मध्यप्रदेश विधान सभा
की
कार्यवाही
(अधिकृत विवरण)
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चतुर्दश विधान सभा त्रयोदश सत्र
फरवरी-मार्च, 2017 सत्र
शुक्रवार, दिनांक 3 मार्च, 2017
(12 फाल्गुन, शक संवत् 1938 )
[खण्ड- 13 ] [अंक- 8 ]
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मध्यप्रदेश विधान सभा
शुक्रवार, दिनांक 3 मार्च, 2017
(12 फाल्गुन, शक संवत् 1938 )
विधान सभा पूर्वाह्न 11.02 बजे समवेत हुई.
{अध्यक्ष महोदय (डॉ.सीतासरन शर्मा) पीठासीन हुए.}
तारांकित प्रश्नों के मौखिक उत्तर
विद्युतीकरण के अपूर्ण कार्यों को पूर्ण किया जाना
[ऊर्जा]
1. ( *क्र. 3375 ) श्री वेलसिंह भूरिया : क्या ऊर्जा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) वर्ष 2013 से धार जिले के सरदारपुर विधान सभा क्षेत्र के कितने ग्रामों एवं मजरे/टोलों में विद्युतीकरण का कार्य पूर्ण किया जा चुका है एवं कितने ग्रामों एवं मजरे/टोलों में विद्युतीकरण किया जाना शेष है? (ख) वर्ष 2013 से धार जिले के सरदारपुर विधान सभा में कितने विद्युत सब स्टेशन स्थापित किए गए एवं कितने सब स्टेशन बनाये जाना शेष हैं? (ग) क्या कई ठेकेदार विद्युतीकण का कार्य अधूरा छोड़कर चले गए हैं? यदि हाँ, तो विभाग उन ठेकेदारों के विरूद्ध क्या कार्यवाही करेगा एवं शेष रहे कार्यों को पूर्ण करने के लिए विभाग क्या कार्यवाही करेगा? (घ) प्रश्नांश (क) एवं (ख) के शेष कार्य कब तक पूर्ण कर लिये जायेंगे?
ऊर्जा मंत्री ( श्री पारस चन्द्र जैन ) : (क) वर्ष 2013 से पूर्व ही धार जिले के सरदारपुर विधानसभा क्षेत्र के सभी 193 राजस्व ग्रामों एवं उनके चिन्हित 693 मजरों/टोलों में से 688 मजरों/टोलों के विद्युतीकरण का कार्य पूर्ण कर लिया गया था। वर्ष 2013 के बाद से उक्तानुसार शेष 5 चिन्हित मजरों/टोलों में से 2 मजरों/टोलों के विद्युतीकरण का कार्य पूर्ण किया जा चुका है एवं 3 मजरों/टोलों के विद्युतीकरण का कार्य किया जाना शेष है। (ख) वर्ष 2013 से धार जिले के सरदारपुर विधानसभा क्षेत्र में एक 33/11 के.व्ही. उपकेन्द्र खुटपला माह अक्टूबर, 2015 में स्थापित किया गया है एवं 33/11 के.व्ही. के 4 उपकेन्द्रों की स्थापना हेतु स्वीकृति प्रदान की गई है। उक्त में से 33/11 के.व्ही. के 3 उपकेन्द्रों यथा फुलगावड़ी, गुमानपुरा एवं तिरला का कार्य प्रगति पर है तथा 33/11 के.व्ही. उपकेन्द्र भरावदा का कार्य दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना में स्वीकृत है, जिसे टर्न-की आधार पर कराए जाने हेतु दिनांक 21.01.2017 को अवार्ड जारी किया गया है। (ग) जी नहीं, पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के धार वृत्त के अंतर्गत कोई भी ठेकेदार विद्युतीकरण का कार्य अधूरा छोड़कर नहीं गया है। अतः प्रश्न नहीं उठता। (घ) उत्तरांश (क) में दर्शाए गए धार जिले के सरदारपुर विधानसभा के शेष 3 मजरों/टोलों के विद्युतीकरण का कार्य एवं उत्तरांश (ख) में दर्शाए गए 33/11 के.व्ही. उपकेन्द्र भरावदा का कार्य दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना में स्वीकृत है तथा उक्त कार्य सहित धार जिले हेतु स्वीकृत योजना का कार्य टर्न-की आधार पर कराए जाने के लिए दिनांक 21.01.2017 को अवार्ड जारी किया गया है। ठेकेदार एजेंसी से किए गए अनुबंध अनुसार उक्त कार्यों सहित योजना का कार्य, अवार्ड दिनांक से 2 वर्ष की अवधि में पूर्ण किया जाना है। उत्तरांश (ख) में उल्लेखित शेष 33/11 के.व्ही. के 3 उपकेन्द्रों में से फुलगावड़ी एवं तिरला उपकेन्द्र का कार्य मई, 2017 तक तथा गुमानपुरा उपकेन्द्र का कार्य जून, 2017 तक पूर्ण किया जाना संभावित है।
श्री वेलसिंह भूरिया-- अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से निवेदन करना चाह रहा हूं कि मध्यप्रदेश में सबसे पहले हमारे लाडले मुख्यमंत्री माननीय शिवराज सिंह जी ने 12.4.2013 को 24 घंटे बिजली की शुरुआत की थी. इसके लिए सरकार को, माननीय मुख्यमंत्री जी और माननीय विद्युत मंत्री जी को मैं बहुत बहुत बधाई और धन्यवाद देता हूं. अध्यक्ष जी, बीच में कुछ अधिकारियों/कर्मचारियों ने गलती कर दी थी. समय सीमा में काम पूरा नहीं हो पाया था. मैं माननीय मंत्री जी से यह पूछना चाह रहा हूं कि वर्ष 2013 से धार जिले के सरदारपुरा विधान सभा क्षेत्र के कितने ग्राम एवं मजरे-टोलों में विद्युतीकरण का काम पूर्ण किया जा चुका है.
अध्यक्ष महोदय-- मंत्री जी ने उत्तर दे दिया है.
श्री वेलसिंह भूरिया-- अध्यक्ष महोदय, उत्तर संतोषप्रद तो है ही लेकिन जो जानकारी उपलब्ध कराई गई वह आधी-अधूरी है.
अध्यक्ष महोदय-- 4 में से 3 उपकेन्द्रों का कार्य 2017 तक हो जाएगा ऐसा उत्तर में लिखा है.
श्री वेलसिंह भूरिया-- अध्यक्ष जी, मेरा यह निवेदन है कि सरदारपुर तहसील में 800 मजरे-टोले और 216 गांव हैं. इन 800 मजरे-टोलों में से कम में विद्युतीकरण हुआ है? इन 800 मजरे-टोलों में से कितने में विद्युतीकरण हो गया है यह मेरा प्रश्न था. अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी से एक दो प्रश्न पूछ लेता हूं. मंत्री जी यह बता दें कि इन 800 मजरे-टोलों में से जो शेष मजरे-टोले हैं वह कब तक पूर्ण कर लिए जाएंगे?
श्री पारसचन्द्र जैन - माननीय अध्यक्ष महोदय, 100 से अधिक आबादी वाले जितने मजरे,टोले होते हैं उनको दीनदयाल योजना में हमने शामिल भी किया है. 21.1.2000 को आदेश जारी भी किये हैं. दो वर्ष में हम काम पूर्ण कर लेंगे. मैंने प्रश्न में भी जानकारी दी है कि 693 मजरे/टोलों में से 688 मजरे,टोलों का काम हम कर चुके हैं.
अध्यक्ष महोदय - बाकी बचे 3 मजरे/टोलों का 2017 तक कर देंगे,ऐसा उन्होंने उत्तर दिया है.
श्री वेलसिंह भूरिया - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न यह है कि जो मजरे/टोलों की संख्या मंत्री जी को अधिकारियों ने दी है, वह सही नहीं है. मेरा कहना है कि 800 मजरे टोले हैं और 216 गांव हैं. इसमें आप बता रहे हैं कि 688 मजरे/टोलों में सबमें कार्य पूर्ण कर लिया है. ऐसा नहीं है सबमें पूर्ण नहीं किया गया है. शेष मजरे/टोलों में कब तक कार्य पूर्ण कर लिया जायेगा ?
अध्यक्ष महोदय - मंत्री जी, माननीय सदस्य कह रहे हैं कि कुल 800 मजरे/ टोले हैं और आप कह रहे हैं 688 तो इसको दिखवा लेंगे.
श्री पारसचन्द्र जैन - माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके आदेश का पालन होगा. हम उसका परीक्षण करवा लेंगे.
श्री वेलसिंह भूरिया - माननीय मंत्री जी बहुत-बहुत धन्यवाद.
गोवारी जाति के व्यक्तियों को अनु. जनजाति के प्रमाण पत्र का प्रदाय
[सामान्य प्रशासन]
2. ( *क्र. 1719 ) श्री के.डी. देशमुख : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र दिनांक 11 जुलाई 2005 द्वारा गोवारी जाति के व्यक्तियों को जनजाति का प्रमाण पत्र जारी करने के निर्देश प्रदेश के समस्त कलेक्टर्स को जारी किये गये हैं? (ख) यदि हाँ, तो बालाघाट जिले में तथा सिवनी जिले में प्रश्न दिनांक तक किन-किन गोवारी व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र दिया गया है? उनके पता सहित विवरण दिया जावे। (ग) क्या म.प्र. शासन सामान्य प्रशासन विभाग, मंत्रालय के निर्देश क्र. एफ 7-7/2007/ आ.प्र./एक भोपाल, दिनांक 21/06/2016 अपर सचिव, सामान्य प्रशासन के आदेश का पालन नहीं हो रहा है? यदि नहीं, तो क्यों? (घ) क्या सामान्य प्रशासन गोवारी जाति के लोगों को जनजाति का प्रमाण पत्र प्रदान करने के समस्त कलेक्टरों को स्पष्ट निर्देश देगा? यदि हाँ, तो कब तक?
मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) जी नहीं। सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र क्रमांक एफ 7-13/2004/आ.प्र./एक, दिनांक 11 जुलाई, 2005 द्वारा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के व्यक्तियों को जाति प्रमाण पत्र जारी किये जाने की प्रक्रिया संबंधी निर्देश जारी किये गए हैं। (ख) बालाघाट तथा सिवनी जिले में प्रश्न दिनांक तक गोवारी जाति के किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया है। (ग) प्रश्न में सामान्य प्रशासन विभाग के जिस निर्देश का हवाला दिया गया है वह निर्देश दिनांक 21.06.2016 को नहीं बल्कि 17.06.2016 को जारी हुए हैं। इन निर्देशों का पालन न होने की कोई सूचना नहीं है। (घ) स्पष्ट निर्देश पूर्व से ही हैं। शेषांश का प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
श्री के.डी.देशमुख - माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी यह बताने का कष्ट करेंगे कि सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा मध्यप्रदेश में जनजातियों की सूची के सरल क्रमांक 16 पर गोंड,गोवारी जाति को पृथक-पृथक मानकर अनुसूचित जनजाति माना गया है तो अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्र इस जाति के लोगों को बालाघाट,सिवनी,छिन्दवाड़ा जिलों में क्यों नहीं राजस्व अधिकारियों द्वारा दिये जा रहे हैं?
अध्यक्ष महोदय - यह उत्तर तो इसमें आ गया है. और कुछ आपको पूछना हो तो पूछ लीजिये.
श्री के.डी.देशमुख - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा प्रश्न पूछने का आशय ही यह था कि गोवारी जाति को जनजाति माना गया है कि नहीं ? क्योंकि पत्रों में यह उल्लेख है. यह उद्भूत हो रहा है.
राज्यमंत्री,सामान्य प्रशासन(श्री लालसिंह आर्य) - माननीय अध्यक्ष महोदय, गोवारी जाति को अनुसचित जनजाति में ही माना गया है.
श्री के.डी.देशमुख - माननीय अध्यक्ष महोदय, यही प्रश्न मेरा है कि जनजाति में माना गया है. मध्यप्रदेश रीआर्गनाईजेशन एक्ट,2000 के द्वारा जो जनजाति की सूची है उसमें गोंड गोवारी जाति है और उस जाति को अनुसूचित जनजाति माना गया है तो सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा गोवारी जाति को जनजाति मानने के बावजूद राजस्व अधिकारियों द्वारा बालाघाट,सिवनी,जिले में इस जाति के लोगों को जनजाति के प्रमाणपत्र क्यों नहीं दिये जा रहे हैं ?
श्री लालसिंह आर्य - माननीय अध्यक्ष महोदय, यह बात सही है कि पिछड़ा वर्ग की जो सूची है उसमें गोवारी कोष्ठक में ग्वारी इसको पिछड़ा वर्ग में माना है. गोंड,गोवारी जाति को पृथक-पृथक अऩुसूचित जनजाति में माना गया है. सामान्य प्रशासन विभाग ने एक बार नहीं कई बार निर्देश जारी किये हैं कि अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्र में ही गोवारी जाति के प्रमाणपत्र बनाये जायेंगे. कलेक्टर को भ्रम हुआ होगा तो उन्होंने एक पत्र जारी करकर मार्गदर्शन मांगा है. वह पिछड़े वर्ग में अलग से मामला चल रहा है. उसमें परीक्षण हो रहा है लेकिन मैं बताना चाहता हूं कि गोवारी जाति के अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र बनाने के हमने आदेश दिये हैं और पुन: आदेश जारी करेंगे कि उनको अनुसूचित जनजाति का मानकर, उनको अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्र बनाने के आदेश जारी करेंगे.
श्री के.डी.देशमुख - माननीय अध्यक्ष महोदय, यहां भ्रम की स्थित उत्पन्न हो रही है. अनुसूचित जनजाति की सूची के अंतर्गत गोंड गोवारी जाति है और पिछड़ा वर्ग की सूची में भी सरल क्रमांक 1 पर गोवारी जाति है. इस तरह एक जाति दो जगह आ गई है तो क्या पिछड़ा वर्ग की सूची में सरल क्रमांक 1 पर जो गोवारी जाति अंकित है क्या उसको विलोपित करने की सामान्य प्रशासन विभाग कोई कार्यवाही करेगा ?
श्री लालसिंह आर्य - माननीय अध्यक्ष महोदय, वह परीक्षण चल रहा है. पिछड़ा वर्ग आयोग उसमें परीक्षण कर रहा है यदि वह अनुशंसा करेंगे तो उसको वहां से विलोपित करने की कार्यवाही करेंगे.
श्री बाबूलाल गौर - माननीय अध्यक्ष महोदय, जब घोषित हो गया तो अब अनुशंसा की क्या आवश्यक्ता है ?
श्री के.डी.देशमुख - माननीय अध्यक्ष महोदय, यह गोवारी जाति का मामला है और गोवारी जाति सदियों से मध्यप्रदेश के बालाघाट,सिवनी,छिन्दवाड़ा जिलों में निवासरत् है.
अध्यक्ष महोदय - उन्होंने स्पष्ट कर दिया है.
श्री के.डी.देशमुख - माननीय अध्यक्ष महोदय, उन्होंने कर दिया है तो मैं भी स्पष्ट कर देना चाहता हूं. मेरा भी तो कर्तव्य बनता है कि मैं माननीय मंत्री जी को स्पष्ट कर दूं. यह मामला जब पिछड़ा वर्ग आयोग की सूची में जब रामजी महाजन आयोग 1982 में बना था उन्होंने पिछड़ा वर्ग की सूची जारी की और उस सूची में सरल क्रमांक 1 पर गोवारी जाति पिछड़ा वर्ग की सूची में आ गई. तो राजस्व अधिकारी बालाघाट,सिवनी,छिन्दवाड़ा जिले में इसीलिये गोवारी जाति को अनुसूचित जनजाति का प्रमाणपत्र नहीं दे रहे हैं क्योंकि यह पिछड़ा वर्ग की सूची में है ऐसा वह कह रहे हैं तो पिछड़ा वर्ग की सूची में गोवारी जाति को विलोपित करने की कार्यवाही कब तक करेंगे ?
श्री लाल सिंह आर्य-- माननीय अध्यक्ष महोदय, एक तो मैं स्पष्ट यह करना चाहता हूं जो आप बता रहे हैं कि पिछड़ा वर्ग की अनुसूची में ग्वारी जाति है, वो गोवारी कोष्ठक में ग्वारी, ऐसा करके लिखा है और अनुसूचित जनजाति की जो सूची है उसमें गोवारी लिखा है गोंड हलंथ गोवारी ऐसा लिखा है. सामान्य प्रशासन विभाग के स्पष्ट निर्देश हैं कि गोवारी जाति मध्यप्रदेश में अनुसूचित जनजाति में है, उसके जाति प्रमाण पत्र बनाये जायेंगे. हां, यदि कहीं बालाघाट में इस प्रकार का आप बोल रहे हैं तो हम उसको दिखवा लेंगे और पुन: आदेश जारी करेंगे कि गोवारी जो अनुसूचित जनजाति में है उसके प्रमाण पत्र बनाये जायें.
श्री बाबूलाल गौर-- माननीय अध्यक्ष महोदय, बहुत ही सरल बात है, जब एक बार आपने मान लिया कि यह जनजाति है तो उसमें से विलोपित कर दीजिये, यह मूल बात है, अब इसके लिये यह कहना कि अनुसंधान होगा, हम निर्देश करेंगे, यहां घोषित करिये. ... (व्यवधान)....
श्री वेलसिंह भूरिया-- माननीय अध्यक्ष महोदय, कई ऐसी जातियों को फर्जी तरीके से आदिवासी जाति में जोड़ दिया गया है. ...(व्यवधान)...
अध्यक्ष महोदय-- बैठ जाइये, वेलसिंह जी बैठिये आप. ....(व्यवधान)...
श्री बाबूलाल गौर-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं आया.
अध्यक्ष महोदय-- आप बैठ तो जायें, इकट्ठा उत्तर आयेगा.
श्री अनिल फिरोजिया-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मोंगिया जाति को आदिवासी घोषित किया गया है, वह सुप्रीम कोर्ट में भी गये थे वहां से भी वह केस जीत कर आये हैं उसके बाबजूद भी मोंगिया जाति के आदिवासी के प्रमाण पत्र मध्यप्रदेश में नहीं बन रहे.
अध्यक्ष महोदय-- उससे उद्भूत नहीं होता.
श्री अनिल फिरोजिया-- माननीय अध्यक्ष महोदय, बहुत महत्वपूर्ण है, यह एक पूरे समाज का मामला है.
श्री बाबूलाल गौर-- माननीय मंत्री जी का उत्तर नहीं आया.
अध्यक्ष महोदय-- आपने जो कहा उसको वह पहले ही स्वीकार कर चुके हैं.
श्री बाबूलाल गौर-- माननीय अध्यक्ष महोदय, जो पिछड़े वर्ग की सूची है.
अध्यक्ष महोदय-- नहीं उससे वह उद्भूत नहीं होता.
श्री बाबूलाल गौर-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा एक अनुरोध है कि यह एक संवैधानिक अधिकार है, अगर दो जातियां एक में पिछड़े वर्ग में लिखी है और एक में जनजाति है तो इसका स्पष्टीकरण होना चाहिये.
अध्यक्ष महोदय-- वह तैयार तो हैं, वह कह रहे हैं. मंत्री जी एक बार और बोल दीजिये.
श्री लाल सिंह आर्य-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने कितना स्पष्ट बोला है कि गोवारी अनुसूचित जनजाति की सूची में है उसका प्रमाण पत्र बनाया जायेगा. .... (व्यवधान)....
अध्यक्ष महोदय-- बैठ जाइये अनिल जी, आपका नहीं है, वह उसमें नहीं आयेगा. वह उससे उद्भूत नहीं होता.
विद्युत् ग्रिड की स्वीकृति
[ऊर्जा]
3. ( *क्र. 1690 ) श्री कैलाश चावला : क्या ऊर्जा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) मनासा विधानसभा क्षेत्र में गत 5 वर्षों में कितने विद्युत ग्रिड की स्वीकृति प्रदान की गई है। ग्रिड का नाम, स्वीकृति की दिनांक, कार्य कब तक पूर्ण होना था, की दिनांक बतावें। (ख) जिन ठेकेदारों ने ग्रिड का कार्य समयावधि में पूर्ण नहीं किया उनके तथा फर्म होने पर भागीदारों के नाम बतावें? (ग) ऐसे ठेकेदारों के विरूद्ध जिन्होंने समयावधि में कार्य नहीं किया, उनके विरूद्ध क्या कार्यवाही की गई है?
ऊर्जा मंत्री ( श्री पारस चन्द्र जैन ) : (क) मनासा विधानसभा क्षेत्र में विगत 5 वर्षों में 4 नवीन 33/11 के.व्ही. उपकेन्द्रों की स्थापना हेतु स्वीकृति प्रदान की गई है। उक्त स्वीकृत नवीन 33/11 के.व्ही. उपकेन्द्र के नाम, स्वीकृति दिनांक एवं कार्य पूर्णता की नियत दिनांक की जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र ''अ'' अनुसार है। (ख) मनासा विधानसभा क्षेत्र में स्वीकृत नवीन 33/11 के.व्ही. उपकेन्द्रों के कार्य जिन ठेकेदार एजेंसियों द्वारा निविदा अनुबंध की शर्तों के अनुसार समय-सीमा में पूर्ण नहीं किये हैं, उनके नाम सहित जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र ''ब'' अनुसार है। (ग) उत्तरांश (ख) में उल्लेखित ठेकेदार एजेंसियों द्वारा निविदा अनुबंध की शर्त अनुसार निर्धारित समय-सीमा में कार्य पूर्ण नहीं करने के कारण उनके विरूद्ध निविदा अनुबंध की शर्तों के अनुसार कार्यवाही की गई है, जिसके तहत मेसर्स भारत इलेक्ट्रिकल कॉन्ट्रेक्टर्स, एंड मेनुफेक्चरर्स प्रा.लि., सांगली एवं मेसर्स श्रीराम स्विचगियर्स प्रा.लि. रतलाम के बिलों से लिक्विडेटेड डैमेज के रूप में पेनाल्टी स्वरूप क्रमश: रू.2.09 करोड़ एवं रू. 0.38 करोड़ की राशि काटी जा चुकी है।
श्री कैलाश चावला-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने माननीय मंत्री जी से यह सवाल किया था कि मनासा विधान सभा क्षेत्र में पिछले 5 वर्षों में कितने ग्रिड स्वीकृत हुये और कितनों पर कार्य पूर्ण हो गया. उसके जवाब में माननीय मंत्री जी ने कहा कि 4 ग्रिड स्वीकृत हुये जिसमें से 1 का कार्य पूर्ण हुआ और 3 अपूर्ण हैं. 3 अपूर्ण जो ग्रिड हैं यह एक ही सांगली की कंपनी को दिये गये हैं, जो काम नहीं कर रही है और इसमें केवल झलनेर का कुछ काम हुआ है, परंतु खानखेड़ी और बरखेड़ा का तो कोई काम नहीं हुआ, पर माननीय मंत्री जी ने अपने जवाब में बताया है कि इस कंपनी पर 2 करोड़ 9 लाख रूपये जुर्माना किया गया है. मैं यह पूछना चाहता हूं कि जो काम इस कंपनी ने किया है वह अभी तक कितने रूपये का किया है, इसके बिल का भुगतान कितने का हुआ है और उसमें से 2 करोड़ किस तरीके से काटे गये, यह जानकारी दें ?
श्री पारस चन्द्र जैन-- माननीय अध्यक्ष महोदय, जो जानकारी सदन के सदस्य ने मांगी है वह आंकड़े तो मैं इनको बाद में लेकर दे दूंगा, लेकिन एक बात जरूर है कि यह जो सब स्टेशन खानखेड़ी है यह बहुत लेट हुआ. दिनांक 31.5.2017 तक हम इसको पूरा कर देंगे और ऐसा ही झलनेर भी है, उसको भी हम 31.05.2017 तक पूरा कर देंगे, लेकिन जो बरखेड़ा सब स्टेशन है, यह बात जरूर है कि जगह बाद में मिलने के कारण, जगह परिवर्तन के कारण इसमें समय लगा है इसकी जमीन भी आवंटित हो गई है और बहुत जल्दी इस काम को हम पूरा करेंगे, हमने आदेशित किया है, यह हम दिनांक 31.07.2017 तक पूर्ण कर देंगे.
श्री कैलाश चावला -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा जो सवाल था उसका जवाब तो आया नहीं है कि कितनी राशि का भुगतान उसको हुआ है और कितनी राशि का काम उसने किया है. मैं, मंत्री जी से जानना चाहता हूं कि 2 करोड़ का जो आंकड़ा विभाग ने बताया है वह सही भी है कि नहीं है.
अध्यक्ष महोदय- मंत्री जी ने कहा है कि जानकारी दे देंगे.
श्री पारस चन्द्र जैन-- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह स्पष्ट पेनाल्टी रूपये 2.09 करोड़ एवं रूपये 0.38 करोड़ की राशि है काटी जा चुकी है और यह सही आंकड़ा है. बाकी माननीय सदस्य ने जो जानकारी चाही है कि कितना कितना पेमेन्ट हुआ है. मैं जानकारी माननीय सदस्य को उपलब्ध करा दूंगा.
जनवरी 2005 के बाद नियुक्त कर्मचारियों को पेंशन की पात्रता
[वित्त]
4. ( *क्र. 1708 ) श्री राजेन्द्र फूलचंद वर्मा : क्या वित्त मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या जनवरी 2005 के बाद नियुक्त कर्मचारियों को जी.पी.एफ. एवं पेंशन की पात्रता नहीं है? क्या जनवरी 2005 से नियुक्त कर्मचारियों का जी.पी.एफ. के बदले सी.पी.एफ. काटा जाता है? (ख) यदि सी.पी.एफ. काटा जा रहा है तो कर्मचारियों को सेवानिवृत्त होने पर क्या एक मुश्त राशि दी जाएगी या पेंशन के रूप में फिक्स पेंशन दी जाएगी? (ग) क्या कर्मचारी सी.पी.एफ. में जमा राशि सेवानिवृत्ति के पूर्व निकाल सकता है या नहीं? यदि हाँ, तो किस आधार पर तथा किस प्रक्रिया के माध्यम से?
वित्त मंत्री ( श्री जयंत मलैया ) : (क) जी हाँ। जनवरी, 2005 के पश्चात् नियुक्त कर्मचारियों का परिभाषित पेंशन अंशदान काटा जाता है। (ख) सेवानिवृत्ति पर अभिदाता की कुल जमा राशि की 40 प्रतिशत राशि को एन्यूटी मासिक पेंशन के भुगतान के रूप में (Annuity Purchase) एवं शेष 60 प्रतिशत राशि अभिदाता को एकमुश्त भुगतान की जाएगी। (ग) जी नहीं।
श्री राजेन्द्र फूलचंद वर्मा -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा जो प्रश्न है वह अत्यंत ही संवेदनशील और प्रदेश के लाखों कर्मचारियों के जीपीएफ से संबंधित है. मैं मंत्री जी को इस बात के लिये धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिये प्रदेश में सातवां वेतनमान लागू किया है.उससे यह स्पष्ट परिलक्षित होता है कि यह सरकार निश्चित रूप से कर्मचारियों के प्रति शुरू से ही संवेदनशील है. अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय वित्त मंत्री जी से यह जानना चाहता हूं कि 40% एन्यूटी मासिक पेंशन तथा 60% की राशि जो अभिदाता को एकमुश्त भुगतान की जाती है, क्या वह दोनों भुगतान कर्मचारियों को प्राप्त हो रहे हैं. अध्यक्ष महोदय, दूसरा प्रश्न मेरा माननीय मंत्री जी से यह है कि देवास जिले में कर्मचारियों को भुगतान में कठिनाई हो रही है, क्या मंत्री जी उसके लिये भोपाल से एक टीम बनाकर जांच करवायेंगे, क्योंकि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को भुगतान नहीं हो रहा है ?
श्री जयंत मलैया -- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य मुझे बता दें देवास जिले के ऐसे कौन से मामले हैं, उन सब मामलों को देख लिया जायेगा. जहां तक माननीय सदस्य ने जो पेंशन की बात की है, उसके संबंध में कहना चाहूंगा कि 1.1.2005 के बाद जो हमारी राष्ट्रीय पेंशन योजना प्रारंभ हुई है उसमें जब कर्मचारी सेवानिवृत्त होगा तो उसको 60% राशि एकमुश्त मिलेगी और 40% की एन्यूटी मासिक पेंशन के रूप में लगेगी. अभी जो कर्मचारी 2005 के बाद नियुक्त हुये हैं वह तो अभी सेवानिवृत्त हुये नहीं हैं. जब वह सेवा से निवृत्त होंगे तब उनको मिलेगी.
श्री राजेन्द्र फूलचंद वर्मा-- अध्यक्ष महोदय, कर्मचारियों की ही यह शिकायत है कि वह सेवा से निवृत्त हो गये हैं लेकिन उनको यह राशि मिल नहीं रही है. मंत्री जी देवास जिले में कब तक जांच करा लेंगे इसकी समय सीमा भी बता दें ?
श्री जयंत मलैया -- आप मुझे प्रश्न तो बतायें. जो पुरानी पेंशन योजना है 2005 की उसके बारे में बात कर रहे हैं या 1.1.2005 के बाद जो राष्ट्रीय पेंशन योजना लागू हुई है, उसकी बात कर रहे हैं.
श्री राजेन्द्र फूलचंद वर्मा- मैं उसकी सूची आपको उपलब्ध करा दूंगा. आप जांच करा लें.
श्री जयंत मलैया-- आप सूची उपलब्ध करवा दें.
प्रश्न संख्या - 5 (अनुपस्थित)
मुख्यमंत्री सोलर पंप योजना का क्रियान्वयन
[नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा]
6. ( *क्र. 70 ) श्री जितेन्द्र गेहलोत : क्या ऊर्जा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) मुख्यमंत्री सोलर पंप योजनांतर्गत अब तक हुई कार्यवाही/प्रगति का ब्यौरा क्या है? (ख) उपरोक्त योजनांतर्गत किन क्षेत्रों में किसानों को सोलर पंप वितरित किये जायेंगे? क्या जिलेवार क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है? यदि हाँ, तो ब्यौरा क्या है? (ग) मुख्यमंत्री सोलर पंप योजना के क्रियान्वयन पर कितनी राशि व्यय की जायेगी?
ऊर्जा मंत्री ( श्री पारस चन्द्र जैन ) : (क) ''मुख्यमंत्री सोलर पम्प योजना'' के तहत कृषि हेतु सोलर पम्प वितरण की योजना तैयार की गई है। सोलर पम्पों की दरों के निर्धारण के लिये निविदा कर ली गई है। (ख) इस योजना को प्रदेश के उन दूर-दराज के क्षेत्रों में क्रियान्वित किया जाना प्रस्तावित है, जहाँ ग्राम/टोले/वन क्षेत्र या स्थल वर्तमान में अविद्युतीकृत हैं और जहाँ अगले 2-3 वर्ष तक परंपरागत विद्युत पहुँचाने की संभावना नहीं है या ऐसे विद्युतीकृत ग्राम/टोले जिसमें प्रश्नाधीन स्थल विद्युत वितरण कम्पनियों की विद्युत लाइन से कम से कम 300 मीटर दूर स्थित हो, या नदी अथवा बांध के समीप ऐसे स्थान जहाँ पानी की पर्याप्त उपलब्धता हो एवं फसलों के चयन के कारण जहाँ वाटर पम्पिंग की आवश्यकता अधिक रहती हो। यह योजना राज्य के उन जिलों में भी क्रियान्वित की जाना प्रस्तावित है, जहाँ विद्युत वितरण कम्पनियों की वाणिज्यिक हानि काफी अधिक है। वर्तमान में जिलेवार क्षेत्रों को चिन्हित नहीं किया गया है। (ग) मुख्यमंत्री सोलर पम्प योजना के तहत् 3 एच.पी. तक के सोलर पम्प पर कुल (राज्यांश + केन्द्रांश) 90 प्रतिशत का अनुदान व्यय देय होगा तथा 3 एच.पी. से 5 एच.पी. तक के सौर पम्पों पर 85 प्रतिशत का अनुदान व्यय देय होगा।
श्री जितेन्द्र गेहलोत -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी के उत्तर से संतुष्ट हूं लेकिन आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से पूछना चाहता हूं कि मजरे/टोले और वनवासियों को सोलर ऊर्जा पंप देने का कार्य मध्यप्रदेश की सरकार कर रही है और जो "मुख्यमंत्री सोलर पंप योजना" है उसके संदर्भ में मैं कहना चाहता हूं कि 3 हार्सपॉवर और 5 हार्सपॉवर पर जो 85% अनुदान देने की मध्यप्रदेश शासन की महती योजना है उसमें मंत्री जी के उत्तर में जिलेवार चिह्नित नहीं किया गया है. क्या जिलेवार चिह्नित करने के लिये रतलाम, मंदसौर और विशेषकर के आलोट विधानसभा क्षेत्र को लिया जायेगा, क्योंकि मेरे विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित जाति के किसान बहुतायत में रहते हैं और 50 वर्षों से अधिक निवास करने के बाद भी बिजली के तारों की कमी होने के कारण वहां पर बिजली नहीं पहुंच पाई है. वहां पर यदि सोलर पंप लगाये जाते हैं तो मेरे क्षेत्र के किसान शासन की इस योजना का लाभ ले सकेंगे.
श्री पारस चन्द्र जैन -- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य का प्रश्न है कि 3 हार्सपॉवर का जो सोलर पंप है उस पर "मुख्यमंत्री सोलर पंप योजना" के माध्यम से सरकार के द्वारा 90% अनुदान देने की बात है और 5 हार्सपॉवर तक के जो पंप हैं उस पर 85% अनुदान व्यय देय होगा. जो भी अनुसूचित जाति का व्यक्ति है उसको यह पंप देने का प्रावधान है लेकिन जहां पर बिजली नहीं है वहां के लोगों के लोगों को पहले इस योजना में सोलर पंप देने का प्रावधान है.
श्री जितेन्द्र गेहलोत - ठीक है, अध्यक्ष जी आपको भी और माननीय मंत्री जी को भी बहुत बहुत धन्यवाद.
पुरातत्व महत्व के स्थलों का पर्यटन स्थल के रूप में विकास
[संस्कृति]
7. ( *क्र. 1770 ) श्री सत्यपाल सिंह सिकरवार : क्या राज्यमंत्री, संस्कृति महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) मुरैना जिले में पुरातत्व एवं ऐतिहासिक महत्व के कौन-कौन से स्थल किन-किन स्थानों पर स्थित हैं, स्थानों के नाम, स्थल का प्रकार सहित पूर्ण जानकारी दी जावे। (ख) क्या उक्त ऐतिहासिक तथा पुरातत्व महत्व के स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है? यदि हाँ, तो शासन द्वारा इस दिशा में क्या पहल की है? आवागमन के रास्ते, सौंदर्यीकरण सहित पूर्ण जानकारी दी जावे। (ग) क्या उक्त स्थलों में से अधिकांश रख-रखाव के अभाव में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में जा पहुंचे हैं? यदि हाँ, तो इसके स्वरूप को विकसित एवं व्यवस्थित रखने हेतु शासन द्वारा वर्ष 2015, 2016 में कितनी राशि आवंटित की? (घ) मुरैना जिले को पर्यटन के नक्शे पर उभारने हेतु क्या शासन द्वारा कोई कार्य योजना बनाई गई है? यदि हाँ, तो क्या-क्या कार्य प्रस्तावित हैं?
राज्यमंत्री, संस्कृति ( श्री सुरेन्द्र पटवा ) : (क) मुरैना जिले के पुरातत्व एवं ऐतिहासिक महत्व के स्थलों की पूर्ण जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (ख) वर्तमान में कोई योजना प्रस्तावित नहीं है। (ग) इन स्मारकों का समय-समय पर अधिकारियों द्वारा निरीक्षण होता रहता है, उसी तरह से उसका रख-रखाव किया जाता है, परिवर्तित समय में मौसम के प्रभाव से कुछ स्मारक क्षतिग्रस्त हैं। उनका विभाग द्वारा समय-समय पर अनुरक्षण कार्य कराया जाता है। वर्ष 2015-16 के लिये सबलगढ़ का किला, सबलगढ़ हेतु राशि रूपये 99.00 लाख एवं हुसैनपुरा की गढ़ी एवं किला, हुसैनपुरा हेतु राशि रूपये 8.00 लाख आवंटित है। (घ) वर्तमान में कोई योजना प्रस्तावित नहीं है।
श्री सत्यपाल सिंह सिकरवार - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने आपके माध्यम से माननीय मंत्री महोदय से यह जानना चाहा था कि क्या मुरैना जिले के ऐतिहासिक तथा पुरातत्व महत्व के स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के रूप में सरकार की कोई योजना है. मुझे जो जवाब मिला है, उसमें माननीय मंत्री महोदय ने बताया है कि वर्तमान में उसमें कोई योजना प्रस्तावित नहीं है. मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री महोदय और सदन को जानकारी देना चाहता हूं कि मुरैना जिले में आठवीं और दसवीं सदी की कई ऐतिहासिक और पुरातत्व महत्व की इमारतें हैं, जिसमें मितावली है, जहां 64 योगिनी का मंदिर है. ऐसा कहा जाता है कि जब संत लूटियन मुरैना आए तो उन्होंने 64 योगिनी मंदिर को देखकर संसद भवन की रचना की, उसके बाद ऐसा भी कहा जाता है कि मुरैना का सेंडस्टोन संसद भवन में लगा है, यह बहुत ऐतिहासिक महत्व की इमारत है. बरहावली है, भटेश्वरा है, ककरमठ है, नरेश्वर है, नरेश्वर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित पांच ऐतिहासिक महत्व की इमारतें हैं. नरेश्वर में तो ऐसी स्थिति है कि वहां जाने का रास्ता भी नहीं है. राज्य पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा बहुत सारे जो मुरैना में महाभारत कालीन महत्व के स्थान है, जिसमें लिखी छाछ 86 गुफाओं की श्रंखला है.
अध्यक्ष महोदय - आप सीधे प्रश्न करें.
श्री सत्यपाल सिंह सिकरवार - माननीय अध्यक्ष महोदय, बस एक मिनट लूंगा, क्योंकि आज अकेला मेरा ही प्रश्न है, 25 में से कोई नहीं है.
अध्यक्ष महोदय - बाद में और लोगों के प्रश्न तो है.
श्री सत्यपाल सिंह सिकरवार - बहुत महत्व की बात है. नूराबाद का मुगलकालीन पुल है, नूरजहां बेगम का मकबरा है, हुसैनपुर की गढ़ी है, सबलगढ़ का किला है, भेंसवरा का शिवमंदिर, ऐंती का शिवमंदिर, विष्णु मंदिर, सुमावली की गढ़ी, भीमबैठिका और जहां कुन्तलपुर कुंती का जन्मस्थान है. ऐसा कहा जाता है कि वहां हरसिद्धि का मंदिर है.
अध्यक्ष महोदय - आप सीधे प्रश्न करिए.
श्री सत्यपाल सिंह सिकरवार - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं बताना चाहता हूं कि कितनी इमारतें हैं.
अध्यक्ष महोदय - आपने बता दिया है, अब आप यह पूछ लीजिए कि इन इमारतों के लिए क्या करेंगे.
श्री सत्यपाल सिंह सिकरवार - राजभोज की राजधानी है, कुन्तलपुर. मेरा यह कहना है कि बहुत ऐतिहासिक महत्व की ये इमारतें हैं, इनको संरक्षित करने का काम, पयर्टन स्थल में विकसित करने की क्या सरकार की आगामी कोई योजना है, यदि कोई योजना नहीं है तो कब तक ऐसी योजना बना ली जाएगी कि इनको पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जाए.
श्री सुरेन्द्र पटवा - माननीय अध्यक्ष महोदय, विधायक जी ने जो सवाल पूछा है. मुरैना और ग्वालियर जिले में जो स्वदेश योजना है हेरीटेज के अंतर्गत लगभग पूरे प्रदेश के लिए 99 करोड़ रूपए स्वीकृत हुए हैं, ग्वालियर जिले में साढ़े अठारह करोड़ रूपए उसमें से लगेंगे, उसके अलावा लगभग 6 करोड़ रूपए मुरैना के लिए बजट आवंटित हुआ है. विधायक जी को बताना चाहूंगा कि ककनमठ के लिए डे़ढ करोड़ रूपए, भटेश्वर के लिए डे़ढ करोड़ रूपए, पड़ावली के लिए डे़ढ करोड़ रूपए, मितावली के लिए डे़ढ करोड़ रूपए. इस तरह से पर्यटन क्षेत्र के लिए मुरैना जिले के लिए लगभग 6 करोड़ रूपए आवंटित हुए हैं और समय समय पर जो बात आपने पुरातत्व के संबंध में पूछी है, संरक्षण का कार्य वहां पर चल रहा है. लगभग 13 ऐसे स्थान है, वहां पर जिन्हें चिन्हित किया गया है. सबलगढ़ के लिए 99 रूपए का कार्य स्वीकृत हुए है, उसमें से 26 लाख रूपए खर्च हो चुके हैं और हुसैनपुरा में 8 लाख रूपए का टेण्डर हो चुका है, हुसैनपुरा की गढ़ी पर अभी काम शुरू होने वाला है.
श्री सत्यपाल सिंह सिकरवार - धन्यवाद माननीय मंत्री महोदय.
पन्ना विधान सभा क्षेत्रांतर्गत बिजली आपूर्ति
[ऊर्जा]
8. ( *क्र. 3113 ) श्री मुकेश नायक : क्या ऊर्जा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) जिला पन्ना के विधानसभा क्षेत्र पवई के विद्युत केन्द्र पवई अंतर्गत ग्राम बड़खेड़ा में कितनी अवधि से बिजली आपूर्ति बन्द है और क्या कारण हैं कि अब तक बिजली आपूर्ति शुरू नहीं की जा सकी है तथा कब तक बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी? (ख) लगभग 2000 की जनसंख्या वाले बड़खेड़ा ग्राम में बिजली के कितने उपभोक्ता हैं और उनमें से ऐसे कितने उपभोक्ता हैं जिन पर बिजली शुल्क बकाया है? (ग) विधानसभा क्षेत्र पवई जिला पन्ना अंतर्गत वर्ष 2011 से दिसम्बर 2016 तक कुल कितने अस्थाई दो एच.पी. एवं तीन एच.पी. टि.सी. एवं स्थाई विद्युत कनेक्शन किये गये हैं? वर्षवार जानकारी उपलब्ध करावें। (घ) उपरोक्त अवधि में कितने अस्थाई एवं स्थाई कनेक्शन प्रदाय किये गये हैं? संख्या वितरण केन्द्रवार बतायें। क्या इन विद्युत कनेक्शनों में से कुछ मामलों में विद्युत चोरी की शिकायतें भी मिली हैं? यदि हाँ, तो शिकायतों की संख्या और उन पर की गई कार्यवाही की जानकारी देवें।
ऊर्जा मंत्री ( श्री पारस चन्द्र जैन ) : (क) जिला पन्ना के विधानसभा क्षेत्र पवई के अन्तर्गत ग्राम बड़खेड़ा में दिनांक 17 अप्रैल 2016 से बाढ़ और अतिवृष्टि के कारण विद्युत लाइन क्षतिग्रस्त होने से बिजली आपूर्ति बंद है। उक्त कार्य हेतु प्राक्कलन तैयार कर सुधार कार्य प्रारम्भ किया गया था, किंतु कार्य के दौरान ट्रांसफार्मर की स्थिति के संबंध में विवाद के कारण गांव के लोगों द्वारा व्यवधान उत्पन्न किये जाने से कार्य पूर्ण नहीं हो सका है एवं बिजली आपूर्ति शुरू नहीं की जा सकी है। इस संबंध में वितरण कंपनी के संबंधित अधिकारी द्वारा थाना प्रभारी को सहयोग हेतु पत्र लिखा गया है। व्यवधान खत्म होने पर कार्य पूर्ण कर बिजली आपूर्ति सुचारू रूप से चालू की जा सकेगी। (ख) ग्राम बड़खेड़ा में 74 उपभोक्ता हैं जिनमें से 71 उपभोक्ताओं पर विद्युत बिलों की राशि बकाया है। (ग) पवई विधान सभा क्षेत्रांतर्गत प्रश्नाधीन अवधि में प्रदाय किये गये 2 एच.पी. एवं 3 एच.पी. के अस्थायी एवं स्थायी विद्युत कनेक्शनों का वित्तीय वर्षवार विवरण संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (घ) पवई विधानसभा क्षेत्रांतर्गत आने वाले 4 वितरण केन्द्रों रैपुरा, शाहनगर,पवई एवं सिमरिया में प्रश्नाधीन अवधि में क्रमश: 3508, 2906, 3672 एवं 6806 इस प्रकार कुल 16892 अस्थाई एवं क्रमश: 2684, 5524, 5973 एवं 6925, इस प्रकार कुल 21106 स्थाई कनेक्शन प्रदाय किये गये हैं। उपरोक्त कनेक्शनों में विद्युत चोरी की शिकायतें नहीं मिली हैं, अत: प्रश्न नहीं उठता।
श्री मुकेश नायक - माननीय अध्यक्ष महोदय, इस प्रश्न पर एक बार और सदन में बातचीत हो चुकी है. माननीय मंत्री जी ने अपने उत्तर में बताया है कि गांव के लोगों का गतिरोध है, जिसके कारण 9 महीने से उस गांव में बिजली नहीं आ पा रही है. मंत्री जी यह बताये कि विधायक का पूरा स्टाफ, बिजली विभाग के पूरे कर्मचारी और गांव के लोगों की कब मीटिंग हुई थी, उस गांव में, कितनी तारीख को मीटिंग हुई थी.
