्मचारी भी शासकीय होना चाहिये. वहां पर कमीशन के कारण थोड़ी मुश्किलें आती हैं. शासकीय उचित मूल्य की दुकान पर शासकीय व्यक्ति के रूप में उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया को करना चाहिये. को-आपरेटिव्ह सेक्टर में समूह बनाकर जैसे वन सुरक्षा समिति है वह गांव के स्व सहायता समूह के जुड़े हुए लोग हैं. उनके माध्यम से वितरण का कॉन्सेप्ट अच्छा है. जब शासकीय शब्द लिखा है आप उसको लिखिये अर्द्ध-शासकीय या उसको लिखिये आपकी समिति के माध्यम से है. शासकीय उचित मूल्य के दुकान की डेफिनेशन करा ली जाए. अभी हमारे यहां पर यह लोग आंदोलन में बैठ गये हैं, वह मांग भी कर रहे हैं. उसके निर्धारण को सुनिश्चित किया जाये.
सभापति महोदय--आपकी सारी बातें आ गई हैं. अब आप समाप्त करें.
श्री ओमकार सिंह मरकाम--सभापति महोदय, आपने समय दिया इसके लिये धन्यवाद.
सुश्री हिना लिखीराम कांवरे-(लांजी)--सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 29 पर अपनी बात रखने के लिये खड़ी हुई हूं. मंत्री जी को धन्यवाद देना चाहती हूं कि पिछली बार अनुदान की मांगों पर मैंने उनसे निवेदन किया था, हमारी बात को उन्होंने माना. महाराष्ट्र और छतीसगढ़ की तरह बारदानों का उसी बारदानों का उपयोग करना शुरू कर दिया, क्योंकि पहले वह मिलर से बारदाने नहीं लेते थे. उनके 38 रूपये बारदानों के कटते थे. उनके मिलर्स पर इतना असर होता था कि वह बारदाने 10 रूपये में बेचा करते थे, लेकिन उस चीज को सुधारा और केन्द्र सरकार के पैसे बचाये आपको इसके लिये धन्यवाद करती हूं. दूसरी बात यह कहना चाहती हूं कि अब आपको ट्रांसपोर्टेशन का पैसा भी बचाना पडे़गा, क्योंकि हमारे यहां धान सोसायटियों तथा मण्डियों में खरीदी जाती है उसके बाद गोदामों में भेजा जाता है. उसके बाद मिलर्स के पास मिलिंग के लिये धान जाता है. मिलिंग होने के बाद वापस से चावल बनकर गोदामों में आता है. वहां से फिर पी.डी.एस की दुकानों में जाता है. इसमें यातायात पर जो खर्चा होता है उसमें आप ऐसी व्यवस्था करें कि सोसायटियों से सीधे मिलर्स के पास धान मिलिंग के लिये चावल बनकर फिर सीधे चावल पी.डी.एस की दुकानों पर आ जाए. यह गोदाम एवं मिलर्स के बीच में यातायात का चक्कर है इसमें करोड़ो रूपये की बचत होगी. आपने एक क्विंटल धान पर जो मिलर्स के पास जाता है उसमें 77 किलो चावल वापस आने की बाध्यता आपने करके रखी है, जबकि आप भी जानती हैं कि सोसायटियों अथवा मंडियों में जो धान खरीदी होती है उसमें जनप्रतिनिधियों का इतना दबाव रहता है कि सोसायटियों, मंडियों में कभी अच्छी तो कभी कम क्वालिटी का धान व्यापारियों से खरीदा जाता है. वही धान मिलर्स के पास मिलिंग के लिए भेजते हैं. मिलिंग के दौरान 77 किलो धान चावल किसी भी परिस्थिति में नहीं निकल सकता है. आप एक टेस्ट मिलिंग करवा लीजिये फिर आप एवरेज निकाल लीजिये कि कितना एक क्विंटल से धान चावल निकल सकता है. टेस्ट मिलिंग के बाद मिलर्स से उतना धान लीजिये. यह एक व्यवहारिक दिक्कत है. इतना फंडा हो जाता है कि इतना साबित चावल निकलना मुश्किल हो जाता है. उस चक्कर में मिलर्स खुद इस बात के लिये हमेशा परेशान होते रहते हैं और आप जो 1 रुपये किलो चावल बेचते हैं . पी.डी.एस. से वह सेटिंग करके,इसको मजबूर कौन करता है. हम खुद मजबूर कर रहे हैं कि वह सेटिंग करके पीडीएस में जो चावल बिकता है उसको मिलर्स खरीदते हैं और उसको 77 किलो पूरा करके वापस आपको ही चला जाता है तो यह तो हम ही उनको प्रेशराईज करते हैं कि आप गलत काम करिये इसलिये हमको इस बात को समझमा पड़ेगा और टेस्ट मिलिंग के बाद जो चीज समझ में आयेगी उसी अनुसार आप उनसे लें.
सभापति महोदय - हिना जी,आप थोड़ा संक्षिप्त करके बात करें.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे - सभापति जी,चूंकि बालाघाट जिला ही एक मात्र धान का जिला है इसलिये चूंकि मैं बालाघाट जिले से हूं इसलिये मेरा धर्म बनता है कि वहां के जो मिलर्स हैं, वहां के जो किसान हैं मैं उनकी बात को उठाऊं. पिछले साल से इस साल हमारे यहां दस लाख क्विंटल कम धान की खरीदी हुई है और पिछली बार की मिलिंग का पैसा अभी तक मिलर्स को नहीं मिला है. मैं मंत्री जी से चाहूंगी कि आप सबसे पहले मिलर्स का पैसा दिलवा दीजिये. जो महाराष्ट्र से आपने मिलर्स का एग्रीमेंट किया है सबसे पहले उस एग्रीमेंट को केंसिल कीजिये क्योंकि हमारे बालाघाट के मिलर्स,चूंकि धान की खरीदी इस बार कम हुई है तो उनको पहली प्राथमिकता मिलनी चाहिये. आपने एग्रीमेंट कर लिया है तो उनको धान चला जायेगा और ह मारे यहां के मिलर्स देखते रह जायेंगे इसलिये आप उस एग्रीमेंट को खत्म करिये.
सभापति महोदय - हिना जी, समाप्त करें. रिपीटेशन हो रहा है आपका.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे - ऐसा नहीं है शायद बात करने के तरीके में रिपीटेशन हो रहा होगा. एक दिन यहां पर बाला बच्चन जी की बात पर गोपाल भार्गव जी ने एक बात कही थी कि हम 20 रुपये किलो में चावल खरीदते हैं और बीपीएल कार्डधारियों और पात्रता पर्ची वालों को हम 1 रुपये किलो में गेहूं और चावल देते हैं. हमारा बजट मैंने देखा उसमें 525 करोड़ रुपये का प्रोवीजन किया गया है. यदि वास्तव में आप 20 रुपये किलो में अनाज देते तो आपको 5025 करोड़ का प्रोवीजन करना पड़ता. यूपीए की सरकार ने आपको खाद्य सुरक्षा कानून के तहत आपको पहले ही 3 रुपये किलो में चावल और 2 रुपये किलो में गेहूं दे रहे हैं. आप खुद चूंकि उस समय कांग्रेस की सरकार थी, बात समझ आती थी कि केवल कांग्रेस का नाम न आ जाये आपने उसको 2 रुपये किलो में दिया. आपने समय दिया धन्यवाद.
श्री दिनेश राय "मुनमुन"(सिवनी) - माननीय सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 39 के संबंध में बोलने के लिये खड़ा हुआ हूं. मैं आपके माध्यम से 2-3 बातें मंत्री जी से कहना चाहूंगा. अभी हमारे सिवनी में 68262 क्विंटल धान गोदाम के अन्दर आपने रिजेक्ट करवाया. आप अगर जो खरीदी केन्द्र थे आप अगर वहां रिजेक्ट करते तो पता चलता कि किस किसान की यह धान है और खराब है. वास्तव में जो व्यापारी हैं उनकी सारी धान पास हो गई और सिर्फ किसानों को परेशान करने के लिये यह रिजेक्ट की गई. अभी बहन हिना जी बोल रही थीं. मिलर्स की बात कर रही थीं. आपके अधिकारियों ने आपके ऊपर मंत्री जी दबाव बनाया है मध्यप्रदेश में चुनाव है और मिलर्स से पैसा खाने में इनको दिक्कत आ रही है. इसलिये यह धान को रिजेक्ट कर रहे हैं और महाराष्ट्र से आप जो काम करवा रहे हैं आप जांच करवा लीजिये आपको पता चल जायेगा कि मध्यप्रदेश के मिलर्स जो काम कर रहे थे उससे बहुत घटिया चावल खरीदी आपका विभाग कर रहा है. पुराना चावल है,टूटा चावल है. मैंने पूर्व में एक विधान सभा प्रश्न लगाया था मंत्री जी ने मुझसे कहा था कि उन गोदामों की जांच में आपको रखा जा रहा है लेकिन पता नहीं डेढ़-दो साल हो रहे हैं लेकिन आज तक वह जांच नहीं हुई तो मेरा आपसे आग्रह है मंत्री जी,उन गोदामों की जांच के लिये, क्योंकि अभी जब गे हूं की खरीदी आयेगी तब भी उन गादोमों में किसानों की जगह व्यापारियों का माल मिलेगा. मैं तो बधाई देता हूं मध्यप्रदेश सरकार को कि पांचवीं बार भी आप पुरस्कार प्राप्त कर रहे हैं लेकिन व्यापारियों के माल को खरीदकर,गोदाम भरकर कर रहे हैं. किसानों का माल कम है और व्यापारियों का माल ज्यादा है. माननीय मंत्री जी से आग्रह है कि एक तो जांच करा लें. क्योंकि आप उद्योग तो दे नहीं रहे हैं और उद्योग और छीन रहे हैं, अब यहां के मिलर्स कहां जाएंगे? मैं उनसे जुड़ा हूं, मैं उन मिलर्स का दुख-दर्द जानता हूं. मैंने देखा है. यहां से अधिकारी जांच करने जाते हैं, उनको पैसा नहीं मिलता तो वह उसे रिजेक्ट कर देते हैं. उनको पैसा मिल जाएगा तो पास कर देंगे. मेरा आग्रह है कि इसको आप बारिकी से देखें. हमको आप रखें, हम आपको गोदाम बताएंगे. हम विधायकों पर आप विश्वास तो करें. अपने अधिकारियों के साथ एक बार आप पहुंचाकर तो देखो, क्यों दो साल से अधिकारी-कर्मचारी हमको ले जाने में डर रहे हैं? हमें आप गोदाम में ले जाइए, हम आपको दिखा देते हैं कितना घपला, कितना इनका खेल चल रहा है? सरकार अच्छा काम कर रही है. आप बहुत अच्छे मंत्री जी हैं और आप कठोरता से निर्णय ले रहे हैं. लेकिन कहीं न कहीं आप हमें मौका दें तो आपको हम दूध का दूध और पानी का पानी करके दिखाएं कि वास्तव में सरकार के साथ यह क्या छलावा अधिकारी-कर्मचारी कर रहे हैं. सभापति महोदय, आपने बड़ा समय दिया और आराम से आपने सुना है तो आपको भी धन्यवाद देता हूं और उम्मीद करता हूं मंत्री जी, पुनः दूसरी बार जांच करा लेंगे तो अच्छा होगा. धन्यवाद.
