मध्यप्रदेश विधान सभा

 

की

 

कार्यवाही

 

(अधिकृत विवरण)

 

 

 

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पंचदश विधान सभा                                                                                                  प्रथम सत्र

 

 

जनवरी, 2019 सत्र

 

बुधवार, दिनांक 9 जनवरी, 2019

 

(19 पौष, शक संवत्‌ 1940)

 

 

[खण्ड- 1 ]                                                                                                                [अंक- 3 ]

 

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मध्यप्रदेश विधान सभा

 

बुधवार, दिनांक 9 जनवरी, 2019

 

(19 पौष, शक संवत्‌ 1940)

 

विधान सभा पूर्वाह्न 11.03 बजे समवेत हुई.

 

{अध्यक्ष महोदय (श्री नर्मदा प्रसाद प्रजापति (एन.पी.) पीठासीन हुए.}

 

माननीय अध्‍यक्ष को बधाई एवं शुभकामनाएं

 

          डॉ. नरोत्‍तम मिश्र (दतिया)-- माननीय अध्‍यक्ष महोदय, आपको बहुत-बहुत बधाई, बहुत-बहुत शुभकामनाएं.

          अध्‍यक्ष महोदय-- आपकी मेहरबानी.

          लोक निर्माण मंत्री (श्री सज्‍जन सिंह वर्मा)-- अब आप लोग हमेशा ही लेट होते रहेंगे. ऐसे ही लेट बधाई देते रहेंगे.

          अध्‍यक्ष महोदय-- नरोत्‍तम भाई को कुछ कहने दीजिए.

          डॉ. नरोत्‍तम मिश्र-- माननीय अध्‍यक्ष महोदय, आज आप उस संभाग से माननीय अध्‍यक्ष जी बने हैं जो पंडित कुंजीलाल दुबे से प्रारंभ होकर श्री राजेन्‍द्र शुक्‍ला जी, श्री बृजमोहन जी, श्री रोहाणी जी, डॉ. सीतासरन शर्मा जी से होती हुई आप तक आई है. अध्‍यक्ष जी इस भवन की खूबसूरती ईंट और गारों की खूबसूरती में नहीं है इस भवन की खूबसूरती इसी में है कि इसकी ताकत आप होते हैं और आप से हम सबको ताकत मिलती है. प्रजातंत्र के अंदर यह एक ऐसा मंदिर है जिससे हम सबको ताकत मिलती है. आसंदी पर बैठने के बाद आप न तो उस पक्ष के होते हैं और न इस पक्ष के होते हैं आप निष्‍पक्ष होते हैं और हम शुभकामनाओं के साथ यह उम्‍मीद करते हैं कि इस निष्‍पक्षता को कायम रखते हुए खासकर विपक्ष के सदस्‍यों को आपका संरक्षण, संवर्द्धन, आशीर्वाद मिलेगा बहुत-बहुत शुभकामनाएं.

          अध्‍यक्ष महोदय-- धन्‍यवाद. 

          नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव)-  माननीय अध्‍यक्ष महोदय, सदन में भले ही हमारी अनुपस्थिति रही हो लेकिन मैं पूरे सम्‍मान के साथ कह रहा हूं कि हमारे दिल से, हमारे मन से, आपने जो यह आसंदी का पदभार ग्रहण किया है, इसके लिए मेरा समूचा विधायक दल और हम सभी प्रसन्‍न हैं. हम आपसे यह आशा और उम्‍मीद करते हैं, जैसा कि नरोत्‍तम भाई ने कहा मध्‍यप्रदेश में एक बहुत ही श्रेष्‍ठ परंपरा है जो न केवल देश में अपितु पूरी दुनिया में एक उदाहरण है. यह एक नजी़र है हमारे संसदीय इतिहास में, विधान मंडलों के इतिहास में कि मध्‍यप्रदेश की विधानसभा अपनी श्रेष्‍ठ परंपराओं के लिए जानी जाती है और जब आसंदी बहुत कुशल हो, ज्ञानी हो, विधि का जानकार हो, वरिष्‍ठ हो तो निश्‍चित रूप से हम यह मानते हैं और इसलिए हमें न्‍याय की भी पूरी उम्‍मीद है. अध्‍यक्ष महोदय, इन सभी विधाओं से  ओत-प्रोत हैं और इस वजह से हम यह मानकर चलते हैं कि आपके इस आसंदी पर विराजमान होने के बाद हम सभी लोगों के लिए, जो इस पक्ष में हैं भारतीय जनता पार्टी के हमारे सभी सदस्‍यों के लिए, निर्दलीय सदस्‍यों के लिए, समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी के सदस्‍यों एवं हमारे सम्‍मुख जो शासकीय पक्ष हैं, सदन के सभी सदस्‍यों को आपका संरक्षण प्राप्‍त हो और हमें न्‍याय मिलेगा. हमारे हितों का संरक्षण होगा. हमें प्रश्‍न पूछने और उत्‍तर जानने की पूरी आजादी मिलेगी और मैं मानकर चलता हूं कि समय-समय पर जो घटनायें घटित होंगी उन्‍हें प्रभावी ढंग से उठाने का आप निश्चित रूप से हमें अवसर देंगे ताकि यह विधानसभा पूरे प्रदेश में जनभावना का प्रतिबिंब बने और वास्‍तवि‍क प्रतिबिंब बने. जिससे लोगों की लोकतंत्र के प्रति और अधिक आस्‍था तथा विश्‍वास बढ़ें यही मेरी आपसे अपेक्षा है. आपको पुन: इस आसंदी पर विराजमान होने के लिए बहुत-बहुत बधाई. धन्‍यवाद.

