मध्यप्रदेश विधान सभा
की
कार्यवाही
(अधिकृत विवरण)
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षोडश विधान सभा षष्ट्म सत्र
जुलाई-अगस्त, 2025 सत्र
सोमवार, दिनांक 04 अगस्त, 2025
(13 श्रावण, शक संवत् 1947)
[खण्ड- 6 ] [अंक- 6 ]
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मध्यप्रदेश विधान सभा
सोमवार, दिनांक 04 अगस्त, 2025
(13 श्रावण, शक संवत् 1947)
विधान सभा पूर्वाह्न 11.01 बजे समवेत् हुई.
{अध्यक्ष महोदय (श्री नरेन्द्र सिंह तोमर) पीठासीन हुए.}
11.01 बजे प्रश्नकाल में मौखिक उल्लेख
स्व.श्री शिबू सोरेन, पूर्व मुख्यमंत्री, झारखंड के निधन का उल्लेख
संसदीय कार्य मंत्री (श्री कैलाश विजयवर्गीय) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, आज झारखंड के आदिवासी नेता श्री शिबू सोरेन जी नहीं रहे. इस संबंध में निर्णय आज लेंगे या कल लेंगे, जैसा भी आपका निर्णय होगा.
अध्यक्ष महोदय -- कल ले लेंगे. क्योंकि अभी उनका संस्कार वगैरह नहीं हुआ है.
श्री कैलाश विजयवर्गीय -- जी माननीय अध्यक्ष महोदय.
11.02 बजे बधाई
स्व.श्री किशोर कुमार, पार्श्व गायक के जन्मदिन पर सदन की ओर से बधाई
अध्यक्ष महोदय -- माननीय सदस्यगण, श्री किशोर कुमार जी का जन्म 4 अगस्त, 1929 को मध्यप्रदेश के खण्डवा शहर में हुआ था. वे भारतीय सिनेमा के मशहूर पार्श्व गायक समुदाय में से एक रहे हैं. वे अच्छे अभिनेता के रूप में जाने जाते हैं. हिन्दी फिल्म उद्योग में उन्होंने बंगाली, हिन्दी, मराठी, असमी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम, उड़िया और उर्दू सहित कई भारतीय भाषाओं में गाया है. उन्होंने सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक के लिए 8 फिल्म पुरस्कार जीते और उस श्रेणी में सबसे ज्यादा फिल्म फेयर पुरस्कार जीतने का रिकार्ड बनाया. मध्यप्रदेश सरकार द्वारा लता मंगेशकर पुरस्कार से भी उन्हें सम्मानित किया गया. उसके बाद मध्यप्रदेश सरकार ने एक नया पुरस्कार किशोर कुमार पुरस्कार हिन्दी सिनेमा में योगदान के लिये प्रारम्भ कर दिया था. उन्होंने अपने जीवन के हर क्षण में खण्डवा को याद किया. वे जब भी किसी सार्वजनिक मंच या किसी समारोह में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे, तो वे गर्व से कहते थे कि किशोर कुमार खंडवा वाले. अपनी जन्मभूमि, मातृभूमि के प्रति ऐसी श्रद्धा बहुत कम लोगों में दिखाई देती है. मैं सदन की ओर से उनके जन्मदिन पर उनको आदर व्यक्त करता हॅूं और उनका स्मरण करता हॅूं.
11.03 बजे तारांकित प्रश्नों के मौखिक उत्तर
सिंगरौली जिला अंतर्गत जिला सहकारी बैंकों की स्थापना
[सहकारिता]
1. ( *क्र. 243 ) श्री रामनिवास शाह : क्या सहकारिता मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या जिला सिंगरौली बने लगभग 17 वर्ष हो चुके हैं, परन्तु जिला सिंगरौली के अंतर्गत सहकारी केन्द्रीय बैंक की स्थापना आज दिनांक तक नहीं हुई है? सिंगरौली जिले के आमजनों को लगभग 120 किलोमीटर दूर आना-जाना पड़ता है, तब जाकर कहीं उनके शासकीय कार्य संपादित हो पाते हैं? कब तक जिला सिंगरौली में सहकारी बैंक की स्थापना की जावेगी। (ख) जिला सिंगरौली के अंतर्गत जिला सहकारी बैंक स्थापित करने की यदि प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है, तो वर्तमान स्थिति से विस्तृत विवरण सहित अवगत करावें। (ग) यदि प्रश्नांश (क) के संबंध में कोई निर्णय लिया गया है तो जिला सहकारी बैंक स्थापित करने का स्थान सहित विवरण उपलब्ध करायें?
सहकारिता मंत्री ( श्री विश्वास कैलाश सारंग ) : (क) जी हाँ। सिंगरौली जिले में जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित सीधी की 20 शाखाओं में से 09 शाखाएं कार्यरत हैं, जहां से जिले के आमजनों को बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध हो रही हैं। सिंगरौली जिले में पृथक जिला सहकारी बैंक की स्थापना का वर्तमान में कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। (ख) एवं (ग) उत्तरांश ''क'' के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
अध्यक्ष महोदय -- श्री रामनिवास शाह.
श्री रामनिवास शाह -- अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न क्रमांक-1 (243) है.
श्री विश्वास सारंग -- माननीय अध्यक्ष महोदय, उत्तर पटल पर रख दिया गया है.
अध्यक्ष महोदय -- माननीय सदस्य, पूरक प्रश्न करें.
श्री रामनिवास शाह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, जिला सिंगरौली को बने हुए 17 साल हो गए हैं. अभी भी जिला सिंगरौली की जिला सहकारी बैंक की स्थापना अलग नहीं की गई. जबकि वहां के हितग्राहियों को 120 किलोमीटर सीधी जाकर के अपनी समस्याओं को सुनाना पड़ता है. साथ ही यह स्थिति है कि चेक क्लीयरेंस के लिए ऑनलाइन व्यवस्था नहीं है बल्कि उसको मैनुअली सीधी ले जाकर के चेक क्लीयरेंस कराते हैं जिसमें 7 से 8 दिन के बाद किसानों का चेक क्लीयर हो पाता है. सिंगरौली जब अलग हुआ, जिला सहकारी बैंको से उस समय 22 बैंक स्थापित हुए थे, जो कि आज की जानकारी में यहां पर 20 शाखाओं की जानकारी दी गई है और सिंगरौली जिले में 9 की संख्या दी गई थी. उस समय की स्थिति में 12 की संख्या थी, जिसमें माड़ा करथुआ, बगैया जो तहसील के स्थान पर स्थापित थे. हम चाहते हैं कि सिंगरौली जिले के जिला सहकारी बैंक को अलग करके वहां पर काफी मात्रा में नयी कंपनियां आई हैं, कई बैंकों को अच्छे डिपाजिट मिल रहे हैं लेकिन अलग न होने के कारण वहां के क्षेत्रीय लोगों को 120 कि.मी. दूर जाने के कारण वे अपने खाते संचालित नहीं कर पा रहे हैं, यह हमको दिक्कत आ रही है. वर्ष 2010, वर्ष 2013 में रजिस्ट्रार की ओर कलेक्टर के माध्यम से पत्र भी आया था कि जिला सिंगरौली के जिला सहकारी बैंक को अलग करके संचालित किया जाय. हम चाहते हैं कि बैंक की बेहतरी के लिए क्षेत्र की बेहतरी के लिए सिगरौली जिला सहकारी बैंक को सीधी से पृथक करके स्थापित कराया जाय, जिससे कि वहां के किसानों तथा व्यापारियों को सुविधा मुहैया कराई जा सके.
श्री विश्वास सारंग - अध्यक्ष महोदय, माननीय विधायक जी ने जो प्रश्न उठाया है इनकी सजगता को मैं बधाई देता हूं. परन्तु नये बैंक खोलने का राज्य शासन के पास सीधा अधिकार नहीं है. यह नाबार्ड और रिजर्व बैंक से जुडा हुआ मामला है. यह बात सही है कि मध्यप्रदेश में 55 जिले हैं और हम केन्द्रीय सहकारी बैंक की बात करें तो यह केवल 38 हैं, परन्तु उसका सीधा सीधा कारण है कि जब हम नया बैंक खोलते हैं तो उसकी वॉएब्लिटी और जिस मापदंड को लेकर बैंक खोला जाता है, उस पर पूरा विचार किया जाता है.
अध्यक्ष महोदय, यह बात सही है कि सीधी से अलग हुए सिंगरौली जिले को काफी समय हुआ है, परन्तु ऐसे मध्यप्रदेश में बहुत जिले हैं जिनके जिले के मुख्यालय पर बैंक नहीं है. यदि हम बात करें जैसा मैंने बोला कि प्रदेश में 38 बैंक ही हैं, 17 जिले ऐसे हैं जो कि किसी न किसी बैंक के साथ जुड़े हुए हैं और उसका सीधा कारण वहां की बैंकों की वित्तीय स्थिति भी है. यह केवल मध्यप्रदेश ही नहीं, यदि हम देश का भी आंकड़ा देखें तो यह स्थिति संपूर्ण देश में है. जिन राज्यों में सहकारी आन्दोलन बहुत मजबूत है वहां की स्थिति भी यह है. यदि हम पूरे देश की बात करें तो भारत में 777 जिले हैं और जिला सहकारी बैंक केवल 350 ही है, उसका कारण यही है कि जो बैंक को चलाने और खोलने के मापदंड हैं. चाहे सीआरएआर हो या एनपीओ, इन सबको ध्यान में रखते हुए ही नया बैंक खोलने की कवायद हो सकती है. जैसे मैंने बताया कि सीधी बैंक की हम बात करें तो सीधी में ये दोनों काइटेरिया में सीधी बैंक बहुत नीचे आता है. यदि मानक की बात करें तो किसी भी बैंक की वित्तीय स्थिति का आंकलन करने के लिए सीआरएआर 9 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए और सीधी बैंक का सीआरएआर -39.7% है, एनपीए भी 5% से कम होना चाहिए, जबकि वह 57% है. परन्तु माननीय विधायक जी ने जो बात बोली है, बिल्कुल हम सहमत हैं कि सिंगरौली के किसानों को भी उसका फायदा मिलना चाहिए और इसी को मद्देनजर रखते हुए जहां जहां हमारे बैंक नहीं है, उन दूसरे जिलों में शाखाओं के माध्यम व्यवस्था सुचारू हों, इस पर हमने काम किया है और इसीलिए हम यदि सीधी बैंक की बात करें तो सीधी में 20 शाखाएं हैं, जिसमें सीधी जिले में 11 शाखाएं हैं और सिंगरौली में 9 शाखाएं हैं. यदि हम जिले में पेक्स की बात करें तो 54 पेक्स हैं. सिंगरौली में 39 पेक्स हैं, इन सबको लेकर व्यवस्था ऐसी सुचारू की है कि सीधी और सिंगरौली के किसानों को कहीं कोई दिक्कत नहीं आए. परन्तु विधायक जी ने बहुत अच्छा प्रश्न उठाया है. आज मैं माननीय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जी को बहुत धन्यवाद देता हूं. डॉ. मोहन यादव जी ने लगातार सहकारी आन्दोलन को मजबूत करने के उद्देश्य के साथ मध्यप्रदेश में अलग अलग कदम उठाएं हैं और विगत दिनों हमने इसीलिए यह निर्णय लिया है कि जिन जिलों में जिला सहकारी बैंक नहीं है और वह दूसरे जिलों से जुड़े हुए हैं, हम वहां पर क्षेत्रीय कार्यालय बैंक शुरू करेंगे और जो माननीय विधायक जी कह रहे हैं कि जिला मुख्यालय में 120 कि.मी. दूर जाना पड़ता है तो जल्दी से जल्दी सिंगरौली की एक मेन ब्रांच होगी. उसमें हम एक नोडल अधिकारी बैठाने वाले हैं और उसकी हमने आई.बी.पी.एस. के माध्यम से भर्ती भी कर ली है और यह केवल सिंगरौली में ही नहीं, हम यह एक बहुत बड़ा परिवर्तन कर रहे हैं, संपूर्ण व्यवस्था के के सुचारूकरण के लिये. इसके लिये हम अलग-अलग बैंको की जहां पर जिला मुख्यालय पर बैंक का मुख्यालय नहीं है. वहां के जिला मुख्यालय को हम बैंच को हम क्षेत्रीय कार्यालय में तब्दील करेंगे और उसमें हम केडर का अधिकारी देंगे. जिसको सीमित वित्तीय अधिकार और इस तरह के लोन सेंक्शन के, कृषि साख समिति की जो लिमिट है उसको डिसाइड करने के हम अधिकार उसको देंगे, तो यह व्यवस्थाएं ठीक होंगी.
अध्यक्ष महोदय, देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के लिये अलग से सहकारिता विभाग बनाया, माननीय अमित शाह जी को उसका मंत्री बनाया. विगत दिनों माननीय अमित शाह जी के माध्यम से एक विस्तृत सहकारी नीति देश में लागू हुई है और उसमें दो मामलों को लेकर बहुत विस्तार से एक उसमें एक एडवाइज़री राज्य सरकारों को दी है. पहला तो यह है कि पंचायत स्तर पैक्स् का गठन हो. अभी मध्यप्रदेश में हमारे पास साढ़े चार हजार पैक्स् हैं. विगत दिनों हमने पांच सौ पैक्स् का नया गठन किया है. राष्ट्रीय स्तर पर जो सहकारी नीति है उसमें एक बात की और अपेक्षा की गयी है कि हर जिले में कम से कम एक सहकारी बैंक जरूर हो.
अध्यक्ष महोदय, तो उस दिशा में हम लगातार बढ़ रहे हैं. क्योंकि केन्द्रीय सरकार का यह आग्रह है, उनका यह निर्देश है तो हम जरूर आगे बढ़ेगें, पर आज की स्थिति में, हमारी यह स्थिति नहीं है कि हम जल्द से जल्द सिंगरौली में बैंक खोल सकें. परन्तु माननीय विधायक जी जो समस्या है उसका निदान होगा. क्षेत्रीय कार्यालय हम सिंगरौली में खोलेंगे. हमारा नोडल अधिकारी, जिसको अपैक्स बैंक अपांइट करेगा, उससे वहां पर काम सुचारू रूप से होगा तो बैंक के सब आफिस बैंक के मुख्यालय का हो जायेगा और पूरे प्रदेश में जो हमारे 17 जिले हैं उसकी समस्या का हल होगा.
अध्यक्ष महोदय- माननीय सदस्य, दूसरा पूरक प्रश्न.
श्री रामनिवास शाह- माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से माननीय मंत्री महोदय को कुछ बताना और कुछ चर्चा भी करना चाहता हूं कि विकास की दिशा में सिंगरौली बहुत बड़ा औघोगिक क्षेत्र बना लिया है. वहां पर कई कंपनियां आई हुई हैं और वहां का जो डिपाजिट है, पैसे हैं वह अपने सहकारी बैंक को प्राप्त नहीं हो पा रहा है. उसके लिये विशेष सुविधाएं आवश्यक हैं. हम तो चाहते हैं कि मंत्री जी हमको आश्वस्त करें कि हमारा पृथक से कोई प्रस्ताव नहीं है, लेकिन मैं बताना चाहूंगा कि वर्ष 2010 और वर्ष 2013 में कलेक्टर द्वारा रजिस्ट्रार, भोपाल से पत्राचार करके, यह मांग की गयी थी कि अगल से पृथक बैंक की स्थापना की जाये. मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूं कि ब्रांच की लीमिट, चेक क्लियरेंस, एटीएम की सुविधा और बंद की गयी तीन शाखाएं माड़ा, करथुआ और बगया ऐसे तमाम, मध्यप्रदेश के विकास में अर्थव्यवस्था से जोड़े जाने के लिये माननीय मंत्री महोदय से आग्रह है और सिंगरौली में जिला सहकारी बैंक की स्थापना की जाये.
श्री विश्वास सारंग- अध्यक्ष महोदय, मैंने पहले ही अपने वक्तव्य में बताया कि इन सब समस्याओं का समाधान करने के लिये हम आगे बढ़ें और हम जो अपना क्षेत्रीय कार्यालय खोलने वाले हैं और हम उसकी पूरी एस.ओ.पी. बना रहे हैं. हम यह सुनिश्चित करेंगे कि जहां पर बैंक का मुख्यालय नहीं है, वहां पर किसानों को प्रक्रियात्मक कोई भी दिक्कत न आये और इसीलिये हम आगे बढ़े हैं और आई.बी.पी.एस के माध्यम से हमने अपने नोडल अधकारियों की नियुक्ति की है और हम जल्द से हम इसको शुरू करेंगे.
श्री रामनिवास शाह- माननीय मंत्री महोदय, धन्यवाद.
खेल सामग्री वितरण की जानकारी
[खेल एवं युवा कल्याण]
2. ( *क्र. 485 ) श्री नीरज सिंह ठाकुर : क्या खेल एवं युवा कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) जिला जबलपुर अंतर्गत ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के युवाओं को खेलों के प्रति आकर्षित करने के लिये खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा वर्ष 2020 से प्रश्नांश दिनाँक तक खेल सामग्री उपलब्ध कराने हेतु कितनी राशि/सामग्री प्राप्त हुई? उक्त सामग्री का विवरण किन-किन विधान सभाओं में कब-कब किया गया/संपूर्ण जानकारी उपलब्ध करावें। (ख) क्या प्रश्नकर्ता के पत्र क्रमांक 1989, दिनांक 08.04.2025 के द्वारा खेल सामग्री वितरण की जानकारी जिला खेल अधिकारी जबलपुर से चाही गई थी? उक्त जानकारी कब प्रदाय की गई? अगर नहीं तो क्यों? जानकारी समय-सीमा में प्रदान न किये जाने पर क्या कार्यवाही की गई? (ग) बरगी विधानसभा क्षेत्रांतर्गत खेल विभाग द्वारा पूर्व के वर्षों में किन-किन ग्राम पंचायतों/स्कूलों/व्यायाम शालाओं में कितनी राशि का जिम स्थापित किया गया? (घ) क्या जिम रखने एवं उपयोग करने हेतु जहाँ-जहाँ उपकरण दिये गये हैं, वहाँ पर्याप्त स्थान है? वर्तमान में किन-किन स्थानों में जिम सामग्री का उपयोग हो रहा है?
खेल एवं युवा कल्याण मंत्री ( श्री विश्वास कैलाश सारंग ) : (क) जिला जबलपुर अंतर्गत ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के युवाओं को खेलों के प्रति आकर्षित करने के लिये खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा वर्ष 2020 से प्रश्नांश दिनाँक तक खेल सामग्री उपलब्ध कराने हेतु प्रदाय की गई राशि/सामग्री की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 1 अनुसार है। विधानसभावार खेल सामग्री का वितरण नहीं किया जाता है। विभाग द्वारा संचालित खेल प्रशिक्षण केन्द्रों को वितरित की गई खेल सामग्री की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 2 अनुसार है। (ख) जी हाँ। माननीय सदस्य के पत्र क्रमांक 1989, दिनांक 08.04.2025 के संदर्भ में जिला खेल और युवा कल्याण अधिकारी, जिला जबलपुर द्वारा पत्र क्रमांक 202, दिनांक 05.05.2025 एवं पत्र क्रमांक 814, दिनांक 11.07.2025 से खेल सामग्री वितरण की पुनरीक्षित जानकारी प्रेषित की गई है। अतः शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। (ग) बरगी विधानसभा क्षेत्रांतर्गत खेल विभाग द्वारा वर्ष 2021 में ग्राम पंचायत गंगीय तथा वर्ष 2023 में विकासखण्ड मुख्यालय बरगी में सामुदायिक भवन के पास क्रमश: राशि रूपये 9,80,905/-एवं 10,79,177/- (जी.एस.टी. सहित) के 1-1 सेट ओपन जिम प्रदाय एवं स्थापित किये गये हैं। (घ) प्रश्नांश (ग) में उल्लेखित दोनों स्थानों पर ओपन जिम रखने हेतु पर्याप्त स्थान उपलब्ध है तथा जिम सामग्री का उपयोग हो रहा है।
श्री नीरज सिंह ठाकुर- प्रश्न क्रमांक-2.
श्री कैलाश सारंग- अध्यक्ष महोदय, उत्तर पटल पर है.
श्री नीरज सिंह ठाकुर- माननीय अध्यक्ष महोदय, यहां पर उपस्थित, सभी सदस्य और गणमान्यजनों को, मैं श्रावण मास के अंतिम सावन सोमवार की शुभकामनाएं देता हूं.
अध्यक्ष महोदय, आज मेरा प्रश्न जबलपुर जिले में खेल सामग्री अथवा उपकरण के वितरण को लेकर है. मैं आज सबसे पहले सदन के माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जी को धन्यवाद देता हूं जो खेलों को युवा सशक्तिकरण का सबसे मजबूत माध्यम बनाते हुए इस क्षेत्र को प्राथमितता दे रहे हैं. बजट वर्ष 2005-26 688 करोड़ का प्रावधान करना और जिसमें से 452 करोड़ का प्रावधान खेलो इंडिया एम.पी., स्टेडियम एवं खेल अधोसंचना निर्माण, खेल अकादिमियों की स्थापना, सी.एम युवा शक्ति योजना के लिये रखा गया है. यह कुल बजट का लगभग 66 प्रतिशत होता है. मैं वित्त मंत्री जी को भी इस चीज के लिये धन्यवाद देता हूं और प्रदेश के ऊर्जावान, कर्मठ,दूरदर्शी खेल एव युवा कल्याण मंत्री, विश्वास सारंग जी को भी हृदय की गहराइयों से धन्यवाद देता हूं, जिनके नेतृत्व में म.प्र. ने खेल अधोसंरचना, प्रशिक्षण, खेल अकादमी, प्रतिभा संवर्धन एवं सम्मान और राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अभूतपूर्व प्रगति की है. बरगी विधान सभा क्षेत्र में एक सर्व सुविधायुक्त खेल स्टेडियन की सौगात देने के लिये भी मैं मंत्री जी का हृदय की गहराइयों से धन्यवाद करता हूं. मेरा पहला प्रश्न है कि क्या खेल प्रशिक्षण केंद्रों को खेल सामग्री योजना, जिसका क्रमांक है 6239 है, जिससे पूरे प्रदेश को लगभग 3.6 करोड़ का प्रावधान है, उसको बढ़ाकर जबलपुर जिले को कम से कम 25 लाख रुपये सालाना सामग्री प्रदान करने की कृपा करेंगे.
श्री विश्वास कैलाश सांरग—अध्यक्ष महोदय, एक तो मैं विधायक जी को बहुत बधाई दूंगा, बहुत तैयारी के साथ बजट में किस हेड में कितना पैसा है, इसकी तैयारी के साथ वे आये हैं, उसके लिये उनको बहुत बहुत बधाई...
अध्यक्ष महोदय—अब की जब बजट आये, तो इनको बुलवाना.
श्री विश्वास कैलाश सांरग—अध्यक्ष महोदय, जी. जैसा विधायक जी ने अपने वक्तव्य में उल्लेख किया कि डॉ. मोहन यादव जी ने लगातार खेल के विकास के लिये काम किया है. हम लगातार बजट बढ़ा रहे हैं. जैसा विधायक जी ने जो प्रश्न यहां पर उठाया है खेल से जुड़ी हुई सामग्री के वितरण का, तो इसकी हमने डी सेंट्रीलाइज्ड व्वयस्था की है. जिलों में जैसी भी जरुरत होती है, जिलों को ही इसका पूरा अधिकार दिया है. मैं वहां के जिला अधिकारी से बोलूंगा कि विधायक जी से एक बार मिलकर जो भी उनके क्षेत्र में या जिले में कोई और एक्स्ट्रा सामग्री की जरुरत होती है, तो वह जरुर उपलब्ध करवाई जायेगी, क्योंकि यहां से जिलेवाइज हम सामग्री का वितरण करते हैं, विधान सभा वाइज करना संभव नहीं है.पर मैं खेल अधिकारी को बोलूंगा कि वे विधायक जी से मिलें और जैसा उन्होंने कहा कि उनके विधान सभा क्षेत्र में तो हम खेल स्टेडियम दे ही रहे हैं. मैं आपके माध्यम से सभी सदस्यों को यह जानकारी देना चाहता हूं कि विगत् दिनों मुख्यमंत्री जी ने यह निर्णय लिया है और यह शायद मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य होगा कि हर विधान सभा स्तर पर हम स्टेडियम बना रहे हैं. यह बहुत बड़ा पूरे देश में ऐसा किसी राज्य में नहीं होगा. हर विधान सभा स्तर पर खेल स्टेडियम बना रहे हैं, जिसके माध्यम से खेल का उन्नयन और खिलाड़ियों का उन्नयन हम सुनिश्चित करेंगे.
श्री नीरज सिंह ठाकुर—अध्यश्र महोदय, मेरा दूसरा अनुपूरक प्रश्न है कि बरगी विधान सभा मेरे गांव और पड़ुआ ने दशकों से प्रदेश और देश को अच्छे कबड्डी खिलाड़ी दिये हैं. क्या मंत्री जी पडुआ और मेरे गाव की टीम के लिये अलग से दो सर्व सुविधायुक्त कबड्डी ग्राउंड बनाने की कृपा करेंगे.
अध्यक्ष महोदय— कबड्डी ग्राउण्ड तो गांव में ही बन जाते हैं.
श्री विश्वास कैलाश सांरग—अध्यक्ष महोदय, मैं विधायक जी से चर्चा कर लूंगा. जो भी संभग होगा, जरुर करेंगे. सरकार खेल खिलाड़ी, खेल मैदान के उन्नयन के लिये कटिबद्द है और निश्चित रुप से मैं विधायक जी से बात कर लूंगा. जो जो जरुरत होगी, यदि संभव होगा, तो उसको किया जायेगा.
श्री नीरज सिंह ठाकुर—मंत्री जी, आपके नेतृत्व में म.प्र. जरुर इमर्जिंग स्पोर्ट स्टेट ऑफ इंडिया बनेगा, ऐसा विश्वास है. धन्यवाद अध्यक्ष जी.
नवीन जनपद पंचायत का गठन
[पंचायत एवं ग्रामीण विकास]
3. ( *क्र. 1149 ) श्री श्रीकान्त चतुर्वेदी : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) मैहर विधान सभा क्षेत्र में स्थित जनपद पंचायत मैहर के कस्बे क्षेत्र से नवीन जनपद पंचायत का गठन राजस्व मण्डल बहेरा के ग्रामों की ग्राम पंचायतों को पृथक कर, कराये जाने के पत्राचार क्या किये गये हैं? यदि हाँ, तो अभी तक शासन स्तर में क्या कार्यवाही प्रचलन में है? यदि हाँ, तो जानकारी दी जाये? यदि नहीं, तो क्यों? (ख) प्रश्नांश (क) के मूल उद्देश्य के संबंध में क्या जनसुविधा की दृष्टि से मैहर क्षेत्र में राजस्व मण्डल क्षेत्र बहेरा को जनपद पंचायत मुख्यालय बनाते हुए मैहर से पृथक कर नवीन जनपद पंचायत का गठन किया जाये? यदि हाँ, तो कब तक गठन किया जावेगा?
पंचायत मंत्री ( श्री प्रहलाद सिंह पटैल ) : (क) जी हाँ। राजस्व विभाग की अधिसूचना क्रमांक E.F.No. 1/11/0001/2024/7-4, दिनांक 12 मार्च, 2024 से प्रशासनिक इकाइयों के परिसीमन (सृजन एवं सीमाओं में परिवर्तन) एवं युक्तियुक्तकरण के लिये ''मध्यप्रदेश प्रशासनिक इकाई पुनर्गठन आयोग'' गठित किया गया है। (ख) ऐसी अनुशंसा करना उत्तरांश (क) में वर्णित आयोग की टर्म्स ऑफ रिफरेंस में निहित है। समय-सीमा बताया जाना संभव नहीं।
श्री श्रीकांत चतुर्वेदी-- अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न क्र. 1149 है.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल—अध्यक्ष महोदय, उत्तर सभा पटल पर रख दिया है.
श्री श्रीकांत चतुर्वेदी-- अध्यक्ष महोदय, मेरा आपके माध्यम से मंत्री जी से निवेदन है कि मैहर विधान सभा में मात्र एक जनपद है और 115 पंचायतें हैं. पहाड़ क्षेत्र मैहर से बिलकुल किनारे पड़ता है और वहां से नजपद की दूरी 70 किलोमीटर है. जैसा कि हमारे यशस्वी मुख्यमंत्री जी की मंशा है कि हर ग्रामीण क्षेत्र को हम उनको नजदीकी से सुविधा दे पायें और केंद्र की सरकार से जो ब्लाक वाइज योजना आती है, तो उनको भी उस योजना का लाभ मिल सके. इसलिये मैं निवेदन करना चाहता हूं कि मैहर विधान सभा में एक ब्लाक से दो ब्लाक किये जायें.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल-- अध्यक्ष महोदय, सदस्य जी का कहना बिलकुल सही है कि 100 से ज्यादा पंचायतों वाले जो कम ब्लाक हैं, उममें एक मैहर जनपद हैं, जिसमें 115 ग्राम पंचायतें हैं. लेकिन मैं सदस्य से कहना चाहता हूं कि म.प्र. प्रशासनिक इकाई पुनर्गठन आयोग यह 12 मार्च, 2024 को म.प्र. में गठित हुआ है. यह 12 मार्च 2024 को मध्यप्रदेश में गठित हुआ है. जनपद की सीमांकन का काम भारत सरकार करती है और वहां पर अभी जनगणना का कार्य भी शुरू है. लेकिन मैं माननीय विधायक जी को आपके माध्यम से कहना चाहता हूं कि उन्होंने जो पत्र दिनांक 15.10.2024 को माननीय मुख्यमंत्री जी को लिखा था, उसके संदर्भ में हमारे विभाग से दिनांक 24.7.2025 को ही एक पत्र आयोग को सिफारिश का पत्र भेजा गया है. कलेक्टर, मैहर ने भी उसके बारे में एक पत्र दिया है, तो कार्यवाही प्रचलन में है. लेकिन एक बात मैं अवश्य आपके माध्यम से बाकी के माननीय सदस्यों से कहूंगा कि जनपद क्षेत्र का सीमांकन भारत सरकार करती है, मध्यप्रदेश ने जो अपना आयोग गठित किया है उसमें हम अपनी सिफारिशें बनाकर के भेजेंगे और इसके बाद जो कार्य होना है, जो निर्णय होना है वह भारत सरकार करेगी.
श्री श्रीकान्त चतुर्वेदी- माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी से निवेदन करना चाहूंगा कि पुनर्गठन आयोग को पदेरा जनपद के लिये विभाग से सिफारिश की जाये और अगर समय सीमा निर्धारित हो जाये तो मैं उनका आभार व्यक्त करूंगा.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल --माननीय अध्यक्ष महोदय, जैसा मैंने पहले भी बताया है कि मेरे विभाग से भी आयोग को पत्र चला गया है, इसलिये आयोग जो रिपोर्ट देगा वह भारत सरकार के पास जायेगी और भारत सरकार को फैसला करना है लेकिन जैसी माननीय विधायक जी की मंशा थी उसी आधार पर प्रस्ताव अग्रेषित हुआ है.
श्री श्रीकान्त चतुर्वेदी- जी माननीय मंत्री जी.
उर्वरक आवंटन भंडारण एवं वितरण
[किसान कल्याण एवं कृषि विकास]
4. ( *क्र. 2513 ) श्री संजय सत्येन्द्र पाठक : क्या किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) कटनी जिले को प्राप्त होने वाले डी.ए.पी., यूरिया, ग्रोमोर, सुपर फास्फेट एवं अन्य फर्टीलाइजर (उर्वरक) का कितना आवंटन वर्ष 2022-23 से प्रश्नांश दिनांक तक प्राप्त हुआ? फर्टीलाइजरवार, रैकवार जानकारी दें एवं सहकारिता में कितना एवं निजी विक्रेताओं को रैकवार आवंटन के विरूद्ध कितना फर्टीलाइजर प्रदाय किया गया? आवंटन की प्रक्रिया संबंधी निर्देश एवं आवंटन पत्र की छायाप्रति उपलब्ध करावें। यदि आवंटन संशोधित किया गया तो उसके संशोधन पत्र की प्रति उपलब्ध करावें। (ख) प्रश्नांश (क) के परिप्रेक्ष्य में जिला विपणन अधिकारी द्वारा किस समिति में डबल लॉक केन्द्र से कितना फर्टीलाइजर प्रदान किया गया? समितिवार, फर्टीलाइजरवार जानकारी देवें एवं कितना नगद विक्रय केन्द्रों से वितरित किया गया? (ग) प्रश्नांश (क) एवं (ख) के परिप्रेक्ष्य में आवंटन अनुरूप सहकारिता में उर्वरक न देकर निजी विक्रेताओं को आवंटन अधिक उर्वरक देने के लिये कौन अधिकारी एवं कौन-कौन कंपनी प्रतिनिधि दोषी है? क्या दोषियों के ऊपर कार्यवाही की जायेगी? यदि नहीं, तो क्यों?
किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री ( श्री ऐदल सिंह कंषाना ) : (क) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 1 एवं 2 अनुसार है। (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 3 अनुसार है। (ग) सहकारिता क्षेत्र में रैक आवंटन के विरूध्द किसी-किसी रैक से कम मात्रा प्रदाय की गई है, परंतु इसकी पूर्ति अन्य रैक से की गई है। अतः शेष प्रश्न उद्भूत नहीं होता है।
श्री संदीप श्रीप्रसाद जायसवाल - (अधिकृत) माननीय प्रश्न क्रमांक 2513.
श्री ऐदल सिंह कंषाना -- माननीय अध्यक्ष महोदय, उत्तर सभा पटल पर रखा गया है.
श्री संदीप श्रीप्रसाद जायसवाल--माननीय अध्यक्ष महोदय, जैसा कि इस प्रश्न के उत्तर में स्वीकार किया गया है कि सहकारिता के क्षेत्र में रैक आवंटन के विरूद्ध किसी किसी रैक से कम मात्रा प्रदाय की गई है. परंतु इसकी पूर्ति अन्य रैक से की गई है. अध्यक्ष महोदय, किसानों की समस्या यह है कि जब किसानों को ज्यादा खाद की आवश्यकता होती है तब निजी दुकानदारों को, निजी खाद विक्रेताओं को ज्यादा खाद दे दी जाती है और जब कम किसान बचते हैं तब सहकारी समितियों को दी जाती है. मंत्री जी द्वारा उत्तर में जो आंकड़े दिये गये हैं उनसे भी स्पष्ट है कि इस तरह की गलतियां की गई हैं. मैं माननीय मंत्री जी से आपके माध्यम से आग्रह करना चाहूंगा कि जिला विपणन अधिकारी पर निलंबन की कार्यवाही करते हुये इस पूरे प्रकरण की जांच करायेंगे क्या ?
श्री ऐदल सिंह कंषाना-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश शासन के निर्देशानुसार 70 प्रतिशत यूरिया सहकारिता को दिये जाने के निर्देश हैं किंतु आफ सीजन में 70 प्रतिशत के अनुपात में शिथिलता प्रदान की जाती है. साथ ही समितियों के द्वारा आफ सीजन में उर्वरक का उठाव भी अनुपात के रूप में कम किया जाता है इसलिये सहकारिता एवं निजी क्षेत्र में प्रतिशत के अनुपात को लेकर आशंकित विभिन्नता है.
श्री संदीप श्रीप्रसाद जायसवाल-- माननीय अध्यक्ष महोदय, अगर कम उठाव किया जाता तो फिर बाद में कैसे उठाव हो जाता है. मैं फिर से कहना चाहूंगा कि जब ज्यादा किसानों को जरूरत खाद की होती है तब निजी क्षेत्र में दे दिया जाता है और जब कम किसान बचते हैं तब सोसायटी को दिया जाता है, यह आपके द्वारा दिये गये उत्तर के आंकड़ों से स्पष्ट है.इसलिये मैं फिर से प्रश्न करूंगा कि विपणन अधिकारी को निलंबित करते हुये उसकी जांच करायेंगे क्या.
श्री ऐदल सिंह कंषाना-- माननीय अध्यक्ष महोदय, जांच और निलंबन का प्रश्न ही नहीं है. खाद की कोई कमी नहीं है उसके बाद भी यदि माननीय सदस्य कह रहे हैं कि खाद की कमी है, खाद की आवश्यकता है तो उनको खाद उपलब्ध करा दिया जायेगा.
श्री सोहनलाल बाल्मीक- माननीय अध्य़क्ष महोदय, बहुत बुरे हाल हैं. हर जगह यही परेशानी है.
अध्यक्ष महोदय- प्रश्नकाल चल रहा है, पूरक प्रश्न आ रहे हैं, जवाब मंत्री जी दे रहे हैं, कृपया शांति बनाये रखें.
श्री सोहनलाल बाल्मीक- माननीय अध्यक्ष महोदय, किसान रोड़ पर खड़ा होकर के प्रदर्शन कर रहा है, उस पर प्रकरण बन रहे हैं, तीन-तीन दिन, रात दिन महिलायें भी खड़ीं रहती हैं ऐसी परिस्थितियां बन रही हैं और जिस तरीके से 70 प्रतिशत की बात यहां पर हो रही है 30 प्रतिशत निजी दुकान को दिया जाता है तो स्थिति यह है कि वह निजी दुकान पर भी खाद नहीं आ रहा है न सोसायटी में आ रहा है. पूरे मध्यप्रदेश की यही स्थिति है.
श्री ऐदल सिंह कंषाना- माननीय अध्यक्ष जी, यदि आप आदेश करें तो माननीय सदस्य की बात का उत्तर मैं दूं.
अध्यक्ष महोदय- हां, अवश्य दीजिये.
श्री ऐदल सिंह कंषाना- अध्यक्ष महोदय, यह खाद-खाद की बात हमारे कांग्रेस के मित्र कह रहे हैं. अध्यक्ष महोदय मैं आपसे आग्रह करना चाहता हूं कि मध्यप्रदेश में कुल यूरिया की उपलब्धता 14 लाख मैट्रिक टन है जिसमें से 12 लाख मैट्रिक टन हम किसानों को दे चुके हैं.2 लाख मीट्रिक टन हमारे पास इस समय स्टॉक में उपलब्ध है.
श्री सुरेश राजे -- माननीय मंत्री जी, अगर ऐसा है तो ..
श्री ऐदल सिंह कंषाना -- मेरी पूरी बात तो सुन लें उसके बाद में आप कहना. आपको मध्यप्रदेश की जनता को गलत जानकारी देने की आदत पड़ गई है. आप मेरी पूरी बात सुन लें.
श्री सुरेश राजे -- मंत्री जी, यह तो गलत है बात है. गलत जानकारी आप दे रहे हैं और आरोप हम पर लगा रहे हैं.
श्री दिनेश जैन ‘बोस’ -- उज्जैन में, महिदपुर में बताएं.
अध्यक्ष महोदय -- मंत्री जी का जवाब आ जाने दीजिए.
श्री अजय अर्जुन सिंह -- अध्यक्ष महोदय, यह राज्यमंत्री थे और लगता है तब से यह गलत जानकारी देते आ रहे हैं.
श्री ऐदल सिंह कंषाना -- अध्यक्ष महोदय, डीएपी एवं एनपीके उपलब्धता 10 लाख मीट्रिक टन है और जिसमें से 7 लाख मीट्रिक टन हम किसानों को दे चुके हैं और 3 लाख मीट्रिक टन हमारे पास आज भी स्टॉक में उपलब्ध है. माननीय सदस्यों से मैं कहना चाहता हूं कि किसी जिले में खाद की आवश्यकता है, किसी तहसील में आवश्यकता है तो आप मुझे बताएं वहां हम खाद उपलब्ध करा देंगे.
इंजीनियर प्रदीप लारिया -- अध्यक्ष महोदय, इन्होंने उपलब्धता की बात तो की है लेकिन रिक्वायरमेंट कितना है.
श्री संदीप श्रीप्रसाद जायसवाल -- अध्यक्ष महोदय, सिर्फ कटनी जिले की बात है. वहां पर खाद भरपूर है लेकिन जो अधिकारी अपने स्तर पर भ्रष्टाचार कर रहे हैं उसके लिये है.
अध्यक्ष महोदय -- संदीप जी, आपके दोनों प्रश्नों पर माननीय मंत्री जी बोले हैं. आप व्यक्तिगत मिलकर बात कर लेना.
श्री उमंग सिंघार -- अध्यक्ष महोदय, मैं कहना चाहता हूं कि सरकार जब उलझती तो जवाब नहीं देती है.
भूमि एवं सॉलवेंशी की जानकारी
[उच्च शिक्षा]
5. ( *क्र. 2223 ) श्री उमंग सिंघार : क्या उच्च शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) कार्यालय आयुक्त उच्च शिक्षा मध्यप्रदेश के आदेश क्रमांक एल-16/आ.उ.शि./नं.7/संबद्धता/शा-13/05, दिनांक 01.04.2005 पर की गयी कार्यवाही सहित अंतिम प्रतिवेदन की प्रति सहित संपूर्ण जानकारी उपलब्ध करावें। (ख) कार्यालय आयुक्त उच्च शिक्षा मध्यप्रदेश शासन के कारण बताओ नोटिस क्रमांक 2211/आ.उ.शि./7/शा-13/संबद्धता/05, दिनांक 27.09.2005 पर की गई कार्यवाही सहित अंतिम प्रतिवेदन की प्रति सहित संपूर्ण जानकारी प्रदान करें। (ग) कार्यालय आयुक्त उच्च शिक्षा मध्यप्रदेश शासन के कारण बताओ नोटिस क्रमांक 316/100/आ.उ.शि./संबद्धता/10, दिनांक 03.04.2010 पर की गई कार्यवाही सहित अंतिम प्रतिवेदन की प्रति सहित संपूर्ण जानकारी प्रदान करें।
उच्च शिक्षा मंत्री ( श्री इन्दर सिंह परमार ) : (क) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र ''अ'' अनुसार है। (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र ''ब'' अनुसार है। (ग) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र ''स'' अनुसार है।
अध्यक्ष महोदय -- आपने प्रश्न क्रमांक नहीं बोला है.
श्री उमंग सिंघार -- अध्यक्ष महोदय, जो हमारे साथी विधायक, आरिफ मसूद जी का यह कॉलेज है अमन एजुकेशन सोसायटी, सरकार ने फर्जी सॉलवेंशी को लेकर वर्ष 2005 में अक्टूबर, अप्रैल में नोटिस दिया था और 3 अप्रैल, 2010 को दिया था लेकिन अभी वर्ष 2025 में कॉलेज की मान्यता निरस्त कर दी, तो जो वर्ष 2005 और वर्ष 2010 में नोटिस दिए थे वह कारण बताओ नोटिस पटल पर आ गए, लेकिन इसमें जांच का अंतिम प्रतिवेदन पटल पर नहीं आया और न पटल पर जानकारी दी. मैं चाहता हू कि जांच प्रतिवेदन को लेकर क्या स्पष्टीकरण है, क्या यहां पटल पर रखना चाहेंगे ?
