मध्यप्रदेश विधान सभा
की
कार्यवाही
(अधिकृत विवरण)
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पंचदश विधान सभा चतुर्थ सत्र
दिसम्बर, 2019 सत्र
मंगलवार, दिनांक 17 दिसम्बर, 2019
(26 अग्रहायण, शक संवत् 1941 )
[खण्ड- 4] [अंक- 1 ]
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मध्यप्रदेश विधान सभा
मंगलवार, दिनांक 17 दिसम्बर, 2019
(26 अग्रहायण, शक संवत् 1941 )
विधान सभा पूर्वाह्न 11. 05 बजे समवेत हुई.
{ अध्यक्ष महोदय (श्री नर्मदा प्रसाद प्रजापति(एन.पी.) पीठासीन हुए.}
राष्ट्रगीत ''वन्दे मातरम्'' का समूह गान
अध्यक्ष महोदय:- अब, राष्ट्रगीत ''वन्दे मातरम्'' होगा. सदस्यों से अनुरोध है कि वे कृपया अपने स्थान पर खड़े हो जाएं.
(माननीय सदस्यों द्वारा राष्ट्रगीत ''वन्दे मातरम्'' का समूह गान किया गया.)
11.06 बजे निधन का उल्लेख
(1) श्री बाबूलाल गौर, मध्यप्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री,
(2) श्री कैलाश जोशी, मध्यप्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री,
(3) श्रीमती सुषमा स्वराज, भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री,
(4) श्री अरूण जेटली, भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री,
(5) श्री एस. जयपाल रेड्डी, भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री,
(6) डॉ. जगन्नाथ मिश्र, भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री,
(7) श्री राम जेठमलानी, भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री,
(8) श्री लक्ष्मीनारायण नायक, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,
(9) श्री मेहरबान सिंह रावत, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा,
(10) श्री राज बहादुर सिंह, भूतपूर्व सदस्य विधान सभा तथा
(11) श्री टी.एन. शेषन, भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त.
श्री बाबूलाल गौर का जन्म 2 जून, 1929 को ग्राम-नौगीर, जिला- प्रतापगढ़, (उत्तर प्रदेश) में हुआ था. आपने गोवा मुक्ति आंदोलन सहित अनेक सत्याग्रहों में सक्रिय भागीदारी की थी. आप भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक सदस्य रहे. श्री गौर प्रदेश की पांचवीं, छठवीं, सातवीं, आठवीं, नौवीं, दसवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं तथा चौदहवीं विधान सभा में लगातार दस बार सदस्य निर्वाचित हुए. यह अपने आप में उनका इस विधान सभा मे कीर्तिमान था. आप भाजपा विधायक दल के मुख्य सचेतक, 2002-2003 में मध्यप्रदेश विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष, विभिन्न विभागों के मंत्री तथा 2004 से 2005 तक की अवधि में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. आपने विधान सभा की विभिन्न सभा समितियों में सदस्य एवं सभापति के रूप में कार्य किया. आपको मध्यप्रदेश शासन द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में तथा मध्यप्रदेश विधान सभा द्वारा ' उत्कृष्ट सेवा सम्मान ' से सम्मानित किया गया था. विधायक एवं मंत्री के रूप में आपने भोपाल एवं प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था.
मैं यह भी उल्लेख करूंगा कि गौर साहब लगातार सदन में बैठने वाले अपने आप में रिकार्ड बनाने वाले व्यक्तित्व थे, उनका विषय हो या न हो लेकिन वह सदन में लगातार बैठते थे और बीच-बीच में राम का नाम कुछ इस रूप में लिया करते थे कि ऐसे कठिन क्षण भी धीरे से क्षीण हो जाते थे और सदन में एक नया माहौल तैयार हो जाता था. निश्चित रूप से उनको याद हम लम्बे समय तक क्या अमिट समय तक करते रहेंगे.
आपके निधन से प्रदेश ने एक वरिष्ठ एवं लोकप्रिय राजनेता तथा कुशल प्रशासक खो दिया है. प्रदेश की उल्लेखनीय सेवा के लिये आपको हमेशा स्मरण किया जायेगा.
श्री कैलाश जोशी का जन्म 14 जुलाई, 1929 को हाटपीपल्या जिला -देवास में हुआ था. आप जनसंघ विधायक दल, मध्यप्रदेश के सचिव और उपनेता तथा हाटपीपल्या नगरपालिका के अध्यक्ष रहे. श्री जोशी प्रदेश की तीसरी, चौथी, पांचवीं, छठवीं, सातवीं, आठवीं, नौवीं तथा दसवीं विधान सभा में लगातार आठ बार सदस्य निर्वाचित हुए थे. आप दो बार नेता प्रतिपक्ष, विभिन्न विभागों के मंत्री तथा वर्ष 1977 से 1978 तक की अवधि में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. वर्ष 2000 में आप राज्य सभा तथा वर्ष 2004 में चौदहवीं एवं वर्ष 2009 में पन्द्रहवीं लोक सभा के सदस्य निर्वाचित हुए थे. आपने विभिन्न सभा समितियों में सदस्य एवं सभापति के रूप में कार्य किया था. आप 1980 से 1984 तक भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष तथा 1993 से भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे.