          श्री शिवराज सिंह चौहान (बुधनी)-  माननीय अध्‍यक्ष महोदय, यह विधानसभा केवल ईंट और गारे का भवन नहीं अपितु लोकतंत्र का पवित्र मंदिर है. यहां पक्ष हो, प्रतिपक्ष हो, मुद्दों पर मतभेद हो सकते हैं लेकिन मध्‍यप्रदेश का विकास और जनता का कल्‍याण, यह हम सभी का उद्देश्‍य और लक्ष्‍य है. आज इस आसंदी पर आप विराजमान है. आप अुनभव की भट्टी में पके हुए प्रदेश के वरिष्‍ठ राजनीतिज्ञ हैं. आपका बहुमुखी व्‍यक्तित्‍व है और आपके व्‍यक्तित्‍व की जो विशेषता है वह है- असाधारण विनम्रता. जो कि सहज ही सबका मन मोह लेती है. मैंने मुख्‍यमंत्री रहते हुए भी आपको प्रतिपक्ष में बैठकर जिस प्रकार कार्य करते हुए देखा है वह सचमुच अद्भुत है. मुझे विश्‍वास है कि आसंदी न पक्ष की है न प्रतिपक्ष की है, वह निष्‍पक्ष होती है. यह स्‍वाभाविक है कि हमारी भी भूमिका प्रदेश के विकास एवं जनता के कल्‍याण में सकारात्‍मक सहयोग और यदि कहीं गड़बड़ होगी तो प्रचंड विरोध की रहेगी. हमें पूरा विश्‍वास है कि आपके संरक्षण की आवश्‍यकता पक्ष से अधिक प्रतिपक्ष को होती है. मुझे पूरा विश्‍वास है कि जब भी ऐसे मुद्दे सदन में उठाये जायेंगे तो प्रतिपक्ष के सदस्‍यों को भी आपका संरक्षण मिलेगा और जन भावनाओं का प्रतिनिधित्‍व करते हुए सदस्‍य अपनी बात प्रखरता से, मुखरता से इस सदन में रख सकेंगे. मैं अपनी ओर से भी आपको हार्दिक बधाई देता हूं. आपका अभिनंदन करता हूं.

          डॉ. सीतासरन शर्मा (होशंगाबाद)-  माननीय अध्‍यक्ष महोदय, इस महत्‍वपूर्ण पद पर आसीन होने के लिए आपको बधाई एवं शुभकामनायें.

          श्री अजय विश्‍नोई (पाटन)-  अध्‍यक्ष महोदय को बधाई चाहिए कि शुभकामनाओं की ज्‍यादा आवश्‍यकता है. आपको इस पद का अनुभव है इसलिए मैं पूछ रहा हूं.

          डॉ. सीतासरन शर्मा- अध्‍यक्ष महोदय, अनुभव तो  बड़ा कठोर है, लोकतंत्र की आत्‍मा अध्‍यक्ष में बसती है. अध्‍यक्ष ही लोकतंत्र के प्राण है और लोकतंत्र की आत्‍मा है और मुझे मालूम है कि वहां बैठकर के कितनी कठिनाई होती है. हम प्रतिपक्ष के लोगों के लिये और सत्‍ता पक्ष के लिये भी, दोनों के लिये बैलेंस करके चलना और न्‍यायपूर्वक कार्यवाही करना, तराजू को तौलना या तलवार की धार पर चलने जैसा होता है. मुझे विश्‍वास है, आपके अनुभव को देखते हुए. मैंने आपको वहां भी देखा है, मैं तो यहां से वहीं तक जा पाया, उस तरफ कभी नहीं जा पाया. किन्‍तु मैंने आपको वहां भी देखा है और आज यहां इस स्‍थान पर देख रहा हूं. मैं भरोसा करता हूं कि इस सदन का संरक्षण और इसका नेतृत्‍व, आपके कुशल नेतृत्‍व में ठीक चलेगा और लोकतंत्र के नये आयाम इस विधान सभा के माध्‍यम से स्‍थापित होंगे. आपको पुन: बधाई और पुन: शुभकामनाएं.

          अध्‍यक्ष महोदय-  "पक्ष विपक्ष और मैं निष्‍पक्ष" (मेजों की थपथपाहट)  आपकी भावनाओं का स्‍वागत है. मेरा मन तो दिल से था कि कल पक्ष और विपक्ष दोनों होते, परम्‍पराओं का निर्वहन होता तो मैं, अपने आप को अभिभूत मानता. समय की विडम्‍बना है, कोई बात नहीं. इस सदन में प्रबुद्धजन भी यहां है, अच्‍छे सदस्‍य भी यहां हैं. परम्‍पराओं का निर्वहन कैसे चले, यह निर्भर आप दोनों पर करता है. आपके कार्य, आपकी कार्य-कुशलता और उसके अंदर आप कितना ऊपर आयें और कितना फ्लोर पर आयें, कहीं न कहीं हमें कुछ विराम देने पड़ेंगे.                                                                           

          वर्ष 1985 में हमने राजेन्‍द्र शुक्‍ला जी को देखा. हमारे कई माननीय सदस्‍य 1985 के यहां पर बैठे हैं , हर बार फ्लोर पर आने की जरूरत नहीं पड़ती थी. उस समय के सदस्‍य जो बात कर रहे थे, उनको उन्‍हीं के पक्ष के लोग टोकते नहीं थे.तब ही विषय-वस्‍तु निकल कर आती थी और उसका हल निकलता था. मेरी आप सबसे गुजारिश है, आइये हम सब मिलकर अपनी-अपनी आहूति इस लोकतंत्र के पवित्र मंदिर में ऐसी डालें कि उन परम्‍पराओं को हम अन्‍य देश की अन्‍य विधान सभाओं, विधान भवनों से अलग कैसे लेकर चलें, ऐसी मेरी आप सबसे प्रार्थना है, आप सभी को साधुवाद.

11.13 बजे                            निधन का उल्‍लेख

 

 (1)    श्री अटल बिहारी वाजपेयी, भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री,

(2)     श्री सोमनाथ चटर्जी, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष,

(3)     श्री प्रफुल्ल माहेश्वरी, पूर्व राज्यसभा सदस्य,

(4)     श्री इन्द्रजीत कुमार, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,

(5)     श्री देवीसिंह पटेल, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,

(6)     श्री रामानंद सिंह, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,

(7)     श्री दयाल सिंह तुमराची, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा

(8)     श्री जुगल किशोर बजाज, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,

(9)     श्री स्वामी प्रसाद लोधी, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,

(10)    श्री प्रभुनारायण त्रिपाठी, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,

(11)    श्री विमल कुमार चौरडिया, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,

(12)    श्री आनंद कुमार श्रीवास्तव, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,

(13)    श्री राधाकृष्ण भगत, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,

(14)    सुश्री डॉ. कल्पना परूलेकर, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा.

 

                                                                                                                          

                                                                                                                       

 

 

          अध्‍यक्ष महोदय - मैं जब यह उल्‍लेख कर रहा था तो तीन ऐसे सदस्‍यों के नाम आए, जिनके साथ मुझे इस सदन में काम करने का मौका मिला, तो निश्चित रूप से मैं उन तीनों के लिए बहुत ज्‍यादा दु:खी अपने आपको मानता हूं.

