मध्यप्रदेश विधान सभा
की
कार्यवाही
(अधिकृत विवरण)
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चतुर्दश विधान सभा त्रयोदश सत्र
फरवरी-मई, 2017 सत्र
बुधवार, दिनांक 03 मई, 2017
(13 वैशाख, शक संवत् 1939 )
[खण्ड- 13 ] [अंक-19 ]
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मध्यप्रदेश विधान सभा
बुधवार, दिनांक 03 मई, 2017
(13 वैशाख, शक संवत् 1939 )
विधान सभा पूर्वाह्न 11.03 बजे समवेत हुई.
{अध्यक्ष महोदय (डॉ.सीतासरन शर्मा) पीठासीन हुए.}
राष्ट्रगीत
अध्यक्ष महोदय- अब,राष्ट्रगीत 'वन्दे मातरम्' होगा. सदस्यो से अनुरोध है कि वे कृपया अपने स्थान पर खड़े हो जाएं.
(राष्ट्रगीत 'वन्दे मातरम्' का समूह गायन हुआ )
श प थ
1. उप चुनाव में निर्वाचन क्षेत्र क्रमांक 9-अटेर से निर्वाचित सदस्य श्री हेमन्त सत्यदेव कटारे तथा
2. निर्वाचन क्षेत्र क्रमांक 89-बांधवगढ़(अजजा) से निर्वाचित सदस्य श्री शिवनारायण सिंह 'लल्लू भैया'
अध्यक्ष महोदय- उप चुनाव में निर्वाचन क्षेत्र क्रमांक 9-अटेर से निर्वाचित सदस्य श्री हेमन्त सत्यदेव कटारे तथा निर्वाचन क्षेत्र क्रमांक 89- बांधवगढ़(अजजा) से निर्वाचित सदस्य श्री शिवनारायण सिंह 'लल्लू भैया' शपथ लेंगे, सदस्यों की नामावली में हस्ताक्षर करेंगे और सभा में अपना स्थान ग्रहण करेंगे.
1. श्री हेमन्त सत्यदेव कटारे{अटेर}-- प्रतिज्ञान
2. श्री शिवनारायण सिंह 'लल्लू भैया'{बांधवगढ़}- शपथ
2. निधन का उल्लेख
(1) श्री प्रताप सिंह बघेल,भूतपूर्व सदस्य विधान सभा
(2) श्री विनोद खन्ना,संसद सदस्य
(3) डॉ.अखिलेश दास गुप्ता,पूर्व केन्द्रीय मंत्री
(4) श्री रमेशचन्द्र अग्रवाल,चेयरमैन, दैनिक भास्कर समाचार पत्र समूह
(5) छत्तीसगढ़ के सुकमा तथा जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले की कृष्णा घाटी
में शहीद जवान
श्री रमेशचन्द्र अग्रवाल का जन्म दिनांक 30 नवम्बर,1944 को झांसी,उत्तर प्रदेश में हुआ था. श्री अग्रवाल पत्रकारिता के क्षेत्र में नवाचारों के पक्षधर रहे और उन्होंने मीडिया जगत को एक नई राह दिखाई.
आपके निधन से देश, प्रदेश ने एक समाज सेवी तथा पत्रकारिता को एक नया आयाम देने वाले व्यक्ति को खो दिया है.
मुख्यमंत्री (श्री शिवराज सिंह चौहान) - माननीय अध्यक्ष महोदय,स्वर्गीय श्री प्रताप सिंह बघेल अचानक ऐसे छोड़कर चले जायेंगे कल्पना नहीं थी. वे एक लोकप्रिय राजनेता थे,समर्पित समाजसेवी थे और बड़े कुशल वक्ता थे. उनके वक्तव्य में हास्य विनोद में भी वे कई तरह की बातें सहजता से वे कह जाते थे वह कला बहुत कम लोगों में हुआ करती है. धार जिले की राजनीति की कल्पना उनके बिना कर पाना कठिन है लेकिन उनका जाना केवल धार की क्षति नहीं है पूरे मध्यप्रदेश की क्षति है. समाज के सबसे पीछे और सबसे नीचे का जो तबका हमारा आता है उसकी सेवा उनका संकल्प था. पूरे परिश्रम,समर्पण और ईमानदारी से उन्होंने जनता की सेवा की. विधायक रहते हुए उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई थी. संसदीय सचिव,राज्यमंत्री और मंत्री के रूप में उन्होंने प्रशासनिक दक्षता का भी परिचय दिया था और जब वे वर्ष 1985 से लेकर 1990 तक लोक सभा के सदस्य थे तब भी उन्होंने अपने कृतित्व से एक नई छाप छोड़ी थी. वे हरदिल अजीज थे. उनका ऐसे चले जाना हम सबके लिये बहुत कष्टकारक है. उनके निधन से प्रदेश ने एक वरिष्ठ राजनेता और कुशल प्रशासक खोया है.
स्वर्गीय श्री विनोद खन्ना जी के बारे में हम सब जानते हैं. एक बड़े आकर्षक व्यक्तिव के मालिक थे. हमने हीरो की लोकप्रियता तो उनकी देखी लेकिन विलेन रहते हुए हीरो से ज्यादा पापुलर हो जाना इसका उदाहरण विनोद खन्ना थे. अपने प्रभावशाली अभिनय से उन्होंने लोगों के दिलों में अलग स्थान बनाया था. एक अमिट छाप छोड़ी थी. मुझे उनकी फिल्म का एक गाना बहुत अच्छा लगता है जिसको मैं कई बार गुनगुनाता हूं " रुक जाना नहीं तू कहीं हारकर,कांटों पे चलकर मिलेंगे साये बहार के, ओ राही..ओ राही..."
ऐसी अनेकों उद्देश्यपूर्ण फिल्मों में उन्होंने काम किया. वे केवल एक कलाकार नहीं थे. विलेन से वे हीरो बने हीरो बनकर लोगों के बीच में छा गये लेकिन उसके साथ-साथ वे एक आध्यात्मिक व्यक्ति भी थे. भगवान ओशो से मतभेद हो सकते हैं, लेकिन जब उनको लगा कि उनके विचार ठीक है तो वह ऐसे समय जब अभिनय के क्षेत्र में लोकप्रियता के शिखर पर थे, सब कुछ छोड़कर ओशो की शरण में चले गये थे, बाद में जब लौटे तो फिर उन्होंने अपने कुशल अभिनय के कारण अपना स्थान लोगों के दिलों में बना लिया. वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. जब वह राजनीति में आये तो हमने कई अभिनेता सांसद बनते हुये देखे, अक्सर एक बार जीत जाते हैं, दोबारा फिर लड़ने का साहस नहीं कर पाते. लेकिन विनोद खन्ना ऐसे राजनेता साबित हुये जो लगातार जीतते रहे, वह केवल एक बार हारे, चार बार लड़े, तीन बार वह सांसद रहे. पिछले 2014 के चुनाव में फिर से वह बहुमत से जीतकर आये थे. वह कुशल राजनेता भी थे, समर्पित जनसेवक भी थे, उनके निधन से हमने एक लोकप्रिय अभिनेता, एक वरिष्ठ राजनेता और कुशल प्रशासक को खोया है क्योंकि वह पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय और विदेश मंत्रालय में अटल जी जब प्रधानमंत्री थे वह मंत्री रहे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, डॉ. अखिलेश दास गुप्ता जी लोकप्रिय नेता थे विशेषकर खेलों को प्रोत्साहित करने के लिये अपने जीवन में उन्होंने बहुत उल्लेखनीय योगदान दिया था, राज्यसभा के सदस्य के नाते भी और केन्द्र सरकार में राज्यमंत्री के नाते भी उन्होंने अपनी कुशलता और राजनैतिक दक्षता का प्रकटीकरण किया था और भारतीय बैडमिंटन संघ के अध्यक्ष और ओलंपिक के उपाध्यक्ष के नाते खेलों की प्रगति में उल्लेखनीय योगदान दिया.
माननीय अध्यक्ष महोदय, स्व. रमेशचंद्र जी अग्रवाल एक ऐसा व्यक्तित्व है कि जिन्होंने अपने परिश्रम से, अपनी कर्तव्यनिष्ठा से, अपनी कार्यकुशलता से, अपने विजन से पत्रकार जगत में एक अलग स्थान बनाया. हम सब लोग उनसे अच्छी तरह से परिचित हैं. मैं तो बचपन में जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का काम करता था तो अपनी न्यूज टाइप करवाकर अखबारों के दफ्तरों में जाया करते थे. हाथी खाना के पास यूनानी सफा खाना के पास दैनिक भास्कर का छोटा दफ्तर हुआ करता था. हमने वहां से दैनिक भास्कर की प्रगति का सफर देखा और आज दैनिक भास्कर देश के बहुत प्रमुख अखबारों में से एक अखबार बना, यह सचमुच में रमेश जी का ही विजन था और कई बार जब दैनिक भास्कर का नाम आता है और बाकी जगह से निकलता है तो रमेश जी के कारण हमको लगता है कि मध्यप्रदेश की एक उल्लेखनीय उपलब्धि है. लेकिन वह केवल अखबार के मालिक नहीं थे, वह बहुत समर्पित समाजसेवी थे. वैश्य महासम्मेलन बनाकर के उन्होंने वैश्य समाज को समाज सेवा के कामों में और ज्यादा प्रेरित कैसे करें, कोई न कोई सामाजिक कार्यक्रम उनका सदैव चलता रहता था. मुझे याद है पिछले साल जब उज्जैन में सिंहस्थ हुआ था, तब पूरे सिंहस्थ में पीने के पानी के प्याऊ लगे क्योंकि करोड़ों लोग भी आयेंगे तो रमेश जी ने कहा यह काम हम करेंगे, जगह-जगह प्याऊ लगवाने का काम वैश्य महा सम्मेलन करेगा. भोपाल में तो वह इतने कार्यक्रम करते थे, ईद मिलन समारोह, होली मिलन समारोह. सचमुच में वह भोपालियत के प्रतीक बन गये थे और लोगों को जोड़ने के लिये वह एक ऐसा प्लेटफार्म बन गये थे जिसमें उन्होंने लोगों को जोड़ने का काम किया. नर्मदा सेवा यात्रा में बड़े उत्साह के साथ वह होशंगाबाद गये थे और कई लोगों को प्रेरित किया कि यह अच्छा काम है इसमें जुड़ना चाहिये. भोपाल उत्सव मेला जो भोपाल में प्रारंभ हुआ उससे भोपाल को एक नई पहचान दी. अनजाने वह इतने लोगों की मदद करते थे कि आप कल्पना नहीं कर सकते. कई बार बिना बताये, चुपचाप, बड़े उदार हृदय थे. "मुक्त संघो अनहम् वादी, द्युति उत्साह समन्वित: सिद्धि असिद्धि और निर्विकार: कर्ता सात्विक उच्यते" गीता की जो युक्ति थी उन पर बहुत अर्थों में सटीक बैठती थी. अभी मुरारी बापू जी की कथा में अंतिम बार उनके साथ मैंने वहीं मंच शेयर किया था. उनके आग्रह पर ही मुरारी बापू यहां कथा करने आये थे, पूरे समय कथा में वह रहे और ऐसा आयोजन जो हमारे अंदर संस्कारों को पैदा करता है. जीवन को एक नई दिशा देता है वह कार्यक्रम उन्होंने किया था , अभी उनसे बहुत उम्मीदें थीं, अध्यक्ष महोदय उनका मुझसे एक कमिटमेंट भी था कि 2 जुलाई, 2017 को वृक्षारोपण करने वे नर्मदा के तट पर जायेंगे लेकिन उसके पहले ही वह हमारे बीच में से चले गये.
बड़े गौर से सुन रहा था जमाना
तुम्ही सो गये दास्तां कहते कहते.
अचानक उनके जाने से मध्यप्रदेश और देश के सार्वजनिक जीवन में ही नहीं बल्कि पत्रकार जगत में एक बड़ा शून्य पैदा हुआ है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, 24 अप्रैल, 2017 को सुकमा में नक्सली हमला हुआ जिसमें सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हुये . इन शहीदों में प्रदेश के रीवा जिले के त्योंथर के पास के एक गांव के नारायण प्रसाद सोनकरजी भी थे. अध्यक्ष महोदय, नक्सली अब बौखलाहट में हैं , उनका यह कायराना हमला है लेकिन वह यह समझ लें कि इस तरह के हमले उनकी जड़ें बचा नहीं पायेंगे और न ही देश को भयभीत कर पायेंगे. जिन जवानों ने अपने कर्तव्य की बलिवेदी पर अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया वह हमारे लिये वंदनीय हैं. हम उनके चरणों में प्रणाम करते हैं. शहीद नारायण प्रसाद सोनकर मध्यप्रदेश के थे. सीआरपीएफ की तरफ से नियमानुसार जो सम्मान परिवार को मिलता है वह मिलेगा लेकिन हम लोग ने फैसला किया है कि रूपये 25 लाख की सम्मान निधि उनके परिवार को दी जायेगी. एक सदस्य अगर परिवार के शासकीय सेवा में आना चाहेंगे तो वह भी करेंगे, एक फ्लैट या प्लाट रीवा या वहां जहां परिवार चाहेगा वहां पर देंगे, परिवार से चर्चा करके उनकी प्रतिमा लगाई जायेगी.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इसी तरह से 1 मई 2017 को जम्मू कश्मीर के पुंछ में पाकिस्तान की ओर से की गई गोलाबारी में भारतीय सेना के नायब सूबेदार परमजीत सिंह जी और बीएसएफ के हेड कांस्टेबल श्री प्रेम सागर शहीद हो गये . पाकिस्तान के नापाक इरादे भी कभी सफल नहीं होंगे लेकिन यह वो जवान हैं जिन्होंने भारत माता की सीमा की रक्षा करते हुये अपने रक्त की अंतिम बूंद दे दी, मैं इन सभी दिवंगत आत्माओं के चरणों में अपनी तरफ से, प्रदेश की जनता की तरफ से श्रृद्धा के सुमन अर्पित करता हूं और परमपिता परमात्मा से यह प्रार्थना करता हूं कि दिवंगत आत्मा को शांति दे. उनके परिवार को गहन दु:ख को सहन करने की क्षमता दे. शहीदों के चरणों में मेरा प्रणाम.
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा
यह संकल्प है हमारा और इसी संकल्प के साथ शहीद स्मारक भी हमने भोपाल में बनाया है . पुन: उनके चरणों में प्रणाम. ओइ्म शांति, शांति, शांति.
नेता प्रतिपक्ष(श्री अजय सिंह) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, बहुत ही दु:खद प्रसंग निधन के उल्लेख के साथ में आज विधानसभा के एक दिवसीय सत्र का प्रारंभ हो रहा है. स्वर्गीय श्री प्रताप सिंह बघेल, 3-4 बार विधायक रहे, संसद सदस्य रहे है. कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता के साथ साथ समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति की सेवा भी प्रताप सिंह बघेल जी ने जीवनभर की है. 1 मई, 2017 को अपनी आंख को दिखाने अहमदाबाद गये थे और वहां से वे लोट रहे थे, जोबट के पास अचानक उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा. स्थानीय मिशनरी हास्पीटल में उनको ले गये, वहां ड्रिप लगाई गई और वहीं पर प्रताप सिंह बघेल जी ने अपनी अंतिम सांस ली.
माननीय अध्यक्ष महोदय, प्रताप सिंह बघेल जी विधायक, मंत्री एवं सांसद रहे हैं लेकिन जो लोग उनसे परिचित हैं वे उनके व्यवहार को देखते हुये कभी यह नहीं कह सकते हैं कि स्वर्गीय बघेल जी कभी इतने बड़े पदों पर रहे हों, इतने सरल स्वभाव का उनका व्यक्तित्व था. वे हर गरीब के साथ उसी तरह बैठते थे जिस तरह विधायकों के साथ बैठते थे या किसी अधिकारी के साथ बैठते थे, वे बहुत ही मिलनसार थे. आज वह अपने बीच में नहीं हैं, उनके पुत्र विधायक श्री सुरेन्द्र सिंह बघेल से बात हुई, उसी दिन भोपाल आने के लिए सत्र के लिए वह रास्ते में थे, इंदौर के पास से वह लौटकर गए, ऐसे क्षणों में बघेल साहब के पूरे परिवार को कांग्रेस और सदन की तरफ से हार्दिक शोक व्यक्त करता हूं. आदरणीय विनोद खन्ना जी, जैसे माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने कहा कि विलेन से शुरू हुए और हीरो बने, यदि उनके बारे में किसी ने सही और सटीक ब्लॉग लिखा है तो वह श्रद्धेय अमिताभ बच्चन जी का ब्लॉग है, उसमें उन्होंने कहा कि विनोद खन्ना उनके आदर्श थे, विनोद खन्ना के साथ पहली फिल्म अमिताभ बच्चन जी को जब मिली थी, तो वे कह रहे थे कि मैं कांप रहा था कि ऐसे बड़े अभिनेता के साथ मेरा क्या होगा, लेकिन उस पूरी फिल्म के दौरान विनोद खन्ना जी ने उनको ऐसे बना दिया कि जैसे छोटा भाई हो और साहस दिलाया कि तुम नए जरूर हो लेकिन बहुत आगे जाओगे. वे कहते हैं कि मैं सालों उनसे मिलता रहा, फिल्म में थे, फिल्म के बाद बहुत सारे ऐसे क्षण है कि मैं उसका उदाहरण नहीं दे सकता हूं, लेकिन विनोद खन्ना जी के निधन पर अमिताभ बच्चन जी के शब्द थे कि मुझे खुद ऐसा लगा रहा है कि मेरा भाई, मेरा प्रेरक, मेरा सब कुछ आज नहीं है. विनोद खन्ना जी अभिनेता के साथ-साथ, जैसे आदरणीय मुख्यमंत्री जी ने कहा श्री ओशो रजनीश जी से उन्होंने प्रेरणा ली, वे कुछ साल विदेश में भी रहे, लौटकर वापस अभिनेता बने और फिर भारतीय जनता पार्टी के सदस्य रूप में सांसद और केन्द्रीय मंत्री रहे. विलन, हीरो, स्प्रिच्युअल फील्ड में जाने के साथ साथ राजनीति में भी सफल हुए, उनकी भी क्षति हिन्दुस्तान को काफी समय तक बनी रहेगी.
आदरणीय अध्यक्ष महोदय, डॉ.अखिलेश दास गुप्ता जी बहुत ही कम उम्र में अचानक उनकी मृत्यु हुई. राज्य सभा के सांसद, केन्द्रीय मंत्री और एक बहुत ही प्रमुख घराने उत्तरप्रदेश से वह आते थे, उनके पिता बनारसी दास गुप्ता जी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे और अखिलेश दास गुप्ता जी, जितना खेल जगत से जुड़े थे, उससे ज्यादा शिक्षा के क्षेत्र से जुडे़ थे, पता नहीं कितने सारे उनके कालेज, चाहे वह मैनेजमेंट के हो, चाहे सामान्य रूप से हो, उन्हें हरदम चिन्ता लगी रहती थी कि हमारे अंचल के लोगों को ज्यादा से ज्यादा अच्छी शिक्षा कैसे मिल सके. उनके निधन से एक वरिष्ठ राजनेता और कुशल प्रशासक हम सबने खोया है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, आदरणीय रमेशचन्द्र अग्रवाल जी, यदि कहा जाए तो पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने जो स्थान ग्रहण किया वह शुद्ध रूप से अपने बलबूते पर किया. कोई नहीं कह सकता था, जब उन्होंने शुरूआत की कि भास्कर एक समूह के रूप में पूरे देश में छा जाएगा. अचानक अहमदाबाद एयरपोर्ट में एस्केलेटर से उतरते हुए उनको हार्टअटैक हुआ, जब तक अस्पताल ले जाया गया तब तक वहीं पर उनका निधन हो गया. कोई नहीं कह सकता था, उनके परिवार वाले भी नहीं कह सकते थे कि रमेशचन्द्र अग्रवाल जी इस तरह से चले जाएंगे. जैसे मुरारी बापू जी की कथा का उन्होंने आयोजन किया और उस कथा के बाद वे उत्साहित थे.उनको बहुत ऊर्जा आई थी और उन्होंने परिवार के लोगों से, बच्चों से कहा कि मुझे एक नई ताकत मिल गयी है, मैं 10-15 साल और सेवा करुंगा. लेकिन ऊपर वाले की विधि कुछ दूसरी रहती है. अदरणीय अग्रवाल साहब भोपाल उत्सव, वैश्य समाज और उसके साथ साथ जैसे माननीय मुख्यमंत्री जी ने कहा, बहुत गरीब लोगों की मदद भी वे बिना बताये करते थे. आदरणीय अग्रवाल जी आज अपने बीच में नहीं हैं. वे एक उद्योगपति, पत्रकारिता समूह के एक स्तम्भ, भास्कर समूह के एक स्तम्भ और उद्योगपति को भी मध्यप्रदेश ने खोया है.
अध्यक्ष महोदय, अभी हाल में सुकमा जिल जिले में जो नक्सलियों ने हमला किया. ये हमले कब समाप्त होंगे, जिसमें कि अपने लोग शहीद होते हैं. इसमें कुछ न कुछ विचार विमर्श होना चाहिये कि ऐसी जो उन्होंने ताकत बना रखी है, चाहे वह बस्तर हो, चाहे गादरीचोली हो, जहां भी हो. ऐसे लोगों के ऊपर सख्त से सख्त कार्यवाही हो, जिससे कि नक्सलवाद ही समाप्त हो, लेकिन आज अपने बीच में इतने सारे लोग शहीद हुए हैं और खासतौर से रीवा जिले के श्री सोनकर जी और सभी शहीदों को मैं कांग्रेस पार्टी की तरफ से श्रद्धांजलि देता हूं और उनके पूरे परिवार को इस दुख को सहन करने की ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि उनको शक्ति प्रदान करे.
अध्यक्ष महोदय, जम्मू कश्मीर में 1 मई,2017 को पुंछ जिले के कृष्णा घाटी क्षेत्र में जो भारतीय सेना के नायब सूबेदार, श्री परमजीत सिंह और बी.एस.एफ. के हेड कांस्टेबल, श्री प्रेमसागर शहीद हुए. हम कब तक ऐसे लोगों को, पाकिस्तान को सही जवाब नहीं देंगे. इस तरह के लोग जो अपने देश में आकर हमारी फौज के लोगों को बलि चढ़ाते हैं, मैं इस सदन के माध्यम से आदरणीय प्रधानमंत्री जी से प्रार्थना करता हूं कि ऐसे नापाक लोगों को सही तरीके से जवाब मिले,तभी देश की सही रक्षा हो सकती है. अध्यक्ष महोदय, मैं कांग्रेस पार्टी की तरफ से, सभी विधायकों की तरफ से इन सभी दिवंगत आत्माओं के लिये श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं और ईश्वर से कामना करता हूं कि उनके परिवार जन को, परिजन को इस शोक की घड़ी में, इस दुख को सहन करने की वे ताकत दें.
एडवोकेट सत्यप्रकाश सखवार (अम्बाह) -- अध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश विधान सभा के भूतपूर्व सदस्य, श्री प्रताप सिंह बघेल का 1 मई,2017, संसद सदस्य,श्री विनोद खन्ना का 27 अप्रैल,2017 एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री, डॉ. अखिलेश दास गुप्ता का 12 अप्रैल,2017 तथा दैनिक भास्कर समूह के चेयरमेन, श्री रमेशचन्द्र अग्रवाल जी का दिनांक 12 अप्रैल,2017 को निधन हो गया है.
अध्यक्ष महोदय, राजनीतिक क्षेत्र में चाहे वह राजनेता, चाहे वह अभिनेता, चाहे हमारे वरिष्ठ पत्रकार बन्धु, जिनके हमारे बीच से चले जाने से निश्चित तौर पर हम सबको, पूरे देश को क्षति हुई है. ऐसी महान विभूतियां, जो इस दुनिया में नाम कर जाती हैं. वैसे तो संसार का नियम है कि कोई अजर-अमर नहीं है. जो दुनियां में पैदा हुआ है, उसको एक दिन जाना है. फिर भी आज उनके निधन से हम सब ने वरिष्ठ राजनेता, अभिनेता एवं पत्रकारिता समूह के चेयरमेन को खो दिया है. तो मैं अपनी ओर से उनके परिवार जनों को जो गहरा दुख प्रकट हुआ है, उनके परिवार को इस शोक की घड़ी में, इस शोक को सहन करने की, दु:ख को सहन करने की कुदरत से कामना करता हूँ कि उन्हें शक्ति प्रदान करे और मैं उनके चरणों में शोक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ.
अभी हाल ही में हमारे सुकमा जिले और पुंछ जिले में जो वीर शहीद हो गए हैं, उन शहीदों को भी, मैं शोक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और ऐसे वीरों के जो माता-पिता हैं, जिन्होंने ऐसे वीर सपूतों को जन्म दिया, जिन्होंने इस राष्ट्र की खातिर लड़ते-लड़ते अपने प्राण दे दिए, मैं ऐसे वीर शहीदों को कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ, शोक श्रद्धांजलि देता हूँ.
अध्यक्ष महोदय - मैं सदन की ओर से शोकाकुल परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करता हूँ. अब सदन दो मिनट मौन खड़े रहकर दिवंगतों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करेगा.
(मौन के पश्चात्)
अध्यक्ष महोदय - दिवंगतों के सम्मान में सदन की कार्यवाही 10 मिनट के लिए स्थगित की जाती है.
( 11.37 बजे से सदन की कार्यवाही 10 मिनट के लिए स्थगित की गई.)
11:46 बजे {अध्यक्ष महोदय (डॉ. सीतासरन शर्मा) पीठासीन हुए}
कार्यमंत्रणा समिति का प्रतिवेदन
अध्यक्ष महोदय- कार्यमंत्रणा समिति की बैठक दिनांक 03 मई, 2017 को संपन्न हुई. जिसमें निम्नलिखित शासकीय विधेयक एवं शासकीय संकल्प पर चर्चा हेतु समय आवंटित किये जाने की सिफारिश की गई है:-
(1) मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 (क्रमांक 11 सन् 2017) 1 घण्टा
(2) मां नर्मदा नदी को जीवित इकाई घोषित किये जाने संबंधी संकल्प 1 घण्टा
समिति द्वारा यह सिफारिश भी की गई है कि मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 तथा मां नर्मदे नदी को जीवित इकाई घोषित किये जाने संबंधी शासकीय संकल्प के अलावा कोई भी अन्य शासकीय तथा अशासकीय कार्य इस बैठक में नहीं लिए जाएं.
अब, इसके संबंध में डॉ. नरोत्तम मिश्र, संसदीय कार्य मंत्री प्रस्ताव करेंगे.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ. नरोत्तम मिश्र) -- अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूं कि अभी अध्यक्ष महोदय ने शासकीय विधेयक एवं शासकीय संकल्प पर चर्चा के लिए समय निर्धारण करने के संबंध में कार्यमंत्रणा समिति की जो सिफारिशें पढ़ कर सुनाई, उसे सदन स्वीकृति देता है.
अध्यक्ष महोदय-- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ. प्रश्न यह है कि जिन कार्यों पर चर्चा के लिए समय निर्धारण करने के संबंध में कार्यमंत्रणा समिति की जो सिफारिशें पढ़ कर सुनाईं, उन्हें सदन स्वीकृति देता है.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
11:48 बजे शासकीय विधि विषयक कार्य
मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 (क्रमांक 11 सन् 2017)
अध्यक्ष महोदय-- आज की कार्यसूची के पद 3 के अंतर्गत शासकीय विधि विषयक कार्य में उल्लेखित मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 की महत्ता एवं उपायदेयता को दृष्टिगत रखते हुए मैंने इसे आज ही पुर:स्थापन हेतु प्रस्ताव प्रस्तुत करने तथा विचार में लिए जाने की अनुज्ञा प्रदान की है. मैं समझता हूं सदन इससे सहमत है.
(सदन द्वारा सहमति प्रदान की गई)
वाणिज्यिक कर मंत्री (श्री जयंत मलैया)- अध्यक्ष महोदय, मैं, मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 के पुर:स्थापन की अनुमति चाहता हूं.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 के पुर:स्थापन की अनुमति दी जाए.
अनुमति प्रदान की गई.
वाणिज्यिक कर मंत्री (श्री जयंत मलैया)- अध्यक्ष महोदय, मैं, मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 का पुर:स्थापन करता हूं.
अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूं कि मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 पर विचार किया जाए.
अध्यक्ष महोदय-- प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 पर विचार किया जाए.
श्री रामनिवास रावत (विजयपुर)--माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 पर विचार करने के लिए खड़ा हुआ हूँ.
माननीय अध्यक्ष महोदय, हमारे देश में और देश के सभी राज्यों में विभिन्न वस्तुओं पर विभिन्न प्रकार के कर लगाए जाते हैं. इन सभी करों को समाप्त करके उनके स्थान पर एक ही टैक्स लगाने का विचार यूपीए सरकार के समय से चल रहा था. उस समय संविधान में संशोधन की प्रस्तावना भी आई. वर्ष 2014 में उसका अनुसमर्थन करके भी यहां से भेजा गया था. उसके बाद यह विधेयक बना कि एक ही टैक्स प्रणाली माल और सेवा कर लागू की जाए. माननीय अध्यक्ष महोदय, इस संविधान संशोधन के बाद से केन्द्र ने ही माल और सेवा कर अधिनियम लागू करने के लिए अभी तक चार विधेयक पारित कर दिए हैं. इसमें केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017, इंटीग्रेटेड वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017, केन्द्र शासित वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017, वस्तु एवं सेवा कर राज्यों को मुआवजा अधिनियम, 2017. इसके बाद राज्य भी अपना माल और सेवा कर अधिनियम पृथक से तैयार कर रहे हैं और पृथक से पारित कराया जाएगा. मैं समझता हूँ इससे जो एकल टैक्स प्रणाली है उसका उद्देश्य समाप्त हो जाता है. केन्द्र का अलग माल और सेवा कर अधिनियम होगा और राज्य का अलग माल और सेवा कर अधिनियम होगा. जबकि एकरुपता होना चाहिए एक ही अधिनियम होना चाहिए था. उसी में राज्य के अधिकारों का अन्तर्निहित उल्लेख होना चाहिए था और उसी में केन्द्र द्वारा लगाए गए करों का उल्लेख होना चाहिए था. द्वि-कर प्रणाली इसके लागू होने के पहले ही, पहले दिन से प्रारंभ हो गई है.
अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी द्वारा मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 प्रस्तुत किया गया है. इसके लिए एक दिवसीय सत्र बुलाने का निर्णय लिया गया. इसके उद्देश्य और कारणों में एक भी जगह उल्लेख नहीं किया गया है कि ऐसी क्या बाध्यता थी, ऐसी क्या आवश्यकता थी कि हमें इसे पारित करने के लिए एक दिवसीय सत्र बुलाना पड़ा कि हम इसलिए चाहते हैं कि इसको पारित करके दिनांक इतने से लागू किया जाना है, हमारे ऊपर केन्द्र का दबाव है या केन्द्र की संविधानिक बाध्यता है. ऐसा "उद्देश्य और कारणों" में कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया है. मैं समझता हूँ कि जो ड्राफ्ट तैयार किया गया है उसे न तो माननीय मंत्री जी ने ठीक से देखा न ही विधि विभाग के अधिकारियों द्वारा देखा गया है. माल और सेवा कर अधिनियम ड्राफ्ट प्रस्तुत होने के बाद से कल 55 संशोधन, शुद्धि पत्र प्रस्तुत कर दिए गए. 8 शुद्धि पत्र आज प्रस्तुत कर दिए गए हैं. मैं समझता हूँ कि इसको लागू करने तक पता नहीं कितने शुद्धि पत्र आप प्रस्तुत करेंगे. आपने खुद ही ठीक ढंग से नहीं पढ़ा है कि आप क्या चाहते हैं. आप प्रदेश की जनता को किस तरह से कर के दायरे में लाकर कर लगाना चाहते हैं, ऐसा स्पष्ट नहीं है. मैं इसके संबंध में कहना चाहूँगा कि यह काफी बड़ा अधिनियम है. इसके अध्याय 1 प्रारंभिक परिभाषा में देखें. "यह उस तारीख को प्रवृत होगा, जो मध्यप्रदेश सरकार, राजपत्र में, अधिसूचना द्वारा, नियत करे."
अध्यक्ष महोदय, मैं समझता हूँ यह मध्यप्रदेश का पहला ऐसा अधिनियम है, इसमें यह दिया हुआ है कि जहां राज्य सरकार चाहेगी उस दिन से अधिसूचना द्वारा प्रवृत्त होगा. परंतु, इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबंधों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी.
अध्यक्ष महोदय, मैं समझता हूँ कि ऐसा कभी नहीं हुआ होगा. आप कौन से उपबंध को, कौन सी धारा को, किस दिनांक से लागू करेंगे. जब आप लागू करें तभी आपको लाने की आवश्यकता थी तभी आपको व्यवस्था करने की आवश्यकता थी. व्यवस्थाएं आज करा रहे हैं और लागू करने का अधिकार स्वतंत्र रख रहे हैं. अधिनियम के एक खंड को हम आज से लागू करेंगे, अधिनियम के दूसरे खंड को हम दूसरे दिन से लागू करेंगे. उसे विधान सभा से अनुमोदन प्राप्त करने की जरुरत नहीं है. सारे अधिकार विधान सभा से अभी, आज ही आप लेना चाह रहे हैं. इसमें कोई बंधनकारी नहीं है. मैं राजनीतिक जीवन में जब से आया हूँ तब से यह पहला अधिनियम होगा कि एक अधिनियम की भिन्न भिन्न धाराओं को लागू करने का अधिकार सरकार भिन्न-भिन्न दिनांक से कर रही है. अलग-अलग उपखंडों को कब तक लागू करेंगे इसमें यह स्पष्ट नहीं है. अध्यक्ष महोदय, आप स्वयं देख लें. शायद आपके सामने भी ऐसा अधिनियम पहली बार ही आया होगा. सरकार पूरे अधिनियम को लागू करेगी, यह बात मान्य है, लेकिन इस अधिनियम की अलग-अलग धाराओं को सरकार कब-कब लागू करेगी, यह सरकार के विवेक पर निर्भर है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इसी प्रकार यदि हम अधिनियम की परिभाषाओं में जायें तो वहां कृषक की परिभाषा दी गई है. सरकार माल एवं सेवा कर अधिनियम में कृषक को क्यों डालना चाहती है, यह तो आप जानते हैं. कृषक की परिभाषा को इसमें सम्मिलित करने का कारण क्या है, ये तो आप जानें. ''कृषक से ऐसा कोई हिन्दू, अविभक्त कुटुम्ब अभिप्रेत है जो स्वयं के श्रम द्वारा, कुटुम्ब के श्रम द्वारा, नगद या वस्तु के रूप में संदेय, मजदूरी, परसेवकों द्वारा व्यक्तिगत पर्यवेक्षक के अधीन, कुटुम्ब के किसी सदस्य के पर्यवेक्षक के अधीन, भाड़े के मजदूरों द्वारा भूमि पर खेती करता है.''
माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी भी स्वयं जैन हैं. जैन धर्मावलंबी हैं. इस प्रदेश और देश में भिन्न-भिन्न धर्मों के लोग निवास करते हैं और वे सभी खेती-किसानों में लगे हुए हैं या इससे जुड़े हुए हैं. कृषक की परिभाषा में केवल हिन्दू शब्द को जोड़कर, हिन्दू अविभक्त परिवार को जोड़कर, मैं समझता हूं कि अन्य धर्मावलंबियों के साथ न्याय नहीं किया गया है. क्या आप उन्हें कृषक नहीं मानेंगे ?
श्री उमाशंकर गुप्ता- अधिनियम में ज्वाइंट हिन्दू फैमिली शब्द का ही प्रयोग होता है.
श्री रामनिवास रावत- खेती करने वाला व्यक्ति कृषक कहलाया जाएगा. केवल ज्वाइंट हिन्दू फैमिली वाला नहीं.
श्री उमाशंकर गुप्ता- अगर ज्वाइंट फैमिली वाला खेती कर रहा है तो उसे ज्वाइंट हिन्दू फैमिली ही कहा जाएगा.
श्री रामनिवास रावत- माननीय मंत्री जी, आप राजस्व मंत्री भी हैं. आप पहले पूरा अधिनियम पढ़े और फिर पढ़ने के बाद व्याख्या करें.
माननीय अध्यक्ष महोदय, कृषक से ऐसा कोई व्यक्ति या कोई हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब अभिप्रेत है. किसी भी वर्ग का किसी भी धर्म का अविभक्त व्यक्ति अभिप्रेत हो सकता है लेकिन केवल एक धर्मावलंबी को कृषक की व्याख्या में डालना उचित नहीं है. सभी लोग खेती करते हैं. यह पूरी स्थिति है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, कर लागू करने, कर उद्ग्रग्रहण एवं संग्रहण करने की व्यवस्था की गई है. इसमें धारा 9 में उद्ग्रग्रहण एवं संग्रहण के संबंध में दिया गया है. जैसा कि मैंने बताया इस अधिनियम के उपखंड किस दिनांक से लागू किए जायेंगे. धारा 9 में दिया हुआ है कि रजिस्ट्रीकृत, इस उपधारा के उपबंधों के अधीन रहते हुए केवल मद्यपान को इसमें डिलीट कर दिया गया है, छोड़ दिया गया है. इसके अलावा जितनी भी, जो सरकार द्वारा, परिषद् की सिफारिशों पर अधिसूचित किया जाए. अवधारित मूल्य पर 20 प्रतिशत से अनधिक ऐसी दरों पर, जो सरकार द्वारा परिषद् की सिफारिशों पर अधिसूचित किया जाए. राज्य माल एवं सेवा कर नामक कर का ऐसी रीति से जो भेद किए जायें, उद्ग्रग्रहण एवं संग्रहण किया जाएगा, जो करादेयी व्यक्ति द्वारा संहित किया जायेगा. धारा 9 (2) में अपरिष्कृत पैट्रोलियम, हाई स्पीड डीज़ल, मोटर स्प्रिट (जिसे आमतौर पर पैट्रोल कहा जाता है). प्राकृतिक गैस और विमानन, टर्बाइन ईंधन को प्रदाय पर राज्य के कर का उद्ग्रग्रहण उस तारीख से किया जायेगा जो सरकार द्वारा परिषद् की सिफारिशों पर अधिसूचित किया जाये. इसमें सम्मिलित तो कर लिया गया लेकिन परिषद् की सिफारिशों पर ही अधिसूचित किया जायेगा. जब परिषद् कहेगी तब लागू किया जायेगा. यह आपका अधिनियम है. इस अधिनियम में परिषद् कौन सी है, यही स्पष्ट नहीं है. आप कहेंगे कि उसकी परिभाषा केंद्रीय माल एवं सेवाकर अधिनियम में दी है. उसे भी यहां स्पष्ट करना चाहिए कि परिषद् कौन-कौन सी है, परिषद् की नियुक्ति कौन करेगा, परिषद् में कौन-कौन व्यक्ति होंगे और परिषद् में राज्य की क्या सिफारिशें होंगी. केंद्रीय माल एवं सेवाकर अधिनियम में परिषद् की व्याख्या की गई है. लेकिन इस अधिनियम में आपको स्पष्ट करना चाहिए था कि परिषद् का आशय केंद्रीय माल एवं सेवाकर अधिनियम में उल्लेखित परिषद् से संबंधित है, परिषद् मान्य की जायेगी. आपने कोई भी बात स्पष्ट नहीं की है. आप जब चाहे तब परिषद् की सिफारिश पर क्यों लागू करना चाहते हैं ? आप इसे आज से ही लागू करें. पेट्रोलियम उत्पादों पर भी आज से ही जी.एस.टी. लागू करिये. हम यह चाहते हैं कि आज से ही प्रदेश की जनता का भला हो. पूरे देश में एक समान पेट्रोल और डीज़ल के दाम हों. आप आज अधिनियम तो पारित करवा रहे हैं लेकिन लागू जब चाहे तब, जैसी मर्जी आये तब से करेंगे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, यह बड़ी विसंगति है. इसी तरह से धारा 11 में कर से छूट देनी की शक्ति का उल्लेख है. कर से छूट देने की शक्ति के संबंध में भी आप यह क्यों चाहते हों, किन करों से छूट देना चाहते हों? क्या इसमें वह व्यक्ति भी सम्मिलित है जो व्यक्ति कालातीत हो जाए, जो व्यक्ति कर नहीं दे पाए और जिन व्यक्तियों को, जिस तरह से लगातार कहीं न कहीं आप छूट देना चाहते हों, जैसे विजय माल्या को छूट दी, कई लोंगो को एग्जेम्पट करते हों. इस तरह से अधिकार आप अपने यहाँ क्यों रखना चाहते हों? या तो करों की वस्तुओं पर छूट, अगर आपको लगता है कि मध्यप्रदेश की जनता के हित में किसी वस्तु पर हम कर छूट देना चाहते हैं, यह अधिकार तो रखें लेकिन करारोपण पर कर, जिस व्यक्ति पर लगाए गए हैं, अगर वह देने में असफल रहता है, उस पर भी आप छूट देने का अधिकार प्राप्त करना चाहते हों, क्यों? इसका गलत उपयोग होगा. कई लोग कालातीत हो जाएँगे. कई लोग कर जमा नहीं कर पाएँगे और फिर वही स्थिति होगी, जो लोग समय-समय पर कर पर छूट देते आए हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, धारा 23 में, जीएसटी में, रजिस्ट्रीकरण के संबंध में कहा गया है. रजिस्ट्रीकरण अनिवार्य होगा. जीएसटी के अंतर्गत जिनका टर्न ओव्हर 20 लाख से अधिक है उन पर जीएसटी के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा. अध्यक्ष महोदय, जीएसटी में रजिस्ट्रेशन से किन व्यक्तियों के लिए छूट दी गई है. कोई व्यक्ति जो ऐसे मालों या सेवाओं या दोनों के कारबार में अनन्य रूप से लगा हुआ है जो इस अधिनियम के अधीन या एकीकृत माल या सेवा कर अधिनियम के अधीन कर के लिए दायी नहीं है या कर से पूर्ण रूप से छूट प्राप्त है, दूसरा, कृषक, भूमि के खेती की उपज के पूर्ति के विस्तार तक. अध्यक्ष महोदय, कृपया इसको जरूर पढ़ लें. ऐसे कृषक जो भूमि की खेती की उपज की पूर्ति के विस्तार तक. इसका अर्थ क्या है? इसका भावार्थ क्या है, आप क्या कहना चाहते हैं? क्या किसान को भी इसके दायरे में लाना चाहते हैं? केवल भूमि की खेती की उपज की पूर्ति के विस्तार तक. अध्यक्ष महोदय, उपज की पूर्ति तो जो बोनी में हमारा खर्च हो रहा है, जो लागत में खर्च हो रहा है, उसकी पूर्ति तक, विस्तार तक ही आप छूट देना चाहते हों. कृषि से जो आय होगी उसके बारे में आपने कुछ नहीं कहा है. कृषक को इसमें पूर्ण रूप से छूट दी जानी चाहिए, इसमें यहाँ विसंगति है. अध्यक्ष महोदय, इसमें हमारी पूरी तरह से आपत्ति है, यह इतनी जल्दी में लाया गया है, हम इसमें संशोधन भी देते, लेकिन संशोधन के लिए समय नहीं था. आज यहाँ उपस्थित हुए जल्दी जल्दी में पढ़ा और यहाँ आकर बोलने के लिए उपस्थित हो गए. माननीय अध्यक्ष महोदय, इसमें मुझे स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि आगे आने वाले समय में आप किसान को भी जीएसटी के दायरे में लाना चाहते हों, कर के दायरे में लाना चाहते हों. मेरा यह सीधा आरोप है. अध्यक्ष महोदय, प्रदेश का किसान आत्महत्या कर रहा है. इसका भावार्थ स्पष्ट करें कि कोई भी किसान, जिसकी कितनी भी आय होती हो, उसको जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाएगा या इसका खुद ही अर्थ बता दें कि भूमि की खेती की उपज की पूर्ति के विस्तार तक रजिस्ट्रीकरण से मुक्त होगा. अध्यक्ष महोदय, इसका आशय ही मेरी समझ में नहीं आ रहा है. आप यहाँ कहना क्या चाहते हैं? क्या नहीं कहना चाहते? माननीय मंत्री जी, आप स्पष्ट करें.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इसी तरह से माल और सेवा कर का धारा 48 में व्यवसायी वही होगा जो विहित किया जाए. अब इसमें अपील के बारे में व्यवस्थाएँ दी गई हैं, ट्रिब्यूनल के बारे में भी व्यवस्थाएँ दी गई हैं, ट्रिब्यूनल की नियुक्ति कौन करेगा, इसमें आपका स्पष्ट उल्लेख नहीं है. राज्याध्यक्ष के बारे में व्यवस्थाएँ दी गई हैं. धारा 110 में आपने कहा तो है कि राज्याध्यक्ष की क्वालिफिकेशन (अर्हता) सेवा शर्तें, वह केन्द्रीय सेवा कर अधिनियम के अंतर्गत केन्द्र निर्धारित करेगा. राज्याध्यक्ष आप नियुक्त कर रहे हों और इसकी सेवा शर्तें केन्द्र निर्धारित करेगा. क्यों करेगा, फिर माल और सेवा कर अधिनियम लाने की जरुरत ही नहीं थी. फिर क्या जरुरत थी? केन्द्रीय माल एवं सेवा कर अधिनियम पर्याप्त था. अलग से मध्यप्रदेश माल और सेवा कर अधिनियम लाने की आवश्यकता क्या थी? आप पारित करेंगे अधिकार आपके पास कुछ नहीं रहेंगे. आपके यहाँ राज्याध्यक्ष की कौन नियुक्ति करेगा यह भी आपका स्पष्ट नहीं दिया है.
अध्यक्ष महोदय, धारा 110 में देखें, राज्य न्यायपीठ और क्षेत्रीय न्यायपीठों के अध्यक्ष और सदस्यों की अर्हताएँ, नियुक्ति, वेतन और भत्ते, पदावधि, त्यागपत्र और पद से हटाया जाना केन्द्रीय माल और सेवाकर अधिनियम की धारा 110 के उपबंधों के अनुसार होगा. क्या उपबंध हैं, क्या व्यवस्थाएँ हैं, न तो हमें पता, आप क्या क्वालिफिकेशन(अर्हता) रखना चाहते हैं, क्या सेवा शर्तें रखना चाहते हैं, सेवाएँ आपकी रहेंगी, वेतन भत्ते आप व्यय करोगे, व्यय आपके राज्य की निधि से होगा और सेवा शर्तें तथा क्वालिफिकेशन केन्द्र लागू करेगा. माननीय अध्यक्ष महोदय, यह तो अपने अधिकारों को कटाने की व्यवस्था है.इसमें कोई स्पष्ट चीज नहीं दी गई है. इसी तरह से ट्रिब्यूनल के गठन के बारे में भी स्पष्ट कुछ नहीं कहा गया है. मेरा यह स्पष्ट कहना है कि यह बहुत जल्दी में, बहुत हड़बड़ी में लाया गया अधिनियम है. इसके उद्देश्य और कारणों के संबंध में भी कोई विशेष बात नहीं कही गई है. एकल कर प्रणाली लागू करने का जो उद्देश्य है यह भी इसमें प्रतिपूर्ति नहीं करता है. हम चाहते हैं कि इसे जल्दी में नहीं, इसके लिए सेमीनार आयोजित करें, इसे समझने की कोशिश करें. इसके लिए व्यापारियों को भी बुलायें. इसके लिए अर्थशास्त्रियों को भी बुलायें और जितना हो सकता है इसको ठीक करने के बाद इसे प्रस्तुत करें. यह पारित हो, एकल कर प्रणाली हो, इसमें हमें कोई आपत्ति नहीं है. इसमें हमारा पूरा समर्थन है. यूपीए सरकार के समय से ही इसकी कार्यवाही प्रचलन में थी. उस समय आप विरोध किया करते थे लेकिन इस तरह से लाना उचित नहीं है कि कल 55 शुद्धिपत्र लाए, फिर आज 8 शुद्धिपत्र लाए और न जाने कितने शुद्धिपत्र और आ जाएंगे. पारित कराने तक और शुद्धिपत्र आ जाएं तो इसे पूर्णत: वापस ले लें और विचार करें. सेमीनार आयोजित करें और उसके बाद प्रस्तुत करें. हमारा पूरा समर्थन रहेगा. माननीय अध्यक्ष महोदय, आपने मुझे बोलने का समय दिया, उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री कैलाश विजयवर्गीय (डॉ.अम्बेडकर नगर-महू) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, सबसे पहले मैं आपको धन्यवाद देना चाहता हॅूं कि आपने मुझे बोलने का अवसर दिया. माननीय मुख्यमंत्री जी से मैंने चर्चा की, डॉ. नरोत्तम मिश्र जी से चर्चा की कि मैं आना चाहता हॅूं और इस विषय पर कुछ बोलना भी चाहता हॅूं. मेरी बोलने की इच्छा इसलिए हुई कि जब लोकसभा में यह प्रस्ताव पारित हो रहा था तब मैं वहां पर साक्षी की तरह बैठा हुआ था और मैंने देखा कि इसमें सर्वानुमति किस प्रकार हुई. जब यह प्रस्ताव पारित हो रहा था तब सदन के सारे वरिष्ठ नेता बैठे थे और इस प्रस्ताव के पक्ष में सभी ने अपना मत दिया और यह सर्वानुमति से लोकसभा में पारित हुआ. मैं जीएसटी पर बोलूं उसके पहले दो-तीन घटनाएं आपके सामने रखना चाहता हॅूं. देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी जब पहली बार एनडीए के नेता चुने गए और चुने जाने के बाद जब उन्होंने लोकतंत्र के सबसे बडे़ प्रजातांत्रिक मंदिर पर जाकर मत्था टेका और सेन्ट्रल हॉल में दोनों सदन के सदस्यों को संबोधित करते हुए उन्होंने एक बात कही थी कि मेरी सरकार गरीबों को समर्पित सरकार है. मेरी सरकार गरीबों को गरीबी से लड़ने के लिए ताकत प्रदान करेगी और मुझे यह कहते हुए बहुत फक्र है कि गरीबी हटाओ कुछ लोगों के लिए नारा हो सकता है, पर गरीबी मिटाओ हमारे प्रधानमंत्री जी के लिए संकल्प था और यही कारण है कि जन-धन योजना, नोटबंदी की योजना, गरीब महिलाओं के लिए उज्जवल योजना जो गरीब महिलाओं को गैस कनेक्शन देती है प्रधानमंत्री आवास योजना और कुल मिलाकर महंगाई से गरीब आदमी त्रस्त क्यों है इसके ऊपर भी प्रधानमंत्री जी ने अध्ययन किया और लगा कि यह टैक्सेशन प्रणाली जो हमारे देश की है यह कहीं न कहीं महंगाई बढ़ाने में जिम्मेदार है. कर के ऊपर कर, कर के ऊपर कर और इसलिए इस जीएसटी पर सर्वानुमति से सभी दलों से बात करके, सभी राज्यों से बात करके एक टैक्स के ऊपर हमें आगे बढ़ना चाहिए और मुझे कहते हुए इस बात पर गर्व है कि यह जीएसटी महंगाई रोकने में और गरीबों के ऊपर जो टैक्स के ऊपर टैक्स लगकर महंगाई बढ़ती थी इसमें फिक्की ने वर्तमान टैक्स प्रणाली का एक सर्वे किया. फिक्की जैसी अन्य संस्थाओं ने भी सर्वे किया और उसके बाद इस तथ्य पर पहुंचे कि कोई भी प्रोडक्ट जब फैक्ट्री से निकलता है जब अंतिम व्यक्ति तक पहुंचता है तो उसके ऊपर 18 प्रतिशत से 24 प्रतिशत तक टैक्स लगता है मतलब महंगाई बढ़ने में एक कारण हमारी टैक्सेशन प्रणाली है और उसका एक दूसरा पक्ष है जो उस सर्वे रिपोर्ट में आया कि वह 18 प्रतिशत से 24 प्रतिशत का लगा हुआ टैक्स उपभोक्ता का, वह सरकार के खजाने में 10 से 12 प्रतिशत ही पहुंचता है. यह जो टैक्सेशन का मकड़जाल था, जिसके अंदर व्यापारियों त्रस्त था, उपभोक्ता की जेब से पैसा लग रहा था, यह जीएसटी के आने के बाद इस मकड़जाल से व्यापारी भी निकलेगा और उपभोक्ताओं के ऊपर जो टैक्स की मार पड़ती है, महंगाई जिसके कारण बढ़ती है उसको रोकने में भी मदद होगी और इसीलिये गरीबों को फोकस करते हुए जीएसटी का यह प्रस्ताव पारित किया गया है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, प्रधानमंत्री जी ने सेंट्रल हॉल में जब यह कहा था कि मेरी सरकार भी ईमानदारी से काम करेगी पर समाज में भी ईमानदारी हो. व्यापारी भी ईमानदारी से काम करे. लेकिन इस मकड़जाल वाली टैक्सेशन प्रणाली के अंदर व्यापारी ईमानदारी से काम कैसे करे और इसके ऊपर जब प्रधानमंत्री जी ने लोकसभा में भाषण दिया वह उनका अनुभव था. उन्होंने सब्जी वाले की क्या तकलीफ है,ट्रक ड्राइवर की क्या तकलीफ है, ट्रांसपोर्ट वाले की क्या तकलीफ है, फेक्ट्री वाले की क्या तकलीफ है, अपने भाषण में सब चीजों का उल्लेख किया मैं उसको विस्तार से नहीं बोलना चाहता हूं पर रामनिवास जी चंबल के हमारे बड़े विद्वान वक्ता हैं, उन्होंने बहुत सारे प्रश्न खड़े किये. मंत्री जी उसका उत्तर देंगे पर रामनिवास जी, जो आपने समझा है,जो आपने कहा है उसको थोड़ा-सा और गहराई से पढ़ने व समझने की आवश्यकता है क्योंकि आजादी के बाद यह पहला प्रस्ताव है, जिसमें आर्थिक रूप से संपन्न भारत बनाने वाली टीम इंडिया खड़ी हुई है. मुझे यह बात कहते हुए बहुत गर्व है कि प्रजातंत्र के अंदर इस प्रकार का निर्णय होना और उसको सर्वानुमति से करा लेना यह सिर्फ और सिर्फ मोदी जी जैसे नेता के ही बस की बात थी.
माननीय अध्यक्ष महोदय, जब हम हमारे विरोधी विचार धारा वाले लोगों के साथ बैठ कर सहमति बनाते हैं तो उसके पीछे एक छोटा-सा शब्द है विश्वास का. यह विश्वास अर्जित किया जाता है तब सहमति बनती है. लोक सभा और राज्य सभा में जब आम सहमति से यह प्रस्ताव पारित हुआ तो भले ही विरोधी विचार धारा वाले लोग थे लेकिन उनके बीच में एक विश्वास था कि यह प्रस्ताव, यह विधेयक इस देश की आर्थिक प्रगति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसलिए सभी दलों ने अपने दल की मर्यादाओं को छोड़कर देश को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने के लिए जीएसटी के समर्थन में अपना मत दिया.
माननीय अध्यक्ष महोदय, जब वित्त मंत्री माननीय अरुण जेटली जी ने इस विधेयक को लोक सभा में रखा और उन्होंने अपनी बात के प्रारंभ में कहा कि एक राष्ट्र, एक टैक्स. एक देश, एक कर और जब यह बात उन्होंने पूरे विस्तार से कही तब उन्होंने कहा कि इस देश के संघीय ढाँचे को मजबूती और विश्वसनीयता के साथ एक आर्थिक संस्था की घोषणा करने में मुझे प्रसन्नता हो रही है. यह एक संवैधानिक मंजूरी प्राप्त पहले संघीय अनुबंध है. जीएसटी परिषद् सही मायने में पहला आर्थिक संघीय संस्थान है. इस संस्थान में केंद्र की अपनी संप्रभुता और राज्यों की अपनी संप्रभुता कायम है. अध्यक्ष महोदय, सदन को बताते हुए मुझे बहुत गर्व हो रहा है कि इस देश के संसदीय इतिहास के अंदर पहली बार कानून बनाने का अधिकार विधान सभा को है, कानून बनाने का अधिकार लोक सभा को है पर देश के दोनों ही सदनों ने अपने अधिकार को कम कर के एक जीएसटी कौंसिल को यह अधिकार दिये हैं. यह देश के इतिहास में पहली बार हुआ है. यह नोटिस करने वाली बात है कि आजादी के बाद आज तक कभी भी कानून विधान सभा ने और कानून बनाने वाली लोक सभा ने अपने अधिकार किसी को ट्रांसफर किये हों. यह पहली बार हुआ है जीएसटी कौंसिल को यह अधिकार सारी विधानसभाओं ने, जिसमें कांग्रेस की 8 विधान सभा हैं, उन्होंने भी प्रस्ताव पारित किया है. अन्य दलों की विधान सभाओं ने भी प्रस्ताव पारित किया है. लोक सभा में प्रस्ताव पारित हुआ, राज्य सभा में भी प्रस्ताव पारित हुआ और यह अधिकार जीएसटी कौंसिल को दिये गये. आप जो कह रहे थे कि यह कौन तय करेगा? इसका जवाब हालांकि मंत्री जी को देना है पर विषय आ गया तो मैं बता रहा हूं यह जीएसटी कौंसिल को अधिकार हमने दिये हैं, आपने दिये हैं, इस सदन से दिये हैं. देश के सारे सदनों से दिये हैं उन्होंने तय किया है और वहाँ पर कौन बैठता है, वहाँ अध्यक्षता अरूण जेटली जी करते हैं और सारे राज्यों के वित्त मंत्री वहाँ बैठ कर सुझाव देते हैं. जब आम सहमति बनती है.उसके बाद वह प्रस्ताव पारित होता है. आप माननीय प्रधानमंत्री जी की और माननीय अरुण जेटली जी की यह जिन्दादिली देखिए कि जो जी.एस.टी. काऊन्सिल बनी है उसमें सिर्फ एक तिहाई वोट केन्द्र सरकार के हैं और दो तिहाई वोट राज्य सरकारों के हैं. राज्य सरकारें अगर चाहें तो कभी भी इकट्ठी होकर केन्द्र सरकार के खिलाफ बगावत कर सकती हैं, परंतु उन्होंने इस बात की चिंता नहीं की. यह विषय पहले भी आया था, श्री रामनिवास रावत जी ने अपने भाषण में कहा कि यू.पी.ए. सरकार के समय होमवर्क हुआ, मैं इसको स्वीकार करता हूँ. अटल जी के समय में यह विषय आया था, यू.पी.ए. सरकार ने इसमें काफी होमवर्क किया, होमवर्क करने के बाद भी आम सहमति नहीं बन पाई थी लेकिन अब इसमें आम सहमति बन गई है यह इस प्रस्ताव की खूबसूरती है. इसमें केन्द्र सरकार आगे बढ़ी, विरोध हुआ तो एक कदम पीछे हटी, एक कदम आगे बढ़ना, एक कदम पीछे हटना, इसका मैं चश्मदीद हूँ. मैंने देखा है कि यह जी.एस.टी. का प्रस्ताव किस प्रकार लोकसभा के अंदर पारित हुआ. आज के समय में आम सहमति बनाना सबसे कठिन काम था परंतु मुझे गर्व है और मैं सभी राजनीतिक दलों को इस बात के लिए धन्यवाद देता हूँ और इस सदन के सभी माननीय सदस्यों से भी कहना चाहता हूँ कि सभी माननीय सदस्य सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को धन्यवाद दें कि देश की आर्थिक मजबूती के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपनी विचारधारा से नहीं बंधकर देश के लिए इस प्रस्ताव को मंजूर किया है (मेजों की थपथपाहट) और इसलिए यह बहुत ऐतिहासिक क्षण है. यह इस देश के लिए एक बहुत ही बढ़िया माइलस्टोन है.
अध्यक्ष महोदय, जब यह जी.एस.टी. बिल लोकसभा में पारित हुआ, हमारे प्रधानमंत्री जी ने एक ट्वीट किया था, उस ट्वीट में उन्होंने देश की जनता को धन्यवाद दिया और साथ ही '' नया साल, नया विधेयक, नया भारत '' यह संदेश दिया. मैं इसकी प्रशंसा इसलिए कर रहा हूँ और विपक्ष से भी निवेदन कर रहा हूँ कि इसके बारे में विचार करे कि आजादी के बाद से हमेशा केन्द्र और राज्यों के संबंध के बारे में विवाद होता रहा, बहुत से आयोग बने, सरकारिया आयोग बना, सरकारिया आयोग की रिपोर्ट आई, रिपोर्ट आने के बाद उस पर भी बहस होती रही कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकार सरकारिया आयोग की रिपोर्ट पर कार्यवाही नहीं कर रही है. केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच में हमेशा झगड़ा चलता रहा, मैं भी इस सदन में था, माननीय मुख्यमंत्री जी थे, केन्द्र सरकार से अपने अधिकारों के लिए हम लोगों ने भी जाकर वहाँ पर धरना दिया. अधिकारों की यह लड़ाई आजादी के बाद से अभी तक चलती रही है पर अध्यक्ष जी, मुझे कहते हुए गर्व है कि देश के प्रधानमंत्री ने योजना आयोग को समाप्त करके नीति आयोग का गठन किया और नीति आयोग के माध्यम से उसने सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को बुलाया और कहा कि यह टीम इंडिया है और अपने भाषण में उन्होंने कहा कि जब आजादी के 75 वर्ष सन् 2022 में पूरे हो जाएंगे तब हमें इस देश को जवाब देना है कि हम इस देश को कहाँ ले जा रहे हैं और यह जवाबदारी हम सबकी है, मेरे अकेले की जवाबदारी नहीं है, प्रधानमंत्री जी ने कहा कि आप सब अपने-अपने क्षेत्र के अनुभवी राजनेता हैं, यह बात अलग है कि मैं इस कुर्सी पर बैठा हूँ परंतु मैं भी आपकी ही तरह मुख्यमंत्री था, मैंने भी अपने राज्य की समस्या के लिए केन्द्र की सरकार से बात की, केन्द्र के नेताओं से बात की, पर अब हम एक टीम हैं और यह टीम स्प्रिट इस देश को आगे ले जाएगी, इस देश को मजबूत बनाएगी, विश्व के अंदर इस देश को एक ताकतवर देश बनाएगी. सन् 2022 में जब हम स्वतंत्रता की वर्षगाँठ मनाएंगे, यह देश दुनिया के सामने एक ताकतवर देश की तरह उभरे, यह हम सबकी जवाबदारी है, यह नीति आयोग में प्रधानमंत्री जी ने सभी मुख्यमंत्रियों को जवाबदारी दी.
अध्यक्ष महोदय, माननीय मुख्यमंत्री जी यहाँ बैठे हुए हैं, कांग्रेस दल के भी कई मुख्यमंत्री हैं, आप उनसे भी पूछ लीजिए कि जब नीति आयोग की बैठक होती है प्रधानमंत्री जी ने औपचारिक चर्चा में हमें बताया कि नीति आयोग की बैठक के बाद मुख्यमंत्रियों से वन-टू-वन चर्चा के लिए मैं समय खाली रखता हूँ, चाहे वह किसी भी दल के मुख्यमंत्री हों, मैं उनके साथ बैठता हूँ चर्चा करता हूँ. यहाँ सदन में माननीय मुख्यमंत्री जी बैठे हुए हैं वे इस बात के साक्षी हैं. आज देश के अंदर एक टीम इंडिया काम कर रही है, देश के विकास के लिए राजनैतिक विचारधारा की संकीर्णता से ऊपर उठकर सब लोग आज देश के बारे में सोच रहे हैं यह स्प्रिट देश के प्रधानमंत्री जी ने इस देश के अंदर कायम की है और इसका उदाहरण यह जी.एस.टी है और इसलिये यह जी.एस.टी इस देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था का एक माईल स्टोन है. आने वाला कल इस पूरी टीम को चाहे कोई भी प्रधानमंत्री हो, चाहे कोई भी मुख्यमंत्री हो सबको आने वाला कल याद करेगा.
अध्यक्ष महोदय, टैक्स यह निश्चित रूप से हमारे यहां कि सनातन प्रणाली है. आचार्य चाणक्य ने कहा कहा था कि लाभ उचित शब्द, अच्छा शब्द है, लाभ अर्जित करने का अधिकार हर व्यापारी को है, पर अनुचित रूप से लाभ लेना यह समाज का भी नुकसान है और देश का भी नुकसान है. अध्यक्ष महोदय, यह टैक्सेशन प्रणाली जो अभी है, इसमें लोग अनुचित रूप से लाभ लेते थे, उपभोक्ताओं की जेब से पैसा जाता था, राज्य के खजाने में जमा नहीं होता था और वह पैसा काले धन के रूप में समाज के अन्दर चलता था, क्योंकि यह बड़ा क्लिस्ट टैक्सेशन प्रणाली थी. इसलिये एकल टैक्स प्रणाली, आप कल्पना करिये की अगर जम्मू से लेकर कन्याकुमारी ट्रक जाना हो तो 3 दिन का सफर है परन्तु 12 दिन लगते हैं, रास्ते में सारी चौकियां, हर राज्य के अपने सेल्स टैक्स विभाग, हर राज्य के अपने आबकारी विभाग सब उनको रोकते हैं. वह रूकते-रूकते 3 दिन की यात्रा उसकी 6 दिन, 9 दिन, 10 दिन और पता नहीं उसकी कितनी जेब कटती है. यह जी.एस.टी आने के बाद वहां पर वह टैक्स भरेगा, टैक्स भरने के बाद उस कागज को लेकर सीधा निकलेगा और कन्याकुमारी पहुंचेगा, जो 10 दिन की यात्रा है वह 3 दिन में सफल हो जायेगी. प्रधानमंत्री जी ने जब लोकसभा के अन्दर इस बात का उल्लेख किया तो लोग आश्चर्यचकित रह गये कि इस देश के प्रधानमंत्री को ट्रक वाले की क्या समस्या है, किराने वाले की क्या समस्या है, कपड़े वाले की क्या समस्या है और सब्जी वाले की क्या समस्या है, इन सबका उन्होंने अपने भाषण में उल्लेख किया है. मैं उसका विस्तार से वर्णन नहीं करना चाहता हूं. परन्तु आप जो यह कह रहे हैं कि इसको बिना सोचे-समझे किया गया है, हो सकता है कि मेरे में अक्ल कम हो और आपमें ज्यादा, आप चम्बल के विद्वान व्यक्ति हैं.
श्री रामनिवास रावत:- आप मध्यप्रदेश माल सेवा कर अधिनियम के बारे में बोलो, इसमें नीति आयोग का उल्लेख नहीं है. इसमें नीति आयोग का उल्लेख नहीं है. जिस नीति आयोग की आप बात कर रहे हैं.
श्री कैलाश विजयवर्गीय :- मैं जी.एस.टी के बारे में ही बोल रहा हूं.
श्री जयंत मलैया :- ऐसा है,अंग्रेजी से जो ट्रांसफर हिन्दी में हुआ है उसका शुद्धि पत्र है.
श्री कैलाश विजयवर्गीय :- अध्यक्ष महोदय, रामनिवास जी हो सकता है कि मेरी बात आपको बुरी लगी हो, पर मैं फिर कह रहा हूं कि आप इसका एक बार अध्ययन करियेगा.
श्री रामनिवास रावत:- मैं जी.एस.टी का विरोध नहीं कर रहा हूं. यह यूपीए के समय से लाया गया है और हम भी कह रहे हैं कि सर्वानुमति से पारित हो. लेकिन उसमें सुधार तो कर लें, जो आपकी भाषा लिखी गयी है, भाषाओं का अर्थ का अनर्थ हो रहा है.
श्री कैलाश विजयवर्गीय :- मैं आपके प्रश्न का जवाब नहीं दे रहा था. मैंने तो थोड़ा सा उल्लेख कर दिया. अगर आपको मेरी बात का बुरा लगा हो तो क्षमा करेंगे. रामविलास जी यह मैं नहीं कह रहा हूं. यह विश्व बैंक ने अभी जो उन्होंने अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की है, उसमें उन्होंने कहा है कि जी.एस.टी भारत में पारित होने के बाद भारत का उत्पादन विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा करेगा तो यहां पर बाहर का पूंजी निवेश आयेगा, पूंजी निवेश आयेगा तो यहां रोजगार मिलेगा, रोजगार के अवसर पैदा होंगे.
श्री कमलेश्वर पटेल :- पांच साल पहले आ जाता तो आज देश की बहुत अच्छी स्थिति होती, तो उस समय क्यों विरोध किया था.
श्री कैलाश विजयवर्गीय :- पांच साल पहले मोदी जी प्रधानमंत्री नहीं बने. यह कारण था. मैं इसीलिये कह रहा हूं कि मैंने इस प्रस्ताव को केन्द्र सरकार को एक कदम आगे बढ़ते हुए और केन्द्र सरकार को एक कदम पीछे हटते हुए देखा है, टीम स्प्रिट पैदा करने के लिये इसलिये मेरा इस प्रस्ताव से बड़ा इमोशनल अटेचमेंट है. क्योंकि मैं भी कहीं न कहीं उसका हिस्सा बना हूं. आप समझ सकते हैं कि पांच साल पहले, पांच साल पहले मोदी जी आते तो यह हो जाता, इसके लिये थोड़ा बड़ा दिल, बड़ा कलेजा लगता है.
