मध्यप्रदेश विधान सभा
की
कार्यवाही
(अधिकृत विवरण)
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पंचदश विधान सभा तृतीय सत्र
जुलाई, 2019 सत्र
शुक्रवार, दिनांक 12 जुलाई, 2019
(21 आषाढ़, शक संवत् 1941)
[खण्ड- 3 ] [अंक- 5 ]
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मध्यप्रदेश विधान सभा
शुक्रवार, दिनांक 12 जुलाई, 2019
(21 आषाढ़, शक संवत् 1941)
विधान सभा पूर्वाह्न 11.03 बजे समवेत हुई.
{अध्यक्ष महोदय (श्री नर्मदा प्रसाद प्रजापति (एन.पी.) पीठासीन हुए.}
डॉ.नरोत्तम मिश्र (दतिया)- माननीय संसदीय कार्य मंत्री जी, मान्य परंपराओं के अनुसार जब अध्यक्ष जी आते हैं तो खड़ा हुआ जाता है.
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव)- माननीय अध्यक्ष महोदय, कल आपने जो व्यवस्था दी थी, उसका आज सदन में प्रभाव देखने को मिल रहा है.
अध्यक्ष महोदय- आपके सुझाव के लिए, धन्यवाद. आप क्या कह रहे थे नरोत्तम भाई ?
डॉ.नरोत्तम मिश्र- माननीय अध्यक्ष महोदय, आपने संसदीय कार्य मंत्री जी को मुस्कुराकर देखा तो मेरी इच्छा हुई कि मैं कह दूं कि ''तेरा मुस्कुराना गजब ढा गया.''
अध्यक्ष महोदय- आजकल मैं देख रहा हूं कि आप सुबह से सदन में जब भी आते हैं, सबकी मुस्कुराहटों के बारे में ज्यादा ध्यान रखते हैं.
डॉ.नरोत्तम मिश्र- अध्यक्ष जी, पता नहीं ये जब से मंत्री बने हैं तो ऐसा लग रहा है जैसे सारे जहां का दर्द इनके ही जिगर में है. (हंसी.....)
सामान्य प्रशासन मंत्री (डॉ. गोविन्द सिंह)- लगातार बोलने की आपकी आदत गई नहीं ?
श्री गोपाल भार्गव- माननीय अध्यक्ष महोदय, कुछ लोग यदि मुस्कुरा दें तो यह भी बहुत बड़ी खबर और घटना होती है.
अध्यक्ष महोदय- अच्छा जी.
तारांकित प्रश्नों के मौखिक उत्तर
निजी क्षेत्र में कार्यरत शिक्षक/कर्मचारियों की वेतन वृद्धि
[स्कूल शिक्षा]
1. ( *क्र. 1248 ) श्री जालम सिंह पटैल : क्या स्कूल शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) शासन के वचन पत्र में वर्णित विषय क्र. 06 में शिक्षा में उल्लेखित है कि निजी क्षेत्र के स्कूल एवं महाविद्यालय शिक्षक एवं कर्मचारियों के वेतन वृद्धि पर विचार करेंगे तो उक्त के संबंध में क्या कोई कार्ययोजना बनायी गयी है? अगर हाँ तो कब तक लागू कर दी जावेगी? कार्ययोजना की जानकारी प्रदान करें। (ख) शासन के वचन पत्र में अतिथि, विद्वानों, अतिथि शिक्षकों के नियमितीकरण की नीति कब तक लागू कर दी जावेगी?
स्कूल शिक्षा मंत्री ( डॉ. प्रभुराम चौधरी ) : (क) एवं (ख) प्रस्ताव का परीक्षण किया जा रहा है। निश्चित समय-सीमा बताया जाना संभव नहीं है।
श्री जालम सिंह पटेल- माननीय अध्यक्ष महोदय मेरा प्रश्न कांग्रेस के वचन-पत्र से संबंधित है. उनके वचन-पत्र में 246 वचन दिए गए हैं और उसमें से एक है कि हमारे निजी क्षेत्र के स्कूल एवं महाविद्यालय, शिक्षक एवं कर्मचारियों की वेतन वृद्धि पर विचार करेंगे. इसमें एक और है कि अतिथि विद्वानों, अतिथि शिक्षकों के नियमितीकरण की नीति बनायेंगे. इसमें और भी बहुत सारे वचन दिये गये हैं कि नवोदय विद्यालय की तर्ज पर जिला स्तर पर इतने शिक्षा परिसर कन्याओं के खोलेंगे. छात्र-वृद्धि की दरों में वृद्धि करेंगे, तकनीकी शिक्षा को गुणवत्ता युक्त बनाते हुए उसको रोजगार से जोडेंगे. ऐसे अनेक प्रकार के वचन, आपके वचन-पत्र में हैं. जिसके कारण से आपकी सरकार भी बनी है.
अध्यक्ष महोदय, मैंने अभी तक लगभग 12-13 प्रश्न लगाये हैं, लेकिन किसी भी प्रश्न का जवाब संतोषजनक नहीं आया है. किसी प्रश्न का जवाब यह आया है कि यह प्रचलन में है या इसका इसका अभी हम जवाब नहीं दे सकते हैं. ऐसी जानकारी लगातार आ रही है. अभी भी इस प्रश्न के उत्तर में माननीय मंत्री जी ने जवाब दिया है कि प्रस्ताव का परीक्षण किया जा रहा है. मैं माननीय मंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूं कि यह वचन कब पूर्ण होंगे ? एक तो वचन पूर्ण होंगे या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है और अगर आपने वचन दिया है तो इसके लिये आप जिम्मेदार हैं. खासकर हमारे जो निजी विश्वविद्यालय और स्कूलों में जो शिक्षक और कर्मचारी हैं, उनका बहुत भयंकर शोषण हो रहा है, यह हम सभी जानते हैं. मैं ऐसा भी मानता हूं कि जितने भी रसूखदार लोग हैं, हम या हमारे जो परिचित लोग हैं, उनके स्कूल हैं, कॉलेज हैं और वहां उनका बहुत शोषण होता है. अध्यक्ष महोदय, मैं आपका संरक्षण चाहूंगा इन पर जरूर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाये. दूसरा जो अतिथि विद्वानों और अतिथि शिक्षकों को नियमित किया जाये परन्तु सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद नहीं हो सका.
मैं आपके माध्यम से मंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूं कि प्रस्ताव का परीक्षण किस स्तर पर लंबित है एवं कब तक परीक्षण करके निर्णय ले लिया जायेगा?
डॉ. प्रभुराम चौधरी :- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने जो प्रश्न पूछा है, इसकी जानकारी मैंने अपने उत्तर में लिखित में दी है, जो स्कूल, महाविद्यालय शिक्षक एवं कर्मचारियों के वेतन वृद्धि पर, हमारे वचन में यह था कि हम इस पर विचार करेंगे, जो समस्या है इसके लिये हम परीक्षण करा रहे हैं, यह मैंने पूर्व में उत्तर दिया है.
दूसरा प्रश्न माननीय सदस्य ने अतिथि शिक्षकों के लिये किया था. मैं आपके माध्यम से माननीय सदस्य को बताना चाहता हूं कि हमारी सरकार ने सामान्य प्रशासन विभाग की एक समिति दिनांक 9.2.2019 द्वारा, अतिथि शिक्षकों, रोजगार सहायकों और अन्य संविदा कर्मचारियों की मांगों पर विचार कर निर्णय के लिये माननीय मुख्यमंत्री जी ने एक मंत्रिमण्डलीय उप समिति बनायी है और जो ज्ञापन, आवेदन और हमारे वचन-पत्र हैं, उन सब पर विचार करने के बाद ही आगे निर्णय लिया जा सकेगा.
श्री जालम सिंह पटेल:- माननीय अध्यक्ष महोदय, नियमितीकरण के बारे में क्या योजना है और इसके संबंध में कब तक निर्णय लिया जायेगा ? यह मैं मंत्री जी निवेदन करता हूं. दूसरा जो पीएससी के द्वारा अभी जब पद भरे जायेंगे तो सारे के सारे हमारे जो विद्वान शिक्षक हैं या अध्यापक हैं, वह हट जायेंगे, उनमें कोई 35, 40 या 45 साल का है, उसके बाद वह नौकरी भी नहीं कर सकते हैं. यह एक बड़ा संकट है. मैं ऐसा कह सकता हूं कि कांग्रेस ने घूम-घूम कर उस समय बहुत सारे लोगों को जोड़ा था और आपने वोट भी लिये और सरकार भी आपकी बनी है. किसानों की बात तो बहुत सारे लोग कर रहे हैं, चर्चा हो रही है. वचन-पत्र में बहुत सारे ऐसे बिन्दु हैं, जिनकी चर्चा अभी तक न तो सदन में हुई और न बजट में आयी.
अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से निवेदन करना चाहता हूं और आपका संरक्षण चाहता हूं कि इनके परिवारों का भविष्य खतरे में है. जिस दिन भी पीएससी से चयनित लेक्चरर जायेंगे कॉलेज में, तो शीघ्र ही उस पद के विरूद्ध जो अतिथि विद्वान वहां काम कर रहे हैं उनको हटा दिया जायेगा. इसीलिये मंत्री जी से आपके माध्यम से निवेदन से है कि इनके नियमितिकरण के बारे में क्या योजना है ? कब तक इस संबंध में निर्णय ले लिया जायेगा, कृपया समय-सीमा बताने का कष्ट करें ?
डॉ.प्रभुराम चौधरी--अध्यक्ष महोदय, जहां तक प्रोफेसर एवं कालेज की बात है तो यह उच्च शिक्षा विभाग से संबंधित है. स्कूल शिक्षा विभाग की बात मैंने पूर्व में ही बता दी है कि इसमें परीक्षण किया जा रहा है. परीक्षण उपरांत कार्यवाही की जायेगी.
श्री जालम सिंह पटेल--इसका कब तक परीक्षण किया जायेगा. कृपया उसकी समय सीमा बता दें ?
डॉ.प्रभुराम चौधरी--अध्यक्ष महोदय, अभी समय सीमा बताना संभव नहीं है.
श्री जालम सिंह पटेल--अध्यक्ष महोदय, समय सीमा बताना संभव नहीं है तो वचन क्यों दिया है ? क्या यह दुर्वचन होगा ?
डॉ.प्रभुराम चौधरी--अध्यक्ष महोदय, 15 साल में आपने कभी अतिथि शिक्षकों के बारे में सोचा नहीं, लेकिन हम लोग इस पर विचार कर रहे हैं, सोच रहे हैं.
श्री जालम सिंह पटेल--अध्यक्ष महोदय, विचार करते रहेंगे तो सत्र निकल जाएगा. पी.एस.सी.से बाकी की भर्ती हो जाएगी तो फिर उनका क्या होगा?
डॉ.प्रभुराम चौधरी--अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय सदस्य जी से निवेदन करना चाहता हूं कि सरकार को बने मात्र 6 महीने हुए हैं, उसमें से तीन महीने आदर्श आचरण संहिता लगी थी. तीन महीने ही काम करने को मिले हैं.
श्री जालम सिंह पटेल--अभी जुलाई में सत्र चल रहा है पी.एस.सी के माध्यम से बाकी की पदस्थापना हो जाएगी ? यह बीच में हट जाएंगे, उनका भविष्य खराब हो जाएगा. अध्यक्ष महोदय, इसमें जवाब तो सही नहीं आया है. समय सीमा भी नहीं बता रहे हैं. सरकार भी इन्हीं के वचन-पत्र के आधार पर बनी है.
अध्यक्ष महोदय--माननीय सदस्य जी माननीय मंत्री जी ने लिखित में भी बताया कि समय-सीमा बताना अभी उनके लिये वाजिब नहीं है.
श्री जालम सिंह पटेल--अध्यक्ष महोदय, फिर क्यों चिल्ला-चिल्लाकर बोल रहे हैं कि यह वचन हम पूरा करेंगे तथा किसानों का भी कर्जा माफ कर दिया है, यह क्या बात हुई ? किसानों का कर्जा माफ तो किया नहीं है, फिर क्यों यह ज्ञान दे रहे हैं ?
अध्यक्ष महोदय--क्या एक ही दिन में वचन पूरा हो जाएगा क्या ?
इंजी प्रदीप लारिया--अध्यक्ष महोदय, समय सीमा बतायें ना कब तक पूरा हो जाएगा ? इनका वचन-पत्र तो हवा में चल रहा है. (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय--मैं मंत्री जी को इसके लिये बाध्य नहीं कर सकता हूं. (व्यवधान)
श्री राजेन्द्र पाण्डेय--अध्यक्ष महोदय, यह संवेदनशील प्रश्न है ? (व्यवधान)
आदिम जाति कल्याण मंत्री (श्री ओमकार सिंह मरकाम )--अध्यक्ष महोदय, मैं कुछ कहना चाहता हूं.
अध्यक्ष महोदय--मैं मंत्री को बाध्य नहीं कर सकता.
प्रश्न संख्या 2 (अनुपस्थित)
प्रश्न क्रमांक 3 श्री गोपाल भार्गव आप अपना प्रश्न करें.
अध्यक्ष महोदय--मंत्री जी आप बैठ जाईये. मैंने आपको परमिट नहीं किया है. यह जो बोल रहे हैं इनका नहीं लिखा जाएगा. आप बैठ जाएं. आप मंत्री हैं.
श्री ओमकार सिंह मरकाम-- (xxx)
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव)--अध्यक्ष महोदय, एक तरफ वोटें ठग ली, उसके बाद कह रहे हैं कि समय सीमा बताना संभव नहीं है. आपकी भी समय सीमा नहीं है कि आपकी सरकार कब तक रहेगी ?
वाणिज्यिक कर मंत्री (श्री बृजेन्द्र सिंह राठौर)--अध्यक्ष महोदय, आप वहीं बैठे रहेंगे पांच सालों तक हम यहीं सरकार में रहेंगे देख लेना.
श्री गोपाल भार्गव--मंत्री जी के उत्तर से यही ध्वनि निकल रही है कि इनकी समय सीमा का पता नहीं है.
गृहमंत्री (श्री बाला बच्चन)--क्या आप हमारी समय सीमा तय करेंगे कि हमारी सरकार कब तक रहेगी ? यह तो विधायकगण तय कर चुके हैं. (व्यवधान)
लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री (श्री तुलसीराम सिलावट)--आपकी समय सीमा तो बता दो कि आप कब तक नेता प्रतिपक्ष बने रहेंगे ? (व्यवधान)
डॉ.नरोत्तम मिश्र--अध्यक्ष महोदय, एक व्हाटसप आया मेरे पास उसको समझ नहीं पाया कि गोवा के समुद्री तट से एक मानसून उठा कर्नाटक होता हुआ मध्यप्रदेश की ओर अग्रसर है.
अध्यक्ष महोदय--यह सदन का विषय नहीं है. आप नरोत्तम जी बैठिये.
श्री बाला बच्चन--यह मध्यप्रदेश में इंटर नहीं हो पायेगा.
श्री बृजेन्द्र सिंह राठौर--कुछ लोगों को गलतफहमी है कि इससे सब कुछ हो जाएगा, इससे कुछ होने वाला नहीं है.
अध्यक्ष महोदय--यह शाम को आठ बजे के बाद खड़े होने वाले क्यों खड़े हो गये.
श्री गोपाल भार्गव--नरोत्तम जी बहुत बड़े मौसम वैज्ञानिक हैं.
अध्यक्ष महोदय--माननीय नेता प्रतिपक्ष जी अगर बृजेन्द्र राठौर जी खड़े होते हैं तो मुझे दुविधा यह हो जाती है कि शाम को 8.00 बजे खड़े होने वाले अभी क्यों खड़े हो गये.
सामुदायिक भवनों की प्रशासकीय स्वीकृति
[अनुसूचित जाति कल्याण]
3. ( *क्र. 1432 ) श्री गोपाल भार्गव : क्या सामाजिक न्याय मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या अनुसूचित जाति कल्याण विभाग के आदेश क्रमांक एफ 12-01/2016/4/25, दिनांक 16 मार्च, 2017 के द्वारा विधान सभा क्षेत्र रहली जिला सागर के गढ़ाकोटा नगर में 27 लाख रू. प्रत्येक की लागत के 3 सामुदायिक भवनों की प्रशासकीय स्वीकृति जारी की गई थी? (ख) यदि हाँ, तो क्या उक्त तीनों भवनों का निर्माण पूर्ण हो चुका है? यदि नहीं, तो क्यों एवं इसे कब तक पूर्ण कर लिया जाएगा? (ग) क्या गत 01 वर्ष से लोक निर्माण विभाग (पी.आई.यू.) सागर द्वारा विभाग से लगातार मांग किये जाने के बावजूद अभी तक शेष कार्य हेतु राशि आवंटित नहीं की गई है?
सामाजिक न्याय मंत्री ( श्री लखन घनघोरिया ) : (क) जी हाँ। (ख) जी नहीं। 03 सामुदायिक भवनों को पूर्ण किये जाने हेतु कार्य एजेन्सी परियोजना क्रियान्वयन इकाई, भोपाल की मांग अनुसार आयुक्त, अनुसूचित जाति विकास के पत्र क्रमांक बजट/5798-99, दिनांक 17.09.2018 द्वारा परियोजना क्रियान्वयन इकाई, भोपाल के बी.सी.ओ. कोड में राशि रू. 50.00 लाख आवंटित की जाकर हस्तान्तरित की गई थी जिसके विरूद्ध कार्य एजेन्सी परियोजना क्रियान्वयन इकाई, भोपाल द्वारा राशि रूपये 17.49 लाख का व्यय किया गया। कार्य पूर्णता की समयावधि बताया जाना संभव नहीं है। (ग) निर्माण एजेन्सी परियोजना क्रियान्वयन इकाई, भोपाल की मांग अनुसार आयुक्त, अनुसूचित जाति विकास के पत्र क्रमांक बजट/5798-99 दिनांक 17.09.2018 द्वारा परियोजना क्रियान्वयन इकाई, भोपाल के बी.सी.ओ. कोड में राशि रूपये 50.00 लाख आवंटित की जाकर हस्तान्तरित की गई थी।
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव) - माननीय अध्यक्ष जी, यह स्वीकृति फरवरी मार्च 2017 की है, जिसमें 3 सामुदायिक भवन बनने थे. ए.एस.टी.एस. सब कुछ हो गया था, कुछ राशि लगभग 17 लाख रूपए का भी आवंटन हो गया था. ये तीनों भवनों का काम इनमें नींव भरी पड़ी है, छड़ें निकली हैं, लोग गिर रहे हैं. मैं इतना ही जानना चाहता हूं कि किस कारण से, क्या धन का अभाव है, एक तरफ वित्तमंत्री जी कहते हैं कि राशि की अब कोई कमी है. बजट में भी आप बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं. बजट का आकार भी बढ़ा दिया है. मैं यह जानना चाहता हूं कि ढाई वर्षों में इनके लिए राशि का आवंटन क्यों नहीं हुआ है, काम क्यो रुका हुआ है और कब तक कार्य पूरा हो जाएगा.
श्री लखन घनघोरिया - माननीय अध्यक्ष महोदय, गोटेगांव गढ़ाकोटा, रहली विधानसभा के अंतर्गत जो माननीय नेता प्रतिपक्ष जी का विधानसभा क्षेत्र भी है. 16 मार्च 2017 में तीन सामुदायिक भवन के निर्माण की स्वीकृति हुई है और 20 अप्रैल 2017 को तकनीकी स्वीकृति भी मिल गई. माननीय नेता प्रतिपक्ष महोदय ने 20 अगस्त 2017 को तीनों सामुदायिक का भूमि पूजन एक साथ किया. भूमि का एलाटमेंट भी 20 अक्टूबर 2017 को हो गया. तीनों का क्रम से देखे तो एक सामुदायिक भवन, खटका चौराहा, जो तैयार ही है सिर्फ पेन्टिंग होना शेष है. दूसरा सामुदायिक भवन गणेश मंदिर जिसका कार्य पूर्ण हो चुका है, तीसरा सामुदायिक भवन साहूलाल कमला नेहरू वार्ड, इसमें प्लिंथ लेवल तक कार्य हुआ है और विलंब का कारण आवंटन या बजट न होना नहीं है, विलंब का कारण जो जानकारी मिली है कि भूमि आवंटन तो 20 अक्टूबर 2017 को पहले ही हो गया था, जिस पर एक बड़ा नाला था, उस पर पुल या पुलिया नहीं बन पाई थी, जिस कारण से कार्य में विलंब हुआ है और वह काम जनवरी 2019 से शुरू हो गया है और आने वाले 6 माह के अंदर उसको पूर्ण कर लिया जाएगा.
श्री गोपाल भार्गव - माननीय अध्यक्ष महोदय, सामान्य सा प्रश्न है, कोई बहुत बड़ा प्रश्न नहीं है, न ही बहुत बड़ी राशि का है. मैं मंत्री जी को बताना चाहता हूं कि यह जो कार्य जितना आपने बताया कि यह पूर्ण हो गया और बाकी अपूर्ण है. मैंने जो जानकारी ली उसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि विभाग का ग्लोबल बजट जो है, उसमें क्या होता है कि दूसरे काम वाले जो पीडब्ल्यूडी की पीआईयू एजेंसी है तो दूसरे लोग निकाल लेते हैं, इसलिए जो कान्ट्रेक्टर हैं, उनके लिए अभी तक कुल 17 लाख रूपए ही मिला है, 82 लाख रूपए के विरूद्ध. प्रत्येक सामुदायिक भवन की राशि 27 लाख रूपए और तीनों भवन की राशि जोड़े तो लगभग 82 लाख रूपए होती है, जिसमें से आपने लगभग उन्हें 17 लाख रूपए दिया है. ग्लोबल बजट होने के कारण होता क्या है कि पोर्टल पर कई लोग बैठे रहते हैं वह राशि ले लेते हैं. मैं जानना चाहता हूं कि आपने जो उत्तर दिया वह विभाग ने बनाया, अधिकारी ने बनाया, लेकिन सही बात यह है कि उसके पीछे वित्तीय कारण है. आप क्या ऐसा करेंगे कि ग्लोबल बजट की जगह चैक से या आरटीजीएस वहां की उस निर्माण एजेंसी के लिए, आप पीआईयू के लिए राशि उपलब्ध करवा देंगे, ताकि यह काम जल्दी जल्दी पूर्ण हो जाए. छोटे छोटे काम है. मैं सोचता हूं कि इस पर हम बहुत ज्यादा चर्चा न करें. माननीय मंत्री महोदय, इतना ही कर दें कि आप जिस विभाग में राशि है आप उसका प्रावधान कर दें, ढाई साल पहले का काम है. मैं चाहता हूं कि इसके लिए जल्दी से जल्दी आप राशि जारी करवा दें.
श्री लखन घनघोरिया - आदरणीय अध्यक्ष महोदय, यह बात सच है कि ग्लोबल बजट होने के कारण कार्यवार बजट नहीं था लेकिन सन् 2018-19 में इस योजना मद में 2 करोड़ 53 लाख 6 हजार रुपये का आवंटन जारी किया गया, जिसमें मात्र 1 करोड़ 38 लाख 44 हजार रुपये का व्यय हुआ, शेष 1 करोड़ 14 लाख 62 हजार रुपये की राशि समर्पित की गई है. पी.आई.यू., सागर द्वारा मांग किये जाने के बाद भी राशि उपलब्ध नहीं कराई गई, राशि खर्च न होने के कारण समर्पित की गई है, राशि उपलब्ध तो हो गई थी और सन् 2019-20 में भी पर्याप्त धनराशि प्रदान की गई है. मैं इस सदन के माध्यम से, माननीय अध्यक्ष महोदय के माध्यम से आपको आश्वस्त करता हूँ कि 6 माह के अन्दर, आपके ये भवन बनकर कम्पलीट हो जाएंगे.
अध्यक्ष महोदय - ठीक है, भार्गव जी.
श्री गोपाल भार्गव - नहीं. अध्यक्ष महोदय, 17 लाख रुपये इसमें जारी हुए हैं और मंत्री जी कह रहे हैं कि राशि समर्पित हो गई है. मैं इसके ब्यौरे में नहीं जाना चाहता क्योंकि यह कोई बड़ा काम नहीं है. मुझे मालूम है कि राशि के अभाव के कारण से वह ठेकेदार काम नहीं कर रहा है और वह जो काम कर चुका है, उस काम की कीमत भी 50 लाख रुपये से ज्यादा है, उसके अगेन्स्ट अभी उसको 17 लाख रुपये मिले हैं.
राजस्व मंत्री (श्री गोविन्द सिंह राजपूत) - अध्यक्ष महोदय, रहली में कोई जगह ही नहीं बची है, विकास करके वह इतना भर गया है फिर भी लगे हुए हैं, अब तो रहम करो.
श्री गोपाल भार्गव - गोविन्द भाई, पिछली विधान सभा में आप नहीं थे. मैंने इतने काम सारे विधायकों के लिए, हमारे अपोजिशन के भी सदस्य यहां बैठे हुए हैं. यदि ईमानदारी से कहूँ कि जो डिपार्टमेंट मेरे पास था, मैंने इतने सामुदायिक भवन दिए हैं, इतनी सीसी रोड दी हैं, इतने विद्युत के खंभों के लिए स्ट्रीट लाईट के लिए प्रावधान किए हैं और उसमें से आधे से ज्यादा विधायक अहसान भी मानते हैं और वे जीतकर भी आए हैं.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत - रहली ओवर फ्लो हो गया है.
श्री गोपाल भार्गव - अध्यक्ष महोदय, मैं इन बातों को नहीं कहना चाहता हूँ लेकिन आज मैं कहना चाहता हूँ. जितू भाई बताएंगे और लोग इस बात को बताएंगे.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत - हम भी बताएंगे, रहली ओवर फ्लो है.
श्री गोपाल भार्गव - मैं इस प्रकार की राजनीति नहीं करता हूँ कि कहीं एक ही जगह कर दो.
अध्यक्ष महोदय - गोपाल जी, यह तो आपकी कार्य क्षमताएं हैं, जो कार्य लगातार हो रहे हैं. हर साल आ रहे हो, हर साल हो रहे हैं.
श्री गोपाल भार्गव - छोटी-छोटी सी बातें हैं. पूरा प्रदेश अपना है.