श्री पारस चन्द्र जैन - माननीय अध्यक्ष महोदय, हमारे साथी बहुत सीनियर है और मंत्री भी रहे हैं. मैं इनसे यह चाहता हूं कि थोड़ी सी हेल्प यदि हमारे साथी कर देते तो मैं समझता हूं कि वह समस्या हल हो सकती है, मेरे पास वहां का नक्शा भी है. इस नक्शे के तहत वहां डीपी लगी हुई है यदि सीधे 9 खंभे लगते हैं तो, मैं आज सदन में आश्वासन देता हूं कि यदि सीधे खंभे लगाने की बात ये कह देते हैं तो हम उस काम को बहुत जल्दी पूरा कर देंगे. सरकार की मंशा यह है कि गांव में लाइट मिलनी चाहिए, कई दिनों का यह मामला है और आपसी विवाद का मामला है. मैं चाहता हूं यदि यह बैठ जाए और यदि यह कहते हैं तो जिस तारीख को ये कहेंगे, उस तारीख को हमारे अधिकारी लोग चले जाएंगे और उस समस्या का हल निकाल देंगे.
श्री मुकेश नायक - अध्यक्ष महोदय, मैं हल निकाल दूंगा, लेकिन मैं यह कहना चाहा रहा हूं कि जिस गतिरोध की बात माननीय मंत्री जी कर रहे हैं वह केवल इतना है कि वर्तमान में गांव में जहां अधिकारी ट्रांसफार्मर लगा रहे हैं, वह स्थल गांव की गतिविधियों का केन्द्र है. वहां बच्चे खेलते हैं, हर साल वहां रामलीला होती है. देवी जी, काली जी और गणेश जी की प्रतिमाएं वहां रखी जाती हैं. गांव वालों का केवल इतना कहना था कि इस स्थान को छोड़ करके गांव में कहीं भी आप ट्रांसफार्मर लगा दें, लेकिन उसके लिये भी विभाग तैयार नहीं है, कह रहे हैं कि विवाद है. मैं साथ में जाने और सहयोग करने के लिये तैयार हूं. मेरा विधान सभा क्षेत्र है और मेरे विधान सभा क्षेत्र के एक गांव में 9 महीने बिजली नहीं आने से कितनी तकलीफ होती होगी, यह मंत्री जी को समझना चाहिये.
श्री पारस चन्द्र जैन -- अध्यक्ष महोदय, यह बात जो माननीय सदस्य कह रहे हैं, मैं भी समझ रहा हूं. मेरी सरकार भी बिजली देना चाहती है. मैं कहां मना कर रहा हूं, लेकिन जो समस्या है, जैसा आपने कहा, यदि आप कहेंगे, तो सदन के बाद मैं भी आपके साथ वहां चले चलूंगा. माननीय सदस्य जी, आप बुलाओ तो सही.
श्री मुकेश नायक -- अध्यक्ष महोदय, मैं मंत्री जी के जवाब से सहमत हूं, संतुष्ट हूं और मंत्री जी चलें. हमारा उद्देश्य है कि उस गांव में बिजली आना चाहिये. आप बहुत व्यस्त हैं, आप न जायें. एक छोटे से अधिकारी को मेरे साथ भेज दें, इस गतिरोध को हम वहां एक मिनट में खत्म कर देंगे. वैसे वहां कोई गतिरोध है ही नहीं.
श्री पारस चन्द्र जैन -- माननीय सदस्य जी, इसमें यह है कि ग्राम पंचायत जो है, वह ट्रांसफार्मर वहीं रखना चाहती है. मेरे पास उनका लेटर भी है.
श्री मुकेश नायक -- अध्यक्ष महोदय, मैं खुद वहां गया हूं. मेरा क्षेत्र है. आप मेरी बात पर विश्वास नहीं कर रहे हैं, कमाल है.
श्री पारस चन्द्र जैन -- अध्यक्ष महोदय, आपके साथ अधिकारी को भेज देंगे. आप पर विश्वास कर लिया साहब. आप पर तो हम विश्वास वैसे ही करते हैं. आप हमारे बहुत पुराने मित्र हैं.
अध्यक्ष महोदय -- मंत्री जी, आप किसी वरिष्ठ अधिकारी को भेज दें, जिससे वहीं निर्णय हो सके.
श्री पारस चन्द्र जैन -- अध्यक्ष महोदय, आपके आदेश का पालन करेंगे.
राजस्व मंत्री (श्री उमाशंकर गुप्ता) -- अध्यक्ष महोदय, मुकेश नायक जी पर हम सब तो भरोसा करते हैं, लेकिन इनकी पार्टी नहीं करती. ..(हंसी)...
जाँच प्रतिवेदन की अनुशंसाओं पर कार्यवाही
[सामान्य प्रशासन]
9. ( *क्र. 1240 ) सुश्री हिना लिखीराम कावरे : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा जीरो टॉलरेंस की मंशा के अनुरूप भारतीय प्रशासनिक सेवा, राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों तथा लोकायुक्त के द्वारा दिए गए जाँच प्रतिवेदन जो विभिन्न विभागों में लंबित पड़े हैं, ऐसे जाँच प्रतिवेदन की अनुशंसाओं पर कार्यवाही न करने के लिए क्या शासन तथा विभाग प्रमुखों पर कार्यवाही की जाएगी। (ख) प्रधानमंत्री भारत सरकार द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों पर चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच 90 दिन में पूरी करने संबंधी निर्देश का पालन क्या म.प्र. में भी किया जाएगा? (ग) जाँच प्रतिवेदन में की गयी अनुशंसा पर एक निश्चित समय-सीमा में कार्यवाही हो, इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग क्या कोई गाइड लाइन तैयार करेगा?
मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) :
सुश्री हिना लिखीराम कावरे -- अध्यक्ष महोदय, मेरे प्रश्न के जवाब में मंत्री जी ने लोकायुक्त के जांच प्रतिवेदनों पर तो उत्तर दे दिया, लेकिन मैं आपके माध्यम से मंत्री जी से जानना चाहता हूं कि भारतीय प्रशासनिक सेवा एवं राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों द्वारा जो जांच की जाती है और उसके जो जांच प्रतिवेदन शासन स्तर पर या विभाग प्रमुख के पास आते हैं, उस पर क्या आप कोई समय सीमा तय करेंगे.
राज्यमंत्री, सामान्य प्रशासन (श्री लाल सिंह आर्य) -- अध्यक्ष महोदय, समय सीमा पहले से तय है, मैंने यह उत्तर में आपको बताया भी है.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे -- अध्यक्ष महोदय, यह लोकायुक्त के जांच प्रतिवेदनों पर है. लेकिन आपके प्रशासनिक सेवा एवं राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों पर पर समय सीमा तय नहीं है. मैं मंत्री जी को यह यह उदाहरण देकर बताना चाहती हूं कि अभी बालाघाट जिले में कुछ वर्षों पहले आदिवासी क्षेत्रों में, जहां मच्छर बहुत ज्यादा पाये जाते हैं, वहां पर मेडिकेटेड मच्छरदानी देने के संबंध में एक भारी भ्रष्टाचार हुआ है. मुझे अच्छे से पता है कि 6 महीने पहले बालाघाट के अपर कलेक्टर ने पूरे उस प्रकरण की जांच करके आपके पास प्रतिवेदन भिजवा दिया है. लेकिन अभी तक उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है. यह समय सीमा आप तय कर दें, तो निश्चित रुप से ऐसे कई प्रकरण आपके सामने आयेंगे, जिन पर समय सीमा के कारण आज भी कोई कार्यवाही नहीं हुई है.
श्री लाल सिंह आर्य -- अध्यक्ष महोदय, भारतीय प्रशासनिक सेवा नियम, 1969 के नियमों के अन्तर्गत भारतीय प्रशासनिक अधिकारी के विरुद्ध विभागीय जांच के संबंध में विभागीय जांच पूर्ण करने की समय सीमा 6 माह है. विभागीय जांच अवधि विस्तारित करने की सीमा 6 माह है. जांच प्रतिवेदन में अभ्यावेदन प्रस्तुत करने की समय सीमा अपचारी अधिकारी द्वारा 30 दिन में है. अभ्यावेदन प्रस्तुत करने की समय सीमा अधिकतम वृद्धि 90 दिन है. यह पहले से तय है. माननीय सदस्या जिस विषय को बता रही हैं, वह विषय चूंकि प्रश्न में पूछा नहीं गया है, इसलिये हमारी उसके संबंध में तैयारी नहीं है. आपके पास अगर कोई अथेंटिक जानकारी है, आप मुझे बता दें और अगर वह कहीं लंबित होगा, तो हम उस पर कार्यवाही के लिये निर्देश जारी करेंगे.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे -- अध्यक्ष महोदय, मैंने मंत्री जी को यह उदाहरण के रुप में बताया था. मेरा कहने का मतलब यह है कि जब भी हम अधिकारियों के पास कोई शिकायत करते हैं, तो उनका एक ही जवाब होता है कि आप चाहे जिससे जांच करवा लो. चुने हुए जन प्रतिनिधियों को अधिकारियों द्वारा यह जवाब दिया जाता है कि आप चाहे जिससे जांच करवा लो, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, आपका जांच प्रतिवेदन जब विभाग में या शासन के पास जायेगा तो उस पर कोई कार्यवाही होने वाली नहीं है. इसलिये यह तो मैंने मात्र मच्छरदानी वाले प्रकरण का एक उदाहरण दिया था. मेरा कहना है कि इस पर समय सीमा में आप कार्यवाही करें, क्योंकि इस तरह का यदि जन प्रतिनिधियों के लिये अधिकारी रवैया अपनायेंगे, तो यह ठीक बात नहीं है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि मेरे प्रश्न में भी यह बात थी कि हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने, भारत सरकार द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों पर चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों की जांच 90 दिन में पूरी करने संबंधी बात कही है. माननीय मंत्री जी, अभी भी प्रधानमंत्री जी के बोलने के बाद भी उस आदेश का रास्ता देख रहे हैं, कम से कम उनकी बात का तो परिपालन कर दें. उनके आदेश का रास्ता न देखें.
श्री लाल सिंह आर्य - माननीय अध्यक्ष महोदय, चूँकि माननीय सदस्या ने जो बात कही है. वह लीक से हटकर गलत कही है, ऐसा नहीं है और भानोत जी चिन्ता न करें, राजधर्म का ईमानदारी से पालन करूँगा.
माननीय अध्यक्ष महोदय, जैसा कहा है कि कोई कार्यवाही नहीं होती है. दो वर्षों के अंतर्गत वर्ष 2015 में 339 अभियुक्तों की एवं वर्ष 2016 में 289 अभियुक्तों के विरूद्ध अभियोजन की स्वीकृति दी गई है. यदि कोई जांच चल रही है, उस विभाग द्वारा जांच की जा रही है. जब तक विभाग से जांच होकर, हमारे पास नहीं आएगी तब तक सामान्य प्रशासन विभाग कैसे कार्यवाही करेगा ? लोकायुक्त कैसे कार्यवाही करेगा ? इसलिए यह कहना गलत है कि कार्यवाही नहीं की जाती हैं. यदि आपको लगता है कि कोई अथेंटिक ऐसी चीज है तो आप उसे बताएं. अगर होगा तो उस पर शासन कार्यवाही करेगा.
अध्यक्ष महोदय - प्रश्न सं.10, श्री दिलीप सिंह शेखावत.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा सीधा-सीधा प्रश्न यह है कि यदि जांच हुई होती तो मेरे पास ..........
अध्यक्ष महोदय - आपके एक ही प्रश्न पर तीन-चार प्रश्न हो गए हैं. यह अच्छी बात नहीं है. दूसरे सदस्यों के भी प्रश्न हैं. अनुपूरक 2 प्रश्न पूछने को देते हैं, आपको अनुपूरक 4 प्रश्न पूछने को दिये.
विधानसभा क्षेत्र नागदा-खाचरोद में स्वीकृत कार्य
[ऊर्जा]
10. ( *क्र. 1233 ) श्री दिलीप सिंह शेखावत : क्या ऊर्जा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) प्रश्नकर्ता के विधानसभा क्षेत्र नागदा-खाचरोद के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में विभाग अंतर्गत विगत तीन वर्षों में विभिन्न योजनाओं में कितने कार्य स्वीकृत हुए हैं? स्वीकृत कार्यों में कितने कार्य पूर्ण हो चुके हैं एवं कितने कार्य अपूर्ण एवं अप्रारम्भ हैं? अपूर्ण एवं अप्रारम्भ रहने का कारण बतावें? (ख) यदि ठेकेदार द्वारा अनुबंध अवधि में कार्य पूर्ण नहीं किया तो उसके विरूद्ध क्या कार्यवाही की गयी? पूर्ण एवं अपूर्ण कार्यों की जानकारी, कार्य का नाम, स्वीकृत राशि सहित ग्रामवार एवं वार्डवार उपलब्ध करावें।
ऊर्जा मंत्री ( श्री पारस चन्द्र जैन ) : (क) विधानसभा क्षेत्र नागदा-खाचरोद के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में म.प्र. पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड, इन्दौर अंतर्गत विगत 3 वर्षों में विभिन्न योजनाओं के तहत कुल 1460 कार्य स्वीकृत हुए हैं। उक्त स्वीकृत 1460 कार्यों में से 1354 कार्य पूर्ण हो चुके हैं, 106 कार्य अपूर्ण हैं एवं क्षेत्र में ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जो स्वीकृत होकर प्रारंभ ही नहीं हुआ हो। विधानसभा क्षेत्र नागदा-खाचरोद के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में कार्य अपूर्ण रहने के मुख्य कारण राईट ऑफ वे की समस्या, ग्रामीणों द्वारा लाइन निर्माण के दौरान ट्रांसफार्मर स्थापना स्थल पर विवाद होने के कारण कार्य में व्यवधान उत्पन्न करना, निर्माण कार्य करने वाली एजेंसियों के पास कुशल श्रमिकों का पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं होना एवं समय से निर्माण सामग्री उपलब्ध नहीं होना आदि हैं। प्रश्नाधीन क्षेत्र में विगत 3 वर्षों में स्वीकृत/पूर्ण/अपूर्ण/अप्रारंभ कार्यों की योजनावार जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'अ' अनुसार है। (ख) प्रश्नाधीन क्षेत्र एवं अवधि में जिन ठेकेदार एजेंसियों द्वारा निर्धारित समय-सीमा में कार्य पूर्ण नहीं किया गया है, उनके विरूद्ध अनुबंध की शर्तों के अनुसार कार्यवाही करते हुए, उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों से लिक्विडेटेड डैमेज के रूप में पेनल्टी स्वरूप रू. 37.26 लाख की राशि काटी गई है, जिसका ठेकेदार एजेंसीवार विवरण पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'ब' अनुसार है। प्रश्नाधीन पूर्ण एवं अपूर्ण कार्यों के नाम एवं स्वीकृत राशि सहित, ग्रामवार/वार्डवार जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के क्रमश: प्रपत्र 'स' एवं 'द' अनुसार है।
श्री दिलीप सिंह शेखावत - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से पूछना चाहूँगा कि आपने जो 1354 कार्य पूर्ण बताए हैं. क्या उन कामों का मेरी उपस्थिति में भौतिक सत्यापन करवा लेंगे ? एक प्रश्न यह है और दूसरा यह है कि 1460 कामों से जो 106 कार्य नहीं हुए थे, उसमें 37.26 लाख रुपये की राशि आपने पेनाल्टी की काटी. मुझे यह बता दें कि यह राशि किन-किन कम्पनियों की काटी है ? तो ठीक होगा.
श्री पारस चन्द्र जैन - माननीय अध्यक्ष महोदय, जो सदस्य ने पूछा है कि किन किन कम्पनियों की राशि काटी है, वह जानकारी मैंने आंकड़ों में दी है बाकि जो जानकारी उन्होंने मांगी है, मैं उनको अलग-अलग विस्तृत जानकारी दे दूँगा.
श्री दिलीप सिंह शेखावत - माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने आपसे यह पूछा था कि क्या आप 1354 कामों का भौतिक सत्यापन मेरी उपस्थिति में करवा लेंगे ? क्योंकि मुझे, मेरे क्षेत्र में पता है कि कितने काम अभी भी अपूर्ण हैं और विशेषकर एक निवेदन करूँगा कि 10 जनवरी, 2016 को 33 केवी का ग्रिड का भूमि पूजन हुआ लेकिन आज भी आप मुझे उत्तर में यह दे रहे हैं कि वह कार्य अभी अपूर्ण है. दूसरा, कुशल श्रमिक कम्पनियों को नहीं मिलते हैं. मैं आपसे यह भी जानना चाहूँगा कि जिन ठेकेदारों को आप ठेका देते हैं, क्या आपने उनकी कुशलता के कुछ मापदण्ड तय किये हैं ? जैसे आई.टी.आई. होना चाहिए क्योंकि वह बिजली से संबंधित एक महत्वपूर्ण काम होता है.
श्री पारस चन्द्र जैन - माननीय अध्यक्ष महोदय, जो कम्पनियां काम करती हैं, वे आऊटसोर्स से रखते हैं और जो नियम आऊटसोर्स के हैं, हम उसका पूरा पालन करवाते हैं.
श्री दिलीप सिंह शेखावत - माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी मैं आपको बताना चाहूँगा कि आऊटसोर्स से करवाते हैं लेकिन मेरे ही क्षेत्र में अकुशल श्रमिकों से इतना महत्वपूर्ण काम कराया गया. वह अकुशल श्रमिक आईटीआई नहीं था, उसको पोल पर चढ़ाया और उसकी मृत्यु हो गई. मैं आपसे यह जानना चाहता हूँ कि जिस ठेकेदार को हम काम देते हैं कि जैसे आपने 25 का ट्रांसफॉर्मर लगाने को दिया और जब वह बीच में गारण्टी पीरियड में जल जाता है तो क्या उसको बदलते नहीं है ? तो क्या आप ऐसी व्यवस्था करेंगे.
अध्यक्ष महोदय - इसमें कहां उद्भूत हो रहा है.
विकासखण्ड कुसमी में कार्यालय भवन का निर्माण
[महिला एवं बाल विकास]
11. ( *क्र. 2069 ) श्री कुंवर सिंह टेकाम : क्या महिला एवं बाल विकास मंत्री महोदया यह बताने की कृपा करेंगी कि (क) क्या सीधी जिले के अंतर्गत विकासखण्ड कुसमी में महिला एवं बाल विकास विभाग का कार्यालय भवन क्षतिग्रस्त है? (ख) क्या प्रश्नांश (क) के संदर्भ में कार्यालय भवन हेतु नवीन भवन बनाने के लिये शासन स्तर पर कोई प्रस्ताव लंबित हैं? यदि हाँ, तो कब तक स्वीकृति प्रदान कर दी जाएगी? यदि नहीं, तो भवन निर्माण के लिये शासन स्तर पर क्या कार्यवाही की जाएगी? (ग) सीधी/सिंगरौली जिले के अंतर्गत विकासखण्ड कुसमी, मझौली एवं देवसर में कितने आंगनवाड़ी केन्द्र संचालित हैं? सूची उपलब्ध करायें। कितने आंगनवाड़ी केन्द्र भवन विहीन हैं? भवन विहीन आंगनवाड़ी केन्द्रों के लिये भवन कब तक बना लिये जावेंगे?
महिला एवं बाल विकास मंत्री ( श्रीमती अर्चना चिटनिस ) : (क) जी नहीं। सीधी जिले के अंतर्गत विकासखण्ड कुसमी में परियोजना कार्यालय स्थानीय पंचायत भवन में संचालित है। (ख) जी नहीं। वर्तमान में विभाग के कार्यालय भवन निर्माण की स्वीकृति का कोई प्रावधान नहीं है। अतः शेष का प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। (ग) सीधी एवं सिंगरौली जिले के विकासखण्ड कुसमी, मझौली एवं देवसर में कुल 1000 आंगनवाड़ी केन्द्र संचालित हैं। सूची पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। विकासखण्ड कुसमी, मझौली एवं देवसर में कुल संचालित 1000 आंगनवाड़ी केन्द्रों में से 185 आंगनवाड़ी केन्द्र भवनविहीन (किराये पर संचालित) हैं। इनमें से विकासखण्ड देवसर में 49 भवन निर्माणाधीन हैं। आंगनवाड़ी भवनों का निर्माण कार्य वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। अतः समय-सीमा दिया जाना संभव नहीं है।
श्री कुंवर सिंह टेकाम - माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री महोदया बहुत सजग और संवेदनशील हैं. उन्होंने मेरे प्रश्न में स्वीकार किया है कि आदिवासी विकासखण्ड कुसमी के अंतर्गत महिला बाल विकास परियोजना कार्यालय भवन नहीं है और वह पंचायत भवन में संचालित हो रहा है. मैंने कहा था कि महिला बाल विकास भवन का वहां निर्माण कराया जायेगा तो वह इसमें नहीं लिखा है. मेरा आग्रह है कि क्या महिला बाल विकास परियोजना कार्यालय आदिवासी विकासखण्ड मुख्यालय में बनाया जायेगा.
श्रीमती अर्चना चिटनिस - माननीय अध्यक्ष महोदय, वर्तमान में परियोजना कार्यालय भवन बनाये जाने की कोई वित्तीय व्यवस्था विभाग के पास नहीं है. जैसा कि माननीय सदस्य ने कहा है कि हम माननीय वित्त मंत्री जी से और माननीय ट्रायबल विभाग, दोनों से आग्रह करके को-ऑर्डिनेट करके बनाने का प्रयास करेंगे. यह जो आंगनवाड़ी भवन हैं उनका शीघ्रातिशीघ्र निर्माण कार्य पूरा करवाकर उनमें आंगनवाड़ी भवन संचालित कराएंगे क्या?
श्रीमती अर्चना चिटनिस-- निश्चित तौर पर जो ऑनगोइंग काम हैं उनको शीघ्र ही पूर्ण करवाकर आंगनवाड़ी भवन का संचालन वहां प्रारंभ कर देंगे.
श्री कुंवर सिंह टेकाम- दूसरा प्रश्न यह है कि परियोजना कार्यालय के भवन की स्वीकृति कब तक प्रदान कर देंगे इसका आश्वासन भी दे दीजिए.
अध्यक्ष महोदय-- आप आश्वासन दे दीजिए.
श्रीमती अर्चना चिटनिस-- अध्यक्ष महोदय, इसका प्रयास किया जाएगा. मैं कोई आश्वासन नहीं दे सकती.
दुधी सिंचाई परियोजना का कार्य प्रारंभ किया जाना
[नर्मदा घाटी विकास]
12. ( *क्र. 2392 ) श्री ठाकुरदास नागवंशी : क्या राज्यमंत्री, नर्मदा घाटी विकास महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या प्रश्नकर्ता द्वारा पत्र क्रमांक 751/आर पिपरिया दिनांक 29/08/2016 द्वारा कार्यपालन यंत्री रानी अवंती बाई, लोधी नगर, नहर संभाग नरसिंहपुर को दुधी सिंचाई परियोजना बनखेड़ी जिला होशंगाबाद के संबंध में पत्र प्रेषित किया गया, जिसकी प्रतिलिपि सदस्य अभियांत्रिकी नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल को प्रेषित की गई, उक्त पत्र में चाही गई जानकारी प्रेषित न करने का क्या कारण है? (ख) क्या सामान्य प्रशासन विभाग के आदेशानुसार माननीय विधायकों द्वारा चाही गई जानकारी अनिवार्य रूप से 30 दिवस की समय-सीमा में प्रदान करने के आदेश हैं? यदि हाँ, तो आदेश का पालन न करने के लिये कौन उत्तरदायी हैं? (ग) क्या परियोजना के क्रियान्वयन हेतु सर्वे कार्य कराया गया ततपश्चात् दुधी सिंचाई परियोजना के विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन की डी.पी.आर. हेतु दिसम्बर 2014 में सर्वेक्षण कार्य हेतु 03 माह का समय प्रदान किया गया था तथा 01 वर्ष के अन्दर डी.पी.आर. तैयार कर प्रस्तुत किये जाने का लक्ष्य था? यदि हाँ, तो डी.पी.आर. तैयार कर कब तक उक्त कार्य की निविदायें जारी कर कार्य प्रांरभ हेतु टेंडर आहूत किये जावेगें? (घ) वर्तमान में यह प्रोजेक्ट किस स्थिति में है?
राज्यमंत्री, नर्मदा घाटी विकास ( श्री लालसिंह आर्य ) : (क) कार्यपालन यंत्री, रानी अवंती बाई लोधी सागर नहर संभाग नरसिंहपुर के पत्र क्रमांक 1486 A /तकनीकी दिनांक 18/11/2016 द्वारा उत्तर प्रेषित किया जा चुका है। (ख) जी हाँ। माननीय सदस्य का पत्र सीधे कार्यपालन यंत्री को प्राप्त नहीं होने के कारण नियत समय-सीमा में उत्तर नहीं दिया जा सका। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ग) एवं (घ) शेष सर्वेक्षण कार्य जून 2016 में पूर्ण किया जाकर डी.पी.आर. विभागीय तौर पर तैयार की जा रही है। डी.पी.आर. स्वीकृत होने के उपरांत निविदाएँ जारी कर टेण्डर आहूत किये जायेंगे।
श्री ठाकुर दास नागवंशी-- अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी से सीधा-सीधा प्रश्न करना चाहता हूं और सीधा सीधा उत्तर आ जाए यही मेरा निवेदन है कि वह सदन में घोषणा कर दें कि दुधी सिंचाई परियोजना का डी.पी.आर. तैयार हो जाए और सालों में नहीं महीनों में घोषणा करें कि कितने महीनों में डी.पी.आर. तैयार हो जाएगा और इसके लिए मैं उन्हें अभी से धन्यवाद देना चाहता हूं.
राज्यमंत्री, सामान्य प्रशासन (श्री लाल सिंह आर्य)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य नागवंशी जी ने जो उस क्षेत्र की किसानों के हित की जो बात की उस दुधी परियोजना की डी.पी.आर. बन गई है उसका परीक्षण हमारे सी.ई. स्तर पर और अभियांत्रिकी स्तर पर चल रहा है. बहुत सारे क्लीयरेंस रहते हैं. 6 महीने के अंदर यह डी.पी.आर. प्रस्तुत कर दी जाएगी.
श्री ठाकुरदास नागवंशी-- बहुत बहुत धन्यवाद.
प्रश्न संख्या 13 (अनुपस्थित)
लोकायुक्त मे दर्ज प्रकरणों में कार्यवाही
[सामान्य प्रशासन]
14. ( *क्र. 3601 ) श्री हर्ष यादव : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) लोकायुक्त द्वारा वर्ष 2013-14 से 2015-16 तक सागर संभाग में आय से अधिक संपत्ति के मामलों में कितने छापे मारे गये? रिश्वत लेने के कितने ट्रेप किये गये? जिला, विभाग, पद, शासकीय सेवक नाम सहित बतायें। (ख) प्रश्नांश (क) में उल्लेखित कितने मामलों में कोर्ट में चालान प्रस्तुत किया गया? कितने मामलों में चालान किस कारण से प्रस्तुत नहीं किया गया? जिला, विभाग, पद, शासकीय सेवक के नाम सहित बतायें। कितने प्रकरणों में खात्मा लगाया गया है? (ग) वर्ष 2014-15 एवं 2015-16 में रिश्वत में ट्रेप एवं आय से अधिक संपत्ति के छापे वाले प्रकरणों में सागर संभाग में कौन-कौन शासकीय सेवक, अपने स्थान पर यथावत पदस्थ हैं तथा उनका स्थान परिवर्तन नहीं किया गया, किस नियम से वह उसी स्थान पर पदस्थ हैं?
मुख्यमंत्री, सामान्य प्रशासन (श्री शिवराज सिंह चौहान) --
श्री हर्ष यादव-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा विषय बहुत ही संवेदनशील और गम्भीर मामला है. यह लोकायुक्त संगठन से जुडा़ हुआ है. लोकायुक्त संगठन द्वारा जो ट्रेप की कार्यवाही की जाती है आय से अधिक संपत्ति के मामलों में कार्यवाही की जाती है उसमें लंबे समय तक चालान पेश नहीं किया जाता है. बहुत सारे मामले हमारे संभाग के भी हैं, पूरे प्रदेश के मामले हैं. मैं माननीय मंत्री जी से पूछना चाहता हूं कि न्याय व्यवस्था में, कानून व्यवस्था में चालान प्रस्तुत करने की कोई समय सीमा तो होगी. दूसरा इसी संबंध में एक और विषय है बहुत सारे मामले ट्रेप के होते हैं,आय से अधिक संपत्ति वाले मामले होते हैं जो विभाग द्वारा वहीं खत्म कर दिए जाते हैं. शासन के द्वारा कौन सा अधिकार लोकायुक्त संगठन को दिया गया है आप दोनों की समय सीमा बताने का कष्ट करें.
राज्यमंत्री, सामान्य प्रशासन (श्री लाल सिंह आर्य)-- अध्यक्ष महोदय, यह कहना गलत है कि चालान प्रस्तुत नहीं होते हैं.
श्री हर्ष यादव-- अध्यक्ष महोदय, मेरा कहना था कि चालान समय सीमा में प्रस्तुत नहीं होते.
अध्यक्ष महोदय -- पहले आप अपना उत्तर तो सुन लीजिए.
श्री लाल सिंह आर्य -- मैं आपको जानकारी दे रहा हूं आपने कहा खात्मे के मामलों को वहीं के वहीं खत्म कर दें. लेकिन यह बिलकुल गलत है. पांच का खात्मा लगा है. वह भी न्यायालय के माध्यम से लगा है. 153 प्रकरणों में चालान प्रस्तुत हुए हैं. मेरे पास इसकी वर्षवार जानकारी भी है. ट्रेप 191 हुए थे वर्ष 2013 से लेकर 2014 तक आय से अधिक संपत्ति के चार मामले थे. हमने 153 में चालान जारी कर दिया. पांच खात्मे न्यायालय के माध्यम से लगे हैं केवल विभाग स्तर पर कुछ प्रकरण अभी परीक्षणाधीन हैं या लोकायुक्त स्तर पर हैं. जैसे ही वह पूर्ण होंगे उनके खिलाफ भी अभियोजन की स्वीकृति मिलेगी.
श्री हर्ष यादव-- मेरा प्रश्न यह है कि चालान प्रस्तुत करने की कोई समय सीमा तो होगी. चालान 90 दिन में प्रस्तुत होना चाहिए. परंतु पूरे प्रदेश के ऐेसे बहुत सारे मामले हैं और हमारे संभाग के कि 90 दिन होने के बावजूद भी पूरी नौकरी शासकीय अधिकारी कर्मचारी उसी जगह पर उसी स्थान पर कर लेता है. उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती है. बहुत से ऐसे संवेदनशील मामले हैं.
अध्यक्ष महोदय-- उनका उत्तर तो आने दीजिए.
श्री तरुण भनोत--90 दिन की समय सीमा जानबूझकर अधिकारी निकल जाने देते हैं ताकि कोर्ट में केस कमजोर हो जाए और उसकी जमानत हो जाए. इसलिए 90 दिन में चालान प्रस्तुत नहीं करते हैं.
अध्यक्ष महोदय-- जो आप कह रहे हैं उनका भी प्रश्न वही है.
श्री लाल सिंह आर्य-- अध्यक्ष महोदय, ऐसा नहीं है जो 90 दिन के अंदर चालान पेश नहीं करेगा, यदि कोई अधिकारी ऐसी कार्यवाही करता है तो उसके खिलाफ भी अनुशासनात्मक कार्यवाही का निर्देश है. ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि कोई 90 दिन तक चालान पेश नहीं करता है. माननीय सदस्य ने एक लंबा प्रश्न कर दिया मेरा कहना यह है कि आप अथेंटिक चीज बताइए. कोई चीज रह गई हो कि यह पूरी कार्यवाही हो गई इसमें यह नहीं हो रहा है तो आप बताइए हम उस पर कार्यवाही करेंगे.
श्री हर्ष यादव--माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री महोदय, सागर जिले और संभाग के संबंध में कितने अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की गई है जिन्होंने समय-सीमा में चालान प्रस्तुत नहीं किए उसके बारे में बता दें. मैं मेरे संभाग और जिले की स्थिति बता रहा हूँ जो अधिकारी, कर्मचारी ट्रेप हुए वे आज भी उसी स्थान पर पदस्थ हैं. यह बहुत बड़ा मामला है, गंभीर मामला है. अध्यक्ष महोदय,मैं आपका संरक्षण चाहता हूँ. उनको अभी तक नहीं हटाया गया है वे लूट रहे हैं. वे अधिकारी, कर्मचारी यह मानते हैं कि हमारी तो नौकरी जाने वाली है लूट लो, लूट चल रही है.
श्री लाल सिंह आर्य--माननीय अध्यक्ष महोदय, यह कहना कि हर अधिकारी लूट रहे हैं यह आपत्तिजनक है.
श्री हर्ष यादव--माननीय मंत्री जी लोकायुक्त संगठन वाले.
श्री लाल सिंह आर्य-- मैं आपका सम्मान करता हूँ मेरा कहना है कि आप कोई अथेंटिक चीज तो बताओ, स्पेसिफिक बताओ.
श्री के.पी. सिंह--माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी स्पेसिफिक मांग रहे हैं मैं स्पेसिफिक बता रहा हूँ. हर्ष यादव जी के पास स्पेसिफिक जानकारी नहीं मैं स्पेसिफिक दे रहा हूँ.
अध्यक्ष महोदय-- सागर संभाग से संबंधित होना चाहिए.
श्री के.पी. सिंह--शिवपुरी जिले में एडीएम.
अध्यक्ष महोदय--आदरणीय सिंह साहब आप बहुत वरिष्ठ सदस्य हैं, यह कहां उद्भूत हो रहा है.
श्री के.पी. सिंह--मंत्री जी स्पेसिफिक जानकारी मांग रहे हैं मैं स्पेसिफिक जानकारी दे रहा हूँ.
अध्यक्ष महोदय--सागर जिले की जानकारी दीजिए जो प्रश्न है उसकी जानकारी देना पड़ेगी.
श्री के.पी. सिंह--यह मध्य प्रदेश के मंत्री हैं कि सागर के मंत्री हैं ? मैं नाम लेकर उदाहरण बता रहा हूँ इसमें क्या दिक्कत है. पर्टिक्यूलर उदाहरण बता रहा हूँ. वे उदाहरण मांग रहे हैं हम उदाहरण दे रहे हैं.
अध्यक्ष महोदय--आपका उदाहरण नहीं चलेगा, सागर का उदाहरण चलेगा.
श्री हर्ष यादव--अध्यक्ष महोदय, मैं सागर जिले का उदाहरण बता रहा हूँ वैसे तो बहुत सारे उदाहरण हैं मैं बताना नहीं चाह रहा हूं. आनंद, एडीओ सिंचाई विभाग में हैं यह ट्रेप हो चुके हैं आज तक इनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई है. क्या मंत्री जी ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही करेंगे. यह एक उदाहरण है बहुत सारे और नाम हैं जो मैं आपको बता सकता हूँ. ऐसे सभी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही होना चाहिए.
श्री लाल सिंह आर्य--माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने नाम बताया है मैं आज ही दिखवा लूंगा.
श्री तरुण भनोत--बहुत सारे ऐसे अधिकारी कर्मचारी हैं.
अध्यक्ष महोदय--भनोत जी बैठ जाइये, उनका समाधान हो रहा है और सबका ही समाधान हो रहा है. आप उत्तर ही नहीं आने देते हैं.
श्री लाल सिंह आर्य--माननीय अध्यक्ष महोदय, यह कहना गलत है कि बहुत सारे अधिकारी वहां पदस्थ हैं, लेकिन माननीय सदस्य ने आनंद का नाम लिया है हम अधिकारियों को निर्देश जारी करेंगे कि यदि यह प्रक्रिया में है और ऐसा होगा तो उनके खिलाफ कार्यवाही करेंगे.
श्री हर्ष यादव--मात्र एक अधिकारी की बात नहीं है. मैं जिले और संभाग की बात कर रहा हूँ ऐसे बहुत सारे मामले हैं. मैं नाम भी बता दूंगा मगर बताना नहीं चाह रहा हूँ.
अध्यक्ष महोदय--ठीक है आप भी राजी हैं वे भी राजी हैं.अब आप लोग बैठ जाएं इस प्रश्न पर काफी लंबी चर्चा हो गई है.
शहडोल जिलांतर्गत कुपोषित बच्चे
[महिला एवं बाल विकास]
15. ( *क्र. 2082 ) श्रीमती प्रमिला सिंह : क्या महिला एवं बाल विकास मंत्री महोदया यह बताने की कृपा करेंगी कि (क) कुपोषण दूर करने के लिए राज्य शासन क्या प्रयास कर रहा है? इस संबंध में शासन की योजनाओं व निर्देशों से अवगत करावें। (ख) क्या जिला शहडोल अंतर्गत कुपोषण की गंभीर समस्या है जिसके बारे में जिम्मेदार अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों व समाचार पत्रों के माध्यम से समय-समय पर अवगत कराया जाता है? फिर भी समस्या यथावत क्यों है? (ग) विगत 5 वर्ष में जिले में पाये गये कुपोषित बच्चों व शासन के प्रयास से कुपोषण मुक्त हुए बच्चों की जानकारी दें? (घ) क्या इस संवेदनशील मुद्दे पर लापरवाही बरती जा रही है? यदि हाँ, तो विभाग के लापरवाह अधिकारियों के विरूद्ध कोई कार्यवाही भी की जावेगी? यदि हाँ, तो कब तक, नहीं तो क्यों?
महिला एवं बाल विकास मंत्री (श्रीमती अर्चना चिटनिस)--
(ख) कुपोषण के संबंध में प्राप्त प्रकरणों/शिकायतों के संबंध में समय-समय पर कार्यवाही की जाती है। विभागीय योजनाओं के क्रियान्वयन के माध्यम से कुपोषण को कम करने के निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं, जिसके परिणाम शनैः शनैः परिलक्षित होना अपेक्षित हैं। कुपोषण हेतु कई कारक जिम्मेदार होते हैं यथा अपर्याप्त भोजन, स्वास्थ्य सुविधाओं की अनुपलब्धता/पहुंच, आर्थिक संरचना, संसाधन की कमी, अनुचित आहार-व्यवहार, बीमारियां, परिवार में सदस्यों की संख्या, रोजगार की कमी, सामाजिक कुरीतियां, शिक्षा का अभाव आदि। गंभीर कुपोषित बच्चों की रोग निरोधक क्षमता कम होने से अन्य बीमारियों का उन पर तुलनात्मक रूप से ज्यादा प्रभाव पड़ता है। जनसामान्य द्वारा पोषण विविधता का उपयोग न करना, स्वच्छता एवं व्यवहार परिवर्तन में कम रूचि जैसे अन्य कारक भी कुपोषण की समस्या बने रहने के प्रमुख कारण हैं। (ग) शहडोल जिले में विगत 5 वर्षों में कम वजन एवं अतिकम वजन के कुल 7290 बच्चे पाये गए। अटल बाल मिशन अंतर्गत सुपोषण अभियान के माध्यम से 379 स्नेह शिविर आयोजित कर अतिकम वजन वाले 3977 बच्चों के पोषण स्तर में सुधार हुआ। पोषण पुनर्वास केन्द्रों में 1142 बच्चों को पोषण प्रबंधन हेतु भर्ती कराकर फॉलोअप द्वारा पोषण स्तर में सुधार किया गया। (घ) जी नहीं। शेष का प्रश्न उपस्थित नहीं होता है।
श्रीमती प्रमिला सिंह--माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने कुपोषण के संबंध में प्रश्न किया था. माननीय मंत्री जी की तरफ से जवाब आया है कि अपर्याप्त भोजन, स्वास्थ्य सुविधाओं की अनुपलब्धता, संसाधन की कमी और बीमारियां, जैसे अनेक कारण बताकर जिम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता है. जो जिले की महिला बाल विकास अधिकारी हैं उनकी ओर से इसमें कोई रुचि नहीं रहती है यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है. मैं मंत्री महोदया से निवेदन करना चाहती हूँ कि महिला एवं बाल विकास विभाग व एनआरसी में आपसी समन्वय न होने के कारण कुपोषित बच्चों को जो एनआरसी में ले जाते हैं या तो वे ले जाने लायक नहीं रहते हैं या फिर वे अपने टारगेट को पूरा करने के लिए वहां स्वस्थ बच्चों को ले जाकर अपना टारगेट पूरा करते हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी के जवाब में था कि स्नेह सरोकार कार्यक्रम का क्रियान्वयन किया जा रहा है. क्या इससे कुपोषण समाप्त होगा.
श्रीमती अर्चना चिटनिस--माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय विधायक ने बहुत ही संवेदनशीलता से और मुझे लगता है कि बहुत महत्वूपर्ण विषय उठाए हैं और आपका यह कहना ठीक है कि महिला बाल विकास और स्वास्थ्य विभाग में हम बेहतर समन्वय स्थापित करके सर्विसेज में बड़ा भारी सुधार ला सकते हैं.अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय सदस्या को बताना चाहती हूं कि पिछले दिनों माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी और मैंने करीब साढ़े तीन घंटे की एक लंबी बैठक दोनों विभागों के अधिकारियों के साथ की थी और कुछ माह पूर्व महिला व बाल विकास विभाग एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी के संयुक्त हस्ताक्षर से एक आदेश जारी हुआ है कि स्वास्थ्य एवं महिला व बाल विकास विभाग के सी.एम.एच.ओ. और डी.पी.ओ. से लेकर सुपरवाईजर स्तर के अधिकारी-कर्मचारी फील्ड विजिट कर संयुक्त रूप से काम करेंगे जिससे हम बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकेंगे.
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय सदस्या को बताना चाहूंगी कि एन.आर.सी.एस. में बच्चों को ले जाने की एक निर्धारित प्रक्रिया है. जिसके तहत जांच भी होती है. कई बार तो एन.आर.सी.एस. में हम जिन बीमार बच्चों को ले जाना चाहते हैं, उनके लिए भी हमें स्वास्थ्य मंत्री जी से चर्चा करके सीटों को बढ़वाना पड़ता है इसलिए स्वस्थ बच्चों को एन.आर.सी.एस. में ले जाने की परिस्थिति उत्पन्न होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता है.