नेता प्रतिपक्ष ( श्री अजय सिंह ) -- आदरणीय अध्यक्ष महोदय, हमारे विद्वान सदस्य कभी कभी भोपाल आते हैं और टीम इंडिया, टीम स्प्रिट और सबके बारे में बात कर रहे हैं. मैं उनको याद दिलाना चाहता हूं कि आप भी उस टीम में थे जब राघव जी वित्त मंत्री थे और उसी टीम इंडिया के आज जो मुखिया प्रधानमंत्री हैं उन्होंने 2004 में यूपीए की सरकार में जीएसटी बिल तैयार हुआ था, सीएम होते हुए गुजरात में मोदी जी ने इस बिल का 2006, 2007, 2009, 2010, 2011, 2012, 2013 और 2014 में यह कहकर विरोध किया कि इससे देश बर्बाद हो जायेगा ( विपक्ष की तरफ से शेम शेम की आवाजें ) अध्यक्ष महोदय मैं बड़ी विनम्रता के साथ कह रहा हूं. टीम इंडिया स्प्रिट वहां पर प्रस्ताव सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ. हम भी यहां पर प्रस्ताव पास करने के लिए बैठे हैं, लेकिन कृपया करके भाषण न दें उसे सही तरीके से बतायें कि हम लोगों को किस तरह से बात करना है. आप समय समय पर आ जाते हैं और टीम इंडिया और बहुत इमोश्नल अटैचमेंट है, अरे इमोश्नल अटैचमेंट मनमोहन सिंह जी का भी था तब यह क्यों नहीं पारित किया गया, तब तो हमारे मुख्यमंत्री जी कहते थे कि सुप्रीम कोर्ट जायेंगे, हमारे पास में यह सारी अखबारों की कटिंग हैं, तब कुछ नहीं किया, हम तो यहां पर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करने के लिए बैठे हैं. आप टीम इंडिया समाप्त कर दें और टीम मध्यप्रदेश की बात करें.
श्री शिवराज सिंह चौहान -- अध्यक्ष महोदय मैं अपने बड़े भाई साहब से यह निवेदन करना चाहता हूं कि हमारा विरोध उस समय जीएसटी से नहीं था. राज्यों के कुछ विषय थे जिसमें राज्यों को जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई कैसे होगी, कंपनसेशन कैसे मिलेगा हमारी आशंकाएं थी वह हमने प्रकट की थीं और हमने हर बैठक में यह कहा था कि इन आशंकाओं का समाधान कर दें, इस नुकसान की भरपाई कर दें हम जीएसटी पास करेंगे. मैं प्रधानमंत्री जी को धन्यवाद दूंगा कि हमारी सारी आशंकाओँ का समाधान हो गया है, वित्त मंत्री जी विस्तार से बतायेंगे हमें हर साल राजस्व 14 प्रतिशत बढ़कर मिलेगा, कंपनसेट हमें केन्द्र सरकार करेगी. इसलिए हम प्रसन्नतापूर्वक समर्थन कर रहे हैं.
श्री मुकेश नायक -- एक मिनट में अपनी बात कहना चाहता हूं.
अध्यक्ष महोदय -- नहीं, अभी आपका नंबर आने वाला है उस समय अपनी बात कह लेना अगर इस तरह से ही चलाना है तो यह अंत रहित प्रक्रिया हो जायेगी.
श्री मुकेश नायक -- मुख्यमंत्री जी यूपीए सरकार के समय जीएसटी का जो मूल प्रारूप है उसको अगर आपने पढ़ा होता तो मैं पूरे विश्वासपूर्वक यह कह सकता हूं कि आप इस तरह की प्रतिक्रिया सदन में नहीं देते. उसमें राज्यों के हितों का पूरा संरक्षण किया गया है और जो प्रारूप आज आपने दिया है इसे देख लें और उस पुराने प्रारूप को देख लें यह केवल हिन्दी में अनुवाद मात्र है.
श्री शिवराज सिंह चौहान -- माननीय अध्यक्ष महोदय, बहुत विद्वान है मुकेश नायक जी विद्वता में हम बराबरी नहीं कर सकते हैं. लेकिन आज के महामहिम महोदय उस समय भारत सरकार के वित्त मंत्री हुआ करते थे. हमें जो नुकसान होना था उसका बिन्दूवार ब्यौरा उनको दिया था उनसे चर्चा की थी उनसे आग्रह किया था कि इनका आप समाधान कर दें, आपकी विद्वता का मुकाबला मुकेश जी कौन कर सकता है लेकिन हम तो तथ्यों के आधार पर कह रहे थे कि मध्यप्रदेश को नुकसान होगा इसलिए उस समय विरोध कर रहे थे लेकिन जीएसटी का विरोध नहीं किया है हमने कहा था कि हमारी आशंकाओँ का समाधान कर दें.
श्री मुकेश नायक -- अध्यक्ष महोदय, अगर आप अनुमति दें तो मैं एक एक लाइन पढ़कर सुना देता हूं
अध्यक्ष महोदय -- अब नहीं. अब इस पर बहस नहीं होगी. आप कृपया अब बैठ जायें.
श्री कैलाश विजयवर्गीय -- अध्यक्ष महोदय नेता प्रतिपक्ष मेरे बहुत शुभचिंतक हैं. मैं दो तीन माह में आता हूं और उनकी आंख की किरकिरी बन जाता हूं ऐसा लगता है.
श्री अजय सिंह -- मेरी आंख की किरकिरी नहीं, वह तो जहां होती है उस तरफ इशारा न करें आप.
श्री कैलाश विजयवर्गीय -- अध्यक्ष महोदय शायद नेता जी ने मोदी जी ने विरोध किया है उन्होंने यही बताया है, क्या कांग्रेस के मुख्यमंत्री ने विरोध नहीं किया था कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने विरोध किया था केरल के मुख्यमंत्री जी ने विरोध किया था. अध्यक्ष महोदय जब राज्यों का अहित हुआ है तब मुख्यमंत्रियों ने विरोध किया है. अभी भी किया है और उस सबको गारंटी दी उनको कहा है कि अगर आपको नुकसान होगा तो आने वाले पांच वर्षों तक राज्यों को उनके घाटे का नुकसान केन्द्र सरकार करेगी और इसलिए मैं प्रधानमंत्री जी को धन्यवाद देना चाहता हूं. इसके लिए इतना बड़ा कलेजा चाहिए जब वह कहते हैं न कि 56 इंच का सीना है तो इससे दिखता है 56 इंच का सीना श्रीमान अध्यक्ष महोदय विश्व बैंक ने साफ कहा है.
अध्यक्ष महोदय - अब आप कितना समय लेंगे ?
श्री कैलाश विजयवर्गीय - माननीय अध्यक्ष महोदय, अब आप कहें तो मैं अभी बैठ जाता हॅूं. मैं अपनी बात दो-तीन मिनट में खत्म कर दूंगा. अध्यक्ष महोदय मैंने कहा कि विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि जी.एस.टी. बिल पारित होने के बाद भारत में एक विशेष प्रकार की आर्थिक प्रगति होगी और नये रोजगार का सृजन होगा, पूंजी निवेश होगा, व्यापार बढ़ेगा, आर्थिक रूप से स्थिरता आयेगी. यह सिर्फ वर्ल्ड बैंक ने ही नहीं, एशियन डेव्हलपमेंट बैंक ने भी कहा है. बहुत सारे ऐसे विश्व के जितने भी आर्थिक जगत से जुड़े हुए संस्थान हैं, उन्होंने इसका अनुमान लगाया है कि जी.एस.टी. के कारण भारत एक मजबूत आर्थिक केंद्र बन रहा है.
अध्यक्ष महोदय, भारत के संविधान के अंदर केंद्र सरकार को राज्यों का संघ कहा है, पर पहले ऐसा महसूस नहीं होता था. हमारे यहां प्रजातंत्र है, केंद्र में दूसरी सरकार होती है, राज्यों में दूसरी सरकार होती है. आजादी के बाद से हमेशा राज्य और केंद्र के बीच में कहीं न कहीं अधिकारों को लेकर झगड़ा होता रहता था, पर आजादी के बाद पहली बार कोई ऐसा प्रधानमंत्री आया है, जिसने हर मुख्यमंत्री को सीधा आमंत्रित किया है कि जब भी आपके राज्य के अहित हो आप सीधे मेरे पास आईऐ, मैं दलगत राजनीति से ऊपर से उठकर आपके राज्य के लिये विकास करूंगा. यह हमारे प्रधानमंत्री का विचार और उनकी सोच है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इसीलिए जो आज जी.एस.टी. बिल सर्वानुमति से पास हुआ है, इसके लिये मैं प्रधानमंत्री जी को श्रेय इसलिए देना चाहता हूं और सभी मुख्यमंत्रीगण को भी श्रेय इसलिए देना चाहता हूं कि उनके राज्यों की जो तकलीफ थी उन्होंने बताई. माननीय अरूण जेटली जी ने और माननीय मोदी जी ने बैठकर उन सभी राज्यों को इस बात का विश्वास दिलाया कि किसी भी राज्य को इससे नुकसान नहीं होगा और इसलिए अध्यक्ष महोदय मैं ज्यादा टेक्नीक्लिटी में नहीं जाऊंगा क्योंकि हमारे वित्तमंत्री जी भी हैं. मैं सिर्फ इतना ही चाहता हूं कि पूरा सदन हम सभी राजनीतिक दलों के लोगों के लिए एक बार मेज थपथपाकर सबका अभिनंदन करें (मेजों की थपथपाहट) और साथ ही देश के यशस्वी प्रधानमंत्री और श्री अरूण जेटली जी को इस बात के लिये धन्यवाद दें कि यह जी.एस.टी.बिल आने वाले समय में जैसा कि प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि जिस समय स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होंगे, उस समय देश आर्थिक रूप से कहां होग, यह हम सभी लोग देखेंगे. इसी शुभकामना के साथ में अपना वक्तव्य समाप्त करता हूं. अध्यक्ष महोदय जी आपने मुझे बोलने के लिये समय दिया इसके लिसे बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री रामनिवास रावत - आपने लोप कर दिया है, जिसने प्रस्तावना दी उसको धन्यवाद नहीं किया, आप उनका भी नाम ले लेते. आपने यू.पी.ए. सरकार के समय पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी को जिन्होंने प्रस्तावना दी, लाए और जिन्होंने सोचा उनको धन्यवाद नहीं किया.
श्री कैलाश विजयवर्गीय - माननीय अध्यक्ष जी, सब आ गयें हैं. मैंने सब राजनीतिक दलों का बोला है. श्री मनमोहन सिंह जी कहीं विदेश चले गये हों तो मुझे पता नहीं है. मैंने देश के सब राजनीतिक दलों के नेताओं का बोला है, उसमें श्री मनमोहन सिंह जी भी होंगे ही, वह विदेश के तो नहीं है.
श्री रामनिवास रावत - तो फिर आपने उसमें लोप क्यों कर दिया, आपने बाकी लोगों के नाम लिये हैं तो उनका भी नाम ले लेते.
अध्यक्ष महोदय - श्री मुकेश नायक जी आप बोलें.
श्री मुकेश नायक (पवई) - माननीय अध्यक्ष महोदय, यह भारत के इतिहास का ऐतिहासिक क्षण हैं, जब केंद्र में पारित जी.एस.टी. बिल का अनुमोदन विधानसभाएं कर रही हैं, मुझे याद है कि जब 1985 में पहली बार मैं जन प्रतिनिधि बना और विधानसभा का सदस्य बना तो इस विधानसभा का योजना का आकार 28 सौ करोड़ रूपये था और अनुपूरक बजट मिलाकर, गैर आयोजना बजट मिलाकर पूरी राज्य की योजना का आकार लगभग 33 सौ करोड़ रूपये था और आज मध्यप्रदेश का बजट 1 लाख 85 हजार करोड़ रूपये है.
माननीय अध्यक्ष जी, मैं आपके माध्यम से माननीय श्री कैलाश विजयवर्गीय जी को याद दिलाना चाहता हूं कि 1951 और 1952 में जब भारत का पूरे देश का पहला बजट बना तो वह पौने तीन सौ करोड़ रूपये का बजट था और आज भारत का बजट 19 लाख करोड़ रूपये है, कितना बड़ा योजना का आकार है लेकिन फिर भी चाईना की तुलना में अभी हमारी योजना का आकार मध्य पूर्व एशिया में लगभग 50 साल पीछे है. आज यह बात पूरे देश में चल पढ़ी है और पिछले दिनों में अखबारों में हमने पढ़ा है कि ब्रिटेन की सरकार की जो पूरी की पूरी योजना का आकार है, उनका बजट है, उसकी अर्थव्यवस्था को भारत लांघने की तैयारी कर रहा है. यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है. मेरे कहने का आशय अध्यक्ष महोदय यह है कि कर प्रणाली जैसे-जैसे आम नागरिक तक पहुंची तो राष्ट्र निर्माण में देश के आम आदमी ने, पैसा कमाने वाले आदमी ने अपना योगदान देना शुरू किया और देश की योजना का आकार, राज्यों की योजना का आकार और राज्यों की आर्थिक व्यवस्था बढ़ती चली गई. यह धीरे-धीरे हुआ, उसमें सभी सरकारों का योगदान है. 70 साल लगे और आज जो दुनिया में पूरी अर्थव्यवस्था का विश्लेषण करने वाले लोग हैं, वह यह कहते हैं कि अमेरिका की 350 साल की आजादी के बाद जिस तरह से सधी हुई, धीरे-धीरे परिवर्तन करने वाली, धीरे-धीरे जनोन्मुखी बनती हुई और धीरे-धीरे सर्वस्पर्शी और आम आदमी को स्पर्श करने वाली अर्थव्यवस्था ज्यादा विवेकपूर्ण है, ज्यादा सधी हुई है और मनुष्य की दृष्टि से, संवेदना की दृष्टि से ज्यादा आशा जगाती है
अध्यक्ष महोदय, मैं यह कहना चाहता हूं, एक छोटी-सी विचारोत्तेजक कहानी है, अगर सदन का माहौल बहुत अच्छा है तो आप मुझे अनुमति दें तो किस तरह से भारत में राजनीतिक दल, उनके विचार, उनकी नीतियां, उनके सिद्धांत, उनके कार्यक्रम किस तरह से बदले, किस तरह से उनमें परिवर्तन आया, यह अरेबियन नॉइट्स की एक छोटी-सी कहानी है.
अध्यक्ष महोदय, एक गांव में दो आदमी रहते थे. एक आस्तिक था और दूसरा नास्तिक था. जब नास्तिक कहता कि भगवान नहीं है तो वह इतनी बुद्धि का प्रयोग करता, इतने तीखे तर्क देता, ऐसा विचारों का प्रवाह होता कि लोगों को लगता कि ईश्वर नहीं है और जब आस्तिक आदमी बोलता तो ऐसी बुद्धि का उपयोग करता, ऐसे विचार प्रकट करता, ऐसे तीखे तर्क देता कि लोगों को लगता कि अभी ईश्वर सगुण साकार होकर मूर्त रूप ले लेगा. पूरा गांव इन दो बुद्धिजीवियों से परेशान रहता. गांवों के लोगों ने एक बार कहा कि भैया, एक काम करो, दोनों मिलकर तय कर लो कि कौन सच बोल रहा है, इसलिए एक शास्त्रार्थ का कार्यक्रम रख लो.
पूर्णिमा के दिन शास्त्रार्थ शुरू हुआ. नास्तिक आदमी ने अपने विचारों को प्रकट करना शुरू किया. बड़ी तीखी, तीक्ष्ण बुद्धि का प्रयोग किया, बड़े स्पर्श करते हुए तर्क, अकाट्य तर्क दिये. लोगों को लगा कि ईश्वर नहीं है. जब आस्तिक ने बोलना शुरू किया तो उसके तर्कों को अपने विचारों की तलवार से ऐसा धज्जी-धज्जी कर दिया, ऐसे काट दिया कि लोगों को लगा कि ईश्वर अभी प्रगट हो जाएगा. अध्यक्ष महोदय, रात-भर यह क्रम चलता रहा, जब आस्तिक बोलता तो लगता कि यह सच बोल रहा है, जब नास्तिक बोलता तो लगता कि यह सच बोल रहा है. रात-भर गांवों के आदमी बैठे रहे. सुबह-सुबह एक अभूतपूर्व घटना ने जन्म लिया और वह घटना यह थी कि नास्तिक आदमी, आस्तिक आदमी की बातों से सहमत हो गया और आस्तिक आदमी, नास्तिक आदमी की बातों से सहमत हो गया, लेकिन समस्या हल नहीं हुई. नास्तिक, आस्तिक हो गया और आस्तिक, नास्तिक हो गया.
अध्यक्ष महोदय, कर प्रणाली को लेकर, आर्थिक नियोजन को लेकर भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर, विदेशी पूंजीनिवेश को लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों में भारत के सृजन को लेकर, उत्पादन को लेकर जिस स्वदेशी आंदोलन ने हिन्दुस्तान में अपने विचार प्रकट करने के लिए 30 साल लगाए, आप स्वदेशी आन्दोलन समझ गये कि नहीं समझे? स्वदेशी वस्त्रों को लेकर स्वदेशी नमक को लेकर, स्वदेशी उत्पादन और कंपनियों को लेकर इस तरह के विचार आप आजादी के बाद प्रकट करते रहे हैं. आपको मालूम है, जब राजीव गांधी ने इस देश में कम्प्यूटर की बात कही तो आप बैलगाड़ी की बात करने लगे कि बैलगाड़ी भारत में खत्म हो जाएगी? जब हम भारत में पूंजीनिवेश की बात करने लगे, बहुराष्ट्रीय कंपनियों को यहां लाने की बात करने लगे, जब माननीय श्री मनमोहन सिंह जी ने पूरे संसार के लिए भारत के बाजार को खोला, यहां के उपभोक्ताओं का लालच पूरी दुनिया के सामने रखा कि सबसे बड़ा उपभोक्ता भारत में है. पूंजीनिवेश यहां पर करिए, यहां पर आगे बढ़ने की संभावनाएं हैं, यहां संभावनाएं हैं पैसे कमाने की. देखते-देखते भारत की तस्वीर बदलने लगी. एक बजाज मोटरसाईकिल का नम्बर लगाते थे, 3 साल बाद वह स्कूटर आती थी.
अध्यक्ष महोदय - आप कितना समय लेंगे?
श्री मुकेश नायक - जितना आप बोलेंगे. अध्यक्ष महोदय, मैं यह कहना चाह रहा हूं कि जीएसटी का मतलब है कि भारत में पैसे कमाने वालों से कर के रूप में पैसा लिया जाय और भारत के निर्माण में उसका उपयोग किया जाय. मैं वही बात कर रहा हूं और आज जो 19 लाख करोड़ रुपए की योजना का आकार है. मैंने भारत के अर्थशास्त्रियों और विद्वान लोगों से चर्चा की है. माननीय अध्यक्ष महोदय और माननीय मुख्यमंत्री जी, भारत की योजना का आकार बिल आने के बाद अगले पांच साल में 30 लाख करोड़ रूपये हो जाएगा. आप कल्पना करिये कि किस तरह की आर्थिक शक्ति के रूप में भारत का उदय होगा. यह बिल राष्ट्र निर्माण की दिशा में इतना बड़ा मील का पत्थर है. मैंने दो दिन पहले एक व्यक्ति से दुबई में बात की वे यहां पर छात्र संगठन में काम करते थे. 20 साल पहले माईग्रेट करके दुबई चले गये वह हमसे कहने लगे कि मैं रेडियल टॉयर का बहुत बड़ा काम डालना चाहता हूं, अब संभावना भारत में बढ़ गई है. मैंने कहा कि कैसे बढ़ गई ? तो वह कहने लगे कि अभी यहां से भारत माल आयात करता है उसमें 100 प्रतिशत टैक्स लगता है, लेकिन जीएसटी आने के बाद जो कॉम्पेक्ट पैकेज आयेगा उसके कारण व्यापार की संभावनाएं भारत में बढ़ जाएंगी. जो मेरा टॉयर अभी ईरान , पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका में वर्मा व मिडिल ईस्ट में बिकता है. भारत के लिये उसका बाजार खुल जाएगा और मैं बहुत बड़ा वहां पर काम डालना चाहता हूं. इस तरह के छोटे छोटे व्यापारी एक बड़े पूंजी निवेश की बात इस बिल के आने के बाद भारत में सोचने लगे हैं. यह जीएसटी बिल है और इसका प्रारूप है. अब इसकी तो बहुत चर्चा हो जाएगी तो सदन का वातावरण बिगड़ जाएगा. मैंने एक कहानी तो अभी सुनाई दी. किस तरह से माननीय अटल बिहारी बाजपेयी जी की सरकार में इसका अंकुरण हुआ. किस तरह से इसका मूल प्रारूप माननीय मनमोहन सिंह जी की सरकार में आया और जो क्षतिपूर्ति की बात अभी कही गई राज्यों के लिये वह मूल प्रारूप में भी यह बात थी कि जीएसटी बिल आने के बाद कॉम्पेक्ट पैकेज टैक्सेशन का आयेगा. इसमें राज्यों को क्षति होगी उसकी पूर्ति केन्द्रीय सरकार करेगी, क्योंकि केन्द्र सरकार के पास इस टैक्शेसन प्रणाली के बाद इतनी विपुल धनराशि आयेगी कि राज्यों की क्षतिपूर्ति के लिये उसके पास पर्याप्त धनराशि होगी, यही इस व्यवस्था में होगी.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं यह कहना चाहता हूं कि यह ऐतिहासिक क्षण हैं और मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि बीजेपी एवं बीजेपी का स्वदेशी आंदोलन, बीजेपी की आर्थिक नीतियां उस दिशा में बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं, जिस दिशा में कांग्रेस ने आजादी के बाद इन नीति एवं सिद्धांतों, कार्यक्रमों को प्रेरित किया था. आपने बोलने के लिये समय दिया इसके लिये धन्यवाद.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया (मंदसौर)--माननीय अध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश की सरकार के वित्तमंत्री आदरणीय जयंत मलैया जी के द्वारा प्रस्तुत स्टेट राज्य वस्तु एवं सेवा कर जीएसटी विधेयक के पक्ष समर्थन में बोलने के लिये खड़ा हुआ हूं. माननीय मुख्यमंत्री जी एवं माननीय कैलाश विजयवर्गीय जी ने बहुत सुन्दर तरीके से उन बातों को यहां पर रख दिया है, जिसको लेकर के प्रतिपक्ष पूरे मध्यप्रदेश में उस जीएसटी बिल को लेकर के हम यूपीए की सरकार को भी श्रेय देना चाहते हैं, उनकी बात भी करना चाहते हैं. तमाम परिश्रम के बाद जब बिल लोकसभा में सर्वानुमति से यह बिल प्रस्तुत हो जाता है तो उसमें कांग्रेस, बसपा, सपा, सभी लोग रहते हैं. पूरे देश के राज्यों के मुख्यमंत्री एवं वित्तमंत्रियों से चर्चा करने के बाद उस मसौदे को जिस पर निर्णय किया जा चुका है. राज्यों की सहमति के साथ यह विषय जब सत्र के माध्यम से आता है तो प्रतिपक्ष सदन में मध्यप्रदेश के किसानों को गुमराह करने की कोशिश करता है. एक बार भयावह चेहरा दिखाने की बात करता है. इस जीएसटी बिल में जिसको यहां पर प्रस्तुत करने की बात कही गई है रावत जी ने प्रारंभ किया है किसानों को लेकर के मुझे लगता है कि इसमें कोई विसंगति नहीं है. किसानों के नाम पर भ्रम की स्थिति पैदा करने के लिये यूपीए के प्रयासों की दबी जुबान में बात कही गई है. पंडित अटल बिहारी बाजपेयी जी के प्रयासों को हम प्रतिपक्ष के सदस्यों ने दृढ़ता के साथ नहीं रखा.
माननीय अध्यक्ष महोदय, हम गर्व कर सकते हैं कि मूर्धन्य साहित्यकार एवं कवि पूर्व यशस्वी प्रधानमंत्री आदरणीय पंडित अटल बिहारी बाजपेयी जी ने 16 वर्ष पूर्व इसकी अवधारणा पूरी कर ली थी. अध्यक्ष महोदय, अटल बिहारी वाजपेयी जी के वे तमाम काम और उनकी जीएसटी की अवधारणा आज परिणित हो रही है. उनकी विचारधारा के वे काम जो मील का पत्थर साबित हुआ. स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क योजना.प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना. खुले रुप से गैस कनेक्शनों का आवंटन. किसान क्रेडिट कार्ड आदि. अध्यक्ष जी, किसान क्रेडिट कार्ड की माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कल्पना की थी. मैं मुख्यमंत्री जी को बधाई और सहकारिता मंत्री जी को धन्यवाद देना चाहता हूं. व्यावसायिक-कमर्शियल बैंकों से KCC किसान क्रेडिट कार्ड सहकारिता में पैक्स जैसी संस्था तक पहुंच गया है. और पैक्स से लेकर अपेक्स तक पहुंच गया है.
अध्यक्ष महोदय, कैलाश विजयवर्गीय जी ने माननीय जेटली जी के बारे में 2-3 बातें कही हैं. मैं भी इसको पढ़कर आया हूं. माननीय जेटली जी ने अपने उद्बोधन में कहा था-जीएसटी एक ऐसी दवा का नाम है जो भारत की टैक्स वाली बीमारी का इलाज एक बार में ही कर देगी. माननीय अरुण जेटली जी ने वस्तु एवं सेवा कर एवं नोट बंदी दोनों कदमों को भारतीय अर्थ व्यवस्था की तस्वीर बदलने वाली पहल निरुपित किया है. केन्द्र एवं राज्यों के ज्यादातर अप्रत्यक्ष कर इसमें समाहित हो जाएंगे, ऐसी अवधारणा माननीय वित्त मंत्री जी ने प्रकट की.
अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से प्रतिपक्ष के तमाम साथियों से निवेदन करना चाहता हूं कि माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान सदन के नेता यहां पर विराजित हैं. राज्यों की सहमति और नीति आयोग में यदि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने विभिन्न समितियों के माध्यम से, विभिन्न कार्य योजनाओं के माध्यम से अगर माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी चौहान को कमेटी के माध्यम से संयोजक बनाने का काम किया उससे भी इसमें बड़ा बल मिला है.
अध्यक्ष महोदय, यूपीए की सरकार के समय जीएसटी को लेकर जो बात चली. माननीय मुख्यमंत्री जी ने भी कहा और माननीय कैलाश जी ने भी कहा कि अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों को तानाशाहीपूर्ण और दबाव की नीति लग रही थी. उन राज्यों की नहीं सुनी जाना और उसके कारण विलंब हुआ. उस विलंब का कारण माननीय मनमोहन सिंह जी नहीं थे. (XXX)
श्री रामनिवास रावत-- इन शब्दों को विलोपित कर दें.
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया-- मैंने मैडम का तो नाम ही नहीं लिया.
श्री रामनिवास रावत-- आपने प्रधानमंत्री को खिलौना निरुपित किया है.
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया-- मनमोहन सिंह जी तो इसके पक्ष में थे लेकिन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को दवाब पूर्वक....
अध्यक्ष महोदय-- विलोपित कर दें. इस पर बहस नहीं करें.(व्यवधान)
श्री यशपाल सिंह सिसोदिया-- अध्यक्ष जी ने विलोपित कर दिया. अध्यक्ष महोदय, राज्यों की सरकारों की क्षतिपूर्ति का सवाल था. जो निर्देश, मेटर और पॉलिसी तय कर दी गई उसको सारे राज्यों के मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री क्यों स्वीकार करें इस बात को लेकर विलंब हुआ.
अध्यक्ष महोदय, यह सौभाग्य की बात है जब यह सुनहरा अवसर आया. तत्कालीन प्रधानमंत्री जी की जो भावना थी. जो संकल्पशक्ति थी उसको कार्यरुप में परिणित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने पूर्ण किया. हम गर्व और गौरव महसूस कर सकते हैं. जैसा माननीय विजयवर्गीय जी ने उल्लेख किया कि सबको विश्वास में लेकर क्योंकि केवल एक राज्य का सवाल नहीं है. जैसा विजयवर्गीय जी ने कहा भी कि तत्समय कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने कहीं-न-कहीं अपने हकों को लेकर विरोध प्रकट किया. अब सर्वानुमति बनी है. जब सर्वानुमति बनी तो यह विधेयक आज हमारे सामने स्वीकार करने के लिए आया है. मैं समझता हूं सदन को इस बात को लेकर गर्व की अनुभूति होना चाहिए. अगर यूपीए की सरकार के प्रयास मान लिए जाएं तो फिर बहस की क्या जरुरत पड़ गई इसको तत्काल प्रभाव से सर्वानुमति से स्वीकृत करना चाहिए. आप कहते हैं कि यह यूपीए सरकार की देन है और घूम-फिर कर यह बात आयी है तो फिर सर्वानुमति से स्वीकार करेंगे. ऐसी मेरी अभिलाषा है.
अध्यक्ष महोदय, जीएसटी के 3 अंग बने. केन्द्र, राज्य और इंटीग्रेट. केन्द्रीय एकीकृत जीएसटी, केन्द्र लागू करेगा जबकि राज्य जीएसटी राज्य सरकारें पृथक से लागू करेंगी. माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी कल रात्रि मेरी माननीय वित्त मंत्री जी से दूरभाष पर चर्चा हुई. मैं उनसे यह जानने की कोशिश कर रहा था कि प्रतिपक्ष तो एक ही बात को जरूर कहेगा कि डीजल और पेट्रोल का क्या होगा ? उन्होंने कहा कि कांग्रेस तो अपना काम करेगी ही परंतु शायद उनको इस बात की जानकारी नहीं है कि भारत की सरकार द्वारा, लोक सभा द्वारा जो जी.एस.टी. बिल पारित किया गया है उसमें पेट्रोलियम से जितने पदार्थ जुड़े हैं जैसे पेट्रोल,डीजल,ए.टी.एफ.,नेचुरल गैस,क्रूड आईल तथा शराब को भी इससे मुक्त रखा गया है. भारत की सरकार की यह मंशा है कि शनै:शनै: इसके ऊपर भी जी.एस.टी. को प्रभावी किया जायेगा. केन्द्र के 8 और राज्य के 9 टैक्स कुल 17 टैक्स मिलाकर इस जी.एस.टी. में होंगे और माननीय कैलाश जी ने भी कहा कि इससे महंगाई पर पूर्ण रूप से नियंत्रण होगा. राज्यों को स्वायत्ता देना, यह बात माननीय प्रधानमंत्री जी, एक मुख्यमंत्री होने के नाते जानते थे और उसी को संदर्भित करते हुए राज्यों को पूर्ण स्वायत्ता मिले, इस बात का ध्यान रखते हुए यह बिल लाया गया है. मैं विस्तार में नहीं जाना चाहता हूं क्योंकि कैलाश जी ने अपना वक्तव्य यहां पर दे दिया है लेकिन आम उपभोक्ता, क्रय प्रणाली का सरलीकरण,उसकी समानता, उसकी समान व्यवहारिकता का पक्षधर होता है. उत्पादनकर्ता और उपभोक्ता दोनों चाहते हैं कि कर प्रणाली सरल हो, एक समान हो. जैसा कैलाश जी ने कहा " एक राष्ट्र एक टैक्स " का नारा माननीय केन्द्रीय वित्त मंत्री जी ने कहा है. अनेक बैरियरों पर,अनेक स्थानों पर जो दिक्कतें आती हैं उन दिक्कतों से मुक्ति इससे मिलेगी. आज हमारे लिये गर्व का विषय है कि जिस विधेयक को लोक सभा ने सर्वानुमति से पारित किया है, राज्य विधान सभा में भी यह प्रस्ताव आया है हम सब मिलकर सर्वानुमति से इसको पारित करें. अध्यक्ष महोदय, आपने बोलने का अवसर दिया बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री
जयवर्द्धन
सिंह(राघोगढ़)
- माननीय
अध्यक्ष
महोदय, मैं
मध्यप्रदेश
माल और सेवाकर
विधेयक,2017 पर
बोलने के लिये
खड़ा हुआ हूं.
पिछले दस साल
से जी.एस.टी. के
ऊपर पूरे देश
भर में बहुत
चर्चा हुई है
और आखिर में
पिछले साल
सितम्बर,2016 में
101 वां संविधान
संशोधन
अधिनियम
द्वारा
जी.एस.टी. का
बिल प्रभावी हुआ
और अब कहा गया
है कि 1 जुलाई,2017
से जी.एस.टी.
पूरे भारत में
लागू होगा.
इसमें मूल रूप
से अब तक जो अनेक
प्रकार के
अप्रत्यक्ष
कर जो लगते थे
उन सबके बदले
में अब एक
मात्र
जी.एस.टी. ही
लागू होगा और
इसमें मूल रूप
से जो सरकार
की सोच है वह
यह है कि
अप्रयत्क्ष
कर किस प्रकार
से और सरल हो
और गवर्नमेंट
को
भी,उपभोक्ता
को भी और
व्यापारी हो
या निर्माता
हो,
सबको इससे
कैसे लाभ मिले
वही सरकार की
सोच थी.
माननीय
अध्यक्ष
महोदय, जो कुछ
अखबारों के
माध्यम से
पिछले दो
सालों में
हमने पढ़ा,
मैं मानता हूं
सरकार ने पूरा
प्रयास किया
है कि जी.एस.टी.
को सरल बनाया
जाये लेकिन
अनेक चर्चाओं
के बाद और
अनेक बैठकों
के बाद जो आज
जी.एस.टी. बिल
पारित होने जा
रहा है, आज भी
इसमें काफी कठिनाईयां
हैं, ऐसे
मुद्दे हैं
जिन पर माननीय
वित्त मंत्री
जी जब अपना
भाषण देंगे तो
मैं उनसे
अपने कुछ बिन्दुओं
पर उत्तर
जानना
चाहूंगा.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इसमें सबसे पहले जब यूपीए की सरकार वर्ष 2009 में थी तो उस समय 13वें वित्त आयोग ने ब्लेंकेट 12 प्रतिशत जीएसटी का प्रस्ताव रखा था, लेकिन वर्ष 2015 में जो एक्सपर्ट कमेटी ऑन रेवेन्यू न्यूट्रल रेट स्थापित हुई थी उन्होंने मल्टीपल टैक्स सिस्टम का प्रस्ताव रखा है एक तरह से जो जीएसटी का मूल उद्देश्य था उससे अलग हो रहा है. इसमें कमेटी ने तीन अलग टैक्स स्लेब रखे हैं उसमें एक लोवर रेट जो आम आदमी की वस्तु है उनकी रखी गई है. एक स्टेण्डर्ड रेट जो अधिकतर वस्तुओं की रखी गई है और एक लग्जरी रेट जो लगभग 40 प्रतिशत तक जा सकती है, वह रखी गई है और इसमें मल्टीपल टैक्सेसन से क्या काम्लीकेशन अराइज होंगे, क्या-क्या चुनौतियां टैक्सेशन में आने वाली हैं, उन पर माननीय वित्तमंत्री जी को उनके सम्बोधन में उल्लेख करना चाहिये.
