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जीवंत लोकतंत्र वही जिसमें विधायी मंचों पर होने वाला संवाद सार्थक और समाज की आवाज बने -श्री तोमर

 

11वें राष्ट्र मंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत क्षेत्र के सम्मेलन में विधान सभा अध्यक्ष ने प्रथम वक्ता के रूप में विषय प्रवर्तन किया

 

                                                                                                       भोपाल, 12 सितंबर

बैंगलुरू स्थित विधान सौध में आयोजित 11 वें राष्ट्र मंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत क्षेत्र सम्मेलन के दूसरे दिन मध्यप्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सम्मेलन के प्रथम वक्ता के रूप में उद्बोधन देते हुए विषय का प्रर्वतन किया। सम्मेलन का विषय विधायी संस्थाओं में संवाद और चर्चा : जन विश्वास का आधार, जन आकांक्षाओं की पूर्ति का माध्यमहै। इस अवसर पर लोक सभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला, राज्य सभा के उपसभापति श्री हरवंश, राज्यों के विधान सभा अध्यक्ष, विधानमंडलों के सभापति एवं अधिकारीगण उपस्थित थे।

श्री तोमर ने विषय को रेखांकित करते हुए कहा कि लोकतंत्र की आत्मा संवाद में निहित होती है। विधायी संस्थाएँ वह मंच हैं जहाँ विविध विचारों का टकराव नहीं, बल्कि उनका समन्वय होता है। यहीं पर नीतियों की दिशा तय होती है, और शासन व्यवस्था को जनहित की कसौटी पर कसा जाता है। एक जीवंत लोकतंत्र वही है, जिसमें विधायी मंचों पर होने वाला संवाद सतत, सार्थक और समाज के विभिन्न वर्गों की आवाज़ को प्रतिबिंबित करने वाला हो। विधायिका में संवाद और चर्चाएं औपचारिक प्रक्रियाएं है जहां निर्वाचित प्रतिनिधि प्रस्‍तावित विधेयकों, नीतियों और राष्‍ट्र एवं प्रदेश को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर विचार विमर्श करते हैं।  

श्री तोमर ने कहा कि भारत जैसे विविधतापूर्ण राष्ट्र में यह और भी आवश्यक हो जाता है कि विधायिका केवल सत्ता परिवर्तन का उपकरण न बने, बल्कि वह सामाजिक परिवर्तन का संवाहक बने। जब सदन में किसानों की समस्या, महिला सुरक्षा, युवाओं की शिक्षा, आदिवासी कल्याण, पर्यावरण संरक्षण और तकनीकी विकास जैसे विषयों पर गंभीर और तथ्यपरक चर्चा होती है, तभी जनता के मन में यह विश्वास जागृत होता है कि उनकी आवाज़ें सुनी जा रही हैं और लोकतंत्र उनके लिए कार्य कर रहा है।

श्री तोमर ने मध्यप्रदेश विधान सभा द्वारा सदन में सार्थक चर्चा एवं संवाद के लिए किए गए प्रयासों को भी अपने उद्बोधन में रेखांकित किया। उन्होने बताया कि आज के समय में जब तकनीक और सूचना का युग है, मध्यप्रदेश विधान सभा ने भी अपनी कार्यप्रणाली में नवाचारों को अपनाते हुए संवाद को और अधिक सुलभ और पारदर्शी बनाया है। ई-विधान प्रणाली की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। सदन की कार्यवाही को डिजिटल माध्यम से लाइव प्रसारित करना, दस्तावेजों की ऑनलाइन उपलब्धता, प्रश्नों और विधेयकों की ट्रैकिंग, ये सभी पहल जनता को विधान प्रक्रिया से सीधे जोड़ने का कार्य कर रही हैं।

मध्‍यप्रदेश विधान सभा सचिवालय द्वारा विधायकों को शोध सहायता देना, प्रशिक्षण सत्र आयोजित करना, विषय आधारित समिति चर्चा को प्रोत्साहित करना, और आम नागरिकों को विधान सभा से जोड़ने हेतु आउटरीच कार्यक्रम आयोजित करना, आदि पहल की है, ये सभी पहल लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखने की दिशा में अत्यंत प्रशंसनीय हैं। श्री तोमर ने बताया कि मध्यप्रदेश विधान सभा में प्रश्नकाल, शून्यकाल, अल्पसूचित प्रश्न और विभिन्न समितियों की कार्यवाही के माध्यम से विधायकों ने जन मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाया जाता है।

श्री तोमर ने सुझाव देते हुए कहा कि आज जब हम नवाचार, पारदर्शिता और सहभागिता की बात करते हैं, तो यह भी आवश्यक है कि हम युवा पीढ़ी को विधायी प्रक्रिया से जोड़ें। मध्यप्रदेश विधान सभा इस दिशा में भी आगे बढ़ रही है। छात्र-विद्यार्थियों के लिए "विधान सभा अध्ययन भ्रमण", प्रश्नोत्तरी, मॉडल विधान सभा जैसी पहलें यह संकेत देती हैं कि लोकतंत्र केवल वर्तमान की प्रक्रिया नहीं, बल्कि भविष्य की नींव भी है।

उन्होंने कहा कि हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र की सफलता का मापदंड केवल आर्थिक विकास नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और सहभागिता है। विधायी संस्थाएँ जब तक इन मूल्यों को आत्मसात नहीं करतीं, तब तक जनता की आकांक्षाओं की पूर्ति अधूरी रह जाती है।

विधानसभा अध्यक्ष ने स्व. अटल जी के वक्तव्य का भी उल्लेख किया. अपने उद्बोधन में विधान सभा अध्यक्ष श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी के संसद में दिए गए एक वक्तव्य का भी उल्लेख किया। अटलजी का का यह वक्तव्य लोकतंत्र की महत्ता एवं देश के प्रति हमारी निष्ठाआस्था को प्रतिपादित करता है। श्री तोमर ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री स्‍व. अटल बिहारी वाजपेयी जी ने लोक सभा में कहा था- सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी, मगर यह देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए।‘   संवाद लोकतंत्र की आत्‍मा है, विधायी संस्‍थाओं में पक्ष-विपक्ष के परस्‍पर संवाद और चर्चा से लोकतंत्र शास्‍वत स्‍वरूप लेता है।

 

विस/ जसं/ 25 

                                                                                                                      नरेंद्र मिश्रा 

                                                                                                                     अवर सचिव