आपके निधन से प्रदेश ने एक वरिष्ठ एवं लोकप्रिय राजनेता तथा समाजसेवी खो दिया है. प्रदेश की उल्लेखनीय सेवा के लिये आपको हमेशा श्रद्धा के साथ स्मरण किया जायेगा.
मुख्यमंत्री (श्री कमल नाथ) - माननीय अध्यक्ष जी, सबका समय आता है, पर कभी इसे स्वीकार करने में कठिनाई होती है और कष्ट होता है. आज मैं उन दिवंगत नेताओं के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए खड़ा हुआ हूं. बाबूलाल गौर जी केवल एक लंबे समय से विधान सभा के ही सदस्य नहीं थे, केवल मुख्यमंत्री ही नहीं थे. पर उस सरल स्वभाव से पूरे प्रदेश और जो भी उनके संपर्क में आता था, प्रभावित होता था. मेरा तो उनसे बहुत संपर्क रहा और मुझे याद है, जब मैं वाणिज्य मंत्री था, उस समय जो भारत से डेलीगेशन जापान और कोई देश जाना होता था, तो स्वाभाविक था कि हम किसी कांग्रेस के मंत्री या मुख्यमंत्री को ले जाते. लेकिन मैंने यह चिन्ह्ति किया कि हम मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल गौर जी को लेकर जाएं. मैं सोचता हूँ कि यह पहली दफा हुआ होगा और मुझे याद है कि टोकियो में देश की बात करनी थी, पर बाबूलाल जी गौर तो केवल मध्यप्रदेश की ही बात करते थे. उनका इतना प्यार, इतना लगाव प्रदेश से था. बाबूलाल गौर जी, लम्बे समय तक विधान सभा के सदस्य रहे. उनका इतना सरल स्वभाव था और इसी सरल स्वभाव के कारण वे इतनी दफे चुनकर इस सदन में आए. उन्होंने अंतिम सांस तक यह प्रयास किया कि वह प्रदेश और अपने क्षेत्र की सेवा करते रहें.
श्री कैलाश जोशी, एक वरिष्ठ राजनेता थे. वह संसद सदस्य रहे, मेरी उनसे बैठकर चर्चा होती रहती थी. वह एक समाज सेवक थे और उनका साधारण स्वभाव था. उन्होंने अपने कार्यकाल में विधान सभा के सदस्य के रूप में या मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश की सेवा की और आज हम इसलिए उनको याद करते हैं.
श्रीमती सुषमा स्वराज जी, विधान सभा की सदस्य रहीं, लोक सभा की सदस्य रहीं एवं राज्य सभा की सदस्य रहीं. बहुत कम ऐसे नेता व्यक्ति होते हैं, जिनको तीनों का अनुभव हुआ हो. वे मंत्रिमण्डल में रहीं, विदेश मंत्री रहीं. जब मैं केन्द्र सरकार में संसदीय कार्यमंत्री था तब वह नेता प्रतिपक्ष थीं. उनसे रोजाना कुछ न कुछ बहस, कुछ न कुछ फैसला या कुछ न कुछ चर्चा होती रहती थी और बहुत सारी चर्चाएं मुझे आज यहां खड़े रहकर याद आ रही हैं. सुषमा स्वराज जी जब विदेश मंत्री थीं, अगर कोई व्यक्ति उन्हें फोन करता था कि उसे विदेश में यह समस्या है तो वह उसकी समस्या दूर करती थीं. उन्होंने उनके कार्यालय में जन-प्रतिनिधियों की समस्या हल करने के लिए एक अधिकारी रखा था. वे फौरन उस समस्या पर एक्शन लेती थीं, इसमें उनकी दिलचस्पी थी और आज हम उन्हें याद करते हैं, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
श्री अरूण जेटली जी, केवल एक महान् वकील ही नहीं थे, मैं तो उन्हें उनके छात्र जीवन से जानता हूँ. जब वे विपक्ष में रहे तो उनसे मेरा बहुत सम्पर्क रहा, वह भी प्रतिपक्ष के नेता रहे थे, राज्य सभा के नेता रहे थे. उनसे भी रोजाना चर्चाएं होती थीं. राज्य सभा कैसे सही चले ? उनका लक्ष्य हमेशा यह रहता था कि तनाव नहीं होना चाहिए. आप ऐसा उपाय निकालें कि हम एक घण्टे अपनी बैठक को स्थगित कर देते थे कि राज्य सभा में तनाव न हो, राज्य सभा सही चले, स्मूथ चले. अरूण जेटली जी ने अपने छात्र जीवन से जो राजनीति शुरू की, जो अंत तक जारी रही. उन्हें बीमारी हमसे छीनकर ले गई.
