मध्यप्रदेश विधान सभा पुस्तकालय |
पुस्तकालय नियमावली |
1 नवम्बर, 1956 को राज्य विलीनीकरण पश्चात् विन्ध्यप्रदेश, भोपाल, मध्यभारत की विधान सभाओं से साहित्य एकत्रित कर यह पुस्तकालय प्रारम्भ किया गया । |
विधान सभा के माननीय सदस्यों को उनके विधायी कार्यों के सम्यक निर्वहन में सहायता देने हेतु ग्रंथालय प्रयासरत है । आधुनिक युग में बढ़ते हुए ज्ञान विज्ञान के साथ दिनों दिन पुस्तकालय का विकास तेजी से हो रहा है, मानव द्वारा अर्जित ज्ञान का लेखबद्ध विवरण हमें पुस्तकों के माध्यम से ही मिलता है। समाज के सर्वोन्मुखी विकास में पुस्तकालय का महत्वपूर्ण योगदान है । |
पुस्तकालय का उपयोग म.प्र. राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले संसद सदस्य, सचिवालय के अधिकारी/कर्मचारी, पत्रकारदीर्घा के प्रवेश पत्र धारक, पत्र प्रतिनिधि, शोधार्थी, के साथ सत्रान्तर काल में राज्य के राजपत्रित अधिकारी करते हैं । पूर्व माननीय सदस्यों को पुस्तकालय में बैठकर अध्ययन की सुविधा भी है । |
विधानसभा पुस्तकालय का मुख्य उद्देश्य विधायकों के बौद्धिक, तथा मानसिक विकास के साथ-साथ संसदीय कार्यों में सहायता प्रदान करना है साथ ही शोध एवं संदर्भ सामग्री उपलब्ध कराने में सहयोग प्रदान करता है । |
पुस्तकालय का प्रयोग करने वाले पाठकों, पाठ्य सामग्री, प्रलेख नियोजन के आधार पर पुस्तकालय के विभिन्न प्रकार है, विधान सभा पुस्तकालय का स्थान, विशेष पाठक (माननीय सदस्य) विशेष पाठ्य सामग्री तथा नियोजन विशेष पद्धितियों के आधार पर होने के कारण विशेष पुस्तकालयों में आता है । |
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पुस्तकालय प्रथम तल (अध्ययनकक्ष, गांधी नेहरू कक्ष एवं स्टाफ कक्ष) |
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इन्दिरा गांधी विधान भवन (नवीन विधान सभा) के प्रथम तल क्रमांक 224 में पुस्तकालय, अनुसंधान तथा संदर्भ शाखा स्थापित है । |
पुस्तकालय के मुख्यद्वार से प्रवेश करते ही डिस्प्ले बोर्ड पर मध्यप्रदेश विधान सभा ''प्रक्रिया तथा कार्य संचालन'' सम्बन्धी पुस्तिकाएं प्रदर्शित की गई है, यहीं पर कैटलॉग कैबिनेट जिसमें पुस्तकें शीर्षकानुसार, वर्गीकरण अनुसार, लेखक अनुसार की जानकारी है । यहीं पर माननीय सदस्यों के अध्ययन हेतु अध्ययन कक्ष स्थापित है, यहां पर माननीय सदस्यों की सुविधा हेतु सदन की कार्यवाही का वृतांत श्रृव्य रूप (स्पीकर लगा है) से कराया जाता है एवं समाचार पत्र इत्यादि एवं नवीनतम पुस्तकें प्रदर्शित की जाती है । महापुरूषों के आकर्षक, भव्य तैलचित्र लगे हुए है, इसी तल पर गांधी-नेहरू कक्ष तथा विधान सभा का मॉडल भी स्थापित है । अध्ययन कक्ष में ही पुस्तकों के इश्यू-रिटर्न काउन्टर की व्यवस्था भी की गई है । |
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अध्ययन कक्ष |
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विधान सभा का मॉडल |
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गांधी नेहरू कक्ष |
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इस कक्ष में बाहर महात्मा गांधी एवं पं. जवाहरलाल नेहरू की भव्य आदमकद तैलचित्र ग्लासडोर में स्थापित है । प्रतिवर्ष 2 अक्टूबर (गांधी जयन्ती) को सचिवालय द्वारा माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवल का कार्यक्रम किया जाता है । |