          मुख्‍यमंत्री (श्री कमलनाथ) - माननीय अध्‍यक्ष जी, सबसे पहले आज हम अटल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और साथ ही साथ, मैं उन्‍हें अपने व्‍यक्तिगत और राजनीतिक जीवन की इस यात्रा में भी याद करता हूँ. सबसे पहले मेरा सम्‍पर्क अटल जी से सन् 74 में हुआ, जब मैं विशेष रूप से राजनीति में नहीं था. मेरे एक रिश्‍तेदार जो उनके कार्यालय में उनके निकट कार्य करते थे, उनके माध्‍यम से परिचय हुआ था और उन्‍होंने पहले दिन से मुझे उस जवानी में प्रभावित किया था, मैं उन्‍हें याद करता हूँ. मैंने उन्‍हें कई रूपों में देखा है. मैंने उन्‍हें एक सांसद के रूप में देखा, उन्‍हें एक मंत्री के रूप में देखा, उन्‍हें प्रधानमंत्री के रूप में देखा और वे केवल नेता ही नहीं बल्कि ऐसे समाज सेवक थे, जिनको लगभग देश का हर वर्ग प्रेम करता था. मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह एक सच्‍चाई है. मुझे याद है कि दिनांक 14 जुलाई, 92 को जब मैं पर्यावरण मंत्री था और मैं पर्यावरण शिखर सम्‍मेलन से लौटा, जिसको 'अर्थ समिट' कहा जाता था. जैसे ही मैं सदन में, लोकसभा में आया तो अटल जी खड़े हो गए, वे प्रतिपक्ष के नेता थे. उन्‍होंने खड़े होकर कहा कि मैं कमलनाथ को बधाई देता हूँ कि उन्‍होंने बड़ी मजबूती एवं दृढ़ता से भारत का पक्ष रखा. यह उनका बहुत बड़प्‍पन था, उसके बाद मैं उन्‍हें धन्‍यवाद देने गया तो उन्‍होंने कहा कि यह धन्‍यवाद मुझे मत दीजिए. मैंने कोई अहसान नहीं किया, आप तो इसके पात्र थे. अटल जी हमारे राजनीतिक क्षेत्र के एक उदाहरण थे, उन्‍होंने दिशा और मार्गदर्शन लाखों लोगों को दिया होगा और जब वे केवल सांसद ही थे और मैं मंत्री था. वे एक ऐसे राजनीतिक नेता थे, मुझे फोन करते थे, उनकी सरलता हमें समझ नहीं आई. वे कहते थे कि मैं आपसे मिलने आऊँगा, मैंने कहा कि यह सम्‍भव नहीं है. जब आप चाहें, जब आप पुकारें, मैं हाजिर हो जाऊँगा. अटल जी ने अपने देश की राजनीति को एक नई दिशा तो दी और एक उदाहरण के रूप में बंगलादेश के वॉर के बाद उन्‍होंने जो इन्दिरा गांधी जी के बारे में कहा, इससे अपने देश में हर वर्ग में उनका कद बढ़ा है तो आज हम उन्‍हें याद करते हैं, उन्‍हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. मैं अपनी ओर से, अपनी पार्टी की ओर से और इस सदन की ओर से, उन्‍हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ.

            सोमनाथ चटर्जी भी एक राजनीति उदाहरण थे. वे स्‍पीकर रहे, जब मैं लोकसभा में मंत्री था. मैंने पहली टर्म में उनसे बहुत कुछ सीखा, मैं उन्‍हें भी बहुत समय से जानता था. मैं जब लोकसभा में भी नहीं पहुँचा था, मैं उन्‍हें जानता था, उनके पूरे परिवार को जानता था. मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा. वे सही रूप में न ही पक्ष के थे और न ही विपक्ष के थे. वे तो मार्क्‍सवादी पार्टी से थे और जो उनका रोल था, वे हमें कभी डांट भी देते थे. वे सख्‍त स्‍पीकर थे. एक अनुशासन सदन में बना रहे और अगर पिछली तीन-चार लोकसभा का रिकॉर्ड देखें तो यह बात स्‍पष्‍ट होगी कि सबसे शांतिपूर्ण लोकसभा उनके कार्यकाल में चली.        क्‍योंकि वह प्‍यार से कभी सख्‍ती से सदन को चलाते थे, उन्‍हें भी में अपनी ओर से और सदन की ओर से श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं.

माननीय अध्‍यक्ष महोदय, हमारे कई साथी आज हमारे बीच में नहीं रहे हैं. श्री प्रफुल्ल माहेश्वरी एक वरिष्‍ठ पत्रकार थे, श्री इन्द्रजीत कुमार, श्री देवीसिंह पटेल,  श्री रामानंद सिंह, श्री दयाल सिंह तुमराची,  श्री जुगल किशोर बजाज, श्री स्वामी प्रसाद लोधी,  श्री प्रभुनारायण त्रिपाठी, श्री विमल कुमार चौरडिया,श्री आनंद कुमार श्रीवास्तव, श्री राधाकृष्ण भगत और सुश्री डॉ. कल्पना परूलेकर जिनका निधन कुछ दिन पहले ही हुआ है, मैं ईश्‍वर से प्रार्थना करता हूं कि उनकी आत्‍मा को शांति मिले और मैं उन्‍हें अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं.

नेता प्रतिपक्ष ( श्री गोपाल भार्गव) -- माननीय अध्‍यक्ष महोदय, आज बहुत दु:खी मन से हम सभी लोग और पूरे सदन की ओर से ऐसे 14 वरिष्‍ठ लोगों के लिये जिन्‍होंने अपने राजनीतिक जीवन में रहते हुए प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त की, अपने समर्पण से अपने ज्ञान से, अपनी सेवा से, अपने बड़प्‍पन से और अनेक प्रकार की जितनी योग्‍यतायें उनमें निहित थी, उन सभी के द्वारा उन्‍होंने इस देश और राज्‍य की सेवा की है, मैं उन्‍हें अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं.

माननीय अध्‍यक्ष महोदय, श्री अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में सदन के नेता और मुख्‍यमंत्री जी ने जो बात कही है, वह सही है कि वे ऐसे व्‍यक्तिव थे कि कभी कभी हम ऐसा सोचते हैं कि पूर्व में न ऐसा कोई आदमी, न कोई ऐसा व्‍यक्तिव हुआ होगा और न ही हमें बाद में देखने को मिलेगा. भगवान करे हमें देखने के लिये मिल जाये लेकिन अब ऐसे लोग बहुत ही कम हैं, शायद ही दुनिया में उनके जैसे लोग होते हैं, जिनको सभी लोग स्‍वीकार करते हैं.