श्री इन्दर सिंह परमार -- अध्यक्ष महोदय, जो सॉलवेंशी और रजिस्ट्री फर्जी थी यानि उसको टेम्पर्ड किया गया था, हेराफेरी की गई थी और वह प्रस्तुत की गई थी, उसकी सत्यता के लिए कलेक्टर को लिखा गया, कलेक्टर के यहां से यह आया भी है कि वह फर्जी है हमारे यहां से जारी नहीं की गई है. उसको लेकर दिनांक 01.04.2005 को एक पत्र जारी किया गया. फिर उन्होंने उसमें कुछ प्रस्तुत किया. उसमें अतिरिक्त कलेक्टर के जो सॉलवेंशी में हस्ताक्षर थे मालूम पड़ा कि वह भी फर्जी हैं. फिर दूसरा पत्र दिनांक 27.09.2005 को गया कि ऐसा-ऐसा है आप अपना जवाब दीजिए. यह प्रक्रिया आगे तक चलती रही. फिर इन्होंने जो सॉलवेंशी प्रस्तुत की है वह बड़ी मजेदार है ‘’माननीय न्यायालय जिला न्यायाधीश भोपाल के व्यवहार वाद क्रमांक 49अ/2005 में पारित निर्णय दिनांक 17.03.2005 के बिंदु क्रमांक 3 अनुसार भोपाल विकास योजना 2005 के अंतर्गत संचालनालय नगर निगम तथा ग्राम निवेश विभाग द्वारा उक्त भूमि का उपयोग आमोद-प्रमोद’’ अर्थात् जो दूसरी रजिस्ट्री पेश की है वह रजिस्ट्री भी ऐसी जगह की प्रस्तुत कर दी सॉलवेंशी के दस्तावेज में कि जो भूमि आमोद-प्रमोद के लिए थी, वहां पर कोई भवन नहीं बन सकता था, लेकिन और भी बड़ी बात यह है कि इस जगह पर हमने उसके बाद अनुमति नहीं दी. उस जगह के कागज नहीं थे तो इन्होंने दूसरी जगह के कागज लगाए तो वह भी इस प्रकार से फर्जी पाए गए और बड़ी बात यह है कि वह रजिस्ट्री ही फर्जी है. जो कलेक्टर के यहां से और उप पंजीयक के यहां से रिपोर्ट आई वह फर्जी पाई गई. उसके बाद में वर्ष 2024 में एक शिकायत प्राप्त हुई. उस शिकायत दिनांक 21.6.2024 में हमने जांच कराई तो पूरा शुरू से लेकर आखिरी तक सब आया. जांच कराई है तो पूरा शुरु से लेकर आखिरी तक उसमें सब आया है. दो सॉल्वेंसी जारी नहीं हुईं जो वहां पर प्रस्तुत की गईं थीं और चार सॉल्वेंसी जारी तो हुईं लेकिन जिस रजिस्ट्री के आधार पर सॉल्वेंसी बनाई गईं थीं वो रजिस्ट्री ही फर्जी पाई गई है. इसके आधार हमने वर्ष 2025 में उस महाविद्यालय की मान्यता समाप्त की है. सारे के सारे दस्तावेज फर्जी हैं. पूर्व में भी कलेक्टर ने कहा था कि यह दस्तावेज फर्जी हैं इसलिए आप एफआईआर करिए. हमारे विभाग ने आगे की कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए उस समय एफआईआर नहीं की थी लेकिन अब हम निर्णय कर रहे हैं और उसमें एफआईआर भी करने जा रहे हैं. (मेजों की थपथपाहट)
श्री उमंग सिंघार -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे सवाल का तो जवाब ही नहीं आया है. मैंने जांच प्रतिवेदन की माननीय मंत्री जी से मांग की है. मैंने प्रश्न के (ख) में पूछा है कि कार्यालय आयुक्त, उच्च शिक्षा, मध्यप्रदेश शासन के कारण बताओ नोटिस क्रमांक 2211/आ.उ.शि./7/शा-13/संबद्धता/05, दिनांक 29.9.2005 पर की गई कार्यवाही सहित अंतिम प्रतिवेदन की प्रति संपूर्ण जानकारी प्रदान करें. मैं, अंतिम जांच प्रतिवेदन क्या है वह मांग रहा हूँ.
श्री इन्दर सिंह परमार -- अध्यक्ष महोदय, जो जांच प्रतिवेदन वर्ष 2025 का हमने प्रस्तुत किया है. न्यायालय में भी गए हैं वहां हमने प्रस्तुत किया है. लेकिन वर्ष 2005 के दो और वर्ष 2010 का तथा जो तीन पत्र थे यह प्रक्रिया में थे. पहले पत्र के बाद में जो दूसरा उद्भूत हुआ तो वह पत्र हमने लिखा है. इस पत्र के बाद में जानकारी धीरे-धीरे बढ़ती गई. यह वर्ष 2010 में भी कुछ बढ़ी लेकिन फिर रुक गई. उसके बाद किसी कारण से उसमें एफआईआर दर्ज करना थी वह नहीं की गई. प्रकरण वहीं का वहीं रहा. वर्ष 2024 में जो शिकायत प्राप्त हुई उसमें पूरी विस्तृत जांच की गई है उस जांच में मैं आपको बताना चाहता हूँ कि किस प्रकार से महाविद्यालय की जमीन सोसायटी के नाम से होना चाहिए. लेकिन वह व्यक्तिगत नाम की जमीन में हेराफेरी करके टेम्पर्ड करके प्रस्तुत कर दिया गया. फर्जी दस्तावेजों के आधार पर महाविद्यालय संचालित हो रहा था. यानि वह शासन की जमीन नहीं थी उस जमीन की रजिस्ट्री भी हमने प्रस्तुत की है. मैं तो यह कहूंगा कि सरकार लगातार कार्यवाही कर रही है. हमने पूरी जानकारी दी है. हमने सारे दस्तावेज दिए हैं सारे फर्जी हैं. रजिस्ट्री भी है, सॉल्वेंसी भी है. जो भी वर्णन किया गया है उसमें सभी दस्तावेज फर्जी पाए गए हैं. फर्जी डाक्यूमेंट के आधार पर वह महाविद्यालय इतने दिन तक चलता रहा है. इसीलिए हमने उसकी मान्यता समाप्त की है. अब विभाग के द्वारा पुलिस में भी उसकी एफआईआर दर्ज कराएंगे.
श्री उमंग सिंघार -- माननीय अध्यक्ष महोदय, इस कहानी से क्या मतलब है. हमें तो जांच प्रतिवेदन चाहिए. क्या कार्यवाही हुई उसका जांच प्रतिवेदन चाहिए. आपने उत्तर में लिखा है कि जांच प्रतिवेदन उपलब्ध कराया गया है, पुस्तकालय में उपलब्ध नहीं है. सरकार क्या कार्यवाही कर रही है हमें उससे मतलब नहीं है. अंतिम जांच प्रतिवेदन आपको देना चाहिए, आपने लिखा है विधान सभा में देने का, क्यों नहीं दिया गया है. बस इतनी सी बात है.
श्री इन्दर सिंह परमार -- अध्यक्ष महोदय, हमने पूरा का पूरा दिया है. सब फर्जी दस्तावेज हैं. जिनका मैंने वर्णन किया है वे सभी फर्जी दस्तावेज पाए गए हैं.
श्री उमंग सिंघार -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी ने कहा है जांच प्रतिवेदन दिया है तो वह कहां पर है. मेरा सीधा-सीधा निवेदन है कि जांच का अंतिम प्रतिवेदन आपने कहा है कि हमने विधान सभा में दे दिया है जो परिशिष्ट "स" के अनुसार है. आप दीजिए न, सीधी सी बात है आप क्यों नहीं देना चाह रहे हैं. वर्ष 2004-2005-2010 जिसकी आपने पूरी जांच कर ली है तो फिर जांच का अंतिम प्रतिवेदन दीजिए उसमें क्या परेशानी है.
अध्यक्ष महोदय -- उमंग जी पूछ रहे हैं कि जांच प्रतिवेदन देंगे क्या.
श्री उमंग सिंघार -- माननीय अध्यक्ष महोदय, अंतिम जांच प्रतिवेदन. जब आपने उस पर कार्यवाही कर दी है तो अंतिम प्रतिवेदन तो लगा ही होगा. कार्यवाही तो उसके बाद ही होगी.
श्री इन्दर सिंह परमार -- अध्यक्ष महोदय, अभी तक के जो साक्ष्य आए हैं उन साक्ष्यों के आधार पर हमने कार्यवाही की है. लेकिन अभी साक्ष्य अधूरे हैं जो जांच की प्रक्रिया में हैं. उसके बीच में संबंधित कोर्ट गए हैं, कोर्ट से भी उनको रिलीफ नहीं मिला है. हमें जितने दस्तावेज फर्जी मिलते गए हैं उसके आधार पर हम कार्रवाई करते गए हैं. हम संतुष्ट थे कि यह फर्जी है इसलिए इसकी मान्यता समाप्त करना चाहिए. बाकी की दृष्टि से जांच जब पूरी होगी तो जांच प्रतिवेदन देंगे.
श्री भंवरसिंह शेखावत -- माननीय अध्यक्ष महोदय, जांच चल रही है और कार्रवाई भी चल रही है दोनों काम एक साथ कैसे हो सकते हैं. जांच करने के बाद ही कार्रवाई करेंगे न. (व्यवधान)
श्री इन्दर सिंह परमार -- अध्यक्ष महोदय, जितनी जांच हमने की उसके आधार पर जो जांच रिपोर्ट आई है उसके आधार पर हमने कार्रवाई की है. (व्यवधान)
श्री उमंग सिंघार -- माननीय अध्यक्ष महोदय, जाँच रिपोर्ट आई नहीं है. वही तो हम मांग रहे हैं. (व्यवधान)
श्री भंवरसिंह शेखावत -- जांच रिपोर्ट आई नहीं, रिपोर्ट आपने रखी नहीं. जांच कर रहे हैं और कार्रवाई भी कर रहे हैं. दोनों काम साथ साथ कैसे चल सकते हैं.
श्री इन्दर सिंह परमार -- अध्यक्ष महोदय, जितने शिकायत के बिंदु थे उनके आधार पर उनकी बिंदुवार जांच की है अभी हमें लगता है कि और जांच करने की जरुरत है और जांच प्रतिवेदन भी हम समयावधि में दे देंगे.
श्री भंवरसिंह शेखावत -- जांच प्रतिवेदन रख दीजिए उसके बाद कार्रवाई कीजिए.
अध्यक्ष महोदय -- मंत्री जी, जांच प्रतिवेदन से नेता प्रतिपक्ष को अवगत करा दें.
श्री इन्दर सिंह परमार -- अध्यक्ष महोदय, जांच प्रतिवेदन आया है, प्रतिवेदन मिला है और जो जांच हुई है उसकी सारी डिटेल इनको दी है. (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय-- जांच प्रतिवेदन से नेता प्रतिपक्ष जी को अवगत करा देना. (व्यवधान)....
श्री उमंग सिंघार--यह कब रखेंगे, जांच प्रतिवेदन कब देंगे यह तो बता दें.
श्री कैलाश विजयवर्गीय-- अध्यक्ष महोदय, यह बहुत ही गंभीर मामला है. उच्च शिक्षा विभाग में कॉलेज चला रहे हैं और दस्तावेज सारे फर्जी? चिंता की बात तो यह है कि जहां फर्जी दस्तावेज के आधार पर कॉलेज बनता है वहां शिक्षा क्या मिलेगी?. इसलिए मैं माननीय नेता प्रतिपक्ष जी से कहना चाहता हूं कि शुरू से लेकर आखिरी तक सारे फर्जी दस्तावेज हैं और आप अपने सदस्य को इतना संरक्षण दे रहे हैं, उनकी तो सदस्यता भी जा सकती है, इतना फर्जी काम करने पर उनकी सदस्यता भी जा सकती है. (व्यवधान)......
श्री उमंग सिंघार-- माननीय संसदीय कार्य मंत्री जी, स्कूल कॉलेज में जितले शिक्षक हैं प्रदेश में उतने कहां हैं. पूरे प्रदेश में जितने लोग हैं अतिथि शिक्षक को तो नौकरी नहीं दे पा रहे हो. वह बेचारे तो वेटिंग में हैं. भर्ती कर नहीं पा रहे हो और आप हम से बात कर रहे हो. अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे सिर्फ समय-सीमा चाहता हूं. बगैर कार्यवाही के उसमें कार्यवाही की जा रही है. (व्यवधान)......
अध्यक्ष महोदय--मैंने बता दिया. मंत्री जी आपको अवगत कराएंगे.
श्री उमंग सिंघार-- कब देंगे? यही चाह रहा हूं.
अध्यक्ष महोदय--मैंने मंत्री जी को बता दिया है. विधान सभा एक ही दिन थोड़ी है.
श्री उमंग सिंघार-- आप समय-सीमा दिलवा दें. आप कोर्ट में कर रहे हो, आप हम पर कार्यवाही कर रहे हो. बिना समय-सीमा कैसे कार्यवाही कर रहे हैं. आपसे अनुरोध है समय सीमा दिलवा दें.
श्री कैलाश विजयवर्गीय-- अध्यक्ष महोदय, संभव कैसे है. अभी सबज्यूडीशरी विषय है और एक-एक करके फर्जीवाड़े की पर्त निकलती जा रही है. एकदम आप कहें कि अभी फायनल रिपोर्ट दे दें. एक-एक करके रिपोर्ट दी जा रही है और इसलिए जब पूरा की पूरा नीचे से लेकर ऊपर तक फर्जी है तो इसको इस प्रकार संरक्षण नहीं देना चाहिए. (व्यवधान)......
श्री उमंग सिंघार-- अध्यक्ष महोदय, बाकी कार्यवाही रोक दें. जब तक जांच का अंतिम प्रतिवेदन नहीं आ जाता तब तक कार्यवाही रोक दें. (व्यवधान)......
श्री सोहनलाल बाल्मीक-- यह तो धमकाने वाली बात है. (व्यवधान)......
श्री सचिन सुभाषचन्द्र यादव-- माननीय अध्यक्ष महोदय, सीधा-सीधा प्रश्न था. (व्यवधान)......
श्री उमंग सिंघार--- आपने लिखकर दिया है कि अंतिम प्रतिवेदन दिया. सचिवालय में जानकारी आपने दी नहीं है. (व्यवधान)......
श्री इंदर सिंह परमार-- फर्जी सॉल्वेंसी भी लाया हूं, फर्जी रजिस्ट्रियां भी लाया हूं. (व्यवधान)......
श्री सोहनलाल बाल्मीक-- प्रतिवेदन आ गया है तो बता दो न. (व्यवधान)......
श्री जयवर्द्धन सिंह-- अध्यक्ष महोदय, जब जांच पूरी ही नहीं हुई है तो (व्यवधान)......
श्री उमंग सिंघार-- आपने विधान सभा में लिखकर दिया है. पुस्तकालय में जानकारी आपने दी नहीं. (व्यवधान)......
श्री इंदर सिंह परमार-- पूरा रिकॉर्ड है. फर्जीवाड़े के आधार पर वह कॉलेज चल रहा था. कांग्रेस के बड़े नेता हैं इसलिए कहीं न कहीं अपने दबाव का उपयोग करना चाहते हैं. कोर्ट में (व्यवधान)......
श्री उमंग सिंघार-- माननीय अध्यक्ष महोदय, इसमें आपके संरक्षण की आवश्यकता है. यह विधान सभा की बात है... (व्यवधान)......
श्री भवंरसिंह शेखावत-- माननीय अध्यक्ष महोदय, जांच चलती रहती है और पैसा वसूल हो जाता है. जांच चलते-चलते पैसा वसूलने की एक मशीन खोल दी है आपने. जांच चलती रहेगी, हम पैसा वसूलते जाएंगे और एफआईआर भी करते जाएंगे. (व्यवधान)......
श्री इंदर सिंह परमार-- कोर्ट में प्रकरण विचाराधीन है. वहां से जैसे निर्देश मिलेंगे उसके बाद हम जांच प्रतिवेदन सदस्य को दिखा देंगे.
श्री उमंग सिंघार-- माननीय अध्यक्ष महोदय, फिर विधान सभा में कैसे लिखकर दे दिया आपने. (व्यवधान)......
श्री इंदर सिंह परमार--जितनी भी जांच हुई है उसकी सारी कॉपी उपलब्ध करा दी है. (व्यवधान)......
श्री उमंग सिंघार-- माननीय अध्यक्ष महोदय, विधान सभा में गलत जानकारी दी जा रही है, छुपाई जा रही है. (व्यवधान)......
श्री इंदर सिंह परमार-- अध्यक्ष महोदय, जितनी जानकारी आई है उतनी हमने उपलब्ध करा दी है. (व्यवधान)......
श्री कैलाश विजयवर्गीय-- अध्यक्ष महोदय, नेता प्रतिपक्ष ने कहा है कि जांच प्रतिवेदन है मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से निवेदन करना चाहूंगा कि उस जांच प्रतिवेदन की भी जांच कर लें कि किस अधिकारी ने फर्जी जांच प्रतिवेदन दिया है. उसके खिलाफ भी आप कार्यवाही करें.
श्री उमंग सिंघार-- फर्जी जांच हुई है आप स्वयं यह बोल रहे हैं. संसदीय कार्यमंत्री जी बोल रहे हैं कि फर्जी जांच हुई है.
श्री इंदर सिंह परमार-- अध्यक्ष महोदय, अभी सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए जांच को आगे बढ़ाने वाले हैं.
अध्यक्ष महोदय-- मंत्री जी जबाव दे रहे हैं. तो जवाब सुनना तो चाहिए. मंत्री जी का जवाब ही नहीं सुन रहे हैं.
श्री इंदर सिंह परमार-- अध्यक्ष महोदय, दिनांक 21.06.2024 की जो शिकायत है उसका जांच प्रतिवेदन आ गया है वह हम माननीय सदस्य को उपलब्ध करा देंगे परंतु शेष न्यायालय के अधीन है. वह न्यायालय की प्रक्रिया के अनुसार चलेगा.
सुरक्षा एवं प्रदूषण मानकों की जांच कर कार्यवाही
[श्रम]
6. ( *क्र. 2737 ) श्री वीरेन्द्र सिंह लोधी : क्या श्रम मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) बण्डा विधानसभा के ग्राम सौरई औद्योगिक क्षेत्र में स्थापित मध्यभारत एग्रो प्रो.लि. की इकाइयों में मानक अनुसार उपयोग होने वाले सभी-प्रकार के सुरक्षा मापदण्डों की सूची उपलब्ध कराएं? (ख) उक्त इकाइयों में सभी सुरक्षा मापदण्डों का पालन हो रहा है, इसकी जांच करवाकर विस्तृत प्रतिवदेन प्रदान किया जाये। (ग) सुरक्षा मानकों में लापरवाही के कारण दुर्घटनायें होने एवं मजदूरों की असमय मृत्यु होने के लिये जिम्मेदारी तय कर उन पर कार्यवाही के संबंध में प्रतिवदेन प्रदान किया जाये। (घ) जो सुरक्षा मानक स्थापित हैं, वह कब स्थापित किये गये? (ड.) सभी सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित किये बगैर इकाइयों के संचालन हेतु जिम्मेदार तथा उन पर कार्यवाही के संबंध में प्रतिवेदन प्रदान किया जाये? (च) क्या इकाइयों के संचालन हेतु मानक अनुसार आवश्यक सभी सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित करवाया जायेगा? अगर हाँ तो कब तक? (छ) क्या उक्त इकाइयों में प्रदूषण नियंत्रण के मानकों की जानकारी दी जायेगी? (ज) क्या इकाइयों के कारण हो रहे मृदा, वायु एवं जल प्रदूषण की जांच करवाकर प्रतिवेदन दिया जायेगा? (झ) क्या प्रदूषण नियंत्रण के मानको का पालन सुनिश्चित करवाया जायेगा?
श्रम मंत्री ( श्री प्रहलाद सिंह पटैल ) : (क) कारखाना प्रबंधन द्वारा प्रदाय जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'क' अनुसार है। (ख) उक्त इकाई का निरीक्षण दिनांक 15.07.2025 को किया जाकर जिन सुरक्षा मापदण्डों में अपालन की स्थिति पाई गई, उनके लिये कारण बताओ सूचना पत्र जारी किया गया है एवं वैधानिक कार्यवाही जारी है। प्रतिवेदन की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'ख' अनुसार है। (ग) सुरक्षा मानकों में लापरवाही के संबंध में नियमानुसार निरीक्षण कर कार्यवाही की जाती है। दुर्घटना के संबंध में किये गये निरीक्षण के कारण बताओ सूचना पत्र की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'ख' अनुसार है। (घ) औद्योगिक इकाइयों के संबंध में सुरक्षा मानक कारखाना अधिनियम, 1948 के अनुसार एवं इस औद्योगिक इकाई में सुरक्षा उपायों के स्थापित किये जाने की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'ग' अनुसार है। (ड.) जिन सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित किये बगैर इकाइयों का संचालन किया जा रहा है, उनके लिये कारण बताओ सूचना पत्र जारी किया गया है। जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'ख' अनुसार है। (च) इकाइयों के संचालन हेतु मानक अनुसार आवश्यक सभी सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित करने हेतु प्रबंधन को निर्देशित किया गया है। (छ) उक्त इकाइयों में पर्यावरणीय विधानों यथा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम आदि के अंतर्गत प्रदूषण नियंत्रण के मानक लागू होते हैं। (ज) इकाइयों में पर्यावरणीय विधानों यथा जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम), वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम आदि के अंतर्गत जल, वायु, मृदा प्रदूषण की जांच की जाती है। (झ) प्रदूषण नियंत्रण के मानकों का पालन पर्यावरणीय विधानों के अंतर्गत किया जाता है।
श्री वीरेन्द्र सिंह लोधी--प्रश्न क्रमांक 2737
श्री प्रहलाद सिंह पटेल-- माननीय अध्यक्ष महोदय, उत्तर सभा पटल पर रख दिया गया है.
श्री वीरेन्द्र सिंह लोधी-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी का भी धन्यवाद करता हूं कि मैंने जो विषय रखे उन पर आपके द्वारा कार्यवाही प्रारंभ की गई. सरकार औद्योगीकरण को बढ़ावा दे रही है. मेरे यहां औद्योगिक क्षेत्र विकसित कर, उद्योग लगाये जा रहे हैं, जिससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे. मैं इसके लिए मुख्यमंत्री जी एवं सरकार को धन्यवाद करता हूं. मेरा विषय यह है कि पर्यावरण एवं सुरक्षा मामलों में लापरवाही न हो. लापरवाही की जो घटनायें लगातार सामने आ रही हैं, उसमें एक घटना 2 मार्च की है, जिसमें अनुराग राजपूत नामक लड़का का एक एसिड टैंक में गिरने से दु:खद निधन हो गया. दूसरी घटना 14 मार्च, 2024 की है, जिसमें महेश पिता मोहन लोधी, एसिड टैंक को साफ करते समय उसका निधन हो गया और तीसरी घटना 17 मार्च, 2023 की है, जिसमें महेंद्र पिता भरत लोधी, उम्र 30 वर्ष, जिसका जिप्सम बेल्ट पर काम करते समय सुरक्षा इंतजामों के अभाव में निधन हो गया.
अध्यक्ष महोदय- लोधी जी, आपका प्रश्न क्या है ? आप क्या चाहते हैं ?
श्री वीरेन्द्र सिंह लोधी- अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न यह है कि श्रमिकों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के मामले में जो लापरवाही हो रही है, ऐसे मामलों की जांच करवाकर, उनको उचित न्याय दिया जाये.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल- अध्यक्ष महोदय, विधायक जी ने जो प्रश्न लगाया है, जिन घटनाओं का यहां उल्लेख किया है, वे सच हैं. हमने अधिकारियों से जांच करवाई है, उसकी 15.7.2025 को जांच रिपोर्ट भी आ गई है. जिसके आधार पर कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 41(7)(a), 41(7)(c) और 33(1) और मध्यप्रदेश कारखाना नियमावली, 1962 उसके नियम 73 (1), 131 (a), नियम 128 एवं 72 के तहत कार्रवाई की गई है. कुछ बातें हैं जो बड़ी स्पष्ट हैं कि जो कमियां वहां पाई गईं, जिस एसिड टैंक की घटना की बात कही गई है, यह बिलकुल सही है. अनुराग राजपूत नाम कर्मचारी उसमें हताहत हुआ था, जिसकी उन्होंने बिना सूचना दिये, उसे मुआवज़ा देकर, उसका परिवार जब तक रहेगा, तब तक उसकी पेंशन तय कर दी, लेकिन शेष 2 घटनाओं में जब यह पाया गया कि उन्होंने वास्तव में उस दुर्घटना के बाद, ये जानकारी न तो प्रशासन को दी और न ही उस वहां औद्योगिक सुरक्षा की चिंता की है, इसलिए उसके खिलाफ यह कार्रवाई की गई है. मैं विधायक जी से कहूंगा कि इन प्रकरणों को सरकार गंभीरता से ले रही है और सख्त से सख्त जो कार्रवाई होगी, वह हम करेंगे.
अध्यक्ष महोदय- माननीय सदस्य, दूसरा कोई पूरक प्रश्न है ?
श्री वीरेन्द्र सिंह लोधी- अध्यक्ष महोदय, मेरा यह प्रश्न है कि जल और वायु प्रदूषण हो रहा है, उसके नियंत्रण के लिए मंत्री जी ध्यान दें. मंत्री जी मेरे क्षेत्र के ही 10 वर्षों तक सांसद रहे हैं और मेरे आदर्श एवं मार्गदर्शक हैं, निश्चित ही प्रारंभ से मैंने देखा है कि आपने श्रम संगठनों में निरंतर कार्य किया है और उनकी चिंता करते हैं.
अध्यक्ष महोदय- लारिया जी का एक प्रश्न है, उनके जिले का मामला है.
इंजीनियर प्रदीप लारिया- अध्यक्ष महोदय इसकी एक यूनिट रजऊवा नरयावली विधान सभा क्षेत्र में है, सौरई इसकी दूसरी यूनिट है. रजऊवा के संदर्भ में मैं कहना चाहता हूं कि वहां 15-20 वर्षों से किसान लगातार इस बात की शिकायत कर रहे हैं, समय-समय पर जिला प्रशासन को कह रहे हैं कि लगभग 100-150 एकड़ जमीन बंजर हो गई है. मेरा मंत्री जी, जिनका हमारे जिले से काफी गहरा नाता है, वे वहां की सभी स्थिति-परिस्थितियों को जानते हैं, मेरा आग्रह है कि जल और वायु प्रदूषण की बात आई है, तो रजऊवा की भी जांच हो जाये.
अध्यक्ष महोदय, इसके साथ ही किसान जो लगातार लंबे समय से अपनी बात उठा रहे हैं, उनका नुकसान हो रहा है, जमीन बंजर हो रही है, वहां स्थानीय स्तर पर ठीक-ठाक रिपोर्ट नहीं आ पाती है इसलिए भोपाल की टीम वहां जाकर, प्रदूषण बोर्ड की टीम जाये और किसानों के नुकसान की भी चिंता करे और वहां एक नाला बहता है, जिससे सिंचाई होती है, वहां जल प्रदूषण भी हो रहा है, तो क्या मंत्री जी इन सभी विषयों की जांच करवायेंगे ?
अध्यक्ष महोदय- लारिया जी, आपकी भावना आ गई.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल- अध्यक्ष महोदय, यह कारखाना अति खतरनाक श्रेणी की सूची में पंजीबद्ध है. मध्यप्रदेश में हमारे पोर्टल पर ऐसे 102 उद्योग हैं, जो अति खतरनाक श्रेणी में आते हैं, जिसमें से 7 बंद हो गए हैं.
श्री कैलाश विजयवर्गीय- अध्यक्ष महोदय, कारखाने खतरनाक हैं लेकिन मंत्री जी चेहरे पर मुस्कान रखते हुए जवाब दे सकते हैं, ये किसने कहा है कि मंत्री जी भी खतरनाक मुंह बना लें. (हंसी)
श्री प्रहलाद सिंह पटेल - अध्यक्ष महोदय, उसमें 79 की जांच हो गई है और जो हमने अभी तया तंत्र बनाया है, उसमें लक्षित उद्योगों की जांच तय है. जहां तक हमारे दोनों माननीय विधायकों ने कहा है. मैं उन दोनों यूनिट्स से परिचित हूँ और जैसे की उनकी इच्छा है, हमारे सुरक्षा के डायरेक्टर और पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के किसी अधिकारी के साथ, हम ज्वाइंट टीम बनाकर इन दोनों यूनिट्स की जांच कराएंगे. ऐसा, मैं आपके माध्यम से माननीय सदस्यों से कहना चाहता हूँ.
विभागीय कार्यों की जानकारी
[पंचायत एवं ग्रामीण विकास]
7. ( *क्र. 2426 ) डॉ. राजेन्द्र पाण्डेय : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) मनरेगा योजनांतर्गत रतलाम जिले में जिला पंचायत/जनपद पंचायत/ग्राम पंचायत के माध्यम से किस-किस प्रकार की किन-किन कार्यों का क्रियान्वयन वर्ष 2022-23 से लेकर प्रश्न दिनांक तक किया जा रहा है? ग्राम पंचायत/जनपद पंचायतवार जानकारी दें। (ख) जिला रतलाम में सघन वृक्षारोपण हेतु सामुदायिक वृक्षारोपण, नक्षत्र वाटिका एवं मां की बगिया इत्यादि मनरेगा योजना के माध्यम से कितनी-कितनी लागत के कितने-कितने वर्षों हेतु वित्तीय वर्ष 2022-23 से प्रश्न दिनांक तक के कार्य स्वीकृत होकर किये जा रहे हैं? ग्राम पंचायत/जनपद पंचायतवार जानकारी दें। (ग) मनरेगा योजनांतर्गत जल गंगा अभियान के कितने कार्य उपरोक्त प्रश्न अंतर्गत उल्लेखित वर्ष अनुसार स्वीकृत किये गये? ग्राम पंचायत/जनपदवार जानकारी दें। (घ) विधानसभा क्षेत्रान्तर्गत किन अधिकारियों तथा जनप्रतिनिधियों की अनुशंसा पर मनरेगा योजनान्तर्गत वित्तीय वर्ष 2025-26 से प्रश्न दिनांक तक कितने कार्य स्वीकृत किये गये एवं स्वीकृत कार्यों का भौतिक सत्यापन किस सक्षम अधिकारी या टीम द्वारा कब-कब किया गया एवं क्या कार्यवाही की गयी?
पंचायत मंत्री ( श्री प्रहलाद सिंह पटैल ) : (क) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'अ' एवं 'ब' अनुसार है। (ख) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'स' अनुसार है। (ग) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'द' अनुसार है। (घ) प्रश्नांश अनुसार कार्य स्वीकृत करने की जानकारी निरंक है। शेष प्रश्न उत्पन्न नहीं होता।
डॉ. राजेन्द्र पाण्डेय - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा तारांकित प्रश्न क्र. 2426 है.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल - माननीय अध्यक्ष महोदय, प्रश्न का उत्तर पटल पर रख दिया गया है.
डॉ. राजेन्द्र पाण्डेय - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से विनम्रतापूर्वक आग्रह करना चाहता हूँ कि मैंने एक तो प्रश्न में पूछा था, वर्ष 2020-21 से लेकर वर्ष 2024-25 तक, तो मुझे वर्ष 2022-23 से लेकर प्रश्न में यह बता दिया गया कि वर्ष 2025-26 तक, एक तो वर्ष 2020-21 से वर्ष 2024-25 तक पूरी जानकारी नहीं आ पाई है, वह मिल जाये. मैं एक निवेदन भी करना चाहता हूँ. इसमें काफी अच्छा जवाब आया है. मैं माननीय मंत्री जी को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि उन्होंने बहुत विस्तार से जवाब दिया है. एक कठिनाई जरूर आ रही है कि रतलाम जिला अन्तर्गत और जावरा जनपद, पिपलोदा जनपद वहां पर मनरेगा योजनान्तर्गत सामग्री और मजदूरों का रेशो, उसमें कुछ अन्तर आ रहा है. उसके कारण विगत 4-5 वर्षों से सुदूर ग्राम सड़क स्वीकृत नहीं हो पा रही हैं, खेत-सड़क स्वीकृत नहीं हो पा रही हैं, काफी सड़कें 8 लेन, 6 लेन, 4 लेन, 2 लेन प्रधानमंत्री सड़क योजना से समस्त ग्राम जुड़ गए हैं, अभी शेष 150 से 250 की आबादी के गांव जुड़ने वाले हैं.
अध्यक्ष महोदय - राजेन्द्र जी, आप प्रश्न तो करें.
डॉ. राजेन्द्र पाण्डेय - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं मंत्री जी को धन्यवाद दे रहा हूँ, लेकिन निवेदन कर रहा हूँ कि आप उस रेशो को चैक करवा लें. जावरा जनपद और पिपलोदा जनपद के अंतर्गत सामग्री और मजदूरी में रेशो का क्या अन्तर है ? तो उसे सुधारे जाने के निर्देश दे दें, ताकि हमें सुदूर ग्राम सड़क योजना की स्वीकृति मिल सके, जो कि 4-5 वर्षों से नहीं मिल रही है.
अध्यक्ष महोदय - धन्यवाद के साथ, प्रहलाद जी. धन्यवाद सदस्य देते हैं. लेकिन धन्यवाद के साथ, जैसे ही लेकिन लगाते हैं तो धन्यवाद का असर पचास प्रतिशत कम हो जाता है. (हंसी) या तो एकाध प्रश्न में पूरा मंत्री जी को धन्यवाद ही दिया करें.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय सदस्य को भी धन्यवाद देता हूँ.
डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह - माननीय अध्यक्ष जी, इस धन्यवाद के अन्दर बड़ा छिपा हुआ प्रश्न है.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं धन्यवाद की वापसी भी कर रहा हूँ. माननीय सदस्य बहुत वरिष्ठ सदस्य हैं. मैं उनको भी इस प्रश्न के लिए धन्यवाद दे रहा हूँ और जो वह वर्ष की घटोतरी है, वह हमने नहीं की है. विधान सभा ने जो समयावधि तय की है कि हम 5-5, 6-6 वर्षों की जानकारियां मांगते हैं, तो वह पोर्टल पर होती हैं. हम पोर्टल को देख सकते हैं. चूँकि आप इतने वरिष्ठ सदस्य हैं. इसलिए हमने वर्ष 2022-23 से विधिवत् पूरी जानकारियां उसमें दी हैं और मैं दो तीन बातें जरूर, आपके माध्यम से सदन को कहना चाहता हूँ कि यह बड़ा भ्रम है कि सुदूर सड़क और खेत सड़क बन्द कर दी गई हैं.
अध्यक्ष महोदय, जब मैं मंत्री बना था तो उस समय लगभग पौने आठ लाख काम अधूरे पड़े हुए थे और जो मटेरियल और मजदूरी का रेशो था, जो भारत सरकार की गाइडलाइन है, उससे बिल्कुल उलट था और पहले जिले के स्तर पर यह रेशो डिसाइड होता था कि जिला पंचायत सीईओ तय करते थे और उस प्रतिशत के आधार पर, पूरे जिले को या तो काम मिलता था या नहीं मिलता था. मैंने सबसे पहले उसको घटाकर, चूँकि आप उस विभाग के मंत्री रहे हैं तो मैं उसको जनपद पर लेकर आया हूँ कि अगर जनपद पर रेशो ठीक है, तो जनपद को पैसा मिलेगा. यह पहला वर्ष है, जिन जनपदों का रेशो मटेरियल और मजदूरी का अच्छा था, उनको तीन करोड़ रुपये दिये गये हैं और जिनका नहीं था, उनको भी एक करोड़ रुपये दिये गये. अब मनरेगा के प्रस्ताव कोई जनप्रतिनिधि यहां जाकर तो नहीं करता, वह तो निश्चित तौर पर पंचायत के स्तर पर होता है. हां, विधायकगण या बाकी उनके जो प्रतिनिधि होंगे, वे उसमें हस्तक्षेप करते होंगे, उस हस्तक्षेप से मुझे आपत्ति नहीं है. लेकिन वह निर्णय तो ग्राम पंचायत ही करती है कि वह कौन से काम लेंगे और कौन से काम नहीं लेंगे ? दूसरा, मैं आपके माध्यम से सदन को यह जानकारी देना चाहता हूँ कि खेत सड़क, उस एक सड़क पर खेत सड़क का भी पैसा चला गया, सुदूर सड़क का भी चला गया, मुख्यमंत्री सड़क का भी चला गया, विधायक निधि से भी चला गया तो इस भारत सरकार ने भी इस पर आपत्ति की थी और हमने उसका बकायदा सर्वे कराना शुरू किया कि यदि एक जगह पर 3 बार पैसा लगाएं, तो उसके बाद उसका अपग्रेडेशन क्यों नहीं हुआ ? यह जो तैयारी है, इस तैयारी के कारण भी कुछ गतिरोध होंगे तो मुझे लगता है कि अधिकारियों को भी और इंजीनियर्स को यह कहा गया है. मैं भी जहां जा रहा हूँ, माननीय सरपंचों के सम्मेलन में मैं कहता हूँ कि एक पंचायत में अगर 10 खेत सड़क हैं तो एक बार में पोर्टल पर आप दे दीजिए. अगर 3 पहले बनी हैं तो उनको अपग्रेडेशन के लिए दीजिए. कम से कम तीसरी बार में वे गिट्टी की तो हो जाएंगी. फिर शायद मिट्टी डालने का काम नहीं होगा. फार्मेट के तहत आगे चलना चाहिए. माननीय सदस्य को मैं कुछ जानकारियां और दे रहा हूँ कि वर्ष 2022-23 में आपके यहां से कुल 34 ही प्रस्ताव आए थे. वह डेटा आपको ध्यान में रहना चाहिए, जिसमें 13 प्रस्ताव स्वीकृत किए गए और 21 प्रस्तावों को अस्वीकृत किया गया था. उसके बाद में अभी का जो वर्ष है, इसमें आपके जिले में 1011 काम स्वीकृत हैं तो मुझे लगता है कि इनको जरूर आपको पलटकर देखना चाहिए. इस वर्ष की जानकारी पूरे सदन के सामने हो क्योंकि ये प्रश्न सभी का है. सभी विधायकों को लगता है कि खेत सड़क और सुदूर सड़क बंद कर दी गई है, यह बिल्कुल बंद नहीं की गई है. अभी जो हमको भारत सरकार से प्राप्त लेबर बजट था, उसमें 15 करोड़ मानव दिवस का बजट हमारे पास था. इसमें लगभग 10 करोड़ 42 लाख मानव दिवस सृजित हो गए हैं. इसमें अनुसूचित जाति के 13.45 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के 30.60 प्रतिशत मजदूर थे. महिला 43 प्रतिशत थी और इस वित्तीय वर्ष में लगभग 12 लाख 23 हजार से ज्यादा काम यहां पर स्वीकृत हुए, जिसमें पौने दो लाख से ज्यादा काम पूरे हुए हैं. अभी 10 लाख के आसपास काम प्रगतिरत हैं. इसमें कुल 3,407 करोड़ रुपये का व्यय हुआ है, जिसमें मजदूरी में 76 प्रतिशत व्यय है और सामग्री में 19 प्रतिशत व्यय है. अध्यक्ष जी, यह पहली बार संतुलन में है.
अध्यक्ष महोदय -- राजेन्द्र जी, दूसरा पूरक प्रश्न पूछें. अब तो विस्तार से उत्तर आ गया है.
डॉ. राजेन्द्र पाण्डेय -- जी, बहुत-बहुत धन्यवाद, आपने बहुत विस्तार से बताया है. 13 प्रस्तावों को आपने सम्मिलित भी किया है, उसके लिए भी मैं क्षेत्र की ओर से धन्यवाद देना चाहता हूँ. लेकिन ब्यावरा जनपद और पिपलोदा जनपद के बारे में थोड़ा सा आप परीक्षण करा लें, क्योंकि 5 वर्षों से वहां पर स्वीकृतियां नहीं दी जा रही हैं. मैं सिर्फ जावदा और पिपलोदा जनपद की बात कर रहा हूँ, संपूर्ण रतलाम जिले में हो रहा है. इसका जवाब नहीं आ पाया था.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल -- अध्यक्ष जी, मैं विधायक जी से बात कर लूंगा. अगर उनको लगता है तो मैं जरूर उसमें कोई रास्ता निकालूंगा.
अध्यक्ष महोदय -- डॉ. अभिलाष पाण्डेय जी.
डॉ. राजेन्द्र पाण्डेय -- माननीय अध्यक्ष महोदय, एक विषय कार्य की प्रगति के संबंध में है. एक तो गौशालाएं अपूर्ण हैं और आंगनवाड़ी भवन अपूर्ण हैं और पोषण वाटिका. थोड़ा कार्य की प्रगति के निर्देश दें.
अध्यक्ष महोदय -- बैठिए राजेन्द्र पाण्डेय जी. डॉ. अभिलाष पाण्डेय जी के स्थान पर श्री अरविंद पटेरिया जी. अरविंद पटेरिया हैं क्या ?
श्री भैरो सिंह बापू -- माननीय अध्यक्ष जी, इसी से संबंधित मेरा भी प्रश्न है. मेरा आपके माध्यम से मंत्री जी से आग्रह है कि ...
श्री मधु भगत -- माननीय अध्यक्ष जी, मेरा भी प्रश्न था, नहीं आया है.
प्रश्न संख्या 8 - डॉ. अभिलाष पाण्डेय (अनुपस्थित)
अध्यक्ष महोदय -- श्री नरेन्द्र सिंह कुशवाह जी अपना प्रश्न करें.
