मध्यप्रदेश विधान सभा
की
कार्यवाही
(अधिकृत विवरण)
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पंचदश विधान सभा द्वादश सत्र
सितंबर, 2022 सत्र
मंगलवार, दिनांक 13 सितंबर, 2022
(22 भाद्र, शक संवत् 1944)
[खण्ड- 12 ] [अंक- 1 ]
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मध्यप्रदेश विधान सभा
मंगलवार, दिनांक 13 सितंबर, 2022
(22 भाद्र, शक संवत् 1944)
विधान सभा पूर्वाह्न 11.01 बजे समवेत हुई.
{अध्यक्ष महोदय (श्री गिरीश गौतम) पीठासीन हुए.}
अध्यक्ष महोदय- आपके नेता प्रतिपक्ष कहां हैं ?
श्री सज्जन सिंह वर्मा- आपके कक्ष में ही गए थे.
अध्यक्ष महोदय- तो आना चाहिए न. पहली बार में ही ऐसा क्यों कर रहे हो ?
राष्ट्रगीत "वन्देमातरम्" का समूह गान
अध्यक्ष महोदय- अब राष्ट्रगीत "वन्देमातरम्" होगा. सदस्यों से अनुरोध है कि वे कृपया अपने स्थान पर खड़े हो जायें.
(सदन में राष्ट्रगीत "वन्देमातरम्" का समूह गान किया गया.)
11.03 बजे
मुख्य प्रतिपक्षी दल के नेता को मान्यता की घोषणा एवं बधाई
अध्यक्ष महोदय- मध्यप्रदेश विधान सभा में मुख्य प्रतिपक्षी दल, इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी द्वारा निर्वाचित विधायक दल के नेता डॉ. गोविन्द सिंह, सदस्य, को मेरे द्वारा स्थायी आदेश की कण्डिका 92 (3) की अपेक्षानुसार दिनांक 29 अप्रैल, 2022 को विधिवत् नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई है.
मैं, सर्वप्रथम नेता प्रतिपक्ष को बधाई देता हूं कि उन्होंने ये पद ग्रहण किया है. इसके साथ ही विश्वास करता हूं और आशान्वित हूं कि आपके नेता प्रतिपक्ष रहते, विधान सभा के संचालन में पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा और हम ठीक से इसे संचालित कर सकेंगे.
मुख्यमंत्री (श्री शिवराज सिंह चौहान)- अध्यक्ष महोदय, मैं, भी नवनिर्वाचित नेता प्रतिपक्ष, इस सदन के वरिष्ठ सदस्य और संसदीय ज्ञान के बहुत अच्छे जानकार तथा संसदीय परंपराओं का निर्वहन करने वाले, डॉ. गोविन्द सिंह जी को नेता प्रतिपक्ष के पद पर आसीन होने की ह्दय से शुभकामनायें देता हूं.
मेजों की थपथपाहट.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ. नरोत्तम मिश्र)- अध्यक्ष महोदय, ये मेरे मित्र हैं. डॉक्टर साहब, आप आराम से सरक के बैठ जाओ, अब आपको एक नंबर की सीट मिल गई है. अध्यक्ष महोदय, ये सीट का दोष है, इसलिए डॉक्टर साहब समय पर नहीं आ पाये थे क्योंकि इससे पहले के नेता प्रतिपक्ष बहुत कम आते थे.
अध्यक्ष महोदय, हमारा साथ वर्ष 1990 का है, बहुत पुराना साथ है. हमारी मित्रता इतनी गाढ़ी है कि कभी-कभी इनके नेता भी इससे ईर्ष्या करने लगते हैं लेकिन हमारी मित्रता में कभी, कमी नहीं आई है. अध्यक्ष महोदय, डॉक्टर साहब को सदन का लंबा अनुभव रहा है, निश्चित रूप से आपने जो आशा व्यक्त की है, मुझे उस आशा पर विश्वास है कि इनका कार्यकाल बहुत ही सफल रहेगा और जो बैठक में हमारी बात हुई थी कि वे हो-हल्ला से ज्यादा संवाद में विश्वास रखते हैं. ये मानते हैं कि यह फ्लोर हमें संवाद के लिए मिला है और लोकतंत्र में संवाद एक सशक्त माध्यम है और उसी माध्यम का हम सभी प्रयोग करेंगे. डॉक्टर साहब, आपको बहुत-बहुत बधाई.
लोक निर्माण मंत्री (श्री गोपाल भार्गव)- डॉक्टर साहब, नरोत्तम जी की ये कामना है कि अगली बार भी आप नेता प्रतिपक्ष ही बनें.
नगरीय विकास एवं आवास मंत्री (श्री भूपेन्द्र सिंह)- अध्यक्ष महोदय, नेता प्रतिपक्ष जी को माननीय मुख्यमंत्री एवं संसदीय कार्य मंत्री जी ने बधाई दी है. परंतु इस अवसर पर मैं अपना एक अनुभव बताना चाहूंगा कि जब मैं विपक्ष का विधायक था, उस समय कोई जनहित का काम था और डॉक्टर साहब उस समय सहकारिता मंत्री थे, मैं, उनके पास गया था. उन्होंने उस समय यह बात कही थी यह मुझे उनकी सबसे अच्छी बात लगी क्योंकि काम होना नहीं होना अलग विषय है, लेकिन उन्होंने कहा कि अगर ईश्वर ने आपके हाथ में यश दिया है तो इस यश से लोगों का जितना अच्छा हो सकता है करना चाहिए. मैंने इस बात को अपने जीवन में उतारने की कोशिश की है.
नेता प्रतिपक्ष (डॉ. गोविन्द सिंह)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, आपने, माननीय संसदीय कार्य मंत्री जी ने और हमारे मित्र और छोटे भाई भूपेन्द्र सिंह जी और भार्गव साहब ने जो आशा व्यक्त की है, बधाई दी है उसके लिए मैं आप सबको धन्यवाद ज्ञापित करता हूं.