माननीय अध्‍यक्ष महोदय, जैसा अभी माननीय मुख्‍यमंत्री जी ने कहा श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपना पूरा राजनीतिक जीवन बगैर किसी दलगत भेदभाव के व्‍यतीत किया. जब इंदिरा जी प्रधानमंत्री थी उस समय भी और उसके बाद भी उनके मन में यह कटुभाव नहीं आया कि मेरे लिये इन्‍होंने मीसा में अथवा जेल में बंद किया. श्री अटल जी हमेशा बड़प्‍पन की बात करते थे, जैसा अभी माननीय मुख्‍यमंत्री जी ने कहा वह बात सही है कि सन् 1971 का जो भारत पाकिस्‍तान का युद्ध हुआ श्री अटल जी ने पूरे बड़प्‍पन के साथ में इंदिरा जी के लिये धन्‍यवाद भी दिया और संज्ञा भी दी. जब विदेश में मुख्‍यमंत्री जी अपना भाषण देने के लिये गये तो यह उनका बड़प्‍पन का प्रतीक है. यह बड़प्‍पन इस सदन में भी परि‍लक्षित हो यह प्रयास मैं अपनी तरफ से भी करूंगा और माननीय जो ट्रेजरी बेंचेस हैं उनकी तरफ से भी प्रयास चाहूंगा.

माननीय अध्‍यक्ष महोदय, श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी से हम लोगों को बहुत कुछ सीखने को मिलता है. वर्ष 1984 में जब वह ग्‍वालियर से चुनाव लड़े और चुनाव नहीं जीते उसके बाद से उन्‍होंने हम लोगों का प्रबोधन शुरू किया. मैं वर्ष 1985 में विधायक बनकर आ गया था. धनवाद में हमारा विधायकों का प्रशिक्षण शिविर लगा था, उस तीन दिन के प्रशिक्षण शिविर में श्री अटल जी ने जितनी संसदीय ज्ञान की बातें हम लोगों को सिखायी हैं, वह आज मेरे लिये धरोहर है, मेरी धाती हैं.

          माननीय अध्‍यक्ष महोदय, अटल जी के वह वचन, वह बातें, वह संसदीय ज्ञान क्‍योंकि उस समय वह सांसद नहीं थे लेकिन उन्‍होंने विधायकों की वर्कशॉप में हम लोगों को जो सिखाया,पढ़ाया और बताया और प्रधानमंत्री बनने के बाद दो-तीन बार जब भी उनसे हमें मिलने का अवसर मिला, उन्‍होंने जैसा हम लोगों को निर्देशित किया, आज हम उसी धारा पर चलते हुए, उसी दिशा में चलते हुये,उसी मार्ग पर चलते हुये मुझे यह लगता है कि हम सभी लोग इस देश की सेवा कर रहे हैं, इस प्रदेश की सेवा कर रहे हैं.

           माननीय अध्‍यक्ष महोदय, वह एक ऐसा व्‍यक्तिव थे जो गोंडा बलरामपुर से लगातार चुनाव जीतते हुये जबकि उस समय उत्‍तरप्रदेश में हमारा संगठन उतना मजबूत नहीं था. वह लखनऊ से चुनाव जीते, ग्‍वालियर से चुनाव जीते, विदिशा से चुनाव जीते इस प्रकार तमाम जगह से चुनाव जीते. वे ऐसे बहुआयामी व्‍यक्तिव थे जो अनेक राज्‍यों से निर्वाचित होकर आये, यह अपने आप में बहुत बड़ी योग्‍यता और बहुत बड़ी शख्सियत का प्रमाण होता है. मैं ऐसे स्‍व.अटल जी के लिये प्रणाम करता हूं और जहां भी वह हों ईश्‍वर उनकी आत्‍मा को शांति दे. अध्‍यक्ष महोदय मेरी यही प्रार्थना है. 

              माननीय अध्यक्ष महोदय,श्री सोमनाथ चटर्जी साहब 10 बार संसद के सदस्य बने हैं, यह कोई मामूली बात नहीं है. पश्चिम बंगाल से चुनकर के वह आते थे एक ही सीट से चुनकर के आते थे. जैसा कि माननीय मुख्यमंत्री जी ने कहा कि सोमनाथ दा ने अपने संसदीय ज्ञान की संसद में एक छाप छोड़ी और सर्वाधिक कार्य भी शायद इन्हीं के कार्यकाल में संसद में हुए हैं. यदि मिनिट्स उठाकर के देखेंगे तो सबसे ज्यादा इन्हीं के कार्यकाल में काम हुआ है और यह निश्चित रूप से उनके बड़प्पन का प्रतीक है. मेरी जानकारी है कि वे प्रोफेसर रहे थे उसके बाद में राजनीति में आकर के चुनाव लड़ा और सफल रहे. शायद मार्क्सवादी और कम्युनिष्ट पार्टी में यह परम्परा भी होती है कि वे संस्थाओं से आते हैं, चुनाव लड़ते हैं यदि नहीं जीते तो संस्था में वापस लोट जाते हैं. मुझे इस अवसर पर एक प्रसंग याद आ रहा है जब कुछ सदस्यों को उन्होंने अयोग्य घोषित कर दिया था. इस बारे में आप सभी को जानकारी है कि जब  सुप्रीम कोर्ट से उनके लिये नोटिस आया तो उन्होंने उस नोटिस को लेने से इंकार कर दिया. कुछ लोगों ने कहा कि न्यायालय की अवमानना हो जायेगी. तब उन्होंने कहा कि मैं इस संस्था का, जो हमारी विधायिका है इसका मैं सर्वोच्च हूं और इस कारण से मुझे नोटिस देने का अधिकार नहीं है, मैं उसका जवाब दे दूंगा .इससे निश्चित रूप से उनका आत्मबल झलकता है. आज कल तो ऐसा होता है कि लोग घुटने टेकने के लिये कहते हैं और हम रेंगने लगते हैं. मैं मानकर के चलता हूं कि यह स्थिति ऐसी शख्सियत के द्वारा ही हो सकती है जिसको कि संपूर्ण  संसदीय ज्ञान हो, विधायी ज्ञान हो, कानून का ज्ञान हो, संविधान का ज्ञान हो. ऐसे श्री सोमनाथ चटर्जी साहब को मैं अपनी ओर से अपने दल की ओर से सदन में विनम्र श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं.