श्रीमती प्रमिला सिंह- धन्यवाद मंत्री जी.
प्रशासनिक अधिकारी के विरूद्ध कार्यवाही
[सामान्य प्रशासन]
16. ( *क्र. 3417 ) श्रीमती पारूल साहू केशरी : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या जैसीनगर विकासखण्ड के ओंरिया ग्राम की विधवा महिला किसान के ऊपर एस.डी.एम. के द्वारा किये गये अभद्र व्यवहार, आवेदन फेंकना एवं जेल में बंद कर देने की घटना के संबंध में प्रश्नकर्ता के द्वारा मुख्य सचिव म.प्र. शासन को दिनांक 24.12.2016 को शिकायत की गयी थी? (ख) क्या प्रश्नांश (क) के परिप्रेक्ष्य में न्याय की प्रतीक्षा में संघर्षशील विधवा महिला किसान की जघन्य हत्या का कारण बने प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के विरूद्ध शासन क्या कार्यवाही करेगा?
मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) जी हाँ। (ख) दिनांक 19/12/2016 को प्राप्त रामकिशन अहिरवार की रिपोर्ट पर जमीन के विवाद पर से एक राय होकर गाली गलौच कर रॉड से मारपीट कर महिला किसान शारदा दांगी की हत्या कर देने पर आरोपी दरयाब सिंह ठाकुर (जेठ) एवं निशा सिंह (जेठानी) के विरूद्ध थाना जैसीनगर जिला सागर में अप. क्र. 307/16 धारा 294, 302, 34 भादवि का पंजीबद्ध किया गया तथा आरोपियों की क्रमश: दिनांक 26/12/16 एवं 01/01/17 को गिरफ्तारी कर माननीय न्यायालय पेश किया गया एवं विवेचना पूर्ण होने पर चालान क्रमांक 19/17 तैयार कर दिनांक 06/02/2017 को माननीय न्यायालय के समक्ष पेश किया गया। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
श्रीमती पारूल साहू केशरी- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे द्वारा सदन में पूछा गया प्रश्न बहुत ही संवेदनशील है. मैं माननीय मंत्री जी को बताना चाहूंगी कि मेरे द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर नहीं दिया गया है. मैं माननीय मंत्री जी से जानना चाहती हूं कि मुख्य सचिव को भेजी गई शिकायत पर अब तक क्या कार्यवाही की गई है ? माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं यह भी जानना चाहती हूं कि क्या इस महिला दिवस पर विधवा महिला किसान का आवेदन फेंकने, दुबारा आवेदन देने पर जेल भेजने की धमकी देने वाले एस.डी.एम. को मध्यप्रदेश के शासन में बचाया जाना उचित है ?
राज्यमंत्री, सामान्य प्रशासन (श्री लालसिंह आर्य)- माननीय अध्यक्ष महोदय, सरकार द्वारा किसी को प्रामाणिक जानकारी मिलने के बाद भी बचाया जाएगा, यह संभव नहीं है. जहां तक मृतका श्रीमती शारदा दांगी का मामला है, मैं बताना चाहता हूं कि इनका एक जमीन का प्रकरण है, यह जमीन एक पारिवारिक संपत्ति है और उस पर कुंए का विवाद है. माननीय अध्यक्ष महोदय, इस प्रकरण में समय-समय पर कार्यवाही की गई है. एस.डी.एम. ने कार्यवाही की है, तहसीलदार ने कुंए से पानी लेने पर कार्यवाही की है, कलेक्टर की जन सुनवाई में कार्यवाही कर आदेश जारी किए गए हैं. कुल मिलाकर प्रकरण में मृतका शारदा दांगी की हत्या हुई है और इसमें उनके परिवार के दो लोग जेल में हैं. 17 दिनों के अंदर चालान पेश कर दिया गया था. अब इस प्रकरण में कौन सा विषय बचता है ?
श्रीमती पारूल साहू केशरी- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं बताना चाहती हूं कि मैंने महिला की हत्या के विषय में जानकारी नहीं चाही थी. माननीय मंत्री जी मेरा प्रश्न कृपया ध्यान से पढ़े. मैं जानना चाहती हूं कि जो अभद्र व्यवहार एस.डी.एम. ने विधवा महिला के साथ किया, वह महिला जीते-जी इंसाफ के लिए प्रशासन से लड़ती रही. मेरा प्रश्न यह है कि क्या उस महिला को, मरने के बाद, उसकी हत्या के बाद भी सरकार से इंसाफ नहीं मिलेगा, मेरे इस प्रश्न का उत्तर माननीय मंत्री जी दें ? (शेम-शेम की आवाज)
श्री लालसिंह आर्य- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे पास वीडियो उपलब्ध है, जिसमें श्रीमती शारदा दांगी ने प्रशासन को आभार एवं धन्यवाद व्यक्त किया है. प्रकरण में सारी कार्यवाहियां नियमों के आधार पर तर्कसंगत तरीके से की गई हैं. फिर भी मैं माननीय सदस्या से जानना चाहता हूं कि वे किस प्रकार से संतुष्ट होंगी, कृपया मुझे बतायें.
श्रीमती पारूल साहू केशरी- अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से मंत्री जी से निवेदन करती हूं कि कुछ ही दिनों में महिला दिवस आने वाला है, प्रत्येक विधवा महिला के लिए यह बहुत बड़ा निर्णय होगा कि उस विधवा महिला के साथ अभद्र व्यवहार करने वाले एस.डी.एम. को माननीय मंत्री जी तत्काल प्रभाव से सस्पेंड करें.
श्री लालसिंह आर्य- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं इस पूरे प्रकरण की एस.डी.एम. को हटाकर जांच करवा लूंगा. (मेजों की थपथपाहट)
श्री हर्ष यादव- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह बहुत ही संवेदनशील मामला है. एक विधवा महिला की हत्या होने पर उस समय पूरे जिले में हड़कंप मच गया था. यह खबर सभी चैनलों पर प्रसारित हुई थी. ....(व्यवधान)....
श्रीमती पारूल साहू केशरी- माननीय अध्यक्ष महोदय, यदि इस प्रकरण में संबंधित एस.डी.एम. को सस्पेंड किया जाता है तो मृतक विधवा महिला को वास्तविक न्याय मिलेगा और यदि एस.डी.एम. का ट्रांसफर किया जाता है तो मैं चाहती हूं कि माननीय मंत्री जी की विधान सभा में उसका ट्रांसफर किया जाये, ताकि यदि एस.डी.एम. किसी महिला के साथ अभद्र व्यवहार करे तो उसका जवाब माननीय मंत्री जी को देना पड़े. धन्यवाद.
श्री हर्ष यादव- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह एक विधवा महिला का मामला है. वह न्याय के लिए लगातार ठोकर खाती रही थी. माननीय अध्यक्ष महोदय, यह बहुत ही संवेदनशील मसला है. ....(व्यवधान)....
अध्यक्ष महोदय- एस.डी.एम. को हटाकर जांच करवाने की बात मंत्री जी ने बोल दी है. जांच की रिपोर्ट आ जाने दीजिए. इसके बाद यदि कोई बात होगी तो फिर जरूर देखेंगे ....(व्यवधान)....
श्री बाला बच्चन-- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने यह बोला है कि आप कैसे संतुष्ट होंगी, तो उन्होंने अपना तरीका बता दिया कि हम ऐसे संतुष्ट होंगे. आप इस पर कार्यवाही करेंगे और कार्यवाही करके माननीय सदस्या को आप संतुष्ट कराएँगे? कार्यवाही होना चाहिए. आपने ही अभी बोला था.
श्री हर्ष यादव-- संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए. बहुत संवेदनशील मामला है.
अध्यक्ष महोदय-- आप जाँच हो जाने दें. ट्रांसफर करके जाँच करने का उन्होंने कहा है. जाँच हो जाने दें. प्रश्न क्रमांक 17......(व्यवधान)..
श्री निशंक कुमार जैन-- अध्यक्ष महोदय, जवाब तो दिलवा दें.
अध्यक्ष महोदय-- आप एक मिनट बैठ जाएँ. इस प्रश्न पर बहुत समय दिया. सामान्यतः इतना समय दिया नहीं जाता है, पर मैंने दिया क्योंकि प्रश्न महत्वपूर्ण था, जैसा कि आप भी समझ रहे हैं और माननीय मंत्री जी ने उसका समाधान यह किया कि अधिकारी को हटा करके जाँच करा लेंगे. अब आप कुछ समय दें ताकि जाँच हो सके. अब आगे का प्रश्न आने दें श्री मुकेश चतुर्वेदी...
श्री निशंक कुमार जैन-- अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी ने कहा कि कैसे संतुष्ट होंगी?
अध्यक्ष महोदय-- आप कृपया बैठ जाएँ. दूसरों के भी महत्वपूर्ण प्रश्न हैं.
फीडर विभक्तिकरण योजना के कार्य
[ऊर्जा]
17. ( *क्र. 2817 ) चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी : क्या ऊर्जा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या भिण्ड जिले में फीडर विभक्तिकरण योजनान्तर्गत कार्य किये जा रहे हैं? (ख) भिण्ड जिले में फीडर विभक्तिकरण योजनान्तर्गत कितने फीडरों पर कार्य करवाया गया है एवं कितने फीडरों का कार्य शेष है, शेष कार्य कब तक करवा दिया जायेगा? (ग) भिण्ड जिले की तहसील मेहगांव, गोरमी, रौन के अन्तर्गत कौन-कौन से फीडरों पर फीडर विभक्तिकरण योजनान्तर्गत कार्य किया गया है? जानकारी दें। क्या उक्त कार्य के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित है? यदि हाँ, तो क्या?
ऊर्जा मंत्री ( श्री पारस चन्द्र जैन ) : (क) जी हाँ। (ख) भिण्ड जिले में फीडर विभक्तिकरण योजना के अंतर्गत 11 के.व्ही. के 151 फीडरों में से 57 फीडरों के विभक्तिकरण का कार्य पूर्ण किया जा चुका है तथा 94 फीडरों के विभक्तिकरण का कार्य शेष है, जिसे फरवरी 2018 तक पूर्ण किया जाना है। (ग) भिण्ड जिले की तहसील मेहगांव, गोरमी तथा रौन के अंतर्गत विभक्त किये गये 11 के.व्ही. फीडरों की सूची संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। उक्त कार्य सहित भिण्ड जिले के लिये तैयार की गई फीडर विभक्तिकरण योजना के कार्य हेतु ठेकेदार एजेंसी मेसर्स एम.डी.पी.प्रा.लि., ग्वालियर को दिनांक 17.08.2016 को अवार्ड जारी किया गया है। ठेकेदार एजेंसी से किये गये अनुबंध की शर्तों के अनुसार कार्य पूर्णता अवधि अवार्ड दिनांक से 18 माह निर्धारित है।
चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे प्रश्न का शासन की ओर से लगभग संतोषजनक उत्तर आया है पर उसमें एक-दो प्रश्न उद्भूत होते हैं उसमें मैं माननीय मंत्री जी से यह पूछना चाहूँगा कि मेरे विधान सभा क्षेत्र में कुछ ऐसे गाँव रह गए हैं, जिनकी जनसंख्या सौ से ऊपर है. क्या माननीय मंत्री महोदय उनको भी दीनदयाल योजना में शामिल करेंगे?
श्री पारस चन्द्र जैन-- माननीय अध्यक्ष महोदय, सदस्य यदि स्पेसिफिक कोई बात बता देंगे, सौ से ऊपर होंगे तो हम उनको शामिल कर लेंगे.
चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी-- अध्यक्ष महोदय, हमारे यहाँ फीडर सेपरेशन का जो काम मेरे विधान सभा क्षेत्र में चल रहा है, उसमें माननीय मंत्री जी ने काम कब तक पूर्ण होगा, यह तो बता दिया है. लेकिन कितना शेष रह गया है, यह नहीं बताया है, तो मुझे यह जानकारी भी मिल जाए कि कितना शेष रह गया है? मैं माननीय मंत्री जी को एक बात याद दिलाना चाहता हूँ कि पूर्व के माननीय मंत्री आदरणीय शुक्ला साहब ने यहीं एक वादा किया था कि मेरे विधान सभा क्षेत्र में तीन सब स्टेशन, जो चिन्हित गाँव थे, उस जगह लगने थे.
अध्यक्ष महोदय-- यह अभी इसमें कहाँ है?
चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी-- क्या यह भी माननीय मंत्री जी आश्वस्त करेंगे? फीडर सेपरेशन का ही है.
श्री पारस चन्द्र जैन-- अध्यक्ष महोदय, सदस्य ने जो तीन की बात कही है, यह मेरे को बता देंगे तो मैं उसका परीक्षण करवा कर दिखवा लूँगा.
अध्यक्ष महोदय-- फीडर सेपरेशन और करवा देंगे....
चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी-- हाँ फीडर सेपरेशन के तहत ही.
अध्यक्ष महोदय-- बस ठीक है.
चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी-- शुक्रिया.
बंद/खराब विद्युत मीटरों को बदला जाना
[ऊर्जा]
18. ( *क्र. 2810 ) श्री अशोक रोहाणी : क्या ऊर्जा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) पूर्व क्षेत्र विद्युत कंपनी जबलपुर के तहत शहरी क्षेत्र जबलपुर व ग्रामीण क्षेत्रों में कितने बिजली उपभोक्ता हैं? इनमें से कितने उपभोक्ताओं के घरों में मीटर नहीं लगे हैं? कितने मीटर बंद या खराब हैं? कितने उपभोक्ताओं की बिजली काटी गई है? कितने उपभोक्ताओं के बंद/खराब मीटर बदले गये हैं? वर्ष 2016-17 जनवरी 2016 से दिसम्बर 2016 तक की माहवार जानकारी दें। (ख) प्रश्नांश (क) में उपभोक्ताओं से बिजली उपयोग की औसत बिलिंग से राशि वसूल करने का क्या प्रावधान है तथा इसके लिए क्या प्रक्रिया निर्धारित है वर्तमान में लाइन लॉस की क्या स्थिति है? लाइन लॉस को घटाने हेतु क्या उपाय किये हैं? (ग) जबलपुर शहरी क्षेत्रांतर्गत कितने बिजली उपभोक्ताओं के घरों में मीटर नहीं लगे हैं? कितने उपभोक्ताओं के मीटर बदले गये हैं? मीटर बंद खराब होने व मीटर को बदलने से संबंधित कितनी शिकायतें मिलीं, कितनी शिकायतों का निराकरण किया गया? 1 जनवरी 2016 से दिसम्बर 2016 तक की माहवार जानकारी दें। (घ) प्रश्नांश (ग) में कितने उपभोक्ताओं से औसत बिलिंग के नाम पर कितनी राशि की माहवार वसूली की गई? अनाप-शनाप बिजली बिल भेजने से संबंधित कितनी शिकायतें मिलीं? इनमें से कितनी शिकायतों का निराकरण किया गया?
ऊर्जा मंत्री ( श्री पारस चन्द्र जैन ) : (क) माह दिसम्बर, 2016 की स्थिति में पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड, जबलपुर के तहत् जबलपुर (शहर) वृत्त में कुल 300791 एवं जबलपुर (संचालन/संधारण) वृत्त में कुल 240095 विद्युत उपभोक्ता हैं। इनमें से 947 जबलपुर (शहर) वृत्त क्षेत्र के एवं 22517 जबलपुर (संचालन/संधारण) वृत्त क्षेत्र के उपभोक्ताओं के घरों में मीटर नहीं लगे हैं। दिसम्बर, 2016 की स्थिति में जबलपुर (शहर) वृत्त क्षेत्र के 14224 एवं जबलपुर (संचालन/संधारण) वृत्त क्षेत्र के 61007 उपभोक्ताओं के मीटर बंद/खराब स्थिति में हैं। जनवरी 2016 से दिसम्बर 2016 की अवधि में जबलपुर (शहर) वृत्त क्षेत्र के 95530 एवं जबलपुर (संचालन/संधारण) वृत्त क्षेत्र के 21339 उपभोक्ताओं की बिजली विद्युत बिल की बकाया राशि होने के कारण नियमानुसार काटी गई है। उक्त अवधि में जबलपुर (शहर) वृत्त क्षेत्र के 27194 एवं जबलपुर (संचालन/संधारण) वृत्त क्षेत्र के 9930 उपभोक्ताओं के बंद/खराब मीटर बदले गये हैं। जनवरी, 2016 से दिसम्बर, 2016 तक की प्रश्नाधीन माहवार जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र 'अ' अनुसार है। (ख) मीटर के बंद/खराब रहने के दौरान उपभोक्ता को म.प्र. विद्युत नियामक आयोग द्वारा जारी म.प्र. विद्युत प्रदाय संहिता 2013 की कंडिका क्रमांक 8.35 में निहित प्रावधानानुसार खपत का आंकलन कर आंकलित खपत के अनुसार विद्युत बिल जारी किये जाते हैं। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2016-17 के माह दिसम्बर 2016 तक की स्थिति में जबलपुर जिले का औसत लाइनलॉस 21.51 प्रतिशत है। लाइन लॉस को घटाने हेतु वितरण कम्पनी द्वारा दैनिक सुधार/रख-रखाव कार्य के अलावा निम्न कार्य वृहद योजनाओं के तहत टर्न-की आधार पर किये जा रहे हैं :- (1) अधिक भार वाले विद्युत ट्राँसफार्मरों की क्षमता वृद्धि करना, अतिरिक्त ट्राँसफार्मर लगाया जाना। (2) विद्युत लाईनों के तारों की क्षमता वृद्धि का कार्य। (3) ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि एवं गैर-कृषि उपभोक्ताओं के लिये 11 के.व्ही. फीडर विभक्तिकरण का कार्य। (4) अधिक हानि वाले क्षेत्र चयनित कर निम्न दाब लाईनों में नंगे तारों के स्थान पर केबिल डालने का कार्य। (5) बंद एवं खराब मीटरों को बदलना। (6) विद्युत चोरी रोकने हेतु सघन चेकिंग। (7) अधिक भार वाले फीडरों पर अतिरिक्त फीडर निर्माण कर भार वितरित किया जाना। (ग) जबलपुर (शहर) वृत्त क्षेत्रान्तर्गत 947 उपभोक्ताओं के घरों में मीटर नहीं लगे हैं। प्रश्नाधीन अवधि जनवरी 2016 से दिसम्बर 2016 तक 27194 मीटर बदले गये हैं। उक्त अवधि में मीटर बंद/खराब होने व मीटर को बदलने से संबंधित 6346 शिकायतें प्राप्त हुईं हैं। उक्त सभी शिकायतों का निराकरण किया गया है। प्राप्त शिकायतों एवं निराकरण का माहवार विवरण संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र 'ब' अनुसार है। (घ) प्रश्नाधीन अवधि जनवरी 2016 से दिसम्बर 2016 तक की अवधि में जबलपुर (शहर) वृत्त क्षेत्रान्तर्गत औसत बिलिंग के विरूद्ध रू. 849.21 लाख की राशि वसूल की गई है, जिसका माहवार विवरण संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र 'स' अनुसार है। प्रश्नांश में उल्लेखित बिजली बिल संबंधी 3954 शिकायतें प्राप्त हुईं तथा सभी शिकायतों का निराकरण किया गया।
श्री अशोक रोहाणी-- माननीय अध्यक्ष महोदय, सबसे पहले तो माननीय मंत्री जी का बहुत बहुत धन्यवाद प्रश्न लगाने के साथ ही शिकायतों का निराकरण भी हो गया और बंद मीटर चालू भी हो गए, लेकिन यह अभी प्रक्रिया जारी है. मेरा माननीय मंत्री जी से आग्रह है कि ये जो शिकायतें हैं, शिविर लगाकर इनका निराकरण करेंगे तो जल्दी होगा.
श्री पारस चन्द्र जैन-- माननीय अध्यक्ष महोदय, जब सदस्य तारीख बता देंगे उसी दिन हम शिविर वहाँ लगवा देंगे.
श्री अशोक रोहाणी-- अध्यक्ष महोदय, यह सिर्फ मेरे केंट विधान सभा का ही मामला नहीं है. पूरे जबलपुर में बहुत सारे मीटर बंद पड़े हुए हैं. मेरे बताने से कुछ नहीं होगा जिस दिन बोलेंगे उस दिन हम साथ में शिविर लगवा देंगे और साथ में सहयोग करेंगे.
अध्यक्ष महोदय-- तारीख आप तय कर दीजिए.
श्री पारस चन्द्र जैन-- अध्यक्ष महोदय, हमने पहली बार सलाहकार समिति भी बनाई है. जिसमें विधायक को भी रखा है, सांसद को भी रखा है...(व्यवधान)..
अध्यक्ष महोदय-- अरे बैठ तो जाएँ. आप लोग सुनते ही नहीं हों. समाधान ही नहीं होने देते.
श्री पारस चन्द्र जैन-- सुनो तो सही. चार जगह जिले में हो गई है. हमने आदेशित किया है कि सभी जिलों में ले लें. वहाँ सांसद को भी बुलाएँ और विधायक को भी बुलाएँ इसीलिए सलाहकार समिति बनाई है कि इनकी समस्या का वहीं निराकरण हो जाए.
अध्यक्ष महोदय-- धन्यवाद. रोहाणी जी, आपको कुछ कहना है?
श्री अशोक रोहाणी-- अध्यक्ष महोदय, जो एवरेज बिल भेजते हैं, उसमें एवरेज बिल भेजने में उपभोक्ता की तो कोई गलती नहीं है, यह तो अधिकारियों की गलती है, तो उपभोक्ता पूरा इकट्ठा पैसा नहीं दे पाता है, उसको पहले किश्तों में देने का प्रावधान था, उसको वैसे ही किश्तों में देने के लिए यथावत रखा जाए.
श्री पारस चन्द्र जैन-- माननीय अध्यक्ष महोदय, यदि किसी का एवरेज बिल गया है तो उसको तीन माह की खपत के एवरेज के आधार पर तो हम बिल देते हैं और यदि वह फिर भी इकट्ठा बिल नहीं भर पाता है तो वहां अधिकारियों से बात कर लेगा तो दो किश्तों में कर देंगे. कोई बड़ी बात नहीं है.
श्री अशोक रोहाणी -- बहुत-बहुत धन्यवाद.
चौधरी चन्द्रभान सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, जैसे माननीय मंत्री जी ने जिला स्तर पर समिति बनाई है क्या सब-स्टेशन स्तर पर पहले समितियॉं थी, वहां पर भी समिति का गठन करेंगे ताकि सब-स्टेशन की समस्याओं का निराकरण हो सके.
अध्यक्ष महोदय -- माननीय मंत्री जी, क्या सब-स्टेशन पर समिति गठित करेंगे?
श्री पारस चन्द्र जैन -- माननीय अध्यक्ष महोदय, वह जिले में बनेगी. जिले में वह बात सुन ली जाएगी.
श्योपुर जिलांतर्गत कुपोषित व्यक्तियों/बच्चों का सर्वेक्षण
[महिला एवं बाल विकास]
19. ( *क्र. 439 ) श्री बाबूलाल गौर : क्या महिला एवं बाल विकास मंत्री महोदया यह बताने की कृपा करेंगी कि (क) श्योपुर जिले में वर्ष 2015 एवं 2016 में कुपोषण से किस-किस माह में कितनी-कितनी मौतें हुई हैं? (ख) क्या शासन द्वारा श्योपुर जिले में कुपोषित व्यक्तियों/बच्चों एवं महिलाओं का सर्वेक्षण करवाया गया है? कुपोषितों की पृथक-पृथक संख्या बतायी जाये। (ग) शासन द्वारा कुपोषण से हो रही मौतों को रोकने के लिए क्या-क्या प्रयास किये जा रहे हैं?
महिला एवं बाल विकास मंत्री ( श्रीमती अर्चना चिटनिस ) : (क) स्वास्थ्य विभाग से प्राप्त जानकारी अनुसार श्योपुर जिले में 2015 व 2016 में कुपोषण से मृत्यु की जानकारी निरंक है। (ख) आंगनवाड़ी केन्द्र में प्रतिमाह 5 वर्ष तक के आयु के बच्चों का वजन लिया जाकर उनके पोषण स्तर का निर्धारण किया जाता है। विभाग द्वारा 01.11.2016 से 20.01.2017 तक विशेष वजन अभियान का आयोजन किया गया। इस अभियान की अवधि 28.02.2017 तक बढ़ायी गई है। दिसम्बर 2016 की स्थिति में जिले में 5 वर्ष से कम आयु के 20,259 बच्चे मध्यम श्रेणी एवं 5004 बच्चे अतिकम वजन की श्रेणी में दर्ज किये गये हैं। विभाग द्वारा महिलाओं की पोषण स्थिति का निर्धारण नहीं किया जाता है। (ग) बच्चों के पोषण स्तर में सुधार हेतु बच्चों, गर्भवती/धात्री माताओं एवं किशोरी बालिकाओं को पोषण आहार प्रदाय, अटल बिहारी वाजपेयी बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन अंतर्गत 59 डे-केयर सेंटर का संचालन, स्नेह सरोकार कार्यक्रम अंतर्गत अतिकम वजन वाले बच्चों की पोषण स्तर की देखभाल की जिम्मेदारी जनप्रतिनिधियों एवं जनसमुदाय द्वारा लेने, सुपोषण अभियान अंतर्गत जनसमुदाय की भागीदारी से स्नेह शिविरों का आयोजन, एकीकृत बाल विकास सेवा योजना अंतर्गत पोषण एवं स्वास्थ्य सेवाओं की प्रदायगी, स्वच्छता के संबंध में समुदाय को जागरुक किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा बच्चों में कुपोषण की रोकथाम हेतु किये जा रहे प्रयासों की जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है।
श्री बाबूलाल गौर -- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी बहुत संवेदनशील और योग्य भी हैं और कुपोषित बच्चों का मामला है. इसलिए उसको केवल सरकारी आधार पर आप जवाब न दें. जो वास्तविकता है उस आधार पर जवाब दें. माननीय मंत्री जी ने उत्तर दिया है. मैं बहुत ही आदर के साथ माननीय मंत्री जी को बताना चाहता हॅूं कि मैंने पूछा था कि वर्ष 2015-16 में कुपोषित बच्चों की कितनी मौतें हुईं ? इन्होंने कहा, कोई मौत नहीं हुई. गजब कर दिया और स्वास्थ्य विभाग ने अपनी रिपोर्ट जारी की, हाईकोर्ट के आदेश से. आप उसकी जॉंच करा लें. मैं कोई आपके ऊपर दबाव नहीं डाल रहा हॅूं. 18 जनवरी को हाईकोर्ट, ग्वालियर ने आदेश दिया कि कुपोषित बच्चा एक भी नहीं मरना चाहिए. इसकी जॉंच की जाए और स्वास्थ्य विभाग की जॉंच रिपोर्ट यह आई है. अब स्वास्थ्य विभाग में इनका तालमेल कैसा है यह मैं नहीं कह सकता, लेकिन तालमेल होना चाहिए. उन्होंने बताया है कि 116 मौतें हुई हैं. यह बहुत ही विचारणीय प्रश्न है. 116 बच्चों की कुपोषित होने के कारण मृत्यु हो गई.
अध्यक्ष महोदय -- आप कृपया अपना प्रश्न तो करें.
श्री बाबूलाल गौर -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं यही तो पूछ रहा हॅूं कि कितने कुपोषित बच्चों की मृत्यु हुई और यह कह रहे हैं कि निरंक हुई, प्रश्न तो यही है और मेरा निवेदन यह है कि मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं आया है. जो रिपोर्ट छपी है मैं उसके कुछ अंश पढ़ना चाहता हॅूं, मुझे अनुमति प्रदान करें.
अध्यक्ष महोदय -- आप पहले एक प्रश्न का उत्तर ले लें.
श्रीमती अर्चना चिटनिस -- माननीय अध्यक्ष महोदय, निश्चित तौर पर विभाग व सरकार कुपोषण को एक बहुत बड़ी चुनौती के तौर पर लेती है और हमको इस पर बहुत ज्यादा काम करने की आवश्यकता है. मॉनिटरिंग की आवश्यकता है. अपने काम को और फाइन ट्यून करने की आवश्यकता है और हम उस पर लगातार तत्पर हैं. मैं आपके माध्यम से माननीय बाबूलाल गौर जी को इस बात के लिए निवेदन करना चाहती हॅूं कि इसे देखते हुए न केवल श्योपुर बल्कि सारे मध्यप्रदेश में हमने एक विशेष वजन अभियान चलाया ताकि हम एक बेसलाइन सर्वे कराकर, जिन बच्चों को हमें एड्रेस करना है उनको हम एक बार हमने अधिकारियों को वजन करवाया, जो वजन आंगनवाड़ी कार्यकताओं को करने का दायित्व है. जेडी से लेकर सुपरवाईजर्स ने एक सर्वे किया और हमने उन बच्चों को चिन्ह्ति किया. श्योपुर में भी किया और उनपर हम व्यक्तिगत रूप से वन-टू-वन बच्चों पर काम कर रहे हैं. साल भर के लिए अब एक विशेष पोषण अभियान चलाया जा रहा है जिसमें रिवार्ड ऑफ पनिशमेंट दोनों की गुंजाइश है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से माननीय बाबूलाल गौर जी ने मुझसे पूछा है कि क्या मैं श्योपुर की स्थिति की जॉंच करा लूंगी. श्योपुर की जॉंच पहले भी हो चुकी है और दोबारा जैसा गौर साहब चाहते हैं एक बार मैं पुन: जॉंच करा लूंगी.
श्री बाबूलाल गौर -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं बहुत धन्यवाद देता हॅूं. मैं भी उस जॉंच में आपके साथ चलूंगा. आप मुझे अनुमति देंगी ?
श्रीमती अर्चना चिटनिस -- मैं आपका बहुत सम्मान करती हॅूं मैं आपके केबिनेट में मंत्री रही हॅूं और आपके साथ मैं भी चलूंगी और आपके साथ जाने में मैं अपने आप को सम्मानित महसूस करूंगी.
श्री बाबूलाल गौर -- माननीय अध्यक्ष महोदय, प्रश्न यह है कि माननीय मंत्री महोदया का उत्तर और स्वास्थ्य विभाग के उत्तर में संख्या का बहुत अंतर है और मैं यह निवेदन करना चाहता हॅूं, बहुत ही विनम्रता के साथ कहना चाहता हॅूं कि आपने बताया है कि विभाग द्वारा 01.11.2016 से 20.01.2017 तक विशेष वजन अभियान का आयोजन किया गया. इस अभियान की अवधि 28.02.2017 तक बढ़ायी गई है. दिसम्बर 2016 की स्थिति में जिले में 5 वर्ष से कम आयु के 20,259 बच्चे मध्यम श्रेणी के पाए गए. औसत वजन के नहीं पाये गये, यह आपका जवाब है,कितना गंभीर जवाब है और कितने कुपोषित बच्चे पाये गये उसके जवाब में बताया गया कि 5004 और स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि 77 से 80 हजार पाये गये. दोनों में अंतर है.क्या इसकी एक कमेटी बिठाकर जाँच कराई जाएगी ?
श्रीमती अर्चना चिटनिस-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरा आपके माध्यम से गौर साहब से और संपूर्ण सदन से आग्रह और निवेदन है कि हैल्थ के पैरामीटर्स और कुपोषण के पैरामीटर्स दोनों अलग-अलग होते हैं. टेक्नीकली जब बच्चा कुपोषित होता है तो बीमारियाँ उसको ज्यादा जल्दी होती हैं और उसके जीवन का अंत हो सकता है लेकिन मेडीकली कुपोषण कभी भी मृत्यु का कारण नहीं होता है किन्तु कुपोषण के कारण अन्य बीमारी होकर यह गंभीर स्थिति कई बार बन जाती है इसलिए स्वास्थ्य विभाग के मानक भिन्न हैं, जो हमारे मानक हैं, वह भिन्न हैं लेकिन माननीय अध्यक्ष महोदय,कुपोषण के मसले पर मैं आपसे आग्रहपूर्वक निवेदन करूँगी कि यह विषय ऐसा है कि हम सबकी समझ इसमें बने और हम जन प्रतिनिधि इस पर जमीनी स्तर पर अच्छा काम कर सके. जैसे कल बीमा के मसले पर बात हुई थी कि आप माननीय सदस्यों के लिए एक वर्कशॉप रखेंगे. मेरा निवेदन है कि कुपोषण के विषय पर भी एक वर्कशॉप हम माननीय सदस्यों के लिए रखे और इस पर आराम से चर्चा सारे सदस्य करें और सुझाव दें व कमियाँ बतायें क्योंकि हम इस व्यवस्था को दुरुस्त करना चाहते हैं.
श्री बाबूलाल गौर-- माननीय अध्यक्ष महोदय, क्या एक महीने के अंदर जाँच की कार्यवाही प्रारंभ की जाएगी?
श्रीमती अर्चना चिटनिस-- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने आपके माध्यम से कहा है कि जाँच हो चुकी है, जाँच पुनः करा लेंगे. हम एक डीपीओ को सस्पेंड कर चुके हैं, एक सीडीपीओ को सस्पेंड कर चुके हैं. हमने एक कमेटी स्वास्थ्य विभाग और अपने विभाग के अधिकारियों की बनाई हुई है.
श्री बाबूलाल गौर-- क्या एक महीने में पुनः जाँच मेरे समक्ष कराई जाएगी. मैं भी जाऊँगा, आप चाहें चलें ना चलें क्योंकि यह कुपोषित और गरीब बच्चों का मामला है.
श्रीमती अर्चना चिटनिस-- जाँच करा लेंगे.
अध्यक्ष महोदय-- प्रश्नकाल समाप्त.
(प्रश्नकाल समाप्त)
12.01 बजे नियम 267-क के अधीन विषय
12.02 बजे शून्यकाल में उल्लेख
अतिथि शिक्षकों द्वारा हड़ताल किया जाना
श्री प्रताप सिंह(जबेरा)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, पूरे मध्यप्रदेश में अतिथि शिक्षक हड़ताल पर बैठे हैं, उसमें शासन की ओर से आज तक कोई भी जवाब उनके लिए नहीं दिया जा रहा है. मैं चाहूँगा कि इसमें सदन संवेदनशील हों और उनके भविष्य के प्रति उसमें कोई जवाब आए.
श्री प्रदीप अग्रवाल(सेंवढ़ा)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, अभी एक प्रश्न में गोवारी जाति का विषय आया था, इस पर मैं अपनी बात रखना चाहता हूं.
अध्यक्ष महोदय-- उस पर आप आधे घंटे की चर्चा माँग लीजिये यदि बहुत जरूरी हो तो. मंत्री जी अभी चले गये हैं.
श्री प्रदीप अग्रवाल-- माननीय अध्यक्ष महोदय, इसमें हमको आधे घंटे की चर्चा सोमवार को मिल जाये.
मंडी में फसल कम भाव पर बिकना
डॉ. रामकिशोर दोगने(हरदा)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, अभी जो फसलों की खरीदी की तारीख जो डिसाइड की गई है वह बहुत लेट है और फसल आ गई है. अब किसान मंडी में फसल बेचने के लिए जा रहा है तो वहाँ बहुत कम भावों में बिक रही है. गेहूँ का भाव 1600 से ऊपर होना चाहिए लेकिन 1200- 1300 में किसान गेहूँ बेच रहा है. इसी बात को लेकर एक किसान ने हरदा में पेट्रोल डालकर आत्महत्या करने की कोशिश की तो इस पर निर्णय होना चाहिए.
(3) पेंच व्यपवर्तन योजना का कार्य डिजाइन और नक्शे के अनुसार न किया जाना
श्री दिनेश राय (सिवनी) -- अध्यक्ष महोदय, मेरे यहाँ पेंच व्यपवर्तन योजना से नहर का काम चल रहा है जिसमें काफी जनाक्रोष है, क्योंकि जो डिजाइन और नक्शा पास हुआ था, उसको छोड़कर बाकी क्षेत्रों में काम किया जा रहा है. एक अधिकारी कल पहुँच रहे हैं, उसको भी लेकर जनाक्रोष है और 7 तारीख को विधान सभा का घेराव करने के लिए मेरी विधान सभा के लोग भी आ रहे हैं. अत: मेरा आग्रह है कि उसका तत्काल निराकरण कराएं.
(4) होशंगाबाद जिले में महिला तहसीलदार के ऊपर रेत माफियाओं द्वारा ट्रक चढ़ाया जाना
श्री निशंक कुमार जैन (बासौदा) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, कल जब माननीय मुख्यमंत्री जी सदन में अपना भाषण दे रहे थे, उसी समय होशंगाबाद जिले में रेत माफियाओं द्वारा एक तहसीलदार के ऊपर डम्पर और ट्रक चढ़ाया गया और उसकी हत्या करने की कोशिश की गई. एक तरफ सरकार रेत माफियाओं पर कार्यवाही की बात करती है और दूसरी तरफ उसी समय एक महिला तहसीलदार के ऊपर रेत माफियाओं द्वारा ट्रक चढ़ाया जाता है.
श्री सचिन यादव -- माननीय अध्यक्ष महोदय, एक तहसीलदार जो अपनी ड्यूटी निभा रही थी, उसके ऊपर हमला किया गया है. (..व्यवधान...)
अध्यक्ष महोदय -- यही विषय निशंक जी ने उठा दिया है, उन्होंने जोर से विषय उठाया है, आपकी बात आ गई है.
(5) रीवा जिले के हनुमना ब्लॉक के अंतर्गत रमसा द्वारा संचालित कन्या छात्रावास में छात्राओं को प्रताड़ित किया जाना
श्री सुखेन्द्र सिंह (मऊगंज) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, रीवा जिले में हनुमना ब्लॉक अन्तर्गत नगर पंचायत की परिधि में रमसा द्वारा संचालित राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान कन्या छात्रावास में आवासीय छात्राएँ अध्ययनरत हैं. इस छात्रावास में अंशकालिक शिक्षिका को छात्राओं को सुबह-शाम पढ़ाने हेतु रखा गया है. रखी गई अंशकालिक शिक्षिका छात्रावास अधीक्षिका की बेटी है जो पढ़ाने नहीं आती, बिना पढ़ाए वेतन ले रही है. परीक्षा का समय आ गया है. छात्राओं द्वारा पढ़ाने के लिए अधीक्षिका से कहने पर अधीक्षिका द्वारा छात्राओं को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया गया है जिससे छात्राएँ छात्रावास छोड़ रही हैं. परीक्षा से ये छात्राएँ वंचित हो जाएंगी. ऐसी स्थिति में क्षेत्र में भारी आक्रोष एवं असंतोष उत्पन्न हो गया है. अधीक्षिका को निलंबित कर शिक्षिका को हटाया जाए एवं प्राप्त वेतन की वसूली की जाए.
(6) मध्यप्रदेश में अवैध उत्खनन को लेकर मारपीट होना
श्री बाला बच्चन (राजपुर) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी शून्यकाल की सूचना यही है कि अवैध उत्खनन मध्यप्रदेश में जोरों पर है. मुख्यमंत्री जी यहाँ धमका रहे थे और देख लीजिए कि मुख्यमंत्री की स्पीच के समय वहाँ अवैध उत्खनन को लेकर तहसीलदार, 4 पटवारी, राजस्व के अधिकारी और उसके बाद ड्रायवर के साथ मारपीट हुई है. माननीय अध्यक्ष महोदय, कसावट होनी चाहिए, उनके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए. डम्पर चढ़ा दिया गया. ...(व्यवधान)...
श्री सचिन यादव -- मेरा विषय लोकमहत्व का है.
अध्यक्ष महोदय -- यदि लोकमहत्व का है तो लिखकर दीजिए, ...(व्यवधान)...आपने कुछ लिखकर दिया क्या ? यहाँ आपने बोल दिया कि लोकमहत्व का है. यदि कल की घटना थी तो आपको लिखकर देना चाहिए था.... (व्यवधान) ... यह ठीक नहीं है.
श्री बाला बच्चन -- माननीय अध्यक्ष महोदय, सरकार की तरफ से जवाब आना चाहिए. अवैध उत्खनन नहीं होना चाहिए, ऐसी जो घटनाएँ हो रही हैं, मैं समझता हूँ कि इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है ?
(7) किसानों के गेहूँ की खरीदी जल्दी प्रारंभ किया जाना
श्री दिलीप सिंह शेखावत (नागदा-खाचरौद) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी शून्यकाल की सूचना इस प्रकार से है कि मार्च में किसानों की सरकारी खरीदी की जो तारीख तय की है, मेरा आपके माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री जी से निवेदन है कि किसानों के गेहॅूं की खरीदी जल्द से जल्द प्रारंभ की जाए. यदि खरीदी जल्द नहीं होगी तो जनाक्रोष होगा.
(8) परीक्षा देने गए छात्र के पिताजी की हार्टअटैक से मौत होना
श्री कालूसिंह ठाकुर (धरमपुरी) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे विधान सभा क्षेत्र में नालचा गाँव में एक बालक अपने पिताजी के साथ परीक्षा देने के लिए गया था, उस बालक के पिताजी की हार्टअटैक से मौत हो गई, वहाँ पर स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी या डॉक्टर उपस्थित नहीं थे. (..व्यवधान...)
(9) सातवें वेतनमान का लाभ पेंशनरों को भी दिया जाना
श्री निशंक कुमार जैन -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय वित्त मंत्री जी से अनुरोध करना चाहूँगा कि सातवें वेतनमान का लाभ पेंशनरों को भी दिलवा दो. (..व्यवधान...)
अध्यक्ष महोदय -- दूसरों को भी बोलने दो. बहादुर सिंह जी आप बोलिए.
(10) महिदपुर विधान सभा में पानी की समस्या होना
श्री बहादुर सिंह चौहान (महिदपुर) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे विधान सभा क्षेत्र और नगर पालिका क्षेत्र महिदपुर में माँ क्षिप्रा का पानी जाता है, आगे स्टाप डेम बना हुआ है, वहां पानी की समस्या है अगर उसको खोल दिया जाएगा तो पानी महिदपुर पहुँच जाएगा.
श्री फुंदेलाल सिंह मार्को -- माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय गृह मंत्री महोदय को मैं मात्र धन्यवाद देना चाहता हूँ.
(11) श्री रतनलाल बग्गा, किसान की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को दी गई अनुदान की राशि को बढ़ाया जाना
श्री हरदीप सिंह डंग (सुवासरा) -- अध्यक्ष महोदय, एक किसान रतनलाल बग्गा जी, गरदनखेड़ी निवासी, वह अपनी फसल देखने गया और उसकी वहीं मृत्यु हो गई, उसके परिवार को मात्र 20 हजार रुपये दिए गए हैं, उसकी राशि बढ़ाई जाए.
अध्यक्ष महोदय -- नहीं अब नहीं, कुछ याद आता जाता है तो हाथ उठाते जाते हैं.
12.10 बजे पत्रों का पटल पर रखा जाना.
(क) मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग की अधिसूचना क्रमांक 125-म.प्र.वि.नि.आ. 2017, दिनांक 20 जनवरी, 2017.
(ख) मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग के अंकेक्षित लेखे वर्ष 2015-2016.
(ग) मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग का वार्षिक प्रतिवेदन वित्तीय वर्ष 2015-2016.
12.01बजे ध्यानाकर्षण (सदन द्वारा सहमति प्रदान की गई)
1. रीवा से हनुमना के मध्य कस्बों को फोरलेन से जोड़ने वाली सड़क क्षतिग्रस्त होने से उत्पन्न स्थिति.