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महात्मा गांधी एवं पं. जवाहरलाल नेहरू का आदम कक्ष तैलचित्र |
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं पं. जवाहरलाल नेहरू की याद में उन पर लिखित महत्वपूर्ण लेखकों की रचनाएं, आत्मकथा, भाषण, पत्रों का संकलन, गांधी वाड.मय, ट्रान्सफर ऑफ पावर (1942-47) हरिजन, यंग, इंडिया जिसका संपादन गांधी जी स्वयं किया करते थे तथा उनके निज सचिव/सहायक श्री प्यारेलाल जी द्वारा लिखित पुस्तकों का संग्रह किया गया है । |
इस कक्ष में भारत का संविधान (संविधान सभा के माननीय सदस्यों के हस्ताक्षरयुक्त) लोकसभा की प्रथम दिवस की कार्यवाही, मध्यप्रदेश विधान सभा की प्रथम दिवस की कार्यवाही, हैण्डरिटर्न (हस्तलिखित) डिवेट सी.पी.वरार (1914), पार्लियामेन्ट्री हिस्ट्री इंग्लैण्ड प्रथम भाग, पार्लियामेन्ट्री डिवेट 1803-1804, सी.ए. डिवेट आफिशियल रिपोर्ट 14 अगस्त, 1947 आजादी के समय महापुरूषों पर लिखी महात्मा गॉंधी पर वांड.मय (100 भाग) पुस्तकें, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा पुस्तकालय को भेंट की गई हस्ताक्षरित पुस्तकें, भृगु संहिता तथा भारत की विकास यात्रा 1947-2008, से सम्बन्धित इत्यादि पुस्तकें इस कक्ष में संग्रहित है। इसी कक्ष में गांधीजी का प्रिय चरखा एवं श्रीमद् भागवत् गीता को प्रदर्शित किया गया है । |
प्रथम तल पर ही पुस्तकालय से जुड़े अधिकारी, संचालक, अनुसंधान अधिकारी, पुस्तकालय, पुस्तकालय स्टाफ एवं कम्प्यूटर कक्ष स्थापित है । |
स्टाफ कक्ष में मैन्युअल, अधिनियम के कम्पाइलेशन एवं पुस्तकें, लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा सदस्यों के जीवन परिचय सम्बन्धी पुस्तकें, संदर्भ पुस्तकें इत्यादि संग्रहित है । स्टाफ कक्ष से लगे हुए कक्ष में राज्यपाल, वित्तमंत्री के भाषण, मुख्यमंत्रियों एवं मंत्रिमण्डल का सम्पत्ति विवरण, लोकसभा के प्रकाशन, अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग की रिपोर्ट, विधेयक, मध्यप्रदेश के महत्वपूर्ण समिति एवं आयोग प्रतिवेदन इत्यादि साहित्य रखा है । पुस्तकाध्यक्ष कक्ष में समाचार पत्र (मासिक) एवं कम्प्यूटर स्थापित है । |
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पुस्तकालय के अपर मेजेनाइन एवं लोअर मेजेनाइन पर रखा साहित्य |
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पुस्तकालय का साहित्य |
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पुस्तकालय में रखी पुस्तकें एवं साहित्य अपर तथा लोअर मेजेनाइन पर शेल्फों में जमा हुआ है । पुस्तकें डी वी डेसीमल क्लासीफिकेशन के अनुसार व्यवस्थित हैं । पाठकगणों की सुविधा के लिये पुस्तकों की मार्गदर्शिका (मैप) भी लगा है । अपर तथा लोअर मेजेनाइन पर अध्ययन की सुविधा भी उपलब्ध है । |