          अध्यक्ष महोदय, माननीय श्री प्रफुल्ल माहेश्वरी जी, राज्यसभा के सदस्य रहे हैं और अनेकों विभागीय सलाहकार समितियों के अध्यक्ष भी रहे हैं. मध्यप्रदेश में पत्रकारिता के इतिहास में प्रफुल्ल जी का नाम हमेशा याद किया जायेगा. पत्रकारिता के लिये जितनी उत्कृष्टता उन्होंने प्रदान की, पत्रकारिता को जितनी ऊंचाईयों तक वह लेकर के गये हैं, शायद ही कोई ले जा पायेगा. विरले लोग ही ऐसे होते हैं. मैं प्रफुल्ल माहेश्वरी जी के निधन पर अपनी ओर से, सदन की ओर से दुख व्यक्त करता हूं अपनी विनम्र श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं.

          अध्यक्ष महोदय, श्री इन्द्रजीत कुमार जी, इस विधानसभा के सदस्य रहे, मंत्री रहे. मेरे साथ में भी विधायक रहे, बहुत ही सरल, सौम्य, सौजन्य थे, हमारे साथी कमलेश्वर पटेल जी के पिता थे. यदि आपको सोम्यता किसी से सीखना है तो इन्द्रजीत जी उसके साक्षात प्रतिरूप थे. उनके निधन पर भी मैं श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं.

          माननीय अध्यक्ष महोदय, देवीसिंह पटेल जी के निधन पर भी मैं अपनी ओर से और सदन की ओर से श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं. श्री रामानंद सिंह जी, इसी विधानसभा के सदस्य रहे हैं.प्रखर सोशलिस्ट थे और 1990 के कार्यकाल में वह जनता दल के सदस्य के रूप में यहां पर आये थे . उनका वक्तव्य, उनकी विद्वता और उनकी भाषणशैली अपने आप में अनूठी थी और सदैव वह याद की जाती रहेगी. उनके निधन पर भी मैं अपनी और सदन की ओर से श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं.

          अध्यक्ष महोदय, श्री दयालसिंह जी तुमराची के निधन पर भी मैं अपनी और सदन की ओर से श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं. श्री जुगल किशोर बजाज, भूतपूर्व सदस्य विधानसभा मेरे बाजू के दमोह जिले के थे. अध्यक्षीय दीर्घा में जयंत मलैया जी भी बैठे हुये हैं. श्री जुगल किशोर बजाज जी चौथी विधानसभा के सदस्य रहे हैं, राज्य मंत्री भी रहे हैं. आज वह हमारे बीच में नहीं है मैं उनके निधन पर भी मैं अपनी और सदन की ओर से श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं. श्री आनंद कुमार श्रीवास्तव जी, दो बार दमोह से निर्दलीय चुनाव लड़े हैं. निर्दलीय चुनाव जीतना अपने आप में बडी बात है. वह अपने आप में फक्कड़ आदमी थे. उनकी स्मरण शक्ति ऐसी थी कि प्रत्येक बच्चे  और वृद्ध को वह नाम से बुलाते थे, उनसे परिचित थे ऐसे व्यक्ति आज हमारे बीच में नहीं रहे मैं उनके निधन पर भी मैं अपनी और सदन की ओर से श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूं.

          अध्यक्ष महोदय, श्री स्वामी प्रसाद लोधी, श्री प्रभू नारायण जी त्रिपाठी, श्री विमल कुमार चौरड़िया जी, श्री राधाकृष्ण भगत जी और सुश्री डॉ.कल्पना परूलेकर जी, सभी भूतपूर्व सदस्यगण विधानसभा और कल्पना परूलेकर जी का हाल ही में निधन हुआ है. डॉ.कल्पना परूलेकर जी भी जुझारूपन के लिये पूरे सदन में हमेशा जानी जाती रही है, उनका जुझारूपन ही इनकी पहचान रहा है.मत विमत होते हैं लेकिन कुछ शख्सियतें ऐसी होती हैं जो विविध कारणों से हमेशा याद की जाती है. यह जो सारी शख्सियतें हैं यह हमें याद रहेंगी, इन सभी दिवंगतों के लिये मैं अपनी और से अपने दल की ओर से और सदन की ओर से बहुत ही विनम्र श्रृद्धांजलि देता हूं .ईश्वर से इनकी आत्मा को शांति प्रदान करने और उनके परिवारजनों को इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे. ऊं शांति, शांति, शांति...

 

 