श्री एस. जयपाल रेड्डी जी, मेरे साथी थे एवं मंत्रिमंडल में मेरे साथ थे. वे आन्ध्र प्रदेश के एक अनुभवी और योग्य नेता थे, वे विभिन्न विभागों में मंत्री रहे और उनका कैबिनेट में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा. ऐसे वरिष्ठ राजनेता के प्रति हम हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
डॉ. जगन्नाथ मिश्र जी, वे केवल बिहार के मुख्यमंत्री ही नहीं रहे बल्कि एक समाज सेवक भी थे. एक लोकप्रिय नेता बिहार के थे. वे राज्य सभा में सदस्य रहे और हम आज उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, पर साथ-साथ बिहार की जनता उनके कार्यकाल और उनकी सेवाओं को याद करता है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, श्री राम जेठमलानी जी से तो पूरा देश परिचित था, क्योंकि वह एक ऐसे राजनेता और प्रखर वक्ता थे कि जब भी वह टेलीवीजन में बोलते थे लोग उन्हें बड़ी गंभीरता से सुनते थे. वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर बोलते थे. कभी-कभी तो अपने ही दल से उनको परेशानी हो जाती थी और कभी-कभी अपने दल को श्री राम जेठमलानी जी से परेशानी हो जाती थी, आप सभी को यह बात याद होगी. हम उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, इस विधानसभा के पूर्व सदस्य लक्ष्मीनारायण नायक टीकमगढ़ जिले से, श्री मेहरबान सिंह रावत मुरैना जिले से तथा श्री राज बहादुर सिंह दमोह जिले से इन्होंने विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया और अपने क्षेत्र की सेवा की है. मैं इन सभी के प्रति अपनी ओर से तथा अपनी पार्टी की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, श्री टी.एन.शेषन जी एक इंस्टीट्यूशन थे, जब वह कैबिनेट सेक्रेटरी थे और उनको मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था, तब बहुत लोगों ने कहा था कि वह चुनाव आयोग नहीं चला पायेंगे. मुझे वह समय याद है पर उन्होंने चुनाव आयोग को एक नया रूप दिया है और आज जो भी चुनाव आयोग है और जो भी चुनाव आयोग का रूप है इसके लिये हमें याद रखना होगा कि इसकी शुरूआत श्री श्री टी.एन.शेषन जी ने ही की थी. फिर चाहे हमारे वोटर आई कार्ड की बात हो या उन्होंने जो विभिन्न नियम बनाये हैं, उससे उन्होंने चुनाव आयोग को एक नई पहचान दी और एक नया सम्मान मिला. हर राजनीतिक दल से उनको एक नया सम्मान मिला है. मैं उन्हें हार्दिक श्रद्धाजंलि अर्पित करता हूं.
नेता प्रतिपक्ष (श्री गोपाल भार्गव) -- माननीय अध्यक्ष महोदय, मुझे आज शायद स्वयं याद नहीं आ रहा है कि हम इस सदन में पिछले 36 वर्षों के विधायी जीवन में इतने महत्वपूर्ण लोग जो दिवंगत हुये हैं, उनके लिये एक साथ श्रद्धाजंलि देने का ऐसा कोई दु:खद अवसर आया हो. अध्यक्ष महोदय, हमारे दो पूर्व मुख्यमंत्री जिसमें आदरणीय श्री बाबूलाल गौर जी भी हैं. श्री बाबूलाल गौर जी जितने प्रशासन के मामले में नरम दिल थे, उतने ही सख्त भी थे. वर्ष 1990 में जब हमारी सरकार बनी थी, उस समय खास तौर से यदि मध्यप्रदेश को और बड़े शहरों को अतिक्रमण से मुक्त करने का काम अगर किसी ने किया था, तो वह श्री पटवा जी की उस सरकार में जो नगरीय प्रशासन मंत्री थे श्री बाबूलाल गौर जी थे उन्होंने किया था और इसीलिये उन्हें बुलडोजर मंत्री के नाम से भी लोगों ने जाना है. आज जो भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और भी बड़े शहरों की खूबसूरती है, उसके पीछे सबसे बड़ा यदि कोई हाथ है और सबसे बड़ा किसी का योगदान है तो वह श्री बाबूलाल गौर जी का योगदान है. अध्यक्ष महोदय, वह एक ऐसे इंसान थे, जिनमें बहुत अल्हड़पन था. मैं जब 36 साल पहले विधानसभा में आया था, तब मेरी आयु बहुत कम थी, उस समय मुझे श्री बाबूलाल गौर जी का सानिध्य मिला था. वह काफी बुजुर्ग थे लेकिन उनमें बड़ा प्रेम और स्नेह था, कोई आयु का बंधन नहीं था. वह हमेशा जेब में काजू किशमिश लेकर आते थे और सदन में जब वह मंत्री थे तब मैं उनके बगल में उस तरफ में बैठता था और जब इस तरफ बैठता तब भी और जब विपक्ष में था, तब भी वह काजू किशमिश खिलाते थे. वह हमेशा गीता का एक गुटका लिये हुये रहते थे और जब भी चर्चा लंबी होती थी, वह उठ जाते थे और मैंने देखा है कि वह कभी-कभी गीता का भी अध्ययन करने लगते थे. यह उनका एक स्वभाव था, उनके अंदर एक संतत्व का भी भाव था. ऐसे बिरले लोग होते हैं जो राजनीति में रहने के बावजूद भी निशप्रिय हो जाते हैं, ऐसे श्री बाबूलाल गौर जी थे. वह हमारे बीच में नहीं रहे हैं. मजदूर आंदोलन से एक मध्यम वर्गीय परिवार क्या बल्कि एक गरीब परिवार से जन्म लेकर वह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे और इतने लोकप्रिय हुये, ऐसे लोग बहुत ही दुर्लभ होते हैं. मैं उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.