श्री गिरीश गौतम (देवतालाब), (सर्व श्री केदारनाथ शुक्ल, शंकरलाल तिवारी) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी ध्यानाकर्षण की सूचना का विषय इस प्रकार है:-
लोक निर्माण मंत्री(श्री रामपाल सिंह) - माननीय अध्यक्ष महोदय ,
श्री गिरीश गौतम - माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने एक बात स्वीकार की है कि हम निर्माण करेंगे, परंतु उनके उत्तर में विरोधाभास है. एक तरफ जब आप कहते हैं कि सब कुछ ठीक है, दुरूस्त है तो बनाने का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता है. आप एक तरफ यह कह रहे हैं कि मोटरेबल है, चलने लायक है और एक तरफ कह रहे हैं कि हम शीघ्र बना देंगे. मैं स्वयं अभी पांच दिन पहले ही उस सड़क से आया था. मैं अकसर बायपास से निकलता हूं लेकिन देवतालाब मेरी विधानसभा है, मैं मंत्री जी को बताना चाहता हूं कि जब मैं वहां से सड़क से निकला अगर वह मेरे साथ कभी चले तो मैं हम उनको दिखा देंगे कि जब मेरी गाड़ी गड्ढे में गई तो उस समय सामने से जो गाड़ी आ रही थी उसको मेरी लाईट नहीं दिख रही थी, उस समय हम मानो चार-पांच फिट नीचे चले गये हों. तो यह हालत है सड़कों की, इसलिए मैं इसमें दो प्रश्न करना चाहता हूं. एक तो इसकी समय-सीमा बताएं. आंवी से जरहा तक और जरहा की पुलिया को उन्होंने नष्ट किया है, एक तो इसको बना दें, जिससे डेहली से आने वाले, देवगांव से आने वाले, सिमरी से आने वाले जो लोग हैं, जो उस तरफ से सड़कें आती हैं तो वहां के लोगों को भी राहत मिले. इसमें समय-सीमा बता दें कि यह कब तक करेंगे? दूसरी बात मैं यह कहना चाहता हूं कि अब एमपीआरडीसी की तरफ से जिस भी सड़क का निर्माण होगा तो उसमें क्या माननीय मंत्री जी यह शर्त जोड़ने का काम करेंगे कि उस ठेकेदार द्वारा नयी सड़क बनाने में जिन दूसरी सड़कों को नष्ट किया जाता है या जहां से वह मटेरियल कलेक्ट करता है तो उन दूसरी सड़कों का सड़क निर्माण करने में उपयोग करता है, चाहे वह प्रधानमंत्री सड़क हो, चाहे वह लोक निर्माण विभाग की सड़क हो, उन सड़कों को पूरी तरह से वह नष्ट कर देता है. किसी काम की वे सड़कें नहीं रह जाती हैं तो क्या उन सड़कों को भी उसी टेंडर के साथ, उसके एग्रीमेंट में इस बात को जोड़ा जाएगा कि जिन सड़कों का निर्माण करने पर उपयोग किया जाएगा, उन सड़कों की भी मरम्मत करने का काम उसी ठेकेदार द्वारा किया जाएगा और उसकी समय-सीमा बता दें, उनका कब तक निर्माण पूरा कर देंगे?
श्री रामपाल सिंह - अध्यक्ष महोदय, श्री गौतम जी की बात से सहमत हूं. वह जो कह रहे हैं, वास्तव में कष्ट है. लेकिन अच्छी सड़कें भी बनी हैं. पहले 4-5 घंटे में जाते थे. अब एक अच्छी सड़क बनाई है. जो पुलिया की बात कर रहे हैं. भारत सरकार को निर्माण करने के लिए प्रस्ताव नवम्बर, 2016 में भेजा है. वहां से सहमति अभी नहीं आई है लेकिन फिर भी हमारी मध्यप्रदेश सरकार की भी जवाबदारी है. हम जल्दी इस प्रक्रिया को पूरा करेंगे, मरम्मत भी कराएंगे और निर्माण कार्य शीघ्र हम वहां पर कराएंगे.
श्री गिरीश गौतम - माननीय मंत्री जी, आपने केवल पुलिया के बारे में कह दिया. मैंने तो सड़कों की भी मांग की है, इन सड़कों की मरम्मत का भी काम जून के पहले, बरसात के पहले करा दें. माननीय मंत्री जी, वहां पर हालत खराब है, मैं आपको क्या बताऊं? मैं आपको धन्यवाद करता हूं, बहुत अच्छा काम किया, सड़कों में वाकई में एक घंटा लगता है. परन्तु एक घंटे वाली वह टोल वाली सड़क है. टोल में पैसा देकर लोग जाते हैं. उसमें जनता के ऊपर बहुत ज्यादा अहसान बताने की आवश्यकता नहीं है. वह पैसा देता है तब उन सड़कों से निकलता है. मेरा इसमें आग्रह है कि यह जो बिना टोल वाली सड़कें रह गई हैं, उनको जून के पहले पूरा करा दीजिए, भाई साहब? मैं आपका धन्यवाद कर दूंगा.
श्री रामपाल सिंह - अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य की चिंता हम लोग समझ रहे हैं. जो आपने सुझाव दिये हैं. हमने भी सुझाव केन्द्रीय मंत्री जी को दिया है कि जो सड़कें बन रही हैं, वहां की सड़कों को भी इसमें जोड़ा जाय. आपने यह अच्छा सुझाव दिया है बाकी चीजें जो आप बता रहे हैं, उसमें हम गंभीरता से चिंता कर रहे हैं. वहां कठिनाई निश्चित रूप से काफी हो रही है. इस बात को स्वीकार करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन हम लोग जो मध्यप्रदेश में सड़कें बना रहे हैं अच्छी सड़कों में अनुभव आया है कि पहले जब विपक्ष की सरकार थी, 10 साल पहले सड़कों में बहुत गड्ढे थे. बहुत कम एक्सीडेंट होते थे. लेकिन अच्छी सड़कों पर एक्सीडेंट की संख्या बढ़ रही है. लेकिन जो यहां का माननीय सदस्य बता रहे हैं, वहां तो हमने जो पुलिस के आंकड़ें बताएं हैं, उसमें पहले ज्यादा दुर्घटना थी. अब वहां पर दुर्घटनाएं कम हुई है. हमने पुलिस अधीक्षक की रिपोर्ट बुलाई है. लेकिन आपने जो कहा है, यदि भारत सरकार से जल्दी स्वीकृति नहीं आती है तो हम स्वयं के संसाधनों से, मध्यप्रदेश शासन से उन सड़कों का काम कराएंगे. जहां तक समय-सीमा का सवाल है तो यह निविदा की प्रक्रिया से निकलना पड़ता है..
श्री बाला बच्चन - आप शायद भूल रहे हैं. विपक्ष के माननीय सदस्य ने नहीं, आपकी ही पार्टी के विधायक ने पूछा है.
श्री रामपाल सिंह - अध्यक्ष महोदय, विपक्ष को बीच में लाना इसलिए जरूरी है कि पुरानी यादें भी ताजा करना है.
श्री बाला बच्चन - हमें आप बीच में लाए ही नहीं. आप तो आपके ही पार्टी के विधायक का जवाब दो.
श्री रामपाल सिंह - अध्यक्ष महोदय, आपके जो स्मृति चिह्न हैं उनको भी थोड़ा रखना जरूरी है, नहीं तो वे पूरे मिट जाएंगे. पूरी सड़कें बन जाएंगी तो आपकी याद कहां से आएगी?
श्री बाला बच्चन - उसको कब तक बीच में लाओगे, अब तो आप तीसरे टर्म में चल रहे हो?
श्री रामपाल सिंह - आप उनको अवसर प्रदान करें. आप नेता प्रतिपक्ष की जवाबदारी से मुक्त हो गये. एक तो कष्ट आपको यह है.
श्री बाला बच्चन - मैं आज फिर जवाबदारी में हूं.
श्री गिरीश गौतम - श्री बाला बच्चन जी, मैं खुद सक्षम हूं और वह मेरे भाई हैं. मैं उनसे लड़कर ले रहा हूं. आप चिंता मत करिए. आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. माननीय मंत्री, इसे जून के पहले करावा दीजिए.
श्री रामपाल सिंह - अध्यक्ष महोदय, तुरन्त हम प्रक्रिया शुरू करेंगे. लेकिन एक प्रक्रिया से हमको निकलना पड़ता है, उसमें हम करेंगे. हम नियम से करेंगे. लेकिन जल्दी ही इस कार्य को कराएंगे, मैं अपनी तरफ से पूरा आश्वस्त माननीय विधायक जी को कर रहा हूं.
श्री केदारनाथ शुक्ल--माननीय अध्यक्ष जी मैं दो बातें कहना चाहता हूं. पहले माननीय मुख्यमंत्री जी, माननीय लोक निर्माण मंत्री जी को इस बात के लिये धन्यवाद दूंगा उन्होंने हमारे विधान सभा क्षेत्र अमरपुर खरबड़ा घाट की सोन नदी में बहुत बड़ा पुल दे दिया है मैं इस बात के लिये उनको धन्यवाद देना चाहता हूं. दूसरी बात जो इस मामले में प्रश्न संबंधी है यह एम.पी.आर.डी.सी की सड़क है और यह राष्ट्रीय राजमार्ग है. वे सड़कें जो छूट गई हैं वह प्रदेश सरकार की पीडब्ल्यूडी की सड़कें हैं इसीलिये केन्द्र सरकार पर इसके लिये निर्भर होना अच्छी बात नहीं है. मैं मंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूं कि क्या वे इन सड़कों को उसके साथ ही बनाने की ऐसी नीति बनाएंगे कि जहां से भी यह राष्ट्रीय राजमार्ग निकल रहे हैं और जो कस्बाई क्षेत्र बाईपास के कारण छूट गये हैं उनकी सड़कें भी उनके साथ ही साथ बन जाएंगी. क्या ऐसी नीति बनायेंगे क्योंकि वह जो सड़कें जो छूट रही हैं वह आपकी हैं.
श्री रामपाल सिंह--माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य जी ने एक अच्छा सुझाव दिया है निश्चित रूप से बायपास की सड़कों का निर्माण होता है इसमें हम लोगों के द्वारा भारत सरकार को निवेदन किया है कि उनके एप्रोच रोड़ को शामिल किये जाए. दूसरा नीति बनाने की बात है इसमें भी जब सड़कों का निर्माण होगा तो पहले ही इसकी तैयारी की जाएगी.
श्री शंकरलाल तिवारी--माननीय अध्यक्ष महोदय, इसमें मेरा कहना है कि सड़क बनाने का ठेका मिला है एम.पी.आर.डी.सी को यह सड़क बन रही है इसमें दूसरी सड़क को सत्यानाश करने का ठेका नहीं मिला है. इसमें मंत्री का जवाब बढ़िया है. मंत्री जी ने सरकारी उत्तर में कोई परेशान नहीं हैं, कहीं धूल नहीं उड़ती है, कोई दिक्कत नहीं है, वहां पर स्थिति यह है कि माननीय सदस्य ध्यानाकर्षण लगा रहे हैं. माननीय मंत्री जी ने चिन्ता को मान लिया है पर मैं कहना चाहता हूं कि जिन्होंने नयी सड़क का ठेका पूरा करने के लिये पुरानी सड़क को नष्ट किया है उनको दंडित करेंगे क्या बात यहां से होनी चाहिये. फिर भविष्य में इस ढंग से ठेके दिये जाएं तो अलग बात है कि सड़कों के संधारण की जिम्मेदारी तथा वहां की पुलियों का निर्माण उनको करने दिया जाए. मेरा निवेदन है यह सुन लीजिये.
अध्यक्ष महोदय--आपकी बात आ गई है. माननीय गिरीश गौतम तथा शुक्ल जी ने यह बात कह दी है.
श्री शंकरलाल तिवारी--अध्यक्ष महोदय, मेरी बात सुन तो लीजिये मैं और बात कहना चाहता हूं. मंत्री जी को जो उत्तर देना होगा वही मिलेगा. मैं यह कह रहा हूं कि सड़कों पर धूल नहीं उड़ती, सब ठीक है और सतना रीवा-चितकूट रोड़ के मामले में भोपाल से अधिकारी पिछले चार साल से जा रहे हैं पूरा सतना रोड़ और हनुमना रोड़ यहां पर चलने लायक स्थिति नहीं है धूल के कारण लोग दमे के मरीज हो रहे हैं. मंत्री जी इन सड़कों को बनायेंगे क्या ? उत्तर तो दिलवा दीजिये.
अध्यक्ष महोदय--उत्तर तो उन्होंने दे दिया है.
श्री शंकरलाल तिवारी--दंडित होने का उत्तर नहीं मिला दूसरा सड़कों के संधारण की जवाबदारी का उत्तर नहीं मिला. रीवा सतना हनुमना सड़क के बारे में भी बता दें.
अध्यक्ष महोदय--इसमें यह नहीं है. मंत्री जी एक बार और बता दें.
श्री शंकरलाल तिवारी--हम तो इसी सड़क से रीवा सतना की ओर जाते हैं.
श्री रामपाल सिंह--माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य जी अच्छे से अपनी बात को रखते हैं तथा अपने क्षेत्र की भी चिन्ता करते हैं, लेकिन आपके सुझाव को लिखा है कि वहां पर कठिनाई हो रही है. हमने आपकी बात को स्वीकार कर लिये है. दूसरी बात उन्होंने शर्तों के हिसाब से उल्लंघन किया है तो उनके ऊपर कार्यवाही भी करेंगे.
(2) रीवा जिले में आवारा पशुओं द्वारा फसलों को नष्ट किये जाने से उत्पन्न स्थिति
श्री सुंदरलाल तिवारी (गुढ़)--माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी ध्यानाकर्षण सूचना का विषय इस प्रकार है.
मंत्री, पशुपालन(श्री अन्तर सिंह आर्य) --अध्यक्ष महोदय,
श्री सुन्दरलाल तिवारी - माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं. मंत्री जी ने अपने जवाब में अपने आप को गौशाला पर केन्द्रित किया है. इस ध्यानाकर्षण का एक अंश था गौशाला. मुख्यत: हमारी जो परेशानी है वह आज की कार्यसूची में ध्यानाकर्षण में उल्लिखित है- रीवा जिले में आवारा पशुओं द्वारा फसलों को नष्ट किये जाने से उत्पन्न स्थिति. हमारे रीवा जिले की समस्या यह है कि यहां की हर पंचायत में,हर गांव में दो सौ से लेकर तीन सौ आवारा प शु घूम रहे हैं और कहीं उनको भूसा-चारा देने वाला नहीं है तो वे कभी दिन में कभी रात में किसानों की फसलों को नष्ट करते हैं. इस संबंध में हम लोगों ने आंदोलन करके कलेक्टर,कमिश्नर को एक ज्ञापन भी दिया और यह पूरे जिले की नहीं पूरे प्रदेश की समस्या है और किसान फसल के नुकसान के कारण रो रहा है. हमारे यहां उमहरिया एक गांव है जो गुढ़ विधान सभा क्षेत्र में आता है. वहां के किसानों ने मिलकर आवारा पशुओं को एक जगह इकट्ठा किया और 7 दिन तक खिलाया-पिलाया. मेरा यह कहना है कि इस संबंध में कानून भी है जिसका पालन न होने से ऐसी स्थिति निर्मित हो रही है. आपने कमिश्नर को पत्र लिखा, कमिश्नर ने कलेक्टर को लिखा,कलेक्टर साहब ने सी.ई.ओ. को लिख दिया,उन्होंने किसको लिखा यह नहीं मालूम. उन्होंने भी तहसीलदार,पटवारी को लिख दिया होगा लेकिन जमीन पर इस संबंध में कोई कार्यवाही नहीं हुई है. पशु अतिचर अधिनियम,1871 जब देश आजाद नहीं हुआ था तब लोगों को इन आवारा पशुओं से चिंता थी. मेरा यह कहना है कि इसमें जो कांजी हाऊस निर्माण करने की बात है तो इस अधिनियम में विभिन्न प्रावधान है तो उनका आप पालन कराएंगे. यदि हर पंचायत में उसका पालन नहीं करवा सकते तो तीन-चार पंचायतों को मिलाकर कांजी हाऊस का निर्माण करवाएं जिससे किसान उन आवारा पशुओं को वहां बंद करा दे और प्रशासन उनका ध्यान रखे ताकि पशुओं की हत्या भी न हो और किसानों की फसल का भी नुकसान न हो. क्या इस दिशा में सरकार कार्यवाही करेगी ?
श्री अंतर सिंह आर्य - माननीय अध्यक्ष महोदय,तिवारी जी हमारे वरिष्ठ सदस्य हैं. उन्होंने जो आवारा पशुओं की चिंता की है वह वाजिब है और उनकी चिंता से मैं सहमत हूं क्योंकि ग्राम पंचायत स्तर पर कांजी हाऊस की व्यवस्था होना चाहिये, तभी किसान की समस्या का समाधान हो सकता है. मैं तिवारी जी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि जहां तक ग्राम पंचायत का मामला है मैं पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से अनुरोध करूंगा और माननीय मुख्यमंत्री जी से भी इस बारे में चर्चा करेंगे कि रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत ग्राम पंचायत में कांजी हाऊस हो जाये. यदि वहां कांजी हाऊस की व्यवस्था हो जायेगी तो किसानों को इस समस्या से निजात पा सकते हैं. इसी प्रकार नगर निगम,नगर पंचायत में भी यह समस्या है. जो नियम बना है संबंधित विभाग से हम प्रयास करेंगे कि उसको सख्ती से लागू किया जाये, ताकि इस समस्या का समाधान हो सके.
अध्यक्ष महोदय-- सिर्फ सीधा प्रश्न कर दें, डॉ. साहब, के.पी. सिंह जी पूछ लेंगे, लंबा हो जायेगा विषय.
श्री सुन्दरलाल तिवारी-- इस पूरे सदन की चिंता है माननीय वरिष्ठ पूर्व मंत्री और विधायक वर्तमान माननीय गोविंद सिंह जी ने इस विषय पर रेग्यूलेशन भी ले आये, प्रश्न भी रखा.
अध्यक्ष महोदय-- आप तो पूछ लीजिये, डॉक्टर साहब तो इस प्रश्न को बार-बार उठाते हैं.
श्री सुन्दरलाल तिवारी-- माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी से मेरा निवेदन है कि आपने एक और कानून बना रखा है, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1969.
श्री आरिफ अकील-- यह कसाईयों के लिये भी है.
श्री सुन्दरलाल तिवारी-- कसाईयों के लिये ही नहीं है. जो पशु के स्वामी है, पशुओं के मालिक हैं वे पशुओं को छोड़ देते हैं इसके संबंध में धारा 11 में एचआईजे तीन क्लाजेज हैं, जो सड़कों पर छोड़ देते हैं उनके संबंध में भी है, तो क्या इस अधिनियम का पालन भी विधिवत करायेंगे और चिन्हित करायेंगे कि किसने इनको आवारा पशु बनाया, इसके मालिक कौन हैं और उनके खिलाफ दण्डात्मक कार्यवाही करने के निर्देश देंगे ?
श्री अंतर सिंह आर्य-- अध्यक्ष जी, माननीय की चिंता से हम भी सहमत हैं. यह सिर्फ रीवा जिले का मामला नहीं है, पूरे मध्यप्रदेश की भी समस्या है. मैं समझता हूं कि कई दिनों से सदन के माननीय सदस्य इस ओर किसी न किसी रूप में ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं. मैं आपके सुझाव से सहमत हूं और हमारे संबंधित नगरीय विकास विभाग के माननीय मंत्री जी से भी अनुरोध करेंगे कि नगर निगम क्षेत्र के अंदर इसका शक्ति से पालन किया जाये.
श्री सुन्दरलाल तिवारी-- अध्यक्ष महोदय, हमारे यहां रीवा में गौशाला है उसमें 200 गायें इकट्ठा मर गईं, तो क्या उसकी विधिवत जांच करायेंगे.
अध्यक्ष महोदय-- बैठ जाइये, आपने बहुत सिस्टमेटिक पूछा, पर अब दूसरे सदस्यों को भी पूछने दें.
श्री सुखेन्द्र सिंह बना (मऊगंज)-- अध्यक्ष महोदय, हमने जो ध्यानाकर्षण दिया था उसमें हमने दो तरह की बातें कही थीं. एक तो आवारा पशु और दूसरे जंगलों में जो पशु हैं खास करके रोजड़े, इनके द्वारा जो फसलों को लगातार नुकसान पहुंचाया जा रहा है और खासकर हमारा जिला, हमारा विधान सभा क्षेत्र उत्तरप्रदेश बार्डर से लगा है और जंगलों से भी लगी है फसलों के नुकसान के कारण लगातार किसान आत्महत्या कर रहे हैं और परेशान हैं. हमारा अनुरोध यह है कि अभी हमारे वरिष्ठ सदस्य तिवारी जी ने आवारा पशुओं को लेकर के बड़े विस्तार से चर्चा की. उत्तरप्रदेश से मवेशी लाकर के यहां पर छोड़ दिये जाते हैं, जिससे लगातार एक्सीडेंट होते हैं, उनका कोई माई-बाप नहीं है. मेरा अनुरोध यह है कि जो उत्तरप्रदेश से मवेशी आ रहे हैं उनके लिये आप क्या रोकथाम करेंगे और सबसे ज्यादा जो रोजडों के द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, किसान परेशान है, उसके लिये क्या किया जायेगा.
श्री अंतर सिंह आर्य-- माननीय अध्यक्ष जी, माननीय सदस्य ने रोजड़ों और नीलगाय की बात कही है, वास्तव में वह किसानों की फसल का नुकसान करते हैं, इसके लिये भी शासन ने उसकी क्षतिपूर्ति देने की व्यवस्था की है, हलांकि यह वन विभाग से संबंधित है फिर भी माननीय सदस्य ने बात रखी है.
डॉ. गोविंद सिंह-- मंत्री जी, रोजड़े मारने के लिये संशोधन हो चुका है, अब वन विभाग को नहीं लिखना है. केवल एसडीएम को अधिकार दिये गये हैं, गजट हमारे पास है, हमने शेजवार साहब को भी दे दिया है.
अध्यक्ष महोदय-- वह उत्तर दे रहे हैं, आपका सुझाव क्या है वह आप बता दीजिये.
डॉ. गोविंद सिंह-- गजट में रोजड़े के लिये व्यवस्था है और हमने शेजवार जी को भी दे दिया था, उसमें रोजड़ों को मारने के लिये व्यवस्था है, रोजड़े नष्ट कर सकते हैं. सरकार में इतनी बुद्धि नहीं है, वन मंत्री तक को पता नहीं था, मैंने बताया है. .... (व्यवधान)....
अध्यक्ष महोदय-- आपस में बहस मत करिये, डॉक्टर साहब केवल सुझाव देंगे. के.पी. सिंह जी आप कुछ कह रहे हैं.
श्री के.पी.सिंह -- माननीय अध्यक्ष महोदय, यह समस्या पूरे प्रदेश की है. दो अलग अलग मामले हैं एक तो आवारा पशु की बात है दूसरी रोजड़ों वाली बात है. आवारा पशुओं की हालत इतनी दयनीय है कि गांव वाले फसल नष्ट न हों इसके लिये आवारा पशुओं के पेरों में कीलें तक ठोक देते हैं, इतनी बुरी हालत में मैंने देखा है कि मैं यहां पर उसको बखान नहीं कर सकता. मंत्री जी से अनुरोध है कि पशु चिकित्सा विभाग और गो सेवा आयोग यह व्यवस्था करे. चूंकि हम आवारा पशुओं की परेशानी की बात कर रहे हैं तो उनकी परेशानी यह है कि गांव में चरनोई की जमीन बची नहीं है, पशु अपना पेट भरने के लिये कहां जाये, आदमी भी भूखा रहता है तो उसकी बुद्धि भी कभी कभी भ्रमित हो जाती है. केवल कांजी हाउस से काम इसलिये नहीं चलेगा क्योंकि पंचायतों के पास में इन पशुओं को खिलाने के लिये पैसा नहीं है और आवारा पशुओं को लोग छुड़ाने के लिये आते नहीं है, क्योंकि मालिक उन पशुओं को छोड़ ही देते हैं, ऐसी स्थिति में पंचायत उनको कहां से खिलाये, मेरा अनुरोध है कि इसमें एक व्यवस्था यह की जाये कि गौ सेवा आयोग की ओर से प्रत्येक पंचायत में व्यवस्थित रूप से एक गौशाला खोली जाये सरकार को अलग से इसके लिये बजट में प्रावधान करके पंचायतों को पैसा देना पड़ेगा, तभी चारा उपलब्ध होगा तब जाकर के वह गौ शालायें चल पायेंगी. इससे आवारा पशुओं की समस्या समाप्त हो जायेगी.
अध्यक्ष महोदय, रोजड़ों वाली जहां तक बात है डॉ.साहब के विभाग के बारे में राज्यपाल महोदय के अभिभाषण में जिक्र किया गया था कि हमने 4 रोजड़े पकड़ लिये हैं. इन रोजड़ों को पकड़ने से काम नहीं चलेगा. वन मंत्री जी को इस बारे में ज्यादा जानकारी होगी कि वास्तव में इन रोजड़ों को मार सकते हैं या नहीं अगर मार सकते हैं तो वन विभाग को क्लीयर करना चाहिये ...
अध्यक्ष महोदय-- समय ज्यादा हो रहा है वन मंत्री जी यदि उत्तर देना चाहते हैं तो दें.
श्री के.पी.सिंह-- अध्यक्ष महोदय, बात पूरी हो जाये. अभी क्या हो रहा है कि जैसे ही रोजड़े को मारते हैं तो विभाग वाले तत्काल पहुंच जाते हैं और किसान को उसमें मुल्जिम बना देते हैं. इसके कारण रोजड़ों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है.वन मंत्री जी स्पष्ट करें कि इनके मारने पर पाबंदी है या नहीं है.
वन मंत्री(डॉ.गौरीशंकर शेजवार) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, रोजड़ों के बारे में यह तय है कि उनकी संख्या बढ़ रही है और वन भूमि से लगे हुये जो किसानों के खेत हैं वहां पर वह नुकसान भी कर रहे हैं. अब यहां पर दो प्रश्न आये हैं एक तो रोजड़ों को पकड़ने की बात आई है और रोजड़ो को मारने की बात आई है तो आखिर कितने रोजड़ो मारेंगे हम ? दो चीजें हैं, इन रोजड़ो को मारने के लिये एसडीएम के पास में जो अधिकार हैं उसमें विस्तार से उल्लेख है कि खेत में यदि रोजड़े मिलते हैं और खेत में ही मिलना चाहिये, तभी उसको मार सकते हैं, खेत के बाहर नहीं मिलना चाहिये. मान लो कि यदि किसान ने गोली भी चलाई और रोजड़े को मारा भी तो वह दोड़कर के जायेगा और खेत से बाहर हो जायेगा तो वह गैर-कानूनी हो जायेगा. इसलिये मेरा यह कहना है कि मारने वाली बात पर मेरा विश्वास नहीं है. अब दो ही चीजें हमारे सामने हैं कि एक तो उन्हें पकड़ना चाहिये और दूसरा फसल की यदि क्षति होती है तो उसका पर्याप्त मुआवजा मिलना चाहिये. अब दोनों विषयों के बारे में सरकार पूरी चिंता कर रही है और दोनों व्यवस्थायें भी सरकार ने की हैं. पकड़ने का जहां तक सवाल है तो केवल 25 या 5 रोजड़ो को पकड़ने की बात नहीं है. वह वन्य प्राणी हैं और किसी भी वन्य प्राणी को जब हम पकड़ेंगे तो मनुष्य और बाकी चीजों से हेंडलिंग से उसकी मृत्यु नहीं होना चाहिये.
अध्यक्ष महोदय- कृपया समाप्त करें. आगे ओर भी ध्यानाकर्षण भी हैं.(कांग्रेस पार्टी के सदस्यों द्वारा खड़े होकर इस मामले में एक मिनट का समय दिये जाने की मांग पर ) क्या है. श्री केपी. सिंह जी वरिष्ठ सदस्य थे इसलिये मैंने उनको अनुमति दे दी. यहां पर क्या विस्तार से चर्चा हो रही है. मंत्री जी कृपया एक मिनट में अपनी बात को समाप्त करें.
डा. गौरीशंकर शेजवार - अध्यक्ष महोदय, हमने रोजड़ों को पकड़ने के लिए प्रयोग के तौर पर एक बोमा पद्धति से रोजड़ों को पकड़ा है, इसका प्रयोग हमने खरगौन और नीमच जिले में किया है. अब बड़ी संख्या में हम उसी बोमा पद्धति से पकड़ेंगे और सैकड़ों और हजारों की संख्या में इन्हें पकड़कर ट्रांसलोकेट करेंगे. दूसरी तरफ राजस्व विभाग से जो क्षतिपूर्ति किसानों को मिलती थी, हमने प्रस्ताव भेजा है कि अब क्षतिपूर्ति सीधा वन विभाग किसानों को दे ताकि उन्हें दस जगह नहीं जाना पड़े. किसान की फसल यदि नुकसान होती है तो, उन्हें शीघ्र अतिशीघ्र मुआवजा मिले. (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय - श्री गोविन्द सिंह पटेल, कृपया अपना ध्यानाकर्षण पढ़े. नहीं कोई नहीं बोलेगा. अगले बार से दो ध्यानाकर्षण लेंगे ऐसे करेंगे तो, इसमें आप ही का नुकसान है. हमने सिर्फ सुखेन्द्र सिंह जी को एलाऊ किया था. श्री गोविन्द सिंह पटेल, कृपया अपना ध्यानाकर्षण पढ़े.
(3) गाडरवाड़ा विधान सभा क्षेत्र के ग्राम बड़ागांव में आवागमन हेतु पहुंच मार्ग न होना
श्री गोविन्द सिंह पटेल (गाडरवाड़ा) - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी ध्यान आकर्षण सूचना का विषय इस प्रकार है-
12.47 बजे स्वागत उल्लेख
श्री कृष्ण मुरारी मोघे, पूर्व सांसद एवं मध्यप्रदेश हाऊसिंग बोर्ड के अध्यक्ष का सदन में स्वागत
श्री सुदर्शन गुप्ता (आर्य) - माननीय अध्यक्ष महोदय, दर्शक दीर्घा में मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष, पूर्व सांसद माननीय कृष्ण मुरारी जी मोघे जी बैठे हैं, उनका स्वागत है.
अध्यक्ष महोदय - पूर्व सांसद श्री मोघे जी का सदन की ओर से स्वागत करते हैं.
12.48 बजे ध्यानाकर्षण (क्रमश:)
राज्यमंत्री ( श्री विश्वास सारंग) - माननीय अध्यक्ष महोदय,
श्री गोविन्द सिंह पटेल - माननीय अध्यक्ष महोदय, वहां पर यह एक बहुत गंभीर समस्या है, मंत्री जी ने अभी जवाब दिया. वहां 10-11 कार्य ऐसे हैं जिनकी राशि एजेंसियों के पास है और काम नहीं हो पा रहे हैं. बड़ागांव में 6 टोला है, जिनकी जनसंख्या 1438 है, वहां एक हाईस्कूल है, एक माध्यमिक शाला है, 6 प्राथमिक शाला एवं एक आंगनवाड़ी केन्द्र है. एक करोड़ रूपए का वहां हाईस्कूल स्वीकृत है.एक करोड़ का वहां हाई स्कूल भवन स्वीकृत. 12 लाख का प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र स्वीकृत, 10.11 लाख का आंगनवाड़ी भवन स्वीकृत , 9.4 लाख के प्राथमिक शाला के 2 अतिरिक्त कक्ष स्वीकृत, 16.45 लाख का माध्यमिक शाला भवन स्वीकृत, 6.70 लाख का तालाब बड़ागांव में स्वीकृत, 6. 70 लाख का तालाब तलैया में स्वीकृत, 1 .93 लाख का कूप निर्माण, 5 लाख का आदिम जाति भवन, इतने भवन स्वीकृत हैं और सब की राशि एजेंसियों के पास है. लेकिन वहां सड़क नहीं है. तो अभी पंचायत के द्वारा मनरेगा से हम लोगों ने 5 लाख रुपये खर्च करके जेबीसी से 5-5,7-7 बोरी सीमेंट ले जाकर ऐसी काम चलाऊ सड़क बनाई और वहां पूरे 6 टोलों में शौचालय बनवा दिये हैं, जिससे जो ओडीएफ जिला होने के कारण दिक्कत आ रही थी, वह काम हो गया है, लेकिन भवन बनने के लिये सीमेंट, लोहा पहुंचने के लिये बहुत बड़ी दिक्कत है. जैसा कि मंत्री जी ने जवाब दिया कि वहां सड़क बनने के लिये 2 विकल्प हैं. एक गोटेटोरिया से 10 किलोमीटर और एक ढाना से 16 किलोमीटर है. प्रधान मंत्री सड़क योजना में पहले 16 किलोमीटर की सड़क का शायद सर्वे हुआ था, लेकिन वन विभाग की उसमें सहमति नहीं मिली. आज वहां के लोग ..
अध्यक्ष महोदय -- आप सीधा प्रश्न करें. आपकी बात तो आ गई, आपका विषय आ गया. मंत्री जी भी सहमत दिख रहे हैं., किन्तु जो अड़चन है, वह कैसे दूर होगी,यह आप सीधा पूछ लें.
श्री गोविन्द सिंह पटेल -- अध्यक्ष महोदय, एक गंभीर विषय है. पिसाई के लिये भी 12 किलोमीटर लोग नीचे आते हैं. इसलिये मेरा कहना है कि सड़क एक दिन में बनेगी नहीं. कम से कम 6 महीने में सड़क बनवा दें, जिससे कि वहां के काम जो पड़े हैं, वह पूरे हो जायें और स्वास्थ्य सुविधायें एवं जितनी शासन की सुविधायें हैं, वह लोगों को मिल सकें, मैं मंत्री जी से यह जवाब चाहता हूं.
श्री विश्वास सारंग -- अध्यक्ष महोदय, जैसा कि विधायक जी ने विभिन्न निर्माण कार्यों की स्वीकृति की यहां पर पूरी लिस्ट पढ़ी, यह निश्चित रुप से इनकी सजगता, सहजता और जुझारुपन का ही परिणाम है कि इन्होंने अपने क्षेत्र में इतने कार्य स्वीकृत कराये. जैसा हमने अपने उत्तर में कहा है कि जैसे ही वन विभाग की स्वीकृति हमें मिलेगी, हम त्वरित कार्यवाही करके यह सड़क का निर्माण करायेंगे. हमारा विभाग इसके लिये सहमत है.
श्री गोविन्द सिंह पटेल -- अध्यक्ष महोदय, वन मंत्री जी भी यहीं बैठे हैं. वन मंत्री जी यहीं से स्वीकृति दे दें. इतना महत्वपूर्ण विषय है. वह सड़क बन जाये, क्योंकि वहां कोई जन प्रतिनिधि गया नहीं. मैं पहली बार वहां गया और कलेक्टर साहब भी वहां गये. वन मंत्री जी स्वीकृति दे दें.
वन मंत्री (डॉ. गौरीशंकर शेजवार) -- अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय सदस्यों और माननीय मंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूं कि वन विभाग से कोई अच्छा विभाग नहीं है. मेरा यह कहना है कि संबंधित विभाग, जिसको भूमि चाहिये, उसके लिये एक फार्मेट है और एक फार्म है. मैं किसी पर आरोप नहीं लगा रहा हूं, सामान्य तौर पर ठेकेदारों ने एक प्रेक्टिस बनाकर रखी है कि मंत्री जी से और विधायकों से यह कहलवा दो, तो उस फार्मेट को नहीं भरना पड़ेगा. मेरा यह कहना है कि वन संरक्षण अधिनियम में कोई भी अधिकारी चूक नहीं करता और न उसे करना चाहिये. केंद्र सरकार से अनुमति मिलती है और बहुत साधारण से नियम हैं, हमने इसके लिये वर्कशॉप भी करवाई थी, जिसमें संबंधित निर्माण कार्यों से जुड़े हुए जो विभाग हैं, उन विभाग के अधिकारियों को बुलाकर हमारे डीएफओ और सीसीएफ के साथ फार्मेंट में फार्म भरवाने की बात कही थी. तो आप विधिवत फार्म को भर दीजिये. हमारे यहां किसी भी लेविल पर डीएफओ से लेकर पीसीसीएफ और सरकार के लेविल पर एक दिन में एफसीए की फाइल निकलती है. जो वन संरक्षण अधिनियम में कोई लापरवाही, डिले, कोताही कहीं नहीं होती है. लेकिन आपको फार्म भरना पड़ेगा, क्योंकि केंद्र सरकार का वन संरक्षण अधिनियम है. सुप्रीम कोर्ट की उसमें पूरी पूरी निगाहें हैं. तो अधिकारी यदि फार्म नहीं भर पायें, तो मैं डीएफओ से कह दूंगा कि वह विधि विधान से फार्म भरवा लें, प्रॉपर एप्लाई कर दें . जो नियम हैं और जो बदले में हमें काम करना है, इसमें निर्माण के कार्यों में तो कहीं भूमि वगैरह अतिरिक्त देना नहीं पड़ती. थोड़ी बहुत आवश्यकता है, पैसा भरना पड़ता है. तो उसको भरवा दीजिये. 5 मिनट में आपका काम हो जायेगा.
श्री गोविन्द सिंह पटेल -- अध्यक्ष महोदय, वहां भवन बनाने के लिये रास्ते की जरुरत है. मंत्री जी से निवेदन है कि वहां 6 महीने में सड़क बन जाये, इतनी व्यवस्था कर दें.
श्री विश्वास सारंग -- अध्यक्ष महोदय, इस रोड में लगभग 5 हेक्टेयर वन भूमि आ रही है और हमारे विभाग ने कलेक्टर के माध्यम से डीएफओ से बात कर ली है. जैसा मंत्री जी ने यहां पर कहा है कि हमारा विभाग प्रॉपर एप्लाई कर रहा है और प्राथमिक रूप से सहमति आई है कि वन विभाग इसमें हमें सहमति देगा और उसके बाद हम इसका निर्माण करेंगे.
श्री गोविन्द सिंह पटेल - धन्यवाद मंत्री महोदय एवं अध्यक्ष जी.
अध्यक्ष महोदय - श्री जितू पटवारी.
श्री सुदर्शन गुप्ता (आर्य) - माननीय अध्यक्ष महोदय, यह व्यवस्था का प्रश्न है.
अध्यक्ष महोदय - आप बैठ जाएं.
श्री सुदर्शन गुप्ता (आर्य) - मेरे द्वारा ध्यानाकर्षण दिया गया था. यह वरीयता नम्बर पर आता है. मैंने दिनांक 15 फरवरी को ध्यानाकर्षण लगाया था, जिसका क्रमांक-43 था और जितू भाई ने 16 दिन के बाद, दिनांक 1 मार्च के लिए ध्यानाकर्षण लगाया था, उनका क्रमांक-404 है, तो वरीयता में मेरा नम्बर आगे है, (XXX) इसमें मेरा नाम प्रथम स्थान पर आना चाहिए. यह जो प्रारूप बनाया गया है, यह मेरे द्वारा बनाया गया है. (XXX)
श्री जितू पटवारी - माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरे ध्यानाकर्षण की सूचना इस प्रकार है.
अध्यक्ष महोदय - जितू पटवारी जी आपको ही अवसर देंगे, उन्हें नहीं देंगे पर उनकी बात का उत्तर दे लेने दें.
श्री सुदर्शन गुप्ता (आर्य) - माननीय अध्यक्ष महोदय, (XXX) इसमें 16 दिन पहले मेरा ध्यानाकर्षण लगा है और उसका क्रमांक 43 है और जितू पटवारी का क्रमांक 404 है. पहले मेरा नाम आना चाहिए. यह विधानसभा का नियम है कि जो पहले लगाता है, उसका पहले आता है. (XXX)
अध्यक्ष महोदय - इस विषय को हम दिखवा लेते हैं और इस विषय में भी आपको पूरा समय देंगे.
श्री सुदर्शन गुप्ता (आर्य)- ठीक है, धन्यवाद अध्यक्ष जी.
अध्यक्ष महोदय - उनसे ज्यादा दे देंगे.
श्री सुदर्शन गुप्ता (आर्य)- हमको आप पर पूरी आस्था और विश्वास है. धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय - पहले नाम वालों से ज्यादा देंगे और इसको भी हम दिखवा लेंगे कि यह त्रुटि कहां पर हुई है ?
श्री जितू पटवारी - अध्यक्ष जी, व्यवस्था बनाने के लिए धन्यवाद.
अध्यक्ष महोदय - अब आप पढ़ें.
(4) प्रदेश के निजी विद्यालयों द्वारा मनमानी फीस ली जाना
श्री जितू पटवारी (राऊ) [श्री सुदर्शन गुप्ता (आर्य)]- अध्यक्ष महोदय, मेरी ध्यान आकर्षण की सूचना का विषय इस प्रकार है -
स्कूल शिक्षा मंत्री, (कुंवर विजय शाह)-- माननीय अध्यक्ष महोदय,
श्री जितू पटवारी-- माननीय अध्यक्ष महोदय, दो बातें बहुत ही महत्वपूर्ण आईं. पहली मंत्री जी ने जैसा कहा कि हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़े हुए हैं. उन्होंने शुरुआत में कहा कि मैंने जो आरोप लगाए हैं. वह ठीक नहीं हैं, और फिर उन्होंने ही कहा कि हां यह सही है कि इन-इन स्कूलों ने फीस में वृद्धि की है और यह बात हमें पता है. यहां दो-तीन स्कूलों के नाम भी बताए गए. (XXX). दोनों बातें आप ही ने कबूल की हैं.
अध्यक्ष महोदय-- कृपया प्रश्न पूछें. इसे कार्यवाही से निकाल दें, इसे विलोपित करें.
श्री जितू पटवारी- अध्यक्ष महोदय, मेरा दूसरा प्रश्न है कि आठ साल से यह प्रक्रिया चालू की गई है. ढाई साल में बाबा साहब अंबेडकर ने संविधान लागू करवा दिया. इतने साल में जिन बच्चों के, जिन पालकों के साथ अन्याय होता आ रहा है इसके लिए दोषी कौन है . आपसे पहले जो मंत्री थे उन्होंने एक वक्तव्य मेरे साथ बैठकर अखबार को दिया कि हम तो लागू करना चाहते हैं. अधिकारी नहीं चाहते हैं और उसकी हेडिंग बनी. यह वह अखबार है. (अखबार की कटिंग दिखाई गई) मैं यह नहीं समझता हूं कि वह अधिकारी कौन हैं जिन्होंने इसे लागू नहीं होने दिया और अगर इतने दिन तक यह परेशानी पालकों को झेलनी पड़ी तो इसके लिए दोषी कौन है?
कुंवर विजय शाह-- माननीय अध्यक्ष महोदय, हमारा शासन, हमारा विभाग इस मुद्दे को लेकर बहुत गम्भीर है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश, हाईकोर्ट के निर्देश का पूर्ण विधिसम्मत अध्ययन करते हुए कोई ऐसी बात हम अधिनियम में नहीं रखना चाहते ताकि बाद में सरकार को कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में खड़ा रहना पड़े. दूसरी ओर चूंकि बहुत गंभीर विषय है और पूरी गंभीरता के साथ बहुत जल्द हम इस अधिनियम को लागू करने जा रहे हैं.
श्री जितू पटवारी--अध्यक्ष महोदय, आपको ध्यान होगा इस विषय में मैंने इससे पहले एक प्रायवेट विधेयक लगाया था उस पर चर्चा हुई थी आप उसके साक्षी हैं. तब कहा गया था कि 27.7.2016 को यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुआ कि शीतकालीन सत्र जो चला गया उसमें यह विधेयक आएगा, सरकार लाएगी और पास कर दिया जाएगा. यह पटल की प्रापर्टी है मेरे पास इसका रिकार्ड भी है आप कहें तो मैं इसे पटल पर रख दूं.
अध्यक्ष महोदय--आप तो प्रश्न पूछें.
श्री जितू पटवारी--मेरा प्रश्न यह है कि तब भी आपने कहा था और डिले हुआ इसकी क्या गारंटी है कि आप 2018 में इसको ला ही देंगे.