          श्री शिवराज सिंह चौहान (बुधनी)-- माननीय अध्‍यक्ष महोदय, आज भी विश्‍वास नहीं होता कि श्रृद्धेय अटल जी अब हमारे बीच नहीं हैं. उनके व्‍यक्तिव में हिमालय की ऊंचाई भी थी और सागर की गहराई भी थी. वे कुशल संगठक थे, भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी और फिर भारतीय जनता पार्टी को शून्‍य से शिखर पर पहुंचाने वाले अगर नेता थे तो श्रीमान् अटल बिहारी वाजपेयी जी थे. वह मौलिक चिंतक थे, वे राष्‍ट्रवादी विचारक थे, वे कवि थे, वे लेखक थे, वह ऐसे वक्‍ता थे कि जिनका उदाहरण शायद दुनिया में कोई दूसरा नहीं मिलता. जब वह बोलते थे तो ऐसा लगता था कि जैसे उनके मुंह से कविता झड़ रही हो. मैं बचपन से उनके भाषणों का दीवाना था. राजनीति से मेरा प्रथम परिचय उनके भाषण सुनने के बाद ही हुआ. उनके व्‍यक्तिव में ऐसा आकर्षण था कि जो सुनता था वह उनका अपना हो जाता था, उदारमना व्‍यक्तिव के धनी सब संकीर्णताओं के ऊपर थे. कई बार वह मजाक में कहते थे कि सभा में सुनने तो इतने लोग आये हैं, इतने अगर वोट दे दें तो हम सरकार बना लें, चुनाव जीत जायें, क्‍योंकि उनको सुनने केवल जनसंघ, जनता पार्टी, भारतीय जनता पार्टी के लोग नहीं जाते थे, सभी राजनीतिक दलों के, समाज के हर तबके के लोग, वोट दें, न दें, लेकिन अटल जी को सुनना है. एक नहीं ऐसे अनेकों प्रसंग मुझे याद हैं. आप सबने पढ़ा होगा, आप जानते हैं, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्‍वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू जी, जब उन्‍होंने 1957 के बाद अटल जी को संसद में बोलते हुये सुना तब स्‍वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने यह उद्घोषित किया था कि एक दिन यह नौजवान भारत का प्रधानमंत्री बनेगा. अटल जी से मेरा गहरा परिचय तब हुआ जब वह विदिशा से चुनाव लड़े. मैं बुधनी से विधायक था और बुधनी विधान सभा विदिशा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती थी. वह चुनाव जीते, वह दो जगह से लड़े थे, लखनऊ से और विदिशा से, अब दोनों जगह जीत गये, हमने आग्रह किया, हमने कहा कि आप विदिशा से लड़ रहे हैं तो यह सीट अपने पास रखना, लेकिन जीतने से पहले उन्‍होंने यह कहा था, उन्‍होंने कहा जहां से ज्‍यादा वोटों से जीतूंगा वह सीट अपने पास रखूंगा. विदिशा से वह एक लाख चार हजार वोटों से जीते और लखनऊ से एक लाख सोलह हजार वोटों से जीते. हम कहने गये कि अटल जी विदिशा मत छोड़ों, उन्‍होंने कहा कि नहीं मैंने पहले कह दिया था, अब लखनऊ का हक ज्‍यादा है. उनके विदिशा सीट खाली करने के बाद फिर पार्टी ने मुझे विदिशा लोकसभा सीट से लड़ाया और उसके बाद कई छोटे-छोटे कामों के लिये आप उनके व्‍यक्तिव की विराटता देखिये, एक छोटा सा काम गंज बासौदा में पंजाब मेल ट्रेन का स्‍टॉप बंद हो गया, बासौदा वाले मेरे पास आये, मैं सांसद बन गया और कहा कि सांसद जी ट्रेन रूकवाओ, अब ट्रेन रूकवाने के लिये मैंने जाफर शरीफ साहब से निवेदन किया, बात बनी नहीं, उन्‍होंने क‍हा कि एक्‍सप्रेस ट्रेन को जगह-जगह रोकना उचित नहीं होगा. अब मुझे लगा मैं ट्रेन रूकवाने में फैल नहीं हो जाऊं, फिर मैं सीधा अटल जी के पास पहुंच गया और कहा कि अटल जी आप लड़े और ट्रेन बंद हो गई, पंजाब मेल रूकवाना है. मुझे लगा कि वह फोन उठाएंगे और जाफर शरीफ साहब जी को फोन करके कह देंगे. उन्होंने पता करवाया कि जाफर शरीफ साहब अपने चेम्बर में हैं कि नहीं. उस समय वे रेल मंत्री थे. पता चला कि वे हैं तो मुझसे कहा कि चलो जाफर शरीफ जी के पास और वे मेरे साथ उनके कक्ष में गये और तत्काल वहां से उन्होंने ट्रेन रुकवाने का काम करवाया. अब अटल जी के लिये काम बड़ा नहीं था कि जिस क्षेत्र से वे सांसद रहे और उनके स्थान पर मैं सांसद बना तो मेरे साथ जाकर इस छोटे से काम को करवाया. वे हमेशा मुझे व्यंग्य से पुकारते थे आओ विदिशापति. जब नरसिम्हाराव जी प्रधानमंत्री थे, आप सब जानते हैं कि भारतीय प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व माननीय अटल जी ने किया था. देश का प्रतिनिधित्व किया था. एक नहीं अनेकों घटनाएं उनके व्यक्तित्व की विराटता को बताती हैं. मैं वर्ष 2005 के अंत में मुख्यमंत्री बना, इतने बड़े नेता अटल जी, मैं उनसे मिलने गया और जब उनसे मिलकर मैं वापस आने लगा तो वे उठकर खड़े हुए और बोले कि मैं तुम्हें छोड़ने बाहर चलूंगा. मैंने उनके चरण छुए और कहा कि  भाई साहब, मैं तो आपका छोटा सा कार्यकर्ता हूं. वे बोले कि कार्यकर्ता छोटे हो लेकिन एक राज्य के मुख्यमंत्री हो और यह शिष्टाचार कहता है कि मैं एक राज्य के मुख्यमंत्री को बाहर छोड़ने जाऊं. एक नहीं अनेकों छोटी-छोटी चीजें उनके व्यक्तित्व की विराटता को प्रदर्शित करती थीं. अनेकों घटनाएं आज याद आती हैं. अनेकों सम्मान उनको प्राप्त हुए. भारत से सर्वोच्च सम्मान " भारत रत्न " से उनको सम्मानित किया गया. उनका कवि हृदय ऐसा था कि कहीं भी वे अगर पीड़ा देखते थे तो व्यथित हो जाते थे लेकिन हमेशा उनके चेहरे पर आत्मविश्वास और मुस्कुराहट दिखती रहती थी. बाद में उनके घुटने में तकलीफ थी तो कई बार जब भारतीय जनता पार्टी की बैठकों में मंच पर वे बैठते थे. मैं महामंत्री हुआ करता था तो जब ब्रेक का टाईम होता था तो मैं उनसे पूछने जाता था कि भाई साहब, चाय लेंगे, काफी लेंगे. तो वे कहते थे कि चाय भी चलेगा,काफी भी चलेगी और कुछ नहीं तो पानी भी चलेगा. छोटी-छोटी बातों में मस्ती और आनंद उनके व्यक्तित्व का एक अद्भुत अंग था. घटनाएं कई हैं लेकिन समय की सीमा है यह देश कभी उनको भूल नहीं सकता. कोई कल्पना कर सकता है कि 2009 के बाद कभी उनको सार्वजनिक जीवन में सक्रिय नहीं देखा. वह बिस्तर पर थे लेकिन 2009 के बाद 2018 तक देश के जनमानस के पटल पर वे वैसे ही छाये रहे जैसे सक्रिय रहकर छाये होते थे. ऐसे अटल जी को मैं प्रणाम करता हूं. आत्मविश्वास से भरे रहने वाले अटल जी, " हार नहीं मानूंगा,रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं "यह उनके व्यक्तित्व की ही विशेषता थी और वह यह लिखकर भी चले गये " मैं जी भरकर जिया, अब मन से मरूं ,लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं " अटल जी भुलाये नहीं भूलते आप, हो सके तो फिर लौटकर आना. आज हमें सोमनाथ दा भी बहुत याद आते है क्योंकि लोकसभा के सदस्य के नाते उनके साथ भी काम करने का मुझे सौभाग्य मिला. प्रख्यात पत्रकार "नव भारत" को जिन्होंने स्थापित किया ऐसे प्रफुल्ल माहेश्वरी जी, लोकप्रिय जननेता और ऐसे जनसेवक जिनकी विनम्रता आज भी हम सबको प्रभावित करती है इन्द्रजीत कुमार जी, हमारे अपने साथी देवी सिंह पटेल जी, जो इस सदन के सदस्य रहे और एक बड़े आदिवासी नेता थे. अंतिम सांस तक वह भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता के नाते काम करते रहे और काम करते-करते यहां से विदा हुए.जुझारू नेता आदरणीय रामानंद सिंह जी, दयाल सिंह तुमराची जी, आदरणीय जुगल किशोर बजाज जी, स्वामी प्रसाद लोधी जी, प्रभु नारायण त्रिपाठी जी, जनसंघ को मंदसौर में स्थापित करने वाले विमल कुमार चौरडिया जी, आनंद कुमार श्रीवास्तव जी, जैसा नेता प्रतिपक्ष जी ने कहा, जब हम पहली बार विधायक बने वे प्रबोधन करने आये थे. उन्होंने अपने चुनाव जीतने का एक किस्सा फट्टी के बारे में बताया था कि कैसे उन्होंने फट्टी की व्यवस्था बच्चों के बैठने के लिये करवायी थी और चुनाव में नारा ही बन गया था कि जिसने हमको फट्टी दी है उसका हम सब काम करेंगे और जिसने हमें फट्टी नहीं दी उसका फट्टा साफ करेंगे. तो निर्दलीय चुनाव वह जीतकर आते रहे, श्री राधाकृष्ण भगत जी और हमारी जुझारू बहन सुश्री डॉ. कल्पना परुलेकर जी, उनका अलग ही तरह का व्यक्तित्व था, वह भी बहुत याद आएंगी. इस सब विराट व्यक्तित्वों को मैं अपनी ओर से दिवंगत आत्मा की शांति के लिए परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूं  और उनके मित्र, अनुयायी और परिवारजनों को यह गहन दुख सहन करने की क्षमता दे, यह प्रार्थना करता हूं, ओम शांति.

पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री (श्री कमलेश्वर पटेल) - माननीय अध्यक्ष महोदय, चाहे हमारे सम्माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी हों, चाहे श्री सोमनाथ चटर्जी जी, श्री प्रफुल्ल माहेश्वरी जी, पूज्य श्री इन्द्रजीत कुमार जी, श्री देवीसिंह पटेल जी, श्री रामानंद सिंह जी,  श्री दयाल सिंह तुमराची जी, श्री जुगल किशोर बजाज जी, श्री स्वामी प्रसाद लोधी जी, श्री प्रभुनारायण त्रिपाठी जी, श्री विमल कुमार चौरडिया जी, श्री आनंद कुमार श्रीवास्तव जी, श्री राधाकृष्ण भगत जी, सुश्री डॉ. कल्पना परुलेकर जी, आज हमारे बीच में नहीं हैं. परन्तु इनके द्वारा किये गये कार्य हमेशा हम लोगों के बीच में अविस्मरणीय रहेंगे, जैसा कि अभी हमारे दल के नेता आदरणीय श्री कमलनाथ जी, पूर्व मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी ने माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के बारे में बहुत ही विस्तार से बताया है. मुझे भी बचपन में एक बार  उनसे मिलने का अवसर मिला था, पूज्यनीय पिताजी श्री इन्द्रजीत कुमार जी, शिक्षा मंत्री थे, उनको उत्कृष्ट अवॉर्ड शिक्षा के क्षेत्र में काम करने का  मिला था. माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी से  दिल्ली में मिलने का अवसर मिला था और जो संवाद थोड़ा बहुत हुआ था, उनका जो व्यक्तित्व था और उनके द्वारा जो किये गये कार्य हैं, हम समझते हैं कि हम लोगों के लिए बहुत ही प्रेरक हैं.

आज माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी दुनिया में नहीं हैं, परन्तु हम यह कह सकते हैं कि कुछ ऐसे हमारे समाजसेवी कह लीजिए, नेता कह लीजिए जो जाति, धर्म, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर काम करते हैं, जिन्होंने देश को एक धागे में पिरौने का काम किया हो, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व की वजह से एक नया आयाम स्थापित किया हो, ऐसे नेता को हम समझते हैं कि किसी पार्टी से बांधकर रखना फिर मुश्किल होता है.

आज माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी हमारे बीच में भले ही नहीं हैं. परन्तु उनका जो व्यक्तित्व था, उनके द्वारा किये गये जो कार्य हैं, उनकी जो सहजता, सरलता थी, हम यह कह सकते हैं कि जैसे हमारे पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी रहे हों, चाहे स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी जी रही हों, चाहे स्वर्गीय श्री राजीव गांधी जी रहे हों, इस श्रेणी में हम स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को कह सकते हैं कि उनका जो व्यक्तित्व था, वह बहुत ओजस्वी वक्ता तो थे ही, उसके साथ-साथ उनकी जो सज्जनता, मिलनसारिता थी और उन्होंने जात-बिरादरी से ऊपर उठकर एक जो समाज को दिशा देने का काम किया था. हम समझते हैं कि वह बहुत ही महान व्यक्तित्व के धनी थे, ऐसे हमारे जो नेता हैं उनके द्वारा किये गये कार्यों को हम सब  लोगों को खासकर हमारे नौजवान साथियों को अपने जीवन में, अपने राजनीतिक क्षेत्र में उनको सामने रखकर काम करना चाहिए.