माननीय अध्यक्ष महोदय, श्री कैलाश जोशी जी के साथ इस विधानसभा में लंबे समय तक मुझे बैठने का तथा विधायक पद पर साथ में रहने का अवसर मिला है. अध्यक्ष महोदय, उनके अंदर जो सादगी थी, जो संत स्वभाव था वह अद्भुत था. आजकल के हम जैसे राजनीतिक लोगों में या देश में जो भी राजनीति में लोग हैं ऐसे दुर्लभ हैं, बहुत कम लोग ऐसे बचे हैं जैसे कैलाश जोशी जी थे. यह स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं है. अध्यक्ष महोदय, एक बार जब वह विधान सभा का चुनाव नहीं जीत पाये, श्याम होलानी जी वहां पर चुनाव जीत गये थे. मुझे स्मरण है एक सप्ताह बाद अपना सामान लेकर उनका अपने गृह नगर हाटपिपल्या जाना. जब मैं उनके यहां पहुंचा तो मैंने उनसे कहा कि दादा कहां जा रहे हैं, उन्होंने कहा कि क्या करेंगे अब यहां पर, चुनाव तो मैं नहीं जीत पाया इस कारण अपने गांव जा रहा हूं. मैंने कहा क्यों जा रहे हैं, उन्होंने कहा मेरा खर्च कैसे चलेगा, जो खाने का, पीने का, दूध इत्यादि का सारा खर्च कैसे चलेगा, इस कारण से हम जा रहे हैं. दो-चार विधायक थे, हम लोग साथ गये, हम लोगों ने उनसे कहा कि आप न जायें, आप हमारे नेता थे, नेता हैं और नेता रहेंगे और इस कारण से हम निवेदन करना चाहते हैं आप हमारे मार्गदर्शन के लिये भोपाल में रहें. जोशी जी ने कहा कि ठीक है हम देखेंगे, सोचेंगे और उसके बाद में हम सभी लोगों ने जो कुछ भी सहयोग बन सकता था वह किया. अध्यक्ष महोदय, उसके बाद वह राज्य सभा में फिर लोक सभा, उसके बाद विभिन्न पदों पर रहे. लेकिन ऐसा संतत्व का भाव आज की राजनीति में दुर्लभ है. अध्यक्ष महोदय, जब वह अस्पताल में थे, हम उनसे मिलने गये तो उनकी जीजीविषा जो थी वह अनुकरणीय थी, हम जैसे लोगों के लिये देखने लायक थी कि 90 वर्ष से ज्यादा की आयु हो गई तब भी उनके मन में जीने की इच्छा थी और राज्य के बारे में जानने की इच्छा थी.
अध्यक्ष महोदय, सुषमा जी हमारे बीच में नहीं रहीं. वास्तव में अगर मुख में सरस्वती कहीं होती हैं और कहा जाता है तो सुषमा जी के मुंह में वास्तव में सरस्वती जी विराजमान थीं. जितना ज्ञान और जो वाणी, जो मुधुरता सुषमा जी की आवाज में थी, बहुत कम देखने को मिलती है. सबसे बड़ी बात उनकी तीव्र स्मरण शक्ति अंग्रेजी पर, हिन्दी पर, संस्कृत पर और क्षेत्रीय भाषाओं पर उनका अधिकारिक ज्ञान हम सबके लिये अनुकरणीय है. जब वह कर्नाटक के लोकसभा के इलेक्शन में चुनाव लड़ने के लिये गईं तो उन्होंने 15 दिन के अंदर कन्नड़ बोलना सीख लिया, ऐसी दुर्लभ महिला भारत की राजनीति में शायद ही कहीं हमें देखने, सुनने के लिये मिले. मृत्यु के 15-20 दिन पूर्व शंकराचार्य जी की जयंति के अवसर पर एक कार्यक्रम में उन्होंने जो विद्वत्ता का परिचय दिया और शंकराचार्य जी के पूरे जीवन वृत्त पर उन्होंने प्रकाश डाला और शंकराचार्य जी के द्वारा रचित जो भी साहित्य है उस साहित्य के बारे में जितनी विस्तृत विवेचना पूरे विशारद और गुणों के साथ में सुषमा जी ने की वह अद्वितीय है, उसकी वीडियो में क्लीपिंग है. अध्यक्ष महोदय, रूद्राष्टक से लेकर वेलवाष्टक से लेकर सभी प्रकार के और शिव तांडव जो रावण रचित है उन्होंने मौखिक उस कार्यक्रम में सुनाये, मैं तो उनकी विद्वत्ता का कायल हो गया. ऐसी सुषमा जी थीं, उनके गुणों के बारे में चर्चा करेंगे तो दिन भर लग जायेगा.