माननीय अध्यक्ष महोदय की जो सोच है मेरा पूरा प्रयास रहेगा कि सदन वास्तव में चर्चा के लिए होता है. जनसमस्याएं, अगर चर्चा होती है, बहस होती है और मंथन से ही अमृत निकलता है. हमारी सोच यह है कि व्यवधान करना सदन के लिए उचित नहीं है. हम राजनीति में हैं तो हमें अपनी बात कहने का हक है तो वह हक हमें मिलना चाहिए और बाद में जो कई राजनैतिक मामले हैं वह हमें सदन के बाहर विपक्ष की भूमिका में निभाना चाहिए. सदन में ज्यादा सार्थक बहस हो जनहित में हो, प्रदेश के हित में हो. प्रदेश के विकास के लिए मैं पूरी तरह से जनहित और विकास के कार्यों में सरकार के साथ हूं. विरोध के लिए विरोध करने की मेरी सोच नहीं है. प्रदेश का हित और जनहित जहां होगा वहां मेरा पूरा समर्थन और सहयोग सरकार को रहेगा.
अध्यक्ष महोदय-- बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री सज्जन सिंह वर्मा-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं नरोत्तम जी और गोविन्द सिंह जी से एक जानकारी चाहता हूं कि आपकी मित्रता क्या गुप्तकालीन समय की है या कब की है आप बता दें.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- जिस दिन जान जाओगे उस दिन जान से ही जाओगे. (हंसी)
11.07 बजे नवनिर्वाचित राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को बधाई एवं शुभकामना
मुख्यमंत्री (श्री शिवराज सिंह चौहान)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह भारतीय लोकतंत्र की अद्भुत, अभूतपूर्व और लोकतंत्र को गौरवान्वित करने वाली घटना है कि एक जनजातीय आदिवासी परिवार में पैदा हुई बहन श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी आज भारत की राष्ट्रपति हैं. अत्यंत सहज, सरल और जुझारू जब से उन्होंने होश संभाला आपने आपको गरीबों की सेवा में लगाने का काम किया है. नगर पालिका जैसी संस्था से उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन प्रारंभ किया, लेकिन जिस पद पर भी वह रहीं जैसा कि आपने उल्लेख किया वह उड़ीसा विधान सभा की अध्यक्ष रहीं, मंत्री पद पर रहीं, विभिन्न विभागों के काम को उन्होंने ढंग से प्रशासनिक दक्षता का परिचय देते हुए संभाला और बाद में वह झारखंड की राज्यपाल भी रहीं. माननीय अध्यक्ष महोदय, व्यक्तिगत जीवन में उन्होंने इतने आघात सहे, उनके पुत्र चले गये. अब पुत्र का जाना अपने आप में एक आघात होता है कि सम्भल ही नहीं पाते. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने धैर्य रखा और सार्वजनिक जीवन में जनता की सेवा का काम झारखंड की राज्यपाल के नाते वह निरन्तर करती चली गईं. यह सदन जानता होगा, जब एक ऐसा विधेयक सदन में आया. तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी की सरकार लेकर आयी थी तो उन्होंने उसको स्वीकार करने से इंकार किया था जो वह समझती थीं कि ठीक नहीं है, उस पर डटकर फिर वह अपनी बात रखती थीं. जब वह झारखंड की राज्यपाल नहीं रहीं तो चुपचाप अपने गांव में जाकर वह निवास करती थीं, लोगों की सेवा करती थीं, मंदिर में जाती थीं, मंदिर की सफाई करती थीं और जिस दिन उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया गया और लगभग यह तय था कि वे राष्ट्रपति बनेंगी तो सूचना के बाद भी अप्रभावित रहते हुए सुबह शिव मंदिर में झाड़ू लगाने गयीं. अपने नियम को उन्होंने नहीं तोड़ा. वे भोपाल भी आयीं थीं. तब हमने उनकी सहजता और सरलता में बुद्धिमता के भी अद्भुत दर्शन किए थे. यह देश गौरवान्वित है और यह शायद भारत में ही संभव है कि एक गरीब, आदिवासी परिवार में जन्म लेकर कोई बहन भारत के सर्वोच्च पद तक पहुंच जाती है. मैं अपनी ओर से और इस सदन की ओर से, यह मेरा अपना विश्वास है जैसे आपने अपना विश्वास व्यक्त किया है उनका कार्यकाल हमारी संवैधानिक व्यवस्थाओं, संस्थाओं को और पुष्ट भी करेगी, समृद्ध भी करेगी और जनता की सेवा का अलग इतिहास भी रचेगी और पूरी दुनिया में भारत का मान बढ़ायेंगी. उनको बधाई भी और अनंत शुभकामनाएं. (मेजों की थपथपाहट)
नेता प्रतिपक्ष (डॉ. गोविन्द सिंह) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, भारत के राष्ट्रपति पद पर माननीय श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी को भारी बहुमत से विजय मिली है. समाज के सबसे वंचित अनुसूचित जनजाति समाज की श्रीमती मुर्मु जी विभिन्न राजनैतिक संस्थाओं में विधायक, मंत्री, राज्यपाल और प्रजातंत्र की रक्षक बनकर उन्होंने जहां-जहां उनको अवसर मिला, उन्होंने पूरा समय जनता की सेवा में लगाया. सबसे वंचित समाज अनुसूचित जनजाति जो पहले पुराने हमारे समाज में बड़ी गरीबी और विभिन्न परिस्थितियों में रहते थे, उनमें से हमारे भारत के लोकतंत्र में ऐसे पिछडे़ और कमजोर वर्ग की महिला श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी, जो राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हुई हैं वे भारत की तीनों सेनाओं की सेनापति भी हैं प्रमुख हैं और भारत के कल्याण, प्रजातंत्र के संविधान की रक्षा करने में और देश के विकास में उनके अनुभव का लाभ मिलेगा.
मुझे उम्मीद है कि पूरे देश ही नहीं, समूचे विश्व में आपके नेतृत्व में भारत का सम्मान और प्रतिष्ठा बढे़गी. पूरे विश्व में भारत विश्व गुरू बनकर उभरेगा. मैं माननीय राष्ट्रपति जी को अपने और अपने दल की ओर से बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं अर्पित करता हॅूं.
11.13 बजे निधन का उल्लेख
1. श्री जगदम्बा प्रसाद निगम, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा.
2. श्री कन्हैयालाल दांगी, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा.
3. श्री रणजीत सिंह गुणवान, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा.
4. श्री शिवमोहन सिंह, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा.