कुंवर विजय शाह--माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य से ज्यादा सरकार चिंतित है. यहां पर चर्चा हेतु अधिनियम बन रहा है. हम आपसे चर्चा उपरांत लागू करेंगे लेकिन मैं आपके माध्यम से इस सदन को आश्वस्त कर देना चाहता हूँ कि आगामी शैक्षणिक सत्र अप्रैल के बाद जो चलेगा उससे पहले हमारे यह नियम लागू कर दिए जाएंगे.
श्री जितू पटवारी--अध्यक्ष महोदय, यह बहुत अच्छी बात है कि मेरे साथ स्कूल में पढ़े हुए विद्यार्थी जब मंत्री बने तो शिक्षक और पालकों के लिए कुछ किया इसके लिए उनको धन्यवाद देता हूँ. धन्यवाद.
श्री सुदर्शन गुप्ता (इंदौर-1)--माननीय अध्यक्ष महोदय, चूंकि मूल प्रश्नकर्ता मैं ही था यह जो प्रारुप बनाया गया वह मेरे द्वारा ही बनाया गया और 16 दिन पहले मैंने यह बना लिया था और श्रेय जितू पटवारी जी ले रहे हैं और कह रहे हैं कि नकल करके पास हुए हैं. नकल करके पास कौन हुआ है यह तो आज पूरा सदन देख रहा है कि इन्होंने इस ध्यानाकर्षण की नकल की है. माननीय अध्यक्ष महोदय, यह जांच का विषय है कि कांग्रेस वाले किस तरीके से किस हद तक जाकर गड़बड़ी करते हैं. यह सीधा-सीधा दिख रहा है विजय शाह जी मंत्री बन गये और वे प्रतिपक्ष में हैं.
अध्यक्ष महोदय--गुप्ता जी आप अपना प्रश्न करें.
श्री सुदर्शन गुप्ता--माननीय अध्यक्ष महोदय, यह मामला गंभीर है. मंत्री जी के जवाब में विरोधाभास आ रहा है एक तरफ वे कह रहे हैं कि मनमानी नहीं चल रही है और दूसरी तरफ खुद स्वीकार कर रहे हैं कि फीस वृद्धि 12, 13, 16, 23 और 33 प्रतिशत हुई है.
श्री के.पी. सिंह--यह तो जितू की नकल हो रही है.
श्री सुदर्शन गुप्ता--माननीय अध्यक्ष महोदय, हर वर्ष अगर इस तरीके से फीस की वृद्धि होगी तो बालक किस तरह से निजी स्कूलों पढ़ पाएंगे. वहां पर पढ़ना उन बेचारों की मजबूरी है. मैं मंत्री महोदय से पूछना चाहूंगा कि क्या निजी विद्यालय में फीस निर्धारण आयोग गठित है. यदि हां तो उस दिशा में निजी विद्यालयों की फीस निर्धारण किए जाने को लेकर शासन व नियामक आयोग की संयुक्त रुप से क्या भूमिका है. दूसरा प्रश्न है कि शिक्षा का कानून आरटीई के तहत अधिकार का विषय बन गया है. बस्ते का बोझ कम हो, शिक्षा अनिवार्य हो, स्कूल चले अभियान हो लेकिन फीस निर्धारण कम कैसे हो यह हमारी चिंता का विषय है. मैं मंत्री महोदय से चाहूंगा कि इन दोनों प्रश्नों का उत्तर दें.
1.09 बजे {सभापति महोदय (श्री दुर्गालाल विजय) पीठासीन हुए}
कुंवर विजय शाह--माननीय सभापति महोदय, माननीय सुदर्शन जी ने जो प्रश्न उठाया है वास्तव में बहुत सटीक है. सरकार कभी नहीं चाहेगी शिक्षण संस्थाएं व्यावसायिक लाभ कमाने के उद्देश्य से कोई प्रायवेट शिक्षण संस्था चलाए. इसके लिए जो चिंता सुदर्शन जी ने व्यक्त की है मैं उन्हें आश्वस्त करता हूँ कि सरकार यह भी सोच रही है कि बार-बार मनमर्जी की फीस वृद्धि न हो क्यों न हम इसे मूल्य वृद्धि के साथ जोड़ दें जितनी महँगाई बढ़ेगी उतनी स्कूल की फीस वृद्धि हो जाएगी. इस पर भी सरकार विचार कर रही है. इससे मनमर्जी की फीस वृद्धि पर रोक लगेगी. जो मुद्दा सुदर्शन जी ने उठाया है निश्चित रुप से आने वाले शिक्षण सत्र के पहले हम कठोर कानून ला रहे हैं और जो प्रायवेट शिक्षण संस्थाएं नये शिक्षण सत्र से इसका पालन नहीं करेंगी उनकी मान्यता तक निरस्त कर दी जाएगी.
श्री सुदर्शन गुप्ता--माननीय मंत्री जी धन्यवाद. माननीय सभापति जी को भी धन्यवाद.
श्री जितू पटवारी--गुप्ता जी आपको श्रेय मिल गया.
श्री मनोज निर्भय सिंह पटेल--यह तो कल पता अखबारों में चलेगा कि किसको श्रेय मिला.
1.10 बजे स्वागत उल्लेख
डॉ. सुधीर कुमार मिश्रा, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं मुख्य नियंत्रक, डी.आर.डी.ओ., रक्षा मंत्रालय का सदन में स्वागत
सभापति महोदय- आज सदन की दीर्घा में डॉ. सुधीर कुमार मिश्रा, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं मुख्य नियंत्रक, डी.आर.डी.ओ., रक्षा मंत्रालय उपस्थित हैं, सदन की ओर से उनका स्वागत है. (मेजों की थपथपाहट)
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री (श्री उमाशंकर गुप्ता)- सभापति महोदय, ये गौरव का विषय है कि डॉ.सुधीर कुमार मिश्रा, जबलपुर के ही हैं और मुख्यमंत्री जी द्वारा उन्हें मध्यप्रदेश गौरव का सम्मान दिया गया है.
1.11 बजे याचिकाओं की प्रस्तुति
सभापति महोदय- आज सदन की कार्यसूची में सम्मिलित सभी याचिकायें प्रस्तुत की हुई मानी जायेंगी.
1.12 बजे वक्तव्य
राज्य एवं जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों के कर्मचारियों के संविलयन एवं कालातीत ऋणों की वसूली हेतु लागू एकमुश्त समझौता योजना के संबंध में राज्यमंत्री सहकारिता का वक्तव्य
राज्यमंत्री, सहकारिता (श्री विश्वास सारंग)- माननीय सभापति महोदय,
डॉ.गोविन्द सिंह (लहार)- माननीय सभापति महोदय, मंत्री जी ने जो वक्तव्य दिया है, वह सराहनीय है, लेकिन 38 राज्य एवं जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों के कर्मचारियों के संविलयन का निर्णय शासन द्वारा 2015 में लिया गया था. इसमें इतना लंबा समय लगने की कोई आवश्यकता नहीं है. आप नौजवान मंत्री हैं, यदि आप चाहें तो इसमें कोई दिक्कत वाली बात नहीं है. पूरे मध्यप्रदेश में वर्तमान में 3100-3200 के करीब पद सहकारी बैंकों में रिक्त हैं. अपैक्स बैंक में 40 के करीब पद रिक्त हैं. इसके अतिरिक्त पूरे मध्यप्रदेश के जिला कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों में 1045 पद हैं. लगभग 1/3 पद ही ऐसे हैं जो आपको भरने हैं. आपको किसी अन्य विभाग में भी नहीं जाना है.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ. नरोत्तम मिश्र)- सभापति महोदय, डॉ.गोविंद सिंह ने अपनी बात के प्रारंभ में कहा कि सहकारिता मंत्री जी ने जो निर्णय लिया है, वह सराहनीय है. कल भी हमने नेता प्रतिपक्ष जी का भाषण सुना, किसी ने बजट की एक शब्द भी आलोचना नहीं की है. सरकार सराहनीय कार्य कर रही है. लेकिन जब सामने वाली बैंचों से सराहनीय की आवाज आती है, तो अच्छा लगता है. हमने इस बार बहुत ही सराहनीय बजट पेश किया है. आज प्रश्नकाल के दौरान भी सरकार के काम-काज की समीक्षा की गई. माननीय सभापति महोदय, मैं डॉ.गोविंद सिंह जी को धन्यवाद देने के लिए खड़ा हुआ हूं कि यह अच्छी चीज परंपरा में आ गई है.
डॉ. गोविन्द सिंह- माननीय सभापति महोदय, मैं कहना चाहता हूं कि केवल 1045 पद हैं. करीब 3100-3200 पद खाली हैं. 1600 पदों हेतु इंटरव्यू के लिए आपने विज्ञापन जारी कर दिए हैं. फिर भी आपके पास करीब 1600 पद बचते हैं. 1600 पदों में से केवल 1000 पद आपको भरने हैं. हमारा आपसे अनुरोध है कि कॉपरेटिव बैंकों में जो पद खाली पड़े हैं, उन्हें आप भरें. अकेले भिण्ड में ही 168 पद सेक्रेटरियों के खाली पड़े हैं और भिण्ड भूमि विकास बैंक, कृषि ग्रामीण विकास बैंक के कुल 22-23 कर्मचारी हैं. एक तो आप जो ब्याज बढ़ा रहे हों 30 तक जून में बढ़ाया है, समझौता योजना, यह तो ठीक है बढ़ा दिया. कर्मचारियों को 2-2, 3-3 साल से तनख्वाह नहीं मिल रही है. भूखों मरने की कगार पर हैं, रोजी-रोटी नहीं चल रही है इसलिए हमारा आप से अनुरोध है कि आप इसका जल्दी से जल्दी निराकरण करें. केवल कर्मचारियों के संविलियन का तो आप तत्काल कर दें और हो जाएगा इसमें अगर कुछ है तो आप बुला लें, एक दिन बैठ कर सब निर्णय हो जाएगा. आपको बैंकों में भी नहीं भेजना है, यह आप से उम्मीद है कि आप नौजवान हैं, जल्दी काम करते हैं इसलिए जल्दी से जल्दी, एक महीने के अन्दर, मार्च के महीने में समस्या का निदान कर दें, ताकि तमाम लोगों के जो परिवार बर्बाद हो रहे हैं, वे बर्बाद होने से बचें. बस यही हमारी आप से प्रार्थना है.
वन मंत्री (डॉ.गौरीशंकर शेजवार)-- माननीय सभापति महोदय, अजय सिंह जी ने जो फारवर्ड लाइन लगाई है. मैं तो उसकी तारीफ करना चाहता हूँ. अजय सिंह, राजेन्द्र सिंह, महेन्द्र सिंह, गोविन्द सिंह, के.पी.सिंह, और लगभग वे भी सिंह हैं ही आरिफ सिंह. (हँसी)
श्री बाला बच्चन-- सभापति जी, लेकिन आगे मुकेश नायक जी हैं. उधर सिंह नहीं हैं.
सभापति महोदय-- अब वर्ष 2017-18 के आय-व्ययक पर सामान्य चर्चा प्रारंभ होगी. श्री मुकेश नायक...
श्री बाला बच्चन-- माननीय सभापति जी, मुझे भी बोलना था इसमें.
डॉ.गौरीशंकर शेजवार-- बच्चन जी, कुछ कहो. अब यही बचा है. बाकी तो पीछे हों ही.
श्री बाला बच्चन-- नहीं, सब पूरा बचा है. हमको ही कहना है. बचा हुआ, सब हमको कहना है.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ नरोत्तम मिश्र)-- माननीय सभापति जी, गोविन्द सिंह जी ने जो कहा है उस पर एक बार मंत्री जी का जवाब आ जाए. वह जवाब देना चाहते हैं.
राज्य मंत्री, सहकारिता (श्री विश्वास सारंग)-- माननीय सभापति महोदय, माननीय गोविन्द सिंह जी ने जो बात कही है. विभाग ने पहले ही इसका पूरा आंकलन कर लिया है. इसकी पूरी प्रक्रिया निहित कर दी गई है. किस कर्मचारी को कहाँ लेना है, इसका भी निर्णय लिया जा चुका है. हम पूरी प्रक्रिया पूरी कर रहे हैं, जल्दी से जल्दी करेंगे.
1.17 बजे
वर्ष 2017-2018 के आय-व्ययक पर सामान्य चर्चा.
सभापति महोदय-- अब आय-व्ययक पर चर्चा प्रारंभ होगी. माननीय सदस्य श्री मुकेश नायक जी बोलिए.
श्री मुकेश नायक(पवई)-- माननीय सभापति महोदय, विधान सभा में माननीय अध्यक्ष नहीं, माननीय उपाध्यक्ष नहीं, माननीय प्रतिपक्ष के नेता नहीं, माननीय सदन के नेता नहीं, आधे से ज्यादा मंत्री नहीं, आधे से ज्यादा विधायक नहीं, दर्शक दीर्घा में बैठे सम्मानित अधिकारी, बहुत ही आनंद में हैं और बड़ी शिथिल अवस्था में हैं. दर्शक दीर्घा में बैठे लोग समझने की कोशिश कर रहे हैं. पत्रकार दीर्घा में जो महानुभाव बैठे हैं, उन्हें पहले से ही पता है कि कल अखबारों में क्या आएगा. यह भाषण और यह पूरी गतिविधि, केवल औपचारिकता है और इस औपचारिकता को मैं पूरी करना चाहता हूँ क्योंकि प्रतिपक्ष के नेता ने मुझसे कहा है कि मुझे इस पूरे बजट के ऊपर ओपनिंग रिमार्क देना है.
माननीय सभापति जी, एक लाख पिच्यासी हजार करोड़ का यह बजट माननीय शिवराज सिंह जी की सरकार ने इस सदन में रखा है. इस बजट पर नर्मदा जी की भी चर्चा हुई है और माँ नर्मदा के तटों के सौन्दर्य, उसका निर्मल प्रवाह और उसके आस्था के केन्द्रों को एक पर्यटक स्थल बनाने का आश्वासन माननीय मुख्यमंत्री जी ने दिया है. पहली बात तो मैं यह कहना चाहता हूँ कि जो आस्था के केन्द्र हैं और जो पर्यटक स्थल हैं. उसमें एक बड़ा बारीक और बुनियादी अंतर होता है. जो माँ नर्मदा का स्वरूप है वह शिव के अर्ध नारीश्वर का स्वरूप है इसलिए वह नर भी है और मादा भी है. हमारे विद्वान जिन्होंने पुराण, उपनिषद् और अध्यात्म का अवलोकन किया है, अध्ययन किया है, जिनके जीवन में साधना रही है. के.पी.भैय्या, जरा सुन लो. आप ही कह रहे थे कि हमें बोलना है. थोड़े एक काम की बात भी जिन्दगी में एकाध बार सुन लो. (हँसी)
श्री के.पी.सिंह-- मुकेश नायक जी, अगर आपकी बात सुनते रहेंगे तो दोबारा यहाँ लौट कर नहीं आएँगे इसलिए उल्टा हमसे चक्कर मत पालो.
श्री मुकेश नायक -- माननीय सभापति महोदय, जो ज्ञान की खोज करने वाले हमारे मनीषी, ऋषि और साधना पथ की यात्रा पर चल रहे लोग हैं, वे यह कहते हैं कि सुसुप्ति की चेतना से भगवत् चेतना तक जो साधना का पथ है इसमें सुसुप्ति की चेतना से, स्वप्न की चेतना से, जागृति की चेतना से, तुरीय चेतना, तुरीय चेतना से भगवत् चेतना और ब्राम्ही चेतना इसको वैज्ञानिकों ने और विदेशी विद्वानों ने स्लाइसेस ऑफ दि इनफिनिट कांसियशनेश कहा, चेतना के अनंत तल. इस चेतना को विद्वानों ने और ऋषि परम्परा ने 7 भागों में बांटा है और 7 भागों में बांटी गई इस चेतना का जो छठवां स्वरूप है उसे भगवत् चेतना कहा गया है और भगवत् चेतना भगवान शिव का अर्द्धनारीश्वर का स्वरूप और मॉं नर्मदा नर भी और मादा भी है इसलिए शिव के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप का साकार विग्रह है और इसलिए कहा गया है कि गंगा में स्नान का जितना पुण्य है उससे ज्यादा मॉ नर्मदा के दर्शनों का पुण्य है. मुझे खुशी हुई कि माननीय मुख्यमंत्री जी नमामि देवी नर्मदे कहते हुए नर्मदा के तटों पर निकल पडे़. जहां तक मुझे जानकारी है नर्मदा के आसपास लगभग 110 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जो नर्मदा मैया को अपना आराध्य मानते हैं. नर्मदा के तट पर रहने वाले लोग किसी भगवान को नहीं मानते. एक दफे सुबह उठकर दिन भर में कभी भी मॉं नर्मदा का दर्शन कर लिया तो उनकी पूरी चेतना में, उनके अंग-प्रत्यंग में नई ऊर्जा, एक नये विश्वास का और आस्था का संचार होता है ऐसी गहरी आस्था वहां के लोगों में माँ नर्मदा के प्रति है और मुख्यमंत्री जी बहुत अच्छे से इस बात को समझते हैं कि आस्था, श्रद्धा और विश्वास का दोहन राजनीति में किस तरह से कर लिया जाए. मैं इस सदन को बताना चाहता हॅूं कि भारतवर्ष में राम मंदिर को लेकर भारतीय जनता पार्टी की विश्वसनीयता लगभग समाप्त हो चुकी है क्योंकि राम मंदिर का विषय इनके घोषणा पत्र का विषय है, इनके संकल्प पत्र का विषय है, इनके भाषणों का विषय है. राम मंदिर का मुद्दा अयोध्या में निर्माण का विषय है और इसलिए धार्मिक आस्थाओं का शोषण करना, धर्म को राजनीति का औजार बना देना, कोई नयी बात नहीं है.
श्री रामेश्वर शर्मा -- माननीय सभापति महोदय, श्री मुकेश नायक जी परम विद्वान हैं. धर्म एक शब्द है जिसको शोषण शब्द से मुक्त रखा है. हमारी प्रार्थना है कि हम अयोध्या के राम मंदिर में डिबेट करने बैठें तो विषय रख लीजिए तो उस पर डिबेट हो जाए. कोई परेशानी नहीं है.
श्रीमती ऊषा चौधरी -- माननीय सभापति महोदय, धर्म के नाम पर ही शोषण होता है. धर्म के नाम के पीछे शोषण किया जाता है.
श्री दिलीप सिंह परिहार -- माननीय सभापति महोदय, मुकेश नायक जी कथा बांच रहे हैं, बजट पर नहीं बोल रहे हैं.
श्री रामेश्वर शर्मा -- इस पर चर्चा हो जाए कि धर्म के नाम पर कौन-कौन शोषण कर रहा है और कब-कब शोषण हुआ है ?
श्री के.पी.सिंह -- रामेश्वर शर्मा जी, इसमें आपको भी अवसर मिलेगा. उस समय कह लीजिए, आपको जो कहना है.
श्रीमती ऊषा चौधरी -- आपकी सरकार कर रही है.
श्री रामेश्वर शर्मा -- आदरणीय कक्का जी, जो आपके भी आराध्य भगवान राम हैं मुकेश नायक जी के भी आराध्य हैं.
श्री के.पी.सिंह -- जी, इसलिए तो कह रहे हैं कि कुछ गलत हो रहा है तो बाद में कह लेना.
श्री रामेश्वर शर्मा -- सभापति महोदय, मेरा यह कहना है कि यह बजट का विषय नहीं है. राम मंदिर पर हमको और आपको चर्चा करनी है तो एक दिन सदन में तय कर लें और उस पर भी चर्चा कर लेंगे और धार्मिक आस्थाओं का कोई शोषण नहीं कर सकता.
सभापति महोदय -- श्री मुकेश नायक जी, अपनी बात जारी रखें.
श्री के.पी.सिंह -- नर्मदा जी का जिक्र बजट में आया है या नहीं आया ?
श्री रामेश्वर शर्मा -- नर्मदा जी पर चर्चा कर रहे हैं ?
श्री के.पी.सिंह -- वही तो बोल रहे हैं और क्या बोल रहे हैं.
सभापति महोदय -- माननीय मुकेश नायक जी, आप अपनी बात जारी रखें.
श्री मुकेश नायक -- माननीय सभापति महोदय, धार्मिक आस्थाओं का शोषण करना और धर्म को राजनीति का औजार बना देना, यह कोई नई बात नहीं है. यह इस देश में भूख, गरीबी, अज्ञान, और अशिक्षा जैसे गंभीर सवालों से ध्यान हटाना और धर्म को राजनीति का औजार बना देना, इस देश में बहुत आसान है क्योंकि इस देश का आम आदमी बहुत धर्मभीरू है, बहुत आस्थावान है और ईश्वर के प्रति उसके रोम-रोम में अनुराग भक्ति और समर्पण है और इस बात को भारत में एक बहुत बड़ा वर्ग समझता है. माननीय मुख्यमंत्री जी इस बात की कोशिश कर रहे हैं कि माँ नर्मदा के नाम पर 110 विधानसभा क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के मन में जो आस्था है उसका राजनीतिक दोहन कर लिया जाये.उसका राजनीतिक उपयोग कर लिया जाये और इसीलिये माँ नर्मदा के तटों के सौंदर्य के लिए केवल 50 करोड़ का प्रावधान रखा. 10 हजार ट्रक रेत जिस नर्मदा से प्रतिदिन निकाली जाती है. 20 करोड़ रुपयों की रेत प्रतिदिन निकाली जाती है. एक साल में 600 करोड़ की रेत निकाली जाती है, उसके सौंदर्य के लिये मात्र 50 करोड़ रुपया ? 2 हजार ट्रक रेत रोज भोपाल आती है, 2 हजार ट्रक रेत रोज इन्दौर जाती है. 2 हजार ट्रक रेत रोज मंडला, डिंडौरी, जबलपुर, कटनी, दमोह और आधे बुंदेलखंड में जाती है.अमरकंटक से माँ नर्मदा का आविर्भाव हुआ है और अमरकंटक से अपने निर्मल प्रवाह के द्वारा नर्मदा जी डिंडौरी, मंडला, होशंगाबाद, नेमावर, देवास, खंडवा, महेश्वर होती हुई खरगौन के आधे हिस्से को कवर करती हुई गुजरात में जाती हैं और भड़ोच के पास खंभात की खाड़ी में महासागर में आत्मसात् हो जाती हैं. मुझे मुख्यमंत्री जी यह बतायें कि नर्मदा जी को वह माता जी कहते हैं ना, तो मुझे यह बतायें कि अकेले मध्यप्रदेश में नर्मदा जी हैं क्या ? मध्यप्रदेश के बाहर माँ नर्मदा का कोई स्वरूप नहीं है क्या. मध्यप्रदेश के बाहर जो नर्मदा जी का साकार विग्रह है, वहाँ के सौंदर्य के लिए, वहाँ के निर्मल प्रवाह के लिए, वहाँ की आस्था और विश्वास के लिए, वहाँ की पूजा पद्धति के लिए मुख्यमंत्री जी क्या कर रहे हैं, कुछ कर रहे है क्या? अगर माँ कहा है और माँ के पैर में अगर प्रदूषण है और सिर में प्रदूषण नहीं है तो क्या सिर सहलाते रहेंगे? अपनी माता जी के पैर को ठीक नहीं करेंगे. अगर उनके मन में नर्मदा जी के प्रति जरा भी आस्था, विश्वास, नर्मदा जी के प्रति जरा भी अनुराग और भक्ति है, समर्पण है तो गुजरात के मुख्यमंत्री जी से बात करते कि मध्यप्रदेश के बाहर जो माँ नर्मदा का प्रवाह है...
खाद्य, नागरिक आपूर्ति मंत्री(श्री ओमप्रकाश धुर्वे)-- माननीय सभापति महोदय, गुजरात के माननीय मुख्यमंत्री जी यात्रा प्रारंभ के समय अमरकंटक में पधारे हुए थे.
श्री मुकेश नायक-- मैं नर्मदा के पर्यावरण की बात कर रहा हूं ना कि औपचारिकता की.
श्री ओमप्रकाश धुर्वे-- इसी बात के लिए उनको बुलाया गया था.
श्री मुकेश नायक-- अब वह भी तो यात्रा शुरु करेंगे क्योंकि वहाँ भी तो माँ नर्मदा के प्रति लोगों के मन में आस्थायें हैं, लोगों के मन में श्रद्धा और विश्वास है तो वह भी अपनी यात्रा वहाँ शुरु करेंगे. इस दंभ की, (XXX), इस अनास्था की, राजनीतिक उपयोग की अब वह भी अपनी यात्रा शुरु करेंगे.
राज्यमंत्री, उच्च शिक्षा(श्री संजय पाठक)-- माननीय सभापति महोदय, इससे मैं इत्तेफाक नहीं रखता हूँ और यह गलत है. आपने जो बोला दंभ, (XXX).
श्री मुकेश नायक-- आप तो दंभ का मतलब बताइए दंभ का अऩुवाद बताइए, दंभ का अर्थ बताइए.
श्री संजय पाठक-- मैं तो आपके नाम का भी अनुवाद बता दूंगा.हर एक चीज को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए.
सभापति महोदय-- इस शब्द को निकाल दीजिये.
श्री मुकेश नायक-- संजय भैया, दंभ का अर्थ होता है दिखावा.मैं यह कह रहा हूं कि यह दिखावा कर रहे हैं.
श्री संजय पाठक-- अगर दिखावा कर रहे होते तो वृक्षारोपण कैसे हो रहे होते.
श्री के.पी. सिंह-- सभापति महोदय, माननीय सदस्य को बोलने दिया जाये यह टोका-टाकी करेंगे तो वह कैसे बोलेंगे. ..(व्यवधान)..आपका मौका आएगा तब आप बोलियेगा.
श्री रामेश्वर शर्मा-- माननीय सभापति महोदय, अगर यह दिखावा था, जैसा कि मुकेश नायक जी बोल रहे हैं तो कांग्रेस के भी कई सम्मानित विधायक उस यात्रा में सम्मिलित हुए थे, इसको दिखावा कैसे कह सकते हैं.
सभापति महोदय-- माननीय मुकेश नायक जी अपनी बात आगे जारी रखें.
श्री मुकेश नायक-- मैं सम्मानित विधायकों से विनम्र अनुरोध करता हूं कि यह बजट की सब्जेक्ट डिमांड्स की चर्चा होगी, बजट अनुदान माँगों पर चर्चा है. मूल बजट पर चर्चा है अगर उन्हें कुछ कहना है तो उनका भी नंबर आएगा उसमें कह लें. लेकिन क्या होता है कि जब लंबे समय तक आदमी सत्ता और शासन का उपयोग कर लेता है तो वह राजा बन जाता है उसको लगता है कि कोई उसका विरोध कर ही नहीं सकता है. किसी को अधिकार ही नहीं है. यह विपक्ष के जरा-से विरोध में जिस तरह से तिलमिलाते हैं, जिस तरह से छटपटाते हैं, यह लंबे से एक राजा बन जाने की इनकी प्रवृत्ति है और इससे ज्यादा कुछ नहीं है. माननीय सभापति महोदय, मैं यह कहना चाहता हूं कि 20 करोड़ रुपये प्रतिदिन की रेत का नर्मदा जी से उत्खनन होता है तो कृपा करके नर्मदा के तटों के सौंदर्य के लिए, नर्मदा के विकास के लिए, नर्मदा के पर्यावरण के लिए अगर 1-2 हजार करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान मुख्यमंत्री जी ने किया होता तो मुझे अच्छा लगता. दूसरी बात मैं यह कहना चाहता हूं कि...
सभापति महोदय-- माननीय नायक जी, और कितना समय लेंगे.
श्री जितू पटवारी-- माननीय सभापति महोदय, अभी तो शुरु किया है, आप कैसी बात कर रहे हैं.
सभापति महोदय-- माननीय सदस्य का भाषण जारी रहेगा. सदन की कार्यवाही अपराह्न 3.00 बजे तक के लिए स्थगित.
(1.31 बजे से 3.00 बजे तक अंतराल)
03.13 बजे {उपाध्यक्ष महोदय (डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह) पीठासीन हुये}
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ. नरोत्तम मिश्र) -- उपाध्यक्ष महोदय, बजट जैसे विषय पर विपक्ष की उदासीनता दिखाई दे रही है, मूल वक्ता ही उपस्थित नहीं हैं, अब इसे क्या कहें, डॉ. गोविन्द सिंह जी हैं.
डॉ. गोविन्द सिंह -- उपाध्यक्ष महोदय, यह तय हुआ है कि बजट पर सामान्य चर्चा का शेष भाग अगले दिन के लिए बढ़ा दिया गया है, आज केवल अशासकीय संकल्प लिए जाएंगे. आप संसदीय कार्य मंत्री हो तो हमसे पूछ लिया करो कि क्या तय हुआ है.
उपाध्यक्ष महोदय -- बजट का शेष भाग अगले सोमवार को लिया जाएगा. डॉ. गोविन्द सिंह जी, सदस्य अपना अशासकीय संकल्प प्रस्तुत करें.
डॉ. गोविन्द सिंह -- उपाध्यक्ष महोदय, मेरे से पहले दो अशासकीय संकल्प हैं. उपाध्यक्ष महोदय -- वे संकल्प आपके संकल्प के बाद में लिए जाएंगे. पहले आपका संकल्प ले लेते हैं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र -- उपाध्यक्ष जी, शेष भाग तो सोमवार को लिया जाएगा, पर क्या जो भाषण चल रहा था वह कंटीन्यू रहेगा ?
उपाध्यक्ष महोदय -- जी हाँ, वह सोमवार को कंटीन्यू रहेगा.
डॉ. नरोत्तम मिश्र -- उपाध्यक्ष जी, लंच से पहले यह व्यवस्था आसंदी से दी गई थी कि लंच के बाद भाषण जारी रहेगा. यह व्यवस्था आसंदी से ही दी गई थी तो आसंदी जब बैठेगी तभी तो माना जाएगा. हाऊस समवेत हुआ है.
उपाध्यक्ष महोदय -- फिर वह साथ-साथ along with होता जाएगा.
श्री गिरीश गौतम (देवतालाब) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं भी एक निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिपक्ष ने बजट भाषण शुरू किया और लंच के पहले ब्रेक करके यह कहा गया कि उसको लगातार जारी रखेंगे. इसलिए ऐसा तो नहीं कि चूंकि वह भाषण देने नहीं आये इसलिए हम समय बढ़ा रहे हैं, ऐसी व्यवस्था तो आप नहीं करने जा रहे है. तब तो ऐसे ही हर सदस्य को यह छूट मिलेगी कि उसका भाषण आधा रहेगा और आसंदी से यह निर्देश हो जायेगा कि अब जब वह आयेंगे तभी उनके भाषण को पूरा किया जायेगा, इसलिए कृपा करके इसको गंभीर रूप में लिया जाये.
उपाध्यक्ष महोदय - आज नहीं लिया जायेगा, हम लोग अशासकीय संकल्प ले रहे हैं.
श्री गिरीश गौतम - हमको दिक्कत नहीं है,हमको दिक्कत दूसरी है.
डॉ. गोविंद सिंह - अरे भाई गौतम जी ऐसा नहीं है.
श्री गिरीश गौतम - मुझे बोलने दीजिये अभी तो मुझे बोलने का समय मिला है. हमको दूसरी दिक्कत यह है कि सदस्य यदि बोलने नहीं आते तो उनकी सुविधा के अनुसार जब वह आधा बोलकर चले गये या किसी कारण से नहीं आये, यदि उसके कारण ही समय बढ़ाया जा रहा है तो मेरा निवेदन है और कहना चाहता हॅूं कि यह गलत बात है.
उपाध्यक्ष महोदय - हां सही कह रहे है यह उचित नहीं है.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ.नरोत्तम मिश्र) - श्री गिरीश गौतम जी हमारी पार्टी की ओर से आज प्रथम वक्ता थे और स्वाभाविक रूप से सदस्य ने काफी अच्छी तैयारी भी की थी, इसलिए मैं उनकी पीड़ा वाजिब मानता हूं.
श्री बहादुर सिंह चौहान - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, हमको भी जाना था, हम तो इसलिए रूके हैं.
उपाध्यक्ष महोदय - श्री विश्वास सारंग जी आ गये हैं तो पहला वाला संकल्प ले लेते हैं.
श्री के.के.श्रीवास्तव - हमारा भी नंबर था, इसलिए हम भी रूके गये थे.
डॉ. गोविंद सिंह - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, परम्परा यह है कि ढाई बजे आज अशासकीय कार्य लेना है तो आखिरी दो ढाई घंटे अशासकीय संकल्प के लिये रिजर्व थे.
श्री गिरीश गौतम - हां तो भाषण उसी समय रोक देना था, लंच के समय लगातार जारी नहीं करवाना था, उसी समय कह देना था कि यह सोमवार को लिया जायेगा, हमें कोई दिक्कत नहीं थी.....(व्यवधान)
एक माननीय सदस्य - लगातार अगले दिन के लिये है, अगर ऐसा नहीं है तो हम लोग बोलने के लिये तैयार है, हम बोलेंगे......(व्यवधान)
डॉ. गोविंद सिंह - यह निर्णय करना आसंदी का अधिकार है... .(व्यवधान)
श्री सुखेंद्र सिंह - ऐसा थोड़े ही है कि हम लोग पढे़ लिखे नहीं है.
श्री गिरीश गौतम - ...(व्यवधान) उसी समय आया था कि यह लंच के बाद लगातार लिया जायेगा.
डॉ. गोविंद सिंह - आपकी बात थी आपने कह दिया अब निर्णय उपाध्यक्ष जी करेंगे.
श्री के.के.श्रीवास्तव - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, यह जो व्यवस्था आई है, मेरी इस पर आपत्ति है.
उपाध्यक्ष महोदय - अब अशासकीय संकल्प लिये जायेंगे, श्री केदारनाथ शुक्ल.
03.16 बजे अशासकीय संकल्प
1.जनपद पंचायत/विकासखंडों का परिसीमन किया जाना.
श्री केदारनाथ शुक्ल(सीधी) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं यह संकल्प प्रस्तुत करता हूं कि ''यह सदन केंद्र शासन से अनुरोध करता है कि जनपद पंचायत/विकासखंडों का परिसीमन किया जाए.
उपाध्यक्ष महोदय - संकल्प प्रस्तुत हुआ.
श्री केदारनाथ शुक्ल - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आज मैं सबसे पहले इस बात के लिये हमारे इस संकल्प के प्रभारी मंत्री जी माननीय सारंग जी को धन्यवाद देना चाहता हूं. उनसे बातचीत के दौरान ही मुझे मालुम पड़ गया था कि हमारी राज्य सरकार ही इसका परिसीमन कर सकती है और उसके बाद जब मैंने कानून की पोथी पल्टी तो धारा 127 पंचायत एक्ट में मध्यप्रदेश सरकार को ही परिसीमन का अधिकार है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आज जो परिसीमन की स्थिति है वह क्यों जरूरी है, मध्यप्रदेश सरकार के अंदर ही सारी जनपद पंचायतें हैं, जिलों के अंदर जनपद पंचायते हैं, परंतु जनपद पंचायतों का जो बंटवारा है वह पूरी तरह अव्यावहारिक अवैज्ञानिक है. कोई जनपद 150 पंचायतों की है, कोई जनपद 125 पंचायतों की है, कोई जनपद 25 पंचायतों की है. ऐसी परिस्थिति में न तो ठीक से बंटवारा हो पाता है न ठीक से कोई निर्णय हो पाते हैं न ठीक से अधिकारों का बंटवारा हो पाता है. क्षेत्रफल की दृष्टि से भी कोई-कोई जनपद इतना बड़ा है, जिसमें 150-150 , 200-200 पटवारी हल्के आ रहे हैं. क्षेत्रफल की दृष्टि से, आवागमन की सुविधा की दृष्टि से भी और प्रशासनिक इकाईयों की दृष्टि से भी बहुत सारी विसंगतियां है. जैसे हमारी सीधी जिले में कुछवाही गांव सीधी से दस किलोमीटर पर है और कुछवाही सिहावल ब्लॉक में है और सिहावल ब्लॉक से 60 किलोमीटर दूर है और सिहावल स्वयं जो ब्लॉक मुख्यालय है, उससे पूर्व में दस किलोमीटर की सीमा के बाद सिंगरौली जिला शुरू हो जाता है, मतलब इस तरीके से एक उदाहरण मैंने बताया है. इस उदाहरण को देने का मेरा मतलब यह है कि कोई भी क्षेत्रफल कोई भी मुख्यालय यह जो भी है सब व्यावहारिक नहीं है. 1952 में जब पंचवर्षीय योजनाएं शुरू हुई हैं,उसके पहले ही ब्लॉकस का गठन कर दिया गया. उस समय के अधिकारियों ने नक्शे रखकर ब्लॉकस का गठन कर दिया और उसके बाद परिस्थिति यह पैदा हो गई है कि आज वह लगातार चलते जा रहे हैं.
आजादी के बाद आज तक विधान सभा क्षेत्रों का परिसीमन हुआ. लोक सभा क्षेत्र का परिसीमन हुआ. तमाम परिसीमन हुए, लेकिन कभी भी जनपद पंचायत विकास खण्ड का परिसीमन नहीं हुआ. पंचायतों के भी परिसीमन होते गये. अगर जिले अलग-अलग हो गये, जिलों का बंटवारा हो गया तो जिला पंचायतों के भी परिसीमन हो गये. लेकिन यह ब्लाक ऐसी इकाई है, जो विकास की सबसे बड़ी इकाई है और हितग्राहीमूलक जितनी भी योजनाएं हैं, वे सब जनपद पंचायत विकास खण्ड के मार्फत ही चलती हैं. जनपद पंचायत विकास खण्ड के मार्फत ये जो सब योजनाएं चलती हैं, इसके कारण ये परिस्थितियां बनती हैं कि हितग्राही जो लंगड़ा है, लूला है, सामाजिक सुरक्षा की पेंशन लेना चाहता है. अगर 1 रुपए किलो चावल, 1 रुपया किलो गेहूं के लिए कार्ड से किसी का नाम कट गया, वह उसको जुड़वाना चाहता है. वह ब्लाक हेडक्वार्टर जाना चाहता है. लेकिन वह ब्लाक हेडक्वार्टर 50-50, 60-60 कि.मी. दूर है. कहीं-कहीं तो ऐसी स्थितियां हैं, जिसका कानून में भी वर्णन है. हमारे सीधी जिले में ही संजय डुबरी अभ्यारण्य है उस अभ्यारण्य के कारण कुसमी और मझौली की अधिकांश पंचायतें असंपृक्त हो गई हैं. जहां कहीं बांध बन गये, जैसे महान परियोजना के कारण बांध बन गया, उसके कारण रामपुर जनपद की ही बहुत सारी पंचायतें असंपृक्त हो गई और इस परिस्थिति में कोई भी एक अच्छी इकाई क्षेत्रफल की दृष्टि से भी नहीं बन पा रही है, सुविधा की दृष्टि से भी एक अच्छी इकाई नहीं बन पा रही है. जनपद पंचायतों में जनसंख्या का भी कोई मायना नहीं है, कौन-सी जनपद पंचायत कितनी जनसंख्या पर गठित है, कितनी जनसंख्या पर जनपद पंचायत गठित होगी, इसका कहीं कोई आधार नहीं है? इस तरह से न तो जनसंख्या का आधार है, न क्षेत्रफल का आधार है, न दूरी का आधार है, न मुख्यालय का आधार है. ऐसी परिस्थिति में यह पूरी तरह से अवैज्ञानिक है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, ऐसी परिस्थितियों में अगर हम विकास खण्डों का परिसीमन करेंगे. जनपद पंचायतों का परिसीमन करेंगे. जनपद पंचायत विकास खण्ड एक ही हैं. मैं दोनों को बार-बार एक साथ इसलिए बोल देता हूं कि बहुत सारे लोगों को इसमें भ्रम न हो जाय क्योंकि जब वह पंचायत की इकाई के रूप में काम करती है तब जनपद पंचायत और जब विकास की इकाई के रूप में काम करती है तब विकास खण्ड होती है. एक जो सबसे बड़ी बात है. हमारे मध्यप्रदेश में अनुसूचित जनजाति की संख्या बहुत अधिक है. अनुसूचित जनजाति के ब्लाक्स का भी गठन वही वर्ष 1952 के पहले पंचवर्षीय योजनाओं में हो गया, जिसे किसी जनप्रतिनिधि की सलाह से नहीं किया गया था. आज जनसंख्या के आधार पर बहुत सारी अनुसूचित जनजाति की आबादी सामान्य जनपद पंचायतों में फंस गई है. उन्हें आदिवासी विकास खण्ड का वह लाभ नहीं मिल पा रहा है, जो उन्हें मिलना चाहिए. जैसे हमारा स्वयं का विधान सभा क्षेत्र है, हमारा सीधी ब्लाक है. वहां पर 31 प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या है. लेकिन वह सीधी ब्लाक में इसलिए है कि सीधी ब्लाक का हिस्सा सोन नदी के उत्तर पार भी है. सोन नदी के उत्तर पार में होने के कारण सामान्य जनसंख्या ज्यादा हो जाती है, उन्हें आदिवासी जनपद का कोई लाभ नहीं मिल पाता है. इन परिस्थितियों में इनका परिसीमन बहुत जरूरी है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आज चूंकि अब मध्यप्रदेश सरकार के पास यह बात आ गई है. मैं माननीय मंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूं. अपने जिले के संदर्भ में निवेदन करना चाहता हूं कि माननीय मंत्री जी, सीधी जिले में अगर हम नयी जनपद पंचायतों का गठन करें तो अमरपुर, पड़खुरी, पटपरा, खाम, ये तो हम सीधी जनपद के अंदर ही अगर करें तो हमें दो जनपद आदिवासियों के मिल जाएंगे और इसी तरह से हड्डी, हनुमानगढ़, अगर करें तो रामपुर में दो आदिवासी जनपद हमको मिल जाएंगे. इधर मझौली में अगर मढ़वास को एक जनपद बना दें तो भी सुविधा हो जाएगी. सिंगरौली जिले में सरई, बगदरा और माढ़ा को विकास खण्ड बना दें तो भी बात बन जाएगी. ऐसी परिस्थिति में यह मैंने अपने जिले का एक उदाहरण दिया. यह समूचे मध्यप्रदेश में भी ऐसा है और इस नाते मध्यप्रदेश सरकार के लिए यह एक दायित्व है कि वह एक वैज्ञानिक आधार बनाकर परिसीमन समिति बनाकर या आयोग बनाकर जनपद पंचायतों का परिसीमन करे और जनपद पंचायतों के परिसीमन के परिणामस्वरूप एक ऐसी दिशा, एक ऐसी स्थिति सरकार के सामने स्पष्ट होगी कि हम विकास के लिए जनसंख्या के आधार पर, क्षेत्रफल के आधार पर, भौगोलिक सीमाओं के आधार पर, आवागमन की सुविधाओं के आधार पर, संपृक्तता के आधार पर हम नये जनपदों का गठन कर सकेंगे और इन नये जनपदों के गठन के परिणामस्वरूप हम विकास का एक अच्छा खाका खींच सकेंगे. क्योंकि एक जो सबसे बड़ी बात है मध्यप्रदेश में हितग्राही मूलक योजनाएं चलाने में देश के अंदर मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह जी की सरकार नंबर एक पर है. इन हितग्राहीमूलक योजनाओं को चलाने के लिये ही जनपद पंचायतों का परिसीमन बहुत जरूरी है. अगर हम ऐसा कर देते हैं तो हम अंत्योदय अभियान के अंतर्गत जो काम करते हैं हम अंत में खड़े हुए सबसे पीछे वाले व्यक्ति को भी सही लाभ दे सकते हैं, क्योंकि वह कार्यालयीन चक्कर दूरी के कारण नहीं लगा पाता, भौगोलिक सीमाओं के कारण नहीं लगा पाता. आप भी विन्ध्य से आते हैं. विन्ध्य की धरती ऊबड़-खाबड़ धरती है, बुंदेलखण्ड भी उसी तरह से है, ऐसी जगहों पर तो बहुत ही जरूरी है. मालवा का क्षेत्र तो समतल है, यहां पर तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन फिर भी यहां पर मालवा के मित्रों से बात की तो इन लोगों के साथ भी कुछ समस्याएं हैं. यह समूचे मध्यप्रदेश की यह समस्या है. मैं मध्यप्रदेश की सरकार से आग्रह करता हूं कि मध्यप्रदेश में जनपद पंचायत और विकासखंडों का परिसीमन किया जाये. धन्यवाद.