अध्यक्ष महोदय - आप 6 महीने पर आ जाओ.
श्री गोपाल भार्गव - आप आज उसकी राशि जारी करवा दें. 6 महीने, 3 महीने कोई मतलब भी नहीं है. इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है.
श्री लखन घनघोरिया - अध्यक्ष महोदय, कुल मिलाकर बात तो वही है न. हम 6 महीने के अन्दर उसको बनाकर कम्पलीट कर देंगे. सारी भूमि गोपाल की है.
अध्यक्ष महोदय - चलिए, आप दोनों गोपाल और लखन यह तय कर लें और 6 महीने के बाद दोनों उद्घाटन पर चले जाना.
श्री गोपाल भार्गव - अध्यक्ष महोदय, जो बन गया है, उनके पैसे तो दिला दो.
श्री लखन घनघोरिया - वे तो मिल ही जाएंगे.
श्री गोपाल भार्गव - कैसे मिल जाएंगे, कोई देवता थोड़े ही दे जाएंगे.
अध्यक्ष महोदय - दे देंगे, मंत्री जी बोल रहे हैं.
श्री गोपाल भार्गव - 50 लाख रुपये से ज्यादा का काम हो गया है, (XXX) ठेकेदार हैं, अभी तक 17 लाख रुपये मिले हैं.
खेल और युवा कल्याण मंत्री (श्री जितू पटवारी) - अध्यक्ष महोदय, मेरी आपत्ति है कि ठेकेदार को (XXX) कहा, उसे कार्यवाही से निकलवाइए.
अध्यक्ष महोदय - इस शब्द को विलोपित करें.
श्री गोपाल भार्गव - अध्यक्ष महोदय, वे छोटे-छोटे ठेकेदार हैं, नवोदित हैं, नये ठेकेदार हैं, उनके पास कम पूंजी है. वे बेचारे दिवालिया हो चुके हैं, ब्याज से पैसा लिए हुए हैं. आप कुछ बातें समझा कीजिये. यह व्यवहारिक बातें हैं.
श्री जितू पटवारी - काम क्यों दिलवाया है ? वह बताओ.
अध्यक्ष महोदय - मंत्री जी, सीधी-सीधी बात न करें.
श्री गोपाल भार्गव - अध्यक्ष महोदय, ई-टेण्डरिंग हुई है. इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कहूँगा.
अध्यक्ष महोदय - मैं समाधान बताए दे रहा हूँ. वे 6 महीने की बात कर रहे हैं, इसका मतलब यह है कि राशि भी डाल दी जाएगी तब तो 6 महीने में पूरे होंगे. वे बोल रहे हैं.
श्री गोपाल भार्गव - अध्यक्ष महोदय, बाय चैक या आरटीजीएस से, जो कुछ भी राशि हो, भिजवा दें, जो प्रक्रिया है. जितनी स्वीकृत राशि है, 82 लाख रुपये की.
अध्यक्ष महोदय - आप जो राशि यहां से पहुँचाएं. माननीय विधायक जी को व्यक्तिगत तौर पर बताएं.
श्री गोपाल भार्गव - अध्यक्ष महोदय, क्या होता है कि ये ग्लोबल बजट में डालते हैं और दूसरे लोग उसको निकाल लेते हैं.
अध्यक्ष महोदय - उन्होंने बोला कि बजट पर्याप्त है. वे आपको जानकारी दे देंगे.
श्री लखन घनघोरिया - आपको पूरी जानकारी भी दे देंगे.
अध्यक्ष महोदय - आपकी जानकारी में आएगा तो वह चैक और आरटीजीएस से भी ज्यादा बड़ा हो जाएगा.
श्री गोपाल भार्गव - मैं थोड़े ही पोर्टल पर बैठूँगा. (हंसी)
श्री हरिशंकर खटीक - अध्यक्ष महोदय, वैसे अनुसूचित जाति कल्याण विभाग में बजट का प्रावधान तो किया नहीं है.
अध्यक्ष महोदय - यह चर्चा का विषय नहीं है.
श्री हरिशंकर खटीक - परिवहन मंत्री जी, वह अप्रवास की राशि अनुसूचित जाति कल्याण विभाग में दे दें. पूरे बन जाएंगे, माननीय अध्यक्ष महोदय.
अध्यक्ष महोदय - देखिए. न कोई प्रश्न करे, न कोई उत्तर दे. जो प्रश्न है, उसी का उत्तर दें. आपस में सीधी बात करके प्रश्न उत्तर न करें. मेहरबानी करिए.
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट हेतु प्राप्त राशि
[नगरीय विकास एवं आवास]
4. ( *क्र. 1560 ) श्री मुन्नालाल गोयल : क्या नगरीय विकास एवं आवास मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में केन्द्र एवं प्रदेश सरकार की कितनी-कितनी हिस्सेदारी है? उपरोक्त्ा प्रोजेक्ट में म.प्र. के किन-किन शहरों को कितनी-कितनी धनराशि प्राप्त हुई है? (ख) स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत किन-किन विकास कार्यों पर यह धनराशि खर्च की जायेगी? इसकी प्रक्रिया क्या है? विकास एजेंडे में केन्द्र एवं प्रदेश सरकार की भूमिका क्या है? यदि धनराशि का दुरूपयोग हो रहा है तो इसकी मॉनिटिरिंग कौन करेगा? (ग) क्या जनप्रतिनिधि अपने शहर के सर्वांगीण विकास, स्वास्थ्य, खेल, पार्क, शिक्षा, सड़क के लिये इस योजना में कोई प्रस्ताव दे सकते हैं? (घ) ग्वालियर में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से कितनी राशि स्वीकृत हुई है तथा किन-किन विकास कार्यों पर कितनी राशि खर्च हुई है?
नगरीय विकास एवं आवास मंत्री ( श्री जयवर्द्धन सिंह ) : (क) स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में केंद्र एवं प्रदेश सरकार की 50-50 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। स्मार्ट सिटी योजना अंतर्गत शहरों को प्राप्त धनराशि की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र ''1'' पर है। (ख) स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट केंद्र सहायतित योजना है, जिसके संबंध में जारी मिशन गाइड लाइन में निर्धारित प्रक्रिया, केन्द्र/राज्य की भूमिका तथा मॉनिटरिंग आदि के प्रावधान हैं। प्रश्न के अनुक्रम में मिशन गाइड लाइन की प्रति पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र ''2'' पर है। (ग) जी हाँ। स्मार्ट सिटी गाइड लाइन अनुसार ही शहर स्तरीय परामर्श समिति का गठन किया गया है। शहर स्तरीय परामर्श समिति में स्थानीय माननीय सांसद, विधायक, महापौर व अन्य जनप्रतिनिधि सम्मिलित हैं, जो कि अपने शहर के सर्वांगीण विकास हेतु सुझाव/प्रस्ताव दे सकते हैं। (घ) ग्वालियर को स्मार्ट सिटी योजना अंतर्गत स्वीकृत राशि एवं विकास कार्यों पर व्यय राशि का विवरण पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र ''3'' पर है।
श्री मुन्नालाल गोयल -- माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके समक्ष स्मार्ट सिटी को लेकर मैंने प्रश्न लगाये हैं. यह जनहित का मामला है, इसलिये इस संबंध में मैं आपका संरक्षण चाहता हूं. मेरी भावना है कि प्रदेश और जिलों के विकास के लिये चाहे राशि केंद्र की हो, चाहे राशि प्रदेश की हो, उस राशि का सदुपयोग होना चाहिये, उस राशि का दुरूपयोग न हो इसकी जिम्मेदारी सभी दलों की है. मैंने स्मार्ट सिटी को लेकर प्रश्न लगाया है और इस प्रश्न ''क'' का जवाब आ गया है. मैंने इस प्रश्न में पूछा था कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में केन्द्र एवं प्रदेश सरकार की कितनी-कितनी हिस्सेदारी है ? जवाब में बताया गया है कि केन्द्र एवं प्रदेश की सरकार की हिस्सेदारी पचास-पचास प्रतिशत की है. दूसरे प्रश्न ''ख'' के जवाब में कहा गया है कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट केन्द्र सहायतित योजना है, जिसके संबंध में जारी गाईडलाइन में निर्धारित प्रक्रिया केन्द्र और राज्य की भूमिका तथा मॉनिटरिंग आदि के प्रावधान हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं कहना चाहता हूं कि इसमें जो गाईडलाइन तय की है उस गाईडलाइन का पालन स्मार्ट सिटी के द्वारा नहीं किया जा रहा है, चूंकि यह राशि आधी केन्द्र सरकार की है और आधी प्रदेश सरकार की है और इसकी मॉनिटरिंग का अधिकार प्रदेश सरकार का भी है, तो जो गाईडलाइन इन्होंने बनाई है उस गाईडलाइन में इन्होंने स्मार्ट सिटी के प्रमुख तत्वों की सूची बनाई है, जिसमें प्रमुख रूप से स्मार्ट सिटी से पर्याप्त जलापूर्ति, सुनिश्चित विद्युत आपूर्ति, सफाई, गरीबों के लिये किफायती आवास, अच्छा पर्यावरण, महिलाओं, बच्चियों, वृद्धों और नागरिकों की सुरक्षा, जिले में स्वास्थ्य सुविधायें, जिले में शिक्षा सुविधायें और खेल मैदान, इनकी गाईडलाइन में उल्लेखित हैं. लेकिन माननीय अध्यक्ष महोदय स्मार्ट सिटी के जो भी कर्ता-धर्ता जिलों के अंदर हैं, जो भी ब्यूरोक्रेटस हैं, वे इस गाईडलाइन का पालन नहीं कर रहे हैं. पिछले दिनों जिला योजना समिति की मीटिंग हुई थी, तब उसमें भी हमने कहा था कि ग्वालियर के अंदर करीब एक हजार करोड़ रूपये का स्मार्ट सिटी का फंड है, जिसमें से करीब 392 करोड़ रूपये का फंड आ चुका है. पूरे प्रदेश में करीब 10,12,15 हजार करोड़ रूपये का फंड स्मार्ट सिटी के लिये उपलब्ध है. हमने कहा था कि जो भी स्मार्ट सिटी का पैसा आया है, या उसका फंड आने के बाद उस शहर की व्यवस्था में कोई बदलाव आना चाहिये, क्योंकि स्मार्ट सिटी शब्द अच्छा है. ग्वालियर शहर पर आप एक हजार करोड़ रूपये खर्च करने जा रहे हो और एक हजार करोड़ रूपये खर्च करने के बाद भी यदि ग्वालियर शहर की तस्वीर न बदले तो स्मार्ट सिटी का क्या मतलब है ?
अध्यक्ष महोदय -- श्री गोयल जी अब आप कृपया करके अपना प्रश्न करिये, आपकी भूमिका बन गई है.
श्री मुन्नालाल गोयल -- स्मार्ट सिटी ने जो गाईडलाइन बनाई है उस गाईडलाइन का पालन नहीं हो रहा है, उस गाईडलाइन में खेल मैदान भी होंगे, शिक्षा की व्यवस्था भी होगी, स्वास्थ्य की व्यवस्था भी होगी, पार्क की व्यवस्था भी होगी, यह सब उस गाईडलाइन में है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा यह कहना है कि आज माननीय मंत्री जी भी यहां बैठे हैं जो गाईडलाइन स्मार्ट सिटी की, उस गाईडलाइन का पालन होना चाहिये. मेरा दूसरा प्रश्न यह है कि हमारा जो फंड है यह फंड किसी व्यक्ति या किसी मंत्री का फंड नहीं है, यह फंड जनता का फंड है. यदि जो फंड स्मार्ट सिटी का आ रहा है और उसमें उस जिले के अंदर कहां, क्या विकास कार्य हो रहे हैं ? यह तय करने का काम भी स्थानीय जन प्रतिनिधियों के साथ बैठकर करना चाहिये. खाली ब्यूरोक्रेट के लोग तय करें कि इस फंड का उपयोग कहां होगा ? तो मैं इस संबंध में कहना चाहता हूं कि स्मार्ट सिटी का जो फंड आ रहा है.....
अध्यक्ष महोदय -- अब आप बैठ जायें, आपके दो प्रश्न हो गये हैं.
श्री जयवर्द्धन सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय विधायक जी को पूरा आश्वासन देता हूं कि इन्होंने जिस गाईडलाइन का उल्लेख किया है, उसके आधार पर ही काम किया जायेगा क्योंकि ग्वालियर स्मार्ट सिटी फेस-2 में स्वीकृत की गई थी. इन्होंने जैसा अभी उल्लेख भी किया है कि लगभग 350 करोड़ रूपये स्मार्ट सिटी के पास है, लेकिन उस राशि के अब तक सिर्फ 37 करोड़ रूपये ही खर्च हो पाये हैं और काफी ऐसे प्रोजेक्ट्स हैं जो पाईपलाइन में हैं, जो टेंडर प्रक्रिया पर हैं. इनकी जो मूल समस्या है, इनका जो विधान सभा क्षेत्र है उसका बहुत ही छोटा हिस्सा वेस्ट डेवलपमेंट में आता है. स्मार्ट सिटी के 2 हिस्से हैं, एक होता है ए.व्ही.डी. जो एक टारगेटेड एरिया होता है, शहर के अंदर लगभग 300 से 500 एकड़ का जहां पर मूल काम आवास का हो, चाहे वह काम सड़क का हो, वह काम किया जाता है. बाकी जो सेकेण्ड कम्पोनेंट है वह होता है पेन एरिया डेवलपमेंट, उसमें पूरे शहर में चाहे वह काम आई.टी.एम.एस का हो, चाहे वह काम पब्लिक बाइक शेयरिंग का हो, वह काम किया जाता है. अगर माननीय विधायक जी मुझे कोई स्पेसिफिक काम बतायें जिसमें इनकी रूचि है तो उसके बारे में भी मैं इनको सूचना दे सकता हूं. साथ में इन्होंने उल्लेख किया था एक स्टेडियम के बारे में, खेल परिसर के बारे में, तो मैं माननीय विधायक जी को अवगत कराना चाहता हूं कि खेल परिसर का विकास एम.एल.बी. मेडीकल कॉलेज के लिये लगभग 5 करोड़ 91 लाख रूपये स्वीकृत हो चुके हैं वह शायद आप ही के क्षेत्र में आता है और उसके साथ में 12 जून को ही ठीक एक महीने पहले स्मार्ट सिटी की एक बैठक भी ली गई थी जिसमें शायद माननीय उपस्थित भी थे.
अध्यक्ष महोदय-- माननीय विधायक जी, प्रश्न करने से पहले अनुरोध, जो मंत्री जी ने कहा है, आपकी जो इच्छायें हैं वह जरूर प्रश्नकाल के बाद लिखकर दे दीजिये. अगला प्रश्न करिये.
श्री मुन्नालाल गोयल-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं इसमें एक बात और जोड़ना चाहूंगा कि माननीय मंत्री जी ने कहा है कि मेरे विधान सभा में एम.एल.बी. कॉलेज में काम होने वाला है, लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि इस पूरे काम में अभी मेरे क्षेत्र में जो आपने कहा कि जल संरक्षण का काम है, मेरे क्षेत्र में खेल में इतना काम है, तमाम सारे मेरे क्षेत्र में खेल मैदान हैं क्या वह जुड़ नहीं सकते. मेरे क्षेत्र में मुरार नदी है, क्या जुड़ नहीं सकती. निश्चित तौर पर मुरार की वैशाली नदी है जिसको केवल 50 करोड़ की आवश्यकता है, आप सुनरेगा नाले में यदि 100 करोड़ का प्रस्ताव दे रहे हो तो मुरार नदी में आप 50 करोड़ का प्रस्ताव क्यों नहीं दे सकते. खेल मैदान का प्रस्ताव क्यों नहीं जोड़ सकते, जबकि आपकी गाइड लाइन में खेल मैदान और पानी की व्यवस्था यह सब है तो मैं चाहता हूं कि कम से कम जो आपकी स्मार्ट सिटी की गाइड लाइन है, उस गाइड लाइन में खेल मैदान और मुरार नदी, दोनों को जोड़ने का काम किया जाये.
श्री जयवर्द्धन सिंह-- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय विधायक जी ने उल्लेख किया है कि जिस प्रकार से स्वर्ण रेखा का प्रोजेक्ट बनाया गया है वह वैसे 50 करोड़ रूपये का टेंडर है, 100 करोड़ का नहीं है, लेकिन इनके क्षेत्र में जो आता है मुरार नदी का काम जिसके बारे में यह उल्लेख कर रहे हैं, मैं माननीय विधायक जी को आश्वासन देता हूं कि जिस प्रकार से आप चाहेंगे हम इस काम को लेंगे और आपके आधार पर ही उसकी पूरी डीपीआर तैयार भी की जा रही है और जैसे ही डीपीआर पूरी हो जायेगी उस पर टेण्डर किया जायेगा और पूरा काम जैसा आप चाहोगे वैसा किया जायेगा.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्न क्रमांक 5, श्री राहुल सिंह लोधी.
श्री शैलेन्द्र जैन-- (XXX)
अध्यक्ष महोदय-- यह जो बोल रहे हैं न लिखा जाये.
श्री शैलेन्द्र जैन-- (XXX)
अध्यक्ष महोदय-- मैंने आपको परमीशन नहीं दी. यह न लिखा जाये. लोधी जी प्रश्न करिये.
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव)-- माननीय अध्यक्ष जी, माननीय शैलेन्द्र जी ने जो प्रश्न किया है यह नीतिगत विषय है, सभी स्मार्ट सिटीज के बारे में. इसके बारे में यदि मंत्री जी की कोई व्यवस्था आ जाये.
अध्यक्ष महोदय-- जहां जो प्रश्न सीमित है उसको मैं व्यापक नहीं बनाने की इजाजत देता हूं.
श्री गोपाल भार्गव-- अध्यक्ष जी, यह इससे उद्भूत होता है.
अध्यक्ष महोदय-- नहीं, उद्भूत नहीं हो रहा है, यह एक क्षेत्र विशेष के लिये पूछा गया है.
श्री गोपाल भार्गव-- अध्यक्ष जी, 100 प्रतिशत उद्भूत हो रहा है.
श्री शैलेन्द्र जैन-- (XXX)
अध्यक्ष महोदय-- मैं अनुमति नहीं दे रहा हूं.
खरगापुर विधान सभा क्षेत्र में शिक्षकों का स्थानांतरण
[स्कूल शिक्षा]
5. ( *क्र. 1354 ) श्री राहुल सिंह लोधी : क्या स्कूल शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या खरगापुर विधान सभा क्षेत्र के बल्देवगढ़ एवं पलेरा ब्लॉक में कई शिक्षक गृहनगर में 5 वर्ष से अधिक समय से पदस्थ हैं? (ख) यदि हाँ, तो क्या ऐसे शिक्षकों के स्थानांतरण हेतु कोई नीति बनाई गई है? यदि हाँ, तो नीति क्या है? (ग) यदि नहीं तो क्या ऐसे शिक्षकों के स्थानांतरण हेतु कोई नीति बनाई जायेगी और कब तक?
स्कूल शिक्षा मंत्री ( डॉ. प्रभुराम चौधरी ) : (क) जी हाँ। (ख) स्थानातंरण नीति में 5 वर्ष उपरांत शिक्षकों को स्थानांतरित किये जाने का विशिष्ट प्रावधान नहीं हैं। वर्ष 2019-20 की स्थानातंरण नीति पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ग) ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।
श्री राहुल सिंह लोधी - माननीय अध्यक्ष जी, मैं पहली बार बुंदेलखण्ड की धरती से जीतकर सदन में आया हूं और पहली बार ही मुझे इस सदन में बोलने का मौका मिल रहा है तो मैं यहां उपस्थित सभी वरिष्ठजनों को प्रणाम करता हूं और आपसे संरक्षण चाहता हूं. मेरा माननीय मंत्री जी से प्रश्न था कि मेरे विधान सभा क्षेत्र खरगापुर में ऐसे कितने शिक्षक हैं जो अपने गृह ग्राम में 5 वर्ष से ज्यादा समय से कार्यरत् हैं और उनको वहां से हटाने की या ट्रांसफर करने की कोई नीति है या नहीं है ? तो माननीय मंत्री जी ने कहा कि ऐसी कोई नीति नहीं है तो मैं मंत्री जी से यह जानना चाहता हूं और आश्वासन चाहता हूं कि ऐसे शिक्षक को उसी ग्राम में निवास करते हैं और उसी ग्राम में पढ़ाने जाते हैं तो सभी विधायक मित्रों को भी पता है कि वे वहां राजनीति में ज्यादा इनवाल्व रहते हैं तो ऐसे शिक्षकों के ट्रांसफर की भी कोई नीति होनी चाहिये जैसी दूसरे अधिकारियों के ट्रांसफर की नीति होती है. तो 5 वर्षों से ज्यादा समय से जो शिक्षक उसी ग्राम में निवास करते हैं और पढ़ाते हैं उनके ट्रांसफर की कोई नीति बनाए ताकि ऐसे शिक्षक जो राजनीति में ज्यादा इनवाल्व रहते हैं उनका कम से कम ट्रांसफर हो सके. मेरा दूसरा प्रश्न है कि मैंने 10-15 शिक्षकों को हटाने के लिये जिला शिक्षा अधिकारी और कलेक्टर को लिखकर दिया है लेकिन उस पर आज तक कार्यवाही नहीं हुई तो माननीय मंत्री जी, उन पर भी कार्यवाही कराने का कष्ट करें.
डॉ. प्रभुराम चौधरी - माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने जो प्रश्न किये थे उनके उत्तर मैंने लिखित में दिये थे उसके बावजूद भी माननीय सदस्य यह जानना चाहते हैं कि उनके विधान सभा क्षेत्र में कितने अतिशेष शिक्षक पदस्थ हैं, अपने गृहनगर में पदस्थ हैं तो उनके विधान सभा क्षेत्र के बलदेवगढ़ और पलेरा ब्लाक में 205 शिक्षक गृह नगर में पदस्थ हैं तो शिक्षक का जो पद है वह कोई एग्जीक्यूटिव पद नहीं है. शिक्षक स्कूल में पढ़ाता है और उसमें हमें सबसे पहले यह देखना है शिक्षा की गुणवत्ता, बच्चों की पढ़ाई अच्छे से हो सके. हमारी जो स्थानांतरण नीति है उसमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि 5 वर्ष से ऊपर शिक्षक पदस्थ हैं तो उसको हटाया जाए. हमने देखा है कि अनेक वर्षों से कई जगह शिक्षक वहां पदस्थ हैं और वहां के स्कूलों के रिजल्ट अच्छे आ रहे हैं. अच्छे से वे पढ़ा रहे हैं. इसीलिये हमारी नीति में ऐसा नहीं है जैसा दूसरे विभागों में एग्जीक्यूटिव पद होते हैं. उनको 3 साल या 5 साल बाद हटाया जाता है. शिक्षा नीति में ऐसा प्रावधान नहीं है.
श्री राहुल सिंह लोधी - माननीय मंत्री जी, लेकिन इस बार का रिजल्ट अच्छा नहीं आया है. पूरे प्रदेश का खराब आया है. इसीलिये मैं चाहता हूं कि जो शिक्षक लंबे समय से जमे हुए हैं उनका स्थानांतरण करने की कोई नीति बनाई जाए.
डॉ. प्रभुराम चौधरी - माननीय अध्यक्ष महोदय, जहां तक रिजल्ट की चिंता माननीय सदस्य ने की है तो निश्चित रूप से हमने इसको संज्ञान में लिया है और मध्यप्रदेश के विभिन्न संभागों के जिन-जिन स्कूलों में रिजल्ट कमजोर आए थे उनको हमने आईडेंटिफाई किया था. 3 सालों से जिन स्कूलों में रिजल्ट कमजोर आ रहे थे उन स्कूलों को हमने आईडेंटिफाई किया और उन स्कूलों में जिन विषयों में रिजल्ट कमजोर थे उन शिक्षकों का हमने एक टेस्ट भी करवाया. टेस्ट करवाकर जो शिक्षक उसमें कमजोर पाए जाएंगे उनको हम प्रशिक्षित करेंगे जिससे आने वाले समय में उस स्कूल का रिजल्ट अच्छा आ सके.
श्री राहुल सिंह लोधी - माननीय मंत्री जी, जिनकी शिकायतें वहां बार-बार दी जा रही हैं उनके खिलाफ क्या कार्यवाही कर रहे हैं ?
डॉ. प्रभुराम चौधरी - माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने जो शिकायत की बात कही है. जो भी शिकायत वे देंगे उसकी निश्चित रूप से हम जांच कराएंगे और वहां अगर कोई कमी पाई जायेगी तो हम कार्यवाही करेंगे.
श्री राहुल सिंह लोधी - ठीक है धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय - ठीक है लोधी जी, विराजिये. पहली बार,पहले विधायक, अच्छे प्रश्न किये आपने विराजिये.
भोपाल मास्टर प्लान हेतु कार्ययोजना
[नगरीय विकास एवं आवास]
6. ( *क्र. 1323 ) श्री रामेश्वर शर्मा : क्या नगरीय विकास एवं आवास मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) भोपाल के आगामी मास्टर प्लान को लेकर विभाग की क्या कार्य योजनाएं हैं? क्या पूर्व में जारी मास्टर प्लान की सभी सड़कें बना ली गयी हैं? पूर्वर्ती मास्टर प्लान की किन सड़कों का निर्माण अभी तक किन कारणों से लंबित है? (ख) लंबित प्रत्येक सड़क की जानकारी उपलब्ध करायें एवं इन सड़कों को कब तक पूर्ण कर लिया जाएगा?