भिण्ड विकासखण्ड में संचालित योजनाएं
[पंचायत एवं ग्रामीण विकास]
9. ( *क्र. 2497 ) श्री नरेन्द्र सिंह कुशवाह : क्या पंचायत मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) भिण्ड जिले के भिण्ड विकासखण्ड में विभाग द्वारा केन्द्र व राज्य सरकार तथा अन्य वित्त पोषित संस्थाओं द्वारा किन-किन योजनाओं का संचालन किया जा रहा है? योजना का नाम, वित्त पोषित संस्थान का नाम व प्रदाय की जाने वाली राशि तथा कार्यावधि का समय आदि संबंधित समस्त जानकारी उपलब्ध करावें। (ख) क्या भिण्ड विकासखण्ड में वाटर शेड परियोजना का कार्य किया जा रहा है? यदि हाँ, तो परियोजना संचालित ग्राम पंचायतों का नाम व उपयोगार्थ राशि की जानकारी देवें। यदि नहीं, तो उक्त परियोजना के संचालन के संबंध में योजना को प्रारंभ करने की योजना है? यदि हाँ, तो कब तक? क्या भिण्ड वर्तमान में उक्त योजना के तहत बीहड़ प्रभावित ग्राम पंचायतों को शामिल किया जाना सुनिश्चित किया जावेगा? (ग) भिण्ड विकासखण्ड के विभिन्न ग्राम पंचायत में विभिन्न नदियों के बीहड़ क्षेत्र होने के कारण लगातार भूमि कटाव हो रहा है? विभाग द्वारा उक्त बीहड़ी क्षेत्र को विकसित करने व उसे वानिकी परियोजना के तहत फलदार/इमारती वृक्षों को रोपा जाकर भूमि कटाव छोड़ने की योजना प्रस्तावित की जावेगी? यदि हाँ, तो समयावधि बतायें। (घ) भिण्ड विकासखण्ड के विभिन्न ग्राम पंचायतों के मजरे-टोलों को मुख्य मार्ग से जोड़ने के लिये सुदूर मार्ग, विभिन्न पंचायतों को गाँव के अन्दर दलदल व पानी निकासी के लिये सड़क व नाला, नाली निर्माण के लिये उपयोगी मद हेतु राशि उपलब्ध कराई जावेगी? यदि हाँ, तो समयावधि बताने का कष्ट करें।
पंचायत मंत्री ( श्री प्रहलाद सिंह पटैल ) : (क) जानकारी विभाग के पोर्टल prd.mp.gov.in पर पब्लिक डोमेन में उपलब्ध अनुसार है। (ख) जी नहीं। जी नहीं। अत: शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) जी नहीं। अत: शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (घ) संयुक्त सचिव, भारत सरकार ग्रामीण विकास मंत्रालय के अर्द्धशासकीय पत्र क्रमांक D.O. No. J-11017/01/2025-RE-VII, दिनांक 20 मई, 2025 द्वारा ग्रामीण संयोजकता कार्यों के बेहतर क्रियान्वयन हेतु एडवाईजरी जारी की गई है, जिसके अनुक्रम में मध्यप्रदेश राज्य रोजगार गारंटी परिषद, भोपाल के पत्र क्रमांक 844, दिनांक 27.05.2025 द्वारा शासन स्तर से नवीन दिशा-निर्देश जारी किये जाने तक सुदूर संपर्क/खेत सड़क के नवीन कार्य नहीं लिये जाने हेतु निर्देशित किया गया है। अत: शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
श्री नरेन्द्र सिंह कुशवाह -- प्रश्न क्रमांक 2497.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल -- माननीय अध्यक्ष जी, उत्तर सभा पटल पर रख दिया गया है.
अध्यक्ष महोदय -- माननीय सदस्य पूरक प्रश्न करें.
श्री नरेन्द्र सिंह कुशवाह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से मंत्री जी से अनुरोध है कि भिण्ड विधान सभा तीन दिशाओं से नदियों से घिरा हुआ है. प्रत्येक वर्ष प्रलयकारी बाढ़ आने के कारण बड़े पैमाने पर भूमि का कटाव हो रहा है. भूमि के कटाव को रोकने हेतु क्या राज्य शासन द्वारा कोई योजना बनाई जाएगी, जिससे भिण्ड विधान सभा क्षेत्र के बीहड़ों को विकसित किया जा सके ?
श्री प्रहलाद सिंह पटेल -- माननीय सदस्य ने वाटर शेड के बारे में पूछा है. यह सच है कि बीहड़ों में जिस प्रकार से कटाव हो रहा है, उससे कोई इंकार नहीं करेगा. मैं उस जिले का प्रभारी मंत्री भी हूँ और खुद माननीय विधायक जी के साथ में हम 2-3 जगहों पर गए भी हैं. लेकिन वाटर शेड के प्रोजेक्ट कहां पर होंगे, भारत सरकार अपने नॉर्म्स के आधार पर करती है. अध्यक्ष महोदय, भारत सरकार के किसी विभाग के आप भी मंत्री रहे हैं. माननीय सदस्य का मानना यह है कि शायद मध्यप्रदेश सरकार यह तय करती होगी. वाटर शेड के क्षेत्र को मध्यप्रदेश सरकार तय नहीं करती, लेकिन अगर प्लान्टेशन या दूसरी कोई स्कीम माननीय विधायक जी लेकर आएंगे तो मनरेगा के तहत या अन्य मदों से हम उनकी मदद के लिए तैयार हैं.
अध्यक्ष महोदय -- माननीय सदस्य, कोई दूसरा पूरक प्रश्न ?
श्री नरेन्द्र सिंह कुशवाह -- अध्यक्ष महोदय, धन्यवाद.
शीर्ष संस्थाओं से बकाया राशि की वसूली
[सहकारिता]
10. ( *क्र. 2380 ) श्री आतिफ आरिफ अकील : क्या सहकारिता मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) प्रदेश की किन-किन शीर्ष संस्थाओं पर राज्य सहकारी संघ की कितनी-कितनी राशि कब-कब से बकाया, अभिदाय एवं अंशदान है? कृपया पृथक-पृथक जानकारी दें। (ख) किन संस्थाओं द्वारा बकाया राशि का भुगतान नहीं करने पर प्रकरण कब से ट्रिब्यूनल में लंबित है? (ग) उपरोक्तानुसार राज्य सहकारी संघ द्वारा बकाया की वसूली हेतु क्या कार्यवाही की जा रही है? (घ) उपरोक्त प्रश्नांश के परिप्रेक्ष्य में लघुवनोपज संघ से बकाया राशि वसूल नहीं करने के क्या कारण हैं और कब कर ली जावेगी?
सहकारिता मंत्री ( श्री विश्वास कैलाश सारंग ) : (क) शीर्ष सहकारी संस्थाओं पर बकाया राशि की जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (ख) जी नहीं। कोई भी प्रकरण लंबित नहीं है। (ग) बकाया की वसूली के लिये संबंधित संस्थाओं से निरंतर पत्राचार, समीक्षा बैठकों का आयोजन कर निर्देश जारी किये जा रहे हैं। (घ) वनोपज संघ की वार्षिक आमसभा वर्ष 2024 में अनुमोदन उपरांत वित्तीय वर्ष 2022-23 तक की राशि प्राप्त हो चुकी है। आगामी वार्षिक आमसभा के उपरांत वर्ष 2023-24 की राशि का भुगतान वनोपज संघ द्वारा राज्य संघ को किया जावेगा।
श्री आतिफ आरिफ अकील -- प्रश्न क्रमांक 2380.
श्री विश्वास कैलाश सारंग -- माननीय अध्यक्ष जी, उत्तर पटल पर रखा है.
श्री आतिफ आरिफ अकील - माननीय अध्यक्ष महोदय, आजकल यह देखा जा रहा है कि विधान सभा के अंदर प्रश्न लगा दो तो जो मुआवजा महिनों से नहीं मिल रहा हो वह एक दिन पहले मिल जाता हो.
अध्यक्ष महोदय - मिल गया क्या.
श्री आतिफ आरिफ अकील - मिल गया.
अध्यक्ष महोदय - बिना लेकिन के धन्यवाद दे दो.
श्री आतिफ आरिफ अकील - धन्यवाद.
श्री विजय रेवनाथ चौरे - अध्यक्ष महोदय,मेरे भी दो प्रश्न थे उसका भी मुआवजा मिल गया है.
श्री आतिफ आरिफ अकील - अध्यक्ष महोदय,शीर्ष संस्थाओं से राज्य सहकारी संघ के बकाया राशि वसूली हेतु प्रश्न विधान सभा में आने पर निर्देश जारी किये जा रहे हैं यह जवाब दिया गया है उक्त बकाया राशि कब तक वसूली की जायेगी और क्या राशि वसूली के लिये कठोर कार्यवाही का प्रावधान है. यदि है तो उक्त बकाया राशि क्यों नहीं वसूल की जा रही है.
श्री विश्वास कैलाश सारंग - अध्यक्ष महोदय,मुझे लगता है कि आतिफ भाई प्रश्न की जानकारी लेने में शायद उतने सफल नहीं हो पाए. यह किसी को मुआवजा देने वाला प्रश्न था ना मुआवजा वाली बात है. सहकारी आंदोलन की जो भी रचना की गई है उसमें एक बहुत सुंदर व्यवस्था राज्य सहकारी संघ की बनाई है. बेसिकली जो भी सहकारी संस्थाएं हैं उनकी ट्रेनिंग,उन्नयन,कर्मचारियों के उन्नयन के लिये और सही मायने में यदि हम देखें तो गाईड एण्ड फिलासफर के रूप में राज्य सहकारी संघ पूरे देश में स्थापित किया गया है और हर संस्था के कर्मचारियों को ठीक ढंग से ट्रेनिंग देने का और बाकी काम होता है क्योंकि राज्य सहकारी संघ को चलाना है तो दो तरह के शीर्ष संस्थाओं से राशि ली जाती है एक अंशदान के रूप में और एक अभिदाय के रूप में दो मध्यप्रदेश में 23 शीर्ष संस्थाएं हैं जिनसे अपेक्षित है कि वह राज्य सहकारी संघ को ये दो मद में पैसा दें और लगभग सब संस्थाएं जो भी इसमें प्राफिट में हैं वह पैसा दे रही हैं एक्ट के अनुसार जिस संस्था का 15 लाख से कम का प्राफिट है उसको डेढ़ प्रतिशत देना है और जिनका 15 लाख से ज्यादा है उनको 2 प्रतिशत देना है जो विधायक जी ने जिस संस्था का प्रश्न में इंगित किया है म.प्र. राज्य लघु वन उपज संघ उसने अपना पूरा पैसा दिया हुआ है.मुझे आश्चर्य हो रहा है कि यह प्रश्न क्यों पूछा गया मेरे ख्याल से उत्तर से पूरा समाधान हुआ है कहीं कोई ऐसी दिक्कत नहीं है.
श्री आतिफ आरिफ अकील - अध्यक्ष महोदय,मेरा एक सवाल है कि म.प्र.लघु वनोपज संघ वित्त वर्ष 2023-24 की कितनी राशि मय ब्याज के वसूली की गई तथा वर्ष 2024 में आम सभा के बाद भी वित्त वर्ष 2024-25 की बकाया राशि को वसूल न किये जाने का क्या कारण है.
श्री विश्वास कैलाश सारंग - अध्यक्ष महोदय, अभी तक की राशि है वह पूरी तरह से जमा हुई है जिस वित्तीय वर्ष की बात कर रहे हैं उसका समय अभी बाकी है वित्तीय वर्ष पूरा होगा उसके पहले राशि आ जायेगी कहीं कोई दिक्कत नहीं है.
सहकारिता विभाग अंतर्गत स्थानांतरण
[सहकारिता]
11. ( *क्र. 1658 ) श्रीमती नीना विक्रम वर्मा : क्या सहकारिता मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या प्रदेश सरकार द्वारा शासकीय अधिकारियों/कर्मचारियों के स्थानांतरण हेतु जून 2025 में जारी की गई स्थानांतरण नीति सहकारिता विभाग पर भी लागू होती है? (ख) यदि नहीं, तो सहकारिता विभाग में कार्यरत अधिकारियों/कर्मचारियों के स्थानांतरण हेतु कौन-सी व्यवस्था है तथा उनमें कर्मचारियों के हितों को देखते हुए स्वेच्छिक स्थानांतरण तथा जन असंतोष/वित्तीय अनियमितता/शासकीय कार्य में लापरवाही व शिकायती स्थानांतरण किये जाने हेतु पृथक-पृथक क्या प्रावधान है? क्या विभाग पारदर्शी स्थानांतरण व्यवस्था सुनिश्चित करने हेतु प्रदेश की स्थानांतरण नीति लागू करेगा? यदि नहीं, तो क्या कारण है? (ग) यदि स्थानांतरण नीति सहकारिता विभाग पर भी लागू होती है तो धार जिले में तृतीय श्रेणी कर्मचारियों के जिला स्थानांतरण बोर्ड द्वारा अग्रेषित स्थानांतरण प्रस्तावों पर सहकारिता विभाग प्रमुख द्वारा स्थानांतरण नीति लागू नहीं होना बताकर किन प्रावधानों के अंतर्गत स्थानांतरण नहीं किये गये? क्या विभाग जांच कर दोषियों पर कार्यवाही करेगा?
सहकारिता मंत्री ( श्री विश्वास कैलाश सारंग ) : (क) जी हाँ। (ख) उत्तरांश 'क' के परिप्रेक्ष्य में शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) तृतीय श्रेणी राज्य स्तरीय कैडर होने से जिला स्थानातंरण बोर्ड से प्रस्ताव प्राप्त होने की आवश्यकता नहीं है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
श्रीमती नीना विक्रम वर्मा - अध्यक्ष महोदय,मेरा प्रश्न क्रमांक 1658
श्री विश्वास कैलाश सारंग - अध्यक्ष महोदय,उत्तर पटल पर रखा है.
श्रीमती नीना विक्रम वर्मा - अध्यक्ष महोदय,धन्यवाद. मैंने प्रश्न लगाया था स्थानांतरण नीति के बारे में. मुझे जानकारी मिली है कि स्थानांतरण नीति जो है वह राज्य शासन की जो स्थानांतरण नीति है वह लागू होती है. जब स्थानांतरण नीति आपकी राज्य शासन की लागू होती है तोत वहां पर बैठे हुए कार्यपालन अधिकारी ने जब स्वैच्छिक स्थानांतरण की एप्लीकेशन दी गई और व्यवस्था के अंतर्गत स्थानांतरण नीति के तहत उनको दिया गया तो उन्होंने बत्तमीजी की और लोगों को अलग-अलग तरह के जवाब दिये और यह कहा कि यह सब हम पर लागू होता है. मेरा प्रश्न है कि क्या मंत्री जी ऐसे अधिकारी ने जिसने अपनी मर्जी से स्थानांतरण किये हैं जो नीति के अंतर्गत नहीं आते हैं राज्य शासन के भोपाल से होते हैं जिला स्तरीय जो होते हैं वह कलेक्टर के माध्यम से होते हैं. क्या मंत्री जी इसकी जांच कराएंगे.
श्री विश्वास कैलाश सारंग - अध्यक्ष महोदय, मैं विधायक जी को बहुत धन्यवाद देता हूं क्योंकि उनके माध्यम से मैं पूरे सदन को जानकारी देना चाहता हूं जिन ट्रांसफर की चर्चा विधायक जी चर्चा कर रही हैं विधायक जी का पत्र मैंने निकलवाया वहां की कमेटी का रिकमंडेशन था वह भी निकाला जो हमारा क्रेडिट मूवमेंट है उसमें एक बैंक है बैंक के नीचे हमारी सोसायटी है यह दोनों आटोनोमस हैं इनके नियोक्ता अधिकारी है वह भी वहीं का बोर्ड है दोनों जगह का इसलिये ट्रांसफर करने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है यह तो वहां बैंक का जो बोर्ड है या बैंक का सीओ है वह ट्रांसफर करेगा और इसी तरह यदि सोसायटी के किसी एम्पलाई की बात है तो वहां का जो प्रबंधक है वह करेगा. विधायक जी ने जो बोला कि यह राज्य स्तर तक आना चाहिये या बैंक सीओ तक आना चाहिये यह प्रश्न वह नहीं था और जो हमारा विभाग का कैडर है वह स्टेट लेबल का कैडर है उसमें भी भोपाल से ही ट्रांसफर होते हैं थोड़ा विधायक जी को कुछ कन्फ्यूजन हुआ है मैं उनसे मिलकर उनका समाधान करूंगा.
अध्यक्ष महोदय - आप विधायक जी व्यक्तिगत रूप से मिलकर बता देना.
श्रीमती नीना विक्रम वर्मा - धन्यवाद. अध्यक्ष महोदय.
अध्यक्ष महोदय - प्रश्नकाल समाप्त.
(प्रश्नकाल समाप्त)
12.01 बजे नियम 267(क) के अधीन विषय
(1) विधान सभा क्षेत्र भितरवार अंतर्गत मोहना नगर स्थित सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र में पोस्टमार्टम कक्ष का निर्माण कराया जाना.
श्री मोहन सिंह राठौर (भितरवार)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी शून्यकाल की सूचना इस प्रकार है-
मेरे विधान सभा क्षेत्र भितरवार, जिला ग्वालियर के मोहना नगर पंचायत में सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र संचालित है. मोहना के आसपास 50 गांव के मरीज स्वास्थ केन्द्र में उपचार के लिये आते हैं. क्षेत्र में दुर्घटनाओं में कभी-कभी जनहानि हो जाती है जिससे पुलिस प्रकरण भी बनते हैं. शवों को पोस्टमार्टम हेतु मोहना सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र में पोस्टमार्टम कक्ष नहीं होने से पोस्टमार्टम के लिये 60 किलोमीटर दूर ग्वालियर जिला मुख्यालय पर जाना पड़ता है जिससे क्षेत्र की जनता को काफी परेशानियों का सामाना करना पड़ता है. मोहना स्वास्थ केन्द्र में पोस्टमार्टम कक्ष बनाया जाना अति आवश्यक है. पोस्टमार्टम कक्ष का निर्माण शीघ्र कराया जावे, मेरा निवेदन है.
(2) मंडला स्थित ग्राम बांदरवाड़ी से मगरवाड़ा के बीच घुघरा नाला पर पुलिया का निर्माण किया जाना.
श्री नारायण सिंह पट्टा (बिछिया)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे शून्य का विषय इस प्रकार है-
आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला के नक्सल प्रभावित विकास खंड मवई के अत्यंत संवेदनशील ग्राम बांदरबाड़ी व मगरवाड़ा के बीच घुघरा नाला में बनी पुरानी पुलिया अतिवृष्टि से टूट जाने के कारण आसपास के लोगों का आवागमन अवरूद्ध हो गया है. यह सभी ग्राम वन क्षेत्र अंतर्गत आते हैं और इस क्षेत्र में एकमात्र आवागमन का मार्ग है. इस मार्ग से ग्राम मगरवाड़ा, ग्राम मालूमझोला और ग्राम टटमा के नागरिकों का आवागमन होता है, लेकिन गत दिवस पुलिया टूट जाने से इन ग्रामों का मुख्य क्षेत्र से इनका संपर्क टूट गया है. नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण इन ग्रामों में संपर्क बनाये रखना अत्यंत आवश्यक है. इस हेतु उक्त घुघरा फतेल नाला में बनी इस पुलिया का निर्माण तत्काल स्वीकृत करते हुये निर्माण कराया जावे.
(3) विधान सभा सेवड़ा तथा आसपास के गांवों में अतिवृष्टि से हुये नुकसान का सर्वे कर मुआवजा प्रदान किया जाना.
श्री प्रदीप अग्रवाल (सेंवड़ा)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी शून्यकाल की सूचना इस प्रकार है-
मेरी विधान सभा क्षेत्र सेंवड़ा में एवं आसपास अतिवृष्टि होने के कारण सिंध नदी का जल स्तर काफी बढ़ गया है. वर्ष 2022 में आयी बाढ़ के नुकसान की भरपाई हो ही रही थी कि पुन: पाली, डिमरपुरा, मदनपुरा, खेरोना घाट आदि 10 से ज्यादा ग्राम डूब क्षेत्र में आने के कारण वहां से लोग पलायन कर आश्रय की तलाश में भटक रहे हैं. स्थानीय प्रशासन लगातार चिंता कर रहा है, लेकिन वह नाकाफी है. साथ ही अधिक वर्षा के कारण किसान अपने खेतों में फसल भी नहीं लगा पाये और जो धान की फसल लगाई गई थी वह भी खराब हो गगई है. अत: अनुरोध है कि डूब क्षेत्र के लोगों को राहत प्रदान करते हुये किसानों को फसल का मुआवजा दिलाने की कृपा करें.
(4) श्री कमलेश्वर डोडियार - (अनुपस्थित)
(5) श्री बाला बच्चन - (अनुपस्थित)
6. अन्य राज्यों से लाये गये वाहनों का प्रदेश में संचालन होना.
श्री भैरोसिंह ''बापू''(सुसनेर)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी शून्यकाल की सूचना इस प्रकार है कि
7. खरगापुर विधानसभा नगर पलेरा में अनुविभागीय अधिकारी राजस्व का कार्यालय न खोला जाना.
श्रीमती चंदा सुरेन्द्र सिंह गौर(खरगापुर) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी शून्यकाल की सूचना इस प्रकार है कि खरगापुर विधानसभा -47 के नगर पलेरा तहसील पलेरा का क्षेत्र अनुविभागीय अधिकारी कार्यालय राजस्व अनुभाग जतारा के द्वारा संचालित किया जाता है, तहसील पलेरा के बहुत से ग्रामों की आम जनता बुजुर्ग महिलाएं, छात्र, छात्राओं को अपने-अपने कार्यों के लिये अनुविभागीय अधिकारी जतारा के समक्ष तक पहुंचने में बहुत कठिनाईयां उठाना पड़ती है, आवागमन की असुविधा एवं अधिक दूरी होने से पेशियों पर भी वे समय से उपस्थित नहीं हो पाते हैं और इसी कारण से कई प्रकार की जनसुविधों का लाभ नहीं मिल पाता है, पलेरा में तहसील पलेरा एवं नायब तहसील वराना को एवं आर.आई. सर्किलों को मिलाकर अनुविभागीय अधिकारी राजस्व का कार्यालय पलेरा में संचालित नहीं किये जाने से क्षेत्र की जतना में असंतोष एवं रोष व्याप्त है.
8.विधानसभा क्षेत्र परासिया अंतर्गत खाली पड़ी वन भूमि में अनेक वर्षों से काबिज अनुसूचित जनजाति वर्ग व गरीब परिवारों को भू-अधिकार व मालिकाना हक प्रदान न किया जाना.
श्री सोहनलाल बाल्मीक(परासिया) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी शून्यकाल की सूचना इस प्रकार है कि
9. टीकमगढ़ शहर में नालों पर अतिक्रमण होने से अनेक कॉलोनियों में जल भराव होना.
श्री यादवेन्द्र सिंह(टीकमगढ़) -- अनुपस्थित.
10. रीवा जिले की नगर पंचायत सेमरिया में सामुदायिक भवन का निर्माण कराया जाना.
श्री
अभय मिश्रा
(सेमरिया) -- माननीय
अध्यक्ष
महोदय, मेरी
शून्यकाल की
सूचना इस
प्रकार है कि
रीवा जिले के
नगर पंचायत
सेमरिया में
सामुदायिक
भवन का
निर्माण डॉ.
भीमराव
अंबेडकर जी के
नाम से स्वीकृत
कराये जाने की
मांग नगर
पंचायत
वासियों
द्वारा
लगातार की जा
रही है, जिनकी
संख्या बहुसंख्यक
है,
जिसके
निर्माण की स्वीकृति
प्रदान करने
की कृपा करें,
साथ ही इसी से लगी
ग्राम पंचायत
भटगवां में एक
रपटा है, जो बरसात
में डूब जाता
है और वह गांव
पूरा कटा रहता
है,
तो उसमें
पुलिया
निर्माण के
लिये स्वीकृति
प्रदान करने
की कृपा करें,धन्यवाद.
11. खुरई एवं मालथौन तहसील में अतिवृष्टि से नष्ट हुई फसलों का किसानों को मुआवजा न दिया जाना.
श्री भूपेन्द्र सिंह दांगी (खुरई) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी शून्यकाल की सूचना इस प्रकार है कि
माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे विधानसभा क्षेत्र में अतिवर्षा के कारण जो हमारे यहां मक्का की, उड़द की, सोयाबीन की जो बोनी हुई थी, वह लगभग 70-80 प्रतिशत खराब हो गई है और काफी नुकसान किसानों का पूरे विधानसभा क्षेत्र में हुआ है. माननीय मुख्यमंत्री जी भी सदन में उपस्थित हैं. मेरा आपके माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री जी से भी आग्रह है कि इसमें सर्वे के अनुसार जहां पर नुकसान हुआ है, तो उसमें राहत राशि किसानों को सरकार की तरफ से मिले, ऐसा आपके माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री जी से आग्रह है. किसानों की फसलों का काफी नुकसान हुआ है. अगर सर्वे के आदेश माननीय मुख्यमंत्री जी कर देंगे, तो किसानों को एक संतोष होगा और उनको यह लगेगा कि हमारी फसलों का सर्वे हो रहा है, और उसके बाद जो सही है, जो भी सर्वे में आएगा, उसके आधार पर जो राहत राशि मुख्यमंत्री जी स्वीकृत करेंगे, वह राहत राशि किसानों को मिल सकेगी. आपके माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री जी से मेरा विनम्र आग्रह है.
अध्यक्ष महोदय – श्री जयवर्द्धन सिंह जी.
12. प्रदेश के अनेक जिलों एवं गुना व शिवपुरी में अतिवर्षा के कारण फसलों को नुकसान होना.
श्री जयवर्द्धन सिंह – अध्यक्ष महोदय,
अध्यक्ष महोदय – श्री एदल सिंह कंषाना जी, पत्रों को पटल पर रखेंगे.
12:12 बजे पत्रों का पटल पर रखा जाना.
राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर (म.प्र.) की वैधानिक ऑडिट रिपोर्ट वर्ष 2022-2023(संचालक, स्थानीय निधि संपरीक्षा, मध्यप्रदेश ग्वालियर द्वारा प्रेषित प्रमुख आपत्तियां, स्पष्टीकरण हेतु उत्तर एवं प्रमण्डल की टिप्पणियां)
12:13 अध्यक्षीय व्यवस्था.
ध्यानाकर्षण पर सीमित और समाधानकारक बात रखे जाने विषयक.
अध्यक्ष महोदय - अब नियम 138(1) के अधीन ध्यानाकर्षण सूचनाएं ली जांएगी. श्री उमंग सिंघार जी, मेरा ध्यानाकर्षण सूचना में सभी मित्रों से अनुरोध है कि इस विषय पर कार्यमंत्रणा समिति में भी बात चीत हुई थी और सभी लोगों ने आवश्यकता प्रतिपादित की थी कि इसे चर्चा के लिए रखा जाना चाहिए. सामान्य तौर पर विधान सभा में चर्चा करने के लिए, अपनी बात रखने के लिए हम सब स्वतंत्र है, लेकिन मुझे लगता है कि विषय पर सीमित होकर और समाधान की तरफ हम चर्चा को ले जाएंगे, तो माननीय मुख्यमंत्री जी भी यहां उपस्थित है, तो अगर विधान सभा से समाधान लेकर हम उठेंगे तो मैं समझता हूं कि हमारी चर्चा की सार्थकता होगी. माननीय उमंग सिंघार जी अपनी सूचना पढ़े.
12:14 बजे. ध्यान आकर्षण.
(1) प्रदेश के आदिवासी जिलों में वन अधिकार के दावेदारों के प्रकरणों को खारिज कर बेदखल करने से उत्पन्न स्थिति.
सर्व श्री उमंग सिंघार(कुक्षी), श्री अजय अर्जुन सिंह, डॉ. हिरालाल अलावा,
श्री उमंग सिंघार – माननीय अध्यक्ष जी, धन्यवाद.
राज्यमंत्री वन (श्री दिलीप अहिरवार)—अध्यक्ष महोदय,
नेता प्रतिपक्ष (श्री उमंग सिंघार) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, सरकार ने स्वयं स्वीकार लिया कि आदिवासी वन अधिकार के पट्टे विभाग द्वारा खारिज नहीं किए जा रहे हैं. यह असत्य जानकारी है. यह आपके जवाब में है. सच तो यह है कि वर्ष 2025 के हिसाब से कुल 6 लाख 27 हजार दावे दर्ज हुए और 3 लाख 22 हजार दावे खारिज कर दिए गए. खारिज दावों की संख्या देश में दूसरे नंबर पर है. यह आंकड़े मेरे आंकडे़ नहीं हैं. यह आपकी केन्द्र सरकार की वेबसाइट के आंकड़े हैं, जो मैं आपको अवगत करा रहा हॅूं.
अध्यक्ष महोदय, नेपानगर की जो बात है, निश्चित तौर से वहां पर दो तरह की गतिविधियां हो रही हैं. एक जो 50 सालों से रह रहे हैं, कई सालों से रह रहे हैं. मैं अभी वहां उस क्षेत्र में गया था. उनके पास पुराने स्टेट टाइम के कागज थे. उन आदिवासियों का कहना है कि हमारे पास स्टेट टाइम के यह कागज हैं लेकिन सरकार सुनना नहीं चाह रही है, अधिकारी सुनना नहीं चाह रहे हैं और ऐसे कई प्रमाण हैं, आप चाहें, तो मैं प्रमाण दे दूंगा. प्रदेश के अंदर तकरीबत 95 लाख हेक्टेयर फॉरेस्ट लैंड है. उसमें से लगभग 35 लाख हेक्टेयर फॉरेस्ट लैंड सरकार निजी हाथों में देना चाहती है. एक तरफ यह बात आती है कि आदिवासी उस जंगल की रखवाली नहीं कर रहा है और निजीकरण का एक व्यक्ति आयेगा, वह जंगल की रखवाली करेगा, तो सालों से जो आदिवासी रह रहा है, क्या वह जंगल की रखवाली नहीं करेगा ? यह बेमानी है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं बालाघाट गया था. वहां बच्चियों के साथ बलात्कार की घटना हो गई थी. उनके परिवार से मैंने बात की कि आप लोगों की रोजी-रोटी कैसे चलती है. आप लोग क्या करते हैं क्या आप लोग मजदूरी करते हैं ? वे बोले कि यह पहाड़ है, इस पहाड़ से हमारी रोजी-रोटी चलती है तो मैंने कहा कि आप लोग बारिश में क्या करते हैं, तो उन्होंने कहा कि हम बारिश में कुछ नहीं करते, हम घर में ही रहते हैं. गीली लकड़ी रहती है, उसको जलाते हैं. मैं जिस दिन वहां गया, उस समय वहां लाईट तक नहीं थी. उसी दिन वहां पर ट्रांसफॉर्मर लगाया गया. मैं सरकार को धन्यवाद देना चाहता हॅूं कि आपने इस पर त्वरित कार्यवाही की, लेकिन भावना यह है कि जो आदिवासी जंगल पर निर्भर हैं जो हर्रा, बहेड़ा, महुआ, चिरौंजी, तेंदुपत्ता जैसी वनौषधि हैं, क्या सरकार उन आदिवासियों से छीनना चाहती है, क्या निजीकरण में देना चाहती है ? इस पर मेरा सोचना यह है कि सरकार को कुछ नीतिगत फैसले लेना चाहिए. इसमें नीतिगत बदलाव की आवश्यकता है और अंत में मैं माननीय मुख्यमंत्री जी को सुझाव दूंगा कि वनाधिकार के पट्टे के साथ प्लॉंटेशन भी जोड़ा गया है. प्रदेश की आबादी साढ़े आठ करोड़ और 10 साल में 41 करोड़ पौधे लग गए, मतलब जनसंख्या से ज्यादा पौधे लग गए. कहां लगे ? फॉरेस्ट में प्रमुख सचिव स्तर का ऐसा कौन अधिकारी है, जिसको वृक्षारोपण से विशेष प्रेम है. श्री शिवराज सिंह चौहान जी के समय नर्मदा जी के किनारे 350 करोड़ रुपये के पौधे लगे थे, एक पौधा नहीं बचा, मैं भी वन मंत्री रहा हूं. मैंने कुछ नवाचार करने का सोचा, अलग बात है कि सरकार नहीं रही थी, लेकिन सरकार होती तो 5 साल में आपको मैं बताता कि उसमें क्या नवाचार किया. मैं आपको उदाहरण दूं, जब मैंने वन विभाग से अक्षांश, देशांतर मांगे तो मुझे 3 महीने तक पौधारोपण के अक्षांश, देशांतर नहीं दिये गये. जब दबाव बनाया तो मिले. मैंने यू.के. की एक सैटेलाइट कंपनी को हायर किया कि यह अक्षांश, देशांतर पर इनके कितने पौधे लगे. मेरे साथ हॉफ (HoFF) भी गये थे. एसी गाड़ी वाले सब मेरे साथ में जंगल में पत्तों में बैठे थे. 50 लाख का जंगल के अंदर पौधारोपण हुआ, मेरे पास तो जानकारी थी. अधिकारियों ने कहां कि आपको हम पर विश्वास नहीं है, उन्होंने कहा कि आप चलिए, देखिए. मैंने कहा कि मैं रात को यहीं बैतूल में रुकूंगा, सुबह देखूंगा. सुबह पूरे पौधे गिने. आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मात्र 1500 पौधे निकले. 50 हजार की संख्या की बात की थी. घने जंगल के अंदर फिर मैंने हॉफ (HoFF) को बुलाया, मैंने कहा कि आपके नाम के कितने लिखूं. आपके सीसीएफ के नाम पर कितने लिखूं, डीएफओ के नाम कितने लिखूं, तब जाकर 8000 का पंचनामा बनाया. आज भी मेरे पास में वह पंचनामा है.
अध्यक्ष महोदय, जनता का पैसा है. हम पर्यावरण की बात कर रहे हैं. पर्यावरण संतुलन की बात कर रहे हैं. ग्लोबल वार्मिंग हो रही है. क्या हम जनता के पैसे को ऐसे ही बर्बाद करेंगे. एक पौधा लगाने के लिए 50 से 100 रुपये आते हैं. श्री शिवराज सिंह चौहान जी के समय तो आंध्रप्रदेश से पौधे बुलवाए थे. 350, 400 रुपये का पौधा जंगल में लगा था. निश्चित तौर से फारेस्ट राइट्स एक्ट के अंदर स्पष्ट है कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 की धारा 12(6) और नियम 2007 के अनुसार आपको अगर पट्टा खारिज करना है, निरस्त करना है, संशोधन करना है तो जो आवेदक है, वह आदिवासी है उसको बुलाकर बात करना, उसको नोटिस देना, नेपानगर के अंदर कोई नोटिस नहीं दिये गये, कोई सूचना पत्र नहीं दिये गये. दावे खारिज कर दिये गये. प्रदेश में कई ऐसे जिले हैं जिसमें बड़ी संख्या है, गुना 22890, सिंगरौली 22676, सागर 30545.
संसदीय कार्यमंत्री (श्री कैलाश विजयवर्गीय) - अध्यक्ष महोदय, यह ध्यानाकर्षण की सूचना है. माननीय नेता प्रतिपक्ष को बोलने का अधिकार है. इस नियम के अंतर्गत तो नहीं है.
श्री उमंग सिंघार - अध्यक्ष महोदय, यह तो हर बार पाइंट ऑफ आर्डर की बात करते हैं. मैंने इनको सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन बता दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जितना बोलना है, आप बोल सकते हैं, यह अधिकार है. संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, फिर आप उठ जाते हैं, फिर आप या तो स्थगन पर बात करो, हम ध्यानाकर्षण पर बात नहीं करते हैं. यह बात गलत है. सदन परंपराओं से भी चलता है.
श्री कैलाश विजयवर्गीय - नेता प्रतिपक्ष बोल सकते हैं, परन्तु जब नियम 138 के अंतर्गत ध्यानाकर्षण है.
अध्यक्ष महोदय - श्री उमंग सिंघार जी, सब अच्छे से जानते हैं कि विधान सभा के आप सीनियर सदस्य हैं. संसदीय कार्यमंत्री जी ने ध्यानाकर्षित किया है, ध्यानाकर्षण की अपनी सीमाएं हैं, मर्यादाएं हैं, नियम हैं और इस ध्यानाकर्षण में और भी लोग बोलने वाले हैं तो बाकी सदस्यों का भी ध्यान रखते हुए संक्षिप्त में हम अपना प्रश्न करेंगे तो समाधान तक हम पहुंचेंगे.
श्री कैलाश विजयवर्गीय - अध्यक्ष महोदय, मेरा निवेदन यह है कि नेता प्रतिपक्ष नाराज हो रहे हैं यह सदन नियम और परंपरा दोनों से चलता है मैं सहमत हूं. परन्तु जब आप नियम 138 'ए' के अंतर्गत चर्चा प्रारंभ करेंगे तो उसी के अंतर्गत ही आपको चर्चा करना पड़ेगी. यदि आपको बोलना है तो आपको अधिकार है. नेता प्रतिपक्ष आप हैं, आप बोल सकते हैं. परन्तु इस नियम में नहीं बोल सकते हैं. इस नियम में तो आपको सिर्फ प्रश्न पूछना है. यदि कुछ भूमिका रखना है तो रख सकते हैं कोई इंकार नहीं है. परन्तु लम्बा भाषण हो, इसलिए मैं आपका निर्देश चाहता हूं.
अध्यक्ष महोदय - भूमिका ज्यादा लम्बी हो गई है. अब प्रश्न कर लें.
नेता प्रतिपक्ष (श्री उमंग सिंघार) - अध्यक्ष महोदय, मैं सरकार की आलोचना के पक्ष में नहीं हूं. पहली बात तो यह है और रही बात आप हमेशा पाइंट आफ आर्डर उठाते हैं तो हमने चर्चा स्थगन के लिए दी थी तो स्थगन में पूरी एक दिन की चर्चा करा लें, हमारे सब सदस्य बोलना चाहते हैं. हम तो तैयार हैं. आपने अगर उसको स्थगन से ध्यानाकर्षण में बदला है तो हमारी क्या गलती है? रही बात जनहित की बात है.
श्री कैलाश विजयवर्गीय - अध्यक्ष महोदय, यह निर्णय भी नेता प्रतिपक्ष की उपस्थिति में हुआ है.
श्री उमंग सिंघार - आदिवासियों की बात चल रही है. उस दिन तो कह रहे थे कि आदिवासी को बोलने नहीं दे रहे, अब आदिवासी को खुद ही नहीं बोलने दे रहे हैं.
श्री कैलाश विजयवर्गीय- यह भी निर्णय आपकी उपस्थिति में ही हुआ है. यह निर्णय कार्यमंत्रणा समिति का निर्णय है, यह आपका या मेरा निर्णय नहीं है और उसके आप माननीय सदस्य हैं.
श्री उमंग सिंघार- माननीय नियम के साथ परम्पराएं भी हैं.
अध्यक्ष महोदय- श्री उमंग जी, आप प्रश्न पर आ जाएं.
श्री उमंग सिंघार- अध्यक्ष महोदय, '' वन अधिकार अधिनियम, 2006 की धारा 12 (6) के अंतर्गत क्या विभाग ने वहां पर इनको नोटिस दिये, क्या इस पर कोई नोटिस मिला ? दूसरा, नियम -13 में आपने कह दिया कि हमने बुजुर्गों से बात कर ली. आपने वहां ग्राम सभा का प्रस्ताव लिया कि इनके दावे निरस्त किये जायें, कोई ग्राम सभा का प्रस्ताव नहीं है.
अध्यक्ष महोदय, मामले तो कई हैं. दो-तीन मामले में आपको बताना चाहता हूं कि देवास में 23 जून को बुल्डोज़र कार्यवाही हुई, 26 जून को सीहोर में बदखली हुई, 9 जून को खण्डवा बुल्डोज़र कार्यवाही हुई, आमखजूरी में 5 मई को बुरहानपुर में वन अधिकार का उल्लंघन हुआ, 8 अप्रैल को गुना बुल्डोज़र कार्यवाही हुई और वहां के दूसरे कारण हैं. फिर आरोप-प्रत्यारोप हो जायेगा. वह अलग बात है कि वहां बीजेपी को जमीन लेनी थी तो वहां पर आदिवासियों की जमीन खाली करायी गयी. यह आपकी जानकारी में ला रहा हूं और प्रमाण भी दे दूंगा. जनवरी में जबलपुर, नरसिंहपुर, सागर में 52 गांव में वन अधिकार का उल्लंघन हुआ है.
अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से मुख्यमंत्री जी को सुझाव देना चाहता हूं कि फारेस्ट के अंदर सेटेलाइट से तो अभी आप लोगों ने शुरूआत की, लेकिन फायर अलर्ट पर वन विभाग ज्यादा प्राथमिकता देता है कि जंगल में आग नहीं लग जाये, लेकिन ''जंगल में आग लगी, किसने देखी'' वाली कहावत आती है.
मेरा माननीय मुख्यमंत्री जी को सुझाव है कि जब टेक्नालॉजी का जमाना आ गया और सब एडवांस हो गये, ए.आई. आ गयी और सब चीजें आ गयी हैं तो हम क्यों नहीं नासा और इसरो से पुरानी इमेंजनरी हम टेकअप करते. गूगल में या आप किसी भी मोबाईल में जायेंगे तो आप उससे वहां कि इमेजनरी देख सकते हैं. अगर आप वर्ष 2005 के पहले के पट्टे देना चाहते हैं तो आप यह क्यों कमेटियों में उलझे हुए हैं, दावे आपत्तियों पर. बेचारे आदिवासियों को ओटीपी कहां से मिलेगा, वह कहां से ऑन लाइन करेगा. वह बेचारा अपना कागज लेकर जंगल-जंगल में घूम रहा है, गांव-गांव आफिस में घूम रहा है 5 हजार, 10 हजार रूपये दे रहा है, उस आदिवासी को लूटा जा रहा है.
माननीय मेरा आपसे निवेदन है कि इसमें कई चीजें हो सकती है, सेटेलाइट इमेजनरी से. प्लांटेशन को लेकर आपकी मॉनिटरिंग हो सकती है और प्लांटेशन के अंदर भी जो जंगल है.
मुख्यमंत्री ( डॉ. मोहन यादव) - माननीय अध्यक्ष, मैं दो मिनिट अपनी बात रखूं. यह बात सार्थकता की ओर भी बढ़ेगी, लेकिन यह भी यर्थाथ है, हम अगर स्वीकारेंगे तो आपको ध्यान में आयेगा कि वर्ष 2000, खासकर के कांग्रेस के शासनकाल में, ग्रामीण क्षेत्र में एक भी पट्टे नहीं दिये, साढ़े छब्बीस हजार अगर पट्टे दिये गये तो तो भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने दिये हैं. (मेजों की थपथापाहट) मैं इतना ही बोलना चाहता हूं.
अध्यक्ष महोदय- मरकाम जी, आप प्लीज बैठ जायें, नेता श्री उमंग सिंघार जी को अपनी बात पूरी करने दें.
श्री उमंग सिंघार- माननीय मुख्यमंत्री जी, फारेस्ट राईट एक्ट कब आया, क्या आया, मुझे पता है. मैं इस पर बोलना नहीं चाहता हूं. मैं आपको सुझाव दे रहा था कि जो पुराने सागवान के पेड़ हैं, उसकी अवैध कटाई होती है, तो आज ऐसी टेक्नॉलाजी भी आ गयी है कि सेटेलाइट के द्वारा की वह पेड़ कितना मोटा होगा, कितना हाईट का होगा, वह भी आप अवैध कार्यवाही रोक सकते हैं. अतिक्रमण, कई नीचे अमले वन अमले फारेस्ट के अंदर रहते हैं, फील्ड में कर्मचारी भ्रष्टाचार करते हैं, वह 10 हजार, 20 हजार रूपये लेते हैं और बोलते हैं कि तुम यहां पर पूरा फाड़ लो. उसमें आप 7 दिन के अंदर सेटेलाइट के जरिये मालूम का सकते हैं कि कोई अतिक्रमण तो नहीं कर रहा है. रही बात ग्रास लैंड कि आप उसमें भी कर सकते हो. आप आपका वर्किंग प्लान बना सकते हो. फारेस्ट के अंदर तालाब ऐसे बनते हैं कि बन गया, कहां जानवर पानी पी रहा है, कहां है, वह नहीं है. उसमें सब बातें हैं तो मैं चाहता हूं कि यदि सरकार कि वास्तव में इचछा है कि आदिवासियों को पट्टे मिलें तो तीन ,साढ़े तीन लाख जो वर्ष 2005-2006 के पहले से हैं तो मेरा यही निवेदन है कि इस प्रकार की एडवांस टेक्नालाजी का उपयोग करें और इससे तत्काल हो सकते हैं और रही बात जो नियम है, कानून के अन्दर है कि क्या उनको नोटिस दिये गये. क्या ग्राम सभा हुई कि नहीं हुई, वह भी स्पष्ट होना चाहिये. धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय—इसके बाद अजय सिंह जी है. विजय जी, आप कुछ कहना चाहते हैं.