श्री सुखेन्द्र सिंह (मऊगंज) - सभापति महोदय, निश्चित रूप से मध्यप्रदेश में जनता भारत में अंतिम छोर में है और प्रदेश की 70 परसेंट जनता आज भी गरीबी की रेखा के नीचे जीवन-यापन करती है. बड़े उम्मीद के साथ हमारे देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जी ने खाद्य सुरक्षा अधिनियम भी लागू किया था और यह उम्मीद किया था कि हमारा गरीब भूखों नहीं सोएगा. लेकिन मध्यप्रदेश की सरकार ने उसका उल्टा परिणाम दिया, उसका काफी दुरुपयोग हुआ. केरोसिन भी बंद हो गया, शक्कर भी बंद हो गई. जो तीज-त्योहार, हम लोग गांव के हैं तो वहां पर बोलते हैं कि गांव के लोग यह कहते हैं कि कोटे में तीज-त्योहार में शक्कर मिल जाती थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने वह भी बंद कर दी. सभापति महोदय, अभी हमारे श्री ओमकार भाई और श्री शैलेन्द्र पटेल जी ने बड़े विस्तार से हर मुद्दे पर चर्चा की, उसको दोहराने की कोई जरूरत नहीं है. मैंने एक वर्ष पूर्व एक प्रश्न लगाया था. सरकार से पूछा था कि जीपीएस सिस्टम में जो खाद्यान्न ढुलाई के वाहन में लगता है, जो बताता है कि खाद्यान्न कहां तक पहुंचा है. हमारे प्रश्न की चर्चा में प्रति प्रश्न पर माननीय मंत्री जी ने कहा था कि जिला स्तर की समीक्षा में प्रयोग किया गया है. धीरे धीरे पूरे प्रदेश में हम लागू करेंगे.
सभापति महोदय, माननीय मंत्री जी से कहना चाहूंगा कि क्या यह जिला स्तर पर, प्रदेश स्तर पर लागू किया गया? अभी खरीदी केन्द्र की बात आई है. खरीदी केन्द्र के बारे में जैसा हमारे भाई श्री दिनेश राय जी ने भी चर्चा की कि जब किसानों की धान वहां पर जाती है तो उसमें तरह की पहले तो छान-बीन होती है, यह धान अच्छी है, यह धान खराब है. स्वाभाविक है कि किसान अपनी धान मेहनत से सोसाइटियों में ले जाते हैं लेकिन सोसाइटियों में उसकी इस तरीके से दुर्दशा की जाती है कि किसान परेशान हो जाता है कि मैं कहां क्यों ले आया? अंत में जाकर छोटे-छोटे व्यापारियों के हाथ में वह फसल बेच देता है. जब वह व्यापारी ले जाकर धान उसी सोसाइटी में देता है तो वह सोसाइटी उसको स्वीकार कर लेती है.
सभापति महोदय, यह किसानों की विशेष चिंता का विषय है, इसलिए आपके माध्यम से मंत्री जी से अनुरोध है कि खासकर धान खरीदी केन्द्रों में ऐसी व्यवस्था बनाएं कि धान अगर किसान लेकर जाय तो उसकी बेइज्जती न हो. किसान का पैसा आज भी बैंकों में पड़ा हुआ है या कहां पड़ा हुआ है? चक्कर काटते-काटते बैंक कहते हैं कि पैसे नहीं हैं. या तो सरकार के पास में पैसे नहीं हैं, यह बता दिया जाय कि सरकार के पास में पैसे नहीं हैं. आप भी शायद इस बात को समझते होंगे. आप भी खेती-बाड़ी से जुड़े हुए हैं. जब हमने विधान सभा प्रश्न लगाया तब जाकर बड़ी मुश्किल से दबाव में किसानों का पैसा मिलता है. अब दो साल पहले का बोनस मिल रहा है तो यह समस्या और बढ़ेगी. सरकार ने वाह-वाही कर ली है कि हम दो साल पूर्व से बोनस दे रहे हैं. अब गेहूं की फसल आ रही है. निश्चित रूप से यह समस्या फिर से आने वाली है तो मेरा आपके माध्यम से अनुरोध है कि मंत्री जी इसका विशेष ख्याल रखेंगे. मैं इस पर ज्यादा नहीं बोलना चाहता हूं. आपने बोलने के लिए जो समय दिया बहुत बहुत धन्यवाद. वैसे मंत्री जी भी इसका खूब उपयोग करते हैं. जब जब उप चुनाव होता है तो मंत्री जी स्वयं चुनावी क्षेत्र में जाते हैं और अंतिम समय तक रहते हैं और एकदम दबाव बनाते हैं कि मेरा विभाग इतना महत्वपूर्ण है कि मैं गल्ला, राशन सब बंद कर दूंगा. उमरिया में तो पकड़े भी गये थे. वह छपा था. मैं थोड़ा गुस्ताखी कर रहा हूं तो क्षमा करिएगा, गरीबों के ऊपर दबाव बनाकर वोट लेने का प्रयास किया जा रहा है तो इस पर भी मेरा आपके माध्यम से अनुरोध है. धन्यवाद, जय हिन्द.
श्री यादवेन्द्र सिंह (नागौद)- सभापति महोदय, हमारे धुर्वे साहब मंत्री होने के साथ-साथ हमारे सतना जिले के प्रभारी मंत्री भी हैं. सब बातें तो हमारे सभी साथियों ने कर ली हैं, मैं अधिक समय न लेते हुए मेरे उचेहरा विकासखण्ड के अंतर्गत लगभग आदिवासी क्षेत्र परसमनिया, तुसगवां सहकारी सोसायटी, 7 पंचायतों की दुकान परसमनिया, पिपरिया, आलमपुर, तुसगवां, पटिहट, गढ़ौत और रामपुर पाठा, सोसायटी सेवा समिति बिहटा की गोबरांव खुर्द, धनेह, गोबरांव कला, भरहटा, बिहटा और सेवा सहकारी समिति पिथौराबाद की पोंड़ी और मानिकपुर कोलगड़ी सोसायटी की मानिकपुर दुकान, अभी एसडीएम मैहर का प्रभारी चार्ज उचेहरा के एसडीएम के पास था. जब उनका ट्रांसफर हुआ, तो ले देकर अग्रवाल जी ने इकट्ठा पूरी दुकानों को मां दुर्गा स्व सहायता समूह को अटैच कर दीं और इसके पहले यही मां दुर्गा स्व सहायता समूह खाद्यान्न का वितरण तीन माह में, दो माह में करता था. 12 महीने में ज्यादा से ज्यादा 4 महीने मिट्टी का तेल, गेहूं, चावल मिलता था. अब फिर से उसने पैसे देकर अटैच करा लिया है. इन दुकानों की फूड इंस्पेक्टर के द्वारा कोई जांच नहीं कराई गई. बिना किसी कारण के अग्रवाल ने ले देकर दुकानों को अटैच कर दिया है. भारी भ्रष्टाचार हुआ है. हमारे 84 गांव परसमनिया पठार में हैं, एससी, एसटी की पूरी 99 प्रतिशत जनसंख्या है और वहां पर यह भ्रष्टाचार हो रहा है. प्रभारी मंत्री जी और मंत्री जी से निवेदन है कि इन दुकानों को पुन: वापस किया जाए. मैं इस विधानसभा में बता देता हूं कि अगर यह नहीं होता तो इसका रिजल्ट बहुत ही खराब होगा.
सभापति महोदय- जी आपका धन्यवाद, आपकी पूरी बात आ गई. मंत्री जी नोट कर रहे हैं.