नगरीय विकास एवं आवास मंत्री ( श्री जयवर्द्धन सिंह ) : (क) अमृत योजना की मार्गदर्शिका के डिजाइन एवं स्टैण्डर्ड के अनुसार भोपाल विकास योजना-2005 को पुनरीक्षित कर भोपाल विकास योजना 2031 तैयार की जा रही है। जी नहीं। विकास योजना का क्रियान्वयन एक सतत् प्रक्रिया है। नगर विकास की प्रक्रिया के दौरान विकास योजना की सड़कें भी अन्य विकास के साथ-साथ, वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर क्रियान्वित होती हैं। अत: शेष प्रश्नांश उपस्थित नहीं होता है। (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। उत्तरांश (क) के परिप्रेक्ष्य में समय-सीमा बताई जाना संभव नहीं है।
श्री रामेश्वर शर्मा - माननीय अध्यक्ष महोदय,मेरा प्रश्न माननीय मंत्री जी से भोपाल के मास्टर प्लान के संबंध है. भोपाल के आगामी मास्टर प्लान को लेकर विभाग की क्या कार्य योजनाएं हैं ? क्या पूर्व में जारी मास्टर प्लान की सभी सड़कें बना ली गई हैं और पूर्ववर्ती मास्टर प्लान की किन-किन सड़कों का निर्माण अभी तक किन कारणों से लंबित हैं ? यह मेरा "क" प्रश्न है इसका उत्तर आने के बाद मैं फिर "ख" पूछूंगा.
श्री जयवर्द्धन सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, वर्तमान में भोपाल मास्टर प्लान का काम जारी है. इसमें जो मुख्य प्रश्न माननीय विधायक जी का है कि अब तक कुल कितनी सड़क प्लॉन्ड है और कितनी सड़क बन चुकी है, क्योंकि आखिरी मास्टर प्लान वर्ष 1995 में बना था, उसके बाद भोपाल मास्टर प्लान दो बार ड्यू रहा, वर्ष 2005 में और वर्ष 2015 में भी, लेकिन किसी कारण से उस समय की सरकार ने इस पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया.
मैं माननीय विधायक जी को पूरा आश्वासन देता हूं कि हमारी सरकार इस साल के अंत तक ही प्रयास करेगी कि नया मास्टर प्लान हम प्रस्तुत करेंगे. (मेजों की थपथपाहट).. जहां तक बात सड़कों की है. 241 कि.मी. में से अभी तक सिर्फ 53 कि.मी. ही सड़क बन पाई है. शेष जो 188 कि.मी. की सड़क है उसके लिए भी हमने पूरी नीति बनाई है, प्लानिंग की है, लेकिन जैसा कि आप जानते हैं कि मास्टर प्लान एक सतत् प्रक्रिया होती है. जो शेष सड़कें हैं उनकी समय-सीमा तो नहीं बता सकता, लेकिन मैं यह भी बात जानता हूं कि अधिकतर सड़कें जो शेष रह गई हैं आपकी विधानसभा की हैं. कुल लगभग ऐसी 34 सड़कें रह गई हैं, उनमें से 17 इनकी विधानसभा क्षेत्र की हैं और हम बात कर लेंगे और उनके लिए भी हम ऐसी योजना बना लेंगे, इसमें उनको ले लेंगे.
श्री रामेश्वर शर्मा - मंत्री जी, अलग से भी बैठ लेंगे परन्तु पहले विधानसभा में बैठ लें. मेरा केवल आग्रह यह है कि (एक माननीय सदस्य के बैठे बैठे कुछ कहने पर) अभी पूरा काम तो हो जाने दो. आपको धन्यवाद की बहुत जल्दी है, काम तो हो जाने दो. हम धन्यवाद भी दे देंगे और स्वागत भी कर देंगे.
ऊर्जा मंत्री (श्री प्रियव्रत सिंह)- भाई साहब, धन्यवाद..
श्री रामेश्वर शर्मा - आप तो कल से उलझे हो, आप मत उलझो. हम सही बता रहे हैं. यह बात ठीक है कि वह भैया हैं, परन्तु हम भी भैया हैं, चिंता मत करो, पहले हमारी और उनकी बात हो जाने दो.
श्री प्रियव्रत सिंह - मैं तो यह निवेदन कर रहा था कि आप विधानसभा में धन्यवाद देंगे कि अलग से धन्यवाद देंगे.
पर्यटन मंत्री (श्री सुरेंद्र सिंह हनी बघेल) - आपने काम क्यों नहीं करवाया, अपने भैया से भी तो करवाते, हमारे मंत्री जी कितने सहज हैं!
श्री रामेश्वर शर्मा - अध्यक्ष महोदय, जो काम हो जाएंगे, विधानसभा में भी धन्यवाद दे देंगे, अलग से भी दे देंगे क्योंकि काम अगर होते हैं तो वह जनता को दिखते हैं. मैं नहीं दूंगा तो जनता धन्यवाद देती है. लेकिन मेरे कहने का आशय यह है कि जो वर्ष 1995 का मास्टर प्लान बना था, उस मास्टर प्लान को वर्ष 2005 से और आज वर्ष 2018-19 में हम बैठे हैं. क्या जो मास्टर प्लान बनता है उसकी कोई समीक्षा होती है या नहीं? या तत्कालीन परिस्थितियों में हमारे अधिकारी कर्मचारी मिलकर एक मास्टर प्लान तैयार कर देते हैं. बाद में वह सड़क फारेस्ट में है तो फारेस्ट का डीएफओ उसमें बैठता है. संबंधित लोक निर्माण विभाग के अधिकारी बैठते हैं. जिले के कलेक्टर महोदय बैठते हैं, अन्य टीएंडसीपी के अधिकारी बैठते हैं. जब उस समय वह फारेस्ट में था तो उस रोड को मास्टर प्लान में कैसे चिह्नित किया, मेरा आग्रह यह है? अगर मास्टर प्लान में हम कोई सड़क चिह्नित कर रहे हैं तो वह डेव्हलपमेंट का हिस्सा बन जाता है, अगर वह डेव्हलपमेंट का हिस्सा बना तो उसका डेव्हलपमेंट होना चाहिए, फिर वही डीएफओ साफ इंकार कर देते हैं कि यह सड़क यहां से नहीं बन सकती क्योंकि यह फारेस्ट रेंज है.
अध्यक्ष महोदय, मेरा कहने का आशय यह है कि शहर को जो हम विकास की तरफ ले जा रहे हैं, जब मास्टर प्लान की हम सड़कें देते हैं तो उस तरफ डेव्हलपमेंट बढ़ता है और जब वहां आबादी पहुंच जाती है लेकिन डेव्हलपमेंट नहीं पहुंचा पाता, उससे तत्कालीन नागरिक जो परेशानी झेलते हैं, उसका शिकार यह जनप्रतिनिधि होते हैं. आप भी होते हैं, मैं भी होता हूं, दूसरे भी होते हैं. मेरे कहने का आशय यह है कि 34 सड़कों में यह कहा है, इन 34 सड़कों में काम शुरू तो क्या, इनका सर्वे भी नहीं हुआ, मेरे कहने का आशय यह है ? माननीय मंत्री जी ने स्वीकार किया है. मैं आपको धन्यवाद देता हूं. लेकिन 34 सड़कों में से एक का भी सर्वे तक का काम शुरू नहीं हुआ और इसलिए दूसरे मास्टर प्लान में आग्रह यह है कि भोपाल का बड़ा तालाब इसको हम मास्टर प्लान में कैसे चिह्नित करेंगे? हम आष्टा, इछावर और भोपाल, मेरी हुजूर विधानसभा लगभग 105 गांव, एक सर्वे उठाकर मास्टर प्लान में वहां पर उसको कैचमेंट में डाल दिया, वहां की गांव की आबादी का डेव्हलपमेंट ही बंद हो गया तो मेरे कहने का आशय यह है कि मास्टर प्लान आप बनाएं, हम आपका साथ देंगे, लेकिन जो मास्टर प्लान वर्ष 2005 की चिह्नित सड़कें हैं, उनको बनाने की तारीख समय सीमा एक साल दीजिए, दो साल दीजिए, कोई परेशानी नहीं है, परन्तु वह बनेंगी कि नहीं बनेंगी, यह बताइए? दूसरा, अध्यक्ष महोदय आपके माध्यम से माननीय मंत्री महोदय से यह जानना चाहता हूं कि आखिर यह मास्टर प्लान की सड़कों के लिए कोई न कोई एजेंसी पाबंद हो जो खासतौर से मास्टर प्लान की ही सड़कों को बनाने का काम देखेगी?
श्री जयवर्द्धन सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय जो बात विधायक जी ने कही है कि अब तक यह काम क्यों नहीं हो पाया है. अगर पूर्व सरकार चाहती तो दो बार अवसर था रिव्यू करने का क्यों नहीं किया गया, जो बात प्लानिंग एरिया की है मैं माननीय विधायक जी को अवगत कराता हूं कि इनका एक पत्र गया था 4-8-2016 को संचालक टीएण्डसीपी को और इन्होंने मांग की थी कि इनके क्षेत्र के 17 गांवों को जोड़ा जाय, 2016 और 2017 बीत गया 2018 भी बीत गया है, लेकिन सुनवाई नहीं हुई. माननीय अध्यक्ष महोदय जिस दिन हमारी सरकार बनी हमने तुरंत इसकी बैठक ली है और इनके पूरे 17 गांव प्लानिंग एरिया में जुड़ चुके हैं. जो उन्होंने उल्लेख किया है कि जो लेक का कैचमेंट एरिया है जो कि सीहोर तक पहुंचता है हमारी पहली बैठक में मैंने यह बात तय की थी चाहे वह सीहोर भी क्यों न हो लेकिन जहां तक लेक का केचमेंट एरिया है वहां तक पूरा मास्टर प्लान संयुक्त रूप में बनाया जायेगा यह भी हम करवा रहे हैं. माननीय विधायक जी जो बात कह रहे हैं कि जो भी इसमें दावे आपत्ति आती है तो उसके लिए समिति होती है जिसमें जो भी गांव जोड़े जाते हैं वहां के सरपंच भी उसमें शामिल होते हैं और माननीय सदस्य भी विधायक होने के नाते उस समिति में हैं जो भी इनके दावे आपत्ति सुझाव हैं आपका स्वागत है आप हमें बताइये. उनका निराकरण किया जायेगा.
श्री रामेश्वर शर्मा -- माननीय अध्यक्ष महोदय एजेंसी तो बतायें कि मास्टर प्लान की सड़कें कौन बनायेंगे और जो 34 सड़कें रूकी हैं यह कब तक बन जायेंगी(श्री कमलेश्वर पटेल जी के बैठे बैठे बोलने पर) अरे आप रूक तो जायें, आपका भी कालेज है वहां तक भी मुझे सड़क ले जाना है, थोड़ा रूक तो जायें शांति रखें, अरे मैं यहां पर सबकी चिंता कर रहा हूं सदन में यहां पर जितने बैठे हैं वह आसपास में सब मेरी विधान सभा में रहते हैं, बाद में तंग करते हैं.
अध्यक्ष महोदय -- आपका काम ही चिंता करना है क्योंकि आपका नाम ही वैसा है.
श्री रामेश्वर शर्मा -- मैं केवल सड़क के बारे में जानना चाहता हूं.
श्री जयवर्द्धन सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय क्योंकि नगर निगम के अंतर्गत सड़कें नगर निगम की भी होती हैं, सीपीए की भी होती हैं, बीडीए की भी होती हैं, लोक निर्माण विभाग की भी होती हैं तो वह हम तय कर लेंगे. जैसा कि हमने पहले कहा है कि कुल 34 सड़कें हैं जो कि शेष रह गई हैं, वैसे बहुत सारी सड़कें उसमें हैं जहां पर कई में कालोनी बन गई हैं कहीं पर घर बन गये हैं तो उसके लिए भी पूरी कार्यवाही करना होगी. लेकिन जैसा कि आज मैने कहा है कि सदन के अंदर हम यह तय नहीं कर सकते हैं कि कौन सी सड़क कौन एजेंसी लेगी, लेकिन इसके बारे में हम एक विस्तृत बैठक करके हम तय करेंगे.
श्री रामेश्वर शर्मा -- यह 34 सड़कें सीपीए के पास ही हैं.
श्री जयवर्द्धन सिंह -- जरूरी नहीं है, मुख्य दायित्व सीपीए का है लेकिन जो अन्य एजेंसी हैं वह भी निर्माण कर सकती हैं.
श्री रामेश्वर शर्मा -- इसकी कोई एजेंसी फिक्स नहीं होगी.
श्री जयवर्द्धन सिंह -- मुख्य दायित्व सीपीए का है लेकिन अन्य एजेंसी भी इसमें काम कर सकती हैं.
अध्यक्ष महोदय -- मुझे विश्वास है कि एक सक्षम होनहार मंत्री इस विभाग को संभाल रहे हैं. भोपाल का भला होगा कि मास्टर प्लान आपके रहते हुए लागू हो जाय. बस मेरी बात समझ लीजिए.
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव) -- माननीय मंत्री जी एक विसंगति है. चूंकि मैं पिछले कार्यकाल में भोपाल का प्रभारी मंत्री रहा हूं. यहां पर यह एक बड़ी विसंगति है कि यह पता ही नहीं चलता है कि सीपीए की कौन सी सड़क है या लोक निर्माण विभाग कौन सी सड़क देख रहा है और दूसरी एजेंसी कौन सी सड़क देख रही हैं. मेरा कहना है कि उसका कहीं न कहीं चिन्हांकन होना चाहिए. मैं कहीं से निकला और पूछा तो जवाब मिलता है कि मेरे अधीन नहीं है, इसको चिन्हित जरूर करवा लें. इससे आपका मास्टर प्लान का काम है यह और सरल हो जायेगा.
श्री जितू पटवारी -- अरे आप तो पहले सक्षम थे आपने यह काम क्यों नहीं करवाया.
श्री गोपाल भार्गव -- जिला योजना समिति की बैठक में 3 - 4 बार प्रस्ताव रखवाया, मैं यहां पर सुझाव दे रहा हूं करना हो आपको करो नहीं करना हो मत करो, मेरा कुछ नहीं है लेकिन यह मेरा अच्छा सुझाव है.
श्री जयवर्द्धन सिंह -- अध्यक्ष महोदय, लगभग चिह्नित तो हैं, क्योंकि अन्य एजेंसीज हैं, तो हम एक अपैक्स बॉडी के बारे में विचार कर सकते हैं, ताकि उसके माध्यम से ही सब काम किया जाये, लेकिन जो पूर्व निर्मित सड़कें हैं, उनकी लायबिलिटीज भी होंगी, तो वह भी सोचना पड़ेगा. (श्री गोपाल भार्गव, नेता प्रतिपक्ष द्वारा बैठे बैठे कहने पर कि उसमें साइन बोर्ड लगा लीजिये.) हां अपन साइन बोर्ड उसमें लगा सकते हैं.
डॉ. मोहन यादव -- अध्यक्ष महोदय, वैसे यह प्लानिंग एरिया की जितनी भी डेव्हलपमेंट की जानकारी और मास्टर प्लान के एक्सीक्यूशन का काम प्राधिकरण के अंतर्गत ही होता है, चूंकि मैं प्राधिकरण का अध्यक्ष रहा हूं, इसलिये उसी के अंतर्गत होता है, अलग से कोई बॉडी बनाने की जरुरत नहीं है.
अध्यक्ष महोदय -- प्रश्न संख्या - 7. नागेन्द्र सिंह जी, अपना प्रश्न करने का कष्ट करें.
श्री रामेश्वर शर्मा -- अध्यक्ष महोदय...
अध्यक्ष महोदय -- मैंने इस प्रश्न के लिये पर्याप्त समय दे दिया है. अब अगला प्रश्न आने दीजिये.
रीवा जिलांतर्गत अवैध उत्खनन
[खनिज साधन]
7. ( *क्र. 1321 ) श्री नागेन्द्र सिंह (गुढ़) : क्या खनिज साधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) रीवा सतना जिले में कितने लायसेंस प्रदाय किये गये हैं? क्या रीवा जिले में व्यापक पैमाने पर अवैध उत्खनन किया जा रहा है? इसे रोकने हेतु क्या उपाय किये जा रहे हैं? (ख) रीवा जिले के रायपुर कर्चुलियान ग्राम पंचायत पहाड़़िया में अद्यतन स्थिति में शासन द्वारा कितने क्रेशर को लायसेंस प्रदाय किया है एवं क्या इनको पर्यावरण के द्वारा एन.ओ.सी. दी गई है? यदि हाँ, तो उसकी प्रति उपलब्ध करावें एवं उनके द्वारा कहाँ-कहाँ लीज ली गई है? प्रति उपलब्ध करावें। क्या पहाड़िया में व्यापक पैमाने पर अवैध उत्खनन हो रहा है? अगर हाँ तो दोषी अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्यवाही की जायेगी? (ग) क्या रीवा जिले में खनिज पट्टा, उत्खनि पट्टा एवं अस्थाई अनुज्ञा पट्टे बिना निरीक्षण के दिये जाते हैं? यदि हाँ, तो निरीक्षण अधिकारी का नाम, दिनांक, निरीक्षण उपरान्त दिये गये पट्टों की प्रति उपलब्ध करावें। उनके खिलाफ क्या कार्यवाही की गई?
खनिज
साधन मंत्री (
श्री प्रदीप
अमृतलाल जायसवाल
) :
(ख) प्रश्नाधीन जिले की ग्राम पंचायत पहाड़िया में 03 क्रेशरों को भंडार लायसेंस प्रदान किये गये हैं। भंडार लायसेंस में पर्यावरण अनापत्ति प्राप्त करने के कोई प्रावधान नहीं हैं। भंडारण अनुज्ञप्तिधारी को भंडारण नियम, 2006 के तहत लीज लेने की अनिवार्यता नहीं है। अवैध उत्खनन पर प्राप्त शिकायतों पर विभाग द्वारा ग्राम पहाड़िया में अवैध उत्खनन के 07 प्रकरण दर्ज किये जाकर राशि रूपये 4,58,000/- की वसूली की गई है। अत: शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) जी नहीं। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
श्री नागेन्द्र सिंह (गुढ़) -- अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न यद्यपि रीवा जिले में अवैध उत्खनन संबंधी है, लेकिन आप सब जानते हैं कि अवैध उत्खनन से पर्यावरण को कितना नुकसान हो रहा है और पूरे विश्व में जो ग्लोबल वार्निंग हो रही है, उससे यह प्रश्न जुड़ा हुआ है, इसलिये इसमें जिस तरह से मंत्री जी उत्तर दिया है, तो इसको गंभीरता से लिया जाये, ऐसी मेरी सदन से अपेक्षा है. यह प्रश्न पूरे प्रदेश और देश से जुड़ा है. मंत्री जी ने जो जवाब दिया है, उसमें मूल रुप से यह बताने की कोशिश की है कि (XXX)
गृह मंत्री (श्री बाला बच्चन)-- अध्यक्ष महोदय, यह मेरी आपत्ति है. इन्होंने जो कहा है ,यह आपका असत्य कथन है.
अध्यक्ष महोदय -- इसको विलोपित कर दें.
श्री नागेन्द्र सिंह (गुढ़) -- अध्यक्ष महोदय, यह मैं नहीं बोल रहा हूं, यह पूरा समाज बोल रहा है, पूरा अखबार बोल रहा है, पूरा प्रदेश बोल रहा है.
श्री बाला बच्चन -- अध्यक्ष महोदय, इसको विलोपित किया जाये.
अध्यक्ष महोदय -- मैंने इसको विलोपित कर दिया है.
श्री नागेन्द्र सिंह (गुढ़) -- (XXX)
..(व्यवधान)..
अध्यक्ष महोदय -- मैंने इसको विलोपित कर दिया.
..(व्यवधान)..
श्री हरिशंकर खटीक -- (XXX)
श्री नागेन्द्र सिंह (गुढ़) -- (XXX)
अध्यक्ष महोदय -- नहीं- नहीं. नागेन्द्र सिंह जी, अगर आप प्रश्न नहीं पूछेंगे, तो मैं आगे बढ़ जाऊंगा. यह तरीका ठीक नहीं है. यह प्रश्नोंत्तरकाल में काम करने का तरीका नहीं है. प्रश्न संख्या-8. श्री महेश राय.
..(व्यवधान)..
श्री शैलेन्द्र जैन -- (XXX)
अध्यक्ष महोदय -- प्रश्न संख्या-8. श्री महेश राय.
श्री नागेन्द्र सिंह (गुढ़) -- अध्यक्ष महोदय, मैंने अभी प्रश्न किया ही नहीं है.
अध्यक्ष महोदय -- मैं आपको प्रश्न एलाऊ नहीं करुंगा. आप विषय से बाहर जाकर ऐसी एक उद्वेलिता सदन में फूंकें, इसके लिये मैं आपको परमिट नहीं करुंगा.
श्री नागेन्द्र सिंह (गुढ़) -- अध्यक्ष महोदय, आपका संरक्षण मिलना चाहिये. आप मुझे प्रश्न तो करने दीजिये.
अध्यक्ष महोदय -- अगर विषय वस्तु पर आप बोलेंगे, मैं परमिट करुंगा. सदन को उद्वेलित करके मैं चलने की परमीशन नहीं दूंगा और जो आपका प्रश्न था, वह इससे संबंधित नहीं था. मैं सम्पूर्ण विषय को विलोपित करता हूं.
श्री नागेन्द्र सिंह (गुढ़) -- अध्यक्ष महोदय, एक प्रश्न की अनुमति दें.
..(व्यवधान)..
अध्यक्ष महोदय -- कृपया आप लोग बिराजिये. नागेन्द्र सिंह जी, आप मेहरबानी करके प्रश्न से उद्भूत प्रश्न तक ही सीमित रहिये.
श्री नागेन्द्र सिंह (गुढ़) -- अध्यक्ष महोदय, जी.
खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री (श्री प्रद्युम्न सिंह तोमर) -- अध्यक्ष महोदय, इन्होंने गलत बोला है. इनके समय में क्या हुआ है.
अध्यक्ष महोदय -- कृपया आप बैठ जायें. माननीय संसदीय कार्य मंत्री जी.
श्री प्रद्युम्न सिंह तोमर -- अध्यक्ष महोदय, डम्पर किसके चल रहे हैं, आप बताइये. ई टेण्डरिंग किसके समय में हुई है. व्यापम घोटाला किसके समय में हुआ है.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ. गोविन्द सिंह) -- अध्यक्ष महोदय, यह जो आरोप लगा रहे हैं, यह गलत लगा रहे हैं. इतने डम्पर मध्यप्रदेश में होशंगाबाद, सीहोर में चल रहे हैं. ..(व्यवधान)..
श्री गोपाल भार्गव -- माननीय अध्यक्ष महोदय, एक ऐसा विषय, जिस पर पूरा प्रदेश कराह रहा है...(व्यवधान)...
अध्यक्ष महोदय -- इस पर टिप्पणी नहीं होगी. ...(व्यवधान)... नहीं, नहीं, यह प्रश्न से उद्भुत कोई प्रश्न नहीं था. आप जैसा विद्वान नेता प्रतिपक्ष अगर ये चीजें पकड़कर चलेगा. सदन की गरिमा कहां जाएगी. ...(व्यवधान)...
श्री गोपाल भार्गव -- अध्यक्ष महोदय, वर्षों से अवैध उत्खनन... ...(व्यवधान)...
अध्यक्ष महोदय -- प्रश्न से कौन सी चीज उद्भुत हो रही है ? माननीय सदस्य भी चार-पांच के विधायक हैं. कम से कम सोचें हम क्या परोस रहे हैं ? क्या हम प्रश्नकाल को प्रश्नकाल जैसा चलने दें या नए विधायकों के प्रश्नों की आहूति चढ़ जाने दें ? यह आप तय कर लें, मुझे कोई दिक्कत नहीं है. ...(व्यवधान)...
श्री गोपाल भार्गव -- अध्यक्ष जी, आप बता दें कि क्या पूछें तो हम वैसा करने लगेंगे.
अध्यक्ष महोदय -- प्रश्न से उद्भुत प्रश्न पूछें.
श्री गोपाल भार्गव -- वही तो अध्यक्ष महोदय. ...(व्यवधान)...
अध्यक्ष महोदय -- अभी प्रश्न विधायक का है, मूल प्रश्नकर्ता को प्रश्न पूछने दीजिए.
श्री सोहनलाल बाल्मीक -- अध्यक्ष महोदय, प्रतिपक्ष के नेता जी द्वारा हर प्रश्न पर सवाल किया जा रहा है. ...(व्यवधान)...
अध्यक्ष महोदय -- आप भी बैठ जाइये. ...(व्यवधान)... मूल प्रश्नकर्ता को प्रश्न पूछने दीजिए.
श्री सोहनलाल बाल्मीक -- अध्यक्ष महोदय, सदन का समय खराब हो रहा है, यह प्रश्नकाल का समय है, बार-बार एक ही प्रश्न को दोहराते रहते हैं, यह गलत परम्परा है. ...(व्यवधान)...
श्री गोपाल भार्गव -- यह तो खैर ठीक है, अध्यक्ष महोदय, यह रीवा से संबंधित है. इस विषय पर स्थगन और ध्यान आकर्षण की बहुत सी सूचनाएं आई हैं, उत्खनन के ऊपर और पर्यावरण प्रदूषण के ऊपर भी...
अध्यक्ष महोदय -- गोपाल जी, यह विषय कहां उद्भूत हो रहा है ?
श्री गोपाल भार्गव -- आप किसी भी माध्यम से इसको ले लें. ...(व्यवधान)...
अध्यक्ष महोदय -- यह प्रश्न कहां उद्भूत हो रहा है ?
श्री गोपाल भार्गव -- उसमें इनका भी आ जाएगा.
अध्यक्ष महोदय -- यह प्रश्न कहां उद्भूत हो रहा है ? आपसे मेरी प्रार्थना है कि हम विषय से न भटकें, और भी समय होते हैं तब आप ये प्रश्न कर सकते हैं. मेरा वही कहना है और भी विषय हैं, नियम हैं, प्रक्रियाएं हैं कि कब कौन सा विषय उठे ? आठवीं बार के विजेता विधायक जी, आप परिपक्व हैं.
नागेन्द्र जी, आपने इस सदन के 10 मिनट के बहुमूल्य क्षण गवां दिए. कितनी राशि खर्च हुई होगी इन प्रश्नों के उत्तर आने में, क्या कभी हम इस पर भी ध्यान देंगे. मेहरबानी करके जो प्रश्न से उद्भुत प्रश्न हैं, वही पूछें.
श्री नागेन्द्र सिंह (गुढ़) -- अध्यक्ष महोदय, एक प्रश्न कर लूं, आपने अनुमति दी है.
अध्यक्ष महोदय -- पूछिए.
