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सार्वजनिक एवं राजनैतिक
जीवन का संक्षिप्त विकास क्रम : |
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प्रोफेसर के.एम. चांडी का जन्म केरल राज्य के कोट्टयम जिले के पलई नगर में 6 अगस्त
1921 को हुआ था. उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा अपने गृह नगर में और महाविद्यालय शिक्षा
चंगनाचेरी और त्रिवेन्द्रम में प्राप्त की. उन्होंने 1942 में अंग्रेजी भाषा और
साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की. |
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उन्होंने
राजनीति में 17 वर्ष की उम्र से ही हिस्सा लेना शुरू कर दिया था, उस समय वे चंगनाचेरी
में सेंट वर्च मेन कॉलेज में इन्टरमीडिएट के विद्यार्थी थे और उन्होंने त्रिवेन्द्रम
में राज्य कांग्रेस के नेताओं का अभिनन्दन करने वाले विद्यार्थियों पर हुए लाठी चार्ज
के विरोध में हड़ताल का नेतृत्व किया था। कुछ और विद्यार्थियों के साथ उन्हें महाविद्यालय
से निकाल दिया गया, किन्तु महाविद्यालय के समक्ष जन-सत्याग्रह होने पर उन्हें तथा
अन्य विद्यार्थियों को कॉलेज में वापस लिया गया। त्रिवेन्द्रम में अध्ययन के दौरान
उन्होंने प्रख्यात गांधीवादी श्री जी. रामचन्द्रन के नेतृत्व में टैगोर अकादमी
के गठन में प्रमुख भुमिका निभाई। विद्यार्थियों तथा युवकों के मध्य राष्ट्रवादी आन्दोलन
को सक्रिय करने के कारण इस अकादमी को 1941 में प्रतिबंधित कर दिया गया।
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सन् 1946 में जब वे मीनाचुल तालुक कांग्रेस कमेटी के सचिव थे
तब उन्हें राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया पर वे
स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते रहे। उन्हें जुलाई 1946 में गिरफ्तार कर लिया
गया। जब उच्च न्यायालय में उनकी जमानत मंजूर कर दी तो उन्हें भारत रक्षा कानून
के अंतर्गत बंदी बना लिया गया और आजादी आने के एक माह बाद सितम्बर 1947 के अन्त
में छोड़ा गया। वे 26 वर्ष की उम्र में राज्य विधानसभा के लिये निर्विरोध
निर्वाचित हुए। सन् 1952 और 1954 में पुन: विधायक निर्वाचित हुए।
वे विधानसभा में कांग्रेस पार्टी के मुख्य सचेतक थे। वे राज्य के प्रथम योजना मंडल
और प्रथम राज्य न्यूनतम वेतन सलाहकार मंडल के भी सदस्य थे। इन्टक के गठन के पूर्व
उन्होंने अनेक श्रमिक संगठनों का गठन तथा नेतृत्व किया। श्रमिक संघों की गतिविधियों
के समर्थन में उन्होंने ''तोझिलालली'' नामक साप्ताहिक का भी थोड़े समय के लिए सम्पादन
तथा प्रकाशन किया था। |
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श्री चांडी
1974-76 तक इलायची मंडल के अध्यक्ष रहे। उनके कार्यकाल में इलायची प्लान्टेशन अनुसंधान
प्रारम्भ हुआ। |
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श्री चांडी ने पलई में सेंट थॉमस कॉलेज
की स्थापना में योगदान दिया था। इस कॉलेज में उन्होंने 1950 में अध्ययन करना शुरू किया और 1968 तक अंग्रेजी के स्नातकोत्तर प्राध्यापक
नियुक्त रहे। 1972 में रबर बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त होने पर उन्होंने इस पद से
इस्तीफा दे दिया। वे केरल तथा कोचीन विश्वविद्यालय की अनेक अकादमिक समितियों, सीनेट
और महासभा के सदस्य रहे। प्रोफेसर चांडी ने अखिल केरल निजी महाविद्यालय शिक्षक संघ
के गठन में प्रमुख भूमिका निभाई। उनकी अध्यक्षता के दौरान (1969-1972) निजी महाविद्यालयों