श्री यादवेन्द्र सिंह- सभापति महोदय, बाकी सदस्यों को एक घण्टा आपने दिया है और हमको दो मिनट नहीं दे रहे हैं. यह पोर्टल जो है, डेढ़ साल बाद उससे पर्ची वितरण होती है. यह एक दिन के लिए डेढ़ साल बाद खुला है. हमारे यहां 700 और 800 पर्ची उचेहरा, नागौद ब्लॉक में बंटी हैं, उसके बाद फिर बंद हो गया. यह खाद्यान्न का पोर्टल अभी खुल जाए तो कम से कम दो-दो, तीन-तीन हजार पर्चियां आज डेढ़ साल से जो बीपीएल की बनी हैं और जिनकी त्रुटिवश रिजेक्ट हो गई थीं, गलत हो गई थीं, वह सब आ जाएं. कम से कम एकाध बार और खोल दें तो पोर्टल बन जाए. मेरे यहां भी नागौद के किसानों की करोड़ों रुपये की धान रिजेक्ट हो गई और उसके बाद उस धान की दराई हो गई, उसके बाद भी किसानों का पैसा अभी तक नहीं मिला. धान रिजेक्ट है और उसकी दराई हो गई, उसके बाद पैसा नहीं मिला. मंत्री जी से अनुरोध है कि किसानों का पैसा दिलाने का कष्ट करें. सभापति महोदय, आपने बोलने का मौका दिया बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री रामपाल सिंह (ब्यौहारी) -- सभापति महोदय, मैं मांग संख्या 39, खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण पर बोलने के लिये खड़ा हुआ हूं. खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग वैसे देखा जाये तो मध्यप्रदेश के हर परिवार से और हर व्यक्ति से जुड़ा हुआ विभाग है. इस विभाग के माध्यम से जो ग्रामीण अंचलों में, दूरस्थ अंचलों में अंतिम लाइन पर जो अंतिम व्यक्ति होता है, उस तक यह विभाग पहुंचता है...
सभापति महोदय -- रामपाल सिंह जी, संक्षिप्त में बात कहें. अपने क्षेत्र की कोई बात हो, तो सीधे अपने क्षेत्र की बात रखें.
श्री रामपाल सिंह "ब्यौहारी" -- सभापति महोदय, सार्वजनिक वितरण प्रणाली की जो व्यवस्था है, जो सहकारिता विभाग को दिया गया है, उसमें मेरा यह कहने का मतलब है कि जैसे अभी ओमकार सिंह मरकाम जी ने जो बात कही, हमने यह देखा है कि एमडीएम में जो खाद्यान्न जाता है, होस्टल्स में जो खाद्यान्न जाता है, वह पूरे टूटे हुए रहते हैं और उनकी बहुत अच्छी क्वालिटी नहीं रहती है. पता नहीं क्यों ऐसा भेजा जाता है. तो इसमें सुधार करने की आवश्यकता है. दूसरी चीज मैं यह कहना चाहता हूं कि कई ऐसे गांव हैं या एक ग्राम पंचायत में 2 गांव हैं, 3 गांव हैं और वहां पर कभी बड़े बड़े नदी और नाले हैं, जहां पुल भी नहीं बने हैं. आवागमन का साधन नहीं है, तो मैं ऐसे गांवों में यह चाह रहा हूं कि जहां संख्या भी काफी है, कम से कम 300 से ज्यादा बीपीएल कार्डधारी हैं, क्या ऐसी जगहों पर आप ऐसी व्यवस्था करें कि वहां पर भी दुकान खोलें या तो फिर जहां पर आप दुकान रखें, पहले से वह कम से कम काफी दिन संचालित हो. चूंकि अधिकतर ग्रामीण अंचलों में हम लोग जो जमीनी स्तर पर देखते हैं, 2 दिन, 3 दिन आकर आपके सेल्समेन दुकान खोलते हैं. इसके बाद वे कभी नहीं खोलते हैं. इसके बाद जब दूसरा महीना आयेगा, तब जाकर खोलते हैं. जैसे गरीबी रेखा का जो कार्ड बना है, उसमें पूरे परिवार के लोगों का नाम है. मेरा कहना यह है कि इसमें पात्रता पर्ची की अनिवार्यता समाप्त करनी चाहिये. क्यों पात्रता पर्ची रखें. कई ऐसे आपके बीपीएल कार्ड धारी हैं, जो कार्ड लेकर घूम रहे हैं, लेकिन बेचारों को राशन नहीं मिल पा रहा है, इसलिये कि पात्रता पर्ची न मिलने के कारण से, आपके पोर्टल बंद हैं, क्या हैं, काफी लोग इसमें परेशान हैं. इसमें विशेष पहल करने की आवश्यकता है. मैं अपने क्षेत्र की बात करना चाहूंगा. मेरे यहां, जैसे मैंने अभी दुकानों की बात की. वहां पर कुछ ऐसे गांव हैं, जैसे मेरे यहां कलेह एवं हुण्ड्रा है, जहां के लोग दूसरे गांव जाते हैं और बीच में बड़ी बड़ी नदी पड़ती है. वहां पर दुकान की व्यवस्था करवाई जाये. दूसरी चीज, मेरे क्षेत्र में आईएपी मद एवं बीआरजीएफ योजना से बहुत पहले खाद्यान्न के गोदाम आपके बने हुए हैं. किन्तु आज भी उन गोदामों में आपकी दुकान क्यों संचालित नहीं हो रही है. वह इसलिये दुकान संचालित नहीं हो रही है, क्योंकि वहां पर काला बाजारी होती है और आपका सेल्समेन वगैरह कोई नहीं बनेगा और दूसरी बात जो व्यक्ति एपीएल में हैं, बीपीएल में नहीं हैं, जो एपीएल में हैं, उन्हें भी मैं कहता हूं कि उनको कुछ भी मत दो, लेकिन कम से कम 2 लीटर मिट्टी के तेल की व्यवस्था करना चाहिये. मैं मंत्री जी से यह निवेदन करना चाहूंगा कि एपीएल के लोगों को भी दो लीटर मिट्टी के तेल की उपलब्धता होनी चाहिये. सभापति महोदय, आपने समय दिया, धन्यवाद.
श्री सुन्दरलाल तिवारी (गुढ़) -- सभापति महोदय, मैं मंत्री जी से एक निवेदन करना चाहता हूं कि एक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम ,2013 है और पिछली बार भी मंत्री जी ने घोषणा की थी. मंत्री जी, मेडम चिटनीस जी, आज अभी चली गयी, महिला सशक्तिकरण की बात कर रही थीं. इसमें यह प्रोविजन है कि राशन कार्ड जारी किये जाने के प्रयोजन के लिये 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की स्त्रियों का गृहस्थी का मुखिया होना, यह राशन कार्ड में पहला नाम मुखिया के रुप में महिलाओं का रखने का वर्ष 2013 में केंद्र सरकार ने कानून बनाया. दुर्भाग्य है कि मध्यप्रदेश में यह कानून आज तक लागू नहीं हुआ. पिछली बार इसकी चर्चा आई थी, तो खाद्य मंत्री जी ने कहा था कि हम इसको मध्यप्रदेश में लागू करेंगे, लेकिन आज बड़ी बड़ी महिला सशक्तिकरण की बात हो रही है. लेकिन राशन कार्ड के लिए जो कानून है, नियम है, केन्द्र के द्वारा राज्यों के लिए बाध्यता बनाई गई है, इसका पालन नहीं किया गया है. सभापति जी, मेरा कहना है कि उसका पालन करके महिलाओं का नाम राशन कार्ड में मुखिया के रूप में स्थापित कराएं. साथ ही एक चीज मैं और कहना चाहूँगा कि सरकारी गोदाम बने हुए हैं, लेकिन इनको भरने का काम सरकार नहीं करती, बल्कि प्राइवेट गोदामों को भरती है, सरकारी गोदामों को भरने का काम होना चाहिए. धन्यवाद.
खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री (श्री ओम प्रकाश धुर्वे) -- माननीय सभापति महोदय, खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग की वित्तीय वर्ष 2018-19 की बजट मांगों के संबंध में माननीय सदस्य श्री शैलेन्द्र पटेल जी, श्री ओमकार सिंह मरकाम जी, सुश्री हिना लिखीराम कावरे जी, श्री दिनेश राय जी, श्री सुखेन्द्र सिंह जी, श्री यादवेन्द्र सिंह जी, श्री रामपाल सिंह ब्यौहारी जी और अंत में माननीय सुन्दरलाल तिवारी जी, आप सभी माननीय सदस्यों के बहुत ही महत्वपूर्ण सुझाव प्राप्त हुए हैं. माननीय सदस्यों द्वारा उठाए गए विषयों पर विभागीय मत और विभाग की योजनाओं पर मैं सदन का ध्यान आकर्षित करने से पहले दो लाइन कहना चाहता हूँ कि -
चाहते हैं हम ध्वंस कर देना, विषमता की कहानी !
हो सुलभ सबको प्रदेश में वस्त्र, भोजन और पानी !! (मेजों की थपथपाहट)
सभापति महोदय, अभी माननीय सदस्य, श्री शैलेन्द्र पटेल जी अपने उद्बोधन में बोल रहे थे कि खा गए शक्कर, पी गए तेल. सभापति महोदय, मैं कहना चाहूँगा और मुझे ध्यान है क्योंकि मैं भी आदिवासी क्षेत्र से निर्वाचित होकर आता हूँ. आज से 16-17 साल पहले प्रदेश में जब सामने वालों की सरकार थी, हमारे देश की क्या स्थिति थी. आस्ट्रेलिया और अमेरिका से लाल गेहूँ लाया जाता था.