श्री नागेन्द्र सिंह (गुढ़) -- अध्यक्ष महोदय, मैंने प्रश्न पूछा है कि वहां क्रेशर चल रहे हैं, मंत्री जी के उत्तर में आया है कि वहां भण्डारण के लिए लाइसेंस मिले हैं. मेरा कहना है कि भण्डारण जो हो रहा है, वह अपनी जगह ठीक है, लेकिन उसकी भी रॉयल्टी जमा है कि नहीं? उसके भी ट्रांजिट परमिट हैं कि नहीं ? कहां से कितना भण्डारण हो रहा है ? यह कुछ भी जवाब में नहीं आया है. मूल प्रश्न यह है कि जो क्रेशर चल रहे हैं और जिससे यह प्रदूषण फैल रहा है उसमें क्या प्रदूषण बोर्ड की अनापत्ति लगी है, यह जांच करवाने का विषय है ? मेरा आरोप है कि वहां प्रदूषण विभाग ने किसी तरह के कोई लाइसेंस नहीं दिए हैं, कोई अनुमति नहीं दी है, प्रदूषण विभाग के कर्मचारी मिले हुए हैं, अवैध क्रेशर चल रहे हैं. माननीय मंत्री महोदय, क्या इसकी जांच राजस्व विभाग के अधिकारियों से करवाने की कृपा करेंगे ? और समय-सीमा भी बता दें ?
श्री प्रदीप अमृतलाल जायसवाल (गुड्डा) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, हमारे माननीय सदस्य और मैं तो कहूँगा कि सामने बैठा जो विपक्ष है, ये पर्यावरण के मामले में कितना गंभीर है, और खनिज के मामले में कितना गंभीर है, आपने अभी देखा कि 10-12 मिनट खराब हुए. कहां पर्यावरण की चिंता कर रहे हैं और कहां ट्रांसफर के सीजन में चले गए. यही कारण है कि पिछले 15 सालों में खनिज विभाग का जो कुछ हुआ है, आज भाजपा की सरकार अवैध उत्खनन का पर्याय बन गई है. माननीय नेता प्रतिपक्ष जी बैठे हुए हैं, पिछली बार पिछले सत्र में इन्होंने स्वीकार किया था कि हमारी सरकार कोई भी खनिज नीति बनाने में असफल रही. इस बात को उन्होंने स्वीकार किया है. आज का प्रश्न उठाने का जो तरीका है, वह भी बताता है कि भाजपा सरकार पिछले 15 सालों में कितनी गंभीर रही है. उसके बावजूद मैं माननीय सदस्य को बताना चाहता हूँ कि जो चिंता आपने पर्यावरण के लिए की है क्रेशर लगाने की, हालांकि खनिज विभाग की अनुमति की आवश्यकता नहीं पड़ती. हम उसको भण्डारण की अनुमति देते हैं, उसके बाद वह उसको गिट्टी बनाता है, क्या बनाता है क्रेशर लगाने के लिए उसको प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से .....
अध्यक्ष महोदय -- प्रश्नकाल समाप्त.
(प्रश्नकाल समाप्त)
डॉ. नरोत्तम मिश्र -- शून्यकाल में...
अध्यक्ष महोदय -- मैं आपको मौका दूंगा, विराजिए, मैं आपको मौका दूंगा. ...(व्यवधान)...
डॉ. सीतासरन शर्मा -- अध्यक्ष महोदय, उनका उत्तर तो आने दीजिए.
अध्यक्ष महोदय -- 12 बज गए हैं. आप लोगों ने समय जाया कर दिया.
डॉ.सीतासरन शर्मा -- अध्यक्ष महोदय, उनका उत्तर तो आना चाहिए.
अध्यक्ष महोदय - हो गया है शर्मा जी. आप भी विराजे हैं यहां पर.12 बजने पर प्रश्न काल समाप्त हो जाता है.
डॉ. सीतासरन शर्मा -- अध्यक्ष महोदय, मैं बैठ जाऊंगा. ठीक है प्रश्नकाल समाप्त हो गया है, पर जो प्रश्न चल रहा है उसे पूरा होना चाहिए.
अध्यक्ष महोदय -- मैं अभी बोलने दूंगा. (कई माननीय सदस्यों के अपने स्थान पर एक साथ खडे़ होने पर)
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव) -- माननीय अध्यक्ष जी.
अध्यक्ष महोदय -- माननीय संसदीय मंत्री जी, माननीय लखन घनघोरिया जी, माननीय सुरेन्द्र सिंह "शेरा जी", माननीय डंग जी, ये तरीका नहीं है. ये तरीका बिल्कुल गलत है. अधिकारी अपने बेंच पर बैठें. (अधिकारी दीर्घा से माननीय मंत्रियों और माननीय सदस्यों के बीच आपसी बातचीत होने पर) अपनी-अपनी जगह पर बैंठे. शून्यकाल का मतलब यह नहीं है कि सब शून्य हो गया हो. शून्यकाल का मतलब जब 12 पर दो कांटे आते हैं माननीय नरोत्तम जी, तो शून्य हो जाता है. सब यह समझ बैठते हैं कि शून्य हो गया, ऐसा नहीं है. अब आप सभी विराजिए. मुझे आगे अपनी कार्यवाही करने दीजिए.
12.01 बजे नियम 267-क के अधीन विषय
12.03 बजे शून्यकाल में मौखिक उल्लेख एवं अध्यक्षीय व्यवस्था
श्रीमती रामबाई गोविन्द सिंह (पथरिया) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे अनुमति चाहती हॅूं. मैं आपके समक्ष अपनी बात रखना चाहती हॅूं. हमारे दमोह जिले में एक चौरसिया परिवार के साथ एक बहुत गंभीर घटना हुयी थी और उसमें हमारे निर्दोष परिवार को फंसाया गया. आपकी सरकार में मैं शामिल हॅूं, इसके बावजूद भी मुझे कोई न्याय नहीं मिला.(विपक्ष द्वारा शेम-शेम) मेरे परिवार के 28 लोगों सहित जेल में बंद कर दिया गया. एक विधायक होने के नाते जब मुझे न्याय नहीं मिला, तो आम जनता के लिये क्या न्याय मिलेगा ? (शेम-शेम)
अध्यक्ष महोदय -- माननीय गोपाल भार्गव जी.
डॉ.नरोत्तम मिश्र (दतिया) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, सदन के माननीय सदस्य का विषय है. इसमें आपकी व्यवस्था आनी चाहिए. वे सम्मानित सदस्य हैं. उनके परिवार के 28 लोग जेल में हैं. कोई तो व्यवस्था आपकी ओर से आना चाहिए. आपने अनुमति दी है, तब ही माननीय सदस्या ने अपनी बात रखी है.
अध्यक्ष महोदय -- (माननीय सदस्य श्री संजीव सिंह "संजू" के खडे़ होने पर) संजू भाई, आप बैठ जाइए. माननीय नरोत्तम जी, आपने व्यवस्था की बात की है. जब मैटर सब-ज्यूडिशियस होता है तो चर्चा होती है, नहीं होती है. मैटर इज़ सब-ज्यूडिशियस. माननीय सदस्या, आप भी विराजिए.
डॉ.नरोत्तम मिश्र -- माननीय अध्यक्ष जी, मैं सब-ज्यूडिशियस मैटर की बात नहीं कर रहा. मैं सम्मानीय सदस्य श्रीमती रामबाई सिंह जी की बात कर रहा हॅूं.
अध्यक्ष महोदय -- मैंने सुन लिया है. अब अगली बात करें.
श्रीमती रामबाई गोविन्द सिंह -- माननीय अध्यक्ष जी, अगर मेरी बात अनसुनी कर दी जाएगी, तो हम लोग न्याय मांगने के लिए कहां जाएंगे ?
अध्यक्ष महोदय -- मैंने सुन लिया है. व्यवस्था मांगी, व्यवस्था दे दी. अब आगे बढ़ जाएं.
श्रीमती रामबाई गोविन्द सिंह -- माननीय अध्यक्ष जी, यदि आपके बस का नहीं है, तो मुझे सीबीआई जॉंच कराने के निर्देश दीजिए. सीबीआई जॉच में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा, पर मुझे न्याय दीजिए. अगर मुझे न्याय नहीं मिलेगा, तो मैं कहां जाऊंगी.
अध्यक्ष महोदय - आप मंत्री जी से बात कर लीजिये.
श्री संजीव सिंह ''संजू'' - अध्यक्ष महोदय, यह आपको व्यवस्था देनी है. यह बहुत ही गंभीर विषय है. सदस्य के परिवार को गलत फंसाया गया है.
अध्यक्ष महोदय - नहीं, संजय भाई ऐसी व्यवस्था नहीं होती है. शून्यकाल में सूचनाएं पढ़ी जाती हैं. इसमें प्रश्नोत्तर नहीं होता है.
श्रीमती रामबाई गोविन्द सिंह - अध्यक्ष महोदय, आप सी.बी.आई. जांच की परमीशन दीजिये.
अध्यक्ष महोदय - अरे भाई, यह प्रश्नकाल थोड़े ही है. आप नई विधायक हैं. आप भी नये हैं. कम से कम नियम प्रक्रिया के तहत बात करिये.
श्रीमती रामबाई गोविन्द सिंह - अध्यक्ष महोदय, अगर विधायक द्वारा शून्यकाल में कोई बात रखी जायेगी, मैं मजबूरी में थी, मैं आपके यहां क्वेशचन नहीं लगा पाई.
अध्यक्ष महोदय - आसंदी ऐसे निर्देश जारी नहीं करती है. आप समझने की कोशिश करिये. मैटर सबज्यूडिश है. इस पर मैं चर्चा की परमीशन भी नहीं दे सकता.
श्रीमती रामबाई गोविन्द सिंह - अध्यक्ष महोदय, तो क्या आप सिर्फ फंसाने में बिलीव रखते हैं ? 28-28 लोगों फंसा सकते हैं.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया - अध्यक्ष महोदय, शून्यकाल की मेरी सूचना है.
अध्यक्ष महोदय - मैं, आपसे बोल रहा था. आप बोलना नहीं चाह रहे थे. आपको मैंने बुलाया था. आप दूसरे में उलझ गये. चलिये, बोलिये.
डॉ. नरोत्तम मिश्र (दतिया) - अध्यक्ष महोदय, मेरी आपसे एक प्रार्थना है. आप महामना है, यह सम्मानित मीडिया वालों की बात कर रहा था, मीडिया से जुड़े जो हमारे पत्रकार बंधु हैं कल वह घटना भी घटी है. अपने पास मार्शल हैं, अपनी व्यवस्था है, उसके बाद बाहर की पुलिस आकर अगर ट्रीट करती है और दूसरा हम लोगों की बात समाज के अंदर जाने का, प्रजातंत्र के अंदर वह भी प्रजातंत्र का एक स्तम्भ है और इस पर आप स्वयं संज्ञान लेकर मार्ग निकालें.
अध्यक्ष महोदय - इसको मैं देखूंगा.
श्री गोपाल भार्गव - अध्यक्ष महोदय, यह भी 2-3 दिन से बड़ा मथ रहा है. पूरे परिसर में जो मीडियाकर्मी हैं, कुछ आप ऐसी व्यवस्था दे दें जिसमें उनका मान-सम्मान भी बना रहे और हम लोगों की..
अध्यक्ष महोदय - मैं कुछ बोल दूं ? अभी तक मुझे 30-32 साल हो गये, प्रिंट मीडिया पुराने विधान सभा भवन में बैठती थी. एक कमरा था, मंत्री, विधायक, मुख्यमंत्री वहीं कमरे में जाकर अपने स्टेटमेंट देते थे. यह आपने भी मिंटो हॉल में देखा है. ठीक है न. मैंने विधिवत् प्रिंट मीडिया को एक कमरा दे दिया है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को नीचे दे दिया है. व्यवस्थित कर दिया है. पहले प्रेस की एक सूची बनती थी. समिति बनती थी. चूंकि जब मिंटो हॉल था या प्रिंट मीडिया था उस समय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नहीं आया था. मैं, यह सब बातें संज्ञान करके आप लोगों से कमरे में भी चर्चा करता हूं. यह तो आज आपने यहां छेड़ दी है अन्यथा बात यह है कि हमको दोनों मीडिया के अलग-अलग व्यवस्थापन करने पड़ेंगे. अलग-अलग समिति बनाना पड़ेंगी ऐसा मैं सोचकर चलता हूं. जब वह समितियां बनेंगी, नई-नई चीज है, मैं नहीं चाहता कि आप हॉल में से निकलें, जो संस्था विधायकों के लिये है वह धक्के खाएं, मंत्री धक्के खाएं, अच्छा प्रतीत नहीं होता है. व्यवस्थाएं सबको बनाना चाहिये. व्यवस्थाएं पहले स्तम्भ की भी हैं, दूसरे स्तम्भ की भी हैं, तीसरे स्तम्भ की हैं, चौथे स्तम्भ की हैं. सब एकदूसरे के पूरक हैं. यह मैं मानकर चलता हूं. धीरज रखिये. धीरे-धीरे सब व्यवस्थाएं होंगी. नई व्यवस्था में कुछ त्रुटियां होती हैं, कुछ खामियां होती हैं, आपके जो सुझाव आयेंगे उनको मैं लूंगा, ग्राह्य करूंगा और तद्नुसार कार्यवाही करूंगा.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - अध्यक्ष महोदय, आपने जो कहा उससे हम हंड्रेड परसेंट सहमत हैं. सिर्फ सुझाव इतना सा है कि जैसे आपने दो अलग-अलग कर दिया, सवाल एक ही होंगे दोनों के, जवाब दो जगह होंगे, प्रिंट में अलग जाना पड़ेगा, इलेक्ट्रॉनिक में अलग जाना पड़ेगा. एक दूसरा स्थान जो नीचे हो गया वह अगर ऊपर हो जाये, जहां पर उनकी नज़र पड़े, तो वह अपनी सुविधा से जिसकी बाईट लेना चाहते हों, जिसकी न लेना चाहते हों.
अध्यक्ष महोदय - फिर धक्का-मुक्की होगी. वह वहीं जायेंगे न.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - अध्यक्ष महोदय, एक उनका प्रतिनिध मंडल बुलाकर मार्ग निकाल लें.
अध्यक्ष महोदय - मैं बात कर चुका हूं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - अध्यक्ष महोदय, एक बार और आप विपक्ष के साथ में बात कर लीजिये.
श्री गोपाल भार्गव - अध्यक्ष महोदय, आपकी विधान सभा की जो सलाहकार समिति है..
अध्यक्ष महोदय - जब वह बनेगी, फिर मैं उनसे सलाह लेकर विश्वास में लेकर कार्य करूंगा.
श्री गोपाल भार्गव - इसी सत्र में गठित हो जाये तो ठीक होगा.
अध्यक्ष महोदय - इतनी जल्दी नहीं हो पायेगी. क्योंकि व्यवस्थाओं में समय लगेगा, लेकिन कर दूंगा. आप यह मानकर चलिये, मैं कर दूंगा.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया(मंदसौर)-- माननीय अध्यक्ष जी, मेरा एक शून्यकाल...
अध्यक्ष महोदय-- आप इतने बोलते हों, आपके मुँह में दर्द नहीं होता?
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया-- माननीय अध्यक्ष महोदय, आज की कार्य सूची में “पत्रों का पटल पर रखा जाना” में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय को लेकर के उल्लेख है. अध्यक्ष महोदय, धारा 52 के अंतर्गत देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलपति जी को हटा तो दिया. लेकिन 16 हजार छात्रों के परिणाम अटक गए हैं. 2 हजार डिग्रीधारी, कुलपति के दस्तखत के लिए भटक रहे हैं. उस पर भी कृपा करके निर्णय करवाएँ.
नेता प्रतिपक्ष(श्री गोपाल भार्गव)-- (माननीय मंत्रियों के पास माननीय विधायकों के खड़े हो जाने पर) माननीय अध्यक्ष महोदय, ये भीड़ खत्म करवा दें, जिस तरह की अफरा-तफरी है, इनको बता दें कि यह विधान सभा है, यह वल्लभ भवन नहीं है. जैसा वल्लभ भवन में आजकल चल रहा है.
12.12 बजे
पत्रों का पटल पर रखा जाना.
(i) देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर का वार्षिक प्रतिवेदन वर्ष 2017-2018,
(ii) विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन का 61 वां वार्षिक प्रतिवेदन वर्ष 2017-2018 एवं
(ख) महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन का वार्षिक प्रतिवेदन वर्ष 2017-2018.
12.13 बजे
ध्यान आकर्षण.
(1) जबलपुर के बरेला से मण्डला राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण कार्य अपूर्ण होना.
डॉ. अशोक मर्सकोले(निवास)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर मेरी ध्यानाकर्षण सूचना का विषय इस प्रकार है-
जबलपुर जिले के बरेला से मणडला राष्ट्रीय राजमार्ग जो 2015 से स्वीकृत होकर 2017 में पूर्ण होना था, परन्तु आज दिनाँक तक दो बार (एक्सटेन्शन) समय वृद्धि के बाद भी उक्त राजमार्ग अधूरा है, जिससे दुर्घटनाओं से कई मौतें हो रही हैं तथा रोड के आसपास रहने वाले ग्रामीणों को कई प्रकार की बीमारियाँ हो रही हैं तथा धूल, मिट्टी, कीचड़ से उनके घरों में प्रदूषण फैल रहा है. इस मार्ग से आए दिन यात्रा करने वाले यात्री/मरीजों को जबलपुर पहुँचने में चार-पाँच घंटे लग जाते हैं जिससे कई मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. बरसात में जगह-जगह गड्डे होने के कारण कई घंटों तक जाम लगा रहता है. लोगों को 40 किलोमीटर का अतिरिक्त सफर कर निवास होते जबलपुर जाना पड़ रहा है. उपरोक्त राजमार्ग का निर्माण तथा मरम्मत कार्य अधूरा होने से जनता में भारी आक्रोश व्याप्त है.
लोक निर्माण मंत्री (श्री सज्जन सिंह वर्मा)--माननीय अध्यक्ष महोदय,
डॉ. अशोक मर्सकोले-- अध्यक्ष महोदय, जैसा कि अनुबंध में था दिनांक 6.6.2017 तक इस कार्य को पूर्ण होना था, अभी मंत्री जी ने जानकारी दी है कि उसका 58 प्रतिशत कार्य पूर्ण हुआ है. दो साल से ज्यादा विलम्ब हो गया है. जहां तक दुर्घटनाओं की बात है उसको इस रुट में नामित नहीं किया गया है लेकिन वास्तव में उसकी वजह से हजारों लोगों की जानें गई हैं या अपंग हो गए हैं. इसके अलावा धन की हानि हो रही है, वाहनों को इस सड़क के गड्ढों के कारण नुकसान हो रहा है. यह हमारे क्षेत्र के लिए बहुत ही संवेदनशील विषय है. मरीजों को ले जाने के लिए यही एकमात्र व्यवस्था है. इस रास्ते से जाने में कई मरीजों ने रास्ते में दम तोड़ दिया है. इस काम के लिए निर्धारित दो साल पूरे होने के बाद अतिरिक्त समय देने के बाद भी इस काम को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है. अब दिनांक 31.12.2019 तक का समय दिया गया है. जो काम दो साल में पूरा नहीं हुआ उसे हम कैसे मान लें कि अब वह दिनांक 31.12.2019 तक पूरा हो जाएगा. यह जो जीडीसीएल कम्पनी है इस कम्पनी ने अपना काम पेटी कांट्रेक्टर को दे दिया है, यह कम्पनी खुद काम नहीं कर रही है. क्या ऐसी कम्पनी के ऊपर एक्शन नहीं लिया जाना चाहिए, क्या उसका लायसेंस रद्द नहीं किया जाना चाहिए. इस कम्पनी को ब्लैक लिस्ट क्यों नहीं किया जाता है.
वित्त मंत्री (श्री तरुण भनोत) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, यदि आप अनुमति दें तो मैं कुछ कहना चाहूंगा. माननीय सदस्य जो बात उठा रहे हैं यह बहुत महत्वपूर्ण है. मैं मण्डला जिले का प्रभारी मंत्री हूं यह आदिवासी जिला है और जबलपुर को कान्हा से जोड़ता है और मध्यप्रदेश में पर्यटन का एक मुख्य केन्द्र है. पिछले ढाई वर्षों से लगातार यह सड़क बन रही है और बहुत बार मैंने यह प्रयास किया है परंतु इसमें यह बात आ जाती है कि यह केन्द्र सरकार के अधीन है. यह सड़क दो वर्ष पूर्व पूरी हो जानी चाहिए थी. मेरा यह अनुरोध है कि केन्द्र सरकार से संबंधित जो विभाग सड़क का संचालन कर रहे हैं, देख रहे हैं हमारे माननीय मंत्री जी भी यहां उपस्थित हैं. एक ऐसी समय सीमा निश्चित की जाए कि माह, दो माह के अंदर वह सड़क पूरी हो जाए और अगर यह लगातार चेतावनी के बाद भी काम नहीं कर पा रहे हैं तो एजेंसी बदल दें जो कि मैंने प्रयास भी किया था चूंकि वह मध्यप्रदेश सरकार के अधीन भी नहीं है इसलिए हम यह निर्णय नहीं ले सकते हैं. इसको दिल्ली तक ले जाकर बात की जानी चाहिए और वह मार्ग जल्द ही बनना चाहिए. हमारे आदिवासी भाई बहनों के लिए जबलपुर आने का एक मात्र रास्ता मण्डला से है. यह मार्ग छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश को जोड़ता है, रायपुर और जबलपुर को जोड़ता है और यह मार्ग कान्हा को भी जोड़ता है. लगातार चार वर्षों में अगर आप आंकड़े देखेंगे तो कान्हा के पर्यटन में भी बहुत कमी आई है.
श्री सज्जन सिंह वर्मा-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने अपने उत्तर में यह स्वीकार किया है कि यह कार्य दिनांक 09.06.2017 को पूर्ण हो जाना था. कॉन्ट्रेक्टर ने केन्द्रीय मंत्रालय से समयावृद्धि की मांग की जिसे केन्द्र सरकार ने मान लिया. समय घटाना, बढ़ाना, दण्ड देना यह सब कुछ हमारे हाथ में नहीं है. उसे दिनांक 14.07.2018 तक की स्वीकृति मिल गई लेकिन फिर भी काम पूरा नहीं हुआ. कॉन्ट्रेक्टर ने दिनांक 31.12.2019 तक दोबारा केन्दीय मंत्रालय से द्वितीय समयावृद्धि की स्वीकृति मांगी. दिनांक 21.06.2019 को प्रस्ताव भारत सरकार को प्रेषित किया यह सारी स्वीकृतियां टर्मिनेशन, दण्ड यह सारा केन्द्रीय मंत्रालय का है. मैं एक और बात आपकी जानकारी में लाना चाहता हूं. जैसा कि प्रभारी मंत्री जी ने कहा वहां पर जो वर्तमान सासंद श्री फग्गन सिंह कुलस्ते जी हैं, वह इस समय केन्द्रीय मंत्री हैं. हमारे अधिकारियों ने बार- बार उनके साथ बैठक की इस प्रकरण का अपडेट किया, रोजमर्रा की कार्यवाही से उन्हें अवगत कराया. हम चाहते थे कि चूंकि वह केन्द्रीय मंत्री हैं और यह सारा मामला केन्द्रीय मंत्रालय का है तो जल्द ही इसमें कुछ हमारे प्रस्ताव अनुसार आदेश मिल जाएंगे लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अभी तक क्योंकि मैंने खुद दिनांक 14, फरवरी को मेरे अधिकारियों को लेकर गडकरी साहब के साथ बैठक की, तमाम सारे प्रस्ताव हुए बात-चीत हुई. अभी दिनांक 1, जुलाई को मैंने, हमारे माननीय मुख्यमंत्री जी, ने हमारे सारे वरिष्ठ अधिकारियों ने फिर गडकरी साहब से उनके मंत्रालय में ढाई घंटे बैठक की खासकर इस सड़क के बारे में हमने विशेष अनुरोध किया कि इसे टर्मिनेट कर दिया जाए क्योंकि वहां की जनता वास्तव में बहुत दुखी है इसके साथ-साथ हमारे भी दुख का एक विषय भी है जिस तरह यह सड़क एक तरह से हमारे माथे पर कलंक है उस तरह से केन्द्र सरकार की तमाम सारी सड़कें इस मध्यप्रदेश में और हैं जहां गड्ढ़े हो रहे हैं . हमे पैसा मिलता नहीं है लेकिन लोग समझते हैं कि पी.डब्ल्यू.डी. मतलब सड़क मध्यप्रदेश सरकार की है. वह कलंक भी हमको झेलना पड़ता है तो हमारी कोशिश है, हमने केन्द्र सरकार से अनुग्रह किया है कि जल्द ही अनुमति मिल जाए तो हम टर्मिनेट करें या वह जो भी दण्ड प्रस्तावित करते हैं हम तो डाकिये की तरह प्रेषित कर देंगे.
श्री तरुण भनोत-- अध्यक्ष महोदय, मेरा निवेदन है कि इसमें नेता प्रतिपक्ष महोदय की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है. आप केन्द्रीय मंत्री आदरणीय श्री कुलस्ते साहब से और आदरणीय गडकरी जी से यह सड़क हम जल्दी बनवा लेंगे तो मध्यप्रदेश के लिए बहुत अच्छा हो जाएगा और उस जिले के लोगों के लिए भी अच्छा हो जाएगा.
श्री गोपाल भार्गव- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं इस प्रकरण में गडकरी जी से अवश्य बात करूंगा लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि सत्तापक्ष के लोगों को बाहर नहीं तो कम से कम अंतर्मन से यह स्वीकार करना चाहिए कि गडकरी जी ने जितना काम पिछले 5 वर्षों मे राष्ट्रीय राजमार्गों और सी.आर.एफ. के लिए किया है उतना पहले कभी नहीं हुआ है. क्योंकि मेरे पास आर.आर.डी.ए. (ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण) भी था इसलिए मैं स्वयं कई बैठकों में भी गया हूं. गडकरी जी ने स्वयं बैंकर्स, कॉन्ट्रैक्टर्स को बुलाकर सारा नेगोसिएशन अपने सामने करवाकर, कई रूके हुए कामों पर व्यक्तिगत रूप से रूचि लेकर उन्हें करवाया है. इस काम के लिए भी मैं उनसे बात करूंगा. मंत्री जी चाहें तो साथ चलें, मैं उनके साथ चलने को तैयार हूं.