माननीय अध्यक्ष महोदय, उसके साथ-साथ जीएसटी के तीन हिस्से है, सेंट्रल जीएसटी, स्टेट जीएसटी और इंटीग्रेटेट जीएसटी. जो सीजीएसटी और एसजीएसटी है उनमें एक केप रखी गई है 20 प्रतिशत तक की और आईजीएसटी जो इंटर स्टेट जीएसटी रहेगा उसमें 40 प्रतिशत की सीमा रखी गई है, लेकिन सीजीएसटी और एसजीएसटी जो सेंट्रल जीएसटी रहेगा और स्टेट जीएसटी रहेगा उनमें रेट्स पर निर्णय करने का किसका दायित्व रहेगा और क्या वह इक्युवल अमाउंट रहेंगे. अगर मान लो सीजीएसटी एक वस्तु पर 8 प्रतिशत है तो क्या स्टेट जीएसटी भी 8 प्रतिशत ही रहेगा. क्या स्टेट जीएसटी की दर बदलने में जो राज्य सरकार है उसको अधिकार है या नहीं है और किस सीमा तक है इस पर भी माननीय वित्त मंत्री जी उल्लेख करें, क्योंकि पिछली बार जब मैंने जीएसटी पर भाषण दिया था, मैंने इस बात का उल्लेख किया था कि वर्तमान राज्य सरकार ने वैट के लिये 5 अलग शेड्यूल रखे हैं, शेड्यूल 1, शेड्यूल 2, शेड्यूल 3, शेड्यूल 4, शेड्यूल 5 जिसमें शेड्यूल 1 और 2 ऐसे शेड्यूल रहते हैं जो बिलकुल आम वस्तु हैं जो किसान के उपयोग में आते हैं, जो छोटे व्यापारी के उपयोग में आते हैं, जो आम आदमी के उपयोग में आते हैं, उन पर अभी वैट मिनीमम रेट पर है. कहीं 0 प्रतिशत पर है, कहीं 1 प्रतिशत है, कहीं 5 प्रतिशत है, तो क्या जीएसटी में इन वस्तुओं पर मिनीमम टेक्सेशन रहेगा. माननीय अध्यक्ष महोदय, जीएसटी को लागू होने के लिये 2 महीने बाकी हैं और अब तक रेट्स फाइनल नहीं हुये हैं. जैसा कि यशपाल जी ने उल्लेख किया था, एक्साइज जो एल्कोहल पर और साथ में पेट्रोलियम और डीजल प्रोडक्ट पर, उस पर फाइनल निर्णय क्या हुआ है, क्योंकि उस पर अभी चर्चा चल रही है. आखिर में मैं यही कहना चाहूंगा कि जो छोटे व्यापारी हैं, इसके बारे में शायद रामनिवास जी ने भी उल्लेख किया था कि उन पर एक केप लगा हुआ है कि जिनकी इनकम 20 लाख से ऊपर है उन पर ही जीएसटी लागू रहेगा, लेकिन जिन व्यापारियों का टर्नओवर 20 लाख से कम होता है, जब उनकी कोई भी वस्तु अगर दूसरे राज्य में जाये तो उन पर भी फिर जीएसटी लगेगा. यह सब ऐसे सेक्टर हैं, ऐसे बिंदू हैं जिन पर जब माननीय वित्तमंत्री जी भाषण देंगे तो उन पर भी हाईलाइट करें क्योंकि यह ऐसे मुद्दे हैं जो मैं मानता हूं जनहित के हैं. आपने मुझे बोलने का समय दिया उसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री दिनेश राय मुनमुन (अनुपस्थित)
1.00 बजे {उपाध्यक्ष महोदय(डॉ.राजेन्द्र कुमार सिंह)पीठासीन हुये}
श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा(मुंगावली) -- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 के बारे में, अर्थात जीएसटी पर मैं पिछले 7 वर्षों से बजट भाषण में बोलता रहा हूं. यदि आप मेरे भाषण निकाल लेंगे तो वह सब बातें मैंने पहले ही रखीं थी जो वर्तमान केन्द्रीय वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली जी ने कही हैं, या कैलाश विजयवर्गीय जी ने कहीं या हमारे प्रदेश के वर्तमान वित्त मंत्री जी अब कहेंगे. उपाध्यक्ष महोदय, यह सब तर्क हम देते थे कि मेहरबानी करके आप जीएसटी के लिये एग्री हो जाईये लेकिन आप लोग किसी भी हाल में जीएसटी के लिये एग्री नहीं थे.
उपाध्यक्ष महोदय, कैलाश विजयवर्गीय जी ने देश के प्रधानमंत्री जी के बारे में कहा कि उनका बड़ा शानदार विजन है और बड़े सोच विचार के पश्चात यह जीएसटी रखा है. मैं पूछना चाहता हूं कि यह विजन उनका तब कहां चला गया था जब यूपीए की सरकार ने जीएसटी लागू करने की बात की थी, लेकिन तब इन्हीं प्रधानमंत्री जी बहुत जोर शोर से इस बिल का विरोध किया था, lock, stock and barrel कि जीएसटी ठीक नहीं है. यह टर्नअबाउट उन्होंने खाली जीएसटी पर नहीं किया है . एक विडियो वायरल हुआ है उसमें आपने देखा होगा कि आधार कार्ड का कितनी जबर्दस्त तरीके से प्रधान मंत्री जी ने विरोध किया था और उसी आधार कार्ड को वापस लागू कर रहे हैं और क्या आधार कार्ड से फायदे हैं उसके फायदे उठाना चाहते हैं.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, यही मनरेगा के साथ भी हुआ. मनरेगा का संसद में प्रधानमंत्री जी ने बड़ा मजाक उड़ाया था जो सबने देखा है लेकिन अब मनरेगा के फायदे आपको दिख रहे हैं, मनरेगा में आप बजट प्राविजन भी कर रहे हैं और मनरेगा का फायदा भी दे रहे हैं तो मेरी समझ में नहीं आता कि यह सब विचार तब कहां चले गये थे जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी और तत्कालीन वित्त मंत्री पी.चिदम्बरम जी ने कहा था कि जीएसटी में इतना विलंब होने के कारण देश को 10 लाख करोड़ रूपये की हानि हुई है. प्रति वर्ष एक से देढ़ लाख करोड़ रूपये की हानि हुई है. यह जीएसटी देर से लागू होने जा रहा है इसलिये. अब आप वर्ल्ड बैंक का कोड कर रहे हैं विभिन्न इकॉनामिक्स एक्सपर्ट को कोड कर रहे हैं इन सबको मैंने पहले ही अपने भाषणों में कोड कर रखा है. जब मैं बजट भाषण में जीएसटी के पक्ष में बोलता था और आपसे अनुरोध करता था कि मेहरबानी करके सारे काम्पलीकेशन्स दूर हो जायेंगे आप इसको लागू करिये लेकिन तब आप तैयार नहीं थे. ऐसा नहीं है कि तत्कालीन वित्त मंत्री श्री प्रणब मुखर्जी जी ने आप लोगों की सुनवाई नहीं की हो, प्रदेश के वित्त मंत्रियों की कई बार बैठक हुई, वित्त मंत्री से कई बार डिस्कशन्स हुये और तत्कालीन प्रधान मंत्री जी ने तत्कालीन वित्त मंत्री श्री प्रणब मुखर्जी जी ने यह आश्वासन दिया था कि आपकी सारी शंका का समाधान हम करेंगे, हम राज्यों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं, राज्यों को कंपनसेट भी करेंगे यह आश्वासन भी दिया था लेकिन तब आप लोग किसी भी सूरत में जीएसटी को लागू नहीं करवाना चाहते थे. अब आपने क्या जीएसटी प्रस्तुत किया है. 115 पेज का एक्ट आपने प्रस्तुत किया है. आपको विधानसभा का सत्र बुलाने की क्या जल्दी थी. क्या आप इस एक्ट को हर विधायक को 15 दिन पहले नहीं भेज सकते थे ? 115 पेज का एक्ट है अगर आप भेज देते तो सब लोग इसको पढ़कर के आते और इसकी क्या खामियां हैं यह बताते. आपका मंत्रालय आखिरी तारीख तक बल्कि मैं तो कहूंगा कि एक दिन पहले तक इस पर विचार विमर्श करता रहा और 115 शुद्धि पत्र जारी किये हैं, इसके बाद भी शुद्धि पत्र जारी हैं . रात दिन आपका सचिवालय इसमें काम करता रहा. मैं नहीं समझता हूं कि आपको इतनी हड़बड़ी में इस एक्ट को लागू करना चाहिये. अगर आप 10 दिन बाद भी विधानसभा का सत्र बुलाते और यह जो 115 पेज का एक्ट है , हर विधायक को आप भेज देते को कम से कम हम सब लोग इस एक्ट का अध्ययन करके आपको अच्छे सुझाव देते.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जहां तक आप कई प्रकार के ऐतराज की बात करते हैं ऐतराज तो अभी भी बहुत सारे हैं. इससे आपका इंस्पेक्टर राज वापस शुरू होगा. जैसा कि आपने स्वर्णकारों के साथ में किया है उनको टैक्स की परिधि में आप ले आये उन लोगों ने बहुत हल्ला किया लेकिन आपने उनको कोई राहत नहीं दी है. उसी तरह से इस जीएसटी के माध्यम से आप इंस्पेक्टर राज का प्रावधान करने जा रहे हैं. इसमें पूरा फायदा चार्टड एकाउन्टेन्ट को होगा और अधिकारियों को होगा और इन्सपेक्टर राज वापस प्रदेश में आयेगा. करोड़ो टेक्सपेयर्स को तकलीफ होगी. जीएसटी के लिये जो अवेयरनेस कैंपेन आपको करना चाहिये था वह अवेयरनेस कैपेन आपने नहीं किया है. इसकी बहुत ज्यादा जरूरत है क्योंकि इतने ज्यादा काम्प्लीकेशन्स इस एक्ट और इसकी धाराओं में हैं कि आपको एक अवेयरनेस कैंपेन चलाना चाहिये जिसमें टेक्सपेयर्स को इस एक्ट की पूरी समझ आ जाये और हम लोगों में भी समझ आ जाये. उपाध्यक्ष महोदय, मैं यह भी कहना चाहूंगा कि एग्जम्शन आप जितना देंगे उतना नुकसान है, आपको एग्जम्शन कम से कम देना चाहिये और अधिकारियों को ड्रिस्क्रिशनरी पॉवर कम से कम देना चाहिये. आपने इस एक्ट के माध्यम से सीआरपीसी की धारा और जेल का प्रावधान भी किया है . सेक्शन 138 में आपने दाण्डिक प्रावधान भी किया है यह सब बहुत नुकसान वाली बातें हैं. अभी तो टैक्स स्ट्रक्चर 18 या 19 मई, 2017 को श्रीनगर में जीएसटी काउंसिल की बैठक होगी उसमें तय होगा कि कौन सी चीज पर कितना टैक्स लगेगा. यह अभी नहीं उस बैठक में तय होगा अभी तो व्यापक खपत वाली वस्तुओं पर 5% टैक्स और बाकी पर 12% और 18% टैक्स है. यह भी बात है कि रिफ्रेशन भी बढेगा और महंगाई भी बढ़ेगी, उसको आप कैसे कन्ट्रोल करेंगे, इसमें भी डिपेंड करता है. मैं यह कहता हूं कि जब आप एतराज करते थे, जीएसटी का मनमोहन सिंह सरकार में, तब हम अभी भी एतराज कर रहे हैं कि कई चीजें ऐसी भी है, जिसमें सुधार हो सकता है, जिसमें आपको निरन्तर संशोधन लाना होगा, तब यह प्रेक्टिकल होगा, इसकी जो असली दिक्कतें हैं जब आप इसको एक्सीक्यूट करेंगे तब मालूम पड़ेगी और लगातार आपको संशोधन लाना पड़ेगा, यह मेरा निवेदन है, धन्यवाद, जय हिन्द.
श्री बाला बच्चन (राजपुर)- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक 2017 पर अपनी बात कहने के लिए खड़ा हुआ हूं. देश की आजादी के बाद सबसे बड़ा कर सुधार वाला जीएसटी बिल आज हमारे सामने हैं, उस पर चर्चा हो रही है, मध्यप्रदेश की विधान सभा में चर्चारत है. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, संसद ने इसे सर्वानुमति से पारित कर लोकतंत्र का जो महत्व है वह समझ में आता है कि लोकतंत्र में इस तरह के निर्णय बहुत कम होते हैं और देश की संसद ने इसे सर्वानुमति से पारित करके लोकतंत्र का महत्व हम सबको समझा दिया है. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, उसी समय हमारे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री आदरणीय डॉ. मनमोहन सिंह साहब ने इसे अर्थ व्यवस्था के लिए गेम चेंजर कहा था और संसद में एक देश एक कर वाली बात भी उन्होंने कही थी. राज्य सभा में श्री अरूण जेटली जी ने यह जो जीएसटी बिल पास हुआ, इसका श्रेय सभी को दिया था. इसलिए मैं समझता हूं कि इस पर राजनीति नहीं करना चाहिए. राजनीति करने का यह विषय नहीं है और मैं समझता हूं कि राजनीति में श्रेय लेने की जो होड़ लगी हुई है वह बिलकुल भी ठीक नहीं है, क्योंकि सभी दलों ने इसको पास किया है देश की जनता भी और देश के सभी राजनीतिक दल भी यही चाहते है. इस टैक्स की चार स्लैब होगी 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत इसके अंतर्गत जो छोड़ा गया है, शिक्षा है, स्वास्थ्य है, तीर्थाटन है, पेट्रोलियम उत्पाद है, इसके अलावा बिजली को भी छोड़ा गया है. मैं तो माननीय वित्तमंत्री जी से, माननीय मुख्यमंत्री जी से और सदन से यह मांग करता हूं कि आप जीएसटी कौंसिल के पदेन सदस्य भी हैं. अभी आदरणीय महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा जी भी बोल रहे थे कि 18 और 19 मई को श्रीनगर में इसकी बैठक भी है, आप वहां यह सुझाव दें कि पांच स्लैब में जो जीएसटी टैक्स की जो दरें रखी गई हैं. इसके जुलाई 2017 से लागू होने के बाद उपभोक्तावस्तुओं की कीमत पूरे देश में एक समान हो जाएगी, तो हम यह चाहेंगे कि जो न्यूनतम टैक्स स्लैब में 5 प्रतिशत की जो है उसमें कम से कम जो कृषि उपकरण है, कापी, किताबें और स्टेशनरी है, खाद है एवं अन्य जीवनोपयागी वस्तुएं हैं. माननीय वित्तमंत्री जी जब आपकी बैठक हो तो यह कम से कम टैक्स स्लैब की श्रेणी में रहेगी तो मैं समझता हूं कि यह प्रदेश और देश के उपभोक्ताओं के लिए सभी के लिए यह ज्यादा अच्छा रहेगा. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, एक सुझाव यह भी देना चाहता हूं कि बिजली को भी जीएसटी के अंतर्गत आने देना चाहिए, बिजली की दर जीएसटी में आने के कारण पूरे देश भर के बिजली के उपभोक्ताओं के लिए एक समान दर हो जाएगी जिस कारण से बिजली के उपभोक्ताओं को इसका लाभ भी मिलेगा. दूसरा, जब राष्ट्रीय ग्रिड लग सकती है, एक राज्य दूसरे राज्य से बिजली खरीद सकता है, बिजली बेच सकता है तो क्यों न हम उसको जीएसटी के अंतर्गत लें, जिससे कि बिजली सस्ती हो. माननीय वित्त मंत्री जी मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि 24 अगस्त, 2016 को यहीं पर जीएसटी की जो चर्चा हुई थी इसी सदन में मैंने यह सुझाव उस समय रखा था, क्योंकि राजस्व की जो हानि होगी प्रदेशों को उसकी पूर्ति केन्द्र सरकार अगले पांच साल तक करेगी, लेकिन यह मेरी बात हो सकता है कि आपको थोड़ी ठीक न लगे, बिना टिन नंबर की जो फर्में मध्यप्रदेश में काम कर रही है, उनको कैसे रोका जा सके और अगर यह काम होता रहेगा. तो केंद्र सरकार भी इसकी पूर्ति कहां से करेगी. सिंहस्थ के समय में काफी फर्जी टिन नम्बर की जो संस्थाएं हैं, उन्होंने सप्लाई किया है और मार्च, 2017 के प्रश्न के उत्तर में यह आया है कि जो हमीदिया अस्पताल है, उसमें भी बिना टिन नम्बर की जो फर्म है, उसने गैर औषधीय सामान सप्लाई किया है, यह भी उत्तर में आया है. वित्त मंत्री जी, जब आप बोलें, तो इन बातों का भी ध्यान रखें. दूसरा मैंने यह जो कहा है कि जो स्लैब है, उसमें उपभोक्ता वस्तुओं को कम कीमत वाले स्लैब में रखेंगे, तो मैं समझता हूं कि वह ज्यादा अच्छा है. इसके अलावा भी मैं उन बातों को रिपीट नहीं करना चाहूंगा, जिनका यहां आलरेडी उल्लेख किया गया है. मैं फिर वित्त मंत्री जी एवं सरकार से यह आग्रह करना चाहता हूं कि कम से कम जब आप वहां पहुंचे तो आप इन बातों का ध्यान रखें, क्योंकि इसका सारा जो पंजीकरण और रिटर्न होना है, वह सभी ऑन लाइन होना है.तो कम से कम छोटे व्यापारी और जो ग्रामीण जन हैं, उनको इसमें आप इसकी ट्रेनिंग भी दें, जिससे कि जीएसटी लागू होने के बाद आम व्यक्तियों को इसका लाभ मिल सके और जब आप वहां उपस्थित हों, तो आप हमारी इन सभी बातों, हमारे सुझावों को ध्यान से रखें और ठीक ढंग से जीएसटी लागू होने के बाद इसका क्रियान्वयन हो. यह हम भी, हमारा दल भी और मैं समझता हूं कि मध्यप्रदेश की जनता एवं देश की जनता भी यह चाहती है और यह बात मैं पहले भी कह चुका हूं कि इसमें कोई राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा या श्रेय लेने की बात नहीं होनी चाहिये. हम सर्वानुमति से चाहते हैं कि यह बिल यहां पास हो और हमारे आदरणीय नेता प्रतिपक्ष जी ने इस बात को बोला ही है और हमारे दल की सहमति भी है. उपाध्यक्ष महोदय, आपने जो मुझे समय दिया है, इसके लिये मैं आपको धन्यवाद देता हूं.
उपाध्यक्ष महोदय -- मैं वहां सदन में बैठा था, मैंने भी सोचा था कि आज एक अत्यन्त लघु भाषण दूंगा, लेकिन वह अवसर नहीं मिला. मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि श्रेय लेने की बात यहां पर हो रही थी, जीएसटी के विषय वस्तु पर तो चर्चा हुई, लेकिन जो इसकी बुनियाद रखी गई थी, मैं यह कहना चाह रहा था, मैं यहीं से कह दूं, वह माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार, एनडीए की सरकार के नेतृत्व में रखी गई थी, उसका भवन यूपीए की सरकार में बना. अब पूरा इंटीरियर डेकोरेशन वर्तमान सरकार मोदी जी के नेतृत्व में कर रही है और गृह प्रवेश भी वही करेगी, धन्यवाद.
वित्त मंत्री (श्री जयंत मलैया) --- उपाध्यक्ष महोदय, धन्यवाद. आज 3 मई,2017 को मध्यप्रदेश विधान सभा के इस विशेष सत्र में मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक,2017 को सदन में विचार विमर्श कर पारित करने हेतु प्रस्तुत किया गया है. पूरी दुनियां में लगभग 160 देश हैं, जिनमें कि जीएसटी या जीएसटी जैसी कर प्रणाली लागू है. इसका हमारे जो देश का इतिहास है, वह भी 17 वर्ष पुराना है. उपाध्यक्ष महोदय, जैसे अभी आपने आसंदी से कहा कि यह वर्ष 2000 में जब श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी इस देश के प्रधानमंत्री थे, तब इस आधुनिक कर प्रणाली पर चर्चा प्रारंभ हुई थी और उस समय एक कमेटी का भी गठन किया गया था. उस कमेटी का जो नेतृत्व है, वह पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री, असीम दास गुप्ता द्वारा प्रारम्भ किया गया था. वर्ष 2003-04 में जीएसटी को लागू करने को लेकर पहले केलकर टॉस्क फोर्स का गठन किया गया. वर्ष 2006 में पहली बार केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा अपने बजट भाषण में 1 अप्रैल,2010 से जीएसटी लागू करने की बात की गई.
1.14 बजे {अध्यक्ष महोदय (डॉ. सीतासरन शर्मा) पीठासीन हुए.}
अध्यक्ष महोदय, इसी तरह वर्ष 2007 में राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त कमेटी द्वारा जीएसटी के रोडमेप पर काम करना शरु कर दिया गया था, जिसकी कमेटी द्वारा रिपोर्ट वर्ष 2008 में दी गई. वर्ष 2009 में इमपावर्ड कमेटी द्वारा पहला डिसकशन पेपर रिलीज किया गया तथा फरवरी,2010 में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा यह घोषणा की गई कि अप्रैल,2011 से इस देश में जीएसटी लागू हो जायेगा. वर्तमान में भाजपा सरकार द्वारा जीएसटी कानून लागू करने के लिये संविधान में संशोधन विधेयक संसद में प्रस्तुत किया गया और दोनों सदनों में यह पारित हुआ. संविधान संशोधन के फलस्वरुप केंद्र एवं राज्यों को माल एवं सेवाओं पर कर लगाने की शक्तियां प्राप्त हुई हैं. माल और सेवा कर जीएसटी प्रणाली लागू करने के लिये केंद्र सरकार के द्वारा केन्द्रीय माल एवं सेवा कर अधिनियम, इण्टीग्रेटेड माल एवं सेवा कर अधिनियम, यूनियन टेरीटरी माल एवं सेवा कर अधिनियम तथा माल एवं सेवा कर कम्पन्सेशन अधिनियम बनाए गए हैं. मध्यप्रदेश राज्य द्वारा भी मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 का जो प्रारूप विधान सभा के पटल पर रखा गया है. यह विधेयक केन्द्रीय माल एवं सेवा कर अधिनियम का लगभग एक प्रतिबिम्ब है. इसी तरह से जीएसटी की कर प्रणाली 17 वर्षों से अथक मेहनत के बाद प्रारंभ हुई है.
अध्यक्ष महोदय, मुझे यह बताते हुए बहुत प्रसन्नता है कि हमारे प्रदेश के वाणिज्यिक कर अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने बड़ी विपरीत परिस्थितियों में काम करते हुए जीएसटी की अद्यतन तैयारी की और इसको जो हमारे टैक्स कन्सलटेन्ट हैं, चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट हैं, उन्होंने व्यापारियों के साथ मिलकर और आम लोगों को इसकी विस्तार से जानकारी देने की बात शुरू कर दी. इस तरीके से, इन्होंने करीब लगभग 300 से अधिक वर्कशॉप किए. जैसे आदरणीय महेन्द्र सिंह जी कालूखेड़ा जी ने कहा कि लोगों को बताने के लिए यह होना चाहिए. हमारे लोगों ने इतनी ज्यादा वर्कशॉप की हैं और इसके साथ-साथ, हमारे विभाग ने यह तय किया है कि जो हमारा हेड क्वार्टर रहेगा, उसमें सहायता केन्द्र स्थापित किया जायेगा और जो हमारा सर्किल ऑफिस रहेगा, वहां भी हेल्प डेस्क रहेगी और मुझे यह बताते हुए भी खुशी है कि हमारे जितने भी वाणिज्यिक कर अधिकारी हैं, उनको पूरी तरह से मूलभूत प्रशिक्षण दिया जा चुका है और अब वे पूरी तरह से जीएसटी के लिए तैयार हैं.
अध्यक्ष महोदय, यहां पर जीएसटी कौंसिल की चर्चा की गई थी, काफी चर्चा हुई. जीएसटी कौंसिल का गठन 12 सितम्बर, 2016 को हुआ था और जीएसटी कौंसिल में हमारे भारत सरकार के वित्त मंत्री उसके अध्यक्ष हैं. भारत सरकार के वित्त राज्यमंत्री और अन्य प्रदेशों के वित्त मंत्री उसके सदस्य हैं और जो भी अब निर्णय लिये जायेंगे, वे जीएसटी कौंसिल के द्वारा ही लिये जायेंगे. जैसे श्री कैलाश विजयवर्गीय जी ने अपने भाषण में बताया था कि पार्लियामेन्ट में अपने-अपने अधिकारों को छोड़ते हुए यह अधिकार कौंसिल को दे दिए हैं कि कौंसिल निर्णय लेगी. मैं यहां निवेदन करना चाहता हूँ कि अभी तक जब से जीएसटी कौंसिल बनी है, जीएसटी कौंसिल की 13 बैठकें हो चुकी हैं. इन ज्यादातर बैठकों में मुझे भी शिरकत करने का मौका मिला. इसमें देश के पूरे 31 राज्य हैं, उनके प्रतिनिधि इसमें हैं. हर एक राज्य की अपनी अलग-अलग स्थिति है. यह भी किसी से छिपा नहीं है कि जो 31 राज्यों के प्रतिनिधि हैं. ये हमारे देश के 90 राजनैतिक दल, जो राष्ट्रीय दल और जो क्षेत्रीय दल हैं, उनके प्रतिनिधि के रूप में काम करते हैं, परन्तु इन 13 बैठकों में एक बार भी कभी मतदान होने की नौबत नहीं आई. वहां पर सारे फैसले सर्वानुमति से हुए हैं. यह हमारे लिए बहुत खुशी की बात है और यह भारत के लोकतंत्र की उच्च परम्पराओं पर विजय भी है. यह हमारे संघीय ढांचे में ही हो सका है कि यह काम हम कर पाये हैं. मुझे पूरी उम्मीद है कि आगे कभी कोई इस प्रकार की बात आएगी, तो निश्चित तौर से जीएसटी कौंसिल में बैठकर उसको तय किया जायेगा. टैक्स रेट के बारे में बात हुई कि जीएसटी के मूल सिद्धान्तों में टैक्स बहुत महत्वपूर्ण है, एक तो जीरो प्रतिशत टैक्स रहेगा, जैसे मैं हमारे प्रधानमंत्री श्रीमान् नरेन्द्र मोदी जी का भाषण देख रहा था, जो उन्होंने लोकसभा में कहा था कि 55 प्रतिशत फूड ग्रेन और जो लाइफ सेविंग ड्रग्स हैं, ये सब जीरो में आएंगे, इन पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, इसके साथ 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत हैं, इस टैक्स रेट में वही वस्तुएं आएंगी, जो उसके निकट हैं. इसलिए किसी को भी अप्रत्याशित या अलाभकारी परिवर्तन इसमें नहीं होने वाला है.
अध्यक्ष महोदय, मैं यह भी निवेदन करना चाहता हूँ कि जो जीएसटी है, यह छोटे व्यवसायियों के लिए लाभ का मामला है. अभी तक वेट कर प्रणाली में 10 लाख रूपये तक का होता था, उसके बाद लोगों के रजिस्ट्रेशन होते थे. अब इस छूट को 10 लाख रूपये से बढ़ाकर 20 लाख रूपये कर दिया गया है इसलिए इसमें छोटे व्यवसायियों को राहत होगी. इसके साथ-साथ 50 लाख तक का व्यवसाय करने वाले व्यापारी बंधुओं को एकमुश्त कर्ज चुकाने पर कम्पोजिशन की सुविधा दी गई है. इसके अतिरिक्त इस प्रस्ताव व्यवस्था के अंतर्गत सभी रजिस्टर्ड व्यवसायियों को पूरे भारत वर्ष में इनपुट टैक्स क्रेडिट की पात्रता होगी जो अभी तक के अधिनियमों में राज्य के भीतर की गई खरीदी पर प्राप्त होती थी. मैं सदन को यह बताना चाहता हूं कि इस व्यवस्था में अब अधिक से अधिक 5 प्रतिशत व्यवसायियों का प्रतिवर्ष असिसमेंट किया जाएगा. अभी तक यह जो असिसमेंट होता था लगभग 40 प्रतिशत व्यवसायियों का असिसमेंट हुआ करता था. अब व्यवसायियों के द्वारा भरा हुआ रिटर्न ही उनके कर निर्धारण का आधार होगा. अर्थात् उसका सेल्फ असिसमेंट होगा. इसके साथ ही अभी व्यवसायियों को वेट प्रणाली में पंजीयन कराते समय स्थल निरीक्षण कराना होता था. जी.एस.टी. प्रणाली में मात्र रिस्क ब्रेक पैरामीटर के आधार पर ही स्थल निरीक्षण किया जाएगा. जी.एस.टी. प्रणाली में अब उन्हें अलग-अलग टैक्स के अलग-अलग रिटर्न नहीं भरना पडे़ंगे बल्कि एक ही रिटर्न और एक ही चालान से उनका कार्य पूर्ण होगा. अध्यक्ष महोदय, मैं यहां जी.एस.टी. विधेयक की कुछ विशिष्ट बातों का उल्लेख करना चाहता हूं.
(1) जी.एस.टी. एक राष्ट्रव्यापी कर प्रणाली पर आधारित है. इससे राज्यों के बीच में टैक्स-वॉर नहीं होगा.
(2) यह प्रणाली पूर्णत: कम्प्यूटर आधारित होगी. अत: यह एक पारदर्शी कर व्यवस्था होगी. जिसमें व्यवसायी तथा विभाग के मध्य हो रही जानकारियों के आदान-प्रदान की सतत् मॉनीटरिंग हो सकेगी.
(3) एक व्यवसायी से संबंधित वस्तु एवं सेवा कर अब एक ही विभाग द्वारा प्रशासित किया जाएगा.
(4) पंजीयन आवेदन के संबंध में निरीक्षण अब सभी व्यवसायियों का नहीं होगा.
(5) सप्लायर्स के द्वारा विवरण पत्रों में दी जाने वाली सप्लाई की जानकारी प्राप्तकर्ता के विवरण पत्रों में स्वमेव प्रदर्शित होगी.
(6) यह प्रणाली स्व-कर निर्धारण पर आधारित है.
(7) रियल टाइम डाटा की उपलब्धता विभाग तथा व्यवसायी दोनों में होगी.
(8) राज्य के बाहर से प्राप्त सप्लाई पर भी इनपुट टैक्स क्रेडिट प्राप्त होगा.
(9) केन्द्र और राज्यों के विभिन्न कर कानूनों के समाप्त होने पर व्यवसायियों को राहत मिलेगी. जितने भी केन्द्र सरकार के टैक्सेज़ होते थे वे टैक्स मिलाकर और जितने भी राज्य सरकार के टैक्सेज़ होते थे चाहे वह वेट हो, एंट्री टैक्स हो या अन्य कोई भी टैक्स हो इन सबको समाहित करके अब एक ही टैक्स लगेगा जिससे सारे व्यवसायियों को राहत मिलेगी.
(10) पूरे देश में एक समान दर होने से व्यापार तथा निवेश बढ़ेगा एवं इसका विचलन कम होगा.
(11) वापसी कम्प्यूटर सिस्टम से ऑटोमेटिक प्राप्त होगी. जो रिफंड होता है उसके लिए ऑटोमेटिक सिस्टम से रिफंड होगा.
(12) पंजीयन अधिक से अधिक तीन दिवस में प्राप्त किया जा सकेगा.
(13) राज्य को कम्पनसेशन अगले पांच वर्ष तक प्राप्त होगा जो14 प्रतिशत की दर से अधिक कर संग्रहण में कमी आएगी तो प्राप्त होगा. मुनाफाखोरी की रोकथाम के लिए भी जी.एस.टी. में प्रावधान किए गए हैं. एस.जी.एस.टी. विधान में कर दरों में कमी होने के कारण वस्तु एवं सेवाओं के मूल्य में जो कमी होगी उसका लाभ आम जनता को दिलाने के लिए इस विधान में मुनाफाखोरी निरोधी उपाय किए गए हैं. इस उपबंध से प्रदेश की आम जनता को टैक्स में होने वाली कमी का प्रत्यक्ष लाभ मिल सकेगा.
माननीय अध्यक्ष महोदय, जी.एस.टी. के माध्यम से हमने अपने संघीय ढांचे को बरकरार रखा है. देश के अंदर प्रदेश के मंत्रियों और केन्द्र तथा राज्य दोनों ने पहली बार सर्वसम्मति से जी.एस.टी. काउंसिल के भीतर निर्णय लेने की शुरुआत की है. यही हमारे संघीय ढांचे की खूबसूरती है. मेरा विश्वास है कि आगे आने वाली तकनीक आधारित यह व्यवस्था आर्थिक परिवर्तन के लिए मील का पत्थर साबित होगी. अध्यक्ष महोदय, मैं, मध्यप्रदेश माल एवं कर विधेयक, 2017 को सर्वसम्मति से पारित करने के लिए सदन के सभी माननीय सदस्यों से अनुरोध करता हूं धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय--प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 पर विचार किया जाए.
जो प्रस्ताव के पक्ष में हों वे कृपया "हाँ" कहें.
जो प्रस्ताव के विपक्ष में हों, वे कृपया "ना" कहें.
"हाँ" की जीत हुई,
"हाँ" की जीत हुई.
प्रस्ताव स्वीकृत हुआ.
अध्यक्ष महोदय--अब विधेयक के खण्डों पर विचार होगा.
प्रश्न यह है कि....
नेता प्रतिपक्ष (श्री अजय सिंह)--माननीय अध्यक्ष महोदय, आप इसको पास करने के लिए हाँ की जीत और ना की जीत न करें. इसे सर्वसम्मति से प्रस्ताव करें.
अध्यक्ष महोदय--जब पारित होगा तब सर्वसम्मति से बोल ही देंगे.
प्रश्न यह है कि खण्ड 2 से 174 एवं अनुसूची 1, 2 तथा 3 इस विधेयक का अंग बने.