पुस्तकालय में लगभग 1 लाख 82 हजार पठन सामग्री वैज्ञानिक ढंग से व्यवस्थित कर उपलब्ध है, पुस्तकालय में निरंतर साहित्य बढ़ रहा है । इसके साथ मध्यप्रदेश के पुनर्गठन के पूर्व चारों राज्यों से प्राप्त होने वाले साहित्य को एकत्रित कर सुरक्षित रखा गया है । पुस्तकालय में बुलाई जानेवाली नियतकालिक पत्रिकाओं की संख्या 61 है जिसमें 49 सशुल्क एवं 12 नि:शुल्क है, पुस्तकालय में देश-प्रदेश के 29 समाचार पत्र व 21 पत्रिकाएं भी बुलवाई जाती है । सत्रकाल में विधायक विश्राम गृह में 5-5 समाचार पत्र माननीय सदस्यों के अध्ययन हेतु रखे जाते हैं । संसदीय ज्ञान को विकसित एवं समृद्धशाली बनाये रखने हेतु विदेशों से प्रकाशित जर्नल्स भी क्रय किए जाते है । |
पुस्तकालय के अपर मेजेनाइन पर लोकसभा, राज्यसभा, विभिन्न विधानसभाओं की कार्यवाहियॉं, प्रतिवेदन, रिपोर्ट्स, जर्नल्स, ऑंकड़े, हैण्डबुक, डायरेक्ट्री, नक्शे, चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला, ज्योतिष, मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों के नक्शे, गजेटियर, मूर्धन्य रचनाकारों की रचनावली, ग्रंथावली, भाषणों का संकलन, विभिन्न विषयों इतिहास, राजनीति, भूगोल, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, विधानसभा लोकसभा चुनाव परिणाम, कानूनी पुस्तकें, उर्दू, मराठी पुस्तकें, काव्य संग्रह, उपन्यास, कहानी, नाटक, शब्दकोश, विश्र्वकोष, कहावतें-लोकोक्तियॉं इत्यादि पुस्तकों का संग्रह है । |
पुस्तकालय के लोअर
मेजेनाइन पर भारत राजपत्र, मध्यप्रदेश राजपत्र, मध्यभारत राजपत्र, मध्यप्रदेश बजट,
विभिन्न
विभागों के प्रतिवेदन, जर्नल्स, पत्रिकाऐं, समाचार पत्र, अन्य राज्यों की कार्यवाहियॉं,
आजादी के पूर्व के कोड मैन्युअल, लोकसभा
अधिनियम, विधेयक, धार्मिक पुस्तकें, जिला बजट, प्रश्नोत्तर साहित्य 1957 से निरन्तर,
रखे गए है । पुस्तकालय में कम्पेक्टर्स
स्थापित है जिसमें दुर्लभ साहित्य, हैंसर्ड पार्लियामेन्ट्री हिस्ट्री, जनगणना
के ऑंकड़े, धार्मिक पुस्तकें, जिल्दबंदी साहित्य, पुस्तकालय
प्रश्नोत्तर
परिशिष्ट रखे हैं ।
पुस्तकालय में उपलब्ध दुर्लभ पुस्तकों,जर्नल्स,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों की सूची |
मध्यप्रदेश विधान सभा प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावली के अंतर्गत | ||||||||||||||
पुस्तकालय, अनुसंधान एवं संदर्भ समिति का गठन | ||||||||||||||
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मध्यप्रदेश विधानसभा | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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विधान सभा का गठन एक नवम्बर 1956 को मध्यप्रदेश राज्य के गठन के साथ ही हुआ था. मध्यप्रदेश का निर्माण तत्कालीन मध्यप्रदेश, मध्यभारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल राज्य को मिलाकर हुआ था. इसी तर्ज पर इन चार राज्यों की विधान सभाओं का एकीकरण मध्यप्रदेश विधान सभा के रूप में हुआ. विंध्यप्रदेश विधान सभा के 60, भोपाल विधान सभा के 30, मध्यभारत विधान सभा के 99 और सी.पी.एंड बरार (पुराना मध्यप्रदेश) विधान सभा के 150 सदस्यों को मिलाकर एकीकृत विधानसभा के सदस्यों की संख्या 339 थी. नये मध्यप्रदेश की इस विधान सभा का पहला सत्र 17 दिसम्बर, 1956 से 17 जनवरी, 1957 की अवधि में संपन्न हुआ. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