श्री सज्जन सिंह वर्मा- माननीय अध्यक्ष महोदय, जब माननीय कमलनाथ जी जो कि हमारे मुख्यमंत्री हैं, इस विभाग के केंद्र सरकार में मंत्री हुआ करते थे, गोपाल भइया, आप रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिये कि जितनी राशि उन्होंने मध्यप्रदेश को दी है, ऑन रिकॉर्ड मैं यह बात इस विधान सभा में खड़े होकर बोल रहा हूं आज तक उतनी राशि किसी भी मंत्री ने मध्यप्रदेश को नहीं दी है. (मेजों की थपथपाहट)
श्री गोपाल भार्गव- सज्जन भइया, आप रिकॉर्ड उठाकर यह भी देख लीजिये कि 50 प्रतिशत से अधिक राशि केवल छिन्दवाड़ा के लिए दी गई है. यदि नहीं दी गई हो तो सज्ज्न भइया, आप मुझे बताना. मेरे पास भी सारे आंकड़े हैं.
श्री जालम सिंह पटेल (मुन्ना भैया)- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं मंत्री जी से निवेदन करना चाहूंगा कि उस ठेकेदार को केंद्र द्वारा बार-बार समय क्यों दिया जा रहा है ? क्या कोई कारण है ? वन विभाग से अनुमति लेनी हो या कुछ विशेष कारण हो, क्यों बार-बार समय दिया जा रहा है और क्यों विलंब हो रहा है ? इसे दिखवा लिया जाये उसके बाद हम बात करेंगे.
डॉ. अशोक मर्सकोले- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा केवल इतना अनुरोध है कि यदि जब तक वह सड़क नहीं बन जाती तब तक कम से कम कंपनी की गाड़ी वहां रहे. वहां 5-6 घण्टे के जाम की स्थिति सदैव बनी रहती है. सड़क पर जाम न हो ऐसी व्यवस्था कम से कम कंपनी की गाड़ी द्वारा बनाई जाये और इसके साथ ही साथ इस सड़क पर विशेष ध्यान देते हुए सड़क का निर्माण एवं मरम्मत कार्य हो. धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय- मर्सकोले जी, विराजिए. प्रश्न वहीं पर आकर रूकता है.
श्री नारायण सिंह पट्टा- XXX
अध्यक्ष महोदय- पट्टा जी, आप बैठ जाईये. मैं कुछ अलाऊ नहीं करूंगा. ये जो बोल रहे हैं उसे न लिखा जाये.
श्री नारायण सिंह पट्टा- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न इसी से उद्भूत होता है. मुझे आपका संरक्षण चाहिए, मेरा निवेदन यह है कि जब सड़क खराब है तो फिर वहां टोल-टैक्स क्यों लिया जा रहा है ? उसे बंद किया जाना चाहिए.
अध्यक्ष महोदय- पट्टा जी, आप कृपया मेरी बात तो सुनें. आप लोगों के साथ बड़ी मुश्किल है. मैं आप लोगों की बात सुनता हूं, आप सभी मेरी बात भी सुनें. सदन के सम्मुख प्रश्न यह है कि ऐसी सड़के जिससे प्रदेश के पर्यटन और आदिवासी क्षेत्र प्रभावित होते हैं, सदन ऐसा कौन-सा निचोड़ निकालकर लाये जिससे ऐसे विकास के कार्य न रूक पायें. मैं यह विषय आप सभी पर छोड़ता हूं. 17 जुलाई 2019 को मैं पुन: 5 मिनट विशेष रूप से इसका उल्लेख करूंगा आप सभी इस समस्या के समाधान के लिए निचोड़ दीजिये ताकि प्रदेश का विकास न रूके...(मेजों की थपथपाहट)... माननीय मंत्री जी, वहां की सड़क खराब है अगर वहां टोल-टैक्स जारी है तो उसे बंद करवाया जाये. श्री उमाकांत शर्मा जी.
(2) प्रदेश के स्कूलों में अनफिट बसों का संचालन होने से उत्पन्न स्थिति
श्री उमाकांत शर्मा (सिरोंज) :- अध्यक्ष महोदय, मेरी ध्यानाकर्षण की सूचना का विषय इस प्रकार है-
श्री उमाकांत शर्मा:- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से मंत्री से पूछना चाहता हूं कि पिछले पांच सालों में, तब से लेकर आज कितनी स्कूली बसों की दुर्घटनाएं हुईं और उसमें कितने छात्र मारे गये, कृपया मंत्री जी इसकी जानकारी देने का कष्ट करें. उनमें से कितने में सुप्रीम कोर्ट की गाईड लाईन का उल्लंघन पाया गया और ऐसी कितनी बसों को राज-सात किया गया तथा उन्हें प्रतिबंधित कर कार्यवाही की गयी, उनकी संख्या क्या है ?
अध्यक्ष महोदय:- शर्मा जी, धीरे-धीरे अपने को कथा का एक-एक पाठ पढ़ना है, विराजिये.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत:- अध्यक्ष महोदय, मैं शर्मा जी का धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने बहुत अच्छा ध्यानाकर्षण लगाया है. बच्चों के प्रति और उनकी माताओं के प्रति आपकी जागरूकता दर्शाता है.
श्री उमाकांत शर्मा:- धन्यवाद.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत :- अध्यक्ष महोदय, मैं अपने कार्यकाल की बता देता हूं.
श्री उमाकांत शर्मा:- शेष आप पटल पर रख दीजिये ?
श्री गोविन्द सिंह राजपूत:- हां, पटल पर रख देगें. अध्यक्ष महोदय, कुल वाहन चेक किये गये 15 हजार, स्कूल बसे चेक की गईं 10 हजार 200, स्कूल बसों की फिटनेस जो है वह निरस्त की गईं 115 अध्यक्ष महोदय, इसके आगे सदस्य महोदय की जिज्ञासा को खत्म कर देता हूं. सी.सी.टी.व्ही.केमरे जिनमें नहीं पाये गये उनका चालान किया गया है 199. जहां पर जी.पी.एस.सिस्टम नहीं लगे पाये गये उनका चालान किया 201, ओव्हर लोडिंग के विरूद्ध चालान किये गये 356, एस.एल.डी.न लगे होने पर हमारे विभाग ने चालान किये गये 213.
श्री उमाकांत शर्मा--अध्यक्ष महोदय, क्या स्कूल बसों की बढ़ती हुई दुर्घटनाओं को देखकर पता चलता है कि उसमें कई छात्र-छात्राएं काल-कवलित हो जाते हैं. दुर्घटनाएं भिन्न-भिन्न समय पर हुई हैं उससे उनके अभिभावकों को कितना दुःख होता है जिनके बच्चे असमय उनकी नजरों के सामने दुर्घटनावश परलोक चले जाते हैं. मैं यह पूछना चाहता हूं कि क्या ऐसी कोई उच्चस्तरीय समिति का आप गठन विभाग में करेंगे जिससे तीन महीने के अंदर स्कूली वाहनों की समीक्षा हो सके कि वह सुप्रीम-कोर्ट की गाईड-लाईन का पालन कर रहे हैं या नहीं कर रहे हैं ? क्या इसमें विधायकों की समिति बनाकर ऐसी कोई जांच आकस्मिक वर्ष में कम से कम दो तीन बार करवाएंगे क्या ?
श्री गोविन्द सिंह राजपूत--अध्यक्ष महोदय, मैंने इस मंत्रालय का भार लेने के बाद मैंने 22 फरवरी 2019 सुबह साढ़े छः बजे उठकर स्कूल बसों तथा स्कूल वेन की स्वयं मैंने अपने अधिकारियों के साथ चेकिंग की. जिन वाहनों ने चाहे स्कूल के हों या कालेज के हो, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट की गाईड लाईन को पूर्ण नहीं किया, उनके हमने चालान कराये, उनको नोटिस दिये तथा बहुत सारी गाड़ियां हमने बंद कीं. सदस्य की जिज्ञासा के लिये आप कहें तो सुप्रीम कोर्ट की गाईड लाईन को पढ़ देता हूं ताकि आप भी सुन ले कि भविष्य में भी हम सब के लिये बहुत जरूरी है कि ताकि आप सब तथा प्रदेश के जिम्मेदार नागरिक हैं उसमें स्कूल की बस हो, स्कूल वेन हो, उस पर अपनी निगाह रखें. सुप्रीम कोर्ट की गाईड लाईन मैं पढ़ देता हूं. स्कूल बस पीले रंग से रंगा होना चाहिये. बसों पर स्कूल बस लिखा होना चाहिये. बस में निर्धारित संख्या से अधिक बच्चे न बिठाये जायें. बस में फर्स्ट एड बॉक्स लगा होना चाहिये, बस की खिड़कियों में ग्रिल लगी होनी चाहिये, बस में अग्निशामक यंत्र लगे होने चाहिये, बस में स्कूल का नाम एवं टेलिफोन नंबर लिखा होना चाहिये, बसों के दरवाजों पर चटकनी लगी होनी चाहिये, बसों में योग्य परिचालक होना अनिवार्य है, सुरक्षा हेतु बस में बच्चों की माता पिता अथवा एक टीचर बस में यात्रा करे. वाहन चालक को भारी वाहन चलाने का न्यूनतम पांच वर्ष का अनुभव होना चाहिये. यदि कोई ड्राईवर एक वर्ष में दो से अधिक यातायात नियमों का उल्लंघन करता है उसे ड्राईवर पद पर नहीं रखा जाना चाहिये. यदि कोई ड्राईवर वर्ष में एक बार भी ओव्हर लोड तथा नशे में वाहन चलाने या खतरनाक तरीके से वाहन चलाने में दोषी पाया जाता है. ऐसे व्यक्ति को ड्राईवर नहीं रखा जाना चाहिये. यह हमारी गाईड लाईन है. सदस्य महोदय जी ने कहा है कि समय समय पर विभाग द्वारा स्कूलों की जांच की जाती है. अगर कोई सुप्रीम कोर्ट की गाईड लाईन को फुलफिल नहीं करता है तो उनको नोटिस देकर कार्यवाही की जाती है.
अध्यक्ष महोदय 24 जून को हमने विभाग को निर्देश दिए हैं जो सदस्य महोदय के लिए बताना चाहता हूं कि जो इस बार प्रदेश में शैक्षणिक सत्र शुरू हुए हैं, हमारे विभाग ने पूरे प्रदेश में स्कूल बसों की चैकिंग की और जहां जहां सुप्रीम कोर्ट की गाईड लाइन का पालन नहीं किया गया, वहां-वहां हमने उन पर कार्यवाही की है. सदस्य महोदय की जो जिज्ञासा है कि इस पर विभाग कोई नीति बना रहा है, तो अध्यक्ष महोदय, स्कूल वेन एवं बस के लिए हमारा विभाग अलग से नीति बना रहा है और नीति करीब बना ली गई है, बस प्रशासकीय स्वीकृति आने वाली है. सदस्य महोदय ने जो कहा उनकी भावनाओं का ध्यान रखते हुए हम पूरी कोशिश करेंगे कि न केवल स्कूल बस के मालिक बल्कि जो अभिभावक हैं, जो स्कूल के संचालक हैं, हम चाहते हैं कि स्कूल के संचालक, अभिभावक इन सभी की एक कमेटी बनाए, ताकि हम उन लोगों से भी राय लें. भगवान न चाहे प्रदेश में बच्चों की कहीं कोई दुर्घटना हो और जब हम इस प्रकार की मीटिंग बुलाएंगे तो माननीय सदस्य को उसमें रखेंगे क्योंकि सदस्य ने बहुत अच्छा प्रश्न किया है, बहुत बहुत धन्यवाद.
श्री उमाकांत शर्मा - माननीय मंत्री महोदय, मैंने निवेदन किया था कि स्कूलों के लिए जो बसें अनुबंधित हैं, उनके लिए कोई तिमाही समीक्षा करने के लिए जिला स्तर पर एक राजस्व का अधिकारी, परिवहन का अधिकारी और साथ में कोई तकनीकी विशेषज्ञ, इसकी समीक्षा तिमाही होती रहे, इस संबंध में मंत्री जी कोई कार्यवाही करेंगे क्या?
श्री गोविन्द सिंह राजपूत - अध्यक्ष महोदय, सदस्य की जो जिज्ञासा है इस पर हम जल्दी ही विभाग के अधिकारियों के साथ बैठकर कोई ऐसी नीति लांएगे ताकि इस प्रकार की दुर्घटनाएं न घटे और समय समय पर वाहनों की जांच भी होती रहे और पूरे प्रदेश में कहीं भी दुर्घटना न हो. बस चालकों एवं वेन वालों पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी और सामुहिक रूप से बैठकर हम एक निर्णय लेंगे, ताकि इस प्रकार की कहीं भी दुर्घटना न हो और सदस्य की शंका का पूरा समाधान रखा जाएगा.
श्री उमाकांत शर्मा - जिला स्तर पर टीम बनेगी क्या नहीं?
अध्यक्ष महोदय - शर्मा जी आप तो बिलकुल अंदर घुसे जा रहे हैं.
श्री उमाकांत शर्मा - माननीय अध्यक्ष जी को बहुत बहुत धन्यवाद, माननीय मंत्री जी ने भी सजगतापूर्वक उत्तर दिया बहुत बहुत धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय - धन्यवाद
श्री प्रेमशंकर कुंजीलाल वर्मा - अध्यक्ष महोदय.
अध्यक्ष महोदय - हां बोल लीजिए.
श्री प्रेमशंकर कुंजीलाल वर्मा - इसी से संबधित है इसलिए बोल रहा हूं. क्या इस प्रकार के वाहन जो स्कूल के बच्चों के लिए चलते हैं, क्या उस स्कूल के प्रिंसिपल को भी इसमें जोड़कर उत्तरदायित्व दिया जा सकता है कि नियमों के अनुसार गाडि़यां चल रही है या नहीं, तो सबसे पहले वह परिवहन विभाग को सूचना दें कि फलां गाड़ी गलत चल रही है.
श्री गोविन्द सिंह राजपूत - अध्यक्ष महोदय, चूंकि स्कूल में जो बसें होती हैं उसमें बहुत सारी बसें स्कूल की भी होती है और बहुत बसें प्रायवेट वाले स्कूल के अनुबंध करते हैं. मैं सदस्य की भावनाओं को समझ रहा हूं और इसमें उस प्रिंसिपल के लिए मैं समझता हूं कि अगर कोई घटना घटती है तो मैं समझता हूं कि सारी जवाबदारी हम उस पर नहीं निर्भर कर सकते, क्योंकि बसों का अनुबंध होता है तो जिसकी बस होती है पहले उसका उत्तरदायित्व होता है. फिर भी अगर सदस्य महोदय आपकी ऐसी जिज्ञासा और ऐसा आपका सोचना है तो इस पर हम विचार करेंगे.
श्री प्रेमशंकर कुंजीलाल वर्मा - प्रिंसिपल कम से कम परिवहन विभाग को सूचना तो दे कि कोई गाड़ी नियम के विरूद्ध चल रही है.
अध्यक्ष महोदय - बस हो गया आपको एक प्रश्न करने का मौका दिया, जवाब आ गया. अब धन्यवाद विराज जाइए.
श्री प्रेमशंकर कुंजीलाल वर्मा - अध्यक्ष जी, मेरा बिलकुल छोटा सा प्रश्न है, बच्चों के भविष्य से जुड़ा हुआ है.
अध्यक्ष महोदय - बिल्कुल नहीं, छोटा नहीं अदना भी नहीं करने दे रहा हूं, बैठ जाइए.
12.45 बजे याचिकाओं की प्रस्तुति
अध्यक्ष महोदय-- आज की कार्यसूची में सम्मिलित माननीय सदस्यों की सभी याचिकाएँ प्रस्तुत की हुई मानी जाएँगी.
12.46 बजे अध्यक्षीय घोषणा
भोजनावकाश न होने विषयक.
अध्यक्ष महोदय-- आज भोजनावकाश नहीं होगा. भोजन की व्यवस्था सदन की लॉबी में की गई है. माननीय सदस्यों से अनुरोध है कि वे सुविधानुसार भोजन ग्रहण करने का कष्ट करें.
12.47 बजे वर्ष 2019-2020 के आय-व्ययक पर सामान्य चर्चा ......(क्रमश:)
अध्यक्ष महोदय - अब वर्ष 2019-2020 के आय-व्ययक पर सामान्य चर्चा का पुनर्ग्रहण होगा.
श्री विश्वास सारंग (नरेला) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं यहां बजट का विरोध करने के लिए खड़ा हुआ हूँ. माननीय वित्त मंत्री जी ने जो बजट प्रस्तुत किया है, बहुत दमदारी के साथ, बहुत जोशीले अंदाज में उन्होंने बजट पढ़ा तो जरूर परन्तु जब बजट की मूल पुस्तिका को देखा तो टांय-टांय फिस्स मामला दिखा.
माननीय अध्यक्ष महोदय, सरकार का आगे का रोडमैप होता है- बजट, सरकार का विकास का एजेण्डा होता है- बजट. बजट भाषण में वित्त मंत्री जी ने पूरी तरह से पुरानी सरकार की लकीर को छोटा करने या मिटाने का प्रयास किया है, जब यह सरकार बनी थी.
12.48 बजे (उपाध्यक्ष महोदया (सुश्री हिना लिखीराम कावरे) पीठासीन हुईं.)
उपाध्यक्ष महोदया, माननीय मुख्यमंत्री जी यहां विराजमान हैं. मैंने बचपन से नाम सुना था कि माननीय कमलनाथ जी बहुत बड़े नेता हैं और मजबूत भी हैं. (सत्ता पक्ष के एक साथ कई माननीय सदस्य खड़े हुए)
लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री (श्री तुलसीराम सिलावट) - क्या आपको कोई शंका है ?
श्री विश्वास सारंग - मैं तो बोल रहा हूँ न.
श्री महेश परमार - बिल्कुल हैं. पूरे देश के नहीं, पूरे विश्व के नेता हैं, पूरे देश में कमलनाथ जी जाने जाते हैं. हमने आपके क्षेत्र में काम किया है. कमलनाथ जी को पूरे मध्यप्रदेश और देश में विकास के नाम पर जाना जाता है.
श्री तुलसीराम सिलावट - वे पूरे देश के नेता हैं.
श्री विश्वास सारंग - मैं मानता था, परन्तु सरकार किस मजबूरी में चल रही है, इसको देखकर मुझे बड़ा अफसोस हुआ.
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री (श्री सुखदेव पांसे) - माननीय उपाध्यक्ष महोदया, कल आपकी परम इच्छा थी कि माननीय मुख्यमंत्री जी आपके भाषण में रहें.
श्री विश्वास सारंग - आपने मेरी इच्छा पूरी कर दी.
श्री सुखदेव पांसे - वे इतने बड़े राजा हैं, बड़े दिल वाले हैं, देश के नेता हैं. जैसा आप चाहते हैं, वैसा हो गया.
श्री विश्वास सारंग - आपको दिव्य ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ ? माननीय पांसे जी. आप मेरी इच्छा अपने आप स्वीकार कर रहे हैं.
उपाध्यक्ष महोदया - विश्वास जी, कृपया विषय पर आएं.
श्री विश्वास सारंग - माननीय उपाध्यक्ष जी, समय कम है. बजट को लेकर बहुत सारी बातें हुईं, वित्त मंत्री जी ने यही स्थापित करने का प्रयास किया है कि हमारी सरकार ने कुछ काम नहीं किया. सही मायने में जब हम फेल होते हैं तो यह हमारी मजबूरी हो जाती है कि हम दूसरे के चेहरे पर भी कालिख पोतें. 15 वर्ष की हमारी सरकार को लेकर जो-जो बातें हुईं, ऐसा लगा कि 15 वर्ष में हमने इस प्रदेश का बेड़ागर्क कर दिया.
उपाध्यक्ष महोदय, वित्त मंत्री जी ने 10 तारीख को यह बजट प्रस्तुत किया, उसके पहले मध्यप्रदेश सरकार का आर्थिक सर्वेक्षण आया और उसमें जो सबसे जोरदार बात थी, 10 तारीख की सुबह के पेपर हमने पढ़े हैं, उस पेपर में एक जैसी लाईन, एक जैसी न्यूज छपी. माननीय उपाध्यक्ष जी, मैंने सोचा कि ऐसा क्या हो गया ? मैंने आर्थिक सर्वेक्षण को पढ़ा और केवल यही नहीं पढ़ा, इसके पुराने भी आर्थिक सर्वेक्षण पढ़े. अपनी लाईन को बढ़ाने के लिए दूसरे की लाईन को छोटी करना अच्छी परम्परा नहीं है, हमें यही सिखाया गया है पर इनकी अपनी लाईन को बड़ी करने की जब स्थिति नहीं बनी तो हमारी लाईन को पोंछने की कोशिश की, मिटाने की कोशिश की. आर्थिक सर्वेक्षण में इस बार एक नया अध्याय जुड़ा है, सामाजिक आर्थिक विकास और चुनौती. उसको लेकर 200-300 पेज की किताब की न्यूज नहीं बनी शर्मा जी, बनी तो केवल 4 पेज की न्यूज बनी क्योंकि हमने गलत किया यह स्थापित करना चाहते थे. पर यहां पर वित्तमंत्री जी आ गये हैं मैंने अभी शुरू में आपकी बहुत तारीफ की है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदया, इन्होंने कहा कि प्रति व्यक्ति आय में हमने प्रदेश का बेड़ा गर्क कर दिया और इन्होंने इसके आंकड़े भी दिये हैं. इन्होंने वर्ष 2012 से 2018-19 तक के आंकड़े दिये हैं. सही मायने में तो यह आंकड़े अपने आपमें भी यह स्थापित करते हैं कि जब हम वर्ष 2012-13 की बात करते हैं तो 44 हजार रूपये प्रति व्यक्ति आय थी, जो अब बढ़कर 90 हजार रूपये हो गई है, पर इससे भी मैं संतुष्ट नहीं हॅू, श्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने वर्ष 2009 में यह मध्यप्रदेश डेवलपमेंट रिपोर्ट दी थी. वित्तमंत्री जी, यदि आप अपने भाषण के समय इसको रिफ्रेंस में रखते तो शायद आपको ज्यादा सहूलियत होती. श्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि जब इन्होंने सरकार छोड़ी थी, उसके बाद हमने वर्ष 2003 में सरकार में आकर मध्यप्रदेश का विकास किया था और आपने कहा कि हमने प्रति व्यक्ति आय पर कोई काम नहीं किया है. माननीय वित्तमंत्री जी श्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया की रिपोर्ट कहती है वर्ष 2004-05 में जब आपने सरकार छोड़ी थी, तब मध्यप्रदेश की परकेपिटा इंकम चौदह हजार चार सौ इकहत्तर रूपये थी और देश के प्रतिशत में यह केवल एक प्रतिशत थी, परंतु वर्ष 2005 में हमारी सरकार में यह बढ़कर पंद्रह हजार रूपये हो गई और प्रतिशत छ: प्रतिशत हुआ, इसी प्रकार वर्ष 2006-07 में यह सौलह हजार रूपये हुई और प्रतिशत नौ प्रतिशत हुआ, वर्ष 2007-08 में यह अठारह हजार रूपये हुई और प्रतिशत छ: प्रतिशत हुआ, वर्ष 2008-09 में यह बीस हजार हुई और प्रतिशत 12 प्रतिशत हुआ और वर्ष 2018-19 में यह बढ़कर नब्बे हजार रूपये हो गई और मध्यप्रदेश का प्रतिशत 72 प्रतिशत हो गया और आप कह रहे हो कि आपने कुछ नहीं किया है. यदि हमने कुछ नहीं किया है तो यह 13 वर्ष की श्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया की रिपोर्ट क्या असत्य है?
माननीय उपाध्यक्ष महोदया, पूरा का पूरा बजट केवल सिलेक्टिव डेटा पर आधारित है. गाने की एक लाईन है कि ''जो तुमको हो पसंद, वही बात करेंगे'' पर इन्होंने ''जो हमको हो पसंद, वही बात करेंगे'' कर दिया (मेजों की थपथपाहट) और पूरा का पूरा गाना उलट दिया. यह किताबें किसी पार्टी का दस्तावेज नहीं होती है यह किताबें सरकार का दस्तावेज होती हैं. यह सरकार के दस्तावेज के रूप में प्रदेश के इतिहास में दर्ज होती हैं. हम अपनी महत्वकांक्षा के लिये, अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिये, अपनी राजनीतिक मजबूरी के लिये, इन किताबों का उपयोग न करें. हमें इस बात को स्थापित करना पड़ेगा कि यदि हम इस सरकार में आयें हैं तो हमने सरकार में आने के बाद शपथ ली थी कि हम बिना रागद्वेष के इस प्रदेश की सेवा करेंगे, पर आप रागद्वेष से राजनीतिक एजेंडे के रूप में इस बजट को प्रस्तुत कर रहे हैं. मैंने परकेपिटा इंकम के बारे में बताया है और मैं माननीय वित्तमंत्री जी को कहना चाहता हूं कि
''सच मानिये हुजूर चेहरे पर धूल है, इल्जाम आईंने को लगाना फिजूल है''
माननीय उपाध्यक्ष महोदया, गरीबी रेखा की बहुत बात हुई और बिना पढ़े हमारे कांग्रेस के मित्रों ने बात की कि 29 में से 27 वां स्थान मध्यप्रदेश का हो गया है और मध्यप्रदेश बहुत पिछ़ड गया है, आपने बेड़ा गर्क कर दिया है. मैं वित्तमंत्री जी से पूछना चाहता हूं कि गरीबी रेखा का माप कैसे होता है ? बताने का कष्ट करेंगे. ''वित्तमंत्री जी न सुन रहे हो, न कह रहे हो, न सर, न पलक हिला रहे हो, खता तो हम फरियारियों की हैं जो बुतों को दुखड़ा बता रहे हैं'' (मेजों की थपथपाहट)
माननीय उपाध्यक्ष महोदया, मैंने वित्तमंत्री जी से एक प्रश्न पूछा कि आप बतायें कि गरीबी रेखा का माप कैसे होता है ? मुझे नहीं लगता है कि आपको मालूम होगा आप बता दीजिये मैं बैठ जाता हूं ?