अध्यक्ष महोदय, अरूण जेटली जी प्रख्यात वकील तो थे ही, राजनीतिक भी और छात्र राजनीति से वह आगे बढ़े. उन्होंने संगठन के नेता के रूप में भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में ही नहीं पूरे देश में विस्तारित करने का काम किया, उनके लिये श्रृद्धांजलि.
श्री जयपाल रेड्डी जी, लंबे समय तक विधायी जीवन में रहे, संसदीय जीवन में रहे. भारत सरकार के विभिन्न पदों पर रहे, केन्द्रीय मंत्री रहे और अपनी शारीरिक निशक्तता के बावजूद भी कभी उन्होंने आभास नहीं होने दिया कि वह निशक्त हैं. हमेशा पूरी ताकत, पूरी शक्ति के साथ में और पूरी योग्यता के साथ में जितना ज्ञान उन्हें था, बहुत कम विरले लोगों के लिये होता है. जयपाल रेड्डी जी हमारे बीच में नहीं हैं, निश्चित रूप से यह देश की क्षति है.
श्री जगन्नाथ मिश्र जी, बिहार ही नहीं बल्कि हमारे उत्तर भारत के प्रतिष्ठित नेता थे, वह हमारे बीच में नहीं रहे, लंबे समय तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे, उनके लिये श्रृद्धांजलि है.
श्री राम जेठमलानी जी अपने आप में एक ऐसी शख्सियत थे, भगवान ने उन्हें पर्याप्त आयु दी और अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक वह वकालत करने के लिये भी तत्पर रहते थे.
और सबसे बड़ी बात निर्भीक वकालत, चाहे वह किसी के भी खिलाफ बोलना पड़े. कितना भी बड़ा अधिकारी, कितना भी बड़ा न्यायिक अधिकारी क्यों न हो लेकिन राम जेठमलानी जी कभी किसी के साथ समझौता करने वाले व्यक्ति नहीं रहे. इस प्रकार का व्यक्तित्व उनका रहा.
माननीय अध्यक्ष महोदय, श्री लक्ष्मीनारायण नायक जी, हमारे बुंदेलखण्ड से ही आये थे. टीकमगढ़-छतरपुर क्षेत्र से सांसद थे. लाल टोपी लगाया करते थे. मैं जब यूनिवर्सिटी में पढ़ता था उस समय वे विधायक थे तो लाल टोपी लगाना यहां पर उनकी पहचान थी और अध्यक्ष महोदय, यह एक संयोग ही था कि जिस दिन मैं ओरछा में था उसी दिन वे दिवंगत हुए. विवाह पंचमी कहलाती है जिस दिन राम जानकी का विवाह हुआ था उसी दिन वे दिवंगत हुए, मृत्यु को प्राप्त हुए और मुझे वहां जाने का सौभाग्य मिला.
अध्यक्ष महोदय, श्री मेहरबान सिंह जी रावत मेरे साथ में लंबे समय विधायक रहे. काफी सक्रिय विधायक, लोकप्रिय विधायक थे. लालबहादुर सिंह उर्फ रज्जू भैया, मेरे विधान सभा क्षेत्र से सटे हुए नोहटा विधान सभा क्षेत्र से विधायक भी रहे. प्रोफेसर थे. वह जबलपुर कालेज में प्रोफेसर का भी काम करते थे. अध्यापन का काम करते थे.