नये मध्यप्रदेश के पहले राज्यपाल डॉ. भोग राजु पट्टाभिसीतारमैया एवं मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल थे. पुनर्गठित पहली विधान सभा के अध्यक्ष पंडित कुंजीलाल दुबे, उपाध्यक्ष श्री विष्णु विनायक सर्वटे और विरोधी दल के नेता श्री विश्वनाथ यादवराव तामस्कर थे. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
नया मध्यप्रदेश लगभग 3 लाख 43 हजार 450 वर्गमीटर क्षेत्रफल का था जो इंग्लैण्ड, जर्मनी या जापान देश के क्षेत्रफल से तो अधिक था ही वह भारत का भी सबसे बड़ा प्रदेश था सन् 1956 में बने इस नये प्रदेश में 74 देशी रियासतों का इलाका शामिल था. गठन के समय प्रदेश में 41 जिले थे, प्रदेश की सीमा भारत के सात अन्य प्रदेशों क्रमश: आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र गुजरात,राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार और उड़ीसा की सीमाओं से मिलती थी. बस्तर जिला प्रदेश का सबसे बड़ा जिला था जिसका क्षेत्रफल 39 हजार 176 वर्ग किलोमीटर था जो केरल प्रदेश के क्षेत्रफल से 307 वर्ग किलोमीटर अधिक था. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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भोपाल को नये मध्यप्रदेश की राजधानी बनाये जाने
की घोषणा के बाद नई दिल्ली से लौटकर आये डॉ. शंकर दयाल शर्मा
का भोपाल रेल्वे स्टेशन पर आत्मीय स्वागत. चित्र में सफेद साफे में डॉ. शर्मा के पिता श्री खुशीलाल वैद्य भी दृष्टव्य हैं. |
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राज्य पुनर्गठन आयोग ने राजधानी के लिये जबलपुर का नाम सुझाया था. उसकी स्थिति सचमुच में केन्द्रीय थी. भोपाल जानता था कि अपने छोटे आकार के कारण वह स्वतंत्र इकाई तो रह नहीं सकता इसलिये भोपाल के मुख्यमंत्री, डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने भोपाल को राजधानी बनाने के लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित किया. दिनॉंक 9 अक्टूबर, 1955 में प्रहरी को एक साक्षात्कार देते हुए उन्होंने कहा था राजधानी के प्रश्न का निपटारा करते समय सरकारी कामों के लिये बिल्डिंग का प्रश्न प्रमुख रहेगा. दूसरे स्थानों की अपेक्षा भोपाल इस मामले में काफी भाग्यशाली है. सचिवालय आदि कार्यालयों के लिये इमारतों की संख्या काफी है. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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भोपाल को नये मध्यप्रदेश की राजधानी बनाने के फैसले
के बाद नये प्रदेश के मनोनीत मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल
को भोपाल की भौगोलिक विशेषताओं से अवगत कराते हुए तत्कालीन भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. शंकर दयाल शर्मा. चित्र में पं. श्यामाचरण शुक्ल और श्री नरसिंहराव दीक्षित भी दृष्टव्य हैं. |
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आवश्यकता पड़ने पर नवाब के अहमदाबाद की इमारतें प्राप्त हो सकती है. डॉ. शर्मा की दलील को नकारा नहीं जा सकता. यह एकदम सच है, इसलिये जब केन्द्रीय नेतृत्व ने राजधानी का निर्णय किया तो भवनों के कारण भी भोपाल का पलड़ा भारी रहा. लेकिन केवल ही एक कारण नहीं था. डॉ. शर्मा के मुख्यमंत्रित्व काल में केन्द्रीय सरकार, विशेषकर नेहरू जी बहुत प्रभावित थे. लेकिन एक बड़ा राजनीतिक कारण भी केन्द्र के नेतृत्व को प्रभावित कर रहा था. भोपाल नवाब ने अंत तक भारत विलय का विरोध किया. उनका पाकिस्तान के प्रति रुझान संदेहास्पद बना रहा. इसलिए भी भोपाल को राजधानी के लिये चुना गया. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