5. श्रीमती सरोज कुमारी, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा.
6. श्रीमती गायत्री देवी परमार, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा.
7. श्री सुखराम, पूर्व केन्द्रीय मंत्री.
8. श्री चक्रधारी सिंह, भूतपूर्व संसद सदस्य.
9. ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और द्वारका-शारदा ज्योतिष पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती,
10. जम्मू के कुपवाड़ा बार्डर पर दुश्मनों से मुठभेड़ के दौरान शहीद जवान,
11. जम्मू के सुजवान सेक्टर में आतंकी हमले में शहीद जवान,
12. गुना जिले के आरोन के जंगलों में काले हिरण के शिकारियों से मुठभेड़ में शहीद पुलिसकर्मी,
13. उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के डामटा में बस के खाई में गिरने से तीर्थयात्रियों की मृत्यु,
14. जम्मू के दुर्गमूला में आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ में शहीद जवान,
15. धार-खरगौन बार्डर पर नर्मदा नदी पर बने खलघाट पुल से यात्री बस गिरने से यात्रियों की मृत्यु, तथा
16. भारत-बांग्ला देश सीमा पर उग्रवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में शहीद जवान.
मुख्यमंत्री (श्री शिवराज सिंह चौहान) -- अध्यक्ष महोदय, भारतीय सनातन आर्य परम्परा के दैदीप्यमान नक्षत्र, परम पूज्य, प्रात: वन्दनीय जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी बह्मलीन हो गये, लेकिन अभी भी जैसे ही उनका ध्यान आता है उनका भव्य स्वरूप वैसे का वैसा सामने आ जाता है. कल जब उनके भौतिक शरीर को अंतिम विदाई देने मैं भी परमहंसी पहुंचा था, उनको भौतिक शरीर को त्याग किये लगभग 24 घण्टे हो गये थे, लेकिन ऐसा लग रहा था कि वह बैठे हैं, ध्यानमग्न हैं. चेहरे पर असीम शांति थी. उनका महाप्रयाण हमारे संपूर्ण प्रदेश और संपूर्ण राष्ट्र की, सनातन परम्परा की अपूरणीय क्षति है. एक असीम रिक्तता है जो पूरी नहीं की जा सकती है. उनका आविर्भाव अपने प्रदेश की भूमि पर होना हम सबको चिरकाल तक गौरवान्वित करता रहेगा.
अध्यक्ष महोदय, बाल्यकाल से ही वह प्रखर मेधा के स्वामी थे और उनके अंतस् में मुमुक्षु का भाव, संन्यासी भाव 9 वर्ष की उम्र में ही प्रकट हो गया था. 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने गृह त्याग कर दिया था और अनेकों तीर्थ स्थानों पर गये, अनेकों संन्यासियों के उन्होंने दर्शन किये. मैं उनका भी परम सौभाग्य मानता हूं कि गुरु के रूप में उस काल के संन्यास परम्परा के शिखरस्थ आचार्य स्वामी करपात्री जी का सानिध्य उनको प्राप्त हुआ और भारत के श्रेष्ठतम वेदान्त के आचार्य महेशानंद गिरी जी एवं पूज्य करपात्री जी महाराज से वेद वेदान्त और अनेकों शास्त्रों के अध्ययन का सौभाग्य प्राप्त हुआ. यह सदन जानता होगा वह केवल संन्यासी नहीं थे वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे. ''अंग्रेजो भारत छोड़ो'' उस आंदोलन में अपनी किशोरावस्था में भाग लिया और उन्होंने लगभग 19 महीने जेल में व्यतीत किये थे और उस समय संपूर्ण देश में वह क्रांतिकारी साधू के नाम से प्रसिद्ध हुये थे. भारतीय ज्ञान परम्परा का जो अमृत बिन्दु है वह है अद्वैत वेदान्त एक ही चेतना समस्त जड़ एवं चेतन में अनुस्यूत है यह भाव, इसलिए द्वैत है ही नहीं. हम सब एक हैं. सृष्टि के कण-कण में भगवान विराजमान हैं. हरेक आत्मा, परमात्मा का अंश है. हरेक घट में बस वही समाया हुआ है, सियाराम मय सब जग जानी. उन्होंने इस भाव को हृदयस्थ करते हुए सम्पूर्ण देश में सनातन परंपरा को तो आगे बढ़ाया ही, लेकिन सम्पूर्ण विश्व को भी दिशा देने का प्रयास किया. हम यह भी जानते हैं कि कई महत्वपूर्ण विषयों पर वह सदैव मुखर भी रहे और काम भी करते रहे. समान आचार संहिता, गौ-संरक्षण और राम जन्म भूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण जैसे विषय, अनेक राष्ट्रवादी विषय उनके प्रमुख संकल्पों का अंग रहे और उनके लिए वह जीवन-पर्यंत काम करते रहे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो और विश्व का कल्याण हो, यह भारतीय सनातन परंपरा का मूल है और विश्व का कल्याण हो, इस मंगल कामना के साथ मैं सदन को बताना चाहता हूं, सब लोग जानते भी होंगे कि उन्होंने झारखंड प्रांत के सिंहभूमि में विश्व कल्याण आश्रम की स्थापना की थी, वह केवल संन्यासी नहीं थे, कैसे हमारे जनजाति भाई-बहनों का कल्याण हो, वंचितों का भी भौतिक और आध्यात्मिक उत्थान हो, मेरी जानकारी है कि अगर कोई वंचित उनके पास पहुंचता था तो उसकी आवश्यकता की पूर्ति के लिए वह कोई कसर नहीं छोड़ते थे, यह मेरी व्यक्तिगत जानकारी में है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, उन्होंने कई चिकित्सालय, विद्यालय, संस्कृत पाठशालाएं और मंदिरों की स्थापना की, उनका संचालन भी किया और कई लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने का काम भी किया.
पूज्य महाराज जी ने भारत की आध्यात्मिक उन्नति के लिए आध्यात्मिक उत्थान मंडल नाम की संस्था की भी स्थापना की और हजारों शाखाओं के माध्यम से अंतिम समय तक समाज को जाग्रत करने का काम करते रहे. त्रिपुर सुंदरी की प्राण प्रतिष्ठा, हम में से कौन नहीं जानता. विद्या उपासना की दीक्षा, सचमुच में श्री विद्या उपासना की दीक्षा, लाखों लोगों की आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग उन्होंने इसके माध्यम से प्रशस्त किया.