श्री कैलाश विजयवर्गीय—अध्यक्ष महोदय, प्रश्न तो है नहीं, प्रश्न तो कुछ था नहीं उसमें. भाषण था माननीय नेता प्रतिपक्ष जी का.
श्री उमंग सिंघार-- आपने फिर सुना ही नहीं. लगता है कि आदिवासियों की बात ही नहीं सुनना चाहते. इसलिये कैलाश जी आदिवासियों की बात सुनते ही नहीं हैं. मेरा प्रश्न फिर से वापस सुना दूं. आप फिर पाइंट ऑफ आर्डर लाओगे.
अध्यक्ष महोदय—मंत्री जी ने लिख लिया होगा.
डॉ. कुंवर विजय शाह—अध्यक्ष जी, नेता प्रतिपक्ष जी ने बहुत अच्छा प्रश्न किया है. आदिवासी भाइयों को पूरे प्रदेश में पट्टे देने के लिये जो आपने बात उठाई है सेटेलाइट इमेजिरी की. मैं नेता प्रतिपक्ष और सदन को भी बता देना चाहता हूं कि म.प्र. की यह मोहन सरकार पहली सरकार है, जिसने तय कर लिया है कि सेटेलाइट इमेजिरी को भी साक्ष्य मानते हुए हम पब्लिक डोमेन में उसको डाल रहे हैं और दो बुजुर्गों के साथ अगर..
श्री ओमकार सिंह मरकाम – आप यह शिवराज सिंह जी ने नहीं किया था, यह स्वीकार कर रहे हैं ना. मोहन यादव जी की पहली सरकार है. शिवराज सिंह जी ने तो कुछ किया ही नहीं था. यह आप स्वीकार कर रहे हैं.
डॉ. कुंवर विजय शाह-- अध्यक्ष महोदय, इसके साथ साथ हम लोगों ने जैसा कि नेता प्रतिपक्ष जी जानते हैं कि दो प्रूफ होने चाहिये पट्टे दावों के वैध करने के लिये, निरस्त करने के लिये. जो दो आदिवासी आदमी भी मिल जाते हैं बुजर्ग और उसके साथ हम पब्लिक डोमेन में सेटेलाइट इमेजिरी 13 दिसम्बर,2005 की मध्यप्रदेश सरकार डाल रही है और दोनों को मिला करके जैसी कि आपकी भावना है, बहुत जल्दी हिन्दुस्तान का यह पहला प्रदेश होगा, जिसके माध्यम से आदिवासियों को हम लाभान्वित करेंगे.
डॉ. मोहन यादव—अध्यक्ष जी, इसी के साथ यह भी मैं जोड़ना चाहूंगा कि आपने जो सुझाव दिया है, यह पूरे सदन को अवगत कराना चाहेंगे कि 2005 के पहले की स्थिति को हम आन लाइन करने जा रहे हैं. जिसमें 2005 के पहले किसका कब्जा था, किसका नहीं था. वह आसानी से पता भी चल जायेगा और सम्पूर्ण रिकार्ड पारदर्शी भी हो जायेगा. यह इसमें हम सबसे सहयोग भी चाहते हैं.
अध्यक्ष महोदय—अजय सिंह जी. अब सभी लोग थोड़ा संक्षिप्त में एक एक प्रश्न करेंगे.
श्री अजय अर्जुन सिंह (चुरहट)—अध्यक्ष महोदय, भूमिका नहीं बांधे.
अध्यक्ष महोदय—अब भूमिका छोड़ दो आप. दो तीन लोग और आ जायेंगे. अगर भूमिका बांधेंगे, तो फिर यहीं एंड हो जायेगा.
श्री अजय अर्जुन सिंह-- अध्यक्ष महोदय, म.प्र. की आबादी की 21 प्रतिशत आबादी आदिवासी भाइयों की है. मुख्यमंत्री जी ने यह घोषणा की कि जो साढ़े तीन लाख लोगों के पट्टे निरस्त हुए हैं, उनका फिर से सर्वे किया जायेगा और उनको फिर से पट्टे देने की बात कही है. मुख्यमंत्री जी, उसके अलावा सवा लाख नये आवेदन भी हैं. कांग्रेस पार्टी की सरकार जब जब रही है, तो अनुसूचित जनजाति भाई लोगों के लिये सहीं योजनाएं बनाईं. चाहे वह तेंदूपत्ता में मजदूर से मालिक बनाया हो, चाहे आदिवासी भाई की जमीन को कोई दूसरा न खरीदे, सिर्फ आदिवासी भाई ही खरीद सकें, वह बनाया हो. लेकिन आजकल क्या हो रहा है. मंडला, डिण्डौरी में कौन सा बड़ा उद्योगपति है, जो आदिवासी जमीनों की हेराफेरी कर रहा है. यह सब चीजें आपके सामने है. मैं मंत्री जी से सिर्फ एक चीज पूछना चाहता हूं कि जो खारिज हुए वन अधिकार नियम के तहत पट्टे हैं, क्या उनको कोई समय सीमा पर फिर से सर्वे कराकर आप उनको पट्टे देंगे. दूसरा, 2006 में वन अधिकार नियम बना, फिर कोई एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दिया. 2008,2010 भाजपा की सरकार ने उत्तर तक पेश नहीं किया सुप्रीम कोर्ट में. कांग्रेस पार्टी की जब सरकार आई 15 महीने वाली, तब उसने आवेदन सुप्रीम कोर्ट को दिया. सुप्रीम कोर्ट ने यह दिया कि आप फिर से पुनः जांच कर लें. उन साढ़े तीन लाख में से 68 हजार आवेदन जो निरस्त हो गये थे, वापस पट्टे मिले थे. मैं सिर्फ एक प्रश्न पूछना चाहता हूं कि जिनके निरस्त हुए, उनका कोई समय सीमा में आप बतायेंगे और जो नये आवेदन पड़े हुए हैं, इसमें कब तक उनको पट्टे मिलेंगे.
अध्यक्ष महोदय- डॉ.हिरालाल अलावा एक प्रश्न करेंगे.
डॉ.हिरालाल अलावा(मनावर)--माननीय अध्यक्ष महोदय, आपको बहुत बहुत धन्यवाद. अध्यक्ष जी मैं आपसे आग्रह और अनुरोध करना चाहता हूं कि यह बड़ा गंभीर विषय है, मेरी बात भी सुनी जाये, सदन की मंशा है और मुख्यमंत्री जी की भी मंशा है .
अध्यक्ष महोदय- हिरालाल जी, एक चीज ध्यान रखें. ध्यानाकर्षण नेता प्रतिपक्ष का था. नेता प्रतिपक्ष जब सदन में अपनी बात रखते हैं तो पूरे प्रांत के सारे सदस्यों की भावना एक तौर से उसमें समाहित होती है. मैंने यह तय किया था कि इस विषय पर कुछ और मित्रों के भी ध्यानाकर्षण हैं . सभी लोगों ने सोचा था कि वह लोग भी कम से कम अपनी भावना व्यक्त कर दें, लेकिन अगर सभी लोग भावना को पूर्णरूपेण व्यक्त करेंगे तो फिर भावनायें इतनी है कि सारा समय इसी में चला जायेगा इसलिये सरकार से जो प्रश्न करना चाहते हैं, करें मैं नाम सबके पुकार रहा हूं और वह एक एक प्रश्न करें जिससे सरकार का जवाब आ सके.
डॉ.हिरालाल अलावा-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री जी से कहना चाहता हूं कि मुख्यमंत्री जी आज जो वन अधिकार कानून पर बहस हो रही है और यह मांग सिर्फ डॉ. हिरालाल अलावा की मांग नहीं है पूरे आदिवासी समाज की मांग है. इसमे जंगलों में रहने वाले हमारे आदिवासी भाईयों की बात हो रही है. अध्यक्ष जी, हमारे मंत्री जी ने अभी सदन मे जवाब दिया कि प्रदेश मे, आदिवासी समाज में जंगलों पर अधिकार को लेकर के कोई रोष और आक्रोष व्याप्त नहीं है. हमने उनको साढ़े तीन लाख पट्टे दिये हैं. माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से कहना चाहता हूं कि यहां पर सिर्फ व्यक्तिगत पट्टों की बात हो रही है, वन अधिकार कानून की धारा 3(1)(झ) है उसमें ग्राम सभाओं को पारम्परिक सीमाओं के भीतर जंगलों पर अधिकार मुहैया कराने की जो बात की गई है उसकी कोई भी यहां पर बात नहीं कर रहा है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने आदिवासियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिये जल, जंगल, जमीन पर उनके अधिकारों को देने के लिये धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान' या योजना लागू की है उसमें तीन हजार करोड़ रूपये का प्रावधान भी किया है.
अध्यक्ष महोदय-डॉ साहब प्रश्न करें दूसरे माननीय सदस्यों को भी अपना पक्ष रखना है. कृपया संक्षेप में .
डॉ.हिरालाल अलावा- जी अध्यक्ष महोदय, मैं कह रहा था कि प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि जो ग्राम सभायें जंगलों पर अच्छा प्रबंधन करेंगी उनको प्रत्येक ग्राम सभा को 15 लाख रूपये देंगे. हमारे मध्यप्रदेश में एक भी ग्राम सभा को 15 लाख रूपये नहीं मिला, इसलिये नहीं मिला क्योंकि सामुदायिक वन प्रबंधन के अधिकार मध्यप्रदेश में एक भी ग्राम सभा को नहीं दिया है और इसलिये नहीं दिया गया क्योंकि जो वन मित्र पोर्टल के माध्यम से अनपढ़, अशिक्षित आदिवासी के लियो आन लाइन आवेदन करने की जो कठिन प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है उसमें न तो आदिवासी समय पर पट्टे का दावा कर पाये . इसलिये अध्यक्ष महोदय जी मेरी आपके माध्यम से यह मांग है कि वन मित्र पोर्टल में आफ लाइन प्रक्रिया के तहत आवेदन लेकर के आदिवासियों के पट्टे स्वीकृत किये जायें, इस पर मुख्यमंत्री जी विचार करें.
श्री मोहन सिंह राठौर(भितरवार) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से प्रश्न करना चाहता हूं कि ग्वालियर विधानसभा की भितरवार विधानसभा क्षेत्र में ग्वालियर जिले के 80 प्रतिशत आदिवासी निवास करते हैं वहां पर रेवेन्यू के और वनाधिकार के जो पट्टे दे दिये गये हैं उन पर वन विभाग जो लगातार बेदखली का काम कर रहा है उसके लिये सदन ने आपकी अध्यक्षता में मुझे एक कमेटी में सदस्य भी बनाया था, लेकिन उसकी रिपोर्ट आज तक नहीं आई है. अगर ऐसे अधिकारी जो गलत काम कर रहे हैं, नियमों के विपरीत काम कर रहे हैं, आदिवासियों को प्रताडित करने का काम कर रहे हैं उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही की जाये, वहां के जो डीएफओ हैं इसमें अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय- मोहन सिंह जी आपका प्रश्न आ गया. कृपया बैठें.
श्रीमती झूमा सोलंकी (भीकनगांव) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा सुझाव इस तरह से है कि वन मित्र पोर्टल जो बनाया गया है, उसमें जो आवेदन आये हैं और आन लाइन प्रक्रिया है, हमारे यहां समस्या यह है कि वहां पर नेटवर्क की भारी किल्लत है, आप आवेदन करते हैं, आपके मोबाइल पर ओटीपी आता है नेटवर्क न होने के कारण प्रक्रिया अधूरी रह जाती है तो वहां पर नेटवर्क नहीं होने से कई भाईयों के आवेदन नहीं होन से उनको पट्टे नहीं मिल पा रहे हैं, तो इसके लिये आफ लाइन आवेदन की भी व्यवस्था की जावे ताकि वह आफ लाइन भी आवेदन कर दें और फिर जो भी व्यवस्था के माध्यम से आन लाइन में आफ लाइन को कैसे तब्दील करें यह व्यवस्था हमें दी जावे और जो सर्वे पीडीएफ हुआ है उनको तुरंत ही पट्टे दिये जायें.
अध्यक्ष महोदय- श्री जगन्नाथ सिंह रघुवंशी (अनुपस्थित)
श्री फूलसिंह बरैया (भाण्डेर) माननीय अध्यक्ष महोदय, आदिवासियों के जो हालात हैं उस पर मेरा एक ही प्रश्न है और वह यह है कि 1996 में जो पेसा एक्ट बना था उसमें आदिवासी भाईयों को यह अधिकार दिया गया था कि वन के अंदर जो भी संसाधन हैं, वन संसाधन हैं उसके ऊपर आदिवासियों का अधिकार होगा. जो भी संसाधन हैं उनसे अपनी आजीविका भी चलाएगा, लेकिन अभी हम देखते हैं कि आदिवासी अपनी रोजी-रोटी के लिए जंगल में जाता है और पेड़ों की जो सूखी टहनी हैं, जो गिर गई है उसको इकट्ठा करके बंडल बनाकर जब निकालता है, तो वहां के फॉरेस्ट ऑफीसर और उनकी पुलिस उसको पूरे दिन भर उसी जंगल में बैठाए रखती है और कभी-कभी तो ऐसा होता है कि रात को भी वहीं रोकते हैं.
अध्यक्ष महोदय -- आप पूछिए तो आप क्या पूछना चाहते हैं.
श्री फूलसिंह बरैया -- अध्यक्ष महोदय, मैं यह पूछना चाहता हूं कि इन आदिवासियों के अधिकार का क्या सरकार दुरुपयोग कर रही है, क्या आदिवासियों को संरक्षण दिया जाएगा ? इस व्यवस्था से आदिवासियों को निकालकर उनको यह अधिकार दिया जाएगा कि नहीं ?
श्री सोहनलाल बाल्मीक (परासिया) -- अध्यक्ष महोदय, मेरी तरफ से सरकार को यह सुझाव है और मेरी शून्यकाल की सूचना भी यही थी कि जो पिछले सौ-डेढ़ सौ वर्षों से वन भूमि में निवास कर रहे हैं ऐसे लोगों को पट्टा प्रदान किया जाए. जैसा माननीय मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्ष 2005 के पहले वाले सर्वे कराकर दिए जाएंगे तो उसमें एक बात जरूर ध्यान रखिएगा कि जो माफिया तौर पर, जो जबरदस्ती कब्जा करके रखे हैं ऐसे लोगों को जरूर हटना चाहिए और जिनका अधिकार है वन भूमि में चाहे आदिवासी हों, चाहे अन्य वर्ग के हों, जिनका कई वर्षों से जीवन-यापन हो रहा है उनको पट्टा प्रदान किया जाए.
श्री अभय मिश्रा (सेमरिया) -- अध्यक्ष महोदय, जो वन समितियों का गठन किया जा रहा है उनको ग्रामसभा से कराया जाए. एक्ट में भी है लेकन व्यावहारिक तौर पर यह होता है कि वहां के जो रेंज अफसर हैं वह समिति के सदस्यों का चयन स्वयं करते हैं और फिर उनके माध्यम से अध्यक्ष का चयन करते हैं और चेक पावर अध्यक्ष को है, जब बजट आता है तो अध्यक्ष को वह जैसा कहते हैं वैसा फॉलो करता है, तो मेरा यह सुझाव है कि समिति का चयन जैसा पुराना एक्ट में है ग्रामसभा के माध्यम से कराया जाए तो काफी पारदर्शिता हो जाएगी. एक और छोटा सा एक मिनट का निवेदन यह है कि हमें याद है जिला पंचायत के कार्यकाल में मैंने ध्यान दिया था पूरी तरह से नहीं परंतु थोड़ा सा याद आ रहा है कि जो हमारे वन्य ग्राम हैं वहां पर बहुत सारी सुविधाएं वहां पर राजस्व ग्राम नहीं होने के कारण नहीं मिल पा रही हैं. पंचायतीराज की बहुत सारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है, तो कुछ ऐसा करें कि उनको भी वह लाभ मिल सके. धन्यवाद.
श्री नारायण सिंह पट्टा (बिछिया) -- अध्यक्ष महोदय, सरकार को मेरा सुझाव है और मांग भी है कि 95 लाख हेक्टेयर भूमि पूरे मध्यप्रदेश में है और अधिकतर वनांचल क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय के लोग निवास करते हैं. माननीय मुख्यमंत्री जी को मेरा सुझाव है और सरकार से एक मांग भी है कि वन क्षेत्रों की सीमा से लगे बफर व सामान्य क्षेत्र के गांव और बसाहट बसी हुई हैं उनमें फेंसिंग के कार्य कराए जाएं ताकि वहां के किसानों की फसल सुरक्षित बचाई जा सके. मेरी विधान सभा लगभग 60 प्रतिशत् चाहे बफर हो, चाहे सामान्य हो, उसके अंतर्गत आती है. कुछ गांव ऐसे हैं जैसे मेढ़ाताल का भवान, रतनपुर, मुआला, मोहगांव, अतरिया, भीमपुरी, इन्द्रावन, खटोला, इंदरी, चंदगांव, मनोरी, देवगांव, अमुआर, मुरता, मसना, टटमा, बांदरवाड़ी यह ऐसे गांव हैं और भी इस सीमा से लगे हुए अनेक गांव हैं, उनमें मेरा सुझाव है सरकार को, क्योंकि किसानों की फसल को क्षति होती है और यदि कोई वन्यजीव प्राणी से किसी व्यक्ति के ऊपर हमला हो जाता है तो यह जन की हानि होती है.
श्री ओमकार सिंह मरकाम -- अध्यक्ष महोदय, मैं एक अनुरोध करना चाहता हूं.
अध्यक्ष महोदय -- देखिए, इसमें सामान्य तौर पर जिन-जिन के ध्यानाकर्षण उस तारीख को थे उन सबको सम्मिलित किया गया है. प्लीज़-प्लीज़ मरकाम जी.
श्री ओमकार सिंह मरकार -- अध्यक्ष महोदय, मैंने भी ध्यानाकर्षण दिया था. इतने में तो प्रश्न ही हो जाता. केवल एक माननीय अध्यक्ष जी.
अध्यक्ष महोदय -- प्लीज़ मरकाम जी, आप मुझे बाद में बता देना.
श्री दिलीप अहिरवार -- अध्यक्ष महोदय, ध्यानाकर्षण की सूचना नेता प्रतिपक्ष जी के द्वारा आई है तो मैं आपके माध्यम से सदस्यों को बताना चाहूंगा कि जो दावे होते हैं जो अमान्य हुए या मान्य हुए. यह प्रक्रिया के तहत होते हैं. इसकी तीन समितियाँ होती हैं. एक समिति ग्राम सभा होती है. जिसमें ग्राम के लोग होते हैं. दूसरी समिति उपखंड की समिति होती है. इसमें अनुविभागीय अधिकारी उसके अध्यक्ष होते हैं या तो एसडीओ सदस्य रहते हैं इसमें 3 अशासकीय सदस्य भी रहते हैं. एक समिति जिले की होती है. जिले के कलेक्टर उसके अध्यक्ष रहते हैं या सचिव ट्रायबल होते हैं, डीएफओ उसके मेंबर होते हैं. इसमें भी तीन अशासकीय सदस्य होते हैं. यह समितियाँ तय करती है कि जो दावे आए हैं वे मान्य हों या अमान्य हों. इसमें वन विभाग की ज्यादा भूमिका नहीं रहती है. समिति तय करती है. मैंने पूर्व में भी बताया था कि 5229 जो दावे आए थे उसमें से 2977 वन अधिकार पत्र के दावे मान्य हुए हैं. बाकी के 2252 अमान्य किए गए थे. यह समितियों ने अमान्य किए हैं. स्वाभाविक है कि यह प्रक्रिया के तहत होते हैं. यह माननीय नेता प्रतिपक्ष को भी पता है. यह जो नियम प्रक्रिया है उसके तहत ही जो प्रकरण आते हैं उसमें से दावे मान्य या अमान्य होते हैं. यह आदिवासी भाइयों की सरकार है. कई और सदस्यों के भी ध्यानाकर्षण के माध्यम से इसमें प्रश्न आए हैं. जैसे हमारे आदरणीय वरिष्ठ सदस्य राहुल भैया ने कहा कि पट्टे खारिज हुए हैं. मैं बताना चाहूंगा कि 3-3 बार परीक्षण हुआ है. मुझे नहीं लगता है कि अब इसकी जरुरत है. बहन झूमा सोलंकी जी का प्रश्न आया है. मैं उन्हें बताना चाहूंगा कि वन मित्र पोर्टल पर आवेदन की जो समस्या बताई गई है उसके लिए ऑफ लाइन व्यवस्था भी कर दी गई है. साथ ही आदिम जाति विभाग के अधिकारियों द्वारा भी उसमें मदद की जा रही है. श्री फूल सिंह बरैया जी का प्रश्न आया है. उन्हें बताना चाहूंगा कि जो गिरी हुई लकड़ी है, सूखी लकड़ी है उसे निशुल्क निस्तार के लिए लाने व्यवस्था है इसमें कोई रोक नहीं है. इस पर वन विभाग की तरफ से कोई रोक नहीं है. श्री अभय मिश्रा जी ने भी प्रश्न किया है. आपको बताना चाहूंगा कि वन समिति का चयन ग्राम सभा द्वारा आगामी 15 अगस्त को ग्राम सभा में करने के निर्देश भी जारी हो गए हैं.
अध्यक्ष महोदय, मैं नेता प्रतिपक्ष जी की बातें बड़े ध्यान और गंभीरता से सुन रहा था. मैं गंभीरता के साथ ही उनको जवाब भी देना चाहूंगा. आप भी शायद वर्ष 2018 में वन मंत्री थे. मगर इन्होंने एक भी वन अधिकार के पत्र, मुझे विभाग से जानकारी मिली है कि एक भी वन अधिकार के पत्र मध्यप्रदेश के आदिवासी भाइयों को नहीं दिए गए थे. यह मेरे विभाग से मुझे जानकारी मिली है.
नेता प्रतिपक्ष (श्री उमंग सिंघार) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, अधिकारियों ने आंकड़े दे दिए हैं. 68 हजार नोडल एजेंसियां थीं (व्यवधान)
श्री दिलीप अहिरवार -- माननीय अध्यक्ष महोदय, वर्ष 2021 में 23500 वन अधिकार पत्र दिए गए हैं.
श्री उमंग सिंघार -- आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि वर्ष 2006 में वन अधिकार कानून भी कांग्रेस लाई थी. माननीय मुख्यमंत्री जी आपको बताऊं कि वर्ष 1972 से लेकर 1975 तक इंदिरा गांधी जी ने पूरे देश में गरीबों को पट्टे बांटे थे. आपने यह कहा कि पट्टे नहीं बंटे. पट्टे बांटना, वन अधिकार देना कांग्रेस ने शुरु किया था लेकिन उसे पूरा तो करो.
श्री दिलीप अहिरवार -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मुझे लगता है कि जिस प्रकार से माननीय नेता प्रतिपक्ष बात कर रहे हैं तो मुझे लगता है कि वर्ष 2018 में यह भी वन मंत्री थे. यह आदिवासी भाइयों की जिस प्रकार से बात करते हैं तो मुझे लगता है फिर तो कोई समस्या ही नहीं होना चाहिए थी. वर्ष 2018 में ही इस समस्या का समाधान कर देना चाहिए था.
श्री उमंग सिंघार -- यदि 5 साल सरकार रहती तो आप यहां रहते ही नहीं. अगर आप लोग नहीं खरीदते, पांच साल अगर काम करते तो बताते कि मध्यप्रदेश का फारेस्ट डिपार्टमेंट क्या कर सकता है..(व्यवधान)
श्री दिलीप अहिरवार -- यह आदिवासियों की सरकार है, आदिवासियों के हित में काम करती है. (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय -- प्रहलाद जी कुछ कहना चाहते हैं.
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री (श्री प्रहलाद सिंह पटेल)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं बीच में सिर्फ पेसा एक्ट को लेकर जो चीजें समने आई हैं उस स्पष्टीकरण के लिए खड़ा हुआ हूं. वाद-विवाद होते रहेंगे, लेकिन केन्द्र सरकार ने, मोदी जी ''पीएम-जनमन योजना'' लेकर आये और उसमें जो सहरिया, भारिया, बैगा जो कि अति पिछड़ी जनजातियां हैं, उनके लिए मध्यप्रदेश में इसके पहले ऐसा काम नहीं हुआ है. यह प्रतिपक्ष भी स्वीकार करेगा, क्योंकि जहां पर वह काबिज थे, शिवपुरी उसका उदारहण है कि हमने देश में पहले नंबर पर 23 दिन में जनमन आवास बनाकर दिया और दूसरा 34 दिन में, छिन्दवाड़ा में बनाया. आप भी जानते हैं कि वह कभी कॉलोनियों में नहीं रहते थे, आप भी जाकर देख सकते हैं. शिवपुरी में कॉलोनियां बनी हैं और वह उसमें विधिवत रह भी रहे हैं. केवल इतना ही नहीं मैं, नरसिंहपुर जिले में हूं, वहां पर जंगल में से जाकर देश की सबसे महंगी सड़क बनी है. हम जिस वनाधिकार की बात कर रहे हैं उन वनाधिकारों में क्या परिवर्तन हुआ है एक बार हमें नये सिरे से देखना चाहिए. जब हम वर्ष 2006 की बात करते हैं तो हमें वर्ष 2022-2023 की भी बात कर लेनी चाहिए. मेरी दूसरी सूचना यह है कि पेसा की लगातार मॉनीटरिंग होती है. राज्यपाल महोदय करते हैं, माननीय मुख्यमंत्री जी करते हैं. दोनों की समितियां अलग हैं क्योंकि उसका नोडल विभाग मेरा है. उसमें जो ग्राम सभा है वह ग्रामसभा, ग्राम पंचायत की ग्रामसभा भी नहीं है. उसकी ग्राम सभा गांव की ग्राम सभा है. उसको वित्तीय अधिकार भी हैं, उसको वन के अधिकार भी हैं. चाहे मायनिंग के मामले हों उसकी एनओसी के बगैर वहां पर नहीं हो सकता है. आपस के मामले कोर्ट में नहीं जाएंगे और मैं, गर्व के साथ कहता हूं कि मैं मध्यप्रदेश में अभी तक हजार से ऊपर मामले जो कोर्ट में नहीं गए और उन ग्राम सभाओं ने उसका फैसला कर दिया. हम पैसे की बात करते हैं तो धरती आबा योजना की बात हमारे अलावा जी ने कही थी. देश में 24 हजार करोड़ रुपया सरकार ने आवंटित किया जिसमें से 7 हजार पांच सौ करोड़ रुपया मध्यप्रदेश को दिया. दूसरा जो बांकी कामों के लिए पैसा है उसमें भारत सरकार ने 80 हजार करोड़ रुपए धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान में आवंटित हैं जिसमें से 12 हजार करोड़ रुपया मध्यप्रदेश को आवंटित है. मध्यप्रदेश में इस मामले में हम नंबर एक पर हैं. मुझे लगता है कि इस पर तो हम पलटकर देख सकते हैं बजाय इसके कि सरकार पर आक्षेप किया जाए. सरकार लगातार इस पर काम कर रही है और मैं बड़ी जिम्मेदारी के साथ यह बात कहता हूं कि अभी भी पेसा एक्ट के तहत क्रियान्वयन में जो भी बारीकियां हैं उसको हम लगातार संशोधित करके कर रहे हैं. जब बात बन मित्र पोर्टल की आई थी तो हमारा एक जिले का कोऑर्डिनेटर है, एक ब्लॉक में है, पंचायत के लेबल पर भी पेसा मोबिलाइज़र है. उसको रखा ही इसलिए गया है ताकि वह लोगों को बता पाए कि प्रक्रिया कैसी होती है ताकि वह किसी अधिकारी और बाकी के चक्कर में न पड़े. अध्यक्ष महोदय, आपने मुझे बोलने का समय दिया धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय-- मैं समझता हूं कि आदिवासी और वन, मध्यप्रदेश के लिए यह दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण हैं और इसलिए इस महत्वपूर्ण विषय पर ध्यानाकर्षण आया और काफी लोगों ने अपने सुझाव और प्रश्न किये हैं. मुझे प्रसन्नता है कि इस महत्वपूर्ण विषय पर माननीय मुख्यमंत्री जी पूरे समय उपस्थित रहे और उन्होंने सदस्यों की भावनाओं को समझा और जो सदस्य नहीं बोल पाए हैं मैं समझता हूं कि उनकी भावना भी मुख्यमंत्री जी समझते ही हैं. वह इस अवसर पर अपनी बात रखेंगे तो ठीक होगा.
मुख्यमंत्री (डॉ. मोहन यादव)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, धन्यवाद. मैं, आपके माध्यम से नेता प्रतिपक्ष और समूचे पक्ष, विपक्ष के सभी सदस्यों के साथ जवाबदारी से यह बात कहना चाहूंगा जो हमारे प्रतिपक्ष के सदस्यों ने भी उठाया है और जिसमें ''धरती आबा योजना'' यशस्वी प्रधानमंत्री का भाव भी आया है कि ''धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान'' के माध्यम से यह जो हमारी और इन सभी की सामान्य परेशानी थी कि वन क्षेत्र के अंदर वनवासियों को लेकर, आदिवासियों को लेकर उनकी मूलभूत समस्याओं की तरफ हम कैसे सुविधा बढ़ा सकते हैं, उनकी कठिनाई कैसे कम कर सकते हैं. खासकर उनके अपने पट्टे दिलाने से लेकर उनकी आजीविका के साधन और संसाधन बढ़ाते हुए उनके जीवन में हम सरकार के माध्यम से क्या लाभ दे सकते हैं.
अध्यक्ष महोदय, मैं, यह बताना चाहूंगा कि हमारी सरकार ने न केवल इस दिशा में ठोस कदम उठाये हैं, पहले यह बताना चाहूंगा कि किसी भी हालात में "धरती आबा योजना" सहित सारी योजनाओं के लिए आपके माध्यम से कहना चाहूंगा कि यदि प्रतिपक्ष के साथी, संयुक्त रूप से बैठना चाहेंगे, तो इनके भी कुछ सकारात्मक सुझाव आयेंगे, तो हमारी तरफ से सरकार खुले मन से तैयार है, हर हालात में आदिवासियों के उत्कर्ष के लिए, हमारे मन में कोई दुर्भावना नहीं है, हम सदैव उनके साथ खड़े हैं.
(मेजों की थपथपाहट)
अध्यक्ष महोदय, सरकार किसी भी आदिवासी को किसी परेशानी में नहीं देखना चाहेगी. उनके पट्टे से लेकर, प्रत्येक विकास के मामले में जो भी इनका सुझाव होगा, वह दलगत भावना से ऊपर उठकर, आदिवासियों के विकास की दृष्टि से, उनके गांव के विकास की दृष्टि से, हम कार्य करेंगे. एक कठिनाई हमारे सामने आई थी, यह एक विषय छूट गया था, उसका भी समाधान हमने निकाला है कि कई बार आदिवासी अंचल में कुछ सामान्य एवं पिछड़ी जातियों के लोग भी रहते हैं, उनकी भी कठिनाइयां हैं, उसके लिए भी हम संयुक्त रूप से बैठेंगे, तो उसका समाधान भी खोजेंगे क्योंकि हमारे हजारों वर्षों से वन ग्राम हैं, और वन ग्राम में सभी प्रकार के वनवासियों, आदिवासियों के लिए, सरकार पूरी सकारात्मकता एवं सद्भावना के आधार पर, सदैव उनके लिए तत्पर खड़ी है.
अध्यक्ष महोदय, ये मैंने कहा है कि किसी भी आदिवासी, वनवासी अंचल में सरकार के माध्यम से कहा है कि अभी वर्षाकाल में किसी का आवास छिनना या उसका मकान तोड़ना, मैं बिलकुल बर्दाशत नहीं करूंगा. यह हमने अधिकारियों से भी कहा है कि किसी हालात में यह संदेश नहीं आना चाहिए कि हमारे द्वारा ऐसी कोई गलती हो. मुझे लगता है कि आज के इस ध्यानाकर्षण के माध्यम से हम सभी, यह संकल्प करें कि जितना अच्छा हो सकता है, हम सभी मिलकर आदिवासी अंचल का जैसे बाकी सभी वर्गों का हम ध्यान रखते हैं, इनका भी ध्यान रखते रहेंगे, इतना ही मुझे कहना था, बहुत-बहुत धन्यवाद. (मेजों की थपथपाहट)
डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह (अमरपाटन)- अध्यक्ष महोदय, मेरा व्यवस्था का प्रश्न है. जब माननीय मुख्यमंत्री जी अपना वक्तव्य सदन में दे रहे थे, आपने देखा कि विपक्ष की तरफ से सभी सदस्य संजीदा होकर सुन रहे थे, किसी ने टोका-टाकी नहीं की. लेकिन हमारे प्रतिपक्ष के नेता जब बोलते हैं तो सामान्यत: परंपरा यह है और मैं वर्ष 1980 से देख रहा हूं कि यदि मंत्री भी सदन में बोल रहे हैं तो वे रूकते हैं और बैठते हैं और प्रतिपक्ष के नेता की बात सदन में रखी जाती है लेकिन इस सदन में अजीबो-गरीब दृश्य होता है, नेता प्रतिपक्ष बोल रहे हैं, उधर से मंत्री जी भी बोल रहे हैं, दूसरे सदस्य भी बोल रहे हैं. (मेजों की थपथपाहट)
अध्यक्ष महोदय, विधान सभा में जितना महत्वपूर्ण पद सदन के नेता, माननीय मुख्यमंत्री का होता है, उतना ही महत्वपूर्ण स्थान नेता प्रतिपक्ष का भी होता है. यह सदन वाद-प्रतिवाद के लिए है. कोई विषय सदन में आता है, यदि किसी के पास सार्थक जवाब है और आसंदी अनुमति दे तो वह अपनी बात रखता है लेकिन दोनों खड़े होकर बोलने लगें, नेता प्रतिपक्ष बोल रहे हैं, मंत्री जी भी बोल रहे हैं, यह दृश्य अशोभनीय भी है, और परंपरा के अनुसार नहीं है.
अध्यक्ष महोदय- राजेन्द्र जी कृपया आसन ग्रहण करें. कैलाश जी आप कहें.
संसदीय कार्य मंत्री (श्री कैलाश विजयवर्गीय)- अध्यक्ष महोदय, राजेन्द्र सिंह जी बहुत वरिष्ठ सदस्य हैं. संसदीय मर्यादा, परंपरा, का उनको काफी ज्ञान है, परंतु कभी-कभी भूलवश, कभी ऐसा हो जाता है कि हम नियम और प्रक्रिया के बाहर जा रहे हैं तो संसदीय कार्य मंत्री होने के नाते, मेरा यह दायित्व है कि मैं उससे सदन को अवगत करवाऊं, इसलिए मैंने नियम और प्रक्रिया के अनुसार ही प्वाईंट ऑफ ऑर्डर लगाया था. मैंने कहा था कि माननीय नेता प्रतिपक्ष को अधिकार है, आप मेरा वक्तव्य देख लीजिये, नेता प्रतिपक्ष को अधिकार है कि वह सदन में कभी-भी, किसी-भी समय बोल सकते हैं, परंतु नियम और परंपरा पूरे सदन में सभी के लिए लागू हो, चाहे वह मुख्यमंत्री जी हों, चाहे नेता प्रतिपक्ष हों.
अध्यक्ष महोदय, इसलिए मेरा निवेदन है कि मैंने जो प्वाईंट ऑफ ऑर्डर उठाया था, आपके निर्देश द्वारा हमें प्रदान की गई पुस्तक "मध्यप्रदेश विधान सभा प्रक्रिया एवं कार्य संचालन संबंधी नियम" के अंतर्गत उठाया था, इसलिए मैं चाहता हूं कि राजेन्द्र सिंह जी आप बहुत वरिष्ठ सदस्य हैं, मैं आपकी बात को काटना नहीं चाहता था लेकिन आपने सीधा-सीधा मुझ पर, मेरे प्वाईंट ऑफ ऑर्डर पर आपत्ति की, इसलिए मुझे बोलने के लिए खड़ा होना पड़ा. अध्यक्ष महोदय, मैं, चाहता हूं इस पर आपके निर्देश आने चाहिए.
डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, मुझे 10 सेकेण्ड का समय दे दीजिये. माननीय कैलाश जी ने उसको अन्यथा ले लिया. मैं तो उधर गोल मार ही नहीं रहा था, यह अपना गोल पोस्ट लेकर वहां खड़े हो गए, जहां से गेंद जा रही थी. आप संसदीय कार्य मंत्री हैं और इनका दायित्व और परम्परा भी यही है कि कोई चीज अगर संसदीय व्यवस्था के विपरीत है, इतर है तो वह उसका उल्लेख करते हैं. वह अगर खड़े होते हैं, तो नेता प्रतिपक्ष जी भी सुनते हैं, यह मैंने देखा है. लेकिन कैलाश जी ने अन्यथा ले लिया. माननीय अध्यक्ष जी, मैं प्वाइंट ऑफ ऑर्डर पर तो प्रश्न उठा ही नहीं रहा था.
अध्यक्ष महोदय - मध्यप्रदेश की विधान सभा की बहुत शानदार परम्पराएं हमारे पूर्वजों ने छोड़ी हैं, उसके प्रकाश में निश्चित रूप से हम अपने आगे का मार्ग तय कर सकते हैं. मध्यप्रदेश की विधान सभा के उदाहरण अन्य स्थानों पर भी दिये जाते हैं. डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह जी, श्री कैलाश विजयवर्गीय जी, दोनों ही बहुत वरिष्ठ सदस्य हैं. मैं समझता हूँ कि श्री कैलाश विजयवर्गीय जी ने जब अपनी बात कही, तो वह अपने स्थान पर सही थे, संसदीय कार्य मंत्री का दायित्व निर्वहन कर रहे थे और डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह जी ने जो चिन्ता व्यक्त की, वह एक सैद्धांतिक चिन्ता थी कि जब मुख्यमंत्री जी बोलें, नेता प्रतिपक्ष जी बोलें, संसदीय कार्य मंत्री बोलें, अन्य मंत्रीगण बोलें तो निश्चित रूप से हम सब सदस्यों को यह प्रयत्न करना चाहिए कि उनकी बात को हम ध्यान से सुनें और सभी के सहयोग से सदन निश्चित रूप से ठीक प्रकार से चल पाता है और हम सब समाधान तक पहुँच पाते हैं.
मुझे प्रसन्नता है कि मैंने जो ध्यानाकर्षण के पूर्व आग्रह किया था, सबने मेरी भावनाओं को समझा, तो ध्यानाकर्षण पर अधिक लोग बोल भी पाये, प्रश्न भी कर पाये और उसके परिणामस्वरूप मुख्यमंत्री जी ने भी अपनी बात कही. मैं समझता हूँ कि इस प्रकार की परम्पराओं को और आगे बढ़ाना चाहिए और हम सब लोगों को आगे से ध्यान रखना चाहिए.(मेजों की थपथपाहट)
श्री रमेश प्रसाद खटीक (करैरा) - माननीय अध्यक्ष महोदय, आपको बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने बोलने का समय दिया. शिवपुरी जिले में हमारे माननीय मुख्यमंत्री जी जा रहे हैं, मैं तो नहीं पहुँच पाऊँगा, मैं यहीं से स्वागत करता हूँ.
संसदीय कार्य मंत्री (श्री कैलाश विजयवर्गीय) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मुख्यमंत्री जी बाढ़ और अतिवृष्टि का निरीक्षण करने जा रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय - कैलाश जी, आपने कुछ कहा. रमेश जी, आप थोड़ा रुक जाएं.
श्री कैलाश विजयवर्गीय - माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने कहा है कि मुख्यमंत्री जी जा रहे हैं. मुख्यमंत्री जी, बाढ़ और आपदा की परिस्थितियां देखने जा रहे हैं और उसमें बचाव के लिए शासन को क्या-क्या करना है ? मुख्यमंत्री जी, अपनी जवाबदारी के लिए सदन छोड़ रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय - कैलाश जी, रमेश जी ने यह कहा है कि मुख्यमंत्री जी, उनके यहां जा रहे हैं, वह सदन के कारण वहां नहीं पहुँच पा रहा हूँ.
1.09 बजे
(2) विद्युत विभाग द्वारा चोरी के प्रकरण में लोक अदालत के अलावा ब्याज
राशि न हटाई जाना.
श्री रमेश प्रसाद खटीक (करैरा) - माननीय अध्यक्ष महोदय,
ऊर्जा मंत्री (श्री प्रद्युम्न सिंह तोमर) --
श्री रमेश प्रसाद खटीक - माननीय अध्यक्ष महोदय, आपका संरक्षण चाहता हूं. 50 हजार से 10 लाख रुपये जो की गई है वह बड़े बड़े कारखाने वालों को है किसानों को नहीं है मेरे ध्यानाकर्षण उन व्यक्तियों के लिये है जिन पर विद्युत विभाग किसी कारण से चोरी का प्रकरण बनाया जाता है या प्रभावित व्यक्तियों पर कोई प्रकरण बन जाता है कई महिनों बाद नोटिस दिया जाता है तब प्रभावित किसानों को या नागरिकों को पता लगता है कि उस पर चोरी का प्रकरण बन गया है जब लोक अदालत की विभाग जानकारी देता है तब वह लोक अदालत में पहुंचता है और जो नहीं पहुंच पाता है उस पर 16 प्रतिशत चक्रवृद्धि ब्याज लगाया जाता है. इससे कई किसानों,नागरिक जो पैसे ज्यादा बढ़ जाने के कारण नहीं भर पाते हैं तो उनको जेल तक जाना पड़ता है मेरा प्रश्न यह है कि क्या माननीय मंत्री जी इसमें किसानों और छोटे नागरिकों को जो 16 प्रतिशत ब्याज नहीं लेता है बैंक भी नहीं लेता है क्या इसमें किसानों को लाभ देंगे. दूसरा प्रश्न और है पहले लोक अदालत जिले में लगती थीं और उसमें 40-50 प्रतिशत प्रकरण में छूट दे दी जाती थी अब वह भोपाल में आनलाईन निपटाये जाते हैं तो क्या जिले में ही आफलाईन की व्यवस्था करेगे जिससे कि हमारे किसानों को लाभ मिल सके.
श्री भंवर सिंह शेखावत(बदनावर) - अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य का जो प्रश्न है वह महत्वपूर्ण है पूरे प्रदेश की जनता इससे प्रभावित है.आपका जवाब मैंने सुना मंत्री जी बहुत गंभीरता से आपने जवाब दिया है लेकिन प्रक्रिया बहुत जटिल है. यह जो मुकदमे जो लगते हैं चोरी के पहले तो इनका पता ही नहीं चलता लोगों को और उस पर कार्यवाही हो जाती है और जब उसको पता लगता है तो वह 16 प्रतिशत का ब्याज अगर वह नहीं दे पाता है तो उसको जेल जाना पड़ता है इस प्रक्रिया को सरल किया जाये या इसका कोई निदान किया जाये यह पूरे प्रदेश की समस्या है खासकर किसान.