श्री शैलेन्द्र पटेल -- सभापति महोदय, हरित-क्रांति उसके बाद ही आई है.
श्री ओम प्रकाश धुर्वे -- सुन तो लीजिए आप. आज पूरा हिन्दुस्तान गाजर घास से संक्रमित है. गाजर घास से केवल हमारे यहां का जल, जंगल और जमीन ही संक्रमित नहीं है, हम और आप भी संक्रमित हो गए हैं. यह आप लोगों की ही देन है. लेकिन आज मैं बड़े गर्व से कह सकता हूँ कि जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार हमारे माननीय मुख्यमंत्री, श्री शिवराज सिंह चौहान जी के नेतृत्व में आई है, खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 जब से लागू हुआ है, इसके पूर्व लगभग 75 लाख परिवारों को हम एक रुपया किलो की दर से राशन देने का काम कर रहे थे.
श्री शैलेन्द्र पटेल -- माननीय मंत्री जी, यह अधिनियम वर्ष 2013 में कौन लेकर आया, यह भी बता दीजिए.
श्री ओम प्रकाश धुर्वे -- आप सुन तो लीजिए. इसके पहले 75 लाख परिवारों को राशन दिया जा रहा था लेकिन आज 2018 में बढ़कर 116 लाख 88 हजार परिवारों को हम एक रुपये की दर से अनाज देने का काम कर रहे हैं. कितना गुना हो गया, आप जोड़ लीजिए.
श्री शैलेन्द्र पटेल -- माननीय मंत्री जी, मतलब गरीबी बढ़ गई.
श्री ओम प्रकाश धुर्वे -- सभापति महोदय, अभी हमारे एक मित्र, श्री सुखेन्द्र सिंह जी कह रहे थे कि हमारे देश की 70 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है, उनका बीपीएल कार्ड तो बनवा दो. सभापति महोदय, मैं कहना चाहूंगा कि 70 प्रतिशत आबादी ही नहीं, हम तो हमारे प्रदेश की 75 प्रतिशत आबादी को एक रुपये किलो खाद्यान्न उपलब्ध करवा रहे हैं, यह हमारी उपलब्धि है, माननीय श्री शिवराज सिंह चौहान जी की सरकार की उपलब्धि है.
श्री सुखेन्द्र सिंह -- यह कानून आपका नहीं है यही तो आप नहीं बोल रहे हैं. आप बताओ कि जब माननीय मनमोहन सिंह जी की सरकार थी तब उन्होंने लागू किया...(व्यवधान)....
श्री ओमप्रकाश धुर्वे -- आप सुन तो लीजिए.....(व्यवधान)....
सभापति महोदय -- माननीय मंत्री जी, कन्टीन्यू रहने दीजिए...(व्यवधान).. आप लोग भी मदद करें...(व्यवधान)...
श्री ओमप्रकाश धुर्वे -- माननीय सभापति महोदय, वह गरीबों को खिलाने के लिए था समुद्री जहाज से लाकर के और यहां आते-आते वह 4000 रूपए क्विंटल पड़ता था लेकिन यह हमारी सरकार है कि हमारे देश के जो किसान हैं अब तो हम 1735 रूपए प्रति क्विंटल लेकर के 265 रूपए और दे रहे हैं. तो ये लगभग 2000 रूपए क्विंटल पडे़गा. किसानों से हम 2000 रूपए प्रति क्विंटल लेकर के उन्हीं किसानों को, गरीबों को हम 1 रूपए किलो मुहैया करा रहे हैं. (मेजों की थपथपाहट) ऐसा कभी नहीं हुआ, यह चमत्कार हुआ और इतना ही नहीं जो अति पिछड़ी जातियां जैसे बैगा, भारिया, सहरिया आदिवासी पूरे देश में मध्यप्रदेश एकलौता राज्य है जिसने उनकी श्रेणी, उनका मापदण्ड खत्म कर दिया कि गरीब हो या अमीर हो, सबको एक रूपए किलो देने का काम अगर सबसे पहले हिन्दुस्तान के अन्दर किसी ने किया है तो हमारी भाजपा की सरकार ने किया है.....(व्यवधान)...
सभापति महोदय -- कृपया शांति रखें.
श्री ओमप्रकाश धुर्वे -- माननीय सभापति महोदय, अभी हमारे माननीय सदस्य शैलेन्द्र पटेल जी कह रहे थे कि भैया, आप लोग केन्द्र सरकार से कोटा क्यों नहीं बढ़ा रहे हैं. हम 75 प्रतिशत आबादी को दे रहे हैं लेकिन हमारे माननीय मुख्यमंत्री जी के प्रयास से और मेरे विभाग के जितने भी हमारे प्रमुख सचिव से लेकर उच्च स्तर के अधिकारी हैं भारत सरकार से लगातार संपर्क किए और आज मुझे खुशी है कि हम लोग भारत सरकार से 7709 मीट्रिक टन अतिरिक्त खाद्यान्न का आवंटन करा लिए हैं और उससे अतिरिक्त आवंटन प्राप्त कर लिए है....(व्यवधान)...
श्री सुंदरलाल तिवारी -- कितना अतिरिक्त ले आएं हैं बताएं ? ...(व्यवधान)...
श्री ओमप्रकाश धुर्वे -- माननीय तिवारी जी, अतिरिक्त आवंटन प्राप्त कर लिए हैं..(व्यवधान)....अतिरिक्त तो बता रहा हॅूं मैं. आप क्या सुन रहे हैं. 7209 मीट्रिक टन यह अतिरिक्त है...(व्यवधान)...देखिए, मैं उस चीज को अगर कहूंगा तो अच्छा नहीं लगेगा. अधिवक्ता बहुत होते हैं सबकी नहीं चलती. आप भी अधिवक्ता होंगे. अब मैं उस चीज को नहीं कहना चाहता. माननीय सदस्य मैं एक और बात कहना चाह रहा हॅूं कि आज निश्चित रूप से हमारे यहां 1 करोड़ 96 लाख जनसंख्या को जो पहले एपीएल धारक थे जिनको महंगा अनाज मिलता था या मिल ही नहीं पाता था लेकिन हमारी सरकार ने इसको 23 श्रेणियों में बांट दिया है जो भूमिहीन हैं, कोई रिक्शा चला रहा है, कोई कामकाजी महिला है जो विकलांग हैं जो ठेला चला रहा है ऐसे जो परिवार हैं उनको हम अन्नपूर्णा योजना का सीधे-सीधे लाभ दे रहे हैं और वह पूरी संख्या मिलाकर के 1 करोड़ 96 लाख संख्या हैं जो पहले एपीएल श्रेणी में आते थे और उनको इसका लाभ नहीं मिलता था और इतने लोगों को हम 1 रूपया किलो अनाज देने का काम कर रहे हैं यह बहुत बड़ी उपलब्धता है.
माननीय सभापति महोदय, इसी प्रकार से आज की तारीख में हम लोग लगभग 5 करोड़ 41 लाख हितग्राहियों को 22,508 उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से प्रतिमाह लगभग 2 लाख 93 हजार मीट्रिक टन खाद्यान्न, 11 हजार 134 मीट्रिक टन नमक, 27 हजार 708 केएल केरासिन का वितरण रियायती दर पर कर रहे हैं. अभी माननीय सदस्य कह रहे थे कि भैय्या खा गए शक्कर, पी गए तेल, तेल हम नहीं पी रहे हैं, मुर्दा जलाने के लिए भी उपलब्ध नहीं होता. हमने तो यह भी कर दिया है, गैस चालू कर दी है, आपने कभी कल्पना की थी कि गरीब को गैस की टंकी और चूल्हा भी मिलने वाला है. यह पहली बार हो रहा है और...
श्री सुखेन्द्र सिंह-- गैस का रेट भी जरूर बता दीजिएगा.
श्री ओम प्रकाश धुर्वे-- आज मैं यह दावे से कह सकता हूँ कि अब पूरे मध्यप्रदेश में साल भर के अन्दर कोई ऐसा घर बाकी नहीं रह गया, हमारी नीति है, जहाँ बिजली न हो, अब लालटेन और चिमनी का काम खतम हो जाएगा, ऐसी ऐसी योजना मध्यप्रदेश की सरकार ने चालू कर दी है इसलिए गैस की टंकी और चूल्हा इसलिए उन परिवारों को अब 2 लीटर उपलब्ध कराया जा रहा है और माननीय सभापति महोदय, अब तो कैरोसिन हम लोगों ने उचित मूल्य से मुक्त कर दिया. उसको कोई भी लायसेन्स लेकर के और दुकान में बेच सकता है और आप खरीद सकते हैं. मैं आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ. इसको हमने बिल्कुल फ्री कर दिया है ताकि आपको किसी प्रकार की परेशानी न हो.
श्री शैलेन्द्र पटेल-- माननीय मंत्री जी, प्रश्न के उत्तर में दिया था कि पिछले 2 वर्षों से सीहोर में कोई आवंटन नहीं हुआ, कोई तेल नहीं है सीहोर में, प्रश्न में यह आपके विभाग ने जानकारी दी है. पी गए पूरा.