माननीय अध्यक्ष महोदय, भगवान शंकराचार्य द्वारा स्थापित पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य के गुरुतर उत्तरदायित्व को उन्होंने सम्पूर्ण समर्पण कर्तव्यनिष्ठा और पुरुषार्थ से प्रतिष्ठित भी किया, आलोकित भी किया. निन्यानवां जन्मदिन अभी उनका मनाया गया था. उन्होंने सौवें वर्ष में प्रवेश किया था. सौवें वर्ष में प्रवेश करने के बाद वह शिवत्व में ही लीन हो गये. चिंदानंद रूपः शिवोहम शिवोहम. वह हमेशा कहते रहे-
सर्वे
भवन्तु
सुखिनः सर्वे
सन्तु
निरामया।
सर्वे
भद्राणि
पश्यन्तु मा
कश्चित् दुःखभाग्
भवेत्।।
और इसी के लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया. परम वीतरागी, निस्पृह, संन्यास परंपरा के इस आदित्य को अखिल विश्व अनंत वर्षों तक स्मरण रखेगा, मेरी अनंत भावांजलि, श्रद्धांजलि एवं उनकी स्मृतियों को बहुत बहुत प्रणाम. हरिओम शांति.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इसके अतिरिक्त श्री जगदम्बा प्रसाद निगम जी के लिए आज हमारा मन भाव से भरा हुआ है, वर्ष 1990 में मैं भी उनके साथ इस सदन का सदस्य रहा था. वे समाजवादी आन्दोलन के प्रमुख स्तम्भ थे. उन्होंने गरीबों, दलितों, शोषितों, पीड़ितों, वंचितों के लिए सदैव इस सदन के माध्यम से आवाज उठाई. वह बड़े प्रखर वक्ता थे. उनको भी हमने खोया है.
श्री कन्हैयालाल दांगी जी, वे लोक प्रिय नेता थे और इस सदन की सातवीं और आठवीं विधानसभा के सदस्य रहे.
श्री रणजीत सिंह गुणवान जी, चार बार आष्टा से विधायक रहे. बहुत सरल, सहज और सहृदय व्यक्ति थे और उन्होंने अपनी सरलता के कारण जनता के बीच अपार लोकप्रियता प्राप्त की थी.
श्री शिवमोहन सिंह जी, हमारे अनेक स्थानों को, क्योंकि उन्होंने पहले पुलिस अधीक्षक के पद से शासकीय सेवा प्रारम्भ की थी और उत्कृष्ट सेवा के लिये राष्ट्रपति जी ने भी उनको पुरस्कृत किया था. श्री सिंह ने प्रदेश की ग्यारहवीं विधान सभा में अमरपाटन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था. उनके निधन से भी अपूर्णीय क्षति सार्वजनिक जीवन में हुई है.
श्रीमती सरोज कुमारी जी एडवोकेट थीं. इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उनकी अपनी एक अलग प्रतिष्ठा थी. आपने "मामुलिया" पत्रिका और बुंदेली साहित्य के साथ जुड़कर लम्बे समय तक साहित्य जगत को बहुमूल्य सहयोग प्रदान किया और चौथी विधान सभा की सदस्य थीं. उनके निधन से भी हमने एक साहित्यकार और लोकप्रिय नेता को खोया है.
श्रीमती गायत्री देवी परमार जी, जबलपुर और सागर विश्वविद्यालय कोर्ट तथा सीनेट की सदस्य भी रहीं और दूसरी विधान सभा में बिजावर क्षेत्र से उन्होंने प्रतिनिधित्व किया था.
श्री सुखराम जी हिमाचल प्रदेश के लोकप्रिय नेता थे. वे केंद्रीय मंत्री भी रहे. उनके निधन से भी हमने एक वरिष्ठ नेता और कुशल प्रशासक को खोया है.
श्री चक्रधारी सिंह जी, सरगुजा संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे. वे एक वरिष्ठ नेता और समाजसेवी थे. अध्यक्ष महोदय, उनके साथ साथ हमारे वह शहीद जो आज भी देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिये अपने रक्त की अंतिम बूंद तक दे देते हैं. आज सदन उनको भी प्रणाम कर रहा है. पूजे अगर न गये ये वीर, तो फिर यह मंत्र कहां से आयेगा. वीरता बांझ हो जायेगी. अध्यक्ष महोदय, इसलिये मैं आपको धन्यवाद देता हूं.
आज इस सदन में हम दिनांक 16 अप्रैल, 2022 को जम्मू के कुपवाड़ा बार्डर पर दुश्मनों से मुठभेड़ के दौरान सेना के लांसनायक, श्री अरुण शर्मा जी शहीद हो गये थे. वह आगर-मालवा जिले के ग्राम कानड़ के निवासी थे, उनके चरणों में भी हम श्रद्धा के सुमन अर्पित करते हैं.
दिनांक 22 अप्रैल,2022 को जम्मू के सुजवान सेक्टर में आतंकी हमले में सहायक उप निरीक्षक, श्री शंकर प्रसाद पटेल ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. वे सतना जिले के ग्राम नौगवां के निवासी थे.
इसी तरह से दिनांक 14 मई,2022 को आरोन के जंगलों में काले हिरण के शिकारियों से मुठभेड़ करते हुए हमारे पुलिस के उप निरीक्षक, श्री राजकुमार जाटव, प्रधान आरक्षक, श्री नीरज भार्गव तथा आरक्षक, श्री संतराम शहीद हो गये. उन्होंने भी कर्तव्य निष्ठा की बलिवेदी पर अपने आपको न्यौछावर किया है.
दिनांक 5 जून,2022 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के डामटा में बस की खाई में गिरने के कारण 26 तीर्थयात्रियों का स्वर्गवास हुआ था, जो पन्ना जिले के विभिन्न गांवों से आते थे. उस दुर्घटना में मैं स्वयं उन हमारे भाई और बहनों को खाई से निकाल कर सुरक्षित हम लेकर आ पायें उनके पार्थिव शरीर को. मैं स्वयं भी वहां गया था. वे तीर्थयात्रा पर गये थे, लेकिन दुर्घटना में वह पंचतत्व में विलीन हो गये. उनके चरणों में भी मैं श्रद्धा के सुमन अर्पित करता हूं.