श्री प्रदीप अग्रवाल(सेंवढ़ा) - अध्यक्ष महोदय, किसान हमारा अन्नदाता है और वह अपने सुख के लिये कभी उपयोग नहीं करता है कभी कभी वह बिजली की मजबूरी में चोरी करता है पहले हमारे यहां जिले में व्यवस्था थी यदि किसान पर या अन्य पर प्रकरण बनाया जाता था तो जिले में डी.ई. और सी.ई. लेबल के व्यक्ति उसका निराकरण करके 50 प्रतिशत जमा कराकर उसका समाप्त कर देते थे लेकिन अब हमारे कर्मचारी आनलाईन करके बताते नहीं हैं और एक-एक साल बाद जब किसान को पता चलता है तो इसे जिले पर ही निपटाया जाए.
श्री आशीष गोविन्द शर्मा(खातेगांव) - अध्यक्ष महोदय, यह समस्या बहुत जायज है विद्युत वितरण कंपनी का कनेक्शन धारी किसान कई बार अपने कुंए से पानी समाप्त होने पर दूसरे जल स्त्रोत पर मोटर रख लेता है लेकिन यह उसको चोरी मानते हुए उसका केस बना देते हैं सबसे बड़ी बात घरेलू हो या कृषि उपभोक्ता हो इनके मामलों कासेटलमेंट करने का अधिकार डिवीजनल स्तर के अधिकारी को हो ताकि एक मुश्त समझौता करके कम से कम पैसे में सरचार्ज के साथ यह माफी हो सके.
श्री प्रद्युम्न सिंह तोमर - अध्यक्ष महोदय, सबसे पहले माननीय सदस्य को बताना चाहूंगा कि लोक अदालत में जो प्रकरण हैं वह किसान के हों या गरीब के हों सब शामिल हैं पहले यह भ्रांति निकाल दें कि किसानों को ही जब प्रकरण लोक अदालत में अगर जाएंगे उसका लाभ उनको ही मिलता है दूसरा चोरी प्रकरण के बाद यह मामला जब अदालत में जाता है तो जो प्रक्रिया है तो लोक अदालतों में इनका उसमें समाधान होता है. नियामक आयोग द्वारा सारी व्यव्सथा की गई है. नियामक आयोग द्वारा विलंब से भुगतान पर भी 16 प्रतिशत ब्याज राशि निर्धारित की गई है. राष्ट्रीय लोक अदालत वर्ष में चार बार लगती है जैसा कि आप कह रहे हैं कि मालुम नहीं पड़ता.जब लोक अदालत में प्रकरण जाता है तो इसकी उसको ब्याज पर भी और सरचार्ज पर भी छूट मिलती है तो उसका लाभ लोक अदालत में ले सकते हैं पर यह प्रक्रिया अदालती है इसलिये सरकार या कंपनियां अपने स्तर पर कोई छूट नहीं दे सकतीं. लोक अदालतों के समय ही दी जा सकती हैं.
श्री रमेश प्रसाद खटीक -- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह छूट बहुत कम छूट है, यह छूट दी जाती है, पर वह बहुत कम दी जाती है और वास्तविकता यह है कि किसान हो या गरीब हो, उन पर वास्तविक में दया, मानवीय स्तर पर और किसानों को देखते हुए, इस पर पचास प्रतिशत जैसे पहले वहां जिले में छूट दी जाती थी और इस तरह से इस 16 प्रतिशत को माननीय मंत्री जी से आग्रह है कि इसको तो बंद कर दिया जाये.
श्री प्रद्युम्न सिंह तोमर -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा एक निवेदन है कि सम्माननीय सदस्य की मानवीय आधार पर एक अलग बात है, पर न्यायालयीन प्रक्रिया है, उसका अनुसरण तो सरकार को नियम कायदे से करना पड़ता है.
संसदीय कार्यमंत्री(श्री कैलाश विजयवर्गीय) -- अध्यक्ष महोदय, यह बात सही है मंत्री जी का उत्तर बिल्कुल सही है कि नियामक आयोग ने यह सारी प्रक्रिया तय की है पर आज सदन में जो माननीय सदस्य व्यवहारिक कठिनाई बता रहे हैं, व्यवहारिक कठिनाई यह है कि खेत में अगर दो कुंए हैं और एक कुंए में पानी खत्म हो गया है, तो उसने मोटर दूसरे कुंए में लगा दी, तो चोरी का प्रकरण कायम हो जाता है, यह बिल्कुल अव्यवहारिक है और इसलिए जो व्यवहारिक चोरी हो तो निश्चित रूप से उसके खिलाफ कार्यवाही करना चाहिए, पर अव्यवहारिक प्रकरण बनाकर जो किसानों के साथ किया जाता है, उसमें आपको नियामक आयोग को यह बताना चाहिए कि विधानसभा में यह चर्चा हुई है और माननीय सभी दल के विधायक यह महसूस कर रहे हैं कि गरीब और किसान के साथ ज्यादती हो रही है, तो नियामक आयोग उसमें सुधार करेगा.
श्री गोपाल भार्गव(रहली) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, इसके साथ में एक विषय ओर है तो सभी का एक साथ उत्तर आ जायेगा. माननीय अध्यक्ष जी जैसा माननीय कैलाश जी ने कहा है, जो विद्युत मोटर कुंए में या पंप में पड़ी रहती है जो बोर में पड़ी रहती है, जब इसका नाप होता है, तो पांच हॉर्स पॉवर की मोटर के लिये सात और साढ़े सात हॉर्स पॉवर बता दिया जाता है, कभी कभी बाइंडिंग में उसका हार्स पॉवर बढ़ जाता होगा, लेकिन नई मोटर जो है, उसका भी पांच का सात और साढ़े सात बता दिया जाता है और उसी के बाद फिर बीलिंग की जाती है, उसको या तो चोरी के उसमें ले लेते हैं, या फिर उसको पैनाल्टी के रूप में ले लेते हैं, मेरा सुझाव यह है अध्यक्ष महोदय, कि इस पर भी कोई नियंत्रण होना चाहिए कि वास्तव में मोटर कितने हॉर्स पॉवर की है?अब उसने नई मोटर खरीद कर पांच हॉर्स पॉवर की मोटर डाली और आप जब उसे नापने जाते, हो तो सात और साढ़े सात का आ जाता है, इसके बाद जब बिल 25-40 हजार रूपये आता है, तो उसके बाद लोक अदालत में जब प्रकरण जाता है, तो 40 हजार रूपये के आधार पर आपको तीस प्रतिशत की रीबेट या छूट जो कुछ भी मिलती है, जब बिल इतना ज्यादा हो जाता है कि उपभोक्ता जो है और किसान जो है, वह उसको छूट के बाद भी एफोर्ड नहीं कर सकता है. अच्छा लोक अदालत में कोई सुनवाई होती नहीं है, बहस होती नहीं है, कोई बहुत ज्यादा आर्गुमेंट्स होते नहीं है और इस कारण से लोक अदालत कहती है कि आप इतने-इतने में तैयार हो कि नहीं हो तो बताओ, यदि वह किसान तैयार नहीं हुआ तो उसके बाद में मामला बढ़ा दिया जाता है, उसके बाद में उस पर पुन: पैनाल्टी शुरू हो जाती है, इसलिए इसका माननीय मंत्री जी कुछ उत्तर आ जाये.
अध्यक्ष महोदय -- माननीय मंत्री जी आप जवाब दे दें.
श्री प्रद्युम्न सिंह तोमर -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से सम्माननीय संसदीय कार्यमंत्री जी ने और वरिष्ठ पूर्व मंत्री जी ने कहा है, परंतु सारी प्रक्रिया नियमों के तहत ही चलती है. दूसरी जगह भी अगर कनेक्शन लेना है, तो अस्थायी कनेक्शन की प्रक्रिया है, आप अस्थायी कनेक्शन लें, उसके तहत किसान के लिये प्रावधान हैं और यहां भी प्रकरण नियम कायदे से ही चलेगा, नियम से हटकर कोई व्यवस्था नहीं होगी, परंतु किसी बात पर सदन ने कोई सुझाव दिया है, तो हम उस पर चर्चा करेंगे, इतना में आश्वस्त करता हूं.
अध्यक्ष महोदय - माननीय सदस्यों से मेरा अनुरोध है ये ध्यानाकर्षण था, ध्यानाकर्षण एक ही सदस्य का था, उसके बावजूद भी मैंने तीन-चार लोगों को अवसर दिया अगर सारे लोग इस पर बोलना चाहेंगे तो फिर ये ध्यानाकर्षण थोड़े ही रहेगा, मतलब एक सीमा को समझाना चाहिए न हमें. फिर संसदीय कार्यमंत्री जी ने भी इंटरप्ट किया, गोपाल जी ने भी कहा, राजेन्द्र कुमार सिंह जी भी कुछ कहना चाहते थे मैं समझता हूं पर्याप्त लोग बोल चुके हैं अब दोबार ध्यानाकर्षण लगाएंगे, दोबार भी उस पर चर्चा हो सकती है लेकिन एक बार तो समय सीमा हमें तय करनी पड़ेगी.
श्री सोहनलाल बाल्मीक – अध्यक्ष जी, 147 में चर्चा करवा लीजिए इसमें, हमारे सभी सदस्य आ जाएंगे उसमें.
1:26 बजे याचिकाओं की प्रस्तुति
अध्यक्ष महोदय – आज की कार्यसूची में उल्लेखित 1 से 81 तक याचिकाएं माननीय सदस्यों द्वारा प्रस्तुत की हुई मानी जाएंगी. (..व्यवधान)
1:27 बजे समितियों का निर्वाचन
1: 28 बजे अध्यक्षीय घोषणा
अध्यक्ष महोदय – आज की कार्यसूची में पुर:स्थापना हेतु सम्मिलित मध्यप्रदेश मोटरयान कराधान (संशोधन) विधेयक, 2025 एवं मध्यप्रदेश समाज के कमजोर वर्गों के लिए विधिक सहायता तथा विधिक सलाह (निरसन) विधेयक, 2025 के भारसाधक मंत्री अपरिहार्य कारणों से सदन में अनुपस्थित है तथा विधेयकों के लिए स्थायी आदेश क्रमांक 27 के अनुसार विशेष रूप से किसी अन्य मंत्री को अधिकृत भी नहीं किया गया है. अत: इन दोनों विधेयकों को कल की कार्यसूची में सम्मिलित किया जाएगा.
12:29 बजे शासकीय विधि विषयक कार्य
(1)मध्यप्रदेश महानगर क्षेत्र नियोजन एवं विकास विधेयक, 2025 (क्रमांक 12 सन् 2025) के पुर:स्थापन
(2)कारखाना (मध्यप्रदेश संशोधन) विधेयक, 2025 (क्रमांक 14 सन् 2025) के पुर:स्थापन
1.31 बजे
(3) दुकान तथा स्थापना (संशोधन) विधेयक, 2025 (क्रमांक 15 सन् 2025) का पुरःस्थापन
अध्यक्ष महोदय—मैं समझता हूं कि 1.30 हो गया है, शेष कार्यवाही भोजनावकाश के बाद. सदन की कार्यवाही अपराह्न 3.00 बजे तक के लिये स्थगित.
(1.31 बजे से अपराह्न 3.00 बजे तक अंतराल)
3.10 बजे विधानसभा पुन: समवेत् हुई.
{ अध्यक्ष महोदय (श्री नरेन्द्र सिंह तोमर) पीठासीन हुए }
(6) मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2025
(क्रमांक 6 सन् 2025)
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री इन्दर सिंह परमार) -- अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हॅूं कि मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2025 पर विचार किया जाय.
अध्यक्ष महोदय -- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ.
3.11 बजे स्वागत उल्लेख
श्री विष्णुदत्त शर्मा, पूर्व सांसद का दर्शकदीर्घा में स्वागत उल्लेख
अध्यक्ष महोदय -- आज दर्शकदीर्घा में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष, खजुराहो के सांसद श्री विष्णुदत्त शर्मा जी हम सबके मध्य हैं. सदन की ओर से उनका स्वागत है. (मेजों की थपथपाहट)
शासकीय विधि विषयक कार्य (क्रमश:)
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री इन्दर सिंह परमार) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, भारत के प्रतिष्ठित विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन का नाम सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय किये जाने का अवसर हम सबके लिए ऐतिहासिक क्षण है. हम सब जानते हैं कि विक्रम विश्वविद्यालय हमारा प्राचीन विश्वविद्यालय है क्योंकि यह विक्रम विश्वविद्यालय के नाम से था और सभी लोग जानते हैं कि इस विश्वविद्यालय का नाम सम्राट विक्रमादित्य के नाम से होना चाहिए, लेकिन लंबे समय से यह विक्रम विश्वविद्यालय के नाम से चलता रहा. यह वह क्षण है जब पूरे नाम से उस महापुरूष को पूर्ण सम्मान मिले, इस दृष्टि से सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय के नाम का यह प्रस्ताव है. मैं सदन से निवेदन करता हॅूं कि इसे पारित किया जाय.
श्री दिनेश जैन "बोस" (अनुपस्थित)
श्री भैरोसिंह "बापू" (अनुपस्थित)
डॉ.हिरालाल अलावा (मनावर) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने मुझे मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2025 पर बोलने का अवसर दिया. जिस विश्वविद्यालय का नाम विक्रम विश्वविद्यालय था, हम इस विधेयक के माध्यम से इस विश्वविद्यालय का नाम सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय करने जा रहे हैं. निश्चित ही हम प्राचीन भारत के गौरवशाली इतिहास को संजोने, संवारने का काम कर रहे हैं और इस प्राचीन भारत की परम्पराओं को भी हम पुनर्जीवित करने का काम इस संशोधन के माध्यम से नई पीढ़ी के युवाओं के बीच करने जा रहे हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, हम पिछले कई वर्षों से देख रहे हैं कि मध्यप्रदेश में विश्वविद्यालय के भीतर कुलसचिव से कुलगुरू किया गया. विश्वविद्यालयों के नाम बदल रहे हैं. लेकिन मध्यप्रदेश में विश्वविद्यालयों की हालात जस की तस है. आज अगर हम मध्यप्रदेश में विश्वविद्यालयों की स्थिति देखें, तो देश की जो टॉप-100 यूनिवर्सिटीज हैं, उसमें एक भी मध्यप्रदेश की यूनिवर्सिटीज का नाम नहीं है और यह दुख का विषय है कि हम इस गंभीर विषय पर हमारा सदन चिंतन, मंथन नहीं कर पा रहा है. हम मध्यप्रदेश के युवाओं को, वहां पर पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को यूनिवर्सिटी के भीतर या उनके भविष्य को लेकर हम चिंतन, मंथन नहीं कर पा रहे हैं. आज मध्यप्रदेश की यूनिवर्सिटीज में ज्यादातर यूनिवर्सिटीज एक्जाम समय पर नहीं ले पाती हैं. लेकिन जो शेड्यूल्स तैयार होता है, उस शेड्यूल के अनुसार छात्र-छात्राओं के एक्जाम नहीं होते हैं. छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति नहीं मिल पा रही है. पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 की छात्रवृत्ति अभी तक बच्चों को नहीं मिली है. छात्र-छात्राओं के रहने के लिए हॉस्ट्ल्स नहीं हैं.
अध्यक्ष महोदय, यूनिवर्सिटीज में प्रोफेसर्स के पद खाली पडे़ हैं. ज्यादातर यूनिवर्सिटीज अतिथि शिक्षकों के भरोसे पर चल रही हैं. अतिथि विद्वान हमेशा अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं लेकिन उनकी मांगों को भी पूरा नहीं किया जा रहा है. एसटी, एससी वर्ग के पद यूनिवर्सिटीज में खाली पडे़ हैं. केन्द्रीय शैक्षणिक संस्थान में शिक्षक संवर्ग में आरक्षण विधेयक 2019 में पास हुआ.
3.14 बजे सभापति (डॉ.राजेन्द्र पाण्डेय) पीठासीन हुए.
सभापति महोदय, उनके अनुसार विभाग को इकाई मानने की बजाय यूनिवर्सिटीज को इकाई माना जाये और सारे पद आरक्षण प्रक्रिया के तहत भरे जायें, ताकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछडे़ वर्ग के पदों को, जिसमें असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पद भरे जाने चाहिए. लेकिन केन्द्रीय शैक्षणिक (संशोधन) शिक्षक संवर्ग आरक्षण विधेयक, 2019 का पालन मध्यप्रदेश में नहीं किया जा रहा है और ज्यादातर यूनिवर्सिटीज में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछडे़ वर्गों के पद खाली पडे़ हैं. मैं आपको बताना चाहता हॅूं कि मध्यप्रदेश की यूनिवर्सिटीज में भ्रष्टाचार किस प्रकार है. मध्यप्रदेश में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर में हाल ही में बीएड अंतिम सेमेस्टर का रिजल्ट जारी हुआ. जिसमें 8 हजार 529 में से मात्र 3 हजार 27 विद्यार्थी, मतलब 35 परसेंट विद्यार्थी पास हुए. 5 हजार 195 विद्यार्थियों को एटीकेटी दिया गया और 274 छात्र फेल हो गए. जब मैंने छात्र-छात्राओं से बात की, तो उन्होंने कहा कि हमारी कापियों की सही तरीके से जांच नहीं होती है. हमें जान-बूझकर फेल किया जाता है और एटीकेटी मिलने के बाद वहां पर जो छात्र-छात्राएं पैसे दे रहे हैं, उन छात्र-छात्राओं को पास किया जा रहा है, तो यूनिवर्सिटीज के अंदर जो भ्रष्टाचार मौजूद है, इसकी प्रदेश स्तरीय कमेटी बनाकर जांच होनी चाहिए और छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ न्याय होना चाहिए.
एक और गंभीर मुद्दा यूजी और पीजी के छात्र-छात्राओं को स्कॉलरशिप नहीं मिल पा रही है. शैक्षणिक सत्र वर्ष 2024-25 के छात्र-छात्राओं को अभी तक स्कालरशिप नहीं मिली है. एक और महत्वपूर्ण सुझाव है कि मध्यप्रदेश में शिक्षा विभाग द्वारा राज्य शासन के अध्ययनरत् अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति विद्यार्थियों को पीएचडी शोध कार्य हेतु शोध छात्रवृत्ति प्रतिमाह 16000 रुपये दी जाती है, उसे बढ़ाकर कम से कम 30000 रुपये किया जाना चाहिए और जो अवधि 3 वर्ष के लिए है, उसे 5 वर्ष के लिए किया जाना चाहिए. मध्यप्रदेश में जैसा मैंने कहा है कि 2 सेंट्रल यूनिवर्सिटीज़ है, इसमें इंदिरा गांधी अमरकंटक यूनिवर्सिटी, दूसरा हरिशंकर गौर विश्वविद्यालय है. जो इंदिरा गांधी अमरकंटक यूनिवर्सिटी है, आदिवासियों के लिए उच्च शैक्षणिक संस्थाओं में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित किया गया है. जब वर्ष 2007-08 में यूनिवर्सिटी शुरू हुई थी, उस समय 80 से 90 प्रतिशत छात्र-छात्राएं उसमें अनुसूचित जनजाति वर्ग के होते थे, आज उनकी संख्या घटाकर 10 से 15 प्रतिशत कर दी गई है.
सभापति महोदय, मेरा आपके माध्यम से अनुरोध है कि अमरकंटक यूनिवर्सिटी जो आदिवासियों के उत्थान के लिए बनाई गई है, खासकर आदिवासी छात्र-छात्राओं को प्रोत्साहन देने के लिए बनाई गई है तो वहां पर कम से कम 50 प्रतिशत का आरक्षण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए प्रावधान किया जाना चाहिए. मैं आपको एक उदाहरण के माध्यम से बताना चाहता हूं कि बाबा साहब अम्बेडर विश्वविद्यालय लखनऊ, जो कि एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है, जहां पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. जबकि इंदिरा गांधी नेशनल यूनिवर्सिटी में अभी ऐसा कोई आरक्षण का प्रावधान नहीं है और इसके कारण वहां अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्र-छात्राएं प्रवेश नहीं ले पा रहे हैं तो मेरा अनुरोध है कि जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वर्ग के नाम से जो यूनिवर्सिटी बन रही हैं वहां पर आरक्षण का प्रावधान हो ताकि उस वर्ग के छात्र-छात्राएं ज्यादातर वहां पर पढ़ाई कर सकें और उच्च शिक्षा के लिए समाज और राष्ट्र की भलाई कर सकें, ऐसा मेरा सुझाव है. मैंने यूनिवर्सिटीज़ का एक प्रमुख मुद्दा स्कॉलरशिप का उठाया है. हमारे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वर्ग के हजारों छात्र-छात्राएं ऐसे हैं कि समय पर उनको छात्रवृत्ति नहीं मिल पा रही है. इसके कारण जो प्राइवेट यूनिवर्सिटी हैं उनको परीक्षा देने से रोक रही हैं. मेरा आपके माध्यम से हाथ जोड़कर अनुरोध है कि मध्यप्रदेश के छात्र-छात्राओं का भविष्य देखते हुए समय पर परीक्षा कराएं, जो परीक्षा पेपर लीक हो रहे हैं उसके ऊपर एक कानून मध्यप्रदेश में भी बनना चाहिए ताकि छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ न्याय हो. जो उनको स्कॉलरशिप समय पर नहीं मिल पा रही है, उन छात्र-छात्राओं को समय पर स्कॉलरशिप मिलना चाहिए. मैं आपके माध्यम से यही कहना चाहता हूं कि हमारे जो विश्वविद्यालय का नाम बदला गया है कि सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय किया जाय. मैं इस संशोधन का समर्थन करता हूं और भारत की परंपराशाली ऐतिहासिक गौरव को दोहराने का काम जो हम कर रहे हैं. मैं आपका धन्यवाद और आभार प्रकट करता हूं. सभापति महोदय, बहुत बहुत धन्यवाद.
श्री भगवानदास सबनानी (भोपाल दक्षिण-पश्चिम) - सभापति महोदय, माननीय उच्च शिक्षा मंत्री द्वारा जो संशोधन प्रस्ताव रखा गया है कि विक्रम विश्वविद्यालय का नाम सम्राट विक्रमादित्य के नाम से किया जाय. वास्तव मैं इसका समर्थन करता हूं और माननीय उच्च शिक्षा मंत्री जी को बहुत बधाई देता हूं कि ऐसे गौरवशाली इतिहास की परंपरा के साथ हम उज्जैन के इस विश्वविद्यालय का नाम सम्राट विक्रमादित्य के नाम से करने जा रहे हैं. 30 मार्च को विक्रम विश्वविद्यालय के 29वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर विश्वविद्यालय का नाम सम्राट विश्वविद्यालय किये जाने की घोषणा की गई थी. आज के इस गौरवशाली अवसर के हम सभी साक्षी हैं. मध्यप्रदेश का गौरव मध्यप्रदेश विक्रम विश्वविद्यालय प्राचीन विद्या भूमि उज्जैन में स्थित राज्य का एक प्रमुख विश्वविद्यालय है, जिसकी स्थापना 1 मार्च, 1957 को हुई थी, इसका नाम प्राचीन भारत के महान शासक सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर रखा गया है. जो उज्जैन से शासन करते थे. यह विश्वविद्यालय उज्जैन की समृद्ध सांस्कृतिक, शैक्षणिक और ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा है. इस विश्वविद्यालय का नाम विक्रम विश्वविद्यालय के स्थान पर परिवर्तित कर '' सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यलय'' किया जाना हमारी समृद्ध विरासत से जुड़ना है.
सभापति महोदय, उज्जैन ने प्राचीन भारत के शिक्षा परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अपने भाई बलराम एवं मित्र सुदामा के साथ गुरू सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की थी. सम्राट अशोक ने भी अपनी शिक्षा का एक बड़ा भाग उज्जैन में पूरा किया था. उज्जैन के महान सम्राट विक्रमादित्य ने संस्कृत साहित्य के स्वर्ण युग की आधारशिला रखी थी. इसके अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं.
उज्जैन मध्य भारत ही नहीं, सम्पूर्ण भारत का एक महत्वपूर्ण शैक्षिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नगर है. ऐसी मान्यता है कि भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त और वराहमिहिर जैसे अनेक गणितज्ञों और खगोलविदों ने उज्जैन को अपनी विद्या और कर्मभूमि बनाया है.
सभापति महोदय, निश्चित रूप से हम इतिहास से प्रेरणा लेकर के वर्तमान को ठीक करेंगे तो निश्चित रूप से भविष्य की आधारशिला रखी जायेगी और शिक्षा के क्षेत्र में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जी की सरकार और माननीय उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार जी, हम शिक्षा में क्या नवाचार कर सकते हैं. किस तरह से हम विश्वविद्याल परिसर को बेहतर करें. शिक्षा का वातावरण बेहतर हो और नाम के साथ हम जो बेहतर करना चाहते हैं, उसके लिये भी हम प्रेरणा देंगे, उन बच्चों को जो इस विश्वविद्यालय के माध्यम से शिक्षा अर्जित करके, इस देश का गौरव बढ़ायेंगे और निश्चित रूप से उनको यह प्रेरणा मिलती रहेगी कि हमने जिस महाविद्यालय में, विश्वविद्यालय में अध्ययन किया वह सम्राट विक्रमादित्य जी के नाम से था. इसलिये मैंने इस विश्वविद्यालय का नाम परिवर्तित करने के समर्थन में अपनी बात रखी है.
संसदीय कार्यमंत्री (श्री कैलाश विजयवर्गीय)- सभापति महोदय, सबनानी जी कि इच्छा थी कि एकाध यूनिवर्सिटी मध्यप्रदेश में झूलेलाल जी के नाम से भी हो. वह बोल नहीं पाये तो मैंने कहा कि मैं बोल देता हूं.
सभापति महोदय- माननीय संसदीय मंत्री जी, आपका अच्छा सुझाव है.
डॉ. रामकिशोर दोगने(हरदा)- माननीय सभापति महोदय, आपने विश्विद्यालय संशोधन विधेयक पर बोलने का मौका दिया उसके लिये धन्यवाद.
मैं बताना चाहता हूं कि सम्राट विक्रमादित्य जी, जो परमार वंश के थे तो मेरा यह निवेदन है कि इसमें थोड़ा सा और संशोधन करके. सम्राट विक्रमादित्य परमार विश्वविद्यालय होगा तो ज्यादा अच्छा रहेगा. इसमें उनका पूरा नाम आ जायेगा और उसमें पूरी चीजें आ जायेंगी. उनके साथ ही उनका भारतीय इतिहास में एक महान शासक थे, जिन्हें न्यायविर और उदारता के नाम से जाना जाता था. उनका जन्म 101 ईसा पूर्व उनका जन्म उज्जैन में हुआ था और उनके नाम से विक्रम चला रहा है तो निश्चित है उनका पूरा नाम लिखा जाये तो अच्छा रहेगा और उसके साथ ही मैं आपको बताना चाहता हूं कि विश्वविद्यालयों के नाम परिवर्तित तो हम करते हैं और परिवर्तन करते रहना चाहिये और इतिहास के साथ चलना चाहिये. पर इतिहास के साथ जो चल रहा है और शिक्षा की जो वर्तमान स्थितियां हैं उसका भी ध्यान रखना चाहिये.
सभापति महोदय, आज हम देखें कि हमारे कॉलेजों में प्रोफेसर हैं या नहीं. कॉलेज में पढ़ाने वाले नहीं हैं, बच्चे बहुत हैं. मैं मेरे क्षेत्र हरदा का ही बताऊं कि मेरे सरकारी कॉलेज में मॉडल कालेज आया हुआ था जो चार-पांच साल अब चालू हुआ है. इसके साथ ही कॉलेज में चार हजार बच्चे हैं. परंतु शिक्षक, प्रोफेसर हैं ही नहीं. पढ़ाने की व्यवस्था, बैठने की समस्या, यदि आप इन व्यवस्थाओं पर भी ध्यान देंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा क्योंकि हरदा कॉलेज में मुश्किल से एक एकड़ जमीन भी नहीं है. जहां पर चार हजार बच्चे पढ़ते हैं, वह एक छोटी सी बिल्डिंग है उसमें चलता है. अगर कॉलेज में पूरे के पूरे बच्चे आ जायें तो बैठने की व्यवस्था नहीं होती है. आप इस प्रकार की व्यवस्थाएं बढ़ायेंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा. इसके साथ ही मेरा निवेदन है कि पूरे मध्यप्रदेश में सभी कॉलेजों में ऐसी ही स्थितियां हैं तो उनमें भी सुधार हो जाये. यदि सुधार होगा तो निश्चित रूप से, क्योंकि शिक्षारूपी चाबी हर ताले में लगती है. आप किसी क्ष्ोत्र में भी जाना चाहें उस क्षेत्र में शिक्षा जरूरी होती है और शिक्षा से ही विकास दिखता है. यदि हम विकसित देशों की कल्पना करें तो वह शिक्षा से ही आगे बढ़ा हुआ है तो हमारे भारत में भी शिक्षा होगी तो निश्चित ही देश भी विकसित होगा और वह विकासशील कहलायेगा और हमारा समाज और आने वाली जनरेशन भी आगे बढ़ेगी और उनको भी अच्छा मौका मिलेगा.
सभापति महोदय, मेरा आपके माध्यम से मंत्री जी से निवेदन है कि शिक्षकों की कमी की पूर्ति करें और जहां कॉलेजों में जगह नहीं है, बिल्डिंगें नहीं है उसकी व्यवस्था करायें तो अच्छी शिक्षा होगी तो निश्चित रूप से अच्छे बच्चे निकलेंगे. अच्छे बच्चे निकलेंगे तो निश्चित ही हमारे मध्यप्रदेश का विकास भी होगा और देश का विकास भी होगा और देश के विकास में वह भागीदार भी बनेंगे. इसी भावना में आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. यदि उसके साथ सम्राट विक्रमादित्य परमार करेंगे तो ज्यादा अच्छा होगा. आपने बोलने का मौका दिया बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री सोहनलाल बाल्मीक-- सभापति जी, दिनेश जैन जी बाहर थे, आ गये हैं, इनका नाम पुकारा गया था, आपसे निवेदन है कि दिनेश जैन जी, दिनेश गुर्जर जी को पुकारा जाये.
सभापति महोदय-- बुला लेंगे. आ गये हैं. श्री दिनेश जैन जी.
श्री दिनेश जैन (बोस) (महिदपुर) -- सभापति महोदय, मुझे विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक के ऊपर बोलने का मौका दिया गया है, मैंने खुद ने पोस्ट ग्रेजुएशन किया है, लेकिन शिक्षा का स्तर आज जो हम देखते हैं और स्पेशली देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी, विक्रम यूनिवर्सिटी के अंदर जो छोटे छोटे कालेजेस हैं, जो ग्रामीण क्षेत्र में, जैसे महिदपुर तहसील में हैं, खाचरोद में हैं, नागदा में हैं. उनमें शिक्षा का स्तर इतना नीचा है. उदाहरण के तौर पर बहुत सारे बीएससी, बीकॉम, एमएसी किये हुए लड़कों से बात की. तो उनका सपना क्या होना चाहिये. इतनी बड़ी शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब मैं उनसे पूछता हूं कि आपकी क्या तैयारी है. तो बोलते हैं कि अग्निवीर में जाना है. वह बोलते हैं कि तहसीलदार बनना है. वह बोलते हैं कि कहीं क्लेरिकल जॉब मिल जायेगा, तो ठीक है. वह बोलते हैं कि पटवारी बनना है. प्रतियोगी परीक्षा फेस कर रहे हैं. तो मेरी यह सोच है कि अग्निवीर के अलावा सीडीएस भी है. मैं उनसे पूछता हूं कि कामन डिफेंस सर्विसेस में क्यों नहीं जाते हैं. आप सेना में अधिकारी क्यों नहीं बनते हैं. आप सीडीएस देंगे आफ्टर ग्रेजुएशन, तो आप लेफिटनेंट, सेकण्ड लेफ्टिनेंट से ब्रिगेडियर तक और जनरल तक जा सकते हैं. लेकिन आप केवल चार साल देश की सेवा करना चाहते हैं.तो शिक्षा का स्तर इतना गिरा हुआ है कि ग्रामीण सर्कल के अंदर अग्निवीर से ज्यादा बड़ी बात ही नहीं करते हैं. इसी तरीके से वह आईएएस का सपना तो सोचते ही नहीं हैं. केवल वह यह सोचते हैं कि कैसे भी करके हम पटवारी की परीक्षा पास कर लें, तो ऐसी शिक्षा में बदलाव लाना जरुरी है. जो उज्जैन की भी इसी श्रेणी में आ जायेगी. इन्दौर या महा नगर पालिका को छोड़ दिया जाये, तो केवल 20 प्रतिशत लोग ही अच्छे सपने देखते हैं.
श्री आशीष गोविन्द शर्मा-- दिनेश जी, मध्यप्रदेश की टॉपर ग्रामीण क्षेत्र से ही है बारहवी की.
श्री दिनेश जैन (बोस) -- एक दो से नहीं होता है, अधिकतर मेजोरिटी ऑफ केसेस में यही है कि ग्रामीण सर्कल में सपने ही बड़ा नहीं देखते हैं. अगर सेना की बात की जाये, तो वह अग्निवीर से ज्यादा सोचते ही नहीं हैं. नीचे के स्तर पर आ जायें, तो पटवारी से ज्यादा वह सोचते नहीं हैं. क्लेरिकल की वह बात करते हैं और जहां तक फैकल्टीज तो आपने बहुत सारी दे दीं, मेरे महिदपुर तहसील के अन्दर भी सभी साइंस की फैकल्टी है. आर्ट्स, कॉमर्स सब है. वहां पर केवल 48 लोगों का स्टॉफ, टेक्निकल, नॉन टेक्निकल, टीचिंग, नॉन टीचिंग. लेकिन वहां पर केवल 16 लोग पढ़ाते हैं. उसमें दोनों आते हैं. तो कहां पर लड़कों का भविष्य बनेगा और कहां हिन्दुस्तान का भविष्य बनेगा. तो इस खाई को मिटाना बहुत जरुरी है और उनके सपने ही नहीं देख सकते हैं वह. जहां तक स्पोर्ट्स की बात करुं. एक एक स्टेडिम सब दूर देने की बात की जा रही है.
सभापति महोदय-- थोड़ा संक्षिप्त कर लें दिनेश जी.
श्री दिनेश जैन (बोस) -- यह बोलना बहुत जरुरी है. क्रिकेट को हमारे यहां भगवान माना जाता है. लेकिन ग्रामीण सर्कल में ऐसे मैदान ही नहीं हैं. वे टेनिस बॉल से खेलते हैं. वह कैसे आईपीएल में और इंडिया की टीम में पार्टीसिपेट करेंगे. 80 प्रतिशत लोग टेनिस बॉल से खेलते हैं. उनका सपना है, ऐसी बहुत सारी प्रतिभाएं हैं और संभावनाएं हैं, चाहे शिक्षा के क्षेत्र में हों, चाहे स्पोर्ट्स के क्षेत्र में हों. ग्रामीण सर्कल में मारी जा रही हैं. उनमें प्रतिभाएं, संभावनाएं हैं. लेकिन उनको न अच्छी शिक्षा दे सकते हैं, न अच्छी स्पोर्ट्स फेसिलिटी दे सकते हैं. तो मेरा ऐसा मानना है कि अधिक से अधिक आपका बजट जो आये, वह शिक्षा के क्षेत्र में और स्पोर्ट्स के क्षेत्र में आये. अभी मैंने देखा कि 500-700 करोड़ रुपये से ज्यादा का प्रावधान ही नहीं था. ग्रामीण परिवेश में, शिक्षा एवं स्पोर्ट्स के ऊपर. इसी तरीके से अगर हम शिक्षा देंगे, तो हम जितनी भी बड़ी बड़ी बातें करते हैं, वह सब बेकार हैं. जब तक 80 प्रतिशत ग्रामीण सर्कल में रहने वाले बच्चों का भविष्य नहीं बनता है, तो अपन हिन्दुस्तान को विकसित राष्ट्र की ओर ले जा रहे हैं, वह सपना बहुत गलत है.
सभापति महोदय—श्री भैरो सिंह (बापू) जी आ गये हैं.
श्री भैरो सिंह (बापू) (सुसनेर) – सभापति महोदय, शिक्षा की हम बात करते हैं, तो आज जो ग्रामीण क्षेत्र की स्थिति है, हमारा क्षेत्र पूरा आगर जिला ही नहीं मालवा क्षेत्र में अधिकतर ग्रामीण क्षेत्र शिक्षा में सबसे ज्यादा पिछड़ा हुआ क्षेत्र है. मैं सरकार का ध्यान मेरी विधान सभा सुसनेर में व्याप्त एक गंभीर शैक्षणिक समस्या की ओर आकर्षित करना चाहूंगा.सुसनेर स्थित स्वामी विवेकानंद शासकीय महाविद्यालय में आज तक कोई भी स्नातकोत्तर(पोस्टग्रेजूएट) कक्षायें न एमए, न एमएससी, न एमकॉम की कोई भी कक्षायें संचालित नहीं होती है. आज पूरे क्षेत्र से सैकड़ों विद्यार्थी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के लिये आतुर हैं लेकिन सरकार की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं दे पा रहे हैं.
सभापति महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से अनुरोध करना चाहूंगा कि मेरे सुसनेर विधानसभा के अंदर बड़ा कॉलेज बनाया जाये जिससे कि वहां के बच्चे उच्च शिक्षा का अध्ययन कर सकें. अभी सुसनेर से 150 और 200 किलोमीटर की दूरी पर इंदौर और उज्जैन में उच्च शिक्षा के अध्यापन हेतु जाना पड़ता है. गरीब बच्चों के पास में पढ़ाई के लिये पैसा नहीं है, यह सिर्फ आर्थिक बोझ का मामला नहीं है बल्कि छात्राओं के लिये सुरक्षा और उच्च शिक्षा में कठिनाई का भी मामला है. गरीब परिवारों के लिये उच्च शिक्षा का अध्ययन कराना बेहद मुश्किल है. कई होन हार विद्यार्थियों के लिये तो उच्च शिक्षा को बीच में छोड़ने का ये समस्यायें कारण बन जाती है. मेरा मंत्री जी से आग्रह है कि सुसनेर महाविद्यालय में तत्काल प्रभाव से एमए, एमएससी, एमकाम, जैसी पीजी की कक्षायें शुरू की जायें. उनके लिये आवश्यकतानुसार संसाधनों और फैकल्टी की व्यवस्था की जाये. मेरा आग्रह है कि इस विषय को केवल चर्चा तक सीमित न रखा जावे इससे आने वाले कल के भविष्य और हमारे युवाओं के शिक्षा के अवसर को जोड़कर के देखा जावे. मैं सभापति जी के माध्यम से माननीय मंत्री जी से यही निवेदन करूंगा कि जो अशिक्षा का कलंक हमारा ग्रामीण क्षेत्र झेल रहा है अगर आपने ऐसी व्यवस्था आगर जिले में और सुसनेर विधानसभा में कर दी तो कम से कम हमारे ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर हो, इंजीनियर हो इनको उसकी शिक्षा मिलेगी, वे आगे बढ़ सकेंगे. माननीय सभापति महोदय, आपने मुझे इस महत्वपूर्ण विषय पर अपनी बात रखने का अवसर प्रदान किये उसके लिये आपको बहुत बहुत धन्यवाद.
डॉ.राजेन्द्र कुमार सिंह (अमरपाटन) माननीय सभापति महोदय, आपने मुझे इस विषय पर बोलने का अवसर दिया उसके लिये मैं आपको धन्यवाद ज्ञापित करता हूं. मैं मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक 2025 का तहे दिल से समर्थन करता हूं. सभापति महोदय, विक्रम विश्वविद्यालय का नाम जैसा कि प्रस्तावित है. सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय, उज्जैन करने का प्रस्ताव है. इस विश्वविद्यालय से मैं भावनात्मक रूप से जुड़ा रहा, कई ऐसे विषय भी है. मेरी जो डिग्री है इंजीनियरिंग की वह भी विक्रम विश्वविद्यालय की ही है. बाद में एमए मैने भोपाल से किया लेकिन पहली मेरी डिग्री विक्रम विश्वविद्यलाय की है. दूसरा पहलू इसका यह भी है कि विक्रम विश्वविद्यालय की हॉकी की टीम बड़ी मशहूर होती थी. सभापति जी आपको भी ज्ञात होगा कि इस विश्वविद्यालय का कार्य क्षेत्र एक जमाने में लगभग एक तिहाई मध्यप्रदेश में हुआ करता था. मेरा भी सिलेक्शन विश्वविद्यालय की टीम में हुआ था और कंबाइंड यूनिवर्सिटी के माध्यम से हम लोग बाम्बे में खेलने के लिये गये थे, टूर्नामेंट था. उप विजेता रहे, जीत तो नहीं पाये लेकिन मुझे वह भी सौभाग्य मिला.