श्री ओम प्रकाश धुर्वे-- नहीं, नहीं, ऐसा नहीं है. अभी कुछ सदस्य यह भी बोल रहे थे कि समय पर राशन नहीं मिलता. लेकिन हमने इसके लिए समय सारणी भी तय कर दी है कि राशन कब मिलेगा, कैसे मिलेगा, कई कई महीने राशन नहीं मिलता था, उसमें हम निश्चित रूप से आदरणीय तिवारी जी, मैं कहना चाहूँगा हमने सुधार किया है. अब तो 10 तारीख तक ऑन लाइन आवंटन दे दिया जाता है और 13 तारीख तक साफ्टवेयर में अपलोड कर देते हैं और 15 तारीख से 25 तारीख तक दुकानों में सामग्री एक महीने पहले, पूर्व में हम भेज देते हैं और 22 से 30 तारीख तक पीओएस मशीन में हमारा हकदारी डाउनलोड हो जाता है और 1 तारीख से 21 तारीख तक हमारे राशन वितरण का काम चलता है और 1 महीने पहले हम लोग भेज देते हैं ताकि हितग्राहियों को समय पर मिले और इस प्रकार से अगर परिवहन नहीं हो पाता है, कोई परिवहनकर्ता अगर कोताही करता है तो उसको ब्लेक लिस्टेड करके और लगभग 2 से 10 वर्षों तक के लिए उसको ब्लेक लिस्टेड करने का काम भी हम कर रहे हैं और कई लोगों को कर भी चुके हैं और रिस्क एंड कॉस्ट पर उसको परिवहन का काम कराने का निर्देश भी कर दिया गया है.
सभापति महोदय-- माननीय मंत्री जी, कितने समय में पूरा कर देंगे?
श्री ओम प्रकाश धुर्वे-- सभापति जी, अब आखरी है कल से छुट्टी है 3 दिन की. सभापति महोदय, बताना भी पड़ेगा, जानकारी भी होना चाहिए ना कि हम लोग क्या कर रहे हैं.
सभापति महोदय-- थोड़ी सी शीघ्रता करें...(व्यवधान)..
श्री ओम प्रकाश धुर्वे-- जी, मैं आज जो भी बोल रहा हूँ बिल्कुल सत्य बोल रहा हूँ. माननीय सभापति महोदय, सार्वजनिक वितरण प्रणाली पारदर्शी हो, जनोन्मुखी हो इसलिए हमने पूरे सिस्टम का कंप्यूटरायजेशन कर दिया है और लगभग 5 करोड़ 41 लाख हितग्राहियों का डाटा भी हमने फीड कर लिया है और इसके परिणामस्वरूप आज जो, कभी यह होता था कि भाई बोगस राशन कार्ड बने हैं, असली हितग्राहियों को नहीं मिल पा रहा है, मैं माननीय सदस्यों को बता देना चाहता हूँ और इस व्यवस्था के तहत हमको 6,000 मीट्रिक टन अतिरिक्त खाद्यान्न की बचत भी हुई. सभापति महोदय, कभी कई लोग कहते हैं कि भाई पीओएस मशीन पर आप थंब इंप्रेशन करवाते हैं, आई स्केनर की बात करते हैं, आधार कार्ड लाते हैं, ये बोगस राशन कार्ड बनने का काम बहुत पहले होता था. नीचे स्तर पर बनता है, उसको हर जगह हम नहीं रोक सकते और आज हमें जो पारदर्शी योजना, कंप्यूटर लाए हैं, पीओएस मशीन लाए हैं, यह सिस्टम को सुधारने का काम किया है उसी का कारण लगभग 6,000 मीट्रिक टन खाद्यान्न की हमने बचत भी की है और लगभग पूरे प्रदेश में दो लाख परिवार ऐसे हैं जो 3-4 महीनों से ये आधार आधारित वितरण व्यवस्था करने से लगभग दो लाख साठ हजार लोग आज की तारीख में राशन लेने नहीं आ रहे हैं. इस भय से कि कहीं हम पकड़ में न आ जाएँ और माननीय सभापति महोदय, अकेले इन्दौर शहर में आज की तारीख में 23,000 लोग राशन लेने के लिए दुकान में आ रहे हैं. हमारे प्रमुख सचिव महोदय, मेरे कमिश्नर इनको मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ. आप लोगों ने बहुत मेहनत करके इस सिस्टम को ठीक करने का प्रयास किया है. आने वाले समय में यह जो परिवार हैं निश्चित रुप से पोर्टल खोलकर, यादवेन्द्र जी बोल रहे थे. आपके यहां जो सत्यापित परिवार हैं उनको लेने का काम हम अतिशीघ्र करने वाले हैं.
सभापति महोदय--आपने बहुत सराहनीय काम किए हैं बड़े परिश्रम से कर रहे हैं लेकिन थोड़ा समय का ध्यान भी रखें.
श्री ओम प्रकाश धुर्वे--सभापति महोदय, आज से 12-13 साल पहले बाबा आदम के जमाने का तौल कांटा चलता था जिसमें दो पलड़े होते थे उसमें डांडी मारने का काम होता था. मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ मुख्यमंत्री जी को कि शत-प्रतिशत दुकानों में अब इलेक्ट्रानिक तौल कांटे रख दिये गये हैं जिससे कि किसी को एक ग्राम राशन की कमी भी न हो पाए.
सभापति महोदय, ब्यौहारी वाले विधायक बोल रहे थे. पहले महिलाएं राशन लेने के लिए सुबह से दातून करके बिना खाना खाए राशन दुकान पर पहुंच जाती थीं. 5-5 किलोमीटर, 10-10 किलोमीटर दूर जाती थीं. यदि बीच में कोई नदी नाला पड़ गया. पता चला जब राशन लेकर लौट रही हैं तो जहां से आई हैं वहां बारिश हो गई बाढ़ आ गई है. ऐसे में एक-एक, दो-दो दिन महिलाओं को राशन लाने में लग जाता था. आज मुझे खुशी है 5243 जो उचित मूल्य दुकान विहीन थीं सभी के लिए हमने आदेश कर दिया है. अब मध्यप्रदेश में कोई उचित मूल्य विहीन पंचायत नहीं होगी सभी में खोलने का आदेश कर दिया है. यह बहुत बड़ी उपलब्धि है.
श्री सुखेन्द्र सिंह--दुकान भी बनवाएं भाई साहब दुकान जरुरी है.
श्री ओम प्रकाश धुर्वे--करवा रहे हैं ऐतिहासिक निर्णय है. मैं माननीय विधायक जी से कहना चाहूँगा कि यदि कोई राशन दुकान 2-3 किलोमीटर दूर है और वहां नदी नाला है और 400 राशन कार्ड वहां पर हैं तो मुझे दे दें वहां पर भी हम राशन दुकान खोलने का काम करेंगे.
श्री रामपाल सिंह--मंत्री जी मैंने जिन गांवों के नामों का उल्लेख किया था वह गांव हैं.
श्री ओम प्रकाश धुर्वे--आप तो मेरे मित्र हैं पड़ोसी हैं वहां भी खोल देंगे.
श्री रामपाल सिंह--ठीक है.
सभापति महोदय--आप तो सीधे से संक्षेप में अपनी बात रख दें.
श्री ओम प्रकाश धुर्वे--सभापति महोदय, मैं भण्डारण के बारे में बताना चाहता हूँ. भण्डारण के क्षेत्र में आज हम अव्वल हैं. आज करीब 1 करोड़ 45 लाख मीट्रिक टन की क्षमता हासिल कर ली है. देश में जितने भी राज्य हैं उनमें हम उत्कृष्ट राज्य में आ रहे हैं. इसके पहले महिला बाल विकास की बात आ रही थी. कुपोषण की बात हो रही थी. आदिवासी क्षेत्र में ही कुपोषण की समस्या ज्यादा है प्रिमीटिव कास्ट के लोग रहते हैं. पहुंच विहीन क्षेत्र हैं. वहां गरीबी है, वहां उपजाऊ भूमि नहीं है. हमने अब अनुसूचित जनजाति बाहुल्य 89 विकासखण्डों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 में सम्मिलित पात्र हितग्राहियों की आयरन की कमी को दूर करने के लिए Double fortified salt अगले माह से हम लोग प्रारंभ कर रहे हैं जिससे कुपोषण से लड़ने में फायदा मिलेगा. यह हम एक रुपए किलो देंगे. देश के कुछ राज्यों ने भी यह चालू किया है लेकिन वे इसे 20 रुपए किलो पर उपलब्ध करा रहे हैं. Double fortified salt जब आप देखेंगे तो देखते रह जाएंगे. ईज ऑफ डूईंग बिजनेस के तहत हमारे विभाग को धन्यवाद देना चाहिए कि हमारा जो सिस्टम है, ऑनलाईन व्यवस्था है और सिस्टम को सुधारने का काम जो हमने किया है और उसके तहत आज हमारी मुख्यमंत्री हेल्पलाईन में दर्ज जो शिकायतें हैं उनका निराकरण करने के मामले में हमारा विभाग बहुत आगे है और लगभग 80 हजार 295 शिकायतों में 77 हजार 10 शिकायतों का निराकरण हमने किया है. इस तरीके से प्रदेश के सभी विभागों में से हमारे विभाग का स्थान अव्वल है और हम लोग अंडर फाईव में स्थान रखते हैं. मैं निवेदन करना चाहता हूं कि जो हमारी मांग है...
श्री यादवेन्द्र सिंह-- मेरे यहां की राशन की दुकानें देख लीजिए.