दिनांक 15 जून को जम्मू के दुर्गमूला में आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ में भारतीय सेना की राष्ट्रीय रायफल 41 में सिंग्नल मेन के पद पर पदस्थ श्री भारत यदुवंशी शहीद हो गये. वे छिन्दवाड़ा जिले की रोहनालां पंचायत के शंकरखेड़ा के निवासी थे. उन्होंने भी अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है.
दिनांक 18 जुलाई,2022 को धार-खारगोन बार्डर पर मां नर्मदा नदी पर बने खलघाट पुल से यात्री बस के गिरने से जिन यात्रियों की मृत्यु हुई, उनके चरणों में भी मैं श्रद्धा के सुमन अर्पित करता हूं.
दिनांक 19 अगस्त,2022 को त्रिपुरा में भारत-बाग्ला देश सीमा पर उग्रवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में भी सीमा सुरक्षा बल की 145वीं बटालियन के हेड कान्स्टेबल, श्री गिरिजेश कुमार जी ने भी अपना सर्वोच्च बलिदान दिया, वह मंडला जिले के ग्राम चरगांव के निवासी थे. मैं ये सारे वीर जवान, जिन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया, देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए, उनके चरणों में भी श्रद्धा के सुमन अर्पित करता हूं और परमपिता परमात्मा से यह प्रार्थना करता हूं कि वे दिवंगत आत्मा को शांति दें, उनके परिजनों को, उनके अनुयायियों को यह गहन दुख सहन करने की क्षमता दें. ओम शांति.
नेता प्रतिपक्ष(डॉ.गोविन्द सिंह) - माननीय अध्यक्ष महोदय, परम पूज्य स्वामी शंकराचार्य जी का निधन हम सब के लिये और देश के लिये बड़ा दुखद है. शंकराचार्य जी के जन्म के 7 वर्ष के बाद ही उनके पिता जी का स्वर्गवास हुआ और उन्होंने अपना घरबार छोड़कर 9 वर्ष की उम्र में नर्मदा के जंगलों में ध्यान लगाया.नर्मदा की परिक्रमा की. विभिन्न स्थानों में ध्यान में 6-6 महीने बैठे रहे. उसके बाद कृपातीर्थ, बनारस, जाकर रुके. वहां रहकर ज्ञान अर्जन किया.शास्त्रों का, सभी वेदों का उन्होंने ज्ञान लिया और पूर्ण शिक्षा ग्रहण की और उसके साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया. आंदोलन के दौरान वे मध्यप्रदेश की जेल में करीब 6 महीने रहे. देश के अन्य प्रांतों में भी जेल में रहे. उत्तर प्रदेश की जेल में भी उन्होंने 6 महीने बिताए. अपने साथ उन्होंने पूरे विश्व में सनातन धर्म की ध्वजा फहराई और देश और विदेश में सनातम धर्म की प्रतिष्ठा स्थापित की. हमारे आदि शंकराचार्य जी ने चारों पीठों की स्थापना चारों दिशाओं में की. उसमें से द्वारका पीठ और बद्रिका आश्रम पीठ के मुख्य शंकराचार्य जी थे. इन चारों पीठों में सनातन धर्म और हिन्दू परम्परा को पूरे विश्व में फैलाने का काम, उसकी रक्षा करना और अपने धर्म के माध्यम से जनकल्याण की सेवा करने का काम उन्होंने पूरे विश्व में और भारतवर्ष में किया. आज वे हमारे बीच नहीं हैं. मैं उनके चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि उनकी यादें हमेशा हम लोगों के सामने बनी रहें और उन्होंने जो मार्गदर्शन और शिक्षा धर्म के प्रति दी है उसका हम अनुसरण करते रहें.
माननीय जगदम्बा प्रसाद जी निगम जब मैं प्रथम बार विधान सभा में चुनकर आए थे उस समय वे हमारे साथ विधायक थे. छठवीं,आठवीं और नवमीं विधान सभा के वे सदस्य रहे. मुझे एक वाकया याद है. एक किसी मुद्दे को लेकर जगदम्बा प्रसाद जी निगम ने विधान सभा में अपना प्रस्ताव रखा और उस समय श्री सुन्दरलाल पटवा जी मुख्यमंत्री थे. वे आज हमारे बीच नहीं हैं. मैं उस दिन को याद रखता हूं. 45 मिनट तक केवल एक विषय पर चर्चा होती रही. मैं पहली बार चुनकर आया था. मुझे नहीं पता था कि कौल एण्ड शकधर की पुस्तक क्या होती है. हाऊस आफ कामंस की डिबेटों की उन्होंने नजीरें पेश कीं.पटवा जी उसका जवाब देते थे और जगदम्बा प्रसाद जी निगम एक के बाद अपनी दलीलें प्रस्तुत करते थे. उस दिन यह लग रहा था कि यह विधान सभा नहीं सर्वोच्च न्यायालय में कोई बहस सुन रहे हैं. वह परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो रही है. माननीय बृजमोहन मिश्र जी उस समय विधान सभा के अध्यक्ष थे. मैं आपसे भी अपेक्षा करता हूं और पूरा वादा भी करता हूं कि आप भी प्रजातंत्र के रक्षक के रूप में अग्रसर हों और मैं सदन से भी अपील करता हूं कि सदस्यगण विषय का पूरा अध्ययन करके सदन में आएं ताकि सार्थक चर्चा हो सके. वे चरखारी जिले में पैदा हुए थे जो आज महोबा(उत्तर प्रदेश) में है. स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में जगदंबा प्रसाद जी निगम जेलों में भी रहे और आपातकाल के दौरान भी उन्होंने 19 महीने जेल में व्यतीत किये. छतरपुर में आकर उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र बनाया.
लगातार गरीबों की सेवा करना, अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ना, अंतिम समय तक उन्होंने न्यायालय के माध्यम से गरीबों की बिना धनराशि लिये नि:स्वार्थ उनकी कानूनी सहायता करते रहे. आज मैं उनके चरणों में विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.