अध्यक्ष महोदय, टी.एन.शेषन साहब, जैसा मुख्यमंत्री जी ने कहा उन्होंने एक पहचान दी चुनाव आयोग के लिये नहीं तो चुनाव आयोग के लिये लोग जिस प्रकार से सोचते थे कि हम कुछ भी कर लेंगे और राजनीति में सफल हो जायेंगे. ऐेसे लोगों के लिये, चाहे वह बाहुबली हो, चाहे धन बल वाला हो, चाहे वह किसी अन्य बल से युक्त हो लेकिन टी.एन.शेषन साहब ने राजनीतिक लोगों के लिये वास्तव में उनकी औकात बता दी कि आप इस तरह से चुनाव नहीं जीत सकते. वास्तव में निर्वाचन में, चुनाव के लिये सिंघम शब्द का यदि कहीं उपयोग होगा तो शेषन साहब के लिये ही होगा. वे वास्तव में सही सिंघम थे जिन्होंने निर्वाचन पद्धति को सुधारा और भारत में स्वतंत्र निर्वाचन की एक प्रक्रिया प्रारम्भ की जिसका अनुसरण हमारे बाकी लोग करते हैं. इन सभी लोगों के लिये अध्यक्ष महोदय, मेरी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि है और निश्चित रूप से जैसा मैंने कहा कि इतनी महामूर्तियां जिन्हें हम श्रद्धांजलि दे रहे हैं शायद कभी एक साथ ऐसा अवसर नहीं आया होगा जब हमें दुखद दिन देखना पड़े कि हमें श्रद्धांजलि अर्पित करना पड़े लेकिन विधि का विधान है. ईश्वर की व्यवस्था के आगे हम सभी नतमस्तक हैं. अध्यक्ष महोदय, मेरी बहुत-बहुत श्रद्धांजलि. ओम शांति.
श्री शिवराज सिंह चौहान(बुधनी) - माननीय अध्यक्ष महोदय, इस लघु सत्र का प्रारम्भ हम भारी मन से कर रहे हैं. जैसा नेता प्रतिपक्ष ने कहा एक साथ इतनी विभूतियों को श्रद्धांजलि भारी मन से हमको देनी पड़े. हमारे दो पूर्व मुख्यमंत्री जिन्होंने आधे दशक तक मध्यप्रदेश की राजनीति को प्रभावित किया. मेरे राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी. श्रीमान् बाबूलाल गौर जी के चुनाव से. मैं मॉडल स्कूल के छात्र संघ का अध्यक्ष हुआ करता था और जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में बाबूलाल गौर जी ने चुनाव लड़ा था. सभी विपक्षी दलों ने उन्हें समर्थन दिया था. तब से लेकर उनके सफर को मैंने देखा है. एक कपड़ा मिल के मजदूर से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर, उनकी कर्तव्यनिष्ठा, उनकी परिश्रमशीलता, उनकी प्रतिबद्धता और जनता की सेवा करने की उनकी जो ललक थी उसको प्रतिबिंबित करता है. अक्खड़ स्वभाव के थे. हम लोग इमरजेंसी के समय जेल में थे. कई बार वातावरण बहुत बोझिल हो जाता था और कुछ लोगों के मन निराशा से भर जाते थे तब वे बाबूलाल गौर होते थे, कोई न कोई ऐसा प्रसंग रच देते थे कि ठहाकों से जेल का परिसर गूंज जाता था. एक हमारे साथी थे जो रोज रिहाई का इंतजार करते थे और रिहाई के लिये चक्कर लगाते थे. वहां के संतरी आकर कहते थे कि आज फलाने की रिहाई है. वे नेता ऐसे थे जो अपनी खाने-पीने की चीज दूसरे को नहीं देते थे तो लोग कुढ़ते थे कि बाकी के यहां से तो मलाई आती है तो सब मिलबांट कर खाते हैं लेकिन ये किसी के साथ शेयर नहीं करते और गौर साहब ने योजना बनाई और संतरी से कह दिया कि जरा आज इनकी रिहाई का ऐलान कर देना और संतरी ने कह दिया, संबंध हो ही जाते हैं जेल में रहते हैं तो संतरी ने आकर कह दिया कि आज फलाने जी की रिहाई है. जैसे ही रिहाई सुना तो उन्होंने अपना नमकीन, मीठा जो कुछ था, लो, खा लो, बताओ, घर ले जाकर क्या करना है और जैसे ही गेट के पास पहुंचे तो संतरी ने कहा कि चलो अंदर, कोई रिहाई नहीं है, तब उन्होंने श्री बाबूलाल गौर जी को ढूंढना शुरू किया तो कठिन क्षणों में भी कैसे लोगों को कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए आनंद के प्रसंग रचते रहना, हमेशा अलमस्त रहना, प्रसन्न रहना, यह श्री बाबूलाल गौर जी का स्वभाव था.
ऊपर से वह हमको जितने हंसने और हंसाने वाले दिखते थे, लेकिन प्रशासक के नाते उन्होंने जिस कठोरता का परिचय दिया और हम जिस वीआईपी रोड से गुजरते हैं, सचमुच में अगर श्री बाबूलाल गौर जी न होते तो वह वीआईपी रोड बन नहीं सकता था.