श्री ओमप्रकाश धुर्वे-- माननीय यादवेन्द्र जी से मैं कहना चाहूंगा कि 20 तारीख तक आपके यहां जो दुकानें संलग्न कर दी गईं हैं उसको वापस करके सहकारी समिति को दे दी जाएंगी, आवंटित कर दिया जाएगा. इसका आदेश आपको 20 तारीख को मिल जाएगा. मैं सभी माननीय सदस्यों से अनुरोध करता हूं हमारी जो अनुदान मांग है उसको पास किया जाए. इसके पहले मैं दो लाइनें कहना चाहता हूं.
आपके तजुर्बे और अपने सपने सब सच्चे लगते हैं,
अजीब सी अकुलाहट दिल में उभरती है,,
मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूं,
जाने क्या मिल जाए,
सभापति महोदय-- मैं, पहले कटौती प्रस्तावों पर मत लूंगा.
प्रश्न यह है कि मांग संख्या-39
पर प्रस्तुत कटौती प्रस्ताव स्वीकृत किये जायें.
कटौती प्रस्ताव अस्वीकृत हुए.
सभापति महोदय--अब, मैं, मांग पर मत लूंगा.
प्रश्न यह है कि 31 मार्च, 2019 को समाप्त होने वाले वर्ष में राज्य की संचित निधि से प्रस्तावित व्यय के निमित्त राज्यपाल महोदय को-
अनुदान संख्या-39 खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण के लिए एक हजार छह सौ पैंतीस करोड़, चौंतीस लाख, इक्कीस हजार रुपये
तक राशि दी जाय.
मांग का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
7.13 बजे शासकीय वक्तव्य
मध्यप्रदेश ग्रामों में की दखल रहित भूमि विशेष उपबंध अधिनियम 1970 में संशोधन भोपाल मर्जर एग्रीमेंट से उत्पन्न विषय पर निर्देश तथा पश्चिमी पाकिस्तान से आए विस्थापितों के पुर्नवास के संबंध में राजस्व मंत्री का वक्तव्य
सभापति महोदय-- श्री उमाशंकर गुप्ता, राजस्व मंत्री मध्यप्रदेश ग्रामों में की दखल रहित भूमि विशेष उपबंध अधिनियम 1970 में संशोधन भोपाल मर्जर एग्रीमेंट से उत्पन्न विषय पर निर्देश तथा पश्चिमी पाकिस्तान से आए विस्थापितों के पुर्नवास के संबंध में वक्तव्य देंगे.
राजस्व मंत्री (श्री उमाशंकर गुप्ता)-- माननीय सभापति महोदय, आज मध्यप्रदेश सरकार ने वर्षों से लंबित मांगों का निराकरण किया है, राहत दी है भोपाल के मर्जर एग्रीमेंट की समस्या से लाखों लोग पीडि़त थे उसी प्रकार आजादी के समय हमारे देश ने जो विभाजन का दंश सहा था और अनेक ऐसे भाई जिनको पाकिस्तान से अपनी सारी संपत्ति छोड़कर यहां विस्थापितों के रूप में उनकी भी अनेक समस्याओं का निराकरण आज मध्यप्रदेश सरकार ने किया है. इसी प्रकार आज दिन में राजस्व की मांग के समय जो कुछ बात आई थी, नगरीय सीमा में आवंटन नहीं होने की और अन्य उन तीनों पर सरकार ने निर्णय लिया है और उसके संबंध में एक वक्तव्य में यहां पर प्रस्तुत कर रहा हूं.
राज्य मंत्री, सामान्य प्रशासन(श्री लाल सिंह आर्य):- माननीय सभापति महोदय, यह मध्यप्रदेश के इतिहास में एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक फैसला माननीय मंख्यमंत्री जी के नेतृत्व में लिया गया है. मैं माननीय मुख्यमंत्री जी को और माननीय गुप्ता जी को बधाई देना चाहता हूं. इससे लाखों परिवार लाभावान्वित होंगे.
7.21 बजे अशासकीय संकल्प
सभापति महोदय:- अब अशासकीय संकल्प प्रस्तुत होंगे, श्री दिनेश राय.
कुँवर विक्रम सिंह(राजनगर):- माननीय सभापति महोदय, मेरा निवेदन है और मैं समझता हूं कि सदन का भी यह मत होगा कि सभी अशासकीय संकल्पों को ध्वनिमत से पारित करके, केन्द्र सरकार के पास भेजा जाये.
सभापति महोदय:- यदि सदन सर्वानुमति से पारित करता है तो स्वागत है.
कुँवर विक्रम सिंह:- हम सहमत हैं.
(1) औद्योगिक इकाइयों द्वारा विसर्जित ठोस अपशिष्टों का निपटान न करने वाली इकाइयों पर कठोरतम कार्यवाही की जाना.
श्री
दिनेश
राय(सिवनी):-
सभापति महोदय,
मैं यह संकल्प
प्रस्तुत
करता हूं कि-
''सदन
का यह मत है कि
आद्यौगिक
इकाइयों
द्वारा विसर्जित
ठोस अपशिष्टों
का निपटान न
करने वाली
इकाइयों पर
कठोरतम
कार्यवाही की जाए.''
सभापति महोदय:- संकल्प प्रस्तुत हुआ.
खनिज साधन मंत्री(श्री राजेन्द्र शुक्ल):- माननीय सभापति महोदय, इसमें कोई परेशानी नहीं है.
सभापति महोदय:- प्रश्न यह है कि-
''सदन का यह मत है कि आद्यौगिक इकाइयों द्वारा विसर्जित ठोस अपशिष्टों का निपटान न करने वाली इकाइयों पर कठोरतम कार्यवाही की जाए.''
संकल्प सर्वानुमति से स्वीकृत हुआ.
श्री दिनेश राय:- मैं माननीय मंत्री को और सदन के सभी सदस्यों को धन्यवाद देता हूं.
7.25 बजे अध्यक्षीय घोषणा
(2) श्री रामलल्लू वैश्य, सदस्य का अशासकीय संकल्प क्रमांक-2 आगामी दिनांक
में लिया जाना.
सभापति महोदय - माननीय सदस्य श्री रामलल्लू वैश्य के अनुरोध अनुसार उनका अशासकीय संकल्प बाद में लिया जायेगा.
7.26 बजे अशासकीय संकल्प (क्रमश:)
(3) ट्रेक्टर से चलित सहायक यंत्रों से दुर्घटना होने की दशा में बीमा
क्लेम दिया जाना.
किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री (श्री गौरीशंकर चतुर्भुज बिसेन) - माननीय सभापति महोदय, यह सर्वसम्मति से पारित करें.
संकल्प सर्वानुमति से स्वीकृत हुआ.
सभापति महोदय - आप सभी को बहुत बहुत बधाई.
श्री शैलेन्द्र पटेल - माननीय सभापति महोदय, मैं हमारे नेता प्रतिपक्ष और संसदीय कार्यमंत्री जी को इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ.
7.28 बजे नियम-52 के अधीन आधे घण्टे की चर्चा
श्री सुन्दरलाल तिवारी, सदस्य माननीय नगरीय विकास एवं आवास मंत्री से पूछे गये तारांकित प्रश्न संख्या 4 (क्र.484) दिनांक 8 मार्च, 2018 के उत्तर से उद्भूत विषय.
लोक निर्माण मंत्री (श्री रामपाल सिंह) - सभापति महोदय, इस पर भी निर्णय पहले ही हो चुका है.
सभापति महोदय - आपकी अनुमति हो तो आगे ले लें.
श्री सुन्दरलाल तिवारी - आप अभी ले लें, बहुत बड़ा मामला नहीं है.
सभापति महोदय - आप बोलें तो आगे ले लें या संक्षिप्त में प्रस्तुत कर दें. आप टू द प्वाइन्ट रख दें, आप तो सीनियर एडव्होकेट भी हैं.
श्री सुन्दरलाल तिवारी (गुढ़) - माननीय सभापति महोदय, देश में बहुत ज्यादा किसानों की जमीनें विभिन्न तरीकों से बिल्डर्स, शासन और अन्य लोग खरीदने, अर्जित करने की प्रथा इस देश के अन्दर चली क्योंकि जमीनों की कीमतें बहुत तेजी से बढ़ी हैं. किसानों की जमीन और आर्थिक स्थिति बचाने के लिए पूरे देश में एक आवाज उठी और यह हुआ कि कैसे किसानों को उचित मुआवजा दिया जाये ? कैसे उनकी जमीनों की उचित राशि उन्हें उपलब्ध कराई जाये ? और जमीन के लूटने वालों से किसानों की जमीन बचाई जाये. इन सब चीजों को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन केन्द्र सरकार यूपीए की सरकार ने भूमि अर्जन पुनर्वास पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 का निर्माण किया और इसके तहत सीमित छूट राज्यों को दी गई कि राज्य उसमें कुछ नियम बना सकते हैं. लेकिन वे नियम भी ऐसे बनाएं, जो नियम केन्द्र सरकार के द्वारा निर्मित कानून के विरुद्ध न हों, कन्ट्राडिक्ट्री न हो, उसकी मंशा के विरोध में न हो. यह कानून बनने के बाद किसानों में एक उत्साह जगा.