उपाध्यक्ष महोदया -- माननीय सदस्य आप अपनी बात जारी रखें.
श्री विश्वास सारंग-- माननीय उपाध्यक्ष जी, नेशनल सेम्पल सर्वे आर्गेनाइजेशन (एन.एस.एस.ओ.) गरीबी रेखा की माप के लिये काम करता है, पर थोड़ा सा इस मामले में अंतर है, हम बात करते हैं गरीबी रेखा के माप की और आम लोगों को लगता है कि गरीबी की आय से यह रिकार्ड बनता होगा. माननीय उपाध्यक्ष जी, यह गरीबों की आय से नहीं बनता, बल्कि गरीब प्रतिदिन कितना खर्च कर रहा है उससे यह रिकार्ड बनता है. माननीय उपाध्यक्ष जी, हम फख्र के साथ कहते हैं, हमने 13, 14, 15 साल में मध्यप्रदेश की आम जनता का खर्च कम किया, उसको 1 रूपये किलो गेहूं, 1 रूपये किलो चावल उपलब्ध कराया, हमने उसका खर्च कम किया, उसके बेटे को फ्री में नौकरी दिलवाई, हमने उसके बेटे को शिक्षा उपलब्ध कराई ..... (व्यवधान)....
उपाध्यक्ष महोदया-- विश्वास जी, कृपया समाप्त करें.
श्री विश्वास सारंग-- हमने उसके बच्चों को सायकल उपलब्ध कराई, उसको फ्री में इलाज उपलब्ध कराया ..... (व्यवधान)....
उपाध्यक्ष महोदया-- माननीय सदस्य आप जल्दी समाप्त करें.
श्री विश्वास सारंग-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, गरीबी रेखा की बात मालूम ही नहीं, एन.एस.एस.ओ. किस माप पर बात करता है और खड़े हो गये. अरे हमने खर्चा कम कराया, यह हमारी उपलब्धि थी, यह हमारी मजबूरी नहीं थी. ..... (व्यवधान)....
श्री संजय यादव-- पूरे प्रदेश को लूटा किसने है.
श्री विश्वास सारंग-- संजय भाई, कौन लूट रहा है, यह तो पता लग रहा है ..... (व्यवधान).... वचन पत्र में लिखा था, उद्योग लगायेंगे. तबादला उद्योग मध्यप्रदेश में लग गया.... (व्यवधान).... माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जीडीपी किसी भी प्रदेश की इबारत होती है. आपकी कोई दृष्टि ही नहीं है..... (व्यवधान)....
श्री तरबर सिंह-- ग्रामोदय से भारत उदय में गरीबों के परमिट काटने का काम किसने किया है. ..... (व्यवधान)....
श्री विश्वास सारंग-- माननीय उपाध्यक्ष जी, वित्त मंत्री के स्मृति पत्र को यदि हम पढ़ें, बहुत बातें हुईं, विकास की बात.....
उपाध्यक्ष महोदया-- विश्वास जी, जल्दी.
श्री विश्वास सारंग-- माननीय उपाध्यक्ष जी, बस तीन मिनट, आप बहन हो मेरी.
उपाध्यक्ष महोदया-- दो मिनट.
श्री विश्वास सारंग-- जैसा सुखदेव जी कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री जी को आने के लिये जुगाड़ लगाई थी, मैं सोच रहा था आप भी आ जायें इस सीट पर. माननीय उपाध्यक्ष जी, बहुत बड़ी बात हुई, वित्तमंत्री जी का स्मृति पत्र मैं पढ़ रहा हूं. पूंजीगत व्यय, दो तरह के व्यय होते हैं पूंजीगत और राजस्व. पूंजीगत मतलब कि हम क्या कुछ विकास करेंगे. वित्त मंत्री जी आपने बहुत बातें कीं आप कह रहे हैं कि हम 35 हजार 463 करोड़ रूपये पूंजीगत व्यय करेंगे. कुल जो है वह है, 21 लाख 485 करोड़, कितना परसेंट हुआ, केवल 16 परसेंट. मतलब विकास के लिये 16 परसेंट, आपको हवाई जहाज उड़ाने के लिये, आपके मकानों की मरम्मत करने के लिये, आपकी गाड़ी चलने के लिये 84 परसेंट. विकास के लिये केवल 16 प्रतिशत. बात कर रहे हो कि हम विकास की बात करते हैं. ..... (व्यवधान)....
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को-- माननीय उपाध्यक्ष जी, आपके मंत्री स्विच तक निकाल कर ले गये हैं, टोंटी निकालकर ले गये.
उपाध्यक्ष महोदया-- मार्को जी जब आपका नंबर आयेगा तब बोलिये.
श्री विश्वास सारंग-- माननीय उपाध्यक्ष जी, हमारे वित्त मंत्री जी ने एक इंडीकेटर की ओर बात की, राजस्व आधिक्य. माननीय सीतासरन जी ने कल उसका जिक्र किया था, यह वित्त सचिव का स्मृति पत्र मैं पढ़ता हूं. राजस्व आधिक्य का प्रतिशत जीएसपीडी के अनुपात में. माननीय उपाध्यक्ष जी, जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी जिसको यह गाली दे रहे थे, उस समय था दशमलव 65 प्रतिशत और इनका अनुमानित कितना है, दशमलव 08 प्रतिशत. जो सीतासरन जी ने कहा अगले यदि वित्त मंत्री के रूप में रहोगे और भाषण दे पाये तो राजस्व आधिक्य का नहीं बोल पाओगे यह मेरी चुनौती है वित्त मंत्री जी. फिजिकल डेफिसिट,राजकोषीय घाटे की बात हुई. एक तरफ तो आप राजस्व आधिक्य में नीचे जा रहे हो और राजकोषीय घाटे में आप नीचे जा रहे हो. हमारे समय में यह दर 3.17 प्रतिशत थी और आपकी अनुमानित दर है 3.34 प्रतिशत.
ऊर्जा मंत्री (श्री प्रियव्रत सिंह) - वह दिल्ली वाली रिपोर्ट कौन सी थी ? वह तो बता दें.
श्री विश्वास सारंग - कहा जाता है कि घी पी-पीकर ऐश कर रहे हैं. कंबल ओड़कर घी पी रहे हैं. हमारे समय कर्जा था 1 लाख 10 हजार करोड़ और आज कर्जा बढ़कर 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपये हो गया है. आपने कहा कि केन्द्र सरकार हमारे साथ फेडरल सिस्टम नहीं रख रही है. माननीय उपाध्यक्ष जी, मैं कहना चाहता हूं कि 2017-18 में आपको 30 हजार करोड़ रुपये मिले थे और 2019-20 में 36 हजार करोड़ रुपये मिले हैं. कोई भी अंतर नहीं है बल्कि ज्यादा कर दिया है. केन्द्र के करों के हिस्से की बात करें तो 2017-18 में 50853 करोड़ रुपये और 2019-20 में 63750 करोड़. पूरी तरह से फेल सरकार, पूरी तरह से सरकार का बजट फेल, केवल तबादलों में लगी हुई सरकार, केवल भ्रष्टाचार में लगी हुई सरकार...
(..व्यवधान..)
वन मंत्री (श्री उमंग सिंघार) - लघु वनोपज संघ में आपने साड़ी और कंबल बांटे थे, वे बंटे कि नहीं उसके भी बारे में बता दो. जो हर साल आपने साड़ी और कंबल सप्लाई करवाए उसके बारे में भी बता दो. उसमें से आधे खराब हो गये.
(..व्यवधान..)
श्री विश्वास सारंग - माननीय उपाध्यक्ष जी, मुझे किसी ने लिखकर दिया -
" गूंगों की हुकूमत में सदा ढूंढ रहे हो,
लगता है मियां बुत में खुदा ढूंढ रहे हो,
पहले तो लुटेरों को थमा आए हो चाबी,
अब कितना लुटा, कितना बचा, ढूंढ रहे हो,
दो दिन की हुकूमत में समझ आ गई नीयत,
कानून में चोरी की सजा ढूंढ रहे हो. "
बहुत-बहुत धन्यवाद उपाध्यक्ष जी.
1.04 बजे अध्यक्ष महोदय { श्री नर्मदा प्रसाद प्रजापति (एन.पी.) पीठासीन हुए.}
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को (पुष्पराजगढ़) - माननीय अध्यक्ष महोदय जी, मेरा विधान सभा क्षेत्र मॉं नर्मदा की उद्गम स्थली है. मॉं नर्मदा की पवित्र धारा, पूरे प्रदेश को अपने शीतल जल से सींच रही है और मॉं नर्मदा की पंक्तियां " त्वदीय पाद पंकजम्, नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे " तो मॉं नर्मदा को मैं प्रणाम करता हूं और वर्ष, 2019-20 के माननीय वित्त मंत्री जी के प्रदेश को समर्पित बजट पर मैं अपना वक्तव्य देना चाहता हूं. आज जिस तरीके से सदन में बजट प्रस्तुत होने के साथ पूरे प्रदेश में खुशहाली की सोच और जागृति पैदा हुई है.
इस प्रदेश की 7.5 करोड़ जनता को सर्वांगीण विकास की मुख्य धारा से जोड़ने में यह हमारा बजट काम आएगा, जिसमें अध्यक्ष महोदय, माननीय मुख्यमंत्री जी को हम सहृदय से धन्यवाद देना चाहेंगे कि इस प्रदेश के उन किसानों को जो आत्महत्या कर रहे थे, 15 साल में जिन्होंने आत्मदाह किया है, जिन्होंने गोली खायी है, ऐसे किसानों को माननीय मुख्यमंत्री जी ने, मुख्यमंत्री बनने के साथ ही दो घंटे में जिनका कर्ज माफ किया.
माननीय अध्यक्ष महोदय, जब सम्मेलन में अपने क्षेत्र में उस किसान को मैंने प्रमाण पत्र दिया, उसने गले लगा, उसकी आंखों में आंसू आ गये, आशा भरी निगाह से सरकार के प्रति उसने जो आभार व्यक्त किया. मुझे ऐसा लग रहा था कि हमने कुछ काम किया है. जिस सरकार ने 15 साल तक इस मध्यप्रदेश को लूटा, जिसने 50 हजार रुपये माफ करने का वायदा किया था, 15 साल में वह यह नहीं कर पाए. जब हम आज उन किसानों का ऋण माफ कर रहे हैं तो स्वाभाविक है कि इन लोगों ने कुछ किया नहीं तो पेट में दर्द होना भी स्वाभाविक है. (मेजों की थपथपाहट)..
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय वित्तमंत्री जी को धन्यवाद देना चाहता हूं कि जब आप बजट भाषण पढ़ रहे थे, उसमें बहुत सारी ऐसी चीजों की बात आई, जो हमारे प्रदेश के उन जिलों में जहां मिठाइयां बनती हैं, जलेबी, पेड़ा, मावा की जलेबी, लड्डू यह सुनकर विपक्ष के साथियों के मुहं में पानी आ रहा था.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया - हमारे मुंह में पानी आ रहा है तो आपको यह कड़वी लगेगी क्या?
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को - माननीय वित्तमंत्री को धन्यवाद देता हूं कि विपक्ष के साथियों के मुहं में पानी आ रहा था कि क्या मेवा के लड्डू की बात हो रही है, जलेबी की बात हो रही है कि इस प्रदेश में ऐसे जो हुनरकश लोग हैं, अपनी मेहनत और मशक्कत के साथ में जो चीजें तैयार करते हैं. उनको हम ब्रॉंड नेम देंगे और नाम के साथ पैकेजिंग और मार्केटिंग करेंगे, उसमें हजारों-हजार लोग जुड़ेंगे, उनके लिए रोजगार का अवसर सृजन होगा. इस उद्देश्य से इस प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी और हमारे आदरणीय वित्तमंत्री जी ने इसको बजट में लाया है. निश्चित ही मेरा पूरा विश्वास है कि जिस आशा और उम्मीद के साथ हमारे प्रदेश को आगे ले जाने का माननीय मुख्यमंत्री जी का यह जो सपना है वह दिन दूर नहीं कि जब हमारे इस प्रदेश में उन दूरांचल जिलों में और कस्बों में जहां हुनरवादी लोग जो काम कर रहे हैं, पकोड़े की बात तो आपने किया, हम लोग नहीं कर सकते हैं. हमारे आदरणीय जो काश्त-शिल्पी हैं, ऐसे कारीगर हैं जिनकी आय में वृद्धि हम कर सकते हैं, उनको समाज की मुख्यधारा से जोड़कर उनकी आय में वृद्धि करें उनको संरक्षण दें और संरक्षण के साथ इस प्रदेश को आगे बढ़ाने में काम आएं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं वर्ष 2017-18 में आपको ले चलता है. इसी तरीके से संविधान के अनुच्छेद 275 (1) के तहत पिछली सरकार ने इस प्रदेश के आदिवासी, बैगा, सहरिया, भारिया जनजाति समुदाय के सर्वांगीण विकास के लिए आपने 11000 करोड़ रुपये जनजातीय विभाग से कृषि संचालनालय को हस्तांतरित किया.
उसका उद्देश्य था कि जंगलों और पहाड़ों में मां नर्मदा के मैकल के घने जंगलों में निवास कर रहे बैगा जनजाति, सहारिया और भारिया जनजाति समुदाय के कोदो और कुटकी ज्वार और बाजरा के उत्पादन में आप सहायक बनते, उसकी वहां पर सहायता करना थी और उसके उत्पाद के लिए जिले के ब्रांड का नाम देना था. इसके साथ में उसकी पैकिंग और मार्केटिंग करना था ताकि उस जनजाति समुदाय की आय में वृद्धि होती. लेकिन मैं यहां पर दुख के साथ में कहना चाहता हूं कि 11000 करोड़ रूपये हमारे विपक्ष के साथियों ने तत्कालीन सरकार ने खा लिये, उस आदिवासी समुदाय के कोदो कुटकी को आप खा गये, आज अगर उसका ब्रांड नाम होता आज कोदो और कुटकी डायबिटिज के लिए फायदेमंद हैं, यह ब्लड प्रेशर के लिए भी फायदेमंद है. यदि आपने उस समय प्रयास किया होता तो निश्चित ही उन जनजाति समुदाय के लोगों की आर्थिक स्थिति में विकास होता लेकिन नहीं किया गया, आपकी नीयत ठीक नहीं थी, आप नहीं चाहते थे कि जनजाति समुदाय का किसी प्रकार से विकास हो. आप उनके हक को खा गये हैं, इस सबके बाद में उसी का यह नतीजा है कि आप इधर थे हम उधर थे तो जहां पर हम थे आप वहीं पर पहुंच गये हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले समय में अभी तो ज्यादा दिख नहीं रहा है दो चार पंचवर्षीय योजना निकल जायेंगी.
माननीय अध्यक्ष महोदय मैं माननीय मुख्यमंत्री जी को धन्यवाद देना चाहता हूं कि बहुत सारी बात हमने सामूहिक विवाह के बारे में की हैं. हमारी मध्यप्रदेश की कमलनाथ जी की सरकार ने सामूहिक विवाह के लिए राशि 28 हजार से बढ़ाकर 51 हजार रूपये की है. इस सोच के साथ में इतना ही नहीं किया है, उनका कहना है कि जो जनजाति समाज के लोग जो कि जंगल और पहाड़ में निवास कर रहे हैं. ऐसे समाज के लोग अगर अपनी बेटी का विवाह करते हैं तो एकल विवाह के अंतर्गत 51 हजार रूपये उस बेटी के खाते में डाले जायेंगे. वह अपने घर से शादी करेंगे, और अपनी बिटिया की बिदाई अपने आंगन से करेंगे. अध्यक्ष महोदय जिस तरह से पिछले 15 साल में इस प्रदेश में जो हमारे ऊपर लांछन लगा है, आप देखें कि छत्तीसगढ़ धान के कटोरा के नाम से जाना जाता था लेकिन यह मध्यप्रदेश मुझे दुख के साथ में कहना पड़ रहा है कि दुष्कर्म के नाम पर जाना जाता है, इसको भी हमें देखना होगा, इसकी भी हमें व्यवस्था करना होगी. यह पिछले साल का यह जो कचरा है उसको भी साफ करने का काम कांग्रेस की सरकार करेगी.
माननीय अध्यक्ष महोदय मैं मुख्यमंत्री जी को धन्यवाद देना चाहता हूं और हमारे पशुधन मंत्री जी को हम अपने जीवन के लिए, मानव समाज के लिए हमें बहुत सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं, हमारा देश कृषि प्रधान है और यह किसानों का देश है इस किसानों के देश में हर किसान के पास में गौमाता है और भी अन्य पालतू जानवर हैं उनकी रक्षा के लिए 1962 नाम का वाहन चलाया गया है और इसका शुभारंभ करते हुए मुझे खुशी हो रही थी. अध्यक्ष महोदय जब हमने अपने विकास खण्ड में जब उसे झंडी दिखाई तो लोग उस समय गदगद हो गये, उनके मन में प्रसन्नता थी वह खुश थे कि एक गौमाता जो कि बोल नहीं सकती है, जिनके घरों में भैंस है, बकरी हैं बैल हैं मुर्गियां है उनकी रक्षा कैसे करें और उनकी सुरक्षा कैसे कर सकते हैं. इसके लिए हमारे यहां पर 1962 नंबर की एक गाड़ी चलाई गई है जिसमें पशु चिकित्सा विभाग के डॉक्टर भी रहेंगे.उसमें आवश्यक दवाएं रहेंगी और जैसे जिस तरीके से 100 डॉयल करो और पुलिस बुलाओ, 108 डॉयल करो और चिकित्सा वाहन बुलाओ. उसी तरीके से 1962 डॉयल करो और घर में पशु चिकित्सक बुलाओ, अपने घर के पशुओं, जानवरों का इलाज करवाओ. यह माननीय कमलनाथ जी की सरकार ने जिस तरीके से हमारे बजट में जो प्रावधान किया है और इस प्रावधान से पूरे प्रदेश की जनता में खुशहाली है. तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिये और जो तेंदूपत्ता संग्रहणकर्ता है, हमारा जनजाति समुदाय, हमारा मजदूर हमारा भाई जो जंगल और पहाड़ों में जाकर के तेंदूपत्ता तोड़ करके और लाकर के वह विक्रय करता है. पिछले 15 सालों में इस प्रदेश में जो पूर्व सरकार रही है, वह उनको मालिकाना हक देने की बात करती थी, लेकिन उनको मजदूरी भी उपलब्ध नहीं हो पाती थी. अध्यक्ष महोदय, उनको अब हम नगद देने की बात कर रहे हैं. इन मजदूरों को अब बैंकों में जाने की आवश्यकता नहीं है. जहां वे तेंदूपत्ता बेचते हैं, वहीं उनको पैसा दिया जायेगा, ऐसे आदेश माननीय मुख्यमंत्री, श्री कमलनाथ जी ने जारी किये हैं. उनको आने वाले समय में नगद भुगतान किया जायेगा, इसके लिये मैं सरकार का आभार व्यक्त करता हूं. पिछली सरकार के समय में हमारे जो तेंदूपत्ता संग्राहक थे, उनको जूता बांटा गया, चरण पादुकाएं बांटी गईं. पीने के लिये बॉटल का पानी बांटा गया, उनको साड़ियां दी गईं. इन साड़ियों में, इन चप्पलों में, वह तो अच्छा रहा कि उन्होंने वह पहने नहीं और उससे बहुत सारे हमारे भाई बच गये, हमारी जनजाति की जनता बच गई, नहीं तो उनको (XXX) हो जाता, बेचारे ठिठुरने लगते. उनका और दूसरा इलाज शुरु हो जाता. आप 15 साल में हमारे उन जनजाति समुदाय का भला नहीं करते, तो उनको (XXX) चप्पल तो नहीं बांटते. यह हमारी पिछली सरकार के द्वारा किया गया और इसमें जो आपने बन्दर बांट किया..
श्री जालम सिंह पटेल "मुन्ना भैया"-- अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य जो कह रहे हैं,एकाध उदाहरण तो आप बता दें.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को-- वह भी बतायेंगे.
श्री जालम सिंह पटेल "मुन्ना भैया" -- अध्यक्ष महोदय, मेरा निवेदन है कि इसको कार्यवाही से निकाल दें.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को -- (XXX)
अध्यक्ष महोदय -- इसको विलोपित कर दें.
श्री जालम सिंह पटेल "मुन्ना भैया" -- तो आप वैज्ञानिक हैं क्या.
श्री फुन्देलाल सिंह मार्को -- अध्यक्ष महोदय, जब हम सत्य बात करते हैं, तो निश्चित है कि आप लोगों को तकलीफ तो होगी. मैं जानता हूं,मैं वहां उनके बीच में रहता हूं. अध्यक्ष महोदय, चर्चा बड़ी गंभीर है, प्रदेश का बजट है, साढ़े 7 करोड़ जनसंख्या है. यह बजट जितना हम बोलते हैं, उतना ही गुदगुदाता है. यह बजट गुदगुदाने वाला है, खुशियों वाला है. इसमें इंदिरा गृह ज्योति योजना, ज्योति, आप कह रहे थे कि हम बिल हॉफ करेंगे, मुख्यमंत्री जी ने 100 यूनिट जलाओ और 100 रुपये जमा करो. यह हमारी प्रदेश की सरकार है कि 100 रुपये में 100 यूनिट बिजली देने का वादा हमने किया, उसको हम पूरा कर रहे हैं. इसी तरीके से हमारे 51 हजार रुपये विवाह के लिये देने की बात कही है. मध्यप्रदेश में 70 प्रतिशत जो युवाओं को नौकरी देने की बात सरकार ने की है, निश्चित ही प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री जी, इस प्रदेश में जो भी उद्योग लगेंगे, जो लगे हैं और जो लगने वाले हैं. उसमें हमारे मध्यप्रदेश के युवाओं को सर्वप्रथम नौकरियां, 70 प्रतिशत नौकरियां देने का जो आपने वादा किया है. मैं आपको बताना चाहता हूँ कि पिछले 15 सालों में 33 लाख से भी ज्यादा नौजवान बेरोजगारी झेल रहे हैं. लोगों को नौकरियां नहीं मिलीं, बल्कि उन्हें शुल्क लेकर लूटा गया. आपने विज्ञापन निकाला, विज्ञापन को जब निरस्त किया तो क्या उसकी शुल्क आपने उन्हें वापस की. बेरोजगार नौजवानों से शुल्क लिया लेकिन नौकरियां इस प्रदेश में नहीं मिलीं.
अध्यक्ष महोदय, मैं आपको आश्वास्त करना चाहता हूँ कि अभी इस मध्यप्रदेश में माननीय कमलनाथ जी की सरकार है, जहां 70 प्रतिशत मध्यप्रदेश के युवाओं को नौकरी मिलेगी. इस प्रदेश में अब युवाओं की बेरोजगारी खत्म होगी.
अध्यक्ष महोदय, मैं आज यह भी कहना चाहता हूँ कि आदिवासी गोंड समाज की भाषा गोंडी है. इस भाषा के बोलने वाले बहुत कम होते जा रहे थे. यह भारतीय संस्कृति की बहुत पुरानी भाषा है. इस गोंडी भाषा का संरक्षण कैसे करें, इसके बारे में सरकार ने सोचा और हमारे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने उसको पाठ्य-पुस्तक में शामिल किया. हमारी गोंडी भाषा को संरक्षित किया. इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए सरकार ने प्रावधान किया. मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि ऐसे हमारे जनजातीय गोंड समाज के भाई, जो गोंडी भाषा बोलते हैं, उनके बच्चे प्राथमिक शालाओं में भी गोंडी भाषा पढ़ सकेंगे, सीख सकेंगे. अंत में मैं कहना चाहता हूँ कि आपने मुझे बोलने का अवसर दिया, उसके लिए मैं आपका बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूँ. धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय -- मैं अगले वक्ता को बुला रहा हूँ, वे अपने सामने घड़ी रख लें और स्वयं निर्धारित कर लें कि क्या वादा किया था, कुँवर विजय शाह, साढ़े पांच मिनट.
कुँवर विजय शाह (हरसूद) -- माननीय अध्यक्ष जी, मैं आपको इस कुर्सी पर पाकर गौरवान्वित हूँ कि आप मेरे कॉलेज के भी हैं और मेरे होस्टल के भी सीनियर हैं. इसलिए पांच मिनट उसके, पांच मिनट इस विधान सभा के सदस्य के नाते, 10 मिनट में अपनी बात समाप्त करूंगा.
श्री विश्वास सारंग -- भाई, कालेज में सब एक जैसे ही थे क्या ?
अध्यक्ष महोदय -- ये वहां उस समय रहते, पता चल जाता.
कुँवर विजय शाह -- माननीय अध्यक्ष जी, मेरी पूरी कोशिश होगी कि हमारे विद्वान विधायक साथीगण, चाहे पक्ष के हों या विपक्ष के हों, उन्होंने इस बजट पर विस्तार से अपनी बातें रखीं. जो कमियां थीं, वे गिनाईं और अपने सुझाव दिए. मैं पूरी कोशिश करूंगा कि उसका दोहराव न हो.
माननीय वित्त मंत्री जी, मैं यह नहीं कहूंगा कि आपने 2 लाख का वादा किया था और 2 लाख नहीं दिए. 29 में से 28 सीट हराकर जनता ने वह हिसाब-किताब बराबर कर लिया, मैं नहीं कहूँगा. माननीय अध्यक्ष जी, मैं यह भी नहीं कहूँगा कि आपकी सरकार आने के बाद बिजली से पूरे प्रदेश की जनता परेशान है. इनवर्टर और जनरेटर हमारे समय में बिकते नहीं थे, उसके भी विज्ञापन आने लगे और वे बिकने लगे, मैं ये नहीं कहूँगा.
अध्यक्ष जी, प्राकृतिक आपदाएं बोलकर नहीं आतीं. आपकी सरकार बनने के बाद कई जगह प्राकृतिक आपदाएं आईं. घरों में आग लग गई, लोग मर गए, पूरा परिवार नष्ट हो गया, मोहल्ले जल गए. हम लोग जब कलेक्टर के पास गए कि साहब, इन्हें कुछ मदद कर दीजिए, इन्हें ओढ़ने, बिछाने के कपड़े नहीं हैं, खाने का सामान नहीं है, इन्हें कम से कम 50 किलो गल्ला दे दें. कलेक्टर महोदय ने कह दिया नहीं, हमारी सरकार से निर्देश नहीं हैं. जो आदमी मर रहा है, प्राकृतिक आपदाओं से परेशान है, दो टाइम का खाना नहीं है, वह भी हम मुहैया नहीं करा पाए, मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना है, माननीय अध्यक्ष जी, आपका जैसा स्वविवेक जागा, आपने वैसा किया.