के शिक्षकों के हित में दो समझौते हुए. (1) अशासकीय महाविद्यालय शिक्षकों को शासकीय
महाविद्यालयों के शिक्षकों के बराबर वेतन मिलने लगा और (2) वेतन का भुगतान शासन द्वारा
सीधे किया जाने लगा। |
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श्री चांडी
ने 15 मई 1982 को पांडीचेरी के उप-राज्यपाल का पदभार संभाला था। वे 6 अगस्त 1983
को गुजरात के राज्यपाल बने थे। मध्यप्रदेश के राज्यपाल का पदभार उन्होंने 15 मई
1984 को ग्रहण किया। |
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वे 1953 से
1957 तक जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, 1963 से 1967 तक केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी
के महासचिव और 1967 से 1972 तक उसके कोषाध्यक्ष रहे। वे 1948 में लगातार अखिल भारतीय
कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। 1978 में राज्य कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष का पदग्रहण
के लिए उन्होंने रबर बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया और केरल में कांग्रेस
संगठन को सुदृढ़ बनाने का चुनौतीपूर्ण कार्य स्वीकार किया, जबकि अनेक लोगों ने श्रीमती
गांधी का साथ छोड़ दिया था। |
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उन्होंने
1953 में प्रथम युवक कांग्रेस इकाई की स्थापना की और 1957 में युवक कांग्रेस के प्रथम
अखिल भारतीय सम्मेलन में हिस्सा लिया था। केरल में वृहद सहकारी संस्थाओं की स्थापना
और विकास का श्रेय मुख्य रूप से श्री चांडी को है। वे 1949 से बीस वर्ष तक मीनाचिल
तालुका सहकारी संघ के अध्यक्ष रहे। उन्होंने मीनाचिल सहकारी लैंड मार्गेज बैंक की
स्थापना की। एक कृषक परिवार के होने के कारण श्री चांडी कृषकों की समस्याओं में गहरी
रूचि लेते रहे और उनके निदान के लिए संघर्ष करते रहे। शासन ने 1962 में उन्हें सरकारी
जंगल भूमि में बसने वालों की समस्याओं का परीक्षण करने वाली समिति का सदस्य नियुक्त
किया था। उनके प्रतिवेदन की सभी वर्गों ने सराहना की थी।
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श्री चांडी
ने 1966 में भारतीय रबर उत्पादक संघ की स्थापना की। सन् 1968 में वे रबर बोर्ड के
सदस्य बने। सन् 1972 में भारत सरकार ने उन्हें रबर बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया।
उनके कार्यकाल में (1972 से 1978 तक) रबर प्लान्टेशन और रबर उद्योग के विकास को गति
मिली। भारत में रबर के अनुसंधान के क्षेत्र में उन्होंने महत्वपूर्ण योजनाओं की शुरूआत
की। रबर के लिए विश्व बैंक योजना तैयार करने तथा उसे लागू करवाने का श्रेय भी उन्हें
प्राप्त है। कोचीन विश्वविद्यालय में रबर टेक्नोलॉजी में बी.टेक. पाठ्यक्रम उनकी
योजना के अनुसार किया गया हैा श्री चांडी की पहल पर ही भारत ने प्राकृतिक रबर उत्पादक
देशों के संघ की सदस्यता ग्रहण की और अंतर्राष्ट्रीय रबर समुदाय में उल्लेखनीय भूमिका
निभानी शुरू की। रबर अध्ययन, रबर उत्पादन, रबर अनुसंधान आदि के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय
सम्मेलनों में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने लन्दन, कुआलालमपुर, बैंकाक, सिंगापुर
आदि की यात्रा की। रबर के संबंध में विश्व बैंक परियोजना पर चर्चा करने के लिये वे
वाशिंगटन भी गये थे। |
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आपका दिनांक 7.9.1998 को देहावसान हो गया. |
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