श्री वेलसिंह भूरिया (सरदारपुर)--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, हमारी पार्टी के जागरूक एवं अनुभवी माननीय सदस्य श्री शुक्ल जी जो प्रस्ताव लाये हैं वह बहुत बढ़िया है. समाज और जनता के हित में, बल्कि पूरे मध्यप्रदेश के हित में यह प्रस्ताव है. मैं इसके लिये उनको धन्यवाद देता हूं. मध्यप्रदेश से आदिवासी नेता माननीय दिलीप सिंह भूरिया जी ने एक पीसा एक्ट कानून बनाया. उस कानून में भी प्रावधान है कि जैसे जैसे अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के भाईयो की जनसंख्या बढ़ती है उसके आधार पर परिसीमन किया जाये. जनसंख्या के आधार पीसा एक्ट तथा भूरिया आयोग की रिपोर्ट के अनुसार कानून में ऐसा प्रावधान भी है कि जनसंख्या के आधार पर आदिवासी भाईयों को उसका लाभ दिया जाए. माननीय शुक्ल जी ने जो बात बोली है वह बिल्कुल सही है. मध्यप्रदेश के अंदर अधिसूचित क्षेत्र है वहां पर 89 विकासखंड हैं. यदि हमारी सरकार इसका पुनः परीक्षण करवाकर परिसीमन करती है तो 89 विकासखंड में मेरे हिसाब से लगभग 200 विकासखंड और बनने की संभावना है. ऐसे कई हमारे धार, झाबुआ, अलीराजपुर, शहडोल, बालाघाट, मण्डला जो आदिवासी 6 संसदीय क्षेत्र है. आदिवासी विकासखंडों में ऐसी कई प्रकार की समस्याएं हैं जैसा हमारे भाई केदारनाथ शुक्ल जी ने बताया था कि 50-50 किलोमीटर कूपन में नाम दर्ज कराने के लिये विकासखंड मुख्यालय में जाना पड़ता है जैसे मेरी विधानसभा सरदारपुर जो धार जिले की है वहां पर 95 ग्राम पंचायतें हैं, 216 गांव हैं तथा 800 मजरे-टोले हैं. विकासखंड के परिसीमन के साथ एक और काम किया जाए रेवेन्यू विलेज जो घोषित हुए हैं उनको ग्राम-पंचायत भी घोषित की जाए जिससे समाज और जनता और आदिवासी क्षेत्र का विकास होगा. भूरिया आयोग की रिपोर्ट के अनुसार हमारे पूर्व अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय दिलीप सिंह भूरिया आयोग की रिपोर्ट के अनुसार जैसा कि पीसा एक्ट कानून बना है. पीसा एक्ट कानून के अंतर्गत ऐसा प्रावधान है कि एक अधिसूचित क्षेत्र में एक हजार जनसंख्या पर एक ग्राम पंचायत बनायी जाए, यह विधिसंगत है. यह मेरे क्षेत्र धार,झाबुआ, अलीराजपुर, शहडोल, बालाघाट, मंडला की समस्या नहीं है, यह हमारे गुड्डन भईया का क्षेत्र है.गुड्डन भैया के क्षेत्र में भी यदि सही तरीके से परीक्षण हो जाए तो वास्तव में एक विकास खंड बन सकता है. ऐसे कई सामान्य क्षेत्र भी हैं जो अधिसूचित नहीं हैं. 89 विकास खंडों के अलावा जो क्षेत्र है वहां पर भी सामाजिक दृष्टि से आदिवासी भाईयों का परीक्षण करके, यदि वहां पर जनसंख्या है तो जनसंख्या के अनुपात के आधार पर उसको भी विकास खंड घोषित किया जाए.
उपाध्यक्ष महोदय, कांग्रेस के राज में यह प्रदेश बीमारु राज्य था. लेकिन हमारे मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी के राज में धीरे धीरे यह प्रदेश विकास के रास्ते पर चल रहा है. यदि परीक्षण कराकर वास्तव में कार्रवाई की जाएगी तो निश्चित रुप से आदिवासी क्षेत्र का, आदिवासी भाईयों का भला होगा. ऐसा मेरा मानना है.
उपाध्यक्ष महोदय, यदि हम परम्परा को उठा कर देखें. इस देश की भौगोलिक दृष्टि को परम्परागत तरीके से देखा जाए. इस मध्यप्रदेश के हृदय को देखा जाए तो यहां रहने वाला आदिवासी भाई बहुत पिछड़ा हुआ है. हमारी सरकार ने इस वर्ग को आगे लाने का बहुत प्रयास किया है. हमारे आदिवासी नेता माननीय दिलीप सिंह जी भूरिया ने पीसा एक्ट बनाया.
उपाध्यक्ष महोदय, विकासखंड में कड़ाई से पीसा एक्ट का पालन कराया जाए और परीक्षण कराकर जनसंख्या के आधार पर विकास खंड घोषित किया जाए. ऐसा मेरा अनुरोध है.
उपाध्यक्ष महोदय, आदिवासी बहुत भोला, गरीब होता है, स्वाभिमानी होता है. जिसके मन में मैल नहीं, वह कभी फैल नहीं वाली बात है. यह परम्परागत जाति इस देश का मूल है. यह इस देश का मूल धन है, उसको बचाया जाएगा. उसके विकास के लिए कोई कानून बनाया जाएगा तो मैं समझता हूं कि मध्यप्रदेश फिर कमल के फूल की तरह खिलने लगेगा. धन्यवाद. वन्दे मातरम्, भारत माता की जय.
श्री गिरीश गौतम(देवतालाब)-- माननीय उपाध्यक्ष जी, हमारे सम्मानीय साथी केदार शुक्ल जी द्वारा प्रस्तुत संकल्प का समर्थन करता हूं.
उपाध्यक्ष जी, इस संकल्प के दो-तीन कारण हैं. एक, सबसे बड़ा कारण जैसा केदार शुक्ल जी ने कहा कि 1952 के बाद तमाम पंचायतों के, पटवारी-हल्कों के, आरआई सर्किल का, लोक सभा और विधान सभा का परिसीमन हुआ. केवल जनपद का परिसीमन नहीं हुआ, विकास खंड का नहीं हुआ. उससे दूरियां बहुत ज्यादा हैं. मैं रायपुर कर्चुलियान का उदाहरण देना चाहता हूं. उपाध्यक्ष जी आप रायपुर कर्चुलियान को जानते हैं. उसमें ब्लाक गुढ़ के आगे शिपुरवा तक लगता है. यानी शिपुरवा के व्यक्ति को रायपुर कर्चुलियान आना पड़े तो पहले वह गुढ़ आवे. गुढ़ से रीवा आवे और रीवा से रायपुर आवे. इतना दूर है रायपुर कर्चुलियान ! इसी तरह से लाल गांव की तहसील सिरमौर है और लाल गांव का ब्लाक गंगेव है. इस तरह से लोगों को तमाम तरह की समस्याएं हैं. क्योंकि आजकल जनपद पंचायत के माध्यम से, विकास खंड के माध्यम से लोक कल्याण की सारी जितनी योजनाएं हैं, उनका क्रियान्वयन इन्हीं के माध्यम से होता है.
उपाध्यक्ष महोदय, हम विकास खंड स्तरीय मेला लगाते हैं. रोजगार मेला लगाते हैं. स्वास्थ्य शिविर लगाते हैं. विकास खंड स्तर का स्वास्थ्य शिविर लगाते हैं तो स्वाभाविक रुप से इतनी दूरी होने के कारण वहां लोग आ नहीं सकते. इसलिए मैं चाहता हूं कि इस संकल्प को स्वीकार किया जाए चूंकि यह मध्यप्रदेश सरकार के ही हाथ में है. मेरे रीवा जिले में भी सीतापुर,बेतलाव, मनगवां, लाल गांव, वैकुंठपुर, डबौरा और गुढ़ इनको भी ब्लाक का दर्जा दिया जाए. जनपद पंचायत बनाई जाए जिससे गरीबों को और तमाम लोगों को फायदा पहुंचा सकें.
उपाध्यक्ष जी, सीतापुर के नीचे हमारे कई गांव हैं. जब चुरहट की तरफ से हम आते हैं तो दोनों पहाड़ों के बीच में जो बसे हुए गांव हैं, उनके निवासियों को वहां चढ़ना ही मुश्किल पड़ता है और फिर उनको रायपुर कर्चुलियान या मऊगंज ब्लाक तक इतनी दूर जाना पड़ता है. इसीलिए सीतापुर की आवश्यकता है. मैं संकल्प का समर्थन करते हुए यह आग्रह करता हूं कि माननीय मंत्री जी इस संकल्प में हमारी मांग को जोड़ कर, इस संकल्प को पारित करने की कृपा करेंगे. मैं संकल्प पारित करने की प्रत्याशा में आपको धन्यवाद देना चाहता हूं. धन्यवाद.
श्री शंकरलाल तिवारी (सतना) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, पूर्व के वक्ताओं के माध्यम से कई बातें इस विषय पर आ चुकी हैं परंतु मेरे ध्यान में जो जिले में अनुभव आया है कि मुख्यालय एक किनारे और पंचायतें दूसरी तरफ हैं और आवागमन में भी बड़ी कठिनाई और जब इनका गठन हुआ था तो उस समय जनप्रतिनिधियों से या जनता से किसी भी प्रकार की चर्चा नहीं की न उनकी भागीदारी की गई. एक लम्बे समय से यह गठन चल रहा है और इसके परिणाम स्वरूप न इसकी जनसंख्या निश्चित है. किसी जनपद में कुछ जनसंख्या है किसी जनपद में कुछ जनसंख्या है. मैं अपने यहां का उदाहरण बताना चाहता हूं. मेरे यहां सोहावल ब्लाक है. सोहावल ब्लाक एक तरफ रैगांव विधान सभा क्षेत्र से जुड़ा हुआ है और मेरे विधान सभा क्षेत्र की उसमें 21 पंचायतें पड़ती हैं जो सोहावल से जुड़ी हुई हैं जो लगभग 25 किलोमीटर दूर पड़ती है. पंचायतों के हितग्राही चाहें तो 25-30 किलोमीटर चलकर सोहावल आ पाते हैं इसीलिये परिसीमन अत्यंत आवश्यक है. अनुसूचित जाति,जनजाति की जनसंख्या को भी परिसीमन के आधार पर ध्यान में रखा जायेगा तो एक नया स्वरूप भी सामने आयेगा जिससे उनके साथ भी न्याय हो सकेगा. ये जो असुविधाएं हैं जो अधिकारियों,कर्मचारियों को,ग्राम वासियों को वह उनकी दूर हो जायेंगी. मेरा मंत्री जी से निवेदन है कि यह परिसीमन कराया जाये वैसे मेरी जानकारी के अनुसार शायद केन्द्र सरकार तक यह विषय जायेगा और यदि केन्द्र सरकार तक यह विषय जाना है तो उपाध्यक्ष महोदय, यह प्रस्ताव केन्द्र को चला जाये यह मंत्री जी से आग्रह है.
श्री कमलेश्वर पटेल (सिंहावल) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आदरणीय श्री केदारनाथ शुक्ल जी जो अशासकीय संकल्प जनपद पंचायतों और विकासखण्डों के परिसीमन के संदर्भ में लेकर आये हैं यह वास्तव में स्वागत योग्य है. इसमें मेरा आपके माध्यम से यही निवेदन है कि परिसीमन करते समय इस बात का जरूर ध्यान रखें कि क्षेत्रफल के हिसाब से ऐसा न हो जाये कि जैसे अभी विधान सभा क्षेत्रों का परिसीमन हुआ तो जैसे मेरा विधान सभा क्षेत्र 2 जिलों में पड़ता है और 30 किलोमीटर चितरंगी विधान सभा क्षेत्र क्रास करकर जाना पड़ता है. जब परिसीमन बने तो क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से उसका पूरा सत्यापन कराकर,परीक्षण कराकर उसके हिसाब से बनाया जाये और एक बात और कहना चाहूंगा जो आदरणीय केदारनाथ शुक्ल जी ने और वेलसिंह भूरिया जी ने चिंता व्यक्त की है तो सरकार की जो असलियत है हम यह बात बोलते तो शायद आप लोगों को नागवार गुजरता कि गरीब को कूपन बनवाने के लिये गरीब को ब्लाक मुख्यालय जाना पड़े जबकि शासन की तरफ से सुविधा है पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की तरफ से पंचायत कर्मी हैं,रोजगार सहायक हैं,पंचायत के सचिव हैं.इन्हीं का काम है कि चाहे खाद्यान्न वितरण प्रणाली हो या कूपन बनना हो जो भी पंचायतों से संबंधित काम है तो उसका एक पूरा सिस्टम है. एक सिस्टम काम कर रहा है. यह सिस्टम पूरी तरह से नष्ट हो चुका है इस बात पर माननीय केदारनाथ शुक्ला जी ने और भूरिया जी ने सील लगा दी है. मैं इस संकल्प का मैं स्वागत करता हूं. बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री शैलेन्द्र पटेल (इछावर)-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, बहुत सारी बातें इस विषय में हो चुकी हैं. मैं एक ही बात जोड़ना चाहता हूं कि बहुत से ब्लॉक हैं जिसमें पंचायतों की संख्या बहुत ज्यादा है. निश्चित रूप से जो माननीय शुक्ला जी लेकर आये हैं यह एक विचारणीय पहलू है, सरकार को इसके बारे में विचार करना चाहिये. मैं अपनी ही विधान सभा की सीहोर ब्लॉक की बात करता हूं जिसमें मेरी 66 पंचायतें आती हैं और इछावर और सीहोर दोनों विधान सभाओं को मिलाकर वह ब्लॉक बना हुआ है. लगभग 146 पंचायतों का ब्लॉक है. यह समस्या पूरे मध्यप्रदेश के अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य क्षेत्रों की है. निश्चित रूप से शासन को इस बारे में निर्णय लेना चाहिये और आज की भौगोलिक स्थितियों में आज के हिसाब से इन ब्लॉक का निर्धारण होना चाहिये और साथ में जो पंचायतें हैं उनमें भी विसंगतियां हैं, 3-3 गांव की पंचायतें हैं, 10-10, 12-12 किलोमीटर की उनमें दूरियां हैं. इस ओर सरकार विचार करे और हम सबका यह मत है कि सरकार निर्णय करके पंचायतों का जनपद पंचायतों का परिसीमन करें ताकि सरकार की योजनाओं का लाभ अंतिम आदमी तक पहुंच सके और जनता को लाभ मिले.
राज्य मंत्री, सहकारिता (विश्वास सारंग)-- माननीय अध्यक्ष महोदय, केदार नाथ शुक्ला जी द्वारा प्रस्तुत अशासकीय संकल्प, जनपद पंचायत और विकासखंडों का परिसीमन किया जाये इसमें विभिन्न सदस्यों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये और अमूमन सबका यही पहलू था कि यदि विकासखंड या जनपद पंचायत का मुख्यालय दूर है तो आप्रेशनल दिक्कतें आती हैं. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से सभी सदस्यों को और सदन को यह बताना चाहता हूं कि आज की परिस्थितियों में कुछ न कुछ स्थितियां बदली हैं. एक तो रोड कनेक्टिविटी, हम यह मानेंगे कि पुराने वर्षों से अभी ज्यादा अच्छी हुई है और तकनीकी खासकर आई.टी. के प्रयोग के कारण, ब्रॉडबेण्ड आने के कारण और कोर बैंकिंग के माध्यम से भी जो वर्किंग है वह नीचे तक गई है, जो हमारी इम्पिलीमेंटिंग एजेंसी है वह जनपद से और नीचे जाकर ग्राम पंचायत हुई है. हम केन्द्र सरकार या राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं की बात करें तो उसकी भी इम्पिलीमेंटिंग एजेंसी अमूमन अब ग्राम पंचायत ही हो गई है. पहले जो योजनायें बनती थीं वह क्षेत्र को आधारित करके बनती थीं, पर आजकल की जो योजनायें हैं उसमें खासकर ग्रामीण विकास और गांव में रहने वाले हितग्राहियों को जो सुविधायें देने की योजनायें हैं वह हितग्राही वेस्ड हैं, परंतु यह भी बिल्कुल सही है कि कुछ-कुछ जनपद पंचायतों के मुख्यालय विभिन्न योजनाओ के कारण कहीं पर नेशनल पार्क बन गया है, कहीं सिंचाई की कोई योजना आने के कारण डूब का क्षेत्र हो गया है, उसके कारण मुख्यालय की दूरी गांव से दूर हो गई है. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय सदस्य से यह अनुरोध करना चाहता हूं कि इसमें कुछ आंशिक परिवर्तन करके हम इस प्रस्ताव को स्वीकार करने की स्थिति में हैं, उसमें अभ्यारण्य, नेशनल पार्क, सिंचाई परियोजना क्षेत्र से जिन ग्राम पंचायतों की दूरी उसके विकासखंड मुख्यालय से अधिक हो गई है उन्हें निकटवर्ती विकासखंड से जोड़ने के लिये गुणदोष के आधार पर प्रकरण वाइज विचार कर परिसीमन कराने की राज्य सरकार कार्यवाही कर सकती है. मैं आपके माध्यम से माननीय सदस्य से यह निवेदन करूंगा कि वह संकल्प वापस लें.
श्री केदारनाथ शुक्ल-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, एक बात इसमें और जोड़ दी जाये, जनसंख्या और पूरे मध्यप्रदेश में एकसमान मापदण्ड कायम कर दिया जाये, जनपद पंचायत बनाने का मापदण्ड एक कायम कर दिया जाये कि इतनी जनसंख्या पर एक जनपद पंचायत होगी, तब समझ में आयेगा और जनसंख्या एक बहुत बड़ा आधार है और क्षेत्रफल का भी आधार लिया जाना चाहिये, इतनी बात और जोड़ दी जाये और परिसीमन स्वीकार कर लिया जाये, मेरा आपसे आग्रह है.
श्री विश्वास सारंग-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, जैसा मैंने कहा प्रकरण वाइज गुणदोष के आधार पर इस पर विचार करेंगे.
उपध्यक्ष महोदय-- क्या माननीय सदस्य इस संकल्प को वापस लेने के पक्ष में हैं.
श्री केदारनाथ शुक्ल-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश शासन की ओर से हमारे माननीय मंत्री भाई विश्वास सारंग जी ने हमें परिसीमन का आश्वासन दिया है, मैं संकल्प वापस लेता हूं. धन्यवाद.
उपाध्यक्ष महोदय-- क्या यह सदन संकल्प वापस लेने की अनुमति देता है.
सदन द्वारा अनुमति प्रदान की गई.
(संकल्प वापस)
(2) मध्यप्रदेश के समस्त पंचायत मुख्यालयों को उक्त पंचायतों के गांवों से मार्ग निर्माण कर जोड़ा जाना.
श्री शैलेन्द्र पटेल (इछावर)-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मेरा संकल्प इस प्रकार है-
''सदन का यह मत है कि मध्यप्रदेश के समस्त पंचायत मुख्यालयों को उक्त पंचायतों के गांवों से मार्ग निर्माण कर जोड़ा जाये.''
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैंने यह संकल्प इसलिये चयनित किया कि हमारे मध्यप्रदेश और पूरे देश की आत्मा गांव में बसती है. भारत की लगभग 70% से ज्यादा आबादी गांव में बसती है. मध्यप्रदेश की लगभग 22804 पंचायतों में मध्यप्रदेश को बांटा गया है. गांधी जी ने भी भारत की आजादी के पहले पंचायती राज की जो परिकल्पना की थी, ग्राम स्वराज की परिकल्पना की थी उनका मत यह था कि ग्राम में स्वराज हो, रोजगार के साधन हो और उसमें सबसे महत्वपूर्ण काम सड़क निर्माण का होता है. इसी के अंतर्गत मैंने पूरे प्रदेश में और अपने क्षेत्र मे देखा है कि गांव जो पंचायत है वह अपने पंचायत के मुख्यालय से नहीं जुड़ी हैं. उसमे जो मूल रूप से समस्या आती है कि जो पंचायत मुख्यालय है वहां पर आम नागरिक को कोई भी प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है तो उसको पंचायत के मुख्यालय में जाना पड़ता है. बैठकों में आना जाना पड़ता है ,कनेक्टिविटी बराबर बनी रहती है, जितने भी प्रायमरी के बाद मिडिल स्कूल, हाई स्कूल, हायर सेकेण्डरी स्कूल हैं वह सामान्य रूप से पंचायत मुख्यालय में स्थित रहते है तो बच्चों को पढ़ने जाने के लिये भी पंचायत मुख्यालय में गांव से जाना होता है . साथ में जितने भी बेहतर स्वास्थ्य केन्द्र हैं, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, डिस्पेंसरी हैं वह भी पंचायत मुख्यालय में स्थित हैं. जब कोई बीमार हो जाता है तो रोड़ की कनेक्टिविटी न होने के कारण 15 से 20 किलोमीटर घूमकर के जाना पड़ता है. उसी तरह से गांव में पशुओं की तादाद रहती है. गांव में जितने भी पशु चिकित्सालय के सेन्टर होते हैं वह भी पंचायत मुख्यालय में हैं. पंचायत मुख्यालय से नीचे जो गांव आते हैं उनमें यह नहीं होते है . बैंक की जो सुविधा है, कैशलेस की हम बात कर रहे हैं वह सुविधा भी पंचायत मुख्यालय तक नहीं पहुंची लेकिन जहां भी पहुंची है वह पंचायत मुख्यालय तक ही पहुंची है. सबसे बड़ी बात है कि शासन ने निर्णय लिया है कि राशन की दुकान भी हर पंचायत मे होगी तो राशन की दुकानें भी पंचायत मुख्यालय में होती हैं. जो आम आदमी है, गरीब आदमी है राशन लेने के लिये जाना है और सीधे सड़क नहीं हो तो उसको भी 12 से 15 किलोमीटर दूर घूमकर के जाना पड़ता है. अभी तक मध्यप्रदेश में जो सड़कें बनी हैं पहले सड़कें लोक निर्माण विभाग के द्वारा बनाई जाती थी, उसके बाद में प्रधानमंत्री सड़क योजना के माध्यम से सड़के बनीं हैं. प्रधानमंत्री सड़क योजना में यह नियम था कि गांव को ब्लाक मुख्यालय से जोड़ा जाये, इसी तरह से सरकार ने जो मुख्यमंत्री सड़क योजना बनाई उसमें आबादी का मापदण्ड था, पहले 1000 की जनसंख्या था, फिर 500 की जनसंख्या हुआ, फिर 250 तक आया उसके बाद शासन ने निर्णय लिया कि 250 से कम जनसंख्या वाली जो सड़के हैं वह मुख्यमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत जोड़ेंगे, वह काम भी लगभग समाप्ति की ओर है,लेकिन जब प्रधानमंत्री सड़क योजना के बाद मुख्यमंत्री सड़क योजना बनाई गई तो शायद यह त्रुटि हो गई कि उन्हें ब्लाक मुख्यालय से तो जोड़ दिया लेकिन पंचायत मुख्यालय से जोड़ने का प्रावधान नहीं किया गया. पंचायत मुख्यालय से नहीं जुड़ने के कारण जो मैंने समस्याएं इंगित की हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, बैंकिंग, प्रमाण पत्र, राशन यह सारी चीजों को लेने के लिये बीच में न सड़क मार्ग है ,न ग्रेवल मार्ग है जो मुख्यमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत आते हैं तो उसके कारण उनको घूमकर के जाना पड़ता है.
उपाध्यक्ष महोदय, मेरी विधानसभा में लगभग 136 पंचायतें हैं जिसमें इछावर ब्लाक में लगभग 70 पंचायते हैं उसमें से जो सड़कें मैंने चिह्नित की हैं और जाकर के देखी हैं लगभग 12 पंचायतें आती हैं जिसमें उस पंचायत के अंतर्गत आने वाले गांव पंचायत मुख्यालय से नहीं जुड़े हैं. उदाहरण के लिये पांगड़ाखाती हमारा पंचायत मुख्यालय है, मोगरा गांव उससे नहीं जुड़ा है. ईंटखेड़ा पंचायत मुख्यालय है नींबूखेड़ा और सोनछापड़ी नहीं जुड़े हुये हैं. इसी तरह से बलोंडिया से नवलपुरा नहीं जुड़ा है, सिराड़ी से कल्याणपुरा और पुड़ी से बिछोली-दुर्गपुरा से काल्याखेडी, वीरपुर डेम से सेवनिया, मोलगा से गोयलखेड़ी, गादिया से बोदरीखुर्द और डूंडालावा, बावड़िया नवांबाग से खजड़ा, जामली से बालूपाट, कनेरिया से लोटिया लगभग यह 12 पंचायत के जो मुख्यालय हैं उनके अंतर्गत आने वाले गांव नहीं जुड़े हुये हैं.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, इसी तरह से मेरी विधानसभा का जो सीहोर ब्लाक है जिसमें लगभग 66 पंचायते हैं उसमें लगभग 13 पंचायतों के मुख्यालय से उनके गांव नहीं जुड़े हैं. वह इस प्रकार है कि लसुड़िया परिहार से जमनी, पड़ली से बारवाखेड़ी, भोजनगर से रामाखेड़ी, चितोड़ियालाका से भटोनी, सेमड़ीकला से मनाखेड़ा, कपूरी से लोंधिया, खेड़ली से नापली, आंवलीखेड़ा से अमामाय, रायपुरा नया खेड़ा से अमरोद, दुपाड़ियाबील से चोंडी और टच, कराड़ियाबील से मेनीखेड़ी, मोरगा, सेवनिया से शाहपुर कोड़िया और हसनाबाद से कालापाड़. कहने का आशय यह है कि लगभग 25-26 पंचायत मुख्यालय से उनके गांव नहीं जुड़े हुये हैं. इनके नहीं जुड़े होने के लिये नागरिकों को बारिश के समय में जो गांव के रोड़ होते हैं वह चलने लायक नहीं होते हैं, कीचड़ मच जाता है, न दुपहिया वाहन न चार पहिया वाहन उस पर चल नहीं पाते हैं, और इन पंचायत मुख्यालयों पर जाने के लिये लगभग 15 से 20 किलोमीटर तक जाना पड़ता है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से सरकार को सुझाव देना चाहता हूं कि जिस तरह से मुख्यमंत्री सड़क योजना बनी है और आरईएस विभाग मध्यप्रदेश में हर जिले में काम कर रहा है तो यह सड़क भी आरईएस अपने हिसाब से बनाये क्योंकि अमला तो है सिर्फ पैसे के आवंटन की बात है. जब मुख्यमंत्री सड़क योजना का काम खतम हो गया तो कुछ सड़कों के डामरीकरण करने की बात माननीय मुख्यमंत्री जी ने सदन में कही थी, निश्चित रूप से वह सराहनीय पहल है, लेकिन कुछ ऐसे गांव हैं, जिनको पंचायत मुख्यालय से जोड़ना अति आवश्यक है, उनको भी साथ में लेकर जोड़ा जाए. यह जरूर बात आ सकती है कि कहीं पर बीच में पहाड़ आ जाए, तो कहा जाएगा कि पहाड़ को कैसे खत्म करेंगे, कहीं पर वन क्षेत्र आ जाएगा तो फारेस्ट विभाग उसको नहीं देगा, तो इस तरह के कहीं पर एक्सेप्शन हो सकते हैं, कहीं पर इस तरह की बात आ सकती है, तो इस पर हम जरूर विचार करें, लेकिन मेरा आपके माध्यम से शासन से आग्रह है कि जो पंचायत मुख्यालय के गांव हैं, उनको अधीनस्थ गांवों से जोड़ा जाए. आरईएस विभाग काम कर ही रहा है, सिर्फ फंड्स की बात है. अभी मेरे पहले केदारनाथ जी ने कहा कि पंचायतों का भी परिसीमन होना चाहिए, जनपद का भी परिसीमन होना चाहिए, चाहे पक्ष के हों, या विपक्ष के सदस्य हों कहीं न कहीं यह चिन्ता हम सभी सदन में आने वाले साथियों की है कि आम जनता को लाभ कैसे मिले. सड़क को हम कहते हैं कि यह एक तरह से शरीर की धमनियों जैसे काम करती हैं, यह नहीं होगी तो निश्चित रूप से कहीं न कहीं जो लाभ शासन देना चाहता है वह लाभ नहीं मिल पाएगा. मेरा आग्रह है कि सदन इसको स्वीकार करें और सरकार इस पर निर्णय ले, उपाध्यक्ष महोदय धन्यवाद.
श्री कमलेश्वर पटेल(सिंहावल) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश के समस्त पंचायत मुख्यालयों को उक्त पंचायतों के गांवों से मार्ग निर्माण कर जोड़ा जाए, जो शासकीय संकल्प श्री शैलेन्द्र पटेल जी लेकर आए हैं, हम उसका स्वागत करते हैं, समर्थन करते हैं. जैसा कि हमारी जो बीआरजीएफ योजना थी, जिसके माध्यम से सुदूर अंचल में सड़क पहले बनती थी और काफी काम भी हुए, कई ग्राम पंचायतों में खासकर आदिवासी बाहुल्य गांव थे, बहुत सारी जगह उसके माध्यम से काम हुए, जिसको सरकार ने बंद कर दिया. मेरा निवेदन है कि उस योजना को फिर से संचालित करना चाहिए. मुख्यमंत्री सुदूर सड़क पहुंच मार्ग योजना बंद हो गई है, माननीय उपाध्यक्ष महोदय शायद इसकी जानकारी आपको होगी. कई जगह आधा अधूरा काम होने के बाद उसको छोड़ दिया है, उसमें राशि जारी नहीं हो रही है. मेरा आपके माध्यम से मंत्री जी से निवेदन है कि जो भी मुख्यमंत्री सुदूर सड़क पहुंच मार्ग बनने का प्रावधान था, कई जगह राशि पंचायत में लग गई, आधा अधूरा काम हुआ है और बीआरजीएफ योजना बंद कर दी गई है, इसके माध्यम से बहुत सारी सड़क एवं पुल पुलिया बनती थीं, वह बंद हो गई है. उपाध्यक्ष महोदय मेरा आपके माध्यम से मंत्री जी से निवेदन है कि टोला-मोहल्लों में ग्राम पंचायतों में अभी भी पहुंच मार्ग नहीं बने हैं, वहां सड़कों का निर्माण कराए जाए, जिससे वहां रहने वाले किसान, गरीब एवं आमजन को स्वास्थ्य के लिए, शिक्षा के लिए भटकना न पड़े. माननीय उपाध्यक्ष महोदय कई ऐसे गांव हैं, जहां सड़क नहीं होने की वजह से, नाले पर रपटा नहीं होने की वजह से बच्चे बारिश में महीनों स्कूल नहीं जा पाते, हमारे विधानसभा क्षेत्र में भी कई ऐसे आदिवासी बाहुल्य गांव हैं. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से निवेदन है कि जो प्रस्ताव श्री शैलेन्द्र पटेल जी लेकर आए हैं, इसको पारित करें.
राज्यमंत्री सहकारिता (श्री विश्वास सारंग) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, शैलेन्द्र पटेल जी ने यहां प्रस्ताव रखा है कि मध्यप्रदेश के समस्त पंचायत मुख्यालयों को उक्त पंचायत के गांव से मार्ग निर्माण कर जोड़े जाने हेतु केन्द्र से अनुरोध किया जाए. श्री शैलेन्द्र पटेल जी ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि विभिन्न योजनाओं के तहत केन्द्र सरकार के सहयोग से और राज्य सरकार के स्वयं के बजट से हम लगातार यह प्रयास कर रहे हैं कि गांव में सड़कों का नेटवर्क ठीक ढंग से हो सके. प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत 2001 में जो योजना शुरू हुई थी, उसमें सामान्य क्षेत्रों में 500 से अधिक और आदिवासी क्षेत्रों में 250 से अधिक जनसंख्या वाले गांवों को जोड़ने का जो प्रस्ताव था, उस पर अमलीजामा पहनाया गया और उससे लगभग 75 हजार किलोमीटर सड़कों का निर्माण हुआ. इसी तरह माननीय उपाध्यक्ष महोदय, केन्द्र सरकार की प्रधानमंत्री सड़क योजना फेस 2 जो आई उसमें इन सड़कों के उन्नयन की जो व्यवस्था थी, उसमें भी प्रस्ताव बनाकर भेजा गया और मुझे यह बताते हुए इस सदन में बहुत प्रसन्नता है कि केंद्र सरकार ने अभी पिछले दिनों मध्यप्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्रालय को 200 करोड़ रुपये इनसेंटिव्ह के रुप में प्रदान किये हैं , क्योंकि इस विभाग ने बहुत अच्छा काम किया,समय पर काम किया और गुणवत्ता का काम किया. हम देश में दूसरे नम्बर पर आये और यह निश्चित रुप से हमारी सरकार का एक अच्छा काम था, जिसको केन्द्र सरकार ने भी उसके माध्यम से सम्मानित किया. इसी तरह से मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना का जब इस बात का विचार हुआ कि प्रधानमंत्री सड़क योजना के बाद कुछ गांव, जिनकी जन संख्या कम है, उसमें भी रोड का नेटवर्क होना चाहिये, तो मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत वहां पर भी रोड बनाने का काम हुआ. उसके बाद, क्योंकि यह ग्रेवल रोड थी, इसमें डामरीकरण हो सके, प्रस्ताव बनाया गया और विश्व बैंक से बात करने के बाद इन रोड्स पर डामरीकरण हो सके, उसमें लगभग 4 हजार किलोमीटर के उन्नयन का डीपीआर तैयार हो गया. एडीबी के माध्यम से वह भी काम किया जा रहा है. उसके साथ ही मनरेगा के माध्यम से भी जो मजरे टोले हैं और जो सुदूर गांव के पहुंच मार्ग हैं, उनको बनाने की भी योजना पर बहुत अच्छे से काम हो रहा है. इसलिये जो प्रस्ताव हमारे सदस्य का है, अभी हाल फिलहाल वह स्थिति नहीं बनती है कि हम हर पंचायत मुख्यालय से उस पंचायत के गांव को जोड़ने की व्यवस्था बना सकें, पर सुझाव अच्छा है, होना भी चाहिये, आदर्श स्थिति यह होनी भी चाहिये,पर हमें यह भी विचार करना पड़ेगा कि केंद्र की सरकार और राज्य की सरकार इस बात को लेकर लगातार योजनाएं भी बना रही हैं और नीचे-नीचे क्रम में जाकर रोड का नेटवर्क लगातार बन भी रहा है. इसलिये मैं आपके माध्यम से सदन से यह निवेदन करना चाहता हूं, जैसा मैंने कहा कि प्रस्ताव अच्छा है और मुझे ऐसा विश्वास है, शासन को ऐसा विश्वास है कि आगे जाकर तो यह स्थिति बनेगी ही, क्योंकि माननीय सदस्य ने यहां पर यह प्रस्ताव रखा है, हमारा विभाग इस बात से सहमत है कि अगली बार जब भी प्रधानमंत्री सड़क योजना का जो फेस आये, हम प्रदेश सरकार के माध्यम से केन्द्र सरकार को यह निवेदन कर सकते हैं कि उसमें सभी गांवों को ग्राम पंचायत मुख्यालय से जोड़ने की योजना पर वह विचार करे, यह कर सकते हैं कि जैसे ही प्रधानमंत्री सड़क योजना का अगला फेस आयेगा, तो हमारी तरफ से हम यह प्रस्ताव जरुर केंद्र सरकार को भेजेंगे. उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से सदस्य से यह निवेदन करुंगा कि अभी यह अपना प्रस्ताव वापस ले लें और उसके बाद हम केंद्र सरकार को जब भी प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का अगले फेस का जो प्रस्ताव जायेगा, उसमें इसको जरुर शामिल करेंगे, बहुत बहुत धन्यवाद.
श्री शैलेन्द्र पटेल -- उपाध्यक्ष महोदय, प्रजातंत्र और जनतंत्र की एक यह व्यवस्था है कि संख्या बल पर बहुत सारी चीजों का निर्णय होता है और निश्चित रुप से संख्या बल में हम कम हैं. अगर मतदान भी होगा, तो वह भी ठीक परम्परा नहीं है. मेरा आशय यह है कि इसमें बहुत ज्यादा बजट की समस्या होगी नहीं, क्योंकि जो रोड हैं, वह आधा किलोमीटर और एक किलोमीटर तक के हैं. हम जब मुख्यमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत ये रोड बना सकते हैं, क्योंकि ये छोटे रोड हैं, कोई बहुत बड़े ज्यादा लम्बे रोड्स की बात नहीं है. मैं आपको बताना चाहता हूं कि लगभग 23000 पंचायतों में से 11000-12000 पंचायतें तो सिंगल गांव की हैं. तो उनकी तो रोड बननी ही नहीं है. उसके बाद जो बाकी 11000-12000 पंचायतें रह गईं, तो लगभग प्रदेश के अन्दर आधी से ज्यादा पंचायतें अपने गांव से जुड़ी हुई हैं. अब यह लगभग 2000-3000 रोड्स की बात रह गई है और यह आधा,एक एवं दो किलोमीटर की रोड्स हैं, क्योंकि अगर रोड नहीं है इसके कारण 15-15 और 20-20 किलोमीटर दूर तक जाना पड़ता है. अब ये रोड बन जायेंगी, तो आधा, एक और दो किलोमीटर एवं हमारा जो आपके माध्यम से शासन से आग्रह था कि हम कोई डामर रोड की मांग नहीं कर रहे थे, एक ग्रेवल मार्ग की बात कर रहे थे, जिस तरह से मुख्यमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत रोड बनायें, हम भी इस बात को समझते हैं कि सरकार को इतना खर्च करना आसान नहीं होगा. हम एकदम से भी नहीं चाहते हैं कि करें. उससे भी जिस तरीके से प्रधानमंत्री सड़क योजना में आबादी के हिसाब से लिया कि पहले साल में हम इतना करेंगे, दूसरे साल में इतना करेंगे और 10-12 साल तक उन्होंने इस कार्यक्रम को चलाया. उसी तरह मुख्यमंत्री सड़क योजना का भी काम लगभग 6-7 सालों से चला और 6-7 साल में जाने के बाद अब जाकर वह काम समाप्त हुआ. मेरा यह आग्रह है,क्योंकि जो विधायक है, उसके पास एक यही हथियार कहा जा सकता है, एक ही इंस्ट्रूमेंट होता है अशासकीय संकल्प, जिसमें जनहित के मामले हैं, वह लाकर शासन का ध्यान आकर्षित कर सके. शासन का निर्णय होता है कि उस पर क्या निर्णय ले. मैंने एक प्रयास किया कि शासन को इसको अवगत कराऊं और मेरा तो यह मानना है कि मंत्री जी से भी, शासन से भी कि यह बहुत अच्छा काम है, इसमें सभी की और निश्चित रुप से सरकार की भी वाह-वाही होगी, क्योंकि करना तो सरकार को है. अशासकीय संकल्प जरुर मेरे द्वारा लाया गया है. इस पर वह विचार करें एवं यथासम्भव हो सके तो राज्य सरकार इसकी यहां पर घोषणा करे, यह मेरा आपके माध्यम से आग्रह है.
श्री विश्वास सारंग - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैंने आपके माध्यम से अनुरोध किया है कि अभी सदस्य इसको वापस लें, आगे जब भी प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का अगले फेस का प्रस्ताव जायेगा. हम अपनी तरफ से यह जरूर निवेदन करेंगे कि उसमें इस प्रस्ताव को शामिल किया जाये.
उपाध्यक्ष महोदय - क्या माननीय सदस्य इस संकल्प को वापस लेने के पक्ष में हैं ?
श्री शैलेन्द्र पटेल - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैंने पहले ही बोल दिया था कि ठीक है, यह शासन का निर्णय है एवं मेरा प्रयास है कि आपके माध्यम से यह आया. मैं आज संकल्प वापस लेता हूँ लेकिन सरकार इस पर निर्णय करे और उन गांव वालों को फायदा पहुँचाये. बहुत-बहुत धन्यवाद.
उपाध्यक्ष महोदय - क्या सदन संकल्प वापस लेने की अनुमति देता है ?
(सदन द्वारा अनुमति प्रदान की गई)
(संकल्प वापस हुआ.)
(3) कैंसर रोग को गंभीर बीमारी घोषित कर पीडि़तों के नि:शुल्क इलाज
की व्यवस्था की जाना
डॉ. गोविन्द सिंह (लहार) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं संकल्प प्रस्तुत करता हूँ कि ''यह सदन केन्द्र शासन से अनुरोध करता है कि कैंसर रोग को गंभीर बीमारी घोषित कर पीडि़तों के नि:शुल्क इलाज की व्यवस्था की जाए.''
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ. नरोत्तम मिश्र) - कैंसर तो गंभीर बीमारी है ही, इसे घोषित क्या करना है ? आप पी.एच.डी. के डॉक्टर हो या किस चीज के हो ? पहले आप बताओ कि डॉक्टर किस चीज के हो ?
डॉ. गोविन्द सिंह - आपके खानदानी डॉक्टर हैं. (हंसी)
श्री गिरीश गौतम - झोला-छाप डॉक्टर हैं.
श्री जतन उइके - डॉक्टर साहब, मंत्री जी का इलाज जरूर कर दीजिये. बहुत परेशानी में हैं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - वे डॉक्टर हैं, मेरा इलाज कई बार कर चुके हैं. तुम अपनी सोचो भाई.
श्री जतन उइके - मेरी हालत अभी ठीक है.
उपाध्यक्ष महोदय - संकल्प प्रस्तुत हुआ.
डॉ. गोविन्द सिंह - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आज के परिवेश में कैंसर रोग समूचे भारतवर्ष के साथ-साथ, मध्यप्रदेश में भी भारी पैमाने पर फैल रहा है. कैंसर एक ऐसी गंभीर बीमारी है, जो अभी तक मध्यप्रदेश, भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में इसकी चिकित्सा की व्यवस्था या खोज नहीं हो पाई है. इस पर तमाम रिसर्च हुए हैं, लेकिन वे भी असफल हुए हैं. कैंसर रोग बीमारी के कारण, किसी व्यक्ति को जब पता चलता है कि उसी दिन से उसकी आधी बीमारी में तो मौत की तैयारी हो जाती है. आज के परिवेश में दूध, खोया एवं मिठाई सभी में मिलावट है. जितनी भी खाने-पीने की वस्तुएं हैं, उनमें भारी पैमाने पर मिलावट के कारण कैंसर फैल रहा है. इसके साथ ही साथ आजकल जो हम फसल पैदा कर रहे हैं, फसलों में पेस्टीसाईड्स हैं, कैमीकल्स हैं, खाद हैं, फर्टिलाइजर्स डालते हैं, उससे भी असर पड़ रहा है. अभी यह सब्जियों में भी चालू हो गया है. अभी हमारे गांव में एक प्रयोग बताया गया है कि लौकी को रात में इंजेक्शन लगा दो तो वह सुबह बड़ी हो जाती है.
उपाध्यक्ष महोदय - लौकी में इंजेक्शन लगाने वाले डॉक्टर अलग होते हैं.
डॉ. गोविन्द सिंह - नहीं, वे लोगों को मारने वाले डॉक्टर हैं. वे लौकी में रात में इंजेक्शन लगा देते हैं तो लौकी सुबह एक फिट बढ़ जाती है.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - क्या आप वही डॉक्टर हो ?