आज हमारे पूज्यनीय पिताजी श्री इन्द्रजीत कुमार जी भी नहीं हैं और अभी 18 नवम्बर, 2018 को उनका दुखद निधन हुआ. 9 तारीख को हमारे नॉमिनेशन के लिए वह आए थे, वह कैंसर से पीड़ित थे. 5-6 महीने पहले ही पता चला था कि उनको कैंसर है और डॉक्टर ने कह दिया था कि 6 महीने से ज्यादा नहीं रह पाएंगे तो उनको तो यह जाहिर नहीं होने दिया था,  परन्तु उनको फिर धीरे-धीरे यह बताया गया कि आपको यह बीमारी है, परन्तु आखिरी दम तक जो उनकी दिनचर्या थी, जो उनका काम करने का तरीका था. जो समाज सेवा  से जुड़े थे, लोगों का फोन अटेंड करना,  लोगों के लिये बराबर  अधिकारियों से बात करना और 7 बार  सीधी विधान सभा क्षेत्र से विधायक रहे, पर  वहां हमारी जाति  के लोग सिर्फ सात हजार  मतदाता थे और लगातार  1977 से लेकर 2008  तक जीते,  पर जाति के वोट नहीं होने के बाद भी  अच्छे मतों से जीतते रहे. उनका  हम जो उल्लेख करना   चाह रहे थे, 12 तारीख  को जब  उनकी तबियत थोड़ी खराब होने लगी, वे  सीधी आये  थे नॉमिनेशन के लिये सिहावल, 9 तारीख को हमारा नॉमिनेशन हुआ और 12 तारीख को जब जाने लगे  तो  हमारे परिवार के सदस्यों ने, छोटे  भाई,  मिसेज हमारी बोलीं कि  पिताजी  आप अपना थोड़ा संदेश  देते जाइये, चुनाव है, आपका क्या संदेश है. उन्होंने जो संदेश दिया और हमको निर्देशित करते हुए जो  संदेश दिया,  वह हम समझते  हैं कि  हमारे  जीवन के लिये बहुत बड़ी  सीख है उनकी तरफ से.  उन्होंने जो संदेश दिया था.  उन्होंने इस बात का उल्लेख किया था कि  समाज  सेवा बहुत कठिन धर्म है.  सेवा धर्म  बहुत कठोर है.  जिसने अच्छे  से सेवा की,  वह कभी फेल नहीं हो सकता.  फिर  हमारी धरती बहुत रक्त-गर्भा है.  यहां  पर निवास  करने वालों   का जिसने  सम्मान किया, चाहे वह हिन्दू हो,  मुसलमान हो,  सिख हो, ईसाई हो,  छोटा हो,  बड़ा हो या किसी  भी  समाज का, जाति, धर्म का हो,  अगर सम्मान करोगे,  तो  कभी फेल नहीं हो सकते.  यहां तक यह भी उदाहरण दिया कि  जिस तरह मिट्टी के अंदर  जब हम बीज को  डालते हैं, चाहे वह  मुक्के का बीज हो, चाहे वह  चने का बीज हो  और जब वह अंकुरित होकर के  फिर वृक्ष का  आकार लेता है,  उसमें फल लगता है.  फिर वह  एक बीज से   400  बीज पैदा होता है,  इसी तरह समाज सेवा का है कि फलदार बनने के लिये  आपको  गलना पड़ेगा.  आपको धरती के अंदर जैसे बीज गलता है,  फिर अंकुरित होता है, फिर एक आकार लेता है.  उसी तरह तुम्हें भी  इसी तरह  सबको साथ में लेकर काम  करना होगा.  जाति, बिरादरी  से ऊपर उठकर  और फिर पार्टी के ऊपर उठकर  काम करना होगा. चुनाव  होता है. कोई वोट देता है,  कोई वोट नहीं देता है. पर जब  चुनाव हो जाये, तो अगर  चुनाव जीत गये हो या हार गये हो, तुमको  5 साल तक सेवा करते रहना पड़ेगा. इस तरह का जो उन्होंने निर्देशित  किया, इस तरह का जो पाठ पढ़ाया है और ईश्वर  से यही कामना  करेंगे  और आप सब  बड़े बुजुर्गों से  यही निवेदन करेंगे कि आप  सबका आशीर्वाद मिले कि  उन्होंने जो निर्देश दिया है, उन्होंने जो पाठ पढ़ाया है,  उस रास्ते पर चलें और अच्छे से अच्छा कर सकें.  एक-दो उनकी युक्तियां, कभी भी कुछ होता था, एक दो बार  हमको भी कहा कि  कर भला  सो हो भला.   एक और युक्ति है कि छोटा बड़ा कुछ काम   कीजिये, परन्तु पूर्वा पर  सोच लीजिये,  बिना  विचारे यदि काम होगा, कभी  अच्छा न परिणाम होगा.  एक और  युक्ति   है कि  चार वेद छः शास्त्र में लिखी हैं बाते दोय
दुःख दीन्हे दुख होत है सुख दीन्हे सुख होय.  इस तरह का उनका जो  विचार था, व्यक्तित्व था और यहां तक आखिरी जो  12 तारीख  का  उनका संदेश था,  उन्होंने यह भी उल्लेख किया  कि  हमने हमेशा अपने नाम के आगे  कभी जाति नहीं लगाई. सिर्फ  इन्द्रजीत कुमार लिखा,  कहीं भी हमारे रिकार्ड में  यह नहीं मिलेगा कि  इन्द्रजीत कुमार पटेल.  तो हमने कभी जाति नहीं  देखा. हमने सिर्फ काम देखा और  उन्होंने अंतिम दम तक,  बीमार थे, उसके बाद भी पार्टी  के हर कार्यक्रम में जाते थे  और कोशिश करते थे कि  हम पार्टी के लिये  जितना  उपयोगी हो सकें,  वह हम पार्टी के लिये,  समाज सेवा के क्षेत्र में काम  आयें.  हमारे  जो भी चाहे  आदरणीय रामानन्द सिंह जी हों,  उनको भी हम करीब से जानते हैं, वे 1977 में मंत्री रहे  और बड़े ही समाज सेवी और बड़े  दबंग  नेता में उनकी  गिनती  होती थी. हमेशा  जनता के हित में लड़ते रहते थे. ऐसे हमारे बहुत सारे जो सदस्य लोग हैं, जो आज  इस दुनिया में नहीं हैं, उनको सबको हम विनम्र श्रद्धांजलि देते हैं,  उनके चरणों में सादर नमन करते हैं.  ईश्वर उनके परिजनों को गहन शक्ति दें,  ऐसी कामना करते हैं, बहुत बहुत धन्यवाद.

                   अध्यक्ष महोदय -- मैं, सदन की ओर  से  शोकाकुल परिवारों के प्रति संवेदना  प्रकट करता हूं. अब  सदन दो मिनिट मौन खड़े रहकर दिवंगतों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करेगा.

                   (सदन द्वारा 2 मिनिट मौन खड़े रहकर दिवंगतों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की गई.)

                   दिवंगतों के सम्मान में सदन की कार्यवाही गुरुवार, दिनांक 10 जनवरी,2019 को  प्रातः 11.00 बजे तक  के लिये स्थगित.

                        मध्याह्न 12.00 बजे विधान सभा की कार्यवाही  गुरुवार, दिनांक  10 जनवरी, 2019 (20 पौष, शक संवत् 1940) के प्रातः 11.00 बजे तक के लिए स्थगित की गई.

 

 

भोपाल,                                                                                                 अवधेश प्रताप सिंह

दिनांक : 9 जनवरी,2019                                                               प्रमुख सचिव,

                                                                                                            मध्यप्रदेश विधान सभा