श्री शिवमोहन सिंह जी 11वीं विधान सभा में हमारे साथ पाटन से विधायक रहे. शिवमोहन सिंह जी ने अपने जीवन की शुरूआत पुलिस विभाग की सेवा से की. हमारे ग्वालियर चंबल में उस समय बड़ा आतंक था. मध्यप्रदेश की सरकार ने उनको योजना बनाने के लिये और दस्यु समर्पण के लिये भी बागडोर दी, उस समय जयप्रकाश नारायण जी से भी चर्चा की, उनसे मार्गदर्शन लिया और दस्यु समर्पण में उन्होंने अपना पूरा योगदान दिया, फिर वह राजनीति में आये, जनकल्याण में लगे रहे, इसके साथ ही साथ उन्होंने कई साहित्यिक किताबें लिखीं और अध्ययन करते रहे. रिटायरमेंट के बाद अपने क्षेत्र में रहकर लोगों की सेवा करते रहे और उन्होंने अनेक छोटी-छोटी पुस्तकें भी लिखीं हैं जो आज समाज के लिये छोड़कर गये हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं स्वर्गीय हमारे विधायक श्री कन्हैयालाल जी दांगी, रणजीत सिंह जी गुणवान, श्रीमती सरोज कुमारी जी, श्रीमती गायत्री देवी जी परमार, श्री सुखराम जी, चौधरी चक्रधारी सिंह जी जिन्होंने अपने राजनैतिक जीवन में अपने-अपने क्षेत्र में और प्रदेश के विकास में तमाम योजनायें बनाई, गरीबों की सेवा करते रहे, आज हमारे बीच नहीं हैं, उन सभी के चरणों में मैं नमन करता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि उनके परिवार को यह दुख सहन करने की क्षमता प्रदान करे और परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि उनकी आत्मा को शांति पहुंचाये.
माननीय अध्यक्ष जी, जम्मू कश्मीर बार्डर पर दुश्मनों से मुठभेड़ के दौरान शहीद हुये जवान, जम्मू के सुजवान सेक्टर में आतंकी हमले में शहीद जवान भाई, गुना जिले के आरोन के जंगलों में काले हिरण के शिकारियों से मुठभेड़ में शहीद पुलिसकर्मी, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के डामटा में बस के खाई में गिरने से तीर्थयात्रियों की मृत्यु, जम्मू के दुर्गमूला में आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ में शहीद जवान एवं धार-खरगौन बार्डर पर नर्मदा नदी पर बने खलघाट पुल से यात्री बस गिरने से यात्रियों की मृत्यु, तथा भारत बांग्ला देश सीमा पर उग्रवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गये शहीद जवानों के प्रति मैं शोक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और कांग्रेस पार्टी विधायक दल की ओर से मैं सभी दिवंगत आत्माओं के चरणों में नमन करते हुये परमपिता परमात्मा से यह प्रार्थना करता हूं कि इन सभी के परिवारों को इस दुख को सहन करने की क्षमता प्रदान करें और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें. ओम शांति, शांति.
श्री नर्मदा प्रसाद प्रजापति (एन.पी.)-- अध्यक्ष महोदय, सिवनी से पोथीराम जी चले, बरहटा ग्राम जो गोटेगांव में ही आता है, 9 वर्ष की आयु में वह वहां आये इसे हम बाल लीला धाम बोलते हैं, वहां से फिर वह जो झोतेश्वर आश्रम है उस समय बहुत घना जंगल हुआ करता था, वहां आज भी विचारशिला मौजूद है और उस विचारशिला के ऊपर बैठकर उन्होंने रात दिन अपनी तपस्या की और उसी झोतेश्वर आश्रम में दो गुफायें भी अभी मौजूद हैं जहां पर उन्होंने अपनी धार्मिक यात्रा, सनातम धर्म की धार्मिक यात्रा शुरू की.
यह भी सही है कि वेद-वेदांत, पठन-पाठन करपात्री महाराज जी के पास बनारस में बैठे रहे, सीखे, इसी बीच आजादी की लड़ाई में भी उनने हिस्सा लेना शुरू किया था. वह तीन (3) माह बनारस के पास के जेल में बंद रहे, तदुपरांत नौ (9) माह नरसिंहपुर जेल में बंद रहे, जहां नर्मदा के किनारे ब्रम्हाण घाट है, वहां दीपा का मंदिर है, वहां चौदह (14) दिन तक वह मंदिर के ऊपर छुपकर अपनी उस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में लड़ाई लड़ रहे थे, तब वह वहां रहे और जब अंग्रेजों को पता चला तो वह वहीं से उनको हथकड़ी डालकर पैदल नरसिंहपुर तक लाये और जेल में बंद किया. आज भी वह बैरक यहां पर है, उसके बारे में मुख्यमंत्री जी हम लोग विचार करें.