जब तय हो गया कि नया मध्यप्रदेश गठित किया जायेगा, तो मुख्यमंत्रियों तथा मुख्य सचिवों की नागपुर, इन्दौर, ग्वालियर और रीवा में अनेक बैठकें हुई. इनमें नये राज्य की भावी प्रशासनिक व्यवस्था के बारे में अनेक निर्णय लिये गये. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
23 और 24 जुलाई, 1956 को नागपुर में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल, मध्यभारत के श्री तख्तमल जैन, विन्ध्यप्रदेश के श्री शम्भुनाथ शुक्ल तथा भोपाल के डॉ. शंकर दयाल शर्मा की दो दिवसीय बैठक हुई. इसमें सात कमिश्नरी डिवीजन बनाने का फैसला किया गया. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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नये मध्यप्रदेश के निर्माण के पूर्व भोपाल आये तत्कालीन
संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री श्री रविशंकर शुक्ल द्वारा
विश्व विख्यात सांची स्तूप के अवलोकन के समय का छायाचित्र. चित्र में तत्कालीन भोपाल पार्ट-सी के मुख्यमंत्री डॉ. शंकरदयाल शर्मा, मध्यभारत के मंत्री श्री गोपीकृष्ण विजयवर्गीय, भोपाल स्टेट के मंत्री मौलाना तरजी मशरिकी, रायसेन क्षेत्र के विधायक श्री बाबूलाल कमल भी दृष्टवय है. |
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ये थे भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, इन्दौर, रीवा, रायपुर तथा बिलासपुर. डी.आई.जी. के अधीन छह पुलिस रेंज बनाने तथा श्री के. एफ. रूस्तम जी को नये मध्यप्रदेश का पुलिस महानिरीक्षक बनाने का निर्णय भी किया गया. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
16 अक्टूबर, 1956 को चारों राज्यों में चुने हुए कांग्रेसी विधायकों की एक संयुक्त बैठक नागपुर विधान सभा भवन में आयोजित की गई. बैठक के अध्यक्ष थे तत्कालीन पुराना मध्यप्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष पं. कुंजीलाल दुबे. कांग्रेस के 274 विधायकों में 212 सदस्य उपस्थित थे. स्वाभाविक ही वरिष्ठतम नेता पं. रविशंकर शुक्ल को सर्वसम्मति से नेता चुना गया । | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य
न्यायाधीश श्री एम. हिदायत उल्लाह नये मध्यप्रदेश के प्रथम
राज्यपाल डॉ. पट्टाभिसीतारमैया को मिन्टो हाल (पुराना विधान सभा भवन) में 31-10-1956 की मध्य रात्रि में राज्यपाल पद की शपथ दिलाते हुए. मध्यप्रदेश के माटीपुत्र श्री हिदायत उल्लाह बाद में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एवं भारत के उप राष्ट्रपति भी रहे. |
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प्रदेश के प्रथम मुख्य मंत्री पं. रविशंकर शुक्ल
को मिंटो हॉल (पुराना विधान सभा भवन) में 1 नवम्बर, 1956 को
मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाते हुए महामहिम राज्यपाल श्री पट्टाभि सीतारमैया. |
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