अभी कहा कि बुलडोजर मंत्री भी उनको कहा जाता था. अनेकों उनके जीवन के ऐसे प्रसंग हैं जो हमें प्रेरणा देते हैं कि एक साधारण व्यक्ति भी कैसे बड़ा बन सकता है, अद्वितीय बन सकता है. मुख्यमंत्री, मंत्री के रूप में जो भी दायित्व मिला और उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि चुनाव में लोग सोचते थे कि अब बहुत हो गया, 6 बार, 7 बार, 8 बार तो वह एक ही बात कहते थे कि - "एक बार और, बाबूलाल गौर." लगातार 10 बार एक ही विधान सभा क्षेत्र से जीतना, यह अपने आप में चमत्कार था! उनका बहुआयामी व्यक्तित्व था.
लेकिन श्री कैलाश जोशी जी, अगर एक पंक्ति में कहा जाय तो संतों में राजनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञों में संत थे. सचमुच में देश में जो स्थान श्री अटल जी का था, मध्यप्रदेश में वही स्थान श्रीमान कैलाश जोशी जी का था. हाटपिपल्या के नगर पंचायत के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का प्रारंभ किया था और फिर कभी मुढ़कर नहीं देखा. उन्होंने मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया. वे अजातशत्रु थे, जो कहते थे वह करते थे. अगर किसी के प्रामाणिक जीवन को हमें देखना है, पारदर्शी प्रामाणिकता को जीवन में देखना है तो एक ही नाम मध्यप्रदेश में ध्यान आता है श्रीमान् कैलाश जोशी जी का.
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा कि मुझे कौन-से भक्त प्रिय हैं तो एक श्लोक कहा था -
समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः ।
शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः ॥
तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येनकेनचित् ।
अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः ॥
जो शत्रु और मित्र में समान हो, सुख और दुख में समान हो, निंदा और स्तुति में समान हो, जो हमेशा संतुष्ट रहने वाला हो, वही भक्त मुझे प्रिय है और सचमुच में वह भगवान को शायद सबसे ज्यादा प्रिय थे. काम करने की जीजीविषा इतनी थी कि अस्पताल में भर्ती थे और जब हम मिलने गये तो मुझे कह रहे थे कि मेरे कुछ कार्यक्रम बना देना. मैं दौरा करने जाऊंगा. अंतिम समय तक जनता और कार्यकर्ताओं से वे जुड़े रहे. यह ललक उनमें रहती थी उनको हमने खोया है.
माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय श्रीमती सुषमा स्वराज जी, मन तकलीफ से भर जाता है. उनके चेहरे पर तेज था, उनकी वाणी में ओज था. सरस्वती उनकी जिह्वा पर विराजती थी, कीर्ति और प्रतिष्ठा उनकी आरती उतारती थी, श्री अटल जी के बाद इतना प्रभावी वक्ता शायद दूसरा कोई इस देश में नहीं हुआ.
वह जिस भी पद पर रहीं, अगर सांसद रहीं तो कुशलता के साथ, प्रखर सांसद के रूप में उन्होंने अपने दायित्व का निर्वहन किया और माननीय मुख्यमंत्री जी सही कह रहे थे, विदेश मंत्रालय ऐसा मंत्रालय माना जाता है कि अक्सर जिससे जनता का कोई लेना-देना नहीं होता है. जनता से सीधा कोई संबंध नहीं होता है. लेकिन विदेश मंत्रालय को भी जनता से अगर जोड़ा तो दीदी सुषमा स्वराज जी ने जोड़ा.
अगर कोई एक ट्विट कर दे, कोई भारतीय अगर कहीं विदेश में फंसा हो और सुषमा दीदी के पास समाचार या खबर आ जाय तो ट्विट के माध्यम से भी अगर सूचना आई तो तत्काल उसकी समस्या का उन्होंने समाधान किया. कैसे विदेशों से भारतीयों को सफलता के साथ निकाला गया यह अगर देखना है तो हमको सुषमा दीदी की कार्यप्रणाली में देखना पड़ेगा.
वह विदिशा से दो बार सांसद रहीं. मध्यप्रदेश से राज्यसभा की सदस्य भी रहीं. छोटी-छोटी चीज अगर हम उनको कहते थे तो पूरी ताकत के साथ मध्यप्रदेश की अगर कोई समस्या है तो उसका समाधान हो सके, इसके लिए सदैव वह प्रयासरत् रहती थीं. वे बहुत जल्दी हमारा साथ छोड़कर चली गईं. वैसे ही अध्यक्ष महोदय अरूण जेटली जी मैंने अपने जीवन में ऐसा चलता फिरता उद्घट विद्वान नहीं देखा. कोई भी विषय हो राजनीति हो या सामाजिक क्षेत्र हो चुनाव की रणनीति हो, खेल हो, क्रिकेट हो मुझे लगता ही नहीं कि एक आदमी ऐसा कम्पयूटर हो सकता है कि उनसे कुछ भी पूछ लो वह आदमी पूरी खुलकर व्याख्या कर देते थे, चुनाव की रणनीति से लगाकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं तक , मैंने देखा कि जब भी कहीं पर भारत सरकार 2014 के बाद में संकट में आती थी और लोक सभा या राज्य सभा में किसी को जवाब देना होता था तो एक ही नाम ध्यान में आता था बिना तैयारी के भी बोलना हो तो एक ही नाम ध्यान में आता था श्रीमान अरूण जेटली जी का, वह उठकर खड़े होते थे और बिना कागज देखे समस्या का समाधान प्रस्तुत कर देते थे. हर दल के सदस्यों से उनके बहुत अच्छे संबंध थे. इतनी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, ऐसा व्यक्तित्व मान्यवर हमारे बीच से बहुत जल्दी चला गया.