जो प्रस्ताव के पक्ष में हों वे कृपया "हाँ" कहें.
जो प्रस्ताव के विपक्ष में हों, वे कृपया "ना" कहें.
सर्वसम्मति से "हाँ" की जीत हुई,
खण्ड 2 से 174 एवं अनुसूची 1, 2 तथा 3 इस विधेयक का अंग बने.
प्रश्न यह है कि खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बने.
जो प्रस्ताव के पक्ष में हों वे कृपया "हाँ" कहें.
जो प्रस्ताव के विपक्ष में हों, वे कृपया "ना" कहें.
सर्वसम्मति से "हाँ" की जीत हुई,
खण्ड 1 इस विधेयक का अंग बना.
प्रश्न यह है कि पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
जो प्रस्ताव के पक्ष में हों वे कृपया "हाँ" कहें.
जो प्रस्ताव के विपक्ष में हों, वे कृपया "ना" कहें.
सर्वसम्मति से "हाँ" की जीत हुई,
पूर्ण नाम तथा अधिनियमन सूत्र विधेयक का अंग बने.
वाणिज्यिक कर मंत्री (श्री जयंत मलैया)--अध्यक्ष महोदय, मैं, प्रस्ताव करता हूँ कि मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 पारित किया जाए.
श्री अजय सिंह--अध्यक्ष महोदय, जब सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास करने की बात की थी तो "हां"की जीत हुई "हां" की जीत हुई इसे विलोपित कर दें क्योंकि खण्ड में वह रिकार्ड में रहेगा. हम लोगों ने शुरु से कह दिया है सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया जाए तो फिर हां की जीत, न की जीत न किया जाए.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ. नरोत्तम मिश्र)--नेता जी जब पारित होगा तो सर्वसम्मति ही आएगा. खण्ड हैं उन पर विचार करना है.
अध्यक्ष महोदय--सभी में "हाँ की जीत" की जगह सर्वसम्मति कर दें.
श्री अजय सिंह--खण्डों पर भी विचार क्यों किया जा रहा है जब सर्वसम्मति से हो रहा है तो.
अध्यक्ष महोदय--विलोपित कर दिया है.
श्री अजय सिंह--ठीक है.
अध्यक्ष महोदय--प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 पारित किया जाए.
प्रश्न यह है कि मध्यप्रदेश माल और सेवा कर विधेयक, 2017 पारित किया जाए.
जो प्रस्ताव के पक्ष में हों वे कृपया "हाँ" कहें.
जो प्रस्ताव के विपक्ष में हों, वे कृपया "ना" कहें.
प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ.
विधेयक पारित हुआ.
मुख्यमंत्री (श्री शिवराज सिंह चौहान)--माननीय अध्यक्ष महोदय, आज भाईसाहब बहुत अच्छे मूड में हैं. मैं उनकी इस भावना के लिए उनका हृदय से आभार प्रकट करता हूँ. राष्ट्र के हित के लिए आज उन्होंने कहा कि सर्वसम्मति लिखें, हां की जीत नहीं लिखें. इस भावन का हम आदर करते हैं, सम्मान करते हैं.
श्री रामनिवास रावत--इसके लिए हम तैयार नहीं रहते हैं, यह हमने कब कहा है.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ. नरोत्तम मिश्र)-- अध्यक्ष जी, यह बुधनी की हवा का असर है. कल भैया होकर आए हैं तब से मूड बदला-बदला सा है.
श्री अजय सिंह--अभी आने दो नर्मदा संकल्प तब बताता हूँ. (हंसी)
1.28 बजे संकल्प
माँ नर्मदा नदी को जीवित इकाई के रुप में वैधानिक अधिकारों के संरक्षण विषयक
पर्यावरण मंत्री (श्री अंतर सिंह आर्य)--अध्यक्ष महोदय, मैं, संकल्प करता हूँ कि--
"सदन का मत है कि माँ नर्मदा नदी मध्यप्रदेश की जीवन-रेखा है और एक जीवित इकाई के रुप में माँ नर्मदा के वैधानिक अधिकारों के संरक्षण हेतु राज्य शासन कृत संकल्पित है."
अध्यक्ष महोदय--संकल्प प्रस्तुत हुआ.
श्री रामनिवास रावत--अध्यक्ष महोदय, मेरा पाइंट ऑफ ऑर्डर. मैंने इस संकल्प पर संशोधन दिया है उसे या तो स्वीकार करें या अस्वीकार करें.
अध्यक्ष महोदय--उसको अस्वीकार कर दिया है पर जब आप इस पर बोलेंगे तो बात कह सकते हैं.
श्री रामनिवास रावत-- अध्यक्ष महोदय, संकल्प पर चर्चा प्रारंभ हो रही है मैं अपनी तो कहूंगा. मैंने संशोधन प्रस्तुत किया है दूसरा मैं आपके माध्यम से यह भी जानना चाहता हूँ कि माननीय मंत्री जी ने संकल्प प्रस्तुत किया है. इसमें वैधानिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है. यह मात्र शासकीय संकल्प है या संवैधानिक संकल्प है, सरकार द्वारा प्रस्तुत किया हुआ. यह भी स्पष्ट कर दें.
अध्यक्ष महोदय--शासकीय है मंत्री जी प्रस्तुत कर रहे हैं.
श्री रामनिवास रावत--वैधानिक अधिकारों का उल्लेख किया हुआ है. संकल्प तीन प्रकार के होते हैं. शासकीय संकल्प, अशासकीय संकल्प और संवैधानिक संकल्प. यह वैधानिक संकल्प है क्या यह स्पष्ट कर दें. इसमें वैधानिक अधिकारों का उल्लेख है. कौल-शकधर की आप किताब देख लें. वैधानिक संकल्प आता है वहां संविधान के उपखंडों का हवाला दिया रहता है कि हम कोई वैधानिक अधिकारों की व्यवस्था करना चाहते हैं तो संविधान के किन अनुच्छेदों के अन्तर्गत, आप कौल एण्ड शकधर की पुस्तक निकाल लें. मेरा पाइंट ऑफ ऑर्डर है. या तो यह स्पष्ट करें कि यह मात्र शासकीय संकल्प है, संवैधानिक संकल्प नहीं है. अगर यह संवैधानिक संकल्प है तो व्यवस्था दें.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ. नरोत्तम मिश्र)--अध्यक्ष जी, सारी बातें यही कहे जा रहे हैं. बहुत स्पष्ट कह रहे हैं कि शासकीय संकल्प है. सारी बात स्पष्ट कह रहे हैं इसके बावजूद भी कह रहे हैं.
श्री रामनिवास रावत--वैधानिकता से कोई वास्ता नहीं है इसका ? वैधानिकता से कोई मतलब नहीं है ? बस यही हम चाह रहे हैं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र--यही तो हम कह रहे हैं.
श्री रामनिवास रावत--वैधानिकता से इसका कोई वास्ता नहीं है. आप वैधानिक व्यवस्था नहीं करना चाहते हैं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र--वैधानिक के लिए विधेयक लाएंगे वह अलग चीज है अगर लाना होगा तो.
अध्यक्ष महोदय- वैधानिक संकल्प संविधान के अधिनियमों के अंतर्गत आता है. इसमें इस बात का उल्लेख नहीं किया गया है. केवल वैधानिक शब्द का उपयोग किया गया है. आप इसे थोड़ा सा स्पष्ट कर लें. इसमें किसी उपबंध का, किसी अधिनियम का हवाला नहीं दिया गया है. यह सीधा शासन के मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जिसे शासकीय संकल्प कह सकते हैं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र- ज्यादा पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी दिक्कत देता है.
श्री रामनिवास रावत- अध्यक्ष महोदय, मैंने इसलिए आपत्ति उठाई थी क्योंकि इसमें वैधानिक अधिकारों के संबंध में उल्लेख किया गया है. तो क्या यह संवैधानिक संकल्प होगा या नहीं ?
अध्यक्ष महोदय- नहीं, यह वैधानिक संकल्प नहीं होगा. आपने जो आपत्ति उठाई है, उसका निराकरण कर लें.
डॉ. नरोत्तम मिश्र- हम एक बार फिर बोल देते हैं कि यह शासकीय संकल्प है.
श्री रामनिवास रावत- तो फिर इसमें से वैधानिक अधिकारों को हटा दिया जाए. ये वैधानिक अधिकारों की व्यवस्था कैसे करेंगे, इसे स्पष्ट करें.
अध्यक्ष महोदय- यह अभी चर्चा में आयेगा.
श्री रामनिवास रावत- यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि वैधानिक अधिकारों की कैसी व्यवस्था करेंगे ?
वन मंत्री (डॉ. गौरीशंकर शेजवार)- माननीय अध्यक्ष महोदय, जैसा कि संकल्प में उल्लेखित है कि मां नर्मदा नदी, मध्यप्रदेश की जीवन-रेखा है और एक जीवित इकाई के रूप में मां नर्मदा के वैधानिक अधिकारों के संरक्षण हेतु राज्य सरकार कृत संकल्पित है.
1.31 बजे
अध्यक्षीय घोषणा
सदन के समय में वृद्धि विषयक
संकल्प पर चर्चा पूर्ण होने तक भोजनावकाश स्थगित कर सदन की कार्यवाही के समय में वृद्धि की जाती है.
मैं समझता हूं कि सदन इससे सहमत है.
मां नर्मदा नदी को जीवित इकाई के रूप में वैधानिक अधिकारों के संरक्षण विषयक संकल्प पर चर्चा (क्रमश:).....
डॉ. गौरीशंकर शेजवार- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आज यहां उल्लेख करना चाहता हूं कि हमारे मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी ने इस संकल्प को पहले ही अंतर्मन से स्वीकार कर लिया है. मां नर्मदा संरक्षित रहे, उसके अधिकार संरक्षित रहे, इसके लिए पहले ही उन्होंने इस बात पर पूरा जोर दिया है कि मां नर्मदा की धारा अविरल और निर्मल रहे. इस हेतु मुख्यमंत्री जी ने नर्मदा सेवा यात्रा '' नमामि देवी नर्मदे '' का शुभारंभ किया है. इसके लिए मैं सदन में माननीय मुख्यमंत्री जी की प्रशंसा करना चाहता हूं.
'' नमामि देवी नर्मदे '', नर्मदा सेवा यात्रा के संबंध में मैं संक्षेप में कहना चाहूंगा कि मुख्यमंत्री माननीय श्री शिवराज सिंह चौहान जी कि यह बड़ी महत्वाकांक्षी यात्रा है. इसके साथ ही साथ यह बहुउद्देशीय यात्रा है और परिणामजनक यात्रा भी है. इस यात्रा के उद्देश्य वैज्ञानिक, धार्मिक एवं सामाजिक हैं. अध्यक्ष महोदय, इसके विस्तार में मैं सदन में नहीं कहना चाहता हूं. लेकिन इतना जरूर बताना चाहता हूं कि 11 दिसंबर 2017 को अमरकंटक से यह यात्रा प्रारंभ हुई. इस यात्रा में बहुत ही स्पष्ट रूप से मां नर्मदा की सेवा, शब्द का इस्तेमाल किया गया है. सेवा का अर्थ यह है कि मां नर्मदा के दोनों ओर तटों पर हम वृक्ष लगायें ताकि पर्यावरण का संरक्षण हो और पानी के रूप में नर्मदा जी में समृद्धता आये. सेवा का दूसरा रूप यह है कि हम कहीं प्रदूषण न फैलायें ताकि मां नर्मदा का जल निर्मल रहे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, संतों का इस यात्रा को आर्शीवाद प्राप्त हुआ है. माननीय मुख्यमंत्री जी को इसके लिए संतों का साधुवाद मिला. साहित्यकारों, कलाकारों द्वारा इस यात्रा को शुभकामनायें दी गई. विषयवस्तु के विशेषज्ञों द्वारा इस यात्रा की सराहना की गई है. जनभागीदारी और जनसहयोग से जनमानस का इस यात्रा को सहयोग मिला है.
अध्यक्ष महोदय, माननीय मुख्यमंत्री जी ने जब यह यात्रा प्रारंभ की थी तो उनकी कल्पना और अपेक्षा यह थी और उन्होंने आह्वान भी यह किया था कि यह यात्रा एक जन आंदोलन बनना चाहिए. यह यात्रा एक जन आंदोलन तो बनी लेकिन इसके साथ ही साथ संतों, साहित्यकारों और दुनिया के बड़े-बड़े विषयवस्तु के विशेषज्ञों ने इसे दुनिया के सबसे बड़े नदी बचाओ, नदी संरक्षण अभियान की संज्ञा दी है. विपक्ष के भी कई माननीय सदस्यों ने इस यात्रा का समर्थन किया है और इस यात्रा में शामिल भी हुए हैं. अध्यक्ष महोदय, मैं इसके विस्तार में न जाकर इसके आंकड़ों को प्रस्तुत करना चाहता हूं. नमामि देवी नर्मदे नर्मदा सेवा यात्रा, 11 दिसंबर से प्रारंभ हुई, 16 जिलों में यह यात्रा गई. इसके बाद इसमें 3,186 किलोमीटर लंबाई में यह यात्रा चली. अभी तक यात्रा 144 दिवस चल चुकी है, 950 ग्रामों में यह यात्रा गई और वहाँ अपना नर्मदा बचाओ का, नर्मदा संरक्षण का और धारा अविरल रहे तथा निर्मल रहे, इसका सन्देश दिया. माननीय मुख्यमंत्री जी ने स्वयं ने 47 स्थानों पर नमामि देवी नर्मदे नर्मदा सेवा यात्रा में अपना जन संवाद किया है. माननीय मंत्रीगण 93 स्थानों पर जन संवाद के लिए यहाँ पहुँचे हैं. जो अलग-अलग धर्मों के धर्मगुरू हैं, इन्होंने 67 स्थानों पर जन संवाद किया है. विषय-वस्तु के विशेषज्ञों के जन संवाद 26 स्थानों पर हुए हैं. जो कलाकार हैं और साहित्यकार हैं, इनके जन संवाद 38 स्थानों पर हुए हैं. भारत के अलग-अलग स्तर के, राष्ट्रीय स्तर के और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जो खिलाड़ी हैं, इन्होंने 51 स्थानों पर जन संवाद किया है. विशिष्ट अतिथियों के जन संवाद 13 स्थानों पर हुए हैं.
अध्यक्ष महोदय, मैं यह बताना चाहता हूँ कि किन-किन अलग-अलग धर्मगुरूओं ने इस नमामि देवी नर्मदे नर्मदा सेवा यात्रा में अपना आशीर्वाद दिया है और अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है. सिख धर्म गुरू में श्रीमान् पद्मश्री संत बलवीर सिंह जी सिंचेवाल, जालंधर, पंजाब से पधारे. होशंगाबाद जिले में श्री ज्ञानी हरजीत सिंह जी, श्री ज्ञानी दिलीप सिंह जी, पधारे और नांदनेर में श्री ज्ञानी हरजीत सिंह जी, ज्ञानी दिलीप सिंह जी, पुनः पधारे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, यदि ईसाई धर्मगुरुओं की बात करें तो आर्चविशप लियो कार्नेलियो, पधारे. फॉदर मारिया स्टीफन, हंडिया में पधारे. सिंगाजी में डॉक्टर ए.के.मर्चेंट जी जोसे कालाथिल जी पधारे. डॉक्टर एम.डी.थॉमस, सीहोर में मण्डी में पधारे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मुस्लिम धर्मगुरुओं के नाम का मैं यहाँ उल्लेख करना चाहता हूँ. डॉक्टर जा इफ्तेकार अहमदख्वा जी, इंटरफेथ हारमोनी आफ इंडिया, के ये अध्यक्ष हैं, ये पधारे. मौलाना लुकमान तारापुरी जी, नमामि देवी नर्मदे यात्रा में पधारे. मौलाना चांद कादरी यहाँ पर पधारे.
अध्यक्ष महोदय, हमारे बौद्ध धर्म गुरू पूज्य दलाई लामा जी यहाँ पर पधारे. अन्य हिन्दू धर्म गुरुओं की बाद करें तो पूज्य अवधेशानंद जी महाराज, पूज्य दिव्यानंद जी महाराज, शंकराचार्य जी, पूज्य मुरारी बापू जी, स्वामी रामदेव बाबा, पूज्य जग्गी महाराज जी, संत कमल किशोर जी नागर, श्री श्री रविशंकर जी महाराज, इस यात्रा में पधारे और उन्होंने मुख्यमंत्री जी को साधुवाद दिया और नमामि देवी नर्मदे यात्रा के जो उद्देश्य हैं उनका हृदय से समर्थन किया.
अध्यक्ष महोदय, यदि हम फिल्मी हस्तियों की बात करें तो श्री प्रकाश झा पधारे. श्री गोविन्द नामदेव जो हमारे मध्यप्रदेश के अपने एक अभिनेता हैं वे पधारे. राजा बुन्देला जी ने इसका समर्थन किया. डॉक्टर चन्द्रप्रकाश द्विवेदी, जिन्होंने धारावाहिक चाणक्य में अपनी भूमिका चाणक्य के रूप में निभाई है, उन्होंने भी प्रत्यक्ष रूप से ओंकारेश्वर में आकर नमामि देवी नर्मदे नर्मदा सेवा यात्रा का बहुत समर्थन किया. सुश्री अनुराधा पौडवाल जी ने कई स्थानों पर अपनी भजन संध्या की प्रस्तुति दी और नमामि देवी नर्मदे नर्मदा सेवा यात्रा का समर्थन किया. श्री लखवीर सिंह जी लख्खा, प्रसिद्ध भजन गायक, स्वप्रेरणा से आए और उन्होंने नमामि देवी नर्मदे नर्मदा सेवा यात्रा का समर्थन किया, माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी को साधुवाद दिया और अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई. अनूप जलोटा जी, विवेक ओबराय जी, इस प्रकार से कई फिल्मी हस्तियाँ यहाँ पर आईं.
अध्यक्ष महोदय, यदि हमारे साहित्यकारों की बात करें तो स्वर्गीय रमेशचन्द्र जी अग्रवाल, चेअरमेन, हमारे भास्कर ग्रुप के थे, होशंगाबाद में स्वयं पधारे और उन्होंने यात्रा का भरपूर समर्थन किया. श्री राजेन्द्र सिंह जी पधारे. भैय्या जी जोशी और अन्य हमारे वरिष्ठजन हैं वे पधारे. अध्यक्ष महोदय, मैं सबका उल्लेख तो नहीं करूँगा लेकिन जिन्होंने माननीय मुख्यमंत्री जी को यात्रा के दौरान बडे़ अच्छे काम्प्लीमेंट्स दिए हैं उनमें से 1-2 उदाहरण मैं देना चाहता हॅूं. जब यात्रा का शुभारम्भ हो रहा था तब यात्रा में स्वागत भाषण अमरकंटक में मैंने किया. इसके बाद प्रथम वक्ता प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह थे. श्री राजेन्द्र सिंह जी ने जब "नमामि देवि नर्मदे" यात्रा के शुभारम्भ पर इस यात्रा के बारे में, इसके उद्देश्यों के बारे में चर्चा की तो उन्होंने माननीय मुख्यमंत्री जी को काम्प्लीमेंट्स दिया. निश्चित रूप से माननीय मुख्यमंत्री जी के लिए बड़ा प्रशसंनीय है और उन्होंने उनको साधुवाद दिया. उन्होंने कहा था कि इतिहास में संत राजा को दिशा देते थे और उपदेश देते थे और उनके माध्यम से राजा विकास के और सेवा के काम करता था लेकिन यहां मुख्यमंत्री माननीय शिवराज सिंह चौहान जी ने "नमामि देवि नर्मदे" यात्रा प्रारम्भ करके स्वयं ने दिशा निर्धारित की है और संत उनका समर्थन कर रहे हैं. यह मुख्यमंत्री जी के लिए बड़ा काम्प्लीमेंट है. हमारे पूज्य सर संघ संचालक मोहन भागवत जी ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा था कि नमामि देवि नर्मदे यात्रा केवल एक नदी के संरक्षण का अभियान नहीं है बल्कि यह समाज सेवा की इतनी बड़ी दिशा और इतना बड़ा माध्यम है और माननीय शिवराज सिंह जी को मैं साधुवाद देना चाहता हॅूं. ऐसे अनेक संतों ने माननीय शिवराज सिंह जी की तारीफ की है. यहां तक कि श्री अमिताभ बच्चन जी का भी वीडियो वायरल हुआ और उन्होंने ट्वीट किया. इसके बाद सुश्री लता मंगेशकर जी ने भी स्वयं मुख्यमंत्री जी से यह कहा कि यदि मेरा स्वास्थ्य ठीक होता तो "नमामि देवि नर्मदे" यात्रा में मैं स्वयं उपस्थित होती. यह परिणामजनक यात्रा है. परिणाम समय निर्धारित जैसे ही हैं वैसे ही आएंगे. इसमें पूरा मेकेनाइज़ है. यह योजना इतनी सिस्टमेटिक और व्यवस्थित है कि कहीं कोई कमी नहीं छोड़ी गई है. नर्मदा जी में जल अविरल रहे, इसके लिए आवश्यक है कि नर्मदा जी के दोनों तटों पर एक-एक किलोमीटर तक हम वृक्षारोपण करेंगे. निश्चित रूप से वृक्षारोपण होगा. माननीय मुख्यमंत्री जी विस्तार से वृक्षारोपण पर और इन सब पर चर्चा करेंगे. लेकिन मैं तो यह बताना चाहता हॅूं कि 2 तारीख को जो वृक्षारोपण होगा, 2-4 साल में पेड़ बडे़ होंगे हमने यह प्रयास किया है कि पौधों के जीवित रहने की जो दर है सर्वाइवल रेट है वह अधिक से अधिक रहे और जो पौधे लगाए जा रहे हैं वह पौधे कहीं से मरना नहीं चाहिए तो वृक्षारोपण का 2-4 साल बाद परिणाम निश्चित रूप से आएगा. 12 साल बाद और अच्छा परिणाम आएगा. दूसरी बात जो नर्मदा जी में प्रदूषण रोकने की कही गई है तो सरकार ने बहुत स्पष्ट रूप से प्रदूषण को रोकने के लिए सबसे बड़ा प्रदूषण का जो सोर्स है जो बडे़-बडे़ शहरों से मल-जल नर्मदा जी में जाता है हर एक नगरनिगम और नगरपालिका और नगर पंचायत से जहां-जहां से प्रदूषण होता है उनके ट्रीटमेंट प्लांट के लिए डी.पी.आर. बन गई और उसके लिए पैसा स्वीकृत हो गया. ज्यादा से ज्यादा दो साल के भीतर मुख्यमंत्री जी ने और हम सबने यह तय किया है कि एक बूंद भी हम मल-जल नर्मदा जी में बिना ट्रीटमेंट के या ट्रीटमेंट के बाद भी नहीं जाने देंगे. दूसरी बात गांवों को ओ.डी.एफ. करने की है तो ज्यादा से ज्यादा दो महीने के भीतर 100 प्रतिशत गांव ओ.डी.एफ. में आएंगे. दो महीने में परिणाम आएगा. जैसा मुख्यमंत्री जी ने अन्य चीजों के लिए आह्वान किया है. विसर्जन कुण्ड हैं. इनके तत्काल दो-चार महीने में परिणाम आने लगेंगे और कुछ परिणाम तो ऐसे हैं जो तत्काल आने लगे. जनता में नर्मदा जी को प्रदूषित नहीं करने की जो बात है तो यह चमत्कार के रूप में फैल रही है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, दो-तीन बातें कहकर मैं अपनी बात समाप्त करना चाहता हॅूं. "नमामि देवि नर्मदे" यात्रा में जो चमत्कार देखने को मिल रहे हैं उनका उल्लेख करना चाहता हॅूं. सबसे पहले पूज्य अवधेशानंद जी महाराज को जब अमरकंटक में अपना आशीर्वचन देने के लिए उनसे आग्रह किया गया और जैसे ही वे माइक पर बोलने के लिए आए तो जनता यह कल्पना कर रही थी कि अवधेशानंद जी महाराज संत हैं. नर्मदा पुराण पर ज्यादा बात करेंगे, नर्मदा जी की महिमा पर ज्यादा बात करेंगे लेकिन निश्चित रूप से उन्होंने नर्मदा जी की महिमा के बारे में कहा लेकिन आप आश्चर्य करेंगे कि उनका 75 प्रतिशत समय जो था वह पर्यावरण के संरक्षण के लिए, वृक्षारोपण के लिए और प्रदूषण को रोकने के लिए था. जब संत पर्यावरण के संरक्षण की बात करने लगें तो निश्चित रूप से इसे हम एक चमत्कार मानेंगे. दूसरा जब मंत्र नारे बन जायें तो निश्चित रूप से यह भी चमत्कार है और सफलता बहुत स्पष्ट दिखती है.यात्रा का दूसरा दिन था माननीय मुख्य मंत्री के साथ हम करंजिया ग्राम जो कि डिंडौरी में है वहाँ पर नमामि देवि नर्मदा यात्रा में मुख्य मंत्री जी ने अपनी पद यात्रा प्रारंभ की तो छह किलो मीटर तक रोड में पाँव रखने की जगह नहीं थी.मुख्य मंत्री जी ने स्वयं ने कहा कि डॉ. साहब नारे लग रहे हैं.मैंने कहा हाँ साहब, तब वह बोले मंत्र जो हैं, वह नारे बन गये हैं,लोग नारे लगा रहे थे और नारा था ""त्वदीय पाद पंकजम्, नमामि देवि नर्मदे"". यह चमत्कार है.
अध्यक्ष महोदय, एक और चमत्कार बताना चाहता हूं. आपने स्वयं ने वह चमत्कार देखा है. 1 जनवरी का दिन था आपके यहाँ इटारसी में, आपके द्वारा भागवत जी विराजमान थीं और एक संत उस दिन व्यास गादी से अपना प्रवचन कर रहे थे. आप और हम दोनों सुन रहे थे. कंस वध का प्रसंग चल रहा था. हम भी कंस वध सुनने के लिए बड़े लालायित थे लेकिन हमने देखा कि व्यास गादी से जो प्रवचन हो रहे हैं, कंस वध पर उन्होंने बाद में बात की और वहाँ पर कम से कम 5 हजार लोग थे और उनसे 30 मिनट तक यह बात कही कि नर्मदा मैया में प्रदूषण मत करो, माला मत चढ़ाओ, फूल मत चढ़ाओ,दीप दान मत करो और लोगों से खड़े होकर उन्होंने संकल्प करवाया और लोगों ने प्रसन्नतापूर्वक उस संकल्प को दोहराया.अध्यक्ष महोदय, यह नर्मदा यात्रा के चमत्कार है.
श्री कमलेश्वर पटेल-- अध्यक्ष महोदय, संत जी एक चीज भूल गये कि जगह-जगह जो नर्मदा मैया को बांध रहे हैं उसका उल्लेख नहीं किया.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार-- भैया, जब अपने स्तर की बात ना हो तो चुप बैठना चाहिए इतना ही आग्रह करना चाहता हूं. अब देखिये कहाँ अवधेशानंद जी की बात चल रही है, कहाँ अनूप जलोटा की बात चल रही है, कहाँ अमिताभ बच्चन जी के बात चल रही है तो आप कहाँ फिट हो रहे हों, जरा लगा लो आप अपने आपको.
श्री कमलेश्वर पटेल--- सरकार के कितने सौ करोड़ रुपये खर्चा हो गये यह भी बताइए.
डॉ. गौरीशंकर शेजवार--- अध्यक्ष महोदय, मैं तो केवल यह कहना चाहता हूं कि यह जो संकल्प है, माननीय मुख्य मंत्री जी ने पहले से ही इसको अंगीकार कर लिया है, स्वीकार कर लिया है और माँ नर्मदा को हम एक जीवित स्वरूप में स्वीकार करें, इसके लिए यह लाया गया है. मैंने बहुत विस्तार से नहीं कहा है. माननीय मुख्य मंत्री जी स्वयं विस्तार से बात बताएंगे लेकिन यह बहुउद्देश्यीय यात्रा है और परिणाम जनक यात्रा है. परिणाम धीरे-धीरे आएंगे और कुछ परिणाम तत्काल आने लगे हैं और मुझे पूरा विश्वास है. मध्यप्रदेश नहीं, भारत नहीं, दुनिया को यह विश्वास है.इस दुनिया के प्रतिष्ठित लोगों ने इस बात को कहा है कि नमामि देवी नर्मदे, नर्मदा सेवा यात्रा विश्व की सबसे बड़ी नदी संरक्षण की यात्रा है. मैं उन सबकी प्रशंसा करता हूं और विश्वास करता हूं कि नर्मदा जी अविरल रहेंगी,नर्मदा जी की जल धारा निर्मल रहेगी हर-हर नर्मदे हर.
श्री मुकेश नायक (पवई)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्र नारे बन गये. "मननात्रायते इति मंत्रः". आप विद्वान हैं. मंत्र अभी तक तो अनुभव करने वालों ने, जपने वालों ने, साक्षी भाव में स्थित लोगों ने, तुरीय चेतना के पार और त्रिगुणमयी प्रकृति के पार जाने वाले लोगों ने आज तक तो इस पूरे भारत वर्ष में अपनी ऋषि परंपरा में, पूरे वैदिक वांगमय में उपनिषद्, शास्त्र और पुराणों में यही कहा कि मंत्र तो मन का अंत करता है, मंत्र तो मन को अनंत करता है और मंत्र जपने वाले की मंत्र रक्षा करता है. "मननात्रायते इति मंत्रः". "कलजुग केवल नाम आधारा , सुमरि-सुमरि नर उतरहिं पारा". और अब तो मंत्र नारे बन गये हैं. मंत्र नारों के लिए नहीं है. मंत्र साक्षी भाव तक पहुंचाने का संवाहक है. मंत्र नारों का विषय नहीं है. मैं इस पर बाद में आऊँगा. चूंकि यह जो आपने संकल्प रखा है. माननीय मुख्य मंत्री जी की नर्मदा मैया के प्रति अपार श्रद्धा है, मुझे मालूम है. मैं पूरी गरिमा के साथ में यह कहना चाहता हूं कि एक जीवित इकाई के रूप में आप नर्मदा को वैधानिकता दे रहे हैं. आपको मालूम है कि भारत में नदियों की प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती, नर्मदा जी की प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती. नर्मदा स्वयं शिव की भगवत चेतना की प्रतीक हैं और पुराणों के मुताबिक शिव की पुत्री हैं, वह नर भी हैं और मादा भी हैं इसलिए नर्मदा हैं. प्रकृति और पुरुष, जिस चेतना की छटवीं अवस्था की वेदों में चर्चा है जिसमें सुषुप्ति की चेतना, स्पप्न की चेतना, जागृति की चेतना, तुरिय चेतना, तुरियातीत चेतना और भगवत चेतना है, यह वह भगवत चेतना है जिसमें तपोनिष्ठ साधु भगवत चेतना में जाकर, चेतना की छटवीं अवस्था में जाकर, स्वयं प्रकृति और पुरुष जिसके भीतर जाकर एकाकार हो जाते हैं, वह स्त्री भी हो जाते हैं और पुरुष भी हो जाते हैं, वह भगवत चेतना को उपलब्ध हो जाता है. माँ नर्मदा भगवत चेतना की मूर्तिमंत रूप हैं, यह जीवनदायिनी हैं, आज आप इस विधेयक को लाकर उनका अपमान कर रहे हैं, उनकी प्राण प्रतिष्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं. आप छोटे-छोटे कलाकारों को वहाँ ले जाकर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्होंने नर्मदा जी की महिमा बढ़ा दी है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, नर्मदा जी का स्वरूप, उनके प्रति अनुराग, उनके प्रति भक्ति, नर्मदा के तट पर रहने वाले असंख्य लोग उनको आराध्य भी मानते हैं और आराध्या भी मानते हैं. माँ के रूप में वे आराध्या हुईं और ईश्वर के रूप में वे आराध्य हुईं क्योंकि माँ नर्मदा शिव की भगवत चेतना की प्रतीक हैं और ये छोटे-छोटे कलाकार, मैं कहना नहीं चाहता, आप होटलों के बिल उठाकर देख लीजिए, मेरे पास बोलने के पहले पूरी तैयारी रहती है, वे रात भर क्या खाते रहे, क्या पीते रहे, सुबह जाकर वहाँ नाच-गाना करते रहे, उन्होंने माँ नर्मदा की प्रतिष्ठा बढ़ा दी ? इस तरह की बातचीत, इस तरह के उत्सव लज्जाजनक हैं इन पर विचार होना चाहिए. माननीय अध्यक्ष महोदय, आपको पता है क्योंकि आप ऐसी भूमि पर रहते हैं, आप बड़े सौभाग्यशाली हैं, हम लोगों को उतना सौभाग्य नहीं मिला. माँ नर्मदा के प्रति आपके हृदय में बहुत अनुराग, भक्ति और समर्पण है क्योंकि आप होशंगाबाद में रहते हैं. अमरकंटक से बूंद-बूंद निकलती हुई नर्मदा माँ के पानी को जब परिक्रमावासी देखता है और खंबात की खाड़ी तक जाकर उस बूंद को सागर में मिलकर सागर बनता हुआ जब देखता है तो अनन्त जन्मों से उसकी चेतना पर पड़े हुए दाग एक-एक यात्रा में, एक-एक तीर्थ में, एक-एक दिन माँ नर्मदा के दर्शन करने के बाद गल-गल कर गिरते हैं और जब परिक्रमावासी अमरकंटक से निकलती हुई माँ नर्मदा के उद्गमस्थल से चलता हुआ खंबात की खाड़ी पर जाकर माँ नर्मदा के विराट स्वरूप का दर्शन करता है तो आत्मज्ञानी हो जाता है, उसके भीतर मंत्र नहीं रह जाता, वह निर्ग्रंथ हो जाता है. उसके भीतर केवल साक्षी भाव रह जाता है. सब प्रकार के लोभ लालच, सब प्रकार के सांसारिक प्रपंचों से व्यक्ति मुक्त हो जाता है, यह नर्मदा परिक्रमा की महिमा है और आज नर्मदा परिक्रमा जो हो रही है क्या यह नर्मदा परिक्रमा है ? जो भारत की राजनीति में हिंदू उग्र राष्ट्रवाद की धुंधली पड़ती हुई विचारधारा में, क्योंकि राम जन्मभूमि को लेकर जो आपकी साख इस देश में कम हो गई है उसके कारण आपको नई-नई प्रछन्न धार्मिकताओं का सहारा लेना पड़ रहा है.
श्री इंदर सिंह परमार -- अध्यक्ष महोदय, यह जो शब्द है इसको विलोपित किया जाए, हिंदू उग्रवाद शब्द का उल्लेख किया है. मैं इसकी निंदा करता हूँ इसको विलोपित किया जाए.