माननीय सभापति जी, यह बड़ी विडम्बना रही कि मध्यप्रदेश में यथावत् यह केन्द्र का कानून लागू नहीं हो सका. राज्य सरकार की मंशा नहीं रही और नोटिफिकेशन के द्वारा कुछ अमेन्डमेन्ट राज्य शासन ने किया तो जो यूपीए सरकार की मंशा किसानों को लाभ पहुँचाने की थी, उस लाभ से मध्यप्रदेश के किसान वंचित रह गए. एक प्रश्न यह हमारे रीवा में खड़ा हुआ कि नेशनल हाईवे नं. 75 का निर्माण प्रारंभ हुआ और उसके लिए लैण्ड एक्वायर करने की बात चली. वह नेशनल हाईवे नं.75 हमारे ही क्षेत्र से गुजर कर आगे सीधी, शहडोल की तरफ जाने की बात थी. हमारे क्षेत्र की एक नगर पंचायत गुढ़ है, उससे वह पास होने की बात आई, तब वहां के नगर पंचायत के जो हमारे किसान और रहवाशी लोगों की जमीन अधिग्रहीत की गई. उसके बाद जब जमीन अधिग्रहीत की गई तब नगर पंचायत में रजिस्ट्री की जो कलेक्टर गाईडलाइन है या वहां के जमीनों के दाम जो वहां के कलेक्टर ने गाईडलाइन के अनुसार निर्धारित किये हैं, उसके अनुरूप न देकर नगर पंचायत क्षेत्र को ग्रामीण मानकर उसके अनुसार ग्रामीण के रेट लगाकर वहां के भू-अर्जन अधिकारी ने उनको पेमेंट कर दिया. अब उसके बाद जब उनको कम लाभ मिला और जमीन महत्वपूर्ण चली गई और उपकर उनको पर्याप्त नहीं मिला तो उन्होंने इस पर आपत्ति उठाई. इस प्रकार उन्होंने भू-अर्जन अधिकारी के सामने भी लिखित आपत्ति उठाई उन्होंने उस बात को सुना नहीं और अनदेखी कर निर्णय कर दिया. निर्णय से क्षुब्ध होकर उन लोगों ने आर्बिट्रेटर के यहां पर इसकी अपील की. कमिश्नर को आर्बिट्रेटर कहा जाता है, वहां पर वे लोग अपील में गये.कमिश्नर जो आर्बिट्रेटर नियुक्त होते हैं, वह नेशनल हाईवे एक्ट में आर्बिट्रेटर नियुक्त होते हैं. कमिश्नर को ही आर्बिट्रेटर कहा जाता है, वहां पर लोग अपील में गये थे, वह अपील आज भी लंबित है और अब इसे भाग्य कहिये या दुर्भाग्य कहिये वह कमिश्नर साहब जो हमारे रीवा के थे, वह रिटायर होने वाले थे.
सभापति महोदय - आप इसमें मूल क्या बोलना चाहते हैं, आप वह बोलें. अपने विषय को बिंदुवार रखें, जिसमें आपकी भावना, आशय पूरा आ जाये और मंत्री जी उसका जवाब दे सकें.
श्री सुन्दरलाल तिवारी - माननीय सभापति महोदय, मैं यह बताना चाहता हूं कि चूंकि आर्बिट्रेटर साहब रिटायर होने वाले थे, इसलिये उन्होंने उसको निर्णीत नहीं किया. मेरा यह कहना है कि मैंने वह प्रश्न यहां पर उठाया था, तब यहां पर विवाद खड़ा हो गया कि भाई यह हमारे विभाग का प्रश्न नहीं है यह रेवेन्यू से संबंधित है, कोई बोला की पीडब्ल्यू डी से संबंधित है, इस तरह की कई बाते उस समय आईं थीं. अंततोगत्वा रेवेन्यू मिनिस्टर साहब आये हैं मेरा उनसे इतना कहना है कि जब एक कलेक्टर की गाईडलाइन है और नगर पंचायत क्षेत्र में वह जमीन है और बाद में भू-अर्जन अधिकारी ने कमिश्नर के यहां पर लिखकर भी दिया है, जिन्होंने ने यह फैसला किया था और ग्रामीण का मुआवजा दिया था, उपकर दिया था, उन्होंने ही बाद में कमिश्नर को लिखकर दिया कि इनको नगर का मिलना चाहिये, इनको अर्बन एरिये का मिलना चाहिए, लेकिन आज तक वह किसानों को नहीं मिला है. मेरा यह कहना है कि क्या माननीय मंत्री जी अर्बन एरिया और शहरी क्षेत्र की जो गाईडलाइनस निर्धारित की गई है, उसके आधार पर जो पूर्व में निर्धारण हुआ उसको गलत मानते हुए क्या नया निर्धारण करके, उन किसानों को मुआवजा दिया जायेगा.
राजस्व मंत्री( श्री उमाशंकर गुप्ता) - माननीय सभापति महोदय, माननीय सदस्य ने जो बात उठाई है, मैं उससे सहमत हूं. यह प्रकरण कमिश्नर के पास गया हुआ है, लेकिन उस पर फैसला नहीं हुआ है. फैसला कमिश्नर को ही करना है. हम कमिश्नर को निर्देशित करेंगे कि वह फैसला जल्दी से जल्दी कर दें क्योंकि जो बात आपने कही है कि ग्रामीण कृषि दर से उन्हें मुआवजा मिला है और अब वह नगर पंचायत बन गई है और नगर पंचायत कृषि के हिसाब से उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए.
कुंवर विक्रम सिंह - माननीय सभापति महोदय, माननीय मंत्री जी वर्ष 2016-17 की जो मुआवजा राशि है, उस हिसाब से मुआवजे की राशि दिलवाई जाये.
सभापति महोदय - उनकी बात पूरी हो जाने दीजिये.
श्री उमाशंकर गुप्ता - नेता प्रतिपक्ष जी मेरी बात हो जाने दीजिये. आज आप बड़े पद पर हो, थोड़ा संयम रखो. .(हंसी)
सभापति महोदय - आप बैठ जायें, इनकी बात पूरी हो जाने दें.
श्री रामपाल सिंह - आज तो आप अगली सीट पर भी बैठ सकते हो. .(हंसी)
श्री उमाशंकर गुप्ता - माननीय सभापित महोदय, माननीय सदस्य भी यह बात जानते हैं कि आर्बिट्रेटर को हम सीधे कुछ नहीं कह सकते हैं, लेकिन हम उनसे कहेंगे कि मामले का मेरिट के आधार पर जल्दी से जल्दी निपटारा कर दें और उसे उन किसानों को राहत मिल जायेगी.
श्री सुन्दरलाल तिवारी - हम यह जानना चाहते हैं कि आप उसका समय क्या निर्धारित करेंगे ?
श्री उमाशंकर गुप्ता - मैं उनसे आग्रह करूंगा कि दो माह में इसका निपटारा करवा दें.
श्री सुन्दरलाल तिवारी - माननीय सभापति महोदय, मैं दो तीन महत्वपूर्ण बात ओर कहना चाहता हूं.
सभापति महोदय - आप अब प्वाइंटेड बोलें, सीधे प्रश्न कर लें. आपकी बात पूरी आ गई है और माननीय मंत्री जी ने कह दिया है कि जल्दी से जल्दी वह प्रकरण का निपटारा करवाने के लिये निर्देश देंगे. आपका आशय और भावना आ गई है.
श्री सुन्दरलाल तिवारी - माननीय सभापति महोदय, हमारे उस इलाके के गरीब किसानों को जानबूझकर परेशान किया गया है.
सभापति महोदय - आप विषय की पुनरावृत्ति न करें, सीधा प्रश्न कर लें ओर क्या आप चाहते हैं? माननीय मंत्री जी जल्दी-जल्दी करने का कह ही रहे हैं, आपकी बात आ गई है. कोई नई बात और नया विषय बोलें.
श्री सुन्दरलाल तिवारी - माननीय सभापति महोदय, मैं प्रोवीजन के तहत बात करना चाहता हूं. माननीय मंत्री जी जिसने भी भू-अर्जन, पुनर्वास, पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 का उल्लंघन किया है.उनके खिलाफ उनको दंडित करने का, उनके खिलाफ मामला चलाने का इस कानून में प्रावधान है, वे जिन्होंने जानबूझकर जिन भू-अर्जन अधिकारियों ने बड़ी संख्या में किसानों को परेशान किया है, क्या इस कानून के तहत उनके खिलाफ कार्यवाही आप करेंगे.
सभापति महोदय – यह तो कार्यवाही होने के बाद आगे की कार्यवाही है. मंत्री जी ने जब कह दिया जल्द से जल्द कार्यवाही होगी, तो आपकी यह बात आ ही गई है.
श्री सुन्दरलाल तिवारी – हम चाहते हैं कि मंत्री जी का आश्वासन आ जाए, इतना ही हम चाहते हैं कि उनके खिलाफ कार्यवाही हो.
श्री उमाशंकर गुप्ता – यह निर्णय आ जाने दीजिए, अगर उसमें उनकी गलती पायी जाती है तो जरूर कार्यवाही की जाएगी.
सभापति महोदय – आपकी बात पूरी आ गई. मंत्री जी ने स्पष्ट कह दिया जल्द से जल्द कार्यवाही होगी. अब उसमें कोई अतिरिक्त बात रह ही नहीं गई है.
श्री सुन्दरलाल तिवारी – सभापति महोदय, एक शब्द भी अगर आपको गलत लगे तो आप बोलेंगे तो हम बैठ जाएंगे.
कुंवर विक्रम सिंह – सभापति महोदय, मेरा कहना है कि जितने भी प्रश्न इस प्रकार के हैं उनमें 2016 और 2017 का मुआवजा बनता है वह दिलवाया जाए.