माननीय अध्यक्ष जी, पेट्रोल, डीजल और शराब की बात भी आप लोगों ने की कि पैसे बढ़ा दिए. विधान सभा का सत्र घोषित होने के बाद पैसे बढ़ा दिए, हमें उस पर भी कुछ नहीं कहना, आपकी मर्जी.
श्री जितू पटवारी -- शराब के दाम बढ़ गए तो आपको तकलीफ हुई क्या ?
कुँवर विजय शाह -- भाई साहब, हम अकेले में बात करेंगे, आप भी मेरे ही स्कूल के हो. जितू भैया भी मेरे स्कूल के हैं. मित्रों, अभी यहां बात कर रहे थे कि प्रदेश में कानून व्यवस्था बिगड़ गयी. अब अध्यक्ष जी, कानून व्यवस्था क्यों नहीं बिगड़ेगी. कितने हमारे आईएएस, आईपीएस और प्रशासनिक अधिकारी बैठे हैं. आपने 90 परसेंट के ट्रांसफर कर दिए हैं. चलिए, एक बार ट्रांसफर कर दिया, कोई बात नहीं. (XXX) अब लॉ एन ऑर्डर है.
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री (श्री कमलेश्वर पटेल) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह आपत्तिजनक है. ये इनकी सरकार में होता था. कांग्रेस सरकार में इस तरह का कहीं भी कुछ भी नहीं है. लगातार सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं...(व्यवधान)...
अध्यक्ष महोदय -- इसको विलोपित करें.
कुंवर विजय शाह -- आईएएस, आईपीएस के ट्रांसफर कर रहे हैं. रिकॉर्ड उठाकर देख लें...(व्यवधान)...
श्री कमलेश्वर पटेल -- माननीय अध्यक्ष महोदय, लगातार बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं. इन्होंने घटिया विद्युतीकरण का काम किया है. जब केन्द्र में हमारी सरकार थी तब हमारी सरकार ने राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत पूरे प्रदेश में विद्युतीकरण कराया था. सारा घटिया काम इन्होंने किया और आरोप हम पर लगा रहे हैं...(व्यवधान)...
वित्त मंत्री (श्री तरुण भनोत) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह एक बड़ा गंभीर विषय है. माननीय शाह जी बहुत वरिष्ठ सदस्य हैं और पूर्व में मंत्री भी रहे हैं. आपने सदन के अंदर कहा कि मेरी चर्चा हुई और मुझे एक कलेक्टर ने ये कहा, जब सदन में आप यह बात कह रहे हैं तो या तो आप उस व्यक्ति का नाम सदन के सामने बताइए, पूरी बात यहां रखिए या आप खेद व्यक्त करके माफी मांगिए.
कुंवर विजय शाह -- माननीय अध्यक्ष जी, सवाल खेद का नहीं है..(व्यवधान)..
श्री तरुण भनोत -- बात सदन के अंदर कुछ हो नहीं सकती. आप एक जिम्मेदार सदस्य हैं जो पूर्व में मंत्री रहे हैं उनसे ऐसी अपेक्षा सदन नहीं करता है. मैं तो आपसे व्यवस्था मांग रहा हॅूं. यह बहुत महत्वपूर्ण बात है नहीं तो यह परिपाटी बन जाएगी, चलन बन जाएगा और हमारा जो सदन है, वह इसी प्रकार से कलंकित होता रहेगा.
कुंवर विजय शाह -- माननीय अध्यक्ष जी, मैं नहीं कहता लेकिन एक-एक अधिकारी का तीन-तीन बार ट्रांसफर हुआ है. ये क्या कहलाता है क्या दर्शाता है ?
श्री तरुण भनोत -- माननीय अध्यक्ष महोदय, तीन बार ट्रांसफर हुआ, तीस बार ट्रांसफर हुआ, मुद्दा वह नहीं है. आदरणीय सदस्य ने इस सदन के अंदर कहा कि मेरी एक अधिकारी से चर्चा हुयी.
अध्यक्ष महोदय -- माननीय शाह जी, आपको चर्चा करनी है, यह समय आपका खत्म हो रहा है.
श्री तरुण भनोत -- माननीय अध्यक्ष जी.
अध्यक्ष महोदय -- माननीय तरुण भनोत जी, मैं व्यवस्था दे रहा हॅूं. जब आपका समय था, आपने किया. अब इनका समय है, ये कर रहे हैं. इस बात को छोडि़ए, आगे बढि़ए.
कुंवर विजय शाह -- माननीय अध्यक्ष जी, बहुत अच्छी बात है.
अध्यक्ष महोदय -- (माननीय सदस्यों के एक साथ खडे़ होने पर) माननीय तरुण जी, यदि इन्होंने 14 साल किया, तो आपको क्या तकलीफ हो रही है. बैठ जाइए. आप लोग बैठ जाइए.
कुंवर विजय शाह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, ये हमने नहीं किया.
अध्यक्ष महोदय -- विजय शाह जी, देखिए आप ऐसा छेड़ेंगे, तो आप अपना समय बरबाद करेंगे. फिर मुझे इल्जाम मत दीजिएगा.
कुंवर विजय शाह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, केवल दो-तीन बात कहकर पांच मिनट में समाप्त कर रहा हॅू. तीर्थ दर्शन योजना पूरे मध्यप्रदेश के लोगों के लिए एक आशा की किरण थी. माता-पिता के लिए तीर्थ दर्शन सरकार कराती थी. उस 200 करोड़ के बजट में केवल 6 करोड़ रखा गया, वह योजना आपने एक तरह से बंद कर दी. इसी तरह 450 करोड़ रुपए जो एसटी, एससी के नि:शुल्क शिक्षण व्यवस्था के लिए था, वह भी आपने कम कर दिया है. इसी तरह अनेक योजनाएं हैं, जो आपने कम कर दी हैं या बंद कर दी हैं. माननीय जितु जी, आपने हर विधानसभा क्षेत्र में एक स्टेडियम दिया है मेरे विधानसभा क्षेत्र में नहीं दिया है, जरा दिखवा लें. हमारी सरकार ने खालवा ब्लॉक में कुपोषण दूर करने के लिए 10 रुपए किलो तुअर दाल देने की व्यवस्था शुरु की थी ताकि पौष्टिक आहार गरीबों को मिल सके, वह व्यवस्था भी इस सरकार ने बंद कर दी. न जाने आदिवासियों से इनको क्या आपत्ति है कि कहीं कुपोषण खत्म न हो जाए. माननीय वित्त मंत्री जी, इसे भी पुन: चालू करवाएं. इसी तरह पानी के लिये जो बजट में पैसा रखा, अभी मैं देख रहा था कि ज्यादातर पैसा छिंदवाड़ा गया. छिंदवाड़ा में 5,470 करोड़ के सिंचाई काम्पलेक्स बन रहे हैं, फिर छिंदवाड़ा में यूनिवर्सिटी बन रही है. मेडिकल कॉलेज छिंदवाड़ा में बन रहे हैं. बहुत अच्छी बात है, माननीय मुख्यमंत्री जी, आप छिंदवाड़ा के हैं विकास होना चाहिये, लेकिन मेहरबानी करके प्रदेश के और जिलों में भी विकास हो, यह पैसा दें, सब दूर बराबर से बंटे, ऐसी आपसे हम अपेक्षा करते हैं. माननीय अध्यक्ष जी, ऐसी तमाम चीजें हैं जो मैं कहता हूं कि इन लोगों ने अधिकांश बजट अपने हिसाब से रखा. आज जेलों की स्थिति क्या है जेल मंत्री जी ? अंदर जाकर लोग बात कर हैं. हमने आपसे भी निवेदन किया था कि जैमर लगाओ. जैमर लगायें ताकि अपराधी बात बाहर न करें. आपने बजट रखा कि हम पूरे प्रदेश की जेलों में जैमर लगायेंगे लेकिन पैसा कितना रखा, 40,000 रुपया. अब 40,000 रुपये मैं कैसे जैमर लगेंगे ? यह विचारणीय प्रश्न है. इसी तरह और भी प्रश्न हैं. मैं, केवल एक महत्वपूर्ण बात पर आ जाता हूं.
श्री जितु पटवारी -(XXX)
कुँवर विजय शाह - (XXX)
श्री जितु पटवारी -(XXX)
अध्यक्ष महोदय - यह सब विलोपित किया जाये.
कुँवर विजय शाह - माननीय अध्यक्ष जी, आपके माध्यम से एक बहुत ही गंभीर प्रश्न और यह अंतिम बात कहकर अपनी बात समाप्त करूंगा कि माननीय कमलनाथ जी की सरकार बनी. जमीन देने के मामले में भेदभाव नहीं होगा, फ्री में जो रियायती दरों पर जमीन दी गई है वह दस्तावेज मेरे पास हैं. हमें सरकार से बड़ी उम्मीद थी कि माननीय मुख्यमंत्री जी न्याय करेंगे, लेकिन इस सरकार ने न्याय कैसे किया, सिंधिया स्कूल में कौन पढ़ता है ? क्या गरीब के बच्चे पढ़ते हैं ? 413 करोड़ की जमीन, 146 एकड़ जमीन, मुफ्त में सिंधिया जी को दे दी गई. (शेम...शेम...) यह 2012 से है.
श्री जितु पटवारी - अध्यक्ष महोदय, सुनो यह सरकार एजुकेशन के बढ़ावे के लिये हमेशा तत्पर खुले मन से, खुले हाथ से उपलब्ध है. सहयोगात्मक रवैये से रहेगी. आप भी कोई संस्थान खुलवाने की कोशिश करवाओ, मदद करेंगे.
कुँवर विजय शाह - माननीय अध्यक्ष जी, क्या माननीय मुख्यमंत्री जी ने सिंधिया जी को इसलिये करोड़ों की जमीन दे दी कि वह मुख्यमंत्री के दावेदार थे ? यह जॉंच का विषय है. सरकार की इतनी महत्वपूर्ण जमीन सिंधिया जी को मुफ्त में दे दी गई. ..(व्यवधान)..
श्री प्रद्युम्न सिंह तोमर - अध्यक्ष महोदय, यह गलत आरोप लगा रहे हैं. 15 साल में इन्होंने कुछ नहीं किया. 6 महीने की यह बात कर रहे हैं कि 6 महीने में क्या किया. यह शिक्षा मंत्री थे.
श्री जितु पटवारी - अध्यक्ष महोदय, यह आपके बीजेपी के अंदर के लोग ऐसा करते हैं. बजट सत्र का नाश मत करो.
श्री बाला बच्चन - अध्यक्ष महोदय, इन्होंने जेल विभाग के बजट को लेकर और अन्य आंकड़ों को लेकर कोड किया था, मैं बताना चाहता हूं कि आपने 90 परसेंट ट्रांसफर की बात की है, 90 परसेंट ट्रांसफर हुये नहीं, यह फाल्स बात थी. आप सुनिये. मेधावी छात्रों के लिये हमने 150 करोड़ रखे, अनुसूचित जनजाति छात्रों के लिये 454 करोड़ रुपये रखे हैं. 312 करोड़ हमने अनुसूचित जाति छात्रों के लिये रखे हैं. 512 करोड़ हमने ओ.बी.सी. छात्रों के लिये रखे हैं.
कुँवर विजय शाह - अध्यक्ष महोदय, जब आपके विभाग की बात आये तब आप अपनी बात रखिये. अभी यह किस हक से बोल रहे हैं ?
श्री बाला बच्चन - अध्यक्ष महोदय, जो आप जेल विभाग की बात अभी कर रहे थे, आप 40 हजार रुपये की बात कर रहे हैं, लगभग 8000 करोड़ का हमारा बजट है गृह विभाग का 7,500 करोड़ से ज्यादा का बजट है. आपने 5 परसेंट बात भी सही नहीं बोली.
श्री जितु पटवारी - आप असत्य बोल सकते हो और इनसे नियम पूछते हो ?
अध्यक्ष महोदय - मुझे कुछ कुर्सियों को चेक करवाना पड़ेगा.
नेता प्रतिपक्ष(श्री गोपाल भार्गव)-- माननीय अध्यक्ष जी, लगभग 7 महीने पहले गठित हुई इस सरकार ने और वित्त मंत्री जी ने अपना पहला बजट इस विधान सभा में प्रस्तुत किया. लगभग 2 लाख 33 हजार करोड़ रुपये के बजट का जब मैंने गहराई से अध्ययन किया तो पाया कि यह एक पूरी तरह से खोखला बजट है. मैं इसके लिए आँकड़ों के माध्यम से और तथ्यों के द्वारा सिद्ध करके आपको बताऊँगा. अध्यक्ष महोदय, हमारे पक्ष-विपक्ष के लगभग 30-35 सदस्यों ने या उससे भी ज्यादा सदस्यों ने इस बजट के बारे में बड़ी विस्तृत चर्चा की, मैं कोशिश करूँगा कि उन विषयों को न दोहराऊँ.
अध्यक्ष महोदय, बड़ी विचित्र सरकार है. शायद हिन्दुस्तान में कभी किसी सूबे में या केन्द्र में ऐसी सरकार गठित नहीं हुई होगी. सारे के सारे मिनिस्टर यहाँ केबिनेट मिनिस्टर हैं. मेरे ख्याल से मैंने मध्यप्रदेश तो क्या जब से केन्द्र में राज्यों का गठन हुआ, शायद एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि सारे के सारे मिनिस्टर एक साथ केबिनेट हों. पहले ही दिन से मालूम हो गया, पहले ही दिन से इससे जाहिर हो गया कि कहीं न कहीं बीच में खोखलापन है, अन्दर खोखलापन है. अध्यक्ष महोदय, मैं अखबार पढ़ता रहता हूँ. एक मंत्री को 3-3 विधायक को संभालने का, उनको खिलाने का, पिलाने का, उनको सुलाने का दायित्व मिला है.
श्री वाल सिंह मैड़ा-- विपक्ष के नेता परेशान हो रहे हैं.
श्री गोपाल भार्गव-- मेरी कोई परेशानी नहीं है.
श्री वाल सिंह मैड़ा-- ये विपक्ष में बोलने में अच्छे हैं. अध्यक्ष महोदय, हमको खुशी है कि ये ऐसा बोल रहे हैं...
श्री गोपाल भार्गव-- अध्यक्ष महोदय, जो विषय है, जो विषय राज्य की गरिमा खत्म करते हों और देश भर में मजाक का विषय वह बना हो इसीलिए मैं इस पर कह रहा हूँ....
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री (श्री कमलेश्वर पटेल)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह विधायकों का अपमान है इस तरह की बातें कर रहे हैं नेता प्रतिपक्ष महोदय. यह विधायकों का अपमान है किस तरह की बातें कर रहे हैं. क्या विधायक खिलाने, पिलाने से विधायक है, विधायक जनता का चुना हुआ जनप्रतिनिधि है, अपने अधिकार को समझता है...(व्यवधान)..इस तरह की बातें बिल्कुल असंसदीय हैं. अध्यक्ष महोदय, इस तरह की बात पूरी तरह से असंसदीय है. इसको विलुप्त कराइये...(व्यवधान)..यह बात विलुप्त होना चाहिए. माननीय नेता प्रतिपक्ष जी ने जो बात कही है पूरी तरह से असंसदीय है...(व्यवधान).. कोई भी विधायक यहाँ खिलाने पिलाने के लिए नहीं है...(व्यवधान)..अध्यक्ष महोदय, इसको विलुप्त कराइये, यह विलुप्त होना चाहिए. यह हमारे सभी विधायकों का अपमान है...(व्यवधान)..अध्यक्ष महोदय, आपको व्यवस्था देनी होगी...(व्यवधान)..(अनेक माननीय सदस्य एक साथ खड़े होकर अपनी-अपनी बातें कहने लगे) ..(व्यवधान)..
अध्यक्ष महोदय-- विराजिए. बाल्मीक जी, बैठिए. मुरली मोरवाल जी, बैठिए.
श्री गिर्राज डण्डौतिया-- अध्यक्ष महोदय, विधायकों से माफी मांगना होगी. तब सदन चलेगा, नहीं तो सदन नहीं चलेगा. विधायकों का अपमान होगा तो सदन नहीं चलेगा, हम नहीं चलने देंगे. इनको सब कुछ बोलने की छूट नहीं होगी. यह विपक्ष हो सकता है लेकिन सब कुछ बोलने की छूट नहीं हो सकती है....(व्यवधान)..
डॉ.सीतासरन शर्मा-- अध्यक्ष महोदय, यह क्या हो रहा है?..(व्यवधान)..
अध्यक्ष महोदय-- क्या माननीय नये विधायकों को प्रबोधन का जो ज्ञान सिखाया गया था वह भूल गए?
श्री गिर्राज डण्डौतिया-- ये पुराने सब कुछ भूल गए.
अध्यक्ष महोदय-- मैं खड़ा हूँ.
श्री गिर्राज डण्डौतिया-- अध्यक्ष जी, ये पुराने बस अपनी बात बोलेंगे.
अध्यक्ष महोदय-- मैं खड़ा हूँ, मैं खड़ा हूँ, मैं खड़ा हूँ, मैं उठाकर बाहर करवा दूँगा. मैं खड़ा हूँ. यह तरीका नहीं होता है. कम से कम चर्चा चलने दीजिए. समय सीमा भी होती है. अगर आप लोग ऐसे ही समय सीमा बर्बाद करेंगे तो न विषय आ पाएगा, न वस्तु आ पाएगी, न कोई बात निकल कर आ पाएगी. भार्गव जी, कृपया..(व्यवधान)...माननीय सदन के नेता जी खड़े हैं सब बैठ जाइये. गोयल जी, सदन के नेता खड़े हैं आप बैठ जाइये.
मुख्यमंत्री (श्री कमलनाथ)-- माननीय अध्यक्ष जी, प्रतिपक्ष के नेता की पांच मिनट में जो बात मैंने सुनी उन्होंने दो बातें सरकार के बारे में कहीं कि सभी केबिनेट मिनिस्टर हैं और देश में ऐसा कभी नहीं हुआ. मैं प्रतिपक्ष के नेता को आपके माध्यम से यह बताना चाहता हूँ कि नहीं हुआ होगा, मैं नहीं जानता हूँ पर अगर हमारे सभी सदस्य केबिनेट मिनिस्टर लायक थे तो मैं इनकी सलाह से बनाता, क्या मैं इनकी सलाह से बनाता. दूसरी चीज इन्होंने खिलाने, पिलाने की बात कही, अब कुछ लोगों को यह आदत है खिलाने, पिलाने की इसलिए वही बात सूझती है. यह बात बहुत अपमानजनक है. आप मेरा अपमान नहीं कर रहे हैं इन सदस्यों का अपमान कर रहे हैं. हमने यह जरुर जिम्मेदारी दी है कि वे सदन में उपस्थित रहें, सदन में भाग लें आप सभी के सामने आएं. खिलाने, पिलाने और सुलाने की परम्परा जिससे आप अच्छी तरह परिचित हैं, अब आप यह पाठ हमें तो मत पढ़ाइए.
श्री गोपाल भार्गव--माननीय अध्यक्ष जी, भावार्थ गलत निकाला गया केयरटेकर कहें. मुझे आभास नहीं था कि मेरे कहने का अलग तात्पर्य निकाला जाएगा. साथियों की मदद करना चाहिए, आप सरकार में हैं आपके विधायक संतुष्ट रहें, प्रसन्न रहें, उनके काम होते रहें. विकास के भी काम होते रहें, निजी काम भी होते रहें, इसमें कोई बुराई नहीं है. मैंने सिर्फ यह कहा कि यह अच्छी परम्परा है कि एक मंत्री को 3-4 सदस्यों का दायित्व मिला है यह कोई अनहोनी नहीं है, कोई बुरी बात नहीं है. यह अच्छा प्रयोग है, इस प्रयोग का कभी वक्त हुआ तो अनुसरण...(हंसी)
अध्यक्ष महोदय, दो बातें प्रमुख रुप से सामने आईं. वर्ष 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण का प्रकाशन हुआ. अधिकांश सदस्यों ने कहा कि राज्य पिछड़ गया बीमारु हो गया, चर्चा की जा रही थी कि विकसित राज्य हो गया लेकिन दस्तावेज के आंकड़े कुछ और बताते हैं.
अध्यक्ष महोदय, मैंने वर्ष 2002-03 के आंकड़े निकलवाए. मुझे वह रिकार्ड देखकर आश्चर्य हुआ कि कैसे इस बात को कहा जा रहा है. पिछले रिकार्ड देखें तो किस दर से और किस तरह से राज्य आगे बढ़ा है. अध्यक्ष महोदय आपको और सदन को यह जानकर गर्व होगा. हमें गर्व करना चाहिए मध्यप्रदेश की जनता पर, मध्यप्रदेश के अधिकारियों पर और इस व्यवस्था में तत्समय जो लोग भी इसमें शामिल रहे हों. ग्रामीण सड़कों के मामले में हम देखें तो वर्ष 2002 में कुल 701 किलोमीटर सड़कें बनीं थीं और वर्ष 2018 में 73006 किलोमीटर सड़कें मध्यप्रदेश में बनाई गईं. हम लोगों ने 15 वर्षों में 73006 किलोमीटर सड़कें बनाईं. यह क्या विकास नहीं हुआ ? आप वर्ष 2002-03 का आर्थिक सर्वेक्षण देख लें और वर्ष 2018 का देख लें, आपको फर्क अपने आप समझ में आ जाएगा. सिंचाई की जहां तक बात है वर्ष 2002 में सिंचाई 4 लाख 7 हजार हेक्टेयर थी और वर्ष 2018 तक मध्यप्रदेश में लगभग 29 लाख 22 हजार हेक्टेयर जमीन सिंचित हो गई थी. यह क्या प्रगति नहीं हुई ? विद्युत उत्पादन की स्थिति, वर्ष 2002 में कुल 2940 मेगावॉट का जनरेशन था. अध्यक्ष महोदय आप ऊर्जा मंत्री रहे हैं आपको सारी बातों की जानकारी है, लगभग 3000 मेगावॉट का जनरेशन था. हम वर्ष 2018 में 18660 मेगावॉट विद्युत का उत्पादन कर रहे थे. मैंने वह काले दिन देखे हैं, काली रातें भी देखी हैं. मैं विधायक था विधायक विश्राम गृह में रहता था.
श्री बृजेन्द्र सिंह राठौर-- 2 लाख करोड़ रुपए का कर्ज किसने लिया है ?
श्री गोपाल भार्गव-- वह तो अभी आपके कार्यकाल में और बढ़ रहा है. मैं इसके बारे में भी बताऊंगा कि आप इसे कितना बढ़ा रहे हैं. बृजेन्द्र जी हम बता रहे हैं अगले महीने से वेतन नहीं मिलेगा. आप कर्ज लो और घी पियो.
श्री कुणाल चौधरी-- देश की प्रतिव्यक्ति आय तब क्या थी और अब क्या है.
श्री बृजेन्द्र सिंह राठौर-- तनख्वाह के लिए पैसे नहीं बचे यही हालत छोड़ी है.
श्री गोपाल भार्गव-- अध्यक्ष महोदय, मैं कह रहा हूं कि 15 वर्षों में एक भी ओवरड्राफ्ट हमारी सरकार में नहीं हुआ था. आगे आने वाले समय में आप देखेंगे कि क्या होने वाला है. आपका जो वित्तीय अनुमान है अभी मैं उस पर आऊंगा. परंतु अभी मैं आर्थिक सर्वेक्षण के ऊपर चर्चा कर रहा हूं. यह बात बार-बार कही गई कि राज्य पिछड़ गया है. यह सड़कें, यह विद्युत उत्पादन, यह सिंचाई और शिक्षा के मामले में वर्ष 2002 में 70 लाख बच्चों का एडमिशन हुआ था आज की तारीख में लगभग दुगने बच्चें हमारी प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय-- भार्गव जी, आपने मुझे उल्लेख कर दिया था बीच में वर्ष 2002 में उत्पादन उपलब्धता दोनों अलग-अलग होते हैं.
श्री गोपाल भार्गव-- अध्यक्ष महोदय, पेयजल की व्यवस्था वर्ष 2002 में कुल 1840 पेयजल योजनाएं, नलजल योजनाएं मध्यप्रदेश में थीं और हैण्डपम्पों की संख्या 35 हजार थी. वर्ष 2018 में 15500 नल जल योजनाएं मध्यप्रदेश में बनी और 5,40,000 हैण्डपम्पों का उत्खनन हुआ. मैं इसीलिए कहना चाहता हूं कि हमें अपने राज्य को कोसने का काम चाहे व्यवस्था में मैं हूं, चाहे और कोई भी हो अधिकारी करते हैं हम लोग जाकर नहीं खोदते. हम तो यहां विधान सभा में पॉलिसी बनाते हैं जैसे आपने बजट रखा, बजट रखते हैं क्रियान्वयन होता है मंत्रियों के द्वारा अधिकारियों का लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि कुछ हुआ ही नहीं मैं यह कह दूं कि आजादी के बाद से हिन्दुस्तान में कुछ नहीं हुआ, नेहरू जी के समय कुछ नहीं हुआ, इंदिरा जी के समय कुछ नहीं हुआ, शास्त्री जी के समय कुछ नहीं हुआ, अटल जी के समय कुछ नहीं हुआ तो मैं मान के चलता हूं कि उन महापुरुषों के साथ हम अन्याय कर रहे हैं. (व्यवधान)....
श्री तरुण भनोत-- आप तारीफ कर रहे हो यह बात मोदी जी को बताओ. बहुत बढि़या. (व्यवधान)....
श्री कुणाल चौधरी-- आर्थिक सर्वेक्षण की टीम में आकर टिप्पणी. (व्यवधान)....