श्री जयपाल रेड्डी जी, हमने अष्टावक्र की एक कहानी सुनी थी. अष्टावक्र बहुत विद्वान थे. सचमुच श्रीमान जयपाल रेड्डी में मैंने वह ही रूप देखा, उनके साथ में मुझे सांसद रहने का सौभाग्य मिला था, वह हमसे बिछुड़ गये हैं.
श्रीमान जगन्नाथ मिश्र जी उत्तर भारत के प्रतिष्ठित राजनेता और मुख्यमंत्री रहे हैं. बड़े ही प्रभावी ढंग से उन्होंने देश की सेवा की है. एक वरिष्ठ राजनेता और कुशल प्रशासक उन के रूप में खोया है.
श्री राम जेठमलानी जी तो जो केस कोई न लड़े, उसको लड़ने का जिम्मा राम जेठमलानी जी का होता था. वह विवाद से डरते नहीं थे. उनको लड़ना है तो लड़ना है. वह इतने प्रभावशाली ढंग से पैरवी करते थे कि अगर जेठमलानी जी खड़े हो गये तो लगभग सफलता की ग्यारंटी हो जाती थी. ऐसा कानूनविद शायद देश में दूसरा नहीं हो पायेगा. मैं उनके चरणों में भी श्रद्धा के सुमन अर्पित करता हूं.
श्री लक्ष्मीनारायण नायक जैसा कि अभी गोपाल जी ने बताया कि मैं जब भी निवाड़ी जाता था उनका एक ही विचार था कि निवाड़ी को जिला बनायें, निवाड़ी को जिला बनायें. एक ही धुन उनके दिमाग में रहती थी औरउनके कारण ही मेरे मन में यह भाव आया कि एक स्वतंत्रता संग्राम सैनानी, वरिष्ठ राजनेता और अलग तरह के जनसेवक इतनी प्रखरता के साथ में मांग कर रहे हैं. इसलिए निवाड़ी को भी एक जिला बनाने का भी काम हमने किया था.
श्री मेहरबान सिंह जी हम सबके साथी थे. वह लोकप्रिय थे तीन बार वह सदन के सदस्य रहे. उन्होंने प्रभावशाली ढंग से अपने क्षेत्र की जनता की सेवा की.
श्री राजबहादुर सिंह जी के स्वर्गवास से भी सार्वजनिक जीवन में अपूर्णीय क्षति हुई है.
श्री टी एन शेषन, अगर हिन्दुस्तान के राजेताओं में किसी एक आदमी का खौफ था तो उनका नाम था श्री टी एन शेषन. यह बात मुख्यमंत्री जी ने भी सही कही है कि उन्होंने चुनाव आयोग को प्रासंगिक बना दिया. जितने भी चुनाव सुधार की बात होती थी उसे जमीन पर प्रभावशाली ढंग से और प्रभावशाली ढंग ऐसा कि लोग कांप जाते थे, अगर किसी ने लागू किया तो उऩका नाम था श्रीमान टी एन शेषन . वह भी हमारे बीच से चले गये हैं मैं इन सभी महानुभावों के चरणों में श्रद्धा के सुमन अर्पित करता हूं. परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि वह दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करें और उनके मित्र अनुयायी और परिजनों को यह गहन दुख सहने की क्षमता प्रदान करें. ओम शांति.
अध्यक्ष महोदय -- मैं सदन की ओर से शोकाकुल परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं. अब सदन दो मिनट मौन खड़े रहकर दिवंगतों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करेगा.
( सदन द्वारा दो मिनट मौन रहकर दिवंगतों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की गई )
अध्यक्ष महोदय -- दिवंगतों के सम्मान में सदन की कार्यवाही बुधवार, दिनांक 18 दिसम्बर, 2019 को प्रात: 11.00 बजे तक के लिए स्थगित.
पूर्वाह्न 11.50 बजे विधान सभा की कार्यवाही बुधवार, दिनांक 18 दिसम्बर, 2019 ( अग्रहायण 27, शक संवत् 1941 ) के पूर्वाह्न 11.00 बजे तक के लिये स्थगित की गई.
भोपाल: अवधेश प्रताप सिंह
दिनांक : 17 दिसम्बर, 2019 प्रमुख सचिव
मध्यप्रदेश विधान सभा