डॉ. गोविन्द सिंह - अब हम आपका इलाज करेंगे तो बताएंगे. इसके साथ ही साथ अब केला पकाने के लिए, पपीता एवं आम पकाने के लिए कार्बाइड का उपयोग हो रहा है, यह सब कैमीकल्स जहरीले होने के कारण शरीर में पहुँचते हैं तो कैंसर की गंभीर बीमारी पैदा होती है. मैंने परसों कहा था कि पतंजलि के शहद से चार आदमी मध्यप्रदेश में मर गए हैं तो माननीय मुख्यमंत्री जी ने मजाक उड़ाया था. मैं कोई भी बात तथ्य के आधार पर कहता हूँ. (हंसी) अरे, हंस क्यों रहे हो ?
श्री शंकरलाल तिवारी - कैंसर तो आलरेडी गंभीर बीमारी की गिनती में है.
डॉ. गोविन्द सिंह - आप बैठ जाइये. आपने आगे पढ़ा है कि उसमें क्या लिखा है ?
श्री शंकरलाल तिवारी - मैं तो आपकी डांट सुनना चाहता था इसलिए खड़ा हुआ हूँ.
डॉ. गोविन्द सिंह - मैं यह कह रहा हूँ कि आप उसको और आगे पढ़ लें. मुफ्त में इलाज की व्यवस्था करने का कहा है.
श्री शंकरलाल तिवारी - आप डॉक्टर हो. आप पढ़ो-लिखो, हमें क्या लेना-देना है ?
डॉ. गोविन्द सिंह--पतंजलि का कल आप मजाक उड़ा रहे थे, रामदेव बाबा के पतंजलि का शहद और सरसों का तेल मध्यप्रदेश के खाद्य औषधि विभाग द्वारा..
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- पूरा संकल्प बाबा रामदेव जी के चक्कर में ले आए. आधा कार्यकाल भैय्या का रावतपुरा में निकल गया आधा रामदेव में. (हंसी)
उपाध्यक्ष महोदय--इसके बाद तीसरा तो कोई नहीं है.
डॉ. नरोत्तम मिश्र--विभाग ने पतंजलि के प्रोडक्ट पर 2.60 लाख रुपए जुर्माना भी किया है. सरसों के तेल में राइस ब्रान और पॉम आइल की मिलावट पाई गई, दो चीजें पाई गईं.
श्री शंकरलाल तिवारी--उपाध्यक्ष महोदय, हर जिला अस्पताल में कीमो-थैरेपी की व्यवस्था सरकार द्वारा की गई है.
डॉ. गोविन्द सिंह--हां ठीक है अभी बता देते हैं. इसके बाद बताना चाहूंगा कि वन विभाग की रिपोर्ट मेरे पास है. जो असली शहद होता है वह मौसम के हिसाब से रंग बदलता है परन्तु यह जो पतंजलि में शहद बिक रहा है.
उपाध्यक्ष महोदय--डॉक्टर साहब के पास कल पूरा शोध नहीं था पूरी तैयारी नहीं थी. आज तैयारी से आए हैं.
डॉ. गोविन्द सिंह--उसको फिल्टर नहीं करते हैं अगर वह फिल्टर होता.
श्री जतन सिंह उईके--उपाध्यक्ष महोदय, विषय बदल गया है कैंसर की जगह डॉक्टर रामदेव जी आ गए हैं.
श्री गिरीश गौतम--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, इन्हें यही संकल्प लाना था कि पतंजलि को बंद किया जाए.
डॉ. गोविन्द सिंह--उपाध्यक्ष महोदय, एक पदार्थ होता है वह शहद के फिल्टर न होने से पाया जाता है पोलेसेंस नाम का पदार्थ होता है जो शहद के फिल्टर न होने से पाया जाता है पोलेंस नाम का कैंसर भी उसी पदार्थ से होता है जो कि पतंजलि के शहद में पाया गया. इस तरह की जो मिलावट हो रही है, अशुद्ध खाना मिल रहा है फास्ट फूड मिल रहा है. मध्यप्रदेश में फूड सेफ्टी की ठीक से जांच करने की कोई लैब नहीं है. इसलिए कैंसर की महामारी फैल रही है. आज से 15-20 वर्ष पहले जब गांवों में जाते थे तब 20-25 किलोमीटर के क्षेत्र में एक या दो मरीज कैंसर के दिखते थे. आज शायद ही कोई गांव बचा हो जहां कि आबादी 1000-500 है वहां पर भी 2-3 कैंसर के मरीज मिल जाते हैं.
उपाध्यक्ष महोदय, पिछली बार भी राज्यपाल महोदय के अभिभाषण में उल्लेख किया गया था कि हर जिले में जिला अस्पताल में फ्री में कीमो-थैरेपी हो रही है, डायलेसिस फ्री हो रही है. मैं कहना चाहता हूँ हमारे स्वास्थ्य मंत्री जी ग्वालियर के ही रहने वाले हैं. ग्वालियर के 4-5 मंत्री हैं. केन्द्रीय मंत्री भी हैं. मैं आज शाम को वापस जा रहा हूँ स्वास्थ्य मंत्री जी मेरे साथ चलकर कल सुबह ग्वालियर के अस्पताल में देखें कि ग्वालियर के जिला अस्पताल में कितने लोगों की कीमो-थैरेपी हो रही है. एक महीने पहले की घटना है मेरे क्षेत्र के गांव का एक व्यक्ति जिसका नाम रघुवीर सिंह है उसे हम लेकर गए. अभी राज्यपाल महोदय के अभिभाषण में उल्लेख है कि कैंसर के मरीजों को मुफ्त में इलाज और डायलासिस फ्री है. मैं आपसे पूछना चाहता हूँ. श्योपुर और भिण्ड जिले में आज क्या डायलेसिस और कैंसर का इलाज फ्री हो रहा है. हम और जिलों में नहीं गए लेकिन हम दो जिलों में गए हैं. ग्वालियर में हम मरीज को लेकर स्वयं गए थे वहां कैंसर का एक रुम बना हुआ है जहां लिखा है कैंसर की चिकित्सा हो रही है. एक दिन आइए आप.
डॉ. नरोत्तम मिश्र--डॉक्टर साहब दावे के साथ कह सकते हैं कि भिण्ड में डायलेसिस हो रहा है, आप खुद ही पता कर लो. भिण्ड का अस्पताल सर्वश्रेष्ठ हो गया है.
डॉ. गोविन्द सिंह--अस्पताल सर्वश्रेष्ठ हो गया है लेकिन वहां डॉक्टर ही नहीं है. वहां पर डायलेसिस करने वाले डॉक्टर नहीं हैं तो कैसे हो जाएगा. उपाध्यक्ष महोदय, आज शीतला सहाय जी नहीं हैं मैं उन्हें धन्यवाद देना चाहूंगा. जब अर्जुन सिंह जी चीफ मिनिस्टर थे उस समय पहाड़ी पर सबसे पहले उन्होंने कैंसर अस्पताल खोला था.
डॉ. नरोत्तम मिश्रा--शीतला सहाय जी खुद मंत्री रहे, उनका बेटा चला गया था उसके स्मरण में पहले ही उन्होंने खोल दिया था.
डॉ. गोविन्द सिंह--जगह तो अर्जुन सिंह जी ने दी थी. आप उनका भी अहसान नहीं मानते हैं.
उपाध्यक्ष महोदय--डॉक्टर साहब एक सत्य होता है और एक अर्द्धसत्य होता है.
डॉ. गोविन्द सिंह--उपाध्यक्ष महोदय, मेरा कहना है कि शासन उस कैंसर हास्पिटल को अभी 50 लाख रुपए दे रहा है, हमें आपत्ति नहीं है, हमारा माननीय मंत्री जी से अनुरोध है उसका बजट बढ़ाएं आप एक करोड़ दें. शासन ने करोड़ों रूपये की जमीन दे दी है. वहां शर्तों के विपरीत काम किया जा रहा है, फिर भी हम उसका कोई विरोध नहीं कर रहे हैं क्योंकि एक अच्छा काम हो रहा है. आप कह रहे हैं कि कैंसर पीडि़तों को 2 लाख रूपये दिए जा रहे हैं. मैं बताना चाहता हूं कि जब माननीय मनमोहन सिंह जी प्रधानमंत्री थे, तब से ही भारत सरकार की ओर से गरीबी रेखा के नीचे के कैंसर पीडि़तों को 2 लाख रूपये दिए जा रहे हैं. इसमें आपकी कोई जरूरत नहीं है. मध्यप्रदेश सरकार की किसी कृपा की आवश्यकता नहीं है. आज भी राशि प्रदान करने की यह परंपरा चल रही है. कैंसर अस्पताल वाले हिसाब केंद्र सरकार को भेजते हैं और वहां से राशि जारी कर दी जाती है जिससे गरीबों की 2 लाख रूपये तक की चिकित्सा मुफ्त में हो जाती है.
उपाध्यक्ष महोदय, मैं कहना चाहता हूं कि 2 लाख रूपये में आजकल कुछ नहीं होता है. आज चिकित्सा इतनी मंहगी हो गई है कि इलाज के अभाव में आदमी भी दुनिया छोड़कर चला जाता है और घर-परिवार भी बर्बाद हो जाते हैं. कुशवाह समाज का एक व्यक्ति घनश्याम दास मेरे क्षेत्र के वार्ड क्रमांक 9 में रहने वाला था. उसके इलाज में उसकी 12 लाख रूपये की 4 बीघा जमीन बिक गई. मुम्बई, दिल्ली, ग्वालियर और अन्य सभी जगहों पर इलाज करवाने के बावजूद वह बच नहीं सका और इस इलाज में उसकी जमीन भी बिक गई, घर भी बर्बाद हो गया और आदमी भी नहीं रहा. यह स्थिति बहुत ही गंभीर है. ऐसी ही कई बीमारियों में आदमी तड़पता रहता है. कीमोथैरेपी सेंटर में हम छोटे-छोटे बच्चों को देखते हैं. आज 5-10 साल के बच्चों में भी कैंसर का रोग फैल रहा है. मैं माननीय मंत्री जी को बताना चाहता हूं कि भारत सरकार ने पिछले 3 वर्षों में मध्यप्रदेश सरकार को कैंसर रोग की चिकित्सा की व्यवस्था हेतु 48 करोड़ 37 लाख रूपये दिए थे, लेकिन सरकार पिछले 3 वर्षों में केवल 10 करोड़ 80 लाख रूपये ही खर्च कर पाई है. लोग मर रहे हैं, तड़प रहे हैं. लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है. सरकार ने इस संबंध में बहुत ही अशोभनीय कार्य किया है. सरकार को जो राशि भारत सरकार से प्राप्त हुई, वह भी उसने खर्च नहीं की. इसके अतिरिक्त आज मध्यप्रदेश पूरे हिन्दुस्तान में कैंसर के मरीजों की संख्या के मामले में तीसरे नंबर पर है. मध्यप्रदेश के अस्पतालों में प्रतिदिन कैंसर के 191 नए मरीज आ रहे हैं. यह आंकड़ा मैं भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के आधार पर दे रहा हूं कि प्रतिदिन लगभग 84 मरीजों की मृत्यु कैंसर से मध्यप्रदेश में हो रही है अर्थात् 50 प्रतिशत के करीब मरीजों की मृत्यु कैंसर के कारण मध्यप्रदेश में हो जाती है. भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार मैं मंत्री जी को बताना चाहता हूं कि 2012 में 63,314 नए कैंसर के मरीज मध्यप्रदेश में आए. जिनमें से 28,078 की मौत हो गई. इसी प्रकार वर्ष 2013 में 65,739 कैंसर के मरीज पाए गए, जिनमें से 28,391 की मौत हो गई. यह आंकड़ा दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है. वर्ष 2014 में 87,831 नए कैंसर की मरीज मध्यप्रदेश के प्राइवेट और शासकीय अस्पतालों में पाए गए. जिनमें से 29,846 की मौत हो गई. वर्ष 2015 में 89,318 मरीज पाए गए, जिनमें से 30,764 की मौत हो गई. इस प्रकार पिछले तीन वर्षों में 1,17,079 मौतें कैंसर से हमारे मध्यप्रदेश में हो चुकी हैं. मेरा सरकार से अनुरोध है कि संकल्प पूर्व में भी जाते रहे हैं. सन् 1990 से मैं मध्यप्रदेश में विधायक हूं. मुझे 27 वर्ष हो चुके हैं. सरकार का इसमें कुछ खर्चा नहीं लगना है, सरकार का कुछ जा नहीं रहा है तो फिर सरकार को इस संकल्प को यहां से लेकर दिल्ली तक भेज देना चाहिए. शायद आपके प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को यह ठीक लग जाए और भारत सरकार इसे मान ले तो पूरे हिन्दुस्तान के हमारे जो असहाय और कैंसर पीडि़त लोग हैं, उन्हें फायदा मिल जाएगा. आपने गरीबी रेखा के लिए 5 बीघा जमीन की सीमा तय की है. मुख्यमंत्री जी ने घोषणा की कि हमने बहुत काम किया है, हम ज्यादा लोगों को गरीबी रेखा में शामिल कर रहे हैं. लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि 5 बीघा जमीन वाले किसान भी गरीबी रेखा में नहीं हैं. जिस किसान के पास एक पक्का कमरा है, वह भी गरीबी रेखा में नहीं है. जिसके नाम पर मोबाईल फोन है, वह गरीबी रेखा में नहीं है. आपने इतने नियम-कायदे बना दिए हैं कि जिसके घर में टी.वी. है, वह भी गरीबी रेखा में शामिल नहीं हो सकता है. जिसके नाम पर मोटरसाईकिल का रजिस्ट्रेशन है, वह गरीबी रेखा में नहीं है. तो आखिर कहाँ से, जब उसका नाम गरीबी रेखा में नहीं है, तो आप उसको लाभ कैसे दे सकते हों? जो लाभ भारत सरकार से गरीबी रेखा के कार्ड पर मिल सकता था, वह भी नहीं मिल पा रहा है. हमारा आप से अनुरोध है, आप और नहीं दे सकते तो आप केवल यह लिख दो कि कैंसर के रोगियों के लिए गरीबी रेखा के अलग कार्ड बनवा दो, ताकि उनको कम से कम दो लाख रुपये की सहायता भारत सरकार से मिल सके. इसके अलावा हमारा आप से यह भी अनुरोध है कि गाँव में कहावत है ना, कहूँगा तो बुरा लग जाएगा. गाँव में महिलाएँ कहती हैं कि हमारा कुछ लग नहीं रहा तो भेजने में तुम्हारी छाती काहे फट रही? (हँसी) भेज दो. यहाँ से चला जाए. वहाँ से भारत सरकार को देना है तो इसलिए हमारा आप से आग्रह है, माननीय मंत्री जी, या तो फिर आप यह व्यवस्था कराओ. मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान है. उसकी भी कथा हम आपको सुना देते हैं. हमारे पार्षद थे भगवान दास सेंथिया, उनके बड़े भाई रामकिशन को कैंसर हुआ. मैंने यहाँ से माननीय मुख्यमंत्री जी को चिट्ठी भेजी और जब चिट्ठी गई तो कहने में बड़ी शर्म आती है, मुख्यमंत्री जी ने लिखा पाँच हजार रुपये कैंसर में, मुख्यमंत्री का इतना बड़ा दिल और पाँच हजार रुपये कैंसर में.
श्री गिरीश गौतम-- एस्टीमेट नहीं लगाया होगा.
डॉ.गोविन्द सिंह-- मेरे पास रखी है, वह मैंने चिट्ठी भी वापस कर दी कि आपकी कृपा पर नहीं हैं.
श्री गिरीश गौतम-- एस्टीमेट नहीं लगाया होगा?
डॉ.गोविन्द सिंह-- एस्टीमेट से क्या मतलब है? हम से पूछते. हमें सूचित करते. आप कैंसर के मरीज को पाँच हजार रुपये दे रहे! और कहते हैं कि मुख्यमंत्री जी के यहाँ चले जाओ इसलिए....
श्री के.के.श्रीवास्तव-- ऐसी सरकार में पहले मंत्री रहे. जिनको यह नहीं पता कि एस्टीमेट लगाना कि नहीं लगाना.
डॉ.गोविन्द सिंह-- मैं कह रहा हूँ कि इतना बड़ा दिल यदि मुख्यमंत्री का हो, उस मुख्यमंत्री को हमें नहीं देना, हम मिश्रा जी से कहते तो वे ही अपनी तरफ से बीस हजार रुपये दे देते. हमने कहा बड़ा मुख्यमंत्री है करोड़ों वाला है ज्यादा फण्ड है उनको दे दो, तो उन्होंने पाँच हजार दिए. हमारे पास चिट्ठी रखी है, हम दिखा देंगे और वह चेक हमने वापस किया था.
श्री गिरीश गौतम-- एस्टीमेट नहीं लगाया.
डॉ.गोविन्द सिंह-- आप क्या डॉक्टर हों? एस्टीमेट नहीं लगाया.
श्री गिरीश गौतम-- आपने एस्टीमेट नहीं लगाया.
डॉ.गोविन्द सिंह-- आप सरकार में नहीं हैं.
श्री गिरीश गौतम-- उससे क्या होता है? गोविन्द सिंह जी, आपकी तरह मैं भी सदस्य हूँ. जिस तरह से आपको अधिकार है उसी तरह से हमको भी अधिकार है.
डॉ.गोविन्द सिंह-- एस्टीमेट नहीं लगाया, आप मुख्यमंत्री नहीं हैं.
श्री शंकरलाल तिवारी-- जबरन में हम सब लोगों को बैठाए हैं आधे घंटे से. डॉक्टर साहब, अत्याचार की सीमा होती है.
श्री गिरीश गौतम-- यदि भिण्ड-मुरैना होने के कारण आप आँख दिखाना चाहते हैं तो हम भी रीवा के होने के कारण..(व्यवधान)..इतना याद रखना...(व्यवधान)..
डॉ.गोविन्द सिंह-- उपाध्यक्ष महोदय, हमारा माननीय मंत्री जी से यह अनुरोध है कि सरकार का इसमें कुछ लगना नहीं है. आपको तो केवल भेजना है. अच्छा काम है, जन कल्याण का काम है. लोगों की जान बचाने का काम है और यह पुण्य का काम है. अतः मैं माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी से अनुरोध करना चाहता हूँ कि आप इसको सर्वसम्मति से केन्द्र सरकार को भेजिए. ऐसे तमाम संकल्प पिछले वर्षों में हमने रखे थे, वह गए हैं. इसमें सरकार का कहीं कुछ लगना नहीं है.
श्री शंकरलाल तिवारी-- अभी गिरीश जी ने कहा कि डकैती क्षेत्र अकेले चंबल में ही नहीं है रीवा में भी है. ऐसा समझ कर रखना. रीवा में भी डकैत है. धमकाने वाली बात जो चल रही है. वह ठीक नहीं है. आधे घंटे से विधायकों के ऊपर अत्याचार कर रहे हों.
डॉ.गोविन्द सिंह-- अरे महाराज, पंडितों को तो मैं वैसे ही पूज रहा हूँ, नहीं तो पंडित श्राप दे देंगे.
उपाध्यक्ष महोदय-- शंकरलाल जी, सतना वाले भी आपने रीवा भेज दिए क्या?
डॉ.गोविन्द सिंह-- उपाध्यक्ष महोदय, मेरा माननीय मंत्री जी से अनुरोध है कृपा करके आप कोई व्यवस्था करें या कोई शासन स्तर पर करें नहीं तो भारत सरकार को भेजने का कष्ट करें.
सुश्री उषा ठाकुर(इन्दौर-3)-- माननीय उपाध्यक्ष जी, बहुत ही वरिष्ठ जन सेवक आदरणीय गोविन्द जी ने बड़ी संवेदनशीलता से विषय लाया, पर मैं विनम्रता पूर्वक निवेदन करना चाहती हूँ कि....
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ.नरोत्तम मिश्र)-- उपाध्यक्ष महोदय, मेरी घोर आपत्ति है. बताइये, आपको जनसेवक बता रही हैं. (हँसी)
सुश्री उषा ठाकुर-- उपाध्यक्ष महोदय, विषय बहुत ही संवेदनशील है. आप उसको लाए पर हम विनम्रतापूर्वक आग्रह करना चाहते हैं कि जरूरी दस्तावेज तो लगाने ही होंगे. जब हम संपूर्ण प्रक्रिया का पालन करेंगे तब ही तो मदद मिल पाएगी. मैं निवेदन करना चाहती हूँ कि मध्यप्रदेश की अति संवेदनशील सरकार, अभी हमने मुख्यमंत्री चिकित्सा सेवा शिविर सभी 51 जिलों में व्यवस्थित रूप से आयोजित किए, जो 15 जनवरी से 27 फरवरी तक निरंतर चले हैं. माननीय उपाध्यक्ष जी, देश के ख्याति प्राप्त चिकित्सकों से बात की थी. उन सब 160 ने भी निःशुल्क सेवा प्रदान की. पूरे प्रदेश में 48,552 लोगों ने पंजीयन कराया. 12,000 से अधिक गंभीर रोगी चिन्हित हुए. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं सदन को बताना चाहती हॅूं कि 1200 कैंसर के मरीज भी थे जिनका पूरा प्राक्कलन तैयार हो गया है. परीक्षण के बाद उनके इलाज की समुचित व्यवस्था शासन की ओर से नि:शुल्क की जा रही है.
उपाध्यक्ष महोदय -- धन्यवाद.
श्री गिरीश गौतम -- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, डॉ. गोविन्द सिंह जी द्वारा जो संकल्प प्रस्तुत किया गया है, वह कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि पतंजलि के जो साहब हैं उसके बारे में ज्यादा दिखाई पड़ता है क्योंकि कैंसर की जो ताजा रिपोर्ट है उस रिपोर्ट के अनुसार कैंसर के मरीज 90 परसेंट तंबाकू सेवन से हो रहे हैं, 10 परसेंट अन्य कारण हैं. कभी-कभी तो कोई तंबाकू भी नहीं खाता, स्मोकिंग भी नहीं करता तब भी उसको कैंसर हो जाता है, उसके भी कारण हैं. जो सिगरेट पीता है वह उसका एक्टिव पार्ट हो गया और जो सामने वाला व्यक्ति सिगरेट का धुंआ लेता है वह पेसिव पार्ट हो गया तो सिगरेट न पीने वाले को भी कैंसर होने की संभावना है पर उसका परसेंटेज बहुत कम है. जहां तक कैंसर के मरीजों को सुविधा देने का सवाल है, डॉ. गोविन्द सिंह जी आप कभी जवाहरलाल नेहरू कैंसर अस्पताल में जाकर यह भी पता लगा लेते, कम से कम रिसर्च कर लेते कि माननीय मुख्यमंत्री स्वैच्छानुदान से सैकड़ों से ज्यादा गरीबों का, जो गरीबी रेखा में हैं और जो गरीबी रेखा में नहीं हैं उसका भी, दोनों के इलाज जवाहरलाल प्राइवेट अस्पताल में, सरकारी अस्पताल की मैं बात नहीं कर रहा हॅूं सरकारी अस्पताल में कीमोथैरेपी शुरू कर दी गई, मैं नाम बता देता हॅूं.
डॉ. गोविन्द सिंह -- आप नहीं. उसमें होंगे काली टोपी कदम-ताल वाले.
श्री गिरीश गौतम -- कदम-ताल वाले नहीं. उसमें मुसलमान भी हैं. कप्तान बकस सिराजुद्दीन नाम का मुसलमान है.
डॉ. गोविन्द सिंह -- आप ले गये होंगे अपनी सिफारिश से.
श्री गिरीश गौतम -- आप जरा सुन लीजिए. आपने कहा काली टोपी कदम ताल वाले, इसमें मैं कहना चाहता हूँ मेरे नई गढ़ी का कप्तान बकस सिराजुद्दीन दो मुसलमानों का कैंसर का इलाज माननीय मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से हुआ.
डॉ. गोविन्द सिंह -- छतरपुर के दो लड़के हैं उनके एक महीने में पौने तीन लाख रूपये खर्च हो गये हैं.
उपाध्यक्ष्ा महोदय -- डॉ. गोविन्द सिंह जी, बहुत महत्वपूर्ण विषय है. इस तरह न करें.
डॉ.नरोत्तम मिश्र -- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, गोविन्द सिंह जी को बता रहे हैं कि वास्तव में गौतम जी जो कह रहे हैं वह सच बात है, सैकड़ों लोग हैं वे जाकर रिकार्ड देख लें.
डॉ. गोविन्द सिंह -- आप हमारे क्षेत्र की गारंटी ले लो. हम वापिस ले रहे हैं.
डॉ.नरोत्तम मिश्र -- किस बात की गारंटी, बताइए ?
डॉ.गोविन्द सिंह -- कैंसर की गारंटी.
डॉ.नरोत्तम मिश्र -- आपकी गारंटी आपके घर के नहीं ले सकते तो मैं कैसे ले लूं ?
श्री गिरीश गौतम -- माननीय उपाध्यक्ष्ा महोदय, आदरणीय गोविन्द सिंह जी मैं आपसे निवेदन करना चाहता हॅूं आप हमसे सीनियर हैं.
उपाध्यक्ष महोदय -- फिर आपत्ति कर देंगे.
श्री गिरीश गौतम -- माननीय उपाध्यक्ष जी, वे आदरणीय हैं.
डॉ. गोविन्द सिंह -- आप तो कामरेड हैं.
श्री गिरीश गौतम -- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आप जरा देख लीजिए, वहां देख लीजिए किसी भी अस्पताल में चले जाइए. माननीय मुख्यमंत्री स्वैच्छानुदान से हजारों लोगों का, जिनका नाम गरीबी रेखा में नहीं है उनका भी इलाज मुख्यमंत्री स्वैच्छानुदान से कैंसर का हुआ है और हो रहा है इसीलिए अभी जो हमारी उषा बहन ने बताया, हम जाकर गांव के भीतर उनको चिन्ह्ति करके लाने का काम कर रहे हैं. मुख्यमंत्री स्वास्थ्य शिविर के नाम से गांव के भीतर कैंप लगा रहे हैं. बड़े-बडे़ एक्सपर्ट डॉक्टरों को ले जाकर खड़ा कर रहे हैं उनसे तमाम जॉंच कराकर यदि इस तरह का कोई मरीज निकलता है न केवल कैंसर, बाकी भी इस तरह के गंभीर मरीजों की पहचान करते हैं और उनको बडे़ अस्पतालों में पूरा पैसा मध्यप्रदेश सरकार खर्च करेगी और उनकी दवाई का इंतेजाम करते हैं. इसमें सवाल यह नहीं है. माननीय गोविन्द सिंह जी, यदि हृदय से स्वच्छ मन से इसको लाए होते तो शायद हम भी उसका समर्थन करते पर आपका मन कुछ दूसरा है. आपका मन यह था कि किसी तरह से पतंजलि को घेरें. बाबा रामदेव को घेरें. केवल वही उद्देश्य था, तो केवल उसी बात को लाते तो हम उस पर बहस करते उसमें कोई दिक्कत नहीं थी. दूसरी बात यह है कि हम सबको मिलकर वाकई में जो कैंसर का कारक है यह कारक फल का कम होगा. तमाम जो पेस्टीसाइड कर रहे हैं वह भी एक कारण हो सकता है. जो इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं वह भी कारण हो सकते हैं. पर जो सबसे बड़ा कारण है, जिसका जिक्र आपको करना चाहिए था, तंबाकू का जिक्र आपने नहीं किया. तो हमारा सबका काम यह है कि कैंसर के बचाव से ज्यादा कैंसर को रोकने का काम करना चाहिए. युवराज हमारे सामने उदाहरण हैं. कैंसर से निकलकर मैदान में आकर छक्का मारा. मन के भीतर संकल्पना जिसकी है सरकार उसकी मदद करती है. मदद के आधार पर मुख्यमंत्री जी इस मामले में बहुत संवेदनशील हैं इसमें दो राय नहीं है. कभी भी किसी कैंसर मरीज को यह नहीं पूछते. आपने अभी 5000 वाला जिक्र किया, मैं दावे के साथ कह सकता हॅूं कि आपने एस्टीमेट नहीं लगाया. एस्टीमेट लगाया होता तो मुख्यमंत्री जी के बिना दस्तखत के, आप नहीं गए होंगे उनके सामने शर्म के मारे हो सकता है आप नहीं गए होंगे. यदि कोई भी चला जाए तो वहां पर आदेश यह है कि जो एस्टीमेट आएगा, उसका 50 परसेंट उनका पी.एस. ग्रांट करता है. अब आप 5000 रूपये की बात करते है. आपने एस्टीमेट नहीं लगाया होगा.और यदि आप चले गये होते,2 लाख का एस्टीमेट होता तो 2 लाख देते.कभी आप जाकर तो देखो.यदि चले जाएं तो 2 लाख की जो सीमा है, केबिनेट में आए बिना 2 लाख देते हैं उसके बाद नया एस्टीमेट आता है तो उसको प्लस करके दुबारा भी देते हैं. मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि इस तरह का प्रस्ताव जिस मन से हम लाये हैं, शायद वह हमारा मलिन मन है उसको यदि ठीक मन से लाते तो शायद ज्यादा अच्छा होता इसलिए आपका यह प्रस्ताव ठीक नहीं है. क्योंकि इसमें आप यह कह रहे हैं कि केंद्र सरकार को चला जाये अरे, जब सब दवाई हम ही कर रहे हैं, सारी तरह की व्यवस्था हम कर रहे हैं तो केंद्र सरकार को आप यह भेजना चाहते हैं जिससे कल के अखबारों में छपे कि सरकार असफल है इसलिए केंद्र सरकार को गया है, इसलिए यह ठीक नहीं है. फिर से इसको आप संशोधित करें हम सब मिलकर के कैंसर के विरुद्ध लड़ाई लड़े, कैंसर के इलाज के व्यवस्था सरकार कर रही है. बहुत-बहुत धन्यवाद.
श्री सुखेन्द्र सिंह (मऊगंज)-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, वरिष्ठ सदस्य आदरणीय गोविंद सिंह जी निश्चित रूप से एक भयावह बीमारी को लेकर के संकल्प लाये हैं. मैं समझता हूँ कि इसमें बहुत ज्यादा बहस की जरूरत नहीं है. इसमें कोई एक विधानसभा क्षेत्र या एक जगह की बात भी नहीं है. पूरा देश और प्रदेश इससे परेशान है. जब किसी के घर में कैंसर की बीमारी हो जाती है तो उस समय उस घर के लोगों के बारे के ऊपर क्या बीतती है,यह बताने की जरूरत नहीं है.यह एक बात का बतंगड़ जरूर बन गया कि उन्होंने रामदेव के मुद्दे पर बोलना शुरु कर दिया. ऐसा तो उन्होंने बोला नहीं है और उधर से प्रहार होने लगे कि उन्होंने ऐसा मुद्दा लाये हैं. यह कैंसर का मामला है और कैंसर भयानक बीमारी है. हम लोग बॉर्डर के विधायक हैं, गौतम जी भी वहीं से आते हैं. अभी लगातार गौतम जी कह रहे थे कि हमने उसको दिलवाया, इसको दिलवाया.निश्चित रूप से उन्होंने पैसा दिलवाया है. हमने भी कई बार कैंसर पीड़ितों के लिए एस्टीमेट सहित दिये लेकिन कभी दो-चार हजार रुपये मिले. कभी पैसे नहीं भी मिले.
श्री के.के. श्रीवास्तव-- यह गलत बोल रहे हैं.
श्री सुखेन्द्र सिंह-- गलत नहीं है. मेरे पास इस बात का प्रूफ है, तेज-तेज बोलने से मुद्दा समाप्त नहीं हो जाएगा.
श्री के.के.श्रीवास्तव--- आप गलतबयानी कर रहे हैं. अगर आपने एक भी प्रकरण एस्टीमेट के साथ दिया हो और 5 हजार रुपये मिले हो तो दुगुने दिलवाऊँगा. अपने पास से व्यक्तिगत दूंगा. आपने एस्टीमेट के सहित दिया हो और मुख्यमंत्री जी ने 5 हजार दिया हो तो दावे के साथ कहता हूं कि दुगुना दिलवाऊँगा उतनी राशि अपने पास से दूंगा.
श्री सुखेन्द्र सिंह-- अरे, रामदेव को आप रखे रहो. खूब शहद पियो, खूब पिलाओ लेकिन यह अलग विषय है. यह कैंसर की बीमारी का मामला है.
श्री शंकरलाल तिवारी-- 2 हजार देने का प्रमाण दे दो तो जो कहो वह हार जाऊँगा.
उपाध्यक्ष महोदय-- शंकरलाल जी, आप सीधे बात नहीं करें, यह गलत बात है.आपने नाम दिया है. आपको अवसर देंगे तो क्यों इंटरप्ट कर रहे हैं.
श्री सुखेन्द्र सिंह-- कोई आदमी 6-7 सौ किलोमीटर से जवाहरलाल नेहरू कैंसर अस्पताल आता है तो आते-आते ही मर जाता है.
श्री शंकरलाल तिवारी-- उपाध्यक्ष महोदय, यह 2 हजार रुपये का एक भी प्रकरण कैंसर का बता दें तो मैं पूरे सदन से माफी मागूँगा.
उपाध्यक्ष महोदय-- आप अपने भाषण में कह लीजियेगा, बैठ जाइए.
श्री सुखेन्द्र सिंह-- माफी नहीं इस्तीफा देने के लिए कहे तो हम तत्काल प्रमाणपत्र लाकर देंगे.
श्री गिरीश गौतम-- उपाध्यक्ष महोदय, मऊगंज विधानसभा में कैंसर के मरीजों को 2 लाख, डेढ़ लाख, 50 हजार रुपये दिये गये हैं. आपके मऊगंज में अभी 15 दिन पहले श्री जायसवाल को 1 लाख रुपये कैंसर के लिए मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से गया है. खटखरी में 1 कैंसर के मरीज के लिए 2 लाख रुपया गया है मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से.मऊगंज में 7 लोगों को मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से दिया गया , उनके नाम आप हमसे पूछ लीजियेगा हम आपको बता देंगे.
श्री सुखेन्द्र सिंह-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आप कैंसर की बात कर रहे हैं. मऊगंज अस्पताल देवतालाब क्षेत्र से लगा हुआ है. देवतालाब क्षेत्र के 80 परसेंट लोग मऊगंज में जाते हैं. उसके लिए आपने कभी नहीं सोचा. एक कैंसर के पेशेंट के लिए आपने 5 हजार दिलवा दिया तो उसके लिए हल्ला कर रहे हैं. आप पहले मऊगंज अस्पताल की बात करिये देवतालाब के 80 परसेंट बीमार लोग मऊगंज में जाते हैं.
श्री गिरीश गौतम-- सुखेन्द्र सिंह जी, 5 हजार नहीं 1 लाख, 2 लाख और डेढ़ लाख रुपया दिलवाये हैं. यदि 5 हजार गया है कैंसर के लिए तो मैं जो कहिये हार जाने के लिए तैयार हूं.
श्री सुखेन्द्र सिंह-- हम तो यह कह रहे हैं कि मिलता है लेकिन जैसा गोविंद सिंह जी ने कहा 5 हजार मिलता है आप बोल रहे हैं 50 हजार मिलता है.तो गोविंद सिंह जी को 5 हजार मिलता है, आपको 50 हजार मिलता है, हमको हो सकता है कि 1 हजार भी ना मिला हो. इसको मैं स्वीकार करता हूं. यह भयावह बीमारी का मामला है. अगर गोविंद सिंह जी ने यह प्रस्ताव लाये हैं तो इसका हम समर्थन करते हैं और निश्चित रूप से इसको गंभीर बीमारी घोषित किया जाये मेरा आपसे यह अनुरोध है.
उपाध्यक्ष महोदय- गंभीर बीमारी तो कैंसर घोषित है लेकिन इलाज के लिए व्यवस्था की बात है.
श्री सुखेन्द्र सिंह-- उपाध्यक्ष महोदय, मुफ्त इलाज दिया जाये जो भी सुविधायें बन सके उसके लिए स्पेशली तौर पर ध्यान दिया जाये. आपने समय दिया, धन्यवाद.
श्री के.के.श्रीवास्तव (टीकमगढ़) - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, सदन के वरिष्ठ सदस्य माननीय गोविंद सिंह जी अभी कैंसर के बारे में अशासकीय संकल्प लेकर आये हैं. मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि मध्यप्रदेश में सबसे पहला कैंसर का बड़ा अस्पताल ग्वालियर में ही बना था और जिस संभाग से वह आते हैं, उनको उस अस्पताल के बारे में ही जानकारी नहीं है. इतना बड़ा अस्पताल ग्वालियर में है और उसके बाद मध्यप्रदेश में कहां-कहां कैंसर के अस्पताल हैं, यह भी उनको जानकारी कर लेना चाहिए.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, कैंसर गंभीर बीमारी है मैं मानता हूं और पहले अगर बीमारी में किसी को बॉटल चढ़ाई जाती थी, तो उसको भी लोग गंभीर मानते थे. कैंसर गंभीर है, लेकिन अभी इसके ईलाज भी प्रारंभ हुए हैं, उस पर खोज पर्याप्त हो रही है और शोध भी हो रहे हैं.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मुख्यमंत्री जी की घोषणा के अनुसार मध्यप्रदेश में कैंसर के रोगियों को नि:शुल्क उपचार प्रदान करने की योजना बनी है और नि:शुल्क उपचार हो रहा है. राज्य बीमारी सहायता से भी चिह्नित 47 प्रकार के कैंसर रोगियों को अधिकतम दो लाख रूपये एक बार में दिया जाता है और अगर फिर जरूरत पड़ती है और उसके बाद भी अगर उसका इलाज पूरा नहीं होता है तो फिर से कैंसर रोगियों को पैसे देने की योजना भी मध्यप्रदेश की सरकार ने बनाई है. कैंसर के रोगियों को दो लाख रूपये की स्वीकृति कलेक्टर स्तर पर ही हो जाती है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, चूंकि रोग गंभीर है परिवार के लोग घबरा जाते हैं, इसलिए स्वाभाविक है कि राज्य बीमारी सहायता की राशि के लिये स्वीकृति हेतु हमें सरकार तक, प्रदेश स्तर तक न जाना पड़े, उसका अनुमोदन बाद में जिले में प्रभारी मंत्री के माध्यम से करा लिया जाये लेकिन उसे तत्काल कलेक्टर ही स्वीकृत कर देता है. मध्यप्रदेश की सरकार कैंसर की बीमारी को इतना गंभीरता के साथ ले रही है और केवल यही नहीं कि मध्यप्रदेश के कैंसर के अस्पतालों में इसका इलाज हो रहा है. मध्यप्रदेश के बाहर भी अगर कोई रोगी या उसके परिजन जाकर ईलाज कराना चाहें तो मध्यप्रदेश की सरकार उसकी सुविधानुसार जिस अस्पताल में जाकर वह इलाज कराना चाहता हो, तो वहां भी सरकार दो लाख रूपये तक की सहायता देकर नि:शुल्क उपचार करने की व्यवस्था कर रही है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आप देखें फालोअप कीमोथेरेपी जिलों में हो रही है. अभी डायलिसिस की बात भी कर रहे थे. इन्हें ही पता नहीं है.(XXX)
डॉ. गोविंद सिंह - (XXX)
श्री के.के.श्रीवास्तव - (XXX)
डॉ. गोविंद सिंह - (XXX)
श्री के.के.श्रीवास्तव - (XXX)
श्री सुखेंद्र सिंह - (XXX)
उपाध्यक्ष महोदय - श्री के.के.श्रीवास्तव जी आप सीधे बात नहीं करेंगे. ...(व्यवधान)
श्री कमलेश्वर पटेल - ...(व्यवधान) माननीय उपाध्यक्ष महोदय डॉ. गोविंद सिंह वरिष्ठ सदस्य है और श्री के.के.श्रीवास्तव ने जो व्यवहार किया है वह अससंदीय है, ...(व्यवधान)
श्री सचिन यादव - ...(व्यवधान) इनसे माफी मंगवानी चाहिए.
संसदीय कार्यमंत्री (डॉ. नरोत्तम मिश्र) -...(व्यवधान) हां माफी मांग रहे हैं ( अपने आसन पर खड़े होकर दोनों हाथ जोड़कर)
उपाध्यक्ष महोदय - श्री के.के.श्रीवास्तव यह उचित नहीं है मेरी बात सुन लीजिये, यह उचित नहीं इस तरह से, आसंदी का काम आप न करें. आसंदी का काम मुझे ही करने दें.
श्री के.के.श्रीवास्तव - मैं आसंदी का काम नहीं कर रहा हूं मैंने आपको ही कहा है, लेकिन वह मुझे बैठने का कह रहे हैं तो मैं कैसे बैठूं ? मैं तो यह कह ही सकता हूं कि कैसे बैठूं, उन्होंने कहा (XXX), तो मैं कैसे चुप रहूं ? यह उन्होंने मुझसे कहा है.
उपाध्यक्ष महोदय - आप ठीक कह रहे हैं, लेकिन आप अपने मुख्यमंत्री जी से कुछ तो सीखें, मुख्यमंत्री जी मुंह में शक्कर, माथे पर ठंडक रखते हैं, आप कुछ भी अनुसरण नहीं करते हैं.
श्री के.के.श्रीवास्तव - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं यह कह रहा हूं, मैं बोल रहा हूं उन्होंने कहा कि (XXX) तो मैं क्यों चुप रहूं.
डॉ. गोविंद सिंह - मैंने क्या बोला था, जरा यह बताओ.
उपाध्यक्ष महोदय - आप सब बैठ जायें. आप तो बहुत वरिष्ठ हैं, आप जारी रखें.
श्री के.के.श्रीवास्तव - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मध्यप्रदेश में डायलिसिस भी जिला ट्रामा सेंटर में हो रहा है. कीमोथेरिपी भी हो रही है और माननीय उपाध्यक्ष अब तो यह भी है कि कैंसर के ऐसे रोगी जिनके परिजन उनकी देखभाल नहीं कर पाते हैं...
उपाध्यक्ष महोदय - श्री के.के.श्रीवास्तव जी एक मिनट रूकिए. परस्पर जो वाद विवाद हुआ है, उसे रिकार्ड न करें, अब आप जारी रखें.
श्री के.के.श्रीवास्तव - माननीय उपाध्यक्ष महोदय, कैंसर के ऐसे रोगी जिनके परिजन उनकी देखभाल नहीं कर पाते हैं, उनके लिये उपचार हेतु उज्जैन में 02 अक्टूबर 2016 से कैंसर केयर केंद्र की भी शुरूआत की गई है. यह मैं समझता हूं कि मध्यप्रदेश सरकार की कैंसर रोगियों के लिये इससे बड़ी और कोई सौगात नहीं हो सकती है इसलिए यह अशासकीय संकल्प बिना किसी सोच, बिना दूरदृष्टि के यहां लाया गया है, इसलिए मैं इसके विरोध में हूं.
श्री सोहनलाल बाल्मीक (परासिया) - उपाध्यक्ष महोदय, आदरणीय डॉ. गोविन्द सिंह जी जो अशासकीय संकल्प लाए हैं, मैं उसका समर्थन करता हूं. इस अशासकीय संकल्प के संबंध में मैं कहना चाहता हूं कि यह जो कैंसर की बीमारी है, यह गंभीर बीमारी है और इस सदन में इस संबंध में हम दोनों पक्षों को बहुत गंभीरता से विचार करना चाहिए. इस पर तर्क-वितर्क जरूर हो सकता है, मगर सच्चाई यह है कि कहीं न कहीं हम सब लोगों को मिलकर इस पर काम करनी की आवश्यकता है.
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XXX : आदेशानुसार रिकार्ड नहीं किया गया.