अध्यक्ष महोदय-- आप सभी बैठ जाइए. जितने सदस्य गोपाल भार्गव जी के उद्बोधन के बीच में बोलें उनका कुछ नहीं लिखा जाएगा. देखिए, ध्यान रखिए एक परम्परा है नेता प्रतिपक्ष खड़े हों या सदन के नेता खडे़ हों आप ध्यान में रखा कीजिए.
श्री गोपाल भार्गव-- अध्यक्ष महोदय, नकारात्मक सोच जो है वह मैं मान के चलता हूं कि राज्य के लिए प्रतिगामी है. आपने यदि कोई काम अच्छा किया है हम आपके काम को सराहेंगे, एप्रीशियेट करेंगे और नहीं होगा तो जो हमारी ड्यूटी है, जो हमारा राजधर्म है हम आपको जगाने का काम करेंगे. इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, बुराई नहीं होनी चाहिए. मन के अंदर कोई ग्रंथी नहीं बनना चाहिए क्योंकि हम सभी लोग एक समान उद्देश्य के लिए यहां पर बैठे हुए हैं. प्रतिव्यक्ति आय वर्ष 2002 में 11718 रुपए थी. यह सरकार के द्वारा प्रकाशित किया गया आंकड़ा है मेरा नहीं है. मेरे पास में दोनो किताबें हैं पहले की भी और अभी की भी है. यह दोनों रखी हुई हैं मैंने इसी से कंपेरिज़न किया है. इतना बड़ा असत्य कथन भाषण हमारे सदस्यों ने किया हम उनको बताना चाहते हैं कि राज्य आगे बढ़ा निरंतर बढ़ा. यह बात ठीक है कि साऊथ के राज्यों में वेस्टर्न स्टेट जो हैं हमारे महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना इन सबमें उनके सोर्सेस ज्यादा हैं. हो सकता है कि हम कुछ मामलों में पिछडे़ हों लेकिन हमने सीमित संसाधनों के बावजूद भी मध्यप्रदेश को एक प्रकार से हमने ऐसे भयावह जंगलों से निकाला है. उसके बारे में कम से कम थोड़ी और प्रशंसा आपको करना चाहिए. वर्ष 2002 में 11718 रुपए आय थी और वर्ष 2018-2019 में 90998 रुपए हो गई. यह अभी आपके द्वारा प्रकाशित है. यह सारी बातें मैं गिनाऊंगा तो काफी वक्त लग जाएगा. बहुत सी बातें ऐसी हैं जिनके बारे में हम आलोचना कर सकते हैं क्योंकि सारी बातें आर्थिक सर्वेक्षण के साथ में आपके बजट भाषण से जुड़ी हैं आपके बजट भाषण में अनेक बातों का जो उल्लेख किया गया है. माननीय वित्त मंत्री जी मैं आपको यह खामी बताऊंगा कि आपके जो रेवेन्यू कलेक्शन है उसमे कहां पर यह कमजोरी आ रही है. माननीय अध्यक्ष महोदय, जी.एस.टी. की बात की जा रही है. टैक्स तो पहले ही पेट्रोल-डीज़ल और सभी पर, सरकार द्वारा लगा दिया गया है. सामान्यत: परंपरा यह है कि बजट भाषण और बजट सत्र जब शुरू हो जाता है तो कोई भी नया टैक्स सदन के माध्यम से लगना चाहिए था. जो कुछ हुआ, मैं उसके बारे में कुछ नहीं कहना चाहता हूं लेकिन ऐसी स्थितियां नहीं बननी चाहिए थीं. माननीय वित्त मंत्री जी, आपने बजट में आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर दिखाये हैं. सबसे पहले तो मैं यह कहूंगा कि आपने बजट भाषण ऐसा बनाया है कि जैसे राज्यपाल महोदया का अभिभाषण हो. बजट भाषण के दो-तीन पन्ने पढ़ने के बाद मुझे लगा कि कहीं मैं गलत तो नहीं पढ़ रहा हूं क्योंकि बजट भाषण ऐसा नहीं होता है. जिस किसी ने इस बजट भाषण को ड्राफ्ट किया है, मैं उसके बारे में कुछ नहीं कह सकता हूं चूंकि आपने अपना, पहला बजट पेश किया है इसलिए मैं इस पर बहुत ज्यादा जोर नहीं दूंगा लेकिन ऐसे बजट भाषण नहीं लिखे जाते हैं, ऐसा नहीं होता है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी ने बजट भाषण में बढ़ा-चढ़ाकर आंकड़े दिखाये हैं. इन्होंने राज्य उत्पाद कर में 37 प्रतिशत की ग्रोथ दिखाई है. आपके अधिकांश ठेके 20 प्रतिशत पर हो चुके हैं. मंत्री जी, हुए हैं कि नहीं ? मैं बताना चाहूंगा कि आपके सभी ठेके लगभग 18 प्रतिशत पर रहेंगे. यह आपको मानना पड़ेगा और आपने डेढ़ गुनी आय जोड़ ली है. मैं आपको बताना चाहता हूं कि आप पिछले 10 वर्षों की ग्रोथ रेट देख लें और यदि उसी ग्रोथ रेट के आधार पर आप अपना बजट बनाते तो वह वास्तविक होता. मैं इस बजट को खोखला इसलिए कह रहा हूं क्योंकि वास्तव में हो सकता है कि मंत्री जी को भी जादू में रखा गया हो. मैंने जो आंकड़े इकट्ठे किए हैं, हो सकता है उनमें मैं कहीं सही, नहीं भी रह सका हूं. आपने बजट का अनुमान किया है और माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं यह मानता हूं कि इस प्रकार के अनुमानों के आधार पर, यदि बजट बनाया आयेगा तो फिर अंत में यही स्थिति होगी कि न निर्माण कार्यों का भुगतान हो पायेगा, वेतन की भी दिक्कत आ सकती है, अन्य अति आवश्यक मदों के लिए भी राशि की दिक्कत आ सकती है इसलिए बजट को यथार्थवादी होना चाहिए, यथार्थ के आंकड़ों पर आधारित होना चाहिए. माननीय मुख्यमंत्री जी, शायद सदन में ही कह रहे थे कि लगभग 2500 करोड़ रूपया हमें केंद्र सरकार द्वारा अपने बजट में कम दिया गया है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं यह बात सदन को बताना चाहता हूं कि सरकार द्वारा जो बजट फरवरी 2019 में पेश किया गया था उसके आधार पर ही यह बजट तैयार किया गया है. जबकि वास्तविक बजट इस माह की 5 तारीख को आ गया था. आपको उसके आधार पर बजट तैयार करना चाहिए था. मैं कहना चाहता हूं कि बजट में जो कमी आ रही है, वह इस कारण से आ रही है क्योंकि आपने पुराने बजट के आधार पर अपने शेयर का आंकलन किया और आपने नए बजट के आधार पर आंकलन नहीं किया और इसलिए राशि में यह अंतर आ रहा है. मुख्यमंत्री जी, आप इस पर जानकारी ले लीजिये.
माननीय अध्यक्ष महोदय जी.एस.टी. में 70 प्रतिशत की वृद्धि दर्शायी गई है. जब आप इतनी वृद्धि दर्शायेंगे तो भारत सरकार आपको राशि क्यों देगी ? नियम तो उसमें यही है कि यदि आप घाटे में जा रहे हैं तो उसकी प्रतिपूर्ति भारत सरकार द्वारा की जायेगी लेकिन आपने पहले से बता दिया की इतनी वृद्धि है. क्या गाडि़यों, ऑटोमोबाइल सेक्टर और अन्य सेक्टरों से आपको, इतनी आय हो रही है ? क्या इतनी बिक्री हो रही है ? क्या आपको इतनी आय हो जायेगी ? यह कतई संभव नहीं है. यदि आप तुलनात्मक रूप से पिछले वर्षों की बिक्री देखते क्योंकि उसी अनुपात के आधार पर आगामी वर्षों के बजट का निर्माण किया जाता है. हमारे बजट में कुछ यथार्थ हो, तब तो बात बने लेकिन हमें तो बजट का आकार बढ़ाना है और बजट को 2 लाख 33 हजार करोड़ का करना है तो हम उसके साथ कुछ भी गुणा-भाग करेंगे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, यदि वृद्धि दर को मान भी लिया जाये तो क्षतिपूर्ति का अनुदान केंद्र से नहीं मिल सकता. केंद्र से 36 हजार 381 करोड़ के अनुदान में 3300 करोड़ क्षतिपूर्ति अनुदान का है जो कि गलत है, यह भी आपको नहीं मिलेगा. केंद्रीय करों में, हमारे राज्य का हिस्सा 63 हजार 751 करोड़ बताया गया है. यह भी आपको नहीं मिलने वाला है. केंद्रीय करों में आपके लिए यह कमी रहेगी यह मैं आपको इंगित कर आज बताना चाहता हूं क्योंकि ''सनद रहेगा तो वक्त पर काम आयेगा.''
माननीय अध्यक्ष महोदय, स्टाम्प ड्यूटी में 23 प्रतिशत की, वृद्धि गाईड लाइन आपने आंकलित की है. आपने गाईड लाईन में 20 प्रतिशत की कमी करके 23 प्रतिशत की वृद्धि आंकलित कर दी. हम जानना चाहते हैं कि इस कमी के बावजूद आप अपना टारगेट अचीव कर पायेंगे ? 23 प्रतिशत वृद्धि का, आप कतई नहीं कर सकते हैं. पूरी दुनिया में रियल स्टेट के मामले में हिन्दुस्तान नहीं बल्कि चीन वगैरह में, सभी जगह जो फॉल आया है, मैं मानकर चलता हूं कि यह स्थिति नहीं आने वाली है. भू-राजस्व में आपने काफी ज्यादा जोड़ लिया है, भू-राजस्व में 100 प्रतिशत की वृद्धि कैसे होगी, क्या आप राजस्व दरों में वृद्धि करेंगे ? एकदम 100 प्रतिशत, जस्ट डबल की वृद्धि कर दी है, भू- राजस्व के मामलों में.
अध्यक्ष महोदय, आपने ऊर्जा विभाग के व्यय के मामलों में सबसिडी आदि पर आपने 8000 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है. जबकि पिछले साल हम लोगों ने 14486 करोड़ रूपये का प्रावधान किया था. हमने 14486 करोड़ रूपये का प्रावधान किया और आपने 8000 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है. आपको इसको बढ़ाना पड़ेगा. मैं यह भी कहना चाहता हूं कि एक कमी यह भी आयेगी कि केन्द्र सरकार ने हाल ही में 1 लाख 60 करोड़ रूपये की कमी दर्शायी है, अत: पूर्व में आपका लिया गया एडवांस लगभग 4000 करोड़ रूपये कटेगा, आप नोट करते जायें, आपके अधिकारी बैठें. राज्य अंश में यह कटौती नहीं दर्शायी गयी है, इसको भी बताना है.
आपने वनोपज कर को जीएसटी में जोड़ दिया है, आपने इसको पढ़ा, जो वनोपज है वह आपने बजट में 420 करोड़ रूपये जोड़ी है, यह गलत है. क्योंकि वह तो जीएसटी में शामिल हो चुका है, वह अब आपके स्टेट टैक्स में तो आयेगा नहीं और इस कारण से वह भी आपका कम होगा. आपके नागरिक आपूर्ति निगम, मार्कफेड और पॉवर कंपनी आदि को राज्य सरकार से राशि नहीं मिलने के कारण बाजार से कर लेना पड़ा है और उसका भुगतान इसी साल 2019-20 से शुरू हो जायेगा. उसकी आगे की व्यवस्था क्या होगी, उसको भी आप देख लें नहीं तो आपका उपार्जन, फर्टिलाइजर, आपकी जो भी नैफेड से खरीदी होती है, उन सारी की सारी जींसो की खरीदी में भुगतान आ जायेगी.
अध्यक्ष महोदय, राज्य सरकार के पास पैसा न होने के कारण किसानों की चना, मसूर और सोयाबीन आदि की खरीद भी नहीं हो पायी है, यह सबको मालूम है. उसकी चर्चा भी चुकी है.
अध्यक्ष महोदय, आपने 4000 करोड़ रूपये का आवास के लिये प्रावधान किया है, यह तो भारत सरकार का दिया हुआ है, आवास के लिये. इसमें आपने लिखा है कि हमने इतना-इतना प्रावधान कर दिया. आपने बजट में यह भी प्रावधान किया है कि सिंचाई शुल्क से 131 प्रतिशत, खनिज से 32 प्रतिशत, वन से 25 प्रतिशत और अन्य 49 प्रतिशत की वृद्धि दर्शायी है. मुझे लगता है कि यह बहुत अतिरेक है. खैर, कुछ समय बाद देखेंगे कि आपका रेवेन्यू कितना आ रहा है.
अध्यक्ष महोदय, इसके अलावा गृह विभाग में व्यय की वृद्धि मात्र 6 प्रतिशत, गृह मंत्री जी कहां हैं. आपकी मात्र 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसका अर्थ यह है कि आप जो एक दिन की छुट्टी करने वाले हैं न कर्मचारियों की, यह आपकी रिक्रूटिंग नहीं होगी. आपकी होम डिपार्टमेंट की. अध्यक्ष महोदय, राजस्व घटेगा तो भुगतानों पर रोक लगेगी तथा दर्शाये गये व्यय में भी कटौती होगी तो पूरे बजट की हवा गुब्बारे की तरह निकल जाएगी. मैं माननीय वित्तमंत्री जी से कहना चाहता हूं कि बेरोजगारों के लिये कोई दृष्टि इसमें नहीं हैं, उनमें भी आक्रोश है. 2019-20 के अंत तक कुल बजट व्यय से राज्य सरकार पर कर्ज की राशि 2 लाख 18 हजार करोड़ रूपये होने वाली है. आप इसको वित्तमंत्री जी देख लेना अभी इसमें चर्चा हो रही थी. आप इस कर्ज की वृद्धि को नहीं रोक सकते हैं. इस लोन पर जो ब्याज देय है वह भी हो सकता है कि आपको कर्ज लेकर के चुकाना पड़े. केन्द्र शासन से अनुदान राशि 36 हजार 381 करोड़ रूपये दर्शायी है उसमें जीएसटी क्षतिपूर्ति अनुदान रूपये 33 सौ करोड़ रूपये शामिल रहे होंगे. यह राशि जीएसटी में जोड़ी जाएगी जैसा मैंने पूर्व में इसकी चर्चा कर चुका हूं. इसलिये मैं कहना चाहता हूं माननीय वित्तमंत्री जी आप यथार्थ के नजदीक आयें इस बजट को देखें. ऐसी बहुत सी बाते हैं. आज मेरा खनिज विभाग से संबंधित प्रश्न था. मैंने उनसे पूछा था 1 जनवरी 2019 से 1 जुलाई 2019 तक की अवधि में प्रदेश में अवैध रेत उत्खनन में कितने प्रकरण दर्ज किये गये ? अवैध दर्ज रेत उत्खन्न के प्रकरणों में जप्त किये गये अथवा राजसात किये गये कितने वाहनों पर रायल्टी अथवा जुर्माना आरोपित कर उन्हें मुक्त किया गया. अवैध उत्खनन के प्रकरणों से विभाग को कितनी राशि विभाग को जुर्माने के रूप में प्राप्त हुई. इस अवधि में अवैध रेत उत्खनन करने एवं अवैध भंडारण के कितने प्रकरण पुलिस थानों में दर्ज किये गये ? यह प्रश्न किया गोपाल भार्गव जी ने आज की प्रश्नोत्तरी में इस प्रश्न के उत्तर में देखिये किस प्रकार की कार्यवाही उत्खनन पर हो रही है ? मैं निवेदन कर रहा था जब रीवा का विषय आया था कि इसमें हमने स्थगन भी दिया, ध्यानाकर्षण भी दिया, इस पर एक चर्चा तो हो जाए. आप मध्यप्रदेश में पॉलिसी बना रहे हैं, आप बनायें. पॉलिसी अच्छी बनेगी तो हम स्वागत भी करेंगे. हम चाहते हैं कि प्रदेश का रेवेन्यू बढ़े.
अध्यक्ष महोदय, आप देखें कि दर्ज प्रकरण पिछले छः महीने में रीवा जिले में शून्य, भोपाल जिले में शून्य, राजगढ़ जिले में शून्य, इन्दौर जिले में शून्य, खण्डवा जिले में शून्य, एक भी प्रकरण वहां पर दर्ज नहीं हुआ है. क्या इस दस्तावेज को आप सही मानते हैं ? खनिज मंत्री जी भोपाल जिले में सैकड़ों डम्पर रेत के रोज आते हैं वह वैध भी हैं और अवैध भी हैं रोज तमाम बातें अखबारों में भरी रहती हैं. वहां पर हम जवाब देते हैं कि शून्य तथा उसमें फाईन की राशि नॉमिनल. कुछ जिलों में एक-एक अथवा दो-दो मामले बने हैं, एकाध मामले में आपने राजसात किया है. मैं इसलिये इस बात को राज्य हित में कहना चाहता हूं कि आप चाहते तो इन मामलों में कुल आय आपकी छः महीनों में कितनी हुई है ? 3 करोड़ 77 लाख मध्यप्रदेश से सभी 52 जिलों में 3 करोड़ 77 लाख आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि यह आईना है आज की प्रश्नोत्तरी के परिशिष्ट में. मैं यह कहना चाहता हूं कि प्रशासन में, मायनिंग ऑफिसर में ईमानदारी होती तो और भी एजेंसियां इनसे जुड़ी हुई हैं, उनमें होती तथा रेवेन्यू के अधिकारियों में होती तो कम से कम इन शहरों से पांच सौ करोड़ रूपये इन शहरों से मिल सकता था. आपको अतिरिक्त टैक्स पेट्रोल-डीजल तथा वाहनों पर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती. आपने अनेकों चीजों पर बजट से पहले करारोपण किये हैं उसकी आवश्यकता नहीं पड़ती. मैं कहना चाहता हूं कि इसमें कोई पॉलिसी बनाकर रेवेन्यू को बढ़ाया जा सकता है आप इसको देख सकते हैं. बेरोजगारी के बारे में भी आज का ही प्रश्न है उसमें बेकारी की हालत को आप देखिये. भर्ती हो गई, व्यापम से परीक्षा भी हो गई, स्कूल खाली हैं, नौजवान घूम रहे हैं उनकी परीक्षाएं हो चुकी हैं.
लेकिन अध्यक्ष महोदय, अभी तक उनके लिए अपाइंमेंट नहीं आए. स्कूल की परीक्षा शुरू हो गई, सेशन शुरू हो गए, शिक्षा सत्र शुरू हो गए. यदि हमने इन सब बातों पर गौर नहीं किया तो लगातार बजट घाटा बढ़ता जाएगा और वास्तविक आय कम होती जाएगी. मैं कहना चाहता हूं कि ट्रांसफर, पोस्टिंग की खूब बातें हुईं. एक दिन में किसी अधिकारी का दो बार, तीन बार ट्रांसफर करें, यह आपका विशेषाधिकार है. जब मैंने पूछा तो कई लोगों ने कहा कि यह तो हमारा अधिकार है, यह कैसा अधिकार है? यह तो मुझे समझ नहीं आया कि सुबह 11 बजे वहां पर वह अधिकारी योग्य था, 2 बजे वह अयोग्य हो गया और शाम के समय फिर से वह योग्य हो गया. मैं यह जानना चाहता हूं कि यह सब क्यों.
अध्यक्ष महोदय, मैं आलोचना के बजाए सुझाव देना चाहता हूं. मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि यह सारा का सारा जो विषय है, सरकार के सामने प्रश्नचिह्न खड़ा करता है. बजट के अलावा वित्त सचिव का जो स्मृति पत्र है, उससे मैंने सारी चीजें निकाली, सचिव का जो मेमोरेंडम है, उन्हीं के द्वारा लिखा गया है इसमें पेज 17 है, पेज 18 है इसके बाद में सारे के सारे पेज है आप इसको देखें. सामने दिख रहा है पूरा आईना है, कहीं बहुत ज्यादा जाने की जरूरत नहीं है. वित्त मंत्री जी मैं आपको बताना चाहता हूं कि 16 हजार करोड़ रूपए की कम आय होगी, आप इसकी कहां से प्रतिपूर्ति करेंगे. मैं कहना चाहता हूं कि आपने जो आंकलन किया है यह बहुत ज्यादा है. अध्यक्ष महोदय, स्वरोजगार की बात है यह बात कहां से आई लेकिन बीच में यह काफी चर्चा चली और मध्यप्रदेश की शासकीय साइट में कि रोजगार के लिए बैण्ड बजाना है, रोजगार के लिए मवेशी चलाना, ये सारी बातें. अब मुझे जानकारी नहीं कि कहां से ये सब बातें आई, शायद कुछ खंडन भी हुआ है. लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि ये किसने डाली और वास्तव में यदि ये रोजगार है तो बेरोजगारों का इससे बड़ा मजाक कुछ नहीं हो सकता. अब आप बेरोजगारों से जलेबी बिकवाएंगे, नमकीन बिकवाएंगे, (..व्यवधान) अब यह जलेबी समोसा बेचने का काम.
श्री कमलेश्वर पटेल - प्लेटफार्म उपलब्ध करवाने की बात कही है यह नहीं कहा है कि हम उनसे ये बिकवाएंगे, अगर कोई छोटे उद्यमी है, अच्छा काम कर रहा है तो उनको मार्केटिंग उपलब्ध करवाने की बात कही है. आपका 15 साल हुआ है हमारा 6 महीना ही हुआ है.
अध्यक्ष महोदय - चलएि बैठ जाइए.
श्री गोपाल भार्गव - अध्यक्ष महोदय, बहुत महत्वपूर्ण बात है. ऋण माफी की चर्चा हो रही है. माननीय वित्त मंत्री जी अभी तक लाल, हरे, पीले रंग के फार्म भरवाए गए, पूरे मध्यप्रदेश में. आप यह बताएं कि टोटल कितने ऋण की राशि है किसानों के ऊपर, 2 लाख तक की या उससे कम की और आपको कितनी राशि देना है. आपने सप्लीमेंट्री बजट में 5 हजार करोड़ रूपए का प्रावधान किया और 8 हजार करोड़ रूपए का भी प्रावधान किया. अब 5 हजार करोड़ रूपए के विरूद्ध अभी कितना डिस्बर्स हुआ यह नहीं कह सकता और 8 हजार करोड़ रूपए के विरूद्ध कितना डिस्बर्स होगा, यह भी नहीं कह सकता. 10 से लेकर 16 हजार करोड़ रूपए का आपको अभी इसमें झटका लगने वाला है. मैं यह कहना चाहता हूं कि किसानों को कब तक आश्वासन में रखेंगे, कितने बार आप सप्लीमेंट्री बजट में और इधर उधर से प्रावधान करते हैं. पहले आप अपने उत्तर में यह तो बताए कि कितना ऋण किसानों के ऊपर है, जिस दायरे में हमारी को-ऑपरेटिव संस्थाएं, हमारे ग्रामीण बैंक है और जो हमारे नेशनालाइज बैंक है आपने उनके कर्ज माफी की बात कही थी. मैं यह जानना चाहता हूं कि कुल तीनों प्रकार के बैंकों का कितना ऋण किसानों के ऊपर है, उसके बाद आपने बजट का इसके विरूद्ध प्रावधान किया है. अभी तो कुछ भी कर दिया 5 हजार करोड़ कर दिया, 8 हजार करोड़ कर दिया. वित्त मंत्री जी इस बात को बताए कि 60 हजार करोड़ रूपए है या 65 हजार करोड़ रूपए है, कोई कुछ बोलता है, कोई कुछ बोलता है. अध्यक्ष महोदय, सबसे गंभीर बात यह है, माननीय सहकारिता मंत्री जी बैठे हैं, बेल आउट करने के लिए आप 1 हजार करोड़ रूपए दे रहे हैं, शायद 15 सहकारी बैंकों को जो बीमार बैंक है, आप दे रहे हैं, आपके बजट में है?
डॉ. गोविन्द सिंह - दोबारा दे रहे हैं. आपने जब सफाचट कर दिया तो हम कुछ तो करेंगे ही.
श्री गोपाल भार्गव - सहकारिता मंत्री जी, आप विषयान्तर हो रहे हैं. वित्त मंत्री जी, इस बात का अध्ययन करवा लें. आपके अधिकारी बैठे हुए हैं. आप इस बात का अध्ययन करवा लें कि आरबीआई ने परमीशन दी है. ऐसा तो नहीं है कि आरबीआई लाइसेंस निरस्त कर दे. यदि गवर्नमेंट उसमें हिस्सेदार हो गई तो मैं यह कह रहा हूँ कि जो को-ऑपरेटिव्ह की संस्थाएं हैं, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया आपका लाइसेंस निरस्त कर देगी और बैंक आपका समाप्त हो जाएगा, डूब जाएगा. आप ईमानदारी से बता दें, यदि मैं गलत हूँ. आपको बेल आऊट का अधिकार नहीं है.
श्री राजवर्धन सिंह प्रेम सिंह ''दत्तीगांव'' (बदनावर) - अध्यक्ष महोदय, आप जो बोल रहे हैं. मैं आपको वैद्यनाथन कमेटी का स्मरण दिलाना चाहता हूँ.
श्री गोपाल भार्गव - वैद्यनाथन कमेटी का पैकेज था.
श्री राजवर्धन सिंह प्रेम सिंह ''दत्तीगांव'' - लेकिन दिया हमारी सरकार ने, मदद की.
श्री गोपाल भार्गव - वैद्यनाथन ने ग्रांट दी थी. कमेटी बनी है, कमेटी के बाद वैद्यनाथन की रिकमेंडेशन थी, उसके आधार पर मध्यप्रदेश के लिए पहली किश्त में 1,800 करोड़ रुपये और दूसरी किश्त नहीं मिल पाई थी. मैं चूँकि को-ऑपरेटिव्ह मिनिस्टर भी रहा हूँ, इस कारण से मैं यह कहना चाहता हूँ कि पांव पीछे खीच लें. आप जो इसमें 1,000 करोड़ रुपये दे रहे हैं, सहकारी बैंक सारे के सारे, रिजर्व बैंक उन पर आपत्ति लगा देगा और हम यह कहना चाहते हैं कि न नाबार्ड और न कोई फाइनेंसर होगा. इस बात को आप समझ रहे होंगे, महसूस कर रहे होंगे.
अध्यक्ष मह