श्री मुकेश नायक -- अभी डॉक्टर साहब ने कहा था जब आपकी स्तर की चर्चा नहीं हो रही है भैया तो शांति से बैठो.
श्री इंदर सिंह परमार -- अध्यक्ष महोदय, यह सबसे संबंधित विषय है, आपके लिए भी है, हमारे लिए भी है.
श्री मुकेश नायक -- अध्यक्ष महोदय, माँ नर्मदा की महिमा गाते हुए पुराणों ने, ऋषि परंपराओं ने, भक्तों ने, धर्मावलंबियों ने यह कहा कि माँ नर्मदा गंगा से ज्येष्ठ हैं, उम्र में बड़ी हैं क्योंकि जो भारत की नदियों का इतिहास देखने को मिलता है, आप तो स्वयं जानते हैं, रामचरित मानस के प्रकांड विद्वान हैं कि राजा बलि का यज्ञ नर्मदा के तट पर हुआ था और राजा बलि के यज्ञ में जब तीन पदों में भगवान विष्णु ने सारे ब्रह्मलोक को नापा और राजा बलि से पूछा कि तू तो कहता था कि धरती तेरी है अब बता तीसरा पैर कहाँ रखूँ तब राजा बलि को अपने अहंकार का बोध हुआ और उसने कहा कि मुझे क्षमा करें. तीसरा पैर मेरे अहंकार पर मेरे सिर पर रखें ताकि मेरे अहंकार का विसर्जन हो जाये और मेरा यज्ञ सफल हो जाये. उनके गुरू ने विराध किया और राजा बलि से कहा कि यह विष्णु भगवान हैं जो तुम्हारे यज्ञ से पहले आ गये, राजा बलि का दिव्य संस्कार देखिये वह इतने बड़े भक्त प्रहलात का प्रपोत्र था,असुर वंश में रहते हुए भी वह दिव्य संस्कार उसके भीतर जागा और उसने कहा कि विष्णु भगवान तो आ गये हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि मेरा यज्ञ सफल हो गया जिस उद्देश्य से मैंने सौ यज्ञ किये थे, उस यज्ञ में पूर्णता आ गयी. क्योंकि वैंदात का ब्रह्म अनादि स्वयं इस यज्ञ में उपस्थित हो गया इससे बड़ी यज्ञ की सार्थकता क्या होगी और मैं अब तीसरी आहूति इस यज्ञ में देता हूं मेरे अहंकार की आहूति. उसने कहा कि पहली आहूति किसी भी यज्ञ में वस्तु की आहूति, दूसरी आहूति किसी भी यज्ञ में उस वस्तु में जो हमारी मगधा है, उसकी आहूति और तीसरी आहूति उस दान से उत्पन्न अहंता और अहंकार की आहूति और कहने लगा कि मैं तीनों आहूतियां इस यज्ञ में देकर मुक्त हो गया और इसलिये भगवान ने उसको कहा कि चल तुझे मुक्त करता हूं और तुझे मैं अपने मित योग का वरदान देता हूं और उस समय जब दूसरा पैर विष्णु भगवान ने उठाया और ब्रह्मलोक में पैर गया तब ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल में जो जल भरा था उस महत भाव के जल से विष्णु भगवान के चरणों का प्राक्क्षालन किया वह पैर पखारे और उस पानी को अपने कमण्डल में रख लिया, कालान्तर में आपको कथा पता है कि रघुवंशियों ने उस महत भाव के जल को धरती पर लाने के लिये अखण्ड तपस्या की, दिलीप ने तपस्या की थी और भागीरथ अपने अखण्ड तपोवन से उस गंगा को धरती पर ले आये. यह रघुवंशियों के तपोबल के कारण गंगा धरती पर आयी. लेकिन इतिहास यह कहता है कि जब गंगा जी धरती पर आयी तो वह यज्ञ नर्मदा के तट पर हुआ था. आप नर्मदा की महिमा समझ सकते हैं. आप आज नर्मदा की प्राण प्रतिष्ठा करने जा रहे हैं. आप यह कह रहे हैं कि नर्मदा जीवित नदी है. आप थोड़ा पुर्नविचार करो, थोड़ा विवेक का परिचय दो, थोड़ा पूछ लेते इतने बड़े- बड़े संत आपके यज्ञ में यात्रा में गये हैं, उन्हीं से पूछ लिया होता इस शासकीय संकल्प को लाने के पहले. एक बात और कहना चाहता हूं कि जो 1200 किलोमीटर की नर्मदा वैली है इस पूरी नर्मदा वैली में जो आठ चिरजिवी हैं वह निरंतर विचरण करते हैं, जिसमें मार्कण्डेय जी कि तो स्वर्णभूमि है नर्मदा भूमि, हनुमान जी तो निरंतर नर्मदा के तट पर रहते हैं. हमारे पुराणों, हमारे उपनिषधों ने कहा है कि जो आठ चिरजिवी हैं जो कभी नहीं मरते हैं उसमें हनुमान जी है, भगवान परशुरामजी हैं, उसमें मार्कण्डेय जी हैं, कृपाचार्य जी है, उसमें विभीषण हैं, उसमें अश्वत्थामा हैं यह सदैव नर्मदा के तट पर विचरण करते हैं और इसलिये करते हैं कि नर्मदा जीवनदायिनी है, निष्प्राण नहीं है जीवित नदी है, जीवन देती है. परित्रतावासी जब नर्मदा के तट पर जब शाम को सोता है तो यह सोचकर सोता है कि मां सुबह मुझे गरम-गरम जलेबी चाहिये और जब वह उठता है तो उसे गरम-गरम जलेबी मिलती है. मां नर्मदा का ऐसा चमत्कार है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मुख्यमंत्री जी से विनम्रता पूर्वक प्रार्थना करता हूं कि आप थोड़ा अपनी उपलब्धियों के बल पर आप जनता के बीच में जाओ की इन दस-बारह सालों में आपने क्या किया. आप दिग्विजय सिंह के शासन की चर्चा मत करना उस पर तो तीन बार जनादेश हो चुका है, अब आप क्यों वह राग अलापते हो. अब अपने कर्मों की चर्चा इस राज्य में करो, अपनी उपलब्धियों की चर्चा करो. इन बारह-पंद्रह सालों में आपने राज्य में क्या किया है, इस एजेण्टों को लेकर जनता के बीच में जाओ. आप यह (XXX) और धर्म को राजनीति का औजार और आस्थाओं को राजनीति का औजार बनाने का प्रयत्न नहीं करो.
अध्यक्ष महोदय :- यह शब्द निकाल दें. यह विलोपित कर दें.
श्री मुकेश नायक :- यह सीधा-सीधा नर्मदा के प्रति द्रोह है. मैं आपसे विनम्रतापूर्वक यह अपील करना चाहता हूं कि इस भारत की राजनीति में भोले-भाले धर्मावलम्बियों की आखों में धूल मत झोंको. आप अपनी उपलब्धियों के आधार पर जनता के बीच में जाओ. आप पढ़े लिखे नेता हो. अगर आप इस तरह का राजनैतिक आचरण करेंगे तो बाकी लोग भी हमारे प्रदेश के भौतिक लक्ष्य, हमारी चिकित्सा सुविधाएं, हमारी शिक्षा सुविधाएं,हमारी आधारभूत संरचना, हमारा औद्योगिक संगठन यह बात आप नहीं करते हैं. आप कह रहे हैं गोविन्दा, गोविन्दा चला गया तो नर्मदा की महिमा बढ़ा दी.(XXX)
अध्यक्ष महोदय:- यह कार्यवाही से निकाल दें.
श्री मुकेश नायक:- मैं इस संकल्प के पक्ष में हूं, लेकिन इस भाषा में संशोधन किया जाये और संकल्प इस बात के लिये लाया जाये...
श्री बहादुर सिंह चौहान -- (XXX). यह कुछ भी कहेंगे हम सुनते रहेंगे क्या. आप कुछ भी बोल रहे हैं क्या हम सुनते रहेंगे .
अध्यक्ष महोदय -- वह कार्यवाही से निकाल दिये हैं...(व्यवधान)
श्री बाला बच्चन -- गोविंदा अकेले आते हैं क्या, उनकी पूरी टीम आती है...(व्यवधन)
श्री मुकेश नायक -- अध्यक्ष महोदय अंत में मैं यह कहते हुए अपना स्थान ग्रहण कर रहा हूं कि यह जो अगला चुनाव है यह लोग नहीं जीतेंगे.
अध्यक्ष महोदय -- माननीय सदस्यों के लिए स्वल्पहार की व्यवस्था सदन की लाबी में की गई है अनुरोध है कि सुविधानुसार स्वल्पाहार ग्रहण करने का कष्ट करें.
डॉ गोविन्द सिंह ( लहार ) -- माननीय अध्यक्ष महोदय माननीय मुख्यमंत्री जी के द्वारा नर्मदा सेवा यात्रा का संकल्प यहां पर लाया गया है इससे मैं पूरी तरह से सहमत हूं और इसका समर्थन भी करता हूं लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि नर्मदा सेवा यात्रा जो आपने प्रारम्भ की है. नर्मदा नदी वास्तव में पहली जीवन दायिनी नदी है उसको वैधानिक रूप, कानूनीजामा पहनाने का काम आप इस संकल्प के माध्यम से कर रहे हैं. लेकिन यह बात प्रदेश की जनता के समझ से परे है. जब वह पहले से ही जीवनदायिनी नदी हैं आपने अपने तमाम दस्तावेजों में कहा है, अपने भाषणों में, चर्चाओं में कहा है, हर व्यक्ति करता है तो फिर इसकी आवश्यकता नहीं थी. हां आपको प्रचार प्रसार की जरूरत थी, प्रदेश में 1312 किलोमीटर क्षेत्र में वह बहती हैं और 70 प्रतिशत नर्मदा जी अपने प्रदेश में बहती हैं उसके बाद में शेष 30 प्रतिशत में वह गुजरात में या अन्य प्रांतों में जाती हैं. नर्मदा नदी पूरी तरह से आज प्रदेश में जीवनदायिनी इसलिए हैं कि उस पर तमाम बांध बने हुए हैं लाखों एकड़ जमीन इसके पानी से सिंचित होती है. इस प्रदेश के 7.25 करोड़ नागरिकों को बिजली मिल रही है और उनके भरण पोषण का काम भी इसके माध्यम से हो रहा है. नर्मदा जी एक पवित्र नदी हैं इसे कोई अस्वीकार नहीं कर सकता है. लेकिन लगातार आपने इसके लिए 102 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है नर्मदा यात्रा पर खर्च करने के लिए, इसके साथ में पर्यावरण विभाग व ग्रामीण विकास विभाग का बजट अलग से इसमें हजारो करोड़ रूपये केवल अपनी मार्केटिंग, ब्राण्डिंग करने के लिए लगा रहे हैं. आपकी नीयत इसमें साफ नहीं दिखती है. क्या जरूरत थी इसकी अगर आप नर्मदा नदी को पूज्यनीय मानते हैं पवित्र मानते हैं तो क्या जरूरत थी अपनी इस तरह से ब्राण्डिंग कराने की, जहां पर जाओ वहीं पर होर्डिंग लगे हैं प्रचार प्रसार हो रहा है आप उसके लिए गोविंदा को भी बुला रहे हैं, हेमामालिनी को ला रहे हैं इस तरह से तमाम लोगों को लाये. मैं यहां पर इस बात को इसलिए कहना चाहता हूं कि आपने इन लोगों को लाये हैं तो क्या उनका ठहरने का खर्चा नहीं हुआ है, क्या उनको लाने ले जाने की व्यवस्था नहीं की है, उनके भरण पोषण का खर्चा आपने नहीं उठाया है. अब आप इस काम पर हजारों लाखों रूपये खर्च करेंगे, तो अपनी प्रसंशा तो मानव गुण है आदमी का, अगर आप उसकी सेवा करेंगे तो वह कुछ न कुछ आपकी तारीफ में बोलेगा, वास्तव में आपने इस यात्रा को जैसा कि नायक जी ने कहा है आपने नर्मदा सेवा यात्रा को धार्मिक यात्रा में परिवर्तित कर दिया है. आप कहीं पर भी जायें अगर वहां पर महात्मा जी आते हैं तो वह पहले धार्मिक प्रवचन देते हैं. धार्मिक प्रवचन होना चाहिए, धर्म पर चर्चा होना चाहिए इससे लोगों का ज्ञान बढ़ता है, लोगों में उससे श्रद्धा बढ़ती है. लेकिन जिस प्रकार से आपने शासन की राशि का उपयोग इसमें किया है जिसका वास्तविक उपयोग ग्रामीण विकास के लिए किया जाना चाहिए था उसका उपयोग आपने यहां पर किया है. जगह जगह पर फोटो लगे हैं केसरिया झण्डा पकड़े हुए लोग मिल जायेंगे कोई सिर पर टोपी रखे हुए हैं पूरा प्रचार हो रहा है. टी.वी. खोलो तो फिर आप पचासों लोग सिर पर मटकी रखे हुए निकल रहे हैं, इस सबकी क्या जरूरत थी. अगर वास्तव में आपकी नियत साफ और नेक है तो फिर इस प्रकार का प्रचार-प्रसार आप क्यों कर रहे हैं ? आप जनता के बीच जाइये, जनता का सहयोग लीजिए. आप इसके अलावा तमाम लोगों से चंदा भी वसूल हो रहा है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं कहना चाहता हूं कि कल ही हम लोग बुधनी में थे. आपने कहा कि नर्मदा जी में एक बूंद गंदा पानी नहीं जाएगा. कल बुधनी में तमाम लोग आये. आपने जो तमाम फैक्ट्रियां वहां खोल रखी हैं, उनका गंदा पानी बुधनी में जा रहा है, नर्मदा नदी में जा रहा है और वह पानी प्रदूषित है. कई लोगों ने बताया कि यहां नहाने से उनको खुजली हो गई, पशु पानी पीने से बीमार हो गये हैं उनका इलाज कराना पड़ता है, इस प्रकार मां नर्मदा गंदी हो गई है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके राज्य में नर्मदा नदी का उत्खनन लगातार भारी पैमाने पर हो रहा है. जब से आपने कार्यभार संभाला है, उस समय से पूरी नर्मदा नदी का उत्खनन, नर्मदा नदी को खोखला करना, नर्मदा नदी की छाती को चीरने का काम रेत के माध्यम से किया जा रहा है. हमारी स्वर्गीय नेता जमुना देवी जी ने 19 सितंबर 2007 को माननीय मुख्यमंत्री जी आपको पत्र लिखा था, उन्होंने मय सी.डी. के आपको पत्र दिया था कि आपके बुधनी क्षेत्र में प्रतिदिन 200 से 300 ट्रक है जो ओवर भरकर जाते थे. वह ट्रक किसके थे, ट्रक का मालिक कौन था. बुधनी क्षेत्र में जोशीपुर, बांद्रा, करबला, बरवाड़ा, मउकला, निमसाडि़या गांवों में खदाने स्वीकृत नहीं थी, वहां से पूरी नर्मदा का एक-एक दिन में दो-दो सौ, तीन-तीन सौ ट्रक ओवर लोड भरकर नर्मदा नदी का उत्खनन कर पानी समाप्त करने का काम कर रहे हैं. कई जगह नर्मदा नदी की धार टूटने की कगार पर पहुंच गई है, आपकी जिस प्रकार की स्थिति है.
अध्यक्ष महोदय - डॉक्टर साहब कृपया समाप्त करें, अभी बहुत वक्ता हैं.
डॉ. गोविन्द सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, अभी उधर से तो कोई नहीं है. (हंसी).....
अध्यक्ष महोदय - उधर से नहीं है, पर इधर से तो हैं.
श्री रामनिवास रावत - माननीय अध्यक्ष महोदय, चल रहा है तो चलने दें, बुलाया गया है तो बोलने दें, बैठे तो हैं ही.
डॉ. गोविन्द सिंह - माननीय अध्यक्ष महोदय, अब ज्यादा नहीं है, मैं जल्दी-जल्दी समाप्त कर दूंगा. माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं कहना चाहता हूं कि अवैध उत्खनन के समय हमारी स्वर्गीय नेता जमुना देवी जी ने आपको सूचित किया था और ट्रकों के, डम्परों के नाम तक दिये थे. जिसमें चौहान इंटरप्राइजेस, गुलशन रोड लाईंस, गुरू रोड लाईंस, इन ट्रकों के नाम और नंबर दिये थे और लगातार वहां आज भी उत्खनन हो रहा है. अभी आपके तत्कालीन कलेक्टर फैज अहमद किदवई थे, उन्होंने भी तमाम डम्पर पकड़े थे और करीब 2 करोड़ 17 लाख का जुर्माना भी किया था. मैं माननीय मुख्यमंत्री जी आपसे पूछना और जानना चाहता हूं कि कलेक्टर ने जो जुर्माना किया था वह आज तक वसूल क्यों नहीं हुआ है? वह किससे संबंधित व्यक्ति हैं, जो अवैध उत्खनन करा रहे हैं, अवैध खदानों से रेत निकाल रहे हैं, नर्मदा का चीरहरण कर रहे हैं और उन पर जो जुर्माना हुआ है वह वसूल नहीं हो रहा है. उस जुर्माने को माफ करने की कुछ लोगों ने जानकारी भी दी है, वह फाईल ही गायब कर दी है, वह फाईल ही नहीं मिल रही है. इस प्रकार से आप नर्मदा सेवा के नाम पर अपनी पार्टी का काम कर रहे हैं, चुनाव जीतने के लिये आप धार्मिक भावनाओं से जनता को गुमराह करने का काम कर रहे हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, प्रदेश में तमाम नदियां हैं लेकिन केवल एक नर्मदा नदी पूज्य और पवित्र है, यह हम भी मानते हैं लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि पूरे प्रदेश में कई नदियां और हैं, लेकिन वह सब आपने खोखली कर डाली हैं. अगर आप केवल एक नर्मदा नदी को बचाओगे तो बाकी का क्या होगा. नर्मदा यहां की जीवन दायिनी नदी है. हमारे भिंड जिले में सिंध नदी जीवन दायिनी है. दतिया जिले में सिंध नदी से आसपास की करीब पचास लाख हेक्टेयर जमीन, पच्चीस हजार एकड़ जमीन पर सिंचाई हो रही है. आज संपूर्ण जिला सिंध नदी से सिंचित है. अध्यक्ष महोदय, जो सबसे पिछड़ा जिला था, वह सिंध नदी के कारण सबसे आगे निकल रहा है. लेकिन उस नदी को भी आप खोखली करने का काम कर रहे हो.मैं इसके साथ यह भी कहना चाहता हूं कि आपने विधानसभा में पिछले महीने इसी सत्र में यह बताया था, केवल आपके सीहोर जिले में बुधनी क्षेत्र में और होशंगाबाद में 119 खदानें हैं, जो पूरी नर्मदा नदी में है. अब आप इधर नर्मदा नदी को संरक्षित करें, जब उसमें पानी होगा नहीं, रेत नदी में बचेगी नहीं तो जल का संरक्षण कहां से होगा? आसपास के क्षेत्रों का वाटर लेवल भी नीचे चला गया है. 15-20 फीट पानी का लेवल नीचे चला गया है, इसलिए माननीय मुख्यमंत्री जी यदि आपको अपना, पार्टी का प्रचार प्रसार करना है तो और माध्यमों से करें. कम से कम नर्मदा जैसी पवित्र, नर्मदा मां के स्वरूप जैसी नदी को अपने नाम पर ब्रांड नेम करने का काम नहीं करें. जगह-जगह आप अपने प्रचार-प्रसार में लाखों, करोड़ों रुपए बर्बाद कर रहे हैं. जब अगला सत्र आए तो आप उन रूपयों का पूरा हिसाब देना और इस यात्रा का जो व्यय है, पूरा व्यय जनता के सामने रखना कि आपने कितने करोड़ रुपए इसमें खर्च किये हैं? गांवों में स्कूल नहीं, पीने को पानी नहीं, अस्पताल नहीं, स्कूल में शिक्षक नहीं, उन पर यह राशि लगनी चाहिए थी, वह राशि आप अपनी यात्रा में, चुनाव के पहले अपना फोटो छपवाकर प्रचार-प्रसार में खर्च करके जनता को गुमराह करने का काम कर रहे हैं, वह बंद होना चाहिए. मैं इस संकल्प का सपोर्ट तो करता हूं लेकिन मैं यह भी चाहता हूं कि इसके साथ-साथ जो पूरे प्रदेश में नदियां है, जिनको आप खोखली करके लुटवाने का काम कर रहे हैं, मध्यप्रदेश सबसे ज्यादा अवैध उत्खनन में नम्बर एक पर है.
अध्यक्ष महोदय - कृपया समाप्त करें.
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री (श्री गोपाल भार्गव) - डॉक्टर साहब, आप अपने क्षेत्र की एक नदी का या नाले की ही परिक्रमा कर लें तो ही ठीक रहेगा.
डॉ. गोविन्द सिंह - परिक्रमा से काम नहीं बनेगा, रोकने से काम बनेगा. आप नदियों को लूट रहे हो. अब परिक्रमा के लिए बचा ही क्या है, आपने पूरी लूट डाली है?
श्री रामनिवास रावत ( विजयपुर) - अध्यक्ष महोदय, आज मंत्री जी द्वारा मां नर्मदा नदी जो हमारी जीवन-दायिनी है, मध्यप्रदेश की जीवन-रेखा है, उसके संबंध में संकल्प प्रस्तुत किया गया है. अध्यक्ष महोदय, माननीय मुख्यमंत्री जी ने नर्मदा सेवा यात्रा की है, अगर इसमें मां नर्मदा नदी के संरक्षण का उद्देश्य है. प्रदेश की सभी नदियों के संरक्षण के लिए हमें कटिबद्ध होना चाहिए, प्रतिबद्ध होना चाहिए और नदियों का संरक्षण होना चाहिए. इसमें हमारा कोई विरोध नहीं है. अध्यक्ष महोदय, लेकिन जिस तरह से यह संकल्प प्रस्तुत किया गया है कि - "सदन का मत है कि मां नर्मदा नदी मध्यप्रदेश की जीवन-रेखा है और एक जीवित इकाई के रूप में मां नर्मदा के वैधानिक अधिकारों के संरक्षण हेतु राज्य शासन कृत संकल्पित है."
अध्यक्ष महोदय, मेरी जिज्ञासा है. मैं आपसे भी जानना चाहता हूं और माननीय मुख्यमंत्री जी से भी जानना चाहता हूं कि एक तो मां नर्मदा को जीवित इकाई के रूप में मान्य किया जाय, क्या अभी तक मां नर्मदा (XXX) पर थी, क्या अभी तक मां नर्मदा मृत अवस्था में थी? दूसरा वैधानिक अधिकारों का शब्द इस संकल्प में आया है. वैधानिक अधिकार कौन-से होंगे, कौन-से उपबंधों के तहत आप वैधानिक अधिकारों की व्याख्या करेंगे, यह जरूर स्पष्ट करने की कृपा करेंगे तो हमें बड़ी खुशी होगी?
खाद्य मंत्री (श्री ओम प्रकाश धुर्वे) - अध्यक्ष महोदय, मां नर्मदा के प्रति एक आस्था है, इसलिए इस शब्द को विलोपित करना चाहिए.
अध्यक्ष महोदय - इसे विलोपित करें.
श्री रामनिवास रावत - मां नर्मदा के प्रति हमारी आस्था है. आपसे अधिक आस्था है. इसके पहले मां नर्मदा की क्या स्थिति थी इसके बारे में भी स्पष्ट करें. जीवित इकाई के रूप में क्या वह अभी तक जीवित नहीं थीं? आज ही आपको ध्यान आया कि जीवित इकाई के रूप में मान्य किया जाय? जैसा कि श्री मुकेश नायक जी ने कहा है. मैं मां नर्मदा के बारे में कहना चाहूंगा कि हमारे स्कन्द पुराणों में भी है कि सात कल्पों के भी नष्ट हो जाने पर, सात कल्पों के क्षीण हो जाने पर भी मां नर्मदा जीवित रहेगी. मां नर्मदा नदी कभी समाप्त नहीं हो सकती. मां नर्मदा नदी अमर है, उसे कोई समाप्त नहीं कर सकता है. मां नर्मदा नदी के बारे में कहा है भगवती भागीरथी गंगा की भांति जटाशंकरी श्रीनर्मदा के महत्व को कौन आस्तिक जन नहीं जानता. देव-दानव-मानव-पशु-कीट-पंतगादियों के शोक संताप का हरण करने वाली एवं शुभगति प्रदान करने वाली रेवा नदी यह मां नर्मदा नदी का नाम है, केवल प्राणियों के ही श्रवण पथ का ही विषय नहीं, अपितु पुण्यकाय पवित्र पयोराशिमय सुर-सरित् आज भी कराल कलिकाल के कुटिल जीवों के आंतरिक और बाह्य मलों का प्रक्षालन करती हुई इस धराधाम पर विद्यमान है. फिर कहां से बात आ गई कि हम इसे जीवित इकाई मानें? माननीय मंत्री जी, जीवित इकाई वह पहले से है. क्या आप स्कन्द पुराणों को नहीं मानेंगे? क्या आप धर्मग्रंथों को नहीं मानेंगे? मां नर्मदा के बारे में कहा गया है कि प्रलयकाल में भी विलय न होने वाली दिव्य विग्रहमयी नर्मदा का दर्शन अवगाहन आदि जिन्होंने किया है वे धन्य हैं. मां नर्मदा का विशेष महत्व और उत्पत्ति स्कन्द पुराण पद्मपुराण, वायुपुराण, शिवपुराण, महाभारत, वशिष्ठसंहिता, ब्राह्मीसंहिता आदि में मिलता है. रेवातट वासियों के लिए तो रेवापुराण (खण्ड) श्रीमद्भागवत की भांति श्रवणानुष्ठान का विषय बना हुआ है. इन सभी में मां नर्मदा के महत्व को प्रख्यापित किया गया है. मां नर्मदा नदी की उत्पति वशिष्ठ संहिता में महर्षि वशिष्ठ ने की है. मां नर्मदा शिव की पुत्री है. जब देवताओं ने विष्णु के पास पंहुचकर शिव की आराधना की कि हमारे पाप जो संकलित हो गये हैं उनको कैसे नष्ट किया जाए. तो शंकर भगवान कटक पर्वत पर तपस्या कर रहे थे जो अमर कंटक पर्वत के नाम से जाना जाता है. उनके मस्तक पर सुशोभित शून्यकाल से एक बिन्दु पृथ्वी पर पड़ा जो यह देखते देखते उस समय की अद्भुत घटना हुई उस समय एक अमृत बिन्दु का पृथ्वी पर स्पर्श होते ही एक सुन्दरी कन्या के रूप में प्रकट हुई, जिसकी सभी देवताओं ने आराधना भी की है.
नमः प्रणतपालिन्यै प्रणतार्तिविनाशिनी.
पाहि नो देवि दुष्प्रेक्षे शरणागतपत्सले.
यतो ददासि नो नर्मा चक्षषां त्वं विपश्यताम्
तती भविष्य से देवि विख्याता भुवि नर्मदा
माननीय अध्यक्ष महोदय, उसके बाद मां नर्मदा ने शिव जी से कहा है कि मैं क्या करूं तो शिव जी ने आदेश दिया कि आप जल के रूप में परिवर्तित होकर के प्रकट हो जाओ संसार के पाप-ताप हरण करने वाली तुझमें जो स्नान आदि करेंगे वह तीनों लोकों में धन्य होंगे.
सत्वरं जलरूपं स्वं धारयित्वा शुभानने.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इसी प्रकार से मां नर्मदा में--
श्री गोपाल भार्गव--यह तो हम लोगों का काम और धन्धा है आप यह क्या कह रहे हो आप तो भाषण करें.
श्री रामनिवास रावत--माननीय अध्यक्ष महोदय, मां नर्मदा में जो भी अस्थियां विसर्जित की जाती हैं वह पाषाण रूप में परिवर्तित हो जाती हैं. मां नर्मदा के पाषाण पत्थर.
नर्मदे त्वं महाभागा सर्वपापहरी भव.
त्वदप्सु याः शिलाः सर्वाः शिवकल्पा भवन्तु ताः
विष्णु जी कहते हैं कि मां नर्मदा जी तुम बड़ी भाग्यशाली हो संसार के समस्त पापों को हरने वाली हो तुम्हारे जल में स्थित सभी पाषाण शिव तुल्य होंगे अर्थात् उनको शिव मानकर पूजा जाएगा. उसके बाद भी माननीय अध्यक्ष महोदय, आप जीवित इकाई मानने की बात कर रहे हैं. हम नदियों के संरक्षण का विरोध नहीं करते. मैंने संशोधन भी प्रस्तुत कर दिया उसको भी अमान्य कर दिया. अमान्य करने के कारण क्या रहे यह तो मैं नहीं बता सकता. यह शासकीय संकल्प है इसमें वैधानिक अधिकारों की बात की. माननीय अध्यक्ष महोदय, हमें खुशी होती डॉक्टर साहब ने कहा कि हम नदियों के संरक्षण का समर्थन करते हैं. माननीय मुख्यमंत्री जी की नर्मदा सेवा यात्रा का करते अगर नर्मदा सेवा यात्रा करने से पहले मुख्यमंत्री जी घोषणा करते कि मां नर्मदा हृदय चीर करके जो अवैध रूप से रेत का उत्खन्न कर रहे हैं. मैंने पूरे प्रदेश में नर्मदा से रेत का उत्खनन बंद करा दिया है तो हमें प्रसन्नता होती और हमें विश्वास होता कि आप मां नर्मदा नदी का संरक्षण करना चाहते हैं. आप अपना चेहरा चमकाने में लगे हैं.
अध्यक्ष महोदय--आप कृपया समाप्त करें.
श्री रामनिवास रावत--अध्यक्ष महोदय, क्यों समाप्त करें. ऐसे ही संकल्प बहुमत के आधार पर पास करना है तो करें.
अध्यक्ष महोदय--आपकी बात रिकार्ड में आ गई है.
श्री रामनिवास रावत--अध्यक्ष महोदय,क्या बात रिकार्ड में आ गई है.
अध्यक्ष महोदय--पता नहीं बोला आपने है.
श्री रामनिवास रावत--अध्यक्ष महोदय और बोलने दें आपकी अनुमति की अपेक्षा करते हैं.
अध्यक्ष महोदय--दो तीन मिनट में आप समाप्त करें.
श्री रामनिवास रावत--अध्यक्ष महोदय क्या पढ़ा है मालूम नहीं है. आप आ जाएं मेरे यहां पर.
श्री गोपाल भार्गव--अध्यक्ष महोदय, यह किसी स्कंध पुराण से या रेवा पुराण जिससे भी आपने श्लोक लिये हैं.
श्री रामनिवास रावत--अध्यक्ष महोदय वशिष्ठ संहिता से श्लोक लिये गये हैं.
श्री गोपाल भार्गव--इसलिये तो कह रहा हूं कि आपको याद नहीं है.
श्री रामनिवास रावत--अध्यक्ष महोदय वशिष्ठ संहिता से श्लोक लिये गये हैं.
श्री अजय सिंह--क्या धर्म के ठेकेदार आप ही हो गये हैं. आप ही के पास धर्म का ठेका है.
श्री रामनिवास रावत--मैं कर्मकाण्डी पंडित हूं. परशुराम ऋषि की वंश का हूं, यह नहीं है. मेरा पैतृक, मेरा सामाजिक सभी प्रकार का अधिकार है.
श्री रामनिवास रावत--गोपाल जी आप मेरे घर चलिये मां नर्मदा का जल विजयपुर, ग्वालियर में तथा भोपाल में भी रखा हुआ है. तीनों जगहों पर मां नर्मदा के शिव लिंग भी रखे हुए हैं. मुझे आपसे प्रमाण पत्र लेने की आवश्यकता नहीं है. आप धर्म के ठेकेदार नहीं हैं. धर्म के नाम पर जिस तरह से राजनीति चमकाना चाहते हैं, नर्मदा सेवा यात्रा के नाम पर जिस तरह से लांस एंजिल्स अमेरिका में नर्मदा सेवा यात्रा का विज्ञापन लगा रहे हैं.
श्री गोपाल भार्गव--अध्यक्ष महोदय, अभी सदन में नर्मदा पर शास्त्रार्थ कर लें नर्मदा पुराण के बारे में.
श्री रामनिवास रावत--आप आ जाएं मैं तैयार हूं.
अध्यक्ष महोदय--कृपया करके इस वाद-विवाद को समाप्त करें.
श्री रामनिवास रावत--क्या नर्मदा जी मृत है.
श्री गोपाल भार्गव--आप इस तरह से इंटरप्रिटेशन करेंगे मृत एवं जीवित होने का.
श्री रामनिवास रावत--आप अपनी आत्मा से कह दें.
श्री गोपाल भार्गव--आपको मण्डल, मिश्र एवं शंकराचार्य नहीं समझा पाएंगे.
श्री रामनिवास रावत--आप कह दो आप इस बात को मानने के लिये तैयार हैं.
अध्यक्ष महोदय--डायरेक्ट डॉयलाग न करें इधर से होता हुआ जाये तो ठीक रहेगा.
श्री रामनिवास रावत--अध्यक्ष महोदय, इसमें मेरा कहां दोष है.
श्री अजय सिंह--यह संकल्प रहने दिया जाए गोपाल भार्गव एवं रावत जी की यहां पर गोष्ठी हो जाए.
डॉ.गोविन्द सिंह--गोपाल भार्गव जी कहा कि मैं कर्मकाण्डी पंडित जी इस महीने कितने घट बनवाए. (हंसी) अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मुख्यमंत्री जी की यात्रा का समर्थन करता जब मुख्यमंत्री जी यह घोषणा करते कि मां नर्मदा के गर्भ से अवैध रेत उत्खनन करने पर प्रदेश में पूर्णतः रोक लगा दी है. तब हम मानते कि आप मां नर्मदा का सही रुप में संरक्षण करना चाहते हैं.
अध्यक्ष महोदय, मां नर्मदा नदी के किनारे 59 नगर पालिकाएं और नगर पंचायतें हैं. हम सबसे पहले अपेक्षा करते कि जब आप कहते कि मैंने पूरे नर्मदा किनारे पर बसे हुए सभी नगरीय निकायों, नगरपालिकाओं का सीवेज सिस्टम ठीक कर दिया है, सीवेज प्लांट लगा दिया है, मैं किसी भी शहर का गंदा जल नर्मदा में नहीं मिलने दूंगा तो हम नर्मदा सेवा यात्रा का समर्थन करते, लेकिन आप किस तरह से समर्थन चाहते हैं. आप तो केवल अपनी राजनीति चमकाने के लिए, चेहरा चमकाने के लिए यह कर रहे हैं. दिल्ली के एयरपोर्ट पर, मुंबई के एयरपोर्ट पर और लांस एजेल्स के एयरपोर्ट पर नर्मदा सेवा यात्रा का विज्ञापन !