सभापति महोदय तीसरा ऐसा सुखद संयोग है कि हमारे ताऊ जी डॉ.शिवमंगल जी सुमन इस विश्वविद्यालक के दो बार कुलपति रहे. तो आने जाने का भी वहां पर सिलसिला था. भारत में प्राचीन काल में भी उच्च शिक्षा के अनेकों केन्द्र थे जहां पर न सिर्फ भारत के विद्यार्थी लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन, तिब्बत, श्रीलंका और अन्य देशों से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिये लोग यहां आया करते थे. चाहे नालंदा हो, चाहे तक्षशिला हो, चाहे विक्रमशिला हो, इस तरह के लगभग 10 केन्द्र थे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जहां पर बेहतरीन शिक्षा प्रदान की जाती थी लेकिन गुणवत्ता एक महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि अगर हम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं देंगे तो हमारे जो छात्र-छात्राएं हैं डिग्री का एक कागज का टुकड़ा लेकर घूमेंगे और उनको नौकरी कौन सी मिलेगी तृतीय श्रेणी, द्वितीय श्रेणी और बमुश्किल प्रथम श्रेणी के कुछ लोग अपवाद हैं अपने यहां के कहीं आईएएस ऑफीसर, आईपीएस ऑफीसर्स भी हुए हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है. हमारी जो शिक्षा व्यवस्था है युनिवर्सिटीज़ और महाविद्यालयों की, यह युनिवर्सिटीज़ ही परीक्षा लेती हैं. परीक्षा एक ओरिएंटेड है बाकी कोई और गुणात्मक विषयवस्तु जिससे ओवरऑल डेवलपमेंट एक छात्र का बनता हो उसका अभाव सर्वथा देखने को मिलता है. हमारे यहां देश में रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर.एंड डी. जो एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है, जिससे हम विज्ञान और टेक्नालॉजी का लाभ लेकर सामंजस्य बैठाकर अपने देश को आगे ले जाते हैं. दूसरे देशों में यूनाइटेड नेशंस ऑफ अमेरिका एक देश का मैं उदाहरण दे देता हूं. वहां पर जीडीपी का 5 फीसदी और उनकी कितनी बड़ी जीडीपी है, सिर्फ रिसर्च एंड डेवलपमेंट में जाता है और हमारे यहां रिसर्च एंड डेवलपमेंट में बमुश्किल .5 फीसदी, यह बहुत बड़ी कहानी कहता है और व्यवस्था भी देखिए सरकार कम करती है. वहां वह विश्वविद्यालयों और जो बड़े महाविद्यालय हैं उनके माध्यम से उनको फंड करती है, कराती है और रिसर्च वहां पर हुआ करता है. जब विश्वविद्यालय में रिसर्च होगा तो निश्चित ही जब वह छात्र पढ़कर निकलेंगे तो मैं समझता हूं उनका एक ग्रेड ही अलग होगा. यह आज जरूरत है कि रिसर्च एंड डेवलपमेंट की दिशा में भी हम जाएं. हमारे यहां 7 शासकीय विश्वविद्यालय हैं. अभी हालत यह है कि हमारे शहडोल में जो पंडित शम्भूनाथ जी शुक्ल के नाम से विश्वविद्यालय बनाया गया वह एक कॉलेज था, उसमें बोर्ड पॉलिश का हटाकर विश्वविद्यालय का बोर्ड लगा दिया गया और उसके बाद उसमें कोई प्रगति नहीं हुई. कोई काम नहीं हुआ. यह प्रतीकात्मक चीजें अगर हम करेंगे तो कैसे काम चलेगा. हमारे ही क्षेत्र में मैंने माननीय शिक्षा मंत्री जी का ध्यान आकृष्ट किया था उन्होंने बड़ी सहानुभूतिपूर्वक सुना भी, रामनगर महाविद्यालय है जहां पर अधिकांश डूब क्षेत्र से, बाणसागर बांध से डूबे हुए हजारों हजार लोगों के परिवार निवास करते हैं. लगभग आठ सौ-साढ़े आठ सौ विद्यार्थी हैं और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वहां पर एक शिक्षक और मैं समझता हूं कि 4-5 अतिथि विद्वान, अब वहां क्या पढ़ाई होती होगी. यही कहानी पूरे मध्यप्रदेश की है. हमारा देश भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अगर गणना होती है कि विश्वविद्यालय कौन आगे है एक सूची बनती है, तो 100 में हम समझते हैं कोई स्थान किसी भी विश्वविद्यालय का नहीं है. डेढ़ सौ में संभवत: आईएएम इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद, आईआईटी चैन्नई. इसके अलावा तो कोई स्थान दिखता ही नहीं है. आज आवश्यक है कि हम इनमें गुणात्मक सुधार करें. बेहतर शिक्षा मिले ताकि सिर्फ द्वितीय, तृतीय श्रेणी के कर्मचारी ही न मिलें. बहुत छोटा विषय है कि सिर्फ नाम बदलना है और मैं समझ रहा हूँ. लेकिन माननीय सभपाति महोदय, इसकी विषयवस्तु कितनी विशाल है. मैं एक निजी विश्वविद्यालय का प्रतिवेदन कल पढ़ रहा था. मैं उसका नाम नहीं लूंगा. उसमें यह दिया हुआ था कि पिछले 5 वर्षों में वहां से पास किए हुए कितने विद्यार्थी हैं जिनको नौकरियां लगी हैं. प्रतिवेदन में कॉलम्स बने हुए थे. मैं आखिरी कॉलम देख रहा था क्योंकि मुझे लगा कि इसी में सार होगा. उस कॉलम में जिला न्यायाधीश और बड़े बड़े पद थे. कम से कम 8-10 जिला न्यायाधीश थे तो गर्व से मेरा थोड़ा सीना फूला. मैंने कहा यह तो बहुत अच्छी संस्था है. फिर बाजू का कॉलम मैंने देखा तो उसमें लिखा था फलां-फलां न्यायाधीश के कार्यालय में क्लर्क तो यह हालत है. प्रायवेट इंस्टीट्यूशंस की हालत बेहद खराब है. हम प्रायवेट यूनिवर्सिटीज को लगातार मान्यता देते जाते हैं लगभग 24-25 हो गई होंगी. सुनते हैं, पढ़ते हैं सर्वविदित हैं कि जब यह MAC (Modular Arithmetic Course) की ग्रेडिंग के लिए आते हैं या कोई और यूजीसी कमेटी आती हैं तो वहां पर दूसरे कॉलेजों के जो ऑलरेडी काम कर रहे हैं उनको ड्रेस पहनाकर खड़ा कर दिया जाता है.
सभापति महोदय, फैकल्टीज की भी क्या स्थिति है. जब मोहन यादव जी मुख्यमंत्री बने तो दिनांक 13.12.2023 को पहली कैबिनेट की बैठक हुई थी. उसमें घोषणा की गई थी. यह केन्द्र की योजना थी. प्रधानमंत्री जी की योजना थी. जो 55 महाविद्यालय हैं जो जिला मुख्यालय पर हैं उनको पीएम कॉलेजेज ऑफ एक्सीलेंस बनाया जाय. घोषणा हुई, कैबिनेट ने निर्णय लिया. 13 और जो कि स्वशासी महाविद्यालय थे उनको भी पीएम एक्सीलेंस की श्रेणी में रखा गया.
सभापति महोदय -- अब आप कृपया समाप्त करें. वैसे आपके सारे विषय आ गए हैं. आप तो विद्वान हैं, अनुभवी हैं.
डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह -- सभापति महोदय, 14 जुलाई, 2024 को माननीय मुख्यमंत्री जी और अमित शाह जी जो गृह मंत्री हैं उन्होंने इंदौर से घोषणा की थी. इसमें 1800 शैक्षणिक संवर्ग के पद स्वीकृत हुए थे और अशैक्षणिक संवर्ग के 381 पद स्वीकृत हुए थे. विभाग ने निर्णय ले लिया लेकिन फायनेंस डिपार्टमेंट में आज भी वह फाइल लंबित है. उसका निर्णय नहीं हो सका है. यह बड़ा भारी प्रश्न चिह्न हमारी व्यवस्था पर उठाता है. हमारी निर्णय लेने की क्षमता पर उठाता है. इसको देखना आवश्यक है.
सभापति महोदय, इस विधेयक का मैं समर्थन करता हूँ मैं चाहूंगा कि सर्वसम्मति से इस सदन में इसको पास किया जाए. यह विधेयक बने. सम्राट विक्रमादित्य प्रतापी सम्राट तो थे ही इसमें कोई दो राय नहीं है. वे न्याय के भी अग्रदूत थे. हमने तो विक्रम बेताल की कहानी और सिंघासन बत्तीसी की कहानी पढ़ी है. यह बाबा महांकाल की नगरी भी है. यह बड़ा अच्छा संयोग है. मैं तहेदिल से इसका समर्थन करता हूँ. इसका नाम सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय के रुप में जाना जाए. आपने बोलने का अवसर दिया उसके लिए धन्यवाद. कई बार आपने टोका फिर भी मैं बोला उस धृष्टता के लिए क्षमा प्रार्थी भी हूँ. श्री महेश परमार (तराना)-- माननीय सभापति महोदय, मैं, मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक 2025 पर बोलने के लिए आपसे अनुमति चाहता हूं. सभापति महोदय, मैं माननीय मुख्यमंत्री जी एवं उच्च शिक्षा मंत्री जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं. जिस विश्वविद्यालय ने मुझे पहचान दी, मैं जो भी हूं विक्रम विश्वविद्यालय और माधव महाविद्यालय के कारण हूं. मैं और आदरणीय मुख्यमंत्री जी हम दोनों बहुत सौभाग्यशाली हैं कि हम उस विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं इसलिए आदरणीय उच्च शिक्षा मंत्री जी आपका बहुत-बहुत आभार.
सभापति महोदय, भगवान महाकाल स्वयंभू वहां अनादिकाल से विराजमान हैं. 84 महादेव वहां विराजमान हैं. माता हरसिद्धि, मां क्षिप्रा, भगवान मंगलनाथ, अंगारेश्वर, चिंतामन गणेश विश्व की ऐतिहासिक, अति प्राचीनतम नगरी उज्जयनी निश्चित रूप से अपनी समृद्ध संस्कृति और धार्मिक परम्पराओं के लिए जाना जाता है. यह शिक्षा का प्राचीन केन्द्र भी रहा है. गुरु शिष्य परंपरा, गुरु सांदीपनी और हमारे सबके प्रभु श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली है. निश्चित रूप से आजादी के बाद जब मध्य भारत बना तो विश्वविद्यालय के लिए उज्जैन का चयन हुआ. इस विश्वविद्यालय के लिए सबसे पहले 1 मार्च, 1957 को हमारे बड़नगर के रणछोड़दास जी ने इसके लिए जमीन दान की और इसकी आधरशिला हमारे देश के तात्कालिक गृह मंत्री आदरणीय गोविन्द वल्लभ पंत जी ने रखी.
सभापति महोदय, आप भी हमारे उज्जैन विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं यह भी हमारे लिए बड़े सौभाग्य की बात है. मैं सौभाग्यशाली हूं कि भोपाल मध्यप्रदेश की राजधानी और इंदौर आर्थिक राजधानी है. वहां विश्वविद्यालय नहीं थे जब उज्जैन का विश्वविद्यालय था तो पूरे मध्यभारत का विश्वविद्यालय उज्जैन था. अलग-अलग विषय से पढ़कर पूरे विश्व में चाहे राजनीतिक क्षेत्र हो, सामाजिक क्षेत्र हो, धार्मिक क्षेत्र हो वह हर क्षेत्र में वहां के छात्रों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है. महान सम्राट विक्रमादित्य पूर्व में भी उनके नाम पर ही इस विश्वविद्यालय का नाम था. जैसा कि आदरणीय राजेन्द्र सिंह जी ने कहा कि महान कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी जब कुलपति थे तो मैं उस विश्वविद्यालय का छात्र था.
सभापति महोदय, विक्रमादित्य जी की कथा है कि वह उज्जैन के पहले शासक थे. हमने सुना है कि इन्द्र देव भी न्याय के लिए उनसे परामर्श लेते थे. हमारे विश्वविद्यालय का नाम ऐसे महान सम्राट के नाम पर रखा जाना मेरे लिए बहुत ही गौरव और सौभाग्य की बात है. महान सम्राट विक्रमादित्य के नाम से केलेण्डर की शुरुआत हुई. विक्रमादित्य जी अपनी प्रजा के प्रति बहुत उदार थे. अपने राज्य का आधा हिस्सा वे अपनी प्रजा में बांट देते थे. यह निश्चित रूप से हम सभी के लिए सौभाग्य की बात है. महान सम्राट विक्रमादित्य जी के नवरत्न थे और उन नवरत्नो में वराहमिहिर जी मेरी विधान सभा क्षेत्र के महान ज्योतिष और विश्व के सबसे बड़े गणितज्ञ थे. यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि उन महान सम्राट के नाम से विक्रम विश्वविद्यालय का नाम रखा जा रहा है.
श्री कैलाश विजयवर्गीय-- सभापति महोदय, महेश जी आप उज्जैन के दसवे रत्न हैं. (हंसी)
श्री महेश परमार-- आपकी कृपा बनी रहे. भगवान महाकाल का सेवक हूं अवसर मिलेगा तो आपके आशीर्वाद से, सदन के वरिष्ठों के आशीर्वाद से वह भी साबित करेंगे.
सभापति महोदय- अब आप समाप्त करके सहयोग करें.
श्री महेश परमार- सभापति महोदय, आज परमार जी एवं मुख्यमंत्री जी के लिए कुछ अच्छा कहने का दिल कर रहा है, तो थोड़ा बोल लेने दीजिये. आज मैं किसी प्रकार की टीका-टिप्पणी भी नहीं कर रहा हूं. यह उज्जैन के गौरव और हमारे विश्वविद्यालय की बात है. आज माननीय की भी अनुमति है, क्योंकि वे भी इस विक्रम विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि हमारे आदरणीय मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव जी से लेकर हमारे पूर्व मुख्यमंत्री जो कहीं और से पढ़कर आए हैं, मंदसौर, नीमच, रतलाम, शाजापुर, इंदौर, झाबुआ, खण्डवा, बुरहानपुर के जितने भी राजनेता हैं या अलग-अलग क्षेत्रों में योगदान देने वाले उस विश्वविद्यालय के जितने छात्र हैं, उन्होंने पूरे विश्व में, भारत में उस विश्वविद्यालय का गौरव बढ़ाया है.
सभापति महोदय, हमने सिंहासन बत्तीसी के विषय में भी सुना है. सम्राट विक्रमादित्य जी के विषय में हमने पढ़ा-सुना है, निश्चित रूप से मैं इस विधेयक का समर्थन करता हूं, अपनी विधान सभा तराना और विक्रम विश्वविद्यालय के पूरे परिक्षेत्र की ओर से, आदरणीय उच्च शिक्षा मंत्री जी एवं मुख्यमंत्री जी का धन्यवाद और आभार व्यक्त करता हूं. वर्ष 1957 से लेकर आज तक वहां के जो हजारों-लाखों छात्र हैं, जो पूरे विश्व और देश में हैं, उन सभी की ओर से कहना चाहूंगा कि आपने हमारे विक्रम विश्वविद्यालय का नाम, सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय किया, इसके लिए आपका आभार.
सभापति महोदय, इस विश्वविद्यालय में समय-समय पर दीक्षांत समारोह में पंडित जवाहर लाल नेहरू जी, सर्वपल्ली राधाकृष्ण जी, कालूलाल मिश्रा जी, पंडित द्वारका मिश्र जी, पंडित कुंजीलाल दुबे जी, बाबू जगजीवन राम जी, श्रीमती इंदिरा गांधी जी, श्रीमती महादेवी वर्मा जी एवं वर्तमान तथा कई पूर्व राष्ट्रपति, राज्यपाल सभी उपस्थित रहे हैं. ऐसा हमारे विश्वविद्यालय का गौरवशाली इतिहास है. मैं, पुन: इसके लिए धन्यवाद देता हूं और उज्जैन और विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र होने के नाते आपको बहुत-बहुत आभार.
श्री जयवर्द्धन सिंह (राघोगढ़)- सभापति महोदय, मैं, मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2025 (क्रमांक 6 सन् 2025) के संबंध में बोलने के लिए खड़ा हुआ हूं. जैसा कि हमारे पूर्व वक्ताओं ने बताया कि इसमें सिर्फ नाम का संशोधन किया गया है, इसे विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय, में नाम परिवर्तन हुआ है. हम सभी इसका समर्थन करते हैं और हमें विश्वास है कि जिस प्रकार से नाम में परिवर्तन हुआ है, उसी प्रकार से आने वाले समय में और शायद मंत्री जी के भाषण में भी कुछ नई घोषणायें, उस विश्वविद्यालय के लिए, वहां के छात्रों के लिए, बेहतर शिक्षा और शोध के लिए, कुछ घोषणायें आज आपके द्वारा की जायेंगी.
सभापति महोदय, इस विधेयक के संबंध में हमें सदन में जो लिखित जानकारी उपलब्ध करवाई गई है, इसमें मेरी एक आपत्ति है कि द्वितीय पृष्ठ में उपबंध जो जानकारी दी गई है, उसमें 7 विश्वविद्यालयों के नाम दिये गए हैं, लेकिन मुख्यमंत्री जी द्वारा क्रांतिवीर तात्याटोपे विश्वविद्यालय, गुना का नाम इसमें नहीं लिखा गया है, जबकि पिछले सत्र में माननीय राज्यपाल महोदय के अभिभाषण में, मुख्यमंत्री जी द्वारा उल्लेख किया गया था कि उन्होंने गुना जिले को एक बड़ी सौगात दी है. जैसा कि अभी हमारे वरिष्ठ नेता डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह जी शहडोल विश्वविद्यालय के लिए कह रहे थे, वही स्थिति गुना में भी है. वहां विश्वविद्यालय की घोषणा हो चुकी है, गुना, अशोक नगर, शिवपुरी के सभी कॉलेज, वे भी अब नए विश्वविद्यालय से लिंक हो चुके हैं. लेकिन न तो कोई नई बिल्डिंग का निर्माण हुआ है, अब भी पुराने परिसर में संचालन किया जा रहा है और हमें ऐसा दिखता है कि यह जो सरकार की घोषणाएं हैं, यह केवल वहीं तक सीमित रहती हैं. जबकि सरकार का दायित्व रहता है, जिम्मेदारी रहती है कि घोषणा के साथ-साथ उस विश्वविद्यालय में शिक्षा का स्तर बेहतर हो, हर विद्यार्थी जो 12 वीं के बाद उच्च शिक्षा के लिए यूनिवर्सिटी में प्रवेश करता है, तो उनको उस स्तर की शिक्षा भी मिलनी चाहिए. लेकिन यह बहुत अफसोस की बात है कि जिस यूनिवर्सिटी की घोषणा माननीय सीएम साहब ने की थी, उसका कहीं उल्लेख ही नहीं किया गया है, इस विधेयक में यह मेरी आपत्ति है, तो मैं माननीय मंत्री जी से निवेदन करूँगा कि उनके वक्तव्य में इसका स्पष्टीकरण दें.
सभापति महोदय, क्रांतिवीर तात्या टोपे विश्वविद्यालय के संबंध में सरकार की क्या नीतियां हैं ? क्योंकि यह नई यूनिवर्सिटी है, तो इस संबंध में सरकार की क्या योजना है ? इस यूनिवर्सिटी के अंतर्गत कौन-कौन से नये पाठ्यक्रम प्रारंभ किये जायेंगे ? नई यूनिवर्सिटी के कितने क्षेत्रफल में उसके कैम्पस का निर्माण किया जायेगा और कितने विद्यार्थियों की यहां अंत तक वृद्धि होगी ? सभापति महोदय, मैं चाहता हूँ कि माननीय मंत्री जी, इन सब प्रश्नों का भी उनके संबोधन में उत्तर दें, वैसे तो यह विषय अलग है. लेकिन क्योंकि यह त्रुटि विधेयक में आई है, तो मैं चाहता हूँ कि इसका स्पष्टीकरण माननीय मंत्री जी के द्वारा दिया जाये. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.
सभापति महोदय - बहुत-बहुत धन्यवाद, जयवर्द्धन सिंह जी. श्री दिनेश गुर्जर जी.
श्री दिनेश गुर्जर (मुरैना) - अनुपस्थित.
श्री फूलसिंह बरैया (भाण्डेर) - माननीय सभापति महोदय, मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2025 जिसमें विक्रम विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय रखा जाना है, इसका मैं समर्थन करता हूँ. सभापति महोदय, इसमें खास बात यह है कि सरकार को यह ज्ञान वर्ष 2025 में मिला है, यह तो काफी पहले की चर्चा है. अब यह ज्ञान मिलता ही जा रहा है तो अगला भी एक ज्ञान है, उसको भी शामिल कर लिया जाये. सभापति महोदय, आप माननीय मंत्री महोदय को निर्देशित करें किे जब शिक्षा की बात आती है, शिक्षा की जहां से चर्चा होती है तो शिक्षा इस देश में 6,743 जातियों को महात्मा ज्योतिबा फुले ने शुरू की थी और यह काम बाबा साहेब अम्बेडकर ने पूरा किया था. यह भी एक चर्चा माननीय मंत्री महोदय अपने भाषण में करें, जब यह एक ऐतिहासिक तथ्य आज आपके संज्ञान में आया है, तो यह भी आना चाहिए और इसकी भी चर्चा बड़े पैमाने पर होनी चाहिए. यह विषय करोड़ों नौजवानों के भविष्य से जुड़ा हुआ है. प्रत्येक विश्वविद्यालय जहां भी हम चर्चा करते हैं, हम देखते हैं, हम वहां जाते हैं, उसमें कुछ अनियमितताएं भी मिलती हैं.
सभापति महोदय, इनमें कुछ समितियां होती हैं. हम लोग किसी भी विश्वविद्यालय में जाएं तो उसको देखेंगे. मैं इसमें दो समिति का जिक्र कर रहा हूँ, जिसमें एक समिति क्रय समिति होती है और क्रय समिति भी दो प्रकार की होती है- एक सामान्य क्रय समिति एवं एक तकनीकी क्रय समिति होती है, तो सामान्य जो क्रय समिति है, उसमें एक बार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं ओ.बी.सी. के भी सदस्य इसमें रखे जाएं, अगर न भी रखे जाएं तो चलेगा. लेकिन तकनीकी क्रय समिति में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं ओ.बी.सी. के सदस्य इसमें रखे जाएं और उनकी फैकल्टी के भी लोग इसमें जोड़े जाएं. इसमें सामान्य क्रय समिति है, वहां सारा मटेरियल, पेन से लेकर के यूनिवर्सिटी की जो सारी जरूरत की चीजें हैं, वह क्रय करती है और क्रय की हुई वस्तुओं का वेरिफिकेशन अगर करेगी तो यह तकनीकी क्रय समिति करती है. तकनीकी क्रय समिति सारा वेरिफिकेशन करेगी तो इसमें निश्चित रूप से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को शामिल करना चाहिए. मेरा अनुरोध है. इसके अलावा दूसरी समिति है, सिलेबस समिति, इसमें कोर्स तय किए जाते हैं. इस सिलेबस समिति में निश्चित रूप से अगर वहां पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के सदस्य नहीं हैं तो कुछ ऐसे भी सिलेबस होते हैं जो सारी जनता के लिए बनाए जाते हैं. जब उनके सदस्य अगर सिलेबस समिति में नहीं हैं तो सिलेबस भी उनके अनुरूप या वे पढ़ने में सहज रहें, वह उसमें शामिल नहीं हो पाते. इसलिए सभापति महोदय, आपके माध्यम से मैं मंत्री महोदय से कहना चाहता हूँ कि इन बातों का ध्यान रखें और इन समितियों में निश्चित रूप से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के सदस्य भी शामिल किए जाएं, जिससे शिक्षा, जिस पर सबका अधिकार है, वह सभी के घर पहुँचनी चाहिए. ये विषय पूरा हो जाएगा. यही मैं आग्रह करना चाहता था. धन्यवाद.
सभापति महोदय -- बहुत-बहुत धन्यवाद बरैया जी, श्री अरूण भीमावद जी.
संसदीय कार्य मंत्री (श्री कैलाश विजयवर्गीय) -- सभापति महोदय, मेरा एक निवेदन है कि विधेयक बहुत छोटा और बहुत सरल है. उस पर जो चर्चा हो रही है, तो ऐसे विषयों पर हो रही है जो इस विधेयक का हिस्सा भी नहीं है. सभापति महोदय, विषयवस्तु पर चर्चा होगी तो ज्यादा अच्छा होगा. एकदम इसके बाहर चर्चा हो रही है. विधान सभा का समय भी खराब हो रहा है. ये चर्चा तो हम बाद में किसी विषय पर कर सकते हैं, पर इसमें संशोधन विधेयक के आसपास ही चर्चा होगी तो ज्यादा उचित होगा.
सभापति महोदय -- मेरा माननीय सदस्यों से आग्रह है कि समय की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए विषयानुकूल अपना प्रस्तुतिकरण करें.
श्री अरूण भीमावद (शाजापुर) -- माननीय सभापति महोदय, उच्च शिक्षा मंत्री माननीय श्री इन्दर सिंह परमार जी द्वारा प्रस्तुत मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2025 (क्रमांक 6 सन् 2025) के पक्ष में बोलने के लिए जो मुझे अवसर दिया गया है, इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ.
माननीय सभापति महोदय, जिस विश्वविद्यालय की चर्चा हो रही है, निश्चित रूप से आज का दिन ऐतिहासिक है क्योंकि 1 मार्च, 1957 को इस विश्वविद्यालय की जो स्थापना हुई है, उसका नाम उस समय सुप्रसिद्ध शासक विक्रमादित्य के नाम पर विक्रम विश्वविद्यालय रखा गया था. लेकिन सभापति महोदय, विक्रम नाम से यह आभास भी नहीं होता था कि यह नाम सम्राट विक्रमादित्य के नाम से है. इस बात पर विशेष ध्यान देते हुए मध्यप्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री, क्योंकि वे उज्जैन के ही निवासी हैं और उसी विश्वविद्यालय से उन्होंने छात्र राजनीति की है. उन्होंने 29वें दीक्षान्त समारोह में इसके नाम में संशोधन कर सम्राट विक्रम विश्वविद्यालय नाम रखने की घोषणा की थी. इसी को अमल में लाने के लिए आज यह विधेयक सदन में लाया गया है. मैं इस अवसर पर माननीय मंत्री जी आदरणीय इन्दर सिंह परमार जी को धन्यवाद देना चाहूँगा कि उन्होंने जिस प्रकार से यह विधेयक प्रस्तुत किया है. बरैया जी कह रहे थे कि बहुत पहले यह विधेयक लाना चाहिए था, लेकिन जब घोषणा हुई, उसके बाद आपने बहुत तीव्र गति से इस विधेयक को सदन में लाए, इसके लिए मैं आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ.
माननीय सभापति महोदय, सम्राट विक्रमादित्य ने नया विक्रम संवत प्रारंभ किया था, जो आज विक्रम संवत के नाम से प्रचलन में है. भारत के प्रतिष्ठित विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन का नाम सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय किए जाने का अवसर हम सबके लिए ऐतिहासिक क्षण है क्योंकि पुराण, इतिहास तथा साहित्य के ग्रंथों में उज्जैनी के गौरवशाली अतीत तथा धार्मिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक महत्व का विभिन्न रूपों में अनेक बार गरिमापूर्ण उल्लेख हुआ है.
कालगणना के लिये उज्जैन के समय को मानक माना जाता था. काल चक्र के प्रवर्तक भगवान महाकाल से अनादिकाल से इस नगरी में प्रतिष्ठित हैं. श्री महाकाल महालोक के लोकार्पण के पश्चात् तो उज्जैन की कीर्ति देश के साथ विदेशों में भी फैल रही है. मैं इस अवसर पर मंत्री जी को इस बात के लिये भी धन्यवाद दूंगा क्योंकि अभी सदन की अध्यक्षीय दीर्घा में भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा जी जब संगठन मंत्री के रूप में उज्जैन आए थे और उनकी भी शिक्षा विक्रम विश्वविद्यालय में हुई है. मंत्री जी की भी शिक्षा वहीं हुई है. सदन में हम उज्जैन संभाग या इन्दौर संभाग जो मध्य भारत का एक अंग हुआ करता था उस समय के तत्कालीन चाहे विधायिका हो,कार्यपालिका हो चाहे न्यायपालिका हो इन क्षेत्रों में जिन्होंने उच्च स्थान प्राप्त किया है अधिकांश ने विक्रम विश्वविद्यालय में पढ़ाई करकर उच्च स्थान प्राप्त किया है और आज गौरव का दिन है कि आज सम्राट विक्रमादित्य के नाम परिवर्तित कर रखा जा रहा है मैं सर्वदा न्यायसंगत है मैं इसका समर्थन करता हूं. धन्यवाद.
श्री दिनेश गुर्जर(मुरैना) - माननीय सभापति महोदय, मुरैना जिला एक ऐतिहासिक जिला है मुरैना जिले में जो पी.जी. महाविद्यालय है उसमें प्रोफेसरों की कमी है और वहां एलएलएम की शिक्षा के लिये पर्याप्त संसाधन नहीं है. कालेज में उचित लाईब्रेरी,डिजिटल रिसोर्सेस और कोर्ट प्रेक्टिस जैसे संसाधनों की कमी है. वहां आधुनिक सुविधा उपलब्ध कराई जाए वहां ई लायब्रेरी की आवश्यक्ता है वह मुरैना महाविद्यालय में खोली जाए.आज हमको भी गर्व है कि सम्राट विक्रमादित्य गुर्जर वन से आते थे अब उनके नाम के आगे सम्राट लगाया उसके लिये मैं हृदय की गहराईयों से धन्यवाद देता हूं.
श्री उमंग सिंघार(नेता प्रतिपक्ष) - माननीय सभापति महोदय, माननीयसंसदीय मंत्री जी ने सदन के समय की बात कही. मैं उनको बधाई देता हूं कि समय का बड़ा ध्यान रखते हैं विषय से न भटकें आप सबको सीख देते रहते हैं बाकी आप समझ रहे हैं मैं क्या बोल रहा हूं
श्री कैलाश विजयवर्गीय - सभापति महोदय, इन्होंने जिस भाषा में बोला मुझे समझ में नहीं आया. मैं तो खाली हिन्दी समझता हूं.
श्री उमंग सिंघार - माननीय सभापति महोदय,मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक,2025,ठीक है राजा विक्रमादित्य के लिये तो हमारे साथियों ने कहा और मैं भी समर्थन करता हूं. निश्चित तौर से एक सामाजिक,सांस्कृतिक,शैक्षणिक उज्जैन का इतिहास रहा. यह कह सकते हैं कि विक्रमादित्य जी को एक आदर्श राजा,प्रजा के प्रति हमेशा न्याय की बात करने वाले. सिंहासन बत्तीसी की बात हुई,बेताल की बात हुई तो मैं समझता हूं कि छात्रों से भी भावना पूछनी चाहिये क्योंकि बेताल भी विक्रमादित्य से पूछता था जब विक्रमादित्य जी बोलते थे तभी बेताल उड़ता था. मुझे नहीं लगता है विक्रमादित्य रूपी जो छात्र हैं उज्जैन के उनसे बेताल ने पूछा होगा.
माननीय सभापति महोदय, निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री जी की घोषणा थी, उसके आधार पर प्रस्तुत किया गया है यह संशोधन, लेकिन इसके शैक्षणिक उद्देश्य क्या हैं यह इस बिल में नहीं दर्शाया गया है, सिर्फ नाम परिवर्तन से क्या परेशानियां होती हैं उस पर मेरे ख्याल से माननीय उच्च शिक्षा मंत्री जी ने ध्यान नहीं दिया. मैं समझता हूं कि इसकी एक पूरी कार्ययोजना बननी थी. कितना खर्च आयेगा नाम बदलने पर, यह स्पष्ट नहीं है. कितने करोड़ खर्च होंगे, यह स्पष्ट नहीं है, क्या इससे शिक्षा की गुणवत्ता और वहां पर सुविधायें बढ़ेंगी यह स्पष्ट नहीं है जैसा कि हमारे वरिष्ठ सदस्य माननीय राजेन्द्र सिंह जी ने कहा कि रिसर्च डेव्हलपमेंट को लेकर प्रदेश के अंदर 0.1 प्रतिशत पैसा खर्च किया जाता है. क्या नाम बदलने के साथ में आपने कोई स्पेशल बजट बनाया, मैं समझता हूं कि पूर्व छात्रों के लिये जो कठिनाईयां आयेंगी उसके बारे में आपकी कोई नीति स्पष्ट नहीं है. पूर्व छात्रों की डिग्रियां, प्रमाण पत्र यह सब प्रश्न हैं जो एक नाम के साथ उनके बारे में भी हमें सोचना था और विशेषकर जो छात्र विदेश में हैं, 7 लाख से अधिक छात्रों ने यहां से डिग्रियां लीं, कई लोग विदेश में हैं. विदेशों से जब छात्रों का वेरीफिकेशन होता है, जब वह डिग्री देता है, मार्कशीट देता है तो कॉलेज की, यूनिवर्सिटी की देगा. जब वहां से ऑनलाइन जांच होगी तो मालूम पड़ेगा कि कॉलेज ही नहीं है तो सरकार ने उसके लिये क्या किया, तो क्या वो वापस यहां पर आयेगा, उसका आने जाने का खर्चा होगा छात्र का, उस बारे में सोचा, नहीं सोचा उसके लिये आप क्या ऑनलाइन सुविधा करेंगे, इस बारे में सरकार की स्पष्ट नीति होना चाहिये. मैं समझता हूं कि इस प्रकार की व्यावहारिक परेशानियों को लेकर, डिग्री और मार्कशीट के नामों को लेकर इस पर विचार होना चाहिये, इस पर कार्ययोजना बनना चाहिये. मैं तो यही कह सकता हूं कि जो सरकार काम नहीं कर रही है वह नाम बदल-बदलकर वाहवाही लूटना चाहती है. लेकिन योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिये इन बातों का ध्यान रहे और मैं इस बिल का समर्थन करता हूं. नाम बदलने के साथ लेकिन मेरे जो सुझाव हैं माननीय परमार जी, उच्च शिक्षा मंत्री हैं, विद्वान हैं, ज्ञानवान हैं तो नीतिगत इन बातों को समझेंगे. धन्यवाद.
सभापति महोदय-- बहुत-बहुत धन्यवाद, नेता प्रतिपक्ष जी. माननीय मंत्री जी.
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री इन्दर सिंह परमार)-- माननीय सभापति महोदय, विश्वविद्यालय संशोधन अधिनियम 2025 में हमारे माननीय सदस्यों ने जो आदरणीय हमारे विपक्ष के नेता उमंग सिंघार जी, आदरणीय हमारे राजेन्द्र कुमार सिंह जी, आदरणीय जयवर्द्धन सिंह जी, महेश जी, फूलसिंह बरैया जी, भैरोसिंह बापू जी, दिनेश जैन साहब, डॉ. रामकिशोर दोगने जी, भगवानदास जी, डॉ. हिरालाल अलावा जी, अरूण भीमावद जी आदि सभी ने जो सुझाव दिये हैं बहुत ही महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं. मैं समझता हूं कि केवल विश्वविद्यालय का नाम नहीं, शिक्षा में एक अमूलचूल परिवर्तन के लिये आपके विचार काम आयेंगे. मैं बताने की कोशिश करता हूं.
माननीय सभापति महोदय, विक्रम विश्वविद्यालय की स्थापना के समय भी मैं समझता हूं यही भाव था सम्राट विक्रमादित्य के नाम का होना, लेकिन आज जैसा हम देखते हैं कि आने वाली पीढ़ी उस पर चर्चा करती है तो दो-तीन उदाहरण मैं भोपाल के देर हा हूं. एम.जी. रोड़, अब महात्मा गांधी जैसे श्रेष्ठ महापुरूष के नाम से एम.जी रोड नाम रखा, लेकिन कई सारे लोग उसका पूरा नाम नहीं जानते. टी.टी. नगर, बहुत कम लोगों को तात्या टोपे के नाम से पता होगा. आने वाली पीढ़ी को पूरा संदर्भ मालूम होना चाहिये. और उस महापुरूष को एक प्रकार से सच्चे भाव के साथ स्मरण करना चाहिए इसलिए नामकरण किये जाते हैं. हमारे एम.पी.नगर की भी ऐसी ही स्थिति है. इस प्रकार से ऐसे देश भर में और मध्यप्रदेश में भी कई शहरों में मार्गों के नाम हैं, कॉलेजों के नाम हैं, तो उनका पूरा नामरण होना चाहिए और सम्मान के साथ में उनका नाम लिया जाना चाहिए, उस भाव के आधार पर विक्रम विश्वविद्यालय का नाम सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय करने का यह बिल हम लायें हैं, मैं समझता हूं कि इसे सभी लोगों ने जो समर्थन दिया है, इसके लिये मैं उन सभी को धन्यवाद देता हूं.
सभापति महोदय, हम जानते हैं शिक्षा में एक बड़ा अमूल चूल परिवर्तन का काम हुआ है, इस देश में जो परिवर्तन राष्ट्रीय शिक्षा नीति में वर्ष 2020 के माध्यम से हो रहा है और उसी के संदर्भ में लगभग-लगभग जो सुझाव सभी ने दिये हैं, शायद बहुत सारे लोगों को उसकी जानकारी नहीं है, इस कारण से प्रश्न भी खड़े किये हैं, लेकिन समय के साथ वह सारे बदलाव हम करने जा रहे हैं.
सभापति महोदय, सबसे पहले मैं जो शिक्षक भर्ती को लेकर जो विषय आये हैं, उनको में थोड़ा स्पष्टीकरण कर दूं, एम.पी.पी.एस.सी. से लगातार भर्ती की प्रक्रिया चल रही है, वर्ष 2022 में जो परीक्षा आयोजित हुई थी, उसका लगभग साक्षात्कार पूर्ण होने को है, 1669 सहायक प्राध्यापक, 129 क्रीड़ा अधिकारी, 255 लायब्रेरियन के पद, इनका साक्षात्कार थोड़ा सा बचा है, वह भी पूरा हो जायेगा.इसी प्रकार एम.पी.पी.एस.सी. वर्ष 2024 की लिखित परीक्षा हो चुकी है, जब साक्षात्कार पी.एस.सी. का आयेगा तो, उसमें वह भी हो जायेंगे. 1930 सहायक प्राध्यापक, 187 क्रीड़ा अधिकारी, 80 लायब्रेरियन के पद की भर्ती का आयोजन इसी वर्ष हम पूरा कर लेंगे, इस तरह एक प्रकार से बड़ी जो रिक्तियां हैं, उनको हम पूरा करने जा रहे हैं, साथ में एक ओर समस्या जो हमारे सामने है, उसके संबंध में मैं कुछ कहना चाहता हूं, हम केवल लगातार क्योंकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्रियान्वयन जो पक्ष है.
श्री सोहनलाल बाल्मीक -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी से पूछना चाहता हूं कि वह मध्यप्रदेश की शिक्षा भर्ती की बात कर रहे हैं, या सिर्फ विश्वविद्यालय की बात कर रहे हैं.
श्री इंदर सिंह परमार -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं महाविद्यालयों के जो शिक्षक हैं, उनके लिये कह रहा हूं और वह दूसरा भाग है, जिसमें विश्वविद्यालय के संबंध में आयेगा, लेकिन जो मैं कहना चाहता था कि जो हम भर्ती कर रहे हैं, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में लगातार भर्ती करने का काम हम कर रहे हैं, क्योंकि जब तक हमारे शिक्षक नहीं होंगे, तब तक हम इन उद्देश्यों को पूरा नहीं कर सकते हैं. इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने का निर्णय हमने लिया है, तो भर्ती करने का निर्णय भी हमारा है और मैं समझता हूं कि एक बहुत सारे लोगों के मन में जो प्रश्न होगा, उसका भी मैं खंडन करना चाहता हूं कि हमारे यहां बहुत बड़ी संख्या में अतिथि विद्वान काम करते हैं, हम केवल उन्हीं पदों को खाली रखेंगे, जहां पर अतिथि विद्वानों को हम बाहर नहीं करें और उनकी व्यवस्था को हम कहीं न कहीं विचार कर रहे हैं, इसलिए लगभग-लगभग दो साल में सभी हमारी महाविद्यालयीन जो सेवाएं हैं, उसमें जो प्राध्यापक हैं, उनके सारे भर्ती के काम पूर्ण हो जायेंगे.
4.19 बजे {अध्यक्ष महोदय (श्री नरेन्द्र सिंह तोमर) पीठासीन हुए}
अध्यक्ष महोदय, दूसरा विषय आता है विश्विद्यालय में भर्ती का काम, हमारे एक बंधु ने विषय उठाया था कि जो रोस्टर है, उसमें विश्वविद्यालय को इकाई बनाना चाहिए, अभी हमने जिन-जिन विश्वविद्यालयों में भर्ती के लिये विज्ञापन जारी किये हैं, उसमें विश्वविद्यालय को ही इकाई माना है, एक सब्जेक्ट को नहीं माना और उसी को आधार बनाकर आरक्षण के पूरे रोस्टर का पालन किया जा रहा है, उसमें भी अधिकांश यूनिवर्सिटी ने अपने विज्ञापन जारी कर दिये हैं, कुछ जो बचे हैं, उनको माननीय राज्यपाल जी ने निर्देशित किया है कि वह जल्दी समयावधि में अपनी भर्तियों को पूरा करें, क्योंकि विश्वविद्यालय की भर्ती में विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर जो होते हैं, वह और उनके एक एकेडमिक लोग होते हैं, उनके द्वारा भर्ती की प्रक्रिया होती है, बाकी जो हमारे महाविद्यालय हैं, उसमें जो भर्ती है, वह हम पी.एस.सी. के द्वारा करवाते हैं. हमारे यू.जी. कोर्सेस को पी.जी. में करने के जो अलग-अलग संकाय, जैसे एकल संकाय में हमारे कॉलेज चलते हैं. मान लो बी.ए. है, बी.एस.सी; है, या बी.कॉम. है, केवल एक नीतिगत रूप से पूरे मध्यप्रदेश में और ये राष्ट्रीय शिक्षा नीति का हिस्सा है कि जहां छात्र संख्या पर्याप्त है, उनको हम बहु संकाय करते जाएंगे. एक प्रकार से स्टेप बाय स्टेप, जो हमारे अभी तक के कॉलेज हैं, उन कालेजों में बहुसंकाय यानि सभी संकायों में पढ़ाई होने लगेगी, जिस पर हम काम कर रहे हैं. इसी प्रकार से यू.जी. से पी.जी. में उन्नयन करना, जहां पर यू.जी. के जी पर्याप्त छात्र हैं, उन सभी कॉलेजों को हम पहले संसाधन देंगे, पहले वहां पर मैन पॉवर देंगे, उसके साथ साथ उनको पी.जी. में उन्नयन करने की व्यवस्था बनाई जा रही है.
नई शिक्षा नीति में एक और बड़ा बदलाव हुआ है, जो मैं बताना चाहता हूं पहले बी.ए. का विद्यार्थी बी.एस.सी. के सब्जेक्ट नहीं ले सकता था, अब नई शिक्षा नीति में बी.ए. विद्यार्थी बी.एस.सी. का विषय ले सकता है और बी.एस.सी. का विद्यार्थी बी.ए. का कोई एक विषय ले सकता है, बी.कॉम. का ले सकता है, तो उसमें सभी संकाय का होना जरुरी है. इस दृष्टि से एक व्यवस्था पूरे प्रदेश में बनाई जा रही है. इसके साथ साथ हमने मध्यप्रदेश में डिजिलॉकर बना दिया, ताकि पुराने लोगों की सारी डिग्रियां, प्रमाण पत्र, माईग्रेशन सर्टिफिकेट, वह सब ऑनलाइन कर रहे हैं और केवल सरकारी नहीं, प्रायवेट सेक्टर के जो विश्वविद्यालय है, वह भी अपना डिजिलॉकर में दर्ज करवा चुके हैं. आने वाले समय में छात्र को बगैर परेशान हुए उस व्यवस्था का लाभ मिल जाएगा.
अध्यक्ष महोदय, जो नई व्यवस्था है, उसमें हम क्रेडिट ट्रांसफर सिस्टम, विद्यार्थी को परेशान नहीं होना पड़े, यदि उसको किसी जगह अध्ययन करना है और दूसरे अच्छे संस्थान में जाना है, तो उनके आपस में क्रेडिट जो मिलेंगे उसको ट्रांसफर करेंगे जैसे हमने इंजीनियरिंग में पिछले वर्ष में प्रयोग किया है 50 विद्यार्थी, 50 बेटियां ऐसे 100 विद्यार्थियों का मैनिट में और आईआईटी में हमारे इंजीनियरिंग कॉलेज से सेलेक्शन करके भेजा है, तो वह 6 महीने मतलब, एक अंतिम सेमेस्टर में वहां पढ़ाई करेंगे और उसके बाद में उनकी क्रेडिट ट्रांसफर हो जाएगी. इस प्रकार की सुविधा भी मध्यप्रदेश में हमने प्रारंभ किया है. एक बात और बता देना चाहता हूं कि बीच में गुणवत्ता को लेकर के और बहुत सारे विषय है, हम सब उसमें सम्मिलित है परन्तु मैं कहना चाहता हूं, इस वर्ष यूपीएससी में जो फायनल परीक्षा हुई है, उसमें मध्यप्रदेश से 60 बच्चे चयनित हुए हैं मैं समझता हूं उन सबको बधाई देना चाहिए(...मेजों की थपथपाहट)
अध्यक्ष जी, जैसे हमने पूर्व में विश्वविद्यालय के जो कुलपति थे, उनका नामकरण कुलगुरु किया, ये भारतीय संस्कृति और परम्परा से किया इसी प्रकार से जो विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह हो रहे हैं, उनको भी हमने भारतीय परिवेश में करने का निर्णय किया है. एक बड़ा निर्णय है, सभी विश्वविद्यालय में रेगुलर हमारे दीक्षांत समारोह प्रारंभ किए और भारतीय परिवेश में करने का निर्णय लिया है. इसके साथ और विषय जोड़ रहा हूं क्योंकि हमारे देश में भाषा को लेकर के कई सारे लोग विवाद करते हैं.