माननीय अध्यक्ष महोदय,आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना सिर्फ इसलिए की कि सनातन धर्म और हिंदू धर्म का प्रचार-प्रसार सतत् रूप से लगातार चलता रहे और इसलिये उन्होंने चार पीठों का निर्माण किया है. यह मध्यप्रदेश गौरवान्वित है कि यहां वह साधु, संत, महात्मा, धमाचार्य पैदा हुए और यहां की ही प्राकृतिक छटाओं में अपने आपको लगाते हुए, धार्मिक माँ नर्मदा नदी की परिक्रमा करते हुए, अपने साधक जीवन को बढ़ाते रहे. वह दो पीठ के शंकराचार्य थे, दो बार उनका अभिषेक हुआ, शंकराचार्य बनने का एक बार द्वारका शारदा पीठ 1982 का और एक बार ज्योतिर्मठ बद्रिका आश्रम का वर्ष 1973 में अभिषेक हुआ था. वह परंपरा में विरले शंकराचार्य थे, पर वह दो पीठ के शंकराचार्य थे क्योंकि उस समय के जो मठान नायक, महाशास्त्र नियमों का लिखा गया आदि शंकराचार्य द्वारा जिसमें केवल वह शंकराचार्य बन सकता है, जो वेद-वेदांत, शास्त्र, पुराणों का अच्छा ज्ञाता हो और अपने जीवन को वैसा ढालकर चलता हो, वही शंकराचार्य बन सकता है, इसलिये यह महाअनुशासन, मठान नायक, महाग्रंथ आदि शंकराचार्य जी ने लिखा था. शंकराचार्य को यह भी बंदिश है कि वह समुद्र नहीं लांघ सकते हैं, विदेश नहीं जा सकते हैं, नहीं तो दूसरे धर्माचार्य जो विदेशों से आते हैं और वह विदेश चले जाते हैं, वह यह शंकराचार्य के मठान नायक, महाअनुशासन में बंदिश है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, गुरूमहाराज अपने तपोबल से शिव और शक्ति को सिद्ध करने वाले धर्म के साक्षात् स्वरूप है, वेद शास्त्र और प्रकांड विद्वान, सनातन संस्कृति के ध्वजा वाहक आध्यात्म गुरू ज्योतिष पीठाधीश्वर एवं शारदा द्वारका पीठाधीश्वर ब्रह्म स्वरूप परम पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज, आज परम ब्रह्म में विलीन हो गये. जगत गुरू शंकराचार्य जी महाराज श्री विद्या के प्रकांड विद्वान साधक थे. मां राज राजेश्वरपुर सुंदरी के सामने वही तो साधना होती थी, मेरे गुरू जगत के शंकराचार्य मां के सामने बैठकर साधना करना और श्री विद्या के साधक बन जाना, अभी मैं उल्लेख कर दूंगा कि मैंने तो अपने कम उम्र के जीवन में लगातार आठ-आठ घंटे तक उनको श्री विद्या की साधना करते हुए देखा है. मेरे ख्याल से हिंदुस्तान में कुछ ही ऐसे साधक थे, जो श्री विद्या की बारीकियों को जानते थे. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, एक साधु महात्मा साधक अगर वह देश हित में देशभक्त होने के नाते कुछ कह देते थे तो ध्यान रखिये.
धर्म एवं राजनीति दोनों अलग-अलग क्षेत्र हैं. वह धर्म से ओत-प्रोत थे और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के नाते देश भक्त भी थे, कभी-कभी उनकी कड़ी टिप्पणियां आ जाती थीं. लेकिन हमको इसको उस रूप में नहीं देखना चाहिए कि एक साधु क्या बोल रहा है ? उस समय उस रूप में देखते कि एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी है, अगर वह भाव हम लेकर चलते तो बहुत सारी चीजें संभाल कर चल सकते थे. महाराज जी का सारा जीवन तपोमय था. वे ऐसे धर्मगुरु थे, जो तर्क और न्याय पर भरोसा करते थे, ईश्वर तक पहुंचाने का मार्ग सुझाते थे, न्याय करते थे. महाराज जी ने अपने तपोबल व ज्ञान से अनगिनत लोगों को धर्म, संस्कार, आत्मज्ञान व मोक्ष का मार्ग दिखाया. उन्होंने अपना पूरा जीवन धर्म, आध्यात्म और हिन्दू समाज को जागरण करने में लगाया.
दिनांक 30 अगस्त, 2022 को उनका तिथि अनुसार 99वां जन्मदिन मनाया था और वे 100 वें वर्ष में प्रवेश कर गए थे. यह वह शंकराचार्य हैं, अभी तक जितने भी शंकराचार्य हुए हैं. इतनी लम्बी उम्र के कोई भी शंकराचार्य नहीं हैं. यह मध्यप्रदेश का गौरव है, इतनी लम्बी उम्र के शंकराचार्य हमारे मध्यप्रदेश के थे. वह ब्रह्मलीन हो गए. वह देह रूप में हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु चिन्मय स्वरूप में आज हमारे बीच में विराजमान हैं. ऐसा हम मानकर चलते हैं और उसी भाव से जैसा हम पूजते थे, भविष्य में भी पूजते रहेंगे क्योंकि हम उनको चिन्मय स्वरूप में मानकर चल रहे हैं. गुरुदेव मुक्त आत्मा हैं, तत्ववेत्ता हैं, आत्म ज्ञानी हैं और इसी के कारण शिव स्वरूप थे और शिव स्वरूप हैं. ज्ञान, भक्ति और वैराग्य के मूर्ति मंत्र रूप थे, ज्ञान, भक्ति और वैराग्य किसी एक व्यक्ति में मिलना, मेरे ख्याल से यह बहुत दूर की बात है. जो हमारे गुरुदेव में था. वेद की ऋचाएं उनके रग-रग में समाहित थीं, नियमित ध्यान, योग-व्यायाम, पूजा-अर्चना, सात्विक आहार और स्वाध्याय उनके जीवन का नियमित हिस्सा थे, इसलिए उन्हें धर्म सम्राट जगद्गुरु शंकराचार्य कहते थे.
नर्मदा परिक्रमा पर माननीय मुख्यमंत्री शिवराज जी थे. आप सांकल घाट पर पहुँचे थे, आप वहां जगद्गुरु शंकराचार्य जी से मिले थे. यह वही सांकल घाट है, जो शंकर दिग्विजय ग्रंथ और नरसिंहपुर गजेटियर में उल्लेखित है कि नर्मदा किनारे हिरण्य नदी का जहां संगम हुआ है, उसकी पूर्व दिशा में जो गुफा है. वहां पर आदि शंकराचार्य की गुफा, उनके गुरु जो पतंजलि के अवतार थे, उनके द्वारा गुरु गोविन्द भगवतपादाचार्य द्वारा आदि शंकराचार्य को उस गुफा में दीक्षा मिली थी और उसी परम्परा को खोजते हुए शंकराचार्य महाराज सरस्वती जी ने, कि हमारे आदि शंकराचार्य जी की कहां से परम्परा शुरू हुई ? स्वामी स्वरूपानंद जी वह शंकराचार्य हैं, जिन्होंने अपने गुरु की वह गुफा तलाशी, जहां से सनातन धर्म और हिन्दू धर्म की परम्परा शुरू हुई.