अध्यक्ष महोदय, नर्मदा सेवा यात्रा का संरक्षण भाव से होगा, नर्मदा का संरक्षण दिल से होगा,हमें खुशी होती, प्रसन्नता होती जब माननीय मुख्यमंत्री जी कहते और घोषणा करते कि नर्मदा नदी के किनारे 5 किमी तक मैंने किसी भी शहर में दारु और मांस बिकवाना बंद करा दिया है तो हम उसका समर्थन करते. आज भी नर्मदा नदी के किनारों पर बसे हुए गांव-गांव में प्रतिबंध होने के बाद भी कमीशन पर दारु बिक रही है. पवित्र नगर घोषित होने के बाद भी कमीशन पर दारु बिक रही है. आप क्या करना चाहते हैं? आप करना कुछ और कहना कुछ चाहते हैं.
अध्यक्ष महोदय,आपने तो राम पथ गमन बनाने की बात कही. उसमें भी हमें संदेह उत्पन्न होता है. आज तक नहीं बना. आप कैसे नर्मदा नदी का संरक्षण करना चाहेंगे. हम चाहते हैं कि आप आज ही घोषणा करें कि पूरे नर्मदा नदी के किनारे बसे हुए गांवों में शराब और मांस नहीं बिकने दूंगा.
अध्यक्ष महोदय- कृपया समाप्त करें.
श्री रामनिवास रावत--अध्यक्ष महोदय, माननीय मुख्यमंत्री 102 करोड़ रुपये नर्मदा सेवा यात्रा पर खर्च कर रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय--आपने बहुत समय ले लिया, दूसरे वक्ता भी हैं, आपके दल के भी हैं.
श्री रामनिवास रावत--अध्यक्ष महोदय, जैसा आपका आदेश. मैं आपके आदेश पर नहीं कहूंगा लेकिन इतना जरुर कहूंगा कि माननीय मुख्यमंत्री जी आपनी नियति जरुर स्पष्ट करें कि आप वास्तव में मां नर्मदा का संरक्षण करना चाहते हैं. जैसा कि मुकेश नायक जी ने कहा कि अगर आप वास्तव में संरक्षण करना चाहते हैं तो जीवित इकाई और वैधानिक अधिकारों का संकल्प नहीं लाते. आप संकल्प में व्यवस्था करते कि मैं आज से मां नर्मदा नदी के जल को संरक्षित करने के लिए उसको प्रदुषण से बचाने के लिए ये-ये व्यवस्थाएं करता हूं और इन व्यवस्थाओं का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति पर आपराधिक मुकदमा कायम करुंगा. यह आपराधिक कृत्य माना जाएगा और मैं उसके खिलाफ कार्रवाई करुंगा तो हमें खुशी होती.
अध्यक्ष महोदय, आप इस संकल्प के माध्यम से क्या कहना चाहते हैं. प्रदेश की जनता को क्या बताना चाहते हैं. मैं मानता हूं कि नदियों का संरक्षण होना चाहिए. नदियां हमारीं मां है. नदियां हमारी जीवनदायिनी हैं. चाहे मां नर्मदा हो चाहे चम्बल हो. मां नर्मदा नदी का महत्व तो धार्मिक रुप से जुड़ा हुआ है लेकिन सारी नदियों का संरक्षण होना चाहिए. क्योंकि जहां नदियां समाप्त हो गई वहां पूरा जीवन समाप्त हो गया. पानी को बचाने के लिए हमें कृत संकल्पित होना चाहिए.
अध्यक्ष महोदय, मैं सिर्फ यही चाहता हूं. मैंने इसी में सुझाव भी दे दिेए. हम चाहते हैं कि जो सुझाव दिए हैं उन पर विचार जरुर करेंगे.
अध्यक्ष महोदय--आप भाषण समाप्त करते करते फिर शुरु हो गए.
श्री रामनिवास रावत--मैं समाप्त कर देता हूं. आपने रेत उत्खनन पर कार्रवाई करने के लिए यहां से घोषणा की. रेत उत्खनन पर कार्रवाई हुए तो 102 डम्पर पकड़े गए. लाल परेड़ ग्राउंड में रखे गए. उन 102 डम्परों में से काफी डम्पर रात में भाग गए. आपका प्रशासन देखता रहा. आप देखते रहे. वे लोग कौन थे और कितने थे? मैं चाहता हूं कि नर्मदा नदी के पानी को संरक्षित करना हो मैंने जिन चीजों का उल्लेख किया हैं, उनके संबंध में आज ही घोषणा करेंगे. धन्यवाद.
श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा(मुंगावली)--अध्यक्ष महोदय, इस संकल्प में जीवित इकाई के साथ-साथ आपको राजनैतिक इकाई भी लिख देना था तो बेहतर होता. क्योंकि आप नर्मदा के नाम पर राजनीति कर रहे हैं. नर्मदा नदी के किनारों पर जो अवैध उत्खनन हुआ है वह आपके विधान सभा क्षेत्र बुधनी,विदिशा, होशंगाबाद में अधिक है. वहां आप नर्मदा को नहीं बचा सकते. हमने कल बुधनी में देखा कि कितना गंदा पानी नर्मदा नदी में जा रहा है. आप प्रदेश में नर्मदा के जल को कैसे बचाएंगे यह मेरी समझ में नहीं आता.
अध्यक्ष महोदय, दूसरी बात कि हम लोगों को नर्मदा के किनारे पर रहने का सौभाग्य नहीं मिला है. हम लोग चम्बल के किनारे रहते हैं. चम्बल और सिंहस्थ को लेकर आपने पूरे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार किया. क्षिप्रा नदी ने क्या गलती की है कि आप उसका संरक्षण नहीं कर रहे हो. उसके लिये प्रस्ताव नहीं ला रहे. आप चंबल,बेतवा,पार्वती,सिंध नदी ने क्या किया है, इसके आसपास रहने वाले लोग क्या नागरिक नहीं हैं ? इनका अवैध खनन आप रोक नहीं पा रहे हैं.मेरे अशोक नगर जिले में एक भूमाफिया एवं राशन माफिया है. 10 साल से वह अवैध राशन बेच रहा है. उस खनन माफिया को जब अधिकारियों ने पकड़ा तो उसने पुलिस और प्रशासन पर हमला किया और वाहन छुड़ा लिये तब जाकर पुलिस ने उन पर प्रकरण दर्ज किये. आज तक उन दो अपराधियों को जिन्होंने पुलिस और प्रशासन पर हमला किया था. उनको आप फरार घोषित कर रहे हो हर विधान सभा प्रश्न के उत्तर में, लेकिन आप उनको गिरफ्तार नहीं कर रहे हो. रात दिन वह घूम रहे हैं. जब नदियों का अवैध खनन करने वालों के आप सबसे बड़े संरक्षक हैं, जब आप उनको संरक्षण दे रहे हैं, मेरे अशोक नगर में तो आप संरक्षण दे ही रहे हैं, विदिशा और बुधनी,भिण्ड,होशंगाबाद में भी संरक्षण दे रहे हैं,जब आप नदियों का अवैध खनन करने वालों को खुला संरक्षण दे रहे हैं तो नदियों का संरक्षण कैसे होगा ? (मुख्यमंत्री जी से) आप मुस्कराईये मत,आपको मालूम है कि अशोक नगर में वह केवल अवैध खनन ही नहीं कर रहा है. अवैध राशन भी बेच रहा है.
मुख्यमंत्री(श्री शिवराज सिंह चौहान) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं भाषण में टोका-टाकी नहीं कर रहा लेकिन जो मुंह में आ जाये वही हम कहते रहें मैं समझता हूं कि यह न्यायोचित नहीं है. जो मन में आ गया वह कह रहे हैं यह दे रहे हो,वह दे रहो हो, यह कर रहे हो, कौन अशोक नगर में है क्या है लेकिन मन में जो भड़ास निकलनी है वह इसी बहाने निकल जाये उससे इस बहस को सार्थकता नहीं मिलेगी.
श्री महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा - मैं दोबारा आरोप लगाता हूं. मेरे जिले में अवैध खनन करने वालों को आप गिरफ्तार नहीं होने दे रहे हो और वह खुलेआम घूम रहे हैं. यह पूरे प्रदेश की स्थिति है, अवैध खनन करने वालों की. मेरा आरोप है, आप जांच करवा लीजिये कि वह खुले आम घूम रहे हैं कि नहीं. वे लाल बत्तियों में भी घूमे, अब तो लाल बत्ती भी बंद हो गई है. उन्होंने पुलिस और प्रशासन पर हमला किया. आपके प्रशासन का क्या होगा,एस.पी. और कलेक्टर की क्या इज्जत रह जायेगी, अगर पुलिस और प्रशासन पर हमला करके अपराधी गाड़ियां छुड़ा लें, और ले जायें. विभिन्न गंभीर धाराओं में उन पर प्रकरण दर्ज हो और हाईकोर्ट में उनकी जमानत न हो, उनके लिये कलेक्टर,एस.पी. एक एस.डी.ओ. लेबल की कमेटी बना रहे हैं. उनके दो ड्रायवरों को गिरफ्तार कर लिया लेकिन प्रमुख आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया. मेरा कहना यह है कि आप नर्मदा ही नहीं अन्य नदियों में भी, क्योंकि प्रदेश में जबर्दस्त जल संकट है. पानी नहीं मिल रहा है लोगों को, हैंडपंप सूख गये हैं. मोदी जी और आपकी शौचालय की स्कीम फेल इसलिये हो रही है कि जब पीने के लिये पशुओं को और मनुष्यों को पानी नहीं है तो शौचालय साफ करने के लिये पानी कैसे होगा. तो यह बहुत गंभीर मामला है और इसको आप उस स्तर पर लीजिये कि बूंद-बूंद पानी का संरक्षण हो. मेरा आपसे अनुरोध है कि आप जितना नर्मदा मैया के बारे में सोच रहे हैं, इसका स्वागत है लेकिन इसके साथ-साथ आप चंबल,क्षिप्रा,बेतवा,पार्वती,सिंध और अन्य नदियों और नालों की जहां जल संरक्षण आवश्यक है उसको करिये. अभी आपके पीएचई विभाग के पास पैसा नहीं है.मशीनें काम नहीं कर रही हैं. गांवों में लोगों को पीने के पानी की समस्या हो रही है. हैंडपंप एकाध चालू हो जाता है तो बिजली नहीं मिलती. बिजली कट जाती है. जबकि आपके शासन के निर्देश हैं कि पेयजल योजनाओं और पीने के पानी के लिये बिजली की कटौती नहीं होगी.मेरे मुंगावली क्षेत्र में बिजली की बहुत कटौती हो रही है. मेरा अनुरोध है कि आप इसको एक राजनीतिक मूवमेंट बना रहे हैं और चुनाव तक ले जाना चाहते हैं. यह उचित नहीं है. आपका उद्देश्य अच्छा नहीं है. धन्यवाद. जय हिन्द.
नेता प्रतिपक्ष (श्री अजय सिंह) - माननीय अध्यक्ष महोदय, काफी विस्तार से बातें हो चुकी हैं. मुझे कुछ ज्यादा कहना नहीं है लेकिन एक बड़े भाई होने के नाते एक छोटे भाई को सलाह देना चाहता हूं. यदि छोटा भाई उसको उस धारणा से ले. इस संकल्प का हम सब स्वागत करते हैं. जीवित इकाई क्यों कर रहे हैं यह आप जानें, जीवन दायिनी नर्मदा को बांधने की कोशिश की जा रही है वह आप जानें, इसमें आपकी राजनीतिक यात्रा है या किस तरह की यात्रा है यह आप जानें लेकिन इस संकल्प में एक चीज जोड़ दें जो बात रामनिवास रावत जी ने कही कि पूरी नर्मदा पट्टी पर कहीं माईनिंग लीज न दी जाये तो अवैध उत्खनन का सवाल ही नहीं उठे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, आप भी मेरी इस बात से सहमत हैं. नर्मदा मैया का स्वरूप ही बदल गया. माइनिंग धड़ल्ले से किस तरह से हो रही है, वैध हो रही है, अवैध हो रही है यह तो आप जानें, किसको पकड़ा, किसको नहीं पकड़ा यह आप जानें. लेकिन यदि पोकलेन मशीन नर्मदा जी की बीचों बीच धार बदलकर वहां से ट्रक लोड़ हो रहे हैं, पूरा माइनिंग एक्ट के विरूद्ध यह हो रहा है, तो प्रश्नचिह्न लगता है कि सही मायने में आप क्या उस जीवनदायनी नर्मदा नदी को जीवित रहने देना चाहते हैं ? इसलिये मैं आपसे अनुरोध करता हूं यदि आपकी सही इच्छा है तो मैं उस अंचल से आता हूं जहां से अमरकंटक जो नर्मदा जी का उदगम स्थान है, पहाड़ के एक तरफ से नर्मदा जी निकलती हैं और दूसरी तरफ से सोन नदी निकलती है. नर्मदा जी आपकी तरफ आती हैं, सोन नदी हमारे यहां जाती है और यदि आपको चिंता है तो पूरे उस अंचल में माइनिंग टोटल प्रतिबंधित कर दो तभी वह जीवनदायनी सुरक्षित संवर्धित रह सकेगी. यदि आप नशाबंदी के लिये कहते हैं कि हम नर्मदा की पट्टी में 5 किलोमीटर तक, 3 किलोमीटर तक दारू नहीं बिकने देंगे. हमारे वित्तमंत्री जी का एक बयान था कि कर का घाटा हो तो हो, लेकिन आबकारी विभाग यह फैसला लेता है. यदि आप कर के घाटा होने के बावजूद आप शराब रोकने के लिये वहां पर कर रहे हैं. कृपया करके माननीय मुख्यमंत्री महोदय से यह भी कहना चाहूंगा कि आपके क्षेत्र में इछावर से लाड़कुई तरफ एक जमाने में सागौन का बहुत अच्छा जंगल हुआ करता था, बचपन में आपने देखा होगा, लेकिन आज वह जंगल कहां है. इसी नर्मदा जी के लिये शेजवार जी कह रहे हैं हम पेड़ लगायेंगे 2 साल बाद दिखेगा, 10 साल बाद दिखेगा, 12 साल बाद सही जंगल साफ न होगा. लेकिन माननीय मुख्यमंत्री महोदय के क्षेत्र में लाड़कुई के आसपास आप ही की पार्टी के लोगों ने कितना जंगल काटकर वहां पर अपने पट्टे बनवा लिये इस पर भी आप चिंता करें. प्रदूषण की बात कर रहे थे कि इतने सारे नगर पालिका, नगर पंचायत हैं उनका प्रदूषित जल हम नर्मदा जी में नहीं जाने देंगे. माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मुख्यमंत्री जी की सोच बहुत अच्छी है. नर्मदा जी जीवित रहें, स्वच्छ रहें, अच्छी रहें, निर्मल जल रहे, लेकिन बुधनी विधान सभा क्षेत्र में ये पानी (नर्मदा जल से भरी हुई बोतल हाथ में दिखाते हुये) आपके क्षेत्र की ही फैक्ट्री ट्राइडेन ग्रुप से खड़ली नाला में जाकर नर्मदा जी में जा रहा है, यह कल मुझे वहां पर मिला. गांव का आदमी कह रहा है कि माननीय मुख्यमंत्री जी नर्मदा यात्रा कर रहे हैं, नर्मदा जी की चिंता है, चिंता हम सबको है. भाई मुकेश नायक जी ने बड़े विस्तार से पूरा इतिहास बताया. हम किस दिशा में जाना चाहते हैं कि हर चीज सिर्फ राजनीतिक उद्देश्य से, क्या सिर्फ विज्ञापन पर ही हम सीमित रह जायें ? क्या सिर्फ एक यात्रा का स्वरूप देकर सिर्फ और सिर्फ इतने विधान सभा हम कवर कर लें, क्या यही लक्ष्य है ? थोड़ा इससे ऊपर उठे मेरा छोटा भाई मैं यह प्रार्थना कर रहा हूं, अब वह मुस्कुरा रहे हैं. वह धारा प्रवाह बोलेंगे और पता नहीं कहां-कहां की चीजें ला देंगे. और हमारे पत्रकार साथी लोग चाहे भाई मुकेश नायक जी ने जो बातें आज सदन में कहीं है वह अच्छी लगी होगी लेकिन अखबारों में दो लाईन भी नहीं छपेगा. क्योंकि आज दोपहर से ही विभाग के अधिकारी लग जायेंगे कि तू छापना मत नहीं तो..कल का हमारा कहां छपा है, पूरे चौपाल की कोई बात तक नहीं छपी है. यह स्थिति है.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया -- अध्यक्ष महोदय, प्रेस पर आरोप.लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर आरोप लगाना ठीक नहीं है.
अध्यक्ष महोदय- आप बैठ जाये. (श्री शंकरलाल तिवारी के खड़ा होने पर) तिवारी जी आप भी बैठ जायें.
श्री अजय सिंह -- पंडित जी अपना का चिंता होई चाही, कि अपना के सतना जिला मा हजारन एकड़ जमीन अवैध रूप से कब्जा की जा रही है. अपना का चिंता है लेकिन अपना की सरकार नहीं सुन रही है. चिंता है लेकिन अब वो खड़े नहीं होंगे.
श्री शंकरलाल तिवारी- सरकार सुन रही है.
श्री अजय सिंह -- अरे कहां आपकी सरकार आपकी बात सुन रही है.
श्री शंकरलाल तिवारी- (XXX) यह मैं कह रहा हूं.
श्री अजय सिंह -- अध्यक्ष महोदय, तिवारी जी खुद प्रश्न लगाते हैं जो अवैध कब्जा कर रहे हैं सरकारी जमीन पर उनके खिलाफ और अकेले में बात करते हैं कि क्या बतायें हमारी सरकार ही हमारी बात नहीं सुनती है. (हंसी) मैं खुले दिल से कहता हूं कि हर चीज में राजनीति न की जाये. यदि सरकारी जमीन है तो उस जमीन का संरक्षण करना हमारा सबका दायित्व होना चाहिये. यदि नर्मदा जी हैं तो हमारी सबकी हैं, और मध्यप्रदेश की हर नदी हमारी है. उनके संरक्षण का और संवर्धन का काम हम सबको करना चाहिये. कोई एक पार्टी के आधार पर यह काम नहीं होना चाहिये.
माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मुख्यमंत्री जी की नर्मदा यात्रा के लिये अगर इतनी ही उच्च सोच थी तो फिल्मी एक्टर गोविन्दा को बुलाया जा सकता है, पता नहीं कौन कौन से कलाकार प्रदेश के बाहर के नर्मदा मैया की आरती में आ गये लेकिन एक बार भी मुख्यमंत्री जी ने मुझे फोन नहीं किया कि नेता प्रतिपक्ष आप भी मेरे साथ में कहीं पर नर्मदा मां की आरती में आ जायें.अध्यक्ष महोदय इस बात की मुझे बहुत पीड़ा है. यदि नर्मदा जी की सही में सेवा करना है तो हमें भी बुला लेते क्या डॉ.गोविंद सिंह जी को बुलाते और वे नहीं जाते, क्या महेन्द्र सिंह जी को बुलाते तो वे नहीं जाते, क्या आरिफ अकील जी को बुलाते तो वे नहीं जाते. पता नहीं किसका नाम डॉ.शेजवार जी ने पढ़ दिया, क्या आरिफ भाई आपके साथ में नहीं जा सकते थे ? लेकिन एक बार भी नहीं पूछा गया.
वन मंत्री (डॉ.गौरीशंकर शेजवार) -- अध्यक्ष महोदय, (XXX)
श्री अजय सिंह -- धर्मगुरू की बात नहीं है , हम सब लोग भी तो हैं.
डॉ.गौरीशंकर शेजवार-- आपने बोला कि पता नहीं किनके नाम पढ़ दिये, कोई भी गलत नाम है तो मैं चेलेंज करता हूं आपको मुस्लिम धर्मगुरू आये थे और निश्चित रूप से उन्होंने नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा की प्रशंसा की थी और उन्होंने अपने धर्म से नर्मदा के इस आंदोलन को जोड़ा था .
अध्यक्ष महोदय- मंत्री जी कृपया बैठ जायें.डॉ.साहब कृपया बैठ जायें.
डॉ.गौरीशंकर शेजवार- आपने हल्की सी बात कर दी कि पता नहीं कौन आये थे.आप इस तरीके से धर्मगुरू की मजाक उड़ायेंगे तो यह क्या आप उनके साथ में न्याय कर रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय-- माननीय मंत्री जी कृपया बैठ जायें.
श्री रामनिवास रावत-- अध्यक्ष महोदय, कुछ भी बोले जायेंगे क्या. माननीय अध्यक्ष महोदय जो धर्मगुरू का मजाक उड़ाने की बात डॉ.साहब ने कही है उसको कार्यवाही से निकाला जाये, क्योंकि ऐसी कोई बात न तो नेता प्रतिपक्ष ने कही है और न ही करते हैं.
अध्यक्ष महोदय--इसे विलोपित करें.
श्री अजय सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय,मैं तो कभी किसी का मजाक नहीं उड़ाता हूं.
डॉ.गौरीशंकर शेजवार- उड़ाया तो है आप चाहें तो अपने शब्द वापस ले लें.
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XXX : आदेशानुसार रिकार्ड नहीं किया गया.
श्री अजय सिंह -- मैं कोई शब्द वापस नहीं ले रहा हूं. आपसे अनुरोध है कि कृपया शांति बनाये रखें. माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं यह कह रहा था कि मुझे बड़ा दु:ख है और हमारी पार्टी के लोग भी सरकार के इस व्यवहार से दु:खी है. नर्मदा सेवा यात्रा या जो भी नाम लिया जाये, यदि इसका विज्ञापन हित्रो एयरपोर्ट पर लग सकता है, लास एंजलिस एयरपोर्ट पर लग सकता है, दिल्ली एयरपोर्ट तो लगा ही लगा है तो क्या हम लोगों से राय नहीं ली जा सकती थी कि आप भी नर्मदा यात्रा में चलो. इसी में प्रश्नचिह्न लग गया कि नर्मदा यात्रा जीवन दायिनी नर्मदा के संरक्षण और संवर्धन के लिये नहीं बल्कि शुद्ध रूप से राजनैतिक यात्रा है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, नर्मदा जी एक नाम विपाक्षा भी है. विपाक्षा का अर्थ है पापो का नाश. एक बार यदि आपने नर्मदा नदी में स्नान कर लिया तो आपके पाप नाश हो जाते हैं. अध्यक्ष महोदय, मैं देख रहा हूं कि माननीय जयंत मलैया जी मुख्यमंत्री जी के कान में कुछ कह रहे हैं और हमारे छोटे भाई और प्रदेश के मुख्यमंत्री उनकी बात पर मुस्करा रहे हैं. मैं यह नहीं कहना चाहता हूं कि आदरणीय शिवराज सिंह जी ने नर्मदा नदी में स्नान नहीं किया होगा, अवश्य किया है. स्नान भी किया है और बहुत सारी चीजें हो चुकी है, लेकिन नर्मदा यात्रा का दूसरा स्वरूप मैं बता दूं, यह हुई क्यों, मुझे जो जानकारी मिली है कि सिंहस्थ के बाद मुख्यमंत्री बदल जाते हैं, मध्यप्रदेश में ऐसी कुछ धारणा हो गई है, किसी विद्वान संत ने माननीय मुख्यमंत्री महोदय हमारे छोटे भाई को कहा कि तुम भैया नर्मदा के किनारे किनारे रहना, तभी कल्याण होगा, आप रहें, मुख्यमंत्री बने रहें हमारी सबकी इच्छा है, आप सरल आदमी है, (मेजों की थपथपाहट...) लेकिन 2018 में आप सभी के ऊपर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा है. माननीय मुख्यमंत्री महोदय मेरी बात यदि आप थोड़ी सी भी गंभीरता से ले लें तो न रहे बांस न बजे बांसुरी. आज ही घोषणा करके जाएं कि पूरे नर्मदा मैया में एक भी जगह रेत का खनन नहीं होगा, उस समय प्रदेश की जनता कहेगी वाह रे वाह शिवराज तुमने वह करके दिखाया है, मां नर्मदा के संरक्षण के लिए और संवर्द्धन के लिए जो न कभी कोई कर सका, न आगे कोई कर सकेगा, धन्यवाद.
मुख्यमंत्री (श्री शिवराज सिंह चौहान) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आभारी हूं, आज माननीय नेता प्रतिपक्ष सहित हमारे सभी मित्रों ने जो वक्ता थे, सभी ने अपनी बात मां नर्मदा से संबंधित संकल्प में रखी है, मैं उन्हें धन्यवाद भी देता हूं. हमारे विद्वान मित्र मुकेश नायक जी ने चर्चा का प्रारंभ किया, लेकिन मुझे लगा कि बहुत दिनों से उनको कथा करने का अवसर नहीं मिला था (हंसी...) इसलिए उन्होंने वेद, उपनिषद, पुराण के गूढ़ रहस्य खोलने की कृपा की हैं, मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं. आज तो रावत जी भी गजब की तैयारी करके आए हैं, वशिष्ठ संहिता से लेकर नर्मदा पुराण तक मां नर्मदा की महिमा का उन्होंने वर्णन किया. माननीय अध्यक्ष महोदय, अपनी बात रखने का सभी को हक है, अधिकार है. लेकिन मैं बड़ी विनम्रता के साथ निवेदन करना चाहता हूं कि नर्मदा जी वाद-विवाद का विषय नहीं है. नर्मदा जी आस्था का विषय है, श्रद्धा का विषय है, आपने भी कहा है, हम भी कहते हैं, नर्मदा जी जीवनदायिनी है और जीवनदायिनी केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं है, वह पीने का पानी देती है, जल देती है, जीवन देती है, इसलिए जीवनदायिनी हैं. मध्यप्रदेश के अन्न के भंडार भर रही है. नर्मदा जी जिनके पानी को हम सिंचाई के लिए ले जा रहे हैं. आज कहीं से भी मांग आती है कि पानी चाहिए अलीराजपुर हो, झाबुआ हो, बड़वानी हो, खण्डवा हो, खरगौन हो. यहां तक कि हमारे एक विद्वान मित्र ने कहा था नर्मदा जी के पानी को ठेठ गंगा बेसिन तक हम ले जाने का प्रयास कर रहे हैं, बरगी से सीधे रीवा और सतना के नागौद तक. नर्मदा जी के जल को अलग अलग नदिया में ले जा रहे हैं, अब गंभीर नदी में ले जाने का प्रयास चल रहा है, काम चल रहा है, पार्वती, काली सिंध में ले जाएंगे, क्योंकि नर्मदा जी का जल हमारे लिए अमृत है, सिंचाई के लिए हम उपयोग करके मध्यप्रदेश की समृद्धि बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं और यह भी सच है कि नर्मदा जी के जल से हम बिजली बना रहे हैं. यदि आज मध्यप्रदेश जगमग है तो इसमें नर्मदा जी का बड़ा योगदान है. नर्मदा जी भौतिक रुप से समृद्धि का आधार है. तो नर्मदा सेवा यात्रा के बारे में चर्चा की गई. मैं गंभीरता से कहना चाहता हूं, हल्के फुल्के ढंग से नहीं कहना चाहता हूं. कुछ उदाहरण दे दिये गये. मैं इतने विस्तार में नहीं जाना चाहता था. लेकिन नर्मदा सेवा यात्रा में, जिसको दुनियां ने जल पुरुष कहा, मैगसेसे से पुरस्कार मिला,राजेन्द्र सिंह जी वह नर्मदा सेवा यात्रा में आये. सुनीता नारायण जी, जिनकी पूरी दुनियां में पर्यावरण के विषय में प्रतिष्ठा है और वेचारिक रुप से (डॉ. गोविन्द सिंह द्वारा बैठे बैठे पैसा लेकर आये बोलने पर) गोविन्द सिंह जी, यह आपसे अपेक्षा नहीं है, यह सब लोग पैसा लेकर नहीं आते हैं मेरे भाई. कम से कम इस विषय को इतने घटिया स्तर पर न ले जायें. क्या दलाई लामा पैसे लेकर आयेंगे. क्या स्वामी अवधेशानन्द जी पैसे लेकर आयेंगे. क्या मुरारी बाबू जी पैसे लेकर आयेंगे. लज्जा आनी चाहिये, अगर इस तरह के हल्के कमेंट्स यहां किये जाते हैं. अध्यक्ष महोदय, सुब्बाराव जी आये...
डॉ. गोविन्द सिंह -- गोविन्दा जी पैसा लेकर आये. अब एक दो लोग आ गये, तो उसमें ही आपने प्रचार प्रसार किया. अपनी वाह-वाही कराने के लिये खर्च करेंगे, तो क्या हम इसकी तारीफ करें.
श्री शिवराज सिंह चौहान -- अध्यक्ष महोदय, अब आरोप तो कुछ भी लगाये जा सकते हैं, मैं इन आरोप-प्रत्यारोप में नहीं जाना चाहता. लेकिन हर बात इतनी घटिया स्तर पर ले जाई जायेगी क्या. भूतपूर्व मुख्यमंत्री, स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी, उन्होंने डकैतों का आत्म समर्पण करवाया था, सुब्बाराव जी आप नाम जानते होंगे. वह सुब्बाराव जी एक दिन यात्रा में आते हैं, एक दिन नहीं 8 दिन यात्रा में चलते हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधि आते हैं. भारत के श्रेष्ठ संत जितने हैं, अगर मैं नाम गिनाऊंगा, तो बड़ी सूची है और मैं कोई महिमामंडित करने का प्रयास नहीं कर रहा हूं, लेकिन इतने घटिया स्तर पर हम बहस को ले जायेंगे, ये पैसे लेकर आये होंगे. गोविन्द सिंह जी, अगर आप ये जिद करेंगे, तो इससे मेरा नुकसान नहीं होगा, इस तरह के घटिया आरोप लगाकर आप कांग्रेस का ही नुकसान करेंगे,कोई किसी व्यक्ति का नुकसान नहीं करेंगे.
डॉ. गोविन्द सिंह -- आपने मेघा पाटकर जी को नहीं बुलाया, जो नर्मदा की सेवा कर रहे हैं, उनको नहीं बुलाया. आपने विपक्ष को नहीं बुलाया. आप अपनी अकेले मार्केटिंग कर रहे हैं.
श्री शिवराज सिंह चौहान -- अध्यक्ष महोदय, अगर दिल में दर्द है, तो वह यही है कि ये कर क्यों रहा है. पहले से ही इतने काम कर चुके हैं, अब एक नया काम शुरु कर दिया है, इसका जवाब कहां से दें. यह राजनैतिक यात्रा नहीं हैं. यह कर्म काण्ड नहीं है. आप आरोप लगायें,लगाते रहें, लेकिन नर्मदा सेवा यात्रा हमने इसलिये प्रारंभ की है, मेरे साथ कभी चलकर देखें कि नर्मदा जी का जो जल अभी हमें दिखाई दे रहा है, बरगी के ऊपर चलकर देखें. हमारे डिण्डोरी जिले के प्रतिनिधि यहां होंगे, अनूपपुर, मंडला जिले के प्रतिनिधि यहां होंगे. नर्मदा मैया में कितना पानी बह रहा है. अभी जो नर्मदा जी में जल दिखाई देता है, जो बांध बने हैं, उन बांधों का पानी रिसता है, बिजली बनती है, इसलिये जल दिखाई देता है. आप बरगी डेम के ऊपर चले जाइये, आज भी नर्मदा मैया की धार विलुप्त सी होती हुए दिखाई देती है. इतना कम पानी है, तो मन में एक चिंता पैदा होती है. हमने अपनी आंखों से नदियों की धार को टूटते हुए देखा है. बेतवा जी, ताप्ती जी एवं क्षिप्रा जी की धार टूटते हुए हमने देखी है. अगर हम समय रहते न चेते, तो नर्मदा मैया, हां यह बात सही है कि नर्मदा मैया तो हमारी साक्षात मां हैं. पुराणों में कहा गया है. गंगा जी से पुरानी है, यहां बात आई है. मैं उसकी गहराई में नहीं जाना चाहता हूं, लेकिन नर्मदा जी मां हैं, गंगा जी मां है. तो क्या हमारा कोई कर्तव्य नहीं है मां के प्रति. आज गंगा जी की हालत क्या है. जब कांग्रेस की सरकार थी, तब स्वर्गीय राजीव गांधी जी ने गंगा एक्शन प्लान बनाया था. लेकिन उसकी इतनी खराब हो गई थी कि आसानी से सम्भल नहीं सकती, सुधर नहीं सकती. आज भी सरकार प्रयास कर रही है. यमुना जी की हालत आज क्या हो गई है. क्या नर्मदा जी के बारे में हम समय से पहले विचार कर रहे हैं, प्रयास कर रहे हैं, तो कोई अपराध करने का काम कर रहे हैं. यहां सदन में ओमप्रकाश धुर्वे जी मौजूद होंगे. मैं डिण्डोरी जिले में गया था. एक नर्मदा जी के पुल का लोकार्पण था. जब हम उस बालपुर गांव पहुंचे थे,तो वहां नर्मदा जी के पुल के नीचे मई के महीने में पानी की धार चलती हुई दिखाई नहीं दे रही थी. मैंने वहां लोगों से पूछा कि यह नर्मदा जी में इतना ही पानी हमेशा रहता है. पहले भी इतना रहता था. उत्तर यह आया कि पहले तो लबालब भरी रहती थी. अब पानी लगातार कम होता जा रहा है. मन में चिंता पैदा हुई. राजनीति करने के लिए तो कई कार्यक्रम हैं, हम करते हैं तथा करेंगे भी, उसमें कोई दो मत नहीं है, लेकिन क्या नर्मदा जी कोई राजनीति का विषय है ? हमारे मन में विचार पैदा हुआ कि अगर यही स्थिति रही तो एक दिन नर्मदा जी की धारा कहीं विलुप्त न हो जाये, उसकी धारा कहीं सूख न जाये.