श्री सोहनलाल बाल्मीक – अध्यक्ष जी, माननीय मंत्री जी से निवेदन करुंगा कि जो मंत्री जी ने कहा है, उस विषय में क्या क्या व्यवस्था बनी थी, उसको थोड़ा बताने की कृपा करेंगे.
अध्यक्ष महोदय – बैठिए.
श्री इन्दर सिंह परमार – देखिए, विधेयक का विषय था, वह तो लिमिटेड था, उसमें आप सब लोग बोले हैं, मैं भी बोला हूं, लेकिन जो-जो प्रश्न आए हैं उनका समाधान करते हुए कुछ नई व्यवस्था हो रही है, उसका मैं उल्लेख कर रहा हूं. आप चाहोगे तो अलग से मेरे से बात कर लेना मैं आपको बता दूंगा. अध्यक्ष जी, देश में जो लोग भाषा को लेकर विवाद खड़ा कर रहे हैं, हमने मध्यप्रदेश में एक बड़ा निर्णय लिया है कि हमारे देश की जो भारतीय भाषा है जो हमारे लिए सबराष्ट्रीय भाषा है और मध्यप्रदेश देश का हृदय प्रदेश है, इसलिए मध्यप्रदेश के विश्वविद्यालयों में हम अन्य राज्यों की, दक्षिण भारत की, एक भाषा को एक विश्वविद्यालय में, सभी छात्र उसमें बैठ सकते हैं, और उनको अतिरिक्त क्रेडिट देकर के हम सभी भाषाओं का सम्मान करेंगे. एक विश्वविद्यालय में पह मलयालम पढ़ाएंगे, एक विश्वविद्यालय में एक कन्नड़ पढ़ाएंगे, एक विश्वविद्यालय में तेल्लगू पढ़ाएंगे, एक विश्वविद्यालय में हम तमिल पढ़ाएंगे. ऐसे ही मराठी, गुजराती, पंजाबी, बंगाली सब भाषाओं का समावेश करते हुए हमारे विश्वविद्यालय में हम अलग अलग भाषाओं का समावेश करेंगे ताकि मध्यप्रदेश की धरती देश का हृदय प्रदेश है. यहां से भाषाएं जोड़ने का काम करती हैं तोड़ने का काम नहीं करती हैं. यह हिन्दी भाषी प्रदेश पूरे देश में है, यह देश में बड़ा संदेश जाने वाला है. शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर के भारत सरकार के क्रेडिट पर जो काम हो रहा है उसमें मैं बता देना चाहता हूं कि हमारे अभी हमारे बरकतउल्ला विश्वविद्यालय को ए ग्रेड प्राप्त हुआ है, ग्वालियर ए प्लस में है, देवी अहिल्या इन्दौर ए प्लस, चित्रकूट यूनिवर्सिटी ए डबल प्लस में है. इस प्रकार से लगातार हम भारत सरकार के अलग अलग प्रकार के ग्रेडिंग सिस्टम है उसमें मध्यप्रदेश को काम्पीटिशन में उतार रहे हैं. हमारे विक्रम विश्वविद्यालय की दृष्टि से यह बता देना चाहता हूं कि पी.एम.मूसा के अंतर्गत हम सौ करोड़ रूपये की लागत से हम उन्नयन के कार्य प्रारंभ कर दिये गये हैं, तो निश्चित रूप से वहां के विद्यार्थियों को जो सुविधा ज्यादा से ज्यादा मिल सकेगी, यह डिजीटल भी मिलेगी और अन्य प्रकार की भी मिलेगी. मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि मध्यप्रदेश में हमने यह तय किया है उसमें हमारे विश्वविद्यालय काम कर रहे हैं. डिजीटल वेल्युएशन हम कई बार सुनते थे कि कॉपियों के बंडल कहीं बीच में पड़े मिले हैं, कहीं गायब हो गये हैं इसलिये पूरे मध्यप्रदेश में सब यूनिवर्सिटी वेल्युएशन पर काम करना प्रारंभ कर दिया है. आने वाले समय में पूरा डिजीटलाइजेशन हो जायेगा. जो बच्चों की कापियां रहेंगी वह सुरक्षित हमारे विश्वविद्यालय में रहेंगी. एक और बात जिस पर सामान्यतः सब चर्चा करते हैं. हमने प्रवेश समय पर इसलिये हमने 14 अगस्त के पहले पहले सभी प्रकार के एडिमिशन पूरे करने जा रहे हैं. प्रवेश समय पर, पढ़ाई समय पर, परीक्षा समय पर और परिणाम समय पर यह पूरा इसी के आधार पर पूरा एकेडिमिक सत्र है वह इसके आधार पर चल रहा है, जिस पर हम तेज गति के साथ काम कर रहे हैं.
डॉ.राजेन्द्र कुमार सिंह—अध्यक्ष महोदय, मैं यह जानना चाह रहा था माननीय मंत्री जी से वाइस चांसलर को तो कुलगुरू बना दिया. चांसलर का नाम बदलेंगे, महागुरू में है, ऐसा कोई प्रस्ताव है क्या ? (हंसी)
श्री इन्दर सिंह परमार—आपको अभी बताता हूं. (हंसी)
संसदीय कार्य मंत्री(श्री कैलाश विजयवर्गीय)—अध्यक्ष महोदय, वाईस चांसलर को कुलगुरू बना दिया चांसलर महागुरू बनाये ना बनायें, पर इस सदन में ऐसे लोग हैं जिनको आप चाहें तो महागुरू की संज्ञा दे सकते हैं (हंसी)
श्री इन्दर सिंह परमार— अध्यक्ष महोदय,विधेयक की कॉपी में है जो छोड़े हैं, वह इसलिये छूटे हैं कि विक्रम विश्वविद्यालय मध्यप्रदेश अधिनियम 1973 की अनुसूची दो के भाग एक में सम्मिलित है. इसलिये भाग एक के विश्वविद्यालय के दर्शाये गये हैं. भाग दो के जो पांच विश्वविद्यालय हैं, वह इसमें छोड़े गये हैं. इसलिये उनको नहीं दे सकते हैं. दूसरा गुना में विश्वविद्यालय है वहां के लिये 40 हैक्टेयर जमीन आवंटित हो चुकी है. एस्टीमेट 120 करोड़ का बन गया है. एसएफसी उनकी होने वाली है. 19 अगस्त को मेरे ख्याल से एसएफसी में वह पास हो जायेगा. अध्यक्ष महोदय, मेरा यह कहना है कि लगातार शिक्षा में बदलाव की प्रक्रिया चल रही है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लक्ष्यों को हम पूरा करने की ओर अग्रसर हैं. क्रम बनाया है शिक्षकों की भर्ती, अधोसंरचना का काम जिसमें स्मार्ट क्लासें और यह सब सम्मिलित हैं. जिला केन्द्र के जो पीएम एक्सीलेंस कॉलेज हैं इसमें हम अलग अलग प्रकार के रोजगारोन्मुखी कोर्सेस प्रारम्भ किए हैं जिसमें हम डेयरी को भी एक सब्जेक्ट के रूप में प्रारम्भ करने जा रहे हैं, एग्रीकल्चर को प्रारम्भ करने जा रहे हैं. आने वाले समय में जिस क्षेत्र में जिस प्रकार के, चाहे वह खेती है, कृषि है या उद्योग है यह संभावनाएं हैं उसके अनुसार उस क्षेत्र के कॉलेजों में और उस क्षेत्र के विश्वविद्यालयों में इस प्रकार के कोर्स डिजाइन होंगे, ताकि आने वाले समय में वहां पर बच्चों को रोजगार उपलब्ध हो सके. आज की जो स्थिति है उसमें मांग के अनुसार हम नहीं दे पा रहे हैं. विशेषकर टेक्निकल एजुकेशन में. जैसी मांग उद्योग जगत की है, वह नहीं दे पा रहे हैं. उसमें भी हमने बदलाव किया है. जैसे उद्योग की मांग है, उनके साथ बैठकर के हम कोर्सेस का डिजाइन करें, जो आने वाले समय में सभी को देखने मिलेगा.
माननीय अध्यक्ष महोदय, एक बहुत बड़ा परिवर्तन जो पूरे देश में हो रहा है और मैं समझता हॅूं कि स्वतंत्रता के बाद में पहली बार शिक्षा में बदलाव का जो फैक्ट है जिसमें शिक्षा नीति को भारत केन्द्रित किया गया है, ज्ञान को आधार बनाया गया है और गुणवत्ता को उसमें स्थान दिया जा रहा है. यह जो भारतीय ज्ञान परंपरा की चर्चा हम बार-बार कर रहे हैं उसमें भारत की उस ज्ञान परंपरा को सम्मिलित करते हुए भारत पर गर्व करें, भारत के विद्यार्थियों पर गर्व करें, भारत के वैज्ञानिकों पर गर्व करें, भारत के सैनिकों पर गर्व करें. इस प्रकार का एक भाव का जागरण हमारे विद्यार्थियों के बीच में आए और भारतीय ज्ञान परंपरा, जो हजारों साल पहले 2 हजार साल नहीं बल्कि 5 हजार, 7 हजार, 8 हजार साल पहले का जो इतिहास है जो गौरवशाली इतिहास रहा है, उस पर भी हमारे विद्यार्थी रिसर्च करें. रिसर्च की बहुत चर्चा हुई, इसलिए मैं कहना चाहता हॅूं कि जैसे ग्रेजुएशन 3 वर्ष का कोर्स था, अभी हम नई शिक्षा नीति में 4 वर्ष का कर रहे है. वह जो 1 वर्ष है वह रिसर्च के लिए है. मतलब पीजी 1 वर्ष की हो जाएगी लेकिन यूजी 4 वर्ष के लिए होगी. चौथे वर्ष में ही रिसर्च के लिए वह सारी व्यवस्थाएं हम महाविद्यालय को दे रहे हैं तो आने वाले समय में रिसर्च बेस्ड शिक्षा मॉडल पर ही काम कर रहे हैं. जैसा कि हमारे आदरणीय राजेन्द्र सिंह जी ने जो बात कही, उस पर भी लगातार काम चल रहा है. आने वाले समय में शिक्षा में अच्छा स्वरूप देखने को मिलेगा. लगभग-लगभग आप सब लोगों ने इसका समर्थन किया है, इसलिए मैं आप सभी को धन्यवाद देना चाहता हॅूं और निश्चित रूप से आने वाले समय में हम अपनी ही शिक्षा नीति के माध्यम से अपने देश की समस्याओं का समाधान करेंगे. केवल इतना ही नहीं, बल्कि भारत फिर से दुनिया का शिक्षा का केन्द्र बनेगा. इस प्रकार का आमूल-चूल परिवर्तन करने का काम देश में चल रहा है. मध्यप्रदेश भी उसमें साथ में मिलकर काम कर रहा है. बहुत-बहुत धन्यवाद. (मेजों की थपथपाहट)
अध्यक्ष महोदय -- इस बिल पर आधा घंटा निश्चित था लेकिन इस बिल पर 1 घंटा 33 मिनट चर्चा हुई और मुझे प्रसन्नता है कि विषय तो बहुत संक्षिप्त था, विक्रम धन आदित्य. विक्रम के साथ आदित्य जोड़ना था. लेकिन इसके अतिरिक्त भी बहुत सारे प्रश्न जागरूकता के कारण माननीय सदस्यों ने उठाये और माननीय मंत्री जी ने बहुत उदारतापूर्वक उनका जवाब दिया, यह अच्छी बात है.
अध्यक्ष महोदय -- प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2025 पर विचार किया जाय.
सर्वसम्मति से प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
अब विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2 और 3 विधेयक का अंग बने.
खण्ड 2 और 3 विधेयक सर्वसम्मति से अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र इस विधेयक का अंग बने.
सर्वसम्मति से खण्ड 1, पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र इस विधेयक का अंग बना.
उच्च शिक्षा मंत्री (श्री इन्दरसिंह परमार) -- अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हॅूं कि मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2025 पारित किया जाय.
अध्यक्ष महोदय -- प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2025 पारित किया जाय.
सर्वसम्मति से प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
विधेयक पारित हुआ.
संसदीय कार्यमंत्री (श्री कैलाश विजयवर्गीय) - अध्यक्ष महोदय, श्री भंवरसिंह शेखावत जी पहले हमारे उस्ताद रहे हैं. अभी भी हैं.
अध्यक्ष महोदय - उस्ताद तो उस्ताद ही रहता है, कहीं भी रहे. अखाड़े तो बदलते ही रहते हैं.
श्री कैलाश विजयवर्गीय - अध्यक्ष महोदय, प्रदेश में लगातार कम होते भू-जल स्तर व परंपरागत जल संग्रहण संरचनाओं के सतत् समाप्त होने से उत्पन्न स्थिति के संबंध में हमारे बहुत ही वरिष्ठ विधायक श्री गोपाल भार्गव जी ने बहुत ही सारगर्भित तरीके से इस विषय को रखा है. मुझे बहुत प्रसन्नता है कि सदन ने भी इसकी गंभीरता को समझा और सभी माननीय सदस्यों ने बहुमूल्य विचार दिये हैं और मैं उन सब सदस्यों को जिन्होंने सदन में अपने सुझाव दिये हैं मैं उन सबके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं. श्री गोपाल भार्गव जी के प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं और हमारे माननीय मंत्री श्री तुलसीराम सिलावट जी जिन्होंने प्रथम मंत्री के रूप में इसका जवाब दिया था, उनको भी धन्यवाद देता हूं.
अध्यक्ष महोदय, नदियां हमारे संस्कार हैं, हमारी संस्कृति है. वैसे तालाब भी हमारे संस्कार, हमारी संस्कृति के द्योतक रहे हैं. अध्यक्ष महोदय, मैं एक किताब पढ़ रहा था ''आज भी खरे हैं तालाब", पुराने समय में जो तालाब बने हैं उसकी खुदाई के आसपास जो अवशेष मिलते हैं उससे उस समाज की संस्कार, संस्कृति, सभ्यता का पता लगता है. हमने सिंधु घाटी की सभ्यता में जो भी खुदाई के अवशेष मिले हैं वह हमारे तालाबों के कुंओं के, बावड़ियों के किनारे से मिले हैं, इसीलिए जब नदी सूखती है, तालाब सूखते हैं तो हमारे संस्कार भी मछली की तरह तड़फते हैं. हमारी संस्कृति भी मछली की तरह तड़फती है और हमारी परंपराएं कहीं न कहीं सिसकती हुई, हमें दिखाई देती है. एक बड़ा अच्छा विषय श्री गोपाल भार्गव जी ने प्रारंभ किया था और मुझे बहुत गर्व है कि सदन ने बहुत बहुमूल्य विचार रखे हैं.
अध्यक्ष महोदय, नदी सिर्फ नदी नहीं होती है. वह संस्कृति होती है, वह सभ्यता होती है, वह दर्शन होता है, वह साधना होती है और हमारे यहां नदी को मां कहा गया है. दुनिया के किसी देश में मां नहीं कहा गया है. हम नर्मदा को मां कहते हैं, गंगा को मां कहते हैं, यमुना को मां कहते हैं और सबके धार्मिक महत्व भी हैं. हम बड़े सौभाग्यशाली हैं कि हमारे यहां नर्मदा जैसी नदी है और नर्मदा जी के बारे में कहा जाता है कि उनके दर्शन मात्र से मुक्ति मिलती है. नर्मदा जी का महत्व बहुत है. अलग-अलग महत्व हैं. श्री प्रहलाद सिंह पटेल जी यहां बैठे हैं, इन्होंने भी परिक्रमा की है. हो सकता है सदन के बहुत सारे लोग होंगे, उन्होंने परिक्रमा की होगी. लोगों के अलग-अलग अनुभव है, आध्यात्मिक अनुभव है और आज भी नदियां हमारे लिये बहुत महत्वपूर्ण है और इसीलिए हमारी सरकार ने सब नदियों में जितनी भी नदियां हैं उनमें कम से कम पॉल्यूशन हो और कैसे भी जो नदी में नाले मिल रहे हैं उसको रोकने का एक अभियान प्रारंभ किया है और हम कोशिश करेंगे कि कम से कम 2 साल के अंदर जितनी भी महत्वपूर्ण नदियां हैं, उन सब नदियों के अंदर जहां भी गंदगी का समावेश हो रहा है वहां एसटीपी लगाकर नालों की दिशा बदलकर और नदियां कैसे पवित्र रहे, इसके लिए हमारी सरकार वचनबद्ध है.
अध्यक्ष महोदय, प्रकृति से कोई जीत नहीं सकता, प्रकृति को समझने की आवश्यकता है. हमारे यहां पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने जब एकात्म मानववाद की कल्पना की तो व्यष्टि और समष्टि, दोनों की बात कही है. उन्होंने सिर्फ व्यक्ति आधारित विकास की बात नहीं की है. हमारे विकास में और पश्चिम के विकास में अंतर यही है. उन्होंने मनुष्य के विकास की बात की. हमने मनुष्य के साथ-साथ प्रकृति के विकास की भी बात की है. हमने प्रकृति को जोड़ा है. हमने समष्टि को जोड़ा है. हमने कहा है कि प्रकृति भी हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसीलिए दुनिया के अंदर ग्लोबल वॉर्मिंग की बात हो रही है. वह हमारी प्रकृति के प्रति जो शोषण करने की आदत हुई है, उसका परिणाम आज सारी दुनिया भुगत रही है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, टी.व्ही. खोलो तो कहीं कार बहती हुई जा रही है, कहीं ट्रक बहता हुआ जा रहा है. यह सब प्रकृति अपना भयंकर रूप दिखा रही है. इसलिये बहुत जरूरी है कि हम प्रकृति के साथ बैठकर, प्रकृति को समझने की कोशिश करें और जल संग्रहण उसका एक बहुत बड़ा महत्वपूर्ण हिस्सा है. मुझे गर्व है हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने एक पेड़ मां के नाम से देश की जनता से पेड़ लगाने का आह्वान किया है. अध्यक्ष महोदय इस पर विवाद हो सकता है, इसमें हो सकता है कि कुछ लोगों ने पेड़ लगाये और वहां पेड़ नहीं मिले. पर मैं इंदौर के संबंध में बहुत गारंटी के साथ में एक बात कहना चाहता हूं कि हमारे यहां आकर कोई देखना चाहे, तो मैं, चुनौती दे रहा हूं कि हमारे यहां एक पित्र पर्वत बना. मैं जब मेयर था तो हमने चार लाख पेड़ पित्रों के नाम से, पूर्वजों के नाम से लगाये हैं.
अध्यक्ष महोदय, आज भी चार लाख के चार लाख पेड़ जिंदा है, यह मैं बहुत जवाबदारी के साथ कह रहा हूं. (मेजों की थपथपाहट)
अध्यक्ष महोदय, अभी पिछले वर्ष इंदौर में 51 लाख पेड़ लगे हैं. हमने एक दिन के अंदर 12 लाख, 40 हजार पेड़ लगाये रेवती रेंज पर. पूरे 12 लाख 40 हजार पेड़ आज भी जिंदा हैं. मैं सबको चुनौती दे रहा और निमंत्रण दे रहा हूं कि किस प्रकार हमने एक-एक पेड़ को बचाने की कोशिश की है. हमने वहां पर नर्सरी लगा दी और 25 कार्यकर्ताओं का वहां पर यही काम है कि वह घूमकर देखें कि कौर सा पेड़ मर रहा है. क्योंकि यह बिल्कुल तय होता है, जब हम वृक्षारोपण करते हैं तो उसमें से 30 प्रतिशत पेड़ डेड हो जाते हैं. कोई शॉक के कारण, क्योंकि पेड़ को भी शॉक लगता है. कुछ गलत तरीके से वृक्षारोपण के कारण, कुछ गलत तरीके से थैली फाड़ने के कारण से 30 प्रतिशत पेड़ तो मरते ही हैं. परंतु हमने एक भी पेड़ को मरने नहीं दिया, जो पेड़ मरे हैं उनको वापस लगा दिया और वहां पर हमने नर्सरी लगा दी, जो पेड़ डेड हो जाता है हम उस पेड़ को बदल देते हैं. आज भी 12 लाख 40 हजार पेड़ लगाने का गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में हजारा नाम दर्ज है. हम उनको दो साल बाद बुलायेंगे और आप आकर देखिये कि यह 12 लाख 40 हजार पेड़ जिंदा हैं. इंदौर की जनता इतना प्रेम पेड़ को भी करती है.
अध्यक्ष महोदय, इंदौर की जनता सिर्फ स्वच्छता में ही नंबर वन नहीं है. हम सरप्लस वाटर वाले शहर हैं. हम 7 स्टार सिटी हैं, हम लगातार स्वच्छता संरक्षण में सुपर लीग में हैं. हम स्वच्छता के महागुरू हैं और मुझे कहते हुए गर्व है कि माननीय प्रधानमंत्री जी लोक सभा क्षेत्र में इंदौर की हमारी टीम को बुलाया गया और इंदौर मॉडल से वहां पर स्वच्छता अभियान चलाने का कार्यक्रम चालू हो रहा है. यह मध्य प्रदेश के लिये गौरव की बात है कि किसी एक शहर की टीम को बनारस में ले जाकर और वहां पर इंदौर मॉडल का स्वच्छता अभियान चले.
अध्यक्ष महोदय, हमारे इंदौर शहर को वैटलेंड सिटी भी घोषित किया गया है. हमारे यहां जितनी भी वॉटर बाडीज़ हैं, चाहे सिरपुर तालाब हो चाहे बिलावली हो, हमने सबदूर चारों तरफ वृक्षारोपण करके और हमारे यहां विदेशी पक्षी आते हैं, ठंड के दिनों में. श्री भंवर सिंह शेखावत जी जानते हैं, उस बात को. बहुत सारे देशभर के फोटोग्राफ्रर्स वहां आते हैं और वह आकर वहां फोटो खींचते हैं. वहां पर बहुत विदेशी पक्षी भ्रमण करने आते हैं. इसीलिये कि हमने उन वाटर बॉडीज़ के आसपास बहुत अच्छा वृक्षारोपण करके उन वॉटर बाडीज़ को संरक्षित करने का काम किया है.
अध्यक्ष महोदय, मुझे कहते हुए गर्व है कि नगर निगम इंदौर के साथ-साथ भोपाल, जबलपुर, खंडवा, उज्जैन, छिंदवाड़ा, टीकमगढ़, मण्डलेश्वर और भिण्ड इन सब नगर निगमों ने वॉटर संरक्षण के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम किया है. मैं कुछ और महत्वपूर्ण बातें आपको बताकर मैं प्रहलाद भाई को अवसर देना चाहता हूं कि उन्होंने मेहनत की है और प्रहलाद भाई देश के शायद पहले व्यक्ति होंगे, जिन्होंने मध्यप्रदेश की जितनी नदियां हैं, उनके उद्गम स्थल पर जाकर पूजा की है. (मेजों की थपथपाहट) पहले व्यक्ति होंगे, देश के.
अध्यक्ष महोदय, यह मध्यप्रदेश की जितनी नदियां हैं वह उनके उद्गम स्थल पर स्वयं गये और वहां जाकर पूजा की है. यह एक उनका पर्यावरण के प्रति प्रेम है. उनका जल वॉटर बाडीज़ के प्रति प्रेम है और उन्होंने स्वयं मां नर्मदा की परिक्रमा भी की है, वह परिक्रमावासी भी है. उन्होंने एक बहुत अच्छी किताब लिखी है, वह इस विषय के अंतर्गत् तो नहीं है. परंतु मैं सदन को अवगत कराना चाहता हूं कि बहुत सुन्दर किताब लिखी है, बहुत अच्छा अनुभव है उसमें और उसके विमोचन के लिये परम पूज्यनीय भागवत जी आ रहे हैं 14 तारीख को इन्दौर में. तो अच्छा लेखन भी प्रहलाद जी का है, पर मैं ज्यादा अवसर उनको देना चाहता हूं. वैसे एक पेड़ मां के नाम में हमने जितने भी मध्यप्रदेश के नगर है, नगर निगम हैं, नगर पालिकाएं हैं, उन सबसे आग्रह किया था कि आप भी लगाइये. तो लगभग मेरी जानकारी के अनुसार 1 करोड़ 22 लाख पेड़ नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों ने लगाये हैं. हमने यह भी कहा था कि यह संरक्षित रहें, इस बात की भी चिंता आप करें. मुझे ऐसी जानकारी है कि काफी नगर पालिका और नगर निगम ने अपने पेड़ जहां लगाये हैं, वहां पर पानी की व्यवस्था भी की है और उनके संरक्षण के लिये कहीं पर ट्री गार्ड लगाये हैं. कहीं पर वायर फेंसिंग की है. इसलिये मैं ऐसा मानता हूं कि काफी पेड़ अच्छे होंगे. पेड़ भी बहुत बड़े जल संग्रहण का काम करते हैं. सब नदियां ग्लेशियर के पिघलने से आती हैं, चाहे गंगा जी हो, चाहे यमुना जी हों, पर मध्यप्रदेश की नर्मदा मैया, पेड़ों के कारण घने पेड़ों की जड़ों में से पानी जो रिस रिस कर आता है, उससे हमारी नदी आज जिंदा है. इसलिये हमें अभियान भी चलाना है कि नर्मदा मैया के आस पास जबरदस्त वृक्षारोपण हो.उसका व्यावसायीकरण न हो. लोग श्रद्धा के साथ, दिल के साथ पेड़ लगायें और जिस पेड़ को लगायें, उस पेड़ को लगाने के प्रति स्वयं जवाबदारी भी महसूस करें कि मैंने यह पेड़ लगाया है, मेरी जवाबदारी है कि यह पेड़ जिंदा रहे. कई बार हम सरकारी अभियान में लगा देते हैं एक करोड़, दो करोड पेड़. उसके बाद देखते हैं, तो पता लगता है, आरोप भी लगाया नेता प्रतिपक्ष जी ने भी और बाकी लोगों ने. यह बात सही है. मैं उनके आरोप को सहमति प्रदान तो नहीं करता हूं, पर इस प्रकार के घटनाक्रम देखने को मिलते हैं. मैं चाहता हूं कि सभी सदस्य गण इस विषय पर राजनीति से ऊपर उठकर यहां पर तो उन्होंने चर्चा की, मैदान में भी काम करें. मैदान में भी अपने विधान सभा क्षेत्र में जितने भी जल ग्रहण क्षेत्र हैं, उनकी चिंता करें. वृक्षारोपण की चिंता करें, क्योंकि हम हमारी आने वाली पीढ़ी को मकान दे जायें, धन दौलत दे जायें, उससे बड़ी पूंजी है स्वच्छा ऑक्सीजन. सबसे बड़ी पूंजी है. यदि आप वह देकर नहीं गये, तो आने वाली पीढ़ी आपको कभी माफ नहीं करेगी. इसलिये बहुत जरुरी है कि हम इस विषय को गंभीरता से लेकर सब लोग मैदान में भी काम करें. मैं तो अभी जुटा हुआ है. मैंने अभी 20 लाख पेड़ लगा दिये हैं इस सीजन के अन्दर और मैं कोशिश कर रहा हूं कि 10 लाख और पेड़ लगा दूं अभी. मैं यहां से जाता हूं, तो सिर्फ एक ही काम करता हूं, वृक्षारोपण, वृक्षारोपण और वृक्षारोपण. क्योंकि हमें इस शहर को देकर जाना है, इस प्रदेश को कुछ देकर जाना है, हमें देश को भी कुछ देकर जाना है. क्योंकि हम जितनी ऑक्सीजन लेते हैं और जितनी कार्बन ऑक्साइड छोड़ते हैं, उसमें कार्बन ऑक्साइड का प्रतिशत भी बढ़ रहा है और कार्बन मोनो ऑक्साइड का प्रतिशत भी बढ़ रहा है. उसी के कारण धरती माता गरम हो रही है. धरती माता गरम हो रही है, तो ग्लेशियर पिघल रहे हैं. लोग चिंतित हैं, सारी दुनिया चिंतित है कि अगर ये ग्लेशियर पिघल गये और समुद्र का जल स्तर बढ़ गया, तो दुनिया का क्या होगा. यूनाइटेड नेशन में जब माननीय मोदी जी का भाषण हुआ था, तो उन्होंने इस विषय पर बहुत गंभीरता से लिया और हमें कहते हुए गर्व है कि हमारा देश इस दिशा में लीडर बनकर काम कर रहा है, प्रधानमंत्री, नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में. हमने सोलर एनर्जी में बहुत काम किया है. सोलर एनर्जी में मध्यप्रदेश लीडर बन रहा है. मैं उसके विस्तार में नहीं जाना चाहता हूं, क्योंकि आज वह विषय है नहीं. हम लीडर बन रहे हैं उसमें. हमने इतनी सारी योजनाएं निकाली हैं और भी बहुत सारी बातें हैं, पर मैं चाहता हूं कि हमारे मंत्री, माननीय प्रहलाद सिंह पटेल जी, जो इस विषय में बहुत जबरदस्त अधिकार रखते हैं और खूब मेहनत भी उन्होंने की है. इसलिये मैं सभी सदस्यों को धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने सकारात्मक सुझाव दिये हैं..
डॉ. सीतासरन शर्मा—अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी जो शहरी क्षेत्र हैं, उनमें वृक्षारोपण के अलावा क्या रुफ वाटर हार्वेस्टिंग की भी कोई व्यवस्था की है आपने, यह मैं आपसे जानना चाहता हूं.
श्री कैलाश विजयवर्गीय -- अध्यक्ष महोदय, हमने सभी नगरनिगमों से आग्रह किया है कि आप नये मकान की जो परमीशन दें उसमें वॉटर हार्वेस्टिंग, के लिये जरूर स्थान चुने और जो लोग वॉटर हार्वेस्टिंग लगा ले और अच्छे तरीके से चलाये उनको संपत्ति कर में आपकी नगर पालिका, नगर निगम की क्षमता के अनुसार उन्हें छूट जरूर दें. इंदौर, भोपाल और कई ऐसी नगर निगम हैं जिन्होंने वॉटर हार्वेस्टिंग के लिये नक्शा पास करते समय, उस नक्शे में ही स्थान सुनिश्चित करते हैं और उन्हें संपत्ति कर में कुछ छूट भी देते हैं. अध्यक्ष महोदय, डॉ. साहब का अच्छा प्रश्न था.
माननीय अध्यक्ष महोदय, हमने इस दिशा में काफी काम किया है और आगे भी काम करेंगे क्योंकि यह मेरा बड़ा प्रिय विषय है, इस दिशा में मैं तो रात दिन सोचता रहता हूं और करने की कोशिश करता हूं पर मैं सभी सदस्यों को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने बहुत महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं और हम जब इस दिशा में काम करेंगे तो आपके महत्वपूर्ण सुझाव पर भी ध्यान देंगे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं एक बार फिर से सभी सदन के सदस्यों को धन्यवाद देता हूं और एक बार फिर से निवेदन करना चाहता हूं कि फील्ड में भी जायें अभी वृक्षारोपण का समय है, जल संग्रहण का तो इस दिशा में काम करें तो प्रदेश का हित होगा, आने वाली पीढ़ी का हित होगा.
माननीय अध्यक्ष महोदय, आपने मुझे समय दिया उसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय- कैलाश जी आपको भी धन्यवाद. श्री प्रहलाद सिंह पटेल जी..
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री (श्री प्रहलाद सिंह पटेल) --माननीय अध्यक्ष महोदय, जो राज्य जल के मामले में सरप्लस है और देश में नदियों का अगर कोई मायका कहा जाता है तो वह मध्यप्रदेश कहा जाता है. लेकिन इतनी उपाधियों के बाद इस सदन मे, प्रदेश में लगातार कम होते भू-जल स्तर एवं परंपरागत जल संग्रहण संरचनाओं के सतत् समाप्त होने के कारण उस पर चर्चा करने का प्रयास किया है और इसलिये मैं इस चर्चा को प्रारंभ करने वाले आदरणीय श्री गोपाल भार्गव जी, भूपेन्द्र सिंह जी और चर्चा में भाग लेने वाले हमारे सभी वरिष्ठजनों का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इस विषय पर माननीय कैलाश जी सहित 28 लोगों ने चर्चा में भाग लिया है. मैं भी यह मानता था कि यह चर्चा सिर्फ सरकार की उपलब्धियां बताना या कोई परिणामों की गिनती करना, यह इस चर्चा का उद्धेश्य नहीं था. मैं भी जब इस राज्य में मंत्री बना और जब पिछले वर्ष जल गंगा संवर्धन अभियान की शुरूवात हुई तो वह एक महिने की थी, तो मैंने सोचा कि हम एक महिने के भीतर क्या करेंगे. जल गंगा संवर्धन अभियान का मौटे तौर पर उद्धेश्य बड़ा साफ है. हम नई संरचनायें बनायें, या पुरानी संरचनाओं का संरक्षण करें. नई संरचनायें आप बना सकते हैं तो फिर तालाब बनायेंगे, अमृत सरोवर बनायेंगे, पुरानी संरचनाओं में हम क्या ठीक कर सकते हैं, कुंए हैं, बावड़ी है, हमारे जलस्त्रोत नदियां है, उनकी गंदगी को दूर करना या उनकी गंदगी को रोकना, दोनों में कहीं न कहीं बड़ा फर्क है. तो मुझे लगा कि एक मंत्री होने के नाते, हम जीवन में जो काम करते हैं, जैसे कैलाश जी ने अपना अनुभव बताया,सबके सार्वजनिक जीवन में अपने अपने अनुभव होंगे. हम कुछ न कुछ समाज को जरूर देते हैं तब कहीं जाकर के सदन में आकर बैठते हैं. हम खाली भाषण के दम पर सदन में नहीं आते. कोई न कोई हमारे पीछे कोई अच्छा कार्य होता है, सामाजिक कार्य होता है, वह हमारी पहचान बनता है और उसके बाद हमारे रास्ते खुलते हैं. तो मैंने सोचा तो जरूर मैं अपनी बात करूंगा कि मेरे जैसा व्यक्ति भी 30 साल के बाद जागा.
अध्यक्ष जी, यह बात अगर मैं नर्मदा का परिक्रमावासी नहीं होता तो शायद मेरे मन में यह बात नहीं आ सकती थी. मैं 30 साल पहले वर्ष 1994 में जब अपने आराध्य परमपूज्य जी की सेवा में नर्मदा परिक्रमा में गया तो जब भी कोई नर्मदा में नदी मिलती थी तो वह कहते थे कि नदी या नाले के एक किलोमीटर ऊपर चलो वहां से वह नाला पार करने फिर लोटकर के वापस आना फिर नर्मदा के किनारे चलना.अध्यक्ष जी, नंगे पैर यात्रा होती थी. दिन में एक बार भिक्षा मांगकर यात्रा करनी है तो नर्मदा परिक्रमा के विस्तार मे मैं नहीं जा रहा, लेकिन जब एक जगह महाराष्ट्र के पहले एक सूखा नाला नर्मदा जी में मिला तो उस दिन धूप बहुत थी, हम लोग परेशान भी पहुत थे, चलते भी बहुत समय हो गया था तो मुझे लगा कि सूखा नाला है तो सीधे निकल जाना चाहिये, तो जैसे ही मैं उस तरफ बढ़ा तो पीछे सा आवाज आई , जैसे ललकार की आवाज होती है तो हम समझ गये कि कुछ गड़बड़ हुई है. पलटकर के देखा तो उन्होंने ईशारा किया, उस सूखे नाले में हमको देढ़ किलोमीटर ऊपर जाना पड़ा. एक के बजाय डेढ़ किलोमीटर ऊपर गए फिर वापस आए और फिर चले, स्वाभाविक है कि मन खराब होना था. रात में मैं जब उनकी सेवा कर रहा था तब मैंने उनसे पूछा कि जब नाला सूखा था तो फिर उसको पार करने की जरूरत क्या थी, हमको इतना दूर क्यों ले गए, तो वह उठकर बैठे और उन्होंने जो बात कही मुझे लगता है कि वह चीज मेरे जैसे व्यक्ति को तो लगी ही लेकिन शायद हमें सोचने पर मजबूर करती है, उन्होंने कहा कि जहां पर भी नदियों का संगम हो, पहाड़ों का संगम हो या स्त्री पुरुष का संगम हो, वहां जीवन की संभावना होती है उसे रौंदने की गलती ना करना. दूसरी बात उन्होंने कही कि जहां पर उद्गम होता है वहां अपूर्व ऊर्जा होती है. यह प्रकृति जब बनी थी तब किसी ने पौधा रोपण नहीं किया, जिसे हम बायोडायवर्सिटी स्थिति कहते हैं वह तो इस धरती ने पैदा की है. प्लांटेशन हमने नहीं किया है. इस धरती पर जो पौधे पैदा होते हैं उसको नष्ट करने का हमने काम किया है इसलिए हम गलती सुधार रहे हैं. हम कोई बड़ा काम नहीं कर रहे हैं. हम अपनी भूलों को ठीक करने का काम कर रहे हैं और इसलिए उन्होंने कहा कि यह उद्गम पहले से है. कोई उद्गम की तारीख नहीं बता सकता. मनुष्य बाद में पैदा हुआ है प्रकृति पहले पैदा हुई है. जो इतनी बेशकीमती चीजें थीं हमने उसको नजरंदाज किया है. इस सदन को अगर वापस बात करनी है तो हम इस पर कभी गर्व न करें या कोई ऐसा अहंकार न बताएं कि मैंने यह कर दिया, मैंने वह कर दिया. मेरा ऐसा मानना है कि हम अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं जो पहले की हैं.
अध्यक्ष महोदय, मैं जब यह बात कहता हूं कि मध्यप्रदेश नदियों का मायका है तो यह सिर्फ एक स्लोगन नहीं है, यह कोई नारा मात्र नहीं है. यहां पर सतपुड़ा और विंध्याचल की पहाड़ी जो मैकल की पर्वत से मिलती है, जहां से नर्मदा का उद्गम होता है, वहीं से सोन का उद्गम होता है, वहीं से जोहिला का उद्गम होता है, लेकिन नर्मदा पश्चिम में जाकर खम्भात की खाड़ी में, सोन जाकर पटना में गंगा से मिल जाती है, जोहिला बीच में जाकर सोन में मिल जाती है. एक नर्मदा बेसिन है जिसको बेसिन का नाम हमने, आपने दिया है, हमारे देश की सरकार में बैठे हुए लोगों ने दिया है. विंध्याचल का आधा पानी नर्मदा में जाता है और आधा गंगा बेसिन में जाता है. सतपुड़ा का आधा पानी नर्मदा में जाता है और आधे से ज्यादा पानी गोदावरी में जाता है. हमारे दो ऐसे जिले हैं धार और बैतूल. धार में माही का उद्गम है जो किसी नदी में नहीं मिलती. वह एक तिहाई गुजरात को पानी देती है और जाकर सीधे अरब सागर में मिलती है. दूसरी है तापी जो मुलताई से निकलती है और पूरे सूरत से लेकर तमाम हिस्से में पानी देती है. वह जाकर सीधे अरब सागर में मिल जाती है. हम कल्पना करें कि हम देश के कितने राज्यों को पानी देते हैं. उसके बाद भी यह चिंता हम सबके सामने है. जो जिस जिले में बैठा है उसको अच्छी तरह से पता है कि जो जल स्तर मैंने बचपन में देखा था वह उससे नीचे जा रहा है, हम उसे रोक नहीं पा रहे हैं. मैंने नर्मदा को बचपन से देखा है. दो बार मैंने नर्मदा की परिक्रमा की है और आज जब मैं नर्मदा को देखता हूं तो लोग नंगे पैर नर्मदा को पार कर देते हैं यह मेरे जैसे व्यक्ति के लिए चिंता भर का विषय नहीं है, कई बार लगता है कि यह हम क्या देख रहे हैं. मुझे लगता है कि जब कभी हम भावनाओं भर से बातें न करें, मैं कुछ नाम जरूर पढ़ना चाहता हूं जैसे मध्यप्रदेश में जितने भी हमारे ब्लाक हैं उसमें 26 विकासखंड ऐसे हैं जो ओवर एक्सप्लोडेड हैं जिन्होंने अत्यधिक दोहन किया है. 5 ऐसे हैं जो क्रिटिकल हैं. गंभीर रूप से चिंताजनक हैं और 60 विकासखंड ऐसे हैं जो सेमी क्रिटिकल हैं, तो इसलिए मैं पहले उनके नाम जरूर पढ़ना चाहता हूं कि कहीं न कहीं कोई न कोई व्यक्ति उसका प्रतिनिधित्व कर रहा होगा लेकिन हमें पता नहीं. एक बंधु हमसे कह रहे थे कि हमने तो अपने ब्लाक को उस पोजीशन से बाहर निकाल दिया है तो मैंने उनको लिस्ट बताई कि सच ऐसा नहीं है. जिन्होंने 90 प्रतिशत् से ज्यादा एक्सप्लॉइट कर लिया है पानी का उस तक ही जाकर यह रास्ता रुकेगा. सबसे ज्यादा है रतलाम का जावरा 177.51 बाकी का प्रतिशत् मैं नहीं पढ़ूंगा. रतलाम का दूसरा है पिपलोदा, धार का धार, उज्जैन का उज्जैन, इन्दौर का देपालपुर, इन्दौर का इन्दौर, बड़वानी का पानसेमल, उज्जैन का बड़नगर, रतलाम का रतलाम, मंदसौर का सीतामऊ, उज्जैन का घट्टिया, शाजापुर का मोमन बड़ौदिया. आगर-मालवा का नलखेड़ा, धार का बदनावर, रतलाम का आलोट, इंदौर का सांवेर, धार का नालछा, मंदसौर का मंदसौर, देवास का देवास, शाजापुर का कालापीपल, राजगढ़ का सारंगपुर, नीमच का जावद, नीमच का ही नीमच, शाजापुर का शुजालपुर, देवास का सोनकच्छ, आगर मालवा का सुसनेर, छिंदवाड़ा का छिंदवाड़ा, राजगढ़ का नरसिंहगढ़, इंदौर का इंदौर अरबन, धार का तिरला और सीहोर का आष्टा. यह ऐसे ब्लाक हैं जिनमें 90 प्रतिशत से ज्यादा ओव्हर एप्लाईजेशन पानी का हुआ है.