उपाध्यक्ष महोदय, यह चूंकि गंभीर बीमारी है और गंभीर बीमारी के बारे में मैंने पहले ही कहा है कि तर्क-वितर्क जरूर हो सकता है. यह चूंकि सदन है इसमें तर्क-वितर्क जरूर होते हैं. मगर किसी मुद्दे पर हम सब लोगों को एक होकर संकल्पित होकर इस काम को करने की आवश्यकता है. सवाल इस बात का है कि मुख्यमंत्री जी, सरकार कितनी मदद कर रही है, नहीं कर रही है, यह हमारे लिए कोई विषय नहीं रह गया है. हम इसमें कितना सुधार कर सकते हैं, डॉ. गोविन्द सिंह जी ने यही बात कही थी कि चूंकि यह गंभीर बीमारी है. धीरे-धीरे यह बीमारी पूरे प्रदेश में फैलती चली जा रही है. मैं भी देखता हूं कि मेरे विधान सभा क्षेत्र में चाहे मैं अपने गांव में जाऊं, चाहे नगरीय क्षेत्र में जाऊं. हर जगह कहीं न कहीं 2-4-5 कैंसर के पीड़ित मरीज मिलते हैं. हम लोगों को इसमें बहुत गंभीरता से विचार करना चाहिए कि आखिर ये परिस्थितियां क्यों निर्मित हो रही है? इसके कारण बहुत से हो सकते हैं, चाहे तम्बाकू की बात है, चाहे सिगरेट की बात है, चाहे शराब की बात है और कई बार तो यह परिस्थिति बनी है कि जो कुछ नहीं लेते हैं उनको भी बीमारी होती है तो इसमें हम लोगों को एक शोध करना चाहिए और जो इस कार्य को कर रहे हैं, उनके साथ सरकार मंथन करे, विचार करे कि इसमें रोक कैसे लगाई जा सकती है. इसमें हम कितनी मदद कर सकते हैं, यह काम करने की हमको आवश्यकता है. हम इस बात को कहना चाह रहे हैं कि मुख्यमंत्री जी ने, सरकार ने इसमें व्यवस्था बनाई है, मदद कर रहे हैं इसमें कहीं कोई दो मत नहीं है. इसको हम स्वीकारते हैं. मगर इसमें जो मदद होती है, उसमें हम और क्या ला सकते हैं इसमें यह भी आवश्यकता है. मैंने भी कई प्रस्ताव पहुंचाए हैं. कुछ प्रस्ताव स्वीकृत भी हुए हैं और कुछ को स्वीकृति नहीं मिल पाई है. जो मैंने प्रस्ताव पहुंचाए थे, जैसे कुछ में डेढ़ लाख का एस्टीमेट है या दो लाख का एस्टीमेट है, उसमें 50 हजार रुपए मिला. किसी प्रस्ताव में 30 हजार रुपए मिले तो उसमें मदद नहीं हो पाती है. एक कीमोथैरेपी में, रेडियोथैरिपी में लगातार मरीज को 4-5 बार जाना पड़ता है और उसकी जो डेट होती है, अगर उस पर नहीं पहुंचता है तो उसका इलाज सही नहीं हो पाता है. इसमें एक सुधार करने की आवश्यकता है कि हम लोग उस मरीज को समय पर कैसे ट्रीटमेंट दे दें, उसका समय पर इलाज कैसे करें और जो राशि है वह राशि कम पड़ती है. यह डेढ़ लाख, 50 हजार रुपए में कैंसर पीड़ित का इलाज नहीं हो पाता है. इस तरीके की जो अभी बात आ रही है कि हर जिले में कीमोथैरेपी होती है? डाइलिसिस हमारे यहां होती है. मगर कीमोथैरेपी की व्यवस्था नहीं हो पा रही है. डायलिसिस की भी यह स्थिति है कि इसमें सही टेक्नीकल आदमी नहीं होने के कारण कई बार डायलिसिस मशीन फेल हो चुकी है और जो टेक्नीकल आदमी नहीं होते हैं तो जो सुविधा डायलिसिस की मिलनी चाहिए, वह डायलिसिस की सुविधा भी जिला चिकित्सालय में नहीं मिल पा रही है. कीमोथैरेपी की व्यवस्था छिंदवाड़ा जिले के अंदर में नहीं है. मैं आज भी बोल रहा हूं. यदि आपको लगता है तो आप जांच करा लें कि कीमो थैरपी हो रही है कि नहीं हो रही है?
उपाध्यक्ष महोदय, मेरा इस संकल्प के मौके पर यह कहना है कि हम दोनों पक्षों को बहुत गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है कि डॉ. गोविन्द सिंह जी ने क्या बोला, श्री सुखेन्द्र जी ने क्या बोला, वहां के पक्ष ने क्या बोला, यह विषय नहीं है और न यह चिल्लाने का विषय है, न लड़ने का विषय है. इस संकल्प को खारिज करने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि यह ऐसा अशासकीय संकल्प है कि इसमें कहीं न कहीं हमारे और आपके, दोनों पक्षों के लोग पीड़ित होते चले जा रहे हैं. हम लोगों को कोई न कोई बड़ा हॉस्पिटल और निर्मित करने की आवश्यकता है. अभी इस बीमारी में बहुत सारे डॉक्टर्स नहीं हैं. आप देखेंगे तो बहुत सारे टेक्नीशियन्स नहीं हैं तो हम लोग इसमें व्यवस्था कैसे कर पाएंगे? जो व्यवस्था बनती है तो लाख रुपए में, दो लाख रुपए में यहां पर इलाज नहीं हो पाता है. कई लोगों को टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल जाना पड़ता है. कई लोगों को नागपुर संत तुकदोजी रिजनल कैंसर हॉस्पिटल जाना पड़ता है. कई विभिन्न स्थानों में दूसरे राज्यों में कैंसर हॉस्पिटल बने हुए हैं, उन स्थानों पर जाना पड़ता है तो यह गरीब तबका जब जाता है तो जो अपने परिवार को ले जाता है तो उस राशि से उस मरीज का इलाज नहीं हो पाता है, न ही व्यवस्था हो पाती है. मेरे कहने का तात्पर्य यही है कि जिस तरीके से डॉक्टर गोविन्द सिंह जी ने कहा कि जो रामदेव बाबा की बात कही. बाबा रामदेव जी के द्वारा जो दवाईयां बेची जा रही हैं उसके अंदर कोई लेक्यूना है. बाबा रामदेव जी का विरोध नहीं है वह अच्छा काम कर रहे हैं, अच्छी दवाईयां भी दे रहे हैं हम उसको स्वीकार करते हैं. मान लीजिये उसमें कहीं त्रुटि आ रही है तो सरकार को चाहिये कि उसकी जांच करें और ऐसी दवाईयों पर बेन लगाये ताकि जो व्यवस्था खराब हो रही है वह ठीक हो सके कैंसर के मरीज लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं. यदि उस दवाई के कारण बढ़ रहे हैं तो हमें उसे रोकने की आवश्यकता है यह सरकार की तथा हमारी भी जवाबदारी है तो मैं इस मौके पर यह कहना चाहता हूं कि सब लोगों ने अपने तरीके से बात रखी है. इस संकल्प को पारित करना चाहिये. सरकार को पूरी तरीके से इसका शोध करते हुए एक और नयी व्यवस्था जिसमें माननीय मुख्यमंत्री जी के द्वारा जो राशि दी जा रही है उस राशि को बढ़ाना चाहिये यही निवेदन है धन्यवाद.
श्री शंकरलाल तिवारी (सतना)--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपने समय दिया धन्यवाद. विन्ध्य क्षेत्र में कैंसर की समस्या है यह पूरे देश एवं प्रदेश में है. मैं उस संभाग एवं उस क्षेत्र से आता हूं जहां पर तम्बाकू का प्रचलन बहुत अधिक है. कैंसर के रोगी भी रीवा,सतना, सीधी, शहडोल, बुंदेलखंड के कुछ भागों से काफी संख्या में आते रहे हैं. मैं माननीय गोविन्द सिंह जी के प्रस्ताव के समर्थन एवं विरोध की बात नहीं कर रहा हूं. कैंसर शब्द ही ऐसा है कि
सारी खुशिया तेरे दामन में सिमट जाती हैं
सारा जमाना तेरे आहट से सहम जाता है
कितना पेचीदा है कैंसर तेरे गुनाहों का
फिर भी ए कैंसर तुझे मौत भी नहीं आती है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, यह सच है कि इसका पूर्णतः निदान हो, वह नहीं हो पा रहा है. अब देखा गया है कि कैंसर के तमाम रोगी प्राथमिकता से तथा उनका इलाज समय पर यदि हो तो काफी केंसर के रोगियों को नया जीवन जी रहे हैं. आवश्यकता इस बात की है कि कैंसर पर नये नये शोध हों. आवश्यकता इस बात है कि माननीय मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री जी ने इस बात की गंभीरता को पहले से ही पहचान करके कैंसर की दवाई कराने के लिये इन्दौर, भोपाल में हो रही है. पूर्व में पटना, मुम्बई में इसका इलाज होता था मध्यप्रदेश में इसका इलाज नहीं था मगर सरकार ने यहां पर इलाज की स्थिति बनायी है इसमें जिला अस्पताल में ही कीमोथेरेपी की व्यवस्था की है. मैं मानता हूं कि यह नयी नयी योजना है यह कई जिलों में ठीक ढंग से चल रही है और कई जिलों में इसका स्वरूप नहीं प्राप्त हुआ होगा, पर इस योजना को मजबूत करना चाहिये जैसा कि मेरे पूर्व वक्ता श्री गिरीश गौतम जी ने कहा है मैं भी उसी बात को आगे बढ़ाता हूं कि कैंसर के उपचार पर तो हमें गंभीर नजर रखनी चाहिये. अब एक विषय आया मैं उसमें किसी को जवाब नहीं दे रहा हूं. आप अनुमति दें तो मेरे पास में मोबाईल में एसएमएस जो कि माननीय मुख्यमंत्री जी के यहां से आया है वह पढ़ देता हूं.
उपाध्यक्ष महोदय--इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है.
श्री शंकरलाल तिवारी--ठीक है. एक लाख रूपये मेरे क्षेत्र के अंदर दिये हैं. मैं ईमानदारी के साथ कहना चाहता हूं कि केंसर में जैसा कि माननीय सोहनलाल जी, बाल्मीक ने कहा इसमें पक्ष विपक्ष की बात नहीं है उसमें कुछ थोड़ी बातें आ गई होंगी. कैंसर हम सबके के लिये मर्मस्पर्शी है उसके नाम पर भावनात्मक अत्याचार उसके नाम पर यह कह देना कि 2 हजार रूपये माननीय मुख्यमंत्री जी ने कैंसर के इलाज के लिये दिया है मैं हाथ जोड़कर के कहता हूं कि यह भी पीड़ाजनक है.
डॉ.गोविन्द सिंह--यह सच है कि एक केस में पांच हजार रूपये दिये हैं.उसने उन पैसों को वापस किया है.
श्री शंकरलाल तिवारी--माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं यह मानता हूं कि कहीं पर यह गड़बड़ हुई है पर मैं आपको बता दूं तथा प्रदेश की जनता और एक एक व्यक्ति यह बात कहने के लिये तैयार है मैं किसी एक दल की बात नहीं कर रहा हूं जब से शिवराज सिंह जी मुख्यमंत्री बने हैं तब से स्वास्थ्य के मामले में चाहे किडनी, केंसर की समस्या हो, चाहे किसी भी प्रकार की गंभीर बीमारी हो, जिस उदारता के साथ और जिस तरह से उन्होंने बजट की व्यवस्था करके लोगों की दवाईयां करायी हैं उसमें जिस तरह से माननीय मुख्यमंत्री जी तड़पते हैं. मैं सोचता हूं इस तरह की बात अगर कहीं कोई कमी है तो उसको आगे बढ़ाया जाये. उसको सशक्त किया जाये. यह सच है कि कई बार इस्टीमेट नहीं लगने की वजह से मुख्यमंत्री जी ने मुझसे खुद कहा कि शंकर लाल जी इसमें इस्टीमेट नहीं लगा, मैं नहीं करुंगा और वह वापस हो गया. कुछ कठिनाईयां हो सकती है लेकिन इसके बाद भी अभी इसमें काम करने की बहुत जरुरत है.
उपाध्यक्ष जी, जिले में कीमोथैरेपी की व्यवस्था माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी, मुख्यमंत्री जी के माध्यम से हुई है इसको और बलवती बनाने की जरुरत है. विशेषज्ञों की विशेष जरुरत होती है. डायलिसिस की अभी यहां पर बात हो रही थी. उपाध्यक्ष महोदय, आप मेरे जिले से नेता हैं. आपको पता है कि हमारे यहां डायलिसिस 4 साल पहले से शुरु है. चार मशीनों में से एक मशीन जिला अस्पताल में विधायक निधि से और जिला अस्पताल और आपके आशीर्वाद से चालू की थी. अभी केदार जी ने कहा कि मशीन तो हमारे पास है लेकिन टेक्निशियन नहीं मिल रहे हैं. इसमें कुछ नहीं करना है. हमने सतना अस्पताल के एमडी डॉक्टर को जबलपुर भेजा. वहां उन्होंने 15 दिन प्रशिक्षण लिया. तीन-चार स्टाफ नर्स और दो डॉक्टरों ने प्रशिक्षण लिया. हमारे यहां डायलिसिस की 5 मशीनें चल रही हैं.
उपाध्यक्ष महोदय, मैं विनती पूर्वक कह रहा हूं कि स्वास्थ्य और कैंसर जैसे मुद्दे पर विश्व चिन्तित है. यह गंभीर प्रश्न है. लेकिन इस पर यह कहना कि सरकार कुछ नहीं कर रही है. स्वास्थ्य के मामले में मैं नहीं समझता हूं कि कोई व्यक्ति यह कहेगा कि प्रदेश सरकार ने काम नहीं किया. जिला अस्पताल पहले बूचड़खाना बन गए थे. जिला अस्पतालों में दवाइयां नहीं मिलती थीं. डॉक्टर सिर्फ परचे बनाते थे. आज हर जिला अस्पताल में अभी महीने भर पहले से केम्प लगने शुरु हुए और हर केम्प में बाहर से डॉक्टर भेजे गए हैं. मुंबई से,दिल्ली से, भोपाल से, इंदौर से विशेषज्ञ भेजे गए. उपाध्यक्ष जी, अपने सतना में भी वह केम्प हुआ. मैं और यादवेन्द्र सिंह जी भी उस केम्प में थे. उस दिन कम से कम 5-6 हजार लोगों की जिला अस्पताल के केम्प में भीड़ थी. उसमें 200 से ऊपर प्रकरण जिसमें सारे कैंसर के नहीं थे, कुछ अन्य बीमारियों के भी थे. लेकिन कैंसर के जो भी प्रकरण आये, उनको तुरन्त वहां से रेफर करके, बड़े अस्पतालों के लिए प्रेषित किया है.
उपाध्यक्ष महोदय, मैं जो संकल्प आया है उसकी भावना की कद्र करता हूं. लेकिन संकल्प के नाम पर बाबा रामदेव, पतंजलि, शहद और मुख्यमंत्री दवाई के लिए पैसे नहीं देते और रावतपुरा सरकार इस तरह का जो इमोशनल अत्याचार हुआ है, भविष्य में इससे बचने की दया करायें. मैं गोविन्द सिंह जी से मांग करने की स्थिति में हूं नहीं, आपसे मांग करता हूं. कैंसर का विषय है वह बहुत अच्छा है. लेकिन उस विषय पर आज सभी विधायकों के साथ जो इमोशनल अत्याचार हुआ है, उस पर कृपा की जाये. मैं चाहता हूं, विनती करता हूं और मुझे उम्मीद है कि आदरणीय गोविन्द सिंह जी इस संकल्प को वापस लेंगे. हम सब लोग कंधे से कंधे मिला कर कैंसर के विरुद्ध लडे़ं. मुख्यमंत्री जी से और सरकार और अधिक आर्थिक अनुदानों की आवश्यकता है तो सरकार आपकी है. आप एक वरिष्ठ विधायक हैं. आपकी बात कोई नहीं टालेगा. और कैंसर के मामले में किसी की बात को मुख्यमंत्री जी द्वारा टालने का सवाल ही नहीं है. धन्यवाद.
श्री सुन्दरलाल तिवारी(गुढ़)-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, इस सदन के वरिष्ठ विधायक आदरणीय गोविन्द सिंह जी ने जो अशासकीय संकल्प रखा है, इस संकल्प में बातचीत की कोई गुंजाइश है नहीं. यह उधर के पक्षों की जो वाणी बाहर निकल कर आ रही है, उससे तो यही लगता है कि वे लोग भी इस बात के लिए तैयार हैं कि इस संकल्प का वह समर्थन करेंगे.
डॉ नरोत्तम मिश्र-- .... फिर भी इसमें एक घंटे से चर्चा चल रही है.
श्री सुन्दरलाल तिवारी-- उपाध्यक्ष जी, हमने तिवारी जी का, गौतम जी, श्रीवास्तव जी आदि सबका भाषण सुना सबने इस बारे में चिन्ता व्यक्त की और सबने यह माना कि बीमारी गंभीर है. लेकिन कितनी मानवीय संवेदनाएं इस संकल्प में हैं, इस पर हम सभी को, पूरे सदन को विचार करना चाहिए. इस पर हम सभी को पूरे सदन को विचार करना चाहिये और अगर इस संकल्प में मानवीय संवेदनाएं हैं और पीड़ित मानवता की सेवा करने का इस सदन को एक बार अपनी वाणी से करने का अवसर मिला है तो क्यों न हम सब मिलकर इस अशासकीय संकल्प को एक स्वर से यहां पारित कर दें. संकल्प का विषय है - यह सदन केन्द्र सरकार से अनुरोध करता है कि कैंसर रोग को गंभीर बीमारी घोषित कर पीड़ितों के नि:शुल्क इलाज की व्यवस्था की जाये. इसमें क्या बुरा है. उस पक्ष के लोगों ने इस सदन के अंदर अभी कहा है कि जो एस्टीमेट जाता है उसका आधी राशि मुख्यमंत्री जी दे देते हैं. किसी ने कहा कि उसकी चौथाई राशि मुख्यमंत्री जी देते हैं,किसी ने कहा कि उसका पिचहत्तर प्रतिशत दे देते हैं. सवाल यह नहीं है सवाल यह है कि उससे बेहतर व्यवस्था अगर इस सदन के द्वारा की जा सकती है. एक संकल्प के माध्यम से नि:शुल्क इलाज की व्यवस्था कैंसर पीड़ित की हो सकती है तो उसमें क्या दिक्कत है. मेरा आप सबसे अनुरोध है कि यदि आपमें तनिक भी संवेदनाएं हैं तो इस संकल्प में शामिल हो जाये.
श्री शंकरलाल तिवारी - संवेदना का मतलब इमोशनल अत्याचार नहीं होता है न बारगेनिंग होता है.
श्री सुन्दरलाल तिवारी - उपाध्यक्ष महोदय, यहां बात आयी स्वैच्छानुदान की, स्वेच्छानुदान मुख्यमंत्री जी की इच्छा पड़ेगी तो देंगे. मुख्यमंत्री जी तो हर केस को देख भी नहीं पाते होंगे. पूरा प्रदेश है,पूरे प्रदेश के काम उनके पास हैं वे स्वेच्छानुदान की राशि किसको यथोचित कितनी देना है यह मुख्यमंत्री जी देख पाएं यह संभव नहीं है. जो अधिकारीगण वहां बैठते होंगे वही फाईल तैयार करके ले जाते होंगे और वे दस्तखत करके पकड़ा देते होंगे. कैंसर के मरीज को एक भिखारी के रूप में न देखा जाये. कैंसर का मरीज आवेदन दे उस पर मुख्यमंत्री जी की इच्छा पड़े, उनकी या स्वैच्छानुदान देने का हकदार जो भी हो वह कहे कि हम 30 परसेंट देंगे,40 परसेंट देंगे,80 परसेंट देंगे. इससे मुक्त कराना चाहते हैं. माननीय गोविन्द सिंह जी उसको मुक्त कराना चाहते हैं. जीवन उसका अधिकार है. हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है. अगर उसकी पूरी मदद करने के लिये सरकार तैयार नहीं है तो इसमें कोई बुरी बात नहीं है. अगर 100 प्रतिशत राशि इसके लिये आप देने की स्थिति में नहीं हैं तो केन्द्र की सरकार जो देश की है उससे हम लोग लेंगे. यह संकल्प बड़ा पवित्र है. इस संकल्प में हम सबको मिलकर इसे पारित करना चाहिये. एक महत्वपूर्ण बात कही गई कि ज्यादातर केस सिगरेट,बीड़ी से होते हैं. तम्बाखू से होते हैं. मैं भी पीता था, मैंने इसको छोड़ा है. मैं इससे परेशान हुआ हूं. जो भी गलत काम करता हूं आप पूछोगे तो सब बता देंगे. चिंता मत करें. एक दिशा में और हमें काम करना पड़ेगा कि जो पर्यावरण की स्थिति हमारे देश और प्रदेश के शहरों की है उस पर भी हमको विचार करना पड़ेगा. हमारे भोपाल का जो प्रदूषण का स्तर है उस स्तर से यह ऊपर चला गया है यह राजधानी है तो अन्य शहरों की क्या स्थिति होगी तो प्रदूषण के क्षेत्र में भी हम लोगों को पूरे प्रदेश में काम करना चाहिये. इसका बजट बढ़ाना चाहिये और स्वस्थ वातावरण हम आम लोगों को उपलब्ध कराएं,आने वाली पीढ़ी को उपलब्ध करा सकें जिससे कैंसर की रोकथाम हो सके. तो केंसर के मरीजों को स्वैच्छानुदान से, कृपा से मुक्त करा दीजिये और इस संकल्प को संवेदनशीलता के साथ दोनों पक्ष मिलकर पारित कर दें और मध्यप्रदेश के कैंसर पीड़ित मरीजों को एक राहत दें, यह हमारी सबसे प्रार्थना है. धन्यवाद.
श्री गिरीश गौतम-- अस्पतालों द्वारा काफी अत्यधिक पैसों का एस्टीमेट बनाया जाता है.
श्री राजेन्द्र फूलचंद वर्मा (सोनकच्छ)-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आपने बोलने के लिये समय दिया उसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद. कैंसर के बारे में सब वक्ताओं को सुना और निश्चित रूप से माननीय गोविंद सिंह जी जो संकल्प लाये हैं यह संकल्प मर्मस्पर्शी है, हृदयस्पर्शी है इससे कोई इंकार नहीं कर सकता. उपाध्यक्ष जी, हमको कल्पना करना चाहिये जिस परिवार में किसी कैंसर का मरीज होता है वह परिवार भी कैंसर न होते हुये भी कैंसर जैसी बीमारी से जूझ जाता है, उसको कर्ज लेना पड़ता है. सबसे पहले डॉक्टर को दिखाना, डॉ. जैसे ही कह दे कि आपको कैंसर ट्रेस हुआ है, उस परिवार को खाना पीना, सोना सब छूट जाता है. उसके बाद वह पता करता है कि कौन से अस्पताल में जाना है. इंदौर जैसे शहर में मेरा घर है, सोनकच्छ मेरा विधान सभा क्षेत्र है, हम लोगों ने लगातार देखा है कि कीमोथैरेपी इंदौर में भी होने लगी है, लेकिन पहले तो मुम्बई भेजना पड़ता था, डॉक्टर आडवाणी से संपर्क करना, बड़ी कठिनाई से संपर्क हो पाना, उनका अपाइंटमेंट मिलना, उसके बाद उसका इलाज शुरू हो पाता है और इलाज जब शुरू होता है तो वह व्यक्ति पूरा काला पड़ जाता है. अभी दो दिन पहले एक कैंसर पीडि़त की मृत्यु हुई उसमें से मैं होकर आया हूं. इस विधान सभा के भी एक माननीय सदस्य को कैंसर हुआ था, लेकिन आज वह पूरी तरह स्वस्थ हैं. हम सब लोग जानते हैं कि कैंसर कैसे होता है.
उपाध्यक्ष जी, मेरा इस मामले में एक ही कहना है कि गोविंद सिंह जी की भावना बहुत पवित्र है. सरकारें आती रहेंगी, सरकारें जाती रहेंगी. कभी आप इधर, कभी हम उधर. माननीय दिग्विजय सिंह जी भी पहले इलाज के लिये पैसे देते थे, हमने वह भी समय देखा है, लेकिन माननीय मुख्यमंत्री जी का जहां तक सवाल है उन्होंने इस बात की भी चिंता की कि यहां का व्यक्ति मुम्बई जाता है और यदि उसके रहने की व्यवस्था न हो तो नवी मुम्बई में हमारा एक मध्यलोक बन रहा है, वहां तो ठहरने की व्यवस्था हो गई, लेकिन उपाध्यक्ष जी संकल्प के साथ हमें यह भी चिंता करना चाहिये कि रेलवे में उसके लिये आरक्षण की व्यवस्था हो, उसका किराया माफ हो. हवाई यात्रा में यदि हो सकता हो तो वह भी संकल्प में लाइन जुड़ जाये कि उसका हवाई यात्रा में किराया कम हो. मरीज को जब लेकर जाना पड़ता है तो कई बार हमारे पास लोग आते हैं कि भैया पत्र लिख दो रेलवे में रिजर्वेशन नहीं होता है. इसलिये मेरा आपसे आग्रह है कि यह बीमारी निश्चित रूप से बहुत घातक और बहुत गंभीर है, गोविंद सिंह जी संकल्प लाये हैं, इधर के लोगों ने भी बोला, उधर के लोगों ने भी बोला. इसमें जो अच्छा हो सकता है वह हम लोगों को करना चाहिये. आपने मुझे बोलने का अवसर दिया उसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद.
स्वास्थ्य मंत्री (श्री रूस्तम सिंह)-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, कैंसर बीमारी पर काफी महत्वपूर्ण चर्चा हुई है. मुझे यह कहते हुये थोड़ा अच्छा नहीं लग रहा कि हमारे विद्वान माननीय विधायकों को यह ही नहीं पता कि कैंसर मध्यप्रदेश में गंभीर बीमारी है, इसलिये राज्य बीमारी सहायता निधि को कवर करती है. मैं तो पहले ही बता देना चाहता हूं कि वह जान लें कि बीमारी गंभीर है और इसके इलाज के लिये पूरे देश के जितने बेहतरीन से बेहतरीन कैंसर के अस्पताल हैं, चाहे वह टाटा मेमोरियल हो, चाहे आल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट हो, चाहे चंडीगढ़, जितने भी जो भी मरीज है वह जहां भी जाना चाहता है जाये, एस्टीमेट ले और उसके कैंसर के इलाज की व्यवस्था मध्यप्रदेश सरकार करती है. माननीय गोविंद सिंह जी ने पैसे देने वाली बात कही. मैं सदन का ज्यादा समय नहीं लेना चाहता. मैं देख रहा हूं तमाम माननीय विधायकों के चेहरे से रोशनी धीरे-धीरे गायब हो रही है, कईयों ने तो कह दिया अत्याचार है हमको यहां बिठाकर रखा है. मैं अधिक समय न लेते हुये माननीय उपाध्यक्ष महोदय, डॉक्टर साहब की भावनाओं से सहमत हूं लेकिन हिंदुस्तान के किसी भी प्रांत में कैंसर रोग के लिये वह व्यवस्थायें नहीं हैं जो मध्यप्रदेश में हैं. यह रिकार्ड में कर ली जाये.
श्री सुन्दरलाल तिवारी-- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, यह गलत है, या तो रिकार्ड पेश करें या फिर माननीय मंत्री जी इस तरह की बात न करें.
श्री रूस्तम सिंह-- आप बीच में मत बोलिये.
श्री सुन्दरलाल तिवारी-- दूसरे राज्यों में इससे बेहतर और ज्यादा मदद है.
श्री रूस्तम सिंह-- आप रिकार्ड पेश करिये.
श्री सुन्दरलाल तिवारी-- आपने बोला है, मैंने नहीं बोला है. आपने बोला है तो आप रिकार्ड रखिये टेबल में.
उपाध्यक्ष महोदय-तिवारी जी फिर रिकार्ड तो दोनों पक्ष से पेश करने पड़ेंगे.
श्री सुन्दरलाल तिवारी- करेंगे न.
श्री रूस्तम सिंह -- उपाध्यक्ष महोदय, तिवारी जी को केवल बोलना है.
श्री सुन्दरलाल तिवारी- नहीं, बोलना नहीं है. असत्य बात नहीं बोलने देना है. आप रिकार्ड रख दीजिये.
श्री रूस्तम सिंह - क्यों पीड़ा होती है आपको यह पीड़ा नहीं है तो और क्या है. सुनना नहीं चाहते सरकार की अच्छी बात. उपाध्यक्ष महोदय अगर मैं कह रहा हूं कि सबसे अच्छा हो रहा है तो मैं रिकार्ड के साथ कह रहा हूं. दावे के साथ कह रहा हूं.
श्री सुन्दरलाल तिवारी- आप दावे के साथ, रिकार्ड के साथ रख दें हम आपसे क्षमा मांगेंगे.
श्री रूस्तम सिंह -- आज ही क्षमा मांग लें. मांग ही लीजिये.
श्री सुन्दरलाल तिवारी- बिल्कुल मांगेंगे.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ.नरोत्तम मिश्र) - फिर तो मांग ही लो.
श्री सुन्दरलाल तिवारी- मैं फिर कह रहा हूं कि इस देश में स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में हम नंबर एक पर नहीं हैं.हमारी हालत खराब है, कुपोषण की स्थिति आप देख रहे हो.
डॉ.नरोत्तम मिश्र- क्या कुपोषण की बात कर रहे हो, कुछ अकल है कि नहीं है. कहीं भी घुस जाते हो, बात चल रही है कैंसर की, कुपोषण की चल ही नहीं रही है. केंसर की बात चल रही है.
श्री सुन्दरलाल तिवारी- कैंसर में भी जो मदद मिल रही है, यहां से ज्यादा दूसरे राज्यों में मिल रही है.
डॉ.नरोत्तम मिश्र -- नहीं .
श्री सुन्दरलाल तिवारी- नहीं मिल रही है, यही तो बात है.
डॉ.नरोत्तम मिश्र- यही तो दिक्कत है आपके साथ.स्वेच्छानुदान का कोई भी मामला नहीं है, कलेक्टर को 2 लाख रूपये तक के पॉवर हैं.
श्री सुन्दरलाल तिवारी- मालूम है.
डॉ.नरोत्तम मिश्र- मालूम है तो फिर भी कह रहे हो.
श्री रूस्तम सिंह -- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं यह बात इसलिये कह रहा हूं कि मध्यप्रदेश इस देश का और भी कोई प्रदेश हो सकता है ऐसा प्रदेश है जहां पर टोटल जनसंख्या का 70% जनता को कैंसर की मुफ्त में सुविधा दी जाती है.
श्री सुखेन्द्र सिंह -- सबसे ज्यादा बीमार भी इसी प्रदेश में हैं.
श्री रूस्तम सिंह -- तभी तो दी जाती है. माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मै इसको कोई बहस का मुद्दा नहीं बनाना चाहता . मैं इतना कहना चाहता हूं कि जितने डॉक्टर गोविन्द सिंह जी संवेदनशील हैं, जितने माननीय विधायक संवेदनशील हैं, मध्यप्रदेश की सरकार उससे कम संवेदनशील नहीं है. मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि माननीय मुख्यमंत्री जी पूरी तरह से गंभीर हैं, मैंने उनसे जब भी बात की उन्होंने कहा कि जितना चाहते हो पैसा लीजिये. कहीं कोई कोताही इलाज में नहीं होना चाहिये. जहां तक भिंड का सवाल है. भिंड के तो मैं डॉक्टर का नाम बता दूं जो कीमोथैरेपी की ट्रेनिंग लेकर के गया है और कीमोथैरपी भिंड में हुई है. डॉ. साहब को मरीजों की सूची भेज दूंगा. जिनकी कीमोथैरेपी भिंड के जिला अस्पताल में ही हुई है.
माननीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं एक ही आग्रह आपसे करना चाहता हूं कि मध्यप्रदेश में इलाज की पूरी व्यवस्था हो रही है. अभी जो जिला स्तर के केंप लगे थे उसमें 12 हजार लोगों को राज्य बीमारी सहायता निधि से सुविधा दी गई जिसमें कैंसर के रोगी भी हैं. उस जिला स्तर के केंप में हिन्दुस्तान के टॉप के डॉक्टर्स, विशेषज्ञ, कैंसर के विशेषज्ञ बाकी गंभीर बीमारी के विशेषज्ञ लाये गये. उन्होंने देखा उन्होंने रेफर किया उनके पूरे खर्च की व्यवस्था मध्यप्रदेश की सरकार ने की है. उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपसे यह आग्रह करना चाहता हूं कि इन सब मामलों में चाहे वह कैंसर का हो, चाहे वह हार्ट का हो मध्यप्रदेश की सरकार बहुत संवेदनशील है. पूरी तरह से दृढ़ संकल्पित है कि हम लोग लोगों का इलाज करेंगे और व्यवस्था करेंगे, इसलिये इस संकल्प को वापस करने का हम लोग आपसे आग्रह करते हैं.
उपाध्यक्ष महोदय-- क्या माननीय सदस्य संकल्प को वापस लेने के पक्ष में हैं.
श्री गिरीश गौतम- माननीय उपाध्यक्ष महोदय, हमारे डॉ.गोविंद सिंह जी, बाला बच्चन जी बैठे हुये हैं उनके अगल बगल के लोग इस चौपाई को याद ही रखते धूमहूं तजह सहज करूवाई अगर प्रसंग सुगंध बसाई.. तो धुंवा जो है वह भी कड़वाहट छोड़ देता है.
डॉ.गोविन्द सिंह -- माननीय उपाध्यक्ष जी, पहले तो मैं माननीय मंत्री जी से यह अनुरोध करना चाहता हूं कि कैंसर का विषय संकल्प में पहले नहीं था, केवल गंभीर बीमारी था. मैंने कुछ और लिखा था. माननीय अध्यक्ष जी के आदेश से परिवर्तन हुआ है. हमारे संकल्प लाने का उद्देश्य यह था कि गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों का मुफ्त में इलाज हो. इसमें बीमारी है, महामारी है यह चर्चा का विषय नहीं है. हम यह भी कहना चाहते हैं कि जैसे हमारे मित्र आदरणीय कामरेड गिरीश गौतम जी, हमें पता नहीं था कि इनका इतना भगवाकरण हो गया है. मैं तो केवल इतना कहना चाहता हूं कि तिवारी जी, गौतम जी और डॉ नरोत्तम मिश्र जी चार लोग गारंटी ले लें, जो भी मेरे पास मध्यप्रदेश का निवासी, कैंसर का व्यक्ति आएगा हम उसका आवेदन स्टीमेट सहित आपकी तरफ भेज देंगे, या तो आप एक व्यक्ति अधिकृत करे दें या चारों व्यक्ति को हम आवेदन भेज दिया करेंगे.कृपया कर आप मंजूर करवा दिया करें.
श्री गिरीश गौतम - आप हमारे साथ में चलो हमारी गारंटी है मंजूर करवा देंगे.
श्री शंकर लाल तिवारी - आपकी जरूरत नहीं है, गोविन्द सिंह के लिए हमारे संसदीय मंत्री माननीय नरोत्तम मिश्र जी ही काफी है, फोन कर दोगे एक की बजाए तीन लाख ले लेना कौन मना करेगा.
डॉ गोविन्द सिंह - यह कह दो खड़े होकर सदन में.
श्री शंकर लाल तिवारी - हम उनके बंधु है, हम कह रहे हैं तो कह रहे हैं.
डॉ गोविन्द सिंह - आप दो लोगों ने कहा, उन्होंने कहा कि आप कर देंगे, गौतम जी ठीक है, आज के बाद जितने भी मरीजों के पेपर आए हमे दे दिया करना मैं गौतम जी को दे दूंगा.
राज्य मंत्री, सामान्य प्रशासन विभाग (श्री लाल सिंह आर्य) - डॉ साहब यह बताओ आपने हमसे क्यों नहीं कहा, इसका कारण क्या है.
डॉ गोविन्द सिंह - हमें पता है आपकी चलती नहीं है, इस सदन में (हंसी..) आपके कहने से दस हजार भी नहीं देंगे.
संसदीय कार्य मंत्री (डॉ नरोत्तम मिश्र) - कलेक्टर अधिकृत है, दो लाख रूपए तक देने में.
डॉ गोविन्द सिंह - आप सुनो तो आप भी पढ़े लिखे हो, ईमानदारी से आप बता दो वर्ष 1994 में राज्य बीमारी सहायता दिग्विजय सिंह जी, मुख्यमंत्री ने प्रारंभ किया था, उपाध्यक्ष जी बैठे हैं, उपाध्यक्ष जी भी मंत्रीमंडल के सदस्य थे, मैं भी मंत्रीमंडल का सदस्य था, उस समय था और असीमित था और आपको यह भी जानकारी है कि मध्यप्रदेश भवन में जितने भी कैंसर पीडि़त किसी भी जाति के हो, किसी भी धर्म के हो, जो यहां से जाते थे दो लाख रूपए तो था ही लेकिन कुछ ऐसे भी थे, जिन पर ज्यादा खर्च होता था इसके अलावा आने जाने, खाने एवं ठहरने का एवं मध्यप्रदेश भवन में जो ऊपर के कमरे बने है वहां उनकी व्यवस्था थी, रिक्शे एवं रेल का किराया तक दिया जाता था, यह जानकारी आपको अच्छी तरह है. यह राज्य बीमारी सहायता पुरानी है, हम यह नहीं कर रहे हैं कि कांग्रेस के समय में उन्होंने अच्छा किया आपने उसको बढ़ाया, इसके लिए धन्यवाद, लेकिन जो बात सच्ची थी उसको मैंने कह दी.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - उस समय बीस हजार तक था, लेकिन यह राज्य से होता था, इसको फिर वापस कमिश्नर एवं कलेक्टर के यहां इस सरकार ने किया है.
श्री बाला बच्चन - पहले तो हेल्थ मिनिस्टर के हस्ताक्षर से ही राशि निकलती थी, 25 हजार से लेकर 2 लाख रूपए तक.
डॉ. नरोत्तम मिश्र - यह सही है, उसको विकेन्द्रीकृत हमने किया ताकि कैंसर पीडि़त को भोपाल तक न आना पड़े, न स्वास्थ्य मंत्री तक आना पड़े, न सचिवालय तक आना पड़े.
डॉ गोविन्द सिंह - वह केवल गरीबी रेखा के नीचे वाले के लिए थी, हमारी समस्या गरीबी रेखा वाली नहीं थी, हमारी समस्या थी कि जो आदमी चार बीघा पांच बीघा के खातेदार है, उनको कहीं लाभ नहीं मिल पा रहा है, वे इस स्थिति में नहीं रहते. हमारे पड़ौसी वार्ड नंबर 9 वाले की चार बीघा खेती बिक गई, लड़का भी चला गया 32 साल में और जमीन भी बिक गई. हमारा केवल इतना कहना है कि जिनकी क्षमता है वह तो कर लेते हैं, लेकिन जिनकी क्षमता नहीं है वे क्या करें. लेकिन क्षमता के बाद भी जैसे गौतम साहब ने और तिवारी जी ने भी कहा है कि यह बीमारी बढ़ जाती है, तब पता चलती है. पहले यदि पता चल जाए तो इलाज हो सकता है. हमारा सगा चाचा का लड़का हमने सब प्रयास कर लिए 2006 में, पूरी ताकत लगा ली सब खर्च हो गया, हिन्दुस्तान का न कोई अस्पताल बना न कोई पंडित बचा, न रामदेव बाबा बचा, जितने भी बाबा-बाई सब जगह इलाज करवा लिया, तंत्र-मंत्र-संत्र सब करवा लिया, आखिर 42 साल का नौजवान नहीं बच पाया, सरकारी वकील था, उसको नहीं बचा सके, यह हमने भोगा है.
श्री गिरीश गौतम - तब तक रावतपुरा सरकार से झगड़ा हो चुका था क्या.
डॉ गोविन्द सिंह - रावतपुरा के बारे में हम कुछ कह नहीं सकते.न वह हमारे खिलाफ बोलेंगे, न हम उनके खिलाफ बोलेंगे और (डॉ. नरोत्तम मिश्र की तरफ देखते हुए) मीडियेटर यह बैठे हैं. इनसे पूछ लीजिये. मैं आज इसलिये नहीं कर रहा हूं और न उनके बारे में कुछ बोल रहा हूं. फिर क्या लड़ाई करवाना चाहते हैं. ..(हंसी)..
उपाध्यक्ष महोदय -- मत लड़ो.
डॉ. नरोत्तम मिश्र -- डॉक्टर साहब, बाबा रामदेव को भी छोड़ें.
डॉ. गोविन्द सिंह -- (कागज दिखाते हुए) नरोत्तम जी, बाबा रामदेव के बारे में आपके वन विभाग ने हमें यह लिखकर दिया है कि उनकी कम्पनी की शहद में मिलावट निकली है. मंत्री जी, हम आपसे केवल इतना जानना चाहते हैं कि ठीक है, हमें मालूम है और हम संकल्प को वापस ले ही रहे हैं. उपाध्यक्ष महोदय, आपको पता है, आपकी जानकारी में है कि हम क्यों ले रहे हैं. नहीं तो मैं वोटिंग करवाता. हम संकल्प तो वापस ले रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि थोड़ा बहुत इसका सरलीकरण करें. उनके लिये भी, ज्यादा नहीं, जो किसान 5 बीघा तक के हैं. आदरणीय स्वास्थ्य मंत्री जी ने कहा कि जो श्रम विभाग के अंतर्गत आते हैं, लेबर हैं, उनके लिये हम व्यवस्था कर रहे हैं. उनकी व्यवस्था हो रही है. आपने कहा कि जो दैनिक कमाने वाले हैं, रोजाना मजदूरी करने वाले लोग हैं, लेकिन कृपा करके किसान का भी इसमें और जोड़ दें. अगर ज्यादा बड़ा किसान नहीं, तो सीमांत या लघु किसान, लघु कृषकों को और जोड़ दें, तो आपकी ज्यादा कृपा होगी.
श्री शंकरलाल तिवारी -- उपाध्यक्ष महोदय, मैं गोविन्द सिंह जी की इस बात का समर्थन करता हूं. में स्वास्थ्य मंत्री जी, इसमें भविष्य अगर 5 एकड़ या 10 एकड़ तक के किसान को कैंसर हो जाये, तो उसे बीपीएल की जो दवाई की सुविधायें हैं, वह सुविधायें दी जा सकें, ऐसी कोई व्यवस्था करें. यह सुविधायें उनको नहीं मिल पाती हैं.
श्री रुस्तम सिंह -- उपाध्यक्ष महोदय, डॉ. गोविन्द सिंह जी और श्री शंकरलाल तिवारी जी जो बाल बोल रहे हैं, निश्चित रुप से संवेदनशीलता के साथ इस पर विचार किया जायेगा.
डॉ. गोविन्द सिंह -- उपाध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी ने जो आश्वासन दिया है, हम संकल्प वापस लेते हैं.
उपाध्यक्ष महोदय -- क्या माननीय सदस्य इस संकल्प को वापस लेने के पक्ष में हैं.
डॉ. गोविन्द सिंह -- जी हां, मैं संकल्प वापस लेता हूं.
उपाध्यक्ष महोदय -- क्या सदन इस संकल्प को वापस लेने की अनुमति देता है.
(सदन द्वारा अनुमति प्रदान की गई)
(संकल्प वापस हुआ.)
विधान सभा की कार्यवाही सोमवार, दिनांक 6 मार्च,2017 के प्रातः 11.00 बजे तक के लिये स्थगित.
अपराह्न 5.13 बजे विधान सभा की कार्यवाही सोमवार, दिनाँक 6 मार्च, 2017 (15 फाल्गुन, शक संवत् 1938) के पूर्वाह्न 11.00 बजे तक के लिए स्थगित की गई.
भोपाल, अवधेश प्रताप सिंह
दिनांक : 3 मार्च,2017 प्रमुख सचिव,
मध्यप्रदेश विधानसभा