चातुर्मास सम्मेलन झोतेश्वर में देश के चारों शंकराचार्य को गुरुदेव जी ने इकट्ठे करवाये. वहां पर राम जन्मभूमि का प्रस्ताव पारित हुआ. चारों शंकराचार्य जी ने प्रस्ताव पारित किया कि ''हां'' राम जन्मभूमि का उद्धार होना चाहिए, राम मंदिर बनना चाहिए. शिव-राम लोग बोलते थे, कुछ हिन्दू के विद्वान वेत्ता, प्रकाण्ड विद्वान कि यह क्या हो रहा है? शिव के भक्त शंकराचार्य, राम ही तो समुद्र किनारे, शिवलिंग बनाकर स्थापित किये जिसका नाम रामेश्वर हो, राम हो जिसका ईश्वर, ईश्वर है जिसका राम, वही तो है रामेश्वर. तब वहां पर बात हुई थी, वही चीज चातुर्मास सम्मेलन झोतेश्वर में.
अध्यक्ष महोदय, कल मुख्यमंत्री जी पहुंचे, कमलनाथ जी पहुंचे, दिग्विजय सिंह जी पहुंचे, तन्खा जी पहुंचे, सुरेश पचौरी पहुंचे और कई नेता पहुंचे, तब हमने देखा जब तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी झोतेश्वर आए आंखों के अस्पताल का उद्घाटन करने के लिए, तब पूरा इंतजाम माननीय मुख्यमंत्री जी और वर्तमान संसदीय मंत्री, डॉ. नरोत्तम मिश्र जी आप वहीं थे. मैं सांकलघाट जिसका उल्लेख कर रहा था, गुरु गुफा की वहां पर तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा जी आए थे और 1982 में जब मां राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का प्राण प्रतिष्ठा समारोह हुआ, तब स्व. इंदिरा गांधी जी वहां मौजूद थीं. ये वह समावेश धर्म और राजनीति का था, जो 11/9/2022 तारीख को हम सबसे दूर चला गया. गुरुदेव बोलने को बहुत कुछ है. आपका जाना हिन्दू समाज और सनातन धर्म के लिए वह क्षति है, जिसको हम शब्दों में बयान नहीं कर सकते. महाराज जी आपके चरणों में विनम्र श्रद्धांजलि, आपके चरणों की सेवा जैसा करता था, करता रहूं, ओम शांति.
डॉ. अशोक मर्सकोले - धन्यवाद अध्यक्ष महोदय, मुझे अवसर प्रदान किया. भारत बंगलादेश सीमा पर उग्रवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में शहीद जवान गिरजेश कुमार उद्दे जी का जन्म मेरी विधान सभा क्षेत्र के चरगांव माल विकासखंड बीजाडांडी में हुआ था. मंडला जिले का बीजाडांडी मेरा क्षेत्र है. अध्यक्ष महोदय, 19 अगस्त का दिन था, अचानक एक खबर आई कि एक मुठभेड़ में वे शहीद हो गए, पूरे मंडला जिले में एक शोक का माहौल हो गया. मैं अपने क्षेत्र में था, जगह जगह से फोन आए, जैसे हमें ये खबर मिली तो हमने इसको कन्फर्म किया परिवार से, चूंकि हमारे पहले से उस परिवार से संबंध रहे, उस क्षेत्र से सभी से चर्चा किया, फिर भारत सरकार, सीमा सुरक्षा बल और सबके माध्यम से उनको लाने की तैयारियां हुईं. वे 145 बटालियन के हेड कांस्टेबल रहे, जब वे सर्चिंग में निकले थे, उसी बीच में उग्रवादियों से उनकी सीधी मुठभेड़ हुई, अचानक उग्रवादी उनके सामने आए, चूंकि ये हेड कांस्टेबल थे, अपने दल का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उनको चार गोलियां लगीं, चार गोलियां लगने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और वीर गति को प्राप्त हुए. सेना के ऐसे जाबांज सिपाही को मैं शत-शत नमन करता हूं. हमारे नेता कमलनाथ जी, गोविन्द सिंह जी ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. मैं माननीय मुख्यमंत्री जी को बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहूंगा कि मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से बात की और 1 करोड़ रूपए देने की घोषणा की है, एक स्कूल को शहीद के नाम पर रखने की बात की है, एक स्मारक की बात की है. सही में हमारे यहां के शहादत देने वाले, देश के लिए शहीद होने वालों को अगर इस प्रकार से प्रोत्साहन मिलता है, उनके परिवार को प्रोत्साहन मिलता है, एक सरकार के माध्यम से तो निश्चित रूप से सभी जवानों का, जो देश की रक्षा के लिए अपनी जान को जोखिम में डालकर परिवार को छोड़कर अगर काम करते हैं तो उन्हें प्रोत्साहन और बल मिलता है. मैं श्री गिरजेश कुमार उद्दे जी के असीम साहस और मातृभूमि की रक्षा के प्रति समर्पण के लिये मंडला जिला तथा प्रदेश का नाम उन्होंने ऊंचा किया है. उनकी उम्र 53 वर्ष रही. उम्र के इस पड़ाव में जब परिवार को सबसे ज्यादा जिम्मेदारी की जरूरत रहती है उस समय वह शहीद हुए उनका परिवार बहुत दुःखी हुआ, लेकिन वह तिरंगे से लिपटकर के घर आये, वह शहीद हुए उसके फख्र ने उस दर्द को कम किया. ऐसे शहीद को मैं परमपिता परमेश्वर हमारे इष्ट भगवान बड़े देव जी से प्रार्थना करता हूं कि उनके परिवार को इस असीम दुःख को सहने की शक्ति प्रदान करें. इसी के साथ मेरी श्रद्धांजलि है धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय--मैं सदन की ओर से शोकाकुल परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं. अब सदन दो मिनट मौन खड़े रहकर दिवंगतो के सम्मान में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करेगा.
(सदन द्वारा 2 मिनट मौन खड़े होकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई)
अध्यक्ष महोदय--दिवंगतों के सम्मान में सदन की कार्यवाही बुधवार दिनांक 14 सितम्बर, 2022 को 11.00 बजे तक के लिये स्थगित.
अपराह्न 12.02 बजे विधान सभा की कार्यवाही बुधवार, दिनांक 14 सितम्बर, 2022 (23 भाद्र,शक संवत् 1944) के प्रातः 11.00 बजे तक के लिये स्थगित की गई.
भोपाल, ए. पी. सिंह,
दिनांक 13 सितम्बर, 2022 प्रमुख सचिव,
मध्यप्रदेश विधान सभा