अध्यक्ष महोदय, हमें तो राज्य के बारे में विचार करना है. इसमें मेरा-तेरा नहीं हो सकता है. इसके अलावा बुंदेलखण्ड के जितने ब्लाक हैं जिनको अत्यल्प भू-जल की सूची में रखा गया है. वे सारे बुंदेलखण्ड के हैं. जिन ब्लाकों के लिए कहा गया है कि आप ट्यूबवेल नहीं खोद सकते हैं. इस बात पर प्रतिबंध है. इस सबके बावजूद भी भारत सरकार इसके लिए स्कीम लेकर आई लेकिन हम उन नियमों को वहां पर कारगर ढंग से कभी भी स्थापित नहीं कर सके. सरकार किसी की भी हो लेकिन अगर हम पढ़ें तो जो 6 जिले हैं उसमें दमोह, छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, निवाड़ी और सागर. उसके 9 विकासखण्ड हैं जो सबसे ज्यादा खराब स्थिति में हैं. यह तो हमारे पास आंकलन है किसी ने किया होगा. लेकिन इस आंकलन के बावजूद भी हम चेते नहीं. इसके बाद अगर हम यह कहें कि नहीं हमारे पास तो बहुत पानी है. हम बाकी लोगों को देते हैं. हम इस पानी को रोक तो सकते हैं. मैं एक बात जरूर कहूंगा कि कहीं-न-कहीं हम जिस बहस को ठीक दिशा में ले जाना चाहते हैं उसमें कई बार हमारी जो कटुता है या हमारा बातचीत करने का जो तरीका है वह दिशा से भटकाता है. मैं आपको इस बात के लिए हृदय से धन्यवाद दूंगा. यदि ऐसे मुद्दे आते हैं तो यहां पर पक्ष और विपक्ष का सवाल नहीं है. इसलिए मैंने आपसे प्रार्थना की थी और मुझे लगता है कि सदन का हर सदस्य, क्या हम सत्र के बीच में ऐसे मुद्दों पर दिन-दो-दिन बातचीत नहीं कर सकते हैं. जिन पर आम सहमति बने हमें लगे कि यह गलती किसी ने भी की होगी आप किसी एक व्यक्ति पर इस गलती को नहीं डाल सकते हैं. यह पीढ़ियों की गलती है. जिसका परिणाम आज हम भुगत रहे हैं. पिछले वर्ष जब मैंने पौधारोपण पर प्रतिबंध लगाया तो लोगों ने नाराजगी व्यक्त की. लेकिन जब मैंने एक बार पूछा कि आपने अपनी पंचायत में कितने पौधे लगाए. तो उन्होंने कहा कि 625, उसमें से कितने जीवित हैं तो बताया गया कि एक भी जीवित नहीं हैं. पौधे के जीवित नहीं होने के पीछे दो ही कारण हो सकते हैं या तो आपने उसकी रक्षा नहीं की या आपने गर्मी में उसे पानी नहीं दिया. अन्यथा पौधे के मरने का तो कोई कारण नहीं है. यह कैसे हो सकता है एकाउन्टेबिलिटी कहां पर तय होगी. जिम्मेदारी कौन तय करेगा. मैंने साफ कहा कि मैं पीछे पटलकर देखने वाला नहीं हूँ. मैं किसी जांच में विश्वास नहीं करता, लेकिन हम अपनी गलती को क्या सुधार सकते हैं. मैं नर्मदा का परिक्रमावासी था लोग कहते हैं कि नर्मदा के किनारे इतना वृक्षारोपण हुआ. अगर नर्मदा की मदद करनी है तो हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है. इस राज्य के 52 नगर निकाय नर्मदा से जल लेते हैं. यह मैं आज नहीं कह रहा हूँ. मैं हमेशा यह बात कहता रहा हूँ कि हम सब नर्मदा से लेना जानते हैं नर्मदा को वापिस करना नहीं जानते हैं.
संसदीय कार्य मंत्री (श्री कैलाश विजयवर्गीय) -- अध्यक्ष महोदय, नर्मदा जी के प्रति प्रहलाद जी की श्रद्धा बता रहा हूँ वे भाषण दे रहे हैं तो उन्होंने चप्पल उतारकर रख दी हैं. चप्पल नहीं पहनी है उन्होंने यह नर्मदा जी के प्रति उनकी आस्था है.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल -- अध्यक्ष महोदय, मैं कह रहा था कि हम इन बातों को कम से कम इस भाव से लें कि हां हम जीवन में कुछ करना चाहते हैं. हम सभी अपने बच्चों को स्नेह करते हैं. जितना भी धन कमाएं, जितनी भी पद, प्रतिष्ठा हमारे बच्चों को मिले लेकिन यदि हम ऐसे मुद्दों पर गंभीर नहीं है. इस पर राजनीति करने का तो कोई कारण ही नहीं है. अध्यक्ष महोदय, मैंने यह कड़े प्रतिबंध इसलिए लगाए थे कि कहीं-न-कहीं हम अपनी चीजों को ठीक करें. जब मैंने देखा कि नर्मदा के किनारे कितनी पंचायतों की सरकारी जमीन है तो मुझे 352 स्थानों पर सरकारी जमीन मिली हैं. मैंने कहा कि मैं सभी जगह तो नहीं करुंगा लेकिन जहां 2 एकड़ से ज्यादा जमीन होगी तो वहां पर मैं फैंसिंग का पैसा दूंगा. अध्यक्ष जी आप भी उस विभाग के मंत्री रहे हैं. हमारे पास फैंसिंग का पैसा नहीं है लेकिन हमने उसका प्रावधान किया. यदि पौधे बचाने हैं तो आपको कुछ रास्ता तय करना पड़ेगा. तो मैंने तय किया कि 2 एकड़ से ज्यादा जमीन होगी तो हम फैंसिंग का पैसा देंगे और उसके अलावा एक और अभियान चलता है कि हम एक दिन में इतने लाख पौधे लगा देंगे. मुझे लगता है कि यह पौधारोपण का तरीका नहीं है. जैसा मैंने कहा कि जब धरती बनी थी तो मनुष्य ने पौधा नहीं लगाया, वह जैवविविधता इस धरती ने दी है, वहां की जलवायु ने दी है और इसलिए कहीं न कहीं हमको अपने काम करने के तरीके में सुधार करना पड़ेगा. तब मैंने कहा कि 15 जुलाई से लेकर 15 अगस्त तक आप सरकारी जमीन में पौधारोपण कीजिए और 15 अगस्त से लेकर 15 सितम्बर तक आप अपनी निजी जमीन पर पौधारोपण कीजिए. मध्यप्रदेश के हर जिले में वर्षा का चक्र अलग-अलग होता है. अगर पानी नहीं गिरेगा और आप पौधा लगाएंगे तो आप उस पौधे को बचाएंगे कैसे. इसलिए मुझे लगता है कि पौधे कैसे, जो नर्सरी वाला दे दे इसलिए वही लगा दें मैंने इस पर भी प्रतिबंध लगाया.
अध्यक्ष महोदय, और भी जानकार लोग होंगे, उनके अपने अनुभव होंगे मैं चाहता था कि वह शेयर करते , लेकिन जो मेरा अनुभव है हर नदी का अपना चरित्र है. उसकी पौध में एक न एक पौधा ऐसा होगा जो सिर्फ उस नदी के किनारे होगा. बाकी जगह वह उतनी मात्रा में नहीं मिलेगा और उसी का परिणाम है कि उसके जल की गुणवत्ता, वहां पर रहने वाले लोगों का आचरण, उनका स्वभाव, कहीं न कहीं उस बात से प्रभावित होता है. यहीं नदी की पहचान है. नदी में अगर हम गंदगी न डालें तो वह अपनी गंदगी दूर कर ही लेती है. मैंने वर्ष 2002 या वर्ष 2003 में एक लेख लिखा था कि आप नदी को नहर मत बनने दो, उसके पीछे मेरा कहना यही था कि जैव विविधता आप पैदा नहीं करते हैं. वह उस जमीन की, उस जल की ताकत है. हम उसे बचा लें तो अच्छा होगा. यदि हम गंदगी न डालें तो नदी में कभी गंदगी नहीं हो सकती है. वह बरसात में अपना स्थान भी तय कर देती है, अपनी गंदगी भी बहाकर ले जाती है. हम उसमें गंदगी न करें तो मुझे लगता है कि नदी के सामने कोई संकट नहीं है.
अध्यक्ष महोदय, जिस प्रकार से हम रेत का उत्खनन करते हैं. नदी रेत निकालने की इजाजत देती है, लेकिन हम जो अनियंत्रित तरीके से खनन करते हैं वह नदी के लिए दुर्भाग्य है. अन्यथा वह रेत तो लाती ही इसलिए है कि हम उसका उपयोग करें और इसलिए मुझे लगता है कि कई बार इनमें बड़ा विरोधाभाष होता है, लोगों को लगता है कि रेत नहीं निकालना चाहिए, कोई कहता है कि रेत निकालना चाहिए. रेत तो निकलनी चाहिए लेकिन, मर्यादित तरीके से निकलनी चाहिए. यह उसका उत्तर है. उत्तर यह नहीं है कि रेत नहीं निकलनी चाहिए. रेत तो आती ही इसलिए है. यदि उसे नहीं निकालेंगे तो वह ऊपर आती जाएगी और नदी के लिए संकट पैदा करेगी. मुझे लगता है कि ऐसे अनेक उदाहरण हम सभी को मिलेंगे और इस वर्ष जब हमने अभियान लिया तो मैं मुख्यमंत्री जी को इस अवसर पर धन्यवाद दूंगा कि जब मैंने उनसे पिछली बार कहा कि मैं तीस दिन का अभियान था और 30 जून तक 32 नदियों के उद्गम पर गया. मुझे सात जगहों पर पानी मिला बाकी किसी भी नदी के उद्गम पर पानी नहीं मिला तो मैंने उनसे आग्रह किया कि इसमें तो मैं कुछ कर ही नहीं पाया. 30 जून आया और बरसात शुरु हो गयी. मैं पौधारोपण कैसे करूंगा. मैंने प्रतिबंध लगा दिया था. इस बार जब मुझे अवसर मिला तो मैंने यह काम किये. उसमें मैंने नर्मदा जी के किनारे जितनी भी सरकारी जमीनें थीं उसमें 231 जगह चिह्नित की हैं जहां पर फेंसिंग है. जहां पर पौधारोपण आपके क्षेत्र में है तो आपको जरूर करना चाहिए. आपको देखना भी चाहिए. हम आश्रय स्थल बना रहे हैं, लेकिन मेरी शर्त है कि जहां पर 500 पौधे हों वहीं पर भवन की अनुमति मिलनी चाहिए. अन्यथा नहीं मिलनी चाहिए. यदि हम नर्मदा का हित चाहते हैं तो उन्हीं पौधों की जड़ों से तो पानी आएगा. अगर नर्मदा को हम एक बूंद भी देना चाहते हैं तो आपके पास वृक्ष के अलावा और कोई रास्ता नहीं है. मैंने सूची जारी की है कि कौन से देसी पौधे होंगे जो पौधे रोपे जाएंगे. किसी नर्सरी वाले के कहने पर पौधे नहीं रोपे जाएंगे. मुझे लगता है कि यह सावधानी तो हम सभी के मन में भी आती होगी, लेकिन हमें कहीं न कहीं कठोरता के साथ इसमें आगे बढ़ना होगा, लेकिन कुछ सफलताएं हुई हैं. मैं इस साल पिछली बार को जोड़कर अभी तक 92 नदियों के उद्गम पर जा चुका हूं और इसलिए मुझे लगता है कि कई बार एक अनुभव आता है, मुझे भी सीखने को मिला. अब उसमें एक बात मैं सबके सामने, इस सदन के सामने लाना चाहता हूं. हम सभी अपने आपको जानकार मानते हैं. मैं भी मानता था कि मैं बहुत जानकारी हूं, लेकिन जब मैं नदियों के उद्गम पर गया तो हम पढ़े-लिखे लोग, अपने आपको ताकतवर मानने वाले लोग हमने कभी उद्गम की चिंता नहीं की, लेकिन मैं जितने भी उद्गम पर गया हूं मैं सदन के सामने गर्व के साथ कहना चाहता हूं कि जो हमारा आदिवासी था, जो हमारा जनजाति था, वह जरूर उद्गम पर जाता है. तीन ऐसे त्यौहार हैं शिवरात्रि, मकरसक्रांति, और अख्ती या तो वह तीनो त्यौहार में जाता है या तीन में से एक त्यौहार में जाता है. वह अपनी परम्पराओं का आज भी पालन कर रहा है. (मेजों की थपथपाहट)
अध्यक्ष महोदय, इसलिए मैं बड़ी जिम्मेदारी के साथ कहता हूं कि कहीं न कहीं प्रकृति के निकट रहने वाले लोगों ने प्रकृति को जाना, समझा और उसकी चिंता की है. हमने सिर्फ पानी से प्रेम किया है, नर्मदा का पानी बांध में आ जाये, खेत में पानी पहुंच जाये, हमें पीने का पानी मिल जाये, लेकिन यह पानी आता कहां से है और आयेगा कहां से इसकी चिंता हमने नहीं की, लेकिन जिसे हमने कहा, वह तो आदिवासी है, उसने सदैव उस स्त्रोत की चिंता की है, बाकी किसी ने उसकी चिंता नहीं की है. प्राय: जितने भी नदियों के उद्गम हैं, 90 फीसदी आज भी जंगल में हैं, दुर्गम स्थानों पर हैं. शहर में जो लोग आयें हैं, जैसे तापी नदी का विषय आया, धार्मिक कारण था लोग बस गए, जंगल उजड़ गया, कुण्ड समाप्त हो गए और वहां गंदगी का अंबार लग गया. मुझे लगता है ये चीज़ें हैं, जो हमें सीखनी चाहिए, इनसे हमें प्रेरणा लेनी होगी कि हम क्या करें.
अध्यक्ष महोदय, एक शक्कर नदी के उद्गम पर हम गए, उसके उद्गम गांव का नाम है सुअरमऊ है, वहां पत्थर पर पुरानी आकृति बनी हुई है, गांव का नाम भी इसी आधार पर सुअरमऊ है लेकिन उन्होंने कहा कि हम शुक्रवार को नदी के उद्गम पर दीपक लगाने जाते हैं, वहां पानी की एक बूंद नहीं है, एक सीत जैसी थी, शेष पूरा मैदान खाली था, वहां के विधायक भी पहली बार उस नदी के उद्गम पर गए थे, ऐसे बहुत से उदाहरण हैं. मुझे लगता है हमने कभी पलटकर नहीं देखा कि इस नदी का उद्गम कहां है. जब स्त्रोत सूख जायेगा तो नदी का भविष्य नहीं हो सकता. हम बाढ़ का पानी रोककर बांध बना सकते हैं, लेकिन स्त्रोत को पुनर्जीवित करने का काम यदि किसी प्रकार हो सकता है तो सिर्फ वृक्षारोपण से हो सकता है.
अध्यक्ष महोदय, मैं, जिस विभाग का मंत्री हूं, उसकी बातें यहां रख रहा हूं, इसलिए नहीं कि ये हमारी सफलतायें हैं, आपको उसे रि-चैक करना चाहिए. ये परिणाम आयेंगे, हमें 2-3 वर्ष बाद मिलेंगे. कुछ बातें आई हैं, जिनका मैं जवाब देना चाहूंगा, जवाब भी इसलिए नहीं कि आपने गलत कहा था, जो तथ्य हमारे सामने हैं, वे मैं आपके माध्यम से सदन के समक्ष रखना चाहूंगा. हमने खेत तालाब का लक्ष्य रखा था, वह 81 हजार का था, जिसमें से 84 हजार 2 सौ से कुछ अधिक बने हैं, जिसमें लगभग रुपये 2 हजार 48 करोड़ खर्च हुआ है, ये नए स्त्रोतों का आंकड़ा है.
अध्यक्ष महोदय, "अमृत सरोवर" का लक्ष्य 1 हजार का था, जो कि 1254 बने हैं, लेकिन अमृत सरोवर की कल्पना प्रधानमंत्री जी ने की थी. यह संख्या अब 5 हजार 8 सौ 39, मध्यप्रदेश के भीतर है. जो पुराने स्त्रोत हैं, जो कुंए के पास रिचार्ज पिट बनाने की बात की गई है कि कुंए हैं, लेकिन उनमें पानी नहीं रहता है, इसलिए उनके पास रिचार्जिंग पिट बना दें, ताकि उसमें पानी बढ़ सके. हमने पूरे राज्य में आदेश जारी किया है कि पंचायतों के हैण्डपंप का सोशल-ऑडिट हो, जो पंप सूख गए हैं, उनको इस वर्ष 2026 में, 2-4 फीट पाईप काटें और जहां से बरसात का पानी ला सकते हैं, उसका हम रिचार्जिंग पिट के तौर पर उपयोग करें लेकिन हर हाल में उनके हैण्डपंप के इंस्ट्रूमेंट को वहां से निकाल दिया जाये, रिचार्जिंग पिट के तौर पर उसमें काम हो. इस बार 1 लाख कुंओं का लक्ष्य था कि हम वहां रिचार्जिंग पिट बनायें. मैं खुद भी वहां गया हूं. कई स्थानों पर कुंआ ऊपर था, नदी नीचे थी, उसमें बरसात का पानी कहां से आयेगा लेकिन कहीं से तो लाना होगा, ऐसी भौगोलिक परिस्थितियां हैं, इनका चिन्हांकन हो, ये सबसे जरूरी विषय है. एक बात और कही गई थी कि पुराने स्त्रोतों पर काम नहीं हुआ, लेकिन पुराने समय की सरकार ने "पुष्कर तालाब योजना" बनाई थी] जिसमें 21 हजार से ज्यादा पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार हुआ था.
अध्यक्ष महोदय, मुझे लगता है, इन सभी बातों को लेकर हमें चिंता करनी होगी कि हम रिचार्जिंग सिस्टम को कैसे ठीक करें. मैं पंचायतों में यह बात कहता हूं तो यह बात हमेशा आती है कि टाइड-अनटाइड फण्ड समाप्त हो जाना चाहिए, जबकि टाइड फण्ड का मतलब है कि आप पेयजल और स्वच्छता के लिए पैसा खर्च करें. यदि आपके पास यह पैसा है और नल-जल योजना आयेगी तो उसके लिए आपके पास एक ऑपरेटर होना चाहिए, उसका पेमेंट होगा, यह अलग विषय है लेकिन इससे ज्यादा गंभीर बात यह है कि एक आदमी को 55 लीटर पानी मिलेगा और 5 लोगों का परिवार है तो लगभग 275 लीटर पानी सुबह मिलेगा और 24 घंटे के अंदर हम उसे ग्रे-वाटर बनाकर फेंकने वाले हैं. कहीं तो वह पानी जायेगा यदि हमने ग्रे-वाटर मैनेजमेंट नहीं किया तो जो नुकसान भौतिक तौर पर होगा, वह तो होगा लेकिन अगर यदि हमने इसे इकट्ठा करके ठीक जगह पर पहुंचा दिया, तो शायद वह रिचार्जिंग सिस्टम हमारे मवेशी के पीने के पानी के लायक होगा, कुछ पानी जमीन के भीतर चला जायेगा, कुछ तो लाभ मिलेगा और मुझे लगता है कि इस आधार पर हमें सोचना होगा. और इसलिए इस बार एक बड़ी सफलता है, इसकी चर्चा बाकी लोगों ने भी की थी. हमने एक सिपरी सॉफ्टवेयर बनाया, यह पहला मौका है, पहला वर्ष है, जिसमें 84,000 खेत-तालाब भी उसी सिपरी सॉफ्टवेयर से तय हुए. किसान भी अपना तालाब अपने खेत में अपनी मर्जी से नहीं खोद सकता है, उसके जो खेत का नक्शा होगा, किस हिस्से में खुदना है? यह हमने सिपरी सॉफ्टवेयर के माध्यम से पहली बार कोशिश की है. चाहे अमृत सरोवर हो, प्रायवेट कोई भी अपना काम करना चाहे, तो वह भी उस सॉफ्टवेयर का उपयोग कर सकता है.
अध्यक्ष महोदय, मुझे गर्व है कि हमारे यहां महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधि मंडल आया है और उसने हमसे सिपरी सॉफ्टवेयर मांगा और हमने उन्हें सिपरी सॉफ्टवेयर दिया. हमसे वन विभाग के लोगों ने भी उस सॉफ्टवेयर को मांगा है, हमने कहा है कि यह राज्य की संपत्ति है, हमें देने में कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि यदि कोई किसान भी उसका उपयोग करेगा, तो कम से कम उसको लाभ तो मिलेगा. अध्यक्ष जी, उसमें 15 लेयर्स हैं, जिसमें पानी अगर रोकना है, अगर पानी रिचार्ज होगा, आपके जमीन का डेटा ऐसा है कि अब वह नीचे चला जायेगा, यह सारे कारण उसके भीतर हैं. तो मुझे लगता है कि इसके प्रयोग हमें आने वाले 2-3 वर्षों में दिखेंगे और उसके आधार पर ही, मुझे लगता है कि हमें आगे बढ़ना चाहिए. इसमें कम से कम योग्य स्थान का चयन, जो एक बड़ी अलोचना का कारण बनता है. हम चाहे जंगल के तालाब देखें, मैं इससे बिल्कुल सहमत हूँ. मैंने भी जंगल के मामले उठाए हैं कि जंगल में जो तालाब बनते हैं, उनमें एक बूँद पानी नहीं होता, जबकि उसके पहले होता था. सिर्फ साइट सिलेक्शन सही न होना, एकमात्र यही कारण है, वरना् कोई दूसरा कारण नहीं है. मैं तीसरी बात कहना चाहता हूँ कि जबकि जल का स्तर नीचे जा रहा है. जल का स्तर नीचे जाने के दो ही कारण हैं- या तो आप डेंसिटी ट्यूबवैल हैं, या फिर हमने पौधे काटे हैं, तीसरा कोई कारण नहीं है कि जल का स्तर नीचे जाये.
संसदीय कार्य मंत्री (श्री कैलाश विजयवर्गीय) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी के संज्ञान में एक चीज जरूर लाना चाहता हूँ. यह बात सही है कि तालाब सूख रहे हैं, पर जनसंख्या बढ़ने के कारण उनका कैचमेंट एरिया पूरा समाप्त हो रहा है और इसलिए नगरीय विकास हो या ग्रामीण विकास हो, कम से कम हम जब गांव का विकास कर रहे हैं, तो जो कैचमेंट एरिये हैं, जो नाले हैं, जो तालाब को भरते हैं, उसकी चिन्ता करने का एक अभियान चलाना चाहिए, नहीं तो तालाब वापस फिर से भर नहीं सकते.
डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से अपना एक अनुभव साझा करना चाहता हूँ कि मैं जिस इलाके से आता हूँ, वहां हमारी प्रधान नदी सोन नदी है. सोन नदी की बायो डायवर्सिटी बहुत समृद्ध हुआ करती थी. लेकिन बांध बनने से बहुत सारी जलीय जीव-जन्तु की प्रजातियां सब नष्ट हो गई हैं. वहां पर एक मशहूर मछली हुआ करती थी, वह कोलकाता में सबसे महंगी दर पर बिकने वाली मछली हुआ करती थी- जिसका नाम महाशीर था. वह 40-40 किलो, 50-50 किलो वजन की हुआ करती थी, वहां महाशीर मछली की प्रजाति ही खत्म हो गई है.
मंत्री जी, बहुत अनुभवी हैं, ज्ञान का कोष हैं और नदी पुत्र भी हैं, जो बहुत चिन्ता हर चीज की करते हैं. उनके पास बहुत सी बातों के समाधान भी हैं, इसलिए मैंने यह बात उठाई. मैं अपनी बात खत्म करने के पहले हल्के नोट पर थोड़ा बात करूँ, मंत्री जी ने कहा कि मध्यप्रदेश हमारा मायका है, तो ससुराल कहां पर है ? कहीं गुजरात तो नहीं है. (हंसी)
अध्यक्ष महोदय - (डॉ. रामकिशोर दोगने के खड़े होकर बोलने पर) दोगने जी, आप कृपया शान्त रहें. इस पर बहुत लोग बोल चुके हैं.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल - अध्यक्ष जी, मैं दोनों वरिष्ठ सदस्यों का हृदय से आभारी हूँ. संवाद में विनोद होता है, तो आनन्द रहता है और चर्चा नीरस नहीं होती. मैं, माननीय श्री कैलाश जी और आदरणीय डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह जी दोनों को धन्यवाद देता हूँ.
अध्यक्ष महोदय, मुझे लगता है कि यह चर्चा ऐसी ही होनी चाहिए और जहां तक सवाल पहचान या अतिक्रमण हटाने का है तो मैंने लिखा था, हमने नदी-तालाबों के जो अतिक्रमण हैं, उसकी मुक्ति के लिए पिछले 5 वर्षों में जितने भी आदेश हुए हैं, चाहे किसी ने भी किए हों. उनके अतिक्रमणों के आदेश को ध्यान में रखकर खाली कराने का फैसला लिया है, इस पर कार्यवाही करेंगे, यह कठिन काम लग सकता है. लेकिन यह काम होना चाहिए. मैं एक उदाहरण देता हूँ, मेरे विधान सभा क्षेत्र में एक सिंगरी नदी है. जो गोटेगांव विधान सभा से निकलती है. उस पर वर्ष 1998 में इंजीनियर सुनील कोठारी जी ने काम शुरू किया. उनकी जितनी क्षमता थी, उतना काम उन्होंने किया. लोग कहते हैं कि घाट बना देंगे. मैंने अपने अनुज से कहा, मेरे भतीजे नहीं रहे थे, उनके नाम का फाउण्डेशन है तो मैंने अपने भैया से कहा कि यार, ये सरकार न करे, क्योंकि मैं मंत्री हूँ तो लोग कहेंगे कि मंत्री हैं तो करा लिया, हम फाउण्डेशन से करते हैं. अध्यक्ष जी, हमने दो दिन में 11 किलोमीटर नदी, अब उनके पास संसाधन थे, कहीं ब्रिज न टूटे, हमने तो कभी जिंदगी में देखा नहीं. पहले दिन जहां पर काम हुआ, उसके ठीक दूसरी तरफ 6 किलोमीटर मैं पैदल चला, दूसरे दिन जहां काम हुआ, वहां पर 6 किलोमीटर मैं पैदल चला. मैंने भी पूरे 3 दिन दिए और तीसरे दिन उसका पानी नरसिंहपुर शहर से क्रॉस होकर निकल गया. मैंने उस बात के लिए इंजीनियर सुनील कोठारी जी को धन्यवाद दिया. जिस आदमी ने वर्ष 1998 में सोचा होगा, लेकिन वह पूरा नहीं हो पाया. सब चीजों का श्रेय हमें नहीं लेना चाहिए. ऐसे अनेक लोग हैं जो अकेले नदियों पर काम कर रहे हैं, जल पर काम कर रहे हैं. इसलिए जब मैं उद्गम की यात्रा पर गया तो मैंने यह बात माननीय मुख्यमंत्री जी से कही. मैं मुख्यमंत्री जी को फिर से धन्यवाद इस बात के लिए दूंगा कि उन्होंने गंगोत्री हरित परियोजना का नाम उसको दिया कि उद्गम पर फेंसिंग और वृक्षारोपण का हम पैसा देंगे क्योंकि मेरे सामने संकट यह था कि उद्गम जंगल के क्षेत्र में है, जहां पर ग्रामीण विकास विभाग कुछ नहीं कर सकता. पैसा हम दे सकते हैं. लेकिन अभी जब मैं खरगोन गया और मैं जितनी जगहों पर गया, उसके पहले ही लगभग 79 स्थानों पर पैसा चला गया कि आप फेंसिंग करिए और पौधे लगाइये. जब मैं खरगोन में उस कुंदा नदी के उद्गम पर गया तो वहां पर डीएफओ भी थे, उन्होंने कहा कि आपके विभाग से पैसा आया है और हम इसको करेंगे. बाकायदा प्लांटेशन किया और उन्होंने कहा कि हम आपको वीडियो भेजेंगे.
अध्यक्ष जी, हमें कहीं न कहीं अब एकाउन्टेबिलिटी की तरफ जाना पड़ेगा. जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी और इसलिए यह योजना है, यह योजना कहीं न कहीं निश्चित रूप से सफल होगी और हम सब ऐसा न मानें कि हम विरोधी दल के हैं या सरकार में बैठे हैं, हम एक जनप्रतिनिधि हैं. हमारी अपनी एक पहचान तो हो सकती है कि यह काम है और उसमें सरकार अपने स्तर से जो मदद कर सकती है, वह करेगी. अगर आपके विधान सभा क्षेत्र में ऐसा कुछ है तो आप करिये, उसकी शुरूआत करिए. मुझे लगता है कि अगर यह काम हम करते हैं तो आने वाली पीढ़ी के लिए हम कुछ योगदान जरूर करेंगे. जल पर्यावरण की बात मैंने जब कही थी तो मैंने कहा था कि रिचार्जिंग सिस्टम डेव्हलप तो करने पड़ेंगे लेकिन कैसे, तो हमारे जो सूखे तालाब हैं. मैं ज्यादा दूर नहीं जाता, जब मैं दिल्ली में था, तब भी मैंने अपने लॉन में बना लिया था, जबकि मैं उस वक्त पर्यटन मंत्री था. जब मैंने इस्टीमेट बुलाया तो वह 60 लाख रुपये का आया और मैंने सीपीडब्ल्यूडी से बनवाया तो वह 12 लाख रुपये में हो गया. बाद में पूरे लॉन में पानी भरता था. अध्यक्ष जी, अभी जो मुझे बंगला मिला था तो मैंने करवाया तो वहां सूखा बोर हुआ, दरवाजे पर जो वास्तु वाले आते होंगे, मैं तो गया नहीं था. तो मैंने कहा इसको आप बंद नहीं कर सकते. आज मेरे बंगले का पूरा पानी, रिचार्जिंग सिस्टम मैंने बनाया और वह पानी उसमें जा रहा है. मुझे लगता है कि मैंने 3 महीने तक पौधे लगाने के लिए इंतजार किया. मैंने नगर निगम, भोपाल को कहा कि मुझे ग्रे वाटर का कनेक्शन का कनेक्शन चाहिए. आपको आश्चर्य होगा, साढ़े 17 लाख रुपये का इस्टीमेट बना. मुझे ग्रे वाटर का कनेक्शन मिला, तब तक मैंने पौधे नहीं लगाए. पहले तो मुझे कहा गया कि मंत्री का बंगला है तो दो-तीन पीने के पानी के कनेक्शन दे देते हैं. मैंने कहा यह तो अपराध है. बाद में मुझसे कहा गया कि आप किसी और को कहना मत. जबकि होना तो यह चाहिए कि इस राजधानी में जितने बड़े बंगले हैं या जहां लॉन हैं, उनमें तो ग्रे वाटर का ही उपयोग होना चाहिए. उनमें तो पीने के पानी का उपयोग नहीं होना चाहिए. मेरा आवास बाकी लोगों ने भी देखा होगा और मैं चाहता हूँ कि मेरे घर में आकर चाय पीजिए और उसके बाद में वह देख लीजिए तो अंदाजा हो जाएगा कि एक साल में ऐसा हो सकता है. अध्यक्ष जी, मैंने साढ़े चार सौ पौधे लगाए थे, उसमें आज बिही के लगभग-लगभग पौधे फल रहे हैं. यह मेरे लिए भी आश्चर्यजनक बात है. मुझे लगता है कि यदि हम करेंगे तो निश्चित रूप से परिणाम हमारे सामने आएंगे. नर्मदा जी के किनारे 16 जिले के 231 ऐसे स्थान हैं, जहां पर हमने यह तय किया है कि फेंसिंग करके हम पौधे लगाकर अपने इस अभियान को सफल बनाने की तरफ एक कदम आगे बढ़ाएंगे. अगर हमने 7-8 साल इसी गंभीरता के साथ इस पर काम किया तो ये जो आंकड़ेबाजी है, शायद इस पर उंगली नहीं उठेगी. मैं एक बात बड़ी जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूँ कि किसी ग्रामीण क्षेत्र में पिछले एक साल में एक भी समाचार नहीं छपा कि पौधे लगे और सूख गए. ये अपने आप में एक रिकार्ड है. उसमें मेरी आलोचना हुई थी. और इसलिये मैं कहता हूं कि वह लोग ज्यादा बेहतर होते हैं जो पूर्व अनुमानों के आधार पर दूर तक देख पाते हैं और यह चीजें ऐसी ही हैं जब मैं कहता हूं कि नदियों का मायका है मध्यप्रदेश तो हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा नदियों का उद्गम मध्यप्रदेश में है लेकिन हमारे पास में रिकार्ड नहीं है.कोई 250कहता है कोई 300 कहता है सबके अपने-अपने. उद्गम के स्थान गलत लिखे हुए हैं. हमने को आर्डिनेट की चिंता की है कि क्वार्डिनेट के साथ हम नदियों के उद्गम पर उनका उल्लेख करें ताकि हमारे सामने भी इस सरकार के पास वह डेटा हो कि कभी कोई जाना चाहे अभी तो मैं ढूंढता हूं. मैं एक उदाहरण देता हूं. मैं सागर जिले के केसली ब्लाक में सुनार नदी के उद्गम पर गया क्योंकि मैं दमोह का सांसद था वहां सुनार,ब्यारमा,कोपरा यह बड़ी नदियां हैं.मैं उद्गम को ढूंढते-ढूंढते वहां पहुंचा होकर आ गया लेकिन अभी मैं नरसिंहपुर से लौट रहा था तो जो बार्डर बनाती है रायसेन से वह सिंदूरी नदी है कहां से निकलती है जब पता चला तो जिस पंचायत से सुनार नदी का उद्गम है उसी के दूसरे गांव से सिंदूरी का उद्गम है. वह जाती है गंगा बेसिन में और यह जाकर सीधे नर्मदा में मिलती है. ऐसे 10 उदाहरण हैं. एक दानापाव है जहां से 7 नदियों का उद्गम है लेकिन एक दूसरा बैतूल में है जहां 5 नदियों का उद्गम है एक ही कुंड से मैं जूलॉजी का स्टूडेंट हूं. यहां और भी लोग जूलॉजी के समझदार होंगे हम लोग कल्पना नहीं कर सकते कि दो नदियां नर्मदा बेसिन में मिल रही हैं एक ताप्ती में मिल रही हैं और दो गोदावरी बेसिन में मिल रही हैं. एक कुंड से 5 नदियां निकल रही हैं और कैसे जूलॉजी होगी तो स्वाभाविक है कि वह ऊर्जा का केंद्र होगा. कोई भी जूलॉजिस्ट यह तय नहीं कर सकता कि पानी की धारा कहां से कहां जायेगी लेकिन हो गया वैसा हो रहा है मैं अपनी आंख से देखकर आया तो मुझे लगता है कि यह जो अनुभव हैं इनने मुझे भी सिखाया इसलिये जिंदगी में सब जानता है ऐसा मैं नहीं मानता.हमारी बायोडायवर्सिटी हमारी बड़ी पूंजी है. हमारे जीवन के इस सकारात्मक सोच में उसका बड़ा योगदान है. इसलिये मैं एक उदाहरण देता हूं. यह है तो विदेश का लेकिन जब जापान में बुलेट ट्रेन आई उस समय जब बुलेट ट्रेन जब चलती थी तो इतनी आवाज होती थी कि बाहर वाले तो परेशान होते ही थे भीतर बैठा व्यक्ति भी उसमें आसानी से बैठ नहीं सकता था.जब यह सब चला जब मैं कहता हूं कि हम दूर तक देखेंगे तो ठीक रास्ते पर निकलेंगे तो एक व्यक्ति ने वहां का एक पक्षी है वह तेज उड़ता था लेकिन जब शिकार करने जाता था तो उसमें कोई आवाज नहीं होती थी. उसने सिर्फ सलाह दी वह तकनीक नहीं जानता था उसने कहा कि अगर इस पक्षी की चोंच के समान इसका शुरुआती हिस्सा कर दिया जाये तो शायद आवाज कम होगी. उस नान टेक्निकल आदमी के सुझाव ने उस बुलेट ट्रेन को रास्ता दिया और वह सारी आवाज खत्म हो गई. मुझे लगता है कि समस्याएं हमारे सामने चुनौती के रूप में है लेकिन हम उन बातों को बेहतर ढंग से रख सकते हैं. दूसरा उदाहरण है साईंटिस्ट एडीसन का, एडीसन अकेले रहते थे. एडीसन से मिलने कम लोग जाते थे. एक वैज्ञानिक ने एडीसन से कहा कि मुझे आपसे मिलना है तो उन्होंने समय दे दिया जब वह एडीसन के घर गये तो कालबेल बजाई तो आवाज आई कि आईये. जब दरवाजा धकाया तो उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी. अंदर गये तो उनको चाय भी मिल गई नाश्ता भी मिल गया. वाश बेसिन में हाथ धो लिये तो पानी भी निकल आया. सत्कार कराकर जब वह लौटे तो उन्होंने कहा कि सर आप तो इतने बड़े साईंटिस्ट है सब कुछ स्मूथ है दरवाजे में भी कोई तकनीक लगा देते तो एडीसन ने कहा कि तकनीक तो इसमें भी लगी हुई है बोले जब तुम मेरे घर में आए थे. मेरे दरवाजे को जब तुमने धकाया तो तुमको बहुत मेहनत लगी पर तुमने मेरा 5 गेलन पानी नीचे से मेरी छत पर पहुंचा दिया मेरे यहां तो कोई आता नहीं है और जब तुम जाओगे तो दरवाजा खोलोगे तो 5 गेलन और चला जायेगा मेरा 28 दिन का काम हो गया. मुझे मिलने वैसे भी कम आते हैं मेरे यहां मजदूर नहीं होता यह बात तो उनने कही लेकिन जो दूसरी बात एडीसन ने कही वह ज्यादा महत्वपूर्ण थी अध्यक्ष जी जिसके साथ मैं अपनी बात को खत्म करूंगा उनने कहा कि जल हो या वस्तु हो या व्यक्ति हो या विचार हो ऊपर जाने में मेहनत लगती है मेहनत से मत डरना नीचे गिरना आसान विचार नीचे गिरे कोई मेहनत नहीं लगती आदमी नीचे गिरे कोई मेहनत नहीं लगती हम सुविधा भोगी हो गये हैं. मैं देख रहा हूं कि हम श्रम से बच रहे हैं शायद यही हमारा सबसे बड़ा अपराध है हम मेहनत नहीं करना चाहते. पौधा तकनीक से नहीं लग सकता. पौधा मेहनत से ही लगेगा मन से लगेगा. प्रकृति की रक्षा,प्रकृति के साथ जीना यह बिल्कुल अलग दुनियां है. मेरे अराध्य परम पूज्य शिवावसी जी ने मुझसे कहा था कि प्रवृत्ति के साथ जियोगे तो खुद भी दुखी होगे और दूसरों को भी दुख पहुंचाओगे लेकिन प्रकृति के अनुरूप जियोगे तो तुम भी सुखी और शांत होगे और पड़ोसी भी सुखी और शांति से होगा. मुझे लगता है साधु संदेश देते हैं करने का काम हमें करना चाहिये. मैं इस अच्छी चर्चा के लिये फिर से सबको धन्यवाद देता हूं और आपको विशेष तौर पर धन्यवाद करता हूं कि ऐसे विषय आते रहें और हम राज्य के बारे में सोचते रहें मैं आप सबका धन्यवाद करता हूं और अपनी बात को यहां समाप्त करता हूं.
श्री कैलाश विजयवर्गीय-- अध्यक्ष महोदय, प्रहलाद जी ने जो विषय रखा निश्चित रूप से बड़ा गंभीर है. इस गंभीरता को ही देखते हुये हमारे लोकप्रिय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जी ने जल गंगा संवर्धन अभियान एक महीने नहीं तीन महीने तक चलाया और पूरे प्रदेश में जल संवर्धन के कार्यक्रम हुये. मेरे पास बहुत सारे डाटा थे मैंने दिये नहीं हैं. मैं आपके माध्यम से पूरे सदन को और पूरे प्रदेश की जनता से कहना चाहता हूं कि जल ही जीवन है, जल को रोकिये, जल है तो कल है और यह हमारे मुख्यमंत्री जी का संदेश है. आप सबने बहुत ध्यान से सुना, इसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय-- जल संवर्धन पर लगभग 5 घंटा 40 मिनट चर्चा हुई है और मंत्रीगण सहित लगभग 31 महानुभावों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं. प्रहलाद जी का जवाब निश्चित रूप से बहुत ही सारगर्भित और पथ प्रदर्शन करने वाला है, मैं उनको हृदय से बहुत बधाई देता हूं, धन्यवाद देता हूं. हम सभी जानते हैं कि यह विषय काफी महत्वपूर्ण था और दलीय सीमाओं से ऊपर उठकर ही ऐसे विषयों पर विचार होगा तभी निश्चित रूप से हम सफलता की ओर अग्रसर हो पायेंगे. मैं एक-दो आग्रह इस अवसर पर जरूर करना चाहता हूं. जिन सदस्यों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं, सरकार से संबंधित विभाग उनमें से जो क्रियान्वयन करने के योग्य हैं वह लिपिबद्ध करके कार्यवाही निकाल लें और उस पर मुझे लगता है हम लोगों को सरकार की ओर से काम करना चाहिये. दूसरा मेरा अनुरोध सभी माननीय सदस्यगणों से है कि यह विषय बहुत व्यापक है और बड़ी चुनौती है और इससे जूझना इस पर विजय प्राप्त करना प्रत्येक इंसान का कर्तव्य भी है और धर्म भी है इसलिये इसको सरकार के अकेले भरोसे पर नहीं छोड़ा जा सकता. इसलिये हम सब लोगों को भी यह कोशिश करनी चाहिये कि सरकार का सहयोग मिले तो सहयोग के साथ और सरकार का सहयोग न भी मिले तो अपने संतोष के लिये और अपना कर्तव्य पूरा करने के लिये हम सब लोगों को वृक्षारोपण में योगदान देना चाहिये क्योंकि हम करेंगे और स्वयं के संतोष के लिये करेंगे तो मैं समझता हूं उसके फल ज्यादा मीठे होंगे, इस आशा के साथ आप सब लोगों से यह अनुरोध करना चाहता हूं. अब मैं समझता हूं कि काफी चर्चा हुई है, अच्छी चर्चा हुई है, आगे भी ऐसी चर्चायें सबके सहयोग से होती रहें तो निश्चित रूप से सदन की सार्थकता भी सिद्ध होगी और हम सब लोग भी एक दूसरे का ज्ञानवर्द्धन कर सकेंगे.
विधान सभा की कार्यवाही मंगलवार, 5 अगस्त, 2025 को प्रात: 11 बजे तक के लिये स्थगित की जाती है.
अपराह्न 5.34 बजे विधान सभा की कार्यवाही, मंगलवार, दिनांक 5 अगस्त 2025 (14 श्रावण, शक संवत् 1947) को प्रात: 11 बजे तक के लिये स्थगित की गई.
भोपाल ए.पी. सिंह
दिनांक : 4 अगस्त, 2025 प्रमुख सचिव
मध्यप्रदेश विधान सभा