श्री सुन्दरलाल तिवारी – सभापति महोदय, मेरा कहना है कि मध्यप्रदेश सरकार ने एक नोटिफिकेशन निकाला है, उसकी दो लाइन पढ़कर सुना रहा हूं कि प्रथम अनुसूची के अनुक्रमांक 2 के कॉलम 3 में सहपठित धारा 30 की उपधारा 2 के द्वारा पदस्थ शक्तियों को प्रयोग में लाते हुए राज्य सरकार एतद् द्वारा यह अधिसूचित करती है कि ग्रामीण क्षेत्रों की दशा में वह कारक जिसके द्वारा बाजार मूल्य गुणित किया जाएगा, 1 होगा. जो मूल सेन्ट्रल एक्ट है इसमें गुणा का प्रॉविजन 2 का है, जो ग्रामीण क्षेत्र की किसानों की जमीन ली जाएगी, केन्द्र सरकार ने बनाया है कि उसका जो बाजार का मूल्य होगा उसमें 2 का गुणा होगा लेकिन हमारी राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी करके उसमें कह दिया है कि 1 का गुणा होगा. जब 1 का गुणा होगा इसका मतलब है जो केन्द्र सरकार ने जो जमीन की कीमत उपकर निर्धारित किया है वह राज्य सरकार के नोटिफिकेशन की वजह से आधा हो गया, जबकि इसी कानून में इस बात का भी उल्लेख है कि ऐसा कोई कानून कोई राज्य देश का नहीं बना सकता है.
श्री उमाशंकर गुप्ता – तिवारी जी इसमें दोगुना ही दिया गया है, एक गुणा नहीं किया गया है. इस मामले में.
श्री सुन्दरलाल तिवारी – इस मामले की बात नहीं कर रहा हूं, इसको तो आपने स्वीकार कर लिया है. यह हमारे प्रश्न का भाग है जो ग्रामीण में अधिग्रहण हो रहा है जमीनों का उसमें 1 गुणा आप दे रहे हैं.
श्री उमाशंकर गुप्ता – यह इससे कहां उद्भूत होता है, जिस प्रश्न से संबंधित चर्चा है, उसका जवाब मैं दे चुका हूं.
सभापति महोदय – तिवारी जी जब कार्यवाही होगी तो पूरा परीक्षण तो होगा ही.
श्री सुन्दरलाल तिवारी – इस प्रश्न में ही इस प्रश्न में और भी जमीनें हैं, जहां नगर पंचायत खत्म होती है.
श्री उमाशंकर गुप्ता – इस प्रश्न के जो मामले हैं, मैं उसका जवाब दे चुका हूं.
सभापति महोदय – तिवारी जी प्रश्न संख्या 4 (क्रमांक 484) से संबंधित से उद्भूत हो रहा है तो ठीक है. आपकी पूरी बात आ गई है.
श्री सुन्दरलाल तिवारी – उसी से संबंधित है, केवल नगर पचांयत की जमीनें नहीं ली गई हैं, गांव की भी जमीनें ली गई हैं, इसलिए निवेदन कर रहा हूं. मेरा यह कहना है.
सभापति महोदय – तिवारी जी आपकी पूरी बात आ गई, माननीय मंत्री जी ने कह भी दिया है.
श्री सुन्दरलाल तिवारी – सभापति जी अभी पूरी बात नहीं आई है, इसलिए आधा घंटे की चर्चा मांगी गई थी, अभी तो 15 मिनट भी नहीं हुए हैं. आधा घंटा कानून में लिखा है, उसकी चर्चा हमने मांगा है इसलिए हम अपने अधिकारों के तहत बात कर रहे हैं और आपसे आग्रह कर रहे हैं कि इसको स्पष्ट कर दें. यह पूरे मध्यप्रदेश के किसानों का सवाल है, केवल एक किसान या एक-दो-चार लाख रूपए का सवाल नहीं है. पूरे प्रदेश के किसानों का सवाल है. सभापति जी, अंतिम बात मैं आपके माध्यम से मंत्री जी से का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं. इसमें यह कानून है धारा-107 प्रभावित कुटुम्बों को अधिक लाभप्रद किसी विधि को अधिनियमित करने की राज्यकीय विधान मंडल की शक्तियां, कोई भी राज्य इसमें सुधार कर सकता है, लेकिन केन्द्र द्वारा निर्धारित राशि या जो किसानों को लाभ देने का प्रॉविजन इस एक्ट में बनाया गया है, उसको किसी राज्य को कम करने की शक्तियां नहीं है, इसमें प्रतिबंधित किया गया है. यह हिन्दुस्तान के अंदर पहला हमारा मध्यप्रदेश राज्य है, जहां कानूनों का उल्लंघन करके और किसानों के साथ अत्याचार किया जा रहा है और उनकी भूमि अधिग्रहण की कीमत है वह आधी मध्यप्रदेश में दी जा रही है. आपके माध्यम से मंत्री जी का मैं ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा कि क्या मंत्री जी इस कानून में सुधार करेंगे जो कानून बन नहीं सकता वह कानून मध्यप्रदेश में बना है, इसको आप हटायेंगे और किसानों को जो केन्द्र सरकार ने निर्धारित किया है यूपीए की सरकार ने निर्धारित किया है किसानों को मुआवजा देने और उपकर की बात की है वो दिलवायेंगे कि नहीं दिलवायेंगे ?
सभापति महोदय- अब तो आपकी सारी बात आ गई है. सुखेन्द्र सिंह जी प्रश्न से संबंधित एक बात आप रख सकते हैं.
श्री सुखेन्द्र सिंह -- माननीय सभापति महोदय, आपने बोलने का अवसर दिया, उसके लिये धन्यवाद. वैसे हमारे वरिष्ठ विधायक सुंदरलाल तिवारी जी ने बड़े विस्तार से बात कही ज्यादा बातें नहीं करूंगा उसी से संबंधित बातें यहां पर करूंगा. सभापति महोदय नेश्नल हाईवे नंबर 7 हनुमना से रीवा आती है इसी तरीके से भूमि अधिग्रहण में किसानों के साथ प्रकरण कमिश्नरी में, लंबित हैं और किसानों के साथ अन्याय हुआ है मंत्री जी से अनुरोध है कि उनके साथ न्याय करें. हमने प्रश्न लगाये, प्रश्न के उत्तर आते हैं कि जांच चल रही है, मिल जायेगा. एसडीएम के यहां प्रकरण लंबित हैं, हमारे मउगंज के टड़हर, भौति, खटखरी, हनुमना सारे किसानों की जांच करा लें बांध बन रहे हैं उनकी भी जांच करा लें, सारे प्रकरण एसडीएम मउगंज के यहां और कमिश्नर रीवा में लंबित है उनकी जांच करा लें उचित मुआवजा दिलवाने का कष्ट करें.
कुंवर विक्रम सिंह -- सभापति महोदय, मंत्री जी से अनुरोध है कि जो मुआवजा राशि वहां बने वही मुआवजा राशि हमारे किसानों को भी मिले जो छतरपुर के नेश्नल हाईवे 75 के हैं..
श्री उमाशंकर गुप्ता- दिखवा लेंगे. जो बताया है और भी लिखकर के माननीय सदस्य दे देगे तो.
सभापति महोदय- बहुत बहुत धन्यवाद.
श्री सुंदरलाल तिवारी--सभापति जी मेरे प्रश्न का जबाव नहीं आया है.
सभापति महोदय- जबाव दिया तो है..
...(व्यवधान)...
श्री उमाशंकर गुप्ता - इस मामले में दुगना दिया गया है. माननीय सदस्य गुमराह कर रहे हैं.
...(व्यवधान)...
श्री सुंदरलाल तिवारी- केन्द्र के द्वारा बनाये गये कानून के साथ मध्यप्रदेश की सरकार के छेड़छाड के कारण ऐसा हुआ है. किसानों के साथ अन्याय हुआ है.
...(व्यवधान)...
श्री उमाशंकर गुप्ता - किसानों के साथ में कोई अन्याय नही हुआ है. आप असत्य बात कर रहे हैं.आप भ्रमित कर रहे है. असत्य बात कह रहे हैं...व्यवधान...
7.42 बजे बहिर्गमन
सर्वश्री सुंदरलाल तिवारी, श्री सुखेन्द्र सिंह, श्री शैलेन्द्र पटेल सदस्य द्वारा शासन के उत्तर से असंतुष्ट होकर के सदन से बहिर्गमन
श्री सुंदरलाल तिवारी- हम बहिर्गमन करते हैं.
(सर्वश्री सुंदरलाल तिवारी, श्री सुखेन्द्र सिंह, श्री शैलेन्द्र पटेल सदस्य द्वारा शासन के उत्तर से असंतुष्ट होकर के सदन से बहिर्गमन किया गया )
सभापति महोदय-- विधानसभा की कार्यवाही मंगलवार दिनांक 20 मार्च, 2018 को प्रात: 11.00 बजे तक के लिये स्थगित.
अपराह्न 7.43 बजे विधानसभा की कार्यवाही मंगलवार दिनांक 20 मार्च,2018 (29 फाल्गुन शक संवत् 1939) के पूर्वाह्न 11.00 बजे तक के लिये स्थगित की गई.
भोपाल ए.पी.सिंह
दिनांक : 16 मार्च, 2018 प्रमुख सचिव
मध्यप्रदेश विधानसभा