माननीय अध्यक्ष महोदय, हमने पर्यावरणविदों से विचार-विमर्श किया, वैज्ञानिकों से विचार-विमर्श किया, नर्मदा भक्तों से विचार-विमर्श किया, सबने एक समाधान सुझाया कि नर्मदा जी के तटों पर व्यापक वृक्षारोपण बहुत जरूरी है, क्योंकि नर्मदा जी ग्लेशियर से नहीं निकलती हैं. गंगा जी और यमुना जी ग्लेशियर से निकलती हैं, बर्फ पिघलता है, गंगा जी की धार बनती है एवं यमुना जी की धार बनता है लेकिन नर्मदा जी सतपुड़ा और विंध्याचल के जो घोर घने जंगल से निकलती हैं, साल के वृक्ष बरसात का पानी अवशोषित करके रखते हैं. एक बड़ा वृक्ष 50,000 लीटर पानी को अवशोषित करके रखता है और बाद में आसपास की जमीन को गीली करने के लिए बूँद-बूँद करके छोड़ता है और वही बूँद-बूँद करके छोड़ा हुआ पानी धीरे-धीरे नर्मदा जी की धार बनती चली जाती है. अध्यक्ष महोदय, एक विचार आया कि नर्मदा जी के दोनों तटों पर फिर से व्यापक वृक्षारोपण हो और वृक्षारोपण नदी संरक्षण का काम है. अगर कोई यह सोचता है, तो वह भूल करता है कि अकेले सरकार कर लेगी.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे मन में यह विचार आया तो मैंने कौन सा अपराध किया कि समाज को जोड़ा जाये, समाज को साथ लिया जाये, साधु-सन्तों को जोड़ें, पर्यावरणविदों को जोड़ें, वैज्ञानिकों को जोड़ें, समाजसेवियों को जोड़ें, छात्र संगठनों को जोड़ें, व्यापारी संगठनों को जोड़ें, किसानों को जोड़ें, आमजनों को जोड़ें और आमजन को जोड़कर एक ऐसा जन आन्दोलन खड़ा कर दें कि जिस जन-आन्दोलन के कारण आम जनमानस का मन यह बन जाये कि हमें नर्मदा जी को हर हालत में बचाने का काम करना है, इसलिए हमने नर्मदा सेवा यात्रा निकालने का काम प्रारंभ किया. इसी सदन में, मेरे बड़े भाई ने कहा कि आपने हमें नहीं बुलाया. अध्यक्ष महोदय, इसी सदन में, मैंने आप सभी से प्रार्थना की थी, इस पक्ष से और आपसे भी प्रार्थना की थी कि आप आइये, आपका स्वागत है, हम सब मिलकर नर्मदा सेवा यात्रा निकालें. अभी हमारे बड़े भाई साहब कहीं का पानी भर कर ले आए कि देखो, यह गन्दा पानी है. मुझे नहीं पता है कि वह पानी कहां का है ? लेकिन पानी तो गन्दा हो रहा है, इससे कौन इन्कार करता है. जब आपकी सरकार थी, तब सीवेज का पानी कहां जाता था ? जितने तट, जितने शहर नर्मदा जी के किनारों पर बसे हैं, अमरकंटक से लीजिये, अमरकंटक, डिण्डोरी, मण्डला, जबलपुर, बरमान घाट, होशंगाबाद, ओंकारेश्वर, महेश्वर, मण्डलेश्वर और बड़वानी, यहां का सीवेज का पानी कहां जाता है. गगनचुम्बी अट्टालिकाएं बनाईं, मकान बनाये, लेटरिन-बाथरूम बनाये, फ्लश किया, वह पानी बहकर सीधे नर्मदा मैया में जा रहा है. अगर हमारे मन में यह विचार आया कि हम सीवेज का पानी नर्मदा जी में नहीं जाने देंगे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, 18 शहरों के सीवेज का पानी नर्मदा जी में जा रहा है, उनमें से 11 शहरों के ट्रीटमेंट प्लान्ट लगाने के लिए टेण्डर हो चुके हैं. ये ट्रीटमेन्ट प्लान्ट कहां लगेंगे ? हम ये ट्रीटमेंट प्लान्ट नालों पर नहीं लगायेंगे. हम सीवेज की नई लाइन डालकर नर्मदा जी की विपरीत दिशा में ले जाएंगे, वहां पानी को ट्रीट करेंगे, शुद्ध करेंगे एवं शुद्ध किया हुआ पानी किसानों के खेतों में दे देंगे, बाग-बगीचों में दे देंगे. हम मां नर्मदा जी में मल-जल की एक बूँद न जाये, इसका पूरी ईमानदारी और गम्भीरता के साथ प्रयास करेंगे. हम यह कर रहे हैं तो क्या यह गलत है ? हमने तय किया है. नर्मदा जी के तटों के गांवों पर, क्योंकि मैं भी नर्मदा जी के तटों के गांव का रहने वाला हूँ तो कई बार सुबह निवृत्त होने के लिए जाते हैं तो नर्मदा जी के तटों पर ही बैठ जाते हैं. यह आदत है, हम घूमने गए तो निकल गए. हमने यह तय किया है कि यह नहीं होना चाहिए. घर-घर में शौचालय बनना चाहिए, नर्मदा जी के तट पर नहीं जाना चाहिए तो हम क्या कोई अपराध कर रहे हैं. हमारे विद्वान सदस्य बैठे हुए हैं. पूजन के नाम पर नर्मदा जी की गोद में क्या-क्या होता है, किस तरह की सामग्री प्रवाहित की जाती है, प्लास्टिक के दोने में दीपक जलाओ और नर्मदा जी की गोद में छोड़ दो, ऐसी एक नहीं अनेकों चीजें हैं, जो जल को प्रदूषित करती हैं. अगर साधु-सन्तों ने यह कहा है कि पूजन-कुण्ड बनाओ, नर्मदा जी की पूजा नर्मदा जल से करो, दूध से करो, जो पानी को प्रदूषित न करे लेकिन पूजन कुण्ड बनाकर बाकी सामग्री डालना हो तो नर्मदा जी में डाल दो, नर्मदा जी का जल भर दो और उनमें जो सामग्री पड़ेगी, उससे जैविक खाद बन जायेगी, यह दोहरा काम पूरा हो जायेगा. अगर यह बात की जा रही है कि केमिकल के रंगों से युक्त मैया भगवती दुर्गा जी एवं गणपति भगवान की मूर्तियां नर्मदा जी में विसर्जित नहीं होनी चाहिए, विसर्जन कुण्ड बनाकर विसर्जन किया जाना चाहिए, तो हम कौन सा गलत काम कर रहे हैं ? अगर हम यह नर्मदा सेवा यात्रा में कह रहे हैं कि मुक्ति धाम बनाये जाएंगे. क्योंकि नर्मदा जी के तट पर चिता सजाकर लकड़ी रखकर वहीं अंतिम संस्कार करने की व्यवस्था हो क्योंकि हरेक को लगता है कि उनके प्रियजनों का अंतिम संस्कार नर्मदा के तट पर हो और नर्मदा तट पर रहने वाले हर जीवित व्यक्ति की इच्छा भी यही रहती है कि मैं मरूं तो मेरा अंतिम संस्कार नर्मदा जी के तट पर हो लेकिन अगर हम यह अभियान चला रहे हैं तो मुक्तिधाम तट पर नहीं थोड़ी दूरी पर बनाओ और इस तकनीक से बनाओ कि कम लकड़ी में अंतिम संस्कार हो जाए. नर्मदा जी में एक चुटकी अस्थियों की राख डाल दो बाकी अपने घर पर भरकर ले जाओ, दूसरी नदियों में जा सकती है आप कहीं भी विसर्जित कर सकते हैं तो क्या यह कोई अपराध है? नर्मदा सेवा यात्रा एक जनजागरण का आंदोलन है अगर हम इसमें तय कर रहे हैं कि माताओं, बहनों के कपड़े बदलने के स्थान बनाए जाएंगे. अगर श्रद्धा से भरी हुई हमारी माताएं, बहनें लाखों की तादाद में अनेक पर्वों पर स्नान करने जाती हैं तो नर्मदा तटों पर जाती हैं. यह मर्यादा की रक्षा के लिए जरूरी है कि उनके कपड़े बदलने के स्थान बनाए जाएं. अगर नर्मदा सेवा यात्रा के बाद हम यह व्यवस्था कर रहे हैं तो कौन सा अपराध कर रहे हैं? हम लोगों ने तय किया कि नर्मदा तट नशामुक्त होना चाहिए. हम से सवाल पूछे जा रहे हैं कि कहां कैसी दारू बिक रही है.
अध्यक्ष महोदय, पवित्र भाव से अगर यह सरकार संकल्प लेती है कि नर्मदा के दोनों तटों पर पांच-पांच किलोमीटर तक दारू की कोई दुकान नहीं खुलेगी. एक अप्रैल से दुकानें बंद कर दी गई हैं. हम नशामुक्ति अभियान चलाने का प्रयास कर रहे हैं. क्या यह बिहार में नहीं बिक रही है? कई बार नशाबंदी होने के बाद भी इस तरह की चीजें आती हैं उन्हें पकड़ने का काम होगा लेकिन एक अप्रैल से दोनों तटों पर दारू की दुकानें बंद कर दी गई हैं. हमने कहा है कि नशामुक्ति अभियान नर्मदा के तटों पर भी चलाएंगे और पूरे मध्यप्रदेश में चलाएंगे क्योंकि दारूबंदी बिना नशामुक्ति के नहीं हो सकती है. जिन राज्यों ने दारू बंद की है वहां अगर नशे की प्रवृत्ति है तो अवैध शराब बिकती है. एक अच्छी मंशा से अगर हमने नशामुक्ति आंदोलन का आगाज किया है तो कौन सा अपराध किया है?
अध्यक्ष महोदय, आज हमसे सवाल पूछे जा रहे हैं यदि हम बेटी बचाने की बात करते हैं, यदि मैं बेटियों के पैर धोता हूं और वह पानी अपने माथे से लगाकर बेटी बचाओ अभियान चलाता हूं तो क्या आपत्ति हो सकती है. आप तो इसको भी नाटक कहेंगे कि मुख्यमंत्री नाटक कर रहा है.
''जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी''
उनको दूसरी चीज दिखाई ही नहीं देती है. जिनकी आंखों पर केवल राजनीति की पट्टी चढ़ी हुई है, केवल राजनीति का चशमा लगा हुआ है वह राजनीति के अलावा कुछ नहीं देख सकते हैं. मैं विनम्रता के साथ प्रार्थना करना चाहता हूं कि कम से कम इस आंदोलन को राजनीति के साथ न जोड़ें. मैं आपको आह्वान करता हूं और आज अपने बड़े भाई को भी कहता हूं. मैं सामने बैठे सभी माननीय सदस्यों को भी निमंत्रण देता हूं, आग्रह करता हूं कि आइए दो जुलाई को हम कोशिश कर रहे हैं, विनम्र प्रयास कर रहे हैं कि नर्मदा के दोनों तटों पर अमरकंटक से लेकर ठेट बड़वानी और अलीराजपुर तक 1 हजार 72 किलोमीटर नर्मदा जी मध्यप्रदेश की सीमा में बहती हैं. 1 हजार 72 किलोमीटर तक दोनों तटों पर सरकारी जमीन चाहे वह फॉरेस्ट की हो, चाहे वह रेवेन्यू की हो वह जगह हमने चिह्नित की है वहां वृक्षारोपण का व्यापक कार्यक्रम किया जाएगा. लाखों लोग करोड़ों पेड़ लगाएंगे यह हम प्रयास कर रहे हैं. इसके लिए जनता को जगाने की कोशिश कर रहे हैं, इसके लिए जन-जागरण चला रहे हैं. अगर पेड़ लगाने का जनजागरण कर रहे हैं तो कौन सा अपराध कर रहे हैं? मैं आप सबको आह्वान करता हूं कि छोडि़ए राजनीति को कम से कम एक मुद्दे पर तो राजनीति की सीमा से ऊपर उठ जाओ मेरे मित्रों और चलो 2 तारीख को मैं आपको आह्वान करता हूं आप मेरे साथ चलो, हम साथ चलेंगे. बाकी मित्र भी साथ चलें, पेड़ लगाएंगे और केवल पेड़ नहीं लगाएंगे उनको बचाने की जवाबदारी भी हम लें. आपकी भी जवाबदारी है. आप भी प्रदेश के जिम्मेदार नागरिक हैं हम भी बचाने की जवाबदारी लें, आप भी बचाने की जवाबदारी लें, हम सामाजिक संस्थाओं को, हम धार्मिक संस्थाओें को, हम विद्यार्थियों संगठनों को, हम व्यापारी संगठनों को, जवाबदारी सौंपें. आप भी कदम से कदम और कंधे से कंधा मिलाकर चलिए. कौन इंकार करता है. वृक्षारोपण का व्यापक कार्यक्रम है और मैं कह रहा हूं लाखों लोग पेड़ लगाएं इसके लिए जी जान एक कर दूंगा, परिश्रम की पराकाष्ठा करेंगे, प्रयत्नों की परिसीमा करेंगे. कितनी सफलता मिलती है यह तो मैं नहीं कह सकता लेकिन ईमानदारी से कोशिश करेंगे. ईमानदार प्रयास करेंगे. हम यह कर रहे हैं तो कौन सा अपराध कर रहे हैं?
माननीय अध्यक्ष महोदय, अगर हम यह कहते हैं कि हर बेटा बेटी को पढ़ाओ तो क्या हम कोई अपराध करते हैं? एक सामाजिक आंदोलन है नर्मदा सेवा यात्रा, एक धार्मिक आंदोलन है क्योंकि नर्मदा सेवा यात्रा आस्था का विषय है, नर्मदा सेवा यात्रा पर्यावरण को बचाने की यात्रा है और नदी बचाने का, नदियों के संरक्षण का दुनिया का सबसे बड़ा अभियान है नर्मदा सेवा यात्रा. कुछ लोगों के आलोचना करने से और मजाक उड़ाने से इस आंदोलन की धार मंद नहीं पड़ेगी. मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं, दृढ़ता के साथ कहना चाहता हूं कि जो सहयोग करेंगे उनके साथ, जो सहयोग नहीं करेंगे उनके बिना और जो विरोध करेंगे उसके बावजूद नर्मदा मैय्या के संरक्षण का यह अभियान चलेगा. जनता को लेकर हम यह अभियान चलाएंगे. लेकिन आज सवाल उठाया गया कि जीवित, क्या पहले से जीवित नहीं है क्या ? मैं जानता हूँ मेरे मित्र जीवित है, माँ है, जीवनदायिनी, मोक्षदायिनी, पुण्यदायिनी, भूरे मगर पर सवारी करने वाली. ऋषियों को आश्रय देने वाली. अभी हमने शंकराचार्य जी की जयंती मनाई. जगह-जगह कार्यक्रम हुए. आदि गुरु शंकराचार्य जी महाराज, सांस्कृतिक रुप से जिन्होंने भारत को एकता के सूत्र में बांधा. उन्होंने अगर गुरु प्राप्त किए थे तो नर्मदा के तट पर ही प्राप्त किए थे. ओमकारेश्वर में एक नहीं अनेकों श्रेष्ठ संतों ने तपस्या की तो नर्मदा तट पर तपस्या की लेकिन जीवित इकाई कहने का मतलब क्या है ? मतलब यह है कि केवल माँ कहने से काम नहीं चलेगा. अगर माँ है तो बेटा-बेटियों का फर्ज भी हमको निभाना पड़ेगा. हम गंदगी बहाते जाएं और कहे माँ है वह तो जीवित है सब अपने आप साफ हो जाएगी. वह तो बहती रहेगी पेड़ कितने ही कटते जाएं. वह तो ठीक ही रहेगी वह तो माँ है. देखिए माँ धार्मिक दृष्टि से है, श्रद्धा की दृष्टि से है, आस्था की दृष्टि से है. लेकिन क्या माँ का कर्ज उतारने की हमें कोशिश नहीं करनी चाहिए. क्या बाकी माँओं का हश्र हमने नहीं देखा है. इसलिये मन में यह विचार आया कि नर्मदा सेवा यात्रा के बाद यह काम थम न जाए. इसलिए 2 जुलाई का कार्यक्रम मैंने आपको बताया. इसलिये ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की बात मैंने बताई. इसलिए निरन्तर जारी रखने वाले कार्यक्रमों की चर्चा मैंने आपसे की है. एक विचार और मन में आया कि मुख्यमंत्री का काम, सरकार का काम केवल पुल-पुलिया, सड़कें, अस्पताल और स्कूल बनाना नहीं है. आने वाली पीढ़ियों का भविष्य और अस्तित्व बचाना भी है. आने वाली पीढ़ियों के लिए हम कैसी धरती छोड़कर जाएंगे. क्या यह काम हमारा नहीं है ? माननीय अध्यक्ष महोदय, भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि एक ही चेतना समस्त जड़ एवं चेतन में अनिश्च्युत है. मुकेश जी तो बहुत विद्वान हैं मैं उतना विद्वान नहीं हूँ लेकिन यह वह धरती है जहाँ आज नहीं हजारों साल पहले कहा गया. एक ही चेतना...
श्री मुकेश नायक-- एको देव: सर्वभूतेषु गूढ़:
सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा,
कर्माध्यक्ष: सर्वभूतादिवास:
साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च.
श्री शिवराज सिंह चौहान--वाह धन्य हैं मुकेश नायक जी. लेकिन मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि वे इस सच को स्वीकार करें कि हमारे यहां ऋषियों ने कहा है कि --एकम् सत् विप्रा बहुधा वदन्ति. सत्य एक है, विद्वान उसको अलग-अलग तरीकों से कहते हैं. अरे यह धरती वह धरती है जिसने आज नहीं हजारों साल पहले एक चेतना सब में देखी और भारत जिसने आज नहीं हजारों साल पहले कहा--
अयं निज: परोचेति गणना लघुचेतसां,
उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकं ||
यह मेरा है यह तेरा है यह सोच छोटे दिल वालों का होता है. जो विशाल हृदय के होते हैं वे तो कहते हैं कि सारी दुनिया ही एक परिवार है. यह वह धरती है जिसने आज नहीं हजारों साल पहले कहा कि -
धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो,
प्राणियों में सद्भावना हो और
विश्व का कल्याण हो.
यह वह धरती है जिसने आज नहीं हजारों साल पहले कहा--
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे शन्तु निरामया:|,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चित
मां कशिच्द्दु: खभाग्भवेत् |
सब सुखी हों, सब निरोग हों, सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो. यह वह धरती है जिसने कहा - आत्मबध सर्वभुतेषु. सबको अपना मानो. यह वह धरती है मुकेश नायक जी जिसके संतों ने कहा अहम् ब्रह्माश्मि. मैं ब्रह्म हूं. सो अहम् मैं वही हूं. इसका उद्घोष करने वाली यह धरती जो नदियों को माँ मानती है. लेकिन केवल माँ मानने से काम नहीं चलेगा. जब एक ही चेतना है. यह धरती केवल मनुष्यों के लिए नहीं है. हमको नर्मदा जी अगर बचाना है तो मध्यप्रदेश के लिये तो बचाना ही है. मनुष्यों के लिये तो बचाना ही है लेकिन यह धरती पशु-पक्षियों के लिये भी है, कीट पतंगों के लिये भी है. यह भारत है जिसमें दशावतार की कल्पना की, दशावतार के बारे में बात की तो तीन अवतार वारह अवतार, मत्स्य अवतार, क्रूम अवतार. तीन अवतार हुए पशुओं के रुप में चौथा नरसिंह अवतार. आधा मनुष्य और आधा पशु के रुप में. संदेश क्या है कि पशुओं को भी आत्मभाव से देखो. कीट पतंगे हों, जलचर हों, थलचर हों, नवचर हों एक ही आत्मा इन सब में है. यह भारत है जिसने कहा कि पशु तो है ही इसीलिये हमारी नर्मदा मैया की सवारी भूरा मगर है. इसलिये लक्ष्मी जी को अगर पुकारो तो वे उल्लू पर बैठकर आती है, सरस्वती जी को अगर पुकारो तो हंसवाहिनी है और आर्धनाद अगर करो, दुर्गा मैया को पुकारो तो वह सिंह की सवारी करती हुई आती है. अगर भोले शंकर को पुकारो तो नंदी की सवारी करते हुए आते हैं. विष्णु भगवान को पुकारो तो गरुण की सवारी करते हुए आते हैं. संदेश यह है कि पशु पक्षी सभी को आत्म भाव से देखो. लेकिन भारत का चिन्तन यहीं नहीं रुका भारत का चिन्तन और आगे गया. तो हमने कहा पीपल का वृक्ष, वट का वृक्ष इनकी पूजा करो. तुलसी का बिरवा अपने आंगन में रोपो. क्योंकि एक ही चेतना हम सभी में विराजमान है. पेड़ों को भी आत्मभाव से देखो. इसलिए हम पेड़ों की पूजा भी करते हैं और पेड़ों की पूजा का विधान हमारे यहां है. केवल यही नहीं, यह चेतना और आगे बढ़ी तो हमारे देश ने कहा ''गंगा, सिंधु च् कावेरी, यमुना च् सरस्वती, रेवा, महानदी, गोदा, ब्रम्हपुत्र पुनातमान्''. ये केवल जलवाहिकायें नहीं है. ये हमारी पवित्र मातायें हैं. हमारा चिंतन केवल यहीं नहीं रूका और आगे यह चिंतन बढ़ा तो हमने कहा- ''यहां का कंकड़-कंकड़ हमारे लिए शंकर है'' और आगे बढ़कर सोचा तो ''देवतात्मा हिमालयाय्''. ये पहाड़ भी हमारे लिए देवताओं की आत्मा है. गोवर्धन पर्वत कृष्ण कन्हैया ने ग्वाल बालकों के साथ मिलकर उठाया और कहा कि प्रकृति की पूजा करो. इंद्र को मत पूजो. ये पर्वत तुम्हें सब दे रहा है. तुम्हारी गायों को ये चारा देता है, तुम्हें फल-औषधि देते हैं. इसकी पूजा करो. गोवर्धन की पूजा प्रकृति की पूजा है क्योंकि एक ही चेतना का निवास सब में है. ये चिंतन और आगे बढ़ी तो ''सूर्य देवताभ्याम् नम:'' सूर्य को अर्ग चढ़ाओ क्योंकि वह तुम्हें प्रकाश देता है, जीवन देता है. एक ही चेतना सभी में है और ये हमारा अद्वैत सिद्धांत है. जब ये चेतना सब में है तो तुम में भी वही चेतना है और मुझमें भी वही चेतना है. इसलिए मेरे भाई मैं-तुम भी एक ही हैं.
श्री मुकेश नायक- आपकी प्रवचन की अच्छी तैयारी है. भविष्य में 2018 में आपको ये काम मिलने वाला है.
श्री शिवराज सिंह चौहान- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं अब हल्की-फुल्की चीजों में नहीं जाऊंगा. मैं केवल यह निवेदन कर रहा हूं कि यह भारत का चिंतन है. मैं आपको यह भी बता देना चाहता हूं कि भौतिकता की अग्नि में दग्ध इस मानवता को शाश्वत् शांति के पथ का दिग्दर्शन अगर कोई कराएगा, तो भारत का यही दर्शन करायेगा, भारत का यही चिंतन करायेगा. (मेजों की थपथपाहट)
माननीय अध्यक्ष महोदय, इसी चिंतन में नदियों को मां माना गया है. नर्मदा हमारी मां तो है लेकिन मां के प्रति हमारा कुछ फर्ज और कर्त्तव्य भी है. इसलिए हमारे मन में यह भाव आया कि हम ये सारे उपाय तो आज ही करेंगे लेकिन हम आज हैं, कल नहीं रहेंगे. मनुष्य स्थायी रूप से इस धरती पर नहीं आया है. ये दुनिया हमारा घर नहीं है. ये तो धर्मशाला है. जब तक वह चाहेगा नाच नचायेगा और जिस दिन चाहेगा डोर खींच लेगा. हम सभी यहां अस्थायी ही हैं. कोई भी यहां स्थायी रूप से नहीं है. परंतु आने वाले समय में भी नदियां बची रहें. इसलिए हम मध्यप्रदेश में यह आह्वान कर रहें हैं कि नर्मदा को एक जीवित इकाई माना जाए. जीवित इकाई का अर्थ क्या है. हमारे साथियों ने कहा कि क्या आज नर्मदा जीवित नहीं है, मृत है क्या. हम आस्था और श्रद्धा से भरे हुए लोग हैं. मैं बताना चाहूंगा कि जीवित इकाई का तात्पर्य यह है कि हम वैधानिक रूप से ऐसे प्रबंध करना चाहते हैं कि जब किसी जीवित व्यक्ति को कोई नुकसान पहुंचाता है, तो उस नुकसान पहुंचाने वाले को दंड दिया जाता है. उसी प्रकार से नर्मदा को जीवित इकाई मानने का अर्थ यह है कि अगर मां नर्मदा को कोई नुकसान पहुंचायेगा तो जैसे किसी जीवित व्यक्ति के अधिकार होते हैं वैसे ही नर्मदा मईया के भी अधिकार हों. नर्मदा मईया को नुकसान पहुंचाने वाले को दंडित किया जायेगा.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं नहीं जानता कि मेरे विद्वान मित्रों ने इस समय दुनिया में जो चर्चा चल रही है, उसे पढ़ा कि नहीं, सुना कि नहीं. यह बात केवल हम नहीं कह रहे हैं. भारत की सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि गंगा जी को जीवित इकाई मानो. तो क्या गंगा जी जीवित नहीं है ? क्या गंगा जी हमारी मां नहीं है ? दुनिया में एक नई बहस चल पड़ी है. न्यूजी़लैण्ड जैसे देश ने एक पहल की है कि वहां एक नदी को जीवित इकाई माना जाए. जीवित इकाई का मतलब, जैसा मेरे विपक्ष के साथियों ने कहा मां के रूप में नहीं अपितु जीवित व्यक्तियों के जो अधिकार होंगे, वे ही नर्मदा मईया के भी अधिकार होंगे. इन अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए एक प्राधिकृत अधिकारी या संस्था को सशक्त किया जायेगा. जो स्वयं पहल करके नदी के हितों का संरक्षण करे. जब जरूरत पड़े तो मां नर्मदा की तरफ से एफ.आई.आर. भी दर्ज करवा दे कि यह अगर हो रहा है तो उत्खनन के कारण हो रहा है, यह अगर हो रहा है तो वृक्ष कटने के कारण हो रहा है, यह अगर हो रहा है तो नर्मदा जी में मल-जल भेजने के कारण हो रहा है. ऐसे लोग जो इस तरह के कृत्य करते हैं, उनके खिलाफ प्रभावी वैधानिक कार्यवाही सुनिश्चित की जा सके इसलिए नर्मदा मईया को जीवित इकाई घोषित करने की बात की जा रही है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, विधिक हैसियत प्रदान करने के लिए सारी चीजें जो हम करेंगे, उनमें सभी तरह के विवाद स्वयं मां नर्मदा की तरफ से संस्थित होंगे. मां नर्मदा के प्रति किसी भी प्रकार के अवैधानिक कृत्य के विरूद्ध किसी तृतीय पक्ष के द्वारा वैधानिक कार्यवाही आरंभ करने की प्रतीक्षा नहीं करनी होगी. स्वयं मां नर्मदा के नाम से वैधानिक कार्यवाही आरंभ की जा सकेगी. अध्यक्ष महोदय, ऐसी गतिविधियां जो नियम में नहीं है. मैं एक बात और कहता हूं कि नदी का प्रवाह बना रहे, उसके लिए सभी आवश्यक चीजें होनी चाहिए, वो करनी भी चाहिए और उनको छोड़कर जो चीजें नियम में नहीं होंगी, अगर कोई व्यक्ति ऐसा कृत्य करता है तो उसके खिलाफ वैधानिक कार्यवाही होगी. आपराधिक कार्यवाही होगी, उसका हम प्रावधान करेंगे. अगर कोई सीवेज का पानी नर्मदा जी में छोड़ता है तो उसके विरुद्ध आपराधिक प्रकरण चलाया जा सकेगा. ऐसी जितनी भी चीजें हैं, जो नियम में हम लोग विहित करेंगे. हम उसके अनुसार कार्यवाही कर सकते हैं. विधिक व्यक्तित्व प्रदान करने का एक प्रभाव और होगा कि माँ नर्मदा, उनमें निहित समस्त संपदा की स्वामिनी होगी, जिसके संरक्षण के लिए माँ नर्मदा के नाम से वाद भी लाया जा सकेगा और माननीय अध्यक्ष महोदय, माँ नर्मदा की जो अगाध जलराशि है, समृद्ध जलराशि है और जैव विविधता, उसका संरक्षण किया जा सकेगा. अभी तक हमने नदियों का शोषण किया है. नदियों का पोषण करने के दिन अब आ गए हैं. अध्यक्ष महोदय, एक सवाल यह उठाया गया कि केवल नर्मदा जी क्यों? हम प्रतिबद्ध हैं प्रदेश की सभी नदियों के संरक्षण के लिए. माँ नर्मदा से हमने शुरुआत की है क्योंकि माँ नर्मदा प्रमुख नदी है, बड़ी नदी है, इससे प्रदेश के बड़े हिस्से को लाभ मिल रहा है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि बाकी नदियाँ, चाहे वह चंबल हो, चाहे वह बेतवा हो, चाहे वह ताप्ति हो, चाहे वह केन हो, हमारी जितनी बाकी नदियाँ हैं, अभी सिन्ध की चर्चा हुई, चाहे वह सिन्ध नदी हो, हमारी जितनी भी नदियाँ हैं, मध्यप्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में बहने वाली, उन सभी नदियों के संरक्षण का भी अभियान समाज के साथ मिलकर चलाया जाएगा. याद रखिए, यह नर्मदा सेवा यात्रा सरकार अकेले नहीं कर सकती, जब तक समाज साथ खड़ा न हो. इसके लिए सरकार पीछे रहे और समाज आगे निकल जाए, सरकार और समाज मिलकर यह काम करे इसलिए माननीय अध्यक्ष महोदय, हमने नर्मदा सेवा यात्रा निकाली है. अध्यक्ष महोदय, मैं एक बार फिर प्रार्थना करना चाहता हूँ कि मध्यप्रदेश एक प्रारंभ कर रहा है और आप नोट कर लेना, आज मेरा मजाक उड़ाइये, यात्रा का मजाक उड़ाइये, लेकिन मैं आज रेखांकित कर रहा हूँ, यहाँ खड़े रहकर कि नर्मदा जी के संरक्षण का हम ऐसा प्रयास करेंगे कि नदियों के संरक्षण का दुनिया में एक उदाहरण बना कर खड़ा कर दिया जाएगा (मेजों की थपथपाहट) और नर्मदा जी प्रेरणा देगी, न केवल भारत में बाकी नदियों के संरक्षण के लिए, बल्कि बाकी दुनिया की नदियों के संरक्षण के लिए, एक जन आन्दोलन, पूरी विनम्रता से, अंतर्आत्मा से, हृदय की गहराइयों से, भक्ति-भाव से भरकर, श्रद्धा-भाव से भरकर, कर्त्तव्य के भाव से अभिभूत होकर, हमने चलाने की कोशिश की है. माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी प्रार्थना है, आप सब से भी, पक्ष-प्रतिपक्ष से भी और आपके माध्यम से मध्यप्रदेश की जनता से भी कि आइये, मैं आह्वान करता हूँ कि जुड़िए इस अभियान में, जुड़िए इस आन्दोलन में, मिलकर चलें, सब मतभेदों से ऊपर उठकर पूरा मध्यप्रदेश एक हो जाए और माँ नर्मदा के संरक्षण का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करें कि वह दुनिया की नदियों के संरक्षण के लिए एक उदाहरण बन कर प्रस्तुत हो जाए. माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं अपने आप को इस अभियान के लिए समर्पित करता हूँ और मैं सब से प्रार्थना करता हूँ कि आने वाले समय में जो विधिक प्रावधान किए जाएँगे, बाकायदा विधेयक के रूप में, हम इसी सदन में लेकर आएँगे. मेरी प्रार्थना है कि आप भी सब इस अभियान में जुड़िए. इस संकल्प को सर्वसम्मति से पारित कीजिए और हम आगे बढ़ कर कम से कम एक मुद्दे पर एक हैं, नदियों को बचाने के मुद्दे पर, नर्मदा जी के संरक्षण के मुद्दे पर हम एक हैं, यह सन्देश भी पूरी दुनिया को दें. बहुत-बहुत धन्यवाद. नमस्कार. (मेजों की थपथपाहट)
नेता प्रतिपक्ष (श्री अजय सिंह)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने छोटे भाई को एक सुझाव दिया था. सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करने के लिए यदि आपकी इच्छा है तो उसकी एक लाइन का भी आपने जिक्र नहीं किया, रेत के उत्खनन का. यदि पूरी नर्मदा पट्टी में रेत के अवैध या वैध उत्खनन पर रोक लगाने की आप बात करते हैं तो हम आपके साथ हैं.
श्री शिवराज सिंह चौहान-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने कहा जो-जो चीज माँ नर्मदा को नुकसान पहुँचाएगी, उसको पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाएगा लेकिन हम एक बात का ध्यान रखें कि जो चीज नदी के प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है, जो एनजीटी तय करे, जो पर्यावरणविद् तय करें, जो इस विषय के विद्वान और जानकार तय करें, केवल उतनी किसी भी चीज की अनुमति होगी, उसके अतिरिक्त नहीं होगी और वह बैठ कर तय किया जाएगा.
श्री अजय सिंह-- माननीय अध्यक्ष महोदय, एनजीटी तय करे और सब चीज ठीक है, जो आप वह प्रावधान रखना चाहते हैं, लेकिन जो किसी एक्ट के तहत, किसी मायनिंग एक्ट के तहत, नदी के बीच में धारा बदल कर नर्मदा पट्टी में मशीन का उपयोग हो रहा है उस पर तो रोक लगा दें.
श्री शिवराज सिंह चौहान -- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह रोक लगा दी गई है. सख्त कार्यवाही भी की गई है. अवैध उत्खनन के खिलाफ जितनी सख्त कार्यवाही इन दिनों में की गई, कभी कांग्रेस के जमाने में नहीं की गई. (मेजों की थपथपाहट) यह सख्त कार्यवाही जारी रहेगी. हर हालत में जारी रहेगी.
अध्यक्ष महोदय -- प्रश्न यह है कि "सदन का मत है कि मॉं नर्मदा नदी मध्यप्रदेश की जीवन-रेखा है और एक जीवित इकाई के रूप में मॉं नर्मदा के वैधानिक अधिकारों के संरक्षण हेतु राज्य शासन कृत संकल्पित है."
संकल्प स्वीकृत हुआ.
3.16 बजे राष्ट्रगान
जन-गण-मन का समूहगान
अध्यक्ष महोदय -- अब राष्ट्रगान होगा.
(सदन में राष्ट्रगान "जन-गण-मन" का समूहगान किया गया.)
सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित की जाना
अध्यक्ष महोदय -- विधानसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित.
अपराह्न 3.17 बजे विधानसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित की गई.
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अवधेश प्रताप सिंह |
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भोपाल. |
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प्रमुख सचिव, |
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दिनांक:- 03 मई, 2017 |
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मध्यप्रदेश विधानसभा |
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